Update 62
मेरे करवट लेते ही मेरा लंड उनकी जाँघ से जा टकराया…! बेचारी मधु आंटी, मुझे जगाकर चाय पीने के लिए बोलकर वहाँ से जाने के बारे में फ़ैसला कर चुकी थी…
लेकिन वो जैसे ही उनकी जाँघ से टच हुआ, उनके शरीर के सारे तार झंझणा उठे.., उनकी गीली अधेड़ चूत की फाँकें फड्क उठी, ना चाहते हुए भी उन्होने अपनी जाँघ को मेरे लॉड पर और थोड़ा सा दबा दिया…!
मेरी उपर वाली जाँघ मधु आंटी के कूल्हे से सटी हुई थी, अब वो चाहकर भी वहाँ से जाने के बारे में सोच भी नही सकती थी…
मेरा लंड थुनक-थुनक कर उनकी मांसल जाँघ पर ठोकरें मार रहा था, वो अपने होशो-हवास खोने लगी, और अपनी एल्बो मेरे सिर के बाजू में टेक कर दूसरे हाथ से मेरे लौडे को अपनी मुट्ठी में भर लिया….!
शॉर्ट के उपर से वो पूरी तरह उनकी मुट्ठी में नही आपा रहा था, फिर भी उन्होने उसे एक दो बार सहलाया…!
वासना ने उनके विवेक पर कब्जा जमा लिया, उनकी प्यासी मुनिया लगातार रस छोड़ने लगी…, उनकी और ज़्यादा पाने की चाह ने मेरे शॉर्ट के अंदर हाथ डालने को विवस कर दिया, मेरे नंगे गरम लंड को अपनी मुट्ठी में लेते ही वो सिसक पड़ी…
आआहह…हाईए… कितना गरम और मोटा तगड़ा लंड है इनका, हाए राम इसको अब कैसे लूँ अपने अंदर…,
फिर उन्होने सीधे बैठते हुए मेरे कंधे पर दबाब डालकर मुझे सीधा कर दिया…, मेरी नींद टूटने लगी, और मेने कुन्मूनाकर जैसे ही आँखें खोली…
उन्होने झटके से अपना हाथ मेरे शॉर्ट से बाहर निकाल लिया…, और फ़ौरन बेड से खड़ी हो गयी…!
उनकी नज़र झुकी हुई थी, जांघें उनके चूतरस से चिप-चिपा रही थी, जिन्हें उन्होने आगे से अपने गाउन को जांघों के बीच इकट्ठा करके दबा रखा था…
मे हड़बड़ा कर बैठ गया, और उनको देखते ही बोला – आंटी आप…?
वो – ह..ह..हां ! तुम्हारे लिए चाय लाई थी, बहुत कोशिश की उठाने की लेकिन लगता है, बहुत गहरी नींद में थे…
फिर मुझे एहसास हुआ कि मेरा लॉडा फुल मस्ती में है, सो फ़ौरन उसे छिपाने के लिए मेने अपनी टाँगें सिकोडकर बैठते हुए कहा – हां, थोडा ज़्यादा ही गहरी नींद आ गयी…
काफ़ी दिनो से काम की वजह से ठीक से सो नही पा रहा था, और आज अलार्म भी नही लगाया, वैसे क्या टाइम हुआ है…?
वो – 9 बज गये..,
मे – क्या…? बाप रे इतना तो मे कभी नही सोया.., आप चलिए में चाय पीकर फ्रेश होता हूँ,
वो – चाय तो ठंडी हो गयी होगी, मे गरम कर देती हूँ…!
मे – कोई बात नही, मे बिना चाय पीए ही फ्रेश हो लेता हूँ, आप ले जाइए इसे, बाद में गरम करके पी लूँगा…!
वो अपनी नज़रें नीचे किए हुए अपनी जांघों को भींचे हुए ही चाय उठाने आगे बढ़ी, मेरी नज़र उनपर ही टिकी हुई थी…,
वो शर्म से पानी पानी हो उठी, और झट-पट चाय का कप लेकर नज़र झुकाए रूम से बाहर निकल गयी…!
फिर मेने अपनी स्थिति का निरीक्षण किया, अपने लंड की हालत देख कर मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी, और उसे नीचे को दबाते हुए बुद्बुदाया – मदर्चोद, बहुत बेशर्म हो गया है,
आंटी ने देख लिया होगा तो ना जाने क्या सोच रही होगी वो, कैसा बेशर्म इंसान है ये लंड खड़ा किए पड़ा है…!
तभी मुझे एक झटका सा लगा, याद आया कि जब मेरी नींद खुली थी तब उनका हाथ मेरे शॉर्ट में था, जिसे उन्होने झटके से बाहर निकाला था…
तो क्या आंटी भी इसके मज़े ले रही थी..? कहीं उनका मन तो नही है..इसे लेने का…? शायद इसलिए शर्म से वो सर झुकाए खड़ी थी…,
वैसे बेचारी की ग़लती भी क्या है, कितने दिनो से अपने पति से अलग रह रही हैं, हो सकता है मेरे खड़े लंड को देखकर उनकी इच्छा जाग उठी हो…?
फिर मुझे याद आया कि कैसे वो अपनी जांघों को भींचे हुए खड़ी थी, इसका मतलब वो मेरे लंड को देखकर, उसे फील करके गीली हो गयी होगी शायद…,
क्या वो मेरे साथ संबंध बनाना चाहती हैं..? अगर ऐसा हुआ तो क्या मुझे भी उनका साथ देना चाहिए…?
मेरे ख्याल से ये ठीक नही है, नया नया रिश्ता जुड़ा है, कहीं कुछ ग़लत हो गया तो.., मेरा तो क्या बिगड़ने वाला है, वो बेचारी खम्खा रुसवा ना हो जायें..
लेकिन लगता है वो बहुत प्यासी हैं, मुझे उन्हें निराश नही करना चाहिए…, इसी कसम्कस के चलते मे ये सोचते उठा…
चलो देखते हैं अगर वो इस खेल में आगे बढ़ना चाहेंगी तो देखा जाएगा, ये सोचते हुए मेने बिस्तर से नीचे जंप लगा दी, और सीधा बाथरूम में घुस गया…!
आज मुझे गुप्ता जी से मिलनने जाना था, लेट होने की वजह से अब तो वो इस समय ऑफीस में ही मिल सकते थे.., सो रेडी होकर मे हॉल में आया….
तब तक आंटी भी नहा धोकर तैयार हो गयी थी, और अपने काम पर जाने के लिए निकलने वाली थी…!
आज से पहले मेने उनपर कुछ खास ध्यान नही दिया था, अब तक मे उन्हें प्राची की माँ की नज़र से ही देखता आया था, लेकिन आज जो हुआ भले ही वो अंजाने या परिस्थिति बस हुआ हो,
उसके बाद उनको देखने की मेरी नज़र थोड़ी चेंज हो गयी, जो की स्वाभाविक सी बात है…!
एक भरपूर नज़र मेने उनके उपर डाली, वो इस समय लाइट पिंक कॉटन साड़ी पहने हुए थी, शायद 34-32-36 का फिगर, अच्छी आवरेज हाइट 5.5’ की, गोरी रंगत, भरा हुआ गोल चेहरा…
कसे हुए ब्लाउस से छल्कता उनका यौवन, हल्का सा मांसल पेट, गेंहरी नाभि, जिसके ठीक नीचे वो साड़ी बाँधती थी…
36” के गोल-मटोल सुडौल कसे हुए कूल्हे जो पल्लू को कसकर लपेटने के बाद मस्त थिरकते थे, कुल मिलाकर अभी भी उनमें इतना आकर्षण था, की किसी साधारण व्यक्ति को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें…!
मुझे मधु आंटी एक भरपूर औरत लगी, जो किसी पुरुष को संतुष्ट करने में पूर्ण सक्षम होती है…
अपनी तरफ मुझे इस तरह घूरते हुए पाकर वो शरमा गयी, कहीं ना कहीं सुबह वाली घटना से उन्हें लगने लगा कि मुझे पता लग गया है, इसलिए वो थोडा नर्वस दिख रही थी…!
अपने मनोभावों को थोड़ा संयत करके वो बोली – अंकुश बाबू, मेने आपका नाश्ता रेडी करके रख दिया है, आप खा लेना, मुझे थोड़ी देर हो गयी है तो मे निकलती हूँ…,
मे – कोई बात नही आंटी जी आप जाइए मे ले लूँगा….!
वो बाहर जाने के लिए पलटी, कसकर पहनी हुई साड़ी में कसे हुए उनके सुडौल कुल्हों की थिरकन आज मेने पहली बार नज़र भर देखी, जिन्हें देखकर पंत के अंदर मेरा लॉडा अंगड़ाई लेने लगा…!
आंटी भी शायद ये महसूस कर रही थी, कि मे उन्हें ही देख रहा हूँ, सो नर्वानेस्स के कारण उनकी चाल में थोड़ा कंपन जैसा था…!
जब वो चली गयी, तो अनायास ही मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी, मेने अपने लौडे को दबाकर शांत रहने को मनाया…!
नाश्ता करके मे सीधा गुप्ता जी के ऑफीस पहुँचा, तो पता लगा कि वो अपने किसी काम से मुंबई निकल गये…!
असल में एक इंपॉर्टेंट फाइल उन्हें देनी थी, तो सोचा शाम को उनके घर देता हुआ निकल जाउन्गा, ये सोच कर मे कोर्ट की तरफ निकल गया…!
ज्यदा कोई इंपॉर्टेंट केस नही था, सो ऑफीस से जल्दी निकलने की सोच ही रहा था, कि तभी श्वेता का फोन आ गया,
मेने उससे बात की उसने मिलने के लिए कहा, तो मेने उसे एक घंटे बाद मिलने का बोलकर मे ऑफीस से गुप्ता जी के घर की तरफ निकल गया…
सेठानी ने बहुत कहा कि थोड़ा रूको, चाय पानी कर्लो, लेकिन अर्जेंट काम का बोलकर उन्हें फाइल पकड़ा कर मे वहाँ से श्वेता के ऑफीस की तरफ निकल लिया…!
मुझे देखते ही अपने ऑफीस में बैठी श्वेता अपनी सीट से खड़ी हुई, मेरा हाथ पकड़कर अपने ऑफीस में पड़े सोफा पर ले गयी…
हम दोनो एक दूसरे से सॅट कर बैठे बातें करने लगे, उसने कामिनी वाले कांड का जिकर छेड़ते हुए कहा –
बीते दिनो में कितना कुछ घटित हो गया, कामिनी मेरी बेस्ट फ्रेंड थी, शुरू से ही बड़ी घमंडी और आरोगेंट लड़की थी, लेकिन ये नही पता था कि वो इतनी गिरी हुई निकलेगी…
मेने अपने मन ही मन कहा – तेरा खानदान कॉन्सा दूध का धुला है, तेरा बाप-भाई भी तो इनमें शामिल था, लेकिन प्रत्यक्ष में बोला –
छोड़िए श्वेता जी, अब हम उन बातों को बुरा सपना समझकर भूल जाना चाहते हैं, अच्छा हुआ वक़्त रहते ये सब राज सामने आ गये,
श्वेता मेरी जाँघ सहला कर बोली – लेकिन एक काम वो अच्छा कर गयी, वो तुम्हारे बारे में इतनी तारीफ ना करती तो मे कभी तुमसे अटॅच्ड नही हो पाती…!
फिर पॅंट के उपर से ही मेरा लंड सहलाते हुए बोली - सच कह रही हूँ डार्लिंग, जबसे तुम्हारा ये मेरी मुनिया में गया है, तब से एक हफ़्ता काटना मुश्किल होने लगता है…
मेने मुस्कराते हुए उसकी शर्ट के उपर से ही उसके बड़े-बड़े मम्मे मसल्ते हुए कहा – क्यों आपके पति देव नही चढ़ते क्या..?
श्वेता मायूसी वाले स्वर में बोली – अब छोड़ो उनकी बातें, बस अब जल्दी से इसे मेरी चूत में डालकर थोड़ा अच्छे से कुटाई करदो.., जिससे इसकी खुजली थोड़े दिनों के लिए मिट जाए…!
ये कहकर उसने मेरे कपड़े निकालने शुरू कर दिए, और खुद भी नंगी हो गयी…
दो घंटे मेने उसे उलट-पलटकर आगे-पीछे सब तरह से चोदा, अब वो पूरी तरह संतुष्ट नज़र आ रही थी…
चोदते-चोदते मुझे जोरों की पेसाब लगी, सो मे लपक कर उसके ऑफीस के टाय्लेट में भागा…
बाथ रूम में पेसाब करके अच्छे से फ्रेश होने में मुझे 10 मिनिट लग गये, बाहर आकर मेने अपने कपड़े पहने, और उसकी नंगी चूत को मसल कर कहा – अब मे चलूं…
वो लंबी सी सिसकी लेकर बोली – अच्छा ठीक है, लेकिन मेरे ऑफर के बारे में कुछ सोचा तुमने, हमारा काम करोगे..?
मे – अभी तो बहुत मुसीबते चल रही हैं, थोड़ा रिलॅक्स होने दो बताता हूँ… ये कहकर मे उसके ऑफीस से निकल आया…!
श्वेता के ऑफीस से निकलते ही मेरा मोबाइल बजने लगा, देखा तो कृष्णा भैया की कॉल थी, मेने फोन पिक किया…
भैया – कहाँ है तू अंकुश…?
