Update 44
खाने के बाद हम तीनों एक ही बेडरूम में आगये, दीदी ने मुझे एक बड़ा सा ग्लास बादाम और केसर डालके दूध दिया और हस्कर बोली –
ले पीले, आज बहुत मेहनत करनी है सारी रात… दो दो घोड़ियों की सवारी करनी पड़ेगी…,
दूध पीकर हम तीनों फिर से चुदाई में जुट गये, लेकिन एक-एक राउंड करके ही हम जल्दी ही नींद में डूब गये…!!
इस तरह पूरे हफ्ते हम तीनों ने आलोक जीजू के आने तक थ्रीसम चुदाई का भरपूर मज़ा लिया,
रामा ऐसे कॉपरेटिव भैया-भाभी पाकर फूली नही समा रही थी…क्योंकि उसकी अब तक की अधूरी प्यास अच्छे से बुझ रही थी…!
निशा भी चुदाई के ज़्यादा मौके उसी को दे रही थी, रामा के ये पुच्छने पर की वो ऐसा क्यों कर रही है तो उसने कहा…
ये घोड़ा तो मेरे नाम रिजिस्टर्ड ही है, जिसे मे जब चाहूं दौड़ा सकती हूँ, लेकिन मेरी प्यारी ननद को फिर कब-कब ऐसा मौका मिलेगा…
उसकी बात सुनकर वो गद-गद हो उठी, और उसने उसे अपने गले से लगा लिया…
इसी बीच हम ने निशा को दिल्ली दर्शन भी कराए, सिनिमा देखने भी गये…
और फिर एक दिन मे उन दोनो को लेकर अपने गुरु और आंटी से मिलने भी गया,
उन्होने उन दोनो को अपनी बहू और बेटी जैसा ही प्यार दिया, सारे दिन अपने पास रखा, वहीं से नेहा को फोन करके भी बुला लिया…
नेहा, निशा और दीदी से मिलकर बहुत खुश हुई, फिर लौटते वक़्त वो उन दोनो को गिफ्ट देना नही भूले…!
आलोक जीजू के लौटने के बाद एक दिन रुक कर, मे और निशा अपने घर लौट लिए…...,
शाम तक हम घर लौटे, जहाँ एक खुशी हमारा बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी, घर भर में खुशी का माहौल था,
सबसे पहले हमें छोटी चाची मिली, और उन्होने हमें बताया की मोहिनी बहू माँ बनने वाली है…
हम दोनो ही लपक कर उनके कमरे में गये, देखा तो भैया उनके पास बैठे हुए थे..और बड़े खुश दिखाई दे रहे थे…
देखते ही उन्होने मुझे गले से लगा लिया, और खुशी से कांपति आवाज़ में बोले- छोटू मेरे भाई ! तू फिर एक बार चाचा बनाने वाला है…!
मेने खुशी से उच्छलते हुए कहा – सच भैया… ! ये तो बड़ी खुशी की बात है.., उसके बाद मे भाभी के पास गया.. जहाँ दोनो बहनें एक दूसरे के गले लगी हुई थी...
मेने कहा - भाभी इस बार मुझे नन्हा-मुन्ना प्यारा सा भतीजा चाहिए… क्यों रूच बेटा ! तुम्हें अपने लिए छोटा सा भाई चाहिए ना !
उसने हां में अपनी गर्दन हिलाई और बोली – मम्मी मुझे छोटा भाई दोगि ना…!
भाभी ने मुस्करा कर कहा – बेटा ! ये तो भगवान जी ही जाने, भाई होगा या छोटी सी गुड़िया…
इस तरह हसी खुशी सबने मिलकर भाभी भैया की खुशी को बाँटा…
अकेले में भाभी ने मेरे कान में कहा – ये तुम्हारा उस दिन की मेहनत का फल है मेरे लाडले देवर्जी….
ये सुनकर मे उनके मूह की तरफ ताकता ही रह गया….!
वो मुस्करा कर बोली – ऐसे क्या देख रहे हो… मे सच कह रही हूँ… !
भला माँ से अधिक किसे पता होगा कि उसके बच्चे का बाप कॉन है…, क्या ये सुनकर तुम्हें खुशी नही हुई…?
मे – नही भाभी ! ऐसी बात नही है… पर मुझे विश्वास नही हो रहा…!
वो – अपनी भाभी की बात पर भी नही…?
मे – अब आप कह रहीं हैं तो ज़रूर सही ही होगा… वैसे आप खुश तो हैं…?
भाभी ने मेरे गाल को कचकचाकर काट लिया, और फिर उसे चूमते हुए बोली –
बहुत से भी ज़्यादा मेरे होने वाले बच्चे के पापा जी….तुम्हारा अंश अपनी कोख में पाकर कॉन खुश नही होगी भला….
मेने भाभी के डिंपल में अपनी जीभ की नोक डालकर कहा – क्यों ! ऐसी क्या खास बात है मेरे अंश में…?
वो मेरे लौडे को सहला कर बोली – दो रिज़ल्ट सामने हैं इसके, फिर भी पुच्छ रहे हो…?
उनकी इस बात पर मे हँस पड़ा और वो मन ही मन खुश होती हुई रसोई की तरफ चली गयी…!
उस दिन के बाद मेरे अंदर एक अजीब तरह की उत्तेजना सी रहने लगी…,
मेरा अंश भाभी की कोख में पल रहा है…, ये सोचकर मे अजीब से रोमांच से भर गया…
इसी खुशी के साथ मे मन लगाकर अपने काम में लग गया, और रेग्युलर कोर्ट/ ऑफीस जाने लगा…. !
भगवान दास गुप्ता जी का लीगल आड्वाइज़र होने के नाते, अब मेरा उनके ऑफीस और घर आना जाना अक्सर लगा रहता था…
कई एकड़ में बनी शानदार कोठी में उनका 4 प्राणियों का छोटा सा परिवार और कई सारे नौकर चाकर जिनके लिए रहने को सर्वेंट क्वॉर्टर्स भी कोठी के पीछे बने हुए थे…
48 वर्षीया गुप्ता जी धरम करम को मानने वाले, उनका सुबह का टाइम अधिकतर पूजा-पाठ में ही जाता था, ख़ासतौर से मैया लक्ष्मी के घोर उपासक थे गुप्ता जी…
माँ की कृपा भी खूब थी उनके उपर, धन दौलत की कोई कमी नही थी, बस कमी थी तो समय की जिसके लिए उनका परिवार हमेशा तरसता रहता था…!
उनकी 45 वर्षीया पत्नी सेठानी शांति देवी, एक भारी-भरकम औरत, शरीर से तो इतनी नही लेकिन स्वाभाव से…
बस नाम की ही शांति देवी थी, वाकी तो घर के नौकरों और यहाँ तक बच्चों के लिए तो वो चंडिका देवी थी…
गुप्ता जी भी उनके सामने ज़्यादा बोलने की गुस्ताख़ी नही करते थे…
एकदम कड़क तीखी आवाज़, घर के किसी भी कोने में वो जब किसी को डाँटती थी, तो उनकी आवाज़ लगभग कोठी के हर कोने में पहुँचती थी, जिससे सबके कान खड़े हो जाते…
24 वर्षीय बेटा संकेत अपना ग्रॅजुयेशन कंप्लीट करके बिज़्नेस मॅनेज्मेंट का कोर्स कर रहा था, जिससे आगे चलकर अपने पिता के कारोबार को सुचारू रूप से संभाल सके…
बेटी खुशी, 19 साल की, इसी वर्ष कॉलेज में पहुँची है, बी.कॉम करने, शुरू से ही थोड़ी दोहरे बदन की है,
ज़्यादा नही मध्यम हाइट के साथ शायद 34-32-36 का फिगर होगा, कभी मापने का मौका नही लगा अभी तक…
ज़्यादा गोरी तो नही पर सॉफ रंग है अपनी माँ के जैसा…, गोल मटोल चेहरा, किसी गुड़िया की तरह..
