Update 49

मे अभी हॉल पार करके निकल ही रहा था कि तभी सेठानी की गाड़ी पोर्च में आकर रुकी, संकेत भी साथ में ही था…!

गाड़ी से उतरकर उनका अंदर आना हुआ और मेरा बाहर निकलना, मुझे देखते ही वो चहकते हुए बोली – अरे वकील बेटा ! चल दिए…!

मे – हां आंटी…! आप आ गई ? कैसी रही पार्टी…?

वो कामुक अंदाज में स्माइल करते हुए बोली – हमारी पार्टी तो ठीक ही रही, तुम बताओ, तुम्हारा काम पूरा हुआ कि नही…?

मेने चोन्क्ते हुए कहा – मेरा काम..? मेरा कॉन्सा काम था जो पूरा करना था,,?

वो बात को संभालते हुए बोली – अरे वही, जिसके लिए खुशी ने तुम्हें बुलाया था, कुछ गाइडेन्स चाहिए था ना उसे, अपनी फर्दर स्टडी के लिए…!

मे समझ गया, कि शायद खुशी ने इनको बहाना बता कर मुझे बुलाने के लिए कहा होगा सो तुरंत बोला – हां जी, हां जी ! हो गया…!

वो – खाना खाया या ऐसे ही जा रहे हो…

मे – हां जी, खाना भी हो गया…जी, अब में चलता हूँ, गुड नाइट..

वो नशीले अंदाज में बोली – ओके, गुड नाइट, टेक केर, आते रहा करो…!

मेरे वहाँ से निकलते ही संकेत अपनी मम्मी से बोला – मम्मी आपको नही लगता कि आप और खुशी दोनो वकील भैया को कुछ ज़्यादा ही लिफ्ट देने लगे हो…

उन्होने चोंक कर संकेत की तरफ देखा, और बोली – तुम कहना क्या चाहते हो..?

संकेत – मुझे लगता है, कि खुशी इनको कुछ ज़्यादा ही तबज्ज़ो देने लगी है, और आप भी उसे एनकरेज करती हो…

सेठानी – चलो अंदर चलो, बैठकर बात करते हैं, फिर वो उसे हॉल में ले आई, और सोफे पर बैठ कर दोनो बातें करने लगे…

सेठानी – संकेत ! तुम कहीं अपनी छोटी बेहन के बारे में कुछ ग़लत सलत तो नही सोच रहे…?

संकेत ने अपनी नज़र झुका ली लेकिन कुछ कहा नही, सेठानी समझ गयी कि जो उन्होने सवाल किया है, वही उसके मन में है…

देखो बेटा ! तुम भले ही उसके सगे भाई हो, लेकिन आज तक तुमने ऐसा कोई काम नही किया जिससे खुशी को तुम्हारे उपर भरोसा हुआ हो,

वहीं एक नेक दिल होने की वजह से उसने उसके साथ वो किया जो शायद ही कोई कर पाए, अपनी जान जोखिम में डालकर एक पराई लड़की के मान सम्मान की रक्षा की…जो किसी भी ग़ैरतमंद लड़की या औरत के लिए सबसे उपर होता है…

अब ऐसे में खुशी का अंकुश पर विश्वास करना क्या ग़लत है…? और आज तो मेने ही खुशी को उसे यहाँ बुलाने के लिए कहा था, ताकि वो अकेलापन महसूस ना करे..

वैसे भी आजकल जमाना बहुत खराब है, नौकरों पर भरोसा करके एक जवान लड़की को अकेला नही छोड़ा जा सकता था…

संकेत – सॉरी मम्मी, मेरा ये मतलब नही था, मे तो बस ऐसे ही बोल दिया, कि एक बाहर के आदमी पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा करना ठीक नही…

सेठानी – कोई बात नही, जेलौस फीलिंग होती है इस उमर में कोई नयी बात नही है, वैसे उसी बाहर के आदमी के बहुत अहसान हैं इस घर पर,

अब जाओ जाकर सो जाओ, मे भी थक गयी हूँ…!

जब संकेत वहाँ से उठकर चला गया, तो सेठानी मन ही मन मुस्करा उठी, उन्हें अपनी चाल कामयाब होती नज़र आ रही थी……!

