Update 20

रोहित घबड़ा गए। उन्हें लगा की शायद उनका पीछा करते करते दुश्मन के सिपाही उनके करीब आ चुके हैं। रोहित को जल्दी से कहीं ऐसी जगह छुपना था जहां से उनको आसानी से देखा नहीं जा सके। रोहित ने डरके मारे चारों और देखा। नदी के किनारे थोड़ी दूर एक छोटीसी पहाड़ी और उसके निचे घना जंगल उनको दिखाई पड़ा। वह फ़ौरन उसके पास पहुँचने के लिए भागे। अन्धेरा छट रहा था। सूरज अभी उगने में समय था पर सूरज की लालिमा उभर रही थी। रोहित को अपने आपको दुश्मन की निगाहों से बचाना था। वह भागते हुए नजरे बचाते छिपते छिपाते पहाड़ी के निचे जा पहुंचे। झाड़ियों में छुपते हुए ताकि अगर दुश्मन का कोई सिपाही उस तरफ हो तो उन्हें देख ना सके, बड़ी सावधानी से आवाज किये बिना वह छुपने की जगह ढूंढने लगे। अचानक उन्हें लगा की शायद थोड़ी ऊपर एक गुफा जैसा उन्हें दिखा। वह गुफा काफी करीब जाने पर ही दिखाई दी थी। दूर से वह गुफा नजर नहीं आती थी। रोहित फ़ौरन उस चट्टान पर जैसे तैसे चढ़ कर गुफा के करीब पहुंचे। एरिया में गुफा लगभग एक बड़े हॉल के जितनी थी। उन्हें लगा की शायद वहाँ कोई रहता होगा, क्यूंकि गुफा में दो फटे हुए गद्दे रखे थे, एक पानी का मटका था, कुछ मिटटी के और एल्युमीनियम के बर्तन थेऔर एक कोने में एक चूल्हा और कुछ राख थी जिससे यह लगता था जैसे किसने वहाँ कुछ खाना पकाया होगा।

रोहित चुपचाप गुफा में घुस गए और बहार एक घांसफूस का लकड़ी और रस्सी से बंधा दरवाजे जैसा था (वह एक घाँस और लकड़ी की फट्टियों का बना आवरण जैसा हीथा, दरवाजा नहीं) उससे गुफा को ढक दिया ताकि किसी को शक ना हो की वहाँ कोई गुफा भी थी। रोहित थकान से पस्त हो गए थे। उनमें कुछ भी करने की हिम्मत और ताकत नहीं बची थी। खुद को बचाने के लिए जो कुछ वह कर सकते थे उन्होंने किया था अब बाकी उपरवाले के भरोसे छोड़ कर वह एक गद्दे पर लम्बे हुए और लेटते ही उनकी आँख लग गयी। उन्हें पता नहीं लगा की कितनी देर हो गयी पर अचानक उनको किसीने झकझोर कर जगाया। उनके कान में काफी दर्द हो रहा था। चौंक कर रोहित ने जब अपनी आँख खोली तो देखा की एक औरत फटे हुए कपड़ों में उनकी ही बंदूक अपने हाथों में लिए हुए उनके सर का निशाना बना कर खड़ी थी और उन्हें बंदूक के एक सिरे से दबा कर जगा रही थी। उस हालात में ना चाहते हुए भी उनकी नजर उस औरत के बदन पर घूमने लगी। हालांकि उस औरत के कपडे फटे हुए और गंदे थे, उस औरत की जवानी और बदन की कामुकता गजब की थी। उसकी फटी हुई कमीज में से उसके उन्मत्त स्तनोँ का उभार छुप नहीं पा रहा था। औरत काफी लम्बे कद की और पतली कमर वाली करीब २६ से २८ साल की होगी।

रोहित ने देखा तो उस औरत ने एक कटार जैसा बड़ा एक चाक़ू अपनी कमर में एक कपडे से लपेट रखा था। उसके पाँव फटे हुए सलवार में से उसकी मस्त सुडौल जाँघे दिख रहीं थीं। शायद उस औरत की चूत और उस कपडे में ज्यादाअंतर नहीं था। उसकी आँखें तेज और नशीली लग रही थीं। अचानक बंदूक का धक्का खाने के कारण रोहित गिर पड़े। वह औरत उन्हें बन्दुक से धक्का मारकर पूछ रही थी, " क्या देख रहा है साले? पहले कोई औरत देखि नहीं क्या? तुम कौन हो बे? यहां कैसे आ पहुंचे? सच सच बोलो वरना तुम्हारी ही बंदूक से तुम्हें भून दूंगी।" उस औरत के कमसिन बदन का मुआइना करने में खोये हुए रोहित बंदूक का झटका लगते ही रोहित वापस जमीन पर लौट आये।

