Update 24
कल शाम को वो अंधेरे में शौच के लिए गयी थी… वापस आकर बड़ी अजीब-अजीब सी हरकतें कर रही है…
चाची बता रही थी.. कि उसके ऊपर कोई भूत – प्रेत का चक्कर हो गया है…, अब जल्दी से फ्रेश हो जाओ, और मुझे वहाँ ले चलो… देखें तो सही, हुआ क्या है उसे ?..
मे सोच में पड़ गया,…कि यार ! कल जब में उनके यहाँ गया था.. तब तो वो एकदम भली चन्गि थी, तो अब अचानक से ही क्या हुआ…?
खैर चलो देखते हैं, ये भूत ब्याधा होती क्या है…? ये सोचते -2 मे फ्रेश होने चला गया…
ज्ब हम पंडित जी के घर पहुँचे.., उनके चॉक (आँगन) में लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था, औरतें और मर्द बैठे आपस में बतिया रहे थे…
कोई कुछ कह रहा था, तो कोई कुछ बता रहा था…
जितने मुँह उतनी बातें.. सब अपनी अपनी राई देने में लगे थे.., आप बीती या सुनी सुनाई दास्तान एक दूसरे के साथ शेर कर रहे थे…
हां ! सब्जेक्ट एक ही था…भूत प्रेत के चक्कर…
चूँकि हमारा परिवार गाँव के प्रतिष्ठित लोगों में शुमार होता है, .. और अब तो एमएलए के घर से संबंध जुड़ने से और ज़्यादा मान सम्मान मिलने लगा था…
हमें देखते ही पंडितानी ने भाभी का स्वागत सत्कार किया…,
जब भाभी ने उनकी बहू के बारे में पूछा तो वो हमें उस कमरे में ले गयी.. जहाँ वो लेटी हुई थी..
गेट खुलने की आवाज़ सुनते ही उसने अपनी बड़ी – 2 आँखें और ज़्यादा चौड़ी कर के खोल दी, जिसमे आग बरस रही थी…, उसके इस रूप को देखकर एक बार तो मुझे भी डर लगने लगा…
सामने अपनी सास के साथ भाभी और मुझे देखते ही वो झट से उठ कर बैठ गयी… और भारी सी आवाज़ निकालकर गुर्राते हुए बोली…
तू फिर आ गयी… साली हरम्जादि… कुतिया… मे तुझे जान से मार दूँगा… वो अपनी लाल-लाल आँखें दिखाकर, और हाथों के पंजों को फैलाकर अपनी सास के ऊपर झपटी…, मानो वो उसका गला ही दबा देना चाहती हो…
भाभी चीखते हुए बोली – लल्ला जी जल्दी से पकडो इसे.. !
मेने झपटकर आगे से उसके कंधे मजबूती से पकड़ लिए…और उसे फिरसे बिस्तेर पर बिठा दिया,
वो झटके मार-मारकर मेरी पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी…
और हुंकार मारते हुए ना जाने क्या 2 अनप-शनाप बकने लगी… उसकी गर्दन लगातार झटके मार रही थी… इस वजह से उसका आँचल नीचे गिर गया…
सरके बाल चारों ओर बिखर गये, और अब वो किसी हॉरर मूवी की हेरोइन प्रतीत होने लगी थी…
वो आगे को झुक कर अपने सर को आगे पीछे कर के गोल – 2 घूमने लगी…मुँह से गुर्राहट बदस्तूर जारी थी.
उसकी गोल-गोल सुडौल, दूध जैसी गोरी-गोरी चुचियाँ आधी – आधी तक मेरी आँखों के सामने नुमाया हो गयी….
कुछ देर तो मे भी उसकी मस्त कसी हुई जवानी में खो गया… जिससे मेरी पकड़ कुछ ढीली पड़ने लगी…
लेकिन फिर जल्दी ही मेने अपने सर को झटक कर उसे कंट्रोल किया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला –
क्यों कर रही हो ऐसा, क्या मिलेगा तुम्हें अपने घरवालों को इस तरह परेशान कर के… ?
मेरी बात सुनकर, एक पल के लिए उसके हाव- भाव बदले……
मानो, वो मुझसे कुछ कहना चाहती हो… लेकिन दूसरे ही पल वो फिरसे वही सब करने लगी…और घूर-2 कर अपनी सास को खा जाने वाली नज़रों से देखने लगी..
भाभी ने पंडितानी को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया…, उनके बाहर जाने के बाद हम तीन लोग ही रह गये उस कमरे में,
भाभी ने अंदर से कमरे का गेट बंद कर दिया… और उसके पास जाकेर बैठ गयी…
उन्होने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर सहलाया… और बोली – देखो वर्षा….. ये जो तुम कर रही हो, उससे तुम्हारे घर की कितनी बदनामी हो रही है, पता है तुम्हें…?
लोगों का क्या है, उन्हें तो ऐसे तमाशे देखकर और मज़ा आता है, परेशानी तो तुम्हारे अपनों को ही हो रही है ना…
मे जानती हूँ कि तुम्हारे ऊपर कोई भूत-प्रेत का चक्कर नही है…फिर क्यों लोगों का तमाशा बन रही हो…?
भाभी की बात सुन कर वो एक बार के लिए चोंक पड़ी…, और झटके से उसने अपना सर ऊपर किया…
भाभी ने आगे कहा.. चोंको मत…, और बताओ मुझे असल बात क्या है… क्यों कर रही हो ये सब..?
कुछ देर वो यौंही बैठी भाभी को घूरती रही…, मानो उसके मन में कोई अंतर्द्वंद चल रहा हो…, फिर उनके कंधे से लग कर वो फुट – फुट कर रोने लगी, और सुबक्ते हुए बोली …
आप ठीक समझ रही हैं दीदी… लेकिन मे क्या करूँ.. आप खुद ही समझ लीजिए मेरी इस हालत का ज़िम्मेदार कॉन है..?
भाभी उसकी पीठ सहलाते हुए हंस कर बोली – तुझे कल मेरे इस देवर का भूत घुस गया था, है ना..!
उन्होने मेरी तरफ इशारा कर के कहा.., तो उनकी बातें सुनकर उसने अपनी नज़रें झुकाली..
मे भाभी की बात सुनकर चोंक पड़ा…, कुछ कहना ही चाहता था.. कि भाभी ने मुझे चुप रहने का इशारा किया….
फिर वो उससे बोली – तू फिकर मत कर मे सब ठीक कर दूँगी.. बस जैसा मे कहती हूँ, वैसे ही करना… ठीक है..
फिर उन्होने उसकी कमर में चुटकी लेते कुए कहा – अब तू आराम कर, और अपना ये नाटक कल तक और ऐसे ही जारी रखना…..