शहर का 5 सितारा होटेल रिवेरो, रात के अंधेरे में कुछ ज़्यादा ही जगमगाने लगता है, इसके अंदर की रंगिनियों की तो बात ही अलग है…

एक सामान्य आदमी के लिए तो इसके अंदर पहुचना एक सपने देखने जैसा ही है..…

होटेल रिवेरो का बेसमेंट, जो खुद किसी आलीशान महल से कम नही है, इसके विशाल हॉल में इस समय ऐसा जान पड़ता था मानो किसी राजा महाराजा का दरबार लगाने वाला हो…

एक विशालकाय मेज के पीछे एक बड़ी सी सुसज्जित कुर्सी जो इस समय खाली थी…, उस विशाल मेज के तीन तरफ शानदार कुर्सियों पर शहर की जानी मानी हस्तियाँ विराजमान थी…

उनमें से ही कुछ कुर्सियों पर उस्मान भाई, उसका बेटा असलम, बिल्डर योगराज, उसका बेटा गुंजन, कमिशनर का बेटा विकी और एमएलए का भतीजा सन्नी बैठे हुए थे…

पोलीस और नारकॉटिक डिपार्टमेंट के कुछ अफसरों के अलावा और भी बहुत से लोग थे… जिनका जिकर करना यहाँ ज़रूरी नही है…!

तभी हॉल का गेट खुला, और उस स्पेशल हॉल का दरवान एक नौजवान के साथ अंदर दाखिल हुआ…

सभी की नज़र उधर को मूड गयी…, वहाँ बैठे तमाम लोगों की नज़र उस नौजवान पर टिक जाती है, जो एक हॅटा-कट्टा, 6’2” के करीब लंबा, चौड़ा सीना, गोरे-चिट्टे चेहरे पर फ्रेंच कट दाढ़ी, नाक थोड़ी सी फूली हुई…

नीली आँखों वाले किसी हिन्दी फिल्म के हीरो जैसे इस युवक का व्यक्तित्व देख कर वहाँ बैठे सभी लोग जैसे उसमें खो से गये…

तभी असलम अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ, और तेज-2 कदमों से चलता हुआ उस नौजवान के पास पहुँचा और उसके गले से लगकर बोला….

वेलकम दोस्त, तुम्हारा हमारे ग्रूप में स्वागत है… सब मूह बाए उन दोनो की तरफ देखने लगे…

असलम ने वहाँ बैठे सब लोगों को संबोधित करके कहा – यही है वो शख्स जिसने कल मौके पर आकर हमारी जान बचाई थी… नाम है जोसेफ.

फिर उसने वहाँ बैठे सब लोगों से उसका परिचय करवाया… और उसे अपने पास वाली चेयर पर बिठा लिया…

जोसेफ उस चेयर, जो कि सबसे अलग टेबल के पीछे किसी राज सिंघासन की तरह सजी हुई थी को खाली देख कर चोंका, और उसने असलम से फुसफुसाकर उसके बारे में पुछा…

इससे पहले कि वो उसको कोई जबाब देता, कि उसी चेयर के ठीक पीछे वाली दीवार एक हल्की सी गड़गड़ाहट के साथ एक तरफ को सर्की, और उसमें से एक स्याह काले लबादे में लिपटी हुई, एक मोह्तर्मा प्रगट हुई, जिसकी केवल आँखें ही चमक रही थी…

उसे देख कर सब लोग एक साथ खड़े हो गये… वो दो कदम आगे बढ़कर उस सिंघासन नुमा कुर्सी पर बैठ गयी…

स्याह लबादे के अंदर से उस औरत की बस दो आँखें ही नुमाया हो रही थीं, जो वहाँ बैठे सभी लोगों का निरीक्षण करने लगी…

घूमते – 2 जब उसकी नज़र जोसेफ नाम के उस युवक पर पड़ी, तो वो उसे देखती ही रह गयी… फिर उसने अपनी खनकती आवाज़ में पास ही बैठे असलम से उसके बारे में पुछा…

जब उसने सब कुछ बता दिया, तो वो औरत बोली – ये तुमने अच्छा किया असलम, हमारे संघटन को ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है…

इसे हमारे काम और संघटन के उसूलों के बारे में सब समझा देना, फिर वो सब लोग कल हुई घटना का विश्लेषण करने लगे कि ऐसा हुआ तो आख़िर कैसे…

इतनी पक्की खबर पोलीस के कानों तक कैसे पहुँची…ये सभी इसी तरह की चर्चा में लगे थे,

लेकिन जोसेफ का ध्यान उन सब की बातों से हटकर उस औरत की आँखों का एक्स्रे करने और उसके बोलने के तरीक़े की तरफ ही था…

उसके दिमाग़ में उस औरत की धुंधली सी छवि बनने बिगड़ने लगी…और एक अंजाना सा सक़ पैदा होने लगा…पता नही क्यों उसे उसकी वो आँखें जानी पहचानी सी लग रही थीं…

जो शक़ अबतक उसके दिमाग़ में पनप रहा था, वो सही साबित होता दिखाई दे रहा था…

कुछ देर में वो मीटिंग ख़तम हो गयी, जिससे उसे कोई लेना देना नही था… असलम को दूसरे दिन मिलने का वादा करके वो वहाँ विदा हुआ.

