Update 55
उस्मान ने उसकी कमर में हाथ डालते हुए मुझे सामने पड़ी सोफा चेयर पर बैठने का इशारा किया…
मे आज कामिनी का ये रूप देख कर दंग रह गया था, साली कितनी बड़ी छिनाल औरत है ये, अपने बाप की उमर के आदमी से चुदवाती है…, वो भी दो-दो लंड एक साथ लेकर,
क्या पता और ना जाने कितने लंड लेती होगी साली कुतिया…, क्या पता उसके बाप को भी ये सब पता हो, या हो सकता है वो भी अपनी रंडी बेटी को ठोकता हो…!
ऐसी छिनाल कुतिया मेरे घर की बहू हरगिज़ नही हो सकती, अच्छा हुआ भैया इससे छुटकारा पा रहे हैं…!
शायद यही कारण होगा, जो ये इस ऑर्गनाइज़ेशन की चीफ है…उस्मान जैसे गुंडे को अपनी चूत के जाल में फँसा रखा है इस रंडी ने…
मे अपनी इन्ही सोचों में डूबा हुआ था, कि तभी उस्मान की आवाज़ सुन कर मेरी तंद्रा भंग हुई…
हां ! तो जोसेफ मियाँ ! और सूनाओ, अभी कहाँ से आ रहे हो भाई…?
मेने अपने विचारों को विराम देते हुए कहा – सीधा एर पोर्ट से ही चला आ रहा हूँ चाचा जान… अब आपसे वादा जो किया था.. तो आना पड़ा…
वरना आप तो जानते ही हैं, असलम के जाने के बाद मेरा इस शहर से दिल ही उखड़ गया है….!
वो – हां तुम सही कह रहे हो… लेकिन बेटे, जाने वाले तो चले गये, अब ये जिंदगी थम तो नही सकती…, अपने जवान बेटे के गम में कुछ दिन तो मेरा भी कुछ करने का कोई मूड नही था…
लेकिन ऑर्गनाइज़ेशन को चलाना भी तो ज़रूरी है, वरना इंटरनॅशनल लेवेल पर इतने सारे दुश्मन पैदा हो जाएँगे, वो वैसे ही जीने नही देंगे हमें…
फिर उसने कामिनी की तरफ इशारा करते हुए कहा – इन्हें तो तुम जानते नही होगे… हाहाहा…कैसे जानोगे..? पहली बार जब मिले थे, तब ये नकाब में थी…
दरअसल ये हमारे ग्रूप की चीफ हैं, कामिनी… अपने पार्ट्नर एमएलए साब की बेटी…
मे – ओह… तभी मे कहूँ, कि ये मेरा नाम कैसे जानती हैं, जबकि मे तो इनसे पहले कभी नही मिला…
फिर मेने भी बड़ी गरम जोशी दिखाते हुए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा – नाइस टू मीट यू में… सॉरी ! मे आपको पहचान ना सका…
वो खिल खिलाकर हँसने लगी, और मेरा हाथ अपने दोनो हाथों के बीच थामकर बोली – इट्स ओके, जब तुम्हें पता ही नही था, तो सॉरी का तो कोई सवाल ही पैदा नही होता…, वैसे तुम्हारे साथ सेक्स करने में मज़ा बहुत आया मुझे…!
काफ़ी दमदार हथियार है तुम्हारा, वो मेरे लंड की तरफ इशारा करके बोली - इसे देखकर मुझे अपने देवर की याद आ गयी, वो भी साला भडुआ ऐसी ही मस्त चुदाई करता है…,
मेरी गान्ड का ढक्कन पहली बार उसी मदर्चोद ने खोला था, दो दिन तक बिस्तर से हिल नही पाई थी मे…
खैर छोड़ो उन बातों को.., वो अतीत से बाहर आकर मेरा हाथ अपने हाथ मे लेकर देर तक उसे सहलाती रही, जैसे जानना चाहती हो, कि ये हाथ उसने पहले भी स्पर्श किया है…
ये बात मेरे दिमाग़ में क्लिक होते ही मेने अपना हाथ खींच लिया…,
वो अभी भी मेरी आँखों में ही झाँक रही थी, जो उसने पहले कभी नही देखी थी, सिवाय उस एक मुलाकात के.
तभी उस्मान ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए कहा – जोसेफ ! मेने तुम्हें एक ख़ास काम के लिए यहाँ बुलाया है…
जैसा कि तुमने सुना ही होगा, कि असलम के साथ साथ, हमारे और भी नौजवान मारे जा चुके हैं जिनमें एक कामिनी का चचेरा भाई सन्नी भी था....
और अब हमारे पास फील्ड वर्क के लिए कोई भरोसे का आदमी नही है, तो हम चाहते हैं, कि ये ज़िम्मेदारी तुम सम्भालो, क्योंकि तुम्हारी समझ बुझ और दिलेरी के हम कायल हैं…
मेने असमर्थता दिखाते हुए कहा – मे कैसे चाचा जान, मेरा इस तरह के धंधे का कोई एक्सपीरियेन्स नही है, मे तो बस 420 का मास्टर हूँ… अब इस काम के लिए मे आपकी किस तरह से मदद कर सकता हूँ..?
वो – यही तो तुम्हारी ख़ासियत हमें पसंद है, देखा जाए तो इस काम में भी 420 आदमी की ही ज़रूरत है जो जोश के साथ साथ अपने होश भी कायम रख सके…
असलम और उसके दोस्तों में इसी चीज़ की कमी थी, जिसका हम सभी को ख़ामियाजा भुगतना पड़ा..
अपनी बातों के जाल में फँसाना और अपना काम निकलवाना ये कला तुम्हारे अंदर अच्छी तरह से है, उपर से तुम दिलेर भी हो…
मेने अपनी विरोधात्मक बात जारी रखते हुए कहा – लेकिन में पर्मनेंट्ली एक जगह रुक नही सकता.., तो इस धंधे में या यहाँ भी रुक नही पाउन्गा..,
क्योंकि मेरे पैरों में बहुत बड़ा चक्कर है जो मुझे एक जगह टिकने ही नही देता…
मेरी इस बात पर उस्मान मुस्करा उठा और बोला – कोई बात नही, कुछ दिनो के लिए ही सही…, फिर उसने कामिनी की तरफ देखा और बोला- अब तुमसे क्या छिपाना…
दरअसल एक हफ्ते के बाद हमारी एक बहुत बड़ी डील विदेशी क्लाइंट के साथ होने वाली है… हम चाहते हैं, इस डील की सारी देख रेख तुम करो…
उसके बाद भी अगर हमारे साथ काम करना चाहो तो हमें बड़ी खुशी होगी…
मेने अहसान सा जताते हुए कहा – ठीक है चाचा जान ! अब अगर आप मुझ पर इतना भरोसा करते हैं, तो मे आपकी इस डील होने तक ज़िम्मेदारी संभालने को तैयार हूँ, उसके बाद मे ये शहर छोड़ कर चला जाउन्गा… लेकिन इस काम के लिए मुझे 10 लाख रुपये चाहिए…
वो एकदम चोन्क्ते हुए बोला – 10 लाख…. ? ये बहुत ज़्यादा नही हैं…?
मेने अपने कंधे उचकाते हुए कहा – कोई बात नही, मेरी कोई ज़बरदस्ती नही है… मे जैसे यहाँ आया था, वैसे ही चुप चाप निकल जाउन्गा किसी को इस मुलाकात की कानो-कान भनक भी नही होगी…
वो एकदम से बोल पड़ा – हमें मंजूर है…! उस्मान की बात सुनकर कामिनी सवालिया नज़रों से उसकी तरफ देखने लगी…
उस्मान ने आँखों के इशारे से उसे मेरी माँग मान लेने को कहा… तभी मे बोल पड़ा…
5 लाख मुझे अभी चाहिए… और वाकी के 5 जिस दिन आपका काम पूरा हो जाएगा उस दिन, और फिर मे यहाँ से चला जाउन्गा…..
उस्मान चोंक कर मेरी तरफ देखते हुए बोला – क्या तुम्हें हमारे उपर भरोसा नही है..?
मेने कहा – इसमें भरोसे की कोई बात नही है चाचा, ये मेरे काम करने का उसूल है…
वो – ठीक है ! फिर उसने इंटरकम पर किसी को अंदर आने को कहा… और अपने सूटकेस से निकाल कर मुझे 5 लाख रुपये निकाल कर पकड़ा दिए…
इतने में डोरबेल बजी, कामिनी ने एक बार फिर उठकर गेट खोला… इस बार जो शख्स कमरे में दाखिल हुआ वो एक काला सा लंबा तगड़ा.. पहलवान सरीखा आदमी था..
