Update 21
हम जब उसके घर पहुँचे तो घर में अकेली उसकी माँ थी, उसके भाई राजेश शहर में नौकरी पर थे, जो हफ्ते के हफ्ते ही आते थे, पिताजी अभी खेतों से आए नही थे..
निशा को मेरे साथ देखकर वो चोन्क्ते हुए बोली – ये कॉन है बेटी..?
निशा – इनको नही पहचाना मम्मी…? ये दीदी के छोटे देवर ! अंकुश नाम है इनका…
मम्मी – ओह..! आओ बेटा बैठो…! माफ़ करना कभी देखा नही ना तुम्हें इसलिए पुच्छ लिया..
मे – कोई बात नही मम्मी जी.. वैसे भी मे भैया की शादी में ही आया था…
मम्मी – हां ! लेकिन तब तुम बहुत छोटे से थे… अब देखो… क्या गबरू जवान हो गये हो…
मे- ये सब आपकी बेटी का ही कमाल है मम्मी जी…!
वो एकदम से चोन्क्ते हुए बोली – मेरी बेटी का…? वो कैसे…?
मे – अरे मम्मी जी ! भाभी मेरा इतना ख़याल रखती हैं.. कि पुछो मत.. मुझे कभी अपनी माँ की कमी महसूस नही होने दी…
वो – ओह हां ! मोहिनी है ही ऐसी, यहाँ भी सबका बहुत ख़याल करती थी..
कुछ देर में निशा के पिताजी भी आ गये.. वो भी मिलकर बड़े खुश हुए.. और घर के हाल-चाल पुच्छे…
खाना पीना खाकर वो लोग जल्दी ही सोते थे… सो कुछ देर और इधर-उधर की बातें हुई.. और वो दोनो सोने चले गये…
जाते हुए निशा की मम्मी ने उससे कहा – निशा बेटा सोने से पहले लल्ला जी को ध्यान से दूध पिला देना…..!
सोने के लिए जाते हुए निशा की मम्मी ने उससे कहा – निशा बेटा सोने से पहले लल्ला जी को ध्यान से दूध पिला देना…..
निशा का घर उनके घर की ज़रूरत के हिसाब से जैसा मध्यम वर्गिया ग्रामीण लोगों का होना चाहिए उस हिसाब से ही था..
तीन कमरे, जिनमें एक में उसके मम्मी-पापा, एक में निशा और एक उसके भाई का था, एक बड़ा सा बैठक कम हॉल जिसमें एक टीवी भी लगा हुआ था…
हॉल से बाहर एक वरांडा… उसके बाद थोड़ी खाली जगह जो बौंड्री से घिरी हुई थी..
हम इस समय हॉल में बैठे टीवी देख रहे थे…मे सोफे पर था, और वो साइड में पड़ी सोफा चेयर पर बैठी थी..
मेने उसकी मम्मी के जाने के कुछ देर बाद निशा से कहा – क्यों डार्लिंग… क्या ख़याल है…?
वो मेरी तरफ मुस्कराते हुए बोली – किस बात का…?
मे – अपनी मम्मी की अग्या का पालन नही करोगी.. ?
वो हंस कर बोली ओह ! वो..! तो अभी चाहिए.. या सोने से पहले…
मेने कहा शुभ काम में देरी नही करना चाहिए.., मेरी बात सुनकर वो चेयर से उठी, और मेरे आगे से होकर किचेन की तरफ दूध लाने के लिए जाने लगी…
मेने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया… तो वो एक झोंके के साथ मेरी गोद में आ गिरी… गिरने से बचने के लिए उसने मेरे गले में बाहें डाल दी…
वो मेरी आँखों में देखते हुए बोली – क्या करते हो…? खुद ही कहते हो दूध लाने को और रोक भी रहे हो…!
मे उस दूध की बात नही कर रहा जानेमन, मुझे तो ये वाला दूध पीना है……ये कहकर मेने उसके एक संतरे पर अपना हाथ रख दिया…
हटो बदमाश कहीं के…., उसने मुझे हल्के से सीने में मुक्का मारा… कितना ग़लत-सलत सोचते हो…
मे – इसमें क्या ग़लत कहा है मेने.. दूध ही तो माँगा है.. नही पिलाना है तो मत पिलाओ.. मे सुबह मम्मी को बोल दूँगा… कि आपकी बेटी ने मुझे दूध दिया ही नही…
उसने शर्म से अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया… मेने उसकी थोड़ी को अपनी उंगलियों से ऊपर कर के उसका चेहरा उठाया… और उसकी झील सी गहरी आँखों में झाँकते हुए कहा-
तुम कितनी मासूम हो निशु…मे सच में बहुत शौभग्यशाली हूँ जिसे इतनी मासूम, और सुंदर सी प्यारी सी लड़की का प्यार मिल रहा है…
मे तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ मेरी जान… आइ लव यू…!
आइ लव यू टू जानू… कहकर वो मेरे सीने से लिपट गयी….!
मेने धीरे से उसकी पीठ पर हाथ रख कर सहला दिया… और एक हाथ से उसके गाल को सहलाकर उसके होंठ चूम लिए…
मे तुमसे दूर नही रह सकती जानू..! वो कुछ देर बाद बोली, तो मेने कहा – मे कॉन सा तुमसे दूर रह सकता हूँ… लेकिन हमें कुछ दिन तो रहना ही पड़ेगा..
वो – अगर तुम मुझे नही मिले तो में मर जाउन्गि… अंकुश..!
सीईईईईईईईई… उसके होंठों पर उंगली रख कर कहा मेने – ऐसे मरने गिरने की बात नही करते… भाभी ने मुझे प्रॉमिस किया है… चाहे कुछ हो जाए.. हम मिलकर ही रहेंगे..
वो – सच ! क्या दीदी को पता है हमरे प्यार के बारे में…?