भाभी की बात सुनकर वो मंद-मंद मुस्कराने लगी, हम दोनो उठ कर बाहर की तरफ चल दिए, वो तिर्छि नज़र मुझ पर डाल कर लेट गयी…
बाहर आकर भाभी ने पंडितनी को अकेले में बुलाया और बोली –
चाची जी, मेरे गाँव में एक भूत भगाने वाला ओझा है.., घर जाकर मे अपने पिताजी को चिट्ठी लिख दूँगी, वो सब संभाल लेंगे, आप बस कल लल्ला जी के साथ वर्षा को उसके पास भेज देना..
चिंता करने की कोई बात नही है.. सब ठीक हो जाएगा…! कल सुबह 10 बजे उसको तैयार करवा देना… ठीक है, मे अब चलती हूँ.
रास्ते में मेने भाभी से पूछा – ये आप वहाँ क्या कह रहीं थीं…? मेरा कॉन्सा भूत है जो घुस गया उसके अंदर…?
भाभी हँसते हुए बोली – चलो घर जाकर शांति से सब कुछ समझाती हूँ तुम्हें..
मे रास्ते भर यही सोच-सोच कर परेशान होता रहा, की आख़िर ऐसा क्या देखा भाभी ने और ये क्यों कहा.. कि मेरा भूत घुस गया है उसके अंदर… आख़िर असल बात क्या है…?
मेरी मनोस्थिति देखकर भाभी मन ही मन मुस्करा रही थी…
घर आकर उन्होने मुझे अपने पास बिठाया और मेरे गाल पर प्यार से सहलकर बोली – हाँ लल्ला ! अब पुछो क्या पुच्छना चाहते हो..?
मे – वही जो आपने वहाँ उससे कहा था.. वो क्या है..?
वो हँसते हुए बोली – तुम्हारे अंदर एक बहुत ही प्यारा सा भूत रहता है, जब तुम उससे कल मिले थे, तो वो भूत उसके अंदर घुस गया..
मे – मेरे अंदर कॉन्सा भूत है.. ? और वो मुझे क्यों नही दिखता..? ये आप कैसी बातें कर रही हो भाभी …?
मुझे तो डर लग रहा है.. प्लीज़ बताइए ना..!
वो हँसते हुए बोली – वही भूत जो थोड़ा – थोड़ा हम सबमें घुस चुका है…तुम्हारे अंदर से… मुझे, रामा को, आशा, को चाची को और शायद अब रेखा को भी .. है ना..!
मे अभी भी नही समझा भाभी… आप सबको कब और कैसे लगा…?
वो – अरे मेरे बुद्धू राजा !.. तुम्हें देख कर तो किसी भी औरत या लड़की को भूत लग ही जाते हैं.. और वो तुम्हारा प्यार पाने को तड़पने लगती है.. समझे कुछ… कि अभी भी नही समझे मेरे अनाड़ी देवर जी…
इतना कह कर भाभी ने मेरे गालों को कच-कचाकर अपने दाँतों से काट लिया और फिर अपनी जीभ और होंठों से सहलाने लगी… जैसे पहले किया करती थी..
मेरे पूरे शरीर में रोमांच की एक लहर सी दौड़ गयी.., मेने झपट्टा मार कर भाभी को पलंग पर गिरा दिया और उनके ऊपर छाता चला गया…
उनके मस्त उभारों को मसल कर, चूत को सहला दिया… वो भी मेरे लंड को पाजामा के ऊपर से ही पकड़ कर मसल्ने लगी…
हम दोनो के हाथ हरकत में आ गये, और इसी तरह एक दूसरे के अंगों के साथ खेलने लगे..
जल्दी ही हमारे कपड़े बदन छोड़कर पलंग से नीचे पड़े थे…
कितनी ही देर तक हम एक दूसरे के बदन से खेलते रहे.. अपने अरमानों को शांत करते रहे…,
कमरे के अंदर वासना का एक तूफान सा आया, और जब वो गुजर गया तो फिरसे हम एक दूसरे की बाहों में पड़े बातें करने लगे..
भाभी मेरे होंठ चूम कर बोली - देखो लल्ला कल तुम वर्षा को मेरे गाँव ले जाने के बहाने कहीं जंगल में अच्छे से उसके साथ मंगल करना.. जिससे उसके शरीर की भूख शांत हो जाए…
वो बेचारी जब से शादी होकर आई है, उसका पति उसके साथ नही रहता है.. अब इस नयी उमर में वो बेचारी कैसे अपने पर काबू रखे..
जब कल उसने तुम्हें देखा.. और शायद तुमने भी उसे प्यार भरी नज़रों से देखा होगा… तो उसकी भावनाएँ भड़क कर बाहर आ गयी..
वो पुरुष का प्यार पाने के लिए तड़प उठी, उसे कोई और रास्ता नही सूझा और उसने ये भूत वाला नाटक कर डाला..
अब तुम्हारा ही लगाया हुआ भूत है तो तुम्हें ही उतारना होगा ना..कह कर भाभी खिल-खिलाकर हँसने लगी…
मेने भाभी को कस कर गले से लगा लिया और बोला – सच में भाभी आप जादूगरनी हो.. झट से उसकी नब्ज़ पकड़ ली आपने…
लेकिन आपको ये पता कैसे लगा.. कि वो ये सब नाटक कर रही है…?
भाभी – तुम्हें याद होगा, .. जब तुम उसे संभालने की कोशिश कर रहे थे, तब एक पल को उसके विचार तुम्हारी आँखों में देख कर बदले थे.. मे तभी समझ गयी.. कि असल चक्कर ये है…
मे – आप सच में बहुत तेज हो भाभी.. साइकोलजी की आपको बहुत नालेज है.. ये कैसे आई आपके अंदर ..?
वो – अपने परिवार को संभालते-2 अपने आप ही आ गयी.. बस…! अब तुम थोड़ा अपना कॉलेज का काम वाम कर्लो.. मे शाम के कामों को देखती हूँ..
कल सुबह ही उसको लेकर जाना है तुम्हें उसके घर तक मे भी तुम्हारे साथ चलूंगी.. जिससे कोई तुमसे उल्टे सीधे सवाल ना करे…..!
ये कहकर और अपने कपड़े पहनकर भाभी, किचन की तरफ चली गयी, और मे अपने कमरे में आकर कॉलेज का काम करने बैठ गया…..!
दूसरे दिन प्लान के मुतविक में वर्षा को लेकर चल दिया… मेरी मंज़िल वो झील थी जहाँ मेने रामा दीदी की सील तोड़ी थी…
उस हसीन पलों के याद आते ही, मेरे लंड में सुरसुरी होने लगी,
गाँव से निकल कर कुछ आगे जाते ही वर्षा भौजी मेरी पीठ से किसी जोंक की तरह चिपक गयी…
मेने कहा – भौजी ज़रा कंट्रोल करो… वरना ये मेरी बुलेट रानी नाराज़ हो गयी तो दोनो ही किसी झड़ी में पड़े मिलेंगे लोगों को…
वो – देवर जी मे आपको कैसे बताऊ कि, आज मे कितनी खुश हूँ.. जबसे आपको देखा है.. मेरे दिन का चैन, रातों की नींद हराम हो गयी थी..