उस्मान – जग्गा ! ये जोसेफ है, आज से उस मिशन का सारा काम इनकी देख रेख में ही होगा… ये जैसा कहे वैसा ही करना है तुम्हें…
इनको अपने साथ ले जाओ, और सारी बातें डीटेल में समझा दो, उसके बाद इनके हिसाब से काम करवाना है तुम्हें… समझ गये…
जग्गा गर्दन हिलाकर वापस लौटने लगा… तभी उस्मान मुझसे से बोला – जाओ जोसेफ, जग्गा.. तुम्हें सब कुछ समझा देगा…
याद रखना… इस काम में कोई ढील नही होनी चाहिए… ये डील जितनी शांति और गोपनीया तरीके से निपट जाए, उतनी ही तुम्हारी काबिलियत साबित होगी…
मे – अब आप निश्चिंत हो जाइए चाचा जान… किसी को कानों कान भनक भी नही होगी… और ये डील हो चुकी होगी…इतना कह कर मे भी जग्गा के पीछे – 2 चल दिया…
कामिनी गेट बंद करने हमारे साथ गेट तक आई…, मेरे हाथ में एक कार्ड थमा कर बोली – कल इस पते पर आ जाना…
मे उसकी तरफ देखने लगा, तो उसने एक सेक्सी मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेर दी…
मेने उसके हाथ से कार्ड लिया, और चुप चाप कमरे से बाहर निकल गया……..!
प्लान के मुतविक, विदेशियों को देशी ड्रग्स और हथियार हमें सप्लाइ करने थे, जिसके एवज में कुछ विदेशी ड्रग्स और पैसा वो देने वाले थे…
ये डील उसी होटेल के बेसमेंट में होनी थी, जहाँ मे पहली बार गया था…
जग्गा के साथ मिलकर मेने उस जगह को अच्छी तरह से रेकी किया, तब मुझे पता लगा कि पोलीस की रेड के बाद अब सारा माल असबाब कहाँ छुपा रखा था…
दरअसल रेड के दौरान जो माल पकड़ा गया था, वो तो कुछ भी नही था, सारा माल तो दूसरी जगह पर सुरक्षित ही था, जिसकी शायद खबर असलम और उसके दोस्तों को भी नही थी…
जग्गा मुझे उसी बेसमेंट वाले हॉल से एक गुप्त अंडरग्राउंड के रास्ते से ले गया…
वहाँ से कोई आधा – पोना किमी की दूरी पर ही एक अंडर ग्राउंड बहुत बड़ा सा गोडाउन जैसा था, जिसमें ये सारा दो नंबर के धंधे वाला समान भरा पड़ा था,
यहाँ बस कुछ ही लोग थे जो सिर्फ़ इन चीज़ो को अरेंज करते थे… यहीं से सारा माल उन लोगों को सप्लाइ होना था…
वहाँ की सारी व्यवस्था चेक करने के बाद जग्गा उसी रास्ते से आगे ले गया…
ये काफ़ी लंबा और सकरा सा रास्ता था, जिसमें से एक साथ में एक ही आदमी कुछ समान के साथ ही आ-जा सकता था…
चलते – 2 हमे कोई 10 मिनिट निकल गये… तब जाकर उपर को जाने के लिए सीडीयाँ नज़र आई…
गोडाउन के बाद से इधर के रास्ते में ज़्यादा रोशनी भी नही थी, बस कहीं – 2 छोटे -2 बल्ब टिम टीमा रहे थे, जिससे रास्ता देखने में परेशानी ना हो…
उन सीडीयों को चढ़ कर हम उपर पहुँचे… जहाँ एक छोटा सा प्लेटफॉर्म था, जिसपर एक साथ 4 आदमी से ज़्यादा खड़े नही हो सकते थे…
सामने की दीवार पर जग्गा ने एक बटन जैसा दवाया…. हल्की सी गड़गड़ाहट के साथ ही सामने की दीवार एक तरफ को सरकती चली गयी… और अब उसमें 4 फीट चौड़ा दरवाजा सा बन गया…
उस दवाजे को पार करके हम जैसे ही बाहर निकले… मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी….
ये उसी फॅक्टरी का सबसे पीछे वाला हिस्सा था, जो वहाँ काम करनेवाले
मजदूरों का चेंजिंग रूम के तौर पर इस्तेमाल होता था…
उस रूम में आते ही दरवाजे के साइड में ही एक पुरानी सी लकड़ी की अलमारी जैसी थी, जिसमें एक पुराना सा ताला लगा हुआ था…
जग्गा ने जेब से चाबी निकाल कर वो ताला खोला… और उस अलमारी में हाथ डाल कर कुछ बटन जैसा दबाया…और वो दरवाजा फिरसे बंद हो गया…
अब पहली नज़र में कोई भी नही कह सकता था, कि यहाँ कोई दरवाजा भी हो सकता है…
मेने जग्गा से पुछा… मेरी नालेज के मुतविक, ये फॅक्टरी तो पोलीस ने सीज़ कर दी थी, फिर यहाँ अभी भी कैसे ये सब चलता है ?
जग्गा – अरे भाई… पब्लिक और प्रशाशन की नज़र में तो फॅक्टरी अभी भी सीज़ ही है, और अब हमारा भी यहाँ कोई माल नही रखा जाता,
अब तो बस इसे हम समान गोडाउन तक पहुँचने तक के रास्ते के तौर पर ही इस्तेमाल करते हैं, जो इसके मेन गेट की वजाय, पीछे वाले गेट से होता है…
वहाँ का सब जयजा लेकर हम फिर वापस उसी रास्ते से होटेल के बेसमेंट में लौट आए…
बेसमेंट से एक और सीक्रेट रास्ता था, जो सीधा होटेल की पार्किंग में निकलता था, ये वही रास्ता था, जिससे कामिनी उस दिन एंटर हुई थी…
सारे रास्तों का डीटेल और फोटो वगरह लेने के बाद मेने जग्गा को बुलाया… और उसे कुछ दिशा निर्देश देने के बाद, मे अपने घर लौट आया…
अब मे अपने घर से कुछ दूर पहले ही अपने सीक्रेट नंबर को इनॅक्टिव कर देता था, जिससे कोई मेरी लोकेशन ट्रेस ना कर सके…
घर लौटते – 2 मुझे काफ़ी रात हो चुकी थी, फिर भी मेने उसी समय कृष्णा भैया को फोन लगाया…!
रात के 11:30 को मेरा कॉल देख वो समझ गये कि कुछ तो अर्जेंट है, सो बिना समय गँवाए उन्होने मेरा फोन पिक कर लिया…
मेने उनसे इसी समय मिलने को कहा… उन्होने मुझे अपने घर पर ही बुला लिया…
मुझे अपने असली रूप में आने के बाद उनके घर जाने में कोई प्राब्लम नही थी, सो फटाफट गाड़ी ली और 10 मिनिट के बाद मे उनके बंगले पर था…
मेने उन्हें सारी डीटेल्स बता दी, और डील वाले दिन कैसे, कब, क्या करना है वो सब डिसकस करने के बाद मेने थोड़ा मूड फ्रेश करने की गर्ज से भैया को छेड़ते हुए कहा…
मे – भैया ! वैसे आजकल आप काफ़ी खुश रहने लगे हो… क्या कोई खास वजह..?
वो कुछ देर मेरे चेहरे की तरफ देखते रहे, फिर अचानक से उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी, और बोले –
खुश रहने की तो बहुत बड़ी वजह है भाई… क्या तुझे नही पता…?
मे – मुझे कैसे पता होगा, आपने कभी कुछ बताया ही नही ना !
वो – देख सबसे बड़ी वजह ये है, कि अब मे उस चुड़ैल से हमेशा के लिए छुटकारा पा रहा हूँ…! ये वजह ही काफ़ी है खुश होने के लिए…
मे – फिर भैया… उसके बाद का भी कुछ सोचा होगा ना आपने… कोई और लड़की है जो मेरी भाभी बन सके…
वो – नही अभी तो नही है, वो बाद में देखा जाएगा… पहले एक बार उसका मामला सुलट जाए फिर देखेंगे… जल्दी क्या है यार…!
उनकी बात सुन कर मेरे चहरे पर मुस्कान तैर गयी… जिसे देख कर वो बोले..
अब तू क्यों मुस्करा रहा है..? कोई बचकानी बात करदी क्या मेने…?? या यहाँ भी अपना वकीलों वाला दिमाग़ चलाने की फिराक में है…!
मेने कहा - मे ये सोच कर मुस्करा रहा हूँ… कि आप नानी के आगे ही ननिहाल की बातें कर रहे हो…!
वो – क्या मतलब….? कहना क्या चाहता है तू…?
मे – छोड़िए ये बातें, और ये बताइए…प्राची को तो जानते होंगे ना आप..?
प्राची का नाम सुनते ही उन्होने झटके से मेरी तरफ देखा, मेरी मुस्कान और गहरी हो गयी… जिसे देख कर उनकी धड़कनें और बढ़ गयी…
अपनी धड़कानों को संयत करते हुए बोले – वहीं प्राची ना जो रेखा की छोटी बेहन है… !
