Update 01
"कल हो ना हो" - पत्नी की अदला-बदली - 01
रोहित एक सम्मानित और देश विदेश में काफी प्रसिद्ध राजकीय पत्रकार थे। देश की राजकीय घटना पर उनकी अच्छी खासी पकड़ मानी जाती थी। वह ख़ास तौर पर देश की सुरक्षा सम्बंधित घटनाओं पर लेख लिखते थे। देश की सुरक्षा सेवाओं से जुड़े हुए लोगो में उनका काफी उठना बैठना होता था। उन दिनों रोहित करीब 35 साल के थे और उनकी पत्नी अपर्णा करीब 31 की होगी। रोहित और उनकी पत्नी अपर्णा उनकी एक संतान के साथ एक आर्मी हाउसिंग कॉलोनी में किराए के मकान में रहने के लिए आये थे। उनका अपना घर नजदीक की ही कॉलोनी में ही निर्माणरत था।
रोहित की बीबी अपर्णा करीब 31 की होते हुए भी 25 साल की ही दिखती थी। खान पान पर कडा नियत्रण और नियमित व्यायाम और योग के कारण उसने अपना आकार एकदम चुस्त रखा था। अपर्णा का चेहरा वयस्क लगता ही नहीं था। उसके स्तन परिपक्व होते हुए भी तने और कसे हुए थे। उसके स्तन 32+ और स्तन सी कप साइज के थे। व्यवहार और विचार में आधुनिक होते हुए भी अपर्णा के मन पर कौटुम्बिक परम्परा का काफी प्रभाव था। कई बार जब ख़ास प्रसंग पर वह राजस्थानी लिबास में सुसज्जित होकर निकलती थी तो उसकी जवानी और रूप देख कर कई दिल टूट जाते थे। राजस्थानी चुनरी, चोली और घाघरे में वह ऐसे जँचती थी की दूसरों की तो बात ही क्या, स्त्रियां भी अपर्णा को ताकने से बाज ना आती थीं। अपर्णा को ऐसे सजने पर कई मर्दों की मर्दानगी फूल जाती थी और कईयों की तो बहने भी लग जाती थी।
अपर्णा का खानदान राजपूती परम्परा से प्रभावित था। कहते हैं की हल्दीघाटी की लड़ाई में अपर्णा के दादा परदादा हँसते हँसते लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उधर अपर्णा के पिता भी कुछ ऐसी ही भावना रखते थे और अपनी बेटी को कई बार राजपूती शान की कहानियां सुनाते थे। उनका कहना था की असली राजपूत एहसान करने वाले पर अपना तन और मन कुर्बान कर देता है, पर अपने शत्रु को वह बख्शता नहीं है। उन्होंने दो बड़ी लड़ाइयां लड़ी और घायल भी हुए। पर उन्हें एक अफ़सोस रहा की वह रिटायर होने से पहले अपनी जान कोई भी लड़ाई में देश के लिए बलिदान नहीं कर पाए।
अपर्णा की कमर का घुमाव और उसकी गाँड़ इतनी चुस्त और लचीली थी की चाहे कोई भी पोशाक क्यों ना पहनी हो वह गजब की सेक्सी लगती थी। उस कॉलोनी के ब्लॉक में उनके आते ही रोहित की बीबी अपर्णा के आशिकों की जैसे झड़ी लग गयी थी। दूध वाले से लेकर अखबार वाला। सब्जी वाले से लेकर हमारी कॉलोनी के जवान बूढ़े बच्चे सब उसके दीवाने थे। कॉलेज और कॉलेज में अपर्णा एक अच्छी खासी खिलाड़ी थी। वह लम्बी कूद, दौड़ इत्यादि खेल प्रतियोगिता में अव्वल रहती थी। इसके कारण उसका बदन गठीला और चुस्त था। उन दिनों भी वह हर सुबह चड्डी पहन कर उनकी छत पर व्यायाम करती रहती थी। जब वह व्यायाम करती थी तो कई बार उनके सामने रहते एक आर्मी अफसर कर्नल अभिजीत सिंह को अपर्णा को चोरी चोरी ताकते हुए अपर्णा के पति रोहित ने देख लिया था। हालांकि रोहित को कर्नल अभिजीत सिंह से मिलने का मौक़ा नहीं मिला था, रोहित ने कर्नल साहब की तस्वीर अखबारों में देखि थी और उन के बारे में काफी पढ़ा था। कर्नल अभिजीत सिंह जैसे सुप्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति को अपनी बीबी को ताकते हुए देख कर रोहित मन ही मन मुस्करा देता था। कर्नल साहब के घर की एक खिड़की से रोहित के घर की छत साफ़ दिखती थी। चूँकि मर्द लोग हमेशा अपर्णा को घूरते रहते थे तो रोहित हमेशा अपनी बीबी अपर्णा से चुटकी लेता रहता था। उसे छेड़ता रहता था की कहीं वह किसी छैल छबीले के चक्कर में फँस ना जाये।