मेने कहा – भौजी ! आज तो मे आपको खुश कर दूँगा… लेकिन कल को क्या करेंगी..?
वो हँसते हुए बोली … कल फिरसे भूत घुसा लूँगी…
मेने कहा - मे मज़ाक नही कर रहा भौजी… बताइए क्या करेंगी…?
वो – कभी-2 तो मौका दे ही सकते हो ना आप…
मे – लेकिन कब तक…?
वो – आगे की बाद में देखेंगे.. अभी से अपना मूड खराब क्यों करें… वैसे हम जा कहाँ रहे हैं..?
मेने कहा – वो आप मुझ पर छोड़ दीजिए… आज मे आपको जन्नत की सैर कराने ले जा रहा हूँ…
मेरी बात सुनकर उसने अपने कबूतर मेरी पीठ में गढ़ा दिए, और हाथ आगे कर के जीन्स के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ कर दबा दिया…
बातें करते -2 कब हम वहाँ पहुँच गये पता ही नही चला.. ठंडी का मौसम था.. तो लोग ना के बराबर ही थे..
क्योंकि झील में नहाने की हिम्मत तो कोई कर नही सकता था..
वहाँ की प्रकरातिक सुंदरता देख कर वर्षा भौजी खुश हो गयी..
मेने अपनी बुलेट रानी, एक पेड़ के पास खड़ी करदी, और घस्स के हरे-भरे मैदान में घुस गये…
वो मुझसे से चिपक कर चल रही थी, जिससे उसके कबूतर मेरे बाजू से सट गये..
मैदान पार कर के हम घूमते-घामते.. हम जंगल के बीच एकांत में पहुँच गये…
एकांत पाते ही वो मुझसे अमरबेल की तरह लिपट गयी और बेतहाशा मेरे चेहरे को चूमने लगी….
उसका उतावला पन देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी… और मे भी उसका साथ देने लगा..
उसकी सारी खोल कर मेने नीचे गिरादी और उसके कुल्हों को कस कर दबाते हुए उसके होंठों को चूसने लगा…
उसने भी मेरे होंठों को अपने होंठों में भर लिया, हम एकदुसरे से मानो कॅंप्टेशन करने लगे की देखें कॉन किसके होंठ ज़्यादा चूस पाता है..
फिर एक दूसरे की जीभ आपस में टकराने लगी.. बड़ा मज़ा आरहा था हमें इस खेल में..
जंगल के शांत वातावरण में पक्षियों के कलरव की ध्वनि के बीच हम एक दूसरे में समा जाने की जी तोड़ कोशिश में लगे थे..
उसने मेरे जीन्स की ज़िप खोल दी और उसको नीचे खिसका कर मेरे लंड की कठोरता को अपनी मुट्ठी में लेकर परखने लगी…
अब उसे अपने अंदर लेने की उसकी इच्छा और ज़्यादा प्रबल हो उठी थी…
मेने उसके ब्लाउज के हुक्स खोल दिए और उसकी ब्रा में कसे हुए उसके 33” के पुष्ट उरोजो को मसल्ने लगा….
अहह………देवेरजीीइई…. मेरे रजाआअ… मस्लो इनको… बहुत तडपाते हैं.. ये… मसलवाने को…कोई नही है.. इनकी खबर लेने… वाला…..उफफफफफफफ्फ़…हइईई…..रामम्म….और ज़ोर से मस्लो…..इन्हें…
उसकी ये शायद फेंटसी रही होगी… सेक्स के समय बड़बड़ाने की… जिसे आज वो खुले वातावरण में पूरा कर लेना चाहती थी…
उसने मेरी टीशर्ट को भी निकाल कर एक तरफ फेंक दिया… मेरी पुष्ट छाती देखकर वो मंत्रमुग्ध हो गयी… और अपनी जीभ से उसे चाटने लगी…
कभी मेरे सीने के बालों को सहलाती… कभी उन्हें अपनी मुट्ठी में कसकर खींच देती…
फिर उसने मेरे छोटे – 2 चुचकों को चाट लिया…. मेरे मुँह से सीईईईईईईईईई…..आहह.. भौजिइइई…. बहुत गरम हो तुम….
हां ! मेरे रजाअ… अह्ह्ह्ह…मेरी गर्मी निकाल दो प्लीज़… मे बहुत प्यासी हूँ...वो सिसकते हुए बोली
चिंता मत कर मेरी सोनचिरैया… आज तेरी सारी गर्मी निकाल दूँगा…
फिर मेने उसके पेटिकोट को भी उससे अलग कर दिया… ब्रा- पेंटी में वो बहुत सुंदर लग रही थी… 34-26-34 का उसका गोरा बदन मेरी बाहों में किसी मछली की तरह मचल रहा था..
वो मेरे लंड को मसले जा रही थी… मेने उसकी पीठ सहलाते हुए.. उसकी ब्रा के हुक खोल दिए….
अह्ह्ह्ह… क्या मस्त गोल-गोल इलाहाबादी अमरूदो जैसी उसकी गोरी-2 चुचियाँ जिस पर किस्मिस के दाने जैसे उसके कड़क निपल बहुत ही मन मोहक लग रहे थे…
लगता है.. पंडित के लौन्डे ने जितना वर्क-आउट करना चाहिए था.. उतना भी नही किया था शायद… अभी भी वो किसी कमसिन कली जैसी ही लग रही थी…
मे – अहह…वर्षा रानी तुम्हारी चुचिया तो अभी भी कुँवारी कली जैसी ही हैं…
वो – मे पूरी की पूरी ही कुँवारी हूँ… मेरे राजाजी…
मे – क्या..? रवि भाई ने अभी तक तुम्हें चोदा नही…?
वो – उसकी उंगली जैसी लुल्ली से क्या चुदाई होगी.. उसकी आवाज़ उत्तेजना से काँप रही थी…
मेने उसकी एक चुचि को अपने पूरे मुँह में भर लिया और दम लगा कर सक करने लगा…
वो मस्ती से भर उठी… और अपने दोनो हाथों से मेरे सर को दबाती हुई… पीछे को लहरा गयी….इसस्शह….हइई... चूसो मेरे रजाआ…. खा जाओ इन्हें.. हइईए…..मैय्ाआआअ…….कितनाअ…मज़ाअ…हाईईइ…इनमें…उफफफ्फ़….माआ..