मे – हां ! मे उसी प्राची की बात कर रहा हूँ.., और आपको तो पता ही है, कि उसने अपनी बेहन के क़ातिलों को अजाम तक पहुँचाने में कितनी एहम भूमिका निभाई थी… मेरे साथ..
वो – हां ! हां ! मुझे सब पता है, लेकिन अब उससे तेरा क्या मतलब है.. ?
मे – वैसे वो कैसी लगती है आपको…?
वो – अच्छी है, सुन्दर है… लेकिन तू ये सब क्यों पुछ रहा है, वैसे वो आई थी, मुझे थॅंक्स बोलने…!
मे – उसे मेने ही भेजा था, आपके पास… थॅंक्स कहने को…! तो बस उसने थॅंक्स ही कहा आपको, और कुछ नही…?
वो – और क्या कहेगी… ? क्या कुछ और कहने वाली थी…?
मे – नही वो नही…! आप उससे कहने वाले थे… है ना ! और कह भी चुके हैं…!
वो झटके से बोले – क्या…? क्या कह चुका हूँ… ?
मे – यही कि वो आपको अच्छी लगती है, आप उससे शादी करना चाहते हैं… मेरी भाभी बनाना चाहते हैं… हहहे…. ब.बोलीईए…सही कह रहा हूँ ना मे..?
भैया बुरी तरह शर्मा गये.. और नज़रें झुका कर बोले – हां ये सच है.. लेकिन तुझे ये सब कैसे पता है..? क्या उसने सब कुछ बता दिया तुझे…?
मे – नही..उसने तो कुछ नही बताया…, लेकिन उसे खुश देख कर मे सब समझ गया.. और उससे पुच्छ लिया…, अब वो भला मुझे कैसे टाल सकती थी…
लेकिन उसे झटका तब लगा, जब मेने उसे भाभी कहा…हहहे…फिर मेने उसे बताया कि आप मेरे बड़े भैया हैं…
इतना कह कर मे भैया के गले लग गया… वो भी भावुक हो गये थे, और उनकी आँखों से दो बूँद पानी की टपक कर मेरे कंधे पर पड़ी…
मेने उन्हें शान्त्वना देते हुए कहा – अब आपकी खुशी आपसे ज़्यादा दूर नही है……, फिर उनके गले से लगे हुए ही कहा –
वैसे अब वो अपनी माँ और छोटे भाई के साथ मेरे फ्लॅट में ही शिफ्ट हो गयी है.., कभी काम पड़े तो आ जाना..,
कुछ देर वो विश्मय से मुझे देखते रहे, फिर शरमा कर गर्दन झुका कर बोले – तू और क्या-क्या करेगा मेरे लिए…?
मे बस अपने भैया को खुश देखना चाहता हूँ, ये कहकर मेने उन्हें एक बार फिर कॉनग्रेट किया और अपने घर चला आया…..!!!
रात को लेट सोने की वजह से दूसरी सुबह मेरी आँख देर से खुली… फ्रेश व्रेश होकर अपनी नियमित एक्सर्साइज़ की, नाश्ता किया, और फिर घर फोन करके बता दिया कि मे इस हफ्ते घर नही आ पाउन्गा…
अभी मे अपने ऑफीस के लिए निकालने ही वाला था कि मेरा सेल फोन बजने लगा…
स्क्रीन पर नंबर देखते ही मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी… और मेने फोन पिक किया…
मे – हेलो भाभी जी… कैसी हैं आप…?
वो – क्या..? मुझे तुम भाभी क्यों बोल रहे हो…?
मे – अरे देविजी ! अब हमारे यहाँ भाभी की फ्रेंड को भाभी ही कहते हैं ना..! या कुछ और नाम दिया गया है आपके मॉडर्न सोसाइटी में…?
कोई बात नही ! अगर आपको पसंद नही है, तो आप ही बता दो, मे आपको क्या कहूँ ?
वो – चलो ठीक है ! जो तुम्हारी मर्ज़ी हो बोलो…. ! वैसे काफ़ी समय से कोई खैर खबर नही, तो सोचा देखूं तो सही अपना हीरो कहाँ है आजकल…?
मे – अरे श्वेता जी, आप भी क्या बात करती हो..? अब मे कोई अडानी या अंबानी तो हूँ नही जो पता ना चले कि कहाँ हैं… अपना तो यही एक ठिकाना है, कोर्ट के चक्कर लगाते रहते हैं…!
श्वेता – अभी अगर फ्री हो तो मेरे ऑफीस आ सकते हो..? थोड़ा अर्जेंट काम था…!
मे – चलो ठीक है, मे एक घंटे में आपके ऑफीस पहुँचता हूँ… बाइ..!
एक घंटे के बाद मे श्वेता के आलीशान ऑफीस के शानदार कॅबिन में उसके सामने बैठा था…
वो एक टॉप और जीन्स में कमाल लग रही थी, टाइट टॉप में उसकी चुचिया, बाहर को झाँक रही थी,
उपर से वो मंद मंद मुस्कुराती हुई… टेबल पर अपने दोनों हाथ टिकाए झुकी हुई थी, जिससे उसके 36” साइज़ के टाइट मम्मे मुझे और ज़्यादा ललचा रहे थे…
बाबजूद इसके मेने उसके मम्मों पर नज़र गढ़ाए हुए, काम की बात पर आते हुए कहा – हां जी श्वेता जी कहिए… कैसे याद किया इस ग़रीब को…?
वो मेरी नज़रों को अच्छे से भाँप रही थी..मेरे मज़े लेते हुए खिल-खिलाकर हस्ते हुए बोली – हहेहहे…. तुम कब से ग़रीब हो गये, हॅंडसम ?
फिर थोड़ा सीरीयस होते हुए बोली – खैर छोड़ो ये मज़ाक मस्ती… दरअसल मेने तुम्हें इसलिए बुलाया है, कि हमारी फर्म को एक लीगल आड्वाइज़र की ज़रूरत है,
पहले जो गुप्ता जी थे वो अब रिटाइर हो रहे हैं…तो मेने सोचा तुम तो अपने ही आदमी हो, क्यों ना ये ज़िम्मेदारी तुम्हें ही सौंप दी जाए…
वैसे भी तुम भगवान दास गुप्ता जी का काम तो संभालते ही हो, तो हमारा भी संभाल ही लोगे… , जो उनसे लेते हो हमसे भी ले लेना…!
मे – पैसो की कोई बात नही है, थोड़ा समय का अभाव है, फिर भी मे आपके ऑफर पर विचार ज़रूर करूँगा… जैसा होगा मे आपको जबाब देता हूँ…!
वो अपनी जगह से उठ खड़ी हुई, मेरे पीछे आकर उसने अपने मम्मे मेरे सर पर टिका दिए और अपनी बाहें गले में डालकर बोली…
उस दिन तुम्हारे साथ सेक्स करके, मुझे इतना अच्छा लगा, कि अभी तक उस मोमेंट को भूल नही पाई हूँ… क्या फिरसे वो मोमेंट मिल सकता है…?
मेने हँसते हुए उसकी एक बाजू को पकड़ा, रिवॉल्विंग चेयर को घूमाकर उसे झटके से अपनी गोद में बिठाया, और उसके लिपीसटिक से पुते होठों को चूमकर बोला….
तो असल मुद्दा ये है, वैसे मेरे साथ सेक्स में मज़ा आया तुम्हें…?
वो – बहुत से भी ज़्यादा… ! जब भी वो लम्हे याद आते हैं, शरीर में एक अनूठी सी मस्ती भरने लगती है… कहकर उसने मेरे होठों को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी…
पहली बार जब मेने श्वेता को चोदा था, तो उसकी वीडियो क्लिप बना ली थी, और उसे उसके भाई को दिखाकर पोलीस का मुखबिर बनाया था,
जिसकी इन्फर्मेशन के आधार पर ही असलम और उसके साथियों को सदर रोड पर घेरा था…
मेने श्वेता के टॉप के उपर से उसकी चुचियों को मसल दिया… वो बुरी तरह से सिसियाकर अपनी गान्ड मेरे लंड पर रगड़ने लगी…
मे – जानेमन ! यहीं चुदने का इरादा है क्या…?
