Update 23

रास्ते में ही आशा दीदी मिल गयी जो अपने खेतों की तरफ जा रही थी, मेने पूछा कि कहाँ जा रही हो, तो उसने कहा – माँ-बापू को खाना देने जा रही हूँ..

तुम कहाँ जा रहे हो..

मेने कहा - रेखा दीदी ने बुलाया है किसी काम से.. मेरी बात सुनकर, वो अपनी बड़ी – 2 आँखें मटकाते हुए बोली – रेखा दीदी को तुमसे ऐसा क्या काम पड़ गया..?

मेने कहा – एक काम करो जल्दी लौट के आ जाओ, खुद ही देख लेना और ये कहकर मेने अपनी एक आँख दबा दी..

वो सब समझ गयी.. और बोली – बेस्ट ऑफ लक… लेकिन मेरे लिए थोड़ा बचा के रखना …अपना… परसाद… और हँसती हुई तेज तेज कदमों से खेतों की तरफ चली गयी…

उनके घर पहुँचने तक रेखा दीदी ने अपने बच्चे को दूध पिलाकर सुला दिया था,

अब वो उसे गाय या भैंस का ही दूध देती थी…अपना दूध पिलाना तो उसने कब का बंद कर दिया था..

मे जैसे ही उसके घर पहुँचा तो, झट से उसने दरवाजा बंद कर दिया.. और मुझे हाथ पकड़ कर अंदर ले जाने लगी…

मेने कहा – दीदी तुम चलो कमरे में, मे टाय्लेट कर के बस एक मिनिट में आया..

उसके जाते ही मेने दवाजे की संकाल खोल दी और ऐसे ही उसे भिड़ा रहने दिया…

मे जब उसके कमरे में पहुँचा तो वो अपनी साड़ी उतार चुकी थी… खाली ब्लाउज और पेटिकोट में उसके कसे हुए पपीते जैसे गोल बड़े-बड़े चुचे आधे बाहर को उबले पड़ रहे थे…

मेने जाकर उसके उन दोनो पपीतों को पकड़ कर ज़ोर से मसल दिया… उसके मुँह से अहह… निकल गयी….

वो नीचे ब्रा नही पहने थी, सो चुचियों को मसल्ते ही उसके निपल ब्लाउज के अंदर से ही खड़े होकर सल्यूट मारने लगे…

मेने उसके निप्प्लो को मसल्ते हुए उसके होंठों पर किस किया और बोला… दीदी !

तुम्हारे ये कलमी आम तो एक दम पक गये हैं… जी करता है चूस-चूस कर खा जाउ…

तो खा ना भेन्चोद… देखता क्या है… मे कब्से तुझे खिलाने के लिए कह रही हूँ…

पर तू तो कहीं और ही मुँह मारता फिरता है… सीईईईईईईईईई…. धीरे मरोड़.. ना..भोसड़ी के तोड़ेगा क्या मेरी घुंडीयों को…

मेने चटक-चटक कर के उसके ब्लाउज के सारे बटन तोड़ दिए.. और उसके नंगे कलमी आमों पर पिल पड़ा….

वो बुरी तरह से सीसीयाने लगी…. हाईए….. खाजा मेरे रजाआ… भेन्चोद… चुसले इनको…. आईईई… मदर्चोद…. काटता क्यो है… चुतिये…

उसके मुँह से गालियाँ सुन कर मेरी उत्तेजना और बढ़ने लगी… मेरा एक हाथ उसकी चूत को सहला रहा था…

उसने भी मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले रखा था, और वो उसे मसल और मरोड़ देती…

फिर मेने उसके पेटिकोट का नाडा भी खींचकर तोड़ दिया…

वो शिकायत भरे लहजे में बोली – तू मेरे कपड़े साबित नही छोड़ेगा लगता है..

