Update 22

जीतूजी ने भी कपड़ों को साफ़ करते हुए कहा, "जहां तक मेरा अनुमान है, हम हिंदुस्तानकी बॉर्डरसे एकदम करीब हैं। हो सकता है हम सरहद पार भी कर गए हों।" अपर्णा ने पूछा, "तो अब हम किस तरफ जाएँ?" जीतूजी ने अपर्णा का हाथ पकड़ कर कहा, "हमें इस नदी के किनारे किनारे ही चलना है। हो सकता है हमें आपके पति रोहित मिल जाएँ। हो सकता है हमें कोई एक रात या दिन गुजारने के लिए आशियाना मिल जाए।" अपर्णा को तब समझ में आया की जीतूजी भी थके हुए थे। जीतूजी लड़खड़ाती अपर्णा का हाथ पकड़ उसे अपने साथ साथ चलातेऔर हौसला देते हुए नदी के किनारे आगे बढ़ रहे थे तब उनको दूर दूर एक बत्ती दिखाई दी। जीतूजी वहीँ रुक गए और अपर्णा की और घूमकर देखा और पूछा, "देखोतो अपर्णा। क्या तुम्हें वहाँकोई बत्ती दिखाई दे रही है या यह मेरे मन का वहम है?" अपर्णा ने ध्यान से देखा तो वाकई दूर दूर टिमटिमाती हुई एक बत्ती जल रही थी। बिना सोचे समझे जीतू जी ने अपर्णा का हाथ पकड़ कर उस दिशा में चल पड़े जिस दिशा में उन्हें वह बत्ती दिखाई दे रही थी। वह घर जिसमें बत्ती जलती दिखाई दे रही थी वह थोड़ी ऊंचाई पर था। चढ़ाई चढ़ते आखिर वहाँ पहुँच ही गए। दरवाजे पर पहुँचते ही उन्होंने एक बोर्ड लगा हुआ देखा। पुराना घिसापिटा हुआ बोर्ड पर लिखा था "डॉ. बादशाह खान यूनानी दवाखाना" जीतूजी ने बेल बजायी। उन्होंने अपर्णा की और देखा और बोले, "पता नहीं इतने बजे हमें इस हाल में देख कर वह दरवाजा खोलेंगे या नहीं?" पर कुछ ही देर में दरवाजा खुला और एक सफ़ेद दाढ़ी वाले बदन से लम्बे हट्टेकट्टे काफी मोटे बड़े पेट वाले बुजुर्ग ने कांपते हुए हाथों से दरवाजा खोला।

जीतूजी ने अपना सर झुका कर कहा, "इतनी रात को आपको जगा ने के लिए मैं माफ़ी माँगता हूँ। मैं हिंदुस्तानी फ़ौज से हूँ। हम लोग नदी के भंवर में फंस गए थे। जैसे तैसे हम अभी बाहर निकल कर आये हैं और थके हुए हम एक रात के लिए आशियाना ढूंढ रहे हैं। अगर आप को दिक्कत ना हो तो क्या आप हमें सहारा दे सकते हैं?" जीतूजी को बड़ा आश्चर्य हुआ जब डॉक्टर खान के चेहरे पर एकदम प्रसन्नताका भाव आया और उन्होंने फ़ौरन दरवाजा खोला और उन दोनों को अंदर बुलाया और फिर दरवाजा बंद किया। उसके बाद वह दोनों के करीब आ कर बोले, "आप हिन्दुस्तानी सरहद के अंदर तो हैं, पर यहां सरहद थोड़ी कमजोर है। दुश्मन के सिपाही और दहशतगर्द यहाँ अक्सर घुस आते हैं और मातम फैला देते हैं। वह सरहद के उस तरफ भी और इस तरफ भी अपनी मनमानी करते हैं और बिना वजह लोगों को मार देते हैं, लूटते हैं और फिर सरहद पार भाग जाते हैं। इस लिए मैंने यह दवाखाना कुछ ऊंचाई पर रखा है। यहां से जो कोई आता है उस पर नजर राखी जा सकती है। मैं हिन्दुस्तांनी हूँ और हिंदुस्तानी फ़ौज की बहुत इज्जत करता हूँ।" फिर डॉ. खान ने उनको निचे का एक कमरा दिखाया जिसमें एक पलंग था और साथ में गुसल खाना (बाथरूम) था। डॉ. खान ने कहा, "आप और मोहतरमा इस कमरे में रात भर ही नहीं जब तक चाहे रुक सकते हैं। मैं जा कर कुछ खाना और मेरे पास जो मेरे सीधे सादे कपडे हैं वह आप पहन सकते हैं और मेरी बेटी के कपडे मैं लेके आता हूँ, वह आपकी बीबी पहन सकती हैं।"

डॉ. खान ने अपर्णा को जब जीतूजी की बीबी बताया तब जीतूजी आगे बढे और डॉ. खान को कहने जा रहे थे की अपर्णा उनकी बीबी नहीं थी, पर अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थामकर उन्हें कुछ भी बोलने नहीं दिया और आगे आकर कहा, "सुनिए जी! डॉ. साहब ठीक ही तो कह रहे हैं।पता नहीं हमें यहां कब तक रुकना पड़े।" फिर डॉ. खान की तरफ मुड़ कर बोली, "डॉ. साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया।" जीतूजी और अपर्णा को कमरे में छोड़ कर बाहर का मैन गेट बंद कर डॉ. खान ऊपर अपने घर में चले गए और थोड़ी ही देर में कुछ खाना जैसे ब्रेड, जाम, दूध, कुछ गरम की हुई सब्जी लेकर आये और खुदके और अपनी बेटी के कपडे भी साथमें लेकर आए। खाना और कपडे मेज पर रख कर अल्लाह हाफ़िज़ कह कर डॉ. खान सोने चले गए।

कमरे का दरवाजा बंद कर अपर्णा ने दो थालियों में खाना परोसा। जीतूजी और अपर्णा वाकई में काफी भूखे थे। उन्होंने बड़े चाव से खाना खाया और बर्तन साफ कर रख दिए। सुनिता ने फिर बाथरूम में जा कर देखा तो पानी गरम करने के लिए बिजली का रोड रखा था और बाल्टी थी। पानी एकदम ठंडा था। जीतूजी ने कहा की वह पहले नहाना चाहते थे। जीतूजी ने अपर्णा से पूछा, "अपर्णा तुमने मुझे क्यों रोका, जब डॉ. साहब ने तुम्हें मेरी पत्नी बताया?" अपर्णाने कहा, "जीतूजी, मैं एक बात बताऊँ? आज जब आपने मुझे अपनी जान जोखिम में डालकर बचाया तो आपने वह किया जो मेरे पति भी नहीं कर सके जिससे मेरी माँ को दिया हुआ वचन पूरा हो गया। माँ ने मुझसे वचन लिया था की जो मर्द अपनी जान की परवाह ना कर के और मुझे खुशहाल रखना चाहेगा मैं उसे ही अपना सर्वस्व दूंगी। अब कोई मुझे आपकी बीबी समझे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।" यह कह कर अपर्णा जीतूजी को बाँहोंमें लिपट गयी। जीतूजी की आँखें शायद उस सफरमें पहली बार अपर्णा की बात सुनकर नम हुयी। पर अपने आपको सम्हालते हुए जीतू जी बोले, "अपर्णा, सच तो यह है की मैं भी थक गया हूँ। खाना खाने के बाद मुझे सख्त नींद आ रही है। पहले मैं नहाता हूँ और फिर आप नहाने जाना।" अपर्णा ने जीतूजी से कहा, "आप अपने सारे कपडे बाल्टी में डाल देना। मैं उनको धो कर सूखा दूंगी।"

