Update 43

जीतूजी अपर्णा को देखते ही रहे। अपर्णा की आँखों में से भाव के प्यार भरे आँसूं बह रहे थे। उन्होंने अपर्णा की चूत में ही अपने लण्ड को गाड़े रखे हुए अपर्णा को चूमा और बोले, "प्रिया, तुम मेरी अपनी हो। तुम मेरी पत्नी नहीं उससेभी कहीं अधिक हो। तुम ना सिर्फ मेरी शैय्या भागिनी हो, तुम मेरी अंतर आत्मा हो। तुम्हें पा कर आज मैं खुद धन्य हो गया। पर जैसा की तुमने सबसे पहले कहा, अभी हमें अपना ध्यान प्यार से भी ज्यादा चुदाई में लगाना है क्यूंकि हमारे पास अभी भी ज्यादा समय नहीं। कहीं ऐसा ना हो, हमारा पीछा करते हुए दुश्मन के सिपाही यहां आ पहुंचे। यह भी हो सकता है की हमारी ही सेना के जवान हमें ढूंढते हुए यहां आ पहुंचे।" अपर्णा ने जीतूजी के मुंह में अपनी जीभ डाली और जीतूजी के मुंह को अपर्णा जोश खरोश के साथ चोदने लगी। चोदते हुए एक बार जीभ हटा कर अपर्णा ने कहा, "जीतूजी, आज मुझे आप ऐसे चोदिये जैसे आपने पहले किसीको भी चोदा नहींहोगा। श्रेया जी को भी नहीं। आपका यह मोटा तगड़ा लण्ड मैं ना सिर्फ मेरी चूत के हर गलियारे और कोने में, बल्कि मेरे बदन के हर हिस्से में महसूस करना चाहती हूँ।" यह कह कर अपर्णा ने जीतूजी का वीर्य से लबालब भरा लण्ड जो की अपर्णा की चूत की गुफा में खोया हुआ था, उसे अपनी उँगलियों में पकड़ा। अपर्णा की चूत और जीतूजी के लण्ड के बिच उंगली डाल कर अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड और अपनी चूत को अपनी कोमल उँगलियों से रगड़ा। अपर्णा की नाजुक उँगलियों को छूने से जीतूजी का वीर्य उनके अंडकोषों में फुंफकार मारते हुए उनके लण्ड की रगों में उछलने लगा। जीतूजी ने अपनी प्रियतमा की इच्छा पूरी करते हुए अपना लण्ड अपर्णा की प्यासी चूत में फिर से पेलना शुरू किया।

जीतूजी का लण्ड पूरी तरह फुला हुआ अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका था। अपर्णा की चूत के हर मोहल्ले और गलियारे में वह जैसे एक बादशाह अपनी रियाया (प्रजा) के इलाके में उन्मत्त सैर करता है वैसे ही जीतूजी का लण्ड अपनी प्रियतमा अपर्णा की चूत की सुरंग के हर कोने में हर सुराख में जाकर उसे टटोलता और उसे चूमता हुआ अपर्णा की चूत के द्वार में से अंदर बाहर हो रहा था। अपर्णा के स्त्री रस से सराबोर और जीतूजी के पूर्व स्राव की चिकनाहट से लथपथ जीतूजी के मोटे लण्ड को अपर्णा की चूत के अंदर बाहर जाने आने में पहले की तरह ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी। पर फिर भी अपर्णा की चूत की दीवारों को जीतूजी का लण्ड काफी तनाव में रखे हुए था। और इसके कारण ही अपर्णा को अपनी चूत में एक अनोखा उन्माद हो रहा था। अपर्णा उछल उछल कर जीतूजी के लण्ड को अपने अंदर गहराई तक डलवा रही थी। उसे इस लण्ड को आज इतने महीनों से ना चुदवाने की कसर जो निकालनी थी। अपर्णा ने थोड़ा ऊपर उठ कर जीतूजी के लण्ड को अपनी चूत से अंदर बाहर जाते हुए देखना चाहा। वह अपनी चुदाई को अनुभव तो कर रही थी पर साथ साथ उसे अपनी आँखों से देखना भी चाहती थी।