मे – यहीं हूँ, बस अपने फ्लॅट पर जा रहा था…क्यों कोई काम था..?
भैया – गाओं तो नही जा रहा ना आज…!
मे – नही ! आप बोलिए क्या बात है..,
भैया – वो यार मे एक अर्जेंट मीटिंग में फँस गया हूँ, आज प्राची से मेने वादा किया था जल्दी आकर उसे मार्केट ले जाउन्गा.., क्या तू उसे शॉपिंग के लिए ले जा सकता है, कार्ड है उसके पास..,
मे – कोई नही भैया आप अपनी मीटिंग ख़तम करो, मे अभी सीधा वहीं चला जाता हूँ ये कहकर मेने कॉल कट किया और घुमा दी स्टेआरिंग भैया के एसएसपी आवास की तरफ…!
जब मे उनके बंगले पर पहुँचा तो वहाँ प्राची हॉल में बैठी टीवी देख रही थी कोई परिवारिक सीरियल चल रहा था शायद…!
घुसते ही मेने चहकते हुए कहा – और भाभी जी क्या कर रही हो..?
मेरी आवाज़ सुनते ही उसने मेरी तरफ देखा, मेरे उपर नज़र पड़ते ही उसका 100एमएल ब्लड बढ़ गया.., सोफे से सीधी जंप मारकर मेरे गले से लिपट गयी…!
मेने उसके गोल-गोल चुतड़ों को मसलते हुए कहा – अरे..अरे..क्या करती हो भाभी, देवर की जान लोगि क्या…?
उसने नीचे उतरते हुए मेरे सीने पर प्यार से एक धौल जमाई और अपने गाल फूला कर बोली –
आपके मुँह से भाभी सुनना मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता भैया, मेरा नाम ही लिया करो…!
मे – लेकिन हमारा जो रिस्ता है वो तो यही रहने वाला है ना.., और ये क्या..? तुम अभी भी मुझे भैया क्यों कहती हो, देवर्जी कहा करो..!
प्राची – मुझे नही कहना देवर्जी.. अजीब सा लगता है, और वैसे भी अगर देवर उम्र में बड़ा हो तो भैया कहने में भी कोई बुराई तो नही है..!
खैर छोड़िए ये बातें, और बताइए क्या लेंगे, कुछ ठंडा या गरम..,
मे – मुझे कुछ नही लेना, भैया का फोन आया था, आज तुम्हें कुछ शॉपिंग के लिए जाना था, वो तो मीटिंग में बिज़ी हैं,
सो उन्होने मुझे बोला है तुम्हें शॉपिंग कराने के लिए.., चलो जल्दी से रेडी हो जाओ, फिर मुझे घर भी जाना है वरना आंटीजी मेरा वेट करती रहेंगी रात के खाने पर..!
प्राची – बस दो मिनिट बैठिए मे 5 मिनिट में रेडी होकर आती हूँ..,
रास्ते में प्राची ने पुछा – मम्मी और संजू कैसे हैं, मुझे याद करते हैं या नही…!
मे – क्यों नही करते होंगे, वैसे मे भी वहाँ कभी-कभार ही रुक पाता हूँ.., और उनके पास भी कहाँ समय है बात-चीत करने का…!
बेचारी सुबह-सुबह उठकर संजू को कॉलेज के लिए तैयार करना, फिर नाश्ता पानी बनाकर काम के लिए निकलना, सच में बहुत मेहनत की है उन्होने घर संभालने में..,
प्राची – आप सही कह रहे हैं, और वो हैं भी बहुत प्रिन्सिपल वाली, जबसे पापा से संबंध तोड़े हैं, पलटकर उनकी तरफ देखा तक नही उन्होने…! वैसे अब तो वो खुश हैं.., है ना…!
मे – हां , अब कुछ- कुछ खुश रहने लगी हैं, मेने तो उन्हें बोला भी है कि आपको काम करने की कोई ज़रूरत नही है, सब कुछ तो है यहाँ…!
लेकिन वो भी पूरी खुद्दार औरत हैं, कहती हैं.., नही-नही.. मे आपका कैसे खा सकती हूँ, और वैसे भी खाली घर में बैठे बैठे भी क्या करूँगी…!
प्राची – करने दो उनको जो करना चाहती हैं, उनकी आदत बैठकर खाने की रही नही है ना.., वैसे आपकी वो बहुत तारीफ़ करती हैं..,
आपको उनके साथ रहने में कोई दिक्कत तो पेश नही आ रही..?
मे – नही मुझे कोई दिक्कत नही आ रही, लेकिन मेरी कुछ ग़लत आदतों की वजह से शायद उनको कुछ प्राब्लम होती होगी…!
प्राची – आपकी क्या ग़लत आदतें हैं जिनसे उनको प्राब्लम होती होगी…?
मे – वही जैसे गेट खुला रखकर सोने की…!
प्राची – अरे तो इससे उनको क्या प्राब्लम होती होगी भला.., उनका रूम अलग है आपका अलग…!
मे – फिर भी ये आदत ग़लत ही है, जैसा आज हुआ…, झोंक-झोंक में मेरे मुँह से ये बात निकल तो गयी, लेकिन जैसे ही रीयलाइज़ हुआ मे एकदम चुप हो गया…!
लेकिन प्राची ने एकदम से बात पकड़ ली और मेरी ओर देखते हुए बोली – क्या हुआ आज…?
प्राची – क्या हुआ आज, बताइए ना भैया.., प्लीज़..
मे – नही प्राची..वो सॉरी मेरे मुँह से अचानक निकल गया, ऐसी कोई बात नही है.., तुम खम्खा इसे सीरियस्ली मत लो…!
प्राची – ऐसी कोई बात नही है तो बताइए ना.., मुझसे क्या छुपाना.., आपको मेरी कसम बताइए, क्या मम्मी ने आपसे कुछ कहा…?
मे – छोड़ो ना यार तुम तो नहा धोकर पीछे ही पड़ गयी, और ये कसम-वसम देने की क्या ज़रूरत है.., मेने कहा ना ऐसी कोई बात नही है, और ना ही उन्होने मुझसे कुछ कहा है..!
प्राची – ज़रूर कोई ऐसी बात है जो आप मुझसे छुपा रहे हैं, ठीक है मत बताइए, वैसे भी मे होती ही कॉन हूँ आपकी,
मे – प्लीज़ प्राची, ऐसा मत कहो, ये तुम्हें भी पता है कि मेरे लिए तुम्हारी क्या एहमियत है, बस ऐसा ही कुछ इन्सिडेंट हो गया जिसे मे तुम्हारे साथ शेर नही कर सकता…!
ख्हम्खा तुम अपनी मम्मी के बारे में कुछ ग़लत सलत सोच बैठोगी…!
ये सुनकर प्राची का शक़ और बढ़ गया, ज़रूर ऐसी कोई बात हुई है उसकी मम्मी की तरफ से जिसने मुझे दुख पहुँचाया है…
उसके चेहरे पर गुस्से की लकीरें खींच गयी, तमतमाते हुए मुझे घूरकर बोली-
गाड़ी रोकिए…., मेने उसकी तरफ सवालिया नज़र से देखा.., वो फिर तेज आवाज़ में बोली – मेने कहा गाड़ी रोकिए आप.., मुझे नही जाना आपके साथ कहीं शॉपिंग-वोपपिंग..
मेने उसके हाथ पर अपना हाथ रख कर उसे समझाने की कोशिश की, उसने फ़ौरन मेरा हाथ झटक दिया और बोली.., वापस घर ड्रॉप करदो मुझे…!
मेने झुँझलाकर कहा – ये क्या हठ लेकर बैठ गयी तुम, ग़लती से मेरे मुँह से क्या निकल गया, तुम तो उसी बात के पीछे पड़ गयी..,
समझने की कोशिश करो प्राची, ऐसा कुछ नही हुआ जिसकी वजह से तुम इतनी पेसेसिव हो रही हो, जस्ट इट वाज़ आन इन्सिडेंट…!
प्राची – मुझे अब कुछ नही सुनना, बस मुझे वापस घर छोड़ दीजिए…!
मे – नही मानोगी तुम हां..! तो सुनो.. और मेने सुबह की घटना उसे डीटेल में कह सुनाई, कैसे उसकी मम्मी मेरे कमरे में चाय लेकर आई,
फिर मेरे सुबह के एरेक्षन को देखकर कैसे सम्मोहित होकर उन्होने मेरे शॉर्ट में हाथ डालकर मेरे हथियार को पकड़ लिया…!
प्राची बड़े ध्यान से सारी बातें सुनती रही, जब मेने उसका रिक्षन जानने के लिए उसकी तरफ देखा…!
उसके चेहरे पर एक शरारती सी मुस्कान थी.., अपने एक्सप्रेशन पर काबू करते हुए वो बोली – इससे आपने क्या नतीजा निकाला…?
मे – क्या मतलब..? मे क्या नतीजा निकालूँगा..? ये जस्ट एक ऑपोसिट सेक्स का अट्रॅक्षन था बस, जो वक़्त के साथ गुजर गया.. और क्या..?
प्राची ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया, उसे उठाकर अपने होठों से चूमकर बोली – मम्मी बेचारी भी क्या करे,
कब्से पापा से अलग रह रही है.., शरीर की ज़रूरत तो उनको भी महसूस होती ही होगी, उपर से आपका ये रूप और सोने पे सुहागा वो आपका घोड़ा पछाड़, मन बहक गया होगा बेचारी का…
मेने आश्चर्य के साथ प्राची की तरफ देखा, उसके चेहरे पर सिर्फ़ एक मीठी सी मुस्कान खेल रही थी..,
मे – तुम्हें देख कर तो ऐसा लग रहा है जैसे तुम्हें इस बात से कोई खास फरक नही पड़ा, आज जो हुआ क्या वो सही था…?
प्राची – सही ग़लत का तो मुझे नही पता, इस बारे में मम्मी मुझसे ज़्यादा समझती होंगी, लेकिन अगर आपको देखकर उनकी सोई हुई इच्छाए फिरसे जाग उठी हैं और सही या ग़लत से उपर उठकर उन्होने आपके साथ ये सब किया है,
भले ही वो आपको सोते हुए समझकर ही सही, इससे तो लगता है कि उनको इस चीज़ की कितनी ज़्यादा ज़रूरत है…,
मे आपसे ये तो नही कहूँगी कि आप इस बारे में कुछ करो, आगे आप मुझसे ज़्यादा समझदार हैं…, इतना कहकर वो एकदम से चुप हो गयी…!
प्राची ने इनडाइरेक्ट्ली ये कह दिया था कि अगर उसकी मम्मी आगे कुछ पहल करती हैं, तो मे उनकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए उनकी प्यास बुझाऊ…!
इसके बाद हमारे बीच और कुछ ज़्यादा बातें नही हुई, उसे शॉपिंग कराकर घर छोड़ा, और अपने फ्लॅट को निकलने लगा…,
तभी प्राची ने मेरे गाल पर एक किस किया और मेरी आँखों में देखते हुए बोली – मुझे पूरा विश्वास है आप मेरी मम्मी की भावनाओं की कद्र ज़रूर करेंगे…!
इतना कहकर वो अपने बॅग उठाकर अपने घर के भीतर चली गयी, मेने मुस्कुरा कर गाड़ी अपने घर की तरफ बढ़ा दी…!
प्राची खुद एक नारी होते हुए समझ सकती थी कि उसकी मम्मी उम्र के इस पड़ाव पर किस दौर से गुजर रही होगी.., इसलिए उसने इशारों इशारों में मुझे बता दिया कि मुझे क्या करना चाहिए…!
लौटते हुए मुझे काफ़ी अंधेरा हो गया था, जब मे घर पहुँचा तो संजू और आंटी को खाने पर मेरा इंतेज़ार करते हुए पाया…!
मेने झटपट अपना बॅग पटका, फ्रेश हुया, और 10 मिनिट में उनके साथ डाइनिंग टेबल पर आ गया…!
आंटी खाना सर्व करते हुए बोली – आज काफ़ी लेट हो गये अंकुश बाबू.., इतना काम क्यों करते हो…?
झुक कर खाना सर्व करते वक़्त उनके कसे हुए वक्षों की गोलाइयाँ मेरी आँखों के सामने आ गयी, सच में अभी भी उनकी चुचियाँ एक दम गोलाई लिए हुए थी…
उनकी झलक पाते ही मेरे पाजामे में उभार आ गया.., मेने उनकी बात का जबाब देते हुए कहा – आप लोग खाने के लिए मेरा इंतेज़ार मत किया करो, मेरा क्या ठिकाना, कभी सीधा घर भी निकल सकता हूँ…!
मे अपनी नज़रें उनके उभारों पर जमाए हुए आगे बोला - अब काम थोड़ा ज़्यादा फैला लिया है तो समेटने में वक़्त तो लग ही जाता है…!
आंटी शायद मेरी नज़रों को भाँप चुकी थी, इसलिए उन्होने बैठते हुए अपना गाउन आगे से अड्जस्ट कर लिया जिससे उनकी गोलाईयों के बीच के दरार भी ढक गयी…!
खाना खाकर संजू अपने रूम में चला गया, आंटी मुझसे नज़र चुरा रही थी, वो कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन संकोच बस कुछ बोल नही पा रही थी…
तो मेने ही बात शुरू करते हुए कहा – क्या बात है आंटी जी, कुछ परेशान सी लग रही हो आप…? कोई समस्या है तो बताइए मुझे…!