उन्हें पता नहीं था यह औरत कौन थी। वह आर्मी वाली तो नहीं लग रहीथी क्यूंकि नातो उसने कोई यूनिफार्म पहना था और ना ही उसके पास अपनी कोई बंदूक थी। ना ही उसने अपने कपडे ढंग से पहने हुए थे। पर औरत थी कमालकी खूबसूरत। उसके बदन की कामुकता देखते ही बनती थी। उस औरत ने सोते हुए रोहित की ही बंदूक उनकी कानपट्टी पर दाग रक्खी थी। रोहित को ऐसा लग रहा था जैसे वह औरत भी कुछ डरी हुई और तनाव में थी। रोहित ने डरते हुए अपने दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, "मैं यहां के सिपाहियों की जेल से भगा हुआ कैदी हूँ। मेरे पीछे यहां की सेना के कुछ सिपाही पड़े हैं। पता नहीं क्यों?" रोहित की बात सुनकर रोहित को लगा की शायद उस औरत ने हलकी सी चैन भरी साँस ली। बंदूक की नोक को थोड़ा निचे करते हुए उस औरत ने पूछा, "कमाल है? सिपाही पीछे पड़े है, और तुम्हें पता नहीं क्यों? सच बोल रहा है क्या? कहाँसे आयाहै तू?" रोहितने कहा, "हिंदुस्तानी हूँ मैं। हमें पकड़ कर यहां के सिपाहीयो ने हमें जेल में बंद कर दिया था। हम तीन थे। जेल से तो हम भाग निकले पर मेरे दो साथी नदी में बह गए। पता नहीं वह ज़िंदा हैं या नहीं। मैं बच गया और उन सिपाहियों से बचते छिपते हुए मैं यहां पहुंचा हूँ।"

रोहित ने देखा की उनकी बात सुनकर उस औरत कुछ सोच में पड़ गयी। शायद उसे पता नहीं था की रोहित की बात का विश्वास किया जाये या नहीं। कुछ सोचने के बाद उस औरत ने अपनी बन्दुक नीची की और बोली, "फिर यह बंदूक कहाँ से मिली तुमको?" रोहित ने राहत की एक गहरी साँस लेते हुए कहा, "यह उन में से एक सिपाही की थी। हम ने उसे मार दिया और उसकी बंदूक लेकर हम भागे थे। यह बंदूक उसकी है।" औरत ने रोहित की कानपट्टी पर से बंदूक हटा दी और बोली, "अच्छा? तो तुम भी उन कुत्तों से भागे हुए हो?" जैसे ही रोहित ने "भी" शब्द सुना तो वह काफी कुछ समझ गए। अपनी आवाज में हमदर्दी जताते हुए वह बोले, "क्या तुम भी उन सिपाहियों से भागी हो?" उस औरत ने बड़े ध्यान से रोहित की और देखा और बोली, "तुम्हें पता नहीं क्या यहाँ क्या हो रहा है?" रोहित ने अपने मुंडी नकारात्मक हुइलाते हुए कहा, "मुझे कैसे पता?" औरत ने कहा, "यह साले कुत्ते यहां की आर्मी के सिपाही, हमारी बस्तियों को लुटते हैं और हम औरतों को एक औरत को दस दस आदमी बलात्कार करते हैं और उनको चूंथने और रगड़ने के बाद उन्हें जंगल में फेंक देते हैं। मेरे पुरे कबीले को और मेरे घर को बर्बाद कर और जला कर वह मेरे पीछे पड़े थे। मैं भी तुम्हारी तरह एक सिपाही को उसी की बंदूक से मार कर भागी और करीब सात दिन से इस गुफा में छिपी हुई हूँ। मेरे पीछे भी वह भेड़िये पड़े हुए हैं। पर एक दो दिन से लगता है की हिंदुस्तान की आर्मी ने उनपर हमला बोला है तो शायद वह उनके साथ लड़ाई में फँसे हुए हैं।"

रोहित ने अपनी हमदर्दी जारी रखते हुए पूछा, "तुम इस गुफा में गुजारा कैसे करती हो? तुम्हारा गाँव कौनसा है और तुम्हारा नाम क्या है?" औरत ने कहा, "मेरा नाम आयेशा है। मैं यहां से करीब पंद्रह मील दूर एक गाँव में रहती थी। मेरे पुरे गाँव में साले कुत्तों ने एक रात को डाका डाला और मेरा घर जला डाला। मेरे अब्बू को मार दिया और दो सिपाहियों ने मुझे पकड़ा और मुझे घसीट कर मुझ पर बलात्कार करने के लिए तैयार हुए। तब मैंने उन्हें फंसा कर मीठी बातें कर के उनकी बंदूक ले ली और एक को तो वहीँ ठार मार दिया। दुसरा भाग गया। मैं फिर वहाँ से भाग निकली और भागते भागते यहां पहुंची और तबसे यहां उन से छिपकर रह रही हूँ। मैं खरगोश बगैरह जो मिलता है उसका शिकार कर खाती हूँ। एक रात मैं छिपकर नजदीक के गाँव में गयी तो वहाँ एक झौंपड़ी में कुछ बर्तन और गद्दे रक्खे हुए थे। झौंपड़ी वालोँ को उन गुंडों ने शायद मार दिया था। यह चुराकर मैं यहां ले आयी। "