उसकी पेंटी गीली हो गयी थी… और माल पुआ जैसी चूत पेंटी के ऊपर से ही फूली हुई दिख रही थी…

उसकी चौड़ी दरार देखते ही मेने उसकी माल पुआ जैसी चूत को अपनी मुट्ठी में भर कर ज़ोर से मसल दिया…

आईईईई…………आराम सीई…..भेन के लौडे… ये तेरी बेहन की चूत है… किसी रंडी की नही जो बुरी तरह से दबोचने में लगा है….

मेने कहा – दीदी… तू अगर अपनी पेंटी को बचाना चाहती है.. तो इसे जलादी से उतार दे…,

वो बोली – तू तो अभी सारे कपड़े पहना है.. और मुझे पूरा नंगा कर दिया..

ये कह कर उसने मेरी टीशर्ट निकाल दी, और लोवर को भी खींच दिया… अपनी पेंटी को उतार कर वो मेरे लंड को मुट्ठी में भरके बोली –

अहह…. क्या मोटा तगड़ा मस्त लंड है तेरा….

तेरे इस मस्त लंड से चुदने के लिए मेरी चूत कब्से फड़-फडा रही थी… अब इसको अपनी चूत में अंदर तक लूँगी….हुउऊंम्म…

आअहह….ये सोचकर ही मेरी चूत पनिया गयी रीई… देख तो कितना रस छोड़ रही है हाईए …ये कहकर वो मेरे लंड को मसल्ते हुए मूठ मारने लगी…

मेने एक हाथ से उसके एक पपीते को दबा दिया, दूसरे हाथ की दो उंगलियाँ उसकी रसीली चूत में पेल दी, और अंदर-बाहर कर के उसे चोदने लगा…

वो हाए-2 कर के अपनी कमर चलाने लगी…

फिर मेने अपनी उंगलियाँ उसकी चूत से बाहर निकाली और उसके मुँह में डाल दी… वो अपने ही चूतरस को चटकारे लेकर चाटने लगी…

फिर मे उसके पीछे आ गया, और उसके भारी भरकम गान्ड के पाटों को मसलते हुए, थोड़ा आगे को झुका दिया…

उसकी गान्ड का छेद खुल बंद हो रहा था..

मेने अपना मुँह उसकी गान्ड के पाटों के बीच डाल दिया, और उसकी गान्ड के छेद को जीभ से कुरेदते हुए उसकी चूत में उंगली कर दी…

उसकी चूत और ज़्यादा रस बहाने लगी…

अब उसे और सबर करना मुश्किल हो रहा था, तो उसने मुझे पलंग पर धक्का दे दिया और खुद मेरे ऊपर आकर मेरे मुँह पर अपनी भारी भरकम गान्ड लेकर बैठ गाइिईई……….

मेरे मुँह में उसकी चूत से बूँद-2 कर के शहद टपक रहा था, जिसे मे चासनी की तरह चाटता जा रहा था,

वो भी मेरे ऊपर लंबी होकर पसर गयी, और मेरे लौडे को अपने मुँह में भर कर शॅपर-शॅपर कर के लॉलीपोप की तरह चूसने लगी…

मुझे बाद में पता लगा कि इस पोज़िशन को 69 की पोज़िशन कहते हैं…

मेरी जीभ उसकी चूत में घुसी पड़ी थी, साथ ही उसकी कौए की चोंच जैसी क्लिट जो अब और भी बाहर आ रही थी अपनी उंगलियों में पकड़ कर दबा दिया…

वो बुरी तरह से अपनी कमर को मेरे मुँह पर पटाकने लगी…उसकी गान्ड का छेद खुल-बंद हो रहा था…

मेने अपने दूसरे हाथ का अंगूठा, उसकी गान्ड के सुनहरे छेद पर रख कर फिराया, फिर उसे उसकी चूतरस से गीला कर के धीरे से गान्ड के सुराख में घुसा दिया…

जबादुस्त तरीके से उसकी गान्ड ने मेरे अंगूठे को कस लिया, और अपनी चूत को और ज़ोर से मेरे मुँह पर दबाने लगी…

