Update 64

मेने उसे खोलकर पढ़ा, और मेरी खोपड़ी ही उलट गयी.., फिर मेने समय बर्बाद नही किया, और फ़ौरन तुम्हारा हॉतस्पोट ऑन करके सारे वीडियो और मेसेज अपने मोबाइल में कॉपी कर लिए…!

तुम्हारे जाने के बाद मेने वो सारे मेसेज जिन्हे तुमने क्लिप के साथ मेरे भाई को भी भेजा था और दूसरी वीडियोस भी सब कुछ देखा,

जिन्हें देख कर अब मेरे मन में कोई शंका वाकी नही रही, कि हमारी बर्बादी के पीछे का कारण क्या था…!

सबसे बड़ा झटका तो मुझे तब लगा, जिसमें तुमने मेरे भाई को एसपी के साथ मीटिंग करते हुए वीडियो बनाकर असलम को भेजा था…!

असलम और गुंजन दोनो आपस की गोली से कैसे मरे, ये मेरे दिमाग़ में एकदम क्लियर हो गया, और तुम्हारे दिमाग़ की दाद दिए बिना नही रह पाई, सच में तुमने बहुत बड़ा गेम खेला था…!

इसी दुश्मनी के चलते उस्मान भाई ने मेरे डॅड को मार डाला…!

मेने बीच में टोकते हुए कहा – असलम को तुम्हारे भाई ने नही मारा था, उसको मेने गोली मारी…!

और फिर कामिनी के चचेरे भाई और कमिशनर के लौन्डे को गन पॉइंट पर ड्रग्स का ओवरडोज देकर उनकी महबूबा के साथ मेने ही मारा, जानती हो क्यों…?

वो – हां, लेकिन तुम किसी को सज़ा देने वाले कॉन होते हो..? तुम कोई भगवान तो नही हो ना..?

मे – भगवान किसी को सज़ा देने खुद नही आते, वो ये काम मेरे जैसे लोगों से करने के लिए प्रेरणा देते हैं, तुम सब क़ानून और समाज के दुश्मन हो, जिन्हें मेने अपने तरीक़े से सज़ा दी,

इसका मुझे कोई दुख या मलाल नही है, अब तुम बेसक़ मुझे गोली से उड़ा दो, कोई गम नही, बस थोड़ा सा ये दुख रहेगा, कि उन गुनेहगारों में अभी कुछ वाकी रह जाएँगे…!

और एक बात हराम्जादि साली लंड की भूखी कुतिया, तुम लोग समाज के लिए कलंक हो, एक फ्री की अड्वाइस देता हूँ, मुझे जल्दी से मार डाल,

अगर मे ग़लती से तुम्हारी इस क़ैद से निकल गया, तो तुम जितने भी बचे हो किसी को नही छोड़ूँगा…!

मे तुझे उन लोगों से अलग समझता था, इसलिए तुम और तुम्हारा पति जिंदा बचे हुए हो, वरना …!

ये बात मेने इतने सर्द लहजे में कही, कि श्वेता के बदन में डर के मारे झुरजुरी सी दौड़ गयी, वो भयभीत नज़रों से कुछ देर मेरी तरफ देखती रही…

फिर कुछ अपने को संभालते हुए बोली – तुझे इतनी आसान मौत नही मिलेगी कुत्ते, मे चाहती हूँ तू एडियाँ रगड़ रगड़ कर खुद से अपनी मौत माँगे…!

तूने जिस हथियार का इस्तेमाल करके ये सब किया है, उसी का इस्तेमाल मे तेरे साथ करूँगी, और तुझे हर रोज़ अनगिनत औरतों के साथ चुदाई करवा-करवा के इतना बेबस और लाचार बना दूँगी,

तेरे शरीर से खून की एक एक बूँद तक निचोड़ लूँगी, तू हर लम्हा ये सोचेगा कि काश इससे अच्छा तो मौत ही आजाए…!

मे – लेकिन तेरे ऑफीस की चुदाई को इतने दिन हो गये, फिर इतना समय तूने क्यों लगाया मेरे उपर हाथ डालने में…!

श्वेता – तेरी सारी चालें समझने के बाद मे बहुत देर तक तो यही फ़ैसला नही कर पाई, कि ये सब तूने किया है…!

फिर जब मेने अपने आपको समझा लिया, और तुझसे बदला लेने का फ़ैसला लिया…

अब मेरे पास मेरा कोई गॅंग तो बचा नही था, तूने सब लोगों को मौत दिलवा दी, या अपने हाथों से दे दी, अब अगर मे या मेरे पति सीधे-सीधे तेरे से टकराते तो शायद सफल नही होते…!

तभी मेरे दिमाग़ में भानु का नाम आया, जो तेरे से बुरी तरह खार खाए बैठा था, मेने उससे कॉंटॅक्ट किया…

वो इस शर्त पर मेरा साथ देने को तैयार हुआ, कि मे तुझे आख़िर में मौत के घाट उतरवा दूँगी,

क्योंकि अगर तू इस बार बच गया, तो भानु को पूरी तरह बर्बाद करने से पीछे नही हटेगा…, इसलिए तुझे फसाने के लिए उसने फिरसे मालती का ही सहारा लिया और देख आज तू मेरे रहमो करम पर है…

अब तुझे रोज़ सेक्षुयली टॉर्चर किया जाता रहेगा, और तू कुछ नही कर सकेगा.. हाहाहा..

मेने चिल्लाते हुए कहा – ज़्यादा दाँत मत फाड़ साली कुतिया, ये क्यों नही कहती, कि तू मुझे बेबस करके लंबे समय तक अपनी चूत की प्यास बुझाना चाहती है…!