वो बाबली सी हो गयी थी… मे भी आज उस मस्तानी लौंडिया को पूरा मज़ा देना चाहता था…
दूसरे अमरूद को अपनी मुट्ठी में कस लिया और मसलने लगा… उसकी टाँगें काँपने लगी थी…उसने मेरा एक हाथ अपनी पीठ पर रख दिया…
एक टाँग मेरी कमर से लपेट कर अपनी गीली चूत को मेरे लंड के ऊपर रगड़ने लगी…
मेने उसके कूल्हे पकड़कर उसे उठा लिया… और वो मेरी गोद में आकर किसी बच्चे की तरह अपनी दोनो टाँगों को मेरी गान्ड पर लपेटकर बैठ गयी…
और फिर अपनी कमर चला कर, रस से भीगी हुई चूत को मेरे रोड जैसे शख्त लंड पर रगड़ने लगी…
चूस-चुस्कर मेने उसकी चुचियों को लाल कर दिया.. कयि जगह काट भी लिया…
निपल तो सुर्ख हो चुके थे उसके… लेकिन मस्ती से भरी वो बाला मेरे इस सेक्षुयल टॉर्चर को भी झेल गयी…
अब हम दोनो को ही संभालना मुश्किल हो रहा था.. मेने उसे नीचे उतरने का इशारा किया… और फिर उसकी पेंटी को खींच दिया…
हइई…मे मर जन्वान्न्न….ह…क्या गोरी-चिटी.. चिकनी चूत उसकी.. जो रस से सराबोर होकर दिन के उजाले में और चमक रही थी….
मे उसकी टाँगों के बीच बैठ कर उसकी मुनिया को सहलाता रहा, वो मेरे बालों में उंगलियाँ डाल कर फेरने लगी..
फिर मेने उसकी मुनिया के होंठों के ऊपर लगे उसकी रस की बूँदों को अपनी जीभ से चाट लिया…..
उफफफफफफफफ्फ़……माआआआ…..सीईईईईईईईईय्ाआआआहह……और चाटो मेरे दिलवर..
मेने उसकी रिक्वेस्ट को ठुकराया नही और दो-तीन बार और चाट लिया… वो मस्ती से झूम उठी… उसने मेरे सर को अपनी प्यारी रस-गगर के मुँह पर दबा दिया…
मेने अपना सर उठा कर उसकी तरफ देखा तो वो अपना सर पीछे की तरफ कर के मस्ती से आसमान को निहार रही थी…
मेने उसे आवाज़ दी… भौजी… ! तो उसने मेरी ओर देखा ..हुम्म्म.. बस इतना ही बोली वो..
मे – तुम्हारी रसीली मुनिया का रस चूस लूँ.. ?
वो – हइईए….पुछ्ते क्यों हो जानू… ये सब कुछ तुम्हारा है.. अब.
मेने उसकी तरफ मुस्करा कर उसकी मुनिया के होंठ खोल लिए और अपनी जीभ से उसके अन्द्रुनि गुलाबी हिस्से को चाट लिया…
मस्ती में उसकी आँखे बंद हो गयी, अपनी एक टाँग उठाकर उसने मेरे कंधे पर टिका ली, और मेरे सर के बालों में अपनी उंगलियाँ फँसाए, वो किसी दूसरी दुनिया की सैर पर निकल पड़ी…
अपनी जीभ की नोक को अंदर तक पेल कर, मे उसकी चूत को किसी कुत्ते की तरह चाटने लगा.. फिर उसके भग्नासा (क्लिट) को अपने होंठों में दबा कर अपनी एक उंगली उसकी चूत में डाल दी…
वो दर्द से कराह उठी… आह.. इसका मतलब इसकी चूत उंगली लायक ही है अभी..
मेने उसके क्लिट को चूस्ते हुए धीरे-2 अपनी उंगली को अंदर-बाहर कर के उसे चोदने लगा…
उसकी मुनिया लगातार रस बहा रही थी.. जिसे में अपनी जीभ से चाटता जा रहा था…
आख़िरकार उसकी रस से भरी गगर छलक पड़ी.., उसने मेरे मुँह को बुरी तरह से अपनी रस गगर के मुँह पर दबा दिया…
वो अपने पंजों पर खड़ी होकर किल्कारियाँ मारती हुई झड़ने लगी…..!
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मेने खड़े होकर उसको चूमते हुए पूछा – मेरी सेवा पसंद आई.. भौजी…?
वो – वादा करो देवर्जी… ऐसी सेवा मुझे आगे भी मिलती रहेगी… जब आपकी इच्छा हो तब.. मे आपसे कोई ज़ोर ज़बरदस्ती से नही कहूँगी… बस जब आपका मन करे..
मे कोशिश करूँगा, वादा नही कर सकता…, लेकिन अभी तो पूरी पिक्चर वाकी है मेरी जान.. उसे तो देखलो…
वो मेरे होंठों को चूमकर बोली – आपके ट्रेलर से ही पता लग रहा है कि.., पिक्चर सूपर हिट होगी..
मे – तो फिर अब मेरे बबुआ की भी थोड़ी सेवा हो जाए… ये कह कर मेने उसके कंधों पर दबाब डाल कर उसे बिठा दिया..,
अपने घुटनों पर बैठ उसने मेरा अंडरवेर नीचे कर दिया.. जिसे मेने अपने पैर से दूर फेंक दिया…
सबसे पहले उसने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ा और बोली – आहह…. ये इतना गरम क्यों है देवर जी…?
सामने इतना गरम कुंड जो है… मेने हँसते हुए उसकी बात का जबाब दिया तो वो उसे अपने गाल से रगड़ते हुए बोली
कितना लंबा तगड़ा हथियार है तुम्हारा, मेरी छ्होटी सी चूत की तो धज्जियाँ उड़ा देगा ये..….!
मे – ऐसा नही है भौजी, देखना कितना मज़ा देता है ये, आज के बाद तुम्हारी गुलाबो इसको ही लेने को तड़पति रहेगी..…
वो हूंम्म… कर के उसको उलट-पलट कर देखने लगी.. फिर उसने एक बार उसे चूम लिया…उउउम्म्म्मम…पुकछ…कितना प्यारा है ये…
हाथ से आगे पीछे करते हुए उसे एक बूँद उसके पी होल पर मोती जैसी चमकती नज़र आई, जिसे उसने अपनी जीभ की नोक पर ले लिया और चखने लगी…
हूंम्म्म… टेस्टी है… कह कर उसने मेरे लाल सेब जैसे सुपाडे को मुँह में भर लिया….और चूसने लगी…!
मेने उसके सर पर हाथ रख लिया और उसे सहलाने लगा… वो धीरे-2 उसे अंदर और अंदर लेती जा रही थी…
सीईईई…अह्ह्ह्ह… राणिि…ज़रा मेरे सिपाहियों की भी सेवा करती जाओ साथ में.. मेरी बात पर उसने सवालिया नज़र से मेरी तरफ सर उठा कर देखा..
मेने कहा… नीचे मेरे टट्टों को भी सहलाओ साथ में और चूसो भी… तो वो वैसा ही करने लगी… अब मुझे और ज़्यादा मज़ा आने लगा…
कुछ देर की चुसाई और सेवा भाव से मूसल राज आती प्रशन्न हो गये… और एकदम लट्ठ की तरह शख्त होकर ठुमके लगाने लगे…
मेने उसे वहीं घास पर लिटा दिया… और उसकी टाँगें मोड़ कर उसकी मुनिया को सहलाया, उसका हौसला बढ़ाया.. और फिर उसे चूम कर अपना सुपाडा उसकी गरम चूत के मुँह पर रख दिया…
चाची बता रही थी.. कि उसके ऊपर कोई भूत – प्रेत का चक्कर हो गया है…, अब जल्दी से फ्रेश हो जाओ, और मुझे वहाँ ले चलो… देखें तो सही, हुआ क्या है उसे ?..
