Update 45

अपनी माँ की बात सुनकर खुशी का धैर्य जबाब दे गया और वो पूरी ताक़त लगाकर चीखते हुए बोली – ये क्या बकवास है, कुछ तो शर्म करो मम्मी ! अपनी बेटी पर इतना घिनौना इल्ज़ाम लगाने से पहले एक बार भी नही सोचा कि आख़िर मेने वो क्यों किया…?

गुप्ता जी – तुम कहना क्या चाहती हो बेटी ? सच्चाई क्या है…?

खुशी – सच्चाई जानना चाहते है डेडी ! तो सुनिए...! पुछो इनसे मुझे ये ज़बरदस्ती कॉलेज भेजती रहती थी, बाबजूद इसके कि मेने इनसे कहा था कि मुझे कॉलेज में कुच्छ गुंडे परेशान करते है…पुछिये अपने लाड़ले बेटे से, इनको भी बोला था, लेकिन कुच्छ करना तो दूर ये उन लड़कों से बात करने से भी डरते थे…

फिर वकील भैया ने मेरी परेशानी का कारण पुछा, मे इन्हें नही बताना चाहती थी, लेकिन मेरी परेशानी देखकर इन्होने कहा – तू मुझे अपना भाई समझकर बोल..क्या प्राब्लम है… तो मेने इन्हें वो बात बताई, और जानते हैं डेडी उसके बाद क्या हुआ…?

इससे पहले कि खुशी कुच्छ बोले, मेने बीच में आते हुए कहा – अरे छोड़ ना खुशी, इतनी छोटी सी बात के लिए क्यों इतना बखेड़ा कर रही है…

मेने प्रिन्सिपल से शिकायत करके उन लड़कों को समझा दिया है, बस इतनी सी बात के लिए तू इतना एक्शिटेड हो गयी कि मेरे गले से लगकर मुझे थॅंक्स करने लगी…

अब इसमें सेठानी जी की भी क्या ग़लती है, उन्हें लगा कि तुम पता नही क्यों ऐसा कर रही हो…!

गुप्ता जी संकेत को डाँटते हुए बोले – ये काम तू नही कर सकता था, प्रिन्सिपल से शिकायत तो तू भी कर सकता था ना…!

संकेत नीची नज़र झुकाए हुए बोला – मेने कहा था उनसे, लेकिन वो लड़के बहुत बदमाश थे, नही माने बदले में उनकी हरकतें और बढ़ गयी…

गुप्तजी – तो फिर अब कैसे मान गये…?

खुशी भभक्ते हुए स्वर में बोल पड़ी – क्योंकि इस नौकर ने उन लड़कों की हड्डियाँ तोड़ के रख दी हैं, जिससे उसके मालिक की बेटी सकुन से कॉलेज जा सके..

सभी के मूह से एक साथ निकाला – क्य्ाआ……?????

खुशी – हां ! और इस काम में इनको भी कुच्छ हो सकता था, लेकिन इन्होने इस बात की परवाह ना करके, एक पराई लड़की के लिए ये ख़तरा मोल लिया, और मेरा सगा भाई, दुम दबाए रहा…

इसलिए मेने सच्चे दिल से इन्हें अपना भाई माना है, और अपने भाई के गले लगकर उसके गाल पर किस करना कॉन्सा गुनाह है डेडी… आप ही बताओ, सही मायने में भाई का फ़र्ज़ किसने निभाया है…

ये कहते कहते खुशी.. हिचकियाँ ले-लेकर रोने लगी… शांति देवी लज्जा के मारे अपना सर झुकाए खड़ी थी…

गुप्ता जी का पारा अपनी बेटी को रोते हुए देख कर चढ़ गया, और शायद जिंदगी में पहली बार उन्होने शांति के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया…

शांति देवी को इस बात की कतयि आशा नही थी, कि उनका चूहा पति, एक शेरनी को तमाचा भी मार सकता है, सो वो गुर्राते हुए बोली – तुम्हारी इतनी हिम्मत्त….