अपर्णा भी अपने पति रोहित को यह कह कर शरारत से हँस कर उलाहना देती रहती की, "अरे डार्लिंग अगर तुम्हें ऐसा लगता है की दूसरे लोग तुम्हारी बीबी से ताक झाँक करते हैं तो तुम अपनी बीबी को या ताक झाँक करने वालों को रोकते क्यों नहीं? यदि कहीं किसी छैल छबीले ने तुम्हारी बीबी को फाँस लिया तो फिर तुम तो हाथ मलते ही रह जाओगे। फिर मुझे यह ना कहना की अरे यह क्या हो गया? जिसकी बीबी खूबसूरत हो ना, तो उस पर नजर रखनी चाहिए।" ऐसे ही उनकी नोंक झोंक चलती रहती थी। रोहित अपर्णा की बातों को हँस कर टाल देता था। उसे अपर्णा से कोई शिकायत नहीं थी। उसे अपनी बीबी पर खुदसे भी ज्यादा भरोसा था। रोहित और अपर्णा एक ही कॉलेज में पढ़े थे। कॉलेज में भी अपर्णा पर कई लड़के मरते थे, यह बात रोहित भाली भाँती जानता था। पर कभी अपर्णा ने उनमें से किसी को भी अपने करीब फटकने नहीं दिया था। बल्कि अपर्णा से जब कॉलेज में ही रोहित की मुलाक़ात हुई और धीरे धीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गयी और शादी भी पक्की हो गयी तब भी अपर्णा रोहित को आगे बढ़ने का कोई मौक़ा नहीं देती थी। उनमें चुम्माचाटी तो चलती थी पर अपर्णा रोहित को वहीँ रोक देती थी।
अपर्णा एक प्राथमिक कॉलेज में अंग्रेजी शिक्षक की नौकरी करती थी। और वहाँ भी कॉलेज के प्रिंसिपल से लेकर सब उसके दीवाने थे। वैसे तो रोहित की प्यारी बीबी अपर्णा काफी शर्मीली थी, पर चुदाई के समय बिस्तर में एकदम शेरनी की तरह गरम हो जाती थी और जब वह मूड़ में होती थी तो गजब की चुदाई करवाती थी।
अपर्णा की पतली कमर रोहित की टांगों के बिच स्थापित जनाब को हमेशा वक्त बे वक्त खड़ा कर देती थी। अगर समय होता और मौक़ा मिलता तो रोहित अपर्णा को वहीँ पकड़ कर चोद देता।
पर समय गुजरते उनकी चुदाई कुछ ठंडी पड़ने लगी, क्यूंकि अपर्णा कॉलेज में और घर के कामों में व्यस्त रहने लगी और रोहित उसके व्यावसायिक कामों में। रोहित और अपर्णा कई बार बिस्तर में पड़े पड़े उनकी शादी के कुछ सालों तक की घमासान चुदाई के दिनों को याद करते रहते थे। सोचते थे कुछ ऐसा हो जाए की वह दिन फिर आ जाएँ। उनका कई बार मन करता की वह कहीं थोड़े दिन के लिए ही सही, छुट्टी लें और सब रिश्ते दारी से दूर कहीं जंगलों में, पहाड़ियों में झरनों के किनारे कुछ दिन गुजारें, जिससे वह उनकी बैटरियां चार्ज कर पाएं और अपनी जवानी के दिनों का मजा फिर से उठाने लगें, फिर वही चुदाई करें और खूब मौज मनाएं। चूँकि दोनों पति पत्नी मिलनसार स्वभाव के थे इसलिए सोचते थे की अगर कहीं कोई उनके ही समवयस्क ग्रुप के साथ में जाने का मौक़ा मिले तो और भी मजा आये। अपर्णा के कॉलेज में छुट्टियां होने के बावजूद रोहित अत्याधिक व्यस्तता के चलते कोई कार्यक्रम बन नहीं पा रहा था। अपर्णा को मूवीज और घूमने का काफी शौक था पर यहाँ भी रोहित गुनेहगार ही साबित होता था। इस के कारण अपर्णा अपने पति रोहित से काफी नाराज रहती थी। रोहित को अपनी पत्नी को खुले में छेड़ने में बड़ा मजा आता था। अगर वह कहीं बाहर जाते तो रोहित अपर्णा को खुले में छेड़ने का मौक़ा नहीं चुकता था।
