Update 39
आज हमारे घर पर भाभी के माता-पिता और राजेश सहित सभी लोग मौजूद थे, इसी मौके पर बाबूजी ने जिकर चलाते हुए कहा….
समधी जी… अंकुश के आने के बाद हमने उससे शादी की बात चलाई थी, तो उसने कहा था.. कि निशा का भाई जब तक अपनी बेहन को विदा नही करेगा वो शादी नही करेगा…
अब राजेश को जैल से बाहर निकाल कर उसने तो अपना वादा पूरा कर दिया है,.. तो अब क्यों ना हम भी अपना वादा पूरा करदें..!
निशा के पापा – समधी साब ! इसके लिए हमें पूछ कर आप शर्मिंदा मत करिए…
निशा अब आपकी बेटी, बहू जो भी आप समझें आपकी अमानत है… आप जब, जिस तरह से आदेश देंगे हम दोनो उसका कन्यादान कर देंगे…!
बाबूजी – तो फिर शुभ काम में देरी नही करनी चाहिए… क्यों ना आज ही पंडितजी को बुलाकर शुभ मुहूर्त निकलवा लिया जाए…
वो –बहुत ही नेक विचार है आपका…!
तभी भाभी ने निशा की तरफ देखते हुए कहा, लेकिन बाबूजी, इसकी शक्ल देख कर तो लगता नही कि ये इस शादी से खुश है…!
भाभी के मुँह से ये शब्द सुनते ही, वो तुरंत बोल पड़ी, नही.. नही दीदी, मे बहुत खुश हूँ…, उसकी बात सुनते ही सभी ठहाके लगाकर हँसने लगे…
वो बेचारी बुरी तरह झेंप गयी, और भागकर कमरे में चली गयी…
मुस्कराते हुए भाभी ने मुझे इशारा किया, तो मे वहाँ से उठाकर उसके पीछे-2 चला गया, वो दरवाजे की तरफ पीठ कर के खड़ी थर-थर काँप रही थी,
मेने पीछे से उसे बाहों में भर लिया, वो और ज़्यादा काँपने लगी, फिर मेने जैसे ही अपने तपते होंठ उसकी गर्दन पर रखे…
वो बुरी तरह से सिहरकर पलटी और मेरे शरीर से लिपट गयी, उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया…!
मेने बड़े प्यार से उसके चेहरे को उठाया, वो पलकें झुकाए खड़ी रही..
जब मेने उसके कान की लौ को चूमते हुए हौले से कहा – निशा क्या तुम सच में इस शादी से खुश नही हो…!
उसने झट से अपनी पलकें खोल दी, और मेरे होंठों को चूम लिया, फिर मेरी आँखों में झाँक कर बोली – क्या आप मुझे अपने काबिल समझते हैं..?
मेने शरारत से कहा – अगर तुम खुश हो तो मे भी काम चला लूँगा.., वैसे इतनी शर्मीली लड़की को झेलना थोड़ा मुश्किल तो होगा…
वो बुरी तरह से लिपट गयी, और मेरे चेहरे को अपने चुंबनों से भर दिया और उसी एग्ज़ाइट्मेंट में बोली – थॅंक यू जानू, आप बहुत अच्छे हैं,
अब किसी ने आपको मुझसे छीनने की कोशिश भी की तो मे उसका खून कर दूँगी..
मे – अच्छा ! सबके सामने तो भीगी बिल्ली बन जाती हो, और यहाँ बड़ी शेरनी बन रही हो…
अब चलो बाहर सबके साथ बैठते हैं, देखें तो सही क्या बातें हो रही हैं, ये कहकर हम बाहर आ गये…
मुझे देखते ही बाबूजी ने पंडित जी को बुलाने के लिए कहा … मे खुश होता हुआ पंडित जी के घर पहुँचा… वो मुझे अपने घर के बाहर ही मिल गये…
मेने उन्हें बाबूजी के पास भेजा और खुद उनके घर के अंदर चला गया…
अंदर उनकी बहू अपने बच्चे के साथ खेल रही थी, जो अब बड़ा हो गया था..
मुझे देखते ही वो मेरे गले से लिपट गयी… और अपने बेटे से बोली – पिंटू.. बेटा देख तेरे पापा आए हैं… चल इनके पाँव छुकर आशीर्वाद ले…
बच्चा बड़ा अग्यकारी था, उसने फ़ौरन मेरे पैर छुये.. मेने उसे गोद में उठा लिया.. और उसके गाल पर किस कर के प्यार करने लगा…
मे – कितना प्यारा बच्चा है आपका भौजी… बड़ा होकर एकदम हीरो लगेगा…
वो – खून तो आपका ही है ना.. ! गौर से देखो… बिल्कुल आपका दूसरा रूप लगता है…
मेने उसका माथा चूमकर कहा – कोई शक़ तो नही करता.. कि ये ऐसा क्यों दिखता है…
वो – करने दो मुझे किसी का डर नही है… इसके दादा- दादी और वो सो कॉल्ड बाप तो घर में बच्चे के होने से ही खुश हैं… बाहरवालों की परवाह कॉन करता है…!
आप सूनाओ, बड़े दिनो बाद दिखाई दिए हो.. कहाँ थे अब तक.. फिर मेने उसे सारी बातें कही… और बोला – मेरी शादी हो रही है.. आओगी ना !
वो खुश होते हुए बोली… अच्छा ! कब..? किसके साथ..?
मे – मेरी भाभी की बेहन निशा के साथ… पंडित जी को इसलिए बुलाया है बाबूजी ने, तारीख पक्का करने के लिए…!
वो – ये तो बड़ी खुशी की बात बताई है आपने, सच में निशा बहुत खुश किस्मत है, जिसे आप जैसा पूर्ण पुरुष जीवन साथी के रूप में मिल रहा है..
चाहे कोई कुछ भी कहे मे तो आपकी शादी में खूब नाचूंगी… लेकिन देवर जी.. मुझे आपकी बहुत याद आती है… क्या आपको कभी मेरी याद नही आई..?
मे – आती तो है भौजी… पर पढ़ाई भी तो ज़रूरी थी.. अब शायद मे यहीं रहूँगा.. तो कभी-2 चान्स मिल सकता है…
वो – अभी मारलो ना चान्स… जल्दी से वैसे इसकी दादी पड़ोस में ही गयी है.. आती ही होगी.. तब तक…??
मे – नही ऐसे नही.. कभी फ़ुर्सत से…चिंता मत करो.. मौका मिलेगा.. और उसके होंठों को चूमकर मे वहाँ से निकल आया.. वाहहन से सीधा छोटी चाची के घर पहुँचा….!
चाची किसी काम में लगी थी… उनका बेटा वहीं आँगन में खेल रहा था… मेने उसे कहा.. अरे अंश बेटा.. मम्मी कहाँ हैं…?
वो मुझे देखते ही चिल्लाया… मम्मी … देखो कोई आया है….!
उसकी आवाज़ सुनकर चाची बाहर आई.. और मुझे देखते ही दौड़ कर मेरे सीने से लिपट गयी…
फिर अपने बेटे से बोली.. अंश बेटा इनके पाँव तो छुओ.. ये तुम्हारे बड़े भाई हैं… रूचि के पापा की तरह…
उसने भी मेरे पैर छुये… मेने उसे गोद में उठा लिया और गाल चूम कर उसे प्यार करने लगा… फिर चाची के कान में कहा… सिर्फ़ भाई…!
वो शरमा कर बोली – पापा भी… लेकिन इसको नही बता सकती ना ! फिर मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोली -
लल्ला ! बहुत याद आती है तुम्हारी… कितनी ही रातें तुम्हें याद कर-कर के काटी हैं मेने… इस शरीर को तो जैसे तुम्हारी ही आदत लग गयी थी…..
मे – अब क्या करूँ चाची… मुझे भी तो अपना भविश्य बनाना था…!
वो – हां ! सच कहा तुमने, यहाँ देखो क्या मुसीबत आन पड़ी है.., बेचारे राम और मोहिनी अपने भाई को लेकर कितने परेशान हैं…
मे – अब सारी परेशानी दूर हो गयी चाची… राजेश घर आ गया है.. कभी बाहर निकल कर भी देख लिया करो…
वो – क्या कह रहे हो ! सच में..! कहाँ है.. वो ?
मे – हमारे घर पर ही हैं सब लोग… निशा के मम्मी-पापा भी आए हुए हैं..
फिर बातों – 2 में मेने अपनी और निशा की शादी की बात बताई तो वो एकदम से भड़क गयी.. और अपने बेटे और मुझे साथ लेकर हमारे घर की तरफ लपक ली…!
घर में घुसते ही चाची पैर पटकते हुए बोली – जेठ जी आपने हमें बिल्कुल ही पराया कर दिया…? इतनी बड़ी खुशी और हमें बताया तक नही…!
भैया – अरे चाची.. अभी खुशी के लिए बैठे ही हैं.. अभी कुछ तय नही हुया…
बहू तो आपने देखी ही है.. और बताइए आपकी क्या इच्छा है.. वो भी रख देते हैं इनके सामने…
चाची – बड़े लल्ला जी मेरी क्या इच्छा होगी,.. इस घर की खुशी से बढ़कर मेरी और कोई इच्छा नही है.. मे तो बस इतना कह रही थी.. कि हमें भी इस खुशी में शामिल कर लेते तो मुझे अच्छा लगता…
भाभी – सॉरी चाची… हम आपको खबर करने ही वाले थे.. लल्ला जी के आने के बाद उन्हें आपके पास ही भेजते.., पर वो देखो हमारे कहने से पहले ही आपको ले आए… अब बताइए क्या ग़लत हुआ…!
चाची चुप रह गयी.. फिर बाबूजी ने कहा.. अंकुश ! बेटा जा अपने दोनो चाचा – चाची को भी खबर कर्दे.. सब मिल बैठ कर बात करते हैं.. वरना रश्मि की तरह वो लोग भी नाराज़ होंगे..
चाची – जेठ जी ! मे तो बस… ऐसे ही…
बाबूजी – मे जानता हूँ रश्मि .. तुम हम लोगों से कितना हित रखती हो.. इसलिए तुमने अपना हक़ जताया है,…
हम सच में माफी माँगते हैं तुमसे कि हमने पहले तुम्हें नही बुलाया…
इतने में और लोग भी आ गये.. और सबके सामने मेरी शादी की बात तय हुई…
मेरे कहने पर शादी को बड़े सादगी ढंग से करने का निर्णय लिया गया.. कोई ज़्यादा शोर-शराबा या हंगामा नही करना था..
बस अपने घरवालों की मौजूदगी में ही सात फेरे लेने थे.. और सबका आशीर्वाद लेकर अपना घर संसार बसा लेना था..