उसने तपाक से कहा – हां ! अब और सबर नही कर सकती, ये कह कर वो मेरी गोद से उठ गयी, और मेरा हाथ थाम कर सोफे पर लेजाकर धक्का दे दिया…
मे धप्प से सोफे पर गिरा, वो अपने कॅबिन का दरवाजा लॉक करने चली गयी…
जब तक वो लौट कर आई, मेने अपनी जीन्स निकाल दी थी, मेरे सामने खड़े होकर उसने भी पहले अपना टॉप निकाल दिया, और उसके बाद बड़े नज़ो अदा से अपनी जीन्स खोलने लगी…
जीन्स को निकालते हुए वो घूम गयी, अब उसकी चौड़ी चकली गान्ड मेरी तरफ थी, वो धीरे – 2 अपनी जीन्स को नीचे खिसका रही थी,
जैसे ही उसकी जीन्स उसकी गान्ड की गोलाईयों तक पहुँची… उसकी पेंटी जिसकी पीछे से बस एक डोरी जैसी, जो उसकी गान्ड की दरार में कही गुम हो गयी थी,
ऐसा लगता था, जैसे उसने पैंटी पहनी ही ना हो…
उसकी गान्ड की गोलाईयों को देखते ही मेरा लंड उच्छल कूद करने लगा, वो मेरी छोटी सी फ्रेंची को फाड़ने पर उतारू होने लगा था…
मेने उसे हाथ से दबा कर नीचे को किया, और पूचकार कर बोला – सबर कर बेटा, ये भी मिलेगी तुझे…
एक हाथ से उसकी चिकनी, चौड़ी चकली मुलायम गान्ड को मसलते जा रहा था…
श्वेता अपनी जीन्स निकाल कर मेरी तरफ घूम गयी, और मुस्कराते हुए बोली – किससे बात कर रहे थे…?
मेने उसके चिकने पेट को सहलाते हुए कहा – अपने पप्पू को समझा रहा था, तुम्हारी गान्ड देख कर उच्छल रहा था…
श्वेता ब्रा और एक मिनी पैंटी, जो उसकी चूत के मोटी – 2 फांकों को भी ढक पाने में असमर्थ दिख रही थी, पहने मेरे आगे बड़ी अदा से बैठ गयी और मेरे लंड को सहला कर बोली …
लाओ मुझे देखने दो ये क्या कहता है…और उसने उसे बाहर निकाल कर सहलाते हुए बोली – क्यों रे बदमाश ! मेरी गान्ड तुझे ज़्यादा पसंद है…?
श्वेता की बात सुनते ही उसने एक और झटका खाया… उसकी हरकत देख कर श्वेता खिल-खिलाकर हसते हुए बोली – ये तो वाकई में बहुत शरारती है…और उसने उसे ज़ोर से मसल दिया….
आहह……….राणिि….आराम से… मेने कराह कर कहा… तो उसने बड़े प्यार से उसे चूमा और फिर अपनी जीभ निकाल कर सुपाडे को चाट लिया…
उसके बाद अपने होठों को गोल करके उसने उसे अपने मुँह में ले लिया…
श्वेता मेरे लंड को मन लगा कर चूस रही थी… उसके मुलायम रसभरे..
लाल-2 होठों की मालिश से मेरा लंड बुरी तरह फूल गया…, उसके होठों की लाली ने मेरे लंड को भी सुर्ख कर दिया…
उत्तेजना के मारे मेरे चेहरे और लंड की नसें दिखने लगी…..
मेने अपने हाथ का धक्का देकर श्वेता को अलग किया, और फिर उसे सोफे पर पटक कर किसी भूखे भेड़िए की तरह उस पर टूट पड़ा…
एक झटके से उसकी ब्रा को उसके बदन से अलग कर दिया… और उसके खरबूजे जैसे चुचियों को मसलने, चूसने, काटने लगा…
वो हाई..हाई.. करने लगी… मादक सिसकारीओं के बीच उसकी कराह भी फुट पड़ती…जब मे ज़ोर से उसके निपल्स को काट लेता…
जब एक हाथ नीचे ले जाकर मेने उसकी चूत को मुट्ठी में कसा… तो वो बुरी तरह से मेरे से लिपट गयी……
प्लीज़ अंकुश…. अब चोदो मुझे… वरना में मर जाउन्गि…आहह….तुमने मुझे पागल कर दिया है …
मेने देर ना करते हुए, उसकी पैंटी को एक साइड में किया, और अपना सख़्त रोड हो चुका लंड उसकी रसभरी चूत में ठूंस दिया…..
कामुकता में अंधी हो चुकी श्वेता ने,…. अपनी कमर को उछल दिया लंड लेने के लिए.. उपर से मेरा धक्का…
सर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर………..से पूरा लंड एक ही झटके में उसकी चूत को फैलाता हुआ…. जड़ तक घुस गया…. !
श्वेता के मुँह से एक तेज दर्द भरी कराह निकल गयी… वो अच्छा था, कि उसका कॅबिन साउंड प्रूफ था… वरना, सारा स्टाफ उसके कॅबिन में इकट्ठा हो चुका होता….
मररर्ररर…डाला तुमने मुझे…. फाड़ दी मेरी चूत…उफफफ्फ़….जालिम कहीं के…वो कराह कर शिकायत करते हुए बोली…
मे – तुमने अपनी गान्ड क्यों उपर की… मे तो डाल ही रहा था ना…!
वो शर्मीली मुस्कराहट के साथ बोली – हहहे…मुझसे सबर नही हो रहा था…
फिर मेने उसके होंठो को चूमते हुए अपना आगे का कार्यक्रम शुरू कर दिया…
श्वेता मस्त होकर चुदने लगी… मेने भी उसको निराश नही किया, और जम कर उसकी ओखली की कुटाई करने लगा….
एक बार उसकी चूत चोदने के बाद मेने उसकी गान्ड मारने की इच्छा जताई, जो उसने थोड़ी सी ना- नुकुर के बाद मान ली…!
उसकी 38” की भारी भरकम गान्ड मारने में मुझे बहुत मज़ा आया, शुरू में तो उसे थोड़ा तकलीफ़ हुई, लेकिन कुछ देर के बाद तो, पुछो मत….
अपने दोनो तरबूजों को हिला-हिलाकर वो मेरे मूसल को अपनी गान्ड में लेने लगी..
उसकी गान्ड के पाटों को हिलता देख, मुझे और जोश आ गया, और मेने उसका सर सोफे से सटा कर उसकी गान्ड को एकदम उर्ध्वकार करके लंड पेलने लगा…
आख़िर में जब मेने अपना वीर्य उसकी गान्ड में उडेल दिया, और अपना लंड बाहर निकाला,
तो उसकी गान्ड का होल, एकदम सर्क्युलर होल जैसा बन गया… वो अब किसी मोटे से चूहे के बिल की तरह दिख रहा था....
श्वेता के सभी छेदो को खोलने के बाद, उसे फिरसे जल्दी मिलने का वादा करके मे वहाँ से निकल लिया….!
श्वेता के ऑफीस से निकल कर मेने अपने सीक्रेट नंबर को आक्टिव किया, देखा तो उसमें कामिनी की बीसियों मिस कॉल थी…
मे दरअसल अब उससे मिलना ही नही चाहता था, वो साली मुझे अब एक रंडी जैसी लगने लगी थी, घिंन सी होने लगी थी उससे…
लेकिन काम पूरा होने तक तो वो मेरी मालिकिन ही थी, सो मेने उसे कॉल बॅक कर लिया…
कनेक्ट होते ही, वो पाजामी से बाहर होकर बोली –
कहाँ मर गये थे तुम, कब्से नंबर ट्राइ कर रही हूँ, कल से तुम्हारा कोई अता-पता ही नही है…
मेने जोसेफ की आवाज़ में ही कहा – सॉरी में ! मे डील की व्यवस्था करने में ही लगा हूँ… बोलिए क्या काम था, मुझसे..?
वो – मेने तुम्हें आने को बोला था, आए क्यों नही..?
मे – सॉरी मेडम ! काम में बिज़ी था, इसलिए नही आ सका… वैसे आपको मुझसे काम क्या था, वो तो बोलिए…?
वो – तुम यहाँ आओ तो सही, बैठकर कुछ देर गॅप-सॅप करेंगे… मुझे तुम्हारे साथ बात करने का मन हो रहा है…
मे – तो वो आप फोन पर ही कर लीजिए, क्योंकि मे अब काम पूरा होने तक किसी से पर्सनली नही मिल सकता, ये मेरा उसूल है…, और ना ही मेरे पास इतना वक़्त है जो आपके साथ गॅप-शॅप कर सकूँ…
मेरी बात सुनते ही वो गुस्से से भिन्ना उठी, और झल्लाते हुए बोली – गो टू हेल…. और अब तुम इस मिशन पर भी काम नही कर रहे हो… समझे…
मे – ठीक है में जैसा आप बोलें, मे अभी उस्मान चाचा को मना कर देता हूँ…! मुझे कोई प्राब्लम नही है…
वो मेरी बात सुनकर हड़बड़ा कर बोली – नही ! नही ! उनसे कुछ कहने की ज़रूरत नही है, चलो अच्छा ! खैर ये काम होने के बाद तो मिलोगे ना…!
मेने मन ही मन कहा… साली उसके बाद मिलने की ज़रूरत ही कहाँ पड़ेगी… लेकिन प्रतय्क्छ में बोला – जी बिल्कुल ! पक्का !
