Update 36
मे उसके पीछे पीछे दौड़ा, थोड़ा सा ही आगे जाकर वो झटके से रुक गयी, और एकदम से मेरे सामने आकर उसने मेरे गीले अंडरवेर के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड़ लिया…
मेने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – कल रात से मन नही भरा तुम्हारा..?
वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – इसे देखकर फिर से मन करने लगा है..
प्लीज़ अंकुश एक बार और कर्दे ना यार.., ना जाने फिर मौका मिले या ना मिले…
मेरा भी रात के ड्रग का असर अभी वाकी था, सो मेने वही उसे घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी मस्त गान्ड को मसल्ते हुए अपना लंड उसकी गान्ड में ठोक दिया…
वो बुरी तरह से कसमसाने लगी, लंड अभी आधा भी अंदर नही गया था, और वो हाए-तौबा करने लगी, और लंड बाहर निकालने के लिए गुहार करने लगी…
मेने भी उसे ज़्यादा परेशान करना ठीक नही समझा, वरना एक और लंगड़ी घोड़ी ग्रूप में शामिल हो जाती,
मेने उसकी गान्ड से अपना लंड खींचकर उसकी चूत में पेल दिया, उसकी एक बार और अच्छे से खुजली मिटाकर हम दोनो वापस आ गये…
अपने टेंट में जाने से पहले रीना ने मेरे होंठों को चूम लिया और बोली –
थॅंक यू अंकुश… तुम्हारे साथ बिताए लम्हों को जीवन भर नही भूल पाउन्गि.
मेने अपने टेंट में जाकर कपड़े चेंज किए, और फिर डरते-डरते रागिनी के पास गया, मुझे देखते ही रागिनी सुबकते हुए बोली –
मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी, मेने जो तुम्हारे साथ किया वो मेरी ज़िद थी तुम्हें पाने की, लेकिन तुमने तो….
अपनी बात अधूरी छोड़कर वो फिरसे सुबकने लगी…
मे उसके पास जाकर बैठ गया, और उसके कंधे को सहलाते हुए कहा - मुझे माफ़ कर दे रागिनी, सच्चाई जानने के बाद में अपने आपे में नही रहा.. सो तुम्हें सबक सिखाने के लिए ये सब कर बैठा…
सच कहूँ तो सुबह से ही मेरा मन आत्मगीलानी से भरा हुआ था, इसीलिए में नदी की तरफ चला गया था…
रागिनी ने अपने को शांत करते हुए कहा – इट्स ओके, ग़लती हम दोनो से ही हुई है..अब बेहतर होगा, कि बीती बातें भूलकर हम फिर से दोस्त रहें..
रागिनी के मुँह से ऐसी समझदारी भरी बातें सुनकर मेने उसे अपने बाजुओं में भरते हुए कहा…
ओह… थॅंक यू रागिनी, तुमने मुझे माफ़ कर दिया, अब हम पक्के वाले दोस्त हैं..
तभी रीना बीच में बोल पड़ी – मुझे भूल गये क्या…?
हँसते हुए हमने उसे भी अपने पास खींच लिया, और हम तीनों ही एक दूसरे से लिपट गये…
जीवन के किसी मोड़ पर फिरसे मिलने का वादा कर के मे अपने टेंट में चला गया, और अपना समान पॅक करने लगा…
दिन ढले हमारा टूर वापसी के लिए चल पड़ा, और दूसरे दिन सुबह हम अपने कस्बे में थे…
कुछ दिनो बाद ही हमारे फाइनल एग्ज़ॅम हो गये, मेने अच्छे ग्रेड से ग्रॅजुयेशन कंप्लीट कर लिया….!
रिज़ल्ट के बाद घर में बड़ों के बीच डिस्कशन का दौर शुरू हुआ, वीकेंड में दोनो भाई घर में मौजूद थे…
बड़े भैया का सुझाव था, कि मे उनकी तरह हाइयर स्टडी करूँ और किसी कॉलेज में लग जाउ…
लेकिन कृष्णा भैया चाहते थे, की मे उनकी तरह किसी प्रशासनिक पद के लिए तैयारी करूँ….
किसी को मुझे पूच्छने की तो जैसे कोई ज़रूरत ही महसूस नही हो रही थी, कि मे क्या चाहता हूँ…
तभी बाबूजी ने अपनी अलग ही राई रख दी और बोले – वैसे तो तुम सब लोग समझदार हो, जो भी कहोगे छोटू के भले के लिए ही कहोगे,
लेकिन मे चाहता हूँ, कि घर में कोई एक ऐसा भी हो जो क़ानून और अदालती कार्यों की जानकारी रखता हो.. तभी हमारा परिवार पूर्ण होगा…
भाभी ने मेरी तरफ देखा और बोली – तुम क्या चाहते हो लल्ला…?
मेने भाभी की तरफ धन्यवाद वाली नज़रों से देखा, कि चलो कम से कम भाभी को तो मेरी इच्छाओं का भान है…
उनकी बात सुनकर सब मेरी तरफ देखने लगे…
मेने कहा – मेरे विचार से हम सभी को बाबूजी की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए, रही बात मेरी अपनी इच्छा की तो वो भी उनके सम्मान से ही जुड़ी हुई हैं…
मेरी बात से बाबूजी की आँखें भर आईं, उन्होने मुझे अपने सीने से लगा लिया..और भरे कंठ से बोले –
जीता रह मेरे बच्चे…, पर बेटा मेने तो बस अपना विचार रखा था, ये तेरे ऊपर निर्भर करता है, कि तू क्या चाहता है…?
मेने उनसे अलग होते हुए कहा – मे बस ये चाहता हूँ, कि आप मुझसे क्या चाहते हैं…
हर माँ बाप अपनी आधी अधूरी हसरतों को अपने बच्चों के रूप में पूरा करना चाहते हैं, और यही सोच लेकर वो अपने बच्चों की परवरिश अपनी ख्वाहिशों को दफ़न कर के करते रहते हैं…
तो बच्चों का फ़र्ज़ भी है, कि वो उनकी भावनाओं का सम्मान करें…
फिर मेने दोनो भाइयों से मुखातिब होकर कहा – आप लोगों ने भी तो वही राह चुनी जो बाबूजी ने सुझाई थी, तो मे कैसे अलग राह चुन सकता हूँ…
मेरी बातें सुनकर सबकी आँखें नम हो गयी, और बारी-बारी से सबने मुझे सीने से लगाकर आशीर्वाद दिया.
बाबूजी ने मेरे सर पर हाथ रखकर कहा - अब मुझे पूरा विश्वास है, कि तू जो भी करेगा उसमें अवश्य सफल होगा…!
आज मे ईश्वर का बहुत अभारी हूँ, जिसने मुझे इतने लायक बेटे दिए… मेरा जीवन धन्य हो गया…!
आज अगर तुम्हारी माँ जिंदा होती, तो अपने बच्चों को देख कर कितनी खुश होती..ये बोलते - बोलते माँ की याद में उनकी आँखें भर आईं.
भाभी ने बाबूजी से कहा – वो अब भी हमारे बीच ही हैं बाबूजी… आज इस घर में जो खुशियाँ दिख रही हैं, वो उनके त्याग और आशीर्वाद का ही तो फल है…!
बाबूजी ने भाभी के सर पर आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ रख कर कहा – तुम सच कहती हो बेटी,
लेकिन इन सबके अलावा विमला के जाने के बाद जिस तरह से तुमने अपनी छोटी उमर में इस घर को संभाला है, वो भी कोई मामूली बात नही है…
ये घर तुम्हारा हमेशा एहसानमंद रहेगा बेटी….
भाभी – भला अपनों पर भी कोई एहसान करता है बाबूजी…! मेने तो बस वही किया जो माजी मुझसे बोलकर गयी थी…
माहौल थोड़ा एमोशनल सा हो गया था, सभी की आँखें नम हो चुकी थी, इससे पहले की मामला कुछ और सीरीयस रूप लेता, कि तभी रूचि बीच में कूद पड़ी…
मम्मी ! आप लोग बात ही करते रहोगे, मुझे भूख लगी है..., सभी को उसके अचानक इस तरह बोलने से हँसी आ गयी, भाभी ने उठ कर उसे दूध दिया, तो माहौल थोड़ा नॉर्मल हुआ…
कुछ देर के वार्तालाप के बाद डिसाइड हुआ कि मुझे लॉ करना चाहिए, वो भी किसी अच्छे कॉलेज से, सो दूसरे दिन ही बड़े भैया, देल्ही के एक अच्छे से कॉलेज का फॉर्म ले आए…
मेरे ग्रॅजुयेशन के अच्छे नंबरों की वजह से देल्ही के कॉलेज में मुझे अड्मिशन मिल गया…, मे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए देल्ही जाने की तैयारियों में जुट गया….!
