Update 42

एक आशा की किरण नज़र आते ही वो बोल पड़े… बोल भाई किस बात का जबाब चाहिए तुझे…मे तेरे हर सवाल का जबाब देने को तैयार हूँ…

मे – तो बताइए… ऐसी कॉन सी बात थी, जिसकी वजह से कामिनी भाभी ने आपको मदद करने से रोका था…?

भैया – शायद वो मोहिनी भाभी से नफ़रत करती है…, उस समय उसने हट ठान ली कि मे उस केस में उनकी कोई मदद ना करूँ, वरना वो शूसाइड कर लेगी…,

और उसकी इस हट के आगे मुझे झुकना पड़ा…

मे समझ गया कि भैया को असल बात पता नही है इसलिए उन्होने ये अस्यूम कर लिया है,

मे – तो फिर अब मुझसे मदद माँगने के बाद उनसे क्या कहेंगे..? क्या अब वो नही रोकेंगी आपको मदद लेने के लिए…?

वो थोड़ा दुखी स्वर में बोले – सच कहूँ मेरे भाई, तो मुझे भी अब उससे नफ़रत सी होने लगी है, उसकी आदतें बहुत खराब हैं… जिन्हें मे तुम्हें बता भी नही सकता…

वो अपने बाप की पॉवर का फ़ायदा उठाकर ना जाने क्या – 2 ग़लत सलत काम करती है..और मुझे भी करने के लिए उकसाती रहती है…

मुझे तो लगता है उसका चरित्र भी ठीक नही है, मे अब उससे किसी तरह छुटकारा पाना चाहता हूँ… लेकिन क्या करूँ मजबूर हूँ.

मेने अपनी नज़रें उनके चेहरे पर जमा दी, और उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगा, जहाँ मुझे एक बेबस इंसान ही नज़र आया…

अतः उनकी मजबूरी समझते हुए मेने कहा – ठीक है भैया…मे अपना केस वापस ले रहा हूँ, लेकिन वादा करिए… जाने से पहले आप मोहिनी भाभी से माफी ज़रूर माँगेंगे…

उन्होने मुझे अपने गले से लगा लिया, उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े… और रुँधे गले से बोले – भाभी मुझे माफ़ कर देंगी…?

मे – बहुत बड़ा दिल है उनका… आइए मेरे साथ…

फिर हम दोनो घर के अंदर गये… भाभी और निशा आँगन में ही बैठी थी, जो हम दोनो को देखते ही उठ कर खड़ी हो गयी…

भैया दौड़ कर भाभी के पैरों में गिर पड़े, और रोते हुए बोले – अपने देवर को माफ़ कर दीजिए भाभी… मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी..

भाभी ने उनके कंधे पकड़ कर उठने को कहा और बोली – परिवार में एक दूसरे से माफी नही माँगी जाती देवर जी, कुछ फ़र्ज़ निभाने होते हैं…, जिन्हें शायद आप भूल गये थे…

अब अगर एक देवर अपनी भाभी से बात कर रहा है… तो भाभी कभी अपनों से नाराज़ ही नही हुई… हां एक पोलीस ऑफीसर को मे कभी माफ़ नही कर पाउन्गी…

फिर उन्होने निशा को इशारा किया, उसने भैया के पैर छुये…, तो वो उसकी ओर हैरत से देखने लगे…

भाभी मुस्कराते हुए बोली – अपने छोटे भाई की पत्नी को आशीर्वाद दीजिए देवर जी…

भाभी की बात सुनकर उन्होने मेरी तरफ मूड कर देखा… मे खड़ा-2 मुस्करा रहा था…

भैया – ये क्या भाई… इतनी नाराज़गी… अपने भाई को बुलाया तक नही…

मे – रामा दीदी तक को भी नही बुलाया, ये सब जल्दबाज़ी में और सिंपल तरीक़े से ही हुआ…, और वादा करिए, अभी ये बात आप भी किसी को नही बताएँगे…

वो कुछ देर और भाभी के पास रहे, गिले सिकवे दूर किए, और फिर बाहर चले गये…,

कुछ देर घर में ठहरकर मेने भाभी और निशा को बताया कि, मेने अपना केस वापस लेने का फ़ैसला लिया है, जो उन्होने भी उचित ठहराया..