देखने में ही बहुत मासूम और भोली-भाली सी लगती है,
बेचारी सिर्फ़ नाम की ही खुशी है, वाकी उसके लिए खुशी दूर-दूर तक नही थी…बस थोडा बहुत हंस खेल लेती है, जब उसका भाई या पापा साथ में हों तो..
ना ज़्यादा सज-संवार सकती है, और ना ज़्यादा मॉडर्न कपड़े पहन सकती है…माँ की इन्स्ट्रक्षन, ये मत करो, वो मत करो… ये क्यों किया.. वग़ैरह…वग़ैरह, यू नो…
हां बेटे को वो बहुत चाहती है, उसकी हर बात मानी भी जाती है, करने की छूट भी है…
गुप्ता जी बेचारे को इन सब चीज़ों से कोई सरोकार नही, कि उनके घर में क्या चलता रहता है, क्या नही.. वो बस अपनी धन कमाने की दुनिया में ही मस्त रहते हैं…!
एक दिन मे सुवह-सुवह एक ज़रूरी काम से उनके यहाँ गया था, गुप्तजी रोज़ की तरह पूजा पाठ में लगे थे, मे हॉल में बता उनका इंतेज़ार कर रहा था…
नीचे सेठानी के रूम से तेज-तेज आवाज़ें आ रही थी, वो अपनी बेटी को डाँट रही थी, वैसे ये उनकी नॉर्मल आवाज़ थी हां !
शांति – तू आए दिन कॉलेज मिस करती रहती है, बात क्या है..? ऐसे तो कैसे कर पाएगी अपना कोर्स पूरा..?
खुशी – मे अपने सर से ट्यूशन में कर लूँगी, लेकिन मुझे नही जाना कॉलेज…
शांति – लेकिन बात क्या है, तू कॉलेज के नाम से इतना डरती क्यों है..?
खुशी – कॉलेज के लफंगे लड़के बहुत परेशान करते हैं,
शांति – अरे तुझे उन लफंगों से क्या लेना-देना, सीधी जा और सीधी आ, और फिर कोई परेशानी है तो संकेत को भी बोल सकती, वो भी तो वहाँ होता ही है…
खुशी – मेने बताया था भैया को, लेकिन उन्होने भी कुच्छ नही किया…, कुच्छ गुंडे टाइप के लड़के हैं, जो किसी की नही मानते…
शांति – अब परेशान तो करेंगे ही, इत्ति सी उमर में, देख अभी से कैसा पहाड़ जैसा सीना हो गया है तेरा…, कुच्छ ग़लत हरकतें तो नही करने लगी है…
खुशी – क्या मम्मी ! अनाप-शनाप बोलती रहती हो, खुद ने ही तो जबरदस्त खिला-खिलाकर मोटा कर दिया है मुझे.. अब इसमें मेरी क्या ग़लती है…
शांति – चल ठीक है, तेरे पापा से बात करती हूँ, वो प्रिन्सिपल से बात कर लेंगे..
इसके बाद खुशी हॉल में से होती हुई उपर अपने रूम में चली गयी…,
उपर जाने के लिए हॉल से एक बड़ा सा गोलाई लिए स्टेर्स थे…, मेरी नज़र उसके थिरकते हुए भारी भरकम कुल्हों पर जम गयी..
सच में इस उमर में खुशी कुच्छ ज़्यादा ही भरकम हो गयी थी…, लेकिन उसकी बात भी सही थी, अब लाड़ प्यार ने खिला-पिलाके ऐसा कर दिया तो इसमें वो बेचारी भी क्या करे…
गुप्ता जी के घर में मुझे सभी नौकर यहाँ तक कि उनके दोनो बच्चे भी वकील भैया बोलते थे…!
उसके पीछे-2 सेठानी भी बाहर आई, मेने नमस्ते किया, और गुप्ता जी के बारे में पुछा तो वो बोली –
अरे भाई, उनका क्या ठिकाना कब तक निपटाते हैं, तुम ऐसा करो ऑफीस में ही मिल लेना मे उन्हें बोल दूँगी, कि तुम आए थे…!
इतना कहकर वो रसोई घर की तरफ बढ़ गयी, और मे उठकर वहाँ से चलने को हुआ, कि तभी खुशी मुझे नीचे आती हुई नज़र आई..,
उसके चेहरे से लग रहा था कि वो कुच्छ परेशान है, वैसे उसकी परेशानी की वजह मुझे कुच्छ – 2 पता लग ही गयी थी, फिर भी मेने उसे आवाज़ दी…अरे खुशी ! कैसी हो ?
वो थोड़ा दुखी मन से बोली – ठीक ही हूँ वकील भैया, आप सूनाओ, पापा से मिलने आए थे..?
मे – हां ! पर वो तो पूजा से ही फारिग नही हुए…, वैसे ना जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम कुच्छ परेशान हो…
खुशी – जाने दीजिए भैया, अब घर में ही मेरी किसी को परवाह नही है, तो आपको बताने से क्या फ़ायदा…
मे – मुझे भी तुम अपने घर का हिस्सा ही समझो, नौकर हूँ तो क्या हुआ..., हो सकता है मे तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ…!
खुशी – कॉलेज में कुच्छ आवारा टाइप के लड़के हैं, अक्सर लड़कियों को छेड़ते रहते हैं, अभी तक तो बातों से छेड़ते थे, लेकिन अब तो वो…
वो बोलते-बोलते चुप रह गयी, मे उसके चेहरे की तरफ देखने लगा तो उसने अपनी नज़रें नीची कर ली और अपना होठ काटने लगी…
मेने उसे आगे बोलने के लिए कुरेदा – लेकिन अब क्या हुआ खुशी बोलो…देखो मान सको तो मुझे भी अपना भाई समझो, और अपनी परेशानी खुल कर कहो…
खुशी – कैसे कहूँ वकील भैया, कहते हुए भी शर्म आती है, अब तो वो हरम्जादे हमारे कहीं भी हाथ लगा देते है, कभी पीछे, तो कभी…
मे – बस मे समझ गया खुशी, लेकिन तुम लोगों ने प्रिन्सिपल से शिकायत नही की..
वो – की थी, लेकिन थोड़ा बहुत डाँट फटकार कर उन्होने छोड़ दिया…
मे – संकेत को बताया…?
वो – भैया तो बहुत बड़ा वाला फट्टू है, वो उन लोगों के डर की वजह से कुच्छ कहता ही नही…
मे – कहाँ रहते हैं वो लफंगे…?
वो – वहीं बाय्स हॉस्टिल में, वो 4 लड़के हैं जो 2-2 के हिसाब से दो रूम में रहते हैं, फिर उसने उनके नाम और रूम नंबर भी बताए…
मे – तुम बिंदास कॉलेज जाओ, कल से वो लौन्डे तुम्हें कुच्छ नही कहेंगे, लेकिन हां ! इस बात का जिकर तुम किसी से नही करोगी, अपने घर में भी किसी से नही…ओके.