धीरे – 2 मेने अपना पूरा अंगूठा उसकी गान्ड में डाल दिया, वो गूँग – 2 करते हुए उत्तेजना में मेरा पूरा लंड अपने गले तक निगल गयी…

जिस स्पीड से मेरे हाथ हरकत कर रहे थे, उतनी ही स्पीड से वो मेरे लौडे पर अपना मुँह चला रही थी…

मेरी हरकतें वो ज़्यादा देर तक सहन नही कर पाई, और अपनी चूत का ढक्कन खोल दिया, चूत ने अपना सारा शहद मेरे मुँह में उडेल दिया…!!!

वो अभी मेरे उपेर से लुढ़क कर साइड में लेट कर लंबी-2 साँसें ले ही रही थी, कि मेने उसकी टाँगों को ऊपर कर के अपनी छाती से सटा लिया,

उसकी फूली हुई चूत जो की अब टाँगें ऊपर होने से और ज़्यादा मधु-मक्खी के छत्ते की तरह उभर आई थी, अपनी हथेली से दबा कर रगड़ दिया….

और अब अपना मूसल जैसा सख़्त कड़क लंड उसकी ताज़ा झड़ी हुई चूत में पेल दिया…..

अरे…मारररर……..दिया रीईए…उहह…माआआअ… धीरे…से डालल्ल्ल…कुत्तीए… इसकाअ…एक दिन में ही भोसड़ा बना देगा क्या…भेन्चोद….

बहुत हरामी है तू…भोसड़ी के .. वो दर्द से लिपटी आवाज़ में बोली…. कॉन से जन्म का बैर निकाल रहा है मदर्चोद….

तुमने ही तो कहा था… खा जा मुझे… फाड़ दे मेरी..चूत… अब क्या हुआ….मेने मज़ा लेते हुए कहा…

वो – अरे तेरा फघोड़े जैसा लंड, इतना शख्त और कड़क है … एक दम मोटे डंडे जैसा…. मैया रीि…. अंदर तक चीर डाला रे मेरी चूत को इसने……

आअहह…..उउउफ़फ्फ़…...….

अगर मे एक बच्चे की माँ नही होती.. तो तू मार ही डालता मुझे…आहह……

फिर मेने आराम से अपना मूसल बाहर खींचा… उसने एक राहत भरी साँस अपने नथुनो से निकाली….

अभी वो अच्छे से अपने आप को संभाल भी नही पाई थी, कि मेने फिरसे एक ताक़तवर धक्का उसकी चूत पर मार दिया….

वो फिरसे बिलबिला कर गालियां देने लगी…धीरीए…..कुत्ते….हइई र्रइ….

ऐसे ही कुछ धक्कों तक चलता रहा, वो चुदती भी जारही थी.. और साथ-2 कुछ ना कुछ बड-बड़ाती भी जा रही थी..

मेरे धक्कों की स्पीड के हिसाब से ही उसके मुँह से गालियाँ निकल रही थी.. जो मुझे और ज़ोर से चोदने को भड़का रही थी…

15-20 मिनिट तक हम दोनो ही जमकर चुदाई में लगे रहे.. अब वो भी अपनी गान्ड उछाल-2 कर मस्त होकर चुद रही थी…

फिर हम दोनो ने एक साथ ही अपने – 2 नल खोल दिए और झड़ने लगे…

मेरे गाढ़े – 2 रस से उसकी पोखर लबा लब भर गयी, … वो भी आज पहली बार इतनी गहराई तक लंड लेकर बुरी तरह से झड़ी थी….

आज उसके बोर की अच्छे से सफाई हो गयी थी…

हमारे गाँव के पंडित जी जो हमारे घर में होने वाले सभी वैदिक कार्यों को संपन्न करते हैं.. उनका घर बीच गाँव में है…

50 वर्षीय पंडित जी के दो संतानें थी, बड़ा लड़का जिसकी उम्र कोई 23-24 की होगी..