मे आज कामिनी का ये रूप देख कर दंग रह गया था, साली कितनी बड़ी छिनाल औरत है ये, अपने बाप की उमर के आदमी से चुदवाती है…, वो भी दो-दो लंड एक साथ लेकर,
क्या पता और ना जाने कितने लंड लेती होगी साली कुतिया…, क्या पता उसके बाप को भी ये सब पता हो, या हो सकता है वो भी अपनी रंडी बेटी को ठोकता हो…!
ऐसी छिनाल कुतिया मेरे घर की बहू हरगिज़ नही हो सकती, अच्छा हुआ भैया इससे छुटकारा पा रहे हैं…!
शायद यही कारण होगा, जो ये इस ऑर्गनाइज़ेशन की चीफ है…उस्मान जैसे गुंडे को अपनी चूत के जाल में फँसा रखा है इस रंडी ने…
मे अपनी इन्ही सोचों में डूबा हुआ था, कि तभी उस्मान की आवाज़ सुन कर मेरी तंद्रा भंग हुई…
हां ! तो जोसेफ मियाँ ! और सूनाओ, अभी कहाँ से आ रहे हो भाई…?
मेने अपने विचारों को विराम देते हुए कहा – सीधा एर पोर्ट से ही चला आ रहा हूँ चाचा जान… अब आपसे वादा जो किया था.. तो आना पड़ा…
वरना आप तो जानते ही हैं, असलम के जाने के बाद मेरा इस शहर से दिल ही उखड़ गया है….!
वो – हां तुम सही कह रहे हो… लेकिन बेटे, जाने वाले तो चले गये, अब ये जिंदगी थम तो नही सकती…, अपने जवान बेटे के गम में कुछ दिन तो मेरा भी कुछ करने का कोई मूड नही था…
लेकिन ऑर्गनाइज़ेशन को चलाना भी तो ज़रूरी है, वरना इंटरनॅशनल लेवेल पर इतने सारे दुश्मन पैदा हो जाएँगे, वो वैसे ही जीने नही देंगे हमें…
फिर उसने कामिनी की तरफ इशारा करते हुए कहा – इन्हें तो तुम जानते नही होगे… हाहाहा…कैसे जानोगे..? पहली बार जब मिले थे, तब ये नकाब में थी…
दरअसल ये हमारे ग्रूप की चीफ हैं, कामिनी… अपने पार्ट्नर एमएलए साब की बेटी…
मे – ओह… तभी मे कहूँ, कि ये मेरा नाम कैसे जानती हैं, जबकि मे तो इनसे पहले कभी नही मिला…
फिर मेने भी बड़ी गरम जोशी दिखाते हुए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा – नाइस टू मीट यू में… सॉरी ! मे आपको पहचान ना सका…
वो खिल खिलाकर हँसने लगी, और मेरा हाथ अपने दोनो हाथों के बीच थामकर बोली – इट्स ओके, जब तुम्हें पता ही नही था, तो सॉरी का तो कोई सवाल ही पैदा नही होता…, वैसे तुम्हारे साथ सेक्स करने में मज़ा बहुत आया मुझे…!
काफ़ी दमदार हथियार है तुम्हारा, वो मेरे लंड की तरफ इशारा करके बोली - इसे देखकर मुझे अपने देवर की याद आ गयी, वो भी साला भडुआ ऐसी ही मस्त चुदाई करता है…,
मेरी गान्ड का ढक्कन पहली बार उसी मदर्चोद ने खोला था, दो दिन तक बिस्तर से हिल नही पाई थी मे…
खैर छोड़ो उन बातों को.., वो अतीत से बाहर आकर मेरा हाथ अपने हाथ मे लेकर देर तक उसे सहलाती रही, जैसे जानना चाहती हो, कि ये हाथ उसने पहले भी स्पर्श किया है…
ये बात मेरे दिमाग़ में क्लिक होते ही मेने अपना हाथ खींच लिया…,
वो अभी भी मेरी आँखों में ही झाँक रही थी, जो उसने पहले कभी नही देखी थी, सिवाय उस एक मुलाकात के.
तभी उस्मान ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए कहा – जोसेफ ! मेने तुम्हें एक ख़ास काम के लिए यहाँ बुलाया है…
जैसा कि तुमने सुना ही होगा, कि असलम के साथ साथ, हमारे और भी नौजवान मारे जा चुके हैं जिनमें एक कामिनी का चचेरा भाई सन्नी भी था....
और अब हमारे पास फील्ड वर्क के लिए कोई भरोसे का आदमी नही है, तो हम चाहते हैं, कि ये ज़िम्मेदारी तुम सम्भालो, क्योंकि तुम्हारी समझ बुझ और दिलेरी के हम कायल हैं…
मेने असमर्थता दिखाते हुए कहा – मे कैसे चाचा जान, मेरा इस तरह के धंधे का कोई एक्सपीरियेन्स नही है, मे तो बस 420 का मास्टर हूँ… अब इस काम के लिए मे आपकी किस तरह से मदद कर सकता हूँ..?
वो – यही तो तुम्हारी ख़ासियत हमें पसंद है, देखा जाए तो इस काम में भी 420 आदमी की ही ज़रूरत है जो जोश के साथ साथ अपने होश भी कायम रख सके…
असलम और उसके दोस्तों में इसी चीज़ की कमी थी, जिसका हम सभी को ख़ामियाजा भुगतना पड़ा..
अपनी बातों के जाल में फँसाना और अपना काम निकलवाना ये कला तुम्हारे अंदर अच्छी तरह से है, उपर से तुम दिलेर भी हो…
मेने अपनी विरोधात्मक बात जारी रखते हुए कहा – लेकिन में पर्मनेंट्ली एक जगह रुक नही सकता.., तो इस धंधे में या यहाँ भी रुक नही पाउन्गा..,
क्योंकि मेरे पैरों में बहुत बड़ा चक्कर है जो मुझे एक जगह टिकने ही नही देता…
मेरी इस बात पर उस्मान मुस्करा उठा और बोला – कोई बात नही, कुछ दिनो के लिए ही सही…, फिर उसने कामिनी की तरफ देखा और बोला- अब तुमसे क्या छिपाना…
दरअसल एक हफ्ते के बाद हमारी एक बहुत बड़ी डील विदेशी क्लाइंट के साथ होने वाली है… हम चाहते हैं, इस डील की सारी देख रेख तुम करो…
उसके बाद भी अगर हमारे साथ काम करना चाहो तो हमें बड़ी खुशी होगी…
मेने अहसान सा जताते हुए कहा – ठीक है चाचा जान ! अब अगर आप मुझ पर इतना भरोसा करते हैं, तो मे आपकी इस डील होने तक ज़िम्मेदारी संभालने को तैयार हूँ, उसके बाद मे ये शहर छोड़ कर चला जाउन्गा… लेकिन इस काम के लिए मुझे 10 लाख रुपये चाहिए…
वो एकदम चोन्क्ते हुए बोला – 10 लाख…. ? ये बहुत ज़्यादा नही हैं…?
मेने अपने कंधे उचकाते हुए कहा – कोई बात नही, मेरी कोई ज़बरदस्ती नही है… मे जैसे यहाँ आया था, वैसे ही चुप चाप निकल जाउन्गा किसी को इस मुलाकात की कानो-कान भनक भी नही होगी…
वो एकदम से बोल पड़ा – हमें मंजूर है…! उस्मान की बात सुनकर कामिनी सवालिया नज़रों से उसकी तरफ देखने लगी…
उस्मान ने आँखों के इशारे से उसे मेरी माँग मान लेने को कहा… तभी मे बोल पड़ा…
5 लाख मुझे अभी चाहिए… और वाकी के 5 जिस दिन आपका काम पूरा हो जाएगा उस दिन, और फिर मे यहाँ से चला जाउन्गा…..
उस्मान चोंक कर मेरी तरफ देखते हुए बोला – क्या तुम्हें हमारे उपर भरोसा नही है..?
मेने कहा – इसमें भरोसे की कोई बात नही है चाचा, ये मेरे काम करने का उसूल है…
वो – ठीक है ! फिर उसने इंटरकम पर किसी को अंदर आने को कहा… और अपने सूटकेस से निकाल कर मुझे 5 लाख रुपये निकाल कर पकड़ा दिए…
इतने में डोरबेल बजी, कामिनी ने एक बार फिर उठकर गेट खोला… इस बार जो शख्स कमरे में दाखिल हुआ वो एक काला सा लंबा तगड़ा.. पहलवान सरीखा आदमी था..