अपर्णाने बाल्टीमें पानी भर कर रोडसे गरम करने रख दिया और अपर्णा के गरम किये हुए पानी से जीतूजी नहाये और जब उन्होंने डॉ. खानके लाये हुए कपडे देखे तो पाया की उनमेंसे एकभी उनको फिट नहीं हो रहा था। उनके कपडे काफी बड़े थे। कुर्ता और पजामा उनको बिल्कु फिट नहीं हो रहा था। सारे कपडे इतने ढीले थे की शायद उस पाजामे और कुर्ते में जीतूजी जैसे दो आदमी आ सकते थे। जीतूजी ने एक कुर्ता और ढीलाढाला पजामा पहना पर वह इतने ढीले थे की उनको पहनना ना पहनना बराबर ही था। जैसे तैसे जीतू जी ने कपडे पहने और फुर्ती से पलंग की चद्दरों और कम्बलों के बिच में घुस गए।

अपर्णा डॉ. खान साहब की बेटी के कपडे लेकर बाथरूममें गयी तो देखाकी जीतूजी के गंदे कपडे बाल्टी में डले हुए थे। अपर्णा ने महसूस किया की उनके कपड़ों में जीतूजी के बदन की खुशबु आ रही थी। अपर्णा ने जनाना उत्सुकता से जीतूजी निक्कर सूंघी तो उसे जीतूजी के वीर्य की खुशबु भी आयी। अपर्णा जान गयी की उसके बदन के करीब चिपकने से जीतूजी का वीर्य भी स्राव तो हो रहा था। अपर्णा ने फटाफट अपने और जीतू जी के कपडे धोये और नहाने बैठ गयी। अपने नग्न बदन को आईने में देख कर खुश हुई। इतनी थकान के बावजूद भी उसके चहरे की रौनक बरकरार थी। कमर के ऊपर और के निचे घुमाव बड़ा ही आकर्षक था। अपर्णा को भरोसा हो गया की वह उतनी ही आकर्षक है जितना पहले थी। अपर्णा की गाँड़ पीछे से कमर के निचे गिटार की तरह उभर कर दिख रहीथी जिसको देख कर और स्पर्श कर अच्छे अच्छे मर्दों का भी वीर्य स्खलित हो सकताथा। अपर्णाके बूब्स कड़क और एकदम टाइट पर पुरे फुले हुए मदमस्त खड़े लग रहे थे। उन स्तनोँ को दबाते हुए अपर्णा ने महसूस किया की उसकी निप्पलं भी उत्तेजना के मारे फूल गयी थीं। अपर्णा के स्तनों के चॉकलेटी रंग के एरोला पर भी रोमांच के मारे कई छोटी छोटी फुंसियां भी दिख रही थीं। अपर्णा उत्तेजना से अपने दोनों स्तनोँ को अपने ही हाथों से दबाती हुई उस रात को क्या होगा उसकी कल्पना करके रोमांचित हो रही थी। अपर्णा ने साबुन से सारे कपडे अच्छी तरह धोये और निचोड़ कर कमरे में ही हीटर के पास सुखाने के लिए रख दिये। उसमें उसके भी कपडे थे। तौलिये से अपना साफ़ करने के बाद जब अपर्णा ने डॉ. खान के लाये हुए कपड़ों को देखा तो पाया की वह बहुत ही छोटे थे। सलवार बिलकुल फिट नहीं बैठ रही थी और कमीज इतनी छोटी थी की बाँहों में भी नहीं घुस रही थी।

शायद डॉ. खान अपनी पोती की सलवार कमीज गलती से उठा लाये होंगे ऐसा अपर्णा को लगा। वह अपने सर पर हाथ लगा कर सोचने लगी की अब क्या होगा? यह कपडे वह पहन नहीं सकती थी। उसके अपने कपडे धोने के लिए रखे थे और गीले थे। अभी ऊपर जा कर डॉ. खान चाचा को बुलाना भी ठीक नहीं लगा। अब करेतो क्या करे? अपना सर हाथमें पकड़ कर बैठ गयी अपर्णा।बस एक ही इलाज था या तो वह तौलिया पहने सोये या फिर बिना कपडे के ही सोये। तौलिया गीला होगा तो वह चद्दर भी गीली करेगा। वैसे ही डॉ. खान को तो उन्होंने आधी रातको जगा कर काफी परेशान किया था। ऊपर से फिर जगाना ठीक नहीं होगा। दूसरी बात, अगर अपर्णा ने तय किया की वह डॉ. खान चाचा को उठाएगी, तो वह जायेगी कौनसे कपडे पहनकर? अब तो अपर्णा के लिए बस एक ही रास्ता बचा था की उसे बिना कपडे के ही सोना पड़ेगा। बिना कपडे के जीतू जी के साथ सोना मतलब साफ़ था। जीतूजी का हाथ अगर अपर्णा के नंगे बादन को छू लिया और अगर उन्हें पता चला की अपर्णा बिना कपडे सोई है तो ना चाहते हुएभी वह अपने आपपर कण्ट्रोल रख नहीं पाएंगे। वह कितनी भी कोशिश करे, उनका लण्ड ही उनकी बात नहीं मानेगा।

अपर्णा ने सोचा, "बेटा, आज तेरी चुदाई पक्की है। अब तक तो जीतूजी के मोटे लण्ड से बची रही, पर अब ना तो तेरे पास कोई वजह है नाही तेरे पास कोई चारा है। तू जब उनके साथ नंगी सोयेगी तो जीतूजी की बात तो छोड़, क्या तू अपने आप को रोक पाएगी?" यह सवाल बार बार अपर्णाके मनमें उठ रहा था।

जब तक अपर्णा नहा कर आयी तब तक जीतूजी के खर्राटे शुरू हो चुके थे। डरी, कांपती हुई अपर्णा डॉ. चाचा ने दिए हुए कपडे लेकर उन्हें अपनी छाती पर लगा कर चुपचाप बिना आवाज किये बिस्तरे में जाकर जीतूजीकी बगलमें ही सोगयी। अपर्णाको उम्मीद थी की शायद हो सकता है की जीतूजी का हाथ अपर्णा के बदन को छुए ही नहीं। हालांकि यह नामुमकिन था। भला एक ही पलंग पर सो रहे दो बदन कैसे क दूसरे को छुए बगैर रह सकते हैं?

रात के दो बजने वाले थे। अपर्णा पूरी तरह से वस्त्रहीन बिस्तर में जीतूजी के साथ घुस गयी। बिस्तर में एक ही कम्बल के निचे उसने जीतूजी ले बॉय को महसूस क्या। जीतूजी गहरी नींद में सो रहे थे। अपर्णा थोड़ी देर सोचती रही की वह बगैर कपड़ों के कैसे जीतूजी के साथ सोयेगी। पर अब तो सोना ही था। और अगर बीचमें जीतूजी ने उस दबौच लिया तो अपर्णा का चुदना तय था।

बिस्तर में घुसने के बाद अपर्णा दूसरी और करवट बदल कर लेट गयी। अपर्णा की गाँड़ जीतूजी की पीठ कीऔर थी। अपर्णा काफी थकी हुई थी। देखते ही देखते उसकी आँख लग गयी और अपर्णा भी गहरी नींद में सो गयी।

दोनों करीब दो घंटे तक तो वैसे ही मुर्दे की तरह सोते रहे। करीब दो घंटे बाद जीतूजी ने महसूस किया की कोई उनके साथ सोया हुआ था।

नींद में जीतूजी को अपर्णा के ही सपने आरहे थे। जो जीतूजी के मन में छिपे हुए विचार और आशंका थीं वह उनके सपने में उजागर हो रही थीं। जीतूजी ने देखा की कालिया दरवाजा खटखटा रहा था और "अपर्णा अपर्णा..." दरवाजा खटखटा ने की आवाज सुनकर अपर्णा भगति हुई जीतूजी की ओर आयी। जीतूजी के गले लग कर अपर्णा बोली, "जीतूजी, मुझे बचाओ, मुझे बचाओ। यह राक्षस मुझे चोद चोद कर मार देगा। इसका लण्ड गेंडे के जैसा भयानक है। अगर उसने अपना लण्ड मेरी चूत में डाला तो मैं तो मर ही जाउंगी। दरवाजा मत खोलना प्लीज।"