उसकी शादी एक साल पहले हो चुकी थी, दूसरी बेटी, उसकी शादी उसके भाई से भी एक साल पहले हो गयी थी..

घर पर पंडित जी, उनकी पंडितानी, और बेटे की बहू.. यही तीन प्राणी रहते थे…

बेटी की शादी हो चुकी थी, और बेटा शहर में रहकर कुछ नौकरी धंधा करता है… महीने दो महीने में एक बार घर आता है..

मेने पंडित जी के घर का दरवाजा खटखटाया… कुछ देर बाद अंदर से एक सुरीली सी आवाज़ आई… कॉन है…?

मेने बाहर से आवाज़ दी – मे हूँ… अपने पिताजी का नाम लेकर उनका बेटा…अंकुश.

थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला… सामने एक 20-21 साल की गोरी-चिटी, शादी शुदा बेटे की बहू… जिसके गोल-गप्पे जैसे कश्मीरी आपल जैसे लाल-लाल गाल… देखते ही जी करे खा जाउ..

गोल चेहरा, बड़ी बड़ी कटीली काली आँखें, नज़र डालते ही सामने वाला घायल हो जाए…

वो साड़ी पहने हुए थी.. कस्के लपेटी हुई सारी के पल्लू में से उसके कठोर मस्त कबूतर अपने होने का आभाष दे रहे थे…

छ्हरहरे बदन की उस नवयौवना की पतली सी कमर के नीचे.. थोड़ा उभरे हुए उसके कूल्हे…

उसने अपनी साड़ी थोड़ी नाभि के नीचे बाँध रखी थी.. जो उसकी पतली सी सारी में से अपनी सुंदरता का बखान खुद ब खुद कर रही थी…

मेने उसे पहले कभी नही देखा था… तो उसे एकटक देखता ही रह गया… वो भी मुझे घूर-घूर कर देखे जा रही थी…

नज़रें चार होते ही, हम दोनो ही जैसे एकदुसरे में खो गये…

कुछ देर तक हम दोनो ही एक दूसरे को देखते रहे… फिर जब पीछे से पंडितानी की आवाज़ सुनाई दी, तो चोंक पड़े…, उसने फ़ौरन अपनी नज़रें झुका ली..

पंडितानी – कॉन है बहू…?

मेने अपना परिचय दिया और पंडित जी के बारे में पूछा.. तो उसने बताया कि वो तो पड़ोस के गाँव गये हैं.. शाम तक ही लौटेंगे…

मेने अपने आने का कारण बताया और शाम को आने का बोल कर वापस अपने घर लौट आया…

शाम को पंडितजी खुद आकर बाबूजी को गौने की तिथि बता गये….

दूसरे दिन मे समय पर अपने कॉलेज पहुँचा…मेने बुलेट स्टॅंड की.. और अपनी क्लास की ओर चल दिया…

अभी मे ग्राउंड क्रॉस कर के लॉबी में एंटर हुआ ही था कि रागिनी अपने सीने पर किताबें चिपकाए मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी…

मेने उसके साइड से निकल कर आगे बढ़ने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया…

मेने पलट कर उसकी तरफ देखा… तो वो मेरा हाथ थामे अपनी नज़रें झुकाए खड़ी थी…

मे एकटक उसकी ओर ही देख रहा था, और मन ही मन सोच रहा था, कि ये भेन्चोद अब और क्या नया बखेड़ा खड़ा करना चाहती है…

जैसे-तैसे कर के मेने अपने गुस्से को कल काबू में किया था… अब अगर इसने कोई ग़लत हरकत करने की कोशिश की, तो मे साली की माँ चोद दूँगा…

मे अभी ये सब सोच ही रहा था, कि उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और अपने दोनो हाथ जोड़ कर बोली – मुझे माफ़ करदो अंकुश, अपने कल के व्यवहार के लिए मे बहुत शर्मिंदा हूँ..