देल्ही जाने से एक दिन पहले शाम को मे अपने सभी परिवार वालों से मिलने के लिए घर से निकला…
पहले बड़े चाचा के यहाँ, फिर मनझले चाचा-चाची से आशीर्वाद लेकर मे छोटी चाची के यहाँ पहुँचा…
चाचा कहीं बाहर गये थे.. चाची ने मुझे देखते ही, चारपाई पर बिठाया और अंश को रूचि के साथ खेलने को भेजकर वो मेरे पास आकर बैठ गयी…
सी. चाची – लल्ला ! सुना है, तुम दिल्ली जा रहे हो पढ़ने के लिए, इसमें तो सालों निकल जाएँगे…
मे – हां चाची लगभग 4 साल तो लग ही जाएँगे…!
वो – हाए राम ! 4 साल..? चाची दुखी सी दिखाई देने लगी ये सुनकर, फिर मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोली…
बहुत याद आओगे तुम, वैसे हम सबके बिना कैसे काटोगे इतने दिन अकेले…?
मे – क्या करूँ चाची काटने तो पड़ेंगे ही… अब बाबूजी की आग्या का पालन तो करना ही पड़ेगा… वैसे आप मुझे बहुत याद आओगी चाची…
मेरी बात सुनकर उनकी आँखें डॅब्डबॉ गयी, और मुझे अपने सीने से लगाकर बोली – सच बेटा…! तुम्हें अपनी चाची की याद आएगी..?
ना जाने क्यों , चाची के मुँह से पहली बार बेटा सुनकर मेरा भी मन भर आया, मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े, और मे कसकर उनके सीने से लिपट गया…!
फिर मेने उन्हें अलग करते हुए, उनके आँसू पोंच्छ कर कहा – चाची , एक बार फिरसे बेटा कहो ना… ये शब्द सुनने के लिए कान तरस गये थे मेरे…
चाची – सच बेटा…! मेरा बेटा कहना अच्छा लगा तुम्हें.. ?
मे उनके सीने से एक बार फिर लिपट गया, और हिचकी लेते हुए कहा – हां चाची… मुझे बेटा कहने वाला कोई नही है… आप मेरी माँ बन कर मुझे अपने गले से लगा लो..!
चाची की रुलाई फुट पड़ी, और रोते हुए उन्होने मुझे अपने कंठ से लगा लिया… फिर मेरी पीठ सहलाते हुए बोली – माँ की याद आ रही है मेरे बेटे को… मुझे अपनी माँ ही समझ मेरे बेटे…
मेने रोते हुए कहा – हां ! आप मेरी माँ ही तो हो, जिसने अपने बेटे की हर ख्वाहिश का ख़याल रखा है अबतक…
कुछ देर एमोशनल होने के बाद मेने थोड़ा माहौल चेंज करने की गरज से चाची के होंठों को चूम लिया..और उनकी आँखों में देखते हुए कहा…
वैसे मेरे तो आपसे और भी नाते हैं.. हैं ना चाची…?
वो भी मुस्करा पड़ी, और मेरे होंठों पर प्यारा सा चुंबन लेकर बोली – तुम तो मेरे सब कुछ हो, बेटा, जेठौत (भतीजा)…और..और…
मेने शरारत से उनके आमों को सहलाते हुए कहा- और क्या चाची.. बोलो..
चाची – और मेरे बच्चे के बाप भी…फिर वो मेरी जांघों को सहला कर बोली –
वैसे सच में बहुत याद आएगी तुम्हारी… ख़ासकर इसकी.. ये कहकर उन्होने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…
मेने उनके आमों को ज़ोर से मसल दिया – सीधे-सीधे कहो ना कि एक बार और चाहिए ये आपको….
वो उसे ज़ोर से दबाते हुए बोली – अभी समय हो तो दे दो ना.. एक बार..
मे – यहीं…?,
ये सुनते ही वो झट से खड़ी हो गयी, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम की तरफ चल दी…
मेने चाची को नंगा कर के उनकी भरी हुई, मस्त जवानी का लुफ्त लेते हुए एक बार जमकर छोड़ा, और उन्हें उनके मन्मुताविक खुशी देकर अपने घर आ गया.
रात के खाने पर यही सब चर्चा होती रही, सभी लोग अपनी अपनी तरह से समझाते रहे मुझे,
कैसे रहना है, क्या खाना है, क्या नही खाना है… अपनी पढ़ाई पर ध्यान रखना है, इधर-उधर की बातों से बचना है.. यही सब बातें.
फिर सब सोने चले गये, मे भी अपने कमरे आकर बेड पर लेट गया, और भविश्य के बारे में सोचने लगा…
नींद तो आँखों से कोसों दूर थी…बस पड़ा था कमरे की छत को घूरते हुए…
लगभग 11 बजे भाभी मेरे कमरे में आईं, गेट लॉक कर के वो जैसे ही मेरी तरफ पलटी, मे उन्हें देखता ही रह गया…
मात्र एक मिनी गओन, जिसमें से उनका मादक दूधिया बदन छलक पड़ने को तत्पर दिखाई दे रहा था…
उनकी आँखों में अपने लाड़ले से बिछड़ने की उदासी साफ-साफ दिखाई दे रही थी..उन्हें देखते ही मे उठ कर बेड के सिरहाने से टेक लेकर बैठ गया…
हल्के कदमों से बढ़ती हुई वो मेरे बेड तक आईं, और बेड के साइड में खड़े होकर उन्होने अपना वो नाम मात्र का गाउन भी अपने बदन से सरका दिया…
भाभी की आँखें नम थी, जिन्हें देखकर मे भी बेड से नीचे उतरकर उनके सामने खड़ा हो गया….
मेने उनके हाथ को अपने हाथ में लेकर पूछा – भाभी आप यहाँ मेरे कमरे में और इस तरह… भैया को छोड़कर… वो क्या सोच रहे होंगे…?
वो अपनी रुलाई पर काबू करते हुए बोली – तुम्हें बस अपने भैया की फिकर है…मुझ पर क्या बीत रही है, इसका कोई अंदाज़ा नही है…
तुम उनकी फिकर छोड़ो, उन्हें मेने नींद की गोली देकर सुला दिया है, अब वो सुबह से पहले नही उठेंगे…
उनकी बात सुनकर मेने उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उनके लरजते होंठों पर अपने होंठ रख दिए… और एक गमगीन सा किस लेकर कहा…
मुझे पता है भाभी की आप पर क्या बीत रही है…, मे खुद नही समझ पा रहा हूँ, कि आपके बिना इतने साल मे कैसे रह पवँगा..?