वो नज़र झुकाए बैठी पैर के अंगूठे से फर्श को कुरेदने लगी, कुछ कहने को होठ खुलते लेकिन बस थर-थरा कर रह जाते…!
बहुत हिम्मत जुटाकर वो बोली – मुझे माफ़ कर देना अंकुश बाबू… मे उस बात से बहुत शर्मिंदा हूँ…!
मे – किस बात की माफी माँग रही हैं आप ? किस बात के लिए शर्मिंदा हो…?
आंटी – व.व्वूओ…स्सूबहह…मी…
मे – क्या हुआ था सुबह में, किस बात को लेकर परेशान हैं आप…?
वो – व.वववूओ..म्मईए…सुबह..तुम्हें.. जगानी…गाइइ…
मे – अरे तो इसमें क्या हो गया, अब मे लेट हो गया तो आप मुझे जगाने चली गयी, अब इसमें ऐसी तो कोई बात नही जिसके लिए आपको माफी माँगनी पड़े…!
वो – नही वो, तुम्हें ऐसी हालत में देखकर मुझे वहाँ रुकना नही चाहिए था, पता नही मुझे क्या हो गया था कि मे वो देखने …
मे – ओह्ह्ह…तो आप उस बात को लेकर दुखी हो रही हैं, देखिए आंटीजी ये सब तो नॉर्मल सी बातें हैं, घरों में ये सब होता रहता है,
अब आपने मुझे इस हालत में देखा ही तो था, कुछ किया तो नही ना, फिर आप क्यों परेशान होती हैं, जस्ट रिलॅक्स…!
मेने करने वाली बात जान बूझकर जोड़ी, मे देखना चाहता था, कि अब वो आगे क्या कहती हैं…!
वो अपने होठ काटते हुए बोली – मुझे सब पता है, तुम जान बूझकर ये सब कह रहे हो, जबकि तुम्हें सब पता है जो भी सुबह में हुआ…!
मेने उनका हाथ अपने हाथों लेकर उसे सहलाते हुए कहा – देखिए आंटी जी, आप इस छोटी सी बात के लिए अपना दिल मत दुखाइए, जिस कंडीशन में आपने मुझे पाया…
उस कंडीशन में आपकी जगह कोई और भी होता तो वो भी ये सब करने पर मजबूर हो जाता,
अगर आपकी जगह मे होता और आप ऐसी हालत में सो रही होती तो शायद मे भी अपने आप पर काबू नही कर पाता,
फिर आप तो इतने दिनो से अंकल जी से दूर हो चुकी हैं, स्वाभाविक है कि ये सब देखकर कंट्रोल हट गया होगा…!
वो अपना बचाव करते हुए बोली – फिर भी मुझे रिश्तो की मर्यादा नही छोड़नी चाहिए थी, मुझे ये नही भूलना चाहिए था कि तुम प्राची के देवर हो…
ये कहकर वो मेरे कंधे से अपना सिर टिका कर सुबकने लगी…!
मे उनको सांत्वना देते हुए उनकी पीठ सहलाने लगा….!
मे उनकी पीठ पर हाथ फेर रहा था, अचानक मेरी उंगलियाँ उनकी ब्रा की स्ट्रीप पर अटक गयी, मेने थोड़ा सा उसपर दबाब डाला, मेरे हल्के से दबाब डालने से ही आंटी सिहर उठी…!
मुझे भी उत्तेजना का एहसास हुआ.., वो मेरी तरफ देखने लगी, मेने वहाँ से अपना हाथ नीचे ले जाते हुए कहा – आप इस तरह से अपने आपको दोषी मत मानिए,
ये स्वाभिवक तौर पर एक स्त्री-पुरुष के बीच का आकर्षण मात्र था, जो किसी भी राइज़ के बंधनों से बहुत परे है…
और सच बात तो ये है, कि इस आकर्षण के आगे मेने कितने ही रिश्ते धराशायी होते देखे हैं,
आंटी ने मेरी आँखों में झाँककर देखा, वो मेरे और नज़दीक खिसकते हुए बोली – तुम शायद सही कह रहे हो, मे भी उस वक़्त अपने बीच के रिस्ते को बिल्कुल भूल गयी थी..!
और लाख रोकने के बाद भी मेरा हाथ तुम्हारे वहाँ पहुँच गया…!
आंटी अब धीरे-2 रिश्तों के बंधन से हट’ते हुए मेरी तरफ आकर्षित होती जा रही थी, मेरी बातों ने उन्हें उस बंधन से ढीला पड़ने पर मजबूर कर दिया, जिसकी वो कुछ देर पहले जकड़न सी महसूस कर रही थी…
धीरे-धीरे वो मेरे साथ चिपकती जा रही थी, उनके 34 के सुडौल और मुलायम बूब्स मेरे बाजू से सटने लगे थे…
मेने अपना हाथ उनकी पीठ पर नीचे ले जाकर उनके नितंब पर रख दिया, और उसे धीरे से सहला कर पुछा – वैसे आपका हाथ कहाँ तक पहुँच गया था….?
मेरे हाथ को अपने नितंब पर पाकर उनके सिथिल पड़ चुके बदन में फिरसे झन झनाहट पैदा होने लगी थी शायद, इसलिए उनका चेहरा लाल होता जा रहा था,
मेरे चहरे पर नज़र गढ़ा कर वो बोली – तुम्हें नही पता…?
मेने अंजान बने रहते हुए कहा – नही मुझे तो नही पता, मे तो सो रहा था, बताइए ना आंटी कहाँ पहुँच गया था आपका हाथ…!
एक शर्मीली सी मुस्कान उनके होठों पर आ गयी, नज़र झुका कर बोली – तुम्हें सब पता है, कि मेरा हाथ तुम्हारे शॉर्ट के अंदर था, और मेने तुम्हारे उसको पकड़ा हुआ था…
मेने उनकी जाँघ को सहलाते हुए कहा – उसको..?, ओह्ह्ह…अच्छा ! तो फिर बाहर क्यों निकाल लिया था…?
वो नज़र झुकाए हुए ही बोली – तुम्हें जागते देखकर मे घबरा गयी थी…,
मेने उनकी कमर में हाथ डालकर उन्हें अपने से और सटा लिया और गाउन के उपर से ही उनकी कमर सहलाते हुए कहा – वैसे कैसा लगा आपको मेरा वो….?
उन्होने मुस्कुरा मेरे कंधे को दबाते हुए कहा – हाए राम…अंकुश बाबू, आप तो बड़े चालू निकले, अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में मुझे फँसा ही लिया…!
अपनी माँ समान बड़े भाई की सास को पटाते हुए शर्म भी नही आ रही तुम्हें…हां !
क्या बात है आंटीजी, सारा दोष मेरे सिर मढ़ दिया आपने.., फिर उनके चिकने सपाट पेट को सहलाते हुए बोला –
वैसे सच कहूँ तो आप हो ही इतनी मासूम, कुँवारी लड़कियों के जैसा आपका कसा हुआ बदन किसी को भी आकर्षित कर सकता है.., आपके साथ काम करने वाले मर्द कैसे रोक पाते होंगे अपने आपको…?
वो मेरी जाँघ सहलाते हुए बोली – इतनी भी सुंदर नही हूँ मे, अब इस उमर में कों फँसाएगा मुझ बूढ़ी औरत को…,
वो आगे बोली - वैसे वहाँ मे बस अपने काम से काम रखती हूँ, कभी-कभार कोई मनचला कुछ कॉमेंट्स पास करता भी है तो उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती हूँ..,
मेने उनकी कमर में हाथ डाला और खींचकर अपनी गोद में बिठा लिया, फिर उनकी चुचियों को धीरे से सहलाते हुए कहा – तो फिर मेरी बात को दूसरे कान से क्यों नही निकाला आपने…?
चुचियों पर हाथ लगते ही वो सिसक पड़ी, और अपनी मादक आवाज़ में बोली – सुबह की वो घटना सारे दिन मेरे दिमाग़ में घूमती रही, काम करने में मन ही नही लगा…,
एक मन कहता कि जो भी हुआ वो ग़लत है, दूसरे ही पल तुम्हारा वो याद आते ही सब कुछ भूल जाती, इसी उधेड़बुन के चलते मे जल्दी काम छोड़कर घर चली आई…!
आंटी की चुचि सहलाते हुए ही मेने पुछा – तो आख़िर में आपके मन ने क्या फ़ैसला किया ?
उन्होने अपनी कसी हुई गदर मखमली गान्ड मेरे लंड पर रगड़े हुए कहा – तुमने मुझे अपनी गोद में बिठा रखा है, हाथ मेरी चुचियों पर चल रहे हैं और मुझसे पुच्छ रहे हो कि मेने क्या फ़ैसला किया…
ये कहकर वो खिल-खिलाकर हँसने लगी, फिर मेरे गाल को चूमकर बोली – वाकाई में बहुत शैतान हो तुम और प्यारे भी..,
मे भी उनकी बात सुनकर मुस्करा उठा और उनकी चुचियों को एक बार ज़ोर्से मसल दिया…,
उन्होने सिसक कर अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया और बोली – सस्सिईइ…आअहह… लेकिन अंकुश बाबू एक वादा करो मुझसे, ये बात किसी को पता नही लगनी चाहिए… वरना मे अपने बच्चों और दामाद की नज़रों में गिर जाउन्गि…!
मेने एक हाथ उनकी मांसल जांघों के बीच सरका दिया और उनकी मुनिया को सहलाते हुए कहा – ये बातें किसी को बताने के थोड़ी होती हैं…, इतना कहकर मेने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया.. और अपने कमरे की तरफ चल दिया…
वो मेरी गोद में मचलते हुए बोली – अभी रहने दो, शायद अभी संजू सोया नही होगा, मे थोड़ी देर से आ जाउन्गी,
मे – अरे आंटी ! शुभ काम में देरी नही होनी चाहिए, और वैसे भी मे कल गाओं जा रहा हूँ !
फिर उन्होने भी मेरी गर्दन में अपनी मांसल बाहों का हार पहना ही दिया और मेरे होठों को चूमकर अपनी रज़ामंदी दे दी…
कमरे में ले जाकर मेने उन्हें अपने पलग पर लिटा दिया, एक-एक करके उनके सारे कपड़े निकाल फेंके…
आंटी का बदन सही में अभी भी किसी 30-32 साल की औरत जैसा ही था, एक दम सुडौल कसा हुआ,
कहीं पर भी अतरिक्त फॅट नही , वो भी मेरे कपड़े अलग करके मेरे लंड पर भूखी बिल्ली की तरह टूट पड़ी…, उनकी सुबह की अधूरी आस अब पूरी हो रही थी…
मेरे गरम लंड को मुट्ठी में कसते हुए बोली – आअहह…क्या मस्त हथियार है तुम्हारा…
सुबह तो बस हाथ में पकड़ कर फील ही कर पाई थी, लेकिन अभी अपनी आँखों से देखा है, सच में निशा बेटी बहुत खुश नसीब है…!
मेने उनकी सुडौल चुचि को मसल्ते हुए कहा – अभी तो ये आपके हाथों में है, जो चाहे कर लो…!
बड़ी कामुक स्माइल देकर उन्होने मेरी तरफ देखा, और हल्के से उसे अपनी जीभ की नोक से चाटा…
सुपाडे को खोलकर उसके पीहोल के चारों ओर जीभ फिराई, मेरे मुँह से सिसकी नकल गयी…!
फिर आंटी ने मेरी दोनो गोलियों को एक साथ अपने मुँह में भर लिया, उन्हें अच्छे से चूसने के बाद वो मेरे लंड को उपर तक चाटती चली गयी, और टॉप पर पहुँचते ही गडप्प से उसे अपने मुँह में भर लिया…
आंटी की इस कामुक अदा से मेरे होश गुम होने लगे…! वो उसे पूरे मन से चूस रही थी, कभी-कभी बाहर निकाल कर पूरी लार उसके उपर चुपड देती, और फिरसे हाथ से मुठियाने लगती…!
जिस तरह से आंटी मेरे लंड की सेवा कर रही थी वैसी आज तक किसी ने नही की थी,
अब मेरा संयम खोने लगा था, सो मेने आंटी को अपने उपर खींच लिया…!
वो अपनी गरम चूत को लेकर मेरे लंड पर बैठती चली गयी, मेरा मोटा ताज़ा लंड उनकी चूत में कसा हुआ जा रहा था…
आंटी ने कसकर अपने होठों को बंद कर लिया, और धीरे-धीरे करके मेरे पूरे लंड को अपनी चूत में समेटकर हाँफने लगी…
मेने उन्हें अपने उपर झुका लिया, और उनके होठों को चुस्कर उनकी चुचियों को मसल्ने लगा,
आआहह….अंकुश बाबू, वाकाई में बहुत जानदार लंड है तुम्हारा, पहली बार इतना कसा हुआ लग रहा है मेरी चूत में, अब चोदो मेरे रजाअ…
मेने उनकी चुचियों की घुंडीयों को उमेठते हुए कहा – कमान आपने संभाल रखी है, मे कैसे चोदु..?
सस्सिईइ….आअहह…ज़ोर्से नही….ये कहकर उन्होने धीरे-धीरे अपनी गान्ड को उपर उठाया, और फिरसे बैठने लगी, थोड़ी ही देर में उनकी गति बढ़ने लगी…!