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अगले पूरे दिन मैं अपने एक केस में उलझा हुआ था, कि तभी मेरा मोबाइल बजने लगा, स्क्रीन पर जो नंबर फ्लश हो रहा था, उसे देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आगयि…

मेने कॉल पिक की, दूसरी तरफ से प्राची (रेखा जिसका रेप हुआ था की छोटी बेहन) की सुरीली आवाज़ सुनाई दी, मेरे हेलो बोलते ही वो बोली…

आप कहाँ हो अभी, मेने उसे बताया कि मे अपने ऑफीस में काम कर रहा हूँ…

वो बोली – मुझे आपसे मिलना था, आपके ऑफीस आ जाउ…?

मेने उसे शाम को घर आने का बोलकर कॉल कट कर दी…

उसी शाम 4 बजे असलम अपने नये दोस्त को लेकर अपने मेन अड्डे पर पहुँचा, जहाँ उसके धंधे का ज़्यादातर माल स्टोर होता था, और यहीं से सप्लाइ होता था…

ये शहर के बाहर इंडस्ट्रियल इलाक़े में एक बड़ा सा गॉडाउन जैसा था, जहाँ पर बहुत सारे आदमी सख़्त पहरे पर थे…

असलम ने बताया, कि ये हमारा मेन गॉडाउन है, यही से सब जगह ड्रग और हथियार सप्लाइ होते हैं…

बाहर से देखने पर ये एक बड़ी फॅक्टरी दिखाई देती है… लेकिन अंदर सब दो नंबर का माल भरा पड़ा था…

उसके बाद उसने वो सारी जगह दिखाई, जहाँ पर वो सब ड्रग और हथियार रखे हुए थे, जिन्हें इस शहर ही नही देश विदेश के लिए भी सप्लाइ किया जाता था…

ये फॅक्टरी किसी जगन सेठ के नाम से रिजिस्टर थी, जो मुंबई का बहुत बड़ा कारोबारी था,

दिखावे के लिए यहाँ बिजली के केबल बनाए जाते थे… लेकिन सामने असल तो कुछ और ही थी…

वहाँ से निकल कर शहर में एक दो डीलर्स से मुलाकात करवाई…., अपने धंधे के कामों के बारे में बातें बताता रहा…

फिर एक बीअर बार में जाकर दोनो ने बीअर पी, बीअर पीते हुए, असलम ने उसके अतीत के बारे में पुछ ताछ भी की…

इस बीच असलम ने रूबी के बारे में पुछा कि वो क्यों नही आई…,

जोसेफ ने कहा, कि वो सिर्फ़ काम के वक़्त ही मेरे साथ होती है, वाकी समय वो होटेल के कमरे से बाहर नही आती जब तक कोई काम उसे ना करना हो..……………!

देर रात जब मे अपने फ्लॅट में पहुँचा , घर खुला देख कर ही मे समझ गया कि प्राची आ चुकी है, क्योकि चाबियों का एक सेट उसके पास भी होता था…

जब मे घर के अंदर पहुचा तो वो सोफे पर बैठी टीवी देखते हुए मेरा इंतेज़ार कर रही थी…

वो शिकायत करते हुए बोली – कितनी देर कर दी, कब्से मे यहाँ आई हूँ.. चलिए अब जल्दी से फ्रेश हो जाइए, खाना ठंडा हो रहा है…

मे – खाना..? तुमने बनाया है…?

वो – हां ! मे तो यहाँ 7 बजे ही आगयि थी…

फिर हम दोनो ने साथ बैठ कर खाना खाया, और फिर सोफे पर बैठ कर टीवी देखते हुए बातें करने लगे…

मेने प्राची से कहा - ये कैसा भूत सवार है तुम्हारे सिर पर…?

अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़ कर, पिच्छले 6-7 महीनों से फाइटिंग, ड्राइविंग, शूटिंग ये सब सीखने में लगी हो..

जिस उमर में हाथों में कलम और कंप्यूटर होने चाहिए उन हाथों में गन लेकर घूमती हो…

उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा – मेने अपनी बेहन की चिता पर कसम खाई थी, कि जब तक उन दरिंदों का अंत होते हुए अपनी आखों से नही देख लूँगी, चैन से नही बैठूँगी…

कलम-कंप्यूटर तो बाद में भी आ सकते है अंकुश भैया, लेकिन मेरी बेहन अब कभी वापस लौट कर नही आएगी…, ये कहते हुए उसकी आँखें नम हो गयी..

मे – तुम्हारे घर वाले…. उनका क्या रुख़ है तुम्हारे इस फ़ैसले पर…?