कई बार वह उसे सिनेमा हाल में या फिर रेस्तोरां में छेड़ता रहता था। दूसरे लोग जब देखते और आँखे फिरा लेते तो उसे बड़ी उत्तेजना होती थी। अपर्णा भी कई बार नाराज होती तो कई बार उसका साथ देती। नए घर में आने के कुछ ही दिनोंमें अपर्णा को करीब पड़ोस की सब महिलाएं भी जानने लगीं, क्यूंकि एक तो वह एकदम सरल और मधुर स्वभाव की थी। दूसरे उसे किसी से भी जान पहचान करनेमें समय नहीं लगताथा। सब्जी लेते हुए, आते जाते पड़ोसियों के साथ वह आसानी से हेलो, हाय से शुरू कर कई बार अच्छी खासी बातें कर लेती थीं। घर में रोहित जब अपने कमरे में बैठकर कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा होता था, तो अक्सर उसे खिड़की में से सामने के फ्लैट में रहने वाले कर्नल साहब और उनकी पत्नी दिखाई देते थे। उनकी एक बेटी थोड़ी बड़ी थी और उन दिनों कॉलेज जाया करती थी। कर्नल साहब और रोहित की पहेली बार जान पहचान कुछ अजीबो गरीब तरीके से हुई।
एक दिन रोहित कुछ जल्दी में घर आया तो उसने अपनी कार कर्नल साहब के गेराज के सामने खड़ी कर दी थी। शायद रोहित को जल्दी टॉयलेट जाना था। घर में आने के बाद वह भूल गया की उसे अपनी गाडी हटानी चाहिए थी। अचानक रोहित के घर के दरवाजे की घंटी बजी। उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो कर्नल अभिजीत सिंह को बड़े ही गुस्से में पाया। आते ही वह रोहित को देख कर गरज पड़े, "श्रीमान, आप अपनी कार को ठीक तरह से क्यों नहीं पार्क कर सकते?" रोहित ने उनको बड़े सम्मान से बैठने के लिए कहा तो बोल पड़े, " मुझे बैठना नहीं है। आप को समझना चाहिए की कई बार कोई जल्दी में होता ही तो कितनी दिक्कत होती है?" आगे वह कुछ बोलने वाले ही थे की रोहित की पत्नी अपर्णा जो कुछ ही समय पहले बाथरूम से निकली ही थी, चाय बना कर रसोई से चाय का प्याला लेकर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई। अपर्णा के बाल घने, गीले और बिखरे हुए थे और उनको अपर्णा ने तौलिये में ढक कर लपेट रखा था। और ब्लाउज गीला होने के कारण अपर्णा की छाती पर उसके फुले हुए स्तन कुछ ज्यादा ही उभरे हुए लग रहे थे। अपर्णा का चेहरे की लालिमा देखते ही बनती थी। अपर्णा को इस हाल में देखतेही कर्नल साहब की बोलती बंद हो गयी। अपर्णा ने आगे बढ़कर कर्नल साहब के सामने ही झुक कर मेज पर जैसे ही चाय का कप रखा तो रोहित ने देखा की कर्नल साहब की आँखें अपर्णा के वक्षों के बिच का अंतराल देखते ही फ़टी की फटी रह गयीं।
अपर्णा ने चाय का कप रखकर बड़े ही सम्मान से कर्नल साहब को नमस्ते किया और बोली, "आप श्रेया जी के हस्बैंड हैं ना? बहुत अच्छीं हैं श्रेया जी।" अपर्णा की मीठी आवाज सुनते ही कर्नल साहब की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। वह कुछ बोल नहीं पाए तब अपर्णा ने कहा, "सर, आप कुछ कह रहे थे न?" अभिजीत सिंह जी का गुस्सा अपर्णा की सूरत और शब्दों को सुनकर हवा हो गया था। वह झिझकते हुए बड़बड़ाने लगे, "नहीं, कोई ख़ास बात नहीं, हमें कहीं जाना था तो मैं (रोहित की और इशारा करते हुए बोले) श्रीमान से आपकी गाडी की चाभी मांगने आया था। आपकी गाडी थोड़ी हटानी थी।"