भाभी मेरे सीने से लिपटकर फुट-फूटकर रोने लगी… मत जाओ लल्ला.. नही रह पाउन्गी मे तुम्हारे बिना…
मेने उनके नंगे बदन को सहलाते हुए कहा – मे भी नही चाहता भाभी…आप बाबूजी को समझाओ ना… यहीं पास के शहर में रहकर कुछ कर लूँगा…
कुछ देर सुबकने के बाद वो मुझसे अलग हुई… फिर अपने आँसू पोन्छ्कर बोली – अब कुछ नही हो सकता लल्ला, मे बाबूजी से क्या कहूँगी… नही..नही…तुम जाओ, रह लेंगे तुम्हारी यादों के सहारे…
मे नही चाहती की, मेरी वजह से तुम अपना भविश्य बरवाद करो…और तुम्हें भी अपना जी कड़ा करना होगा…
इसलिए मे तुम्हारे भैया को सुला कर तुम्हारे सामने इस अवस्था में खड़ी हूँ, कि आने वाले कुछ सालों के लिए इस रात को यादगार बना सकूँ,
आओ मुझमें समा जाओ मेरे प्रियतम… मेरे दिलवर…. मेरे लाड़ले देवर…
ये कहकर वो मुझसे किसी बेल की तरह लिपट गयीं, और मेरे चेहरे पर जगह जगह अनगिनत चुंबन ले डाले…
उन्हें बाहों में समेटे, मे पलग पर ले आया और फिर मेने उनके बदन पर उपरर से नीचे तक चुंबनों की बौछार करदी…
वो जलबिन मछली की तरह पलंग पर पड़ी तड़पने लगी…, अपनी आँखें मीचे छन-प्रतिछन वासना की तरफ बढ़ने लगी…
चूमते हुए मे उनकी टाँगों के बीच आ गया और उनकी चिकनी चमेली को हाथ से सहला कर उनकी चुचियो को चूस लिया…
आआहह…..सस्स्सिईईईईईईईईईई….लल्लाआ….मुझे खूब सराअ…प्यार चाहिए…आजज्ज….हहुऊन्न्ं…
जब मेने उनकी रस गागर के मुँह पर अपनी जीभ लगाई… भाभी की कमर बुरी तरह से थिरकने लगी… मे अपनी एक उंगली चूत के अंदर डालकर उनकी क्लिट को चूसने लगा…
आआययईीीई….म्म्मा आ….चूसूऊ…आअहह…खा…जाओ… उन्होने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया और अपनी गान्ड को हवा में लहराते हुए झड़ने लगी.
भाभी ने मेरे बालों को पकड़कर अपने ऊपर खींचा, और मेरे होंठों को चूस्ते हुए बोली – तुम सच में जादूगर हो लल्ला… अब पता नही ऐसा मज़ा कब मिलेगा मुझे….?
मेने उनके आमों को सहलाते हुए कहा – ये सब आपने ही तो सिखाया है भाभी...
सच कहूँ तो इतना सकुन मुझे और कहीं नही मिलता, जितना आपके आगोश में मिलता है… आप ही मेरे लिए सब कुछ हो,
मेरी गुरु, मेरी प्रेयशी, मेरी भाभी, मेरी माँ…सब कुछ… आप हैं, तो मे हूँ, वरना आपके बिना मेरा कोई वजूद नही…
भाभी ने मेरे नीचे लेते हुए, मेरे शेर को अपने हाथ में लेकर अपनी रसीली के मुँह पर रखा और अपनी टाँगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेटकर कस लिया…
मेरा लंड सरसरकार उनकी गीली चूत में चला गया….
सस्स्स्सिईईईईईईई…..आअहह….इतना प्यार करते हो अपनी भाभी से… उउफफफ्फ़…. रजाअ.. मत करो इतना प्यार…की ये मोहिनी कहीं मर ही ना जाए तुम्हारी जुदाई में…
भाभी के शब्द उनके मुँह में ही जप्त रह गये, क्योंकि मेने अपने होंठ जो टिका दिए उनके होंठों से… और अपनी कमर को और ज़ोर से दबा दिया….
मेरा पूरा लंड उनकी बच्चेदानी के मुँह तक दस्तक देने लगा… भाभी अपार सुख की सीमा लाँघ गयी… और ज़ोर से उन्होने मुझे अपने बदन से कस लिया….
मेने जैसे ही अपने मूसल को सुपादे तक बाहर लेकर एक जोरदार धक्का मारा…
उन्होने अपने दाँत मेरे कंधे में गढ़ा दिए.. और जोरदार सिसकारी भरते हुए अपनी कमर और ऊपर कर के मेरे शेर को गहरे और गहरे तक अपनी मान्द में समा लिया…
आज भाभी के साथ सेक्स करने में कुछ अलग सी ही फीलिंग हो रही थी, वो मशीनी अंदाज में अपनी कमर को झटके दे देकर चुदाई के मज़े को दुगना-तिगुना करने की कोशिश में लगी थी…
रात के अंतिम पहर तक भाभी मेरे पास ही रहीं, उनका मन ही नही था अलग होने का… लेकिन सामाजिक बाँधों में जकड़े उदास मन.. एक दूसरे से जुदा होना ही पड़ा..
उस रात मेरी माँ, मेरी अबतक की हमसफर, मेरी जान, मेरी सब कुछ, मोहिनी भाभी ने उस रात दिल्खोल कर अपने लाड़ले देवर को प्यार दिया…
मे उनके प्यार से सराबोर होकर, अपने परिवार की यादों को अपने साथ समेटे हुए, दूसरे दिन देल्ही लॉ की पढ़ाई करने के लिए निकल पड़ा….!
चार साल बाद ....................
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आज मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी का दिन था… क्योंकि पूरे 4 साल के बाद मे अपने घर वापस जा रहा था,
बीते 4 सालों से मे देल्ही में रहकर एलएलबी की पढ़ाई करता रहा था…, इस बीच रामा दीदी के यहाँ भी जाता रहा, लेकिन धीरे-2 वो भी बंद सा हो गया…
पिच्छले एक साल से एक जाने माने लॉयर के अंडर में मेने प्रॅक्टीस की, जिनसे मेने लॉ की बारीकियों को अच्छे से जाना था…
आज अपने गुरु प्रोफ़ेसर. राम नारायण जो उसी लॉ कॉलेज में प्रोफेसर भी हैं, उनसे पर्मिशन लेकर मे अपने घर जा रहा था…
ट्रेन में बैठा मे अपने बीते हुए दिनो को याद कर रहा था… साथ ही अपनी भाभी और प्यारी भतीजी रूचि से मिलने की एग्ज़ाइट्मेंट, …
बाबूजी और भैया का स्नेह और आशीर्वाद मिलने वाला था मुझे आज.
बीते कुछ दिनों में निशा से भी कोई बात नही हो पाई थी.., मेने कितनी ही बार उसके घर फोन किया, लेकिन लगा ही नही,
ना जाने वो क्या कर रही होगी आजकल, … फिर अचानक एक अंजानी सी आसंका ने मुझे घेर लिया…
कहीं उसके घरवालों ने उसकी शादी ना करदी हो…ये सोचकर ही मेरे शरीर में एक अंजाने डर की लहर दौड़ गयी… और मे बैचैन हो उठा…
इधर कुछ दिनो से मेरे घरवालों ने भी एक तरह से मुझसे संबंध सा ही ख़तम कर लिया था…
बस महीने के महीने मुझे खर्चा मिल जाया करता था, वो भी मनी ऑर्डर के ज़रिए….
मे जब भी फोन करता, लाइन मिलती, और मेरी आवाज़ सुनते ही कट कर दिया जाता...
जब पिछले कई महीनों से कोई खैर खबर नही मिली, तो मे बैचैन रहने लगा, जिसे प्रोफ़ेसर साब ने भाँप लिया और पुच्छ बैठे…
जब मेने सारी बात उन्हें बताई, तो उन्होने ही मुझे घर जाकर पता करने की बात कही…
फिर मेरी सोचों पर भाभी ने कब्जा कर लिया, उनके साथ बिताए वो स्वर्णिम दिन याद आने लगे, भाभी ने मेरी खुशी को कैसे अपनी जिंदगी ही बना लिया था…,
प्यार और स्नेह के साथ साथ उन्होने मुझे दुनियादारी भी सिखाई थी…, एक तरह से उन्होने ही मुझे इस काबिल बनाया था, मे उनके त्याग और ममता का ऋण कैसे उतार पाउन्गा…?
अपनी सोचों में गुम मुझे पता भी नही चला, कब मेरा स्टेशन आ गया…जब गाड़ी खड़ी हुई, तब जाकर मेरी सोचों पर भी ब्रेक लगे…
मेने लोगों से स्टेशन के बारे में पूछा.., हड़बड़ा कर मेने अपना बॅग लिया और डिब्बे से बाहर आया…
यहाँ से मुझे अपने घर तक बस से ही जाना था… जो करीब 1 घंटे बाद निकलने वाली थी…
मे जब अपने घर की चौपाल पर पहुँचा … जहाँ किसी समय बाबूजी की मौजूदगी में लोगों की जमात लगी होती थी वहीं आज सन्नाटा सा पसरा हुआ था..