मे – हां ! और ये बात उन्होने खुद से ही कही है… अब हमें बस कुछ सालों तक इंतजार करना पड़ेगा…
वो फिरसे मुझसे लिपट गयी..ओह ! जानू मे आज बहुत खुश हूँ… लेकिन एक प्रॉमिस करो.. तुम जल्दी-2 मुझसे मिलने आया करोगे… कम से कम महीने में एक बार..
मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है… लेकिन तुम खुद सोचो.. मेरा बार-2 यहाँ आना क्या लोगों में शक पैदा नही करेगा..? क्या तुम्हारे मम्मी-पापा ये चाहेंगे…?
वो – तो फिर मे कैसे रहूंगी इतने दिन … कम-से-कम फोन तो करते रहना..
मे – हां ! ये सही रहेगा.. हम रोज़ रात को फोन से बात कर लिया करेंगे..
इतनी देर से निशा मेरी गोद में बैठी थी… उसकी गोल-मटोल छोटी लेकिन मुलायम गान्ड की गर्मी से मेरा लंड टाइट जीन्स में व्याकुल होने लगा…
मे अपने कपड़े नही लाया था, सो मेने निशा से कहा – यार मुझे कुछ चेंज करना है… ये जीन्स में कंफर्टबल नही लग रहा…
वो मेरी गोद से उठ खड़ी हुई, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने भैया के रूम में ले गयी… उसकी अलमारी से एक पाजामा और टीशर्ट निकाल कर मुझे पकड़ा दिया…
मेने अपने कपड़े निकाल दिए और टीशर्ट पहन ली… मेने जैसे ही अपनी जीन्स निकाली…
मेरे फ्रेंची में खड़े मेरे पप्पू को देखकर वो शर्मा गयी और अपना मुँह फेर लिया…
मेने उसे कुछ नही कहा और मुस्कुरा कर पाजामा पहन लिया…
मेरे सोने का इंतेज़ाम भी इसी रूम में था, तो फिर हम दोनो उसमें पड़े पलंग पर बैठ गये…
मेने फिर एक बार निशा को अपनी गोद में खींच लिया और उसके होंठ चूमकर कहा
निशा ! मेरी एक इच्छा पूरी करोगी..?
वो – क्या..? अगर मेरे बस में हुआ तो ज़रूर पूरी करूँगी..!
मे - मुझे तुम्हारे रूप सौंदर्य के दर्शन करने हैं..?
वो – क्यों ? अभी क्या मे पर्दे में हूँ..?
मे – तुम्हारा ये संगेमरमर सा बदन तो पर्दे में है ना…!
ये आप कैसी बहकी-2 बातें कर रहे हो…? भला ये भी कोई इच्छा हुई..? वो थोड़ा नाराज़गी भरे स्वर में बोली…
मे बस तुम्हारे इस सुन्दर बदन की छवि अपने मन में बसाना चाहता हूँ.. जिसके सहारे आने वाला लंबा समय गुज़ार सकूँ..
मे तुमसे कोई ज़ोर जबर्जस्ती नही करूँगा, अगर अपने प्यार पर भरोसा कर सको तो..
वो खामोशी से मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, …फिर कुछ सोच कर बोली….
ठीक है ! मे आपसे सच्चा प्रेम करती हूँ… और आशा करती हूँ.. कि आप भी एक सच्चे प्रेमी की नज़र से ही मुझे देखेंगे..
ये कह कर वो मेरी तरफ पीठ कर के खड़ी हो गयी… और बोली… देख लीजिए जैसे देखना चाहते हैं..
मे उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया… और उसके गले पर अपने प्यासे होंठ रख दिए…
उसके होंठों से एक मीठी सी सिसकी निकल पड़ी.. और उसने कस कर अपनी आँखें बंद कर ली…
उसकी कमीज़ की पीठ पर एक ज़िप थी, जो उसके गले से लेकर कमर तक पहुँचती थी… मेने उसके कंधों पर अपने हाथ रखकर उसे सहलाते हुए… अपने हाथ धीरे-2 उसकी ज़िप पर ले आया.
कुछ देर ज़िप के आस-पास हाथों को फिराया… और उसकी ज़िप का लॉक अपने अंगूठे में लेकर धीरे-2 नीचे की तरफ खींचने लगा…
जैसे जैसे उसकी ज़िप नीचे को खुलती जा रही थी …. उसकी दूधिया रंग की पीठ किसी संगमरमर सी चिकनी मेरी आँखों के सामने किसी अनमोल खजाने की तरह खुलती जा रही थी…
कमर तक ज़िप खोलने के बाद मेने उसकी पीठ पर उसकी ब्रा की स्ट्रीप के ठीक ऊपर अपने गीले होंठ रख दिए….
उसकी पीठ काँप कर और अंदर को चली गयी, और उसके मुँह से एक और सिसकी निकली…इस्शह…..सस्सिईईईईईई…..
अब में उसकी पीठ को ऊपर की तरफ चूमता हुआ… उसकी नंगी पीठ पर अपने हाथ फिरा रहा था… निशा तो जैसे कहीं खो ही गयी थी…
फिर मेरे हाथ उसकी पीठ सहलाते हुए कंधों पर पहुँचे और उसकी कमीज़ को दोनो बाजुओं से नीचे सरका दिया….
उसकी कमीज़ उसके बदन से सरसराती हुई… उसके कदमों में जा गिरी…
मेने उसे कंधों से पकड़कर अपनी तरफ घुमाया… वो किसी कठपुतली की तरह मेरे हाथों के इशारों पर चल रही थी…
जब मेरी नज़र उसके उभारों पर पड़ी….उफफफफफफफफफफफफफ्फ़….. क्या दूधिया… बदन था उसका… गोल-गोल टेनिस की बॉल के साइज़ के उसके दूधिया उरोज एक छोटी सी गुलाबी रंग की ब्रा में क़ैद उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे…
दोनो के बीच की चौड़ी खाई… मुझे ललचा रही थी…, मे अपने आपको रोक नही पाया…और झुक कर उसके उभारों के बीच की खाई पर अपने तपते होंठ रख दिए…
निशा ने आअहह….. भरते हुए मेरे सर को पकड़ लिया…, फिर मेने उसके उभारों के दोनो ओर की ढलान को बारी-बारी से अपनी खुरदूरी जीभ से चाटा,…और उन्हें चूमते हुए उसके सपाट पेट की तरफ बढ़ने लगा…
निशा अपनी आँखें मुन्दे अपने अंतर्मन में इस असीम आनंद की अनुभूति को महसूस कर के दूर कहीं आसमानों में उड़ चली थी….