वो – मम्मी मेरे साथ हैं, पापा से हम कोई भी वास्ता ही नही रखते… और ना ही अब उनसे कोई पैसे की मदद ले रहे हैं, एक तरह से वो हमसे अलग थलग ही समझो…

उन्होने लाख कोशिश की हमें मनाने की लेकिन हम में से कोई उनके साथ नही है, यहाँ तक कि मेरा छोटा भाई भी नही…

मे – लेकिन उन्हें पता तो होगा तुम्हारे मंसूबों के बारे में…

वो – पता भी हो तो भी मुझे अब कोई फरक नही पड़ता…,

मे – लेकिन मुझे फ़र्क पड़ता है प्राची, तुम मेरे साथ मिलकर अपनी बेहन के क़ातिलों से रिवेंज ले रही हो ये बात अगर उन्हें पता है तो जाहिर सी बात है वो इसे कहीं और भी लीक कर सकते हैं,

जो आदमी पैसों के लिए अपनी बेटी को मरते हुए देख सकता है, उसके लिए ये बातें हमारे दुश्मनो तक पहुँचाना क्या बड़ी बात है…

फिर जिस आसानी से हम अपने काम को अंजाम देना चाहते हैं, उसमें अड़चनें पैदा हो सकती हैं…

इसलिए पता करो, कि उन्हें इन बातों का पता तो नही है…

प्राची – लगता तो नही कि उन्हें कुछ भी पता हो, क्योंकि हम में से उनसे कोई बात भी नही करता, फिर भी में पता करूँगी, और ये ख़याल रखूँगी कि ये राज किसी के भी सामने उजागर ना हो…!

मे – लेकिन मेने तुमसे वादा किया है, कि मे उन हराम्जदो को उनके अंजाम तक पहुँचा कर ही रहूँगा… फिर तुम्हें अपनी जान जोखिम में डालने की क्या ज़रूरत है….?

प्राची अपना सर मेरे कंधे से टिकाते हुए बोली – जब आप बेगाने होकर मेरी बेहन को न्याय दिलाना चाहते हो, उसकी आत्मा को शांति दिलाना चाहते हो,

तो क्या थोड़ा सा ख़तरा मे नही ले सकती… एक से भले दो…और सच कहूँ तो हम तीनों ही आपके बहुत अभारी हैं..

मम्मी तो मानती हैं कि आप आम इंसान नही हो, कोई फरिस्ता हो, भला कॉन किसी दूसरे के लिए इतना सोचता है…

मेने उसकी पीठ पर हाथ से सहलाते हुए कहा – मे कोई फरिस्ता-वरिस्ता नही हूँ, बस मेरे जमीर ने कहा कि रेखा के हत्यारों को उनके किए की सज़ा मिलनी ही चाहिए, क़ानून के तहत नही दिला पाया, तो गैर क़ानूनी ही सही…

प्राची मेरे बदन से सटते हुए बोली – ये सोच किसी आम इंसान की तो नही हो सकती…आप सच में कोई फरिस्ता ही हो.. ये कह कर उसने मेरे गाल पर किस कर दिया…

मेने उसकी तरफ देखा, तो वो सर झुका कर बोली – सॉरी भैया…

मे – किस बात के लिए…?

वो – वो मे अपनी भावनाओं को काबू में नही कर पाई, और आपको किस कर लिया…आपको बुरा तो नही लगा..?

मे – तुमसे किसने कहा कि मुझे बुरा लगा…? मे तो तुम्हारे मासूम चेहरे को देख रहा था…तुम मेरे से छोटी हो, और तुम्हें पूरा हक़ है, अपना प्यार जताने का..

वो मेरे गले से लिपट गयी, और सुबक्ते हुए बोली – आप सच में बहुत अच्छे हो…

मेने भी उसकी पीठ सहलाते हुए उसके माथे पर किस कर दिया…और बोला – अब तुम घर जाओगी, या यहीं सो जाओगी…

वो – अब तो बहुत रात हो गयी, अब सुवह ही चली जाउन्गि अगर आपको कोई प्राब्लम ना हो तो…

मेने उसके गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा – बहुत मारूँगा तुझे इस तरह की बात की तो, भला मुझे तुझसे क्या प्राब्लम होने लगी…जहाँ तेरी मर्ज़ी हो वहाँ सो जा..

वो – मे तो आपके साथ ही सोउंगी… सच में उस दिन होटेल में बड़ी अच्छी नींद आई थी आपके साथ…

मे उसके चेहरे की तरफ देखने लगा, जहाँ मुझे सिर्फ़ मासूमियत के सिवा और कुछ नज़र नही आया…………………….!

रात का ना जाने कॉन्सा पहर था, किसी के मुलायम हाथों का स्पर्श अपने बदन पर पाकर मेरी नींद टूट गयी….

