Update 60
ये सच है, कि जाने अंजाने ही सही, जब कोई मर्द या औरत सेक्षुयली सेन्सेशन फील करने लगता है, तो वो उसे और ज़्यादा पाने की कोशिश में लग जाता है, फिर उसे अपने आस-पास का भी भय नही रहता…
ऐसा ही कुछ हम दोनो के साथ भी हो रहा था…मेने अपनी वो उंगली, जिसकी गाँठ उसकी गान्ड के छेद पर दबी हुई थी उसको मोड़ कर उपर उठा दिया...
उधर मेघना ने ट्रेन के हिचकॉलों का सहारा लेकर अपनी गान्ड को आगे पीछे मूव करना शुरू कर दिया…
उसने अपनी जाँघ को दूसरी जाँघ पर और ज़्यादा चढ़ा लिया, जिससे उसकी गान्ड थोड़ी और उपर हो गयी, अब वो मेरी उठी हुई उंगली पर अपनी गान्ड के छेद को और अच्छे से घिस सकती थी..!
उसकी गर्मी निरंतर बढ़ती जा रही थी, एक कदम और आगे बढ़ते हुए उसने अपनी गान्ड को और पीछे धकेला….
ट्रेन के हिचकॉलों के साथ-साथ वो अपनी गान्ड को आगे पीछे करते रहने की वजह से अब मेरी उंगली उसकी मुनिया के होठों के अंतिम सिरे तक पहुँचने लगी…
मुनिया के द्वार पर मेरी उंगली की गाँठ की दस्तक पाकर, उसकी आँखें मूंद गयी, उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी जो मेरी उंगलियों से पता चल रहा था…
उसका साथ देते हुए, मेने भी अपने हाथ को आगे की तरफ सरकाने के साथ साथ उसे पलटा दिया… अब मेरी उंगली सीधी होकर उसकी चूत के होठों पर सैर कर रही थी..
मेघना का हाल-बहाल हो चुका था, अब उसके कान तक गरम होकर लाल पड़ चुके थे, गले की नसें खिचने लगी……. फिर एक समय ऐसा आया…
और मेघना सारी शर्मो-हया भूल कर उसका हाथ उसकी जँहों के बीच चला गया… और उसने मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी चूत के उपर दबा दिया…
मेरी एक उंगली जो उसकी चूत के उपर थी… वो उसकी सलवार और पैंटी को साथ लिए कुछ अंदर तक उसकी चूत में घुस गयी….,
उसने अपने होठों को कस कर भींच लिया जिससे उसकी आहह….होठों से बाहर ना निकले, और अपनी जांघों को कसकर भींचते हुए वो झड़ने लगी…..!
बहुत देर तक वो यौंही अपनी जांघों को कसे रही…फिर जब उत्तेजना शांत हुई…तो धीरे – 2 ढीला छोड़ा…!
उसकी जांघों का कसाव हटते ही मेने अपना हाथ बाहर खींच लिया…
उसने अपनी नज़र आस-पास दौड़ाई, भीड़ में किसी का ध्यान किसी की तरफ नही था…वैसे भी वो पहाड़ जैसी औरत सामने खड़ी थी…तो उसकी आड़ में कॉन देखने वाला था…
फिर उसने मेरी तरफ देखा, तो में अपनी नज़र डिब्बे में बैठे लोगों की तरफ घूमाते हुए उसके रस से गीली उंगलियों को नाक पर रख कर सूंघने लगा..!
ये देखकर वो बुरी तरह शरमा गयी, अपनी नज़र नीची करके मन ही मन मुस्करा उठी…!
फिर मौका देखकर मेघना ने अपनी मुनिया को रगड़ कर उससे निकले रस के गीलेपन को अपने कपड़ों से पोंच्छ लिया….!
कुछ देर के बाद ही एक बड़ा सा स्टेशन आया, और डिब्बे की सारी भीड़ वहाँ उतर गयी, कुछ और नये मुसाफिर भी चढ़े, लेकिन अब उतनी भीड़ नही थी….
हमने कुछ खाने पीने का सोचा, दीदी कुछ समान घर से बना के लाई थी, वो निकालने लगी…
मेघना बोली – आप खाना निकालो भाभी, तब तक में टाय्लेट जाकर आती हूँ, ये कहकर वो टाय्लेट चली गयी…
में समझ रहा था, वो टाय्लेट क्यों जा रही है…!
सफ़र के अंत तक मेघना ने मेरी तरफ आँख उठाकर भी नही देखा,
मुझसे नज़रें मिलाने की उसकी हिम्मत ही नही हुई, और सच कहूँ तो मेरी भी नही.
अंधेरा होते – 2 हम अपने घर आ गये…मे स्टेशन तक अपनी कार ले गया था, जो लौटने में बहुत काम आई, और आराम से हम साजो-समान के साथ घर तक आ गये…
दीदी सभी से मिलकर बहुत खुश हुई, रूचि को खेलने के लिए आर्यन के रूप में एक और साथी मिल गया…
अभी तक तो वो चाची के अंश के साथ ही थोड़ा बहुत खेल लेती थी… मेघना भी घर में सभी से मिलकर बहुत खुश हुई….!
निशा ने तो उसे अपना दोस्त ही बना लिया…, और उसका समान अपने कमरे में शिफ्ट कर दिया…..! उन दोनो को देख कर लग ही नही रहा था, कि ये पहली बार मिली हैं…
भाभी का लास्ट मंत चल रहा था, वो ज़्यादातर रेस्ट ही करती रहती थी…, रामा दीदी ज़्यादातर भाभी के पास ही अपना समय बिताने लगी…
शादी एक सादा और सिंपल तरीके से होने वाली थी, तो ज़यादा नाते-रिश्तेदारों का जमावड़ा लगने वाला नही था… और कोई विशेष तैयारियाँ भी नही होनी थी…
तय हुआ था, कि हम सभी लोग शहर में ही एक गेस्ट हाउस और पार्टी प्लॉट रेंट पर ले लेंगे, वहीं प्राची और उसका परिवार भी आजाएँगे, सारी रस्म अदा करके, सिंपल तरीके से शादी हो जाएगी…
गाओं में आकर रिसेप्षन करके सारे गाओं को दावत खिला दी जाएगी…!
मे कई दिनो से अपने ऑफीस नही जा पाया था, सो दूसरे दिन सुबह-सुबह ही गाड़ी लेकर अपने ऑफीस को निकल लिया…!
कुछ केसस आए थे, जो मेरे असिस्टेंट ने हॅंडल कर लिए, कुछ बड़े केसस की डेट पोस्टपोन करके कुछ दिन बाद की करवा ली…..!
जल्दी – 2 सब काम निपटाकर मे शाम को ही घर वापस लौट आया…
कपड़े चेंज करके, मे भाभी के कमरे में आकर बैठ गया, कुछ देर
रूचि को पढ़ाता रहा,
फिर मेघना आर्यन को लेकर वहीं आ गयी, तो रूचि अपनी पढ़ाई बंद करके उसके साथ खेलने में लग गयी…!
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर आदतन मेने एक्सर्साइज़ वग़ैरह की, और चाय पीकर खेतों की तरफ निकलने की सोची…
अभी मे चौपाल तक ही पहुँचा था, कि पीछे से मेघना की आवाज़ सुनाई दी…, आर्यन को गोद में लिए वो मेरे पास आकर बोली –
वो - कहीं जा रहे हैं अंकुश जी…?
मे – हां ! तोड़ा खेतों की तरफ चक्कर मार कर आता हूँ, कोई काम था..?
वो – हमें नही दिखाएँगे अपने खेत…?
मे – अरे ! व्हाई नोट…? चलिए, अच्छा है, ताजी हवा मिलेगी और वैसे भी हमारे खेतों में बहुत कुछ है देखने लायक…!
मेने आर्यन को अपनी गोद में ले लिया और चल पड़े हम दोनो खेतों की तरफ..
आपस में बातें करते हुए, आर्यन के साथ खेलते हुए, हम ट्यूबिवेल तक पहुँच गये…,
रास्ते में आर्यन के बहाने हम दोनो एक दूसरे के काफ़ी नज़दीक भी आए…
ट्यूबिवेल पर आकर, मेने आर्यन को बाबूजी के पास छोड़ा, और मेघना को लेकर अपने बगीचे की तरफ चल दिया…
हम पानी की नाली के साथ – 2 चले जा रहे थे, एक तरफ मे चल रहा था, और नाली के दूसरी तरफ मेरे बराबर में ही वो चल रही थी….
