Update 33

हम तीनों ही मज़े की खोज में निकल पड़े, और 15 मिनिट की मस्त चुदाई के बाद क़हचही ऊंट (कॅमल) की तरह गर्दन आकड़ा कर झड़ने लगी….

उनके कामरस के प्रेशर से मेरा मूसल अपने आप चूत के बाहर आ गया… मेने रामा दीदी को अपनी गोद में लेकर स्लॅब के नीचे फर्श पर लेट गया…

वो अपनी अधझड़ी बुर लेकर मेरे डंडे के ऊपर बैठती चली गयी… मेने उसके अनारों को मसल्ते हुए नीचे से कमर चलाना शुरू कर दिया…

चाची हमारी चुदाई देख कर मस्त हो गयी.. और अपनी चुचियों को खुद ही मसलने लगी…

कुछ देर के बाद वो भी झड गयी…, तो मेने उसे अपने ऊपर से हटाया, खुद खड़ा होकर अपने लंड में दो हाथ के सट्टी लगाए, और अपनी गढ़ी-गढ़ी मलाई उन दोनो के चेहरे पर उडेल दी.

वो दोनो किसी भूखी कुटियाओं की तरह एक दूसरे के चेहरे से मेरी मलाई चाटने लगी…

मेने चाची की मस्त मोटी गान्ड मसल्ते हुए कहा – क्यों चाची…भतीजे- भतीजी के साथ चुदने में मज़ा आया कि नही…

चाची – हाए लल्ला… तुम तो सच में बहुत बड़े वाले चोदु हो गये हो… मुझे भी अपनी तरह बेशर्म बना ही दिया…

पर सच कहूँ… आज एक अजीब ही तरह का मज़ा आया… क्यों रामा… तुम्हें आया या नही…?

दीदी ने बोलने की जगह चाची के होंठों पर किस कर लिया…

आज घर में एक नया अध्याय ओपन हो गया था, जो चाची और रामा दीदी के लिए सुखद अनुभव देने वाला साबित हुआ था……

ऐसी ही मौज मस्ती के बीच समय का पता ही नही चला और राजेश की शादी का दिन भी आ गया.. बड़े भैया दो दिन पहले ही घर आ गये थे…

अगले दिन बाबूजी समेत हम सभी लोग उसकी शादी अटेंड करने चल दिए….!

भैया को जीजा होने के नाते कुछ मंडप वग़ैरह की रस्में निभानी थी…, इस वजह से हमें सुबह जल्दी ही निकलना पड़ा… गाड़ी से आधे घंटे में 10 बजे तक उनके यहाँ पहुँच गये..

फाल्गुन का शुरुआती महीना था… हल्की-2 सुबह में ठंडी रहती है…, भैया तो जाते ही कुछ ख़ान-पान की मेहमान नवाज़ी के फ़ौरन बाद अपनी रस्मों में बिज़ी हो गये…

पिताजी अपने समधी और वाकी के बुजुर्गों के पास बैठ कर राज़ी खुशी में व्यस्त हो गये,

राजेश के कुछ साथ के कुलीग भी आए थे.. तो मे उनके साथ छत पर कुर्सी डालकर बैठ गया और उनके साथ गप्पें लगाने लगा…

तभी वहाँ कुछ शादी शुदा औरतें आई जो शायद निशा की भावियाँ लगती थी…

उनके हाथ हल्दी से पुते हुए थे, आते ही वो उन लोगों को हल्दी लगाने लगी…इतने में मे सतर्क हो गया…

और इससे पहले कि उनमें से कोई मेरे पास आकर मुझे हल्दी लगाती, मे वहाँ से उठ कर एक तरफ भाग गया…

अभी मे सीडीयों के पास वाली बौंड्री से सट कर खड़ा हुआ ही था की तभी मेरी जान का दीदार हुआ… आँखों -2 में हमने एक दूसरे को ग्रीट किया….

मे धीरे-2 उसकी तरफ सरक ही रहा था… कि वो मुस्कुराती हुई.. नीचे भाग गयी… मे अभी भी उसे भागते हुए देख रहा था की ना जाने कहाँ से एक लड़की..

मेरे पीछे से आ गयी और उसने मेरी पीठ पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिए..

जो असल में हल्दी लगे हाथों के थे… मेने जैसे ही उसकी तरफ पलट कर देखा…वो वही हल्दी लगे हाथ मेरे चेहरे पर भी रगड़ने लगी..