जीतूजीने अपर्णाको अपनी बाँहोंमें लेते हुए कहा, "नहीं खोलूंगा, तुम निश्चिन्त रहो।" पर कालिया दरवाजे पर जोर से लात और घूंसे मार रहा था। देखते देखते कालियाने दरवाजा तोड़ दिया। दरवाजा तोड़ कर उसने लपक कर अपर्णा को जीतूजी के पास से छीन लिया और अपर्णा की साडी खिंच कर उसे निर्वस्त्र करने लगा। देखते ही देखते अपर्णा सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थी। कालिया ने बीभत्स हँसते हुए अपर्णा का ब्लाउज एक ही झटके में फाड़ डाला, उसकी ब्रा खिंच कर उसके स्ट्रैप्स तोड़ डाले और अपर्णा का पेटीकोट और पैंटीभी फाड़कर उसको नंगा कर दिया।

अचानक अपर्णा ने झुक कर कालिया के हाथ को अपने दांतों से काट दिया। दांत से चमड़े काटने पर कालिया दर्द से कराहने लगा। कालियाके हाथ से अपर्णा छूट गयी और वैसी ही नंगी हालत में वह जीतू जी की और भागी। जीतूजी ने नंगी अपर्णा को अपनी बाँहों में लिया और उसको अपनी जाँघों के बिच कस कर हड़प लिया। जीतू जी ने दूसरे हाथ से अपना पिस्तौल निकाला और उसका निशाना कालिया पर दाग कर उसे कई गोलियां मारीं। कालिया अपने खून में ही लथपथ होकर गिर पड़ा। जीतूजी ने पिस्तौल एक तरफ रख कर नंगी अपर्णा के बदन पर हाथ फेरते हुए उसे दिलासा देने लगे। अपर्णा की चिकनी चमड़ी पर जीतूजी की उँगलियाँ सैर करने लगीं। जीतू जी को पहली बार अपर्णा ने बेझिझक अपना बदन सौंपा था। जीतूजी की छाती से अपर्णा चिपकी हुई थी। अपर्णाकी मोटी और नंगी चूँचियाँ जीतूजी की चौड़ी छाती पर दबी हुई चारों और फील गयी थीं। जीतूजीका एक हाथ अपर्णा की पीठ पर ऊपर निचे हो रहा था। जीतूजी का हाथ जब अपर्णा की नंगी गाँड़ पर पहुंचा तो रुक गया।

शायद वह अपर्णा की गाँड़ को अच्छी तरह सहलाना चाहते थे। जीतूजी नींद में ही अपर्णा की गाँड़ सहला रहे थे। वह जानते थे की वह नींद में थे।

पर यह क्या? उन्हें लगा जैसे वाकई में वह अपर्णा की गाँड़ ही सहला रहे थे। वह अपर्णा की खुशबु से वाकिफ थे। क्या अपर्णा उनके साथ में सो रही थी? ऐसा कैसे हो सकता था? अपर्णा ने तो कसम खायी थी की वह उनके साथ सोयेगी नहीं जब तक..... बगैरह बगैरह। पर हकीकत यह थी की उनके आहोश में एक नंगी औरत सोई हुई थी और वह अपर्णा ही हो सकती थी। जीतूजी यह तो समझ गए की अपर्णा को सोना तो उनके साथ ही था क्यूंकि एक ही बेड था। डॉ. खान भी उनको मियाँ बीबी ही समझ रहे थे। जीतूजी एकदम बैठ गए। उन्होंने तय किया था की वह अपर्णा के साथ नहीं सोयेंगे। और नंगी अपर्णा के साथ तो कतई नहीं। कहीं उनसे अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं रहा तो गजब हो जाएगा। सोचते ही उनका लण्ड उठ खड़ा हुआ। जीतूजी अपने आप पर बड़ा गुस्सा हुए। साला थोड़ी सी अपर्णा की भनक लग गयी की उठ खड़ा हो जाता है। अपर्णा किसी और की बीबी है। तुम्हारे बाप की नहीं जो तुम उसका नाम सुनते ही खड़े हो जाते हो। ऐसे अपने लण्ड को कोसने लगे। पर लण्ड एक ऐसी चीज़ है जो किसीकी नहीं सुनता। जीतू जी का लण्ड अपर्णा के बदनकी खुशबु पहचानते ही उठ खड़ा हो गया। जीतूजी झुंझलाये। वह आधी नींद में ही उठ खड़े हुए और अपने लण्ड को एडजस्ट करते हुए वाश रूम की और बढे। हलचल से अपर्णा भी उठ गयी थी पर सोने का नाटक कर पड़ी रही।

जीतूजी को बड़ी नींद आ रही थी। पर वह नंगी अपर्णा के साथ में सोने के कारण झल्ला उठे। वाशरूमसे वापस आकर वे कुर्सी पर बैठे। उनका पयजामा उनकी कमर से बार बार फिसला जाता था। वह खिंच खिंच कर उसे ऊपर करते रहते थे। जब कुछ देर तक जीतूजी वापस पलंग पर नहीं लौट आये तो अपर्णा ने करवट ली और उठ बैठी।

उसने देखा तो जीतूजी कुर्सी पर बैठे बैठे खर्राटे मार रहे थे। अपर्णा उठी और उसने अपने बदन एक चद्दर से ढका। जीतूजी की और मुंह कर के बोली, "क्या हुआ? बिस्तरे में क्यों नहीं आ रहे हो?" जीतूजी ने कहा, "जब मैं तुम्हारे पास आता हूँ तो अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं रखपाता। अब मैं तुम्हारी चाल में नहीं आने वाला। अगर मैं वहाँ आ गया तो मैं अपने आप पर नियत्रण नहीं कर सकूंगा। तुम सोजाओ। मैं यहां परही सो जाऊंगा ।" यह कह कर जीतूजी ने सोफा पर ही अपने पाँव लंबे किये। अपर्णाको बड़ा गुस्सा आने लगा। अब तक वह चुदवाने के लिए तैयार नहीं थी, तब तो जीतूजी फनफना रहे थे। अब वह तैयार हुई तो यह साहब नखरे क्यों कर रहे थे? जब जीतू जी ने कहा, "तुम वहीँ सो जाओ। मैं यहीं ठीक हूँ।" तब अपर्णा अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं कर पायी। उसने ने गुस्से हो कर कहा, "तुम क्या सोच रहे हो? मैं तुम्हें वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़ कर यह कहूं की यहां आओ और मुझे करो...? मैंने तुम्हें नहीं कहा की मैंने तुम्हें अपने पति की जगह पर स्वीकार किया है। तुमने मेरी जान अपनी जान जोखिम में डाल कर बचाई और मेरा प्रण पूरा किया है।"

अपर्णा कुछ देर रुक गयी। फिर कुछ सोच कर बोली, "पर तुमने भी तो प्रण लिया था की जब तक मैं अपर्णा हाथ जोड़ कर तुम्हें यह नहीं कहूँ की आओ और मुझे प्यार करो.... तब तक तुम मुझे मजबूर नहीं करोगे। तो लो मैं हाथ जोड़ती हूँ और कहती हूँ की आओ, और मुझे करो....। मैं तुमसे करवाना चाहती हूँ। अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी हँस पड़े। जल्दी से उठ कर वह बिस्तर पर आ गए और अपर्णा को अपनी बाँहों में लेकर बोले, "मानिनीयों को कभी हाथ नहीं जोड़ने चाहिए। हाथ जोड़ने का काम हम पुरुषों का है। मैं तुम्हें मेरे हाथ जोड़कर तुम्हारे खूबसूरत पाँव पकड़ कर प्रार्थना करता हूँ और पूछता हूँ की हे मानिनी क्या तुम आज रात मुझसे चुदवाओगी? देखो अपर्णा अगर तुमने मुझे स्वीकार किया है तो मुझसे खुल कर बात करो। मैं प्यार करो यह शब्द नहीं सुनना चाहता। मैं साफ़ साफ़ सुनना चाहता हूँ की तुम क्या चाहती हो?" "अपर्णा ने जीतूजी के कपडे निकालते हुए कहा," छोडोजी। आप जो सुनना चाहते हो मैं बोलने वाली नहीं। खैर मैं भले ही ना बोलूं पर आपने तो बोल ही दिया है ना? मैं एक बार नहीं, आज रात कई बार मुझे करना है। जब तक मैं थक कर ढेर ना हो जाऊं तब तक तुम मुझे करते ही रहना। आजसे मैं तुम्हारी सामाजिक बीबी ना सही, पर मैं तुम्हारी शारीरक बीबी जरूर हूँ। और यह हक मुझे कोई भी नहीं छीन सकता , श्रेया भी नहीं। ओके?"