अचानक से उसका पैर स्लिप हो गया, और वो पानी की नाली में गिरने ही वाली थी, कि मेने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे थाम लिया….
उसके पैर नाली में थे, मेरा एक हाथ उसकी कमर को थामे हुए था, उसकी गोल-2 मुलायम एक चुचि मेरे बदन से दब गयी…
दूसरे हाथ का सहारा देने के लिए मेरा हाथ आगे आया, तो वो थोड़ा सा आगे को घूमी, मे पकड़ना चाहता था उसका कंधा, लेकिन उसके घूमने की वजह से मेरा वो हाथ उसकी चुचि पर पड़ा…
चुचि पर हाथ लगते ही उसके मुँह से सिसकी नकल गयी…उसने अपना एक हाथ मेरी कमर में डाल कर, अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया…!
मेने हड़बड़ा कर अपना हाथ उसकी चुचि से हटाना चाहा…तो फ़ौरन उसने अपना एक हाथ मेरे हाथ के उपर रख दिया, और उसे ज़ोर्से दबा कर वो मेरे शरीर से चिपक गयी…
अपनी गर्दन उठाकर उसने मेरी आँखों में झाँका…हम दोनो की नज़रें जुड़ गयी…और कुछ देर तक टक-टॅकी लगाए एक दूसरे को देखते रहे…
उसकी कमर से लिपटे मेरे हाथ ने शरारत कर दी, और वो उसकी गोल-मटोल, बाहर को उभरी हुई गान्ड, जो इस स्थिति में और ज़्यादा उभर आई थी, उसपर फिसल कर पहुँच गया… और उसके गान्ड के उभर को ज़ोर्से भींच दिया…
औचह….मुम्मिईीईईईईईई…. उसके मुँह से एक मेते-2 दर्द भरी कराह निकल गयी… और इसी के साथ हम दोनो की तंद्रा भी भंग होगयि…!
वो झट से अलग हो गयी, और गर्दन झुकाए मेरे बराबर में फिरसे चलने लगी…
मेने उससे पुछा – मघना जी कहीं चोट तो नही आई आपको…?
वो – नही, थॅंक्स आपने मुझे गिरने से बचा लिया….!
मे – सॉरी ! वो आपको संभालने के चक्कर में थोड़ा ज़ोर से पकड़ लिया आपको..
वो गर्दन नीचे करके मंद-मंद मुस्करती हुई बोली – इट्स ओके, मे ठीक हूँ..
दो-तीन खेत पार करते ही हम बगीचे में पहुँच गये… मन्झ्ले चाचा ने उसको अच्छे से संभाला हुआ था, अब बीच – 2 में कुछ फूलों के पेड़ भी लगा दिए थे…
बगीचे की हरियाली देख कर वो बड़ी खुश हुई…, इधर से उधर घूम-2 कर फूलों पर उड़ती हुई रंग-बिरंगी तितलियों को पकड़ने की कोशिश करने लगी..
फूलों की क्यारी के बीच में एक आम का बहुत बड़ा और पुराना पेड़ था, जिसके मोटे तने के सराउंडिंग मिट्टी डालकर एक गोल सा चबूतरा बनाया हुया था, जिस पर हरी-2 दूब घास खड़ी थी…
मे उस चबूतरे पर जाकर बैठ गया, और उसे इधर से उधर दौड़ते हुए देखने लगा…
कभी कभी, सुबह की ठंडी हवा के हल्के-2 झोंकों से उसकी जुल्फें उड़कर उसके गुलाबी गालों को चूम लेती थी…!
कुछ देर बाद वो थक गयी, और मेरी बगल में बैठकर अपनी साँसों को संयत करने लगी…….!
उसकी साँसों की गति के साथ-साथ उसकी 34 की चुचियाँ भी उपर-नीचे हो रही थी..
साँसों को कंट्रोल करते हुए वो बोली - आपका गाओं सच में बहुत अच्छा है, और सबसे अच्छा आपका ये बगीचा है, जी करता है यहीं रह जाउ…!
मेने जब उसकी तरफ निगाह डाली, तो वो एकटक मेरी ओर ही देख रही थी… मेने उसके चेहरे पर नज़र डालते हुए कहा – रुक जाइए ना ! आपका ही घर है ये भी…
वो थोड़ा मायूसी भरे स्वर में बोली – मजबूरी है, पढ़ाई भी तो करनी है…मम्मी पापा के अरमान पूरे करने हैं…!
फिर अपनी गर्दन नीचे झुका कर बोली – आप लोगों के बारे में मे कितना ग़लत थी, लेकिन यहाँ आकर आपके परिवार का अपनापन देख कर मुझे अपने आप पर ग्लानि सी होने लगी है….!
और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर कहने लगी – आप सच में बहुत अच्छे इंसान हैं, निशा भाभी बहुत खुश नसीब हैं, मुझे तो अब उनसे जलन हो रही है…
झोंक-2 में उसके मुँह से ये शब्द निकल तो गये… लेकिन जैसे ही उसने इस बारे में ध्यान दिया, फ़ौरन शर्मिंदगी के कारण उसकी गर्दन झुक गयी……!
मेघना के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर मे उसकी तरफ देखने लगा, जो अब शर्म से अपनी गर्दन झुकाए अपनी नज़रों को ज़मीन में गढ़ाए हुई थी…!
इतने में उसके बालों की एक लत शरारत करती हुई उसके गुलाबी गाल पर आकर खेलने लगी, लगा मानो चाँद पर कोई बदली का कतरा आ ठहरा हो..
बरबस ही मेरा हाथ उठा और उसकी लट को संवारते हुए उसके चाँद से मुखड़े पर नज़र गढ़ाए हुए बोला – आपको निशा से जलन क्यों हो रही है मेघना जी….?
मेरी बात का उसने तुरंत कोई जबाब नही दिया, बस अपनी नज़रें ज़मीन में गढ़ाए बैठी रही…!
उसके चेहरे पर शर्मिंदगी साफ दिखाई दे रही थी, मेने उसके हाथ को सहलाते हुए फिर से पुछा – बोलिए ना मेघना जी…
उसके होंठ कंप-कपा उठे, बड़ी मुश्किल से अपनी पलकों को उठाकर उसने एक नज़र मेरे चेहरे पर डाली, और अपने काँपते होठों को खोला – आप जैसा हॅंडसम और सुलझा हुआ जीवन साथी जो मिला है उन्हें…!
मेने ठहाका सा लगाते हुए कहा – मे ऑर हॅंडसम, आप मज़ाक बहुत अच्छा कर लेती हैं मेघना जी, ऐसा क्या दिखा आपको मुझमें जिससे मे हॅंडसम दिखाई दे रहा हूँ…?
उसने भरपूर नज़र मेरे चेहरे पर डाली और फिर मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली – मेरी नज़र में आप किसी फिल्मी हीरो से कम नही हैं,
और सबसे बड़ी खूबी आप सभी के साथ इतने अच्छे से समन्वय बना लेते हैं, हर बात का सल्यूशन है आपके पास…,
एक परफेक्ट मॅन की सारी खूबियाँ हैं आपके पास, एक लड़की को अपने जीवन साथी से और क्या चाहिए…!
मे – तो अब जलन करने से क्या हासिल होगा, जो होना था सो तो हो गया, अब आपके जो भी अरमान हों, जो भी मुझसे पाना चाहती हैं, वो अभी भी मिल सकता है…!
मेरी बात सुनते ही एक झटके से उसने अपना सर उठाया, और मेरी तरफ देखने लगी…, उसकी आँखों में एक सवाल था, मानो वो पुच्छना चाहती हो कि क्या ऐसा संभव है...?
मे उसकी नज़रों की भाषा अच्छे से समझ चुका था, मेरे चेहरे पर एक अर्थ्मयि मुस्कान तैर गयी,
अपना एक हाथ उसकी कमर में डालकर मेने उसको अपनी तरफ खींचा, और उसके थर थराते हुए होठों पर अपने होठ रख दिए…!