वो – जो चाहे समझ ले अंकुश, दे जितनी गाली देना चाहता है,

हां मे अपनी प्यास बुझाना चाहती हूँ, और वो भी मन माने तरीक़े से, जब चाहूं तब, और तू बुझाता रहेगा, जब तक मे चाहूं… हाहहहाहा…!

सरोज ! बाँध दे साले के चारों हाथ पैर, हगने मूतने दे साले को बेड पर ही…

ये कहकर वो भभक्ते चेहरे के साथ हेमा को लेकर रूम से बाहर चली गयी…

सरोज मेरे हाथ पैर बाँधने लगी…, ना जाने क्यों उसने मेरे हाथों की रस्सी कुछ ज़्यादा लंबी रख छोड़ी और अपनी एक आँख दबा कर वो भी बाहर चली गयी…!

गुस्से की वजह से मे उस समय उसका इशारा नज़र अंदाज कर गया, अब मेरे पास सिवाय उस बेड पर बिना कपड़ों के पड़े रहने के और कोई चारा नही था…!

श्वेता के चले जाने के बाद में बेबस हालत में पड़ा सोचने लगा, सारी बातें क्लियर हो चुकी थी कि ये क्यों और कैसे हुआ,

अब बस ये सोचना था कि यहाँ से कैसे निकला जाए…!

रात शायद बहुत हो चुकी थी, बाहर से झींगुरों की आवाज़ें आ रही थी, बदन पके फोड़े की तरह टूट रहा था…,

थकान बुरी तरह से हावी थी, फिर भी नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी…

शरीर में इतनी शक्ति बाकी नही थी, कि रस्सियों को किसी तरह तोड़ने की कोशिश की जा सके…!

मे अपनी सोचों में गुम यहाँ से निकलने की कोई तरक़ीब निकालने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी ना जाने कहाँ से एक बड़ा सा कीड़ा मेरे गले पर आ गया, और उसने मुझे बुरी तरह से काट लिया…!

मेरे गले में बुरी तरह से जलन होने लगी, उसे भगाने के लिए मे इधर से उधर अपने सिर को हिलाने लगा, इसी दौरान मुझे लगा, कि मेरा मुँह मेरे हाथों तक पहुँच रहा है…!

मेरे दिमाग़ को एक तेज झटका लगा, सरोज शायद जान बूझकर मेरी रस्सी लंबी करके गयी थी, और उसने वो आँख से…. हां ! शायद वो ये इशारा देकर गयी है…!

इसका मतलव वो चाहती है, कि मे यहाँ से निकलने की कोशिश करूँ… !

मेने आँखे बंद करके मन ही मन उसको धन्यवाद किया, और अपना मुँह दाए हाथ की रस्सी की गाँठ तक ले गया…!

निरंतर कोशिश के बाद मेने अपने एक हाथ की गाँठ को अपने दाँतों से खोल लिया…!

अब मेरा एक हाथ और शरीर हिलने डुलने के लिए फ्री था, सो आसानी से एक हाथ और दाँतों के सहारे मेने दूसरे हाथ की गाँठ भी खोल ली…

पैरों की रस्सी खोलकर मेने अपने शरीर को थोड़ा खोलने की कोशिश की जो पड़े-पड़े अकड़ गया था…!

लेकिन खड़े होते ही मुझे कमज़ोरी की वजह से चक्कर सा आ गया, तब मुझे ये एहसास हुआ कि श्वेता की धमकी कितनी सही थी,

अगर ऐसा ही दो-चार दिन और चलता रहा, तो हो सकता है, मेरे शरीर से खून की एक एक बूँद नीचूड़ जाएगी, और बिना कुछ किए मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएँगे.

कुछ देर मेने पलंग पर बैठकर दो-चार लंबी लंबी साँसें लेकर अपने अंदर शक्ति का संचार किया और उठकर गेट की तरफ बढ़ गया…!

मुझे पता था, गेट बाहर से बंद होगा, उसे खुलवाने के लिए कोई नाटक तो करना ही पड़ेगा, सो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा – अरे कोई हाईईइ…बचाओ मुझे…….!

कुछ देर तक कोई प्रतिक्रिया नही आई, तो मे फिरसे चिल्लाया.., इस बार किसी के कदमों की आहट मुझे सुनाई दी, फिर गेट का सरकंडा सरकाने की आवाज़ हुई, फिर एक इंसानी साया अंदर दाखिल हुया…

मे दीवार से सटा हुआ था, जब उसने सामने बेड खाली देखा तो एकदम से पलटने लगा, लेकिन तब तक मेने उसकी गर्दन अपने बाजू में कस ली…!

उसकी गर्दन पर अपने बाजू का दबाब बढ़ाते हुए मेने गुर्रा कर कहा – कोई होशियारी करने की कोशिश मत करना वरना मे तेरा अभी के अभी गला दबा दूँगा…!

बता बाहर और कितने आदमी हैं…!

ये बातें हम गेट पर खड़े-खड़े ही कर रहे थे, इससे पहले कि वो कोई जबाब देता, पीछे से मेरे सिर पर कोई वजनी चीज़ की चोट पड़ी, और मे अचेत होकर वहीं गिर पड़ा, और मेरी ये निकलने की कोशिश नाकाम हो गयी…………..!

दूसरी तरफ मेरे घर पर…………

जिस दिन मुझे श्वेता ने किडनॅप किया था, उसी दिन मेरी शादी की साल गिरह थी, तो मेरा घर जाना ज़रूरी था…!