रोहित ने कहा, "हम दोनों की एक ही कहानी है। वह सिपाही हमारे पीछे भी पड़े हैं। मुझे यहां से मेरे मुल्क जाना है। मुझे पता नहीं कैसे जाना है, कौनसे रास्ते से। क्या तुम मेरी मदद करोगी?" आयेशा: "तुम अभी कहीं नहीं जा सकते। चारों और सिपाही पहरा दे रहे हैं। अभी पास वाले गाँव में कुछ सिपाही लोग कहर जता रहे हैं। काफी सिपाही इस नदी के इर्दगिर्द पता नहीं किसे ढूंढ रहे हैं। शायद तुम लोगों की तलाश जारी है। यहां से बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है। एकाध दो दिन यहां रहना पडेगा। यह जगह अब तक तो मेहफ़ूज़ है। पर पता नहीं कब कहाँ से कोई आ जाये। यह बंदूक तुम्हारे पास है वह अच्छा है। कभी भी इसकी जरुरत पड़ सकती है।" जब आयेशा यह बोल ही रही थी की उनको कुछ आदमियों की आवाज सुनाई दी। आयेशा ने अपने होँठों पर उंगली रख कर रोहित को चुप रहने का इशारा किया। धीरे से आयेशा ने गुफा के दरवाजे की आड़ में से देखा तो कुछ साफ़ साफ़ नजर नहीं आ रहा था। आयेशा ने दरवाजा कुछ हटा कर देखा और रोहित को अपने पीछे आने का इशारा किया। बंदूक आयेशा के हाथ में ही थी। आयेशा निशाना ताकने की पोजीशन में तैयार होकर धीरे से बाहर आयी और झुक कर इधर उधर देखने लगी।

गुफा के अंदर छुपे हुए रोहित ने देखा की एक सिपाही ने आयेशा को गुफा के बाहर निकलते हुए देख लिया था। पहले तो रोहित का बदन डर से काँप उठा। अगर उस सिपाही ने बाकी सिपाहियों को खबर कर दी तो उनका पकडे जाना तय था। रोहित ने तयकिया की जीतूजी ने उन्हें बंदूक दे कर और उसे चलाना सीखा कर उन्हें भी सिपाही बना दिया था। अब तो वह जंग में थे। जंग का एक मात्र उसूल यह ही था की यातो मारो या मरो। चट्टान पर रेंगते हुए वह चुचाप आगे बढे और आयेशा के पाँव को खिंच कर उसे बाजू में गिरा दिया। अपने होँठों पर उंगली डाल कर चुप रहने का इशारा कर उन्होंने आयेशा की कमर में लटके बड़े चाक़ू को निकाला और पीछे चट्टान पर रेंगते हुए चट्टान के निचे कूद पड़े। वह सिपाही आयेशा की और निशाना तान कर उसे गोली मारने की फिराक में ही था। पीछे से बड़ी ही सिफ़त से लपक कर उस सिपाही के गले में चाक़ू फिरा कर उसके गले को देखते ही देखते रेंट डाला। सिपाही के गले में से खून की धारा फव्वारे जैसी फुट पड़ी। वह कुछ बोल ही नहीं पाया। कुछ पलों तक उसका बदन तड़पता रहा और फिर शांत हो कर जमीन पर लुढ़क गया। । खून के कुछ धब्बे रोहित के की शर्ट पर भी पड़े। वैसे ही रोहित की कमीज इतनी गन्दी थी की वह धब्बे उनके कमीज पर लगे हुए कीचड़ और मिटटी में पता नहीं कहाँ गायब हो गए।

ऊपरसे देखरही आयेशा जो रोहितके अचानक धक्का मारने से गिरने के कारण गुस्से में थी, वह अचरज से रोहित के कारनामे को देखती ही रह गयी। रोहित ने उसे धक्का मार कर गिराया ना होता और उस सिपाही को उसकी कमरमें रखे हुए चाक़ू से मार दिया ना होता तो वह सिपाही आयेशा को जरूर गोली मार देता और बंदूक की गोली की आवाज से सारे सिपाही वहां पहुँच जाते। रोहित की चालाकी से ना सिर्फ आयेशा की जान बच गयी बल्कि सारे सिपहियों को उस गुफा का पता चल नहीं पाया जहां आयेशा और रोहित छुपे हुए थे। रोहित उस सिपाही की बॉडी घसीट कर उस पहाड़ी के पीछे ले गए जहां निचे काफी गहरी खायी और घने पेड़ पौधे थे। उस बॉडी को रोहित ने ऊपर से निचे उस खायी में फेंक दिया। वह लाश निचे घने जंगल के पेड़ पौधोंके बिच गिरकर गायब होगयी। रोहित जी के करतब को बड़ी ही आश्चर्य भरी नजरों से देख रही आयेशा रोहित के वापस आने पर गुफा में उन पर टूट पड़ी और उनसे लिपट कर बोली, "मुझे पता नहीं था तुम इतने बहादुर और जांबाज़ हो।" आयेशाका करारा बदन अपने बदन से लिपटा हुआ पाकर रोहित की हालत खराब हो गयी। उस बेहाल हाल में भी उनका काफी समय से बैठा हुआ लण्ड उनके पतलून में खड़ा हो गया।