देखा तो मेरी टीशर्ट उपर को थी, लोवर भी नीचे खिसका हुआ था, और प्राची अपने कोमल हाथों से मेरे बदन को उपर से नीचे तक सहला रही थी…

मेरे बदन में झूर झूरी सी फैल गयी, और मेरे फ्रेंची में तंबू सा बनने लगा…

प्राची मेरे कंधे पर अपना सर टिकाए…नीचे को मूह करके मेरे बदन से खेल रही थी, अंडरवेर में बने तंबू को देख कर उसका हाथ अनायास ही मेरे लंड पर पहुँच गया, और वो उसे सहलाने लगी…

मेने कुछ देर चुप रहना ही ठीक समझा, मे देखना चाहता था, कि प्राची के आख़िर मन में क्या है… क्या वो मेरे साथ सेक्स करना चाहती है या, बस ऐसे ही पुरुष स्पर्श को फील करना चाहती है…

जब कुछ देर उसने मेरे लंड को सहलाया तो वो और ज़्यादा सख़्त हो गया, जिसे प्राची ने अपने हाथ में लेकर फील किया…

ज़िग्यासा वश उसने मेरे फ्रेंची को जैसे ही नीचे किया, मेरा नाग फन फैलाए सीधा खड़ा होकर उसको घूर्ने लगा…

मेने साफ-2 फील किया, कि मेरे फुल खड़े लंड को देख कर प्राची ने अपने बदन में फूरफ़ुरी सी ली…और वो उसे अपनी मुट्ठी में कसकर दबाने लगी…

उसने उसके सुपाडे को खोल कर देखा… लाल टमाटर की तरह चमकता सुपाडा देख कर वो मंत्रमुग्ध सी अपना सर नीचे को ले जाने लगी…

जैसे – 2 उसका सर नीचे को बढ़ रहा था, मेरी साँसें भी उसी गति से बढ़ने लगी…वो निरंतर उसे खोल-बंद कर रही थी…

आख़िर वो अपने मूह को उस तक ले ही गयी…, अब उसकी गरम – 2 साँसें मेरे लंड को छुने लगी थी…

उसकी गरम साँसों को महसूस करते ही, मेरा लंड झटके खाने लगा…

ना जाने क्या सोच कर उसने मेरे सुपाडे पर अपने तपते होंठ रख दिए और उसे चूम लिया…

ना चाहते हुए भी मेरे मूह से सस्सिईईईईईईईईईईईईईईईईईई……..सिसकी निकल गयी…

प्राची ने झट से मेरा लंड छोड़ दिया, और मेरी तरफ पलटी…

लेकिन मेरी आँखें अभी भी बंद थी… उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, खुद उसे अपने दिल की धड़कनें साफ-साफ सुनाई दे रहीं थी….!

मेरी आँखें बंद देख कर उसने राहत की साँस ली, और कुछ देर अपनी साँसों को नियंत्रित करती रही….!

उसने कुछ देर और इंतेज़ार किया, लेकिन मेरी तरफ से कोई हलचल ना देख उसने फिर से उसे मुट्ठी में दबा लिया और उलट-पलट कर देखने लगी…

कुछ देर यूँही देखने के बाद उसने फिर से उसे चूमा और सुपाडे पर अपनी जीभ से चाट लिया…

मेने इस बार कस कर अपने होंठ भींच लिए, अब वो अपने होठों को गोल घेरे में करते हुए उसे अपने मूह में भरने लगी… एक दो बार धीरे-2 से अंदर बाहर किया…

लेकिन उसका भी अब कंट्रोल हटता जा रहा था, सो वो उसे जल्दी-2 अंदर-बाहर करने लगी… लाख कंट्रोल के बाद भी मेरा हाथ स्वतः ही उसके सर पर पहुँच गया..

और मे उसके सर को अपने लंड पर दबाने लगा…

प्राची मेरे लंड को मूह से बाहर निकालना चाहती थी, लेकिन मेरे हाथ के दबाब के कारण वो ऐसा नही कर सकी, तो उसने तिर्छि नज़र से मेरी तरफ देखा…

मे भी उसको ही देख रहा था सो बोला – अब तेरे जो मन में है वो कर प्राची.. शरमाने का अब कोई फ़ायदा नही है…

उसके चेहरे पर मुस्कराहट खेल गयी और वो उसे पूरे मन से चूसने लगी…

मे भी उसके सर पर हाथ रख कर उसको इशारे से गति देने लगा… जब चुसते – 2 उसका मूह दुखने लगा… तो उसने उसे बाहर निकाला और अपने हाथ से मसल्ने लगी…

मेने उसके कंधे पकड़ कर अपने उपर खींच लिया… और उसके पतले – 2 रसीले होठों को चूसने लगा…

कुछ देर उसके होंठ चूसने के बाद मेने उसको पुछा – क्या इरादा है प्राची…?

वो मदहोशी भरी आवाज़ में बोली – अब मत रुकिये भैया… मे इस आनंद की सीमा को पाना चाहती हूँ…प्लीज़ दे दीजिए मुझे…वो सुख…

मेने कहा – सोच ले ! बड़ी कठिन राह है, इस सुख की… झेल पाएगी…?