अपर्णा समझ गयी की जरूर उसके पति रोहित ने कार को कर्नल साहब की कार के सामने पार्क कर दिया होगा। वह एकदम से हँस दी और बोली, "साहब, मेरे पति की और से मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ। वह हैं ही ऐसे। उन्हें अपने काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं। व्यावहारिक वस्तुओं का तो उन्हें कुछ ध्यान ही नहीं रहता। हड़बड़ाहट मैं शायद उन्होंने अपनी कार आपकी कार के सामने रख दी होगी। आप प्लीज बैठिये और चाय पीजिये।" फिर अपर्णा ने मेरी और घूम कर मुझे उलाहना देते हुए कहा, "आप को ध्यान रखना चाहिए। जाइये और अपनी कार हटाइये।" फिर कर्नल साहब की और मीठी नजर से देखते हुए बोली, "माफ़ कीजिये। आगे से यह ध्यान रखेंगे। पर आप प्लीज चाय पीजिये और (मेज पर रखे कुछ नास्ते की चीजों की और इशारा करते हुए बोली) और कुछ लीजिये ना प्लीज?" रोहित हड़बड़ाहट में ही उठे और अपनी कार की चाभी ले कर भाग कर अपनी कार हटाने के लिए सीढ़ियोंकी और निचे उतरनेके लिए भागे। अपर्णा ठीक कर्नल साहब के सामने एक कुर्सी खिसका कर थोड़ा सा कर्नल साहब की और झुक कर बैठ गयी और उन्हें अपनी और ताकते हुए देख कर थोड़ी शर्मायी। शायद अपर्णा कहना चाह रही थी की "सर आप क्या देख रहे हैं?" पर झिझकती हुई बोली, "सर! आप क्या सोच रहे हैं? चाय पीजिये ना? ठंडी हो जायेगी।" अपर्णा को पता नहीं था उसे कर्नल साहब के ठीक सामने उस हाल में बैठा हुआ देख कर कर्नल साहब कितने गरम हो रहे थे। कर्नल साहब को ध्यान आया की उनकी नजरें अपर्णा के बड़े बड़े खूबसूरत स्तन मंडल के बिच वाली खाईसे हटनेका नाम नहीं लेरही थी। लेकिन अपर्णाका उलाहना सुनकर कर्नल साहबने अपनी नजर अपर्णाके ऊपर से हटायीं और कमरेके चारों और देखने लगे। क्या बोले वह समझ नहीं आया तो वह थोड़ी सी खिसियानी शक्ल बना कर बोले, "अपर्णाजी आप का घर आपने बड़ी ही सुन्दर तरीके से सजाया है। लगता है आप भी श्रेया की तरह ही सफाई पसंद हैं।"
कर्नल साहब की बात सुन कर अपर्णा हँस पड़ी और बोली, "नहीं जी, ऐसी कोई बात नहीं। बस थोड़ा घर ठीक ठाक रखना मुझे अच्छा लगता है। पर भला श्रेया जी तो बड़ी ही होनहार हैं। उनसे बातें करतें हैं तो वक्त कहाँ चल जाता है पता ही नहीं लगता। हम जब कल मार्किट में मिले थे तो श्रेया जी कह रही थीं l"
और फिर अपर्णा की जबान बे लगाम शुरू हो गयी और कर्नल साहब उसकी हाँ में हाँ मिलाते बिना रोक टोक किये सुनते ही गए। वह भूल गए की उनको कहीं जाना था और उनकी पत्नी निचे कार के पास उन का इंतजार कर रही थी। जाहिर है उनको अपर्णा की बातों में कोई ख़ास दिलचश्पी नहीं थी। पर बात करते करते अपर्णा के हाथों की मुद्राएँ, बार बार अपर्णा की गालों पर लटक जाती जुल्फ को हटाने की प्यारी कवायद, आँखोंको मटकाने का तरिका, अपर्णा की अंगभंगिमा और उसके बदन की कामुकता ने उनका मन हर लिया था। जब रोहित अपनी कार हटा कर वापस आये तो कर्नल साहब की तंद्रा टूटी और अपर्णा की जबान रुकी।