बैठक का दरवाजा तो खुला था… इसका मतलव बाबूजी बैठक में हैं… लेकिन इतनी शांति क्यों है…
मे धड़कते दिल से बैठक के गेट पर पहुँचा… अंदर बाबूजी अकेले अपनी ही सोच में डूबे हुए आराम कुर्सी पर बैठे झूल रहे थे…,
वो आज मुझे कुछ थके-थके से दिखाई दिए.
मुझे सामने देखकर वो झटके से खड़े हो गये, मेने जाकर उनके पैर छुये, उन्होने मेरे सर पर हाथ फेर्कर आशीर्वाद दिया…
बाबूजी ने मुझे अपने गले से लगा लिया…, ना जाने क्यों उनकी आँखों से दो बूँद टपक कर मेरे कंधे पर गिरी…
मेने उनकी तरफ देखा… तो वो रुँधे गले से बोले… जा बेटा घर जाकर फ्रेश होले.. हारा थका आया है… थोड़ा आराम करले.. फिर बैठेंगे साथ में…
मे उनके पास से उठ कर अपना बॅग उठाए घर के अंदर पहुँचा…मेरी बिटिया रानी मेरी भतीजी… रूचि जो अब काफ़ी बड़ी हो गयी थी.. आँगन में खेल रही थी..
मुझे देखते ही दौड़कर मेरे पैरों से लिपट गयी… और चिल्लाते हुए बोली –
चाचू आ गये…. मम्मी… मौसी… देखो चाचू आ गये…
उसकी आवाज़ सुनकर भाभी और निशा दौड़ कर बाहर आई… मुझे देखते ही भाभी ने मुझे अपने कलेजे से लगा लिया… लाख कोशिशों के बाद भी उनकी रुलाई फुट पड़ी.. और उनकी आँखें बरसने लगी…
उनके पीछे खड़ी निशा भी रो रही थी…
मेने भाभी के कंधों को पकड़ कर उनसे कहा – क्या भाभी ! अपने लाड़ले का आँसुओं से स्वागत करोगी.. अब तो मे आ गया हूँ ना ! फिर ये आँसू क्यों..?
उन्होने अपने ऊपर कंट्रोल किया और बोली – ये तो मेरे खुशी के आँसू थे जो 4 साल से रुके पड़े थे… तुम्हें देखते ही कम्बख़्त दगा दे गये.. और छलक पड़े…
जाओ तुम पहले फ्रेश हो जाओ… फिर निशा की तरफ मुड़कर बोली… जा निशा लल्ला के लिए चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर, ये थके हारे आए हैं..
भाभी मेरे हाथ से बॅग लेकर मेरे कमरे में चली गयी.. उनके साथ-2 रूचि भी थी.…
मे जब बाथरूम से लौट रहा था… तब रूचि भाभी से पुच्छ रही थी…
मम्मी..! आपने चाचू से झूठ क्यों कहा…? उन्हें सच क्यों नही बताया कि आप और मौसी क्यों रो रही थी ?
भाभी – नही बेटा ! चाचू अभी थके हुए हैं ना ! इसलिए मम्मी उन्हें परेशान नही करना चाहती थी… इसलिए..
रात को जब पापा आजाएँगे ना, तब दादू और हम सब मिलकर चाचू को बताएँगे… अभी तू चाचू को कुछ मत बताना.. ठीक है, मेरा अच्छा बच्चा..
रूचि ने हां में गर्दन हिला दी… लेकिन इन बातों ने मुझे अंदर तक हिला दिया था… ना जाने ऐसा क्या हुआ है यहाँ…? और ये निशा यहाँ क्यों हैं..?
अब मुझे चैन नही पड़ रहा था..मेरे अंदर उथल-पुथल होने लगी, मुझे किसी उन्होनी का आभास सा हो रहा था.
मे जानना चाहता था.. कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है.. जिससे सब लोग दुखी हैं..
पर जब भाभी एक बार बोल चुकी हैं कि वो मुझे परेशान नही करना चाहती..
तो मे भी अब उनको पुच्छ कर उनकी परेशानी नही बढ़ाउंगा….. , ये सोचकर मे किचन की ओर बढ़ गया…
किचन में निशा मेरे लिए चाय बना रही थी.. मेने उसके पास जा कर उसको आवाज़ दी – निशु…!
मेरी आवाज़ सुनते ही वो पलट कर मेरे सीने से लिपट गयी और सूबकने लगी….
मेने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा – हुआ क्या है यहाँ…? मुझे कुछ बताओ तो सही…
ये सुनकर वो एक झटके में मुझसे अलग हो गयी… और अपने आँसू पोन्छते हुए बोली –
मे आपको कुछ भी नही बता पाउन्गि… प्लीज़ मुझसे कुछ मत पुछिये….
मेने झल्लाकर कहा… आख़िर बात क्या है.. तुम बता नही सकती, भाभी बताना नही चाहती… लगता है आप लोग मुझे पागल बनाक छोड़ोगे…
तभी वहाँ भाभी आ गयी… और बोली – थोड़ा सा इंतेज़ार कर लो लल्ला.. प्लीज़ अपने भैया को भी आ जाने दो…फिर बात करते हैं.. हां..!
मे – लेकिन भैया हैं कहाँ…? रात होने को आई.. अभी तो कॉलेज भी बंद हो गया होगा…
भाभी – वो थोड़ा शहर गये हैं, आते ही होंगे… अभी हम ये बात कर ही रहे थे.. कि भैया की गाड़ी की आवाज़ सुनाई दी.. रूचि भागते हुए बाहर गयी…
कुछ देर बाद भैया भी आ गये… मेने उनके पैर छुये, तो उन्होने मुझे आशीर्वाद दिया…
कुछ देर बाद उनके पीछे ही बाबूजी भी घर के अंदर आ गये… अब हम सब एक साथ बैठे थे…
बाबूजी ने भैया से पूछा… आज कुछ हुआ राम…?
भैया ने मेरी तरफ देखा… और बोले…, बाबूजी ! इससे पहले कि आज क्या हुआ… मे अपने भाई को सब कुछ साफ-2 बता देना बेहतर समझता हूँ…
भैया - छोटू ! मेरे भाई मुझे पता है, कि घर के बदले हुए हालत देख कर इसके बारे में जानने को तू उत्सुक है.. और मे आज कहाँ से आरहा हूँ…?
तो सुन , मोहिनी का भाई राजेश इस समय जैल में है… उसपर इरादतन कत्ल करने का संगीन इल्ज़ाम है.. दफ़ा 307 के तहत उसे जैल में डाला हुआ है,
पिच्छले 6 महीनों से धक्के खाने के बाद भी अभी तक उसकी जमानत नही हो सकी है..
भैया की बात सुन कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया… मेरे मुँह से आवाज़ तक नही निकली….
मेरी ऐसी अवस्था देख कर उन्होने मेरा हाथ पकड़ते हुए आगे कहना शुरू किया – ये क्यों हुआ… कैसे हुआ… मेरे ख़याल से ये सब आगे निशा ही बताए तो ज़्यादा सही होगा…
भैया की बात सुन कर मेने निशा की तरफ देखा… जो गर्दन झुकाए..बस रोए जा रही थी…..
बहुत देर की चुप्पी के बाद बाबूजी बोले – बता दे बेटी… तेरे ऊपर जो बीती है.. वो तुझसे अच्छा और कॉन बता सकता है… !
मे लगभग चीख ही पड़ा – क्या……? क्या हुआ था निशा के साथ..?
बोलो निशा ! क्या हुआ था तुम्हारे साथ……
निशा तो बस रोए ही जा रही थी, उसकी हालत देखकर लग रहा था कि वो कुछ भी बताने की स्थिति में नही है…
मेरे सब्र का बाँध टूटने लगा था… सो ये भी भूल गया कि मेरे सामने कॉन-कॉन बैठा है…, और उसको कंधों से पकड़ का झकझोरते हुए बोला…
बताओ निशु ! मुझे सब कुछ सच सुनना है… तुम्हें अपने प्यार की कसम अब अगर अब भी तुम कुकच्छ नही बोली तो…मे तुम्हें कभी माफ़ नही करूँगा…
सब मेरे मुँह की तरफ देखने लगे… निशा किन्कर्तब्यविमूढ़ सी कुछ देर यौही बैठी सुबक्ती रही, मेरे इस तरह चीखने से उसकी रुलाई तो थम गयी थी, लेकिन फिर भी कुछ बोल नही पा रही थी,
फिर कुछ साहस बटोरकर सुबक्ते हुए वो अपनी आप बीती बताने लगी…!