तडाक्क्क…वो अपनी बात पूरी भी नही कर पाई, की एक और तमाचा पड़ा…और इसी के साथ गुप्ता जी किसी सोए हुए शेर के जागने के बाद वाले स्वर में बोले-

अब और एक शब्द नही…, बिना सोचे समझे इतना बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया तुमने, एक भले आदमी को ना जाने क्या-क्या बोलती रही…,

इस घर की मालकिन हो तो इसका ये मतलव तो नही कि किसी के साथ जैसा चाहो बर्ताव करो, और एक ये हैं जिन्होने हमारे उपर अनगिनत एहसान किए हैं,

आज हमारी बेटी की इज़्ज़त बचा कर तो इन्होने वो काम किया है जो तुम्हारे इस लाड़ले बेटे को करना चाहिए था,

उसका एहसान मानने की वजाय ना जाने क्या-2 बोलती रही..इन्हें जॅलील करती रही तुम..

फिर भी इनकी भलमांसाहत देखो, तुम्हें ग़लत नही ठहराया – अरे अब तो सुधर जाओ, और हरेक के साथ एक जैसा व्यवहार करना बंद करो…!

फिर वो मेरे सामने हाथ जोड़कर बोले – इसके व्यवहार के लिए हम तुमसे माफी माँगते हैं अंकुश…

मेने उनके हाथ पकड़ लिए और कहा – ये क्या कर रहे हैं आप, ये उनसे अंजाने में हुआ है, और इसमें उनकी अपनी बेटी की चिंता ही दिखाई देती है… प्लीज़ सर, आप माफी मत मांगिए, सेठानी जी के लिए मेरे मन में कोई ग़लत विचार नही हैं…

शायद शांति देवी को बात समझ आगयि थी, सो चुप चाप किसी मुजरिम की तरह सर झुकाए खड़ी रही,

दोनो बच्चे उन्हें उसी अवस्था में खड़ा छोड़ कर वहाँ से चले गये…

गुप्ता जी भी भुन-भुनाते हुए अपने काम में लग गये, तो फिर मेने भी वहाँ से सरकने में ही अपनी भलाई समझी…

और बिना किसी से कुच्छ कहे सुने मे बाहर की तरफ चल दिया…,

मेरे मुड़ते ही शांति देवी मेरे सामने आई, और हाथ जोड़कर बोली – अंकुश बेटा ! हो सके तो मुझे माफ़ कर देना…!

उनकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे, रुँधे गले से बोली – मे सच में बहुत बुरी हूँ, लेकिन मे भी क्या करूँ,

कोई समझाने वाला था ही नही, इन्होने कभी मुझे रोका-टोका नही, अपने पैसा कमाने में ही लगे रहे, तो जैसा मेरे मन में आया करती रही..!

मेने उनके हाथ पकड़ लिए और कहा – मे समझता हूँ, आंटी जी, आप बिल्कुल ग़लत नही हैं, बस स्वभाव थोड़ा तीखा है, इसलिए सबको ग़लत लगता है…!

सच मानिए मुझे आपकी बात का बुरा नही लगा, और इसमें थोड़ी सी ग़लती खुशी की भी है, उसे अपनी भावनाओं पर कंट्रोल नही रहा…!

शांति – नही बेटा ! वो तो बच्ची है, उसके मन में जो आया उसने कर दिया, लेकिन मे तो इतनी उमर गुजर चुकी हूँ, अभी तक अपने बच्चों को नही समझ पाई…!

पर अब बेटा मेरी एक विनती है, भगवान के लिए इसी तरह मेरे बच्चों का ख्याल बनाए रखना, मेरी वजह से हमें छोड़ मत जाना…!

मे – आप चिंता मत करो ! मे हमेशा इस परिवार के साथ खड़ा हूँ…!

बहुत – बहुत धन्यवाद बेटा, तुम सच में बहुत अच्छे इंसान हो, ये कहते हुए उनकी रुलाई फुट पड़ी और वो मेरे सीने से लग कर रोने लगी…..!

शांति देवी उपर से जितनी कड़क दिखती थी, आज मेरे सीने से लग कर रोते हुए देखकर मुझे लगा कि वो अंदर से कितनी कोमल हैं, उन्होने सच ही कहा था,

उनके इस स्वाभाव का मूल कारण भी कहीं ना कहीं गुप्ता जी की पैसे कमाने की धुन ही थी, जिसकी वजह से उन्होने अपने परिवार पर कोई ध्यान नही दिया…

मेने उन्हें चुप करते हुए कहा – आप शांत हो जाइए आंटी जी, प्लीज़ रोइए मत..