जीतूजी अपर्णा के जोश को देखते ही रह गए। उन्होंने कहा, "ओके, मैडम। आपका अधिकार कोई भी छीन नहीं सकता। पर आपके पति? क्या वह नाराज नहीं होंगे?" अपर्णाने जीतूजी की ओर देखतेहुए कहा, "कमाल है? आप यह सवाल मुझसे पूछते हो? श्रेया आपसे कुछतो छुपाती नहीं है। मेरे पति को मेरी फ़िक्र कहाँ? कहते हैं ना की घरकी मुर्गी दाल बराबर।? मैं तो घर की मुर्गी हूँ। जब वह चाहेंगे मैं तो हूँ ही। आप मेरे पति की नहीं अपनी बीबी की चिंता कीजिये जनाब। मेरे पति आपकी बीबी के पीछे लगे हुए हैं। आगे आपकी मर्जी।" जीतूजी ने कहा, "मैं श्रेया की चिंता नहीं करता। वह पूरी तरह आज़ाद है। मेरी बीबी को मेरी तरह से पूरी छूट है। क्या आप को ऐसी छूट है?" अपर्णाने कुछ खिसियाते हुए कहा, "देखोजी, मेरा मूड़ खराब मत करो। जब मेरे पति को पता लगेगा तो देखा जाएगा। दोष तो उनका ही है। जब मैं नदी में डूबने लगी थी तो वह क्यों नहीं कूद पड़े? दुसरा उन्होंने मुझे आपकी देख-भाल का जिम्मा क्यों दिया? इसका मतलब यह की वह कैसे ना कैसे मुझसे छुटकारा पाना चाहते थे। उन्होंने श्रेया के साथ रहने की जिम्मेवारी ली। आपभी तो उनके षड्यंत्र में शामिल हो ना? वरना आप श्रेया के साथ पिक्चर में क्यों नहीं बैठे थे?

अब आप चुप हो जाओ और जो होता है उसे देखते जाओ।" ऐसा कह कर अपर्णा ने हाथ बढ़ाया और जीतूजी के पयजामा उतरने की कोशिश करने लगी। अपर्णा जीतूजी के कपडे क्या निकालती? जीतूजी के कपडे तो वैसे ही नकली हुए थे। मोटे डॉ. खान के बड़े कपडे शशक्त बदन वाले पर पतले मजबूत जीतूजी को कहाँ फिट होते? कपड़ों के बटन खोलने की भी जरुरत नहीं पड़ी। निचे खिसकाते ही जीतूजी का पयजामा निचे गिर गया। अंदर तो कुछ पहना था नहीं। जीतूजी का अजगर सा लण्ड आधा सोया और आधा जगा बाहर अपर्णा के हाथोंमें आगया। आधा सोया हुआ भी काफी लंबा और मोटा था। अपर्णा ने वैसे तो उसे देखा ही था। जब अपर्णा ने उसे अपने हाथों में लिया तब उसे पता चला की जीतूजी का लण्ड कितना भरी था वह भी तब जब अभी पूरा कड़क भी नहीं हुआ था। पर अब सोचने की बात यह थी की उसे अपनी चूत में कैसे डलवायेगी? यह सवाल था।

देखने की बात और है और करने की और। बच्चे की सीज़ेरियन डिलीवरीके समय डॉक्टरने उसकी चूत के छिद्र को टाइट सीलाथा। उसके बाद अपने पति रोहित से चुदवाते भी उसे कष्ट होता था। रोहित जी का लण्ड भी कोई कम नहीं था। पर जीतू जीके लण्डकी बातही कुछ औरथी। अपर्णा ने तय किया था की हालांकि वह दोनों थके हुए थे और उन्हें शायद सेक्ससे ज्यादा आरामकी जरुरत थी, पर वह एक बार जीतूजी से चुदवाना जरूर चाहती थी। सुनता ने जीतूजी को कई बार हड़का दिया था। अब वह उनको एक सम्मान देना चाहती थी। माँ का वचन तो अब पूरा हो ही गया था। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपने हाथों में लिया और प्यार से उसे धीरे धीरे हिलाने लगी। अपर्णा के हाथमें ही अपना लण्ड आते ही जीतू जी मारे उत्तेजना से मचलने लगे। उनको महीनो का सपना शायद आज पूरा होने जा रहा था। जीतूजी ने पलट कर अपर्णा की और देखा और अपर्णा के मुंह को अपने हाथों में पकड़ कर उसे बड़ी गर्मजोशी से चूमा। अपर्णा की आँखों में आँखें डाल कर जीतूजी ने पूछा, "अपर्णा, अगर मैं नदी में नहीं कूदता तो क्या मुझे यह मौक़ा मिलता?" अपर्णा ने मुस्काते हुए कहा, "मैं अब आपको अच्छी तरह जान गयी हूँ। ऐसा हो ही नहीं सकता की मेरी जान खतरे में हो और आप मुझे बचाने के लिए पहल ना करें। जहां तक मौके की बात है तो मेरी माँ को भी शायद इस बात का पूरा अंदेशा होगा की मेरी जिंदगी में एक नौजवान आएगा और मुझे मौत के मुंह में से वापस निकाल लाएगा। अब मेरी जिंदगी ही आपकी है तो मेरा बदन और मेरी जवानी की तो बात ही क्या? मेरी माँ ने भी यही सोचकर मुझसे वह वचन लिया था। जो आपने पूरा किया।"

जीतूजी प्यार से अपर्णा का चेहरा देखते रहे और अपर्णा की करारी गाँड़ के ऊपर प्यार से अपना एक हाथ फेरते रहे। अपर्णा जीतूजी के लण्ड में से निकल रहा प्रवाही स्राव को अनुभव कर रही थी। स्राव से जीतूजी का लण्ड चिकनाहट से पूरी तरह सराबोर हो गया था। अपर्णा की चूत भी जीतूजी से मिलन से काफी उत्तेजित होने के कारण अपना स्त्री रस रिस रही थी। अपर्णा ने जीतूजी की मूंछ पर होने होंठ फिराते हुए एक हाथ से जीतूजी का लण्ड सहलाती और दूसरे हाथ से जीतूजी की पीठ पर अपना हाथ ऊपर निचे कर के जीतूजी के स्नायुओं का मुआइना कर रही थी। जीतूजी का कड़ा लण्ड पूरा कड़क हो गया था। जीतूजीके बगलमें ही लेटकर अपर्णा ने अपनी बाजुओं को ऊंचा कर लम्बाया और जीतूजी को अपनी बाँहों में आने का निमत्रण दिया। जीतूजी पलंग पर उठ खड़े हुए। उन्होने अपना कुर्ता और पयजामा निकाल फेंका और पलंग पर लेटी हुई अपर्णा की जाँघों के इर्दगिर्द, अपर्णा की जाँघों को अपनी टाँगों के बिच में रखे हुए अपने घुटने पर बैठ गए।