उसकी आँखें बंद हो गयी चेहरा शर्म और लाज़ से लाल हो गया…, दो मिनिट तक हम एक दूसरे के होठों का रास्पान करते रहे… फिर मेने उसे छोड़ दिया…!
मेरे अलग होते ही वो झटके से वहाँ से उठ गयी, और थोड़ी दूर जाकर खड़ी हो गयी, उसकी पीठ मेरी तरफ थी, तो ये देख पाना मुमकिन नही था, कि वो इस समय क्या सोच रही होगी…?
मेरे मन में थोड़ा डर सा पैदा हुआ, पता नही साला, कहीं इसको बुरा तो नही लगा…
कुछ देर बाद मे हिम्मत करके उठा, और पीछे से उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया…
मेरे हाथ लगते ही वो सिहर गयी…, और लंबी-लंबी साँसें भरने लगी.
मेने उसके बिल्कुल पास आकर कहा – सॉरी मेघना जी, मुझे लगा…आप भी..ये सब… चाहती होंगी…तो…
उसने मेरी तरफ देखा, उसकी आँखें तो कह रही थी क़ि उसे भी वो सब अच्छा लगा… फिर यों उठके दूर जाने का क्या मतलब था…!
अब हमें घर चलना चाहिए…. काफ़ी वक़्त हो गया है यहाँ आए हुए, आर्यन भूखा होगा.. उसने मेरी बात का कोई जबाब ना देते हुए कहा…!
फिर हम वहाँ से ट्यूबिवेल की तरफ चल दिए, वहाँ पहुँच कर पता चला कि बाबूजी आर्यन को लेकर घर चले गये है, शायद वो अपनी मम्मी के पास जाने के लिए ज़िद करने लगा होगा…
मे बैठक वाले कमरे में गया, मेरे पीछे – 2 वो भी आ गयी, और जाकर सीधी चारपाई पर अपने पैर नीचे लटका कर बैठ गयी…
मेने कहा – अब घर नही चलना है…?
वो बोली – आर्यन को तो अंकल जी ले ही गये हैं, तो थोड़ी देर और बैठते हैं…आइए आप भी बैठिए…
ये कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पास बिठा लिया….!
मेने अपने मन में कहा – आख़िर ये लड़की चाहती क्या है… कभी लगता है, मुझसे दूर भाग रही है, तो दूसरे ही पल लगता है, की कुछ है इसके मन में भी..
क्या सोचने लगे…? मुझे यूँ चुप देख कर वो बोली…
मे हड़बड़ा कर बोला--- क.क.कुछ नही, बस ऐसे ही…
मेरी हड़बड़ाहट देख कर वो खिल खिलाकर हँस पड़ी… और बोली – आप बिल्कुल बुद्धू हो सच में… इतना कह कर उसने मेरे होठों को चूम लिया और बोली…
एक लड़की के मन को समझना इतना आसान नही है मिस्टर. अंकुश शर्मा… ! और मुझे चारपाई पर धक्का देकर मेरे सीने पर हाथ रख कर खुद भी मेरे बाजू में लेट गयी…!
फिलहाल मेने अपने आप को उसके हवाले कर दिया, और मन ही मन कहा – अच्छा मेडम, अब तुम भी पता लगाना, कि एक मर्द के मन में क्या है…!
उसकी मुलायम गोल-गोल संतरे जैसी चुचियाँ मेरे सीने से दबी हुई थी… अपनी एक टाँग को उसने मेरे उपर रख लिया और मुस्कराते हुए उपर को बढ़ने लगी…!
अब वो मेरे उपर सवार थी, गले में अपनी नाज़ुक बाहों का हार डालकर मेरे होठों को चूसने लगी…
मेने अपने हाथ एकदम बिस्तर पर रख दिए… और उसकी प्रेमलीला का आनंद लूटने लगा…
मेने भले ही अपने आपको इनॅक्टिव कर रखा था, लेकिन लंड महाराज तो मेरे अधिकार में थे नही,
भेन्चोद साला उसकी मोटी-मोटी रूई जैसी मुलायम जांघों की रगड़ लगते ही किसी डंडे जैसा सख़्त हो गया…,
वो मेरे उपर आ गयी और अपनी गान्ड को मेरे कोब्रा के उपर रखकर मसल्ने लगी…!
बुरी तरह से मेरे होठों को चुस्ती हुई वो अपनी चुचियों को मेरे सीने से रगड़ने लगी, साथ ही उसकी मुनिया मेरे लंड को मसाज दे रही थी…
वो एक टॉप और स्लेकक में थी, बहुत देर तक वो मेरे उपर अपनी मनमानी करती रही जिससे उसका चूत रस बहाते – 2 पैंटी को गीला करने लगी…!
मेरी तरफ से कोई रिक्षन ना होते देख, उसने मेरी तरफ सवालिया नज़रों से देखा, मानो कहना चाहती हो कि प्लीज़ अब मुझे चोद डालो…
मेने मुस्कराते हुए, पहली बार अपने हाथों को हरकत दी, और उसकी गान्ड को ज़ोर से मसल दिया….
आईईईईईईई….म्माआआआअ…..धीरीई……
फिर मेने उसकी बगलों में हाथ डालकर उसे पलटा दिया, और उसे नीचे करके खुद उसके उपर आ गया…
नीचे से उसके टॉप में हाथ डालकर ब्रा के उपर से मेने उसके बूब्स को ज़ोर्से मसल डाला…और कपड़ों के उपर से ही अपने लंड को उसकी चूत के मुँह पर अटका दिया….!
ससिईईईईईईईई…….आअहह….उउफफफफ्फ़…..आअसशह….ह.
मेरा लॉडा इतना कड़क हो गया था… कि उसके दो कपड़ों के बावजूद भी कपड़ों समेत वो उसकी सुरंग के मुंहाने में फँस गया…
वो मज़े से सराबोर….मादकता में चूर होने लगी…जब मेने उसके बगल में आकर उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में लेकर दबाया…तो…
उसकी कमर हवा में लहरा उठी…और उसकी चूत ने अपना काम रस छोड़ दिया…जिससे पैंटी के साथ साथ उसकी स्लेकक भी आगे से गीली हो गयी…!
वो हान्फ्ते हुए बोली – उफफफफ्फ़…. डार्लिंग नाउ फक मी…प्लीज़…आइ कॅन’ट वेट मोर…
मे उसे और तड़पाना चाहता था…लेकिन जब वो चुदने के लिए बेकरार दिखने लगी तो मेने एक कदम आगे बढ़ाते हुए उसका टॉप निकाल दिया और उसकी चुचियों को ब्रा के उपर से ही मसल्ने लगा…
वो नागिन की तरह बिस्तर पर लहराती हुई बुरी तरह से लंड के लिए तड़पने लगी…फिर जब मेने उसके निपल को ब्रा के उपर से ही पकड़ कर उमेठ दिया….तो…
ओउक्चह…..वो बुरी तरह उछल पड़ी…..और मुझे अपने उपर से धकेल कर एक बार फिर मेरे लंड पर बैठ कर अपनी चूत को उसपर रगड़ने लगी…
सीईईईईईईईई…..आहह…..डार्लिंग…उउफफफफफफ्फ़….अब क्यों तडपा रहे हूऊ….
वो सिसकते हुए बोली…फक मी जस्ट नाउ…आइ वान्ट युवर डिक इनसाइड मी.. प्लेआसी…,
मेने फिरसे उसको बिस्तेर पर लिटा दिया…, और उसके लोवर को निकाल कर पैंटी के उपर से ही उसकी चूत को सहलाते हुए उसकी पैंटी को खींच कर घुटनों तक ही कर पाया था..
क़ि तभी, मुझे बाहर से किसी के इस तरफ आने की आहट सुनाई दी……….!
मेने फिरसे उसको बिस्तेर पर लिटा दिया…, और उसके लोवर को निकाल कर उसकी चूत को सहलाते हुए उसकी पैंटी को खींच कर घुटनों तक ही कर पाया था.. कि, तभी…!
मुझे बाहर से किसी के इस तरफ आने की आहट सुनाई दी…..!