वजाय चुप होने के उन्होने मुझे और ज़ोर्से कस लिया और बोली - नही बेटा ! मुझे आज जी भरके रो लेने दो,

आज तक मे अपने इन आँसुओं को मुद्दत से अपने अंदर समेटे हुए थी, इन्हें बह जाने दो,

क्योंकि मेरे इस घर में आने के बाद से आज तक कोई मजबूत कंधा मिला ही नही जिसका सहारा पा कर मे अपने अंदर के गुबार को निकाल पाती…!

आज तुमने जो खुशी के लिए किया है, उसे देखकर मुझे लगने लगा कि मेरे अलावा भी कोई तो है, जो मेरे बच्चों का साथ दे सकता है…!

शांति देवी सीने से लगी मेरे कंधे को अपने आँसुओं से तर करती रही, मेने भी उन्हें अलग करने की कोशिश नही की, अच्छा है, आज इनके मन का गुबार जितना हो सके निकल जाए….

उनके अंदर का डर, गुस्सा, चिंता सब आज उनके आँसुओं के माध्यम से बाहर निकल रहे थे…

लेकिन…! अब उनके 38” के खरबूजे मुझे परेशान करने लगे थे, जो कि बुरी तरह से मेरे सीने में दबे हुए थे...,

उनको सांत्वना स्वरूप पीठ सहलाता हुआ मेरा हाथ अनायास ही उनकी कमर तक चला गया, मांसल जांघें मेरी जांघों से सटाती जा रही थी…!

मुझे लगने लगा कि ये एमोशन्स कोई दूसरा ही रूप लेते जा रहे हैं, इससे पहले कि मेरी पॅंट में क़ैद मेरा शेर जाग जाए, मेने उनके कंधे पकड़ कर अपने से अलग कर दिया,

उनके आँसू पोन्छे, और सांत्वना देकर मे वहाँ से चला आया ……........................!

अपने ऑफीस में आकर एक केस स्टडी करने लगा, तभी मेरे फोन की बेल बजने लगी, मेने कॉल करने वाले का नाम देखा, तो मेरे चहरे पर मुस्कान आगयि…

मेने कॉल पिक की और बोला – हेलो ! डॉक्टर. वीना, कैसी हैं आप ?

वो – ओ..हाई हॅंडसम ! तुम सूनाओ… लगता है जनाब हमें तो भूल ही गये…

मे – आप जैसी स्वपन सुंदरी भूलने वाली चीज़ थोड़ी है… मे तो आपके बुलावे के इंतेज़ार में ही था…

वो – हहहे….तो अब में चीज़ हो गयी… चलो कोई बात नही… इस चीज़ के बारे में क्या ख़याल है…

मे – हुकुम कीजिए मालिको…. बंदा हाजिर हो जाएगा….

वो – वैसे अभी फ्री हो क्या..?

मे – नही हैं, तो भी हो जाएँगे…. बोलिए कब और कहाँ आना है..?

वो – अभी आ जाओ मेरे घर… अकेली हूँ…

मे – क्यों ! आपके डॉक्टर साब कहाँ गये.. ? और आज हॉस्पिटल नही गयी…?

वो – मेरे हज़्बेंड फॉरिन गये हैं… किसी काम से एक हफ्ते में लौटेंगे… और आज हॉस्पिटल बंद रहेगा… कोई एमर्जेन्सी होगी तो ही खुलेगा…,

बस पुराने मरीज़ों को ही देखा जाएगा…, जो नर्सस संभाल लेंगी…

मे – ठीक है.. मे एक घंटे में हाज़िर हो जाता हूँ, आप अड्रेस बताइए…

वो – मे अभी मेसेज कर देती हूँ…जल्दी आना…

मे एक घंटे के बाद डॉक्टर. वीना के बंग्लॉ के सामने खड़ा था,

वाउ ! क्या शानदार बंग्लॉ था, लगता है काफ़ी दौलत कमाई है, दोनो ने मिलकर…

मेने मैन गेट की बेल बजाई…कुच्छ देर में एक मोटी सी अधेड़ औरत ने आकर गेट खोला, उसकी पहाड़ जैसी चुचिया… उसके गाउन को फाडे दे रहे थे…

मुझे देख कर वो बोली… किसकू मिलना है… ?