जीतूजी का चिकनाहट भरा लण्ड उसने अपनी चूत में से घुसते हुए और निकलते हुए देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ की जीतूजी का इतना मोटा लण्ड अंदर लेने के लिये उसकी चूत कितनी फूली हुई थी। अपर्णा ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी की इतना मोटा लण्ड लेने के लिए उसकी चूत इतनी फ़ैल भी पाएगी और वह कभी जीतूजी का लण्ड अपनी चूत में ले भी पाएगी। जीतूजी का लण्ड सफ़ेद चिकनाहट से लथपथ देख अपर्णा को डर लगा की कहीं जीतूजी ने अपना वीर्य तो नहीं छोड़ दिया? अगर ऐसा हुआ तो फिर जीतूजी ढीले पड़ जायेंगे और वह अपर्णा नहीं चाहती थी।

पर जीतू जी की तेज रफ़्तार से चुदाई करते देख कर और उसकी चूत में जीतूजी के लण्ड की जो मोटाई और लम्बाई तब भी बरकरार थी उसे महसूस कर के अपर्णा को यकीन हो गया की जीतूजी ने अपना वीर्य नहीं छोड़ा था और जो चिकनाहट वह देख रही थी वह जीतूजी के लण्ड में से निकला हुआ पूर्व स्राव ही था। अपनी चुदाई का साक्षात दृश्य देख कर और जीतूजी का मोटा चिकनाहट से लथपथ लण्ड अपनी फूली हुई चूत के अंदर बाहर निकलते हुए देख कर अपर्णा की उत्तेजना और बढ़ने लगी। उसका स्त्रीत्व और उसका मन का उत्कट भाव उसकी चूत की झनझनाहट को ऐसे छेड़ रहा था जैसे कोई सितार बजाने वाला सितार के तारों को अपनी उँगलियों से झनझ-नाहट करता हुआ छेड़ रहा हो।

जैसे जैसे अपर्णा अपनी चुदाई देखती गयी वैसे वैसे और ज्यादा रोमांचित होती गयी। अपर्णा की चूत में उसका स्त्री रस फव्वारे सा बहने लगा। अपर्णा एक बार फिर अपने चरम पर पहुँचने वाली थी। जीतूजी का लण्ड उसकी चूत पर कहर ढा रहा था। इतनी थकान और कम नींद के बावजूद जीतूजी का लंड रुकने का नाम नहीं ले रहा था। एक बार फिर अपर्णा ने जीतूजी की कलाई सख्ती से पकड़ी और "आह्ह्ह्हह्ह... अरे... ऑफ़... जीतूजी आपका लण्ड कमाल कर रहा है। मेरा छूट रहा है। पर आप रुकिएगा नहीं। प्लीज चोदिये, चोदते जाइये।" कह कर अपर्णा फिर ढेर सी गिर पड़ी। उसका बदन एकदल ढीला पड़ गया था। वह चुदाई की थकान से हांफने लगी थी। जीतूजी ने अपर्णा के मना करने पर भी अपने आपको रोका और अपनी प्रियतमा को साँस लेने और आराम का मौक़ा दिया। घंटों की थकान और नींद की कमी के कारण अपर्णा और जीतूजी दोनों थके हुए तो थे। पर कुछ घंटों के आराम क बाद हालांकि उनकी थकाहट पूरी तरह खत्म तो नहीं हुई थी, फिर भी उनमें इतनी ऊर्जा का संचार ह चुका था की वह दोनों और ख़ास कर अपर्णा जीतूजी के तगड़े लण्ड को और अपनी प्यासी चूत को ज़रा भी आराम करने देना नहीं चाहती थी। दोनों को एक दूसरे से पहली मुलाक़ात के महीनों के बाद पहली बार ऐसा मौक़ा मिला था जब उनकी महीनों की चाहत पूरी होने जा रही थी। आराम करने का मौक़ा तो आगे चलकर खूब मिलेगा पर क्या पता ऐसे एक दूसरे के नंग्न बदन को इतने प्यार से लिपटने का और एक दूसरे के बदन को इतने एक दूसरे में मिलाने का मौक़ा नाजाने फिर कब मिले? और अगर मिलेगा भी तो इन वादियों और ऐसे खुशनुमा नज़ारे में तो शायद ही मिले। यह सोच कर दोनों प्रेमी एक दूसरे के बदन को छोड़ना ही नहीं चाहते थे। भगवान् ने भी क्या दुनिया बनायी है? जब आप एक दूसरे को इतना चाहते हो तो एक पुरुष और एक स्त्री अपने प्यार का इजहार कैसे करे? भगवान् ने सेक्स याने चुदाई का एक जरिया ऐसा दिया जिससे वह दोनों एक दूसरे के अंदरूनी उत्कट प्यार को अपने शरीर की जुबान से चुदाई द्वारा प्रकट कर सकते हैं।

