Update 68

मेरी इस बात पर निशा समेत हम तीनो खिल-खिलाकर हँसने लगे, ये देखकर प्राची की सारी शंकाए दूर हो गयी और वो भी हमारे साथ शामिल हो गयी..!

निशा प्रेग्नेन्सी की वजह से कुछ टॉनिक लेती थी, जिसके असर से उसे जल्दी नींद आने लगी, तो उसे भाभी ने रूचि के कमरे में सोने भेज दिया…!

फिर वो प्राची की कमर में चिकोटी काट’ते हुए बोली- क्यों छुटकी क्या कहती है, जीत की खुशी मनाई जाए, हो जाए एक बार थ्रीसम लल्ला के साथ…!

झेन्प्ते हुए प्राची ने भी हामी भर दी, फिर क्या था वो दोनो घोड़िया एक साथ मेरे उपर टूट पड़ी……….

दूसरे दिन सूवा 9 बजे से ही पंचायत घर पर लोग जमा होने लगे…!

मामला था – पूर्व सरपंच रामसिंघ के बेटे का चक्कर रामदुलारी के टोले की एक लड़की से चल रहा था, भेन्चोद लड़का भी बाप के पदचिन्हों पर चल रहा है..

हमारे कॉलेज में एक कहावत थी – “अनाड़ी का चोदना, चूत का सत्यानास”

लड़की पेट से हो गयी, जब ये बात रामदुलारी को पता लगी, वो तो रामसिंघ से खाए हुए धोखे की वजह से खार खाए बैठी थी.., फिर क्या था, उछाल दी उसने ये बात पूरे गाओं में…!

अब लड़का था शादी-सुदा, लेकिन दुलारी ने हाथ रख दिया लड़की के परिवार वालों पर, कहने लगे जी इसे लड़की के साथ शादी करनी पड़ेगी…

उधर लड़का सीधा नाट गया जी, कहने लगा – ये झूठा इल्ज़ाम लगा रही है मुझे बदनाम करने के लिए, मेरा इसके साथ कोई लेना देना नही है…!

पंचायत घर ज़्यादा बड़ा नही था, हां उसके सामने का मैदान ज़रूर अच्छा ख़ासा था, जिसमें गाओं के ज़्यादातर लोग जमा थे,

दो कमरों के आगे के वरॅंडा में सरपंच के लिए एक कुर्सी डाल दी गयी थी, जिसपर भाभी बैठ गयी, मे उनके बाजू में किसी सेवक की तरह खड़ा हो गया..

सामने एक बड़े से तखत पर बाबूजी, चाचाओं और रामसिंघ समेत गाओं के और भी मुआजिद लोग बैठे थे…!

दोनो पक्षों की बातें सुनी गयी, जो लगभग वही थी जो पहले से ही वो कहते आ रहे थे…!

भाभी ने धीमी आवाज़ में कहा – लल्ला, तुम क्या सोचते हो, क्या फ़ैसला होना चाहिए इसका…?

मे – अभी तक दोनो तरफ से यही सॉफ नही है, कि ग़लती किसकी है तो फ़ैसला किस बात का, और कैसे होगा…?

भाभी – तो अब क्या करें..? ये तो बड़ा जटिल मामला है..

मेने कहा – बस आप देखती जाओ मेरा कमाल ये कह कर मेने उँची आवाज़ में कहा –

सरपंच चाहती हैं कि वो एक बार दोनो तरफ के फरीख से अलग अलग बात करके सच्चाई पता की जाए, उसके बाद ही कोई निर्णय लिया जा सकता है,

तो पहले चाचा रामसिंघ जी और उनके बेटे से बात होगी, उसके बाद लड़की के परिवार वालों के साथ…

मेरी बात सुनकर रामसिंघ और उनका लड़का उठकर हमारे पास आए, उन्हें लेकर मे और भाभी एक कमरे में चले गये…!

मेने लड़के से कहा – हां भाई..! अब हमें तो तुम सच सच बताओ बात क्या है..?

वो – अरे भाई वकील साब, वो साली मेरे उपर ग़लत-सलत आरोप मढ़ रही है, मे बीवी बच्चे वाला आदमी भला उस साली च**** के पीछे पड़ूँगा…?

मे – देख भाई, आज के जमाने में इस तरह की बातें नही होती, वो जमाने गये जो सारे मसले पंचायत में ही हल होते थे…!