तभी पीछे से डॉक्टर. वीना की आवाज़ आई, जुली कॉन है…?

वो – पता नही मेम्साब ! कोई छोकरा सा है….

तब तक वीना ने अपने हॉल के गेट से ही मुझे देख लिया… और बोली – आने दो जली… इन्हें मेने ही बुलाया है…

वो मुझे अंदर लेकर वापस जाने को पलटी,… बाप रे…. इतनी बड़ी गान्ड…, ऐसा लगता था मानो दो बड़े-2 मटके उल्टे करके कमर से बाँध दिए हों…

वो उन्हें हिलाते हुए मेरे आगे – आगे चल दी… मेरी नज़र उसकी हिलती हुई भारी भरकम गान्ड पर ही टिकी थी…

मुझे देख कर डॉक्टर. वीना, वहीं खड़ी – 2 मुस्करा रही थी, जुली दूसरी तरफ चली गयी और मे वीना के साथ हॉल में आगया….

वीना चुटकी लेते हुए हस्कर बोली – क्या देख रहे थे..?

मे – बाप रे ! क्या गान्ड है इसकी… कैसे संभालती होगी इतने वजन को, उपर से इतनी भारी चुचियाँ….

वो मेरी बात सुन कर ठहाका लगा कर हँसने लगी… और बोली – लगता है… जूली की गान्ड पर मन आगया है तुम्हारा….!

मे हँसते हुए कहा – कोई पागल ही होगा… जो ऐसे माँस के लोथडे पर अपनी एनर्जी वेस्ट करेगा…

कुच्छ देर हम दोनो हँसते रहे.. फिर वो बोली – क्या लोगे, ठंडा, गरम…, कोई हार्ड या सॉफ्ट ड्रिंक…

मे – मुझे तो बस एक ही चीज़ की प्यास है इस समय…

वो मेरी बात को समझते हुए बोली – क्या…?

यहाँ हर चीज़ मौजूद है… तो मेने खड़े-2 ही, उसके चहरे को अपने हाथों में लेकर उसके होठों को चूम लिया…

इन रसीले होठों को छोड़ कर भला और रस पीना क्यों चाहेगा कोई…

वो – ये भी मिलेगा… थोड़ा बैठो, जल्दी तो नही है ना…, और ये कहकर उसने हाथ पकड़ कर सोफे पर बिठा लिया…

वैसे अब तक तुमने ये नही बताया कि तुम काम क्या करते हो..? उसने सवाल किया.

मे आड्वोकेट हूँ, और यहीं डिस्टिक कोर्ट में प्रॅक्टीस कर रहा हूँ…मेने कहा.

हम दोनो हॉल में पड़े मास्टर सोफे पर एक दूसरे से सटे हुए ही बैठे थे, उसने मेरी जाँघ सहला कर पुछा...

ओह्ह्ह…! तो वकील साब कैसी चल रही है आपकी वकालत…?

मेने भी उसकी एक चुचि को मसलते हुए जबाब दिया – ठीक ही है, धीरे – 2 गाड़ी पटरी पर आती जा रही है…

बातों – 2 में ही हम दोनो एक दूसरे के बदन को छेड़ते हुए गरम होने लगे…

उसने मेरा पॅंट खोल कर लंड बाहर निकाल लिया, और अपनी मुट्ठी में लेकर बोली – जब से तुम्हारा ये हथियार देखा है, सपने में भी मुझे यही दिखाई देता है…

ना जाने कितनी बार इसे सोच-सोच कर अपनी पुसी में फिंगरिंग कर चुकी हूँ… आज नही छोड़ूँगी इसे… आज तो इसका रस पीकर ही रहूंगी…

इतना बोलकर उसने उसे अपने मूह में ले लिया, और लॉलीपोप की तरह चूसने लगी…

वीना एक झीने कपड़े की शॉर्ट मिडी पहने थी, जो उसके घुटनों तक ही थी…

सोफे पर बैठी वो झुक कर मेरा लॉडा चूस रही थी… मेने उसकी मिडी को उसकी गान्ड के उपर तक कर दिया और उसकी गद्देदार गान्ड को मसल्ने लगा…