समाज ने ऐसे प्यार भरी चुदाई पर कई अलग अलग तरह के बंधन और नियम लाद दिए हैं। पर जब प्यार एक हद को पार कर जाता है तो वह इन नियमों और बंधनों को नहीं मानता और दो बदन सारे वस्त्रों के आवरण को छोड़ कर एक दूसरे के बदन की कमी पूरी करने के लिए एक दूसरे के बदन को अंदर तक मिलाकर (एक दूसरे को चोद कर) इस कमी को पूरी करने की कोशिश करते हैं। और उसे ही प्यार भरा मैथुन कहते हैं। जीतूजी और अपर्णा उस रात ऐसा ही प्यार भरा मैथुन का आनंद ले रहे थे। जीतूजी जानते थे की उनके पास अमर्यादित समय नहीं था। इलाका खतरों से खाली नहीं था। हालांकि वह हिन्दुस्तानी सरहद में आ चुके थे फिर भी सरहद के दूसरी और से दुश्मन की फ़ौज कई बार बिना कारण गोली बारी करती रहती थी। उस समय कई अन-जान नागरिक उन गोलियों का शिकार भी हो जाते थे। कई जगह सरहद अच्छी तरह पक्की और सुरक्षित नहीं थी। वहाँ से दहशत गर्द अक्सर घुस आते थे और कहर फैला कर वापस अपनी सरहद में लौट जाते थे। उन्हें दुश्मनों और हिन्दुस्तानी फ़ौज के क्रॉस फायर से भी बचना था और अपने कैंप में पहुँचना था। कभी भी कोई दुशमन या हिंदुस्तानी फ़ौज का सिपाही भी छानबीन के लिये दरवाजे पर दस्तक दे सकता था। उस समय तक उनको तैयार हो जाना था। पर अपर्णा और उनपर प्यार का बहुत सवार था और ख़ास कर अपर्णा जीतूजी को आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी। उसे महीनों से ना हो सकी उस चुदाई की सूद समेत वसूली जो करनी थी।

अपर्णा को उस रात कई बार झड़ना था उसे ऐसे कई ऐसे अदभूत ओर्गाज़्म का अनुभव करना था जो अपर्णा जानती थी की जीतूजी ही उसे करा सकते थे। वह इतनी जल्दी चुदाई से बाज आने वाली नहीं थी। तीसरी बार झड़ने के बाद अपर्णा ने जब अपनी साँस वापस पायी तो वह दिए से उठी और पलंग के सहारे घोड़ी बन कर कड़ी हो गयी. जीतूजी समझ गए की अपर्णा कुतिया स्टाइल में (डॉगी स्टाइल) में पीछे से अपनी चूत चुदवाना चाहती थी। उसे जीतूजी के लण्ड का डर अब नहीं रहा था। उसे पता था की जो भी दर्द होगा वह उसे जो उत्कट मादक अनुभव करा देगा उसके मुकाबले में कुछ भी नहीं होगा। अपर्णा को पता था की पीछे से चूत चुदवाने से जीतूजी का लण्ड उसकी चूत में और ज्यादा अंदर घुसेगा। अपर्णा की बच्चे दानी तो को तो जीतूजी का लंड वैसे ही ठोकर मार रहा था। पर अब जब उनका लण्ड और गहरा घुसेगा तो क्या गजब ढायेगा उसके बारे में अपर्णा को ज़रा भी आइडिया नहीं था। पर वह यह सब झेलने के लिए तैयार थी।