जीतूजी अपर्णा के ऊपर बैठ कर उनके बिलकुल दो जाँघों के बिच निचे लेटी हुई अपर्णा के नंगे बदन को प्यार से देखने लगे। अपर्णा के चेहरे पर एक अजीब सा रोमांच का भाव था। जीतूजी अपना लण्ड उसकी चूत में डालेंगे यह अपर्णा के लिए अनोखा अवसर था। बार बार अपर्णा इसी के बारे में सोच रही थी। उसने सपने में यह कई बार देखा था जब जीतूजी अपना यह मोटा लण्ड अपर्णा की चूत में डाल कर उसे चोद रहे थे। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपनी उंगलियों में लेनेकी कोशिश की।

जीतूजी का लण्ड पूरा फुला हुआ और अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका हुआ था। जीतू जी का लण्ड देख कर अपर्णा को डर से ज्यादा प्यार उमड़ पड़ा। कालिया का लण्ड देखनेके बाद अपर्णा को जीतूजी का लण्ड बड़ा प्यारा लग रहा था। जीस लण्ड से पहले अपर्णा काँप जाती थी, वही लण्ड अब उसे सही लग रहा था। कालिया का गैण्डाके लण्ड के जैसा लण्ड देख कर अपर्णा को यकीन हो गया की दर्द तो खूब होगा, पर वह जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में जरूरले पाएगी। अपर्णा ने प्यार से जीतूजी की आँखों से नजरें मिलायीं और मुस्काती हुई जीतूजी के लण्ड को प्यार से सहलाने लगी। सहलाते सहलाते उसे जीतूजी पर प्यार उमड़ पड़ा और अपर्णा ने जीतू जी के सामने अपने हाथ लम्बाए और उन्हें अपने आगोश में लेने के लिए मचल उठी। जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूतपर टिकाते हुए झुक कर अपर्णाके होँठोंसे होँठ मिलाये। जीतू जी का लण्ड अपर्णा की चूत के आसपास इधर उधर फैल गया और जीतूजी ने भी अपर्णा को अपने आगोश में ले लिया। दोनों प्रेमी एक दूसरे की बाँहों में ऐसे लिपट गए और उनके होंठ ऐसे एक दूसरे से भींच गए जैसे कभी वह जुदा थे ही नहीं।

अपर्णाने जीतूजीको फिर खड़ाकिया और शर्माते हुए इशारा किया की वह अपना लण्ड अपर्णा की चूत में डाले। पर आज जीतूजी कोई ख़ास मूड़ में लग रहे थे। उन्होंने अपर्णाके इशारे पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। वह चुपचाप ऐसे ही बूत बनकर बैठे रहे जैसे कुछ सोच रहे हों। जीतूजी की यह करतूत देखकर अपर्णा झल्लायी। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड उँगलियों में पकड़ कर उसमें हलकी सी चूँटी भरी। चूँटी भरने पर दर्द के कारण जीतूजीके मुंहसे "आउच..." निकल गया। अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और उनकी चिकनाहट पुरे लण्ड पर फैलानी शुरू की। उसके बाद अपर्णा जीतूजी का लण्ड अपनी चूत की सतह पर थोड़ी देर तक हलके से घिसती रही। जीतूजी का हाथ अपर्णा ने अपने मम्मों पर रख दिया। वह चाहती थी की जब जीतूजी का मोटा कड़क फौलादी लण्ड अपर्णा की चूत में दाखिल हो और तब जो दर्द वह महसूस करे तब जीतूजी की उंगलियां उसकी चूँचियों के सहलाती रहे, ताकि उससे हो रही उत्तेजना में अपर्णा को दर्द महसूस ना हो।

जब जीतूजी का लण्ड काफी चिकना हो चुका तब अपर्णा ने अपना पेंडू ऊपर उठाकर जीतूजी के लण्ड को अपनी चूत में घुसेड़ने की हलकी कोशिश की। जीतूजी ने महसूस किया की उनका लण्ड अंदर घुसने में दिक्कत हो रही थी। पर अपर्णा जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में डलवाने के लिए बेचैनथी। जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूत में एक हल्का सा धक्का दे कर थोड़ा सा घुसेड़ा। अपर्णा के मुंह स एक छोटी सी आह.... निकल पड़ी। जीतूजी अपर्णा की आह सुन कर रुक गए। उन्होंने चिंता से अपर्णा की और देखा। अपर्णा ने जीतूजी के चहरे पर परेशानी के भाव देखे तो मुस्कुरायी और फिर अपना पेंडू और ऊपर उठाकर जीतूजी को लण्ड अंदर डालने के लिए इशारा किया।

जीतूजी ने एक धक्का और दिया। धक्का देते ही जीतूजी का लंड का टोपा अपर्णा की चूत को फाड़ कर घुस गया। ना चाहते हुए भी अपर्णा चीख उठी। अपर्णा की चीख सुनकर जीतूजी नर्वस हो गए और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। जब जीतूजीने अपना लण्ड बाहर निकाला तो अपर्णा बड़ी झल्लायी। पर फिर उसे जीतूजी पर प्यार भी आया। अपर्णाने जीतू जी से प्यार से कहा, "मेरे राजा! यह क्या कर रहे हो? डालो अंदर। मेरी चिंता मत करो। मैं तो ऐसे चीखती रहूंगी। प्लीज चोदो ना मुझे!" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी मन में ही मुस्काये। औरतों को समझना बड़ा मुश्किल होता है। जीतूजी ने धीरे से अपना लण्ड अपर्णा की चूत में घुसेड़ा और एक हल्का सा धक्का मारा। अपर्णा ने अपनी आँखें मूँद लीं। जीतूजीने फिर एक धक्का और मारा। अपर्णा के कपाल पर पसीने की बूँद दिखाई देने लगी। अपर्णा का हाल देख कर जीतू जी थोड़ा घबरा से गए और झुक कर अपर्णा से पूछा, "क्या चालु रखूं?"

अपर्णा ने अपनी आँखें खोलीं और मुस्करा कर थोड़ा सा हाँफते हुए बोली, "जीतूजी, आपने कभी किसी औरत को बच्चे को जनम देते हुए देखा है? आज मुझे भी ऐसा ही महसूस हो रहा है। यह दर्द नहीं सुख है मेरे लिए। जैसे आप और आपके जवान देश के लिए जखम खा कर भी हँसते हैं, वैसे ही आज मुझे आप मत रोकिये। आज मैं आपसे चुदकर जैसे माँ को दिया हुआ मेरा प्रण साकार कर रही हूँ। प्लीज आप चोदिये मुझे मत रुकिए।" जीतूजी ने धीरे धीरे अपना लण्ड अंदर घुसेड़ना जारी रखा। उनकी नजर अपर्णा के चेहरे पर हर वक्त टिकी रहती थी। अपर्णा ने भी जब यह देखा तो अपना दर्द छुपाते हुए वह मुस्कुराने लगी और कृत्रिम दिखावा करती रही की जैसे उसे कोई दर्द नहीं हुआ। पर अपने कपाल पर इकट्ठा हुआ पसीना कैसे छुपाती? वह अपर्णा के दर्द की चुगली कर देता था। जीतूजी अपर्णा की जांबाजी पर फ़िदा हो गए। भगवान् ने औरतों को कैसा बनाया है? इतना सहन करने पर भी वह अपने चेहरे पर एक सिकन भी नहीं आने देती?" जीतूजी ने धीरे धीरे अपर्णा की चूत में अपना लण्ड ज्यादा गहरा घुसेड़ना जारी रखा। एक धक्का मारते ही उनका आधा लण्ड अपर्णा की चूत की सुरंग में घुस गया। जीतूजी ने देखा की उनके धक्के से अपर्णा पलंग से ही उछल पड़ी। उसके मुंह से एक बड़ी जोर की चीख निकलने वाली ही थी पर अपर्णा ने बड़ी जबर्दश्त कोशिश कर उसे रोक ली। जीतूजी अपर्णा की सहनशीलता देख हैरान रह गए। उन्हें पता था की अपर्णा को कितना ज्यादा दर्द अनुभव हो रहा होगा। उनके लण्ड को अपर्णा की चूत ने जितनी मजबूत पकड़ से जकड़ा हुआ था उससे यह पता लगाना मुश्किल नहीं था की अपर्णा की चूत की त्वचा को कितना ज्यादा चौड़ा और खींचना पड़ रहा होगा। यह भगवान् की ही दें है की औरत की चूत को भगवान् ने पता नहीं कितनी माहिम और मजबूत चमड़ी से बनाया होगा की इतनी ज्यादा हद तक चौड़ी हो सकतीथी। इतनी ज्यादा खिंचाई होने के कारण अपर्णाको कितना दर्द महसूस हो रहा होगा इसकी कल्पना करना भी मुश्किल था।