मन नही माना तो मेरे शरारती हाथ एक बार उसके सुंदर उरोजो पर टिक ही गये.. और उन्हें सहलाते हुए… उसकी बगलों से होते हुए, उसकी पतली कमर पर आ टिके…
मेरे हाथ किसी स्वचालित यन्त्र की तरह उसकी पतली कमर को सहलाते हुए, मेरी उंगलियाँ उसकी सलवार के नाडे की गाँठ पर थी.…
कुछ ही देर में निशा की सलवार भी उसके कदमों में जा गिरी….
मे थोड़ा पीछे होकर निशा के कदमों में बैठ गया…, और उसके संगेमरमरी बदन की सुंदरता का रस अपनी आँखों से पीने लगा…
आहह…. क्या सुडौल जांघें थी उसकी… लेशमात्र भी एक्सट्रा फॅट नही था उसके बदन पर… साँचे में ढला उसका दूध जैसा गोरा बदन किसी संगेममर की मूरत जैसा मेरे सामने था……
निशा मात्र दो छोटे-से अधोवस्त्रों में मेरे सामने किसी बेजान मूरत सी खड़ी थी…
उस कमसिन कली ने अपने प्रियतम की इच्छा का सम्मान करते हुए अपने अन्छुये कोमल बदन को उसके हवाले कर दिया था… किसलिए…?
निशा मात्र दो छोटे-से अधोवस्त्रों में मेरे सामने किसी बेजान मूरत सी खड़ी थी…
उस कमसिन कली ने अपने प्रियतम की इच्छा का सम्मान करते हुए अपने अनछुए कोमल बदन को उसके हवाले कर दिया था… किसलिए…?
एक विश्वास पर… जो उसके निश्छल प्रेम ने उसके अंदर पैदा किया था… उसने अपने प्रियतम पर आँख बंद कर के भरोसा कर लिया था…
मे उसकी केले जैसी चिकनी जांघों को सहलाते हुए उन्हें चूमने, चाटने लगा…मेरी छुवन से उसका बदन थर-थरा रहा था…
मे घुटने मोड़ कर बैठा था, मेरे हाथ बड़े प्यार और दुलार से उसके सरीर पर तैर रहे थे… वो शरीर के जिस हिस्से में होते, निशा के शरीर का वो हिस्सा… किसी जुड़ी के मरीज़ की तरह काँपने लगता…
फिर मेने उसकी पतली कमर को अपने हाथों के बीच लेकर उसे पलटा दिया… अब उसकी छोटी सी पेंटी में कसे उसके गोल-गोल नितंब मेरे सामने थे.. इन्हें मे हौले-2 सहलाने लगा…
मेरी उंगलियाँ उसकी छोटी सी पेंटी की एलियास्टिक में फँस गयी, और उसे नीचे को खींच दिया……
निशा की बॉल के साइज़ के उसके नितंब एकदम गोल-2 सुडौल, गोरे-2, थोड़े बाहर को निकले हुए मेरी आँखों के सामने थे, जिन्हें सहलाकर मेने चूम लिया….
नीचे बैठे ही मेने उसे अपनी तरफ पलटा लिया, जांघों के जोड़ के बीच की कलाकृति अब मेरे सामने थी…जिसकी सुंदरता बयान करने लायक मेरे पास शब्द नही थे…
हल्के हल्के बालों से सजे पतले-2 बंद होंठों के बीच एक पतली सी रेखा जैसी उसकी रस सुरंग, जो नीचे से ऊपर की तरफ थोड़ी सी मांसल दिखाई दे रही थी…
मेने अपने हाथ से उसे एक बार बड़े प्यार से सहलाया… और निशा की टाँगों को थोड़ा सा अलग कर के एक किस उसकी प्यारी मुनिया के बंद होंठो के ऊपर कर दिया…
ईइसस्स्स्शह……आअहह……ना चाहते हुए निशा के मुँह से एक दबी सी सिसकी निकल ही गयी…
मेने फिर से उसे पलटा दिया और फिरसे एक बार उसके नितंबों को चूमा…
नितंबों के बाद उसकी कमर, फिर उसकी पीठ चूमते चूमते मे ऊपर उठता चला गया, फिर मेरी उंगलियों ने उसकी ब्रा के हुक भी खोल दिए…
उसकी पीठ से सट कर खड़ा होते हुए मेने उसके कान की लौ को चूमकर कहा-
जान ! तुम सचमुच सुंदरता की जीती-जागती मूरत हो… तुमने आज अपना ये संगेमरमर सा सुंदर बदन दिखाकर मुझे अपना दीवाना बना दिया है..
अब में तुम्हारे इंतेज़ार में कुछ वर्ष तो क्या.. सदिया गुज़ार सकता हूँ..
ये कहकर मेने उसके अनार जैसे उरोजो को अपनी मुट्ठी में भर लिया और सहलाने लगा..
निशा एकदम से पलट कर मेरे गले से लिपट गयी, उसके उरोज मेरे सीने में दब कर रह गये,…
वो दीवानावार मेरे चेहरे पर अनगिनत किस करते हुए बोली…
मेरे प्रियतम को ये दासी पसंद आ गयी… ये मेरे लिए किसी सौभाग्य से कम नही है… आइ लव यू जानम…
आइ लव यू टू प्रिय…! अब तुम अपने कपड़े पहन लो.., तुम्हारे रूप रस का पान कर के मे धन्य हो गया…
निशा ने फिर एक बार मुझे कसकर अपने गले लगाया और कपड़े पहन कर रूम से बाहर निकल गयी मेरे लिए दूध लेने….