उसकी छोटी सी पेंटी गान्ड की दरार में घुसी पड़ी थी…जिसे मेने साइड में करके.. उसकी गान्ड के सुराख में उंगली डाल दी…

वो अपनी गान्ड को इधर-उधर हिलाकर अपनी गान्ड के छेद से मेरी उंगली को निकालने की कोशिश करने लगी, लेकिन लंड मूह से नही निकलने दिया…

मेने उसकी मिडी को और उपर करके उसके सर के उपर से निकाल दिया… उतने समय के लिए मेरा लंड उसके मूह से बाहर आया…

वो अब ब्रा और पेंटी में थी……

मेने उसे पुछा – बेड रूम में चलें.. तो वो इठलाकर बोली – मुझे गोद में उठाकर ले चलो, तो ही जाउन्गि…

वो थोड़ी सी भारी तो थी, लेकिन मेने उसे आराम से उठा लिया और उसके बेडरूम में ले जाकर बेड पर पटक दिया…

सॉफ्ट गद्दे के उपर वो दो-तीन बार उपर-नीचे जंप हुई…

मेने भी अपने सारे कपड़े निकाल दिए और उसकी ब्रा और पेंटी को निकाल कर, पलंग पर लेट गया…

वो अपनी धरा सी गान्ड लेकर मेरे मूह पर बैठ गयी, फिर मेरे उपर लेट कर मेरा लंड फिर से मूह में ले लिया…

अब हम 69 की पोज़िशन में थे, वो मेरा लंड चूस रही थी, और मे उसकी चूत की खुदाई अपनी जीभ घुसा-घुसा कर करने लगा…

कभी उसकी चूत को दाँतों से काट लेता तो वो अपनी गान्ड को और ज़ोर से हिला-हिला कर मेरे मूह पर रगड़ देती…

10-15 मिनिट में ही हम दोनो एक दूसरे के मूह में झड गये…और अगल-बगल में लेट कर लंबी- 2 साँस भरने लगे…

मूह एक दूसरे के रस से सना हुआ था, तो फिरसे किस्सिंग में जुट गये… और अपने-2 रस का स्वाद बाँट लिया….

कुच्छ देर बाद हम फिरसे एक दूसरे से लिपट गये,

डॉक्टर वीना, जल्दी ही कमतूर होकर मेरा लंड लेने को बाबली सी हो गयी…

मेने उसकी गान्ड के नीचे दो पिल्लो रखे, और उसकी रसीली चूत में अपना मूसल पेल दिया…

शुरू-शुरू में उसे मेरा लंड अड्जस्ट करने में थोड़ी तकलीफ़ हुई, लेकिन फिर जल्दी ही मज़े लेकर चुदने लगी…

शाम तक मेने डॉक्टर. वीना के दोनो छेदो की जम कर खुदाई की… वो मेरे लंड की दीवानी हो गयी,…

सच में बहुत मज़ा देते हो तुम, किसी औरत को सॅटिस्फाइ करने की कला अच्छे से आती है तुम्हें.. वो मेरे बालों में अपनी उंगलिया घूमाते हुए बोली…

मेने कहा – मज़ा तो आया ना मेरे साथ सेक्स करके….?

बहुत…! मेरे हज़्बेंड ने कभी मुझे इतनी देर तक नही छोड़ा… और वैसे भी उनका लंड तुम्हारे से छोटा भी है,

इसलिए शुरू में थोड़ा हार्ड लगा मुझे इसे अपनी पुसी में लेने में…, वो मेरे लंड से खेलते हुए बोली..

हम दोनो अभी भी नंगे उसके बिस्तेर पर पड़े हुए थे… फिर वो उठी, बाथ रूम से फ्रेश होकर कॉफी बनाने चली गयी… इतने में मेने भी अपने कपड़े पहन लिए थे…

कॉफी का मग मुझे पकड़ते हुए वो बोली – अरे यार अंकुश !