छोटा-मोटा सेलेब्रेशन रखा था, घर पर भाभी और निशा ने सभी तैयारियाँ कर ली थी, इसी बहाने प्राची भी ज़िद करके भैया के साथ गाओं पहुँच गयी थी…

जब मे देर रात तक भी घर नही पहुँचा, तो सबको चिंता होने लगी, प्राची ने अपनी मम्मी को फोन लगाकर पता किया, उन्होने कहा कि वो तो आज यहाँ आए ही नही…!

भैया को पता था कि गुप्ता जी मेरे क्लाइंट हैं, सो उन्होने उनको भी फोन किया वहाँ से भी ना ही मिली, सभी तरफ से कोई खबर ना पाकर सबके मन में घबराहट होने लगी…!

निशा ने तो रोना-धोना ही शुरू कर दिया, जिसे प्राची और भाभी ने संभाल लिया…!

आनन फानन में कृष्णा भैया शहर को दौड़ पड़े, और अपना सारा फोर्स मुझे ढूँदने में लगा दिया…!

दो रातें और एक पूरा दिन पोलीस शहर की सड़कों पर चक्कर लगाती रही लेकिन उन्हें मेरा कोई सुराग नही मिला…, हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी…!

भैया की तरफ से कोई पॉज़िटिव रेस्पॉन्स ना पाकर सब बहुत परेशान हो उठे..,

कहाँ गया, क्या हुआ, कहीं कोई दुर्घटना तो… नही..नही.. भगवान इतना निर्दयी नही हो सकता…

निशा और भाभी का रोते-रोते बुरा हाल था, बड़े भैया और बाबूजी समेत घर भर में मातम सा च्छा गया…!

लेकिन प्राची…! हां प्राची, मेरी सच्ची सिपाही, उसके दिमाग़ ने काम करना नही छोड़ा और उसने धीरे से भाभी को कहा –

दीदी…! मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा है, अंकुश भैया कहाँ होंगे…!

भाभी अवाक उसकी तरफ देखने लगी, निशा का भी रोना थम गया….!

प्राची – हो ना हो, ये उन्ही लोगों में से किसी का काम हो जिन्हें भैया ने उनके अंजाम तक पहुँचाया है…!

भाभी – लेकिन उनमें से अब कोई बचा भी तो नही है, जो लल्ला को नुकसान पहुँचाए…!

प्राची – मुझे कुछ सोचने दो, वो एकांत में जाकर बहुत देर तक सोचती रही, उसने पूरे घटना क्रम को सिरे से सोच डाला,

अपनी बेहन रेखा के बलात्कार से लेकर उन चारों को मौत देने तक, यहाँ तक कि उनके ऑर्गनाइज़ेशन को नेस्तोनाबूत करने तक की सारी घटना पर उसने गौर किया…!

उसे कोई क्लू नही पकड़ में आया, तो उसने फिरसे गौर किया…! फिर जैसे ही उसके दिमाग़ में गुंजन का नाम आया जिसे वो भूली हुई थी,

जब उसने उसपर गौर किया कि कैसे उसे उसे मेने किया था..

उसने एकदम से चुटकी बजाकर कहा – मिल गया….. हाआँ ! बिल्कुल ! वोही हो सकती है…!

उसकी ये बातें भाभी के कानों में पड़ी, और बोली – क्या बड़बड़ा रही हो

प्राची..? क्या मिल गया..?

प्राची मुस्कुराती हुई उनके पास आई और बोली – दीदी ! अपने लाड़ले देवर के लिए क्या कर सकती हैं आप ?

भाभी – ये भी कोई पुच्छने की बात है, वो मेरे सब कुछ हैं, उनके लिए मे अपनी जान भी दे दूं तो वो भी कम होगी…!

प्राची – और किसी की जान भी लेनी पड़े तो…?

भाभी – तुम क्या समझती तो अपनो के लिए जान लेना सिर्फ़ तुम्ही जानती हो, अरे उस लाड़ले के लिए इंसान तो क्या, शैतान से भी भिड़ जाउन्गि मे…!

भाभी का ऐसा दुर्गा रूप देख कर प्राची बोली – तो फिर चलिए मेरे साथ, अब लगता है, मेरा फिरसे हथियार उठाने का वक़्त आ गया है…!

निशा – दीदी, मे भी चलूंगी आप लोगों के साथ…!

भाभी ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराया और बोली – तू सिर्फ़ मेरे देवर की निशानी की हिफ़ाज़त कर और अपनी बेहन पर भरोसा रख, अपनी जान देकर भी मे अपनी बेहन के सुहाग को ले आउन्गि…

और फिर मेरे साथ तो ये शेरनी भी है, तो फिर मुझे किसका डर… ये कहकर वो अपने नवजात शिशु जो अभी कुछ महीनों का ही था और घर की ज़िम्मेदारी उसे सौंप कर दोनो घर से चल पड़ी…

भैया और बाबूजी पूछ्ते रह गये कि कहाँ जा रही हो, तो भाभी ने सिर्फ़ इतना ही कहा – घर का ख्याल रखना, हम जल्दी ही लौटेंगे…!

प्राची ने बड़े भैया की गाड़ी ली और आँधी तूफान की तरह शहर की ओर दौड़ा दी…!

अपने बंगले पर आकर प्राची ने अपना हुलिया चेंज किया, कुछ ही देर में वो अब एक नव युवक ड्राइवर के भेष में नज़र आ रही थी, ऐसे ही उसने भाभी को भी एक ग्रामीण युवक में बदल दिया…!

