Update 04

वो थोड़ा सा कुन्मुनाई और मेरी ओर करवट लेकर फिर सो गयी, करवट लेते समय उनका दूसरा हाथ मेरी जाँघ पर आ गया. उनका साड़ी का पल्लू सीने से अलग हो गया और ब्लाउस में कसे उनके उरोजो का उपरी हिस्सा लगभग 1/3 दिखाई पड़ने लगा.

दोनो उरोज एक-दूसरे से सट गये थे, अब उन दोनो के बीच एक पतली सी दरार जैसी बनी हुई थी.

मेरा मन किया कि इस दरार में उंगली डाल कर देखूं, लेकिन एक ममतामयी भाभी की छवि ने मुझे रोक दिया, और मे उनके पास से चला आया.

बाहर आकर देखा तो दीदी खाना लेकर खा रही थी, मेने कहा – मुझे नही बुला सकती थी खाने के लिए.

वो बोली – मुझे लगा तू बिना भाभी के दिए नही खाएगा.. सो इसलिए नही पुछा, चल आजा मेरे साथ ही खाले दोनो मिलकर खाते हैं.

मे भी दीदी के साथ ही बैठ गया खाने और फिर हम दोनो बेहन भाई ने एक ही थाली में बैठ कर खाना खाया, जो मुझे कुच्छ ज़्यादा अच्छा लगा एक साथ खाने में.

आप भी कभी अपने परिवार के साथ एक थाली में ख़ाके देखना ज़्यादा टेस्टी लगेगा, ये मेरा अपना अनुभव है…

शाम को भाभी टीवी के सामने बैठ कर सब्जी काट रही थी, दीदी बड़ी चाची के यहाँ गयी थी, नीलू भैया से नोट्स लेने.…

यहाँ थोड़ा अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के बारे में बताना ज़रूरी है..

मेरे 3 चाचा : बड़े राम किशन पिताजी से दो साल छोटे खेती करते हैं, उमर 44, चाची जानकी देवी उमर 42 इनके 3 बच्चे हैं दो बड़ी बेटियाँ रेखा और आशा, उमर 22 और 19, बड़ी बेटी की शादी मेरे भैया से एक साल बाद ही हुई थी, तीसरा बेटा नीलू जो रामा दीदी के बराबर का उन्ही की क्लास में पढ़ता है.

दूसरे (मंझले) चाचा : रमेश उमर 41, ये भी खेती ही करते है, चाची निर्मला 38 की होंगी, इनके दो बच्चे हैं, दोनो ही लड़के हैं सोनू और मोनू.. सोनू मेरे से दो साल बड़ा है, और मोनू मेरी उमर का है लेकिन मेरे से एक क्लास पीछे है.

दो बुआ – मीरा और शांति 36 और 33 की उमर दोनो की शादी अच्छे घरों में हुई है ज़्यादा डीटेल समय आने पर..

तीसरे चाचा जो सब बेहन भाइयों में छोटे हैं नाम है राकेश 12थ तक पढ़े हैं, इसलिए पिताजी ने इन्हें कॉलेज 4थ क्लास की नौकरी दिलवा दी और खेती तो है ही साथ में तो अच्छी कट रही है इनकी इस समय 30 के हो चुके हैं.

छोटी चाची रश्मि उमर 26 साल, सच पुछो तो चाचा के भाग ही खुल गये, चाची एकदम हेमा मालिनी जैसी लगती हैं.. शादी के 6 साल बाद भी अभी तक कोई बच्चा पैदा नही कर पाए हैं.

भाभी सोफे पर बैठी सब्जी काट रही थी शाम के खाने के लिए, मे बाहर आँगन में चारपाई पर बैठा अपना आज का होम वर्क कर रहा था.

थोड़ी देर बाद भाभी मेरे पास आकर सिरहाने की तरफ बैठ गयी और पीछे से मेरे सर पर हाथ फेर्कर बोली – लल्ला ! होम वर्क कर रहे हो… !

मे – हां भाभी आज टीचर ने ढेर सारा होम वर्क दे दिया है, उसी को निपटा रहा हूँ. वैसे हो ही गया है बस थोड़ा सा ही और है.

वो – दूध लाउ पीओगे..?