एक बेचारी लड़की मेरे हॉस्पिटल में है, उसके साथ गॅंग रेप हुआ है, अब रेप करने वाले लड़के बड़े-2 घरों से हैं.. तो पोलीस भी उसकी कंप्लेंट नही ले रही…

तुम लॉयर हो, कुच्छ करो ना यार.. बेचारी के घरवाले भी बड़ी मुसीबत में हैं…

उनको धमकी भी मिल रही हैं लगातार.. कि अगर उन्होने पोलीस में रिपोर्ट करने की कोशिश की तो सारे परिवार को ख़तम करवा देंगे…

मेने कहा – चलो चलके देखते हैं, क्या हो सकता है…?

कॉफी ख़तम करके वो भी रेडी हो गयी… वो अपनी कार से और मे अपनी बुलेट से उसके हॉस्पिटल की तरफ चल दिए…!

राम लाल, मुनिसिपल कॉर्पोरेशन में चपरासी है, अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ, दो कमरों एक के छोटे से मकान में अपनी जिंदगी बसर कर रहा था…

बड़ी बेटी रेखा, कॉलेज में पढ़ती है, इस समय वो सेकेंड एअर की स्टूडेंट है, उमर अभी 20 पूरा ही किया था…

दूसरी बेटी प्राची 12थ में है, और सबसे छोटा एक बेटा, सुनील जो 9थ में पढ़ता है…

पाँच प्राणियों का ये परिवार राम लाल की छोटी सी पगार से ही चलता है, और इसी में सब लोग हसी खुशी जिंदगी बसर कर लेते थे…

गुणी पत्नी सरला देवी, अपने पति की आमदनी को सही ढंग से इस्तेमाल करके घर का खर्चा पूरा कर लेती थी, थोड़ा बहुत बचत करके घर के लोन की ईएमआई भी भर जाती थी…

बड़ी बेटी रेखा, पड़ोस के ही दो चार बच्चों को ट्यूशन देकर थोड़ा बहुत सहारा दे रही थी… सहारा भी क्या, बस समझ लो अपने कॉलेज का खर्चा निकाल लेती थी…

रेखा, मध्यम कद काठी, गोरे रंग और अच्छे नयन नक्स वाली एक आवरेज सी लड़की थी,

32-24-32 के फिगर के साथ उसमें इतना आकर्षण तो था, कि कॉलेज के लड़के उससे नज़दीकी रखने की कोशिश करते रहते थे…

लेकिन सरल स्वभाव और संस्कारी रेखा, अपने काम से काम रखती, घर से कॉलेज, कॉलेज से घर, बस यही उसका रुटीन रहता… ,

कॉलेज में उसकी ज़्यादा फ्रेंड्स भी नही थी…बस दो-चार लड़कियों से जस्ट हाई-हेलो हो जाती थी…

इसका बहुत बड़ा कारण था, उसका अपना घरेलू स्टेटस, जो उन दूसरी लड़कियों से मेल नही ख़ाता था…

शहर का नामी गिरामी गुंडा… नाम है उष्मान ख़ान… सभी उसे उस्मान भाई कह कर बुलाते हैं… ऐसा कोई ग़लत काम नही है, जो उसने अपने जीवन में ना किया हो…

किसी जमाने का एक टुच्छा सा गली का गुंडा, आज शहर का ड्रग माफ़िया था, शुरू- 2 में उसने पॉकेट मारी से लेकर छोटी- मोटी चोरियाँ करना, ऐसे कामों से शुरुआत की…

फिर वो लोगों को लूटने लगा, धीरे -2 और छोटे-मोटे गुंडे उससे जुड़ते गये और उसने देखते-2 एक बड़ा सा गॅंग खड़ा कर दिया…

पॉल्टिकल मर्डर, ज़मीन हथियाना ऐसे कामों से आगे बढ़ते हुए उसने ड्रग का धंधा, गैर क़ानूनी शराब और यहाँ तक की हथियारों की तस्करी भी करने लगा…

अब तो शहर के जाने माने पॉलिटीशियन, बुरॉकरटेस और बिल्डर्स भी उसकी मदद लेने लगे, और वक़्त आने पर वो उनकी मदद से अपने को बचाए भी रखता था…

जिस कॉलेज में रेखा पढ़ रही थी, उसी में उस्मान का बेटा असलम भी पढ़ता था…

वो गाहे बगाहे लड़कियों को छेड़ना, किसी को भी मारना पीटना उसके लिए आम सी बात थी..