मे खुद पर आश्चर्य चकित था, कि एक कमसिन बाला.. पूर्ण रूप से नग्न मेरे सामने थी और मेरे मन में एक बार भी उसे भोगने की इच्छा तक नही हुई…
क्या ये मेरा उसके लिए निश्चल प्रेम था ? जो शायद मेरी जिंदगी में पहली और आख़िरी बार हुआ था…
दूसरे दिन सुबह-सुबह मे निशा और उसके मम्मी पापा से विदा लेकर अपने घर वापस चल दिया… वो मुझे गाओं के बाहर तक छोड़ने आई…
विदा होते वक़्त स्वतः ही हम दोनो की आँखें छलक गयीं.. हम एकदुसरे को किस कर के अंतिम बार गले मिले..
फिर एकदुसरे को बाइ बोलकर अपने अपने घर को चल दिए…
रास्ते में ही शांति बुआ का घर पड़ता था, जो निशा के गाओं से ज़्यादा दूर नही था, तो सोचा बुआ का हाल चाल पूछते हुए ही निकलता हूँ…
कभी आया तो नही था पहले बुआ के यहाँ, तो लोगों से पुछ्ते-पाछ्ते पहुँचा.. उनके दरवाजे पर..
बुलेट की आवाज़ सुन कर एक लड़की घर के अंदर से भागती हुई आई…मे उस लड़की को देखता ही रह गया…
कॉलेज यूनिफॉर्म में वो शायद कॉलेज जाने के लिए तैयार ही हुई थी, सफेद रंग की शर्ट और स्लेटी लाल चौखाने की घुटनों तक की स्कर्ट में वो एक बहुत ही सुंदर गुड़िया जैसी लगी मुझे…
उसकी कसी हुई शर्ट में क़ैद 32-33” के उसके उसके चुचे बटन तोड़कर बाहर निकलने को आतुर हो रहे थे,
पतली सी कमर के नीचे थोड़ी उठी हुई गान्ड, देख कर मेरे अंदर कुछ – 2 होने लगा…
अपनी बड़ी -2 कजरारी आँखें मटका कर वो बोली – कॉन हो तुम… किससे मिलना है…?
मे – शांति बुआ का घर यही है…?
वो – हां ! लेकिन तुम कॉन हो जो मम्मी को बुआ बोल रहे हो…?
मे – ओह तो तुम उनकी बेटी हो, मेरा नाम अंकुश है, … अभी कुछ दिन पहले मेरे भैया की शादी थी, तुम उसमें शामिल नही हुई थी…
वो – ओह अंकुश भैया… नमस्ते ! सॉरी, मेने आपको पहचाना नही, आओ..आओ… फिर वो बुआ को आवाज़ देते हुए चिल्लाई… मम्मी…मम्मी…
अंदर से बुआ की आवाज़ आई… क्या है वीजू…देख नही रही.. तेरे लिए नाश्ता तैयार कर रही हूँ, कॉलेज के लिए लेट हो रहा है…
तब तक मे बाइक स्टॅंड कर के उसके पीछे – 2 अंदर आया, उसके मटकते कूल्हे मुझे अपनी ओर लुभा रहे थे…
वो – मम्मी थोड़ा बाहर आकर देखो तो सही, कॉन आया है…
बुआ अपने माथे का पसीना अपने पल्लू से पोंछती हुई रसोई से बाहर आई…
और मुझे देखते ही…सी.छोतुउुुुउउ… चिल्लाते हुए दौड़कर मेरे सीने से लग गयी…!
उनकी ये हरकत देख कर पास खड़ी विजेता अपनी बड़ी – 2 आँखें फाडे उन्हें देखने लगी…
मेने बुआ से पूछा – बुआ ये आपकी बेटी है..?
वो – हां ! बड़ी वाली विजेता… तूने देखा तो है इसे कई बार गाओं गयी है मेरे साथ…
मे – ये वही विजेता है ना.. जिसकी नाक बहती रहती थी…
बुआ हँसते हुए बोली - हहहे… हां ! वही विजेता है, अब देख.. अब नही बहती इसकी नाक…!
विजेता गुस्सा होते हुए बोली – क्या मम्मी आप भी चिडाने लगी मुझे… फिर वो मेरी तरफ आँखें तरेर कर बोली…
आपने कब देखी मेरी नाक बहते हुए…? हां !
बुआ – अरे नही बेटा ! एक बार जब में तुझे लेकर गाओं गयी थी, तब तुझे सर्दी हो गयी थी… तो तबकि बात कर रहा है छोटू…
वैसे बड़े भाई की बात का क्या बुरा मानना…! बेटा तू बैठ पहले मे इसको कॉलेज भेज दूं.. फिर बैठ कर बात करते हैं.. ठीक है,
और वो फिरसे रसोई में घुस गयीं… विजेता मुझे घूर-2 कर देख रही थी.. मेने कहा – माफ़ करना मेरी गुड़िया, मे तो ऐसे ही मज़ाक कर रहा था..
तुझे बुरा लगा तो सॉरी ! और मेने अपने कान पकड़ लिए तो वो खुश हो गयी.. और बोली – कोई बात नही भैया…
फिर वो बुआ को आवाज़ देकर बोली – मम्मी जल्दी करो मे लेट हो रही हूँ…
मेने कहा – कितना दूर है तेरा कॉलेज…?
वो – अरे भैया.. दूसरे गाओं में है, यहाँ से 3 किमी दूर है और मुझे साइकल से जाना पड़ता है, फिर घड़ी की तरफ देख कर बोली –
ऑफ.ओ.. मे तो ऑलरेडी लेट हो गयी… अब पहला पीरियड तो मिलने वाला नही है…मम्मी…जल्दी…करो प्लीज़ !