भैया ने अपने साथ आए पोलीस वालों को वापस भेज दिया, और वो उस रात हमारे साथ ही रुके,

आज हम सभी एक साथ मिलकर बहुत खुश थे, रात में बैठ कर गीले शिकवे दूर करते रहे और फिर एक नयी सुबह के इंतेज़ार में सोने चले गये…

दूसरी सुबह घर से ही हम दोनो भाई सीधे कोर्ट गये, जहाँ मेने अपनी कंप्लेंट वापस ले ली.. इस तरह से मेने अपने भटके हुए भाई को वापस पा लिया था…!

दूसरे दिन बड़े भैया को यूनिवर्सिटी जाना था, कोई ट्रैनिंग प्रोग्राम में, दो दिन का टूर था, तो वो सुवह ही घर से निकल गये…

मेरे पास कोई काम नही था…, एक दो छोटे मोटे केस थे, जो मेरे असिस्टेंट ने ही संभाल लिए थे…तो मे सारे दिन घर पर ही रहा…पूरा दिन ऐसे ही निकाल दिया,

थोड़ा खेतों की तरफ निकल गया… बाबूजी से गॅप-सॅप की, चाचियों के यहाँ टाइम पास किया…

छोटी चाची के बच्चे के साथ खेला, उनके साथ रोमॅंटिक छेड़-छाड़ की.. और सारा दिन इन्ही बातों में गुजर गया… रात का खाना खाकर बाबूजी अपने चौपाल पर चले गये…

घर का काम काज निपटाकर भाभी और निशा दोनो ही मेरे रूम में आ गयी… उस वक़्त मे रूचि के साथ खेल रहा था…

वो मेरे पेट पर बैठी थी, मे उसकी बगलों में गुद-गुदि कर रहा था, जिससे वो इधर-उधर मेरे ऊपर कूदते हुए खिल-खिला रही थी…

जब हम तीनो आपस में बातें करने लगे.., थोड़ी देर में ही रूचि सोगयि तो भाभी उसे अपने रूम में सुलाने ले गयी,…

वापस आकर भाभी हमारे पास ही पलंग पर आकर बैठ गयी, और मुझसे अपने देल्ही के दिनो के बारे में पूछने लगी…

भाभी – आज थोड़ा अपने देल्ही में बिताए हुए दिनो के बारे में कुछ बताओ लल्ला जी, क्या कुछ किया इन 4 सालों में…

मे निशा की तरफ देखने लगा… तो भाभी… मज़े लेते हुए बोली -

अच्छा जी ! तो अब भाभी से ज़्यादा बीवी हो गयी… उसकी पर्मिशन चाहिए बोलने को… कोई बात नही, निशा तू ही बोल इनको ….

वो तो बस नज़र झुकाए मुस्कराए जा रही थी..

मेने कहा – ऐसी बात नही है भाभी… बस ऐसी कुछ खट्टी-मीठी यादें हैं, जो शायद निशा हजम ना कर सके..

भाभी – क्यों ऐसा क्या किया जो उसे हजम नही होंगी..? कोई लड़की वाडकी का चक्कर था क्या…?

मे – ऐसा ही कुछ समझ लीजिए…

निशा शिकायत भरे लहजे में बोली – मेने आपसे एक बार कह दिया है ना, कि आपकी निजी जिंदगी से मुझे कोई प्राब्लम नही है फिर भी आप…बार-बार ऐसा क्यों कहते हैं…जी.

मे – चलो ठीक है बताता हूँ…. और फिर मे उन दोनो को अपने देल्ही में गुज़रे सालों के बारे में बताने लगा…

पहले साल तो ज़्यादा कुछ ऐसा नही था, जो कह सके कि बताने लायक हो, ऐसी ही कुछ सामान्य सी बातें, कॉलेज हॉस्टिल की…

फिर मेने दूसरे साल के बारे में हुई घटना उन्हें कह सुनाई…, कैसे मेने नेहा की इज़्ज़त बचाई, जिसकी वजह से मुझे गोली लगी और मे घायल हो गया..!