उसकी कलाकारी देख कर भाभी दंग रह गयी, इन सब कामों से फारिग होने के बाद उन्होने प्राची से पूछा – आख़िर तुम करना क्या चाहती हो, और हम जा कहाँ रहे हैं…!

अब प्राची को लगा कि ये सही समय है दीदी को सब कुछ बताने और उन्हें समझने का, तभी वो अपना रोल अच्छे से कर पाएँगी… सो बोली..

दीदी ! मेने सभी संभावनाओं पर कई बार गौर किया, मुझे ऐसी कोई वजह नज़र नही आई, जहाँ से भैया पर अटॅक हो सकता है, सिवाय एक के…!

भाभी बस उसे देखती रही, क्योंकि उनके पास और कहने को कुछ था ही नही…

प्राची ने आगे कहा – योगराज की बेटी श्वेता के अलावा और कोई नही बचा है, जिसे हम भूल बैठे थे कि उसे कुछ नही पता होगा…

लेकिन मेरा सेन्स कह रहा है, कि उसे कहीं ना कहीं से भनक लग ही गयी होगी, और उसी ने ये हरकत की हो सकती है…!

भाभी – तुम शायद भानु को भूल रही हो, वो शुरू से ही हमारे परिवार के पीछे पड़ा है, ख़ासकर कोर्ट में मुँह की खाने के बाद…!

प्राची – नही दीदी.., मे भानु को नही भूली हूँ, मेने उस संभावना पर भी गौर किया था, लेकिन उसके ना होने के कयि कारण हैं…!

एक तो उसका मोटिव इतना सीरीयस नही है, दूसरा अगर वो इसके पीछे होता तो उन्हें किडनेप नही करता, या तो बुरी तरह ज़ख्मी कर देता या फिर…., इतना कहकर प्राची ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी…!

भाभी – जब तुम इतनी श्योर हो तो हम देवर जी को क्यों नही बता देते, वो अपने पोलीस फोर्स को लेकर उन्हें बचा सकते हैं ना…!

प्राची – लेकिन हमें कन्फर्म तो नही है ना कि ये उसी का किया धरा है, और मान भी लें कि उसी ने किया है, तो भी बिना किसी सबूत के पोलीस उसपर हाथ नही डाल सकती…!

भाभी – तो फिर अब हम क्या करने वाले हैं..?

प्राची – मेरा हुलिया देख रही हैं आप, उसी के मुतविक, अब हम उसके ड्राइवर को किडनॅप करेंगे, और उसकी जगह मे उसकी ड्राइवर बन जाउन्गि…!

अगर ये काम उसी ने किया है, तो दिन में कम से कम एक बार वो ज़रूर वहाँ जाती होगी जहाँ उसने उन्हें क़ैद किया होगा..!

भाभी – लेकिन इस काम में मेरा क्या रोल रहेगा…?

आप उसकी गाड़ी के आस-पास ही रहना, और जैसे ही मे इशारा करूँ, आप उसकी डिकी में छुप जाना, ये तो आप कर सकती हैं ना,.

भाभी – तुम पहले एक बार डिकी खोलना बंद करना बता दो मुझे, कहीं कुछ गड़बड़ ना हो…!

प्राची ने उन्हें डिकी खोलना सिखा दिया, और ये हिदायत कर दी, कि डिकी में बैठने के बाद उसे बिल्कुल बंद मत करना, वरना वो लॉक हो जाएगी, और आप अंदर से उसे नही खोल पाओगि, इसलिए हल्की सी गॅप बनाकर रखना…!

भाभी ने सब अच्छे से समझ कर अपनी गर्दन हिलाकर हामी भरी, भाभी को उसने एक पुरानी सी जीन्स और अपनी एक टीशर्ट पहनने को दी थी, जिसके उपर से एक ग्रामीण युवक जैसा ढीला-ढाला कुर्ता, और एक स्वाफी (तौलिया) ..

अभी दीदी, आप सिर्फ़ टॉप में ही रहो, और इस बॅग में कुर्ता और स्वाफी रख लो, जब हुलिया चेंज करने की ज़रूरत पड़े, तभी इसके उपर कुर्ता पहन कर अपने बालों को समेट कर स्वाफी लपेट लेना…

और ये लो मूँछे इन्हें भी लगा लेना…! उन्होने वो सब समान एक पोलिबॅग में रख लिया…, साथ ही प्राची ने एक खंजर भी उनके बॅग में डाल दिया, जो कभी भी सेल्फ़ डिफेन्स में काम आ सकता था…

लेकिन उन्होने टॉप और जीन्स पहली बार पहने थे, सो उन्हें बड़ी शाराम सी महसूस हो रही थी, प्राची उनके मन की बात समझ गयी,

उसने उनका संकोच दूर करने के लिहाज से जीन्स के उपर से उनके कूल्हे को दबाकर बोली – ओह्ह्ह दीदी, जस्ट फॉर फन…, इतना भी क्या शरमाना, इन कपड़ों में आप सचमुच हॉट लग रही हो…

उसकी बात से वो और ज़्यादा शरमा गयी,

इतना सब कुछ मोहिनी को सिखा पढ़ा कर वो दोनो वहाँ से निकल ली.. अपने मिशन पर.

समय के मुतविक, श्वेता को इस समय अपने ऑफीस में होना चाहिए था, सो गाड़ी उसने अपने बंगले पर ही छोड़ी, और एक ऑटो लेकर वो दोनो उसके ऑफीस की तरफ चल दी..