मे तो मुँह फाडे उसको देखता ही रह गया… अचानक ये चमत्कार कैसे हो गया.. यार, ये शेरनी… भीगी बिल्ली कैसे बन गयी… ज़रूर इसकी ये कोई चाल होगी…

मे – देखो..! मे कल की बात को कल ही भूल चुका हूँ… अब मुझे तुमसे कोई शिकायत नही है… प्लीज़ मेरा रास्ता छोड़ो.. मुझे लेक्चर अटेंड करने के लिए लेट हो रहा है..

वो – तो सिर्फ़ एक बार कह दो कि तुमने मुझे माफ़ कर दिया..

मे – अरे यार ! जब मे कह रहा हूँ.. कि मे कल की बात को भूल चुका हूँ.. तो अब इसमें माफ़ करने की बात कहाँ से आ गयी…

वो – इसका मतलव तुम मुझसे नाराज़ नही हो…?

मे – नही ! मे तुमसे नाराज़ नही हूँ… अब मे जाउ…?

वो – तो अब हम फ्रेंड्स हैं..? और ये कह कर उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया…

मेने भी कुछ सोच कर अपना हाथ आगे कर दिया… तो उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर चूम लिया और थॅंक्स बोलकर वहाँ से भाग गयी…

मे उसकी थिरकति गान्ड को देखते हुए वहीं खड़ा रहा और उसकी इस हरकत का मतलव निकालने की कोशिश करता रहा.. फिर अपना सर झटक कर अपनी क्लास में चला गया…!

लास्ट लेक्चर अटेंड कर के मेने स्टॅंड से अपनी बाइक ली और किक मारकर कॉलेज से चल दिया…

अभी मे कॉलेज के गेट से बाहर निकल ही रहा था, कि देखा ! गेट के ठीक सामने एक खुली जीप खड़ी थी, 5 लड़के जो शक्ल से ही आवारा किस्म के लग रहे थे.. जीप के नीचे खड़े थे…

उनमें से एक लड़का, जो 5’4” हाइट होती, गोरा रंग चौड़ा शरीर, किसी फुटबॉल जैसा, चेहरा घनी दाढ़ी से भरा हुआ… बड़ी-2 लाल – लाल आँखें, देखते ही उसने मुझे हाथ देकर रुकने का इशारा किया…

मेने बाइक रोक दी लेकिन एंजिन अभी भी चालू ही था.. मेरे दोनो पैर ज़मीन पर टीके हुए अभी भी में बाइक की सीट पर ही बैठा था..

वो फुटबॉल जैसा फिर बोला – ओये… ये डग-डग बंद कर…मेने बाइक का एंजिन बंद कर दिया और गाड़ी को साइड स्टॅंड पर लगा कर खड़ा हो गया…

वो मेरे पास आया, अब मेरी हाइट 6’2” , और वो मेरे सामने टिंगा सा तो मुझसे बात करने के लिए उसे अपना थोबड़ा उठाना पड़ा,

वो ऊँट की तरह अपनी गर्दन उठा कर बोला - तेरा ही नाम अंकुश है..?

मे – हां ! क्यों ? क्या काम है..? बोलिए.. मेने शालीनता बनाए हुए कहा..

वो – तू जानता है मे कॉन हूँ…? भानु प्रताप सिंग नाम है मेरा… ठाकुर सूर्य प्रताप का बेटा…

मे – जी बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर.. बोलिए मे क्या सेवा कर सकता हूँ आपकी..?