मेने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – कल रात से मन नही भरा तुम्हारा..?
वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – इसे देखकर फिर से मन करने लगा है..
प्लीज़ अंकुश एक बार और कर्दे ना यार.., ना जाने फिर मौका मिले या ना मिले…
मेरा भी रात के ड्रग का असर अभी वाकी था, सो मेने वही उसे घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी मस्त गान्ड को मसल्ते हुए अपना लंड उसकी गान्ड में ठोक दिया…
वो बुरी तरह से कसमसाने लगी, लंड अभी आधा भी अंदर नही गया था, और वो हाए-तौबा करने लगी, और लंड बाहर निकालने के लिए गुहार करने लगी…
मेने भी उसे ज़्यादा परेशान करना ठीक नही समझा, वरना एक और लंगड़ी घोड़ी ग्रूप में शामिल हो जाती,
मेने उसकी गान्ड से अपना लंड खींचकर उसकी चूत में पेल दिया, उसकी एक बार और अच्छे से खुजली मिटाकर हम दोनो वापस आ गये…
अपने टेंट में जाने से पहले रीना ने मेरे होंठों को चूम लिया और बोली –
थॅंक यू अंकुश… तुम्हारे साथ बिताए लम्हों को जीवन भर नही भूल पाउन्गि.
मेने अपने टेंट में जाकर कपड़े चेंज किए, और फिर डरते-डरते रागिनी के पास गया, मुझे देखते ही रागिनी सुबकते हुए बोली –
मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी, मेने जो तुम्हारे साथ किया वो मेरी ज़िद थी तुम्हें पाने की, लेकिन तुमने तो….
अपनी बात अधूरी छोड़कर वो फिरसे सुबकने लगी…
मे उसके पास जाकर बैठ गया, और उसके कंधे को सहलाते हुए कहा - मुझे माफ़ कर दे रागिनी, सच्चाई जानने के बाद में अपने आपे में नही रहा.. सो तुम्हें सबक सिखाने के लिए ये सब कर बैठा…
सच कहूँ तो सुबह से ही मेरा मन आत्मगीलानी से भरा हुआ था, इसीलिए में नदी की तरफ चला गया था…
रागिनी ने अपने को शांत करते हुए कहा – इट्स ओके, ग़लती हम दोनो से ही हुई है..अब बेहतर होगा, कि बीती बातें भूलकर हम फिर से दोस्त रहें..
रागिनी के मुँह से ऐसी समझदारी भरी बातें सुनकर मेने उसे अपने बाजुओं में भरते हुए कहा…
ओह… थॅंक यू रागिनी, तुमने मुझे माफ़ कर दिया, अब हम पक्के वाले दोस्त हैं..
तभी रीना बीच में बोल पड़ी – मुझे भूल गये क्या…?
हँसते हुए हमने उसे भी अपने पास खींच लिया, और हम तीनों ही एक दूसरे से लिपट गये…
जीवन के किसी मोड़ पर फिरसे मिलने का वादा कर के मे अपने टेंट में चला गया, और अपना समान पॅक करने लगा…
दिन ढले हमारा टूर वापसी के लिए चल पड़ा, और दूसरे दिन सुबह हम अपने कस्बे में थे…
कुछ दिनो बाद ही हमारे फाइनल एग्ज़ॅम हो गये, मेने अच्छे ग्रेड से ग्रॅजुयेशन कंप्लीट कर लिया….!
रिज़ल्ट के बाद घर में बड़ों के बीच डिस्कशन का दौर शुरू हुआ, वीकेंड में दोनो भाई घर में मौजूद थे…
बड़े भैया का सुझाव था, कि मे उनकी तरह हाइयर स्टडी करूँ और किसी कॉलेज में लग जाउ…
लेकिन कृष्णा भैया चाहते थे, की मे उनकी तरह किसी प्रशासनिक पद के लिए तैयारी करूँ….
किसी को मुझे पूच्छने की तो जैसे कोई ज़रूरत ही महसूस नही हो रही थी, कि मे क्या चाहता हूँ…
तभी बाबूजी ने अपनी अलग ही राई रख दी और बोले – वैसे तो तुम सब लोग समझदार हो, जो भी कहोगे छोटू के भले के लिए ही कहोगे,
लेकिन मे चाहता हूँ, कि घर में कोई एक ऐसा भी हो जो क़ानून और अदालती कार्यों की जानकारी रखता हो.. तभी हमारा परिवार पूर्ण होगा…
भाभी ने मेरी तरफ देखा और बोली – तुम क्या चाहते हो लल्ला…?
मेने भाभी की तरफ धन्यवाद वाली नज़रों से देखा, कि चलो कम से कम भाभी को तो मेरी इच्छाओं का भान है…
उनकी बात सुनकर सब मेरी तरफ देखने लगे…
मेने कहा – मेरे विचार से हम सभी को बाबूजी की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए, रही बात मेरी अपनी इच्छा की तो वो भी उनके सम्मान से ही जुड़ी हुई हैं…
मेरी बात से बाबूजी की आँखें भर आईं, उन्होने मुझे अपने सीने से लगा लिया..और भरे कंठ से बोले –
जीता रह मेरे बच्चे…, पर बेटा मेने तो बस अपना विचार रखा था, ये तेरे ऊपर निर्भर करता है, कि तू क्या चाहता है…?
मेने उनसे अलग होते हुए कहा – मे बस ये चाहता हूँ, कि आप मुझसे क्या चाहते हैं…
हर माँ बाप अपनी आधी अधूरी हसरतों को अपने बच्चों के रूप में पूरा करना चाहते हैं, और यही सोच लेकर वो अपने बच्चों की परवरिश अपनी ख्वाहिशों को दफ़न कर के करते रहते हैं…
तो बच्चों का फ़र्ज़ भी है, कि वो उनकी भावनाओं का सम्मान करें…
फिर मेने दोनो भाइयों से मुखातिब होकर कहा – आप लोगों ने भी तो वही राह चुनी जो बाबूजी ने सुझाई थी, तो मे कैसे अलग राह चुन सकता हूँ…
मेरी बातें सुनकर सबकी आँखें नम हो गयी, और बारी-बारी से सबने मुझे सीने से लगाकर आशीर्वाद दिया.
बाबूजी ने मेरे सर पर हाथ रखकर कहा - अब मुझे पूरा विश्वास है, कि तू जो भी करेगा उसमें अवश्य सफल होगा…!
आज मे ईश्वर का बहुत अभारी हूँ, जिसने मुझे इतने लायक बेटे दिए… मेरा जीवन धन्य हो गया…!
आज अगर तुम्हारी माँ जिंदा होती, तो अपने बच्चों को देख कर कितनी खुश होती..ये बोलते - बोलते माँ की याद में उनकी आँखें भर आईं.
भाभी ने बाबूजी से कहा – वो अब भी हमारे बीच ही हैं बाबूजी… आज इस घर में जो खुशियाँ दिख रही हैं, वो उनके त्याग और आशीर्वाद का ही तो फल है…!
बाबूजी ने भाभी के सर पर आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ रख कर कहा – तुम सच कहती हो बेटी,
लेकिन इन सबके अलावा विमला के जाने के बाद जिस तरह से तुमने अपनी छोटी उमर में इस घर को संभाला है, वो भी कोई मामूली बात नही है…
ये घर तुम्हारा हमेशा एहसानमंद रहेगा बेटी….
भाभी – भला अपनों पर भी कोई एहसान करता है बाबूजी…! मेने तो बस वही किया जो माजी मुझसे बोलकर गयी थी…
माहौल थोड़ा एमोशनल सा हो गया था, सभी की आँखें नम हो चुकी थी, इससे पहले की मामला कुछ और सीरीयस रूप लेता, कि तभी रूचि बीच में कूद पड़ी…
मम्मी ! आप लोग बात ही करते रहोगे, मुझे भूख लगी है..., सभी को उसके अचानक इस तरह बोलने से हँसी आ गयी, भाभी ने उठ कर उसे दूध दिया, तो माहौल थोड़ा नॉर्मल हुआ…
कुछ देर के वार्तालाप के बाद डिसाइड हुआ कि मुझे लॉ करना चाहिए, वो भी किसी अच्छे कॉलेज से, सो दूसरे दिन ही बड़े भैया, देल्ही के एक अच्छे से कॉलेज का फॉर्म ले आए…
मेरे ग्रॅजुयेशन के अच्छे नंबरों की वजह से देल्ही के कॉलेज में मुझे अड्मिशन मिल गया…, मे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए देल्ही जाने की तैयारियों में जुट गया….!
