Update 46
पत्नी की अदला-बदली - 10
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अच्छी अच्छी मानिनीयाँ भी चुदवाने को बेताब हुई!
पहले तो पति से ही चुदती थी, गैरों पर क्यों मोहताज हुई!!
दवा जो वफ़ा का करते थे जो ढोल वफ़ा का पीटते थे!
क्यों वह झुक कर डॉगी बन लण्ड लेने को सरताज हुई!!
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जब अपर्णा बाहर निकली तो उसने देखा की रोहित और जीतूजी भी उनके पास जैसे भी कपडे थे वह पहन कर कमरे का दवाजा खोलकर बाहर खड़े थे और कुछ सेना के अधिकारियों से बातचीत कर रहे थे। दरवाजे के पीछे खड़े हुए अपर्णा ने देखा की घर के बाहर भारतीय सेना की कई जीपें खड़ी हुई थीं। जीतूजी सेना के कोई अधिकारी से बातचीत कर रहे थे। कुछ ही देर में जीतूजी और रोहित उन से फारिग होकर कमरे के अंदर आये और बोले, "हमारी सेना ने हमारा पता लगा लिया है और वह हमें यहां से ले जाने के लिए आये हैं। उन्होंने हमें बताया की सेना ने आतंकियों का वह अड्डा जहां की हम लोगों को कैद किया था उसे दुश्मन की सरहद में घुस कर उड़ा दिया है। पिछले दो दिनों से दोनों पडोसी की सेनाओं में जंग से हालात बन गए थे। पर हमारे बहादुर जवानों ने दुश्मनों को खदेड़ दिया है और अब सरहद पर शान्ति का माहौल है।" कुछ ही देर में बादशाह खान साहब भी आ पहुंचे। जीतूजी और रोहित ने उन्हें झुक कर अभिवादन किया और उनका बहुत शुक्रिया किया। बादशाह खान की दो लडकियां और बीबी भी आयीं और उनकी विदाय लेते हुए, जीतूजी, अपर्णा और रोहित सेना के जीप में बैठ कर अपने कैंप की और रवाना हुए।
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कैंप में सारे सैनिक जवान, अफसर, महिलायें और कर्मचारियों ने जीतूजी, रोहित और अपर्णा के पहुँचते ही उनका बड़े जोश खरोश से स्वागत किया और उन्हें फूलकी मालाएं पहनायीं। सब जगह तालियों की गड़गड़ाहट से उनका अभिवादन किया गया। उस शामको एक भव्य भोज का आयोजन किया गया, जिसमें उन तीनों को मंच पर बुलाकर तालियों की गड़गड़ाहट के बिच बहुत सम्मान किया गया और उनके पराक्रम की सराहना की गयी।
अपर्णा वापस आने के फ़ौरन बाद मौक़ा मिलते ही श्रेयाके पास पहुँच कर उनसे लिपट गयीं। अपर्णा के शर्मिंदगी भरे चेहरे को देख कर श्रेया जी समझ गयीं की उनके पति जीतूजी ने अपर्णा की चुदाई कर ही दी थी। श्रेया ने अपर्णा को अपनी बाँहों में जकड कर पूछा, "क्यों जानेमन? आखिर मेरे पति ने तुम्हारी बिल्ली मार ही दी ना? तुम तो मुझसे बड़ी ही बनती फिरती थी। कहती थी मैं राजपूतानी हूँ। मैं ऐसे इतनी आसानी से किसीको अपना बदन नहीं सौपूंगी। अब क्या हुआ जानेमन? मैं ना कहती थी? मेरे पति ठान ले ना, तो किसी को भी अपने वश में कर लेते हैं। ऐसी आकर्षण की शक्ति है उनमें।" औरतों में ऐसी कहावत है की जब कोई मर्द किसी औरत की भरसक कोशिशों के बाद चुदाई करने में कामियाबी हासिल करता है तो कहा जाता है की उसने आखिर में बिल्ली मार ही दी। मतलब आखिर में भरसक कोशिशों करने के बाद उस मर्द ने उस औरत को अपने वश में कर ही लिया और उसे चुदवाने के लिए राजी कर के उसे चोद ही दिया। अपर्णा समझ गयी की श्रेया जी का इशारा किस और था। अपर्णा ने भी अपनी मुंडी हिला कर कहा, "श्रेया, आपके पति ने आखिर में मेरी बिल्ली मार ही दी।" और यह कह कर भाव मरे गदगद होकर रोने लगी।