मे – नही अभी नही रात को खाने के बाद पी लूँगा… अरे हां भाभी ! याद आया, आपकी तबीयत कैसी है अब?

वो – हां ? मुझे क्या हुआ है..? भली चन्गि तो हूँ…!

मे – नही ! वो दो दिन से आप कुच्छ लंगड़ा कर चल रही थी, और जब मेने कॉलेज से आके आपको बहुत जगाया, लेकिन आप उठी ही नही, सोचा शायद आपको कोई प्राब्लम हुई हो..?

वो थोड़ा शरमा गयी, फिर शायद थोड़ी देर पिच्छली दो रातें याद आई होगी तो उनके चेहरे पर एक शामिली मुस्कान तैर गयी…और उनके दोनो गालों में गड्ढे बन गये..

मेने जैसे ही उनके डिंपल देखे, मेरा जी ललचाने लगा तो मेने अपनी उंगली के पोर को उनके डिंपल में घुसा दिया और उंगली को गोल-गोल सहला कर बोला- भाभी मे आपसे कुच्छ मांगू तो आप नाराज़ तो नही होगी ना..!

उन्होने हँसते हुए ही मेरे बालों में उंगलियाँ डाली और बोली – ये क्या बात हुई.. भला..? तुम्हें आज तक मेने किसी चीज़ के लिए मना किया है जो ऐसे माँग रहे हो..? सब कुच्छ तो तुम्हारा ही है इस घर में…

बताओ मुझे क्या चाहिए मेरे प्यारे देवर को और ये कह कर मेरे गाल को प्यार से अपने एक अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर हल्का सा चॉंट दिया.

मे – मेरा जी करता है, एक बार आपके डिंपल को चूमने का… बोलो चूम लूँ..?

वो कुच्छ देर तक मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, फिर एक मुस्कान उनके चेहरे पर तैर गयी और बोली – एक शर्त पर…

मे – क्या..? इसके लिए आप जो कहोगी मे करूँगा…

वो – मुझे भी अपने गाल चूमने दोगे तो ही मे अपने चूमने दूँगी.. बोलो मंजूर है..?

मे – हे हे हे… इसमें क्या है ? आप तो कभी भी मेरा चुम्मा ले ही लेती हो ना..

वो – नही ये कुच्छ स्पेशल वाला होगा.. मेने कहा जैसे आप चाहो वैसे ले लेना.. तो वो हँसते हुए बोली ठीक हैं तो फिर तुम ले लो..पहले.

मेने उनके हँसते ही उसके गाल को चूम लिया और उनके डिंपल में अपनी जीभ की नोक डाल दी. वो खिल खिलाकर हँसते हुए बोली- हटो चीटिंग करते हो, जीभ लगाने की कब बात हुई थी..?

फिर मेने बिना कहे दूसरे गाल पर भी ऐसा ही किया.

उन्होने कहा – बस हो गया..? अब मेरी बारी है फिर उन्होने मेरा सर अपने सीने से सता लिया और मेरे गाल पर अपने दाँत गढ़ा दिए..

मेरे मुँह से चीख निकल गयी लेकिन उन्होने मेरा गाल नही छोड़ा और उसे अपने होठों में दबा कर पपोर लिया, और कुच्छ देर तक काटने वाली जगह पर अपने होठों से ही सहलाने लगी..

मेरा दर्द पता नही कहाँ च्छूमंतर हो गया और मुझे मज़ा आने लगा, मेरी आँखें बंद हो गयी,

फिर उन्होने ऐसा ही दूसरे गाल पर भी किया, इस बार दर्द हुआ पर मे चीखा नही और उनके होठों के सहलाने का मज़ा लेता रहा.

क्यों कैसा लगा मेरा चुम्मा जब भाभी ने पुछा तो मेने कहा – आहह.. भाभी मज़ा आ गया, ऐसा चुम्मा तो आप रोज़ लिया करो,

और ये बोलकर मे उनकी जाँघ पर अपना सर रख कर लेट गया और उनकी पतली कमर में अपनी बाहें लपेट कर उनके ठंडे-2 पेट पर अपना मुँह रख कर बोला- भाभी आप कोई जादू तो नही जानती..?