रोहित को लिपटते हुए आयेशा के दोनों भरे हुए अल्लड़ स्तन रोहित की बाजुओं को दबा रहे थे। आयेशा की चूत रोहित के लण्ड को जैसे चुनौती दे रहे थी। रोहित ने भी आयेशा को अपनी बाँहों में ले लिया और कांपते हुए हाथों से आयेशा के बदनके पिछवाड़े को सहलाने लगे। आयेशा ने अपने बदन को रोहित के बदन से रगड़ते हुए कहा, " मैं नहीं जानती आपका नाम क्या है। मैं यह भी नहीं जानती आप वाकई में है कौन और आप जो कह रहे हो वह सच है या नहीं। पर आपने मेरी जान बचाकर मुझे उन बदमाशों से बचाया है इसका शुक्रिया मैं कुछ भी दे कर अदा नहीं कर सकती। मैं जरूर आपकी पूरी मदद करुँगी और आपको उन भेड़ियों से बचाकर आपके मुल्क भेजने की भरसक कोशिश करुँगी, चाहे इसमें मेरी जान ही क्यों ना चली जाए। वैसे भी मेरी जान आपकी ही देन है।" मुश्किल से रोहित ने अपने आपको सम्हाला और आयेशा को अपने बदन से अलग करते हुए बोले, "आयेशा, इन सब बातों के लये पूरी रात पड़ी है। हमने उनके एक सिपाही को मार दिया है। हालांकि उसकी बॉडी उनको जल्दी नहीं मिलेगी पर चूँकि उनका एक सिपाही ना मिलने से वह बड़े सतर्क हो जाएंगे और उसे ढूंढने लग जाएंगे। हमें पुरे दिन बड़ी सावधानी से चौकन्ना रहना है और यहां से मौक़ा मिलते ही भाग निकलना है। पर हमें यहां तब तक रहना पडेगा जब तक वह सिपाहियों का घिराव यहां से हट ना जाए।"

रोहित ने सिपाही की बॉडी निचे गिराने पहले उसकी बंदूक ले ली थी। अब उनके पास दो बंदूकें हो गयीं। एक बंदूक आयेशा के पास थी अब एक और बंदूक सिपाही से हथिया ली। आयेशा काफी खुश नजर आ रही थी। पहली बार उसे महसूस हुआ की उसने ना सही, उसके साथीदार परदेसी (रोहित) ने उसके अब्बूकी कतल का बदला लिया था। आयेशा को सिपाही के मरने का कोई ग़म नहीं था। रोहित ने जब दुश्मन के सिपाही को मौत के घाट उतार दिया उस समय उनमें एक गज़ब का जोश और जूनून था। पर रोहित जब चट्टान से चढ़कर गुफा में घुसे तब उनका मन बहोत दुखी था। उनके लिए यह सोचना भी नामुमकिन था की कभी वह किसी आदमी को इतनी बेरहमी से मार भी सकते हैं। उनके मन में अपने आपके लिए एक धिक्कार सा भाव पैदा हुआ। उन्हें अपने आप पर नफरत हो गयी। जब वह गुफा में घुसे और जब आयेशा उनसे लिपट कर उन्हें किस करने लगी तो उनके मन में अजीब से तूफ़ान उमड़ रहे थे। रोहित को रोना आ रहा था। उनके लिए अपने जीवन का यह सबसे भयावह दिन था। जब कालिया को जीतूजी ने मार दिया था तो उन्हें बड़ा सदमा लगा था। पर उस समय वह काम जीतूजी ने किया था, उन्होंने नहीं। जब उस सिपाहीको स्वयं रोहितने अपने हाथों से मौतके घाट उतारा तो उन्हें लगा की उनमें एक अजीब सा परिवर्तन आया है। उन्होंने महसूस किया की वह एक खुनी थे और उन्होंने एक आदमी का क़त्ल किया था। हमें यह समझना चाहिए की जो सिपाही सरहद पर हमारे लिए जान की बाजी लगा कर लड़ते हैं, उन्हें भी मरना या किसी को मारना अच्छा नहीं लगता, जैसे की हमें अच्छा नहीं लगता। पर वह हमारे लिए और हमारे देश के लिए मरते हैंऔर मारते हैं। इसी लिए वह हमारे अति सम्मान और प्रशंशा के पात्र हैं।

रोहित के करतब को बड़ी ही आश्चर्य भरी नजरों से देख रही आयेशा रोहित के वापस आने पर गुफा में उन पर टूट पड़ी और उनसे लिपट कर बोली, "मुझे पता नहीं था तुम इतने बहादुर और जांबाज़ हो।" जब रोहित ने आयेशा को कहा की उनको सावधान रहने की जरुरत है, तब आयेशा ने कहा, "इस चट्टान के बिलकुल निचे एक छोटासा झरना है। मैं अक्सर वहाँ जा कर नहाती हूँ। वह गुफा में छिपा हुआ है। बाहर से कोई उसे देख नहीं सकता। तुम भी काफी थके हुए हो और तुम्हारे कपडे भी गंदे गए हैं। चलो मैं तुम्हें वह झरना दिखाती हूँ। तुम नहा लो और फिर दिन में थोड़ा आराम करो। मैं चौकीदारी करुँगी की कहीं कोई सिपाही इस तरफ आ तो नहीं रहा।" रोहित ने आयेशा की और देखा और मुस्कराये और बोले, "मोहतरमा! मेरे पास बदलने के लिए कोई कपडे नहीं है।"

आयेशा ने शरारत भरे अंदाज में कहा, "कोई बात नहीं। तुम बगैर कपडे ही ऊपर आ जाना, मैं नहीं देखूंगी, बस!" ऐसा कह बिना रोहित के जवाब का इंतजार किये आयेशा ने रोहित का हाथ थामा और उन्हें खींच कर हलके कदमों से गुफा के पीछे निचे एक झरने के पास ले गयी।