श्वेता एक बहुत बड़े एंपाइयर की मालकिन थी, उसकी अपनी खुद की बहुत बड़ी बिल्डिंग थी, ढेरों स्टाफ,

बिल्डिंग के आगे बड़ा सा लॉन, मेन गेट के बाजू में ही ऑफीस की कॅंटीन, जिसमें सभी ड्राइवर वग़ैरह बैठ कर सारे दिन अपने साहब लोगों का इंतेज़ार करते थे…

श्वेता के ड्राइवर का पता लगाना प्राची के बाएँ हाथ का खेल था,

बिल्डिंग के बाहर रिक्सा रुकवा कर उसने एक बार अपना हुलिया चेक किया, और भाभी को एक पेड़ के नीचे इंतेज़ार करने का बोलकर वो मेन गेट की तरफ बढ़ गयी…!

गेट पर ही उसने श्वेता के ड्राइवर की कुंडली पता कर ली, वो इस समय कॅंटीन में था, सो वो सीधी जाकर कॅंटीन में पहुँची…

वहाँ और भी लोग थे, सो उनसे पता करके वो रामसिंघ (ड्राइवर) जो कॅंटीन की एक खाली ब्रेंच पर लेटा हुआ था…

प्राची उसके एक दम पास जाकर ठेत हरियानवी में बोली – रे ताऊ, रामसिंघ थारा ही नाम से के…?

रामसिंघ अपने पास एक नौजवान ड्राइवर को देख कर बैठते हुए बोला – हां भाई मेरा ही नाम रामसीघ से.., के काम से म्हारे ते…?

प्राची – अरे ताऊ, म्हारे को कोई कोई काम ना से थारे से, एक भाबी बाहर रोड उपर खड़ी थारे ने पुच्छ रही थी…

रामसिंघ – भाभी..? कैसी है..?

प्राची – मन्ने तो घनी चोखी लागी, ये ही कोई 30-35 साल की..

रामसिंघ – पर तू कॉन सै भाई…?

प्राची – मे तो बाजू आली कंपनी में ड्राइवर सूं.., वो वहाँ खड़ी थी, तो मन्ने पूछ लिया, इब ज्यदा रिक्वेस्ट करण लागी, तो मे थारे धोरे बोलन आगया…!

रामसिंघ – चल देखूं तो सही कॉन भाभी सै…!

गेट से बाहर आकर प्राची ने दूर से ही उसे बता दिया कि देख वो पेड़ के नीचे खड़ी से, तू मिल ले ताऊ, मे चलता हूँ..!

इतना कहकर वो उसके जबाब का इंतेज़ार किए बिना ही बाजू वाली फॅक्टरी के गेट की तरफ बढ़ गयी, उत्सुकता बस रामसिंघ मोहिनी की तरफ चल दिया…!

टॉप और जीन्स में खड़ी औरत उसका इंतेज़ार कर रही है, ये देख कर 45 साल के रामसिंघ की बान्छे खिल उठी…!

वो उसके पास जाकर बोला – अरी कॉन सै तू, और यहाँ मेरा इंतेज़ार क्यों करे सै…?

मोहिनी ने बड़े मादक अंदाज में अपने नीचे का आधा होठ, दाँतों में दबाकर जैसे ही अपनी तिर्छि नज़र उसपर डाली, रामसिंघ के तो होश ही उड़ गये…

मोहिनी के रूप जाल में फंसकर वो सारे सवाल जबाब करना भूल गया, और उसकी सुंदरता में खो गया…!

वो अपनी नज़रों से सेक्सी अंदाज में अपने पीछे आने का इशारा देकर एक तरफ को चल दी..,

रामसिंघ किसी रिमोट कंट्रोल से चलने वाले खिलौने की तरह उसके पीछे पीछे चल पड़ा…

बाजू वाली फॅक्टरी के पीछे की साइड एक बहुत बड़ा खाली प्लॉट था, जिसका कोई उसे ना होने के कारण उसमें बिलायती कीकर और तमाम तरह की झाड़ियाँ खड़ी थी…

मोहिनी एक घनी सी झाड़ी के पीछे जाकर खड़ी हो गयी, दस कदम तय करके रामसिंघ भी उसके पास पहुँच गया…!

जाते ही पीछे से उसने उसकी कमर में हाथ डालकर जैसे ही उसके बदन को अपनी बाहों में लिया, भड़ाक से एक मोटे से डंडे का वार उसकी खोपड़ी पर पड़ा..,

वो वहीं त्यौराकर ढेर हो गया.., दोनो उसकी टाँग खींच कर और घनी झाड़ियों में ले गयी, फिर अच्छे से उसके हाथ पैर बाँध कर मुँह में कपड़ा ठूंस दिया…!

उसे वहीं पड़ा छोड़ कर प्राची ने कहा – दीदी, अब आप फ़ौरन अपने देहाती वाले लिवास में आ जाओ, और हां मेन गेट के आस-पास ही रहना…

मे बस एक मिनिट के लिए गाड़ी रोकूंगी, उतने में ही आपको थोड़ी सी डिकी खोलकर बिना किसी की नज़र में आए बैठ जाना है…

इतना कहकर प्राची अंदर चली गयी…!

लगभग 5 बजे उसे श्वेता बाहर आती हुई दिखाई दी, उसके साथ दो औरतें और थी.., उसे देखते ही प्राची फ़ौरन उसकी गाड़ी के पास पहुँची,

इससे पहले कि वो गाड़ी तक पहुँचती, वो उसके लिए पीछे का गेट खोलकर खड़ी हो गयी..

श्वेता ने उसे गौर से देखा और बोली – तुम कॉन हो..? और रामसिंघ कहाँ है..?