रोहित ने देखा की अपर्णा ने कर्नल साहब को अपनी चबड चबड में फाँस लिया था तो वह बोले, "अरे जानू, कर्नल साहब जल्दी में हैं। उनको कहीं जाना है।" फिर कर्नल साहब की और मुड़कर रोहित ने कहा, "माफ़ कीजिये। अपर्णा जैसे ही कोई उसकी बातों में थड़ी सी भी दिलचश्पी दिखाता है तो शुरू हो जाती है और फिर रुकने का नाम नहीं लेती। लगता है उसने आप को बहुत बोर कर दिया।" कर्नल साहब अब एकदम बदल चुके थे। उन्होंने चाय का कप उठाया और बोले, "कोई बात नहीं। यह तो होता रहता है। कोई जल्दी नहीं है।" रोहित की और अपना एक हाथ आगे करते हुए बोले, "मैं कर्नल अभिजीत सिंह हूँ।" फिर वह अपर्णा की और घूमकर बोले, "और हाँ श्रेया मेरी पत्नी है। वह आपकी बड़ी तारीफ़ कर रही थी।" रोहित ने भी अपना हाथ आगे कर अपना परिचय देते हुए कहा, "मैं रोहित वर्मा हूँ। मैं एक साधारण सा पत्रकार हूँ। आप मुझे रोहित कह कर ही बुलाइये। और यह मेरी पत्नी अपर्णा है, जिनके बारे में तो आप जान ही चुके हैं।" रोहित ने हलके कटाक्ष के अंदाज से कहा। जैसे ही रोहित ने अपनी पहचान दी तो कर्नल साहब उछल पड़े और बोले, "अरे भाई साहब! क्या आप वही श्रीमान रोहित वर्मा हैं जिनकी कलम से हमारी मिनिस्ट्री भी डरती है?" रोहित ने कर्नल साहब का नाम एक सुप्रतिष्ठित और अति सम्मानित आर्मी अफसर के रूप में सुन रखा था। तो रोहित ने हँस कर कर्नल साहब से कहा, "कर्नल साहब आप क्या बात कर रहे हैं? आप ये कोई कम हैं क्या? मैं समझता हूँ आप जैसा शायद ही कोई सम्मानित आर्मी अफसर होगा। आप हमारे देश के गौरव हैं। और जहां तक मेरी बात है, तो आप देख रहे हैं। मेरी बीबी मुझे कैसे डाँट रही है? अरे भाई मेरी बीबी भी मुझसे डरती नहीं है। मिनिस्ट्री तो बहुत दूर की बात है।" रोहित की बात सुनकर सब जोर से हँस पड़े। चाय पीते ही मन ना करते हुए भी कर्नल साहब उठ खड़े हुए और बोले, "आप दोनों, प्लीज हमारे घर जरूर आइये। श्रेया को और मुझे भी बहुत अच्छा लगेगा।"
कर्नल साहब बाहर से कठोर पर अंदर से काफी मुलायम और संवेदनशील मिज़ाज के थे। यह बात को नकारा नहीं जा सकता की अपर्णा को देखते ही कर्नल साहब उसकी और आकर्षित हुए थे। अपर्णा का व्यक्तित्व था ही कुछ ऐसा। उपरसे कर्नल साहब का रंगीन मिजाज़। अपर्णा के कमसिन और खूब सूरत बदन के अलावा उसकी सादगी और मिठास कर्नल साहब के दिल को छू गयी थी। अपने कार्य कालमें उनकी जान पहचान कई अति खूबसूरत स्त्रियों से हुई थी। आर्मी अफसर की पत्नियाँ , बेटियाँ, उनकी रिश्तेदार और कई सामाजिक प्रसंगों में उनके मित्र और साथीदार महिलाओं से उनकी मुलाक़ात और जान पहचान अक्सर होती थी।
अभिजीत सिंह (कर्नल साहब) के अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व, सुदृढ़ शरीर, ऊँचे ओहदे और मीठे स्वभाव के कारण उन को कभी किसी सुन्दर और वांछनीय स्त्री के पीछे पड़ने की जरुरत नहीं पड़ी। अक्सर कई बला की सुन्दर स्त्रियां पार्टियों में उनको अपने शरीर की आग बुझाने के लिए इशारा कर देती थीं। अभिजीत सिंह ने शुरुआत के दिनों में, शादी से पहले कई युवतियों का कौमार्य भंग किया था और कईयों की तन की भूख शांत की थी। उनमें