वहाँ पहुँचते ही उसने धक्का मारकर रोहित को झरने में जब धकेला तो रोहित ने भी आयेशा को कस के पकड़ा और अपने साथ आयेशा को लेकर धड़ाम से झरने में गिर पड़े। आयेशा हंसती हुई रोहित स लिपट गयी और बोली, "परदेसी, तुम तो बड़े ही रोमांटिक भी हो यार!" रोहित ने आयेशा को भी जकड कर पकड़ा। उनका मन उस समय कई पारस्परिक विरोधी भावनाओं से पीड़ित था। विधि का विधान भी कैसा विचित्र है? एक दुश्मन के मुल्क की औरत उनकी सबसे बड़ी दोस्त और हितैषी बन गयी थी। उस समय के रोहित के मन के भावों की कल्पना करना भी मुश्किल था। वह सिपाही तो थे नहीं। उन्हें तो यही सिखाया गया था की "अहिंसा परमो धर्म।" अहिंसा ही परम धर्म है। सिपाही का खून और उसका मृत शरीर देख कर रोहित को उलटी जैसा होने लगा था। जैसे तैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण रखा था। पर जब आयेशा ने उनकी बहादुरी की प्रशंशा की तो उनको रोना आ गया और वह फुट फुट कर रोने लगे। आयेशा रोहित के मनके भाव समझ रही थी। वह जानती थी की एक साधारण इंसान के लिए ऐसा खूनखराबा देखना कितना कठिन था। वह खुद भी तो उस नरसंहार के पहले एक आम औरत की तरह अपना जीवन बसर करना चाहती थी। पर विधाता ने उसे भी मरने मारने के लिए मजबूर कर दिया था और जब पहली बार उसने वह सिपाही को मार डाला था तब उसे भी ऐसे ही फीलिंग हुई थी।

आयेशा ने आगे बढ़कर रोहित को अपनी बाँहों में ले लिया हुए प्रगाढ़ आलिंगन करके (कस के जफ्फी लगा कर) रोहित के बालों में उंगलियां फिराते हुए बोली, "ओ परदेसी, मैं समझ सकती हूँ तुम्हारे मन में क्या हो रहा है। मैं भी तो इस दौर से गुजर चुकी हूँ। पर हम लड़ाई के माहौल में है। क्या करें, या तो हम उनके हाथों मारे जाएँ, या फिर उनको मार दें। यहां शान्ति और अमन के लिए जगह ही नहीं छोड़ी है उन्होंने। मेरी माँ को मार दिया, मेरे अब्बू को मार दिया और मेरी इज्जत लूटने पर आमादा हो गए थे वह।" आयेशा ने रोहित का सर अपनी छाती पर रख दिया। आयेशा का पूरा जवान गीला बदन, उसकी छाती पर उभरे हुए आयेशा के स्तन की नरमी रोहित के गालों को छू रही थी। आयेशा के बदन पर वैसे ही कम कपडे थे। जो थे वह गीले हो चुके थे और आयेशा के बदन को प्रदर्शित कर रहेथे। रोहित की आँखों के सामने आयेशा के स्तनों के उभार, आयेशा के बूब्स के बिच की खायी, यहां तक की उसकी निप्पलेँ भी दिख रहीं थीं। रोहित ने देखा की आयेशा भी शायद उनके शरीर के स्पर्श से उत्तेजित हो गयी थी और उसकी निप्पलेँ उत्तेजना के मारे फूल कर एकदम सख्त होरही थीं। आयेशाकी नशीली आँखें रोहितकी आँखों को एकटक निहार रही थीं। रोहित कीआँखों में सावन भादो की तरह पछतावे के आंसू बहे जा रहे थे। आयेशा अपने मदमस्त स्तनों से रोहित की आँखें बार बार पोंछ रही थी, और कहे जा रही थी, "बस परदेसी, काफी हो गया। मैं औरत हूँ। मैंने भी एक सिपाही को जान के घाट उतार दिया था। मुझे भी बहुत बुरा लगा था। पर मैं ऐसे नहीं रोई। तुम तो मर्द हो। बस भी करो।" ऐसा कह आयेशा ने अपने हाथ ऊपर कर अपनी कमीज उतार दी। रोहितने जब देखा की आयेशाने अपनी कमीज़ उतार दी और वह सिर्फ ब्रा में ही पानी में खड़ीथी, तो वह स्तब्ध हो गए। आयेशाकी कमीज काफी लम्बी थी और करीब करीब पुरे बदन को ढक रही थी। उसके हटने से आयेशा का पतला पेट और पतली छोटी सी कमर बिलकुल नंगी दिखाई दे रही थी। रोहित चुप हो गए। अब उनका ध्यान आयेशा की खिली हुई जवानी पर था। आयेशा की ब्रा उसके उभरे पूरी तरह फुले हुए स्तनोँ को बांध सकनेमें पूरी तरह नाकामियाब थी। पानीमें भीग जाने की वजहसे ब्रा भी आयेशा के स्तनोँ का गोरापन और फुलाव छिपा नहीं पा रही थी।