अपर्णा को पता था की अगर प्यार से चुदाई करवाने की अगर ठानही लीहो तो एक स्त्री किसी भी लण्डसे चुदवा सकती है चाहे वह कितना बड़ा क्यों ना हो? दर्द जरूर होगा और खूब होगा। पर यही तो प्यार की रीती है। जहां प्यार है वहाँ दर्द तो होता ही है। जब बच्चा होता है तो दर्द के मारे माँ की जान निकल जाती है। पर फिर भी माँ बच्चे को जनम देने के लिए तैयार रहती क्यूंकि वहाँ प्यार है। जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूत के पंखुड़ियों पर कुछ समय तक प्यार से रगड़ा। जब उन्हें यकीन हो गया की उनका लण्ड इतना चिकना हो गया है की वह अपर्णा की चूत में घुसने से अपर्णा को उतना दर्द नहीं देगा तब उन्होंने अपना लण्ड अपर्णा की गाँड़ के सानिध्य में ही अपर्णा की चूत में पीछे से घुसेड़ा। जीतूजी अपर्णा की करारी गाँड़ को दखते ही रहे। अपर्णा की गाँड़ के गालों को वह बड़े ही प्यार से सहलाते और दबाते रहे और ऐसा करते हुए उन्हें गजब का उन्माद भरे आनंद का अनुभव हो रहा था। झुकी खड़ी अपर्णा के बाल उसके सर के निचे जमीन तक लटके हुए गजब दिख रहे थे। अपर्णा के अल्लड़ स्तन और उसकी निप्पलेँ भी अब धरती की और उंगली कर रहीं थीं। जीतूजी ने अपर्णा की चूँचियों को अपने दोनोंहाथों में पकड़ा और अपनी गाँड़ के सहारे अपर्णा की चूत में अपना लण्ड और घुसेड़ने के लिए एक धक्का मारा।

जीतूजी के लण्ड के ऊपर और अपर्णा की चूत की सुरंग के अंदर सराबोर फैली हुई चिकनाहट के कारण जीतूजी का लण्ड अंदर तो घुसा पर फिर वही अपर्णा की चूत की सुरंग की त्वचा को ऐसा खींचा की बहुत नियत्रण रखते और जरासा भी आवाज ना करने की भरसक कोशिश करने के बावजूद अपर्णा के मुंह में से चीख भरी कराह निकल ही गयी। जीतूजी अपर्णा की दर्द भरी कराहट सुनकर रुक जाना चाहते थे। पर उनकी प्रियतमा अपर्णा कुछ अलग ही मिटटी से बनी थी। जीतूजी को थम कर अपना लण्ड को निकालने का मौक़ा ना देते हुए, अपर्णा ने अपनी गाँड़ को पीछे धकेला और ना चाहते हुए भी जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में और घुस गया। अपर्णा ने थोड़ा सा पीछे मुड़ कर अपने प्रियतम की और देखा और मुस्कुरा कर बोली, "मेरे प्यारे प्रियतम, आप आज मुझे ऐसे चोदो जैसे आपने कभी किसीको चोदा ना हो। मैं यह दर्द झेल लूंगीं। अगर मैंने आपको विरह का दर्द दिया था तो मैं अब खुद मिलन का दर्द प्यार से झेल लूंगीं। पर मुझे विरह का दर्द मत दो। मेरे लिए यह चुदाई का दर्द सही है पर तुम्हारे लण्ड के विरह का दर्द मजूर नहीं। आज मैं पहली बार अपने प्रियतम जीतू से चुदवा रही हूँ। आज मेरी चूत को भले ही फाड़ दो पर बस खूब चोदो।"

जीतूजी को अपर्णा की प्यार भरे पागलपन पर हँसी आ गयी। वह सोचने लगे, भगवान् ने औरतों को पता नहीं कैसा बनाया है। वह दर्द को भी प्यार के लिए सहन कर अपने प्रियतम को आनंद देना चाहती हैं। उन्हें अपने प्रियतमके आनंद में ही अपना आनंद महसूस होता है चाहे उसमें उनको कितना भी दर्द क्यों नाहो। उन्होंने बरबस ही झुक कर सारी स्त्री जाती को अपनी सलूट मारी और अपने लण्ड को अपर्णा की चूत में पेलने में लग गए। एक और धक्का दे कर जीतूजी ने अपर्णा की चूत में अपना आधा लण्ड घुसा दिया। धीरे धीरे बढती चिकनाहट के कारण एक के बाद एक धीरे धक्के से उनका लण्ड और अंदर और अंदर घुसता चला गया और देखते ही देखते वह पूरा अपर्णा की चूत की सुरंग में घुस गया। अपर्णा की चूत की पूरी सुरंग जीतूजी के लण्ड से पूरी तरह भर गयी। अपर्णा को खुद ऐसा महसूस हुआ जैसे जीतूजी उसके बदन में प्रवेश कर चुके थे और वह और जीतूजी एक हो चुके थे। अपर्णा अब जीतूजी से अलग नहीं थी। दो बदन प्यार में एक हो गए थे। सारी दूरियां ख़त्म हो चुकी थीं।