किसी के आने की आहट पाकर मेरे कान कुत्ते की तरह खड़े हो गये, मेने फ़ौरन बिस्तर से नीचे जंप लगा दी, और उसे अपने कपड़े ठीक करने का बोल कर बाहर की तरफ लपका…….!
मेने गेट के बाहर झाँक कर देखा लेकिन मुझे वहाँ कोई दिखाई नही दिया, फिर मे जैसे ही पानी की हौदी की तरफ आया, सामने से बाबूजी आर्यन को गोद में लिए खेतों की तरफ से आरहे थे….
मेरा लॉडा अभी भी बुरी तरह अकडा हुआ था, उसे जैसे तैसे उपर को एलास्टिक में खोंसा और अपनी टीशर्ट को थोड़ा नीचे को खींच कर उसे छुपाने की अनर्थक कोशिश की..
मुझे बाबूजी को थोड़ी देर बाहर ही रोकना था, जब तक कि मेघना अपने कपड़े नही पहन लेती… सो लपक कर उनके पास पहुँचा और अचंभित स्वर में बोला…
अरे बाबूजी ! आप अभी तक यही थे… मेने सोचा आर्यन को लेकर घर चले गये होंगे..
वो उसके गाल को पुच्कार्ते हुए बोले…, घर नही गये थे ! इसे थोड़ा खेतों की तरफ घुमाने ले गया था, वहाँ प्रभा बहू मिल गयी तो वो इसे खिलाने लगी…, मेघना बेटी कहाँ है…?
अभी मे उनकी बात का कोई जबाब देने ही वाला था कि वो भी अपने कपड़े सही करके बाहर आती हुई बोली… अरे अंकल जी आप भी अभी यहीं हैं… आर्यन भूखा होगा…?
मेने बाबूजी से लेकर आर्यन को अपनी गोद में लिया, और उसे लेकर हम घर की तरफ चल दिए…!
मेघना मेरे आगे – 2 चल रही थी, उसकी 36” की गान्ड कसे हुए स्लेकक में थिरकति हुई क्या मस्त मटक रही थी, मन किया कि पीछे से एक थप्पड़ तो लगा ही दूं,
लेकिन अधूरी प्यास लिए ना जाने उसके मन में क्या चल रहा हो, जो अभी तक उसने मेरे से कोई बात भी नही की थी…
अब इस अवस्था में ना जाने क्या रिक्ट करे, सो अपना मन मसोस कर रह गया…!
फिर मेने अपनी तरफ से ही बात शुरू करते हुए कहा – सॉरी मेघना जी ! वो मे वो…आपकू… अधूरा….
मेने उसका रिक्षन जानने की गरज से अपनी बात को अधूरा ही छोड़ दिया…!
मेरी बात पर वो ठितकी, और बराबर में आकर, थोड़ी स्माइल देते हुए उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा – इसमें आपको सॉरी बोलने की क्या ज़रूरत है…
आपकी भी तो वही कंडीशन है जो मेरी है, अब अंकल जी आगये तो इसमें किसी की क्या ग़लती…. थॅंक्स टू गॉड, उन्होने हमें देखा नही वरना, पता नही आज क्या होता..
किसी को मुँह दिखाने लायक नही रहते हम लोग…
मे – इसका मतलब, कुछ ग़लत कर रहे थे हम लोग…?
उसने अपनी नज़रें झुका ली और अपने निचले होठ को दाँतों से काटते हुए बोली – सही ग़लत तो पता नही, लेकिन उस वक़्त मे अपना कंट्रोल ज़रूर खो चुकी थी… आइ आम सॉरी !
ये क्या मेघना जी, अभी थोड़ी देर पहले आपने मुझे सॉरी बोलने को मना किया, और अब आप क्यों कह रही हैं…,
वैसे भी इसमें आपकी कोई ग़लती नही थी, अब सिचुयेशन ही ऐसी हो गयी कि कोई भी अपना कंट्रोल खो सकता था…!
मेरी बात पर वो कुछ और ज़्यादा शरमा गयी, और अपनी गर्दन झुका कर चलने लगी… इन्ही बातों के चलते पता ही नही चला कि हम कब घर पहुँच गये…..!
मेरी गोद से आर्यन को लेते हुए दीदी ने पुछा – कहाँ घूम आए..?
मेने बताया कि हम इसे खेतों पर घूमने ले गये थे… उसने इशारे से पुछा कि वो भी साथ में थी क्या..?
मेने भी इशारे से हां बोल दिया… फिर जब मेघना निशा के पास चली गयी तो दीदी बोली – ये बिगड़ी घोड़ी तो लगता है लाइन पर आ गयी…वैसे कुछ बात बनी कि नही…?
मे – बस लगाने ही वाला था, कि बाबूजी आ गये….
वो अपने मुँह पर हाथ रख कर बोली – हाए राम….फिर, … कहीं पकड़े तो नही गये..?
मेने हंसते हुए कहा – नही ! बाल-बाल बच गये…वरना आज तो लौडे लग ही जाने थे…..
घर में मेंबर बढ़ने से अब मेरा और निशा का कार्यक्रम भी नही हो पा रहा था, आज सुबह सुबह मेघना के साथ हुए अधूरे एनकाउंटर ने मेरा दिमाग़ खराब कर रखा था….!
लंच के बाद मे अपने कमरे में लॅपटॉप लेकर बैठ गया, कुछ केसस के अपडेट किए… एक दो रिव्यू देकर असिस्टेंट को मैल भेज दिए…!
मे अपने काम में लगा हुआ था कि तभी निशा अपना किचेन का काम निपटाकर आ गयी…, वो इस समय एक सिल्क की फुल लंबाई की मेक्सी पहने थी…
फिटिंग साइज़ की मेक्सी में से अपनी चोंच चम्काते उसके कबूतरों ने मेरे कुछ राहत की साँस ले चुके लंड को फिरसे भड़काने का काम कर दिया…!
वो अलमारी खोलकर थोड़ा झुक कर उसमें से कुछ निकल रही थी, गोल मटोल गान्ड के कट मेक्सी से एकदम क्लियर उभर आए थे,
गान्ड की दरार को तो उसकी पैंटी ने कुछ हद तक संभाल लिया था.. फिर भी मेरा मन भटक ही गया, और मे लॅपटॉप का कवर डाल कर धीरे से उठा, और अपना लंड उसकी गान्ड की दरार में जा टिकाया…
मेरे लंड को अपनी गान्ड पर फील करते ही वो झटके से खड़ी हो गयी, और पलटकर मुस्कराते हुए मुझे अपने से दूर धकेलते हुए बोली….
इस घोड़े को थोड़ा काबू में रखो… मुझे अपने कपड़े निकालने दो…..
मेने उसकी चुचियों को मसल्ते हुए कहा – मे तुमसे क्या कह रहा हूँ, तुम अपना काम करती रहो…!
वो प्यार से घुड़कते हुए बोली – ऐसे कैसे करती रहूं, आपका क्या भरोसा, यहीं खड़े-2 ही इसे मेरी गान्ड में डाल दिया तो….?
मे – तो क्या आफ़त आ जाएगी, वो तो जाने वाली जगह में जाएगा ही…ये कहकर मेने उसके होठों पर अपने होठ रख दिए….!
कुछ देर वो अपने हाथ को मेरे सीने पर रख कर मुझे दूर करने के लिए कोशिश करती रही,
लेकिन एक मिनिट में ही उसका विरोध धराशायी हो गया, और वो भी मेरे चेहरे को अपने दोनो हाथों में लेकर साथ देने लगी…
जब उसने मोर्चा संभाल लिया तो मेने अपने हाथों को दूसरे इंपॉर्टेंट काम पर लगा दिया, और उसकी गान्ड को मसल्ने लगा…
हम दोनो की जीभ एक दूसरे से अठखेलियाँ करने लगी थी, निशा अपनी आँखें मुन्दे, मज़े से किस्सिंग में खोने लगी…
मौका देखकर मेने उसकी मेक्सी उपर करदी, नीचे वो मात्र एक पैंटी में ही थी.