मे सोच में पड़ गया,…कि यार ! कल जब में उनके यहाँ गया था.. तब तो वो एकदम भली चन्गि थी, तो अब अचानक से ही क्या हुआ…?
खैर चलो देखते हैं, ये भूत ब्याधा होती क्या है…? ये सोचते -2 मे फ्रेश होने चला गया…
ज्ब हम पंडित जी के घर पहुँचे.., उनके चॉक (आँगन) में लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था, औरतें और मर्द बैठे आपस में बतिया रहे थे…
कोई कुछ कह रहा था, तो कोई कुछ बता रहा था…
जितने मुँह उतनी बातें.. सब अपनी अपनी राई देने में लगे थे.., आप बीती या सुनी सुनाई दास्तान एक दूसरे के साथ शेर कर रहे थे…
हां ! सब्जेक्ट एक ही था…भूत प्रेत के चक्कर…
चूँकि हमारा परिवार गाँव के प्रतिष्ठित लोगों में शुमार होता है, .. और अब तो एमएलए के घर से संबंध जुड़ने से और ज़्यादा मान सम्मान मिलने लगा था…
हमें देखते ही पंडितानी ने भाभी का स्वागत सत्कार किया…,
जब भाभी ने उनकी बहू के बारे में पूछा तो वो हमें उस कमरे में ले गयी.. जहाँ वो लेटी हुई थी..
गेट खुलने की आवाज़ सुनते ही उसने अपनी बड़ी – 2 आँखें और ज़्यादा चौड़ी कर के खोल दी, जिसमे आग बरस रही थी…, उसके इस रूप को देखकर एक बार तो मुझे भी डर लगने लगा…
सामने अपनी सास के साथ भाभी और मुझे देखते ही वो झट से उठ कर बैठ गयी… और भारी सी आवाज़ निकालकर गुर्राते हुए बोली…
तू फिर आ गयी… साली हरम्जादि… कुतिया… मे तुझे जान से मार दूँगा… वो अपनी लाल-लाल आँखें दिखाकर, और हाथों के पंजों को फैलाकर अपनी सास के ऊपर झपटी…, मानो वो उसका गला ही दबा देना चाहती हो…
भाभी चीखते हुए बोली – लल्ला जी जल्दी से पकडो इसे.. !
मेने झपटकर आगे से उसके कंधे मजबूती से पकड़ लिए…और उसे फिरसे बिस्तेर पर बिठा दिया,
वो झटके मार-मारकर मेरी पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी…
और हुंकार मारते हुए ना जाने क्या 2 अनप-शनाप बकने लगी… उसकी गर्दन लगातार झटके मार रही थी… इस वजह से उसका आँचल नीचे गिर गया…
सरके बाल चारों ओर बिखर गये, और अब वो किसी हॉरर मूवी की हेरोइन प्रतीत होने लगी थी…
वो आगे को झुक कर अपने सर को आगे पीछे कर के गोल – 2 घूमने लगी…मुँह से गुर्राहट बदस्तूर जारी थी.
उसकी गोल-गोल सुडौल, दूध जैसी गोरी-गोरी चुचियाँ आधी – आधी तक मेरी आँखों के सामने नुमाया हो गयी….
कुछ देर तो मे भी उसकी मस्त कसी हुई जवानी में खो गया… जिससे मेरी पकड़ कुछ ढीली पड़ने लगी…
लेकिन फिर जल्दी ही मेने अपने सर को झटक कर उसे कंट्रोल किया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला –
क्यों कर रही हो ऐसा, क्या मिलेगा तुम्हें अपने घरवालों को इस तरह परेशान कर के… ?
मेरी बात सुनकर, एक पल के लिए उसके हाव- भाव बदले……
मानो, वो मुझसे कुछ कहना चाहती हो… लेकिन दूसरे ही पल वो फिरसे वही सब करने लगी…और घूर-2 कर अपनी सास को खा जाने वाली नज़रों से देखने लगी..
भाभी ने पंडितानी को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया…, उनके बाहर जाने के बाद हम तीन लोग ही रह गये उस कमरे में,
भाभी ने अंदर से कमरे का गेट बंद कर दिया… और उसके पास जाकेर बैठ गयी…
उन्होने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर सहलाया… और बोली – देखो वर्षा….. ये जो तुम कर रही हो, उससे तुम्हारे घर की कितनी बदनामी हो रही है, पता है तुम्हें…?
लोगों का क्या है, उन्हें तो ऐसे तमाशे देखकर और मज़ा आता है, परेशानी तो तुम्हारे अपनों को ही हो रही है ना…
मे जानती हूँ कि तुम्हारे ऊपर कोई भूत-प्रेत का चक्कर नही है…फिर क्यों लोगों का तमाशा बन रही हो…?
भाभी की बात सुन कर वो एक बार के लिए चोंक पड़ी…, और झटके से उसने अपना सर ऊपर किया…
भाभी ने आगे कहा.. चोंको मत…, और बताओ मुझे असल बात क्या है… क्यों कर रही हो ये सब..?
कुछ देर वो यौंही बैठी भाभी को घूरती रही…, मानो उसके मन में कोई अंतर्द्वंद चल रहा हो…, फिर उनके कंधे से लग कर वो फुट – फुट कर रोने लगी, और सुबक्ते हुए बोली …
आप ठीक समझ रही हैं दीदी… लेकिन मे क्या करूँ.. आप खुद ही समझ लीजिए मेरी इस हालत का ज़िम्मेदार कॉन है..?
भाभी उसकी पीठ सहलाते हुए हंस कर बोली – तुझे कल मेरे इस देवर का भूत घुस गया था, है ना..!
उन्होने मेरी तरफ इशारा कर के कहा.., तो उनकी बातें सुनकर उसने अपनी नज़रें झुकाली..
मे भाभी की बात सुनकर चोंक पड़ा…, कुछ कहना ही चाहता था.. कि भाभी ने मुझे चुप रहने का इशारा किया….
फिर वो उससे बोली – तू फिकर मत कर मे सब ठीक कर दूँगी.. बस जैसा मे कहती हूँ, वैसे ही करना… ठीक है..
फिर उन्होने उसकी कमर में चुटकी लेते कुए कहा – अब तू आराम कर, और अपना ये नाटक कल तक और ऐसे ही जारी रखना…..
भाभी की बात सुनकर वो मंद-मंद मुस्कराने लगी, हम दोनो उठ कर बाहर की तरफ चल दिए, वो तिर्छि नज़र मुझ पर डाल कर लेट गयी…
बाहर आकर भाभी ने पंडितनी को अकेले में बुलाया और बोली –
चाची जी, मेरे गाँव में एक भूत भगाने वाला ओझा है.., घर जाकर मे अपने पिताजी को चिट्ठी लिख दूँगी, वो सब संभाल लेंगे, आप बस कल लल्ला जी के साथ वर्षा को उसके पास भेज देना..