से कई तो शादी होने के बाद भी अपने पति से छुपकर कर्नल साहब से चुदवाने के लिए लालायित रहतीं थीं और मौक़ा मिलने पर चुदवाती भी थीं। कर्नल साहब के साथ जो स्त्री एक बार सोती थी, उसके लिए कर्नल साहब को भुल जाना नामुमकिनसा होता था। आर्मी परिवार में और खास कर स्त्रियों में चोरी छुपी यह आम अफवाह थी की एक बार किसी औरत ने अगर अभिजीत सिंह का संग कर लिया (स्पष्ट भाषा में कहे तो अगर किसी औरत को कर्नल साहब से चुदवाने का मौक़ा मिल गया) तो वह कर्नल साहब के लण्ड के बारे में ही सोचती रहती थी। चुदवाने की बात छोड़िये, अगर किसी औरत को कर्नल साहब से बात भी करने का मौक़ा मिल जाए तो ऐसा कम ही होता था की वह उनकी दीवानी ना हो। कर्नल साहब की बातें सरल और मीठी होती थीं। वह महिलाओं के प्रति बड़ी ही शालीनता से पेश आते थे। जिस कारन उनकी बातों में सरलता, मिठास के साथ साथ जोश, उमंग और अपने देश के प्रति मर मिटने की भावना साफ़ प्रतीत होती थी। साथ में शरारत, मशखरापन और हाजिर जवाबी के लिए वह ख़ास जाने जाते थे।
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सालों पहले की बात है। कर्नल साहब की शादी भी तो ऐसे ही हुई थी। एक समारोह में युवा कर्नल की जब श्रेया से पहली बार मुलाक़ात हुई तो उनमें ज्यादा बात नहीं हो पायी थी। किसी पारस्परिक दोस्त ने उनका एक दूसरे से परिचय करवाया और बस। पर उनकी आंखें जरूर मिलीं। और आँखें मिलते ही आग तो दोनों ही तरफ से लगी। कर्नल साहब को श्रेया पहली नजर में ही भा गयी थी। श्रेया की आँखों में छिपी चंचलता और शौखपन अभिजीत सिंह के दिल को भेद कर पार गयी थी। श्रेया के बदन को देखकर उनपर जैसे बिजली ही गिर गयी थी। कई दिन बीत गए पर उन दोनोंकी दूसरी मुलाक़ात नहींहुई। अभिजीत सिंह की नजरें जहां भी आर्मी वालों का समारोह या प्रोग्राम होता था, श्रेया को ढूंढती रहती थीं। श्रेया का भी वही हाल था।
श्रेया के नाक नक्श, चाल, वेशभूषा, बदन का आकार और उसका अल्हड़पन ने उन्हें पहेली ही मुलाक़ात में ही विचलित कर दिया। श्रेया ने भी तो कप्तान अभिजीत सिंह (उस समय वह कप्तान अभिजीत सिंह के नाम से जाने जाते थे) के बारे में काफी सुन रखा था। अभिजीत सिंह से श्रेया की दूसरी बार मुलाक़ात आर्मी क्लब के एक सांस्कृतिक समारोह के दौरान हुई। दोनों में परस्पर आकर्षणतो था ही। अभिजीत सिंहने श्रेया के पापा, जो की एक निवृत्त आर्मी अफसर थे, उनके निचे काफी समय तक काम किया था, उनके बारे में पूछने के बहाने वह श्रेया के पास पहुंचे। कुछ बातचीत हुई, कुछ और जान पहचान हुई, कुछ शोखियाँ, कुछ शरारत हुई, नजरों से नजरें मिली और आग दावानल बन गयी। श्रेया अभिजीत सिंह की पहले से ही दीवानी तो थी ही।
बिच के कुछ हफ्ते अभिजीत सिंह को ना मिलने के कारण श्रेया इतनी बेचैन और परेशान हो गयी थी की उस बार श्रेया ने तय किया की वह हाथ में आये मौके को नहीं गँवायेगी। बिना सोचे समझे ही सारी लाज शर्म को ताक पर रख कर डांस करते हुए वह अभिजीत सिंह के गले लग गयी और बेतकल्लुफ और बेझिझक अभिजीत सिंह के कानों में बोली, "मैं आज रात आपसे चुदवाना चाहती हूँ। क्या आप मुझे चोदोगे?" अभिजीत सिंह स्तंभित हो कर श्रेया की और अचम्भे