उस्मान – जग्गा ! ये जोसेफ है, आज से उस मिशन का सारा काम इनकी देख रेख में ही होगा… ये जैसा कहे वैसा ही करना है तुम्हें…
इनको अपने साथ ले जाओ, और सारी बातें डीटेल में समझा दो, उसके बाद इनके हिसाब से काम करवाना है तुम्हें… समझ गये…
जग्गा गर्दन हिलाकर वापस लौटने लगा… तभी उस्मान मुझसे से बोला – जाओ जोसेफ, जग्गा.. तुम्हें सब कुछ समझा देगा…
याद रखना… इस काम में कोई ढील नही होनी चाहिए… ये डील जितनी शांति और गोपनीया तरीके से निपट जाए, उतनी ही तुम्हारी काबिलियत साबित होगी…
मे – अब आप निश्चिंत हो जाइए चाचा जान… किसी को कानों कान भनक भी नही होगी… और ये डील हो चुकी होगी…इतना कह कर मे भी जग्गा के पीछे – 2 चल दिया…
कामिनी गेट बंद करने हमारे साथ गेट तक आई…, मेरे हाथ में एक कार्ड थमा कर बोली – कल इस पते पर आ जाना…
मे उसकी तरफ देखने लगा, तो उसने एक सेक्सी मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेर दी…
मेने उसके हाथ से कार्ड लिया, और चुप चाप कमरे से बाहर निकल गया……..!
प्लान के मुतविक, विदेशियों को देशी ड्रग्स और हथियार हमें सप्लाइ करने थे, जिसके एवज में कुछ विदेशी ड्रग्स और पैसा वो देने वाले थे…
ये डील उसी होटेल के बेसमेंट में होनी थी, जहाँ मे पहली बार गया था…
जग्गा के साथ मिलकर मेने उस जगह को अच्छी तरह से रेकी किया, तब मुझे पता लगा कि पोलीस की रेड के बाद अब सारा माल असबाब कहाँ छुपा रखा था…
दरअसल रेड के दौरान जो माल पकड़ा गया था, वो तो कुछ भी नही था, सारा माल तो दूसरी जगह पर सुरक्षित ही था, जिसकी शायद खबर असलम और उसके दोस्तों को भी नही थी…
जग्गा मुझे उसी बेसमेंट वाले हॉल से एक गुप्त अंडरग्राउंड के रास्ते से ले गया…
वहाँ से कोई आधा – पोना किमी की दूरी पर ही एक अंडर ग्राउंड बहुत बड़ा सा गोडाउन जैसा था, जिसमें ये सारा दो नंबर के धंधे वाला समान भरा पड़ा था,
यहाँ बस कुछ ही लोग थे जो सिर्फ़ इन चीज़ो को अरेंज करते थे… यहीं से सारा माल उन लोगों को सप्लाइ होना था…
वहाँ की सारी व्यवस्था चेक करने के बाद जग्गा उसी रास्ते से आगे ले गया…
ये काफ़ी लंबा और सकरा सा रास्ता था, जिसमें से एक साथ में एक ही आदमी कुछ समान के साथ ही आ-जा सकता था…
चलते – 2 हमे कोई 10 मिनिट निकल गये… तब जाकर उपर को जाने के लिए सीडीयाँ नज़र आई…
गोडाउन के बाद से इधर के रास्ते में ज़्यादा रोशनी भी नही थी, बस कहीं – 2 छोटे -2 बल्ब टिम टीमा रहे थे, जिससे रास्ता देखने में परेशानी ना हो…
उन सीडीयों को चढ़ कर हम उपर पहुँचे… जहाँ एक छोटा सा प्लेटफॉर्म था, जिसपर एक साथ 4 आदमी से ज़्यादा खड़े नही हो सकते थे…
सामने की दीवार पर जग्गा ने एक बटन जैसा दवाया…. हल्की सी गड़गड़ाहट के साथ ही सामने की दीवार एक तरफ को सरकती चली गयी… और अब उसमें 4 फीट चौड़ा दरवाजा सा बन गया…
उस दवाजे को पार करके हम जैसे ही बाहर निकले… मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी….
ये उसी फॅक्टरी का सबसे पीछे वाला हिस्सा था, जो वहाँ काम करनेवाले
मजदूरों का चेंजिंग रूम के तौर पर इस्तेमाल होता था…
उस रूम में आते ही दरवाजे के साइड में ही एक पुरानी सी लकड़ी की अलमारी जैसी थी, जिसमें एक पुराना सा ताला लगा हुआ था…
जग्गा ने जेब से चाबी निकाल कर वो ताला खोला… और उस अलमारी में हाथ डाल कर कुछ बटन जैसा दबाया…और वो दरवाजा फिरसे बंद हो गया…
अब पहली नज़र में कोई भी नही कह सकता था, कि यहाँ कोई दरवाजा भी हो सकता है…
मेने जग्गा से पुछा… मेरी नालेज के मुतविक, ये फॅक्टरी तो पोलीस ने सीज़ कर दी थी, फिर यहाँ अभी भी कैसे ये सब चलता है ?
जग्गा – अरे भाई… पब्लिक और प्रशाशन की नज़र में तो फॅक्टरी अभी भी सीज़ ही है, और अब हमारा भी यहाँ कोई माल नही रखा जाता,
अब तो बस इसे हम समान गोडाउन तक पहुँचने तक के रास्ते के तौर पर ही इस्तेमाल करते हैं, जो इसके मेन गेट की वजाय, पीछे वाले गेट से होता है…
वहाँ का सब जयजा लेकर हम फिर वापस उसी रास्ते से होटेल के बेसमेंट में लौट आए…
बेसमेंट से एक और सीक्रेट रास्ता था, जो सीधा होटेल की पार्किंग में निकलता था, ये वही रास्ता था, जिससे कामिनी उस दिन एंटर हुई थी…
सारे रास्तों का डीटेल और फोटो वगरह लेने के बाद मेने जग्गा को बुलाया… और उसे कुछ दिशा निर्देश देने के बाद, मे अपने घर लौट आया…
अब मे अपने घर से कुछ दूर पहले ही अपने सीक्रेट नंबर को इनॅक्टिव कर देता था, जिससे कोई मेरी लोकेशन ट्रेस ना कर सके…
घर लौटते – 2 मुझे काफ़ी रात हो चुकी थी, फिर भी मेने उसी समय कृष्णा भैया को फोन लगाया…!
रात के 11:30 को मेरा कॉल देख वो समझ गये कि कुछ तो अर्जेंट है, सो बिना समय गँवाए उन्होने मेरा फोन पिक कर लिया…
मेने उनसे इसी समय मिलने को कहा… उन्होने मुझे अपने घर पर ही बुला लिया…
मुझे अपने असली रूप में आने के बाद उनके घर जाने में कोई प्राब्लम नही थी, सो फटाफट गाड़ी ली और 10 मिनिट के बाद मे उनके बंगले पर था…
मेने उन्हें सारी डीटेल्स बता दी, और डील वाले दिन कैसे, कब, क्या करना है वो सब डिसकस करने के बाद मेने थोड़ा मूड फ्रेश करने की गर्ज से भैया को छेड़ते हुए कहा…
मे – भैया ! वैसे आजकल आप काफ़ी खुश रहने लगे हो… क्या कोई खास वजह..?
वो कुछ देर मेरे चेहरे की तरफ देखते रहे, फिर अचानक से उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी, और बोले –
खुश रहने की तो बहुत बड़ी वजह है भाई… क्या तुझे नही पता…?
मे – मुझे कैसे पता होगा, आपने कभी कुछ बताया ही नही ना !
वो – देख सबसे बड़ी वजह ये है, कि अब मे उस चुड़ैल से हमेशा के लिए छुटकारा पा रहा हूँ…! ये वजह ही काफ़ी है खुश होने के लिए…
मे – फिर भैया… उसके बाद का भी कुछ सोचा होगा ना आपने… कोई और लड़की है जो मेरी भाभी बन सके…
वो – नही अभी तो नही है, वो बाद में देखा जाएगा… पहले एक बार उसका मामला सुलट जाए फिर देखेंगे… जल्दी क्या है यार…!
उनकी बात सुन कर मेरे चहरे पर मुस्कान तैर गयी… जिसे देख कर वो बोले..
अब तू क्यों मुस्करा रहा है..? कोई बचकानी बात करदी क्या मेने…?? या यहाँ भी अपना वकीलों वाला दिमाग़ चलाने की फिराक में है…!
मेने कहा - मे ये सोच कर मुस्करा रहा हूँ… कि आप नानी के आगे ही ननिहाल की बातें कर रहे हो…!
वो – क्या मतलब….? कहना क्या चाहता है तू…?
मे – छोड़िए ये बातें, और ये बताइए…प्राची को तो जानते होंगे ना आप..?
प्राची का नाम सुनते ही उन्होने झटके से मेरी तरफ देखा, मेरी मुस्कान और गहरी हो गयी… जिसे देख कर उनकी धड़कनें और बढ़ गयी…
अपनी धड़कानों को संयत करते हुए बोले – वहीं प्राची ना जो रेखा की छोटी बेहन है… !