कुछ देर तक आंटी मेरे लंड पर उठक-बैठक करती रही.., लेकिन उनकी रफ़्तार से मेरा मन भरने वाला नही था…,
सो मेने उन्हें अपने नीचे लिया और उनकी टाँगों को अपने सीने से सटकर जो रफ़्तार दी.., आंटी की रेल बन गयी…,
अपने धक्कों को स्पीड देते हुए मेने कहा – आहह…आंटी क्या चूत है आपकी, पूरा कस लिया है इसने मेरे लंड कूओ…
आंटी सिसकते हुए बुदबुदाई..सस्सिईइ…आअहह…तो खोल दो इसे अच्छे से अपने इस मूसल सीई.., आआययईीी…म्म्माआ…धीरी…ईई…कहते हुए वो झड़ने लगी…
सुबह तक मेने आंटी के सारे दरवाजे खोल दिए…, एक बार जमकर उनकी चूत को बजाया, जिसमें वो तीन बार झड़ी, फिर एक बार उनकी गान्ड का भी ढक्कन खोल ही दिया…
हालाँकि गान्ड मरवाने में उन्होने काफ़ी नखरे किए, लेकिन जब एक सुलेमानी लंड किसी औरत को पसंद आ जाए, तो वो उसे किसी भी सूरत में खोना नही चाहती… चाहे उसके लिए उसे कोई भी बलिदान क्यों ना करना पड़े, ये तो केवल गान्ड की ही बात थी..., थोड़े दर्द के बाद मज़ा ही देने वाला था…!
आंटी बहुत देर तक अपनी महीनो पुरानी प्यास के बुझने के बाद की खुमारी में पड़ी रही…मेने भी उन्हें नही उठाया…!
जब सुबह मेरी नींद खुली तो वो मेरे बिस्तर पर नही थी…………..!
आज मुझे कोर्ट में कोई ज़्यादा काम नही था, सो दोपहर के बाद ही घर की तरफ निकल गया, जहाँ एक बहुत बड़ा सर्प्राइज़ मेरा इंतेजार कर रहा था…!
घर में घुसते ही सबसे पहले मुझे भाभी मिली जिन्होने मुझे देखकर एक रहश्यमयि मुस्कान दी, पूछने पर कुछ नही कहा – बस इतना इशारा किया कि अपनी निशा रानी से जाके पुछो…
निशा उस समय अपने कमरे में आराम कर रही थी, मेने जाकर अपना बॅग रखा और सीधा उसके उपर जंप लगा दी…!
उसने मुझे देखते ही घुड़क कर कहा – दूर हटो, ऐसे झपट्टा मारकर मत आया करो वरना वो नाराज़ हो जाएगा…!
मेने चोन्क्ते हुए कहा – ये मियाँ बीवी के बीच और कॉन आ गया जो नाराज़ हो जाएगा भाई…?
वो बड़ी प्यारी सी स्माइल देकर बोली – अब मे अकेली नही हूँ, मेरे साथ कोई और भी है समझे राजाजी…!
आज इसे हो क्या गया है, सर्प्राइज़ पे सर्प्राइज़ दिए जा रही है, हारकर मेने उसे गुदगुदाना शुरू किया…, वो खिल-खिलाकर मुझे रुकने के लिए बोलने लगी…
मेने कहा – तो सीधे सीधे बताओ, बात क्या है, किसके बारे में बोल रही हो..
उसने धीरे से मेरे सिर पर हाथ रख कर हिलाया और मुस्कराते हुए बोली – अब आप असली बाप बनाने वाले हो मेरे बुद्धू बलम…!
मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, और फिर ज़ोर्से हुंकार सी भरते हुए चिल्लाया..ओ तेरी की, तो ये बात है…!
फिर मेने निशा को अपनी बाहों में भर लिया, और कमरे से बाहर आकर उसे लेकर पूरे आँगन में भागता रहा चिल्लाता रहा – याहूऊऊ….!
मेरी आवाज़ सुनकर भाभी, रामा दीदी और रूचि भी आ गयी, और वो भी मेरे साथ इस खुशी में शामिल हो गयी………….!
दूसरे दिन मेरा मन नही हुआ शहर जाने का, जो भी काम थे वो पोस्टपोन कर दिए, इतनी बड़ी खुशी मे अपने परिवार के साथ ही मनाना चाहता था..,
चाय नाश्ते के बाद मे भाभी के पास चला गया, जहाँ दीदी पहले से ही ज़मीन पर गद्दी डालकर बच्चे की मालिश कर रही थी, भाभी सिरहाने से टेक लेकर बैठी, दोनो आपस में बातें कर रही थी…!
मुझे देखते ही भाभी बोली – आओ लल्ला थोड़ा अपने बेटे के साथ खेल लिया करो, दूसरे के आने में तो अभी बहुत वक़्त है…!
मे दीदी के बाजू में बैठकर बच्चे को खिलाने लगा.., तभी भाभी बोली – अच्छा रामा ये बताओ तुम दोनो ने दिल्ली में कुछ मस्ती-वस्ति की या अब सुधर गये हो…
दीदी के मालिश करते हुए हाथ थाम गये, एक शर्म की लाली अपने चेहरे पर लेकर उसने भाभी की तरफ देखा..जो मंद-मंद मुस्करा रही थी…!
अब ऐसे शरमाओ मत, 900 चूहे ख़ाके बिल्ली तप करने लगी क्या..?
एक शर्मीली मुस्कान के साथ दीदी ने अपनी नज़रें झुका ली, तभी मेने उसके एक चूतड़ पर हल्के से चपत लगाते हुए कहा –
आपको क्या लगता है भाभी, दीदी ऐसा कोई मौका गँवा सकती है..?
तभी दीदी ने मेरे हाथ पर थप्पड़ मारते हुए कहा – हट नालयक तू तो एक दम दूध का धुला है ना, जैसे तूने कुछ नही किया हन…!
दीदी एक गाउन पहने अपने घुटने मोड़ कर बैठी मालिश कर रही थी बच्चे की, पीछे से मेने उसकी गान्ड की दरार में अपनी उंगली चलते हुए कहा –
झूठ मत बोलो दीदी, भाभी इसने मेरे पहुँचते ही मेरे उपर धाबा बोल दिया, और फिर रात में भी आकर मेरा लंड चूसने लगी…!
भाभी – क्यों रामा, सबर नही हुआ होगा ना.., भाई के लंड की खुश्बू सूंघते ही झपट पड़ी होगी, इसमें तुम्हारी कोई ग़लती भी नही है वो साला है ही इतना मस्त की मे खुद ज़्यादा दिन सबर नही कर पाती…!
रामा की हम दोनो की बातें सुनकर झिझक ख़तम हो गयी, और वो मेरे लौडे को अपनी मुट्ठी में लेकर बोली – सही कह रही हो भाभी, मेरे भाई का हथियार राम दे उसे मिले..!
आप दोनो तो जब मन करता है ले लेती हो, तो भला में मुश्किल से हाथ आए मौके को कैसे गँवा देती, इतना कह कर वो ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी, हम दोनो भी उसका साथ देने लगे…!
तभी मेने अपने बेटे के गाल पर किस करके कहा – अच्छा भाभी ये बताओ, इसको भरपेट दूध पिलाती हो या नही, कम तो नही पड़ जाता…!
भाभी – अच्छा जी, देखा रामा अपने बेटे की कितनी परवाह है इन्हें, चिंता मत करो लल्ला इसकी माँ दुधारू गाय से कम नही है, ये सारा दूध पी भी नही पाता..,
मेरी चुचियाँ जब ज़्यादा भर जाती हैं, तो वैसे ही निकालना पड़ता है…!
मे – वेस्ट क्यों करती हो, रूचि को ही पिला दिया करो ना…, वैसे कैसा है आपका दूध, मुझे भी टेस्ट कराओ ना भाभी..?
भाभी – अरे इसमें पुच्छना कैसा, आ जाओ पीलो ये कहकर उन्होने अपने गाउन की डोरी खींच दी, दूध से लबालब भाभी की गोर-गोरी चुचियाँ देख कर मे उच्छल कर पलंग पर उनके बगल में जा बैठा…!
मेने अपने हाथ से उनकी भरी हुई चुचियों को सहलाया, तो भाभी बोली – दबाना मत लल्ला, वरना दूध निकल जाएगा, लो चूस लो इन्हें…!
मेने फ़ौरन अपना मुँह उनकी एक चुचि से लगा दिया, चूस्ते ही उनके मीठे दूध की धार मेरे मुँह में समा गयी.., मेने चटखारा लेकर कहा –
आअहहा…भाभी मज़ा आ गया, वास्तव में आपका दूध बहुत मीठा है, तभी भाभी ने रामा से कहा – तुम्हें भी पीना है अपनी भाभी का दूध…!
रामा दीदी भी उठकर दूसरी बाजू बैठ गयी, और दूसरी चुचि उसने अपने मुँह में भर ली…,
मज़े और प्यार की मिली-जुली लहर भाभी के बदन में दौड़ गयी, आँखें बंद करके वो अपने दोनो हाथ हम दोनो के सिरों पर फिराने लगी..,
तभी हमें निशा की आवाज़ ने चोंका दिया….!
अरे वाह ! क्या सीन है, एक नवजात बच्चे का हक़ मारकर भाई बेहन कैसे दूध पीने में लगे हुए हैं, फिर अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोली – हाए राम क्या जमाना आ गया है देखो तो…!
उसकी बात पर हम सब हँसने लगे, भाभी बोली – आजा, तू भी पीले, जल क्यों रही है वहाँ खड़ी-खड़ी.., तेरी बेहन किसी गाय से कम दूध नही देती.. !
निशा भी लपक कर आ गयी, मुझे उसने परे धकेल दिया और खुद लग गयी उनका दूध पीने..!
मे भाभी के पैरों की तरफ बैठ गया, और उन दोनो घोड़ियों की गान्ड मसलने लगा, वो गुउन्ण..गुउन्न्ं… करके अपनी अपनी गान्ड इधर से उधर को मटकाने लगी.., लेकिन चुचि मुँह से नही निकली…!
मेने दोनो के गाउन कमर से उपर तक चढ़ा दिए, छोटी-छोटी कच्च्छियो में उनके नंगे चूतड़ चमक रहे थे.., उनपर थपकी देकर मेने भाभी से कहा-
भाभी कोई गाना गाओ ना, मे तबला बजाता हूँ.., देखो क्या मस्त टेबल की जोड़ी है सामने, ये कहकर मे वास्तव में ही ताल देने लगा..,
उन दोनो ने दूध पीना छोड़ दिया और अपने-2 गाउन नीचे करके गान्ड रख कर बैठ गयी, इसपर भाभी और मे खिल-खिलाकर हँसने लगे…!
निशा ने मुझे धक्का देकर पलंग पर लिटा दिया, फिर मेरा शॉर्ट खींचकर नीचे फेंक दिया और मेरे घोड़ा पछाड़ को पकड़कर बोली-
आपने तो हमारे टेबल पर थाप दे ली, अब मुझे बीन बजाकर इस नाग को मनाने दो, उसे चूमकर बोली..उउंम्म…पूउक्च..कितना प्याला है मेला बाबू..हहूऊंम…!
मेने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – देखा भाभी, खाली-पीली झूठा लाड दिखाती है ये..मेला बाबू..मेला बाबू करके, लेकिन उसे जो चाहिए वो देने को कभी राज़ी नही होती…!
निशा अपना मुँह उपर करके बोली – हान्ं…मेने किस चीज़ के लिए मना किया इसको, जब जी करता है अपनी मन पसंद सुरंग में घुस जाता है…!
मे – देखा भाभी, भूल गयी अपना वादा, क्या प्रॉमिस किया था उस दिन..? आज तक तूने इसे अपनी पीछे वाली सुरंग में जाने दिया कभी…!
निशा अपने होठ काट’ते हुए बोली – डर लगता है कही मेरी पीछे वाली सुरंग धारसाई ना कर दे ये..,
भाभी ने उसे ताना देते हुए कहा – बस इतना ही ख़याल है इसका, अपने मतलब के लिए प्यारा लगता है, उसकी इच्छा का कोई ख्याल नही…!
तभी दीदी ने भी उसे उकसाते हुए कहा – अब अपनी किसी प्यारी चीज़ का ख़याल तो रखना ही चाहिए, हां कर दे निशा… कम ऑन…!
भाभी और दीदी के उकसाने पर निशा हिम्मत जुटाकर बोली – ठीक है मे इसे अपनी पीछे वाली सुरंग में जगह देने को तैयार हूँ, लेकिन मेरी भी एक शर्त है…!
हम तीनों के ही मुँह से एक साथ निकला…क्या…?
निशा ने मुस्कराते हुए दीदी की एक चुचि मसल दी और बोली – पहले हमारी ननद रानी इसे अपनी पीछे वाली सुरंग का रास्ता दिखा देंगी तो मे भी ले लूँगी…!
दीदी ने उसका हाथ पकड़कर अपनी चुचि से हटाया और उसकी गान्ड में उंगली डालते हुए बोली –
साली छिनाल, वो तेरी गान्ड में जाना चाहता है, मुझे बीच में क्यों घसीट रही है…!