वो – मेरी चिंता मत करिए आप, बस मे आज वो सुख पाना चाहती हूँ…

मे - जैसी तेरी मर्ज़ी, तकलीफ़ तुझे झेलनी है, मेरा क्या………….!

मेने प्राची के सारे कपड़े निकाल दिए…. उसकी कंचन सी काया देख कर मे बौरा गया…

मेने उसे पलग पर लिटा दिया, और खुद के कपड़े निकाल कर पलंग के नीचे फेंक दिए, उसके बगल में बैठ कर एक बार उसके पूरे बदन पर हाथ फेरा…

जैसे जैसे मेरा हाथ उसके बदन पर घूम रहा था, उसका बदन किसी बिन पानी की मछली की तरह फडफडाने लगता…

उसके पेट से होते हुए उसकी कठोर 32” की गोल-गोल गेंद जैसी चुचियों को सहलाता हुआ, उसकी गर्दन, और फिर गालों से होते हुए…उसके पतले होठों पर अपनी एक उंगली उल्टी करके फिराई…

वो अपनी आँखें मुन्दे शरीर में होरहे सेन्सेशन में डूबी हुई थी…

अब मे उसके टाँगों के बीच आकर घुटने टेक कर बैठ गया, और उसकी जांघों को अपनी जाँघो के उपर रख कर उसकी चुचियों को अपने हाथों में कस कर मसल दिया…

आअहह…………आराम…. सीईए……सीईईईईई….दरद होता है….

फिर मेने उसकी बगलों में हाथ डालकर उसको किसी बच्ची की तरह उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया….

मेरा लंड इस समय ठीक 60 डिग्री पर था सो उसके गोद में बैठते ही उसकी चूत के होठों से सॅट गया…

उसकी पीठ को सहलाते हुए मेने उसके होठ चूसना शुरू कर दिया… प्राची तो मानो किसी प्लास्टिक की गुड़िया की तरह मेरे इशारों पर चल रही थी…

होठों को चूसने के बाद उसकी गर्दन को चूमते हुए उसकी चुचियों को चूमने चाटने लगा…

उसके कड़क हो चुके अंगूर के दानों को जीभ से चूसने लगा… प्राची मस्ती भरी सिसकियाँ लिए जारही थी…

उसके लिए तो आज ना जाने जिंदगी का ये कॉन्सा अनौखा सुख था, जिसके ना मिलने पर उसकी जान ही ना निकल जाए…

सुख सागर में गोते लगाते हुए वो किसी और ही अनूठी दुनिया में पहुँच चुकी थी.. फिर मेने धीरे से उसे पलग पर छोड़ दिया…और उसकी टाँगों को मोड़ कर उनके बीच में बैठ गया…

एक बार अपनी हथेली से उसकी रसीली कोरी करारी चूत को रगड़ा, और फिर प्यार से हाथ रख कर सहलाया…

जब मेने अपनी जीभ से उसकी मुनिया को चाट कर गीला किया, तो वो बुरी तरह से सिसकते हुए बोली - आअहह...सस्स्सिईइ...भैयाअ..कुकच..कारूव...…

मेने मुस्कराते हुए प्राची से पुछा – तुम तैयार हो ना… उसने हामी भर दी तो मेने अपने लंड को सहला कर, उसकी सांकरी सी सुरंग के छेद पर रखा और हल्के से दबा दिया…

वो एकदम सिहर गयी… मेने उसकी कड़क चुचियों को सहलाकर एक तगड़ा सा धक्का मार दिया….

मेरा लंड उसकी झिल्ली को तोड़ता हुआ… आधे से ज़्यादा उसकी चूत को चौड़ाते हुए अंदर फिट हो गया…

उसके कंठ से दिल दहलाने वाली चीख निकल गयी…भािईय्य्ाआअ…आआ……… मररर…गाइिईईईईईईईईईईईई…….माआअ…..

मेने प्यार से उसके बदन को सहलाया…होठों को चूमा…और कुछ देर ऐसे सी पड़ा रहा… फिर धीरे-2 कोशिश करके लंड को अंदर बाहर किया…

जब उसकी टाइट चूत गीली होने लगी और लंड को अंदर बाहर होने में आसानी होने लगी… तो मेने अपने धक्कों में तेज़ी लाते हुए चुदाई शुरू कर दी…

प्राची अब अपनी जिंदगी की पहली चुदाई का मज़ा लेने लगी थी, उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो कोई कारुन का खजाना मिल गया हो… !

वो बढ़ चढ़ कर अपनी कमर को हवा में उठा-उठाकर मेरे धक्कों का जबाब दे रही थी, एक बार झड़ने के बाद भी उसने कोई प्रति रोध नही किया…

मेरे धक्के निरंतर जारी रहे, वो फिरसे गरम हो गयी, और मेरे होठों को चूस्ते हुए चुदाई का भरपूर आनंद उठाने लगी…!