मे – हां ! मे उसी प्राची की बात कर रहा हूँ.., और आपको तो पता ही है, कि उसने अपनी बेहन के क़ातिलों को अजाम तक पहुँचाने में कितनी एहम भूमिका निभाई थी… मेरे साथ..
वो – हां ! हां ! मुझे सब पता है, लेकिन अब उससे तेरा क्या मतलब है.. ?
मे – वैसे वो कैसी लगती है आपको…?
वो – अच्छी है, सुन्दर है… लेकिन तू ये सब क्यों पुछ रहा है, वैसे वो आई थी, मुझे थॅंक्स बोलने…!
मे – उसे मेने ही भेजा था, आपके पास… थॅंक्स कहने को…! तो बस उसने थॅंक्स ही कहा आपको, और कुछ नही…?
वो – और क्या कहेगी… ? क्या कुछ और कहने वाली थी…?
मे – नही वो नही…! आप उससे कहने वाले थे… है ना ! और कह भी चुके हैं…!
वो झटके से बोले – क्या…? क्या कह चुका हूँ… ?
मे – यही कि वो आपको अच्छी लगती है, आप उससे शादी करना चाहते हैं… मेरी भाभी बनाना चाहते हैं… हहहे…. ब.बोलीईए…सही कह रहा हूँ ना मे..?
भैया बुरी तरह शर्मा गये.. और नज़रें झुका कर बोले – हां ये सच है.. लेकिन तुझे ये सब कैसे पता है..? क्या उसने सब कुछ बता दिया तुझे…?
मे – नही..उसने तो कुछ नही बताया…, लेकिन उसे खुश देख कर मे सब समझ गया.. और उससे पुच्छ लिया…, अब वो भला मुझे कैसे टाल सकती थी…
लेकिन उसे झटका तब लगा, जब मेने उसे भाभी कहा…हहहे…फिर मेने उसे बताया कि आप मेरे बड़े भैया हैं…
इतना कह कर मे भैया के गले लग गया… वो भी भावुक हो गये थे, और उनकी आँखों से दो बूँद पानी की टपक कर मेरे कंधे पर पड़ी…
मेने उन्हें शान्त्वना देते हुए कहा – अब आपकी खुशी आपसे ज़्यादा दूर नही है……, फिर उनके गले से लगे हुए ही कहा –
वैसे अब वो अपनी माँ और छोटे भाई के साथ मेरे फ्लॅट में ही शिफ्ट हो गयी है.., कभी काम पड़े तो आ जाना..,
कुछ देर वो विश्मय से मुझे देखते रहे, फिर शरमा कर गर्दन झुका कर बोले – तू और क्या-क्या करेगा मेरे लिए…?
मे बस अपने भैया को खुश देखना चाहता हूँ, ये कहकर मेने उन्हें एक बार फिर कॉनग्रेट किया और अपने घर चला आया…..!!!
रात को लेट सोने की वजह से दूसरी सुबह मेरी आँख देर से खुली… फ्रेश व्रेश होकर अपनी नियमित एक्सर्साइज़ की, नाश्ता किया, और फिर घर फोन करके बता दिया कि मे इस हफ्ते घर नही आ पाउन्गा…
अभी मे अपने ऑफीस के लिए निकालने ही वाला था कि मेरा सेल फोन बजने लगा…
स्क्रीन पर नंबर देखते ही मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी… और मेने फोन पिक किया…
मे – हेलो भाभी जी… कैसी हैं आप…?
वो – क्या..? मुझे तुम भाभी क्यों बोल रहे हो…?
मे – अरे देविजी ! अब हमारे यहाँ भाभी की फ्रेंड को भाभी ही कहते हैं ना..! या कुछ और नाम दिया गया है आपके मॉडर्न सोसाइटी में…?
कोई बात नही ! अगर आपको पसंद नही है, तो आप ही बता दो, मे आपको क्या कहूँ ?
वो – चलो ठीक है ! जो तुम्हारी मर्ज़ी हो बोलो…. ! वैसे काफ़ी समय से कोई खैर खबर नही, तो सोचा देखूं तो सही अपना हीरो कहाँ है आजकल…?
मे – अरे श्वेता जी, आप भी क्या बात करती हो..? अब मे कोई अडानी या अंबानी तो हूँ नही जो पता ना चले कि कहाँ हैं… अपना तो यही एक ठिकाना है, कोर्ट के चक्कर लगाते रहते हैं…!
श्वेता – अभी अगर फ्री हो तो मेरे ऑफीस आ सकते हो..? थोड़ा अर्जेंट काम था…!
मे – चलो ठीक है, मे एक घंटे में आपके ऑफीस पहुँचता हूँ… बाइ..!
एक घंटे के बाद मे श्वेता के आलीशान ऑफीस के शानदार कॅबिन में उसके सामने बैठा था…
वो एक टॉप और जीन्स में कमाल लग रही थी, टाइट टॉप में उसकी चुचिया, बाहर को झाँक रही थी,
उपर से वो मंद मंद मुस्कुराती हुई… टेबल पर अपने दोनों हाथ टिकाए झुकी हुई थी, जिससे उसके 36” साइज़ के टाइट मम्मे मुझे और ज़्यादा ललचा रहे थे…
बाबजूद इसके मेने उसके मम्मों पर नज़र गढ़ाए हुए, काम की बात पर आते हुए कहा – हां जी श्वेता जी कहिए… कैसे याद किया इस ग़रीब को…?
वो मेरी नज़रों को अच्छे से भाँप रही थी..मेरे मज़े लेते हुए खिल-खिलाकर हस्ते हुए बोली – हहेहहे…. तुम कब से ग़रीब हो गये, हॅंडसम ?
फिर थोड़ा सीरीयस होते हुए बोली – खैर छोड़ो ये मज़ाक मस्ती… दरअसल मेने तुम्हें इसलिए बुलाया है, कि हमारी फर्म को एक लीगल आड्वाइज़र की ज़रूरत है,
पहले जो गुप्ता जी थे वो अब रिटाइर हो रहे हैं…तो मेने सोचा तुम तो अपने ही आदमी हो, क्यों ना ये ज़िम्मेदारी तुम्हें ही सौंप दी जाए…
वैसे भी तुम भगवान दास गुप्ता जी का काम तो संभालते ही हो, तो हमारा भी संभाल ही लोगे… , जो उनसे लेते हो हमसे भी ले लेना…!
मे – पैसो की कोई बात नही है, थोड़ा समय का अभाव है, फिर भी मे आपके ऑफर पर विचार ज़रूर करूँगा… जैसा होगा मे आपको जबाब देता हूँ…!
वो अपनी जगह से उठ खड़ी हुई, मेरे पीछे आकर उसने अपने मम्मे मेरे सर पर टिका दिए और अपनी बाहें गले में डालकर बोली…
उस दिन तुम्हारे साथ सेक्स करके, मुझे इतना अच्छा लगा, कि अभी तक उस मोमेंट को भूल नही पाई हूँ… क्या फिरसे वो मोमेंट मिल सकता है…?
मेने हँसते हुए उसकी एक बाजू को पकड़ा, रिवॉल्विंग चेयर को घूमाकर उसे झटके से अपनी गोद में बिठाया, और उसके लिपीसटिक से पुते होठों को चूमकर बोला….
तो असल मुद्दा ये है, वैसे मेरे साथ सेक्स में मज़ा आया तुम्हें…?
वो – बहुत से भी ज़्यादा… ! जब भी वो लम्हे याद आते हैं, शरीर में एक अनूठी सी मस्ती भरने लगती है… कहकर उसने मेरे होठों को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी…
पहली बार जब मेने श्वेता को चोदा था, तो उसकी वीडियो क्लिप बना ली थी, और उसे उसके भाई को दिखाकर पोलीस का मुखबिर बनाया था,
जिसकी इन्फर्मेशन के आधार पर ही असलम और उसके साथियों को सदर रोड पर घेरा था…
मेने श्वेता के टॉप के उपर से उसकी चुचियों को मसल दिया… वो बुरी तरह से सिसियाकर अपनी गान्ड मेरे लंड पर रगड़ने लगी…
मे – जानेमन ! यहीं चुदने का इरादा है क्या…?