भाभी ने बीच-बिचाव करते हुए कहा – कोई बात नही रामा, तुम बड़ी हो, पहले तुम डलवा के दिखा दो उसे कैसे लेते हैं, फिर वो भी सीख लेगी…!
लेकिन वो जैसे ही उनकी जाँघ से टच हुआ, उनके शरीर के सारे तार झंझणा उठे.., उनकी गीली अधेड़ चूत की फाँकें फड्क उठी, ना चाहते हुए भी उन्होने अपनी जाँघ को मेरे लॉड पर और थोड़ा सा दबा दिया…!
मेरी उपर वाली जाँघ मधु आंटी के कूल्हे से सटी हुई थी, अब वो चाहकर भी वहाँ से जाने के बारे में सोच भी नही सकती थी…
मेरा लंड थुनक-थुनक कर उनकी मांसल जाँघ पर ठोकरें मार रहा था, वो अपने होशो-हवास खोने लगी, और अपनी एल्बो मेरे सिर के बाजू में टेक कर दूसरे हाथ से मेरे लौडे को अपनी मुट्ठी में भर लिया….!
शॉर्ट के उपर से वो पूरी तरह उनकी मुट्ठी में नही आपा रहा था, फिर भी उन्होने उसे एक दो बार सहलाया…!
वासना ने उनके विवेक पर कब्जा जमा लिया, उनकी प्यासी मुनिया लगातार रस छोड़ने लगी…, उनकी और ज़्यादा पाने की चाह ने मेरे शॉर्ट के अंदर हाथ डालने को विवस कर दिया, मेरे नंगे गरम लंड को अपनी मुट्ठी में लेते ही वो सिसक पड़ी…
आआहह…हाईए… कितना गरम और मोटा तगड़ा लंड है इनका, हाए राम इसको अब कैसे लूँ अपने अंदर…,
फिर उन्होने सीधे बैठते हुए मेरे कंधे पर दबाब डालकर मुझे सीधा कर दिया…, मेरी नींद टूटने लगी, और मेने कुन्मूनाकर जैसे ही आँखें खोली…
उन्होने झटके से अपना हाथ मेरे शॉर्ट से बाहर निकाल लिया…, और फ़ौरन बेड से खड़ी हो गयी…!
उनकी नज़र झुकी हुई थी, जांघें उनके चूतरस से चिप-चिपा रही थी, जिन्हें उन्होने आगे से अपने गाउन को जांघों के बीच इकट्ठा करके दबा रखा था…
मे हड़बड़ा कर बैठ गया, और उनको देखते ही बोला – आंटी आप…?
वो – ह..ह..हां ! तुम्हारे लिए चाय लाई थी, बहुत कोशिश की उठाने की लेकिन लगता है, बहुत गहरी नींद में थे…
फिर मुझे एहसास हुआ कि मेरा लॉडा फुल मस्ती में है, सो फ़ौरन उसे छिपाने के लिए मेने अपनी टाँगें सिकोडकर बैठते हुए कहा – हां, थोडा ज़्यादा ही गहरी नींद आ गयी…
काफ़ी दिनो से काम की वजह से ठीक से सो नही पा रहा था, और आज अलार्म भी नही लगाया, वैसे क्या टाइम हुआ है…?
वो – 9 बज गये..,
मे – क्या…? बाप रे इतना तो मे कभी नही सोया.., आप चलिए में चाय पीकर फ्रेश होता हूँ,
वो – चाय तो ठंडी हो गयी होगी, मे गरम कर देती हूँ…!
मे – कोई बात नही, मे बिना चाय पीए ही फ्रेश हो लेता हूँ, आप ले जाइए इसे, बाद में गरम करके पी लूँगा…!
वो अपनी नज़रें नीचे किए हुए अपनी जांघों को भींचे हुए ही चाय उठाने आगे बढ़ी, मेरी नज़र उनपर ही टिकी हुई थी…,
वो शर्म से पानी पानी हो उठी, और झट-पट चाय का कप लेकर नज़र झुकाए रूम से बाहर निकल गयी…!
फिर मेने अपनी स्थिति का निरीक्षण किया, अपने लंड की हालत देख कर मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी, और उसे नीचे को दबाते हुए बुद्बुदाया – मदर्चोद, बहुत बेशर्म हो गया है,
आंटी ने देख लिया होगा तो ना जाने क्या सोच रही होगी वो, कैसा बेशर्म इंसान है ये लंड खड़ा किए पड़ा है…!
तभी मुझे एक झटका सा लगा, याद आया कि जब मेरी नींद खुली थी तब उनका हाथ मेरे शॉर्ट में था, जिसे उन्होने झटके से बाहर निकाला था…
तो क्या आंटी भी इसके मज़े ले रही थी..? कहीं उनका मन तो नही है..इसे लेने का…? शायद इसलिए शर्म से वो सर झुकाए खड़ी थी…,
वैसे बेचारी की ग़लती भी क्या है, कितने दिनो से अपने पति से अलग रह रही हैं, हो सकता है मेरे खड़े लंड को देखकर उनकी इच्छा जाग उठी हो…?
फिर मुझे याद आया कि कैसे वो अपनी जांघों को भींचे हुए खड़ी थी, इसका मतलब वो मेरे लंड को देखकर, उसे फील करके गीली हो गयी होगी शायद…,
क्या वो मेरे साथ संबंध बनाना चाहती हैं..? अगर ऐसा हुआ तो क्या मुझे भी उनका साथ देना चाहिए…?
मेरे ख्याल से ये ठीक नही है, नया नया रिश्ता जुड़ा है, कहीं कुछ ग़लत हो गया तो.., मेरा तो क्या बिगड़ने वाला है, वो बेचारी खम्खा रुसवा ना हो जायें..
लेकिन लगता है वो बहुत प्यासी हैं, मुझे उन्हें निराश नही करना चाहिए…, इसी कसम्कस के चलते मे ये सोचते उठा…
चलो देखते हैं अगर वो इस खेल में आगे बढ़ना चाहेंगी तो देखा जाएगा, ये सोचते हुए मेने बिस्तर से नीचे जंप लगा दी, और सीधा बाथरूम में घुस गया…!
आज मुझे गुप्ता जी से मिलनने जाना था, लेट होने की वजह से अब तो वो इस समय ऑफीस में ही मिल सकते थे.., सो रेडी होकर मे हॉल में आया….
तब तक आंटी भी नहा धोकर तैयार हो गयी थी, और अपने काम पर जाने के लिए निकलने वाली थी…!
आज से पहले मेने उनपर कुछ खास ध्यान नही दिया था, अब तक मे उन्हें प्राची की माँ की नज़र से ही देखता आया था, लेकिन आज जो हुआ भले ही वो अंजाने या परिस्थिति बस हुआ हो,
उसके बाद उनको देखने की मेरी नज़र थोड़ी चेंज हो गयी, जो की स्वाभाविक सी बात है…!
एक भरपूर नज़र मेने उनके उपर डाली, वो इस समय लाइट पिंक कॉटन साड़ी पहने हुए थी, शायद 34-32-36 का फिगर, अच्छी आवरेज हाइट 5.5’ की, गोरी रंगत, भरा हुआ गोल चेहरा…
कसे हुए ब्लाउस से छल्कता उनका यौवन, हल्का सा मांसल पेट, गेंहरी नाभि, जिसके ठीक नीचे वो साड़ी बाँधती थी…
36” के गोल-मटोल सुडौल कसे हुए कूल्हे जो पल्लू को कसकर लपेटने के बाद मस्त थिरकते थे, कुल मिलाकर अभी भी उनमें इतना आकर्षण था, की किसी साधारण व्यक्ति को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें…!
मुझे मधु आंटी एक भरपूर औरत लगी, जो किसी पुरुष को संतुष्ट करने में पूर्ण सक्षम होती है…
अपनी तरफ मुझे इस तरह घूरते हुए पाकर वो शरमा गयी, कहीं ना कहीं सुबह वाली घटना से उन्हें लगने लगा कि मुझे पता लग गया है, इसलिए वो थोडा नर्वस दिख रही थी…!
अपने मनोभावों को थोड़ा संयत करके वो बोली – अंकुश बाबू, मेने आपका नाश्ता रेडी करके रख दिया है, आप खा लेना, मुझे थोड़ी देर हो गयी है तो मे निकलती हूँ…,
मे – कोई बात नही आंटी जी आप जाइए मे ले लूँगा….!
वो बाहर जाने के लिए पलटी, कसकर पहनी हुई साड़ी में कसे हुए उनके सुडौल कुल्हों की थिरकन आज मेने पहली बार नज़र भर देखी, जिन्हें देखकर पंत के अंदर मेरा लॉडा अंगड़ाई लेने लगा…!
आंटी भी शायद ये महसूस कर रही थी, कि मे उन्हें ही देख रहा हूँ, सो नर्वानेस्स के कारण उनकी चाल में थोड़ा कंपन जैसा था…!
जब वो चली गयी, तो अनायास ही मेरे चेहरे पर स्माइल आ गयी, मेने अपने लौडे को दबाकर शांत रहने को मनाया…!
नाश्ता करके मे सीधा गुप्ता जी के ऑफीस पहुँचा, तो पता लगा कि वो अपने किसी काम से मुंबई निकल गये…!
असल में एक इंपॉर्टेंट फाइल उन्हें देनी थी, तो सोचा शाम को उनके घर देता हुआ निकल जाउन्गा, ये सोच कर मे कोर्ट की तरफ निकल गया…!
ज्यदा कोई इंपॉर्टेंट केस नही था, सो ऑफीस से जल्दी निकलने की सोच ही रहा था, कि तभी श्वेता का फोन आ गया,
मेने उससे बात की उसने मिलने के लिए कहा, तो मेने उसे एक घंटे बाद मिलने का बोलकर मे ऑफीस से गुप्ता जी के घर की तरफ निकल गया…
सेठानी ने बहुत कहा कि थोड़ा रूको, चाय पानी कर्लो, लेकिन अर्जेंट काम का बोलकर उन्हें फाइल पकड़ा कर मे वहाँ से श्वेता के ऑफीस की तरफ निकल लिया…!
मुझे देखते ही अपने ऑफीस में बैठी श्वेता अपनी सीट से खड़ी हुई, मेरा हाथ पकड़कर अपने ऑफीस में पड़े सोफा पर ले गयी…
हम दोनो एक दूसरे से सॅट कर बैठे बातें करने लगे, उसने कामिनी वाले कांड का जिकर छेड़ते हुए कहा –
बीते दिनो में कितना कुछ घटित हो गया, कामिनी मेरी बेस्ट फ्रेंड थी, शुरू से ही बड़ी घमंडी और आरोगेंट लड़की थी, लेकिन ये नही पता था कि वो इतनी गिरी हुई निकलेगी…
मेने अपने मन ही मन कहा – तेरा खानदान कॉन्सा दूध का धुला है, तेरा बाप-भाई भी तो इनमें शामिल था, लेकिन प्रत्यक्ष में बोला –
छोड़िए श्वेता जी, अब हम उन बातों को बुरा सपना समझकर भूल जाना चाहते हैं, अच्छा हुआ वक़्त रहते ये सब राज सामने आ गये,
श्वेता मेरी जाँघ सहला कर बोली – लेकिन एक काम वो अच्छा कर गयी, वो तुम्हारे बारे में इतनी तारीफ ना करती तो मे कभी तुमसे अटॅच्ड नही हो पाती…!
फिर पॅंट के उपर से ही मेरा लंड सहलाते हुए बोली - सच कह रही हूँ डार्लिंग, जबसे तुम्हारा ये मेरी मुनिया में गया है, तब से एक हफ़्ता काटना मुश्किल होने लगता है…
मेने मुस्कराते हुए उसकी शर्ट के उपर से ही उसके बड़े-बड़े मम्मे मसल्ते हुए कहा – क्यों आपके पति देव नही चढ़ते क्या..?
श्वेता मायूसी वाले स्वर में बोली – अब छोड़ो उनकी बातें, बस अब जल्दी से इसे मेरी चूत में डालकर थोड़ा अच्छे से कुटाई करदो.., जिससे इसकी खुजली थोड़े दिनों के लिए मिट जाए…!
ये कहकर उसने मेरे कपड़े निकालने शुरू कर दिए, और खुद भी नंगी हो गयी…
दो घंटे मेने उसे उलट-पलटकर आगे-पीछे सब तरह से चोदा, अब वो पूरी तरह संतुष्ट नज़र आ रही थी…
चोदते-चोदते मुझे जोरों की पेसाब लगी, सो मे लपक कर उसके ऑफीस के टाय्लेट में भागा…
बाथ रूम में पेसाब करके अच्छे से फ्रेश होने में मुझे 10 मिनिट लग गये, बाहर आकर मेने अपने कपड़े पहने, और उसकी नंगी चूत को मसल कर कहा – अब मे चलूं…
वो लंबी सी सिसकी लेकर बोली – अच्छा ठीक है, लेकिन मेरे ऑफर के बारे में कुछ सोचा तुमने, हमारा काम करोगे..?
मे – अभी तो बहुत मुसीबते चल रही हैं, थोड़ा रिलॅक्स होने दो बताता हूँ… ये कहकर मे उसके ऑफीस से निकल आया…!
श्वेता के ऑफीस से निकलते ही मेरा मोबाइल बजने लगा, देखा तो कृष्णा भैया की कॉल थी, मेने फोन पिक किया…
भैया – कहाँ है तू अंकुश…?