चूँकि वो लंबाई में निशा से भी कम थी… और मे ठहरा सवा 6 फूटा… तो उसको अपने हाथ काफ़ी ऊपर करने पड़े जिसकी वजह से उसके बड़े-बड़े कलमी आम मेरे पेट से रगड़ने लगे…

वो हँसते हुए मेरे गालों पर हल्दी मल रही थी.. मेने उसके हाथ पकड़ लिए और मॉड्कर उसके ही हाथ उसके गालों से रगड़ दिए जिससे रही सही हल्दी उसके गालों पर भी मल गयी…

वो झूठ-मूठ की नाराज़गी भरे लहजे में बोली – क्या जीजा जी… ये तो चीटिंग है.. आपने हमारी ही हल्दी हमें ही लगा दी…

बाजू में खड़ी औरतें बोली – क्यों ननद रानी… अब आया ना मज़ा.. ये जीजा आसानी से तुम्हारे हाथ आने वाले नही हैं…

वो नकली गुस्सा दिखाते हुए.. पैर पटकती हुई वहाँ से नीचे चली गयी…

वो जैसे ही वहाँ से गयी, उन औरतों ने मुझे चारों ओर से घेर लिया, और मेरे साथ खुल्लम खुल्ला मज़ाक करते हुए मेरे कपड़ों पर हल्दी लगाने के बहाने अपने नाज़ुक अंगों को मेरे शरीर के साथ रगड़ने लगी…

मेने जैसे तैसे कर के अपने आप को उनके चंगुल से आज़ाद किया, इस कोशिश में एक दो की रगड़ाई भी करनी पड़ी, और वहाँ से भाग के नीचे आ गया.

नीचे आकर मे निशा को ढूँढ रहा था… जो मुझे एक झलक दिखा कर एक तरफ को भाग गयी…

मे भी उसके पीछे -2 उसके पास पहुँच गया… वो एक ऐसी जगह खड़ी थी जहाँ लोगों का आना-जाना कम था…

मेने उसे बाहों में भर कर चूम लिया और शिकायत करते हुए कहा – तुमने मेरा स्वागत इस तरह से कराया है..? मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी…

वो मुस्कराते हुए बोली – ससुराल में आए हो… सालियों से तो ऐसी ही आशा करनी चाहिए आपको… इसमें ग़लत क्या है…

में उसकी बात का जबाब उसके होंठों को चूमकर देना चाहता था कि उसने मुझे धक्का देकर अपने से दूर कर दिया, मे जैसे ही एक कदम पीछे हुआ….

एक भारी बाल्टी गाढ़ा-गाढ़ा रंग, मेरे गर्दन से नीचे तक मुझे रंगता चला गया… निशा मेरे सामने खड़ी खिल-खिला रही थी…

मे जैसे ही उस रंग डालने वाली की तरफ पलटा… वही लड़की जो कुछ देर पहले मुझे हल्दी लगा गयी थी, मेरे चेहरे पर टूट पड़ी… मेरा पूरा चेहरा उसने गाढ़े-2 रंग से पोत दिया…

मेने भी अब उसे मज़ा चखाने का सोच लिया, एक हाथ से उसकी मोटी- गुदगुदी गान्ड को कसा, और दूसरे हाथ को उसके सर के पीछे से पकड़कर कर अपने से सटा लिया.

वो मेरी पकड़ से आज़ाद होने का भरसक प्रयास कर रही थी, लेकिन उसे क्या पता था कि ये फेविकोल का मजबूत जोड़ है, आसानी से टूटने वाला नही है..

और फिर मेने अपने चेहरे का पूरा रंग उसके गालों से रगड़ -2 कर पोंच्छ दिया…

उसके दोनो आम मेरे सीने से दबे हुए थे… दूर खड़ी निशा खिल-खिलाए जा रही थी… उस लड़की की साँसें भारी होने लगी.. और उसकी आँखों में वासना के कीड़े तैरने लगे…

उसने उचक कर मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेकर मेरे होंठों पर किस कर दिया और दूर छिटक कर लंबी- 2 साँसें लेने लगी…

निशा ने पास आकर हम दोनो का इंट्रोडक्षन कराया – ये है मेरी दोस्त मालती… आपसे मिलने के लिए बहुत उतावली हो रही थी… फिर वो मल्टी से बोली – अब खुश… मिल ली ना अपने जीजा जी से…

मालती अपना हाथ आगे कर के बोली – थॅंक यू जीजा जी… आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई..