वो – क्यों मेने क्या जादू कर दिया तुम पर..?

मे – कुच्छ देर पहले मेरा दिमाग़ थका-2 सा लग रहा था, लेकिन आपने सारी थकान ख़तम करदी मेरी, ये बोलकर मेने उनके ठंडे पेट को चूम लिया.. ..

वो मेरा सर चारपाई पर टिका कर हँसती हुई खाना बनाने चली गयी और मे फिर अपने होमे वर्क में लग गया…!

दूसरी सुबह हम फिर कॉलेज के लिए रेडी होकर ले साइकल निकाल लिए.. आज मेरा हाथ एकदम फिट था, सो मेने साइकल बढ़ा दी और दीदी को बैठने के लिए बोला.

दीदी ने जैसे ही बैठने के लिए कॅरियर पकड़ा, वो सीट के नीचे वाले जॉइंट से अलग होकर पीछे को लटक गया.. दीदी चिल्लाई – छोटू रुक, ये कॅरियर तो निकल गया..

मे – तो अब क्या करें, चलो पैदल ही चलते हैं वहीं जाकर मेकॅनिक से ठीक करा लेंगे, बॅग दोनो साइकल पर टाँग उसके हॅड्ल को पकड़ कर हम दोनो निकल पड़े पैदल कॉलेज को.

पीछे से नीलू भैया साइकल पर आ रहे थे, उनके पीछे आशा दीदी जो अब 12थ में थी, लेट पढ़ने बैठी थी इसलिए वो अभी 12थ में ही थी. दोनो भाई बेहन एक ही क्लास में थे.

हमें देख कर उन्होने भी अपनी साइकल रोकी और पुछा की क्या हुआ, हमने अपनी प्राब्लम बताई तो वो दोनो भी बोले कि ठीक है हम भी तुम दोनो के साथ पैदल ही निकलते हैं.

रामा दीदी ने उनको कहा- अरे नही आप लोग निकलो क्यों खम्खा हमारी वजह से लेट होते हो, तो वो निकल गये..

जैसे ही हम सड़क पर पहुँचे.. तो दीदी बोली – छोटू ! भाई ऐसे तो हम लोग लेट हो जाएँगे, पहला पीरियड नही मिल पाएगा, वो भी मेरा तो फिज़िक्स का है..

मे – तो क्या करें आप ही बताओ..

वो – एक काम करते हैं, में आगे डंडे पर बैठ जाती हूँ.. कैसा रहेगा.

मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है, आप बैठो.. तो वो आगे डंडे पर बैठ गयी और मे फिरसे साइकल चलाने लगा….!!

कॉलेज के लिए थोड़ा लेट हो रहा था तो मेने साइकल को तेज चलाने के लिए ज़्यादा ताक़त लगाई जिससे मेरे दोनो घुटने अंदर की तरफ हो जाते और सीना आगे करना पड़ता पेडल पर ज़्यादा दबाब डालने के लिए.

मेरे लेफ्ट पैर का घुटना दीदी के घुटनो में अड़ने लगा तो वो और थोड़ा पीछे को हो गयी, जिससे उनके कूल्हे राइट साइड को ज़यादा निकल आए और उनकी पीठ मेरे पेट से सटने लगी.

मेरी राइट साइड की जाँघ उनके कूल्हे को रब करने लगी और लेफ्ट पैर उनकी टाँगों को..

उनके कूल्हे से मेरी जाँघ के बार-बार टच होने से मेरे शरीर में कुच्छ तनाव सा बढ़ने लगा, और मेरी पॅंट में क़ैद मेरी लुल्ली, जो अब धीरे-2 आकर लेती जा रही थी थी अकड़ने लगी.

दीदी भी अब जान बूझकर अपनी पीठ को मेरे पेट और कमर से रगड़ने लगी, अपना सर उन्होने और थोड़ा पीछे कर लिया और अपना एक गाल मेरे चेहरे से टच करने लगी.

ज़ोर लगाने के लिए मे जब आगे को झुकता तो हम दोनो के गाल एक दूसरे से रगड़ जाते.. और पूरे शरीर में एक सनसनी सी फैलने लगती.