उसने हां में अपनी गार्डेन हिला दी, फिर मे वहाँ से कोर्ट की तरफ निकल आया…
कुच्छ इम्पोर्टेंट केस निपटाकर मैं गुप्ता जी के ऑफीस चला गया, उनके साथ ज़रूरी डिसकस करके मे अपने फ्लॅट में आगया जो उन्होने मुझे रहने के लिए दिया था…
इन लफंगों का कुच्छ तो करना पड़ेगा, ये सोचकर मेने कुच्छ ज़रूरी समान लिया और कॉलेज बंद होने के बाद एक चक्कर हॉस्टिल का लगाया,
बिना किसी की नज़र में आए कैसे उन लोगों तक पहुँचा जा सकता है, ये सब देखभाल कर मे वापस लौट आया…
वो दोनो कमरे ग्राउंड फ्लोर पर ही थे, हॉस्टिल की पिच्छली बाउंड्री वॉल थोड़ी उँची थी, कोई 10-12 फीट, लेकिन कोशिश करके अंदर जाया जा सकता था…
रात करीब 11 बजे मे पीछे की बाउंड्री वॉल फांदकर हॉस्टिल कॉंपाउंड में दाखिल हो गया,
इस समय मेरे शरीर पर उपर से नीचे तक काला स्याह लबादा था, चेहरा भी स्याह कपड़े से ढँक रखा था…
मेने पीछे की दीवार से उनके कमरे की आहट ली, एक कमरे में शांति थी, लेकिन दूसरे कमरे से विंडो की झिर्री से लाइट भी आ रही थी, और कुच्छ आवाज़ें भी…
अब हॉस्टिल की विंडो, सील टाइट तो होने से रही, कुच्छ दिनो के बाद अंदर की चितखनी लगना भी मुश्किल होती है,
ये सोचकर मेने विंडो के उपर अपने हाथ का थोड़ा सा दबाब डाला, तो उसका एक पाट हल्का सा खुल गया…
अंदर का जायज़ा लिया, तो मेरे चेहरे पर मुस्कान आगयि…
विंडो का पाट खुलते ही, अंदर से चरस की स्मेल के साथ धुआँ बाहर आया, अंदर वो चारों ही मौजूद थे, जो चरस की सिगरेट में कस पे कस लगाए जा रहे थे…
और सबसे खास बात कि चारों के बदन पर एक भी कपड़ा नही था, दो लड़के घुटनों पर थे और दो उन दोनो की गान्ड में अपने-2 लंड डालकर उनकी गान्ड की धुनाई करने में लगे हुए थे,
चरस की सिगरेट अलग-2 चारों के मूह में लगी हुई थी, बीच-बीच में उनके मूह से आहें मज़े की कराहें भी निकल जाती…
सीन देख कर तो मज़ा ही आगया, अब इन मादर्चोदो को लाइन में लाने के लिए मुझे ज्यदा कुच्छ नही करना था, बस जेब से मोबाइल निकाला, और शुरू करदी जी रेकॉर्डिंग…
एक बार जब वो दोनो उन दो की गान्ड में झड गये, तो सीन चेंज हो गया, अब वो उन दोनो की गान्ड मार रहे थे…
मस्त गान्ड मराई का वीडियो बन गया यो तो, फिर जब उनका खेल ख़तम हो गया, तो चारों नंगे ही अपनी-अपनी टाँगें लंबी करके फर्श पर पसर गये…
उनके झड़े हुए ढीले लंड किसी मरे चूहे जैसे कमरे के फर्श पर पड़े थे..
अब मुझे भी एंट्री मार देनी थी, सो घूमकर चुपके से गॅलरी में आया, और जाकर हल्के से डोर नोक कर दिया…!
डोर खटखटाने की आवाज़ सुनकर वो चारों उछल पड़े, फिर कुच्छ देर बाद उनमें से एक ने पुछा – कॉन..?
मेने थोड़ा आवाज़ चेंज करके कहा – वॉर्डन, गेट खोलो…
सुनते ही उनके होश गुम हो गये, झट-पट अपने कच्छे पहने और फिर दो मिनिट के बाद एक ने डोर खोल दिया…
जैसे ही गेट खुला, मेरा जबरदस्त घूँसा उस गेट खोलने वाले की नाक पर पड़ा..
कुच्छ तो नशे की हालत, गान्ड मराई की थकान, उपर से एक जोरदार घूँसा नाक पर पड़ते ही उसकी नाक से खून की तेज धार फुट पड़ी, और वो चीख मारते हुए कमरे के बीच में जाकर गिरा…
वो तीनों भी अपने सामने एक नकाबपोश को देखकर भोन्चक्के से रह गये, उपर से उनका दोस्त लहू-लुहन पड़ा दर्द से तड़प रहा था…
इससे पहले की वो अचानक पैदा हुई इस नयी सिचुयेशन को समझते तब तक मेने अंदर से गेट बंद कर दिया, और उन तीनों की तरफ सधे हुए कदमों से बढ़ा…
नशे में उन तीनों की टाँगें काँपने लगी, फिर उन्हें कुच्छ होश आया कि हम तो 4-4 हैं, ये अकेला क्या हमारा उखाड़ लेगा, ये सोचते ही उनमें से एक बोला…
कॉन हो तुम..? और यहाँ हमारे कमरे में आकर हमारे साथ ही मार-पीट क्यों कर रहे हो..?
मे – काला चोर..! सुना है, तुम लोगों के कुच्छ ज़्यादा ही पर निकल आए हैं, इसलिए सोचा थोड़ा कुतर दिए जाएँ तो अच्छा रहेगा… क्यों ठीक है ना ठीक…!
अब तक वो चौथा भी अपनी नाक का खून पोन्छ्ते हुए उठ गया था…
ठीक तो अब हम तुझे करेंगे हरम्जादे, ये कहकर वो चारों मेरे उपर एक साथ झपटे…!
मेने फुर्ती से अपनी जगह छोड़ दी, झोंक-झोंक में वो चारों एकदुसरे में ही उलझ गये…, इसका फ़ायदा उठाकर मेने बिजली की सी तेज़ी से उन चारों की धुनाई सुरू करदी…
उनमें से एक भी इस हालत में नही था, जो मेरा हाथ पड़ने के बाद तुरंत सामना कर पाए..
फिर मेने अपने लिबास से पीठ पर बँधे हुए 3/4" डाया के एक लोहे के पाइप के टुकड़े को निकाला, और उनके हाथ पैर तोड़ना शुरू कर दिया…
15 मिनिट में ही वो चारों कमरे में पड़े कराह रहे थे, किसी की टाँग फ्रॅक्चर थी, तो किसी का हाथ…
हाथ जोड़े वो मेरे पैरों में पड़े दया की भीख माँग रहे थे…
मेने उनमें से एक को गिरहबान से उठाया, और सर्द लहजे में कहा – आइन्दा तुम लोगों में से कॉलेज में किसी भी लड़की के साथ बदतमीज़ी की, तो समझ लेना, वो हाल करूँगा..कि किसी को मूह दिखाने के लायक नही रहोगे…फिर मेने मोबाइल की क्लिप ऑन करके उनके सामने करदी और कहा…
ये देखो, तुम लोगों के कुकर्म पूरे कॉलेज में सब लोग देख रहे होंगे…और तुम पर थूक रहे होंगे…
वीडियो देखकर उनकी रही-सही हवा भी सरक गयी… वो मिन्नतें करने लगे, प्लीज़ ये वीडियो किसी को मत दिखाना.. वरना हम किसी को मूह दिखाने लायक नही रहेंगे…
आप जो कहेंगे हम वैसा ही करेंगे, आज से कॉलेज की हर लड़की हमारी बेहन होगी…,
मेने उनको धमकाते हुए कहा… और बेहन के साथ क्या करते हैं, तो अब अगर कोई और भी किसी लड़की को छेड़े तो तुम लोग उसकी मदद करोगे…
वो तुरंत बोले- हांजी-हांजी हम ऐसा ही करेंगे… प्लीज़ हमें छोड़ दो…
मे – ठीक है, अभी मेने तुम लोगों को माफ़ किया, लेकिन ध्यान रहे अगर तुम लोगों ने आइन्दा कुच्छ भी ग़लत किया… तो समझ सकते हो मे क्या कर सकता हूँ…
इतना डोज उन लड़कों को देकर मे चुप-चाप जैसे आया था, वैसे ही हॉस्टिल से निकल आया…!