मेने भी उसका नरम मुलायम हाथ अपने हाथ में लेकर चूमते हुए कहा – मुझे भी ऐसी हॉट & सेक्सी साली से मिलकर बड़ी खुशी हुई…

हाथ मिलाते हुए उसने एक गाढ़े से रंग का पेस्ट मेरे हाथ में थमा दिया, और अपनी एक आँख दबा कर इशारा कर दिया…

मेरे मुँह से उसके लिए हॉट & सेक्सी सुनकर निशा के चेहरे पर नाराज़गी वाले भाव दिखाई दिए…

जिन्हें देख कर मालती उसे चिढ़ाते हुए बोली – क्यों जल गयी ना… जीजा जी के मुँह से मेरे लिए हॉट सुन कर…

निशा – अच्छा ! साली मुझे चिढ़ाएगी… ठहर, इतना कहकर वो मालती की तरफ झपटी…

मौके का फ़ायदा उठाकर मेने वो रंग अपने हाथों में माला, और पीछे से निशा को लपक लिया…

अचानक हुए हमले से वो मेरी बाहों में कसमसाने लगी, लेकिन तबतक मेने उसके चेहरे को पूरी तरह से रंग दिया…

अब वहाँ खड़े हम तीनों की सूरत बंदरों जैसी लग रही थी…

निशा झूठा गुस्सा दिखाकर मेरे सीने पर घूँसे मारते हुए बोली – धोखेबाज़ कहीं के, मुझे क्यों खराब किया..?

फिर वो मालती से बोली - मे क्यों जलने लगी..तू जाने, तेरे जीजा जी जाने… मे कॉन हूँ.. जीजा साली के बीच आने वाली.. ये कह कर वो जाने लगी…

मेने उसका हाथ पकड़ कर एक झटका दिया.. और वो सीधी मेरे सीने से आ लगी… मेने उसे अपनी बाहों में कसते हुए कहा… मेरी जान बुरा मान गयी…,

वो मेरी बाहों में कसमसाते हुए बोली – छोड़िए प्लीज़…. कुछ तो शर्म करिए.. मालती खड़ी है यहाँ…

मालती हँसते हुए बोली – लगे रहो… मुझे कोई प्राब्लम नही है… मियाँ बीवी राज़ी, तो क्या करेगा काज़ी… और खिल-खिला कर वो वहाँ से भाग गयी…

हम दोनो कुछ देर यौंही खड़े एक दूसरे से चिपके एक दूसरे को किस करते रहे.. फिर किसी के आने की आहट सुन कर अलग हो गये..

तभी भाभी वहाँ आ गयी… और बोली – हूंम्म… तो तोता-मैना का मिलन हो ही गया… चलो भाई ठीक है…

फिर वो हम दोनो की हालत देख कर मुस्कराते हुए बोली – वैसे मैना रानी तुमने अपने तोता राजा का स्वागत अच्छे से किया है.. वेल डन..!

निशा उनकी बात सुनकर शरमा कर वहाँ से भाग गयी… फिर भाभी ने मेरे से घर के हालत के बारे में बात की, और पूछा कि कामिनी क्यों नही आई.. ?

मेने उन्हें बता दिया, कि वो ज़्यादा दिन अड्जस्ट नही कर पाई गाँव के माहौल में इसलिए भैया के साथ चली गयी…

भाभी का मन था मेरे गाल पर किस करने का लेकिन मेरे चेहरे की हालत देख कर मन मसोस कर रह गयी…!

थोड़ी देर बाद निशा, रूचि को लेकर वहाँ आ गयी… वो ताली बजाते हुए बोली – ओहो.. चाचू को बंदर बना दिया… ये किसने किया मौसी… आपने..?

निशा – नही ! ये मालती मौसी ने किया है… तो वो बोली – मालती मौसी बहुत गंदी है… मेरे चाचू को बंदर बना दिया.. अब में उनको क़िस्सी कैसे करूँगी…?

मेने कहा – कोई नही ! अपनी बिताया रानी के लिए चाचू फिरसे नहा लेंगे…

ऐसी ही हसी खुशी के माहुल में पूरा दिन व्यतीत हो गया…पूरे घर में मेहमानों की भीड़ भारी पड़ी थी… सो फिर चान्स नही लगा निशा से मिलने का..

रात को खाना पीना खाकर सारे मेहमानों के सोने का इंतज़ाम भी करना था.. हल्की-2 सर्दी थी मौसम में तो रज़ाई गद्दों का इंतेज़ाम तो टेंट हाउस से कर दिया गया… लेकिन घर में जगह की कमी थी…

तो आस-पड़ोस में लोगों को सुविधा अनुसार सेट किया गया… निशा ने मालती से कह कर उसके घर में मेरे लिए विशेष इंतज़ाम करा दिया था….