आयेशा की ढूंटी खूबसूरत सी उसके पेट के निचे और चूत के उभार के ऊपर बड़ी ही खूबसूरत लग रही थी। आयेशा का सलवार फटा हुआ था। आयेशा की जाँघें फ़टे हुए सलवार में से दिख रहीं थीं। आयेशा के सुआकार कूल्हे उसकी सलवार के नियत्रण में नहीं थे। कमीज़ के निकलते ही उनकी खूबसूरती रोहित की आँखों को अपने ऊपर से हटने नहीं दे रहे थे। उस फ़टीसी सलवार में से भी आयेशा के दोनों मस्त कूल्हे और उसके बिच की दरार सलवार के पानी में गीला होने पर आयेशा की गाँड़ के दर्शन करा रहे थे। आयेशा की गाँड़ के बिच की दरार देख कर रोहित का मन विचलित होने लगा था। उनका लण्ड उस दरार के बिच अपनी जगह बनाने के लिए लालायित हो उठा। रोहित की फ़टी हुई आँखों पर ध्यान ना देते हुए आयशा ने झुक कर अपनी कमीज़ झरने के पानी में धोयी और उसे निचोड़ कर एक पत्थर रख दी। फिर बड़ी ही अदा से उसने अपनी सलवार निकालदी। अब आयेशा सिर्फ एक ब्रा और पैंटी में ही थी। सलवार को भी उसने अच्छी तरह धोया और निचोड़ कर उसी पत्थर पर रख दिया।

रोहित की आँखों के सामने अब आयेशा करीब करीब नंगी खड़ी थी। रोहित आयेशा की जाँघों का कमल की नाल जैसा आकार देख कर देखते ही रह गए। उन्होंने विधाता की एक बड़ी ही खूबसूरत रचना अपने सामने साकार नग्न रूप में देखि। कहीं भी कोई कमी उस रचना में नहीं थी। मन ही मन रोहित सोचने लगे की भगवान् ने औरत को कितना खूबसूरत बनाया है। और उसमें भी उनकी इस रचना एकदम लाजवाब थी। आयेशा की दोनों जाँघों के बिच स्थित उसकी चूत का टीला अब स्पष्ट नजर आ रहा था। पानी में गीली होने के कारण आयेशा की पैंटी भी पारदर्शक हो गयी थी और आयेशा की छिपी हुई प्रेम बिंदु (उसकी खूबसूरत चूत) की झाँकी करा रही थी। आयेशा की झाँटें अगर होंगीं तो हलकी सी ही रही होंगी, क्यूंकि चूत के बाल नजर नहीं आ रहे थे। आयेशा की गाँड़ के दोनों गाल (कूल्हे) अब नंगे थे और पैंटी की पट्टी जो की गाँड़ की दरार में घुस चुकी थी वह ना तो आयेशा की गाँड़ को छुपा सकती थी और ना तो गाँड़ के गालों के बिच की दरार को।

आयेशा रोहित की नज़रों को नजर अंदाज करते हुए रोहित के पास आयी। उसने रोहित जी के दोनों हाथ ऊपर कर उनकी शर्ट और बादमें बनियान भी निकाली और उन्हें धो कर निचोड़ कर अपने कपड़ों के साथ ही रख दी। फिर आयेशा ने धीरे से अपने हाथों से रोहित की पतलून की बेल्ट लूज की और पतलून खोली। आयेशा का हाथ अपनी पतलून पर लगते ही रोहित के पुरे बदन में झनझनाहट सी होने लगी। बेल्ट खुलते ही पतलून निचे गिर गयी। रोहित का मोटा खड़ा लण्ड उनकी निक्कर में साफ़ साफ़ दिख रहा था। आयेशा ने रोहित के लण्ड को छुआ नहीं था। पर उनका लण्ड एकदम फौजीकी तरह निक्करमें खड़ा होगया था। रोहित जी के लण्ड की और ध्यान ना देते हुए आयेशा ने उनकी पतलून भी पानी में अच्छी तरह धोयी और पहले की ही तरह अच्छी तरह निचोड़ कर पत्थर पर रख दी। आखिर में आयेशा पानी में बैठ गयी अपने बदन को घिस घिस कर पानी को अपने हाथों से अपने पर उछाल कर नहाने लगी। पानी में बैठे बैठे उसने रोहित की और देखा। रोहित जी बेचारे एक बूत की तरह आयेशा की गति-विधियां अचम्भे से देख रहे थे। आयेशा ने रोहित जी के पाँव को पकड़ उन्हें झकझोरा और कहा, "कमाल है! तुम कैसे मर्द हो? एक औरत तुम्हारे कपडे इतने प्यार से निकाल रही है और तुम हो की बूत की तरह खड़े हो और हिल ही नहीं रहे हो। अब मैं तुम्हारी निक्कर भी निकाल दू क्या? या फिर तुम ही निकाल कर मुझे धोने के लिए दोगे?" आयेशा का ताना सुनकर रोहित चौके और आयेशा के पास ही खड़े खड़े उन्होंने अपनी निक्कर अपने पाँव के निचे की और सरका दी।