मे – यहीं हूँ, बस अपने फ्लॅट पर जा रहा था…क्यों कोई काम था..?
भैया – गाओं तो नही जा रहा ना आज…!
मे – नही ! आप बोलिए क्या बात है..,
भैया – वो यार मे एक अर्जेंट मीटिंग में फँस गया हूँ, आज प्राची से मेने वादा किया था जल्दी आकर उसे मार्केट ले जाउन्गा.., क्या तू उसे शॉपिंग के लिए ले जा सकता है, कार्ड है उसके पास..,
मे – कोई नही भैया आप अपनी मीटिंग ख़तम करो, मे अभी सीधा वहीं चला जाता हूँ ये कहकर मेने कॉल कट किया और घुमा दी स्टेआरिंग भैया के एसएसपी आवास की तरफ…!
जब मे उनके बंगले पर पहुँचा तो वहाँ प्राची हॉल में बैठी टीवी देख रही थी कोई परिवारिक सीरियल चल रहा था शायद…!
घुसते ही मेने चहकते हुए कहा – और भाभी जी क्या कर रही हो..?
मेरी आवाज़ सुनते ही उसने मेरी तरफ देखा, मेरे उपर नज़र पड़ते ही उसका 100एमएल ब्लड बढ़ गया.., सोफे से सीधी जंप मारकर मेरे गले से लिपट गयी…!
मेने उसके गोल-गोल चुतड़ों को मसलते हुए कहा – अरे..अरे..क्या करती हो भाभी, देवर की जान लोगि क्या…?
उसने नीचे उतरते हुए मेरे सीने पर प्यार से एक धौल जमाई और अपने गाल फूला कर बोली –
आपके मुँह से भाभी सुनना मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता भैया, मेरा नाम ही लिया करो…!
मे – लेकिन हमारा जो रिस्ता है वो तो यही रहने वाला है ना.., और ये क्या..? तुम अभी भी मुझे भैया क्यों कहती हो, देवर्जी कहा करो..!
प्राची – मुझे नही कहना देवर्जी.. अजीब सा लगता है, और वैसे भी अगर देवर उम्र में बड़ा हो तो भैया कहने में भी कोई बुराई तो नही है..!
खैर छोड़िए ये बातें, और बताइए क्या लेंगे, कुछ ठंडा या गरम..,
मे – मुझे कुछ नही लेना, भैया का फोन आया था, आज तुम्हें कुछ शॉपिंग के लिए जाना था, वो तो मीटिंग में बिज़ी हैं,
सो उन्होने मुझे बोला है तुम्हें शॉपिंग कराने के लिए.., चलो जल्दी से रेडी हो जाओ, फिर मुझे घर भी जाना है वरना आंटीजी मेरा वेट करती रहेंगी रात के खाने पर..!
प्राची – बस दो मिनिट बैठिए मे 5 मिनिट में रेडी होकर आती हूँ..,
रास्ते में प्राची ने पुछा – मम्मी और संजू कैसे हैं, मुझे याद करते हैं या नही…!
मे – क्यों नही करते होंगे, वैसे मे भी वहाँ कभी-कभार ही रुक पाता हूँ.., और उनके पास भी कहाँ समय है बात-चीत करने का…!
बेचारी सुबह-सुबह उठकर संजू को कॉलेज के लिए तैयार करना, फिर नाश्ता पानी बनाकर काम के लिए निकलना, सच में बहुत मेहनत की है उन्होने घर संभालने में..,
प्राची – आप सही कह रहे हैं, और वो हैं भी बहुत प्रिन्सिपल वाली, जबसे पापा से संबंध तोड़े हैं, पलटकर उनकी तरफ देखा तक नही उन्होने…! वैसे अब तो वो खुश हैं.., है ना…!
मे – हां , अब कुछ- कुछ खुश रहने लगी हैं, मेने तो उन्हें बोला भी है कि आपको काम करने की कोई ज़रूरत नही है, सब कुछ तो है यहाँ…!
लेकिन वो भी पूरी खुद्दार औरत हैं, कहती हैं.., नही-नही.. मे आपका कैसे खा सकती हूँ, और वैसे भी खाली घर में बैठे बैठे भी क्या करूँगी…!
प्राची – करने दो उनको जो करना चाहती हैं, उनकी आदत बैठकर खाने की रही नही है ना.., वैसे आपकी वो बहुत तारीफ़ करती हैं..,
आपको उनके साथ रहने में कोई दिक्कत तो पेश नही आ रही..?
मे – नही मुझे कोई दिक्कत नही आ रही, लेकिन मेरी कुछ ग़लत आदतों की वजह से शायद उनको कुछ प्राब्लम होती होगी…!
प्राची – आपकी क्या ग़लत आदतें हैं जिनसे उनको प्राब्लम होती होगी…?
मे – वही जैसे गेट खुला रखकर सोने की…!
प्राची – अरे तो इससे उनको क्या प्राब्लम होती होगी भला.., उनका रूम अलग है आपका अलग…!
मे – फिर भी ये आदत ग़लत ही है, जैसा आज हुआ…, झोंक-झोंक में मेरे मुँह से ये बात निकल तो गयी, लेकिन जैसे ही रीयलाइज़ हुआ मे एकदम चुप हो गया…!
लेकिन प्राची ने एकदम से बात पकड़ ली और मेरी ओर देखते हुए बोली – क्या हुआ आज…?
प्राची – क्या हुआ आज, बताइए ना भैया.., प्लीज़..
मे – नही प्राची..वो सॉरी मेरे मुँह से अचानक निकल गया, ऐसी कोई बात नही है.., तुम खम्खा इसे सीरियस्ली मत लो…!
प्राची – ऐसी कोई बात नही है तो बताइए ना.., मुझसे क्या छुपाना.., आपको मेरी कसम बताइए, क्या मम्मी ने आपसे कुछ कहा…?
मे – छोड़ो ना यार तुम तो नहा धोकर पीछे ही पड़ गयी, और ये कसम-वसम देने की क्या ज़रूरत है.., मेने कहा ना ऐसी कोई बात नही है, और ना ही उन्होने मुझसे कुछ कहा है..!
प्राची – ज़रूर कोई ऐसी बात है जो आप मुझसे छुपा रहे हैं, ठीक है मत बताइए, वैसे भी मे होती ही कॉन हूँ आपकी,
मे – प्लीज़ प्राची, ऐसा मत कहो, ये तुम्हें भी पता है कि मेरे लिए तुम्हारी क्या एहमियत है, बस ऐसा ही कुछ इन्सिडेंट हो गया जिसे मे तुम्हारे साथ शेर नही कर सकता…!
ख्हम्खा तुम अपनी मम्मी के बारे में कुछ ग़लत सलत सोच बैठोगी…!
ये सुनकर प्राची का शक़ और बढ़ गया, ज़रूर ऐसी कोई बात हुई है उसकी मम्मी की तरफ से जिसने मुझे दुख पहुँचाया है…
उसके चेहरे पर गुस्से की लकीरें खींच गयी, तमतमाते हुए मुझे घूरकर बोली-
गाड़ी रोकिए…., मेने उसकी तरफ सवालिया नज़र से देखा.., वो फिर तेज आवाज़ में बोली – मेने कहा गाड़ी रोकिए आप.., मुझे नही जाना आपके साथ कहीं शॉपिंग-वोपपिंग..
मेने उसके हाथ पर अपना हाथ रख कर उसे समझाने की कोशिश की, उसने फ़ौरन मेरा हाथ झटक दिया और बोली.., वापस घर ड्रॉप करदो मुझे…!
मेने झुँझलाकर कहा – ये क्या हठ लेकर बैठ गयी तुम, ग़लती से मेरे मुँह से क्या निकल गया, तुम तो उसी बात के पीछे पड़ गयी..,
समझने की कोशिश करो प्राची, ऐसा कुछ नही हुआ जिसकी वजह से तुम इतनी पेसेसिव हो रही हो, जस्ट इट वाज़ आन इन्सिडेंट…!
प्राची – मुझे अब कुछ नही सुनना, बस मुझे वापस घर छोड़ दीजिए…!
मे – नही मानोगी तुम हां..! तो सुनो.. और मेने सुबह की घटना उसे डीटेल में कह सुनाई, कैसे उसकी मम्मी मेरे कमरे में चाय लेकर आई,
फिर मेरे सुबह के एरेक्षन को देखकर कैसे सम्मोहित होकर उन्होने मेरे शॉर्ट में हाथ डालकर मेरे हथियार को पकड़ लिया…!
प्राची बड़े ध्यान से सारी बातें सुनती रही, जब मेने उसका रिक्षन जानने के लिए उसकी तरफ देखा…!
उसके चेहरे पर एक शरारती सी मुस्कान थी.., अपने एक्सप्रेशन पर काबू करते हुए वो बोली – इससे आपने क्या नतीजा निकाला…?
मे – क्या मतलब..? मे क्या नतीजा निकालूँगा..? ये जस्ट एक ऑपोसिट सेक्स का अट्रॅक्षन था बस, जो वक़्त के साथ गुजर गया.. और क्या..?
प्राची ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया, उसे उठाकर अपने होठों से चूमकर बोली – मम्मी बेचारी भी क्या करे,
कब्से पापा से अलग रह रही है.., शरीर की ज़रूरत तो उनको भी महसूस होती ही होगी, उपर से आपका ये रूप और सोने पे सुहागा वो आपका घोड़ा पछाड़, मन बहक गया होगा बेचारी का…
मेने आश्चर्य के साथ प्राची की तरफ देखा, उसके चेहरे पर सिर्फ़ एक मीठी सी मुस्कान खेल रही थी..,
मे – तुम्हें देख कर तो ऐसा लग रहा है जैसे तुम्हें इस बात से कोई खास फरक नही पड़ा, आज जो हुआ क्या वो सही था…?
प्राची – सही ग़लत का तो मुझे नही पता, इस बारे में मम्मी मुझसे ज़्यादा समझती होंगी, लेकिन अगर आपको देखकर उनकी सोई हुई इच्छाए फिरसे जाग उठी हैं और सही या ग़लत से उपर उठकर उन्होने आपके साथ ये सब किया है,
भले ही वो आपको सोते हुए समझकर ही सही, इससे तो लगता है कि उनको इस चीज़ की कितनी ज़्यादा ज़रूरत है…,
मे आपसे ये तो नही कहूँगी कि आप इस बारे में कुछ करो, आगे आप मुझसे ज़्यादा समझदार हैं…, इतना कहकर वो एकदम से चुप हो गयी…!
प्राची ने इनडाइरेक्ट्ली ये कह दिया था कि अगर उसकी मम्मी आगे कुछ पहल करती हैं, तो मे उनकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए उनकी प्यास बुझाऊ…!
इसके बाद हमारे बीच और कुछ ज़्यादा बातें नही हुई, उसे शॉपिंग कराकर घर छोड़ा, और अपने फ्लॅट को निकलने लगा…,
तभी प्राची ने मेरे गाल पर एक किस किया और मेरी आँखों में देखते हुए बोली – मुझे पूरा विश्वास है आप मेरी मम्मी की भावनाओं की कद्र ज़रूर करेंगे…!
इतना कहकर वो अपने बॅग उठाकर अपने घर के भीतर चली गयी, मेने मुस्कुरा कर गाड़ी अपने घर की तरफ बढ़ा दी…!
प्राची खुद एक नारी होते हुए समझ सकती थी कि उसकी मम्मी उम्र के इस पड़ाव पर किस दौर से गुजर रही होगी.., इसलिए उसने इशारों इशारों में मुझे बता दिया कि मुझे क्या करना चाहिए…!
लौटते हुए मुझे काफ़ी अंधेरा हो गया था, जब मे घर पहुँचा तो संजू और आंटी को खाने पर मेरा इंतेज़ार करते हुए पाया…!
मेने झटपट अपना बॅग पटका, फ्रेश हुया, और 10 मिनिट में उनके साथ डाइनिंग टेबल पर आ गया…!
आंटी खाना सर्व करते हुए बोली – आज काफ़ी लेट हो गये अंकुश बाबू.., इतना काम क्यों करते हो…?
झुक कर खाना सर्व करते वक़्त उनके कसे हुए वक्षों की गोलाइयाँ मेरी आँखों के सामने आ गयी, सच में अभी भी उनकी चुचियाँ एक दम गोलाई लिए हुए थी…
उनकी झलक पाते ही मेरे पाजामे में उभार आ गया.., मेने उनकी बात का जबाब देते हुए कहा – आप लोग खाने के लिए मेरा इंतेज़ार मत किया करो, मेरा क्या ठिकाना, कभी सीधा घर भी निकल सकता हूँ…!
मे अपनी नज़रें उनके उभारों पर जमाए हुए आगे बोला - अब काम थोड़ा ज़्यादा फैला लिया है तो समेटने में वक़्त तो लग ही जाता है…!
आंटी शायद मेरी नज़रों को भाँप चुकी थी, इसलिए उन्होने बैठते हुए अपना गाउन आगे से अड्जस्ट कर लिया जिससे उनकी गोलाईयों के बीच के दरार भी ढक गयी…!
खाना खाकर संजू अपने रूम में चला गया, आंटी मुझसे नज़र चुरा रही थी, वो कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन संकोच बस कुछ बोल नही पा रही थी…
तो मेने ही बात शुरू करते हुए कहा – क्या बात है आंटी जी, कुछ परेशान सी लग रही हो आप…? कोई समस्या है तो बताइए मुझे…!