चिंता करने की कोई बात नही है.. सब ठीक हो जाएगा…! कल सुबह 10 बजे उसको तैयार करवा देना… ठीक है, मे अब चलती हूँ.
रास्ते में मेने भाभी से पूछा – ये आप वहाँ क्या कह रहीं थीं…? मेरा कॉन्सा भूत है जो घुस गया उसके अंदर…?
भाभी हँसते हुए बोली – चलो घर जाकर शांति से सब कुछ समझाती हूँ तुम्हें..
मे रास्ते भर यही सोच-सोच कर परेशान होता रहा, की आख़िर ऐसा क्या देखा भाभी ने और ये क्यों कहा.. कि मेरा भूत घुस गया है उसके अंदर… आख़िर असल बात क्या है…?
मेरी मनोस्थिति देखकर भाभी मन ही मन मुस्करा रही थी…
घर आकर उन्होने मुझे अपने पास बिठाया और मेरे गाल पर प्यार से सहलकर बोली – हाँ लल्ला ! अब पुछो क्या पुच्छना चाहते हो..?
मे – वही जो आपने वहाँ उससे कहा था.. वो क्या है..?
वो हँसते हुए बोली – तुम्हारे अंदर एक बहुत ही प्यारा सा भूत रहता है, जब तुम उससे कल मिले थे, तो वो भूत उसके अंदर घुस गया..
मे – मेरे अंदर कॉन्सा भूत है.. ? और वो मुझे क्यों नही दिखता..? ये आप कैसी बातें कर रही हो भाभी …?
मुझे तो डर लग रहा है.. प्लीज़ बताइए ना..!
वो हँसते हुए बोली – वही भूत जो थोड़ा – थोड़ा हम सबमें घुस चुका है…तुम्हारे अंदर से… मुझे, रामा को, आशा, को चाची को और शायद अब रेखा को भी .. है ना..!
मे अभी भी नही समझा भाभी… आप सबको कब और कैसे लगा…?
वो – अरे मेरे बुद्धू राजा !.. तुम्हें देख कर तो किसी भी औरत या लड़की को भूत लग ही जाते हैं.. और वो तुम्हारा प्यार पाने को तड़पने लगती है.. समझे कुछ… कि अभी भी नही समझे मेरे अनाड़ी देवर जी…
इतना कह कर भाभी ने मेरे गालों को कच-कचाकर अपने दाँतों से काट लिया और फिर अपनी जीभ और होंठों से सहलाने लगी… जैसे पहले किया करती थी..
मेरे पूरे शरीर में रोमांच की एक लहर सी दौड़ गयी.., मेने झपट्टा मार कर भाभी को पलंग पर गिरा दिया और उनके ऊपर छाता चला गया…
उनके मस्त उभारों को मसल कर, चूत को सहला दिया… वो भी मेरे लंड को पाजामा के ऊपर से ही पकड़ कर मसल्ने लगी…
हम दोनो के हाथ हरकत में आ गये, और इसी तरह एक दूसरे के अंगों के साथ खेलने लगे..
जल्दी ही हमारे कपड़े बदन छोड़कर पलंग से नीचे पड़े थे…
कितनी ही देर तक हम एक दूसरे के बदन से खेलते रहे.. अपने अरमानों को शांत करते रहे…,
कमरे के अंदर वासना का एक तूफान सा आया, और जब वो गुजर गया तो फिरसे हम एक दूसरे की बाहों में पड़े बातें करने लगे..
भाभी मेरे होंठ चूम कर बोली - देखो लल्ला कल तुम वर्षा को मेरे गाँव ले जाने के बहाने कहीं जंगल में अच्छे से उसके साथ मंगल करना.. जिससे उसके शरीर की भूख शांत हो जाए…
वो बेचारी जब से शादी होकर आई है, उसका पति उसके साथ नही रहता है.. अब इस नयी उमर में वो बेचारी कैसे अपने पर काबू रखे..
जब कल उसने तुम्हें देखा.. और शायद तुमने भी उसे प्यार भरी नज़रों से देखा होगा… तो उसकी भावनाएँ भड़क कर बाहर आ गयी..
वो पुरुष का प्यार पाने के लिए तड़प उठी, उसे कोई और रास्ता नही सूझा और उसने ये भूत वाला नाटक कर डाला..
अब तुम्हारा ही लगाया हुआ भूत है तो तुम्हें ही उतारना होगा ना..कह कर भाभी खिल-खिलाकर हँसने लगी…
मेने भाभी को कस कर गले से लगा लिया और बोला – सच में भाभी आप जादूगरनी हो.. झट से उसकी नब्ज़ पकड़ ली आपने…
लेकिन आपको ये पता कैसे लगा.. कि वो ये सब नाटक कर रही है…?
भाभी – तुम्हें याद होगा, .. जब तुम उसे संभालने की कोशिश कर रहे थे, तब एक पल को उसके विचार तुम्हारी आँखों में देख कर बदले थे.. मे तभी समझ गयी.. कि असल चक्कर ये है…
मे – आप सच में बहुत तेज हो भाभी.. साइकोलजी की आपको बहुत नालेज है.. ये कैसे आई आपके अंदर ..?
वो – अपने परिवार को संभालते-2 अपने आप ही आ गयी.. बस…! अब तुम थोड़ा अपना कॉलेज का काम वाम कर्लो.. मे शाम के कामों को देखती हूँ..
कल सुबह ही उसको लेकर जाना है तुम्हें उसके घर तक मे भी तुम्हारे साथ चलूंगी.. जिससे कोई तुमसे उल्टे सीधे सवाल ना करे…..!
ये कहकर और अपने कपड़े पहनकर भाभी, किचन की तरफ चली गयी, और मे अपने कमरे में आकर कॉलेज का काम करने बैठ गया…..!
दूसरे दिन प्लान के मुतविक में वर्षा को लेकर चल दिया… मेरी मंज़िल वो झील थी जहाँ मेने रामा दीदी की सील तोड़ी थी…
उस हसीन पलों के याद आते ही, मेरे लंड में सुरसुरी होने लगी,
गाँव से निकल कर कुछ आगे जाते ही वर्षा भौजी मेरी पीठ से किसी जोंक की तरह चिपक गयी…
मेने कहा – भौजी ज़रा कंट्रोल करो… वरना ये मेरी बुलेट रानी नाराज़ हो गयी तो दोनो ही किसी झड़ी में पड़े मिलेंगे लोगों को…
वो – देवर जी मे आपको कैसे बताऊ कि, आज मे कितनी खुश हूँ.. जबसे आपको देखा है.. मेरे दिन का चैन, रातों की नींद हराम हो गयी थी..