वाकी लोगों की मनसा थी कि सारे रिस्ते-नातेदारो को बुलाया जाए.. लेकिन मेने मना कर दिया.. जिसे भैया और भाभी ने भी उचित ठहराया,…इसके पीछे मेरा आगे का मक़सद जुड़ा हुआ था…
किसी और सगे संबंधी को ना बुलाना पड़े, इस वजह से हमने रामा दीदी को भी खबर नही की, वरना चाचा की बेटियों को भी बुलाना पड़ता…
मे नही चाहता था कि मेरी शादी की बात ज़यादा लोगों को पता लगे…
और एक दिन सभी घर परिवार की मौजूदगी में हम दोनो एक हो गये.. हमने गाँव के अन्य लोगों को भी शामिल नही किया था…
आज निशा मेरी थी.. मे निशा का था…, दोनो ने बंधन में बँधने के बाद सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया…
भाभी के पैर लगते हुए मे उनके कान में फुसफुसाया…
भाभी , आख़िर तोता – मैना एक हो ही गये,… उन्होने मुस्करा कर आशीर्वाद देते हुए कहा…ये जोड़ी सदा यौंही बनी रहे.. एश्वर से बस यही प्रार्थना है मेरी..
आज मेरी तपस्या का फल मुझे मिल गया है,… फिर वो आँसुओं भरे चेहरे को ऊपर उठा कर बोली – माजी मेरी ज़िम्मेदारियों में कोई कमी रह गयी हो तो अपनी बेटी समझ कर मुझे माफ़ कर देना…
बाबूजी भी अपनी भावनाओं को काबू में नही रख पाए,.. रोते हुए उन्होने
भाभी को अपने गले से लगा लिया.. और रुँधे स्वर में बोले…
नही मेरी बच्ची… तूने अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी श्रद्धा और लगान से निभाईं हैं… शायद इतनी अच्छी तरह से विमला भी ना निभा पाती…!
ये देख कर वहाँ मौजूद सभी की आँखें भी नम हो गयी…… !
सारे रीति-रिवाजों को संपन्न करने के बाद, निशा के मम्मी पापा और भैया कुछ घंटे रुक कर दोपहर ढलते ही अपने घर लौट गये…
भाभी ने मुझे कहा… लल्ला जी आज तुम दोनो के मिलन की पहली रात है, तो सगुण के तौर पर निशा को ऐसा कुछ देना जो उसे पसंद आए…
मेने कहा – सब तरह के गहने-जेवर तो आपने उसे दे ही दिए हैं… अब मे ऐसा क्या दूँ.. आप ही कुछ बता दो…
भाभी – एक लड़की गहने-जेवर से बढ़कर अपने पति द्वारा प्यार से दिया हुआ तोहफा ज़्यादा पसंद करती है…, तो जो भी तुम्हें पसंद हो वो दे देना…
मे सोच में पड़ गया… मेने कभी अपनी पसंद-नापसंद के बारे में सोचा ही नही था… सारी इक्षाएँ तो भाभी ही पूरा करती आईं थीं…तो ऐसा क्या दूँ, जो उसे भी पसंद आए…
क्या इसके बारे में निशा को ही पूछा जाए…? लेकिन वो तो कहेगी कि उसे और कुछ नही चाहिए… तो फिर क्या दिया जाए…?
फिर मेरे दिमाग़ में आया… क्यों ना उसे ऐसा कुछ दिया जाए… जिसकी वजह से वो हर समय मेरे करीब ही रहे…तो मेरे दिमाग़ ने कहा “मोबाइल” .
हां यही ठीक रहेगा, एक स्मार्ट फोन उसे देता हूँ, जिससे हम चाहे पास हों या दूर, जब मन करे, एकदुसरे से बात कर के करीब ही रह सकते हैं…
ये सोच कर मेने गाड़ी उठाई और शहर की तरफ चल दिया…
शहर जाकर मेने एक अच्छी सी कंपनी का स्मार्ट फोन खरीदा और चल पड़ा अपने घर की ओर… अपने प्रथम मिलन की कल्पना करते हुए…
अभी मे शहर से कोई 10 किमी ही निकला था कि, बीच रास्ते में मुझे एक जीप खड़ी दिखाई दी…
सिंगल रोड होने के कारण उसके साइड से बचा कर बयके निकलने के लिए मुझे अपनी स्पीड कुछ ज़्यादा ही कम करनी पड़ी…
मे अभी उस जीप के बगल से निकल ही रहा था कि, जीप में बैठे लोगों मे से एक ने मेरे ऊपर हॉकी से वार किया…
हॉकी के वार को तो में झुकाई देकर बचा गया, लेकिन मेरा बॅलेन्स बिगड़ गया और मे बाइक समेत रोड के साइड को लुढ़कता चला गया…
मेरा बदन कयि जगह से छिल गया, जिसमें से तेज टीस सी उठने लगी…
ख़तरे का आभास होते ही मेरी सभी इंद्रिया सजग हो उठी…मे अपने दर्द की परवाह किए वगैर उठ खड़ा हुआ…
लेकिन इससे पहले कि मे ठीक से खड़ा हो पता, उनमें से दो लोगों ने मुझे दोनो तरफ से मेरे बाजुओं से जकड लिया…!
वो चार लोग थे… दो ने मुझे दोनो बाजुओं से जकड़ा हुआ था, एक अभी भी जीप में ही बैठा रहा, और चौथा आदमी चाकू हाथ में लिए मेरी ओर बढ़ने लगा….!
मेने लगभग चीखते हुए कहा – कॉन हो तुम लोग, और क्यों मारना चाहते हो मुझे..?
वो चाकू वाला गुर्राया… तेरी वजह से हमारे मालिक को बड़ा धक्का लगा है.. इसलिए अब तुझे तो मरना ही होगा…
मे – कॉन हैं तुम्हारा मलिक..?
वो – ये जानना तेरे लिए ज़रूरी नही है.. और वैसे भी मरने के बाद तू करेगा भी क्या जान कर…!
मे समझ गया कि ये ऐसे बताने वाला नही है…, अब मेने इनसे निपटने का मन ही मन फ़ैसला कर लिया था, …
वो मेरे पास आकर मुझसे दो फुट दूर रुक गया और अपने चाकू को संभाल कर वो अपना हाथ पीछे को ले गया…
इससे पहले की वो अपना चाकू वाला हाथ, मुझे मारने के लिए आगे लता… मेने अपनी बॉडी को उन दोनो गुण्डों की पकड़ के सहारे बॅलेन्स किया और उच्छल कर भड़ाक से अपने पैर की किक उसकी नाक पर जड़ दी…
किक इतनी सटीक और जोरदार थी… की वो अपनी जगह से 10 फुट दूर पीछे जाकर गिरा.. उसकी नाक बुरी तरह से फट गयी,… और उसका पूरा चेहरा उसीके खून से लाल होने लगा.
उसके गिरते ही वो दोनो कुछ हड़बड़ा गये… और उनकी पकड़ कुछ समय के लिए ढीली पड़ गयी, उसी का फ़ायदा उठाकर मेने अपने बाजुओं को ज़ोर से झटका दिया.. और अपने को उन दोनो की पकड़ से आज़ाद कर लिया…
वो मुझे दोबारा पकड़ने के लिए झप्टे… तो मेने दो कदम पीछे हट कर एक की कनपटी पर घूँसा जड़ दिया और दूसरे को एक लात जमा दी..
एक साथ हुए हमले से वो दोनो लड़खड़ा गये… इससे पहले की वो सम्भल पाते मेने उन दोनो की गर्दन अपने बाजुओं में कस ली…
आज मेरी भाभी के डिसिप्लिन द्वारा कराई गयी कशारत मेरे काम आरहि थी..
मेरे बाजुओं की पकड़ उनकी गर्दन पर इतनी मजबूत थी कि उनके गले की नसें फूलने लगी, उन्हें अपनी साँस अटकती सी महसूस हो रही थी.., दोनो के चेहरे लाल पड़ चुके थे…
मेने दाँत पीसते हुए कहा… बोलो.. क्यों मारना चाहते थे मुझे…
इससे पहले कि वो कोई जबाब दे पाते.. जीप में बैठा चौथा आदमी रिवॉल्वार लहराता हुआ मेरी तरफ आने लगा….…!
वो चौथा आदमी मेरी तरफ आते हुए गुर्राया – मे नही चाहता था, कि मुझे तेरे खून से हाथ रंगने पड़ें.. ये लोग ही तुझे संभाल लेंगे.. लेकिन तू तो कुछ ज़्यादा ही शातिर निकला…
वो चाकू वाला जिसकी नाक फट गयी थी… कराहते हुए बोला… अब बातों में समय बर्बाद मत करो जग्गा भाई.. उड़ा दो साले को, वरना कोई आ निकलेगा इधर, और सब गड़बड़ हो जाएगी....
उसने उसकी बात मानते हुए मुझे निशाना बना कर गोली चला दी… उसी क्षण मेने उनमें से एक को उसके निशाने के आगे कर दिया और गोली ने उसका भेजा उड़ा दिया…
वो रिवॉल्वार वाला हक्का-बक्का सा खड़ा अपने मारे हुए साथी को देख ही रहा था कि मेने दूसरे को उसके उपेर धकेल दिया… और वो दोनो एक दूसरे से उलझ गये…
इसी चक्कर में उसकी रिवॉल्वार का लीवर फिरसे दब गया और गोली उस दूसरे आदमी के पेट में घुस गयी… और वो भी ज़मीन पर पड़ा तड़फड़ाने लगा..
अपने दो दो साथियों का हश्र देख कर वो बुरी तरह भिन्ना गया, अपनी ही गोली से घायल साथी जो लगभग अंतिम साँसें गिन रहा था को एक तरफ धकेला, और गुस्से से भन्नाते हुए एक बार फिर मेरी तरफ पलटा…
लेकिन तब तक मे उसके सर पर पहुँच चुका था.. और उसकी रिवॉल्वार वाली कलाई थाम ली… उसकी कलाई पर मेरे हाथ की मजबूत पकड़ के आगे उसकी एक ना चली… और उसकी कलाई को मोड़ कर रिवॉल्वार की नाल उसकी कनपटी की तरफ कर दी…
मे गुर्राया – अब चला गोली हरामी…, फिरसे मे उसके कान के पास इतनी ज़ोर से चिल्लाया… चलाआ…नाअ…, डर के मारे उसकी उंगली ट्रिग्गर पर दब गयी… और रिवॉल्वार की गोली ने उसके सर के परखच्चे उड़ा दिए….
अब रिवॉल्वार मेरे हाथ में था… वो फटी नाक वाला अपने खून से सने सुर्ख चेहरे को लिए, सूखे पत्ते की तरह काँपते हुए मुझे ऐसे देख रहा था मानो उसके सामने कोई इंसान नही, भूत खड़ा हो…
वो बुरी तरह मिमियाते हुए बोला – म.म.म्मूँहेछोड़ दो…
मेने गुर्राते हुए सवाल किया – तो फिर बता किसने भेजा है तुम लोगों को…?
व.वउूओ… भानु प्रताप ने…,
मेने फिर सवाल किया… इस समय कहाँ मिलेगा वो..?
वो – ये मुझे नही पता… प्लीज़ मुझे छोड़ दो, मे तुम्हारे पाँव पड़ता हूँ.. ये कहते हुए वो सचमुच मेरे पैरों में लेट गया….
मेने उसे जीवित छोड़ना ही उचित समझा… जिससे वो उस हरामी के पिल्ले को जाकर सब कुछ बता सके…
रिवॉल्वार अपनी बेल्ट में खोंसा, बयके उठाई और किक मार कर बुलेट घर की ओर दौड़ा दी…!