गोली लगने की बात सुनकर भाभी और निशा दोनो के ही चेहरों पर पीड़ा के भाव आ गये, भाभी अपने माथे पर हाथ मारते हुए बोली –

हे राम ! कहाँ लगी थी गोली लल्ला…? मेने उन्हें अपने कंधे के निशान को दिखाया…

वो – शुक्र है भगवान का की कंधे पर ही लगी…. फिर क्या हुआ….?

फिर कैसे नेहा मुझे वहाँ से लेकर आई, मेरा इलाज़ कराया…

नेहा के मम्मी दादी से मुलाकात हुई, नेहा के दादी प्रोफेसर राम नारायण जो हमारे कॉलेज के सबसे काबिल प्रोफेसर थे…

उस घटना के बाद मे उनका फेवोवरिट स्टूडेंट बन गया… और मेरा उनके यहाँ आना-जाना शुरू हो गया….!
मेने अपने देल्ही में गुज़ारे हुए वक़्त के बारे में भाभी और निशा को बताते हुए आगे कहा –

प्रोफेसर राम नारायण हमारे कॉलेज के सबसे काबिल प्रोफेसर ही नही, सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील भी हैं…

उनकी बेटी नेहा लॉ ख़तम कर के उनके अंडर ही प्रॅक्टीस कर रही थी…

उस घटना के बाद मेरा उनके घर आना जाना शुरू हो गया… अगर मे एक हफ्ते उनके यहाँ नही जा पाता तो, या तो खुद प्रोफेसर मुझे कॉलेज में बोलते, नही तो नेहा का फोन आ जाता…

एक तरह से मे उनके घर का सदस्य जैसा हो चुका था, आंटी भी मुझे बहुत प्यार करती थी, बिल्कुल अपने सगे बेटे की तरह….

नेहा और मे जब भी अकेले होते, तो एक दूसरे के साथ छेड़-छाड़ करते रहते, दिनो-दिन हम दोनो के बीच की दूरियाँ कम होती जा रही थी…

हँसी मज़ाक के दौरान, एक दूसरे के शरीर इतने पास हो जाते की एकदुसरे के बदन की गर्मी महसूस होने लगती…,

कभी-2 वो मुझे मारने दौड़ती, जब में उससे पिट लेता तो उसके बाद वो मेरे कंधे पर अपना सर टिका कर सॉरी बोलती…

इसी बीच अगर जब भी हमारी नज़रें टकराती, तो उन में एक दूसरे के लिए चाहत के भाव ही दिखाई देते…

दिन बीतते गये, सेकेंड एअर के फाइनल एग्ज़ॅम का समय नज़दीक था, नेहा मुझे कोर्स से संबंधित ट्रीट देती रहती थी… अब मे ज़्यादातर समय उनके यहाँ ही बिताने लगा था…

जब वो अपने काम से फ्री होती, मुझे बुला लेती, वैसे वो भी जड्ज के सेलेक्षन एग्ज़ॅम के लिए प्रेपरेशन कर रही थी…

एक दिन सॅटर्डे शाम को मे और नेहा एक साथ स्टडी कर रहे थे, प्रोफ़ेसर. और आंटी देल्ही के बाहर गये हुए थे किसी रिलेटिव के यहाँ फंक्षन अटेंड करने…

मेने नेहा को एक प्राब्लम के बारे में पूछा, हम दोनो एक ही सोफे पर बैठे थे…

उसने मेरी प्राब्लम को पढ़ा, बुक मेरी जांघों पर ही रखी थी… वो मुझे बुक में से ही मेरी ओर झुक कर समझा रही थी…

नेहा एक बहुत ही खूबसूरत, फिट बॉडी, परफेक्ट फिगर वाली 25-26 साल की लड़की थी, उसका फिगर 33-28-34 का था…

इस समय वो एक हल्के से कपड़े का स्लीव्ले टॉप, जो कुकछ डीप नेक था, और एक सॉफ्ट कपड़े की ढीली सी लोवर, जो उसके कुल्हों पर टाइट फिट, लेकिन नीचे वो काफ़ी ढीली-ढली पाजामी जैसी थी…