दो दिन तक कोई बात नही हुई, खुशी रोज़ कॉलेज जाने लगी, वो चारों भी कॉलेज में कहीं नज़र नही आए…
लेकिन चौथे दिन खुशी का फोन आया, वो इस समय चहक रही थी..
खुशी – हेलो ! वकील भैया.., उसकी आवाज़ में खुशी साफ-साफ झलक रही थी,
...... आपने उन चारों लड़कों के साथ ऐसा क्या किया, आज वो सभी लड़कियों के सामने हाथ जोड़कर बहनजी – बहनजी करते फिर रहे थे..!
यही नही, उनके शरीरों पर जगह जगह प्लास्टर और पट्टियाँ भी बँधी थी…
जब सबने कारण पुछा तो बोलने लगे – कि हम लोगों का आक्सिडेंट हो गया था…
हहहे… लेकिन भैया मे सब समझ गयी.. कि ये आक्सिडेंट कैसे हुआ…
मे – अब तो तुम खुश हो ना खुशी.., लेकिन ये बात किसी और को मत बताना…
खुशी – नही बताउन्गि भैया, थॅंक्स सभी लड़कियों की तरफ से और हां ! आइ लव यू.., आप बहुत अच्छे हैं.. शाम को घर आना फिर बात करती हूँ..आओगे ना..!
मे – नही खुशी आज में अपने गाओं जा रहा हूँ, फिर कभी आता हूँ, और हां, अगर कोई और भी किसी भी लड़की को परेशान करे, तो उन चारों लड़कों को बोलना..
वो अब तुम लोगों की मदद करेंगे…
वो चोन्कते हुए बोली – क्या…? ऐसा क्या काला जादू कर दिया आपने उन हरम्जादो पर…?
मेने हँसते हुए कहा – कोई जादू-वादू नही किया है, बस थोड़ा हेवी डोज़ दे दिया है, जिससे वो अब अपनी औकात में आगये हैं…!
खुशी – लेकिन मुझे आपसे मिलना था, मेरी हेल्प करने के लिए स्पेशल थॅंक्स करना था आपको,,
मेने हँसते हुए कहा – स्पेशल थॅंक्स क्या होता है..? फोन पर ही बोल दे ना…
खुशी – नही, वो तो जब आप मिलोगे तभी कहूँगी..
मे - चल ठीक है कह देना, अब फोन रखता हूँ, टेक केर.. बाइ.
खुशी – बाइ भैया…थॅंक्स अगेन, लव यू…!
इस घटना के बाद खुशी के कॉलेज में रोमीयो गॅंग का जैसे नाम ही ख़तम हो गया…
उन चारों के अलावा अगर कोई और लड़का भी किसी लड़की के साथ इस तरह की हिमाकत करता तो वो लड़के अपने तौर पर उसे सबक सीखा देते.., और अगर उनके बस से बाहर की बात होती,
तो वो अपना एग्ज़ॅंपल देकर उनके अंदर डर पैदा करते…, बताते कि कोई नकाब पॉश है जो ये सब नही होने देगा, और वो डरकर उनकी बात मान लेते…
इस कॉलेज की सभी लड़कियाँ एक तरह से सेफ हो गयी थी..
उन चारों लड़कों के अंदर आए बदलाव से स्टूडेंट्स के साथ साथ कॉलेज प्रशासन भी आश्चर्यचकित था…!
दो दिन बाद मे गुप्ता जी से मिलने जब उनके घर गया, रोज़ की तरह गुप्ता जी पूजा में थे, अनायास ही कॉलेज को निकलती खुशी मुझे हॉल में ही मिल गयी…
मुझे देखते ही वो खुशी से उच्छल पड़ी, आव ना देखा ताव, दौड़कर वो मेरे गले में झूल गयी…और अनगिनत चुंबन मेरे गालों पर जड़ दिए…
मे अरे खुशी रुक तो सही, क्या करती है बोलता ही रह गया, लेकिन वो अपने मन की करके ही रुकी…
फिर उसने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर चूम लिया और बोली – थॅंक यू भैया मेरी मदद करने के लिए…
ये नज़ारा अपने कमरे से बाहर निकलते हुए उसकी माँ चंडिका देवी…ओह्ह्ह सॉरी शांति देवी ने देख लिया…!
कयामत ही टूट पड़ी उस बेचारी के उपर, वो वहीं से बुरी तरह चीखते हुए दहाडी – खुशिीिइ……! ये क्या हिमाकत है ? नौकर और मालिक का लिहाज भी नही है तुझे…
उपरोक्त डाइलॉग बोलती हुई वो हमारी ओर लपकी और तडाक…तडाक्क्क्क… दो तीन तमाचे उस बेचारी के गाल पर जड़ दिए…
मेने उस बेचारी को बचाने की कोशिश की, लेकिन वो मेरी ओर पलटकर दाहडी… दूर रहो, खबरदार जो आगे बढ़े तो...
नमकहराम कहीं का, जिस थाली में ख़ाता है उसी में छेद करने की कोशिश कर रहा है…, निकल जा यहाँ से अभी के अभी…!
खुशी तो बेचारी बुरी तरह से रोने लगी, मेने कहा – देखिए आप मेरी बात तो सुनिए…
मेरी बात अभी पूरी भी नही हुई कि तडाक… एक जोरदार तमाचा मेरे भी गाल पर पड़ा…तब जाकर मुझे अंदाज़ा हुआ कि खुशी इतना क्यों रो रही है…
क्या भारी हाथ था हिटलरनी का…. दिन में तारे नज़र आने लगे मुझे… तो खुशी का क्या हाल हुआ होगा…?
इतने में हंगामा सुनकर घर के सारे नौकर, संकेत जो कॉलेज के लिए रेडी हो रहा था, यहाँ तक कि गुप्ता जी भी अपनी पूजा छोड़ कर दौड़े चले आए,
गुप्ता जी – क्या बात है शांति, क्यों इतना हंगामा कर रही हो सुवह-सुवह..., और ये खुशी इतना क्यों रो रही है…?
शांति उसी दहाड़ के साथ – पुछो अपनी इस लाडली से, एक नौकर के गले लग्के मूह काला कर रही थी, ये हरामी ना जाने इसे कब्से अपने जाल में फँसा रहा है…
गुप्ता जी चोन्कते हुए बोले – तुम अंकुश की बात कर रही हो…? क्या किया है इन्होने..?
शांति – ये इसके गले लगकर इसके मूह को चूम रही थी,
गुप्ता जी – क्यों वकील साब ! क्या शांति सच बोल रही रही है…?
मेने उनके चेहरे पर अपनी नज़र गढ़ाते हुए कहा – हां ! जो इन्होने देखा वो सच है, लेकिन इनके कहने का मतलव ग़लत है…
शांति – अच्छा ! मे अंधी हूँ, नासमझ हूँ, इतनी भी समझ नही है मुझे कि एक लड़की क्यों किसी पराए मर्द के गले ल्गकर उसे चूमती है…!
मेने एकदम शांत लहजे में कहा – लेकिन मे क्या कर रहा था…?