श्रेया ने अपर्णा को गले लगाकर कहा, "मेरी प्यारी छोटी बहना। बस अब शांत हो जा। जो हुआ वह तो होना ही था। मेरे पति को मैं भली भाँती जानती हूँ। वह जो कुछ भी ठान लेते हैं वह कर के ही छोड़ते हैं। तेरी बिल्ली तो मरनी ही थी।" दोनों बहने एक दूर के गले मिलकर काफी भावुक होकर काफी देर तक एक दूसरे की बाँहों में लिपटे हुए खड़ी रहीं। फिर अपर्णा ने श्रेया के गालों में चिमटी भरते हुए कहा, "मेरी बिल्ली मरवाने में आपका भी तो बहुत बड़ा योगदान है। आप भी तो दाना पानी ले कर मेरे पीछे ही पड़ गयीं थीं की मेरे पति से चुदवाले। अब मैं करती भी तो क्या करती? एक तरफ आप, दूसरी तरफ मेरे पति और बाकी कसर थी तो वह तुम्हारे रोमांटिक पति जीतूजी ने पूरी कर् ली। उनका तो माशा अल्ला क्या कहना? सब ने मिलकर मेरी बेचारी बिल्ली को कहीं का नहीं छोड़ा।"श्रेया जी और अपर्णा दोनों कुछ देर ऐसे ही लिपटे रहे और बाद में अलग हो कर दोनों ने यह तय किया की उसके बाद वह एक दूसरे से कोई पर्दा नहीं करेंगे। अपर्णा ने जब अपनी सारी कहानी सुनाई तो सुनकर श्रेया जी तो दंग ही रह गयीं। कैसे अपर्णा को वह राक्षशी मोटू परेशान करता रहा और आखिर में जीतूजी ने उन्हें कैसे मार दिया और कैसे अपर्णा को जीतूजी ने बचाया, यह सुनकर श्रेया भी भावुक हो गयी। आखिर में अपर्णा ने अपने आपको कैसे जीतूजी को समर्पण किया वह अपर्णा ने विस्तार पूर्वक अपनी बड़ी बहन को बताया।
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बाकी के उनदिनों की याद सब के लिए जैसे एक मधुर सपने के समान बन गयीं। हर रात, श्रेया जी रोहित के बिस्तर में और अपर्णा जीतूजी की बाँहों में सम्पूर्ण निर्वस्त्र होकर पूरी रात चुदाई करवाते।
कभी दोनों ही बिस्तर पर लेट कर एक दूर के सामने ही एक दूसरे के पति से या फिर अपने ही पति से चुदवातीं।
कभी दोनों बहनें अपने प्रेमियों के ऊपर चढ़ कर उनको चोदतीं तो कभी दोनों बहने एक दूसरे से लिपट कर एक दूसरे को घना आलिंगन कर एक दूसरे में ही मगन हो जातीं।
दिन में काफी चल कर पहाड़ियों में घूमना। रास्ते में जब आसपास कोई ना हो तो एक दूसरे से की छेड़छाड़ करना और शामको थक कर वापस आना। पर रात में मौज करने का मौक़ा कभी नहीं चूकना। यह उनका नित्यक्रम बना हुआ था।
देखते ही देखते हफ्ता कहाँ बीत गया कोई पता ही नहीं चला। आखिर में वापस जाने की घडी आगयी। वापस जाने के लिए तैयार होने पर सब निराश दिख रहे थे। जो आनंद, उत्तेजना और रोमांच उन सबको सेना के उस कैंप में आया था वह अब एक ना भूलने वाला अनुभव बन कर इतिहास बन गया था।
वापस जाने के लिए तैयार होते हुए श्रेया, रोहित, जीतूजी और अपर्णा सब के जेहन में एक ही बात थी की जो समय उन्होंने उन वादियों, झरनों, घने बादलों, और जंगल में बिताया था वह एक अद्भुत रोमांचक, उत्तेजना पूर्ण और उन्मादक इतिहास था। रोमांच, उत्तेजना और उन्माद के वह दिन वह दोनों जोड़ियां कभी भी नहीं भूल पाएंगीं।
समाप्त!!!