प्राची अपनी आवाज़ को भारी बनाकर बोली - वो में साब मे उनका भतीजा हूँ, आकस्मात चाची की तबीयत खराब हो गयी, इसलिए वो मुझे यहाँ छोड़ कर चले गये…

श्वेता – कमाल है, कैसा गधा आदमी है..? कम से कम बोलकर तो जाता…?

प्राची – वो गये तो थे अंदर बोलने, पर शायद आप नही होंगी ऑफीस में ..

श्वेता – अच्छा ठीक है, तुम अच्छे से गाड़ी चला लेते हो ना..?

प्राची – जी में साब, चाचा से भी अच्छी तरह चला लेता हूँ …!

श्वेता – तुमने हमारे फार्म हाउस का रास्ता देखा है..?

प्राची – नही में साब, आप रास्ता बताती जाना, मे पहुँचा दूँगा…!

श्वेता पीछे की सीट पर बैठते हुए बोली – ठीक है, आओ हेमा चलते हैं, सरोज तुम आगे बैठो…!

मेन गेट से निकल कर कोई 50 मीटर पर रोड साइड में एक लेटर बॉक्स था, उसके पास गाड़ी रोक कर प्राची ने कहा – सॉरी में साब, एक मिनिट में आया, एक लेटर बॉक्स में डालकर…!

श्वेता उसे डाँटते हुए बोली – तबसे पड़े-पड़े क्या कर रहे थे, डाल नही सकते.. अब जाओ जल्दी डाल कर आओ,

प्राची लेटर बॉक्स की तरफ बढ़ गयी, और यौंही एक कागज का टुकड़ा उसने बॉक्स में सरका दिया, कनखियों से उसने देख लिया कि मोहिनी डिकी खोलकर बैठ चुकी है…

आधे घंटे के बाद उनकी गाड़ी शहर के बाहर एक फार्म हाउस में जाकर रुकी…

वो तीनो उसे पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके इंतेज़ार करने का बोलकर अंदर चली गयी…!

प्राची ने उनके जाते ही फ़ौरन गाड़ी एक साइड में बनी पार्किंग की तरफ बढ़ा दी, क्योंकि सामने ही गेट के पास 4 हथियार बंद मुस्टंडे खड़े थे,

उसे डर था, कि कहीं गाड़ी के रुकते ही मोहिनी दीदी डिकी खोलकर बाहर ना जाएँ और कुछ करने पहले ही हमारा भंडा फुट जाए….!

पार्किंग में गाड़ी लगाकर, उसने डिकी को उपर किया, ग्रामीण युवक के भेष में मोहिनी बाहर आई…!

दिन छुप रहा था, पस्चिम में सूरज की लाली आसमान में छा चुकी थी…

उन्हें नही पता था कि ये यहाँ क्या करने आई हैं, और कितनी देर रुकने वाली हैं, सो प्राची ने भाभी को बिल्डिंग के पीछे की तरफ जाकर छुप्ने को कहा और खुद सामने मेन गेट की तरफ बढ़ गयी…!

फार्म हाउस ज़्यादा बड़ा नही था… लगभग 3-4 एकर के गार्डन जैसे ग्राउंड के एक साइड में ये छोटी एक मंज़िला इमारत थी,

सामने के मेन गेट से घुसते ही, एक बड़ा सा हॉल जैसा था, उसके ठीक सामने कोई 15 फीट लंबी गॅलरी सी थी, जिसके दोनो तरफ एक एक दरवाजा था, गॅलरी के अंतिम छोर पर एक बड़ा सा गेट जो शायद एक और हॉल नुमा कमरे का होगा.

कुल मिलाकर गॅलरी के एक तरफ एक कमरा, उसके सामने किचन और पीछे एक हॉल, यानी दो हॉल एक कमरा और रसोई…!

प्राची बेधड़क अंदर हाल में चली गयी, उन मुस्टांडों ने उसे टोका, तो वो बोली – मे मेडम का ड्राइवर हूँ..!

हॉल में पहुँचते ही उसे एक और बंदा सोफे पर बैठा दिखाई दिया, जो शायद भानु था,

प्राची ने उससे पुछा – आए भाई साब ! मेडम कित गयी…?

भानु कुछ देर उसके चेहरे को देखता रहा, एक मासूम से युवक जिसकी हल्की हल्की मुन्छे जो कतयि ड्राइवर नही होना चाहिए, उसने सोचा शायद कोई मजबूरी रही होगी बेचारे की…

भानु – वो अपनी फ्रेंड्स के साथ सामने वाले हॉल में मीटिंग में हैं, उन्हें यहाँ दो-तीन घंटे लगेंगे, तब तक तुम बाहर उनका इंतेज़ार करो...

इतने से ज़्यादा अब प्राची यहाँ कुछ कर भी नही सकती थी, उसे लगा कि अगर
अंकुश भैया को यहाँ क़ैद किया भी होगा, तो श्वेता इस समय वहीं होगी…

ये सोचकर वो बाहर आ गयी, साइड से होते हुए पीछे की तरफ बढ़ गयी, जहाँ उसे मोहिनी भाभी खड़ी मिल गयी, एक पेड़ की ओट में…!

प्राची ने उन्हें अंदर की सारी वास्तु स्थिति से अवगत कराया, कुछ देर वो दोनो वहीं खड़ी बातें करती रही,

वातावरण में थोड़ा अंधेरा सा घिरने लगा था, पीछे की साइड में लाइट की भी कोई उचित व्यवस्था नही थी, प्राची के मुतविक पीछे वाले हॉल में ही श्वेता और उसकी फ्रेंड्स हैं, जिसकी दीवार उनके सामने थी…

मोहिनी – आओ चलो यहाँ कोई विंडो वग़ैरह ज़रूर होनी चाहिए, उससे अंदर देखने की कोशिश करते हैं…!