देल्ही जाने से एक दिन पहले शाम को मे अपने सभी परिवार वालों से मिलने के लिए घर से निकला…
पहले बड़े चाचा के यहाँ, फिर मनझले चाचा-चाची से आशीर्वाद लेकर मे छोटी चाची के यहाँ पहुँचा…
चाचा कहीं बाहर गये थे.. चाची ने मुझे देखते ही, चारपाई पर बिठाया और अंश को रूचि के साथ खेलने को भेजकर वो मेरे पास आकर बैठ गयी…
सी. चाची – लल्ला ! सुना है, तुम दिल्ली जा रहे हो पढ़ने के लिए, इसमें तो सालों निकल जाएँगे…
मे – हां चाची लगभग 4 साल तो लग ही जाएँगे…!
वो – हाए राम ! 4 साल..? चाची दुखी सी दिखाई देने लगी ये सुनकर, फिर मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोली…
बहुत याद आओगे तुम, वैसे हम सबके बिना कैसे काटोगे इतने दिन अकेले…?
मे – क्या करूँ चाची काटने तो पड़ेंगे ही… अब बाबूजी की आग्या का पालन तो करना ही पड़ेगा… वैसे आप मुझे बहुत याद आओगी चाची…
मेरी बात सुनकर उनकी आँखें डॅब्डबॉ गयी, और मुझे अपने सीने से लगाकर बोली – सच बेटा…! तुम्हें अपनी चाची की याद आएगी..?
ना जाने क्यों , चाची के मुँह से पहली बार बेटा सुनकर मेरा भी मन भर आया, मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े, और मे कसकर उनके सीने से लिपट गया…!
फिर मेने उन्हें अलग करते हुए, उनके आँसू पोंच्छ कर कहा – चाची , एक बार फिरसे बेटा कहो ना… ये शब्द सुनने के लिए कान तरस गये थे मेरे…
चाची – सच बेटा…! मेरा बेटा कहना अच्छा लगा तुम्हें.. ?
मे उनके सीने से एक बार फिर लिपट गया, और हिचकी लेते हुए कहा – हां चाची… मुझे बेटा कहने वाला कोई नही है… आप मेरी माँ बन कर मुझे अपने गले से लगा लो..!
चाची की रुलाई फुट पड़ी, और रोते हुए उन्होने मुझे अपने कंठ से लगा लिया… फिर मेरी पीठ सहलाते हुए बोली – माँ की याद आ रही है मेरे बेटे को… मुझे अपनी माँ ही समझ मेरे बेटे…
मेने रोते हुए कहा – हां ! आप मेरी माँ ही तो हो, जिसने अपने बेटे की हर ख्वाहिश का ख़याल रखा है अबतक…
कुछ देर एमोशनल होने के बाद मेने थोड़ा माहौल चेंज करने की गरज से चाची के होंठों को चूम लिया..और उनकी आँखों में देखते हुए कहा…
वैसे मेरे तो आपसे और भी नाते हैं.. हैं ना चाची…?
वो भी मुस्करा पड़ी, और मेरे होंठों पर प्यारा सा चुंबन लेकर बोली – तुम तो मेरे सब कुछ हो, बेटा, जेठौत (भतीजा)…और..और…
मेने शरारत से उनके आमों को सहलाते हुए कहा- और क्या चाची.. बोलो..
चाची – और मेरे बच्चे के बाप भी…फिर वो मेरी जांघों को सहला कर बोली –
वैसे सच में बहुत याद आएगी तुम्हारी… ख़ासकर इसकी.. ये कहकर उन्होने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…
मेने उनके आमों को ज़ोर से मसल दिया – सीधे-सीधे कहो ना कि एक बार और चाहिए ये आपको….
वो उसे ज़ोर से दबाते हुए बोली – अभी समय हो तो दे दो ना.. एक बार..
मे – यहीं…?,
ये सुनते ही वो झट से खड़ी हो गयी, और मेरा हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम की तरफ चल दी…
मेने चाची को नंगा कर के उनकी भरी हुई, मस्त जवानी का लुफ्त लेते हुए एक बार जमकर छोड़ा, और उन्हें उनके मन्मुताविक खुशी देकर अपने घर आ गया.
रात के खाने पर यही सब चर्चा होती रही, सभी लोग अपनी अपनी तरह से समझाते रहे मुझे,
कैसे रहना है, क्या खाना है, क्या नही खाना है… अपनी पढ़ाई पर ध्यान रखना है, इधर-उधर की बातों से बचना है.. यही सब बातें.
फिर सब सोने चले गये, मे भी अपने कमरे आकर बेड पर लेट गया, और भविश्य के बारे में सोचने लगा…
नींद तो आँखों से कोसों दूर थी…बस पड़ा था कमरे की छत को घूरते हुए…
लगभग 11 बजे भाभी मेरे कमरे में आईं, गेट लॉक कर के वो जैसे ही मेरी तरफ पलटी, मे उन्हें देखता ही रह गया…
मात्र एक मिनी गओन, जिसमें से उनका मादक दूधिया बदन छलक पड़ने को तत्पर दिखाई दे रहा था…
उनकी आँखों में अपने लाड़ले से बिछड़ने की उदासी साफ-साफ दिखाई दे रही थी..उन्हें देखते ही मे उठ कर बेड के सिरहाने से टेक लेकर बैठ गया…
हल्के कदमों से बढ़ती हुई वो मेरे बेड तक आईं, और बेड के साइड में खड़े होकर उन्होने अपना वो नाम मात्र का गाउन भी अपने बदन से सरका दिया…
भाभी की आँखें नम थी, जिन्हें देखकर मे भी बेड से नीचे उतरकर उनके सामने खड़ा हो गया….
मेने उनके हाथ को अपने हाथ में लेकर पूछा – भाभी आप यहाँ मेरे कमरे में और इस तरह… भैया को छोड़कर… वो क्या सोच रहे होंगे…?
वो अपनी रुलाई पर काबू करते हुए बोली – तुम्हें बस अपने भैया की फिकर है…मुझ पर क्या बीत रही है, इसका कोई अंदाज़ा नही है…
तुम उनकी फिकर छोड़ो, उन्हें मेने नींद की गोली देकर सुला दिया है, अब वो सुबह से पहले नही उठेंगे…
उनकी बात सुनकर मेने उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उनके लरजते होंठों पर अपने होंठ रख दिए… और एक गमगीन सा किस लेकर कहा…
मुझे पता है भाभी की आप पर क्या बीत रही है…, मे खुद नही समझ पा रहा हूँ, कि आपके बिना इतने साल मे कैसे रह पवँगा..?
भाभी मेरे सीने से लिपटकर फुट-फूटकर रोने लगी… मत जाओ लल्ला.. नही रह पाउन्गी मे तुम्हारे बिना…
मेने उनके नंगे बदन को सहलाते हुए कहा – मे भी नही चाहता भाभी…आप बाबूजी को समझाओ ना… यहीं पास के शहर में रहकर कुछ कर लूँगा…
कुछ देर सुबकने के बाद वो मुझसे अलग हुई… फिर अपने आँसू पोन्छ्कर बोली – अब कुछ नही हो सकता लल्ला, मे बाबूजी से क्या कहूँगी… नही..नही…तुम जाओ, रह लेंगे तुम्हारी यादों के सहारे…
मे नही चाहती की, मेरी वजह से तुम अपना भविश्य बरवाद करो…और तुम्हें भी अपना जी कड़ा करना होगा…
इसलिए मे तुम्हारे भैया को सुला कर तुम्हारे सामने इस अवस्था में खड़ी हूँ, कि आने वाले कुछ सालों के लिए इस रात को यादगार बना सकूँ,
आओ मुझमें समा जाओ मेरे प्रियतम… मेरे दिलवर…. मेरे लाड़ले देवर…
ये कहकर वो मुझसे किसी बेल की तरह लिपट गयीं, और मेरे चेहरे पर जगह जगह अनगिनत चुंबन ले डाले…
उन्हें बाहों में समेटे, मे पलग पर ले आया और फिर मेने उनके बदन पर उपरर से नीचे तक चुंबनों की बौछार करदी…
वो जलबिन मछली की तरह पलंग पर पड़ी तड़पने लगी…, अपनी आँखें मीचे छन-प्रतिछन वासना की तरफ बढ़ने लगी…
चूमते हुए मे उनकी टाँगों के बीच आ गया और उनकी चिकनी चमेली को हाथ से सहला कर उनकी चुचियो को चूस लिया…
आआहह…..सस्स्सिईईईईईईईईईई….लल्लाआ….मुझे खूब सराअ…प्यार चाहिए…आजज्ज….हहुऊन्न्ं…
जब मेने उनकी रस गागर के मुँह पर अपनी जीभ लगाई… भाभी की कमर बुरी तरह से थिरकने लगी… मे अपनी एक उंगली चूत के अंदर डालकर उनकी क्लिट को चूसने लगा…
आआययईीीई….म्म्मा आ….चूसूऊ…आअहह…खा…जाओ… उन्होने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया और अपनी गान्ड को हवा में लहराते हुए झड़ने लगी.