से देखन लगे तो श्रेया ने कहा, "मैं नशे में नहीं हूँ। मैं आपको कई हफ़्तों से देख रही हूँ। मैंने आपके बारे में काफी सूना भी है। मेरे पापा आपके बड़े प्रशंषक हैं। आज का मेरा यह फैसला मैंने कोई भावावेश में नहीं लिया है। मैंने तय किया था की मैं आपसे चुदवा कर ही अपना कौमार्य भंग करुँगी। मैं पिछले कई हफ़्तों से आपसे ऐसे ही मौके पर मिलने के लिए तलाश रही ही।" श्रेया की इतनी स्पष्ट और बेबाक ख्वाहिश ने अभिजीत सिंह को कुछ भी बोल ने का मौक़ा नहीं दिया। वह श्रेया की इतनी गंभीर बात को ठुकरा ना सके। और कप्तान अभिजीत सिंह ने ने वहीँ क्लब में ही एक कमरा बुक किया।
पार्टी खत्म होने के बाद श्रेया अपने माता और पिताजी से कुछ बहाना करके सबसे नजरें बचा कर अभिजीत सिंह के कमरे में चुपचाप चली गयी। श्रेया की ऐसी हिम्मत देख कर अभिजीत सिंह हैरान रह गए।
उस रात अभिजीत सिंह ने जब श्रेया को पहली बार नग्न अवस्था में देखा तो उसे देखते ही रह गए। श्रेया की अंग भंगिमा देख कर उन्हें ऐसा लगा जैसे जगत के विश्वकर्मा ने अपनी सबसे ज्यादा खूबसूरत कला के नमूने को इस धरती पर भेजा हो। श्रेयाके खुले, काले, घने बाल उसके कूल्हे तक पहुँच रहे थे। श्रेया का सुआकार नाक, उसके रसीले होँठ, उसके सुबह की लालिमा के सामान गुलाबी गाल उसके ऊपर लटकी हुई एक जुल्फ और लम्बी गर्दन श्रेया की जवानी को पूरा निखार दे रही थी। लम्बी गर्दन, छाती पर सख्ती से सर ऊंचा कर खड़े और फुले हुए उसके स्तन मंडल जिसकी चोटी पर फूली हुई गुलाबी निप्पलेँ ऐसे कड़ी खड़ी थीं जैसे वह अभिजीत सिंहको कह रही थीं, "आओ और मुझे मसल कर, दबा कर, चूस कर अपनी और मेरी बरसों की प्यास बुझाओ।" पतली कमर पर बिलकुल केंद्र बिंदु में स्थित गहरी ढूंटी जिसके निचे थोड़ा सा उभरा हुआ पेट और जाँघ को मिलाने वाला भाग उरुसंधि, नशीली साफ़ गुलाबी चूत के निचे गोरी सुआकार जाँघें और पीछे की और लम्बे बदन पर ज़रा से उभरे हुए कूल्हे देख कर अभिजीत सिंह, जिन्होंने पहले कई खूब सूरत स्त्रियों को भली भाँती नंगा देखा था, उनके मुंह से भी आह निकल गयी।
श्रेया भी जब कप्तान अभिजीत सिंह के सख्त नग्न बदन से रूबरू हुई तो उसे अपनी पसंद पर गर्व हुआ। अभिजीत सिंह के बाजुओं के फुले हुए डोले, उनका मरदाना घने बालों से आच्छादित चौड़ा सीना और सीने की सख्त माँस पेशियाँ, उनके काँधों का आकार, उनकी चौड़ी छाती के तले उनकी छोटी सी कमर और सबसे अचम्भा और विस्मयाकुल पैदा करने वाला उनका लंबा, मोटा, छड़ के सामान खड़ा हुआ लण्ड को देख कर श्रेया की सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। श्रेया ने जो कप्तान अभिजीत सिंह के बारे में सूना था उससे कहीं ज्यादा उसने पाया। अभिजीत सिंह का लण्ड देख कर श्रेया समझ नहीं पायी की कोई भी औरत कैसे ऐसे कड़े, मोटे, लम्बे और खड़े लण्ड को अपनी छोटी सी चूत में डाल पाएगी? कुछ अरसे तक चुदवाने के बाद तो शायद यह संभव हो सके, पर श्रेया का तो यह पहला मौक़ा था।