जीतूजी अपर्णा को इतना दर्द नहीं देना चाहते थे। पर दो चीज़ें उनको मजबूर कर रहीं थीं। पहले तो अपर्णा का दुराग्रह। अपर्णा उनसे चुदवाना चाहती थी। बस आगे पीछे कोई बात वह सुनने के लिए तैयार नहीं थी। दुसरा जीतूजी का साला कमीना लण्ड। पता नहीं इससे पहले किसी भी औरत के लिए उसने इतना तूफ़ान नहीं मचाया था। पर अपर्णा को देखते ही (भले ही वह पूरी तरह कपडे पहने ही क्यों ना हो?) जीतूजी का लण्ड ऐसे फनफनाने लगता था जैसे कोई कई महीनों से भूखा आदमी अपने सामने स्वादिष्ट मनपसंद व्यंजनों से भरा हुआ थाल देख कर फनफनाता है। जीतूजी के इस लण्ड घुसाने की प्रक्रिया के दरम्यान अपर्णा की आँखें बंद ही रही थी। कभी कभी अपर्णा की भौंहें सिकुड़ जातीं थीं। फिर जीतूजी कहीं देख ना ले यह डर से वह अपने चेहरे पर एक मुस्कान ला देती थी। अपर्णा की चूत की सुरंग में जैसे जैसे जीतूजी का लण्ड घुसता गया, वैसे वैसे अपर्णा के अंगों में फड़कन और रोमांच बढ़ताही जा रहा था।

"मेरे परम प्रिय, मेरे पति के सामान मेरे सर्वस्व से चुदाई करवाके उनके जहनमें आनंद देकर मेरा जीवन आज धन्य हो गया।" ऐसे विचार बार बार अपर्णा के मन में आते रहे। अपने प्रियतम का लण्ड अपनी चूत में महसूस करके वह अपने आपको धन्य अनुभव कर रही थी। अपर्णा ने अपनी जिंदगी में पहले कभी ऐसा सोचा भी नहीं था की किसी पराये मर्द से चुदवा कर वह कभी इस तरह अपने आपको धन्य महसूस करेगी।

जीतूजी के लण्ड का एक एक धक्का दर्दके साथ अपर्णा को एक गजब आनंद का अनुभव करा रहा था। साथ साथ में जीतूजी के हाथों में अपने स्तनों को दबवा कर वह आनंद को कई गुना बढ़ा रही थी। अपर्णा को चोदने की ख्वाहिश दिल में लिए हुए जीतूजी पता नहीं शायद सदियों से अपर्णा की चूत के दर्शन चाहते रहे होंगे। शायद कई जन्मों से ही उनके मन में अपर्णा को चोदने कामना रही होगी। क्यूंकि उन्होंने इससे पहले किसी भी औरत को चोदने के बारे में इतनी उत्कटता और बेचैनी नहीं महसूस की थी। जब जब भी अपर्णा ने उन्हें चोदने से रोका तो उन्हें अपने दिल के कई हजार टुकड़े हो गए हों ऐसा लगता था। उनके जहन में इतनी जलन और बेरुखी होती थी जैसे उनके जीवन में कोई रस रहा ही नहीं हो। जब अपर्णाने सामने चलकर उन्हें चोदने के लिए आमंत्रित किया तो उन्हें लगा जैसे कोई अकल्पनीय घटना घट रही हो। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था की अपर्णा इस जनममें उनसे कभी चुदवायेगी। उन्होंने तो यह अपने मन से मान ही लिया था की शायद उन्हें अपर्णा को चोदने का मौक़ा अब अगले जनम में ही मिलेगा। इस लिए जीतूजी के लिए तो यह मौक़ा जैसे पुनर्जन्म जैसा था।

उनको यकीन ही नहीं हो रहा था की वाकई में यह सब हो रहा था। उन्हें यह सारी घटना एक सपने के सामान ही लग रही थी। और क्यों ना लगे भी? जिस तरह सारी घटनाएं एक के बाद एक हो रहीं थीं, ऐसा ज़रा भी लगता नहीं था की क्या सच था और क्या सपना? हर एक पल, हर एक लम्हा उत्तेजना और रोमांच के साथ साथ रहस्य से लबालब भरा हुआ था। अगले पल क्या होगा किसीको भी कल्पना नहीं थी। जब सो रहे थे तब सपना भी वास्तविक लगता था और जब जागते हुए कुछ होता था तो ऐसा लगता था जैसे सपना देख रहे हों। जीतूजी के लिए अपर्णा का उनसे चुदाई के लिए तैयार होना भी एक ऐसी ही घटना थी।

अपर्णा को जीतूजी का लण्ड अपनी चूतमें लेकर जो भाव होरहा था वह अवर्णीयथा। एक तो जीतू जी उसके गुरु और मार्ग दर्शक थे। उसके अलावा वह उसको बहुत चाहते थे। जीतूजी अपर्णा पर अपनी जान छिड़कते थे। यह तो साबित हो ही गया था। ऊपर से उनके मन में अपर्णा के लिए बड़ी सम्मान की भावना थी। जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में पहले कभी ना हुआ था ऐसा अनोखा प्यार भरा उन्माद पैदा कर रहाथा। इसके कारण अपर्णा की चूत में भी एक ऐसी फड़फ-ड़ाहट और कम्पन हो रहा था जिसे जीतूजी स्वयं भी अनुभव कर रहे थे। अपर्णा की चूत में इतना उन्माद हो रहा था की जीतूजी के हर एक धक्के से वह अपने आपको गदगद महसूस कर रही थी। अपर्णा के पुरे बदन में रोमांच की उत्कट लहर दौड़ जाती थी। अपर्णा ने जीतूजी का मुंह अपने स्तनों पर रखा और उन्हें स्तनोँ को चूमने और चूसने का आग्रह किया। वह रात अपर्णाकी सबसे ज्यादा यादगार रात थी। जीतूजी महसूस कर रहे थे की अपर्णा की चूत की दीवारें कभी एकदम उनके लण्ड को सिकुड़ कर जकड लेतीं तो कभी ढीला छोड़ देतीं। जैसे जैसे चूत सिकुड़कर जकड़ लेतीं तो जीतूजी के लण्ड और पुरे बदनमें अजीब सा रोमांच और उत्तेजक सिहरन फ़ैल जाती। अपर्णा चाहती थी की जीतूजी उसके पुरे बदन का आनंद उठायें। वह बार बार कभी जीतूजी के हाथ अपनी गाँड़ पर तो कभी अपने स्तनोँ पर तो कभी अपनी चूत पर रख कर जीतूजी को उसे सहलाने के लिए बाध्य करती। अपर्णा की चूत में फड़कन इतनी तेज हो रही थी की उसके लिए अब अपने आप पर नियत्रण रखना नामुमकिन सा हो रहा था। अपर्णा के नंगे बदन पर जीतूजी का हाथ फिराना ही अपर्णा को बेकाबू कर रहा था। अपर्णा को यकीनथा की उसकी बहुत बढ़िया अच्छीखासी चुदाई होने वाली थी और वह दर्द के डर के बावजूद भी अपने प्रियतम जीतूजी से ऐसी घमासान और भद्दी चुदाई के लिए बेकरार थी। पर जीतूजी के नंगे बदन का, उनके लण्ड का और उनकी मांसल बाँहों का स्पर्श मात्र से ही अपर्णा का अंग अंग फड़क उठा था। जब पहली बार जीतूजी के लण्ड ने अपर्णा की चूत में प्रवेश किया तो अपर्णा को ऐसा लगा जैसे वह मर ही गयी। उसके पुरे बदन में उन्माद और रोमांच की एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी। उसे लगा की उसका पानी छूटने वाला ही था।