पीछे की तीन तरफ की दीवारें उसी हॉल नुमा कमरे की थी, पीछे की पूरी दीवार एकदम सपाट थी, उसमें कोई भी विंडो नही थी, बस एक रोशनदान जैसा था, जो काफ़ी उँचाई पर था…!

प्राची उस रोशनदान को ध्यान से देखने लगी, तभी उसके कानों में अंदर की आवाज़ें पड़ी…!

देखो दीदी, इसी कमरे में हैं वो, सुनो कुछ आवाज़ें आ रही हैं.. प्राची ने फुसफुसा कर भाभी से कहा…

वो भी उन आवाज़ों को सुनने की कोशिश करने लगी, लकिन कुछ साफ-साफ सुनाई नही दे रहा था…,

अब अंदर क्या हो रहा है उसे जान’ने या देखने के लिए उनकी बैचैनि बढ़ने लगी, प्राची हॉल की एक साइड वाली दीवार की तरफ बढ़ गयी, वहाँ उसे एक विंडो दिखी, लेकिन वो स्लाइडिंग थी एक दम डार्क ग्लास की, जिसमें से आर-पार नही देखा जा सकता था…

उसने उसे स्लाइड करने की कोशिश की लेकिन वो शायद अंदर से लॉक थी, वो पुनः उनके पास आई और बताया कि एक विंडो उधर है तो सही, लेकिन अंदर से लॉक है..

भाभी – चलो दूसरी तरफ ट्राइ करते हैं, शायद उधर भी कुछ हो..?

वो दोनो दूसरी साइड वाली दीवार की तरफ मूड गयी, एक विंडो उधर भी थी, ये दो तरफ खुलने वाली लकड़ी के कपाट वाली विंडो थी, जिसके कपाट बाहर को ही खुलते थे…!

भाभी ने अपनी उंगलियों के नाख़ून उसके नीचे से फँसाकर उसे हिलने की कोशिश की, तो वो कपाट हिल गया, उनकी आँखों की चमक बढ़ गयी, और वो फुसफुसा कर बोली –

ये खुला है प्राची…, उन्होने आहिस्ता से उसे थोड़ा सा खोलकर उसमें झिरी सी बना ली, जितने से अंदर झाँका जा सके…!

जैसे ही उन्होने अंदर झाँक कर देखा, उनकी साँसें थम गयी, वो सकते की सी हालत में पीछे को हटती चली गयी,

उनकी आँखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा, उनका दिमाग़ सुन्न पड़ गया, और वो लहराते हुए गिरने ही वाली थी, कि पीछे से प्राची ने उन्हें थाम लिया…!

प्राची – क्या हुआ दीदी, ऐसा क्या है उस कमरे में…?

भाभी ने कोई जबाब नही दिया, सकते की वजह से उनकी जीभ तालू से चिपक गयी थी.. बस अपनी एक उंगली उस तरफ उठाकर इशारा कर दिया…!

थोड़ी देर में वो सम्भल गयी, तो प्राची ने उन्हें खड़े रहने को कहकर खुद उसके अंदर झाँक कर देखने लगी…!

अंदर का सीन देख कर एक बार तो प्राची के भी होश गुम हो गये, लेकिन उसने जल्दी ही अपने पर काबू पा लिया…!

हॉल नुमा कमरे के बीचो-बीच एक बड़े से बेड पर इस समय अंकुश बिना कपड़ों के पीठ के बल लेटा हुआ, जिसके चारों हाथ पैर बेड के चारों कोनो पर रस्सी से बँधे हुए थे…!

उन तीनों के अलावा दो और औरतें जो शायद इनके आने से पहले ही यहाँ मौजूद होंगी..वो सभी एकदम नितन्ग नंगी, भूखी कुतियाओं की तरह अंकुश को शिकार की भाँति भनभॉड रही थी,

श्वेता उसके लंड पर सवार थी, हेमा उसके मुँह पर अपनी चूत रख कर बैठी अपनी कमर आगे पीछे कर रही थी…

सरोज उसकी छाती को, उसके चुचकों को सहलाते हुए अपनी चूत में उंगलियाँ डाले थी, उन दो में से एक अंकुश की टाँगों के बीच घुसकर उसके पेलरो को चूसे जा रही थी,

बीच बीच में हाथ से भी सहलाती, साथ ही अपने दूसरे हाथ से अपनी गीली चूत को सहलारही थी, और पाँचवी बीच में बैठी कभी श्वेता की चुचियों से खेलती तो कभी हेमा की..…!

5-5 नंगी औरतों के बीच अकेला मर्द वो भी निसहाय अवस्था में पड़ा जिसकी हालत देख कर ऐसा लग रहा था, मानो वो कयि हफ्तों से बीमार हो..,

लेकिन उसका लंड एक दम तना हुआ कड़क सीधा खड़ा, श्वेता की चूत में सटा-सॅट अंदर बाहर हो रहा था…!

अंदर का इतना भिभत्स और घिनौना सीन देख कर प्राची की आँखों में आँसू आ गये, अपने सबसे प्यारे दोस्त जैसे देवर को पहली बार उसने इतना विवश देखा था…

उसने अपने मुँह पर हाथ रखकर अपनी सिसकी को बाहर आने से रोका, तभी उसे अपने पीछे भाभी के होने का एहसास हुआ, वो भी उसके नज़दीक आकर अंदर देख रही हैं…!