वो नज़र झुकाए बैठी पैर के अंगूठे से फर्श को कुरेदने लगी, कुछ कहने को होठ खुलते लेकिन बस थर-थरा कर रह जाते…!
बहुत हिम्मत जुटाकर वो बोली – मुझे माफ़ कर देना अंकुश बाबू… मे उस बात से बहुत शर्मिंदा हूँ…!
मे – किस बात की माफी माँग रही हैं आप ? किस बात के लिए शर्मिंदा हो…?
आंटी – व.व्वूओ…स्सूबहह…मी…
मे – क्या हुआ था सुबह में, किस बात को लेकर परेशान हैं आप…?
वो – व.वववूओ..म्मईए…सुबह..तुम्हें.. जगानी…गाइइ…
मे – अरे तो इसमें क्या हो गया, अब मे लेट हो गया तो आप मुझे जगाने चली गयी, अब इसमें ऐसी तो कोई बात नही जिसके लिए आपको माफी माँगनी पड़े…!
वो – नही वो, तुम्हें ऐसी हालत में देखकर मुझे वहाँ रुकना नही चाहिए था, पता नही मुझे क्या हो गया था कि मे वो देखने …
मे – ओह्ह्ह…तो आप उस बात को लेकर दुखी हो रही हैं, देखिए आंटीजी ये सब तो नॉर्मल सी बातें हैं, घरों में ये सब होता रहता है,
अब आपने मुझे इस हालत में देखा ही तो था, कुछ किया तो नही ना, फिर आप क्यों परेशान होती हैं, जस्ट रिलॅक्स…!
मेने करने वाली बात जान बूझकर जोड़ी, मे देखना चाहता था, कि अब वो आगे क्या कहती हैं…!
वो अपने होठ काटते हुए बोली – मुझे सब पता है, तुम जान बूझकर ये सब कह रहे हो, जबकि तुम्हें सब पता है जो भी सुबह में हुआ…!
मेने उनका हाथ अपने हाथों लेकर उसे सहलाते हुए कहा – देखिए आंटी जी, आप इस छोटी सी बात के लिए अपना दिल मत दुखाइए, जिस कंडीशन में आपने मुझे पाया…
उस कंडीशन में आपकी जगह कोई और भी होता तो वो भी ये सब करने पर मजबूर हो जाता,
अगर आपकी जगह मे होता और आप ऐसी हालत में सो रही होती तो शायद मे भी अपने आप पर काबू नही कर पाता,
फिर आप तो इतने दिनो से अंकल जी से दूर हो चुकी हैं, स्वाभाविक है कि ये सब देखकर कंट्रोल हट गया होगा…!
वो अपना बचाव करते हुए बोली – फिर भी मुझे रिश्तो की मर्यादा नही छोड़नी चाहिए थी, मुझे ये नही भूलना चाहिए था कि तुम प्राची के देवर हो…
ये कहकर वो मेरे कंधे से अपना सिर टिका कर सुबकने लगी…!
मे उनको सांत्वना देते हुए उनकी पीठ सहलाने लगा….!
मे उनकी पीठ पर हाथ फेर रहा था, अचानक मेरी उंगलियाँ उनकी ब्रा की स्ट्रीप पर अटक गयी, मेने थोड़ा सा उसपर दबाब डाला, मेरे हल्के से दबाब डालने से ही आंटी सिहर उठी…!
मुझे भी उत्तेजना का एहसास हुआ.., वो मेरी तरफ देखने लगी, मेने वहाँ से अपना हाथ नीचे ले जाते हुए कहा – आप इस तरह से अपने आपको दोषी मत मानिए,
ये स्वाभिवक तौर पर एक स्त्री-पुरुष के बीच का आकर्षण मात्र था, जो किसी भी राइज़ के बंधनों से बहुत परे है…
और सच बात तो ये है, कि इस आकर्षण के आगे मेने कितने ही रिश्ते धराशायी होते देखे हैं,
आंटी ने मेरी आँखों में झाँककर देखा, वो मेरे और नज़दीक खिसकते हुए बोली – तुम शायद सही कह रहे हो, मे भी उस वक़्त अपने बीच के रिस्ते को बिल्कुल भूल गयी थी..!
और लाख रोकने के बाद भी मेरा हाथ तुम्हारे वहाँ पहुँच गया…!
आंटी अब धीरे-2 रिश्तों के बंधन से हट’ते हुए मेरी तरफ आकर्षित होती जा रही थी, मेरी बातों ने उन्हें उस बंधन से ढीला पड़ने पर मजबूर कर दिया, जिसकी वो कुछ देर पहले जकड़न सी महसूस कर रही थी…
धीरे-धीरे वो मेरे साथ चिपकती जा रही थी, उनके 34 के सुडौल और मुलायम बूब्स मेरे बाजू से सटने लगे थे…
मेने अपना हाथ उनकी पीठ पर नीचे ले जाकर उनके नितंब पर रख दिया, और उसे धीरे से सहला कर पुछा – वैसे आपका हाथ कहाँ तक पहुँच गया था….?
मेरे हाथ को अपने नितंब पर पाकर उनके सिथिल पड़ चुके बदन में फिरसे झन झनाहट पैदा होने लगी थी शायद, इसलिए उनका चेहरा लाल होता जा रहा था,
मेरे चहरे पर नज़र गढ़ा कर वो बोली – तुम्हें नही पता…?
मेने अंजान बने रहते हुए कहा – नही मुझे तो नही पता, मे तो सो रहा था, बताइए ना आंटी कहाँ पहुँच गया था आपका हाथ…!
एक शर्मीली सी मुस्कान उनके होठों पर आ गयी, नज़र झुका कर बोली – तुम्हें सब पता है, कि मेरा हाथ तुम्हारे शॉर्ट के अंदर था, और मेने तुम्हारे उसको पकड़ा हुआ था…
मेने उनकी जाँघ को सहलाते हुए कहा – उसको..?, ओह्ह्ह…अच्छा ! तो फिर बाहर क्यों निकाल लिया था…?
वो नज़र झुकाए हुए ही बोली – तुम्हें जागते देखकर मे घबरा गयी थी…,
मेने उनकी कमर में हाथ डालकर उन्हें अपने से और सटा लिया और गाउन के उपर से ही उनकी कमर सहलाते हुए कहा – वैसे कैसा लगा आपको मेरा वो….?
उन्होने मुस्कुरा मेरे कंधे को दबाते हुए कहा – हाए राम…अंकुश बाबू, आप तो बड़े चालू निकले, अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में मुझे फँसा ही लिया…!
अपनी माँ समान बड़े भाई की सास को पटाते हुए शर्म भी नही आ रही तुम्हें…हां !
क्या बात है आंटीजी, सारा दोष मेरे सिर मढ़ दिया आपने.., फिर उनके चिकने सपाट पेट को सहलाते हुए बोला –
वैसे सच कहूँ तो आप हो ही इतनी मासूम, कुँवारी लड़कियों के जैसा आपका कसा हुआ बदन किसी को भी आकर्षित कर सकता है.., आपके साथ काम करने वाले मर्द कैसे रोक पाते होंगे अपने आपको…?
वो मेरी जाँघ सहलाते हुए बोली – इतनी भी सुंदर नही हूँ मे, अब इस उमर में कों फँसाएगा मुझ बूढ़ी औरत को…,
वो आगे बोली - वैसे वहाँ मे बस अपने काम से काम रखती हूँ, कभी-कभार कोई मनचला कुछ कॉमेंट्स पास करता भी है तो उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती हूँ..,
मेने उनकी कमर में हाथ डाला और खींचकर अपनी गोद में बिठा लिया, फिर उनकी चुचियों को धीरे से सहलाते हुए कहा – तो फिर मेरी बात को दूसरे कान से क्यों नही निकाला आपने…?
चुचियों पर हाथ लगते ही वो सिसक पड़ी, और अपनी मादक आवाज़ में बोली – सुबह की वो घटना सारे दिन मेरे दिमाग़ में घूमती रही, काम करने में मन ही नही लगा…,
एक मन कहता कि जो भी हुआ वो ग़लत है, दूसरे ही पल तुम्हारा वो याद आते ही सब कुछ भूल जाती, इसी उधेड़बुन के चलते मे जल्दी काम छोड़कर घर चली आई…!
आंटी की चुचि सहलाते हुए ही मेने पुछा – तो आख़िर में आपके मन ने क्या फ़ैसला किया ?
उन्होने अपनी कसी हुई गदर मखमली गान्ड मेरे लंड पर रगड़े हुए कहा – तुमने मुझे अपनी गोद में बिठा रखा है, हाथ मेरी चुचियों पर चल रहे हैं और मुझसे पुच्छ रहे हो कि मेने क्या फ़ैसला किया…
ये कहकर वो खिल-खिलाकर हँसने लगी, फिर मेरे गाल को चूमकर बोली – वाकाई में बहुत शैतान हो तुम और प्यारे भी..,
मे भी उनकी बात सुनकर मुस्करा उठा और उनकी चुचियों को एक बार ज़ोर्से मसल दिया…,
उन्होने सिसक कर अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया और बोली – सस्सिईइ…आअहह… लेकिन अंकुश बाबू एक वादा करो मुझसे, ये बात किसी को पता नही लगनी चाहिए… वरना मे अपने बच्चों और दामाद की नज़रों में गिर जाउन्गि…!
मेने एक हाथ उनकी मांसल जांघों के बीच सरका दिया और उनकी मुनिया को सहलाते हुए कहा – ये बातें किसी को बताने के थोड़ी होती हैं…, इतना कहकर मेने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया.. और अपने कमरे की तरफ चल दिया…
वो मेरी गोद में मचलते हुए बोली – अभी रहने दो, शायद अभी संजू सोया नही होगा, मे थोड़ी देर से आ जाउन्गी,
मे – अरे आंटी ! शुभ काम में देरी नही होनी चाहिए, और वैसे भी मे कल गाओं जा रहा हूँ !
फिर उन्होने भी मेरी गर्दन में अपनी मांसल बाहों का हार पहना ही दिया और मेरे होठों को चूमकर अपनी रज़ामंदी दे दी…
कमरे में ले जाकर मेने उन्हें अपने पलग पर लिटा दिया, एक-एक करके उनके सारे कपड़े निकाल फेंके…
आंटी का बदन सही में अभी भी किसी 30-32 साल की औरत जैसा ही था, एक दम सुडौल कसा हुआ,
कहीं पर भी अतरिक्त फॅट नही , वो भी मेरे कपड़े अलग करके मेरे लंड पर भूखी बिल्ली की तरह टूट पड़ी…, उनकी सुबह की अधूरी आस अब पूरी हो रही थी…
मेरे गरम लंड को मुट्ठी में कसते हुए बोली – आअहह…क्या मस्त हथियार है तुम्हारा…
सुबह तो बस हाथ में पकड़ कर फील ही कर पाई थी, लेकिन अभी अपनी आँखों से देखा है, सच में निशा बेटी बहुत खुश नसीब है…!
मेने उनकी सुडौल चुचि को मसल्ते हुए कहा – अभी तो ये आपके हाथों में है, जो चाहे कर लो…!
बड़ी कामुक स्माइल देकर उन्होने मेरी तरफ देखा, और हल्के से उसे अपनी जीभ की नोक से चाटा…
सुपाडे को खोलकर उसके पीहोल के चारों ओर जीभ फिराई, मेरे मुँह से सिसकी नकल गयी…!
फिर आंटी ने मेरी दोनो गोलियों को एक साथ अपने मुँह में भर लिया, उन्हें अच्छे से चूसने के बाद वो मेरे लंड को उपर तक चाटती चली गयी, और टॉप पर पहुँचते ही गडप्प से उसे अपने मुँह में भर लिया…
आंटी की इस कामुक अदा से मेरे होश गुम होने लगे…! वो उसे पूरे मन से चूस रही थी, कभी-कभी बाहर निकाल कर पूरी लार उसके उपर चुपड देती, और फिरसे हाथ से मुठियाने लगती…!
जिस तरह से आंटी मेरे लंड की सेवा कर रही थी वैसी आज तक किसी ने नही की थी,
अब मेरा संयम खोने लगा था, सो मेने आंटी को अपने उपर खींच लिया…!
वो अपनी गरम चूत को लेकर मेरे लंड पर बैठती चली गयी, मेरा मोटा ताज़ा लंड उनकी चूत में कसा हुआ जा रहा था…
आंटी ने कसकर अपने होठों को बंद कर लिया, और धीरे-धीरे करके मेरे पूरे लंड को अपनी चूत में समेटकर हाँफने लगी…
मेने उन्हें अपने उपर झुका लिया, और उनके होठों को चुस्कर उनकी चुचियों को मसल्ने लगा,
आआहह….अंकुश बाबू, वाकाई में बहुत जानदार लंड है तुम्हारा, पहली बार इतना कसा हुआ लग रहा है मेरी चूत में, अब चोदो मेरे रजाअ…
मेने उनकी चुचियों की घुंडीयों को उमेठते हुए कहा – कमान आपने संभाल रखी है, मे कैसे चोदु..?
सस्सिईइ….आअहह…ज़ोर्से नही….ये कहकर उन्होने धीरे-धीरे अपनी गान्ड को उपर उठाया, और फिरसे बैठने लगी, थोड़ी ही देर में उनकी गति बढ़ने लगी…!