घर पहुँचते – 2 मुझे अंधेरा हो चुका था,.. मेरे ज़मीन पर घिसटने से कपड़े जगह -2 से फट गये थे, और बदन पर भी कयि जगह खरौन्च आ गयी थी…
मेने उन गुण्डों की रिवॉल्वार को बुलेट की डिकी में डाला, और घर के अंदर चला गया….!
मे जैसे ही घर में कदम रखा… मेरी हालत देख कर भैया और भाभी लपक कर मेरे पास आए और तरह – तरह के सवालों की झड़ी लगा दी…
मेने उन्हें कहा… घबराने की कोई ज़रूरत नही है… अंधेरे में बाइक एक सड़क पर पड़े पत्थर से स्लिप हो गयी थी.. और में गिर गया था…!
भैया ने डाँटते हुए कहा – लेकिन तू गया ही क्यों था शहर, आज ही शादी हुई है, और चला गया बिना किसी को बताए…!
अब इतना बड़ा हो गया है, कि किसी से कुछ पुछ्ने की भी ज़रूरत नही समझता,…
राजेश के केस के बाद हमारे दुश्मन भी पैदा हो गये हैं, कहीं भी कोई भी कुछ भी करवा सकता है…!
कोई ज़रूरी काम था, तो सोनू को साथ ले जा सकता था…
मेने भाभी की तरफ देखा, जो एकदम भावशून्य खड़ी हमें देख सुन रही थी..
मेने अपनी नज़र नीची कर के कहा – सॉरी भैया, ग़लती हो गयी, एक ज़रूरी काम था, उसे निपटाने गया था…वैसे भाभी को पता है..
भाभी का नाम आते ही भैया का गुस्सा छ्छूमंतर हो गया, और प्यार से दुलार्ते हुए बोले… तुझे कुछ हो जाता तो..?
मेने भैया से कहा – मुझे कुछ नही होगा भैया, आप चिंता ना करो, थोड़ी बहुत खरौन्च है… जल्दी ही ठीक हो जाएगी..
भाभी ने हुकुम दनदनाते हुए कहा – अब यहाँ खड़े मत रहो, जल्दी से फ्रेश होकर कपड़े चेंज करो, और अपने कमरे में जाकर निशा से दवा लगवा लो....
मे बाथरूम में जाकर फ्रेश हुआ… कपड़े उतार कर वहीं बाथ रूम में फेंके…और एक तौलिया लपेट कर अपने कमरे में पहुँचा…
जहाँ निशा नयी दुल्हन के लिबास में बैठी मेरा इंतेज़ार कर रही थी…
मुझे तौलिए में देखकर और मेरे बदन पर खरौन्च के निशान देख कर वो तड़प उठी…, दौड़ कर मेरे पास आई… और जैसे बाहर सवालों की झड़ी लगी थी…वही उसने भी रिपीट कर्दिये.
मेने उसे भी वही जबाब दिया जो भैया भाभी को दिया था, तो वो तड़प कर बोली –
मे आपके लिए कितनी बड़ी अशुभ हूँ…, मेरे आपकी जिंदगी में कदम रखते ही मुसीवतो की शुरुआत हो गयी…!
मेने प्यार से उसके गाल पर एक थपकी दी और कहा – ये क्या फालतू बकवास कर रही हो तुम..?
अब कहा सो कहा, आइन्दा ऐसी बात भी की तो समझ लेना, कभी बात नही करूँगा तुमसे..
ना जाने क्या-क्या अनप शनाप बोलती रहती हो… रास्ते में वो पत्थर तुमने रखा था क्या…? जो होना था सो होगया…, ऐसी बातों के लिए अपने आप को दोष कभी मत देना…
वो सुबक्ते हुए मेरे सीने से लिपट गयी… मेने उसके कंधे पकड़ कर अपने से अलग किया और बोला –
अब चलो, भाभी ने कहा है कि थोडा अपने पति की सेवा करनी चाहिए.., तो बाहर से दवा लाकर मेरे खरोंचों पर लगाओ…
मेरी बात सुनकर वो गर्दन झुकाए बाहर चली गयी.. भाभी से दवा लेने…
मुझे बहुत ज़्यादा चोट नही थी, बस हल्की सी खरॉच ही थी… निशा जब अपने नरम- 2 हाथों से मेरे बदन पर दवा लगा रही थी तो मुझे उसके बदन से उठती खुसबु मदहोश करने लगी..
और मेने उसे अपनी बाहों में जकड कर उसके होंठों को चूम लिया,…वो कसमसा कर मुझे अपने से दूर करने की कोशिश करने लगी…
मेने उसे अपने बंधन से आज़ाद किया तो वो बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली – अभी शरीर पर चोटें लगी हैं… और जनाब को आशिक़ी सूझ रही है.. पहले इन्हें ठीक कर लो उसके बाद…
मेने उसके छोटे-छोटे गोल-मटोल कुल्हों को मसल्ते हुए कहा – आज तो मे सुहागरात मना कर ही रहूँगा मेरी जान…
क्या पता.. तुमने अपना इरादा बदल लिया तो.. मे तो रह जाउन्गा ना… ठन-ठन गोपाल…
ये कहकर मेने फिरसे उसे अपनी बाहों में जकड लिया…, वो बोली – पहले खाना पीना तो खा लीजिए.. आपके इंतेज़ार में वाकी सब भी भूखे हैं…
मे – ओह्ह्ह…सॉरी, ये कहकर हम बाहर डाइनिंग टेबल की तरफ चल दिए…
हम सबने मिल कर खाना खाया…, बाबूजी को भी जब पता लगा मेरे आक्सिडेंट के बारे में तो वो भी परेशान हो उठे… लेकिन जब मेने बताया कि बस मामूली सी खरौन्चे हैं.. तब जाकर वो कुछ अस्वस्त हुए….
खाना ख़ाके, थोड़ी देर हम सब आपस में बातें करते रहे,
भाभी, निशा को सुहाग रात की कुछ टिप्स देने उसके पास चली गयी…
कुछ देर मे बाबूजी और भैया के साथ बैठकर राजेश के केस से संम्बंधित बातें करते रहे,
वो दोनो अभी भी इस विषय पर चिंतित दिख रहे थे, लेकिन मेने उन्हें बिल्कुल असवास्त रहने के लिए कहा…
कुछ देर बाद बाबूजी और भैया उठ कर सोने चले गये तो मे भी अपने कमरे की तरफ बढ़ गया, जहाँ दोनो बहनें मेरा इंतेज़ार कर रही थीं.
मेरा कमरा गॅलर्री में लास्ट था, अभी में गॅलर्री में ही था, कि मेरे कमरे से निकल कर भाभी आती हुई दिखाई दी,
मे वहीं ठिठक गया, जब वो मेरे पास आ गयी मेरा हाथ पकड़ कर दीवार की तरफ कर के वो मुझे समझने लगी…
देवेर जी… आज तुम पहली बार निशा के पास एक पति के रूप मे जा रहे हो…
और वो एक पत्नी की तरह तुम्हारे सामने होगी, तो आज तुम दोनो के बीच की सारी दीवारें ढह जानी चाहिए…, जिससे एक दूसरे के बीच की हिचक दूर हो जाए….
एक और बात, निशा अपने दिलो-दिमाग़ से परिपक्व लड़की है… लेकिन शारीरिक तौर पर नही…जो आज तुम्हे यूज़ करना है…
मेने भाभी को पकड़ कर दीवार से सटा दिया, उनकी कमर में हाथ डालकर अपनी तरफ खींचा और आँखों में झाँकते हुए बोला….
हमारी सुहाग रात की साक्षी नही बनाना चाहोगी भाभी, उसे शारीरिक तौर पर परिपक्व बांबने में अपने लाड़ले की मदद नही करोगी..?
अपनी छोटी बेहन को गाइड भी करती जाना…!
भाभी ने मुस्कराते हुए प्यार से मेरे गाल पर चपत लगाई, और बोली – ये रात किसी और के साथ शेयर नही की जाती देवर्जी…!
और वैसे भी अब तुम अनाड़ी नही रहे, कइयों की सील चटखा चुके हो, तो अपनी पत्नी की नही कर पाओगे क्या..?
मेने झटके से भाभी को अपने शरीर से सटा लिया, अब उनकी गदाराई हुई चुचियाँ मेरे सीने से दब रही थी,
फिर भाभी के मस्त गदराए हुए कुल्हों को मसलकर और ज़ोर से अपनी तरफ दबाया, मेरा पप्पू उनकी मुनिया के दरवाजे को खट-खटा रहा था,
भाभी की आँखों में भी वासना के डोरे तैरने लगे, लेकिन अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करते हुए, मेरे सीने पर हाथ का दबाब देकर मुझे अपने से अलग किया……
फिर मुस्करा कर उन्होने मेरे होंठ चूम लिए और, मेरे पप्पू को दबाते हुए बोली – अब इसके आगे और कोई शैतानी नही…
आज इस पर सिर्फ़ इसकी असली मालकिन का हक़ है, अब अंदर जाओ एक पति के अधिकार के साथ, और निशा को वो तोहफा दो…जिसके लिए हर लड़की अपने जीवन में सपने संजोती है…!
ये कह कर भाभी ने मुझे धकेल कर रूम के अंदर कर दिया और बाहर से गेट बंद कर के खुद भैया के पास चली गयीं…
मेने पलट कर जैसे ही कमरे के अंदर कदम रखा, सामने के नज़ारे को देख कर मेरा मन मयूर होकर नाच उठा…….!
सामने फक्क सफेद चादर से ढका बेड जिसपर लाल गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों बिछि हुई थीं…!
कमरे के अंदर बिखरी हुई सुगंध, किसी को भी मदहोश कर्दे, लगता है भाभी ने ये सब करने में काफ़ी मेहनत की होगी…!
बेड के सिरहाने एक लाल सुर्ख जोड़े में, सर पर लंबा सा घूँघट लिए, सिकुड़ी सीमिटि सी निशा… अपने प्रियतम के इंतेज़ार में बैठी थी…
अभी - 2 कमरे से बाहर निकलने से पहले उसकी दीदी उसे आने वाले पलों के बारे में बहुत कुछ ज्ञान देकर गयी होंगी सुहाग रात के बारे में…
मे धीरे-2 चलते हुए बेड तक गया… और उसके साइड में जाकर खड़ा हो गया…
निशा मुझे अपने नज़दीक खड़ा पाकर और ज़्यादा अपने आप में सिमट गयी…, मे धीरे से उसके पास बैठ गया, और उसके कंधे पर हाथ रखा- उसके शरीर में एक कंपकपि सी दौड़ गयी…, जो मेने साफ महसूस की.
मेने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा - जान ! ये चाँद सा मुखड़ा घूँघट में क्यों छुपा रखा है…?
हम दोनो के बीच अब इस घूँघट का क्या काम…? हटाओ इसे….