रोहित की निक्कर का पर्दा हटते ही रोहित का खड़ा और कडा लण्ड खुलकर आयेशा के सामने आ खड़ा हुआ। आयेशा ने परदेसी का लण्ड देखा तो वह उसे देखती ही रह गयी। उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा सी छा गई। गुलाबी रंग का पूरी तरह तना हुआ इतना मोटा और लंबा लण्ड देख कर उसके मन में क्या भाव हो रहे थे उसकी कल्पना करना भी मुश्किल था। आयेशा रोहित के खुले और आस्मां की और अपना उद्दण्ड सर उठाते हुए लण्ड को काफी देर तक नजरें उठा कर तो कभी झुका कर देखती रही। आयेशा जब आगे झुकी तो रोहित को ऐसा लगा जैसे आयेशा उनके लण्ड को उसके मुंह में लेकर उसे चूसने लगेगी। पर आयेशा ने आगे झुक कर रोहित के पांव के निचे गिरी निक्कर को उठाया और बड़े प्यार से उसे अच्छी तरह धोया। फिर उसे निचोड़ कर पत्थर पर बाकी कपड़ों के साथ रख दिया। आयेशा यह सोचकर बेताब थी की परदेसी का अगला कदम क्या होगा। आयेशा उम्मीद कर रही थी की परदेसी उसकी ब्रा और पैंटी निकाल कर उसको अपनी बाँहों में भर लेगा और उसके बरसों से प्यासे बदन और प्यासी चूत की प्यास उस वक्त बुझा देगा। पर रोहित को वैसे ही खोया हुआ देख कर आयेशा ने अपने ही हाथोँ से अपनी ब्रा की पट्टी खोल दी और फिर थोड़ा झुक कर अपने पाँव ऊपर कर अपनी पैंटी भी उतार दी।

रोहित बड़े ही अचरज और लोलुपता से विधि की सबसे खूबसूरत रचना को पूर्णिमा के चाँद की तरह अपनी पूरी कला में बिना कोई आवरण के नग्न रूप में देखते ही रहे। एक और मरने मारने की बात थी तो दूसरी और एक खूबसूरत रचना उनको अपनी पूरी खूबसूरती के दर्शन दे रही थी। रोहित मन ही मन सोच रहे थे की हो सकता है इस मिलन से ही कोई नयी खूबसूरत रचना यह धरती पर पैदा हो! पूरी तरह बिना किसी आवरण के नंगी आयेशा को रोहित हक्केबक्के खड़े खड़े देखते ही रहे। उनके लण्ड से उनका पूर्वश्राव बहना शुरू हो गया था। रोहित ने पहली बार आयेशा की इतनी खूबसूरत चूत को पूरी तरह से अनावृत हाल में देखा। आयेशा की चूत रोहित को बहुत ही ज्यादा सुन्दर लग रही थी। रोहित को वह और औरतों से अलग ही लग रही थी। यह उनके मन का वहम था या हकीकत वह रोहित समझ नहीं पा रहे थे। आयेशा की चूत की दरार एक महीन पतली रेखा की तरह थी। उसके दोनों और उभरे हुए चूत के होँठ कमालके खूबसूरत थे। चूत के ऊपर बाल नजर नहीं आ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे आयेशा ने अपनी झाँट के बाल कुछ ही समय पहले साफ़ किये होंगे। पर ऐसाथा नहीं। क्यूंकि कुछ हलके फुल्के बाल फिर भी दिख रहे थे। आयेशा की चूत के होँठों के आरपार आयेशा की खूबसूरत सुआकार लम्बी जाँघें इतनी ललचाने वाली और अच्छे अच्छे मर्दों का पानी निकाल देने वाली थीं। चूत की सीध में ऊपर की और उभरा हुआ पेट जो और ऊपर जाकर पतली सी कमर में परिवर्तित हो जाता था, कमाल का था। आयेशा ने जब देखा की रोहित फिर भी चुपचाप उसे देख रहे थे तो चेहरे पर निराशा का भाव लिए आयेशा जाने की तैयारी करने लगी तब रोहित ने उसे रोक कर कहा, "अभी हमने खतरों से निजात नहीं पायी है। हम दुश्मन के एक्टिव रहते हुए गाफिल नहीं रह सकते। कहीं कभी कोई सिपाही हमें देख ले और मार दे या पकड़ ले इससे बेहतर हैं हम पूरी तरह सावधान रहें। पहले हम यह सुनिश्चित कर लें की दुश्मन के सिपाही से हमें कोई ख़तरा नहीं है।"

रोहित की बात सुनकर बिना कुछ जवाब दिए निराश हुई आयेशा धुले हुए सारे कपडे उठा कर जमीन का थोड़ा सा चढ़ाव चढ़ कर वापस गुफा में जाने लगी। नंगी चलती हुई आयेशा के मटकते हुए कूल्हों को रोहित देखते ही रहे। उन्हें और उनके फुले हुए मोटे और लम्बे लण्ड को इस तरह चुदाई करवाने के लिए इतनी इच्छुक कामिनी को निराशा करना बड़ा ही खटक रहा था। पर क्या करे? वक्त ही ऐसा था की थोड़ी सीभी लापरवाही उनकी जान ले सकती थी। आयेशा चुपचाप अपनी गुफा में पहुंची और धुले हुए गीले कपडे उसने पत्थर पर इधर उधर बिछा दिए। फिर अपने हाथ में एक बंदूक लेकर उसने गुफा के पत्तों से आच्छादित दरवाजे की दरार में से बाहर देखना शुरू किया।