असलम के दोस्तों की फेहरिस्त में भी अच्छे-2 परिवार के लड़के ही थे, जो कहीं ना कहीं उसके बाप के कारोबार में उसके सहभागी थे…

रेखा के बयान के मुतविक असलम ने कई बार उसको भी छेड़ा, पर वो बेचारी लहू का सा घूँट पीकर बस उस जैसे गुण्डों से किसी तरह अपने आपको बचाती रही…

एक दिन कॉलेज में फंक्षन था, सब उसमें बिज़ी थे…रेखा भी उस वक़्त कॉलेज में ही थी…साथ में एक रूबिया नाम की लड़की बैठी थी…

अचानक से रूबिया उससे बोली – चल रेखा कॅंटीन में चल कर कुच्छ ठंडा गरम पीते हैं…

रेखा ने बहुत मना किया, लेकिन वो नही मानी और उसे जबर्जस्ति खींच ले गयी…

रेखा को कॅंटीन की ब्रेंच पर बिठाकर वो रिसेप्षन से दो ठंडे की बॉटल ले आई, एक रेखा को दी और दूसरी उसने खुद ले ली…

ठंडा पीने के कुच्छ देर बाद ही रेखा का सर चकराने लगा…, जब उसने रूबिया को ये बात बताई.. तो वो बोली –

हो सकता है, तुझे कॉलेज के शोर शराबे की वजह से ऐसा फील हो रहा हो, चल में तुझे घर छोड़ देती हूँ…

उसने रेखा को रिक्शा में बिठाया और वहाँ से निकल गयी… रिक्शा में बैठने के कुछ देर बाद ही रेखा की आँखें बंद हो गयी और वो रूबिया की गोद में लुढ़क गयी….

जब उसे होश आया, तो उसने अपने आप को किसी फार्म हाउस के एक बड़े से कमरे में बेड पर लेटे हुए पाया…

उसका सर अभी भी चकरा रहा था, लेकिन शरीर में एक अजीब सी उत्तेजना भरती जा रही थी….

अभी वो उस बेड से उतर कर खड़ी ही हुई थी…, कि उसने असलम को कमरे के अंदर आते हुए देखा…

रेखा असलम को देखकर चोंक पड़ी, और बोली – त्त्त्त्तुम्म्म…., मे यहाँ कैसे पहुँच गयी…?

असलम – हम लेकर आए हैं मेरी जान तुम्हें यहाँ…! चिंता मत करो.. यहाँ तुम्हें कोई तकलीफ़, नही होगी… बस थोड़ा सा हमें खुश कर देना…

इतना कह कर वो एक दरिंदगी वाली हँसी हँसते हुए उसके नज़दीक आया, और उसके बदन के साथ छेड़ खानी करने लगा…

रेखा ने अपने हाथ से उसका हाथ अपने बदन से दूर झटक दिया और बोली – मुझे जाने दो … मे ये सब नही कर सकती…

तब तक कमरे में उसके तीन साथी और आगये, जिनमें एक एमएलए रस बिहारी का भतीजा भी था.

वाकई दो को वो नही पहचानती थी…

उन चारों ने मिल कर उसे घेर लिया…, और उसके साथ ज़ोर जबर्जस्ती करने लगे…

वो उनसे बचने की कोशिश करती रही, लेकिन बच नही पा रही थी, कभी एक से बचती, तो दूसरा उसे पकड़कर उसके नाज़ुक अंगों से छेड़-छाड़ कर देता…

एक पल को वो भी उन्माद से भर जाती, शायद ये उसको दी गयी दवा का असर था, लेकिन दूसरे ही पल वो उनसे फिर बच निकलने के प्रयास करने लगती…

वो चीखती रही चिल्लाति रही… लेकिन उन दरिंदों ने उसकी एक ना सुनी, और उसके बदन से एक-एक करके सारे कपड़े नोच डाले…