मेने कहा – भौजी ! आज तो मे आपको खुश कर दूँगा… लेकिन कल को क्या करेंगी..?
वो हँसते हुए बोली … कल फिरसे भूत घुसा लूँगी…
मेने कहा - मे मज़ाक नही कर रहा भौजी… बताइए क्या करेंगी…?
वो – कभी-2 तो मौका दे ही सकते हो ना आप…
मे – लेकिन कब तक…?
वो – आगे की बाद में देखेंगे.. अभी से अपना मूड खराब क्यों करें… वैसे हम जा कहाँ रहे हैं..?
मेने कहा – वो आप मुझ पर छोड़ दीजिए… आज मे आपको जन्नत की सैर कराने ले जा रहा हूँ…
मेरी बात सुनकर उसने अपने कबूतर मेरी पीठ में गढ़ा दिए, और हाथ आगे कर के जीन्स के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ कर दबा दिया…
बातें करते -2 कब हम वहाँ पहुँच गये पता ही नही चला.. ठंडी का मौसम था.. तो लोग ना के बराबर ही थे..
क्योंकि झील में नहाने की हिम्मत तो कोई कर नही सकता था..
वहाँ की प्रकरातिक सुंदरता देख कर वर्षा भौजी खुश हो गयी..
मेने अपनी बुलेट रानी, एक पेड़ के पास खड़ी करदी, और घस्स के हरे-भरे मैदान में घुस गये…
वो मुझसे से चिपक कर चल रही थी, जिससे उसके कबूतर मेरे बाजू से सट गये..
मैदान पार कर के हम घूमते-घामते.. हम जंगल के बीच एकांत में पहुँच गये…
एकांत पाते ही वो मुझसे अमरबेल की तरह लिपट गयी और बेतहाशा मेरे चेहरे को चूमने लगी….
उसका उतावला पन देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी… और मे भी उसका साथ देने लगा..
उसकी सारी खोल कर मेने नीचे गिरादी और उसके कुल्हों को कस कर दबाते हुए उसके होंठों को चूसने लगा…
उसने भी मेरे होंठों को अपने होंठों में भर लिया, हम एकदुसरे से मानो कॅंप्टेशन करने लगे की देखें कॉन किसके होंठ ज़्यादा चूस पाता है..
फिर एक दूसरे की जीभ आपस में टकराने लगी.. बड़ा मज़ा आरहा था हमें इस खेल में..
जंगल के शांत वातावरण में पक्षियों के कलरव की ध्वनि के बीच हम एक दूसरे में समा जाने की जी तोड़ कोशिश में लगे थे..
उसने मेरे जीन्स की ज़िप खोल दी और उसको नीचे खिसका कर मेरे लंड की कठोरता को अपनी मुट्ठी में लेकर परखने लगी…
अब उसे अपने अंदर लेने की उसकी इच्छा और ज़्यादा प्रबल हो उठी थी…
मेने उसके ब्लाउज के हुक्स खोल दिए और उसकी ब्रा में कसे हुए उसके 33” के पुष्ट उरोजो को मसल्ने लगा….
अहह………देवेरजीीइई…. मेरे रजाआअ… मस्लो इनको… बहुत तडपाते हैं.. ये… मसलवाने को…कोई नही है.. इनकी खबर लेने… वाला…..उफफफफफफफ्फ़…हइईई…..रामम्म….और ज़ोर से मस्लो…..इन्हें…
उसकी ये शायद फेंटसी रही होगी… सेक्स के समय बड़बड़ाने की… जिसे आज वो खुले वातावरण में पूरा कर लेना चाहती थी…
उसने मेरी टीशर्ट को भी निकाल कर एक तरफ फेंक दिया… मेरी पुष्ट छाती देखकर वो मंत्रमुग्ध हो गयी… और अपनी जीभ से उसे चाटने लगी…
कभी मेरे सीने के बालों को सहलाती… कभी उन्हें अपनी मुट्ठी में कसकर खींच देती…
फिर उसने मेरे छोटे – 2 चुचकों को चाट लिया…. मेरे मुँह से सीईईईईईईईईई…..आहह.. भौजिइइई…. बहुत गरम हो तुम….
हां ! मेरे रजाअ… अह्ह्ह्ह…मेरी गर्मी निकाल दो प्लीज़… मे बहुत प्यासी हूँ...वो सिसकते हुए बोली
चिंता मत कर मेरी सोनचिरैया… आज तेरी सारी गर्मी निकाल दूँगा…
फिर मेने उसके पेटिकोट को भी उससे अलग कर दिया… ब्रा- पेंटी में वो बहुत सुंदर लग रही थी… 34-26-34 का उसका गोरा बदन मेरी बाहों में किसी मछली की तरह मचल रहा था..
वो मेरे लंड को मसले जा रही थी… मेने उसकी पीठ सहलाते हुए.. उसकी ब्रा के हुक खोल दिए….
अह्ह्ह्ह… क्या मस्त गोल-गोल इलाहाबादी अमरूदो जैसी उसकी गोरी-2 चुचियाँ जिस पर किस्मिस के दाने जैसे उसके कड़क निपल बहुत ही मन मोहक लग रहे थे…
लगता है.. पंडित के लौन्डे ने जितना वर्क-आउट करना चाहिए था.. उतना भी नही किया था शायद… अभी भी वो किसी कमसिन कली जैसी ही लग रही थी…
मे – अहह…वर्षा रानी तुम्हारी चुचिया तो अभी भी कुँवारी कली जैसी ही हैं…
वो – मे पूरी की पूरी ही कुँवारी हूँ… मेरे राजाजी…
मे – क्या..? रवि भाई ने अभी तक तुम्हें चोदा नही…?
वो – उसकी उंगली जैसी लुल्ली से क्या चुदाई होगी.. उसकी आवाज़ उत्तेजना से काँप रही थी…
मेने उसकी एक चुचि को अपने पूरे मुँह में भर लिया और दम लगा कर सक करने लगा…
वो मस्ती से भर उठी… और अपने दोनो हाथों से मेरे सर को दबाती हुई… पीछे को लहरा गयी….इसस्शह….हइई... चूसो मेरे रजाआ…. खा जाओ इन्हें.. हइईए…..मैय्ाआआअ…….कितनाअ…मज़ाअ…हाईईइ…इनमें…उफफफ्फ़….माआ..