उसने ना में अपनी गर्दन हिला दी…, मेने मुस्कराते हुए.. उसके घूँघट को अपने हाथों में लेकर उलट दिया…
वाउ ! हल्के से मेक-अप और गहनों से लदी, अपनी नज़रें पलंग पर गढ़ाए… वो शर्मो-हया की मूरत बनी बैठी थी…
नाक में नथुनि, माथे पर टीका, गले में मन्गल्सुत्र के साथ एक बड़ा सा हार,… कानों में बड़े-2 झुमके… हाथों में हतफुल.
मेहदी लगे हाथों की सभी उंगलियाँ अंगूठियों से भरी हुई, कुहनी तक लाल और हरी-हरी चूड़ीयाँ, जिनके आगे और पीछे एक –एक सोने के कंगन…!
वो इस समय साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप लग रही थी, मेरे मन ने कहा की क्यों ना इस छबि को हमेशा के लिए एक यादगार बना लिया जाए,
सो अपना स्मार्ट फोन निकाल कर उसका फोटो लेना चाहा, लेकिन वो तो अपनी नज़रें नीचे किए हुए थी…!
मेने अपने हाथ का सहारा उसकी तोड़ी पर लगाकर उसके चेहरे को ऊपर किया… फिर भी उसकी पलकें झुकी ही रही…
मेरी तरफ देखो निशु..! उसने फिरसे अपनी गर्दन ना में हिला दी…
मे – क्यों ? मुझसे नाराज़ हो..?
वो – लाज आती है…!
मे – मुझसे अब कैसी लाज ! अब हम पति-पत्नी हैं.. जान ! अब हम दोनो के बीच शर्मो-हया का ये परदा क्यों..? ज़रा मेरी तरफ देखो तो सही, मे तुम्हारी इस छबि को कमरे में क़ैद करना चाहता हूँ..
एक क्षण को उसने मेरी तरफ देखा, और उसी पल मेने उसकी उस छबि को अपने फोन में क़ैद कर लिया…
उसके लव थरथरा रहे थे… मेने उसके माथे के टीके को एक ओर कर के उसे चूम लिया… उसकी पलकें फिरसे बंद हो गयी…
उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर मेने कहा – मेरी तरफ देखो मेरी जान…
उसने जैसे-तैसे कर के अपनी पलकों को उठाया, मानो उनके ऊपर ना जाने कितना भर पड़ रहा हो,…
मे उसकी झील सी गहरी शरवती आँखों का तो हमेशा से ही दीवाना था… उनमें झाँकते हुए बोला – तुम सच में बहुत सुन्दर हो प्रिय…
उसकी पलकें शर्म से फिर एक बार झुक गयी… आज तो वो कुछ ज़्यादा ही लजा रही थी…
मेने उसके सर से सारी का पल्लू उतार कर एक तरफ रख दिया और उसके गोरे-गोरे हल्की लाली लिए हुए गालों को चूम लिया…
उसकी नथुनि मेरे और उसके होंठों के बीच दीवार बन रही थी… सो उसको निकाल कर मेने उसके होंठों की तरफ अपने होंठ बढ़ा दिए…
मेरी साँसों की गर्मी महसूस कर के उसके होंठ लरज उठे… मेने जैसे ही उसके रसीले लाल – 2 लिपीसटिक लगे होंठों को किस किया….
निशा ने अपने मेहदी लगे दोनो हाथों से अपने चेहरे को ढांप लिया…
वो अपने घुटने मोड बैठी हुई थी, तो मेने उसके घुटनों को सीधा कर के उसके गोरे – गोरे सपाट पेट को सहलाते हुए अपना हाथ उसके वक्षों तक लाया…
वो अभी भी अपने चेहरे को ढके हुए थी… मेने उसके दोनो संतरों के ऊपर हल्के से हाथ फिराया, फिर अपने दोनो हाथों से उसके हाथों को चेहरे से अलग किया..
उसने अपनी आँखों पर पलकों के पर्दे डाल कर फिरसे बंद करली….
मेने उसकी सारी की गाँठ खोल दी, और एक-एक कर के उसके शरीर से सारे गहने नोच डाले, अब वो ब्लाउज और पेटिकोट में थी,
मेने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूमने लगा….
निशा अपनी सुध-बुध खोती जा रही थी… वो तो बस जैसे अपने प्रियतम के इशारों पर चलने वाली एक कठपुतली बन चुकी थी…
मेने उसके होंठ चूस्ते हुए अपने दोनो हाथ उसके संतरों के ऊपर रख दिए… और उन्हें ब्लाउज के ऊपर से ही मसल्ने लगा…
उसकी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे…और अपनी मरमरी बाहें मेरे गले में डाल दी.
थोड़ा सा मसलने के बाद मेरी उंगलियों ने उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए…
एकदुसरे के होंठ अभी भी एक दूसरे का रस चूसने में ही व्यस्त थे…
वो एक पिंक कलर की ब्रा में आ चुकी थी, जिसमें क़ैद उसकी 32” की गोलाइयाँ किसी टेनिस की बॉल के आकार की गोरी – 2 निहायत ही सुंदर लग रही थी..
मेने अपनी टीशर्ट निकाल फेंकी और उसे कमर से पकड़ कर अपनी गोद में बिठा लिया…
वो मेरे सीने से चिपक गयी… जिससे उसके छोटे-2 सुडौल वक्ष मेरे सीने में दब गये…
मेने निशा की ब्रा निकाल कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया… और उसके बदन को सहलाते हुए उसकी गर्दन से चूमना स्टार्ट किया… और धीरे – 2 कर के उसके स्तनों तक आ पहुँचा…
वो किसी जल बिन मछलि की तरह बिस्तर पर पड़ी तड़पने लगी… गुलाब की पंखुड़ियों समेत उसने बेड शीट अपनी मुत्ठियों में कस ली थी..
मेने उसके निप्पलो को एक बार जीभ लगा कर चाटा,…. निशा के मुँह से एक मादक सिसकी फुट पड़ी…., और अपने पैरों की एडियों को आपस में रगड़ने लगी…
इष्ह……उफफफफ्फ़…. अब उसने मेरा सर अपने दोनो हाथों में ले लिया था…
जब मेने उसकी एक चुचि को अपने मुँह में भरकर चूसा.. और दूसरी को अपनी बड़ी सी हथेली से सहलाया…
तो वो अपनी एडियों को पलंग पर रगड़ते हुए सिसकने लगी….
आआहह………..मत..करूऊऊऊऊऊओ…..प्लेआस्ीईईईई………मुझीई….कुकचह….होताआ….हाईईइ…..
मेने उसकी तरफ मुँह उठा कर पूछा – क्या होता है मेरी जान…?
वो मेरी बात सुनकर बुरी तरह शरमा गयी, और बिना कोई जबाब दिए ही उसने अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया और आँखें बंद कर के सिसकने लगी….
उसकी चुचियों को चूस्ते हुए… मे अपने दोनो हाथों से उसके बगलों को सहलाते हुए… नीचे को लाया… और उसके पेट और नाभि को चूमते हुए उसके पेटिकोट का नाडा खोल दिया…
अब वो मात्र एक छोटी सी पेंटी में थी… जो अब बहुत गीली हो गयी थी…
मेने एक बार फिर उसके होंठों और गर्दन को चूमा, और अपना एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी गीली पेंटी पर रख दिया…
अपनी मुनिया पर मेरा हाथ महसूस करते ही निशा ने अपनी दोनो जांघें जोड़ दी…, मेने अपना हाथ उसकी पेंटी से हटाकर उसकी जांघों पर ले आया और उन्हें सहलाने लगा…
अपना लोवर निकाल कर मेने एक तरफ फेंका, अब में भी मात्र अपनी फ्रेंची में ही था…
उसकी टाँगों के बीच आकर मे अपने घुटने मोड़ कर बैठ गया…और मेने उसकी बगलों को अपने हाथों में भर कर उसे किसी गुड़िया की तरह उठाकर अपनी जांघों पर बिठा लिया…
वो अब अपने पैर मेरे दोनो ओर निकाल कर मेरी गोद में बैठी थी…उसकी छोटी सी कुँवारी मुनिया, कामरस से भीगी पेंटी में धकि, मेरे मुन्ने के ठीक ऊपर थी…
उसके कुल्हों को अपनी मुत्ठियों मे भरते हुए मे उसके होंठ चूसने लगा…
निशा अब बहुत गरम होने लगी थी… उसका बदन अब उसकी नही सुन रहा था.. और वो ऊपर से नीचे थिरकने लगा…
मेरे हाथ कभी उसकी पीठ सहलाते तो कभी उसके गोल-मटोल कुल्हों को मसल देते…
उसकी मुनिया, मेरे मुन्ने से मिलने के लिए तड़पने लगी… और वो दोनो कपड़े की एक पतली सी दीवार के पीछे से ही एकदुसरे से प्रेमलाप में लिप्त हो गये…
मेरे कड़क लंड की रगड़ से उसकी मुनिया… जल्दी ही खुश हो गयी… और उसका बदन अकड़ कर मेरे शरीर से चिपक गया…
मेने उसकी चुचियों को हल्के से मसल दिया, वो सिसक पड़ी ….और ऊओह….जानुउऊउउ…उूउउ....बोलते हुए पेंटी में ही झड़ने लगी,..
और मेरे कंधे पर सर टिका कर धीरे-धीरे हाँफने लगी…
मेने उसकी पीठ सहलाते हुए उसे आवाज़ दी… निशु…!
वो उसी खुमारी में बोली – हूंम्म्म…
मे – आर यू ओके…..
वो – हूंम्म…..
अब मेने उसे पलंग पर सीधा लिटा दिया, और उसकी कामरस से तर पेंटी को निकालकर एक तरफ को उछाल दिया …
अहह…. उसनकी छोटी सी मुनिया… एकदम चिकनी चमेली… जो रस से सराबोर होकर लेड की रोशनी में और ज़्यादा चमक उठी थी…,
मे अपने सामने खुली, दोनो पतले-पतले होंठों को बंद किए हुए उसकी मुनिया को कुछ पल देखता रहा…
उसके निचले सिरे पर कामरस की एक बूँद मोती जैसी चमक रही थी… जो मानो कह रही हो.. कि आओ मेरे प्रियवर…. ये तुम्हारे लिए तोहफा है… आकर अपना तोहफा कबूल करो.
मेने भी उसका स्वागत ठुकराया नही, और इससे पहले की वो उसकी मुनिया के बंद होंठों से जुदा होकर बेड की चादर में विलीन होता, मेने झुक कर हौले से उसे अपनी जीभ से चाट लिया….!
मेरी जीभ को अपनी रसीली मुनिया पर महसूस होते ही निशा एकदम से उछल पड़ी..
हाईए….ये.. क्ककयाआअ……किय्ाआ… आपनीई….उफफफफफ्फ़…सस्सिईईईईईईईईईईई……आअहह….
मेने उस मोती जैसी कमरस की बूँद को चाटने के बाद पूरी जीभ से एक बार उसकी मुनिया के बंद होंठों को नीचे से ऊपर तक चाट लिया……..
निशा ने बेड की चादर को ज़ोर से अपनी मुट्ठी में कस लिया… और अपने होंठों को चबाने लगी…
वो शर्म की वजह से अपने अंदर की उत्तेजना को भी खुलकर व्यक्त नही कर पा रही थी…
उसका बदन बेड पर किसी जल बिन मछलि की तरह तड़प रहा था….