जब वो झुक कर मुझे समझा रही थी… तो उसके गोल-गोल, दूधिया बूब्स लगभग आधे मेरी आँखों के सामने दिखने लगे…
ना चाहते हुए मेरी नज़र उसके सुंदर से दूधिया चट्टानों पर जम गयी…

समझाते हुए जब उसने मेरी तरफ देखा, तो उसने मुझे उसके दूधिया उभारों को ताकते हुए पाया…

उसके चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान आ गयी…उसे पता था, कि मेरी नज़रें उसके सुंदर वक्षो का बड़े प्यार से अवलोकन कर रही हैं…

उसने मुझे कुछ नही कहा, और अपना एक हाथ मेरी जाँघ पर रख दिया.. जिसके कारण वो थोड़ा सा और झुक गयी… अब मे उसके उभारों को और अच्छी तरह से देख पा रहा था…

अब बस मुझे उसके नुकीले निपल ही नही दिख पा रहे थे…लेकिन वो मेरी नज़रों का स्पर्श पाकर उत्तेजना के कारण कड़क हो गये थे… जिसका सबूत वो उसके टॉप के मुलायम कपड़े को उठाकर दे रहे थे…

ऐसा लग रहा था, वो मानो उसके कपड़े को चीर कर पार ही हो जाएँगे…

शायद नेहा ने ब्रा नही पहना था… जो उसने बाद में बताया भी था, कि वो बाहर से आते ही अपनी ब्रा और पेंटी निकाल देती है…

कुछ देर वो ऐसे ही झुक कर मुझे समझाती रही.. और धीरे-2 मेरी जाँघ को अपने बोलने के इंप्रेशन के साथ कभी दबा देती, कभी सहला देती, मानो अपने बोलने का डाइरेक्षन उसके हाथ से दे रही हो….

फिर अचानक मुझे छेड़ने के लिए, उसने मुझसे उसी सब्जेक्ट से संबंधित सवाल पुच्छ लिया… मेरा ध्यान तो उसकी चुचियों की सुंदरता में खोया हुआ था…

तो मे उसके सवाल पर ध्यान ही नही दे पाया, उसने अपना सवाल फिर से रिपीट किया… तो मे हड़बड़ा कर बोला…

क.क.क्ककयाअ पूछा आपने दीदी….??

वो खिल खिलकर हँस पड़ी…. और बोली तुम्हारा ध्यान कहाँ है मिसटर… लगता है, मे बेकार में ही अपनी एनर्जी वेस्ट कर रही हूँ…

मे – नही..नही.., ऐसी बात नही है, दरअसल मे कुछ सोच रहा था… और झेन्प्ते हुए मेने अपनी नज़रें झुका ली…

वो – मुझे पता है, तुम क्या सोच रहे थे…? लेकिन अभी पढ़ने पर ध्यान दो, सोचने पर नही…

मे – सॉरी दीदी… वो मे. .. वो…..

वो फिर हँसने लगी… और शरारत से बोली – इट्स ओके.. होता है.. सामने इतना अच्छा सीन हो तो ध्यान भटक ही जाता है… है ना..!

मे – नही मे.. ..वो… ऐसा नही है…

वो – क्या तुम्हें अच्छे नही लगे वो ….?

मे – क्या…? आप किस बारे में बोल रही हैं… मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा…

वो – मुझे बेवकूफ़ समझते हो… अब बोल भी दो… मुझे अच्छा लगेगा…

मे – क्या बोल दूं.. दी..?

वो – वही की तुम्हें मेरे बूब्स अच्छे लगे… क्यों है ना अच्छे… बोलो…

मे शरमाते हुए बोला – हां ! बहुत सुंदर हैं…सच में आप बहुत ही सुंदर हैं दी…

वो – तो अब तक चुप क्यों थे… या आज ही देखा है तुमने मुझे…!

मे – नही मुझे तो आप हमेशा से ही सुन्दर लगती थी, लेकिन कह नही सका…ये कहते हुए मेने उनके फूले हुए रूई जैसे मुलायम गाल पर एक किस कर दिया…

शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया… और चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान गहरा गयी…! नज़र झुका कर वो बहुत ही धीमे स्वर में बोली…

मुझे भी तुम बहुत अच्छे लगते हो अंकुश… आइ लव यू !