वो बाबली सी हो गयी थी… मे भी आज उस मस्तानी लौंडिया को पूरा मज़ा देना चाहता था…
दूसरे अमरूद को अपनी मुट्ठी में कस लिया और मसलने लगा… उसकी टाँगें काँपने लगी थी…उसने मेरा एक हाथ अपनी पीठ पर रख दिया…
एक टाँग मेरी कमर से लपेट कर अपनी गीली चूत को मेरे लंड के ऊपर रगड़ने लगी…
मेने उसके कूल्हे पकड़कर उसे उठा लिया… और वो मेरी गोद में आकर किसी बच्चे की तरह अपनी दोनो टाँगों को मेरी गान्ड पर लपेटकर बैठ गयी…
और फिर अपनी कमर चला कर, रस से भीगी हुई चूत को मेरे रोड जैसे शख्त लंड पर रगड़ने लगी…
चूस-चुस्कर मेने उसकी चुचियों को लाल कर दिया.. कयि जगह काट भी लिया…
निपल तो सुर्ख हो चुके थे उसके… लेकिन मस्ती से भरी वो बाला मेरे इस सेक्षुयल टॉर्चर को भी झेल गयी…
अब हम दोनो को ही संभालना मुश्किल हो रहा था.. मेने उसे नीचे उतरने का इशारा किया… और फिर उसकी पेंटी को खींच दिया…
हइई…मे मर जन्वान्न्न….ह…क्या गोरी-चिटी.. चिकनी चूत उसकी.. जो रस से सराबोर होकर दिन के उजाले में और चमक रही थी….
मे उसकी टाँगों के बीच बैठ कर उसकी मुनिया को सहलाता रहा, वो मेरे बालों में उंगलियाँ डाल कर फेरने लगी..
फिर मेने उसकी मुनिया के होंठों के ऊपर लगे उसकी रस की बूँदों को अपनी जीभ से चाट लिया…..
उफफफफफफफफ्फ़……माआआआ…..सीईईईईईईईईय्ाआआआहह……और चाटो मेरे दिलवर..
मेने उसकी रिक्वेस्ट को ठुकराया नही और दो-तीन बार और चाट लिया… वो मस्ती से झूम उठी… उसने मेरे सर को अपनी प्यारी रस-गगर के मुँह पर दबा दिया…
मेने अपना सर उठा कर उसकी तरफ देखा तो वो अपना सर पीछे की तरफ कर के मस्ती से आसमान को निहार रही थी…
मेने उसे आवाज़ दी… भौजी… ! तो उसने मेरी ओर देखा ..हुम्म्म.. बस इतना ही बोली वो..
मे – तुम्हारी रसीली मुनिया का रस चूस लूँ.. ?
वो – हइईए….पुछ्ते क्यों हो जानू… ये सब कुछ तुम्हारा है.. अब.
मेने उसकी तरफ मुस्करा कर उसकी मुनिया के होंठ खोल लिए और अपनी जीभ से उसके अन्द्रुनि गुलाबी हिस्से को चाट लिया…
मस्ती में उसकी आँखे बंद हो गयी, अपनी एक टाँग उठाकर उसने मेरे कंधे पर टिका ली, और मेरे सर के बालों में अपनी उंगलियाँ फँसाए, वो किसी दूसरी दुनिया की सैर पर निकल पड़ी…
अपनी जीभ की नोक को अंदर तक पेल कर, मे उसकी चूत को किसी कुत्ते की तरह चाटने लगा.. फिर उसके भग्नासा (क्लिट) को अपने होंठों में दबा कर अपनी एक उंगली उसकी चूत में डाल दी…
वो दर्द से कराह उठी… आह.. इसका मतलब इसकी चूत उंगली लायक ही है अभी..
मेने उसके क्लिट को चूस्ते हुए धीरे-2 अपनी उंगली को अंदर-बाहर कर के उसे चोदने लगा…
उसकी मुनिया लगातार रस बहा रही थी.. जिसे में अपनी जीभ से चाटता जा रहा था…
आख़िरकार उसकी रस से भरी गगर छलक पड़ी.., उसने मेरे मुँह को बुरी तरह से अपनी रस गगर के मुँह पर दबा दिया…
वो अपने पंजों पर खड़ी होकर किल्कारियाँ मारती हुई झड़ने लगी…..!
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मेने खड़े होकर उसको चूमते हुए पूछा – मेरी सेवा पसंद आई.. भौजी…?
वो – वादा करो देवर्जी… ऐसी सेवा मुझे आगे भी मिलती रहेगी… जब आपकी इच्छा हो तब.. मे आपसे कोई ज़ोर ज़बरदस्ती से नही कहूँगी… बस जब आपका मन करे..
मे कोशिश करूँगा, वादा नही कर सकता…, लेकिन अभी तो पूरी पिक्चर वाकी है मेरी जान.. उसे तो देखलो…
वो मेरे होंठों को चूमकर बोली – आपके ट्रेलर से ही पता लग रहा है कि.., पिक्चर सूपर हिट होगी..
मे – तो फिर अब मेरे बबुआ की भी थोड़ी सेवा हो जाए… ये कह कर मेने उसके कंधों पर दबाब डाल कर उसे बिठा दिया..,
अपने घुटनों पर बैठ उसने मेरा अंडरवेर नीचे कर दिया.. जिसे मेने अपने पैर से दूर फेंक दिया…
सबसे पहले उसने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ा और बोली – आहह…. ये इतना गरम क्यों है देवर जी…?
सामने इतना गरम कुंड जो है… मेने हँसते हुए उसकी बात का जबाब दिया तो वो उसे अपने गाल से रगड़ते हुए बोली
कितना लंबा तगड़ा हथियार है तुम्हारा, मेरी छ्होटी सी चूत की तो धज्जियाँ उड़ा देगा ये..….!
मे – ऐसा नही है भौजी, देखना कितना मज़ा देता है ये, आज के बाद तुम्हारी गुलाबो इसको ही लेने को तड़पति रहेगी..…
वो हूंम्म… कर के उसको उलट-पलट कर देखने लगी.. फिर उसने एक बार उसे चूम लिया…उउउम्म्म्मम…पुकछ…कितना प्यारा है ये…
हाथ से आगे पीछे करते हुए उसे एक बूँद उसके पी होल पर मोती जैसी चमकती नज़र आई, जिसे उसने अपनी जीभ की नोक पर ले लिया और चखने लगी…
हूंम्म्म… टेस्टी है… कह कर उसने मेरे लाल सेब जैसे सुपाडे को मुँह में भर लिया….और चूसने लगी…!
मेने उसके सर पर हाथ रख लिया और उसे सहलाने लगा… वो धीरे-2 उसे अंदर और अंदर लेती जा रही थी…
सीईईई…अह्ह्ह्ह… राणिि…ज़रा मेरे सिपाहियों की भी सेवा करती जाओ साथ में.. मेरी बात पर उसने सवालिया नज़र से मेरी तरफ सर उठा कर देखा..
मेने कहा… नीचे मेरे टट्टों को भी सहलाओ साथ में और चूसो भी… तो वो वैसा ही करने लगी… अब मुझे और ज़्यादा मज़ा आने लगा…
कुछ देर की चुसाई और सेवा भाव से मूसल राज आती प्रशन्न हो गये… और एकदम लट्ठ की तरह शख्त होकर ठुमके लगाने लगे…
मेने उसे वहीं घास पर लिटा दिया… और उसकी टाँगें मोड़ कर उसकी मुनिया को सहलाया, उसका हौसला बढ़ाया.. और फिर उसे चूम कर अपना सुपाडा उसकी गरम चूत के मुँह पर रख दिया…