समधी जी… अंकुश के आने के बाद हमने उससे शादी की बात चलाई थी, तो उसने कहा था.. कि निशा का भाई जब तक अपनी बेहन को विदा नही करेगा वो शादी नही करेगा…
अब राजेश को जैल से बाहर निकाल कर उसने तो अपना वादा पूरा कर दिया है,.. तो अब क्यों ना हम भी अपना वादा पूरा करदें..!
निशा के पापा – समधी साब ! इसके लिए हमें पूछ कर आप शर्मिंदा मत करिए…
निशा अब आपकी बेटी, बहू जो भी आप समझें आपकी अमानत है… आप जब, जिस तरह से आदेश देंगे हम दोनो उसका कन्यादान कर देंगे…!
बाबूजी – तो फिर शुभ काम में देरी नही करनी चाहिए… क्यों ना आज ही पंडितजी को बुलाकर शुभ मुहूर्त निकलवा लिया जाए…
वो –बहुत ही नेक विचार है आपका…!
तभी भाभी ने निशा की तरफ देखते हुए कहा, लेकिन बाबूजी, इसकी शक्ल देख कर तो लगता नही कि ये इस शादी से खुश है…!
भाभी के मुँह से ये शब्द सुनते ही, वो तुरंत बोल पड़ी, नही.. नही दीदी, मे बहुत खुश हूँ…, उसकी बात सुनते ही सभी ठहाके लगाकर हँसने लगे…
वो बेचारी बुरी तरह झेंप गयी, और भागकर कमरे में चली गयी…
मुस्कराते हुए भाभी ने मुझे इशारा किया, तो मे वहाँ से उठाकर उसके पीछे-2 चला गया, वो दरवाजे की तरफ पीठ कर के खड़ी थर-थर काँप रही थी,
मेने पीछे से उसे बाहों में भर लिया, वो और ज़्यादा काँपने लगी, फिर मेने जैसे ही अपने तपते होंठ उसकी गर्दन पर रखे…
वो बुरी तरह से सिहरकर पलटी और मेरे शरीर से लिपट गयी, उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया…!
मेने बड़े प्यार से उसके चेहरे को उठाया, वो पलकें झुकाए खड़ी रही..
जब मेने उसके कान की लौ को चूमते हुए हौले से कहा – निशा क्या तुम सच में इस शादी से खुश नही हो…!
उसने झट से अपनी पलकें खोल दी, और मेरे होंठों को चूम लिया, फिर मेरी आँखों में झाँक कर बोली – क्या आप मुझे अपने काबिल समझते हैं..?
मेने शरारत से कहा – अगर तुम खुश हो तो मे भी काम चला लूँगा.., वैसे इतनी शर्मीली लड़की को झेलना थोड़ा मुश्किल तो होगा…
वो बुरी तरह से लिपट गयी, और मेरे चेहरे को अपने चुंबनों से भर दिया और उसी एग्ज़ाइट्मेंट में बोली – थॅंक यू जानू, आप बहुत अच्छे हैं,
अब किसी ने आपको मुझसे छीनने की कोशिश भी की तो मे उसका खून कर दूँगी..
मे – अच्छा ! सबके सामने तो भीगी बिल्ली बन जाती हो, और यहाँ बड़ी शेरनी बन रही हो…
अब चलो बाहर सबके साथ बैठते हैं, देखें तो सही क्या बातें हो रही हैं, ये कहकर हम बाहर आ गये…
मुझे देखते ही बाबूजी ने पंडित जी को बुलाने के लिए कहा … मे खुश होता हुआ पंडित जी के घर पहुँचा… वो मुझे अपने घर के बाहर ही मिल गये…
मेने उन्हें बाबूजी के पास भेजा और खुद उनके घर के अंदर चला गया…
अंदर उनकी बहू अपने बच्चे के साथ खेल रही थी, जो अब बड़ा हो गया था..
मुझे देखते ही वो मेरे गले से लिपट गयी… और अपने बेटे से बोली – पिंटू.. बेटा देख तेरे पापा आए हैं… चल इनके पाँव छुकर आशीर्वाद ले…
बच्चा बड़ा अग्यकारी था, उसने फ़ौरन मेरे पैर छुये.. मेने उसे गोद में उठा लिया.. और उसके गाल पर किस कर के प्यार करने लगा…
मे – कितना प्यारा बच्चा है आपका भौजी… बड़ा होकर एकदम हीरो लगेगा…
वो – खून तो आपका ही है ना.. ! गौर से देखो… बिल्कुल आपका दूसरा रूप लगता है…
मेने उसका माथा चूमकर कहा – कोई शक़ तो नही करता.. कि ये ऐसा क्यों दिखता है…
वो – करने दो मुझे किसी का डर नही है… इसके दादा- दादी और वो सो कॉल्ड बाप तो घर में बच्चे के होने से ही खुश हैं… बाहरवालों की परवाह कॉन करता है…!
आप सूनाओ, बड़े दिनो बाद दिखाई दिए हो.. कहाँ थे अब तक.. फिर मेने उसे सारी बातें कही… और बोला – मेरी शादी हो रही है.. आओगी ना !
वो खुश होते हुए बोली… अच्छा ! कब..? किसके साथ..?
मे – मेरी भाभी की बेहन निशा के साथ… पंडित जी को इसलिए बुलाया है बाबूजी ने, तारीख पक्का करने के लिए…!
वो – ये तो बड़ी खुशी की बात बताई है आपने, सच में निशा बहुत खुश किस्मत है, जिसे आप जैसा पूर्ण पुरुष जीवन साथी के रूप में मिल रहा है..
चाहे कोई कुछ भी कहे मे तो आपकी शादी में खूब नाचूंगी… लेकिन देवर जी.. मुझे आपकी बहुत याद आती है… क्या आपको कभी मेरी याद नही आई..?
मे – आती तो है भौजी… पर पढ़ाई भी तो ज़रूरी थी.. अब शायद मे यहीं रहूँगा.. तो कभी-2 चान्स मिल सकता है…
वो – अभी मारलो ना चान्स… जल्दी से वैसे इसकी दादी पड़ोस में ही गयी है.. आती ही होगी.. तब तक…??
मे – नही ऐसे नही.. कभी फ़ुर्सत से…चिंता मत करो.. मौका मिलेगा.. और उसके होंठों को चूमकर मे वहाँ से निकल आया.. वाहहन से सीधा छोटी चाची के घर पहुँचा….!
चाची किसी काम में लगी थी… उनका बेटा वहीं आँगन में खेल रहा था… मेने उसे कहा.. अरे अंश बेटा.. मम्मी कहाँ हैं…?
वो मुझे देखते ही चिल्लाया… मम्मी … देखो कोई आया है….!
उसकी आवाज़ सुनकर चाची बाहर आई.. और मुझे देखते ही दौड़ कर मेरे सीने से लिपट गयी…
फिर अपने बेटे से बोली.. अंश बेटा इनके पाँव तो छुओ.. ये तुम्हारे बड़े भाई हैं… रूचि के पापा की तरह…
उसने भी मेरे पैर छुये… मेने उसे गोद में उठा लिया और गाल चूम कर उसे प्यार करने लगा… फिर चाची के कान में कहा… सिर्फ़ भाई…!
वो शरमा कर बोली – पापा भी… लेकिन इसको नही बता सकती ना ! फिर मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोली -
लल्ला ! बहुत याद आती है तुम्हारी… कितनी ही रातें तुम्हें याद कर-कर के काटी हैं मेने… इस शरीर को तो जैसे तुम्हारी ही आदत लग गयी थी…..
मे – अब क्या करूँ चाची… मुझे भी तो अपना भविश्य बनाना था…!
वो – हां ! सच कहा तुमने, यहाँ देखो क्या मुसीबत आन पड़ी है.., बेचारे राम और मोहिनी अपने भाई को लेकर कितने परेशान हैं…
मे – अब सारी परेशानी दूर हो गयी चाची… राजेश घर आ गया है.. कभी बाहर निकल कर भी देख लिया करो…
वो – क्या कह रहे हो ! सच में..! कहाँ है.. वो ?
मे – हमारे घर पर ही हैं सब लोग… निशा के मम्मी-पापा भी आए हुए हैं..
फिर बातों – 2 में मेने अपनी और निशा की शादी की बात बताई तो वो एकदम से भड़क गयी.. और अपने बेटे और मुझे साथ लेकर हमारे घर की तरफ लपक ली…!
घर में घुसते ही चाची पैर पटकते हुए बोली – जेठ जी आपने हमें बिल्कुल ही पराया कर दिया…? इतनी बड़ी खुशी और हमें बताया तक नही…!
भैया – अरे चाची.. अभी खुशी के लिए बैठे ही हैं.. अभी कुछ तय नही हुया…
बहू तो आपने देखी ही है.. और बताइए आपकी क्या इच्छा है.. वो भी रख देते हैं इनके सामने…
चाची – बड़े लल्ला जी मेरी क्या इच्छा होगी,.. इस घर की खुशी से बढ़कर मेरी और कोई इच्छा नही है.. मे तो बस इतना कह रही थी.. कि हमें भी इस खुशी में शामिल कर लेते तो मुझे अच्छा लगता…
भाभी – सॉरी चाची… हम आपको खबर करने ही वाले थे.. लल्ला जी के आने के बाद उन्हें आपके पास ही भेजते.., पर वो देखो हमारे कहने से पहले ही आपको ले आए… अब बताइए क्या ग़लत हुआ…!
चाची चुप रह गयी.. फिर बाबूजी ने कहा.. अंकुश ! बेटा जा अपने दोनो चाचा – चाची को भी खबर कर्दे.. सब मिल बैठ कर बात करते हैं.. वरना रश्मि की तरह वो लोग भी नाराज़ होंगे..
चाची – जेठ जी ! मे तो बस… ऐसे ही…
बाबूजी – मे जानता हूँ रश्मि .. तुम हम लोगों से कितना हित रखती हो.. इसलिए तुमने अपना हक़ जताया है,…
हम सच में माफी माँगते हैं तुमसे कि हमने पहले तुम्हें नही बुलाया…
इतने में और लोग भी आ गये.. और सबके सामने मेरी शादी की बात तय हुई…
मेरे कहने पर शादी को बड़े सादगी ढंग से करने का निर्णय लिया गया.. कोई ज़्यादा शोर-शराबा या हंगामा नही करना था..
बस अपने घरवालों की मौजूदगी में ही सात फेरे लेने थे.. और सबका आशीर्वाद लेकर अपना घर संसार बसा लेना था..