सब रीति रिवाजों के संपन्न होने के बाद वो मुझे लेकर अपने घर को चल दी…

मालती बाइ कास्ट ठाकुर थी, उसके माता - पिता नही थे, वो उसके जन्म के कुछ सालों बाद ही किसी दुर्घटना का शिकार हो गये थे… वो अपने दादा-दादी के साथ ही रहती थी.. !

घर काफ़ी बड़ा था, और भाभी के घर से थोड़ा ही दूरी पर था…

मालती निशा की बचपन की सहेली थी… उन दोनो के बीच कोई भी बात छिपि नही थी…

वो मेरे और निशा के संबंध के बारे में भी जानती थी…

मालती शरीर में निशा से कुछ भारी थी, जो शायद दादा-दादी के लाड़ प्यार का नतीजा था…

उसने घर पहुँच कर मेरे लिए एक सेपरेट कमरे में मेरा बिस्तर लगाया था..

मुझे उस कमरे में पहुँचा कर वो अपने दादा-दादी के पास चली गयी..

जब वो दोनो सो गये तो मेरे लिए एक बड़े से ग्लास में दूध लेकर वो मेरे पास आई…………!

दिनभर की भागदौड़ से मेरी आँख जल्दी ही लग गयी, इससे पहले की मे गहरी नींद में जा पाता, कि मालती की आवाज़ ने मुझे चोन्का दिया…..लीजिए जीजा जी दूध पी लीजिए..

मेने अनमने भाव से अपनी आँखें खोली, सरक कर बेड पर सिरे की तरफ बैठ कर जमहाई लेते हुए कहा - अरे मालती जी ! इसकी क्या ज़रूरत थी…?

वो बोली – मुझे पता है… आपको दूध पीने की आदत है.. लीजिए, अब ये फॉरमॅलिटी अपनी साली के साथ मत करिए… और ज़बरदस्ती ग्लास मेरे हाथ में थमा कर वहीं मेरे पास बैठ गयी…!

आपको पता है… मे और निशा बचपन से ही पक्की दोस्त हैं… आज तक हमारे बीच ऐसी कोई बात नही है जो एक दूसरे से छिपि हो…

आपके यहाँ से जाते ही उसने आपके और अपने बारे में सब कुछ बता दिया था…

वो रोज़ आपके बारे में ही बातें करती रहती है… उसकी बातें सुन सुन कर आपसे मिलने की मेरी जिग्यसा बढ़ती गयी…

और देखिए आज आप मेरे पास बैठे हैं… सच में निशा ने मुझे आपके बारे में कम ही बताया था… आप तो उससे कही बढ़कर ही निकले…

मेने मुस्कराते हुए कहा – किस बात में… ?

वो – मुझे ये उम्मीद नही थी कि आप इतने हॅंडसम होंगे… सच कहूँ तो मुझे निशा से जलन हो रही है… कि काश उसकी जगह में होती…?

मे – अरे साली जी ! क्यों आप मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही हो… मे इतना भी हॅंडसम नही हूँ…!

वो – आप मेरी जगह होते तब पता चलता आपको की आप क्या हैं.. सच में निशा कितनी भाग्यशाली है.. की आप जैसा हॅंडसम उसका लवर है… और इसमें कोई गुंजाइश भी नही है.. की एक दिन आप दोनो एक भी हो जाओगे…!

मेने उसे ब्लश करते हुए कहा – वैसे आप भी कम नही हो… जब भी घर से निकलती होगी.. लड़कों की लाइन लग जाती होगी…!

वो कुछ बुझे-बुझे से स्वर में बोली – अपनी ऐसी किस्मत कहाँ… मे कितनी मोटी हूँ.. !

जब भी हम दोनो सहेलियाँ बाहर निकलती हैं… तो लड़के उसको ही देखते रहते हैं.. और में कुढती रहती हूँ…

मे – ये तो अपनी – 2 नज़र का ख़याल है… वैसे आपके जैसे कूर्वी फिगर वाली लड़कियाँ ही ज़्यादा हॉट लगती हैं..

वो – आप मज़ाक कर रहे हैं… मे और हॉट…?

मे – हां ! कम से कम मेरी नज़र में तो आप हॉट ही हो… दूसरों का मे कह नही सकता… मेने उसका मन रखने के लिहाज़ से कहा…

वो मेरी तरफ और खिसक आई, और मेरे शरीर से अपना बदन सटाती हुई बोली – क्या में सच में हॉट लगती हूँ आपको..?