बुआ – अभी लाई… बस दो मिनिट…
मे – तू कहे तो मे छोड़ दूं तुझे कॉलेज…
वो – फिर उधर से कैसे आउन्गि…?
निशा को मेरे साथ देखकर वो चोन्क्ते हुए बोली – ये कॉन है बेटी..?
निशा – इनको नही पहचाना मम्मी…? ये दीदी के छोटे देवर ! अंकुश नाम है इनका…
मम्मी – ओह..! आओ बेटा बैठो…! माफ़ करना कभी देखा नही ना तुम्हें इसलिए पुच्छ लिया..
मे – कोई बात नही मम्मी जी.. वैसे भी मे भैया की शादी में ही आया था…
मम्मी – हां ! लेकिन तब तुम बहुत छोटे से थे… अब देखो… क्या गबरू जवान हो गये हो…
मे- ये सब आपकी बेटी का ही कमाल है मम्मी जी…!
वो एकदम से चोन्क्ते हुए बोली – मेरी बेटी का…? वो कैसे…?
मे – अरे मम्मी जी ! भाभी मेरा इतना ख़याल रखती हैं.. कि पुछो मत.. मुझे कभी अपनी माँ की कमी महसूस नही होने दी…
वो – ओह हां ! मोहिनी है ही ऐसी, यहाँ भी सबका बहुत ख़याल करती थी..
कुछ देर में निशा के पिताजी भी आ गये.. वो भी मिलकर बड़े खुश हुए.. और घर के हाल-चाल पुच्छे…
खाना पीना खाकर वो लोग जल्दी ही सोते थे… सो कुछ देर और इधर-उधर की बातें हुई.. और वो दोनो सोने चले गये…
जाते हुए निशा की मम्मी ने उससे कहा – निशा बेटा सोने से पहले लल्ला जी को ध्यान से दूध पिला देना…..!
सोने के लिए जाते हुए निशा की मम्मी ने उससे कहा – निशा बेटा सोने से पहले लल्ला जी को ध्यान से दूध पिला देना…..
निशा का घर उनके घर की ज़रूरत के हिसाब से जैसा मध्यम वर्गिया ग्रामीण लोगों का होना चाहिए उस हिसाब से ही था..
तीन कमरे, जिनमें एक में उसके मम्मी-पापा, एक में निशा और एक उसके भाई का था, एक बड़ा सा बैठक कम हॉल जिसमें एक टीवी भी लगा हुआ था…
हॉल से बाहर एक वरांडा… उसके बाद थोड़ी खाली जगह जो बौंड्री से घिरी हुई थी..
हम इस समय हॉल में बैठे टीवी देख रहे थे…मे सोफे पर था, और वो साइड में पड़ी सोफा चेयर पर बैठी थी..
मेने उसकी मम्मी के जाने के कुछ देर बाद निशा से कहा – क्यों डार्लिंग… क्या ख़याल है…?
वो मेरी तरफ मुस्कराते हुए बोली – किस बात का…?
मे – अपनी मम्मी की अग्या का पालन नही करोगी.. ?
वो हंस कर बोली ओह ! वो..! तो अभी चाहिए.. या सोने से पहले…
मेने कहा शुभ काम में देरी नही करना चाहिए.., मेरी बात सुनकर वो चेयर से उठी, और मेरे आगे से होकर किचेन की तरफ दूध लाने के लिए जाने लगी…
मेने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया… तो वो एक झोंके के साथ मेरी गोद में आ गिरी… गिरने से बचने के लिए उसने मेरे गले में बाहें डाल दी…
वो मेरी आँखों में देखते हुए बोली – क्या करते हो…? खुद ही कहते हो दूध लाने को और रोक भी रहे हो…!
मे उस दूध की बात नही कर रहा जानेमन, मुझे तो ये वाला दूध पीना है……ये कहकर मेने उसके एक संतरे पर अपना हाथ रख दिया…
हटो बदमाश कहीं के…., उसने मुझे हल्के से सीने में मुक्का मारा… कितना ग़लत-सलत सोचते हो…
मे – इसमें क्या ग़लत कहा है मेने.. दूध ही तो माँगा है.. नही पिलाना है तो मत पिलाओ.. मे सुबह मम्मी को बोल दूँगा… कि आपकी बेटी ने मुझे दूध दिया ही नही…
उसने शर्म से अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया… मेने उसकी थोड़ी को अपनी उंगलियों से ऊपर कर के उसका चेहरा उठाया… और उसकी झील सी गहरी आँखों में झाँकते हुए कहा-
तुम कितनी मासूम हो निशु…मे सच में बहुत शौभग्यशाली हूँ जिसे इतनी मासूम, और सुंदर सी प्यारी सी लड़की का प्यार मिल रहा है…
मे तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ मेरी जान… आइ लव यू…!
आइ लव यू टू जानू… कहकर वो मेरे सीने से लिपट गयी….!
मेने धीरे से उसकी पीठ पर हाथ रख कर सहला दिया… और एक हाथ से उसके गाल को सहलाकर उसके होंठ चूम लिए…
मे तुमसे दूर नही रह सकती जानू..! वो कुछ देर बाद बोली, तो मेने कहा – मे कॉन सा तुमसे दूर रह सकता हूँ… लेकिन हमें कुछ दिन तो रहना ही पड़ेगा..
वो – अगर तुम मुझे नही मिले तो में मर जाउन्गि… अंकुश..!
सीईईईईईईईई… उसके होंठों पर उंगली रख कर कहा मेने – ऐसे मरने गिरने की बात नही करते… भाभी ने मुझे प्रॉमिस किया है… चाहे कुछ हो जाए.. हम मिलकर ही रहेंगे..
वो – सच ! क्या दीदी को पता है हमरे प्यार के बारे में…?
मे – हां ! और ये बात उन्होने खुद से ही कही है… अब हमें बस कुछ सालों तक इंतजार करना पड़ेगा…
वो फिरसे मुझसे लिपट गयी..ओह ! जानू मे आज बहुत खुश हूँ… लेकिन एक प्रॉमिस करो.. तुम जल्दी-2 मुझसे मिलने आया करोगे… कम से कम महीने में एक बार..
मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है… लेकिन तुम खुद सोचो.. मेरा बार-2 यहाँ आना क्या लोगों में शक पैदा नही करेगा..? क्या तुम्हारे मम्मी-पापा ये चाहेंगे…?
वो – तो फिर मे कैसे रहूंगी इतने दिन … कम-से-कम फोन तो करते रहना..
मे – हां ! ये सही रहेगा.. हम रोज़ रात को फोन से बात कर लिया करेंगे..
इतनी देर से निशा मेरी गोद में बैठी थी… उसकी गोल-मटोल छोटी लेकिन मुलायम गान्ड की गर्मी से मेरा लंड टाइट जीन्स में व्याकुल होने लगा…
मे अपने कपड़े नही लाया था, सो मेने निशा से कहा – यार मुझे कुछ चेंज करना है… ये जीन्स में कंफर्टबल नही लग रहा…
वो मेरी गोद से उठ खड़ी हुई, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने भैया के रूम में ले गयी… उसकी अलमारी से एक पाजामा और टीशर्ट निकाल कर मुझे पकड़ा दिया…
मेने अपने कपड़े निकाल दिए और टीशर्ट पहन ली… मेने जैसे ही अपनी जीन्स निकाली…
मेरे फ्रेंची में खड़े मेरे पप्पू को देखकर वो शर्मा गयी और अपना मुँह फेर लिया…
मेने उसे कुछ नही कहा और मुस्कुरा कर पाजामा पहन लिया…
मेरे सोने का इंतेज़ाम भी इसी रूम में था, तो फिर हम दोनो उसमें पड़े पलंग पर बैठ गये…
मेने फिर एक बार निशा को अपनी गोद में खींच लिया और उसके होंठ चूमकर कहा
निशा ! मेरी एक इच्छा पूरी करोगी..?
वो – क्या..? अगर मेरे बस में हुआ तो ज़रूर पूरी करूँगी..!
मे - मुझे तुम्हारे रूप सौंदर्य के दर्शन करने हैं..?
वो – क्यों ? अभी क्या मे पर्दे में हूँ..?
मे – तुम्हारा ये संगेमरमर सा बदन तो पर्दे में है ना…!
ये आप कैसी बहकी-2 बातें कर रहे हो…? भला ये भी कोई इच्छा हुई..? वो थोड़ा नाराज़गी भरे स्वर में बोली…
मे बस तुम्हारे इस सुन्दर बदन की छवि अपने मन में बसाना चाहता हूँ.. जिसके सहारे आने वाला लंबा समय गुज़ार सकूँ..
मे तुमसे कोई ज़ोर जबर्जस्ती नही करूँगा, अगर अपने प्यार पर भरोसा कर सको तो..
वो खामोशी से मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, …फिर कुछ सोच कर बोली….
ठीक है ! मे आपसे सच्चा प्रेम करती हूँ… और आशा करती हूँ.. कि आप भी एक सच्चे प्रेमी की नज़र से ही मुझे देखेंगे..
ये कह कर वो मेरी तरफ पीठ कर के खड़ी हो गयी… और बोली… देख लीजिए जैसे देखना चाहते हैं..
मे उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया… और उसके गले पर अपने प्यासे होंठ रख दिए…
उसके होंठों से एक मीठी सी सिसकी निकल पड़ी.. और उसने कस कर अपनी आँखें बंद कर ली…
उसकी कमीज़ की पीठ पर एक ज़िप थी, जो उसके गले से लेकर कमर तक पहुँचती थी… मेने उसके कंधों पर अपने हाथ रखकर उसे सहलाते हुए… अपने हाथ धीरे-2 उसकी ज़िप पर ले आया.
कुछ देर ज़िप के आस-पास हाथों को फिराया… और उसकी ज़िप का लॉक अपने अंगूठे में लेकर धीरे-2 नीचे की तरफ खींचने लगा…
जैसे जैसे उसकी ज़िप नीचे को खुलती जा रही थी …. उसकी दूधिया रंग की पीठ किसी संगमरमर सी चिकनी मेरी आँखों के सामने किसी अनमोल खजाने की तरह खुलती जा रही थी…
कमर तक ज़िप खोलने के बाद मेने उसकी पीठ पर उसकी ब्रा की स्ट्रीप के ठीक ऊपर अपने गीले होंठ रख दिए….
उसकी पीठ काँप कर और अंदर को चली गयी, और उसके मुँह से एक और सिसकी निकली…इस्शह…..सस्सिईईईईईई…..
अब में उसकी पीठ को ऊपर की तरफ चूमता हुआ… उसकी नंगी पीठ पर अपने हाथ फिरा रहा था… निशा तो जैसे कहीं खो ही गयी थी…
फिर मेरे हाथ उसकी पीठ सहलाते हुए कंधों पर पहुँचे और उसकी कमीज़ को दोनो बाजुओं से नीचे सरका दिया….
उसकी कमीज़ उसके बदन से सरसराती हुई… उसके कदमों में जा गिरी…
मेने उसे कंधों से पकड़कर अपनी तरफ घुमाया… वो किसी कठपुतली की तरह मेरे हाथों के इशारों पर चल रही थी…
जब मेरी नज़र उसके उभारों पर पड़ी….उफफफफफफफफफफफफफ्फ़….. क्या दूधिया… बदन था उसका… गोल-गोल टेनिस की बॉल के साइज़ के उसके दूधिया उरोज एक छोटी सी गुलाबी रंग की ब्रा में क़ैद उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे…
दोनो के बीच की चौड़ी खाई… मुझे ललचा रही थी…, मे अपने आपको रोक नही पाया…और झुक कर उसके उभारों के बीच की खाई पर अपने तपते होंठ रख दिए…
निशा ने आअहह….. भरते हुए मेरे सर को पकड़ लिया…, फिर मेने उसके उभारों के दोनो ओर की ढलान को बारी-बारी से अपनी खुरदूरी जीभ से चाटा,…और उन्हें चूमते हुए उसके सपाट पेट की तरफ बढ़ने लगा…
निशा अपनी आँखें मुन्दे अपने अंतर्मन में इस असीम आनंद की अनुभूति को महसूस कर के दूर कहीं आसमानों में उड़ चली थी….