आधे रास्ते पहुँच, दीदी बोली- छोटू थोड़ा और तेज कर ना लेट हो रहे हैं.. तो मेने अपने दोनो हाथ हॅंडल के बीच की ओर लाया जिससे और अच्छे से दम लगा सकूँ..

लेकिन सही से पकड़ नही पा रहा था…. हॅंडल….! क्योंकि दीदी के दोनो बाजू बीच में आ रहे थे. तो उसने आइडिया निकाला और अपने दोनो बाजू मेरे बाजुओं के उपर से लेजाकर हॅंडल के दस्तानों को पकड़ लिया, जहाँ नोर्मली चलाने वाला पकड़ता है.

हॅंडल को बीच की तरफ पकड़कर अब साइकल चलाने में दम तो लग रहा था और साइकल भी अब बहुत तेज-तेज चल रही थी लेकिन अब मेरे लेफ्ट साइड की बाजू दीदी के बूब्स को रगड़ने लगी.

दूसरी ओर मेरी दाई जाँघ दीदी के मुलायम चूतड़ को रगड़ा दे रही थी..

मेरे शरीर का करेंट बढ़ता ही जा रहा था, उधर दीदी की तो आँखें ही बंद हो गयी, वो और ज़्यादा अपने बूब्स को जानबूझ कर मेरे बाजू पर दबाते हुए अपनी जांघों को ज़ोर-ज़ोर्से भींचने लगी.

उत्तेजना के मारे हम दोनो के ही शरीर गरम होने लगे थे.

कॉलेज पहुँच दीदी ने साइकल से उतरते ही मेरे गाल पर एक किस कर दिया और थॅंक यू बोलकर भागती हुई अपनी क्लास रूम में चली गयी.

छुट्टी के बाद लौटते वक़्त जब मेने दीदी को पुछा की आपने थॅंक्स क्यो बोला था, तो बोली – अरे यार समय पर कॉलेज पहुँचा दिया तूने इसके लिए और क्या..! वैसे तू क्या समझा था..?

मे – कुच्छ नही, मे क्या समझूंगा.., आज पहली बार आपने थॅंक्स बोला इसलिए पुछा. वो नज़र नीची करके स्माइल करने लगी.

घर लौटते वक़्त भी ऐसा ही कुच्छ हमारे साथ हुआ, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर दीदी ने अपनी लेफ्ट बाजू मेरी जाँघ पर ही रखड़ी थी और अपने अल्प-विकसित उभारों को मेरी बाजू से रग़ाद-2 कर खुद भी उत्तेजित होती रही और मुझे भी बहाल कर दिया.

अब ये हमारा रोज़ का ही रूटिन सा बन गया था, दिन में एक बार कम से कम मे भाभी का चुम्मा लेता, बदले में वो भी मेरे गाल काट कर अपने होठों से सहला देती, कभी-2 तो मे अपना सर या गाल या फिर मुँह उनके स्तनों पर रख कर रगड़ देता.

दूसरी तरफ दीदी और मे भी दिनों दिन मस्ती-मज़ाक में बढ़ते ही जा रहे थे, लेकिन सीमा में रह कर.

ऐसे ही मस्ती मज़ाक में दिन गुज़रते चले गये, और ये साल बीत गया, मे अब नयी क्लास में आ गया था, दीदी 12थ में पहुँच गयी, ये साल हम दोनो का ही बोर्ड था, सो शुरू से ही पढ़ाई पर फोकस करना शुरू कर दिया….

उधर बड़े भैया का बी.एड कंप्लीट होने को था, घर में खर्चे भी कंट्रोल में होने शुरू हो गये थे क्योंकि बड़े भैया की पढ़ाई का खर्चा तो अब नही रहा था, और आने वाले कुच्छ महीनो में अब वो भी जॉब करने वाले थे.

हम दोनो भाई-बेहन ने भाभी से जुगाड़ लगा कर एक व्हीकल लेने के लिए पहले भैया के कानो तक बात पहुँचाई और फिर हम सबने मिलकर बाबूजी को भी कन्विन्स कर लिया, जिसमें छोटे भैया का भी सपोर्ट रहा.

अब घर के सभी सदस्यों की बात टालना भी बाबूजी के लिए संभव नही था, ऐसा नही था कि उनको पैसों का कोई प्राब्लम था, लेकिन एक डर था कि मे व्हीकल मॅनेज कर पाउन्गा या नही.