उसके मुँह से ये शब्द सुनते ही मेने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों पर एक किस जड़ दिया…

उसने भी अपनी मांसल गोरी-गोरी बाहें मेरे इर्द-गिर्द लपेट दी.. और मुझे पलटकर किस कर दिया…

उसके सुन्दर से गोल-मटोल चेहरे को अपनी हथेलियों में लेकेर मे उसकी बड़ी-बड़ी, काली आँखों में झाँकते हुए बोला ….

आप बहुत सुंदर हो दीदी… आइ लव यू टू… और उसके सुर्ख रसीले होंठों को चूसने लगा… वो अपनी आँखें बंद कर के मेरा साथ देने लगी…

हम दोनो की साँसें भारी होने लगी, आँखों में वासना के लाल-लाल डोरे तैरने लगे…बिना ब्रा के उसके सुडौल गोल-गोल संतरे… मेरे सीने में दब रहे थे..

मेने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी गोद में बिठा लिया, अब वो मेरे दोनो ओर अपने घुटने मोड़ कर मेरी गोद में बैठी थी….

मेरे दोनो हाथ उसके संतरों पर पहुँच गये और उन्हें धीरे से सहलाने लगा…

इसस्स्शह….. आआहह….अंकुश… ज़ोर से दबाओ इन्हेन्न…प्लीज़…,

उसकी तड़प देखकर मेने उसके टॉप को निकाल दिया, और गोल-गोल चुचियों को दोनो हाथों में लेकर मसल दिया…

सस्स्सिईईईईईई………आआहह…….बेड रूम में चलें…नेहा तड़प कर बोली…

मे – दीदी, क्या आप मेरे साथ ये सब करना चाहती हैं….?

वो आश्चर्य के भाव अपने चेहरे पर लाते हुए बोली – तो अब तक क्या तुम यौन ही.. ये सब कर रहे थे…? जल्दी चलो.. अब नही रुक सकती मे…आअहह…

मेने उसे उसी पोज़िशन में उठा लिया.. उसकी बाहें मेरे गले में लिपटी हुई थी.. उसके गोल-मटोल तरबूज जैसे चुतड़ों को मसलते हुए उसके बेड रूम में ले आया..

उसे बेड पर पटक कर मे उसके ऊपर आ गया, और उसके होंठों को एक बार और चूम कर उसकी चुचियों को चूसने लगा….

उसके सुडौल सम्पुरन गोलाई लिए कड़क चुचियों की सुंदरता देख कर मे बबला सा हो गया… और झपट्टा सा मार कर उन पर टूट पड़ा….

उन्हें चूस्ते हुए मेने कहा – आपकी चुचियाँ बहुत सुंदर हैं दीदी….जी करता है खा जाउ इनको….

आआहह….हाआंणन्न्…खा जाऊओ..सस्सिईइ…उउउम्म्म्म….और ज़ोर से चूसो इन्हें…

मेने उसके कंचे जैसे कड़क निप्प्लो पर अपने दाँत मार दिए….

वो मज़े और पीड़ा से बिल-बिला उठी….और मुझे ज़ोर से अपनी बाहों में कस लिया…..

मेरी और नेहा के पहले मिलन की दास्तान भाभी और निशा दम साधे हुए सुन रही थी…वो दोनो एक तरह से मानो उस सीन में खो सी गयी…

उन दोनो की साँसें धीरे-2 अनियंत्रित होती जा रही थी…

मेने एक नज़र उन दोनो पर डाली… उनकी अवस्था देख कर मेरे चेहरे की मुस्कान गहरी हो गयी…

मुझे चुप होते देख… वो दोनो मेरी तरफ देखने लगी…फिर उन्होने एक दूसरे की तरफ देखा… और फिर शरमा कर अपनी नज़रें झुका ली…

भाभी से इंतेज़ार नही हुआ सो बोल पड़ी… आगे भी बोलो देवेर जी… फिर क्या हुआ ?

मेने निशा की कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया, और उसकी कमर सहलाते हुए आगे बोलना शुरू किया….!