अगर जीतूजी को यह पता लग गया की अपर्णा अपना पानी छोड़ने वाली है तो शायद जीतूजी अपनी चोदनेकी रफ़्तार कमकरदें या कहीं अपना लण्ड बाहर ही ना निकाल लें इस डर से अपर्णा अपनी उंचाई पर पहुंचें के बावजूद अपने आप पर कण्ट्रोल कर रहीथी। पर जैसे जैसे जीतूजीने एक एक बाद एक धक्के मारने शुरू किया तो अपर्णा नियत्रण से बाहर हो गयी और जीतूजी की बाँहें अपने हाथों में जकड कर बोल पड़ी, "आहहह ... ओह्ह्ह... उफ्फ्फ..." जीतूजी प्लीज मुझे और जोरसे चोदिये, मेरा छूटने वाला है। पर आप मत रुकिए।" एक बड़ी हलकी सी "आह... की सिसकारी दे कर अपर्णा ढेर हो गयी। जीतूजी ने देखा की अपर्णा झड़ चुकी है तो वह अपना फुला हुआ लण्ड अपर्णा की चूत में से बाहर निकालने लगे। अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थाम कर उन्हें अपना लण्ड उसकी चूत में से बाहर निकाल ने से रोका। अपर्णा ने जीतूजी को चुदाई जारी रखने को कहा। पर जीतूजी ने कहा, "अपर्णा, तुम चिंता मत करो। मैं तैयार ही हूँ। मैं ढीला नहीं पड़ने वाला। तुम कुछ पल आराम करलो।"

अपर्णा को जीतूजी का लण्ड अपनी चूतमें लेकर जो भाव होरहा था वह अवर्णीयथा। एक तो जीतू जी उसके गुरु और मार्ग दर्शक थे। उसके अलावा वह उसको बहुत चाहते थे। जीतूजी अपर्णा पर अपनी जान छिड़कते थे। यह तो साबित हो ही गया था। ऊपर से उनके मन में अपर्णा के लिए बड़ी सम्मान की भावना थी। जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में पहले कभी ना हुआ था ऐसा अनोखा प्यार भरा उन्माद पैदा कर रहाथा। इसके कारण अपर्णा की चूत में भी एक ऐसी फड़फ-ड़ाहट और कम्पन हो रहा था जिसे जीतूजी स्वयं भी अनुभव कर रहे थे। अपर्णा की चूत में इतना उन्माद हो रहा था की जीतूजी के हर एक धक्के से वह अपने आपको गदगद महसूस कर रही थी। अपर्णा के पुरे बदन में रोमांच की उत्कट लहर दौड़ जाती थी। अपर्णा ने जीतूजी का मुंह अपने स्तनों पर रखा और उन्हें स्तनोँ को चूमने और चूसने का आग्रह किया। वह रात अपर्णाकी सबसे ज्यादा यादगार रात थी। जीतूजी महसूस कर रहे थे की अपर्णा की चूत की दीवारें कभी एकदम उनके लण्ड को सिकुड़ कर जकड लेतीं तो कभी ढीला छोड़ देतीं। जैसे जैसे चूत सिकुड़कर जकड़ लेतीं तो जीतूजी के लण्ड और पुरे बदनमें अजीब सा रोमांच और उत्तेजक सिहरन फ़ैल जाती। अपर्णा चाहती थी की जीतूजी उसके पुरे बदन का आनंद उठायें। वह बार बार कभी जीतूजी के हाथ अपनी गाँड़ पर तो कभी अपने स्तनोँ पर तो कभी अपनी चूत पर रख कर जीतूजी को उसे सहलाने के लिए बाध्य करती। अपर्णा की चूत में फड़कन इतनी तेज हो रही थी की उसके लिए अब अपने आप पर नियत्रण रखना नामुमकिन सा हो रहा था। अपर्णा के नंगे बदन पर जीतूजी का हाथ फिराना ही अपर्णा को बेकाबू कर रहा था। अपर्णा को यकीनथा की उसकी बहुत बढ़िया अच्छीखासी चुदाई होने वाली थी और वह दर्द के डर के बावजूद भी अपने प्रियतम जीतूजी से ऐसी घमासान और भद्दी चुदाई के लिए बेकरार थी। पर जीतूजी के नंगे बदन का, उनके लण्ड का और उनकी मांसल बाँहों का स्पर्श मात्र से ही अपर्णा का अंग अंग फड़क उठा था। जब पहली बार जीतूजी के लण्ड ने अपर्णा की चूत में प्रवेश किया तो अपर्णा को ऐसा लगा जैसे वह मर ही गयी। उसके पुरे बदन में उन्माद और रोमांच की एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी। उसे लगा की उसका पानी छूटने वाला ही था।

अगर जीतूजी को यह पता लग गया की अपर्णा अपना पानी छोड़ने वाली है तो शायद जीतूजी अपनी चोदनेकी रफ़्तार कमकरदें या कहीं अपना लण्ड बाहर ही ना निकाल लें इस डर से अपर्णा अपनी उंचाई पर पहुंचें के बावजूद अपने आप पर कण्ट्रोल कर रहीथी। पर जैसे जैसे जीतूजीने एक एक बाद एक धक्के मारने शुरू किया तो अपर्णा नियत्रण से बाहर हो गयी और जीतूजी की बाँहें अपने हाथों में जकड कर बोल पड़ी, "आहहह ... ओह्ह्ह... उफ्फ्फ..." जीतूजी प्लीज मुझे और जोरसे चोदिये, मेरा छूटने वाला है। पर आप मत रुकिए।" एक बड़ी हलकी सी "आह... की सिसकारी दे कर अपर्णा ढेर हो गयी। जीतूजी ने देखा की अपर्णा झड़ चुकी है तो वह अपना फुला हुआ लण्ड अपर्णा की चूत में से बाहर निकालने लगे। अपर्णा ने जीतूजी का हाथ थाम कर उन्हें अपना लण्ड उसकी चूत में से बाहर निकाल ने से रोका। अपर्णा ने जीतूजी को चुदाई जारी रखने को कहा। पर जीतूजी ने कहा, "अपर्णा, तुम चिंता मत करो। मैं तैयार ही हूँ। मैं ढीला नहीं पड़ने वाला। तुम कुछ पल आराम करलो।"

अपर्णा ने जीतूजी की और ऊपर आँखें उठा कर देखा। अपर्णा को अपनी चूत में जीतूजी का फड़फड़ाता हुआ कड़क छड़ सा सख्त लण्ड महसूस कर यकीन हुआ की जीतूजी इस ब्रेक के कारण ढीले नहीं पड़ेंगे और उसकी चुदाई में कोई कमी नहीं आएगी।