उसने किस तोड़कर कहा – गेट खुला है राजे, कोई आ जाएगा…
मे – कोई नही आ रहा, दोपहर में सब आराम कर रहे होंगे…ये कहकर मेने अपना लोवर नीचे सरका दिया…
फिर मेने उसे मेक्सी से पूरी तरह आज़ाद करके मात्र ब्रा और पैंटी में ही उसे दीवार के सहारे सटा दिया,
ऐसा ही कुछ हम दोनो के साथ भी हो रहा था…मेने अपनी वो उंगली, जिसकी गाँठ उसकी गान्ड के छेद पर दबी हुई थी उसको मोड़ कर उपर उठा दिया...
उधर मेघना ने ट्रेन के हिचकॉलों का सहारा लेकर अपनी गान्ड को आगे पीछे मूव करना शुरू कर दिया…
उसने अपनी जाँघ को दूसरी जाँघ पर और ज़्यादा चढ़ा लिया, जिससे उसकी गान्ड थोड़ी और उपर हो गयी, अब वो मेरी उठी हुई उंगली पर अपनी गान्ड के छेद को और अच्छे से घिस सकती थी..!
उसकी गर्मी निरंतर बढ़ती जा रही थी, एक कदम और आगे बढ़ते हुए उसने अपनी गान्ड को और पीछे धकेला….
ट्रेन के हिचकॉलों के साथ-साथ वो अपनी गान्ड को आगे पीछे करते रहने की वजह से अब मेरी उंगली उसकी मुनिया के होठों के अंतिम सिरे तक पहुँचने लगी…
मुनिया के द्वार पर मेरी उंगली की गाँठ की दस्तक पाकर, उसकी आँखें मूंद गयी, उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी जो मेरी उंगलियों से पता चल रहा था…
उसका साथ देते हुए, मेने भी अपने हाथ को आगे की तरफ सरकाने के साथ साथ उसे पलटा दिया… अब मेरी उंगली सीधी होकर उसकी चूत के होठों पर सैर कर रही थी..
मेघना का हाल-बहाल हो चुका था, अब उसके कान तक गरम होकर लाल पड़ चुके थे, गले की नसें खिचने लगी……. फिर एक समय ऐसा आया…
और मेघना सारी शर्मो-हया भूल कर उसका हाथ उसकी जँहों के बीच चला गया… और उसने मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी चूत के उपर दबा दिया…
मेरी एक उंगली जो उसकी चूत के उपर थी… वो उसकी सलवार और पैंटी को साथ लिए कुछ अंदर तक उसकी चूत में घुस गयी….,
उसने अपने होठों को कस कर भींच लिया जिससे उसकी आहह….होठों से बाहर ना निकले, और अपनी जांघों को कसकर भींचते हुए वो झड़ने लगी…..!
बहुत देर तक वो यौंही अपनी जांघों को कसे रही…फिर जब उत्तेजना शांत हुई…तो धीरे – 2 ढीला छोड़ा…!
उसकी जांघों का कसाव हटते ही मेने अपना हाथ बाहर खींच लिया…
उसने अपनी नज़र आस-पास दौड़ाई, भीड़ में किसी का ध्यान किसी की तरफ नही था…वैसे भी वो पहाड़ जैसी औरत सामने खड़ी थी…तो उसकी आड़ में कॉन देखने वाला था…
फिर उसने मेरी तरफ देखा, तो में अपनी नज़र डिब्बे में बैठे लोगों की तरफ घूमाते हुए उसके रस से गीली उंगलियों को नाक पर रख कर सूंघने लगा..!
ये देखकर वो बुरी तरह शरमा गयी, अपनी नज़र नीची करके मन ही मन मुस्करा उठी…!
फिर मौका देखकर मेघना ने अपनी मुनिया को रगड़ कर उससे निकले रस के गीलेपन को अपने कपड़ों से पोंच्छ लिया….!
कुछ देर के बाद ही एक बड़ा सा स्टेशन आया, और डिब्बे की सारी भीड़ वहाँ उतर गयी, कुछ और नये मुसाफिर भी चढ़े, लेकिन अब उतनी भीड़ नही थी….
हमने कुछ खाने पीने का सोचा, दीदी कुछ समान घर से बना के लाई थी, वो निकालने लगी…
मेघना बोली – आप खाना निकालो भाभी, तब तक में टाय्लेट जाकर आती हूँ, ये कहकर वो टाय्लेट चली गयी…
में समझ रहा था, वो टाय्लेट क्यों जा रही है…!
सफ़र के अंत तक मेघना ने मेरी तरफ आँख उठाकर भी नही देखा,
मुझसे नज़रें मिलाने की उसकी हिम्मत ही नही हुई, और सच कहूँ तो मेरी भी नही.
अंधेरा होते – 2 हम अपने घर आ गये…मे स्टेशन तक अपनी कार ले गया था, जो लौटने में बहुत काम आई, और आराम से हम साजो-समान के साथ घर तक आ गये…
दीदी सभी से मिलकर बहुत खुश हुई, रूचि को खेलने के लिए आर्यन के रूप में एक और साथी मिल गया…
अभी तक तो वो चाची के अंश के साथ ही थोड़ा बहुत खेल लेती थी… मेघना भी घर में सभी से मिलकर बहुत खुश हुई….!
निशा ने तो उसे अपना दोस्त ही बना लिया…, और उसका समान अपने कमरे में शिफ्ट कर दिया…..! उन दोनो को देख कर लग ही नही रहा था, कि ये पहली बार मिली हैं…
भाभी का लास्ट मंत चल रहा था, वो ज़्यादातर रेस्ट ही करती रहती थी…, रामा दीदी ज़्यादातर भाभी के पास ही अपना समय बिताने लगी…
शादी एक सादा और सिंपल तरीके से होने वाली थी, तो ज़यादा नाते-रिश्तेदारों का जमावड़ा लगने वाला नही था… और कोई विशेष तैयारियाँ भी नही होनी थी…
तय हुआ था, कि हम सभी लोग शहर में ही एक गेस्ट हाउस और पार्टी प्लॉट रेंट पर ले लेंगे, वहीं प्राची और उसका परिवार भी आजाएँगे, सारी रस्म अदा करके, सिंपल तरीके से शादी हो जाएगी…
गाओं में आकर रिसेप्षन करके सारे गाओं को दावत खिला दी जाएगी…!
मे कई दिनो से अपने ऑफीस नही जा पाया था, सो दूसरे दिन सुबह-सुबह ही गाड़ी लेकर अपने ऑफीस को निकल लिया…!
कुछ केसस आए थे, जो मेरे असिस्टेंट ने हॅंडल कर लिए, कुछ बड़े केसस की डेट पोस्टपोन करके कुछ दिन बाद की करवा ली…..!
जल्दी – 2 सब काम निपटाकर मे शाम को ही घर वापस लौट आया…
कपड़े चेंज करके, मे भाभी के कमरे में आकर बैठ गया, कुछ देर
रूचि को पढ़ाता रहा,
फिर मेघना आर्यन को लेकर वहीं आ गयी, तो रूचि अपनी पढ़ाई बंद करके उसके साथ खेलने में लग गयी…!
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर आदतन मेने एक्सर्साइज़ वग़ैरह की, और चाय पीकर खेतों की तरफ निकलने की सोची…
अभी मे चौपाल तक ही पहुँचा था, कि पीछे से मेघना की आवाज़ सुनाई दी…, आर्यन को गोद में लिए वो मेरे पास आकर बोली –
वो - कहीं जा रहे हैं अंकुश जी…?
मे – हां ! तोड़ा खेतों की तरफ चक्कर मार कर आता हूँ, कोई काम था..?
वो – हमें नही दिखाएँगे अपने खेत…?
मे – अरे ! व्हाई नोट…? चलिए, अच्छा है, ताजी हवा मिलेगी और वैसे भी हमारे खेतों में बहुत कुछ है देखने लायक…!
मेने आर्यन को अपनी गोद में ले लिया और चल पड़े हम दोनो खेतों की तरफ..
आपस में बातें करते हुए, आर्यन के साथ खेलते हुए, हम ट्यूबिवेल तक पहुँच गये…,
रास्ते में आर्यन के बहाने हम दोनो एक दूसरे के काफ़ी नज़दीक भी आए…
ट्यूबिवेल पर आकर, मेने आर्यन को बाबूजी के पास छोड़ा, और मेघना को लेकर अपने बगीचे की तरफ चल दिया…
हम पानी की नाली के साथ – 2 चले जा रहे थे, एक तरफ मे चल रहा था, और नाली के दूसरी तरफ मेरे बराबर में ही वो चल रही थी….