मन नही माना तो मेरे शरारती हाथ एक बार उसके सुंदर उरोजो पर टिक ही गये.. और उन्हें सहलाते हुए… उसकी बगलों से होते हुए, उसकी पतली कमर पर आ टिके…
मेरे हाथ किसी स्वचालित यन्त्र की तरह उसकी पतली कमर को सहलाते हुए, मेरी उंगलियाँ उसकी सलवार के नाडे की गाँठ पर थी.…
कुछ ही देर में निशा की सलवार भी उसके कदमों में जा गिरी….
मे थोड़ा पीछे होकर निशा के कदमों में बैठ गया…, और उसके संगेमरमरी बदन की सुंदरता का रस अपनी आँखों से पीने लगा…
आहह…. क्या सुडौल जांघें थी उसकी… लेशमात्र भी एक्सट्रा फॅट नही था उसके बदन पर… साँचे में ढला उसका दूध जैसा गोरा बदन किसी संगेममर की मूरत जैसा मेरे सामने था……
निशा मात्र दो छोटे-से अधोवस्त्रों में मेरे सामने किसी बेजान मूरत सी खड़ी थी…
उस कमसिन कली ने अपने प्रियतम की इच्छा का सम्मान करते हुए अपने अन्छुये कोमल बदन को उसके हवाले कर दिया था… किसलिए…?
निशा मात्र दो छोटे-से अधोवस्त्रों में मेरे सामने किसी बेजान मूरत सी खड़ी थी…
उस कमसिन कली ने अपने प्रियतम की इच्छा का सम्मान करते हुए अपने अनछुए कोमल बदन को उसके हवाले कर दिया था… किसलिए…?
एक विश्वास पर… जो उसके निश्छल प्रेम ने उसके अंदर पैदा किया था… उसने अपने प्रियतम पर आँख बंद कर के भरोसा कर लिया था…
मे उसकी केले जैसी चिकनी जांघों को सहलाते हुए उन्हें चूमने, चाटने लगा…मेरी छुवन से उसका बदन थर-थरा रहा था…
मे घुटने मोड़ कर बैठा था, मेरे हाथ बड़े प्यार और दुलार से उसके सरीर पर तैर रहे थे… वो शरीर के जिस हिस्से में होते, निशा के शरीर का वो हिस्सा… किसी जुड़ी के मरीज़ की तरह काँपने लगता…
फिर मेने उसकी पतली कमर को अपने हाथों के बीच लेकर उसे पलटा दिया… अब उसकी छोटी सी पेंटी में कसे उसके गोल-गोल नितंब मेरे सामने थे.. इन्हें मे हौले-2 सहलाने लगा…
मेरी उंगलियाँ उसकी छोटी सी पेंटी की एलियास्टिक में फँस गयी, और उसे नीचे को खींच दिया……
निशा की बॉल के साइज़ के उसके नितंब एकदम गोल-2 सुडौल, गोरे-2, थोड़े बाहर को निकले हुए मेरी आँखों के सामने थे, जिन्हें सहलाकर मेने चूम लिया….
नीचे बैठे ही मेने उसे अपनी तरफ पलटा लिया, जांघों के जोड़ के बीच की कलाकृति अब मेरे सामने थी…जिसकी सुंदरता बयान करने लायक मेरे पास शब्द नही थे…
हल्के हल्के बालों से सजे पतले-2 बंद होंठों के बीच एक पतली सी रेखा जैसी उसकी रस सुरंग, जो नीचे से ऊपर की तरफ थोड़ी सी मांसल दिखाई दे रही थी…
मेने अपने हाथ से उसे एक बार बड़े प्यार से सहलाया… और निशा की टाँगों को थोड़ा सा अलग कर के एक किस उसकी प्यारी मुनिया के बंद होंठो के ऊपर कर दिया…
ईइसस्स्स्शह……आअहह……ना चाहते हुए निशा के मुँह से एक दबी सी सिसकी निकल ही गयी…
मेने फिर से उसे पलटा दिया और फिरसे एक बार उसके नितंबों को चूमा…
नितंबों के बाद उसकी कमर, फिर उसकी पीठ चूमते चूमते मे ऊपर उठता चला गया, फिर मेरी उंगलियों ने उसकी ब्रा के हुक भी खोल दिए…
उसकी पीठ से सट कर खड़ा होते हुए मेने उसके कान की लौ को चूमकर कहा-
जान ! तुम सचमुच सुंदरता की जीती-जागती मूरत हो… तुमने आज अपना ये संगेमरमर सा सुंदर बदन दिखाकर मुझे अपना दीवाना बना दिया है..
अब में तुम्हारे इंतेज़ार में कुछ वर्ष तो क्या.. सदिया गुज़ार सकता हूँ..
ये कहकर मेने उसके अनार जैसे उरोजो को अपनी मुट्ठी में भर लिया और सहलाने लगा..
निशा एकदम से पलट कर मेरे गले से लिपट गयी, उसके उरोज मेरे सीने में दब कर रह गये,…
वो दीवानावार मेरे चेहरे पर अनगिनत किस करते हुए बोली…
मेरे प्रियतम को ये दासी पसंद आ गयी… ये मेरे लिए किसी सौभाग्य से कम नही है… आइ लव यू जानम…
आइ लव यू टू प्रिय…! अब तुम अपने कपड़े पहन लो.., तुम्हारे रूप रस का पान कर के मे धन्य हो गया…
निशा ने फिर एक बार मुझे कसकर अपने गले लगाया और कपड़े पहन कर रूम से बाहर निकल गयी मेरे लिए दूध लेने….