शांति – इससे क्या फरक पड़ता है, कि तुम कुच्छ कर रहे थे या नही… छुरि खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरि पर, काटना तो खरबूजे को ही है ना…
ले पीले, आज बहुत मेहनत करनी है सारी रात… दो दो घोड़ियों की सवारी करनी पड़ेगी…,
दूध पीकर हम तीनों फिर से चुदाई में जुट गये, लेकिन एक-एक राउंड करके ही हम जल्दी ही नींद में डूब गये…!!
इस तरह पूरे हफ्ते हम तीनों ने आलोक जीजू के आने तक थ्रीसम चुदाई का भरपूर मज़ा लिया,
रामा ऐसे कॉपरेटिव भैया-भाभी पाकर फूली नही समा रही थी…क्योंकि उसकी अब तक की अधूरी प्यास अच्छे से बुझ रही थी…!
निशा भी चुदाई के ज़्यादा मौके उसी को दे रही थी, रामा के ये पुच्छने पर की वो ऐसा क्यों कर रही है तो उसने कहा…
ये घोड़ा तो मेरे नाम रिजिस्टर्ड ही है, जिसे मे जब चाहूं दौड़ा सकती हूँ, लेकिन मेरी प्यारी ननद को फिर कब-कब ऐसा मौका मिलेगा…
उसकी बात सुनकर वो गद-गद हो उठी, और उसने उसे अपने गले से लगा लिया…
इसी बीच हम ने निशा को दिल्ली दर्शन भी कराए, सिनिमा देखने भी गये…
और फिर एक दिन मे उन दोनो को लेकर अपने गुरु और आंटी से मिलने भी गया,
उन्होने उन दोनो को अपनी बहू और बेटी जैसा ही प्यार दिया, सारे दिन अपने पास रखा, वहीं से नेहा को फोन करके भी बुला लिया…
नेहा, निशा और दीदी से मिलकर बहुत खुश हुई, फिर लौटते वक़्त वो उन दोनो को गिफ्ट देना नही भूले…!
आलोक जीजू के लौटने के बाद एक दिन रुक कर, मे और निशा अपने घर लौट लिए…...,
शाम तक हम घर लौटे, जहाँ एक खुशी हमारा बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी, घर भर में खुशी का माहौल था,
सबसे पहले हमें छोटी चाची मिली, और उन्होने हमें बताया की मोहिनी बहू माँ बनने वाली है…
हम दोनो ही लपक कर उनके कमरे में गये, देखा तो भैया उनके पास बैठे हुए थे..और बड़े खुश दिखाई दे रहे थे…
देखते ही उन्होने मुझे गले से लगा लिया, और खुशी से कांपति आवाज़ में बोले- छोटू मेरे भाई ! तू फिर एक बार चाचा बनाने वाला है…!
मेने खुशी से उच्छलते हुए कहा – सच भैया… ! ये तो बड़ी खुशी की बात है.., उसके बाद मे भाभी के पास गया.. जहाँ दोनो बहनें एक दूसरे के गले लगी हुई थी...
मेने कहा - भाभी इस बार मुझे नन्हा-मुन्ना प्यारा सा भतीजा चाहिए… क्यों रूच बेटा ! तुम्हें अपने लिए छोटा सा भाई चाहिए ना !
उसने हां में अपनी गर्दन हिलाई और बोली – मम्मी मुझे छोटा भाई दोगि ना…!
भाभी ने मुस्करा कर कहा – बेटा ! ये तो भगवान जी ही जाने, भाई होगा या छोटी सी गुड़िया…
इस तरह हसी खुशी सबने मिलकर भाभी भैया की खुशी को बाँटा…
अकेले में भाभी ने मेरे कान में कहा – ये तुम्हारा उस दिन की मेहनत का फल है मेरे लाडले देवर्जी….
ये सुनकर मे उनके मूह की तरफ ताकता ही रह गया….!
वो मुस्करा कर बोली – ऐसे क्या देख रहे हो… मे सच कह रही हूँ… !
भला माँ से अधिक किसे पता होगा कि उसके बच्चे का बाप कॉन है…, क्या ये सुनकर तुम्हें खुशी नही हुई…?
मे – नही भाभी ! ऐसी बात नही है… पर मुझे विश्वास नही हो रहा…!
वो – अपनी भाभी की बात पर भी नही…?
मे – अब आप कह रहीं हैं तो ज़रूर सही ही होगा… वैसे आप खुश तो हैं…?
भाभी ने मेरे गाल को कचकचाकर काट लिया, और फिर उसे चूमते हुए बोली –
बहुत से भी ज़्यादा मेरे होने वाले बच्चे के पापा जी….तुम्हारा अंश अपनी कोख में पाकर कॉन खुश नही होगी भला….
मेने भाभी के डिंपल में अपनी जीभ की नोक डालकर कहा – क्यों ! ऐसी क्या खास बात है मेरे अंश में…?
वो मेरे लौडे को सहला कर बोली – दो रिज़ल्ट सामने हैं इसके, फिर भी पुच्छ रहे हो…?
उनकी इस बात पर मे हँस पड़ा और वो मन ही मन खुश होती हुई रसोई की तरफ चली गयी…!
उस दिन के बाद मेरे अंदर एक अजीब तरह की उत्तेजना सी रहने लगी…,
मेरा अंश भाभी की कोख में पल रहा है…, ये सोचकर मे अजीब से रोमांच से भर गया…
इसी खुशी के साथ मे मन लगाकर अपने काम में लग गया, और रेग्युलर कोर्ट/ ऑफीस जाने लगा…. !
भगवान दास गुप्ता जी का लीगल आड्वाइज़र होने के नाते, अब मेरा उनके ऑफीस और घर आना जाना अक्सर लगा रहता था…
कई एकड़ में बनी शानदार कोठी में उनका 4 प्राणियों का छोटा सा परिवार और कई सारे नौकर चाकर जिनके लिए रहने को सर्वेंट क्वॉर्टर्स भी कोठी के पीछे बने हुए थे…
48 वर्षीया गुप्ता जी धरम करम को मानने वाले, उनका सुबह का टाइम अधिकतर पूजा-पाठ में ही जाता था, ख़ासतौर से मैया लक्ष्मी के घोर उपासक थे गुप्ता जी…
माँ की कृपा भी खूब थी उनके उपर, धन दौलत की कोई कमी नही थी, बस कमी थी तो समय की जिसके लिए उनका परिवार हमेशा तरसता रहता था…!
उनकी 45 वर्षीया पत्नी सेठानी शांति देवी, एक भारी-भरकम औरत, शरीर से तो इतनी नही लेकिन स्वाभाव से…
बस नाम की ही शांति देवी थी, वाकी तो घर के नौकरों और यहाँ तक बच्चों के लिए तो वो चंडिका देवी थी…
गुप्ता जी भी उनके सामने ज़्यादा बोलने की गुस्ताख़ी नही करते थे…
एकदम कड़क तीखी आवाज़, घर के किसी भी कोने में वो जब किसी को डाँटती थी, तो उनकी आवाज़ लगभग कोठी के हर कोने में पहुँचती थी, जिससे सबके कान खड़े हो जाते…
24 वर्षीय बेटा संकेत अपना ग्रॅजुयेशन कंप्लीट करके बिज़्नेस मॅनेज्मेंट का कोर्स कर रहा था, जिससे आगे चलकर अपने पिता के कारोबार को सुचारू रूप से संभाल सके…
बेटी खुशी, 19 साल की, इसी वर्ष कॉलेज में पहुँची है, बी.कॉम करने, शुरू से ही थोड़ी दोहरे बदन की है,
ज़्यादा नही मध्यम हाइट के साथ शायद 34-32-36 का फिगर होगा, कभी मापने का मौका नही लगा अभी तक…
ज़्यादा गोरी तो नही पर सॉफ रंग है अपनी माँ के जैसा…, गोल मटोल चेहरा, किसी गुड़िया की तरह..