नेहा की मस्त मोटी-मोटी गदराई हुई चुचियाँ जो एकदम पेरफक्त गोलाई लिए हुए थी, देखकर मेरा संयम खो गया और मे उन पर बुरी तरह से टूट पड़ा…

पहले तो उन्हें दोनो हाथों में भर कर सहलाया, फिर एक को मुँह में लेकर चूसने लगा…

नेहा मज़े से आहें भरने लगी, और अपने हाथ का दबाब मेरे सर पर डाल कर चुचि चुसवाने का मज़ा लेने लगी..

एक हाथ से मे उसके दूसरे आम को मसल रहा था, उसके निपल लाल सुर्ख किसी जंगली बेर जैसे लग रहे थे… जिसे मेने अपने दाँतों में दबा कर खींच दिया…

वो एकदम से उच्छल पड़ी.. और उसके मुँह से एक मादक सिसकी फुट पड़ी…

ईीीइसस्स्स्स्स्स्सस्स……आअहह….खाजाओ…ईसीईए अंकुश….प्लीज़ और चूसो इन्हें….

बड़ा मज़ा आरहा है…मेरी जानणन्न्…आआययईीीईईई……मुम्मिईीईई…..उउफफफ्फ़….

मेने उसकी चुचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया…

उसने मेरी टीशर्ट को खींच कर निकाल दिया और मेरी नंगी पीठ को सहलाने लगी..

मे पीछे खिसकते हुए पलंग के नीचे आ गया और उसके ढीले ढाले लोवर को खींच कर निकल फेंका… वो बिना पेंटी के ही थी…

अब उसकी मुनिया मेरी आँखों के सामने थी…जिसपर छ्होटे-2 बाल थे, शायद एक हफ्ते के तो रहे होंगे…

मेने पलंग पर घुटने टेक कर उसकी मुनियाँ के आस-पास की फसल को सहला दिया…

सीईईईईईईईईई……ऊहह….गोद्ड़द्ड…इतना मज़ाअ…. वो सिसक पड़ी… उसकी मुनिया गीली हो चुकी थी… जिसे मेने चाट कर और गीला कर दिया…

नेहा ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और मेरे होंठों पर टूट पड़ी…, साथ में एक हाथ से मेरे लोवर को नीचे कर दिया, फिर पैर से उसे मेरे पैरों तक ले गयी…

मेरा शेर पूरी तरह पोज़िशन में आ चुका था, जो अब उसकी टाँगों के बीच उच्छल-कूद मचा रहा था…

एक बार उसने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसे मुट्ठी में कसकर उसकी सख्ती को चेक किया… फिर मेरे होंठ चूसना बंद कर के वो बोली…

तुम्हारा ये तो बहुत बड़ा है… अपने अंदर कैसे ले पाउन्गि मे इसे…?

मेने कहा – पहले किसी का नही लिया है क्या…?

वो – लिया तो है एक-दो बार पर वो तो… इतना बड़ा नही था…

मेने कहा – कोई नही, ये भी आराम से चला जाएगा.. आप चिंता ना करो…

वो उसे दबाते हुए बोली – तो अब जल्दी करो… डियर, अब और ज़्यादा सबर नही हो रहा मुझसे….

मेने उसकी टाँगों के बीच बैठ कर उसके घुटने मोड़ दिए और उसकी गीली चूत को एक बार चाट कर अपनी जीभ से ऊपर से नीचे तक और गीला कर दिया…

फिर उसकी फूली हुई चूत की फांकों को खोलकर अपने मूसल को उसके छेद पर टिकाया… और एक धक्का धीरे से लगा दिया…

सच में उसकी चूत ना के बराबर ही चुदि थी… मुश्किल से मेरा मोटा सुपाडा उसमें फिट हो पाया… उसने अपने होंठों को कस कर बंद कर लिया…

मेने एक और ज़ोर का धक्का लगाया… मेरा मोटा लंड सरसरकार आधे से ज़्यादा उसकी कसी हुई चूत में घुस गया…

उसके मुँह से कराह निकल गयी….