भाभी ने मेरे बालों को पकड़कर अपने ऊपर खींचा, और मेरे होंठों को चूस्ते हुए बोली – तुम सच में जादूगर हो लल्ला… अब पता नही ऐसा मज़ा कब मिलेगा मुझे….?
मेने उनके आमों को सहलाते हुए कहा – ये सब आपने ही तो सिखाया है भाभी...
सच कहूँ तो इतना सकुन मुझे और कहीं नही मिलता, जितना आपके आगोश में मिलता है… आप ही मेरे लिए सब कुछ हो,
मेरी गुरु, मेरी प्रेयशी, मेरी भाभी, मेरी माँ…सब कुछ… आप हैं, तो मे हूँ, वरना आपके बिना मेरा कोई वजूद नही…
भाभी ने मेरे नीचे लेते हुए, मेरे शेर को अपने हाथ में लेकर अपनी रसीली के मुँह पर रखा और अपनी टाँगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेटकर कस लिया…
मेरा लंड सरसरकार उनकी गीली चूत में चला गया….
सस्स्स्सिईईईईईईई…..आअहह….इतना प्यार करते हो अपनी भाभी से… उउफफफ्फ़…. रजाअ.. मत करो इतना प्यार…की ये मोहिनी कहीं मर ही ना जाए तुम्हारी जुदाई में…
भाभी के शब्द उनके मुँह में ही जप्त रह गये, क्योंकि मेने अपने होंठ जो टिका दिए उनके होंठों से… और अपनी कमर को और ज़ोर से दबा दिया….
मेरा पूरा लंड उनकी बच्चेदानी के मुँह तक दस्तक देने लगा… भाभी अपार सुख की सीमा लाँघ गयी… और ज़ोर से उन्होने मुझे अपने बदन से कस लिया….
मेने जैसे ही अपने मूसल को सुपादे तक बाहर लेकर एक जोरदार धक्का मारा…
उन्होने अपने दाँत मेरे कंधे में गढ़ा दिए.. और जोरदार सिसकारी भरते हुए अपनी कमर और ऊपर कर के मेरे शेर को गहरे और गहरे तक अपनी मान्द में समा लिया…
आज भाभी के साथ सेक्स करने में कुछ अलग सी ही फीलिंग हो रही थी, वो मशीनी अंदाज में अपनी कमर को झटके दे देकर चुदाई के मज़े को दुगना-तिगुना करने की कोशिश में लगी थी…
रात के अंतिम पहर तक भाभी मेरे पास ही रहीं, उनका मन ही नही था अलग होने का… लेकिन सामाजिक बाँधों में जकड़े उदास मन.. एक दूसरे से जुदा होना ही पड़ा..
उस रात मेरी माँ, मेरी अबतक की हमसफर, मेरी जान, मेरी सब कुछ, मोहिनी भाभी ने उस रात दिल्खोल कर अपने लाड़ले देवर को प्यार दिया…
मे उनके प्यार से सराबोर होकर, अपने परिवार की यादों को अपने साथ समेटे हुए, दूसरे दिन देल्ही लॉ की पढ़ाई करने के लिए निकल पड़ा….!
चार साल बाद ....................
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आज मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी का दिन था… क्योंकि पूरे 4 साल के बाद मे अपने घर वापस जा रहा था,
बीते 4 सालों से मे देल्ही में रहकर एलएलबी की पढ़ाई करता रहा था…, इस बीच रामा दीदी के यहाँ भी जाता रहा, लेकिन धीरे-2 वो भी बंद सा हो गया…
पिच्छले एक साल से एक जाने माने लॉयर के अंडर में मेने प्रॅक्टीस की, जिनसे मेने लॉ की बारीकियों को अच्छे से जाना था…
आज अपने गुरु प्रोफ़ेसर. राम नारायण जो उसी लॉ कॉलेज में प्रोफेसर भी हैं, उनसे पर्मिशन लेकर मे अपने घर जा रहा था…
ट्रेन में बैठा मे अपने बीते हुए दिनो को याद कर रहा था… साथ ही अपनी भाभी और प्यारी भतीजी रूचि से मिलने की एग्ज़ाइट्मेंट, …
बाबूजी और भैया का स्नेह और आशीर्वाद मिलने वाला था मुझे आज.
बीते कुछ दिनों में निशा से भी कोई बात नही हो पाई थी.., मेने कितनी ही बार उसके घर फोन किया, लेकिन लगा ही नही,
ना जाने वो क्या कर रही होगी आजकल, … फिर अचानक एक अंजानी सी आसंका ने मुझे घेर लिया…
कहीं उसके घरवालों ने उसकी शादी ना करदी हो…ये सोचकर ही मेरे शरीर में एक अंजाने डर की लहर दौड़ गयी… और मे बैचैन हो उठा…
इधर कुछ दिनो से मेरे घरवालों ने भी एक तरह से मुझसे संबंध सा ही ख़तम कर लिया था…
बस महीने के महीने मुझे खर्चा मिल जाया करता था, वो भी मनी ऑर्डर के ज़रिए….
मे जब भी फोन करता, लाइन मिलती, और मेरी आवाज़ सुनते ही कट कर दिया जाता...
जब पिछले कई महीनों से कोई खैर खबर नही मिली, तो मे बैचैन रहने लगा, जिसे प्रोफ़ेसर साब ने भाँप लिया और पुच्छ बैठे…
जब मेने सारी बात उन्हें बताई, तो उन्होने ही मुझे घर जाकर पता करने की बात कही…
फिर मेरी सोचों पर भाभी ने कब्जा कर लिया, उनके साथ बिताए वो स्वर्णिम दिन याद आने लगे, भाभी ने मेरी खुशी को कैसे अपनी जिंदगी ही बना लिया था…,
प्यार और स्नेह के साथ साथ उन्होने मुझे दुनियादारी भी सिखाई थी…, एक तरह से उन्होने ही मुझे इस काबिल बनाया था, मे उनके त्याग और ममता का ऋण कैसे उतार पाउन्गा…?
अपनी सोचों में गुम मुझे पता भी नही चला, कब मेरा स्टेशन आ गया…जब गाड़ी खड़ी हुई, तब जाकर मेरी सोचों पर भी ब्रेक लगे…
मेने लोगों से स्टेशन के बारे में पूछा.., हड़बड़ा कर मेने अपना बॅग लिया और डिब्बे से बाहर आया…
यहाँ से मुझे अपने घर तक बस से ही जाना था… जो करीब 1 घंटे बाद निकलने वाली थी…
मे जब अपने घर की चौपाल पर पहुँचा … जहाँ किसी समय बाबूजी की मौजूदगी में लोगों की जमात लगी होती थी वहीं आज सन्नाटा सा पसरा हुआ था..
बैठक का दरवाजा तो खुला था… इसका मतलव बाबूजी बैठक में हैं… लेकिन इतनी शांति क्यों है…
मे धड़कते दिल से बैठक के गेट पर पहुँचा… अंदर बाबूजी अकेले अपनी ही सोच में डूबे हुए आराम कुर्सी पर बैठे झूल रहे थे…,
वो आज मुझे कुछ थके-थके से दिखाई दिए.