मे खुद पर आश्चर्य चकित था, कि एक कमसिन बाला.. पूर्ण रूप से नग्न मेरे सामने थी और मेरे मन में एक बार भी उसे भोगने की इच्छा तक नही हुई…
क्या ये मेरा उसके लिए निश्चल प्रेम था ? जो शायद मेरी जिंदगी में पहली और आख़िरी बार हुआ था…
दूसरे दिन सुबह-सुबह मे निशा और उसके मम्मी पापा से विदा लेकर अपने घर वापस चल दिया… वो मुझे गाओं के बाहर तक छोड़ने आई…
विदा होते वक़्त स्वतः ही हम दोनो की आँखें छलक गयीं.. हम एकदुसरे को किस कर के अंतिम बार गले मिले..
फिर एकदुसरे को बाइ बोलकर अपने अपने घर को चल दिए…
रास्ते में ही शांति बुआ का घर पड़ता था, जो निशा के गाओं से ज़्यादा दूर नही था, तो सोचा बुआ का हाल चाल पूछते हुए ही निकलता हूँ…
कभी आया तो नही था पहले बुआ के यहाँ, तो लोगों से पुछ्ते-पाछ्ते पहुँचा.. उनके दरवाजे पर..
बुलेट की आवाज़ सुन कर एक लड़की घर के अंदर से भागती हुई आई…मे उस लड़की को देखता ही रह गया…
कॉलेज यूनिफॉर्म में वो शायद कॉलेज जाने के लिए तैयार ही हुई थी, सफेद रंग की शर्ट और स्लेटी लाल चौखाने की घुटनों तक की स्कर्ट में वो एक बहुत ही सुंदर गुड़िया जैसी लगी मुझे…
उसकी कसी हुई शर्ट में क़ैद 32-33” के उसके उसके चुचे बटन तोड़कर बाहर निकलने को आतुर हो रहे थे,
पतली सी कमर के नीचे थोड़ी उठी हुई गान्ड, देख कर मेरे अंदर कुछ – 2 होने लगा…
अपनी बड़ी -2 कजरारी आँखें मटका कर वो बोली – कॉन हो तुम… किससे मिलना है…?
मे – शांति बुआ का घर यही है…?
वो – हां ! लेकिन तुम कॉन हो जो मम्मी को बुआ बोल रहे हो…?
मे – ओह तो तुम उनकी बेटी हो, मेरा नाम अंकुश है, … अभी कुछ दिन पहले मेरे भैया की शादी थी, तुम उसमें शामिल नही हुई थी…
वो – ओह अंकुश भैया… नमस्ते ! सॉरी, मेने आपको पहचाना नही, आओ..आओ… फिर वो बुआ को आवाज़ देते हुए चिल्लाई… मम्मी…मम्मी…
अंदर से बुआ की आवाज़ आई… क्या है वीजू…देख नही रही.. तेरे लिए नाश्ता तैयार कर रही हूँ, कॉलेज के लिए लेट हो रहा है…
तब तक मे बाइक स्टॅंड कर के उसके पीछे – 2 अंदर आया, उसके मटकते कूल्हे मुझे अपनी ओर लुभा रहे थे…
वो – मम्मी थोड़ा बाहर आकर देखो तो सही, कॉन आया है…
बुआ अपने माथे का पसीना अपने पल्लू से पोंछती हुई रसोई से बाहर आई…
और मुझे देखते ही…सी.छोतुउुुुउउ… चिल्लाते हुए दौड़कर मेरे सीने से लग गयी…!
उनकी ये हरकत देख कर पास खड़ी विजेता अपनी बड़ी – 2 आँखें फाडे उन्हें देखने लगी…
मेने बुआ से पूछा – बुआ ये आपकी बेटी है..?
वो – हां ! बड़ी वाली विजेता… तूने देखा तो है इसे कई बार गाओं गयी है मेरे साथ…
मे – ये वही विजेता है ना.. जिसकी नाक बहती रहती थी…
बुआ हँसते हुए बोली - हहहे… हां ! वही विजेता है, अब देख.. अब नही बहती इसकी नाक…!
विजेता गुस्सा होते हुए बोली – क्या मम्मी आप भी चिडाने लगी मुझे… फिर वो मेरी तरफ आँखें तरेर कर बोली…
आपने कब देखी मेरी नाक बहते हुए…? हां !
बुआ – अरे नही बेटा ! एक बार जब में तुझे लेकर गाओं गयी थी, तब तुझे सर्दी हो गयी थी… तो तबकि बात कर रहा है छोटू…
वैसे बड़े भाई की बात का क्या बुरा मानना…! बेटा तू बैठ पहले मे इसको कॉलेज भेज दूं.. फिर बैठ कर बात करते हैं.. ठीक है,
और वो फिरसे रसोई में घुस गयीं… विजेता मुझे घूर-2 कर देख रही थी.. मेने कहा – माफ़ करना मेरी गुड़िया, मे तो ऐसे ही मज़ाक कर रहा था..
तुझे बुरा लगा तो सॉरी ! और मेने अपने कान पकड़ लिए तो वो खुश हो गयी.. और बोली – कोई बात नही भैया…
फिर वो बुआ को आवाज़ देकर बोली – मम्मी जल्दी करो मे लेट हो रही हूँ…
मेने कहा – कितना दूर है तेरा कॉलेज…?
वो – अरे भैया.. दूसरे गाओं में है, यहाँ से 3 किमी दूर है और मुझे साइकल से जाना पड़ता है, फिर घड़ी की तरफ देख कर बोली –
ऑफ.ओ.. मे तो ऑलरेडी लेट हो गयी… अब पहला पीरियड तो मिलने वाला नही है…मम्मी…जल्दी…करो प्लीज़ !
बुआ – अभी लाई… बस दो मिनिट…
मे – तू कहे तो मे छोड़ दूं तुझे कॉलेज…
वो – फिर उधर से कैसे आउन्गि…?