देखने में ही बहुत मासूम और भोली-भाली सी लगती है,
बेचारी सिर्फ़ नाम की ही खुशी है, वाकी उसके लिए खुशी दूर-दूर तक नही थी…बस थोडा बहुत हंस खेल लेती है, जब उसका भाई या पापा साथ में हों तो..
ना ज़्यादा सज-संवार सकती है, और ना ज़्यादा मॉडर्न कपड़े पहन सकती है…माँ की इन्स्ट्रक्षन, ये मत करो, वो मत करो… ये क्यों किया.. वग़ैरह…वग़ैरह, यू नो…
हां बेटे को वो बहुत चाहती है, उसकी हर बात मानी भी जाती है, करने की छूट भी है…
गुप्ता जी बेचारे को इन सब चीज़ों से कोई सरोकार नही, कि उनके घर में क्या चलता रहता है, क्या नही.. वो बस अपनी धन कमाने की दुनिया में ही मस्त रहते हैं…!
एक दिन मे सुवह-सुवह एक ज़रूरी काम से उनके यहाँ गया था, गुप्तजी रोज़ की तरह पूजा पाठ में लगे थे, मे हॉल में बता उनका इंतेज़ार कर रहा था…
नीचे सेठानी के रूम से तेज-तेज आवाज़ें आ रही थी, वो अपनी बेटी को डाँट रही थी, वैसे ये उनकी नॉर्मल आवाज़ थी हां !
शांति – तू आए दिन कॉलेज मिस करती रहती है, बात क्या है..? ऐसे तो कैसे कर पाएगी अपना कोर्स पूरा..?
खुशी – मे अपने सर से ट्यूशन में कर लूँगी, लेकिन मुझे नही जाना कॉलेज…
शांति – लेकिन बात क्या है, तू कॉलेज के नाम से इतना डरती क्यों है..?
खुशी – कॉलेज के लफंगे लड़के बहुत परेशान करते हैं,
शांति – अरे तुझे उन लफंगों से क्या लेना-देना, सीधी जा और सीधी आ, और फिर कोई परेशानी है तो संकेत को भी बोल सकती, वो भी तो वहाँ होता ही है…
खुशी – मेने बताया था भैया को, लेकिन उन्होने भी कुच्छ नही किया…, कुच्छ गुंडे टाइप के लड़के हैं, जो किसी की नही मानते…
शांति – अब परेशान तो करेंगे ही, इत्ति सी उमर में, देख अभी से कैसा पहाड़ जैसा सीना हो गया है तेरा…, कुच्छ ग़लत हरकतें तो नही करने लगी है…
खुशी – क्या मम्मी ! अनाप-शनाप बोलती रहती हो, खुद ने ही तो जबरदस्त खिला-खिलाकर मोटा कर दिया है मुझे.. अब इसमें मेरी क्या ग़लती है…
शांति – चल ठीक है, तेरे पापा से बात करती हूँ, वो प्रिन्सिपल से बात कर लेंगे..
इसके बाद खुशी हॉल में से होती हुई उपर अपने रूम में चली गयी…,
उपर जाने के लिए हॉल से एक बड़ा सा गोलाई लिए स्टेर्स थे…, मेरी नज़र उसके थिरकते हुए भारी भरकम कुल्हों पर जम गयी..
सच में इस उमर में खुशी कुच्छ ज़्यादा ही भरकम हो गयी थी…, लेकिन उसकी बात भी सही थी, अब लाड़ प्यार ने खिला-पिलाके ऐसा कर दिया तो इसमें वो बेचारी भी क्या करे…
गुप्ता जी के घर में मुझे सभी नौकर यहाँ तक कि उनके दोनो बच्चे भी वकील भैया बोलते थे…!
उसके पीछे-2 सेठानी भी बाहर आई, मेने नमस्ते किया, और गुप्ता जी के बारे में पुछा तो वो बोली –
अरे भाई, उनका क्या ठिकाना कब तक निपटाते हैं, तुम ऐसा करो ऑफीस में ही मिल लेना मे उन्हें बोल दूँगी, कि तुम आए थे…!
इतना कहकर वो रसोई घर की तरफ बढ़ गयी, और मे उठकर वहाँ से चलने को हुआ, कि तभी खुशी मुझे नीचे आती हुई नज़र आई..,
उसके चेहरे से लग रहा था कि वो कुच्छ परेशान है, वैसे उसकी परेशानी की वजह मुझे कुच्छ – 2 पता लग ही गयी थी, फिर भी मेने उसे आवाज़ दी…अरे खुशी ! कैसी हो ?
वो थोड़ा दुखी मन से बोली – ठीक ही हूँ वकील भैया, आप सूनाओ, पापा से मिलने आए थे..?
मे – हां ! पर वो तो पूजा से ही फारिग नही हुए…, वैसे ना जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम कुच्छ परेशान हो…
खुशी – जाने दीजिए भैया, अब घर में ही मेरी किसी को परवाह नही है, तो आपको बताने से क्या फ़ायदा…
मे – मुझे भी तुम अपने घर का हिस्सा ही समझो, नौकर हूँ तो क्या हुआ..., हो सकता है मे तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ…!
खुशी – कॉलेज में कुच्छ आवारा टाइप के लड़के हैं, अक्सर लड़कियों को छेड़ते रहते हैं, अभी तक तो बातों से छेड़ते थे, लेकिन अब तो वो…
वो बोलते-बोलते चुप रह गयी, मे उसके चेहरे की तरफ देखने लगा तो उसने अपनी नज़रें नीची कर ली और अपना होठ काटने लगी…
मेने उसे आगे बोलने के लिए कुरेदा – लेकिन अब क्या हुआ खुशी बोलो…देखो मान सको तो मुझे भी अपना भाई समझो, और अपनी परेशानी खुल कर कहो…
खुशी – कैसे कहूँ वकील भैया, कहते हुए भी शर्म आती है, अब तो वो हरम्जादे हमारे कहीं भी हाथ लगा देते है, कभी पीछे, तो कभी…
मे – बस मे समझ गया खुशी, लेकिन तुम लोगों ने प्रिन्सिपल से शिकायत नही की..
वो – की थी, लेकिन थोड़ा बहुत डाँट फटकार कर उन्होने छोड़ दिया…
मे – संकेत को बताया…?
वो – भैया तो बहुत बड़ा वाला फट्टू है, वो उन लोगों के डर की वजह से कुच्छ कहता ही नही…
मे – कहाँ रहते हैं वो लफंगे…?
वो – वहीं बाय्स हॉस्टिल में, वो 4 लड़के हैं जो 2-2 के हिसाब से दो रूम में रहते हैं, फिर उसने उनके नाम और रूम नंबर भी बताए…
मे – तुम बिंदास कॉलेज जाओ, कल से वो लौन्डे तुम्हें कुच्छ नही कहेंगे, लेकिन हां ! इस बात का जिकर तुम किसी से नही करोगी, अपने घर में भी किसी से नही…ओके.