सबके रिक्वेस्ट करने पर वो मान गये और उन्होने एक बिना गियर की टू वीलर दिलवा दी, अब हम दोनो भाई-बेहन टाइम से कॉलेज पहुँच जाते थे.

दीदी ने भी चलाना सीख लिया तो कभी मे ले जाता और कभी वो, जब मे चलाता तो वो मेरे से चिपक कर बैठती और अपने नये विकसित हो रहे उरोजो को मेरी पीठ से सहला देती.

जब वो चलती तो जानबूझ कर अपने हिप्स मेरे आगे रगड़ देती, जिससे मेरा पप्पू बेचारा पॅंट में टाइट हो जाता और कुच्छ और ना पता देख मन मसोस कर रह जाता, लेकिन दीदी उसे अच्छे से फील करके गरम हो जाती.

ऐसे ही कुच्छ महीने और निकल गये, इतने में बड़े भैया को भी एक इंटर कॉलेज में लेक्चरर की जॉब मिल गयी, लेकिन शहर में ही जिससे उनके घर आने के रूटिन में कोई तब्दीली नही हुई.

इस बार कॉलेज में आन्यूयल स्पोर्ट्स दे मानने का आदेश आया था, रूरल एरिया का कॉलेज था सो सभी देहाती टाइप के देशी गेम होने थे, जैसे खो-खो, कबड्डी, लोंग जंप, हाइ जंप…लड़कियों के लिए अंताक्षरी, संगीत, डॅन्स…

मेरी बॉडी अपने क्लास के हिसाब से बहुत अच्छी थी, सो स्पोर्ट्स टीचर ने मेरे बिना पुच्छे ही मेरा नाम स्पोर्ट्स के लिए लिख लिया, और सबसे प्रॅक्टीस कराई, जिसमें

मेरा कबड्डी और लोंग जंप में अच्छा प्रद्र्षन रहा और मे उन दोनो खेलों के लिए सेलेक्ट कर लिया.

सारे दिन खेलते रहने की वजह से शरीर तक के चूर हो रहा था, पहले से कभी कुच्छ खेलता नही था, तो थकान ज़्यादा महसूस हो रही थी.

कॉलेज से लौटते ही मेने बॅग एक तरफ को पटका और बिना चेंज किए ही आँगन में पड़ी चारपाई पर पसर गया. सारे कपड़े पसीने और मिट्टी से गंदे हो रखे थे.

थोड़ी ही देर में मेरी झपकी लग गयी, जब भाभी ने आकर मुझे इस हालत में देखा तो वो मेरे बगल में आकर बैठ गयी, और मेरे बालों में उंगलिया फिराते हुए मुझे आवाज़ दी.

मेने आँखें खोल कर उनकी तरफ देखा तो वो बोली – क्या हुआ, आज ऐसे आते ही पड़ गये, ना कपड़े चेंज किए, और देखो तो क्या हालत बना रखी है कपड़ों की.. बॅग भी ऐसे ही उल्टा पड़ा है…

किसी से कुस्ति करके आए हो..? मेने कहा नही भाभी, असल में आज कॉलेज में स्पोर्ट्स दे के लिए गेम हुए, और मेरा दो खेलों के लिए सेलेक्षन हो गया है.

सारे दिन खेलते-2 बदन टूट रहा है, कभी खेलता नही हूँ ना.. इसलिए.. प्लीज़ थोड़ी देर सोने दो ना भाभी..

अरे.. ! ये तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन ऐसे में कैसे नींद आ सकती है, शरीर में कीटाणु लगे हुए हैं, चलो उठो ! पहले नहा के फ्रेश हो जाओ, कुच्छ खा पीलो, फिर देखना अपनी भाभी के हाथों का चमत्कार, कैसे शरीर की थकान छुमन्तर करती हूँ.. चलो.. अब उठो..!

और उन्होने जबर्दुस्ति हाथ से पकड़ कर मुझे खड़ा कर दिया, और पीठ पर हाथ रख कर जबर्जस्ति पीछे से धकेलते हुए बाथरूम में भेज दिया….!