अचानक से उसका पैर स्लिप हो गया, और वो पानी की नाली में गिरने ही वाली थी, कि मेने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे थाम लिया….
उसके पैर नाली में थे, मेरा एक हाथ उसकी कमर को थामे हुए था, उसकी गोल-2 मुलायम एक चुचि मेरे बदन से दब गयी…
दूसरे हाथ का सहारा देने के लिए मेरा हाथ आगे आया, तो वो थोड़ा सा आगे को घूमी, मे पकड़ना चाहता था उसका कंधा, लेकिन उसके घूमने की वजह से मेरा वो हाथ उसकी चुचि पर पड़ा…
चुचि पर हाथ लगते ही उसके मुँह से सिसकी नकल गयी…उसने अपना एक हाथ मेरी कमर में डाल कर, अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया…!
मेने हड़बड़ा कर अपना हाथ उसकी चुचि से हटाना चाहा…तो फ़ौरन उसने अपना एक हाथ मेरे हाथ के उपर रख दिया, और उसे ज़ोर्से दबा कर वो मेरे शरीर से चिपक गयी…
अपनी गर्दन उठाकर उसने मेरी आँखों में झाँका…हम दोनो की नज़रें जुड़ गयी…और कुछ देर तक टक-टॅकी लगाए एक दूसरे को देखते रहे…
उसकी कमर से लिपटे मेरे हाथ ने शरारत कर दी, और वो उसकी गोल-मटोल, बाहर को उभरी हुई गान्ड, जो इस स्थिति में और ज़्यादा उभर आई थी, उसपर फिसल कर पहुँच गया… और उसके गान्ड के उभर को ज़ोर्से भींच दिया…
औचह….मुम्मिईीईईईईईई…. उसके मुँह से एक मेते-2 दर्द भरी कराह निकल गयी… और इसी के साथ हम दोनो की तंद्रा भी भंग होगयि…!
वो झट से अलग हो गयी, और गर्दन झुकाए मेरे बराबर में फिरसे चलने लगी…
मेने उससे पुछा – मघना जी कहीं चोट तो नही आई आपको…?
वो – नही, थॅंक्स आपने मुझे गिरने से बचा लिया….!
मे – सॉरी ! वो आपको संभालने के चक्कर में थोड़ा ज़ोर से पकड़ लिया आपको..
वो गर्दन नीचे करके मंद-मंद मुस्करती हुई बोली – इट्स ओके, मे ठीक हूँ..
दो-तीन खेत पार करते ही हम बगीचे में पहुँच गये… मन्झ्ले चाचा ने उसको अच्छे से संभाला हुआ था, अब बीच – 2 में कुछ फूलों के पेड़ भी लगा दिए थे…
बगीचे की हरियाली देख कर वो बड़ी खुश हुई…, इधर से उधर घूम-2 कर फूलों पर उड़ती हुई रंग-बिरंगी तितलियों को पकड़ने की कोशिश करने लगी..
फूलों की क्यारी के बीच में एक आम का बहुत बड़ा और पुराना पेड़ था, जिसके मोटे तने के सराउंडिंग मिट्टी डालकर एक गोल सा चबूतरा बनाया हुया था, जिस पर हरी-2 दूब घास खड़ी थी…
मे उस चबूतरे पर जाकर बैठ गया, और उसे इधर से उधर दौड़ते हुए देखने लगा…
कभी कभी, सुबह की ठंडी हवा के हल्के-2 झोंकों से उसकी जुल्फें उड़कर उसके गुलाबी गालों को चूम लेती थी…!
कुछ देर बाद वो थक गयी, और मेरी बगल में बैठकर अपनी साँसों को संयत करने लगी…….!
उसकी साँसों की गति के साथ-साथ उसकी 34 की चुचियाँ भी उपर-नीचे हो रही थी..
साँसों को कंट्रोल करते हुए वो बोली - आपका गाओं सच में बहुत अच्छा है, और सबसे अच्छा आपका ये बगीचा है, जी करता है यहीं रह जाउ…!
मेने जब उसकी तरफ निगाह डाली, तो वो एकटक मेरी ओर ही देख रही थी… मेने उसके चेहरे पर नज़र डालते हुए कहा – रुक जाइए ना ! आपका ही घर है ये भी…
वो थोड़ा मायूसी भरे स्वर में बोली – मजबूरी है, पढ़ाई भी तो करनी है…मम्मी पापा के अरमान पूरे करने हैं…!
फिर अपनी गर्दन नीचे झुका कर बोली – आप लोगों के बारे में मे कितना ग़लत थी, लेकिन यहाँ आकर आपके परिवार का अपनापन देख कर मुझे अपने आप पर ग्लानि सी होने लगी है….!
और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर कहने लगी – आप सच में बहुत अच्छे इंसान हैं, निशा भाभी बहुत खुश नसीब हैं, मुझे तो अब उनसे जलन हो रही है…
झोंक-2 में उसके मुँह से ये शब्द निकल तो गये… लेकिन जैसे ही उसने इस बारे में ध्यान दिया, फ़ौरन शर्मिंदगी के कारण उसकी गर्दन झुक गयी……!
मेघना के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर मे उसकी तरफ देखने लगा, जो अब शर्म से अपनी गर्दन झुकाए अपनी नज़रों को ज़मीन में गढ़ाए हुई थी…!
इतने में उसके बालों की एक लत शरारत करती हुई उसके गुलाबी गाल पर आकर खेलने लगी, लगा मानो चाँद पर कोई बदली का कतरा आ ठहरा हो..
बरबस ही मेरा हाथ उठा और उसकी लट को संवारते हुए उसके चाँद से मुखड़े पर नज़र गढ़ाए हुए बोला – आपको निशा से जलन क्यों हो रही है मेघना जी….?
मेरी बात का उसने तुरंत कोई जबाब नही दिया, बस अपनी नज़रें ज़मीन में गढ़ाए बैठी रही…!
उसके चेहरे पर शर्मिंदगी साफ दिखाई दे रही थी, मेने उसके हाथ को सहलाते हुए फिर से पुछा – बोलिए ना मेघना जी…
उसके होंठ कंप-कपा उठे, बड़ी मुश्किल से अपनी पलकों को उठाकर उसने एक नज़र मेरे चेहरे पर डाली, और अपने काँपते होठों को खोला – आप जैसा हॅंडसम और सुलझा हुआ जीवन साथी जो मिला है उन्हें…!
मेने ठहाका सा लगाते हुए कहा – मे ऑर हॅंडसम, आप मज़ाक बहुत अच्छा कर लेती हैं मेघना जी, ऐसा क्या दिखा आपको मुझमें जिससे मे हॅंडसम दिखाई दे रहा हूँ…?
उसने भरपूर नज़र मेरे चेहरे पर डाली और फिर मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली – मेरी नज़र में आप किसी फिल्मी हीरो से कम नही हैं,
और सबसे बड़ी खूबी आप सभी के साथ इतने अच्छे से समन्वय बना लेते हैं, हर बात का सल्यूशन है आपके पास…,
एक परफेक्ट मॅन की सारी खूबियाँ हैं आपके पास, एक लड़की को अपने जीवन साथी से और क्या चाहिए…!
मे – तो अब जलन करने से क्या हासिल होगा, जो होना था सो तो हो गया, अब आपके जो भी अरमान हों, जो भी मुझसे पाना चाहती हैं, वो अभी भी मिल सकता है…!
मेरी बात सुनते ही एक झटके से उसने अपना सर उठाया, और मेरी तरफ देखने लगी…, उसकी आँखों में एक सवाल था, मानो वो पुच्छना चाहती हो कि क्या ऐसा संभव है...?
मे उसकी नज़रों की भाषा अच्छे से समझ चुका था, मेरे चेहरे पर एक अर्थ्मयि मुस्कान तैर गयी,
अपना एक हाथ उसकी कमर में डालकर मेने उसको अपनी तरफ खींचा, और उसके थर थराते हुए होठों पर अपने होठ रख दिए…!