अपर्णा की चूत पुरे तनाव में इतनी दर्द भरे तरीके से खींची हुई होनेके बावजूद भी अपर्णाके उन्माद का कोई ठिकाना ना था। उसे अपने स्त्री होने का गर्व था की उसने अपने प्रेमी को वह आनंद दिया था जो शायद ही उसके पहले किसी स्त्री ने उनको दिया हो। और अपने प्रियतम के उन्माद भरे प्यार के कारण अपर्णा भी अपने जहन में एक गजब के उन्माद का अनुभव कर रही थी। उसका जीतूजी से चुदवाने का सपना पूरा हुआ था यह उसके लिए एक अद्भुत अवसर था। राजपूतानी की नफरत जान लेवा होती है तो उसका प्यार एक जान का संचार भी कर देता है। अपर्णा की दिली गूढ़ इच्छा थी की वह जीतूजी का बच्चा अपने पेट में पाले। जब जीतूजी ने पीछे से अपर्णा की चूत में अपना पूरा लण्ड घुसेड़ दिया तो अपर्णा जीतूजी के प्यार को अपने बदन से छोड़ना नहीं चाहती थी भले ही क्यों ना जीतूजी का लण्ड अपर्णा की चूत में से निकल जाए। अपर्णा जीतूजी की ज़िंदा निशानी पूरी जिंदगी गले से लगा कर रखना चाहती थी। अपर्णा चाहती थी की जीतूजी के वीर्य से उसे एक नयी जिंदगी देने का मौक़ा मिले। उसे पता नहीं था की उसके पति उसकी इजाजत देंगे या नहीं। पर अपर्णा एक राजपूतानी थी और अगर उसने ठान लिया तो फिर वह उसे पूरा करेगी ही।

जीतूजी अपर्णा की चूत में अपना लण्ड जोश खरोश से पेले जा रहेथे। उनके अंडकोष में उनका गरम वीर्य खौल रहा था। अपर्णा की चूत की फड़कन से वह बाहर फुट फुट कर फव्वारे के रूप में निकलने के लिए बेताब था। अपर्णा की चूत की अद्भुत पकड़ के कारण जीतूजी का धैर्य जवाब दे रहा था। अब समय आ गया था की वह महीनों की रोकी हुई गर्मी और वीर्य को खाली कर अपना उन्माद से कुछ देर के लिए ही सही पर निजात पाएं। अपर्णा ने जीतूजी के बदन के तनाव और चोदते हुए उनकी हूँकार की तीव्रता से यह महसूस किया की उसके प्रियतम भी अपने चरम पर पहुँचने वाले हैं। तब उसने जीतूजी के लण्ड के पिस्टन के धक्कों को झेलते हुए पीछे गर्दन कर एक शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "मेरे प्रियतम, मेरी जान, तुम्हें अपना सारा वीर्य मेरी चूत में ही उंडेलना है। अगर मैं तुम्हारे वीर्य से गर्भवती हुई तो यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। मुझे तुमसे एक बच्चा चाहिए। चाहे इसके लिए श्रेया और रोहित सहमत हों या नहीं। बोलो क्या तुम मुझे गर्भवती बना सकते हो? तुम्हें तो कोई आपत्ति नहीं ना?" जीतूजी उन्माद के मारे कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थे। उनका गरम वीर्य जो उनक अंडकोष और उनके लण्ड की रग़ों में खौल रहा था, फुंफकार रहा था उसे छोड़नाही था। और अगर उसे अपर्णा की चूत में छोड़ा जाए तो उससे और अच्छी बात क्या हो सकती है? उस समय उन्हें सही या गलत सोचने की सूझबूझ नहीं थी। जीतूजी उस समय अपने लण्ड के गुलाम थे। अपर्णा भी अपने उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी थी। जीतूजी के धक्कों के साथ साथ अपर्णा भी अपनी गाँड़ को पीछे धक्का मार कर अपनी उत्तेजना दिखा रही थी। जीतूजी के एक जोरदार धक्के से जीतूजी के लण्ड के केंद्रबिंदु स्थित छिद्र से उनके गरम गरम वीर्य का फव्वारा अपर्णा ने अपनी चूत में फैलते हुए महसूस किया।