अभिजीत सिंह ने श्रेया को अपने लण्ड को ध्यान से ताकतें हुए देखा तो समझ गए की उनके लण्ड की लम्बाई और मोटाई देख कर श्रेया परेशान महसूस कर रही थी। अभिजीत सिंह के लिए अपने साथी की ऐसी प्रतिक्रया कोई पहली बार नहीं थी। उन्होंने श्रेया को अपनी बाँहों में लिया और उसे पलग पर हलके से बिठाकर कर श्रेया के सर को अपने हाथों में पकड़ कर उसके होँठों पर अपने होँठ रख दिए। श्रेया को जैसे स्वर्ग का सुख मिल गया। उसने अपने होँठ खोल दिए और अभिजीत सिंह की जीभ अपने मुंह में चूस ली। काफी अरसे तक दोनों एक दूसरे की जीभ चूसते रहे और एक दूसरे की लार आपने मुंह में डाल कर उसका आस्वादन करते रहे। साथ साथ में अभिजीत सिंह अपने हाथों से श्रेया के दोनों स्तनों को सहलाते और दबाते रहे। उसकी निप्पलोँ को अपनी उँगलियों के बिच कभी दबाते तो कभी ऐसी तीखी चूँटी भरते की श्रेया दर्द और उन्माद से कराह उठती। काफी देर तक चुम्बन करने के बाद हाथों को निवृत्ति देकर अभिजीत सिंह ने श्रेया की दोनों चूँचियों पर अपने होँठ चिपका दिए।
अब वह श्रेया की निप्पलोँ को अपने दांतो से काटते रहे जो की श्रेया को पागल करने के लिए पर्याप्त था। श्रेया मारे उन्माद के कराहती रही। श्रेया के दोनों स्तन दो उन्नत टीलों के सामान प्रतित होते थे। अभिजीत सिंह ने श्रेया की चूँचियों को इतना कस के चूसा की श्रेया को ऐसा लगा की कहीं वह फट कर अपने प्रियतम के मुंह में ही ना आ जायें। श्रेयाके स्तन अभिजीत सिंहके चूसने के कारण लाल हो गए थे और अभिजीत सिंह के दांतों के निशान उस स्तनों की गोरी गोलाई पर साफ़ दिख रहे थे। अभिजीत सिंह की ऐसी प्रेमक्रीड़ा से श्रेया को गजब का मीठा दर्द हो रहा था। जब अभिजीत सिंह श्रेया के स्तनों को चूस रहे थे तब श्रेया की उंगलियां अभिजीत सिंह के बालों को संवार रही थी। अभिजीत सिंह का हाथ श्रेया की पीठ पर घूमता रहा और उस पर स्थित टीलों और खाईयोँ पर उनकी उंगलयां फिरती रहीं। अभिजीत सिंह ने अपनी उस रात की माशूका के कूल्हों को दबा कर और उसकी दरार में उंगलियां डाल कर उसे उन्मादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। थोड़ी देर तक स्तनों को चूसने और चूमने के बाद अभिजीत सिंह ने श्रेया को बड़े प्यार से पलंग पर लिटाया और उसकी खूबसूरत जॉंघों को चौड़ा करके खुद टाँगों के बिच आ गए और श्रेया की खूब सूरत चूत पर अपने होँठ रख दिए। रतिक्रीड़ा में श्रेया का यह पहला सबक था। अभिजीत सिंह तो इस प्रकिया के प्रमुख प्राध्यापक थे। उन्होंने बड़े प्यार से श्रेया की चूत को चूमना और चाटना शुरू किया। अभिजीत सिंह की यह चाल ने तो श्रेया का हाल बदल दिया। जैसे अभिजीत सिंह की जीभ श्रेया की चूत के संवेदनशील कोनों और दरारों को छूने लगी की श्रेया का बदन पलंग पर मचलने लगा और उसके मुंह से कभी दबी सी तो कभी उच्च आवाज में कराहटें और आहें निकलने लगीं। धीरे धीरे अभिजीत सिंह ने श्रेया की चूत में अपनी दो उंगलियां डालीं और उसे उँगलियों से चोदना शुरू किया। श्रेया के लिए यह उसके उन्माद की सिमा को पार करने के लिए पर्याप्त था।
श्रेया मारे उन्माद के पलंग पर मचल रही थी और अपने कूल्हे उठा कर अपनी उत्तेजना ज़ाहिर कर रही थी। उसका उन्माद उसके चरम पर पहुँच चुका था। अब वह ज्यादा बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थी। श्रेया अभिजीत सिंह का हाथ पकड़ा और उसे जोरों से दबाया। श्रेया के रोंगटे रोमांच से खड़े हो गए थे।