उसने हां में अपनी गार्डेन हिला दी, फिर मे वहाँ से कोर्ट की तरफ निकल आया…
कुच्छ इम्पोर्टेंट केस निपटाकर मैं गुप्ता जी के ऑफीस चला गया, उनके साथ ज़रूरी डिसकस करके मे अपने फ्लॅट में आगया जो उन्होने मुझे रहने के लिए दिया था…
इन लफंगों का कुच्छ तो करना पड़ेगा, ये सोचकर मेने कुच्छ ज़रूरी समान लिया और कॉलेज बंद होने के बाद एक चक्कर हॉस्टिल का लगाया,
बिना किसी की नज़र में आए कैसे उन लोगों तक पहुँचा जा सकता है, ये सब देखभाल कर मे वापस लौट आया…
वो दोनो कमरे ग्राउंड फ्लोर पर ही थे, हॉस्टिल की पिच्छली बाउंड्री वॉल थोड़ी उँची थी, कोई 10-12 फीट, लेकिन कोशिश करके अंदर जाया जा सकता था…
रात करीब 11 बजे मे पीछे की बाउंड्री वॉल फांदकर हॉस्टिल कॉंपाउंड में दाखिल हो गया,
इस समय मेरे शरीर पर उपर से नीचे तक काला स्याह लबादा था, चेहरा भी स्याह कपड़े से ढँक रखा था…
मेने पीछे की दीवार से उनके कमरे की आहट ली, एक कमरे में शांति थी, लेकिन दूसरे कमरे से विंडो की झिर्री से लाइट भी आ रही थी, और कुच्छ आवाज़ें भी…
अब हॉस्टिल की विंडो, सील टाइट तो होने से रही, कुच्छ दिनो के बाद अंदर की चितखनी लगना भी मुश्किल होती है,
ये सोचकर मेने विंडो के उपर अपने हाथ का थोड़ा सा दबाब डाला, तो उसका एक पाट हल्का सा खुल गया…
अंदर का जायज़ा लिया, तो मेरे चेहरे पर मुस्कान आगयि…
विंडो का पाट खुलते ही, अंदर से चरस की स्मेल के साथ धुआँ बाहर आया, अंदर वो चारों ही मौजूद थे, जो चरस की सिगरेट में कस पे कस लगाए जा रहे थे…
और सबसे खास बात कि चारों के बदन पर एक भी कपड़ा नही था, दो लड़के घुटनों पर थे और दो उन दोनो की गान्ड में अपने-2 लंड डालकर उनकी गान्ड की धुनाई करने में लगे हुए थे,
चरस की सिगरेट अलग-2 चारों के मूह में लगी हुई थी, बीच-बीच में उनके मूह से आहें मज़े की कराहें भी निकल जाती…
सीन देख कर तो मज़ा ही आगया, अब इन मादर्चोदो को लाइन में लाने के लिए मुझे ज्यदा कुच्छ नही करना था, बस जेब से मोबाइल निकाला, और शुरू करदी जी रेकॉर्डिंग…
एक बार जब वो दोनो उन दो की गान्ड में झड गये, तो सीन चेंज हो गया, अब वो उन दोनो की गान्ड मार रहे थे…
मस्त गान्ड मराई का वीडियो बन गया यो तो, फिर जब उनका खेल ख़तम हो गया, तो चारों नंगे ही अपनी-अपनी टाँगें लंबी करके फर्श पर पसर गये…
उनके झड़े हुए ढीले लंड किसी मरे चूहे जैसे कमरे के फर्श पर पड़े थे..
अब मुझे भी एंट्री मार देनी थी, सो घूमकर चुपके से गॅलरी में आया, और जाकर हल्के से डोर नोक कर दिया…!
डोर खटखटाने की आवाज़ सुनकर वो चारों उछल पड़े, फिर कुच्छ देर बाद उनमें से एक ने पुछा – कॉन..?
मेने थोड़ा आवाज़ चेंज करके कहा – वॉर्डन, गेट खोलो…
सुनते ही उनके होश गुम हो गये, झट-पट अपने कच्छे पहने और फिर दो मिनिट के बाद एक ने डोर खोल दिया…
जैसे ही गेट खुला, मेरा जबरदस्त घूँसा उस गेट खोलने वाले की नाक पर पड़ा..
कुच्छ तो नशे की हालत, गान्ड मराई की थकान, उपर से एक जोरदार घूँसा नाक पर पड़ते ही उसकी नाक से खून की तेज धार फुट पड़ी, और वो चीख मारते हुए कमरे के बीच में जाकर गिरा…
वो तीनों भी अपने सामने एक नकाबपोश को देखकर भोन्चक्के से रह गये, उपर से उनका दोस्त लहू-लुहन पड़ा दर्द से तड़प रहा था…
इससे पहले की वो अचानक पैदा हुई इस नयी सिचुयेशन को समझते तब तक मेने अंदर से गेट बंद कर दिया, और उन तीनों की तरफ सधे हुए कदमों से बढ़ा…
नशे में उन तीनों की टाँगें काँपने लगी, फिर उन्हें कुच्छ होश आया कि हम तो 4-4 हैं, ये अकेला क्या हमारा उखाड़ लेगा, ये सोचते ही उनमें से एक बोला…
कॉन हो तुम..? और यहाँ हमारे कमरे में आकर हमारे साथ ही मार-पीट क्यों कर रहे हो..?
मे – काला चोर..! सुना है, तुम लोगों के कुच्छ ज़्यादा ही पर निकल आए हैं, इसलिए सोचा थोड़ा कुतर दिए जाएँ तो अच्छा रहेगा… क्यों ठीक है ना ठीक…!
अब तक वो चौथा भी अपनी नाक का खून पोन्छ्ते हुए उठ गया था…
ठीक तो अब हम तुझे करेंगे हरम्जादे, ये कहकर वो चारों मेरे उपर एक साथ झपटे…!
मेने फुर्ती से अपनी जगह छोड़ दी, झोंक-झोंक में वो चारों एकदुसरे में ही उलझ गये…, इसका फ़ायदा उठाकर मेने बिजली की सी तेज़ी से उन चारों की धुनाई सुरू करदी…
उनमें से एक भी इस हालत में नही था, जो मेरा हाथ पड़ने के बाद तुरंत सामना कर पाए..
फिर मेने अपने लिबास से पीठ पर बँधे हुए 3/4" डाया के एक लोहे के पाइप के टुकड़े को निकाला, और उनके हाथ पैर तोड़ना शुरू कर दिया…
15 मिनिट में ही वो चारों कमरे में पड़े कराह रहे थे, किसी की टाँग फ्रॅक्चर थी, तो किसी का हाथ…
हाथ जोड़े वो मेरे पैरों में पड़े दया की भीख माँग रहे थे…
मेने उनमें से एक को गिरहबान से उठाया, और सर्द लहजे में कहा – आइन्दा तुम लोगों में से कॉलेज में किसी भी लड़की के साथ बदतमीज़ी की, तो समझ लेना, वो हाल करूँगा..कि किसी को मूह दिखाने के लायक नही रहोगे…फिर मेने मोबाइल की क्लिप ऑन करके उनके सामने करदी और कहा…
ये देखो, तुम लोगों के कुकर्म पूरे कॉलेज में सब लोग देख रहे होंगे…और तुम पर थूक रहे होंगे…
वीडियो देखकर उनकी रही-सही हवा भी सरक गयी… वो मिन्नतें करने लगे, प्लीज़ ये वीडियो किसी को मत दिखाना.. वरना हम किसी को मूह दिखाने लायक नही रहेंगे…
आप जो कहेंगे हम वैसा ही करेंगे, आज से कॉलेज की हर लड़की हमारी बेहन होगी…,
मेने उनको धमकाते हुए कहा… और बेहन के साथ क्या करते हैं, तो अब अगर कोई और भी किसी लड़की को छेड़े तो तुम लोग उसकी मदद करोगे…
वो तुरंत बोले- हांजी-हांजी हम ऐसा ही करेंगे… प्लीज़ हमें छोड़ दो…
मे – ठीक है, अभी मेने तुम लोगों को माफ़ किया, लेकिन ध्यान रहे अगर तुम लोगों ने आइन्दा कुच्छ भी ग़लत किया… तो समझ सकते हो मे क्या कर सकता हूँ…
इतना डोज उन लड़कों को देकर मे चुप-चाप जैसे आया था, वैसे ही हॉस्टिल से निकल आया…!