अपर्णा की चूत तो पहले से ही जीतूजी के लण्ड से लबालब भरी हुई थी। जीतूजी का गरम वीर्य इतनी तादाद में था की अपर्णा की चूत की सुरंग में उसके लिए कोई जगह ही नहीं होगी। पर फिर भी वह शायद अपर्णा की चूत में से उसकी बच्चे दानी में प्रवेश कर गया। शायद अपर्णा के स्त्री अंकुर से जीतूजी का पुरुष अंकुर मिल गया और शायद एक नयी जिंदगी का उदय इस धरती पर होने के आगाज़ होने लगे। जीतूजी अपने लण्ड के कुछ और प्यार भरे धक्के मार के रुक गए। उनका वीर्य उनके एंड कोष से निकल कर अपर्णा की पूरी चूत को पूरी तरह भर चुका था। अपर्णा और जीतूजी एक दूसरे से चिपके हुए ऐसे ही कुछ देर तक उसी पोजीशन में खड़े रहे। धीरे से फिर जीतूजी ने अपना लण्ड अपर्णा की चूत में से बाहर निकाला और कुछ देर तक नंगी अपर्णा की चूत में से रिस रहे अप्पने मलाई से वीर्य को देखते रहे। अपर्णा ने देखा की ढीला होने के बावजूद भी जीतूजी का लण्ड इतना मोटा और लंबा एक अजगर की तरह चिकनाहट से लथपथ उनकी टांगों के बिच में से लटक रहा था।

अपर्णा ने फुर्ती से लपक कर जीतूजी का लण्ड अपने हाथों में लिया और अपना मुंह झुकाकर अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड चाटना शुरू किया और देखते ही देखते अपनी जीभ से अपर्णा ने जीतूजी का लण्ड चाट कर साफ़ कर दिया। जीतूजी का मलाई सा वीर्य वह गटक कर निगल गयी। थके हुए जीतूजी निढाल हो कर पलंग पर गिर पड़े और कुछ ही देर में खर्राटे मारने लगे। अपर्णा ने बाथरूम में जाकर अपनी चूत और जाँघों को साफ़ किया। जीतूजी का वीर्य अपनी चूत में लेकर अपर्णा बड़ी ही संतुष्टि का अनुभव कर रही थी। उसे उम्मीद थी की उस सुबह की चुदाई से वह जरूर माँ बनेगी और जीतूजी की निशानी उसके गर्भ में होगी। अपने आप को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद कपडे पहनने की जरुरत ना समझते हुए, अपर्णा वैसी ही नंगी जीतूजी की बाहों में उनकी रजाई में घुस कर लेट गयी। कुछ ही देर में दोनों प्रेमी गहरी नींद के आगोश में जा पहुं

सुबह की लालिमा आसमान में हलकी फुलकी दिख रही थी।

अपर्णा और जीतूजी को सोये हुए शायद दो घंटे बीत चुके होंगे की अचानक डॉ. खान के शफाखाने के दरवाजे की घंटी बज उठी। जीतूजी गहरी नींद में से अचानक जाग गए और अपने सूखे हुए कपडे अपने बदन पर डालते हुए दरवाजे की और भागे। वह नहीं चाहते थे की इतनी जल्द्दी सुबह डॉ. खान को घंटी सुनकर ऊपर की मंजिल से निचे उतरना पड़े। अफरा-तफ़री में अपने कपडे पहनते हुए जीतूजी ने दरवाजा खोला तो देख कर हैरान रह गए की सामने रोहित लहूलुहान हालात में सारे कपडे लाल लहू से रंगे हुए उनके सामने खड़ेथे।​
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