बीते एक साल में मोहिनी का बदन पहले से भर गया था, उसके बूब्स भी अब ज़्यादा बड़े-2 दिखने लगे थे, कुल्हों का उठान अब साड़ी में साफ-2 दिखता था. कुल मिलकर अब वो एकदम कड़क माल होती जा रही थी.

सनडे के सनडे राम मोहन अपनी प्यारी पत्नी की अच्छे से सर्विस जो कर जाते थे.

फ्रेश होकर मुझे भाभी ने बादाम वाला दूध दिया और साथ में कुच्छ बिस्कट बगैरह दे दिए, मेने कहा भाभी इनसे क्या होगा, मुझे तो खाना खाना है,

तो उन्होने प्यार से झिड़कते हुए कहा – नही आज से इस टाइम तुम खाना नही खाओगे, खाना में कॉलेज के लिए रख दिया करूँगी, तो रिसेस में खा लिया करना, घर आकर बस हल्का फूलका और खाना सीधे रात को ही.

अब तुम्हें मे .मेन बना के छोड़ूँगी… मे चाहती हूँ मेरा देवर अपने पूरे परिवार में सबसे ज़्यादा ताक़तवर हो… जब सीना तान कर चले तो लगे मानो कोई शेर आ रहा हो..

मेने हँसते हुए कहा क्यों भाभी खाम्खा मुझे चढ़ा रही हो..

तो वो बोली – तुम इसे मज़ाक समझ रहे हो.. चलो अब छत पर ! तुमहरे बदन की मालिश करनी है फिर देखना कैसा तुम्हारी थकान कोसों दूर खड़ी दिखेगी.

हम दोनो छत पर आ गये, हमारे आधे पोर्षन पर दो-मंज़िला बना हुआ था, वाकई हमारे अलावा आस-पास किसी का इतना उँचा मकान नही था.

गाओं के दूसरे छोर पर सिर्फ़ प्रधान का ही घर हमारे से उँचा था, लेकिन बहुत दूर था वो हमसे.

उपर दो बड़े-2 कमरे और उनके आगे एक वरांडे, इस सबकी एक कंबाइंड छत काफ़ी लंबी चौड़ी थी, जो चारों तरफ 2.5 फीट उँची बाउंड्री से कवर की हुई थी.

भाभी ने एक बिछावन नीचे डाला और मुझे अपनी बनियान उतारकर उसपर लेटने को कहा, नीचे में बस एक टाइट हाफपेंट ही पहने हुए था.

भाभी ने अपनी साड़ी के पल्लू को दुपट्टा की तरह अपने सीने पर कसकर लपेटा और उसे पीठ पर से लाते हुए अपनी कमर में खोंस लिया, कसे हुए ब्लाउस और साड़ी के बाहर से ही उनके सुडौल बूब्स एकदम उभर कर बाहर को निकल आए.

वो मेरे बाजू में उकड़ू बैठ गयी, अपने साथ लाई एक कटोरी जिसमें गुनगुना सरसों का तेल था उसे मेरे सर पास रख दिया, फिर अपने हाथों में ढेर सारा तेल ले कर मेरे सीने और कंधों की मालिश करने लगी.

भाभी के गोरे-2 मुलायम हाथ मेरे शरीर पर उपर-नीचे हो रहे थे, उनकी एक साइड की मांसल जाँघ मेरी कमर से रगड़ रही थी, जब वो उपर को आती तो जाँघ के साथ-2 उनके पेट का हिस्सा भी मेरे शरीर से रगड़ जाता.

मे अपनी आँखें बंद किए हुए ये सब फील कर रहा था, और धीरे-2 एक अजीब सी उत्तेजना मेरे शरीर में भरती जा रही थी.

सीने और कंधों की मालिश के बाद वो थोड़ा नीचे की तरफ हुई और अब उनकी जांघों का एहसास मुझे अपनी जाँघ के निचले भाग पर हुआ, अब वो मेरे पेट और उसके साइड की मालिश करने लगी.

जब उनके हाथ मेरे दूसरी साइड की मालिश करते तो उन्हें ज़्यादा झुकना पड़ता जिससे उनका पेट मेरे कमर से टच होता. ना चाहते हुए भी मेरे हाफपेंट में उभार सा बनाने लगा.​
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