हीकच….! लाख रोकने के बाद भी मोहिनी भाभी के मुँह से हिचकी निकल गयी,

प्राची ने पलट कर उनके कंधे पर हाथ रख कर हौसला बनाए रखने का इशारा किया…!

वो वहाँ से दौड़कर उसी पेड़ की तरफ़ भाग गयी, उनसे ये भीभत्स नज़ारा ज़्यादा देर तक देखा नही गया…!

अपने लाड़ले देवर की ये हालत देख कर उनका दिल खून के आँसू रो रहा था…!

वो पेड़ के तने से पीठ टिका कर वहीं घुटने मोड़ कर बैठ गयी, और अपना सिर टाँगों के बीच देकर रोने लगी…!

कुछ देर बाद जब उनके कंधे पर किसी के हाथ का अहसास हुआ, उन्होने अपना सिर उपर उठाया, चेहरा आँसू से भीग चुका था…!

वो झट से प्राची के गले लग कर फुट-फुट कर रोने लगी…!

हौसला रखिए दीदी, प्राची ने उनकी पीठ सहलाते हुए कहा – जब हम यहाँ तक आ ही गये हैं, तो अब उन्हें इस मुशिबत से निकाल भी ले जाएँगे…!

कम से कम वो मिले तो सही, अब जो भी उनके साथ हुआ या हो रहा है, उसे हम वापस तो नही ला सकते, लेकिन आगे क्या करना है उसपर विचार करने का वक़्त है, ना कि कमजोर पड़कर आँसू बहाने का…!

भाभी अपनी रुलाई पर काबू रखते हुए बोली – शायद तुम ठीक कह रही हो मेरी बेहन, लेकिन तेरे जैसा हौसला कहाँ से लाउ मे..?

तुझे पता है, जब मे इस घर में व्याहकर आई थी, तब ये मेरा देवर निक्कर पहन कर मेरी उंगली पकड़ कर चलता था, मेरे आने के कुछ ही हफ्तों बाद माँ जी मुझे इसका हाथ सौंप कर चल बसी…

मेने इसे अपने बेटे की तरह बड़ा किया है, आज उसकी ये हालत देख कर मेरा दिल खून के आँसू रो रहा है मेरी बेहन, कैसे हौसला रखूं…?

प्राची – फिर भी आपको हौसला रखना ही होगा दीदी, अपने उसी लाड़ले के लिए, हमें लड़ना होगा…, उन्हें इस हालत में पहुँचाने वालों को उनके किए की सज़ा देनी होगी…!

आप अभी से इस तरह टूट जाएँगी, तो उन्हें कॉन निकालेगा उस दलदल से…?

आप चुप हो जाइए प्लीज़, वरना सारा खेल ख़तम हो जाएगा, किसी को भनक भी लग गयी, तो हम दोनो भी इनके हाथ लग जाएँगे, फिर कोई सूरत नही कि हम कुछ कर पायें…!

प्राची की बात का भाभी के उपर तुरंत असर हुआ, और वो शांत हो गयी, लेकिन आँखें अभी भी लगातार बरस रही थी, बीच-बीच में उनकी हिचकियाँ भी निकल जाती…!

भाभी को शांत करके प्राची ने कृष्णा भैया को फोन लगाया, यूज़र बिज़ी का मेसेज लगातार आ रहा था…!

उसने सोचा, शायद वो मीटिंग में होंगे, या कहीं फील्ड आक्षन में बिज़ी होंगे,

अभी डिस्टर्ब करना भी सही नही है, सो उसने कॉल बॅक का मेसेज टाइप करके सेंड कर दिया…!
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अगले दिन शहर में राज्य के गृह मंत्री का दौरा होना था, उसकी सेक्यूरिटी को लेकर शहर की पोलीस के सारे बड़े अधिकारी इस समय पोलीस मुख्यालय में मीटिंग कर रहे थे…!

सबके मोबाइल ऑफ थे, जब प्राची ने एसएसपी कृष्णा कांत को फोन किया था, तो वो उस समय वहीं थे, इसलिए उसने मेसेज छोड़ दिया..

इट्स अर्जेंट प्लीज़ कॉल व्हेन फ्री, मॅटर ईज़ सीरीयस रिलेटेड टू अंकुश भैया “

इतना मेसेज लिख कर उसने भाभी से कहा – दीदी, वो तो शायद बिज़ी हैं, -उनका मोबाइल ऑफ लग रहा है, मेसेज कर दिया है.. अब हमें यहाँ से चलना होगा…!

भाभी ने उसकी तरफ गेहन आश्चर्य से देखा और बोली – लल्ला को इस हालत में छोड़ कर...?

प्राची – और हम यहाँ कर भी क्या सकते हैं दीदी.., वैसे भी मुझे श्वेता को उसके घर छोड़ना पड़ेगा, उसके बाद वापस उनको अपने साथ ही लेकर आ पाएँगे…!

भाभी – नही मे अपने बेटे को छोड़ कर कहीं नही जाउन्गि, तुझे जाना है तो जा, तब तक मे यहीं रहूंगी…!

प्राची ने बहुत समझाने की कोशिश के, आप यहाँ अकेली क्या करेंगी, कहीं मुशिबत में पड़ सकती हैं… लेकिन मोहिनी भाभी ने उसकी एक नही सुनी,

आख़िरकार प्राची को उन्हें वहीं अकेला छोड़ कर जाना पड़ा,​
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