मे अब सोच में पड़ गया… मेरा उसको ब्लश करना मुझे अब भारी पड़ता नज़र आने लगा…

अब अगर मे इसका दिल दुखाता हूँ… तो बेचारी का दिल टूट जाएगा.. सो अपनी बात पर कायम रहते हुए बोला…

देखो… हर आदमी की अपनी-अपनी चाय्स होती है… कोई तो इकहरे बदन की लड़की पसंद करता है… तो वहीं बहुत से लोग कूर्वी फिगर के दीवाने होते हैं…!

आपको कैसा फिगर अच्छा लगता है…वो मुझसे और चिपकते हुए बोली… उसके बदन की गर्मी मुझे पिघलाने लगी थी…

और मे उसके मादक कूर्वी फिगर की तारीफ़ कर बैठा…

सच कहूँ तो मुझे तुम्हारे जैसी फिगर वाली लड़कियाँ ज़्यादा अच्छी लगती है…

मेरा इतना ही कहना था कि उसने मेरे गले में अपनी मांसल बाहें डाल दी…, और अपने कलमी आमों को मेरे सीने से सटाते हुए बोली –

ओह ! जीजू आप सच में बहुत अच्छे हैं.. आइ लव यू… ये कह कर उसने मेरे गाल पर किस कर दिया…

मेने उसके कंधे पकड़ कर अपने से अलग करते हुए कहा – लेकिन मे तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड से बहुत प्यार करता हूँ..

वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – तो मेने कब कहा है कि आप उससे प्यार मत करो… बस उसमें से थोड़ा सा… बस इत्तु सा (अपनी उंगली के पोर पर अंगूठे से निशान बना कर बोली) मुझे भी दे दीजिए…

मे – ये तुम क्या कह रही हो मालती..? मे अपने प्यार से बेवफ़ाई नही कर सकता …

वो – ओह…जीजू.. आप भी क्या दकियानूसी बातें करने लगे.. मे अपनी सहेली के प्यार को बाँटने की बात थोड़ी ना कर रही हूँ… मे तो बस थोड़ा सा आपका प्यार माँग रही हूँ..

ये वादा है मेरा, कि इस बात का किसी को भी, कभी भी पता नही चलेगा…ये कहते हुए वो मेरे बदन से लिपट गई…

मे – प्लीज़ मालती… समझने की कोशिश करो… मे ये तुम्हारे साथ नही कर सकता….

वो – प्लीज़ अंकुसजी…! मे आपसे विनती कर रही हूँ.. प्लीज़ बस एक बार… फिर जीवन में कभी आपसे नही कहूँगी…

मे उसकी गुहार सुनकर पिघलने लगा और स्वतः ही मेरा हाथ उसकी पीठ पर सरक गया…

वो दीवानवार मेरे चेहरे को चूमने लगी… उसकी मादक चुचियाँ.. मुझे उत्तेजित कर रही थी… ना जाने कब हम दोनो के कपड़े एक दूसरे के बदन से जुदा हो गये…

वो जल्दी से जल्दी मुझ में समा जाना चाहती थी…उसकी हरकतों से ही मुझे लगाने लगा कि वो ये सब पहले भी कर चुकी है…

मुझे क्या फरक पड़ने वाला था… एक और नाम लिस्ट में जुड़ जाना चाहता है तो वो भी सही.. सो जोड़ लिया…,

वो मेरा लंड लेने के लिए उतावली हुई जा रही थी, देखते देखते उसने हम दोनो के बदन से कपड़े नोच डाले..

मेने उसके बड़े बड़े आमों को चूस्ते हुए…अपना लॉडा जैसे ही उसकी रसभरी मुनिया के मुँह पर रखा…

कामांध मालती ने झटके से अपनी गान्ड ऊपर को उचका दी, गीली चूत में मेरा आधा तक मूसल सरक गया……

उसके मुँह से मादक कराह फुट पड़ी…. आआहह…. जीजू… धीरे…हाए… बहुत मोटा है आपका…

मेने उसके कलमी आमों को मसल्ते हुए कहा – मेने तो कुछ भी नही किया साली साहिबा… तुम्हें ही उतावली हो रही थी इसे लेने की…

मेरी बात सुन कर शर्म से उसने अपना सर मेरे सीने में छुपा लिया, फिर अपना हाथ नीचे ले जाकर उसने मेरे लंड को टटोला…

वो समझ रही थी, कि पूरा लंड अंदर चला गया होगा.. सो बाहर बची हुई लंबाई नाप कर बोली –

हाए राम… ये तो अभी भी इतना सारा वाकी है..? मेरे अंदर तक तो पूरा भरा-भरा सा लग रहा है… अब ये कैसे जाएगा पूरा…?

मेने उसके माल पुआ जैसे गाल पर अपने दाँत गढ़ाते हुए कहा – ये अब मेरा काम है रानी, तुम बस देखती जाओ..