वाकी लोगों की मनसा थी कि सारे रिस्ते-नातेदारो को बुलाया जाए.. लेकिन मेने मना कर दिया.. जिसे भैया और भाभी ने भी उचित ठहराया,…इसके पीछे मेरा आगे का मक़सद जुड़ा हुआ था…
किसी और सगे संबंधी को ना बुलाना पड़े, इस वजह से हमने रामा दीदी को भी खबर नही की, वरना चाचा की बेटियों को भी बुलाना पड़ता…
मे नही चाहता था कि मेरी शादी की बात ज़यादा लोगों को पता लगे…
और एक दिन सभी घर परिवार की मौजूदगी में हम दोनो एक हो गये.. हमने गाँव के अन्य लोगों को भी शामिल नही किया था…
आज निशा मेरी थी.. मे निशा का था…, दोनो ने बंधन में बँधने के बाद सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया…
भाभी के पैर लगते हुए मे उनके कान में फुसफुसाया…
भाभी , आख़िर तोता – मैना एक हो ही गये,… उन्होने मुस्करा कर आशीर्वाद देते हुए कहा…ये जोड़ी सदा यौंही बनी रहे.. एश्वर से बस यही प्रार्थना है मेरी..
आज मेरी तपस्या का फल मुझे मिल गया है,… फिर वो आँसुओं भरे चेहरे को ऊपर उठा कर बोली – माजी मेरी ज़िम्मेदारियों में कोई कमी रह गयी हो तो अपनी बेटी समझ कर मुझे माफ़ कर देना…
बाबूजी भी अपनी भावनाओं को काबू में नही रख पाए,.. रोते हुए उन्होने
भाभी को अपने गले से लगा लिया.. और रुँधे स्वर में बोले…
नही मेरी बच्ची… तूने अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी श्रद्धा और लगान से निभाईं हैं… शायद इतनी अच्छी तरह से विमला भी ना निभा पाती…!
ये देख कर वहाँ मौजूद सभी की आँखें भी नम हो गयी…… !
सारे रीति-रिवाजों को संपन्न करने के बाद, निशा के मम्मी पापा और भैया कुछ घंटे रुक कर दोपहर ढलते ही अपने घर लौट गये…
भाभी ने मुझे कहा… लल्ला जी आज तुम दोनो के मिलन की पहली रात है, तो सगुण के तौर पर निशा को ऐसा कुछ देना जो उसे पसंद आए…
मेने कहा – सब तरह के गहने-जेवर तो आपने उसे दे ही दिए हैं… अब मे ऐसा क्या दूँ.. आप ही कुछ बता दो…
भाभी – एक लड़की गहने-जेवर से बढ़कर अपने पति द्वारा प्यार से दिया हुआ तोहफा ज़्यादा पसंद करती है…, तो जो भी तुम्हें पसंद हो वो दे देना…
मे सोच में पड़ गया… मेने कभी अपनी पसंद-नापसंद के बारे में सोचा ही नही था… सारी इक्षाएँ तो भाभी ही पूरा करती आईं थीं…तो ऐसा क्या दूँ, जो उसे भी पसंद आए…
क्या इसके बारे में निशा को ही पूछा जाए…? लेकिन वो तो कहेगी कि उसे और कुछ नही चाहिए… तो फिर क्या दिया जाए…?
फिर मेरे दिमाग़ में आया… क्यों ना उसे ऐसा कुछ दिया जाए… जिसकी वजह से वो हर समय मेरे करीब ही रहे…तो मेरे दिमाग़ ने कहा “मोबाइल” .
हां यही ठीक रहेगा, एक स्मार्ट फोन उसे देता हूँ, जिससे हम चाहे पास हों या दूर, जब मन करे, एकदुसरे से बात कर के करीब ही रह सकते हैं…
ये सोच कर मेने गाड़ी उठाई और शहर की तरफ चल दिया…
शहर जाकर मेने एक अच्छी सी कंपनी का स्मार्ट फोन खरीदा और चल पड़ा अपने घर की ओर… अपने प्रथम मिलन की कल्पना करते हुए…
अभी मे शहर से कोई 10 किमी ही निकला था कि, बीच रास्ते में मुझे एक जीप खड़ी दिखाई दी…
सिंगल रोड होने के कारण उसके साइड से बचा कर बयके निकलने के लिए मुझे अपनी स्पीड कुछ ज़्यादा ही कम करनी पड़ी…
मे अभी उस जीप के बगल से निकल ही रहा था कि, जीप में बैठे लोगों मे से एक ने मेरे ऊपर हॉकी से वार किया…
हॉकी के वार को तो में झुकाई देकर बचा गया, लेकिन मेरा बॅलेन्स बिगड़ गया और मे बाइक समेत रोड के साइड को लुढ़कता चला गया…
मेरा बदन कयि जगह से छिल गया, जिसमें से तेज टीस सी उठने लगी…
ख़तरे का आभास होते ही मेरी सभी इंद्रिया सजग हो उठी…मे अपने दर्द की परवाह किए वगैर उठ खड़ा हुआ…
लेकिन इससे पहले कि मे ठीक से खड़ा हो पता, उनमें से दो लोगों ने मुझे दोनो तरफ से मेरे बाजुओं से जकड लिया…!
वो चार लोग थे… दो ने मुझे दोनो बाजुओं से जकड़ा हुआ था, एक अभी भी जीप में ही बैठा रहा, और चौथा आदमी चाकू हाथ में लिए मेरी ओर बढ़ने लगा….!
मेने लगभग चीखते हुए कहा – कॉन हो तुम लोग, और क्यों मारना चाहते हो मुझे..?
वो चाकू वाला गुर्राया… तेरी वजह से हमारे मालिक को बड़ा धक्का लगा है.. इसलिए अब तुझे तो मरना ही होगा…
मे – कॉन हैं तुम्हारा मलिक..?
वो – ये जानना तेरे लिए ज़रूरी नही है.. और वैसे भी मरने के बाद तू करेगा भी क्या जान कर…!
मे समझ गया कि ये ऐसे बताने वाला नही है…, अब मेने इनसे निपटने का मन ही मन फ़ैसला कर लिया था, …
वो मेरे पास आकर मुझसे दो फुट दूर रुक गया और अपने चाकू को संभाल कर वो अपना हाथ पीछे को ले गया…
इससे पहले की वो अपना चाकू वाला हाथ, मुझे मारने के लिए आगे लता… मेने अपनी बॉडी को उन दोनो गुण्डों की पकड़ के सहारे बॅलेन्स किया और उच्छल कर भड़ाक से अपने पैर की किक उसकी नाक पर जड़ दी…
किक इतनी सटीक और जोरदार थी… की वो अपनी जगह से 10 फुट दूर पीछे जाकर गिरा.. उसकी नाक बुरी तरह से फट गयी,… और उसका पूरा चेहरा उसीके खून से लाल होने लगा.
उसके गिरते ही वो दोनो कुछ हड़बड़ा गये… और उनकी पकड़ कुछ समय के लिए ढीली पड़ गयी, उसी का फ़ायदा उठाकर मेने अपने बाजुओं को ज़ोर से झटका दिया.. और अपने को उन दोनो की पकड़ से आज़ाद कर लिया…
वो मुझे दोबारा पकड़ने के लिए झप्टे… तो मेने दो कदम पीछे हट कर एक की कनपटी पर घूँसा जड़ दिया और दूसरे को एक लात जमा दी..
एक साथ हुए हमले से वो दोनो लड़खड़ा गये… इससे पहले की वो सम्भल पाते मेने उन दोनो की गर्दन अपने बाजुओं में कस ली…
आज मेरी भाभी के डिसिप्लिन द्वारा कराई गयी कशारत मेरे काम आरहि थी..
मेरे बाजुओं की पकड़ उनकी गर्दन पर इतनी मजबूत थी कि उनके गले की नसें फूलने लगी, उन्हें अपनी साँस अटकती सी महसूस हो रही थी.., दोनो के चेहरे लाल पड़ चुके थे…
मेने दाँत पीसते हुए कहा… बोलो.. क्यों मारना चाहते थे मुझे…
इससे पहले कि वो कोई जबाब दे पाते.. जीप में बैठा चौथा आदमी रिवॉल्वार लहराता हुआ मेरी तरफ आने लगा….…!
वो चौथा आदमी मेरी तरफ आते हुए गुर्राया – मे नही चाहता था, कि मुझे तेरे खून से हाथ रंगने पड़ें.. ये लोग ही तुझे संभाल लेंगे.. लेकिन तू तो कुछ ज़्यादा ही शातिर निकला…
वो चाकू वाला जिसकी नाक फट गयी थी… कराहते हुए बोला… अब बातों में समय बर्बाद मत करो जग्गा भाई.. उड़ा दो साले को, वरना कोई आ निकलेगा इधर, और सब गड़बड़ हो जाएगी....
उसने उसकी बात मानते हुए मुझे निशाना बना कर गोली चला दी… उसी क्षण मेने उनमें से एक को उसके निशाने के आगे कर दिया और गोली ने उसका भेजा उड़ा दिया…
वो रिवॉल्वार वाला हक्का-बक्का सा खड़ा अपने मारे हुए साथी को देख ही रहा था कि मेने दूसरे को उसके उपेर धकेल दिया… और वो दोनो एक दूसरे से उलझ गये…
इसी चक्कर में उसकी रिवॉल्वार का लीवर फिरसे दब गया और गोली उस दूसरे आदमी के पेट में घुस गयी… और वो भी ज़मीन पर पड़ा तड़फड़ाने लगा..
अपने दो दो साथियों का हश्र देख कर वो बुरी तरह भिन्ना गया, अपनी ही गोली से घायल साथी जो लगभग अंतिम साँसें गिन रहा था को एक तरफ धकेला, और गुस्से से भन्नाते हुए एक बार फिर मेरी तरफ पलटा…
लेकिन तब तक मे उसके सर पर पहुँच चुका था.. और उसकी रिवॉल्वार वाली कलाई थाम ली… उसकी कलाई पर मेरे हाथ की मजबूत पकड़ के आगे उसकी एक ना चली… और उसकी कलाई को मोड़ कर रिवॉल्वार की नाल उसकी कनपटी की तरफ कर दी…
मे गुर्राया – अब चला गोली हरामी…, फिरसे मे उसके कान के पास इतनी ज़ोर से चिल्लाया… चलाआ…नाअ…, डर के मारे उसकी उंगली ट्रिग्गर पर दब गयी… और रिवॉल्वार की गोली ने उसके सर के परखच्चे उड़ा दिए….
अब रिवॉल्वार मेरे हाथ में था… वो फटी नाक वाला अपने खून से सने सुर्ख चेहरे को लिए, सूखे पत्ते की तरह काँपते हुए मुझे ऐसे देख रहा था मानो उसके सामने कोई इंसान नही, भूत खड़ा हो…
वो बुरी तरह मिमियाते हुए बोला – म.म.म्मूँहेछोड़ दो…
मेने गुर्राते हुए सवाल किया – तो फिर बता किसने भेजा है तुम लोगों को…?
व.वउूओ… भानु प्रताप ने…,
मेने फिर सवाल किया… इस समय कहाँ मिलेगा वो..?
वो – ये मुझे नही पता… प्लीज़ मुझे छोड़ दो, मे तुम्हारे पाँव पड़ता हूँ.. ये कहते हुए वो सचमुच मेरे पैरों में लेट गया….
मेने उसे जीवित छोड़ना ही उचित समझा… जिससे वो उस हरामी के पिल्ले को जाकर सब कुछ बता सके…
रिवॉल्वार अपनी बेल्ट में खोंसा, बयके उठाई और किक मार कर बुलेट घर की ओर दौड़ा दी…!