कुछ देर तक आंटी मेरे लंड पर उठक-बैठक करती रही.., लेकिन उनकी रफ़्तार से मेरा मन भरने वाला नही था…,
सो मेने उन्हें अपने नीचे लिया और उनकी टाँगों को अपने सीने से सटकर जो रफ़्तार दी.., आंटी की रेल बन गयी…,
अपने धक्कों को स्पीड देते हुए मेने कहा – आहह…आंटी क्या चूत है आपकी, पूरा कस लिया है इसने मेरे लंड कूओ…
आंटी सिसकते हुए बुदबुदाई..सस्सिईइ…आअहह…तो खोल दो इसे अच्छे से अपने इस मूसल सीई.., आआययईीी…म्म्माआ…धीरी…ईई…कहते हुए वो झड़ने लगी…
सुबह तक मेने आंटी के सारे दरवाजे खोल दिए…, एक बार जमकर उनकी चूत को बजाया, जिसमें वो तीन बार झड़ी, फिर एक बार उनकी गान्ड का भी ढक्कन खोल ही दिया…
हालाँकि गान्ड मरवाने में उन्होने काफ़ी नखरे किए, लेकिन जब एक सुलेमानी लंड किसी औरत को पसंद आ जाए, तो वो उसे किसी भी सूरत में खोना नही चाहती… चाहे उसके लिए उसे कोई भी बलिदान क्यों ना करना पड़े, ये तो केवल गान्ड की ही बात थी..., थोड़े दर्द के बाद मज़ा ही देने वाला था…!
आंटी बहुत देर तक अपनी महीनो पुरानी प्यास के बुझने के बाद की खुमारी में पड़ी रही…मेने भी उन्हें नही उठाया…!
जब सुबह मेरी नींद खुली तो वो मेरे बिस्तर पर नही थी…………..!
आज मुझे कोर्ट में कोई ज़्यादा काम नही था, सो दोपहर के बाद ही घर की तरफ निकल गया, जहाँ एक बहुत बड़ा सर्प्राइज़ मेरा इंतेजार कर रहा था…!
घर में घुसते ही सबसे पहले मुझे भाभी मिली जिन्होने मुझे देखकर एक रहश्यमयि मुस्कान दी, पूछने पर कुछ नही कहा – बस इतना इशारा किया कि अपनी निशा रानी से जाके पुछो…
निशा उस समय अपने कमरे में आराम कर रही थी, मेने जाकर अपना बॅग रखा और सीधा उसके उपर जंप लगा दी…!
उसने मुझे देखते ही घुड़क कर कहा – दूर हटो, ऐसे झपट्टा मारकर मत आया करो वरना वो नाराज़ हो जाएगा…!
मेने चोन्क्ते हुए कहा – ये मियाँ बीवी के बीच और कॉन आ गया जो नाराज़ हो जाएगा भाई…?
वो बड़ी प्यारी सी स्माइल देकर बोली – अब मे अकेली नही हूँ, मेरे साथ कोई और भी है समझे राजाजी…!
आज इसे हो क्या गया है, सर्प्राइज़ पे सर्प्राइज़ दिए जा रही है, हारकर मेने उसे गुदगुदाना शुरू किया…, वो खिल-खिलाकर मुझे रुकने के लिए बोलने लगी…
मेने कहा – तो सीधे सीधे बताओ, बात क्या है, किसके बारे में बोल रही हो..
उसने धीरे से मेरे सिर पर हाथ रख कर हिलाया और मुस्कराते हुए बोली – अब आप असली बाप बनाने वाले हो मेरे बुद्धू बलम…!
मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, और फिर ज़ोर्से हुंकार सी भरते हुए चिल्लाया..ओ तेरी की, तो ये बात है…!
फिर मेने निशा को अपनी बाहों में भर लिया, और कमरे से बाहर आकर उसे लेकर पूरे आँगन में भागता रहा चिल्लाता रहा – याहूऊऊ….!
मेरी आवाज़ सुनकर भाभी, रामा दीदी और रूचि भी आ गयी, और वो भी मेरे साथ इस खुशी में शामिल हो गयी………….!
दूसरे दिन मेरा मन नही हुआ शहर जाने का, जो भी काम थे वो पोस्टपोन कर दिए, इतनी बड़ी खुशी मे अपने परिवार के साथ ही मनाना चाहता था..,
चाय नाश्ते के बाद मे भाभी के पास चला गया, जहाँ दीदी पहले से ही ज़मीन पर गद्दी डालकर बच्चे की मालिश कर रही थी, भाभी सिरहाने से टेक लेकर बैठी, दोनो आपस में बातें कर रही थी…!
मुझे देखते ही भाभी बोली – आओ लल्ला थोड़ा अपने बेटे के साथ खेल लिया करो, दूसरे के आने में तो अभी बहुत वक़्त है…!
मे दीदी के बाजू में बैठकर बच्चे को खिलाने लगा.., तभी भाभी बोली – अच्छा रामा ये बताओ तुम दोनो ने दिल्ली में कुछ मस्ती-वस्ति की या अब सुधर गये हो…
दीदी के मालिश करते हुए हाथ थाम गये, एक शर्म की लाली अपने चेहरे पर लेकर उसने भाभी की तरफ देखा..जो मंद-मंद मुस्करा रही थी…!
अब ऐसे शरमाओ मत, 900 चूहे ख़ाके बिल्ली तप करने लगी क्या..?
एक शर्मीली मुस्कान के साथ दीदी ने अपनी नज़रें झुका ली, तभी मेने उसके एक चूतड़ पर हल्के से चपत लगाते हुए कहा –
आपको क्या लगता है भाभी, दीदी ऐसा कोई मौका गँवा सकती है..?
तभी दीदी ने मेरे हाथ पर थप्पड़ मारते हुए कहा – हट नालयक तू तो एक दम दूध का धुला है ना, जैसे तूने कुछ नही किया हन…!
दीदी एक गाउन पहने अपने घुटने मोड़ कर बैठी मालिश कर रही थी बच्चे की, पीछे से मेने उसकी गान्ड की दरार में अपनी उंगली चलते हुए कहा –
झूठ मत बोलो दीदी, भाभी इसने मेरे पहुँचते ही मेरे उपर धाबा बोल दिया, और फिर रात में भी आकर मेरा लंड चूसने लगी…!
भाभी – क्यों रामा, सबर नही हुआ होगा ना.., भाई के लंड की खुश्बू सूंघते ही झपट पड़ी होगी, इसमें तुम्हारी कोई ग़लती भी नही है वो साला है ही इतना मस्त की मे खुद ज़्यादा दिन सबर नही कर पाती…!
रामा की हम दोनो की बातें सुनकर झिझक ख़तम हो गयी, और वो मेरे लौडे को अपनी मुट्ठी में लेकर बोली – सही कह रही हो भाभी, मेरे भाई का हथियार राम दे उसे मिले..!
आप दोनो तो जब मन करता है ले लेती हो, तो भला में मुश्किल से हाथ आए मौके को कैसे गँवा देती, इतना कह कर वो ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी, हम दोनो भी उसका साथ देने लगे…!
तभी मेने अपने बेटे के गाल पर किस करके कहा – अच्छा भाभी ये बताओ, इसको भरपेट दूध पिलाती हो या नही, कम तो नही पड़ जाता…!
भाभी – अच्छा जी, देखा रामा अपने बेटे की कितनी परवाह है इन्हें, चिंता मत करो लल्ला इसकी माँ दुधारू गाय से कम नही है, ये सारा दूध पी भी नही पाता..,
मेरी चुचियाँ जब ज़्यादा भर जाती हैं, तो वैसे ही निकालना पड़ता है…!
मे – वेस्ट क्यों करती हो, रूचि को ही पिला दिया करो ना…, वैसे कैसा है आपका दूध, मुझे भी टेस्ट कराओ ना भाभी..?
भाभी – अरे इसमें पुच्छना कैसा, आ जाओ पीलो ये कहकर उन्होने अपने गाउन की डोरी खींच दी, दूध से लबालब भाभी की गोर-गोरी चुचियाँ देख कर मे उच्छल कर पलंग पर उनके बगल में जा बैठा…!
मेने अपने हाथ से उनकी भरी हुई चुचियों को सहलाया, तो भाभी बोली – दबाना मत लल्ला, वरना दूध निकल जाएगा, लो चूस लो इन्हें…!
मेने फ़ौरन अपना मुँह उनकी एक चुचि से लगा दिया, चूस्ते ही उनके मीठे दूध की धार मेरे मुँह में समा गयी.., मेने चटखारा लेकर कहा –
आअहहा…भाभी मज़ा आ गया, वास्तव में आपका दूध बहुत मीठा है, तभी भाभी ने रामा से कहा – तुम्हें भी पीना है अपनी भाभी का दूध…!
रामा दीदी भी उठकर दूसरी बाजू बैठ गयी, और दूसरी चुचि उसने अपने मुँह में भर ली…,
मज़े और प्यार की मिली-जुली लहर भाभी के बदन में दौड़ गयी, आँखें बंद करके वो अपने दोनो हाथ हम दोनो के सिरों पर फिराने लगी..,
तभी हमें निशा की आवाज़ ने चोंका दिया….!
अरे वाह ! क्या सीन है, एक नवजात बच्चे का हक़ मारकर भाई बेहन कैसे दूध पीने में लगे हुए हैं, फिर अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोली – हाए राम क्या जमाना आ गया है देखो तो…!
उसकी बात पर हम सब हँसने लगे, भाभी बोली – आजा, तू भी पीले, जल क्यों रही है वहाँ खड़ी-खड़ी.., तेरी बेहन किसी गाय से कम दूध नही देती.. !
निशा भी लपक कर आ गयी, मुझे उसने परे धकेल दिया और खुद लग गयी उनका दूध पीने..!
मे भाभी के पैरों की तरफ बैठ गया, और उन दोनो घोड़ियों की गान्ड मसलने लगा, वो गुउन्ण..गुउन्न्ं… करके अपनी अपनी गान्ड इधर से उधर को मटकाने लगी.., लेकिन चुचि मुँह से नही निकली…!
मेने दोनो के गाउन कमर से उपर तक चढ़ा दिए, छोटी-छोटी कच्च्छियो में उनके नंगे चूतड़ चमक रहे थे.., उनपर थपकी देकर मेने भाभी से कहा-
भाभी कोई गाना गाओ ना, मे तबला बजाता हूँ.., देखो क्या मस्त टेबल की जोड़ी है सामने, ये कहकर मे वास्तव में ही ताल देने लगा..,
उन दोनो ने दूध पीना छोड़ दिया और अपने-2 गाउन नीचे करके गान्ड रख कर बैठ गयी, इसपर भाभी और मे खिल-खिलाकर हँसने लगे…!
निशा ने मुझे धक्का देकर पलंग पर लिटा दिया, फिर मेरा शॉर्ट खींचकर नीचे फेंक दिया और मेरे घोड़ा पछाड़ को पकड़कर बोली-
आपने तो हमारे टेबल पर थाप दे ली, अब मुझे बीन बजाकर इस नाग को मनाने दो, उसे चूमकर बोली..उउंम्म…पूउक्च..कितना प्याला है मेला बाबू..हहूऊंम…!
मेने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – देखा भाभी, खाली-पीली झूठा लाड दिखाती है ये..मेला बाबू..मेला बाबू करके, लेकिन उसे जो चाहिए वो देने को कभी राज़ी नही होती…!
निशा अपना मुँह उपर करके बोली – हान्ं…मेने किस चीज़ के लिए मना किया इसको, जब जी करता है अपनी मन पसंद सुरंग में घुस जाता है…!
मे – देखा भाभी, भूल गयी अपना वादा, क्या प्रॉमिस किया था उस दिन..? आज तक तूने इसे अपनी पीछे वाली सुरंग में जाने दिया कभी…!
निशा अपने होठ काट’ते हुए बोली – डर लगता है कही मेरी पीछे वाली सुरंग धारसाई ना कर दे ये..,
भाभी ने उसे ताना देते हुए कहा – बस इतना ही ख़याल है इसका, अपने मतलब के लिए प्यारा लगता है, उसकी इच्छा का कोई ख्याल नही…!
तभी दीदी ने भी उसे उकसाते हुए कहा – अब अपनी किसी प्यारी चीज़ का ख़याल तो रखना ही चाहिए, हां कर दे निशा… कम ऑन…!
भाभी और दीदी के उकसाने पर निशा हिम्मत जुटाकर बोली – ठीक है मे इसे अपनी पीछे वाली सुरंग में जगह देने को तैयार हूँ, लेकिन मेरी भी एक शर्त है…!
हम तीनों के ही मुँह से एक साथ निकला…क्या…?
निशा ने मुस्कराते हुए दीदी की एक चुचि मसल दी और बोली – पहले हमारी ननद रानी इसे अपनी पीछे वाली सुरंग का रास्ता दिखा देंगी तो मे भी ले लूँगी…!
दीदी ने उसका हाथ पकड़कर अपनी चुचि से हटाया और उसकी गान्ड में उंगली डालते हुए बोली –
साली छिनाल, वो तेरी गान्ड में जाना चाहता है, मुझे बीच में क्यों घसीट रही है…!
भाभी ने बीच-बिचाव करते हुए कहा – कोई बात नही रामा, तुम बड़ी हो, पहले तुम डलवा के दिखा दो उसे कैसे लेते हैं, फिर वो भी सीख लेगी…!