कुछ ही देर में रोहित भी नंगे गुफा में पीछे से आ पहुंचे। उन्होंने पीछे से आकर नंगी खड़ी आयेशाको अपनी बाँहोंमें लिया और अपना लण्ड आयेशा की गांड की दरार से सटाते हुए और आयेशा के उद्दंड दोनों स्तनोँ को अपने दोनों हाथों में दबाते और मसलते हुए बोले। "देखो आयेशा, मैं कोई नामर्द नहीं हूँ की तुम्हारे जैसी बला की खूबसूरत औरत को नंगा देख कर मुझे कुछ नहीं होता। मैं इसी वक्त तुम्हें मन से और बदन से मेरी बनाना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे और मेरे बदन की प्यास बुझाना चाहता हूँ। पर धीरज का फल मीठा होता है। पहले हम यह पक्का करलें की खतरा नजदीक नहीं। अब मुझ पर हम दोनों के जान की जिम्मेवारी है।" आयेशा ने मुड़कर रोहित के सर को अपने हाथों में लिया और रोहित के होँठों से अपने होँठ चिपका कर उन्हें चूसते हुए बोली, "मैं सोचती थी की यह मर्द तो पूरा छह फ़ीट लम्बा और हट्टाकट्टा है। इसका लण्ड भी इतना लंबा, मोटा, खड़ा और कडा है। फिर क्या इस परदेसीके सीनेमें दिल है की नहीं?"

आयेशा ने फिर गद्दे की और इशारा कर कहा, "तुम थके हुए हो। तुम वहाँ थोड़ी देर आराम करो। मैं यहां पैहरा दे रही हूँ। कुछ भी होने पर मैं तुम्हें जगा दूंगी। तुम्हें आराम की सख्त जरुरत है।" आयेशा ने फिर अपनी आँखें नचाते हुए शरारत भरे अंदाज़ में कहा, "अगर तुम्हें ठीक आराम मिला तो तुम फिर से चुस्त हो जाओगे और दोस्तों और दुश्मनों दोनों को ही पूरा इन्साफ दे पाओगे।"

रोहित ने आयेशाके पीछे अपना बदन सटाकर आयेशा के उन्नत स्तनोँ को अपनी उँगलियों में रगड़ते हुए कहा, "मैं हिंदुस्तानी जवान हूँ। मैं फौजी ना सही पर दिल हमारे फौजियों जैसा दिलफेंक रखता हूँ। हम हमारे जवानों को देश भक्ति और दूसरे कड़े नियमों के साथ साथ महिलाओं की इज्ज़त करना सिखाते हैं। हमारे फौजी जवान कभी भी महिलाओं से बदसुलूकी या जबरदस्ती नहीं करते। पर जो हमारी जानेमन होती है, उन्हें हम छोड़ते भी नहीं। हम उन्हें पूरी तरह से खुश और संतुष्ट करने का मादा रखते हैं।" आयेशा ने फिर अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "अच्छा?" आयेशा ने अपना हाथ पीछे किया और रोहित से थोड़ा अलग हो कर रोहित का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया। रोहित की उत्तेजना के कारण उनके लण्ड के केंद्र छिद्र में से चिकना स्राव रिसना शुरू हो गया था। अपनी उँगलियों से उस स्राव को रोहित के लण्ड की सतह पर फैलाते हुए आयेशा ने पूछा, "हाँ जी! तुम जिस तरह अपनी चिकनाहट निकाल रहे हो, यह तो साफ़ दिख रहा है। वैसे तुम करते क्या हो?" रोहित ने आयेशा के नंगे कमसिन पेट, कमर और नाभि पर हाथ फिराते हुए कहा, "अभी तो मैं एक बेहद खूबसूरत मोहतरमा के खुबरात बदन का जायजा ले रहा हूँ और उन से प्यार कर रहा हूँ।" आयेशा ने कहा, "तुम तो कमाल हो! जब मैं चाहती हूँ की तुम मुझसे प्यार करो, तो जनाब मुझे बड़े उपदेश देने लगते हैं की अभी हमें चौकन्ना रहना है बगैरह बगैरह और जब मैं कहती हूँ आराम करो तो जनाब को प्यार करने का मन करता है? यह क्या बात हुई?" रोहित ने आयेशा की कमर को पकड़ा, उसका हाथ अपने लण्ड से हटाया और आयेशा की कमर को पीछे की और खींचा और अपने लण्ड को आयेशा की गाँड़ की दरार में घुसाया और खोखले धक्के मारने लगे जैसे की चोदते समय धक्के मारते हैं। फिर बोले, "इस समय तो मैं अपनी माशूका को मेरे लण्ड को महसूस कराना चाहता हूँ, बस। जैसा तुमने कहा, मोहतरमा का हुक्म सर आँखों पर। अब मैं थोड़ी देर आराम करलूं और तुम तब तक चौकन्नी रह कर नजर रखो।"

कुछ ही देर में रोहित थकान के मारे गद्दे पर गहरी नींद सो गए और खर्राटे मारने लगे। अब उनको कोई चिंता नहीं थी क्यूंकि उनकी रखवाली करने वाली एक जांबाज औरत भरी बंदूक के साथ उनकी हिफाजत के लिए चौकी कर रही थी।​
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