फिर खेल शुरू हुआ दरिंदगी भरा…और वो चारों मिलकर उसे नोचते- खसोटते रहे.. उसके बदन पर कई जगह दाँतों के काटने से घाव बन गये, जो उसके गाल, थोड़ी, गले पर साफ साफ दिख रहे थे…

उन चारों ने उसको जी भर कर मसला, बुरी तरह से रौंदा, इस दौरान वो कई बार अपनी चेतना भी खो चुकी थी…

लेकिन वो नरभक्षी भेड़िए उसके बदन को तब तक भभोड़ते रहे, जब तक उनकी खुद की उत्तेजना शांत नही हो गयी…

फिर उन्होने उसके बेदम हो चुके शरीर को गाड़ी में डाला और हॉस्पिटल के सामने फूटपाथ पर फेंक कर भाग गये…!

फुटपाथ पर भी ना जाने वो कितनी देर तक पड़ी रही, फिर एक राह चलते आदमी ने हॉस्पिटल में आकर बताया, तब कहीं जाकर उसे अंदर लाए और उसका ट्रीटमेनेट शुरू किया…

उसकी दुख भरी कहानी सुन कर मेरे शरीर के रौंय खड़े हो गये…गुस्से से मेरा शरीर काँपने लगा……..!

मे उसके चेहरे और गर्दन के घावों को ही देख रहा था, कि तभी डॉक्टर. वीना

बोली – क्या देख रहे हो अंकुश… ये तो कुच्छ भी नही हैं…

इसके वाकी के शरीर के घावों को तो तुम देख भी नही सकोगे… इसके वक्षों को तो इस कदर दाँतों से काटकर घायल किया है.. कि बस क्या कहूँ…? बता भी नही सकती मे..

इसके निपल्स को तो बिल्कुल खा ही लिया है उन हराम्जादो ने…

पिच्छले 48 घंटों से ये इसी तरह दर्द से तड़प उठती है… अभी भी ज़्यादा हिलने डुलने की कोशिश में इसकी यौनी से खून बहने लगता है…

मेने वीना से कहा – इसकी रिपोर्ट मिल सकती है मुझे…?

उसने मुझे रिपोर्ट लाकर दी, जिसे मेने एक बार पढ़ा और फिर कृष्णा भैया को फोन लगा दिया…….!

कॉल पिक होते ही मेने कहा – मे आइ टॉक टू एसपी कृष्ण कांत शर्मा…?

वो – यस ! एसपी कृष्ण कांत हियर …

मे अंकुश बोल रहा हूँ भैया, क्या आप अभी सहयोग हॉस्पिटल आ सकते हैं…इट्स आन अर्जेन्सी …

वो – ईज़ सम थिंग सीरीयस…?

मे – यस ! मोर दॅन सीरीयस…

वो – ओके, आइ विल बी देयर, विदिन अवर…

एक घंटे के बाद भैया अपने दल-बल के साथ हॉस्पिटल पहुँच गये… मेने उन्हें सारी वस्तु स्थिति से अवगत कराया…

उन्होने रेखा का स्टेट्मेंट दर्ज कराया, फिर उसके पिता से बोले – राम लाल जी ! आपने कॉन से थाने में फरियाद की थी…

उसने उस थाने का नाम बताया, तो भैया ने उस थाने का नंबर लगाया, और उस इनस्पेक्टर को इम्मीडियेट तलब किया…

उसके आते ही उन्होने उसे बुरी तरह से लताड़ा… और वहीं खड़े-2 लाइन हाज़िर कर दिया… वो गिड गीडाता रहा… और बड़े – 2 नाम होने की वजह से रिपोर्ट ना लिखने का कारण बताया…

लेकिन उन्होने उसकी एक ना सुनी… वहाँ से हम सीधे कमिशनर ऑफीस पहुँचे…

जब उन दो लड़कों के नाम बताए, तो वो हड़बड़ा गये और बोले – जानते हो एसपी उन चार लड़कों में एक हमारा भी बेटा है…!

एसपी – क्या कह रहे हैं सर ! आपका लड़का रेपिस्ट में शामिल है…?

कमिश्नर- हां ! और इसलिए हम तुम्हें ये सलाह देंगे, कि तुम इस मामले को जैसे भी हो रफ़ा दफ़ा करो, लड़की के परिवार को हम संभाल लेंगे…​
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