कुछ देर आराम करने के बाद अपर्णा एकदम फुर्ती से उठी और जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में ही गड़े हुए रखते हुए जीतूजी के होँठों को चूमकर जीतूजी को कहने लगी, "जीतूजी मैं तैयार हूँ। मैं भले ही झड़ जाऊं। पर आपको ढीला नहीं पड़ना है। मुझे पूरी रात और पुरे दिन भर चोदना है।" अपर्णा की बात सुनकर जीतूजी के होँठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गयी। जीतूजी ने भी अपर्णा के होँठों को चूसते हुए कहा, "अपर्णा, तुम क्या समझती हो? क्या मैं इतनी आसानी से मेरी महीनों की अधूरी कामाग्नि को ऐसे ही छोड़ दूंगा? मुझे भी मेरी अपर्णा को रात भर चोदना है।" यह कह कर जीतूजी ने अपर्णा को धीरे से सुलाया और फिर उसके ऊपर ठीक से सवार हो कर अपर्णा के दोनों फुले हुए बॉल (स्तनोँ) को अपनी हथेली और उँगलियों में मसलते हुए अपर्णा की चूत में अपना लण्ड अंदर बाहर करते हुए उसे चोदने में एक बार फिर से मशगूल हो गए। जीतूजी एक के बाद एक फुर्ती से अपना लण्ड अपर्णा की चूत में पेले जा रहे थे। अपर्णा भी अपनी गाँड़ उछाल उछाल कर जीतूजी के मोटे तगड़े लण्ड को अपनी चूत में पूरा अंदर तक लेने का प्रयास करती थी। जीतूजी के हर एक धक्के को अपर्णा "उँह... उँह..." करती हुई कराहती। जीतूजी भी हर एक धक्के के साथ साथ "उफ... उफ़..." करते हुए अपर्णा को चोदे जा रहे थे।

अपर्णा ने अपनी टाँगें उठाकर जीतूजी के कंधे की दोनों तरफ चौड़ी कर फैला रखीं थीं जिससे जीतूजी को उसकी टाँगों के बिच में घुसने में कोई दिक्कत ना हो। पुरे कमरे में चुदाई की "फच्च... फच्च..." आवाज का उद्घोषहो रहाथा। जीतूजी का इतना मोटा लण्ड भी अपर्णा की चूत में समा गया और अपर्णा को कोई खून नहीं निकला यह अपर्णा के लिए एक राहत की बात थी। उस रात अपर्णा ने जीतूजी को उस रात तक जितना तड़पाया था उसका पूरा मुआवजा देना चाहती थी। अपर्णा उन्हें वह आनंद देना चाहती थी जो श्रेया उन्हें नहीं दे पायी हो। इस लिए अलग अलग कोने से अपना बदन इधर उधर कर अपर्णा जीतूजी का लन्ड अपनी चूत के हर कोने में महसूस करना चाहती थी। जीतूजी भी अपर्णा के ऐसा करने से अद्भुत रोमांच अनुभव कर रहे थे। कुछ देर की चुदाई के बाद अपर्णा ने जीतूजी को रोका। अपर्णाने अपना सर ऊपर उठाकर जीतू जी के होँठ अपने होँठों प् रखे और उन्हें चूमते हुए अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, आज से मेरे इस बदन पर आपका उतना ही हक़ है जितना की मेरे पति का। हाँ, क्यूंकि मैं रोहित की सामाजिक पत्नी हूँ इस लिए मैं रोज आपके साथ सो नहीं सकती, पर आप जब चाहे मुझे चुदाई के लिए बुला सकते हैं या फिर मेरे बैडरूम में आ सकते हैं। मैं जानती हूँ की मेरे पति को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी। जहां तक श्रेया का सवाल है तो वह भी तो आपसे मेरी चुदाई करवाने के लिए बड़ी उत्सुक थीं।" जीतूजी ने अपर्णा को प्यार से चूमते हुए कहा, "अपर्णा, श्रेया ने मुझे वचन दिया था की एक ना एक दिन वह तुम्हें मेरे बिस्तर में मुझसे चुदवाने के लिए मना ही लेगी। यह आपसी समझौता मेरे और श्रेया के बिच में तो पहले से ही थी। अपर्णा तुम इतना समझ लो की मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करता हूँ जितना तुम मुझ से करती हो। हमारे सिर्फ बदन ही नहीं मिले, आज हमारे ह्रदय भी मिले हैं।"

अपर्णा ने जीतूजी को चूमते हुए कहा "मेरे राजा, आज हम और कोई बात नहीं करेंगे। हम ने बहुत बातें की, बहुत प्यार भरी हरकतें की, पर चुदाई का मौका तो अब मिला है। जीतूजी आप को पता नहीं, मैं इस लम्हे के लिए कितनी बेबस थी। आप शायद नहीं समझ पाएंगे एक स्त्री की भावनाओं को। हम औरतों की चूत हमारी आँखों के साथ साथ हमारे दिल से जुडी है। आप मर्दों का लण्ड सिर्फ आपकी आँखों से जुड़ा है। यही फर्क है मर्द और औरतों की सेक्स करने की उत्तेजना को भड़काने वाली चाभी में। आप मर्द लोग शायद सुन्दर औरत का कमसिन बदन देख कर उसे चोदने के लिए आमादा हो जाते हो। हम औरत लोग ज्यादातर मर्द के बदन से जरूर आकर्षित होते हैं, पर उससे भी ज्यादा हम मर्द के प्यार और हमारे लिए उसके मन में त्याग या निछावर होने की भावना से ज्यादा उत्तेजित होते हैं। पहली बार शायद हम जरूर आँखों की बात मानते हैं। पर आखिर में आँखों से भी ज्यादा हम दिल की बात मानते हैं। आप से तो मैं उसी दिन मानसिक रूप से चुदवाने के लिए तैयार हो गयी थी जब आप ने पहेली बार उस सिनेमा हॉल में अपना लण्ड मेरे हाथों में दे दिया था। मेरे पति के लण्ड को छोड़ आप का लण्ड मेरे लिए पहला मरदाना लण्ड था जिसे मैने अपने हाथों में लिया था। उसी समय मेरी चूत से मेरा पानी निकल ने लगा था। आपका लण्ड मेरे पति से कहीं भारी, मोटा और लंबा है। पता नहीं कितनी रातें मैंने आपके लण्ड को मेरी चूत में डलवाने के सपने देखते हुए गुजारी है। कितनी रातें मैंने अपने पति चुदवाते हुए भी यह समझ कर गुजारीं थीं की मैं मेरे पति से नहीं आपसे चुदवा रही हूँ। उसके बाद जब आपने मेरी पढ़ाई के लिए इतना ज्यादा बलिदान किया की मुझे अव्वल दर्जा दिला कर ही छोड़ा। इसके कारण मेरे मन में आपके लिए वह भाव उमड़ पड़ा जिसे मैं कह नहीं सकती। जब मैं उस झरने में आपके सामने आधी नंगी हाजिर हुई और आपका बदन जब मेरे बदन को छुआ तो मेरे धैर्य ने जवाब दे दिया। अगर उस दिन आपने मुझे रोका नहीं होता तो मैं माँ को दिया हुआ वचन तोड़कर भी आपसे चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार थी। मैंने अपने आप पर नियत्रण बिलकुल खो दिया था। पर आपने अपना मरदाना धैर्य का ज्वलंत प्रदर्शन दिया और मुझे माँ का वचन तोड़ने से बचाया। पर अगर आपने मुझे उस दिन चोदा होता तो आपके लिए मेरे मन में आज जो भाव है वह शायद नहीं रहता। आखिर मैं आपने अपनी जान का लगभग बलिदान देकर मुझे बचाया तो माँ को दिया हुआ वचन भी पूरा हुआ और आपने मुझे बिना मोल खरीद भी लिया। अब सिर्फ मेरा यह बदन, मेरा स्त्रीत्व, मेरा प्यार यहां तक की मेरी जान भी आप पर न्योछावर है। आखिर में आज घर से कितनी दूर, कुदरत की इन वादियों के बिच नदिओं, पहाड़ और झरनों के सान्निध्य में आज आप से चुदवाने की मेरी मनोकामना पूरी करने का अवसर मुझे मिला है। आज तक आपके और मेरे इतनी उत्कटता से एक दूसरे को चोदने की गाढ़ इच्छा और अवसर मिलने के बावजूद भी माँ की आज्ञा के कारण मैं आपकी शय्या भागिनी नहीं बन सकी। आज मुझे अवसर मिला है की मैं अपने तन, मन और माँ की इच्छा पूरी करूँ और मेरे सारे अस्तित्व को आपको समर्पित करूँ।"​
Next page: Update 43
Previous page: Update 21