घर पहुँचते – 2 मुझे अंधेरा हो चुका था,.. मेरे ज़मीन पर घिसटने से कपड़े जगह -2 से फट गये थे, और बदन पर भी कयि जगह खरौन्च आ गयी थी…
मेने उन गुण्डों की रिवॉल्वार को बुलेट की डिकी में डाला, और घर के अंदर चला गया….!
मे जैसे ही घर में कदम रखा… मेरी हालत देख कर भैया और भाभी लपक कर मेरे पास आए और तरह – तरह के सवालों की झड़ी लगा दी…
मेने उन्हें कहा… घबराने की कोई ज़रूरत नही है… अंधेरे में बाइक एक सड़क पर पड़े पत्थर से स्लिप हो गयी थी.. और में गिर गया था…!
भैया ने डाँटते हुए कहा – लेकिन तू गया ही क्यों था शहर, आज ही शादी हुई है, और चला गया बिना किसी को बताए…!
अब इतना बड़ा हो गया है, कि किसी से कुछ पुछ्ने की भी ज़रूरत नही समझता,…
राजेश के केस के बाद हमारे दुश्मन भी पैदा हो गये हैं, कहीं भी कोई भी कुछ भी करवा सकता है…!
कोई ज़रूरी काम था, तो सोनू को साथ ले जा सकता था…
मेने भाभी की तरफ देखा, जो एकदम भावशून्य खड़ी हमें देख सुन रही थी..
मेने अपनी नज़र नीची कर के कहा – सॉरी भैया, ग़लती हो गयी, एक ज़रूरी काम था, उसे निपटाने गया था…वैसे भाभी को पता है..
भाभी का नाम आते ही भैया का गुस्सा छ्छूमंतर हो गया, और प्यार से दुलार्ते हुए बोले… तुझे कुछ हो जाता तो..?
मेने भैया से कहा – मुझे कुछ नही होगा भैया, आप चिंता ना करो, थोड़ी बहुत खरौन्च है… जल्दी ही ठीक हो जाएगी..
भाभी ने हुकुम दनदनाते हुए कहा – अब यहाँ खड़े मत रहो, जल्दी से फ्रेश होकर कपड़े चेंज करो, और अपने कमरे में जाकर निशा से दवा लगवा लो....
मे बाथरूम में जाकर फ्रेश हुआ… कपड़े उतार कर वहीं बाथ रूम में फेंके…और एक तौलिया लपेट कर अपने कमरे में पहुँचा…
जहाँ निशा नयी दुल्हन के लिबास में बैठी मेरा इंतेज़ार कर रही थी…
मुझे तौलिए में देखकर और मेरे बदन पर खरौन्च के निशान देख कर वो तड़प उठी…, दौड़ कर मेरे पास आई… और जैसे बाहर सवालों की झड़ी लगी थी…वही उसने भी रिपीट कर्दिये.
मेने उसे भी वही जबाब दिया जो भैया भाभी को दिया था, तो वो तड़प कर बोली –
मे आपके लिए कितनी बड़ी अशुभ हूँ…, मेरे आपकी जिंदगी में कदम रखते ही मुसीवतो की शुरुआत हो गयी…!
मेने प्यार से उसके गाल पर एक थपकी दी और कहा – ये क्या फालतू बकवास कर रही हो तुम..?
अब कहा सो कहा, आइन्दा ऐसी बात भी की तो समझ लेना, कभी बात नही करूँगा तुमसे..
ना जाने क्या-क्या अनप शनाप बोलती रहती हो… रास्ते में वो पत्थर तुमने रखा था क्या…? जो होना था सो होगया…, ऐसी बातों के लिए अपने आप को दोष कभी मत देना…
वो सुबक्ते हुए मेरे सीने से लिपट गयी… मेने उसके कंधे पकड़ कर अपने से अलग किया और बोला –
अब चलो, भाभी ने कहा है कि थोडा अपने पति की सेवा करनी चाहिए.., तो बाहर से दवा लाकर मेरे खरोंचों पर लगाओ…
मेरी बात सुनकर वो गर्दन झुकाए बाहर चली गयी.. भाभी से दवा लेने…
मुझे बहुत ज़्यादा चोट नही थी, बस हल्की सी खरॉच ही थी… निशा जब अपने नरम- 2 हाथों से मेरे बदन पर दवा लगा रही थी तो मुझे उसके बदन से उठती खुसबु मदहोश करने लगी..
और मेने उसे अपनी बाहों में जकड कर उसके होंठों को चूम लिया,…वो कसमसा कर मुझे अपने से दूर करने की कोशिश करने लगी…
मेने उसे अपने बंधन से आज़ाद किया तो वो बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली – अभी शरीर पर चोटें लगी हैं… और जनाब को आशिक़ी सूझ रही है.. पहले इन्हें ठीक कर लो उसके बाद…
मेने उसके छोटे-छोटे गोल-मटोल कुल्हों को मसल्ते हुए कहा – आज तो मे सुहागरात मना कर ही रहूँगा मेरी जान…
क्या पता.. तुमने अपना इरादा बदल लिया तो.. मे तो रह जाउन्गा ना… ठन-ठन गोपाल…
ये कहकर मेने फिरसे उसे अपनी बाहों में जकड लिया…, वो बोली – पहले खाना पीना तो खा लीजिए.. आपके इंतेज़ार में वाकी सब भी भूखे हैं…
मे – ओह्ह्ह…सॉरी, ये कहकर हम बाहर डाइनिंग टेबल की तरफ चल दिए…
हम सबने मिल कर खाना खाया…, बाबूजी को भी जब पता लगा मेरे आक्सिडेंट के बारे में तो वो भी परेशान हो उठे… लेकिन जब मेने बताया कि बस मामूली सी खरौन्चे हैं.. तब जाकर वो कुछ अस्वस्त हुए….
खाना ख़ाके, थोड़ी देर हम सब आपस में बातें करते रहे,
भाभी, निशा को सुहाग रात की कुछ टिप्स देने उसके पास चली गयी…
कुछ देर मे बाबूजी और भैया के साथ बैठकर राजेश के केस से संम्बंधित बातें करते रहे,
वो दोनो अभी भी इस विषय पर चिंतित दिख रहे थे, लेकिन मेने उन्हें बिल्कुल असवास्त रहने के लिए कहा…
कुछ देर बाद बाबूजी और भैया उठ कर सोने चले गये तो मे भी अपने कमरे की तरफ बढ़ गया, जहाँ दोनो बहनें मेरा इंतेज़ार कर रही थीं.
मेरा कमरा गॅलर्री में लास्ट था, अभी में गॅलर्री में ही था, कि मेरे कमरे से निकल कर भाभी आती हुई दिखाई दी,
मे वहीं ठिठक गया, जब वो मेरे पास आ गयी मेरा हाथ पकड़ कर दीवार की तरफ कर के वो मुझे समझने लगी…
देवेर जी… आज तुम पहली बार निशा के पास एक पति के रूप मे जा रहे हो…
और वो एक पत्नी की तरह तुम्हारे सामने होगी, तो आज तुम दोनो के बीच की सारी दीवारें ढह जानी चाहिए…, जिससे एक दूसरे के बीच की हिचक दूर हो जाए….
एक और बात, निशा अपने दिलो-दिमाग़ से परिपक्व लड़की है… लेकिन शारीरिक तौर पर नही…जो आज तुम्हे यूज़ करना है…
मेने भाभी को पकड़ कर दीवार से सटा दिया, उनकी कमर में हाथ डालकर अपनी तरफ खींचा और आँखों में झाँकते हुए बोला….
हमारी सुहाग रात की साक्षी नही बनाना चाहोगी भाभी, उसे शारीरिक तौर पर परिपक्व बांबने में अपने लाड़ले की मदद नही करोगी..?
अपनी छोटी बेहन को गाइड भी करती जाना…!
भाभी ने मुस्कराते हुए प्यार से मेरे गाल पर चपत लगाई, और बोली – ये रात किसी और के साथ शेयर नही की जाती देवर्जी…!
और वैसे भी अब तुम अनाड़ी नही रहे, कइयों की सील चटखा चुके हो, तो अपनी पत्नी की नही कर पाओगे क्या..?
मेने झटके से भाभी को अपने शरीर से सटा लिया, अब उनकी गदाराई हुई चुचियाँ मेरे सीने से दब रही थी,
फिर भाभी के मस्त गदराए हुए कुल्हों को मसलकर और ज़ोर से अपनी तरफ दबाया, मेरा पप्पू उनकी मुनिया के दरवाजे को खट-खटा रहा था,
भाभी की आँखों में भी वासना के डोरे तैरने लगे, लेकिन अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करते हुए, मेरे सीने पर हाथ का दबाब देकर मुझे अपने से अलग किया……
फिर मुस्करा कर उन्होने मेरे होंठ चूम लिए और, मेरे पप्पू को दबाते हुए बोली – अब इसके आगे और कोई शैतानी नही…
आज इस पर सिर्फ़ इसकी असली मालकिन का हक़ है, अब अंदर जाओ एक पति के अधिकार के साथ, और निशा को वो तोहफा दो…जिसके लिए हर लड़की अपने जीवन में सपने संजोती है…!
ये कह कर भाभी ने मुझे धकेल कर रूम के अंदर कर दिया और बाहर से गेट बंद कर के खुद भैया के पास चली गयीं…
मेने पलट कर जैसे ही कमरे के अंदर कदम रखा, सामने के नज़ारे को देख कर मेरा मन मयूर होकर नाच उठा…….!
सामने फक्क सफेद चादर से ढका बेड जिसपर लाल गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों बिछि हुई थीं…!
कमरे के अंदर बिखरी हुई सुगंध, किसी को भी मदहोश कर्दे, लगता है भाभी ने ये सब करने में काफ़ी मेहनत की होगी…!
बेड के सिरहाने एक लाल सुर्ख जोड़े में, सर पर लंबा सा घूँघट लिए, सिकुड़ी सीमिटि सी निशा… अपने प्रियतम के इंतेज़ार में बैठी थी…
अभी - 2 कमरे से बाहर निकलने से पहले उसकी दीदी उसे आने वाले पलों के बारे में बहुत कुछ ज्ञान देकर गयी होंगी सुहाग रात के बारे में…
मे धीरे-2 चलते हुए बेड तक गया… और उसके साइड में जाकर खड़ा हो गया…
निशा मुझे अपने नज़दीक खड़ा पाकर और ज़्यादा अपने आप में सिमट गयी…, मे धीरे से उसके पास बैठ गया, और उसके कंधे पर हाथ रखा- उसके शरीर में एक कंपकपि सी दौड़ गयी…, जो मेने साफ महसूस की.
मेने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा - जान ! ये चाँद सा मुखड़ा घूँघट में क्यों छुपा रखा है…?
हम दोनो के बीच अब इस घूँघट का क्या काम…? हटाओ इसे….
उसने ना में अपनी गर्दन हिला दी…, मेने मुस्कराते हुए.. उसके घूँघट को अपने हाथों में लेकर उलट दिया…
वाउ ! हल्के से मेक-अप और गहनों से लदी, अपनी नज़रें पलंग पर गढ़ाए… वो शर्मो-हया की मूरत बनी बैठी थी…
नाक में नथुनि, माथे पर टीका, गले में मन्गल्सुत्र के साथ एक बड़ा सा हार,… कानों में बड़े-2 झुमके… हाथों में हतफुल.