आधे घंटे के बाद वो फिरसे छेड़ छाड़ करने लगी…मेने भी उसे निराश नही होने दिया… और एक बार फिरसे उसकी कोरी चुदि चूत की सर्विस करदी….......................

सुवह हम देर तक सोते रहे, तकरीबन 8 बजे मेरी नींद मोबाइल के बजने से खुली… रिंग मेरे सीक्रेट नंबर पर थी, देखा तो असलम लाइन पर था…

मेने अलसाए हुए कॉल अटेंड की… दूसरी तरफ से उसकी घबराई और गुस्से से मिश्रित आवाज़ जिसमें कंपकपि साफ सुनाई दे रही थी…

असलम – जोसेफ… कहाँ हो तुम..?

मे – अपने रूम में हूँ, सो रहा था, बोलो क्या बात है…?

वो – गजब हो गया यार ! रात हमारे मैं गॉडाउन पर पोलीस की रेड पड़ गयी… सारा माल जप्त हो गया, हमारे कुछ लोग मारे गये, कुछ पोलीस की गिरफ़्त में हैं…

मे हड़बड़ाने की आक्टिंग करते हुए बोला – क्या बात कर रहे हो भाई… ऐसा कैसे हो गया…? कल ही तो हम लोग वहाँ जाकर आए थे…

वो – वही तो, वही तो मे जानना चाहता हूँ… कि आख़िर ऐसा क्यों हुआ जो पहले कभी नही हुआ था…? वो भी कल हमारे वहाँ जाने के बाद…?

मे – तुम कहना क्या चाहते हो…? कहीं तुम मेरे उपर शक़ तो नही कर रहे…?

असलम – तो फिर ये हुआ कैसे…?

मेने कुछ देर सोचने की आक्टिंग की फिर कहा – मुझे कुछ – 2 अंदाज़ा है, कि ये कैसे हुआ है…?

मे शाम तक तुम्हें कन्फर्म करता हूँ.. कि ये किसने और क्यों किया होगा..?

वो – क्या..? तुम्हें पता है… बताओ मुझे ये किसकी हिमाकत है…?

मे – अभी मुझे सिर्फ़ शक़ है… मे जल्दी ही तुम्हें पूरा पता लगा कर देता हूँ..

वो – लेकिन तुम पता कैसे करोगे.. तुम तो इस शहर में नये हो…!

मे – याद है मेने क्या कहा था… हम बंटी और बबली हैं… जिस शहर में होते हैं उसका सारा इतिहास-भूगोल पता कर लेते हैं…

वो – ठीक है, जल्दी पता करके मुझे उस हराम्जादे का नाम बताओ…

मे – तुम चिंता मत करो, जैसे ही कन्फर्म होगा मे तुम्हें सामने से फोन करूँगा…यह कहकर मेने फोन कट कर दिया…

प्राची अभी भी नंगी पड़ी सो रही थी, जो मेरी फोन पर बातें सुन कर उठ बैठी, और इस समय मेरे लौडे से खेल रही थी…

फोन कट होते ही मेरे होठों पर किस करके बोली – लगता है, कुछ बड़ा धमाका हो गया है…

मेने उसकी चुचियों पर हाथ फेरते हुए कहा – हाँ…जंग शुरू हो चुकी है, और अब शिकार को आगे करके शेर का शिकार करने का वक़्त आ गया है…

वो मेरे लौडे पर अपनी मखमली जाँघ रगड़ते हुए बोली – अब क्या करने वाले हैं आप..?

मे – देखती जाओ, जल्दी ही तुम्हें बड़ी खुशख़बरी मिलेगी…कह कर मेने उसे अपनी गोद में खींच लिया और उसकी चूत में उंगली डालकर हिलाने लगा…

प्राची सीसीयाने लगी और अपनी गान्ड से मेरे लंड को मसाज देने लगी...

मेने एक बार फिर उसे पलंग पर लिटाया, और सुवह – 2 में हुए एरेक्षन से कड़क लंड को उसकी नयी चुदि चूत में डाल दिया…

वो हाए-हाए करते हुए मस्ती में झूमती हुई चुदाई का मज़ा लेने लगी..

आधे घंटे की मस्त चुदाई के बाद मेने अपना वीर्य उसके मूह, चुचियों समेत उसके पूरे बदन पर छिड़क दिया.. जिसे उसने बड़े नशीले अंदाज से अपने शरीर पर क्यूपेड लिया…!

सुवह – 2 की चुदाई से बदन एकदम हल्का फूलका हो गया था, सो प्राची के होठों की एक मस्त किस लेकर मेने पलंग से नीचे छलान्ग लगाई और बाथरूम में घुस गया…

पीछे प्राची पलंग पर बैठी अपने शरीर पर हाथ फेरती हुई होठों पर मुस्कान लिए, मुझे जाते हुए देखती रही…..!