उसकी आँखें बंद हो गयी चेहरा शर्म और लाज़ से लाल हो गया…, दो मिनिट तक हम एक दूसरे के होठों का रास्पान करते रहे… फिर मेने उसे छोड़ दिया…!
मेरे अलग होते ही वो झटके से वहाँ से उठ गयी, और थोड़ी दूर जाकर खड़ी हो गयी, उसकी पीठ मेरी तरफ थी, तो ये देख पाना मुमकिन नही था, कि वो इस समय क्या सोच रही होगी…?
मेरे मन में थोड़ा डर सा पैदा हुआ, पता नही साला, कहीं इसको बुरा तो नही लगा…
कुछ देर बाद मे हिम्मत करके उठा, और पीछे से उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया…
मेरे हाथ लगते ही वो सिहर गयी…, और लंबी-लंबी साँसें भरने लगी.
मेने उसके बिल्कुल पास आकर कहा – सॉरी मेघना जी, मुझे लगा…आप भी..ये सब… चाहती होंगी…तो…
उसने मेरी तरफ देखा, उसकी आँखें तो कह रही थी क़ि उसे भी वो सब अच्छा लगा… फिर यों उठके दूर जाने का क्या मतलब था…!
अब हमें घर चलना चाहिए…. काफ़ी वक़्त हो गया है यहाँ आए हुए, आर्यन भूखा होगा.. उसने मेरी बात का कोई जबाब ना देते हुए कहा…!
फिर हम वहाँ से ट्यूबिवेल की तरफ चल दिए, वहाँ पहुँच कर पता चला कि बाबूजी आर्यन को लेकर घर चले गये है, शायद वो अपनी मम्मी के पास जाने के लिए ज़िद करने लगा होगा…
मे बैठक वाले कमरे में गया, मेरे पीछे – 2 वो भी आ गयी, और जाकर सीधी चारपाई पर अपने पैर नीचे लटका कर बैठ गयी…
मेने कहा – अब घर नही चलना है…?
वो बोली – आर्यन को तो अंकल जी ले ही गये हैं, तो थोड़ी देर और बैठते हैं…आइए आप भी बैठिए…
ये कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पास बिठा लिया….!
मेने अपने मन में कहा – आख़िर ये लड़की चाहती क्या है… कभी लगता है, मुझसे दूर भाग रही है, तो दूसरे ही पल लगता है, की कुछ है इसके मन में भी..
क्या सोचने लगे…? मुझे यूँ चुप देख कर वो बोली…
मे हड़बड़ा कर बोला--- क.क.कुछ नही, बस ऐसे ही…
मेरी हड़बड़ाहट देख कर वो खिल खिलाकर हँस पड़ी… और बोली – आप बिल्कुल बुद्धू हो सच में… इतना कह कर उसने मेरे होठों को चूम लिया और बोली…
एक लड़की के मन को समझना इतना आसान नही है मिस्टर. अंकुश शर्मा… ! और मुझे चारपाई पर धक्का देकर मेरे सीने पर हाथ रख कर खुद भी मेरे बाजू में लेट गयी…!
फिलहाल मेने अपने आप को उसके हवाले कर दिया, और मन ही मन कहा – अच्छा मेडम, अब तुम भी पता लगाना, कि एक मर्द के मन में क्या है…!
उसकी मुलायम गोल-गोल संतरे जैसी चुचियाँ मेरे सीने से दबी हुई थी… अपनी एक टाँग को उसने मेरे उपर रख लिया और मुस्कराते हुए उपर को बढ़ने लगी…!
अब वो मेरे उपर सवार थी, गले में अपनी नाज़ुक बाहों का हार डालकर मेरे होठों को चूसने लगी…
मेने अपने हाथ एकदम बिस्तर पर रख दिए… और उसकी प्रेमलीला का आनंद लूटने लगा…
मेने भले ही अपने आपको इनॅक्टिव कर रखा था, लेकिन लंड महाराज तो मेरे अधिकार में थे नही,
भेन्चोद साला उसकी मोटी-मोटी रूई जैसी मुलायम जांघों की रगड़ लगते ही किसी डंडे जैसा सख़्त हो गया…,
वो मेरे उपर आ गयी और अपनी गान्ड को मेरे कोब्रा के उपर रखकर मसल्ने लगी…!
बुरी तरह से मेरे होठों को चुस्ती हुई वो अपनी चुचियों को मेरे सीने से रगड़ने लगी, साथ ही उसकी मुनिया मेरे लंड को मसाज दे रही थी…
वो एक टॉप और स्लेकक में थी, बहुत देर तक वो मेरे उपर अपनी मनमानी करती रही जिससे उसका चूत रस बहाते – 2 पैंटी को गीला करने लगी…!
मेरी तरफ से कोई रिक्षन ना होते देख, उसने मेरी तरफ सवालिया नज़रों से देखा, मानो कहना चाहती हो कि प्लीज़ अब मुझे चोद डालो…
मेने मुस्कराते हुए, पहली बार अपने हाथों को हरकत दी, और उसकी गान्ड को ज़ोर से मसल दिया….
आईईईईईईई….म्माआआआअ…..धीरीई……
फिर मेने उसकी बगलों में हाथ डालकर उसे पलटा दिया, और उसे नीचे करके खुद उसके उपर आ गया…
नीचे से उसके टॉप में हाथ डालकर ब्रा के उपर से मेने उसके बूब्स को ज़ोर्से मसल डाला…और कपड़ों के उपर से ही अपने लंड को उसकी चूत के मुँह पर अटका दिया….!
ससिईईईईईईईई…….आअहह….उउफफफफ्फ़…..आअसशह….ह.
मेरा लॉडा इतना कड़क हो गया था… कि उसके दो कपड़ों के बावजूद भी कपड़ों समेत वो उसकी सुरंग के मुंहाने में फँस गया…
वो मज़े से सराबोर….मादकता में चूर होने लगी…जब मेने उसके बगल में आकर उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में लेकर दबाया…तो…
उसकी कमर हवा में लहरा उठी…और उसकी चूत ने अपना काम रस छोड़ दिया…जिससे पैंटी के साथ साथ उसकी स्लेकक भी आगे से गीली हो गयी…!
वो हान्फ्ते हुए बोली – उफफफफ्फ़…. डार्लिंग नाउ फक मी…प्लीज़…आइ कॅन’ट वेट मोर…
मे उसे और तड़पाना चाहता था…लेकिन जब वो चुदने के लिए बेकरार दिखने लगी तो मेने एक कदम आगे बढ़ाते हुए उसका टॉप निकाल दिया और उसकी चुचियों को ब्रा के उपर से ही मसल्ने लगा…
वो नागिन की तरह बिस्तर पर लहराती हुई बुरी तरह से लंड के लिए तड़पने लगी…फिर जब मेने उसके निपल को ब्रा के उपर से ही पकड़ कर उमेठ दिया….तो…
ओउक्चह…..वो बुरी तरह उछल पड़ी…..और मुझे अपने उपर से धकेल कर एक बार फिर मेरे लंड पर बैठ कर अपनी चूत को उसपर रगड़ने लगी…
सीईईईईईईईई…..आहह…..डार्लिंग…उउफफफफफफ्फ़….अब क्यों तडपा रहे हूऊ….
वो सिसकते हुए बोली…फक मी जस्ट नाउ…आइ वान्ट युवर डिक इनसाइड मी.. प्लेआसी…,
मेने फिरसे उसको बिस्तेर पर लिटा दिया…, और उसके लोवर को निकाल कर पैंटी के उपर से ही उसकी चूत को सहलाते हुए उसकी पैंटी को खींच कर घुटनों तक ही कर पाया था..
क़ि तभी, मुझे बाहर से किसी के इस तरफ आने की आहट सुनाई दी……….!
मेने फिरसे उसको बिस्तेर पर लिटा दिया…, और उसके लोवर को निकाल कर उसकी चूत को सहलाते हुए उसकी पैंटी को खींच कर घुटनों तक ही कर पाया था.. कि, तभी…!
मुझे बाहर से किसी के इस तरफ आने की आहट सुनाई दी…..!
किसी के आने की आहट पाकर मेरे कान कुत्ते की तरह खड़े हो गये, मेने फ़ौरन बिस्तर से नीचे जंप लगा दी, और उसे अपने कपड़े ठीक करने का बोल कर बाहर की तरफ लपका…….!