अहह……धीरीई…अंकुशह…दर्द..होरहाआ…है…उ…..माआ…

मेने थोड़ा रुक कर फिर से एक धक्का और लगाया, अब मेरा पूरा लंड उसकी सन्करि चूत में फिट हो गया था… दर्द से उसके आँसू निकल पड़े…

और उसने बेडशीट को अपनी मुत्ठियों में कस लिया….

मेने उसके होंठ चुस्कर अपने हाथों से उसकी चुचियाँ सहलाने लगा… कुछ देर में उसका दर्द कम हो गया… और वो नीचे से अपनी कमर उचकाने लगी…

मेने इशारे को समझ कर धीरे-2 लयबद्ध तरीक़े से अपने धक्के लगाने शुरू कर दिए, शुरुआत में कुछ देर आराम से आधे लंबाई में…

फिर जब मेरा लंड उसके कामरस से गीला हो गया, तो पूरे शॉट लगाते हुए मेने अपनी स्पीड बढ़ा दी.. नेहा भी फुल मस्ती में अनप शनाप बड़बड़ाती हुई मज़े से चुदाई का मज़ा लेने लगी….!

एक उसके झड़ने के बाद मेने उसे पलंग पर घोड़ी बना लिया, और पीछे से उसकी चूत में लंड डालकर वो रगड़ाई की….

वो हाई..तौबा मचाती हुई, चुदाई में लीन हो गयी… हम दोनो को ही बहुत मज़ा आ रहा था……,

20-25 मिनिट की धुआँधार चुदाई के बाद मेने अपना पानी उसकी गरम-2 चूत में उडेल दिया… वो फिर एक बार झड़ने लगी…

इस तरह से हम दोनो के बीच शरीरक संबंध बन गये…

फिर तो जब भी मौका मिलता… हम एक दूसरे में समा जाते… वो मुझे बहुत प्यार करने लगी थी…

धीरे – 2 समय गुज़रता गया, एक दो अटेंप्ट में उसका सेलेक्षन हो गया, और वो लोवर कोर्ट की जड्ज बन गयी…

उसके बाद भी हम मिलते रहे… जब मेरे फाइनल एअर के एग्ज़ॅम हो गये, और रिज़ल्ट का वेट कर रहा था, तभी प्रोफेसर साब ने उसकी शादी करदी, एक आइएएस ऑफीसर के साथ…

रिज़ल्ट आने के बाद उन्होने मुझे अपने साथ प्रॅक्टीस करने को कहा, अब उनसे अच्छा गुरु कहाँ मिलता सो मेने हां करदी…

शादी के बाद भी नेहा मुझसे मिलने आ जाती थी, फिर मेने एक दिन उसे समझाया, कि अब हम दोनो को नही मिलना चाहिए,

ये उसके और उसके दोनो परिवारों की प्रतिष्ठा के लिए ठीक नही है…वो मानना नही चाहती थी, फिर मेरे ज़्यादा ज़ोर देने पर वो मान गयी, और हम दोनो का मिलना धीरे-2 कम होता गया…

मे ये कहानी पलंग पर बैठ कर ही बता रहा था, सिरहाने से टेक लिए हुए… मेरे एक तरफ निशा बैठी थी और दूसरी तरफ भाभी…

कहानी सुनते-2 निशा उत्तेजित होकर और अपना आपा खो बैठी, भाभी की मौजूदगी में ही वो मेरे बदन से चिपक गयी, और मेरे सीने को सहलाने लगी,

उसकी मिडी जांघों तक चढ़ि हुई थी, और वो अपनी एक टाँग मेरे ऊपर रखकर अपनी सुडौल मक्खन जैसी चिकनी जाँघ से मेरे लंड को मसल रही थी…

भाभी थोड़ा दूरी बनाए हुए अढ़लेटी सी बैठी अपनी मदहोश नज़रों से निशा की हरकतों को देख रही थीं..,

लेकिन अपनी बेहन के पति के साथ उसकी मौजूदगी में पहल नही कर पा रही थी, सो मेने उनकी कमर में हाथ डालकर अपनी तरफ खींच लिया.. और बोला…

अब आप क्यों शरमा रही हो भाभी…जब छुटकी को कोई प्राब्लम नही है तो…

वो हँसते हुए मुझसे चिपक गयी और मेरे होंठों पर किस कर के बोली…

मे तो तुम्हारे रिक्षन का वेट कर रही थी…ये कह कर उन्होने मेरी टीशर्ट निकाल फेंकी और मेरे निप्प्लो को जीभ से चाट लिया…

सस्सिईईईईईई………अहह… भाभी….आप जादूगरनी हो सच में….निशु डार्लिंग…. कुछ सीखले अपनी बडकी से…….