तैयार होकर मेने प्राची को अपने साथ लिया, उसे उसके घर ड्रॉप किया और मे कोतवाली की तरफ बढ़ गया…

वहाँ भैया से मुलाकात करके सब स्थिति अपडेट की, जो लोग रेड में पकड़े गये थे.. उनकी सेवा चालू ही थी, लेकिन सालों ने अभी तक ज़्यादा कुछ बका नही था…

कुछ तो ऐसे थे, जिन्हें अभी तक ये भी मालूम नही था, कि फॅक्टरी की आड़ में ये धंधा भी होता था वहाँ…

पोलीस ने ऐसे लोगों को छांट कर अलग रखा था, वाकी जो घाघ थे, और मंझे हुए खिलाड़ी थे उनकी धुलाई जारी रही…

फिर मेने अपने अगले स्टेप के बारे में भैया को जब बताया, वो आँखें चौड़ी करके बोले – वाउ ! प्लॅनिंग तो सॉलिड है यार,… लेकिन संभलकर मामला कहीं उल्टा ना पड़ जाए…

मेने कहा – आप बेफिक्र रहो, बस इसी तरह पोलीस की हेल्प देते रहना, जल्दी ही हम इन्हें नेस्तनाबूद करके इस शहर को अपराध मुक्त कर सकते हैं…

भैया – यार ! लेकिन ये कमिशनर भेन का लॉडा मुश्किलें खड़ी करता जा रहा है… आज भी बौराया हुआ उल्टी-सीधी बकवास कर रहा था…

मे – ये अब तक आपके द्वारा लिए गये दोनो आक्षन की रिपोर्ट आइजी/डीआइजी और होम सीक्रेटरी को भेज दो, अपने आप ठंडा हो जाएगा… मेरे ख्याल से तो ये आपको इम्मीडियेट बॅक-अप करके रखना चाहिए था…

वो – ये तूने बिल्कुल सही कहा, हां ये ठीक रहेगा, मे अभी रिपोर्ट भेजता हूँ, और हिंट भी कर दूँगा, कि लोकल प्रेशर है, केस को दबाने के लिए…अब देखता हूँ इस हरामी, साले कमिशनर को.

कुछ और इधर-उधर की बातें करके मे कोर्ट चला आया……………..!

शाम को 4 बजे असलम के मोबाइल पर उसे एक मेसेज के साथ एक वीडियो क्लिप का लिंक मिला… जब उसने उसे खोल कर देखा तो उसकी आँखें चौड़ी हो गयी…

गुस्से से उसका चेहरा तमतमा उठा…अपने जबड़ों को कसते हुए वो अपने आप से ही गुर्राया….तेरी ये मज़ाल भोसड़ी के… हमें ही ट्रॅप करना चाहता है…

अब देख मे तेरी कैसे माँ छोड़ता हूँ मदर्चोद…

इससे पहले कि असलम गुस्से में कोई कदम उठाता, या किसी को फोन करता, उसका मोबाइल बजने लगा…

उसने कॉल पिक करके कान से लगाया और बोला – हां भाई बोल…

दूसरी तरफ से क्या बातें हुई… वो उसके जबाब में बस हां, हूँ, ठीक है… ऐसा ही करेंगे जैसे शब्द बोलता रहा…फिर कुछ देर के बाद कॉल एंड हो गयी..

उसने फिर किसी को एक कॉल की, उधर से कॉल कनेक्ट होने के बाद असलम ने उसको बोला…

हां भाई, मुझे तुझसे अर्जेंट काम है, आज शाम को 9 बजे **** रोड पर जो बंद फॅक्टरी पड़ी है, उसमें अजाना…

उधर से कुछ बोला गया… उसके जबाब में असलम ने कहा – वो मे अभी सीक्रेट रखना चाहता हूँ, मुझे लगता है, हमारे खिलाफ कोई बहुत बड़ी साजिश हो रही है…

तू समझ रहा है ना भाई… तेरे अलावा मे किसी पर फिलहाल भरोसा नही कर सकता..

उधर से - @@@@@

असलम – ओके मिलते हैं फिर, ठीक 9 बजे , बाइ…

फिर उस बंदे को फोन लगाया जहाँ से पहले उसे फोन आया था, और उसको दूसरे के साथ हुई बात-चीत का पूरा व्योरा दिया…

उधर से उसे कुछ हिदायत भी दी गयी… जिसे वो गौर से सुनता और समझता रहा..

फिर असलम ने उसे कहा – ठीक है मे अकेला ही मिलता हूँ उससे, ज़रूरत पड़े तो संभाल लेना…! ओके बाइ…​
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