वो – सेवा तो हम तेरी करने आए हैं… साले.. बहुत चर्बी चढ़ गयी है.. तुझे.. ये कहते हुए उसने अपना हाथ ऊपर कर के मेरा गिरेवान पकड़ लिया…

मे – देखिए भाई साब ! शायद आपको कोई ग़लत फहमी हुई है… मे तो यहाँ सिर्फ़ पढ़ाई करने आता हूँ.. मेने ऐसा कुछ नही किया जो आपकी शान के खिलाफ हो…

वो – अच्छा ! अब हमें बताना पड़ेगा कि तूने क्या किया है..? साले तेरी खाल खींच कर भूस ना भर दिया तो मेरा नाम भानु प्रताप नही…

अभी वो और कुछ कहता या करता… रागिनी भागते हुए वहाँ आई, उसने अपने भाई का हाथ मेरे गिरेवान से झटक दिया.. और बोली…

रागिनी – ये आप क्या कर रहे हैं भैया…?

वो – इस हरम्जादे ने तेरे साथ बदतमीज़ी की है… और तू इसे ही बचा रही है…

रागिनी – आपको कोई ग़लत फहमी हुई है, इसने मेरे साथ कोई बदतमीज़ी नही की, ग़लती मेरी ही थी… और आपसे किसने कहा कि इसने मेरे साथ कोई बदतमीज़ी की है..?

आप जाइए यहाँ से प्लीज़… मे बाद में आपको सब बताती हूँ.. फिर मेरी ओर पलट कर बोली – सॉरी अंकुश.. मे अपने भाई की तरफ से तुमसे माफी मांगती हूँ..

उसका भाई अपने दोस्तों के साथ वहाँ से चला गया… मेने रागिनी की बात का कोई जबाब नही दिया और बिना कुछ कहे अपने घर चला आया…!

उधर रागिनी का बदला हुआ रबैईया देख कर उसकी फ्रेंड्स आश्चर्य चकित थी, वो आपस में ख़ुसर-पुसर करने लगी…

टीना – अरे यार ! आज सूरज पश्चिम से कैसे निकल आया..

मीना – हां यार ! कल तो ये शेरनी की तरह दहाड़ रही थी… और आज खुड़ने ही उसे अपने भाई से बचा लिया… आख़िर कुछ तो बात हुई है.. चलो पुछ्ते हैं..

वो चारों रागिनी के पास पहुँची… जो मेरे बिना कुछ बोले वहाँ से चले आने की वजह से अपने भाई पर गुस्से से भुन्भुना रही थी…

रखी – हाई रागिनी ! आज तो तू कुछ बदली-2 सी लग रही है…

रागिनी – यू शट-अप…! पहले ये बताओ.. तुम लोगों ने मेरे भाई से क्या कहा..?

रीना – अरे ! तू हमारे ऊपर क्यों भड़क रही है यार ! हमने ऐसा-वैसा कुछ नही कहा…

मीना – तुझे तो पता ही है.. कि हमने तुझे भी कल समझाया था… फिर हम तेरे भाई को क्यों ऐसा-वैसा कुछ कहेंगे..

वो तो पुच्छ रहा था.. कि रागिनी के साथ कल कॉलेज में क्या हुआ… तो हमने उसे सारी बात बता दी…

अब तुम दोनो भाई-बेहन अपने आगे किसी को कुछ समझते हो नही…

टीना – मे फिर कहती हूँ रागिनी… इससे पहले कि अंकुश का पेशियेन्स जबाब दे जाए… तुम दोनो भाई-बेहन सही रास्ते पर आ जाओ… वरना तुम्हारी पूरी फॅमिली के लिए मुशिबत हो सकती है.. आगे तुम्हारी मर्ज़ी…

राखी – वैसे आज तेरा बर्ताव देख कर अच्छा लगा… क्या तेरी कोई बात हुई थी उससे..

रागिनी ने उसकी बात का कोई जबाब नही दिया और वो वहाँ से चली गयी…

इधर जब मे घर पहुँचा.. तो आते ही भाभी ने लपक लिया, और बोली – अच्छा हुआ लल्ला तुम आ गये.. मे अभी सोच ही रही थी कि कैसे और किसके साथ जाउ…

मे – कहाँ जाना है आपको…?

भाभी – अरे ! वो पंडितजी की बहू को कल शाम से ही ना जाने क्या हो गया है..?​
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