मेरी बात सुन कर दोनो खिल खिला कर हँसने लगी…, फिर उन दोनो ने मिलकर मेरे ऊपर हमला बोल दिया…

उन दोनो के बीच की सारी शर्म लिहाज की दीवार ढह गयी, अब वो दोनो मदरजात नंगी मेरे आगोश में लिपटी हुई थी…

भाभी ने मेरे लंड पर कब्जा कर लिया, तो निशा ने मेरे उपरी हिस्से को संभाला, हम तीनों ही एक दूसरे को भरपूर आनंद देने की कोशिश में जुट गये…

फिर शुरू हुआ चुदाई का दौर… मेने निशा की टाँगें चौड़ी कर के भाभी से कहा –

भाभी मेरी इच्छा है, कि आप अपने हाथ से मेरा लंड पकड़ कर अपनी छुटकी की चूत पर रखें…

भाभी ने हंस कर प्यार से मेरी पीठ पर एक धौल जमाई… और फिर मेरे मूसल जैसे लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर उसे निशा की चूत के होंठों पर रगड़ा....

निशा इसी कल्पना में कि उसकी बड़ी बेहन उसके पति का लंड चूत पर रगड़ रही है, उसकी चूत ने लार बहाना शुरू कर दिया…

फिर उन्होने उसे उसके संकरे छेद पर सेट कर के अपनी एक उंगली मेरी गान्ड के छेद में डाल दी…

ऊुउउक्छ ! ऑटोमॅटिकली मेरी गान्ड में झटका लगा, और मेरा लंड सरसरकार निशा की गीली चूत में चला गया…

भाभी की चुचियाँ चूस्ते हुए मेने धक्के लगाना शुरू कर दिया..

दोनो की कामुक सिसकियों से कमरे का वातावरण चुदाईमय हो गया था…

हम तीनों रात भर रासलीला में मस्त रहे… सुबह के 5 बज गये, लेकिन उनमें से कोई हार मानने को तैयार नही थी…

कभी में भाभी को घोड़ी बनाकर चोद रहा होता तो निशा उनके नीचे लेटकर चूत सहलाती, जीभ से उनकी क्लिट को चाटती…

दूसरे सीन में जब निशा मेरे लंड का स्वाद ले रही होती, और भाभी अपनी चूत मेरे मुँह पर रखा कर उसे चटवा रही होती…

तीनों की आहों करहों और सिसकियों से कमरे का वातावरण बहुत ही मादक हो गया था, वातावरण में वीर्य और कामरस की सुगंध फैली हुई थी…

मे एक बार झड़कर साँसें इकट्ठी करता, कि दूसरी मेरा लंड चुस्कर उसे फिरसे तैयार करने में जुट जाती…

आज मुझे उन दोनो को देखकर ऐसा लग रहा था, मानो उनके अंदर सेक्स की देवी रति की आत्मा घुस गयी हो…

आख़िर में मुझे ही हथियार डालने पड़े, और हाथ जोड़कर बोला…अब मुझे माफ़ करो मेरी मल्लिकाओ… मेरी टंकी अब पूरी खाली हो गयी…

भाभी ठहाका लगा कर बोली – हाहाहा….क्यों लल्लाजी…निकल गयी सारी हेकड़ी… एक अकेली को तो कितना रौन्द्ते हो…

उनकी बात सुनकर मेरी और निशा की भी हसी छूट गयी…

फिर वो दोनो अपने-2 कपड़े पहनकर मुझे किस कर के बाहर निकल गयी क्योंकि अब उन दोनो के सोने का समय नही था…

उनके निकलते ही मे चादर तान कर लंबा हो गया… और सीधा 10 बजे जाकर उठा…!​
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