मेहदी लगे हाथों की सभी उंगलियाँ अंगूठियों से भरी हुई, कुहनी तक लाल और हरी-हरी चूड़ीयाँ, जिनके आगे और पीछे एक –एक सोने के कंगन…!
वो इस समय साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप लग रही थी, मेरे मन ने कहा की क्यों ना इस छबि को हमेशा के लिए एक यादगार बना लिया जाए,
सो अपना स्मार्ट फोन निकाल कर उसका फोटो लेना चाहा, लेकिन वो तो अपनी नज़रें नीचे किए हुए थी…!
मेने अपने हाथ का सहारा उसकी तोड़ी पर लगाकर उसके चेहरे को ऊपर किया… फिर भी उसकी पलकें झुकी ही रही…
मेरी तरफ देखो निशु..! उसने फिरसे अपनी गर्दन ना में हिला दी…
मे – क्यों ? मुझसे नाराज़ हो..?
वो – लाज आती है…!
मे – मुझसे अब कैसी लाज ! अब हम पति-पत्नी हैं.. जान ! अब हम दोनो के बीच शर्मो-हया का ये परदा क्यों..? ज़रा मेरी तरफ देखो तो सही, मे तुम्हारी इस छबि को कमरे में क़ैद करना चाहता हूँ..
एक क्षण को उसने मेरी तरफ देखा, और उसी पल मेने उसकी उस छबि को अपने फोन में क़ैद कर लिया…
उसके लव थरथरा रहे थे… मेने उसके माथे के टीके को एक ओर कर के उसे चूम लिया… उसकी पलकें फिरसे बंद हो गयी…
उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर मेने कहा – मेरी तरफ देखो मेरी जान…
उसने जैसे-तैसे कर के अपनी पलकों को उठाया, मानो उनके ऊपर ना जाने कितना भर पड़ रहा हो,…
मे उसकी झील सी गहरी शरवती आँखों का तो हमेशा से ही दीवाना था… उनमें झाँकते हुए बोला – तुम सच में बहुत सुन्दर हो प्रिय…
उसकी पलकें शर्म से फिर एक बार झुक गयी… आज तो वो कुछ ज़्यादा ही लजा रही थी…
मेने उसके सर से सारी का पल्लू उतार कर एक तरफ रख दिया और उसके गोरे-गोरे हल्की लाली लिए हुए गालों को चूम लिया…
उसकी नथुनि मेरे और उसके होंठों के बीच दीवार बन रही थी… सो उसको निकाल कर मेने उसके होंठों की तरफ अपने होंठ बढ़ा दिए…
मेरी साँसों की गर्मी महसूस कर के उसके होंठ लरज उठे… मेने जैसे ही उसके रसीले लाल – 2 लिपीसटिक लगे होंठों को किस किया….
निशा ने अपने मेहदी लगे दोनो हाथों से अपने चेहरे को ढांप लिया…
वो अपने घुटने मोड बैठी हुई थी, तो मेने उसके घुटनों को सीधा कर के उसके गोरे – गोरे सपाट पेट को सहलाते हुए अपना हाथ उसके वक्षों तक लाया…
वो अभी भी अपने चेहरे को ढके हुए थी… मेने उसके दोनो संतरों के ऊपर हल्के से हाथ फिराया, फिर अपने दोनो हाथों से उसके हाथों को चेहरे से अलग किया..
उसने अपनी आँखों पर पलकों के पर्दे डाल कर फिरसे बंद करली….
मेने उसकी सारी की गाँठ खोल दी, और एक-एक कर के उसके शरीर से सारे गहने नोच डाले, अब वो ब्लाउज और पेटिकोट में थी,
मेने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूमने लगा….
निशा अपनी सुध-बुध खोती जा रही थी… वो तो बस जैसे अपने प्रियतम के इशारों पर चलने वाली एक कठपुतली बन चुकी थी…
मेने उसके होंठ चूस्ते हुए अपने दोनो हाथ उसके संतरों के ऊपर रख दिए… और उन्हें ब्लाउज के ऊपर से ही मसल्ने लगा…
उसकी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे…और अपनी मरमरी बाहें मेरे गले में डाल दी.
थोड़ा सा मसलने के बाद मेरी उंगलियों ने उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए…
एकदुसरे के होंठ अभी भी एक दूसरे का रस चूसने में ही व्यस्त थे…
वो एक पिंक कलर की ब्रा में आ चुकी थी, जिसमें क़ैद उसकी 32” की गोलाइयाँ किसी टेनिस की बॉल के आकार की गोरी – 2 निहायत ही सुंदर लग रही थी..
मेने अपनी टीशर्ट निकाल फेंकी और उसे कमर से पकड़ कर अपनी गोद में बिठा लिया…
वो मेरे सीने से चिपक गयी… जिससे उसके छोटे-2 सुडौल वक्ष मेरे सीने में दब गये…
मेने निशा की ब्रा निकाल कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया… और उसके बदन को सहलाते हुए उसकी गर्दन से चूमना स्टार्ट किया… और धीरे – 2 कर के उसके स्तनों तक आ पहुँचा…
वो किसी जल बिन मछलि की तरह बिस्तर पर पड़ी तड़पने लगी… गुलाब की पंखुड़ियों समेत उसने बेड शीट अपनी मुत्ठियों में कस ली थी..
मेने उसके निप्पलो को एक बार जीभ लगा कर चाटा,…. निशा के मुँह से एक मादक सिसकी फुट पड़ी…., और अपने पैरों की एडियों को आपस में रगड़ने लगी…
इष्ह……उफफफफ्फ़…. अब उसने मेरा सर अपने दोनो हाथों में ले लिया था…
जब मेने उसकी एक चुचि को अपने मुँह में भरकर चूसा.. और दूसरी को अपनी बड़ी सी हथेली से सहलाया…
तो वो अपनी एडियों को पलंग पर रगड़ते हुए सिसकने लगी….
आआहह………..मत..करूऊऊऊऊऊओ…..प्लेआस्ीईईईई………मुझीई….कुकचह….होताआ….हाईईइ…..
मेने उसकी तरफ मुँह उठा कर पूछा – क्या होता है मेरी जान…?
वो मेरी बात सुनकर बुरी तरह शरमा गयी, और बिना कोई जबाब दिए ही उसने अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया और आँखें बंद कर के सिसकने लगी….
उसकी चुचियों को चूस्ते हुए… मे अपने दोनो हाथों से उसके बगलों को सहलाते हुए… नीचे को लाया… और उसके पेट और नाभि को चूमते हुए उसके पेटिकोट का नाडा खोल दिया…
अब वो मात्र एक छोटी सी पेंटी में थी… जो अब बहुत गीली हो गयी थी…
मेने एक बार फिर उसके होंठों और गर्दन को चूमा, और अपना एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी गीली पेंटी पर रख दिया…
अपनी मुनिया पर मेरा हाथ महसूस करते ही निशा ने अपनी दोनो जांघें जोड़ दी…, मेने अपना हाथ उसकी पेंटी से हटाकर उसकी जांघों पर ले आया और उन्हें सहलाने लगा…
अपना लोवर निकाल कर मेने एक तरफ फेंका, अब में भी मात्र अपनी फ्रेंची में ही था…
उसकी टाँगों के बीच आकर मे अपने घुटने मोड़ कर बैठ गया…और मेने उसकी बगलों को अपने हाथों में भर कर उसे किसी गुड़िया की तरह उठाकर अपनी जांघों पर बिठा लिया…
वो अब अपने पैर मेरे दोनो ओर निकाल कर मेरी गोद में बैठी थी…उसकी छोटी सी कुँवारी मुनिया, कामरस से भीगी पेंटी में धकि, मेरे मुन्ने के ठीक ऊपर थी…
उसके कुल्हों को अपनी मुत्ठियों मे भरते हुए मे उसके होंठ चूसने लगा…
निशा अब बहुत गरम होने लगी थी… उसका बदन अब उसकी नही सुन रहा था.. और वो ऊपर से नीचे थिरकने लगा…
मेरे हाथ कभी उसकी पीठ सहलाते तो कभी उसके गोल-मटोल कुल्हों को मसल देते…
उसकी मुनिया, मेरे मुन्ने से मिलने के लिए तड़पने लगी… और वो दोनो कपड़े की एक पतली सी दीवार के पीछे से ही एकदुसरे से प्रेमलाप में लिप्त हो गये…
मेरे कड़क लंड की रगड़ से उसकी मुनिया… जल्दी ही खुश हो गयी… और उसका बदन अकड़ कर मेरे शरीर से चिपक गया…
मेने उसकी चुचियों को हल्के से मसल दिया, वो सिसक पड़ी ….और ऊओह….जानुउऊउउ…उूउउ....बोलते हुए पेंटी में ही झड़ने लगी,..
और मेरे कंधे पर सर टिका कर धीरे-धीरे हाँफने लगी…
मेने उसकी पीठ सहलाते हुए उसे आवाज़ दी… निशु…!
वो उसी खुमारी में बोली – हूंम्म्म…
मे – आर यू ओके…..
वो – हूंम्म…..
अब मेने उसे पलंग पर सीधा लिटा दिया, और उसकी कामरस से तर पेंटी को निकालकर एक तरफ को उछाल दिया …
अहह…. उसनकी छोटी सी मुनिया… एकदम चिकनी चमेली… जो रस से सराबोर होकर लेड की रोशनी में और ज़्यादा चमक उठी थी…,
मे अपने सामने खुली, दोनो पतले-पतले होंठों को बंद किए हुए उसकी मुनिया को कुछ पल देखता रहा…
उसके निचले सिरे पर कामरस की एक बूँद मोती जैसी चमक रही थी… जो मानो कह रही हो.. कि आओ मेरे प्रियवर…. ये तुम्हारे लिए तोहफा है… आकर अपना तोहफा कबूल करो.
मेने भी उसका स्वागत ठुकराया नही, और इससे पहले की वो उसकी मुनिया के बंद होंठों से जुदा होकर बेड की चादर में विलीन होता, मेने झुक कर हौले से उसे अपनी जीभ से चाट लिया….!
मेरी जीभ को अपनी रसीली मुनिया पर महसूस होते ही निशा एकदम से उछल पड़ी..
हाईए….ये.. क्ककयाआअ……किय्ाआ… आपनीई….उफफफफफ्फ़…सस्सिईईईईईईईईईईई……आअहह….
मेने उस मोती जैसी कमरस की बूँद को चाटने के बाद पूरी जीभ से एक बार उसकी मुनिया के बंद होंठों को नीचे से ऊपर तक चाट लिया……..
निशा ने बेड की चादर को ज़ोर से अपनी मुट्ठी में कस लिया… और अपने होंठों को चबाने लगी…
वो शर्म की वजह से अपने अंदर की उत्तेजना को भी खुलकर व्यक्त नही कर पा रही थी…
उसका बदन बेड पर किसी जल बिन मछलि की तरह तड़प रहा था….