मेने गेट के बाहर झाँक कर देखा लेकिन मुझे वहाँ कोई दिखाई नही दिया, फिर मे जैसे ही पानी की हौदी की तरफ आया, सामने से बाबूजी आर्यन को गोद में लिए खेतों की तरफ से आरहे थे….
मेरा लॉडा अभी भी बुरी तरह अकडा हुआ था, उसे जैसे तैसे उपर को एलास्टिक में खोंसा और अपनी टीशर्ट को थोड़ा नीचे को खींच कर उसे छुपाने की अनर्थक कोशिश की..
मुझे बाबूजी को थोड़ी देर बाहर ही रोकना था, जब तक कि मेघना अपने कपड़े नही पहन लेती… सो लपक कर उनके पास पहुँचा और अचंभित स्वर में बोला…
अरे बाबूजी ! आप अभी तक यही थे… मेने सोचा आर्यन को लेकर घर चले गये होंगे..
वो उसके गाल को पुच्कार्ते हुए बोले…, घर नही गये थे ! इसे थोड़ा खेतों की तरफ घुमाने ले गया था, वहाँ प्रभा बहू मिल गयी तो वो इसे खिलाने लगी…, मेघना बेटी कहाँ है…?
अभी मे उनकी बात का कोई जबाब देने ही वाला था कि वो भी अपने कपड़े सही करके बाहर आती हुई बोली… अरे अंकल जी आप भी अभी यहीं हैं… आर्यन भूखा होगा…?
मेने बाबूजी से लेकर आर्यन को अपनी गोद में लिया, और उसे लेकर हम घर की तरफ चल दिए…!
मेघना मेरे आगे – 2 चल रही थी, उसकी 36” की गान्ड कसे हुए स्लेकक में थिरकति हुई क्या मस्त मटक रही थी, मन किया कि पीछे से एक थप्पड़ तो लगा ही दूं,
लेकिन अधूरी प्यास लिए ना जाने उसके मन में क्या चल रहा हो, जो अभी तक उसने मेरे से कोई बात भी नही की थी…
अब इस अवस्था में ना जाने क्या रिक्ट करे, सो अपना मन मसोस कर रह गया…!
फिर मेने अपनी तरफ से ही बात शुरू करते हुए कहा – सॉरी मेघना जी ! वो मे वो…आपकू… अधूरा….
मेने उसका रिक्षन जानने की गरज से अपनी बात को अधूरा ही छोड़ दिया…!
मेरी बात पर वो ठितकी, और बराबर में आकर, थोड़ी स्माइल देते हुए उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा – इसमें आपको सॉरी बोलने की क्या ज़रूरत है…
आपकी भी तो वही कंडीशन है जो मेरी है, अब अंकल जी आगये तो इसमें किसी की क्या ग़लती…. थॅंक्स टू गॉड, उन्होने हमें देखा नही वरना, पता नही आज क्या होता..
किसी को मुँह दिखाने लायक नही रहते हम लोग…
मे – इसका मतलब, कुछ ग़लत कर रहे थे हम लोग…?
उसने अपनी नज़रें झुका ली और अपने निचले होठ को दाँतों से काटते हुए बोली – सही ग़लत तो पता नही, लेकिन उस वक़्त मे अपना कंट्रोल ज़रूर खो चुकी थी… आइ आम सॉरी !
ये क्या मेघना जी, अभी थोड़ी देर पहले आपने मुझे सॉरी बोलने को मना किया, और अब आप क्यों कह रही हैं…,
वैसे भी इसमें आपकी कोई ग़लती नही थी, अब सिचुयेशन ही ऐसी हो गयी कि कोई भी अपना कंट्रोल खो सकता था…!
मेरी बात पर वो कुछ और ज़्यादा शरमा गयी, और अपनी गर्दन झुका कर चलने लगी… इन्ही बातों के चलते पता ही नही चला कि हम कब घर पहुँच गये…..!
मेरी गोद से आर्यन को लेते हुए दीदी ने पुछा – कहाँ घूम आए..?
मेने बताया कि हम इसे खेतों पर घूमने ले गये थे… उसने इशारे से पुछा कि वो भी साथ में थी क्या..?
मेने भी इशारे से हां बोल दिया… फिर जब मेघना निशा के पास चली गयी तो दीदी बोली – ये बिगड़ी घोड़ी तो लगता है लाइन पर आ गयी…वैसे कुछ बात बनी कि नही…?
मे – बस लगाने ही वाला था, कि बाबूजी आ गये….
वो अपने मुँह पर हाथ रख कर बोली – हाए राम….फिर, … कहीं पकड़े तो नही गये..?
मेने हंसते हुए कहा – नही ! बाल-बाल बच गये…वरना आज तो लौडे लग ही जाने थे…..
घर में मेंबर बढ़ने से अब मेरा और निशा का कार्यक्रम भी नही हो पा रहा था, आज सुबह सुबह मेघना के साथ हुए अधूरे एनकाउंटर ने मेरा दिमाग़ खराब कर रखा था….!
लंच के बाद मे अपने कमरे में लॅपटॉप लेकर बैठ गया, कुछ केसस के अपडेट किए… एक दो रिव्यू देकर असिस्टेंट को मैल भेज दिए…!
मे अपने काम में लगा हुआ था कि तभी निशा अपना किचेन का काम निपटाकर आ गयी…, वो इस समय एक सिल्क की फुल लंबाई की मेक्सी पहने थी…
फिटिंग साइज़ की मेक्सी में से अपनी चोंच चम्काते उसके कबूतरों ने मेरे कुछ राहत की साँस ले चुके लंड को फिरसे भड़काने का काम कर दिया…!
वो अलमारी खोलकर थोड़ा झुक कर उसमें से कुछ निकल रही थी, गोल मटोल गान्ड के कट मेक्सी से एकदम क्लियर उभर आए थे,
गान्ड की दरार को तो उसकी पैंटी ने कुछ हद तक संभाल लिया था.. फिर भी मेरा मन भटक ही गया, और मे लॅपटॉप का कवर डाल कर धीरे से उठा, और अपना लंड उसकी गान्ड की दरार में जा टिकाया…
मेरे लंड को अपनी गान्ड पर फील करते ही वो झटके से खड़ी हो गयी, और पलटकर मुस्कराते हुए मुझे अपने से दूर धकेलते हुए बोली….
इस घोड़े को थोड़ा काबू में रखो… मुझे अपने कपड़े निकालने दो…..
मेने उसकी चुचियों को मसल्ते हुए कहा – मे तुमसे क्या कह रहा हूँ, तुम अपना काम करती रहो…!
वो प्यार से घुड़कते हुए बोली – ऐसे कैसे करती रहूं, आपका क्या भरोसा, यहीं खड़े-2 ही इसे मेरी गान्ड में डाल दिया तो….?
मे – तो क्या आफ़त आ जाएगी, वो तो जाने वाली जगह में जाएगा ही…ये कहकर मेने उसके होठों पर अपने होठ रख दिए….!
कुछ देर वो अपने हाथ को मेरे सीने पर रख कर मुझे दूर करने के लिए कोशिश करती रही,
लेकिन एक मिनिट में ही उसका विरोध धराशायी हो गया, और वो भी मेरे चेहरे को अपने दोनो हाथों में लेकर साथ देने लगी…
जब उसने मोर्चा संभाल लिया तो मेने अपने हाथों को दूसरे इंपॉर्टेंट काम पर लगा दिया, और उसकी गान्ड को मसल्ने लगा…
हम दोनो की जीभ एक दूसरे से अठखेलियाँ करने लगी थी, निशा अपनी आँखें मुन्दे, मज़े से किस्सिंग में खोने लगी…
मौका देखकर मेने उसकी मेक्सी उपर करदी, नीचे वो मात्र एक पैंटी में ही थी.
उसने किस तोड़कर कहा – गेट खुला है राजे, कोई आ जाएगा…
मे – कोई नही आ रहा, दोपहर में सब आराम कर रहे होंगे…ये कहकर मेने अपना लोवर नीचे सरका दिया…
फिर मेने उसे मेक्सी से पूरी तरह आज़ाद करके मात्र ब्रा और पैंटी में ही उसे दीवार के सहारे सटा दिया,