दो दिन तक कोई बात नही हुई, खुशी रोज़ कॉलेज जाने लगी, वो चारों भी कॉलेज में कहीं नज़र नही आए…
लेकिन चौथे दिन खुशी का फोन आया, वो इस समय चहक रही थी..
खुशी – हेलो ! वकील भैया.., उसकी आवाज़ में खुशी साफ-साफ झलक रही थी,
...... आपने उन चारों लड़कों के साथ ऐसा क्या किया, आज वो सभी लड़कियों के सामने हाथ जोड़कर बहनजी – बहनजी करते फिर रहे थे..!
यही नही, उनके शरीरों पर जगह जगह प्लास्टर और पट्टियाँ भी बँधी थी…
जब सबने कारण पुछा तो बोलने लगे – कि हम लोगों का आक्सिडेंट हो गया था…
हहहे… लेकिन भैया मे सब समझ गयी.. कि ये आक्सिडेंट कैसे हुआ…
मे – अब तो तुम खुश हो ना खुशी.., लेकिन ये बात किसी और को मत बताना…
खुशी – नही बताउन्गि भैया, थॅंक्स सभी लड़कियों की तरफ से और हां ! आइ लव यू.., आप बहुत अच्छे हैं.. शाम को घर आना फिर बात करती हूँ..आओगे ना..!
मे – नही खुशी आज में अपने गाओं जा रहा हूँ, फिर कभी आता हूँ, और हां, अगर कोई और भी किसी भी लड़की को परेशान करे, तो उन चारों लड़कों को बोलना..
वो अब तुम लोगों की मदद करेंगे…
वो चोन्कते हुए बोली – क्या…? ऐसा क्या काला जादू कर दिया आपने उन हरम्जादो पर…?
मेने हँसते हुए कहा – कोई जादू-वादू नही किया है, बस थोड़ा हेवी डोज़ दे दिया है, जिससे वो अब अपनी औकात में आगये हैं…!
खुशी – लेकिन मुझे आपसे मिलना था, मेरी हेल्प करने के लिए स्पेशल थॅंक्स करना था आपको,,
मेने हँसते हुए कहा – स्पेशल थॅंक्स क्या होता है..? फोन पर ही बोल दे ना…
खुशी – नही, वो तो जब आप मिलोगे तभी कहूँगी..
मे - चल ठीक है कह देना, अब फोन रखता हूँ, टेक केर.. बाइ.
खुशी – बाइ भैया…थॅंक्स अगेन, लव यू…!
इस घटना के बाद खुशी के कॉलेज में रोमीयो गॅंग का जैसे नाम ही ख़तम हो गया…
उन चारों के अलावा अगर कोई और लड़का भी किसी लड़की के साथ इस तरह की हिमाकत करता तो वो लड़के अपने तौर पर उसे सबक सीखा देते.., और अगर उनके बस से बाहर की बात होती,
तो वो अपना एग्ज़ॅंपल देकर उनके अंदर डर पैदा करते…, बताते कि कोई नकाब पॉश है जो ये सब नही होने देगा, और वो डरकर उनकी बात मान लेते…
इस कॉलेज की सभी लड़कियाँ एक तरह से सेफ हो गयी थी..
उन चारों लड़कों के अंदर आए बदलाव से स्टूडेंट्स के साथ साथ कॉलेज प्रशासन भी आश्चर्यचकित था…!
दो दिन बाद मे गुप्ता जी से मिलने जब उनके घर गया, रोज़ की तरह गुप्ता जी पूजा में थे, अनायास ही कॉलेज को निकलती खुशी मुझे हॉल में ही मिल गयी…
मुझे देखते ही वो खुशी से उच्छल पड़ी, आव ना देखा ताव, दौड़कर वो मेरे गले में झूल गयी…और अनगिनत चुंबन मेरे गालों पर जड़ दिए…
मे अरे खुशी रुक तो सही, क्या करती है बोलता ही रह गया, लेकिन वो अपने मन की करके ही रुकी…
फिर उसने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर चूम लिया और बोली – थॅंक यू भैया मेरी मदद करने के लिए…
ये नज़ारा अपने कमरे से बाहर निकलते हुए उसकी माँ चंडिका देवी…ओह्ह्ह सॉरी शांति देवी ने देख लिया…!
कयामत ही टूट पड़ी उस बेचारी के उपर, वो वहीं से बुरी तरह चीखते हुए दहाडी – खुशिीिइ……! ये क्या हिमाकत है ? नौकर और मालिक का लिहाज भी नही है तुझे…
उपरोक्त डाइलॉग बोलती हुई वो हमारी ओर लपकी और तडाक…तडाक्क्क्क… दो तीन तमाचे उस बेचारी के गाल पर जड़ दिए…
मेने उस बेचारी को बचाने की कोशिश की, लेकिन वो मेरी ओर पलटकर दाहडी… दूर रहो, खबरदार जो आगे बढ़े तो...
नमकहराम कहीं का, जिस थाली में ख़ाता है उसी में छेद करने की कोशिश कर रहा है…, निकल जा यहाँ से अभी के अभी…!
खुशी तो बेचारी बुरी तरह से रोने लगी, मेने कहा – देखिए आप मेरी बात तो सुनिए…
मेरी बात अभी पूरी भी नही हुई कि तडाक… एक जोरदार तमाचा मेरे भी गाल पर पड़ा…तब जाकर मुझे अंदाज़ा हुआ कि खुशी इतना क्यों रो रही है…
क्या भारी हाथ था हिटलरनी का…. दिन में तारे नज़र आने लगे मुझे… तो खुशी का क्या हाल हुआ होगा…?
इतने में हंगामा सुनकर घर के सारे नौकर, संकेत जो कॉलेज के लिए रेडी हो रहा था, यहाँ तक कि गुप्ता जी भी अपनी पूजा छोड़ कर दौड़े चले आए,
गुप्ता जी – क्या बात है शांति, क्यों इतना हंगामा कर रही हो सुवह-सुवह..., और ये खुशी इतना क्यों रो रही है…?
शांति उसी दहाड़ के साथ – पुछो अपनी इस लाडली से, एक नौकर के गले लग्के मूह काला कर रही थी, ये हरामी ना जाने इसे कब्से अपने जाल में फँसा रहा है…
गुप्ता जी चोन्कते हुए बोले – तुम अंकुश की बात कर रही हो…? क्या किया है इन्होने..?
शांति – ये इसके गले लगकर इसके मूह को चूम रही थी,
गुप्ता जी – क्यों वकील साब ! क्या शांति सच बोल रही रही है…?
मेने उनके चेहरे पर अपनी नज़र गढ़ाते हुए कहा – हां ! जो इन्होने देखा वो सच है, लेकिन इनके कहने का मतलव ग़लत है…
शांति – अच्छा ! मे अंधी हूँ, नासमझ हूँ, इतनी भी समझ नही है मुझे कि एक लड़की क्यों किसी पराए मर्द के गले ल्गकर उसे चूमती है…!
मेने एकदम शांत लहजे में कहा – लेकिन मे क्या कर रहा था…?
शांति – इससे क्या फरक पड़ता है, कि तुम कुच्छ कर रहे थे या नही… छुरि खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरि पर, काटना तो खरबूजे को ही है ना…