उसने तपाक से कहा – हां ! अब और सबर नही कर सकती, ये कह कर वो मेरी गोद से उठ गयी, और मेरा हाथ थाम कर सोफे पर लेजाकर धक्का दे दिया…
मे धप्प से सोफे पर गिरा, वो अपने कॅबिन का दरवाजा लॉक करने चली गयी…
जब तक वो लौट कर आई, मेने अपनी जीन्स निकाल दी थी, मेरे सामने खड़े होकर उसने भी पहले अपना टॉप निकाल दिया, और उसके बाद बड़े नज़ो अदा से अपनी जीन्स खोलने लगी…
जीन्स को निकालते हुए वो घूम गयी, अब उसकी चौड़ी चकली गान्ड मेरी तरफ थी, वो धीरे – 2 अपनी जीन्स को नीचे खिसका रही थी,
जैसे ही उसकी जीन्स उसकी गान्ड की गोलाईयों तक पहुँची… उसकी पेंटी जिसकी पीछे से बस एक डोरी जैसी, जो उसकी गान्ड की दरार में कही गुम हो गयी थी,
ऐसा लगता था, जैसे उसने पैंटी पहनी ही ना हो…
उसकी गान्ड की गोलाईयों को देखते ही मेरा लंड उच्छल कूद करने लगा, वो मेरी छोटी सी फ्रेंची को फाड़ने पर उतारू होने लगा था…
मेने उसे हाथ से दबा कर नीचे को किया, और पूचकार कर बोला – सबर कर बेटा, ये भी मिलेगी तुझे…
एक हाथ से उसकी चिकनी, चौड़ी चकली मुलायम गान्ड को मसलते जा रहा था…
श्वेता अपनी जीन्स निकाल कर मेरी तरफ घूम गयी, और मुस्कराते हुए बोली – किससे बात कर रहे थे…?
मेने उसके चिकने पेट को सहलाते हुए कहा – अपने पप्पू को समझा रहा था, तुम्हारी गान्ड देख कर उच्छल रहा था…
श्वेता ब्रा और एक मिनी पैंटी, जो उसकी चूत के मोटी – 2 फांकों को भी ढक पाने में असमर्थ दिख रही थी, पहने मेरे आगे बड़ी अदा से बैठ गयी और मेरे लंड को सहला कर बोली …
लाओ मुझे देखने दो ये क्या कहता है…और उसने उसे बाहर निकाल कर सहलाते हुए बोली – क्यों रे बदमाश ! मेरी गान्ड तुझे ज़्यादा पसंद है…?
श्वेता की बात सुनते ही उसने एक और झटका खाया… उसकी हरकत देख कर श्वेता खिल-खिलाकर हसते हुए बोली – ये तो वाकई में बहुत शरारती है…और उसने उसे ज़ोर से मसल दिया….
आहह……….राणिि….आराम से… मेने कराह कर कहा… तो उसने बड़े प्यार से उसे चूमा और फिर अपनी जीभ निकाल कर सुपाडे को चाट लिया…
उसके बाद अपने होठों को गोल करके उसने उसे अपने मुँह में ले लिया…
श्वेता मेरे लंड को मन लगा कर चूस रही थी… उसके मुलायम रसभरे..
लाल-2 होठों की मालिश से मेरा लंड बुरी तरह फूल गया…, उसके होठों की लाली ने मेरे लंड को भी सुर्ख कर दिया…
उत्तेजना के मारे मेरे चेहरे और लंड की नसें दिखने लगी…..
मेने अपने हाथ का धक्का देकर श्वेता को अलग किया, और फिर उसे सोफे पर पटक कर किसी भूखे भेड़िए की तरह उस पर टूट पड़ा…
एक झटके से उसकी ब्रा को उसके बदन से अलग कर दिया… और उसके खरबूजे जैसे चुचियों को मसलने, चूसने, काटने लगा…
वो हाई..हाई.. करने लगी… मादक सिसकारीओं के बीच उसकी कराह भी फुट पड़ती…जब मे ज़ोर से उसके निपल्स को काट लेता…
जब एक हाथ नीचे ले जाकर मेने उसकी चूत को मुट्ठी में कसा… तो वो बुरी तरह से मेरे से लिपट गयी……
प्लीज़ अंकुश…. अब चोदो मुझे… वरना में मर जाउन्गि…आहह….तुमने मुझे पागल कर दिया है …
मेने देर ना करते हुए, उसकी पैंटी को एक साइड में किया, और अपना सख़्त रोड हो चुका लंड उसकी रसभरी चूत में ठूंस दिया…..
कामुकता में अंधी हो चुकी श्वेता ने,…. अपनी कमर को उछल दिया लंड लेने के लिए.. उपर से मेरा धक्का…
सर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर………..से पूरा लंड एक ही झटके में उसकी चूत को फैलाता हुआ…. जड़ तक घुस गया…. !
श्वेता के मुँह से एक तेज दर्द भरी कराह निकल गयी… वो अच्छा था, कि उसका कॅबिन साउंड प्रूफ था… वरना, सारा स्टाफ उसके कॅबिन में इकट्ठा हो चुका होता….
मररर्ररर…डाला तुमने मुझे…. फाड़ दी मेरी चूत…उफफफ्फ़….जालिम कहीं के…वो कराह कर शिकायत करते हुए बोली…
मे – तुमने अपनी गान्ड क्यों उपर की… मे तो डाल ही रहा था ना…!
वो शर्मीली मुस्कराहट के साथ बोली – हहहे…मुझसे सबर नही हो रहा था…
फिर मेने उसके होंठो को चूमते हुए अपना आगे का कार्यक्रम शुरू कर दिया…
श्वेता मस्त होकर चुदने लगी… मेने भी उसको निराश नही किया, और जम कर उसकी ओखली की कुटाई करने लगा….
एक बार उसकी चूत चोदने के बाद मेने उसकी गान्ड मारने की इच्छा जताई, जो उसने थोड़ी सी ना- नुकुर के बाद मान ली…!
उसकी 38” की भारी भरकम गान्ड मारने में मुझे बहुत मज़ा आया, शुरू में तो उसे थोड़ा तकलीफ़ हुई, लेकिन कुछ देर के बाद तो, पुछो मत….
अपने दोनो तरबूजों को हिला-हिलाकर वो मेरे मूसल को अपनी गान्ड में लेने लगी..
उसकी गान्ड के पाटों को हिलता देख, मुझे और जोश आ गया, और मेने उसका सर सोफे से सटा कर उसकी गान्ड को एकदम उर्ध्वकार करके लंड पेलने लगा…
आख़िर में जब मेने अपना वीर्य उसकी गान्ड में उडेल दिया, और अपना लंड बाहर निकाला,
तो उसकी गान्ड का होल, एकदम सर्क्युलर होल जैसा बन गया… वो अब किसी मोटे से चूहे के बिल की तरह दिख रहा था....
श्वेता के सभी छेदो को खोलने के बाद, उसे फिरसे जल्दी मिलने का वादा करके मे वहाँ से निकल लिया….!
श्वेता के ऑफीस से निकल कर मेने अपने सीक्रेट नंबर को आक्टिव किया, देखा तो उसमें कामिनी की बीसियों मिस कॉल थी…
मे दरअसल अब उससे मिलना ही नही चाहता था, वो साली मुझे अब एक रंडी जैसी लगने लगी थी, घिंन सी होने लगी थी उससे…
लेकिन काम पूरा होने तक तो वो मेरी मालिकिन ही थी, सो मेने उसे कॉल बॅक कर लिया…
कनेक्ट होते ही, वो पाजामी से बाहर होकर बोली –
कहाँ मर गये थे तुम, कब्से नंबर ट्राइ कर रही हूँ, कल से तुम्हारा कोई अता-पता ही नही है…
मेने जोसेफ की आवाज़ में ही कहा – सॉरी में ! मे डील की व्यवस्था करने में ही लगा हूँ… बोलिए क्या काम था, मुझसे..?
वो – मेने तुम्हें आने को बोला था, आए क्यों नही..?
मे – सॉरी मेडम ! काम में बिज़ी था, इसलिए नही आ सका… वैसे आपको मुझसे काम क्या था, वो तो बोलिए…?
वो – तुम यहाँ आओ तो सही, बैठकर कुछ देर गॅप-सॅप करेंगे… मुझे तुम्हारे साथ बात करने का मन हो रहा है…
मे – तो वो आप फोन पर ही कर लीजिए, क्योंकि मे अब काम पूरा होने तक किसी से पर्सनली नही मिल सकता, ये मेरा उसूल है…, और ना ही मेरे पास इतना वक़्त है जो आपके साथ गॅप-शॅप कर सकूँ…
मेरी बात सुनते ही वो गुस्से से भिन्ना उठी, और झल्लाते हुए बोली – गो टू हेल…. और अब तुम इस मिशन पर भी काम नही कर रहे हो… समझे…
मे – ठीक है में जैसा आप बोलें, मे अभी उस्मान चाचा को मना कर देता हूँ…! मुझे कोई प्राब्लम नही है…
वो मेरी बात सुनकर हड़बड़ा कर बोली – नही ! नही ! उनसे कुछ कहने की ज़रूरत नही है, चलो अच्छा ! खैर ये काम होने के बाद तो मिलोगे ना…!
मेने मन ही मन कहा… साली उसके बाद मिलने की ज़रूरत ही कहाँ पड़ेगी… लेकिन प्रतय्क्छ में बोला – जी बिल्कुल ! पक्का !