आआययययीीई…जीजू प्लीज़ दाँत मत गढ़ाओ, निशान बन जाएँगे…

मेने अपने दाँतों के निशान पर जीभ से उसके गालों को चाटते हुए एक करारा सा धक्का और जड़ दिया…

मालती ने दर्द के मारे मेरे कंधे पर अपने दाँत गढ़ा दिए… और मेरे नीचे दबी हुई मचलने लगी…

दर्द से मेरी कराह निकल गयी… मेने उसके चुचे मसलते हुए कहा – साली कटखनी बिल्ली…

कुछ देर ठहरकर मेने उसे चोदना शुरू किया… वो जैसे ही दोबारा मज़े में आई… बस फिर तो पुछो ही मत…

वो घमासान लड़ाई हुई पलंग के मैदान पर.. कि मैदान भी चूं-छाँ करने लगा…

सारी रात मेने उसकी चूत की वो धुनाई की, कि अब वो कुछ दिनो तक इसे याद रखने वाली थी…उलट-पलट कर खूब जम कर चोदा मेने मालती को उस रात…

जब उसकी टंकी रीति हो गयी.. तो अपने कपड़े समेट कर लड़खड़ाती हुई सोने चली गयी और मे अपने बिस्तर में तान रज़ाई गहरी नीद में डूबता चला गया…!

सुबह उसके जगाने से ही मेरी नींद खुली… वो मुस्कराती हुई चाय का प्याला हाथ में लिए मेरे पलग के पास खड़ी थी…

गुड मॉर्निंग स्वीटहार्ट… उसने मुझे मॉर्निंग विश किया तो मेने भी हॅस्कर उसे विश किया और चाय का कप उसके हाथ से लेते हुए बोला…!

अबसे हमारा वही रिश्ता रहे तो ज़्यादा उचित रहेगा…

वो – ओह्ह..जीजू… मेने तो अकेले में आपको बोला… ठीक है, प्रॉमिस .. अब कभी नही कहूँगी… सॉरी जीजू….

मेने चाइ पी और उसके घर में ही फ्रेश होकर भाभी के घर चला आया…

आज बारात लेकर लड़की वालों के यहाँ जाना था… तो सभी उसी तैयारियों में लगे पड़े थे… निशा से एक फौरी तौर पर ही-हेलो हो पाई…

धूम धाम से शादी संपन्न हो गयी…

निशा की भाभी एक पढ़ी लिखी मध्यम घराने की सुंदर और शुशील लड़की थी…

शादी के दूसरे दिन हम सभी उनसे विदा होकर अपने घर लौट आए… भाभी को और कुछ दिन वहाँ रहना पड़ा था..

कुछ दिनो बाद मेरे फर्स्ट एअर के एग्ज़ॅम थे… सो घर लौट कर मेने अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगा दिया…

कुछ दिनो बाद भाभी भी आ गयी, उनका भाई उन्हें छोड़ गया था…

मेने मन लगा कर अपने एग्ज़ॅम दिए और एक साल की पढ़ाई ख़तम हुई… मेरे साथ ही रामा दीदी ने भी अपने फाइनल के पेपर दिए.. अब वो ग्रॅजुयेट कंप्लीट करने वाली थी…

तो बाबूजी ने उनके लिए लड़का तलाश करना शुरू कर दिया.. उधर आशा दीदी की भी शादी तय कर दी थी...

रिज़ल्ट के बाद दोनो बहनों की बारी-बारी से शादियाँ हो गयीं… और वो दोनो अपनी नयी दुनिया बसाने अपने-2 घर चली गयी..

रामा दीदी की शादी हमारे कॉलेज के प्रिन्सिपल के लड़के लोकेश के साथ कर दी थी.. वो देल्ही में इंजिनियर है…

खुद प्रिन्सिपल साब ही दीदी का हाथ माँगने आए थे हमारे यहाँ…

इधर कॉलेज में एक और क्लास बढ़ गयी थी… और कॉलेज की फर्स्ट एअर की पर्फॉर्मेन्स देखते हुए फाइनल तक की स्पेशल पर्मिशन ग्रांट हो गयी..

कुछ कोशिशों के बाद बड़े भैया प्रमोशन के साथ हमारे कॉलेज में ही आ गये, और वो अब वहाँ वाइज़ प्रिन्सिपल थे.