मुझे सामने देखकर वो झटके से खड़े हो गये, मेने जाकर उनके पैर छुये, उन्होने मेरे सर पर हाथ फेर्कर आशीर्वाद दिया…
बाबूजी ने मुझे अपने गले से लगा लिया…, ना जाने क्यों उनकी आँखों से दो बूँद टपक कर मेरे कंधे पर गिरी…
मेने उनकी तरफ देखा… तो वो रुँधे गले से बोले… जा बेटा घर जाकर फ्रेश होले.. हारा थका आया है… थोड़ा आराम करले.. फिर बैठेंगे साथ में…
मे उनके पास से उठ कर अपना बॅग उठाए घर के अंदर पहुँचा…मेरी बिटिया रानी मेरी भतीजी… रूचि जो अब काफ़ी बड़ी हो गयी थी.. आँगन में खेल रही थी..
मुझे देखते ही दौड़कर मेरे पैरों से लिपट गयी… और चिल्लाते हुए बोली –
चाचू आ गये…. मम्मी… मौसी… देखो चाचू आ गये…
उसकी आवाज़ सुनकर भाभी और निशा दौड़ कर बाहर आई… मुझे देखते ही भाभी ने मुझे अपने कलेजे से लगा लिया… लाख कोशिशों के बाद भी उनकी रुलाई फुट पड़ी.. और उनकी आँखें बरसने लगी…
उनके पीछे खड़ी निशा भी रो रही थी…
मेने भाभी के कंधों को पकड़ कर उनसे कहा – क्या भाभी ! अपने लाड़ले का आँसुओं से स्वागत करोगी.. अब तो मे आ गया हूँ ना ! फिर ये आँसू क्यों..?
उन्होने अपने ऊपर कंट्रोल किया और बोली – ये तो मेरे खुशी के आँसू थे जो 4 साल से रुके पड़े थे… तुम्हें देखते ही कम्बख़्त दगा दे गये.. और छलक पड़े…
जाओ तुम पहले फ्रेश हो जाओ… फिर निशा की तरफ मुड़कर बोली… जा निशा लल्ला के लिए चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर, ये थके हारे आए हैं..
भाभी मेरे हाथ से बॅग लेकर मेरे कमरे में चली गयी.. उनके साथ-2 रूचि भी थी.…
मे जब बाथरूम से लौट रहा था… तब रूचि भाभी से पुच्छ रही थी…
मम्मी..! आपने चाचू से झूठ क्यों कहा…? उन्हें सच क्यों नही बताया कि आप और मौसी क्यों रो रही थी ?
भाभी – नही बेटा ! चाचू अभी थके हुए हैं ना ! इसलिए मम्मी उन्हें परेशान नही करना चाहती थी… इसलिए..
रात को जब पापा आजाएँगे ना, तब दादू और हम सब मिलकर चाचू को बताएँगे… अभी तू चाचू को कुछ मत बताना.. ठीक है, मेरा अच्छा बच्चा..
रूचि ने हां में गर्दन हिला दी… लेकिन इन बातों ने मुझे अंदर तक हिला दिया था… ना जाने ऐसा क्या हुआ है यहाँ…? और ये निशा यहाँ क्यों हैं..?
अब मुझे चैन नही पड़ रहा था..मेरे अंदर उथल-पुथल होने लगी, मुझे किसी उन्होनी का आभास सा हो रहा था.
मे जानना चाहता था.. कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है.. जिससे सब लोग दुखी हैं..
पर जब भाभी एक बार बोल चुकी हैं कि वो मुझे परेशान नही करना चाहती..
तो मे भी अब उनको पुच्छ कर उनकी परेशानी नही बढ़ाउंगा….. , ये सोचकर मे किचन की ओर बढ़ गया…
किचन में निशा मेरे लिए चाय बना रही थी.. मेने उसके पास जा कर उसको आवाज़ दी – निशु…!
मेरी आवाज़ सुनते ही वो पलट कर मेरे सीने से लिपट गयी और सूबकने लगी….
मेने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा – हुआ क्या है यहाँ…? मुझे कुछ बताओ तो सही…
ये सुनकर वो एक झटके में मुझसे अलग हो गयी… और अपने आँसू पोन्छते हुए बोली –
मे आपको कुछ भी नही बता पाउन्गि… प्लीज़ मुझसे कुछ मत पुछिये….
मेने झल्लाकर कहा… आख़िर बात क्या है.. तुम बता नही सकती, भाभी बताना नही चाहती… लगता है आप लोग मुझे पागल बनाक छोड़ोगे…
तभी वहाँ भाभी आ गयी… और बोली – थोड़ा सा इंतेज़ार कर लो लल्ला.. प्लीज़ अपने भैया को भी आ जाने दो…फिर बात करते हैं.. हां..!
मे – लेकिन भैया हैं कहाँ…? रात होने को आई.. अभी तो कॉलेज भी बंद हो गया होगा…
भाभी – वो थोड़ा शहर गये हैं, आते ही होंगे… अभी हम ये बात कर ही रहे थे.. कि भैया की गाड़ी की आवाज़ सुनाई दी.. रूचि भागते हुए बाहर गयी…
कुछ देर बाद भैया भी आ गये… मेने उनके पैर छुये, तो उन्होने मुझे आशीर्वाद दिया…
कुछ देर बाद उनके पीछे ही बाबूजी भी घर के अंदर आ गये… अब हम सब एक साथ बैठे थे…
बाबूजी ने भैया से पूछा… आज कुछ हुआ राम…?
भैया ने मेरी तरफ देखा… और बोले…, बाबूजी ! इससे पहले कि आज क्या हुआ… मे अपने भाई को सब कुछ साफ-2 बता देना बेहतर समझता हूँ…
भैया - छोटू ! मेरे भाई मुझे पता है, कि घर के बदले हुए हालत देख कर इसके बारे में जानने को तू उत्सुक है.. और मे आज कहाँ से आरहा हूँ…?
तो सुन , मोहिनी का भाई राजेश इस समय जैल में है… उसपर इरादतन कत्ल करने का संगीन इल्ज़ाम है.. दफ़ा 307 के तहत उसे जैल में डाला हुआ है,
पिच्छले 6 महीनों से धक्के खाने के बाद भी अभी तक उसकी जमानत नही हो सकी है..
भैया की बात सुन कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया… मेरे मुँह से आवाज़ तक नही निकली….
मेरी ऐसी अवस्था देख कर उन्होने मेरा हाथ पकड़ते हुए आगे कहना शुरू किया – ये क्यों हुआ… कैसे हुआ… मेरे ख़याल से ये सब आगे निशा ही बताए तो ज़्यादा सही होगा…
भैया की बात सुन कर मेने निशा की तरफ देखा… जो गर्दन झुकाए..बस रोए जा रही थी…..
बहुत देर की चुप्पी के बाद बाबूजी बोले – बता दे बेटी… तेरे ऊपर जो बीती है.. वो तुझसे अच्छा और कॉन बता सकता है… !
मे लगभग चीख ही पड़ा – क्या……? क्या हुआ था निशा के साथ..?
बोलो निशा ! क्या हुआ था तुम्हारे साथ……
निशा तो बस रोए ही जा रही थी, उसकी हालत देखकर लग रहा था कि वो कुछ भी बताने की स्थिति में नही है…
मेरे सब्र का बाँध टूटने लगा था… सो ये भी भूल गया कि मेरे सामने कॉन-कॉन बैठा है…, और उसको कंधों से पकड़ का झकझोरते हुए बोला…
बताओ निशु ! मुझे सब कुछ सच सुनना है… तुम्हें अपने प्यार की कसम अब अगर अब भी तुम कुकच्छ नही बोली तो…मे तुम्हें कभी माफ़ नही करूँगा…
सब मेरे मुँह की तरफ देखने लगे… निशा किन्कर्तब्यविमूढ़ सी कुछ देर यौही बैठी सुबक्ती रही, मेरे इस तरह चीखने से उसकी रुलाई तो थम गयी थी, लेकिन फिर भी कुछ बोल नही पा रही थी,
फिर कुछ साहस बटोरकर सुबक्ते हुए वो अपनी आप बीती बताने लगी…!