उधर मनझले भैया ने भी अपने शहर में ही ट्रान्स्फर ले लिया था…. सब कुछ एक दम सही से सेट हो चुका था… हमारी फॅमिली एक हॅपी वाली फॅमिली कहीं जा सकती थी…

मौका देख कर मे पंडितानी की बहू से भी मुलाकात कर लेता था.. जो अब कुछ महीनों में ही एक बच्चे को जन्म देने वाली थी…

निशा से फोन पर ही बातें हो पाती थी… वैसे उसके ग्रॅजुयेशन तक कोई प्राब्लम नही थी फिर भी भाभी ने अपने माँ और पिताजी के कानों में ये बात डाल दी थी..

कि उनके बिना पुच्छे वो निशा की शादी ना करदें..

रूचि अब बड़ी हो रही थी.. और वो अब गाँव के कॉलेज में पढ़ने जाने लगी थी…

छोटी चाची – चाचा अपने बच्चे के साथ खुशी – 2 जीवन जी रहे थे…मेरे पास अब ज़्यादा ऑप्षन नही बचे थे अपने लंड को शांत करने के…

बस चाची और कभी -2 भाभी के साथ मौका मिल जाता था…या फिर अपनी वर्षा रानी…अरे वहीी…पंडिताइन…

समय अपनी मन्थर गति से गुज़रता रहा, देखते – 2 दो साल और निकल गये, धीरे – 2 हमारे फाइनल के एग्ज़ॅम का समय नज़दीक आ रहा था, की तभी एक दिन हम सभी फाइनल एअर स्टूडेंट्स एक साथ कॉलेज ग्राउंड में बैठे बातें कर रहे थे, तभी मेरे एक दोस्त रवि ने कहा…

रवि – दोस्तो ! हम सब लोग पिच्छले 3 सालों से एक साथ रहे हैं, हम लोग एक तरह से इस कॉलेज की नींव कहे जा सकते हैं…

कुछ दिनो बाद हम सभी एक दूसरे से बिछड़ने वाले हैं, फिर पता नही कॉन कब, कहाँ क्या करेगा.. फिरसे हम एक दूसरे से मिल भी पाएँगे या नही…

मे – हां यार ! सही कह रहे हो तुम, भले ही हम लोगों के बीच पिच्छले लगभग 3 सालों में कुछ भी हुआ हो, कैसे भी हालत पैदा हुए हों, लेकिन हम रहे तो एक साथ ही हैं…!

तो क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए, जिससे एक दूसरे से बिछड़ने के बाद भी आने वाले कुछ दिनों तक हम एक दूसरे को याद रख सकें…!

आशु – आइडिया अच्छा है यार, लेकिन ऐसा क्या करें जिसकी यादें ताज़ा बनी रहें ?

मे – क्यों ना कुछ सांगीतीक कार्यक्रम रखा जाए कॉलेज में, सभी मिलकर धमाल करेंगे एक रात…

करण – क्या यार नचनियों वाले आइडिया देता रहता है, कुछ ऐसा करो जिसमें 2-4 दिन तक हम सब एक साथ ही रहें… सब कुछ मिल-जुलकर जो जी में आए वो एक साथ ही करें…!

तभी रागिनी बोल पड़ी – अगर पसंद हो तो एक आइडिया है मेरे पास…?

रवि – बिल्कुल दो ! यहाँ सभी के आइडिया से ही डिसाइड होगा, की हमें क्या करना चाहिए…

रागिनी – क्यों ना हम सब किसी लंबे पिक्निक तौर पर चलें, जहाँ कुछ एतिहासिक चीज़ें भी देखने को मिलें और जहाँ थोड़े बहुत जंगल भी देखने को हों…

4-6 दिन तक सब कुछ अपना हो, अपने तरीक़े का हो, और अपनी तरह से रहें…

उसकी बात सुनकर लगभग आधे से भी ज़्यादा लोग एक साथ बोल पड़े… सही आइडिया है, मज़ा आएगा… यही करते हैं…

मे – आइडिया बुरा नही है, लेकिन इसके लिए सबसे पहले हमें कॉलेज प्रशासन की मंज़ूरी लेनी होगी, उसके अलावा खर्चा बहुत होने वाला है, जो शायद हम में से कुछ लोग उसे अफोर्ड भी ना कर पाएँ…

कॉलेज अगर कुछ हेल्प करे तो संभव हो सकता है…!

रागिनी – उसमें क्या बड़ी बात है, कॉलेज हमारी बात क्यों नही मानेगा, और रही बात फंड की, तो वो एस्टिमेट कर के देखते हैं…

मे – ठीक है, तो चलो पहले प्रिन्सिपल साब से बात करते हैं, उसके बाद ही कुछ फ़ैसला लेना होगा…

फिर हम 8-10 स्टूडेंट्स मिलकर प्रिन्सिपल से मिलने चल दिए, उनके ऑफीस में राम भैया भी मौजूद थे…

इतने सारे स्टूडेंट्स को एक साथ देख कर वो दोनो चोंक पड़े, और हमसे पूछा –

क्या बात है बच्चो, यूँ एक साथ..? कोई समस्या है क्या…?

भैया को देखकर मे थोड़ा पीछे की तरफ जाकर खड़ा हो गया, उनके सवाल करने पर सभी मेरी ओर देखने लगे…,

जब कुछ देर मेने कुछ नही कहा तो करण आगे आकर बोला…

सर ! हम सभी फाइनल एअर स्टूडेंट्स चाहते हैं, कि एग्ज़ॅम से पहले कुछ ऐसा करें जिससे, वो हम सब के लिए एक यादगार मोमेंट हो…

तो हम सबने ये तय किया है, कि कहीं ऐसी जगह का पिक्निक टूर बनाएँ जहाँ हिस्टॉरिकल मॉन्युमेंट भी हों, और जंगल सफ़ारी भी हो जाए…

उसकी बात सुनकर प्रिन्सिपल साब ने भैया की तरफ देखा और बोले – बात तो सही कह रहे हैं ये बच्चे, आप क्या कहते हो राम मोहन बाबू…!

भैया – मे भी आपसे सहमत हूँ सर, क्योंकि ये वो बच्चे हैं, जिन्होने इस कॉलेज की नींव रखने में अपना सहयोग दिया है, तो हमें भी इनकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए…

लेकिन मेरा सुझाव ये है, कि इनको जंगलों में जाने की इज़ाज़त नही होनी चाहिए, इन सबका ये फाइनल साल है, किसी के साथ कुछ ऐसा वैसा हुआ, तो उसके भविष्य के लिए ठीक नही होगा…और कॉलेज का भी नाम खराब होगा…!

प्रिन्सिपल – आपकी बात सही है, फिर वो हम लोगों की तरफ मुखातिब होकर बोले – वैसे आप लोगों ने कुछ तो सोचा होगा, कहाँ जाना चाहते हो…?

रागिनी तपाक से बोल पड़ी – सर एंपी भ्रमण कैसा रहेगा, वहाँ हिस्टॉरिकल प्लेसस भी हैं, और नॅचुरल ब्यूटी भी देखने को मिलेगी…

प्रिन्सिपल – देखो बच्चो… अब आप लोगों के फाइनल्स में ज़्यादा समय भी नही है, और ज़्यादा लंबे टूर के लिए कॉलेज फंड भी मुहैया नही कर पाएगा,

तो उस हिसाब से आप लोग प्लान कर के हमें बता दो, फिर देखते हैं कि आगे का क्या कर सकते हैं..

हम सब उनकी बात सुनकर बाहर चले आए, और एक बार फिर ग्राउंड में बैठकर डिस्कशन करने लगे…

रागिनी की इच्छा थी खजुराहो घूमने की, साथ ही साथ उसके आस-पास के हिस्टॉरिकल प्लेसस और छोटे-2 जंगलों में सफ़ारी भी की जाए…

इसमें और भी स्टूडेंट्स सहमत थे, लेकिन क्या कॉलेज इतना लंबा टूर करने के लिए सहमत होगा…

फिर बात आई एस्टिमेशन की… सब कुछ मिलाकर 6 दिन के टूर के लिए सबसे पहले एक टूरिस्ट बस की ज़रूरत होगी…

कुल मिलकर हम 45-50 स्टूडेंट्स तो थे जो टूर पर जाना चाहते थे.., एक टूरिस्ट बस की बात चली तो रागिनी ने उसकी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, और कहा-

वो अपने पापा से कहकर अपनी खुद की बस ले जाएगी…

ये तो सबसे बड़ा काम हो गया, फिर तो बचना ही क्या था, खाना-पीना और रहना..

फिर डिसाइड हुआ कि रहने के लिए वो सब खुले मैदान में टेंट लगाएँगे, लेकिन इतना सारा समान जाएगा कैसे… तो उसके लिए भी उसने एक टेंपो अपने ट्रॅवेल्ज़ का ले जाने के लिए बोला..

वाकी का खर्चा कॉलेज ने अपने सर ले लिया.. और हमने दो दिन बाद का टूर डिसाइड कर लिया..

हमारे साथ दो जेंट्स टीचर और एक लेडी टीचर जाने वाले थे…​
Next page: Update 34
Previous page: Update 32
Next article in the series 'लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस )': लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस ) पार्ट - 2