अभी तो बात अपने ही हाथ में है, अगर ये पोलीस या कोर्ट तक पहुँच गयी, तो दोनो की मेडिकल रिपोर्ट निकाली जाएगी, जिसमें डीएनए से तुरंत पता चल जाएगा कि उसके पेट में पल रहा बच्चा किसका है…?

वो लड़का – हां ! ऐसा भी कहीं होता है, कि जाँच से उसके बीज़ का पता चल जाए..?

मे – बिल्कुल, और अगर वो तेरा ही निकला तो फिर सोच ले कोर्ट जो फ़ैसला करेगा वो तुम लोगों को मानना ही पड़ेगा, इसलिए भलाई इसी में है कि जो सच है वो बता दे, हम कुछ ले देकर बात को रफ़ा दफ़ा कर सकते हैं…

रामसिंघ अपने लड़के की तरफ देखने लगा, वो अपनी गर्दन झुकाए बोला – हां..
वो.. ग़लती से हो गया.., पर इसमें मेरी सारी ग़लती थोड़ी ना है, वो भी तो इतने दिनो से मज़े कर रही थी मेरे साथ…!

मेने रामसिंघ से कहा – देखो चाचा , घर गाओं की बात है, किसी ग़रीब की लड़की का घर बस जाएगा, और आपकी भी बात बनी रहेगी, सो मेरे विचार से आप उसकी लड़की की शादी का जिम्मा ले लो..

उसी की बिरादरी में कोई अच्छा सा लड़का देख कर उसकी शादी करदो, खर्चा आप उठा लेना..

रामसिंघ ने फ़ौरन मेरी बात को मान लिया, फिर हमने लड़की के परिवार को अकेले में बुलाया, साथ में दुलारी भी आई और आते ही शुरू हो गयी अपनी राम कहानी लेकर..

मेने उसे शांत करते हुए समझाया – देखो भौजी…, मे जानता हूँ, ये बच्चा उसी लड़के का है, पर तुम खुद सोचो,

एक तो जात बिरादरी का मामला, दूसरा अगर उसको ज़बरदस्ती शादी के लिए कहा भी तो कोर्ट एक पत्नी होते हुए दूसरी की इज़ाज़त कभी नही देता है, जब तक कि पहली वाली से तलाक़ ना हो…!

मानलो तलाक़ भी दिलवा दी, तो पहली को घर से तो निकाल नही सकता, अब तुम खुद सोचो, कि तुम्हारे ही घर में तुम्हारी ही सौत लाकर बिठा दी जाए, तो क्या तुम उसे अपना लोगि..?

नही ना ! तो अब तुम खुद सोचो, क्या वो लड़की ऐसे में खुश रह पाएगी…?

तो मेरी राई है, कि हम कुछ भी करके उसकी शादी का खर्चा रामसिंघ से दिलवा देंगे, बस तुम लोग कोई अच्छा सा लड़का उसके लिए तलाश कर्लो…!

मेरी बात से लड़की के माँ-बाप राज़ी दिखाई देने लगे लेकिन दुलारी अभी भी भड़की हुई लग रही थी…

मे उसे अकेले एक कोने में ले गया, और सबकी नज़र बचाकर उसकी गान्ड को मसल्ते हुए कहा – भौजी ये मसला जाति दुश्मनी निकालने का नही है, बात बढ़ाने से लड़की की बदनामी होगी,

अभी तो बात गाओं तक ही सीमित है, इलाक़े में फैल गयी तो कोई भला आदमी शादी भी नही करेगा उसके साथ…!

उस लड़की का घर बस जाने दो, कोई अच्छा सा घर तलाश करो, दहेज की चिंता मत करना… रामसिंघ से हम फिर कभी बदला ले लेंगे, जिसमें मे आपका साथ दूँगा..

इस तरह दुलारी को पटा कर हम बाहर आए, और सभी लोगों के सामने उँची आवाज़ में मेने कहा –

भाइयो – ये हमारे गाओं और समाज की इज़्ज़त का मामला है, अब इसमें रामसिंघ के बेटे की ग़लती है, या वो लड़की ग़लत बयानबाज़ी कर रही है,

हम लोग इसी के पीछे पड़े रहे तो इससे हमारे गाओं की बदनामी आस-पास के इलाक़े में होगी, जो हम सबके लिए शर्म की बात होगी…!

इसलिए सच्चाई जो भी हो हम उसपर बहस ना करते हुए पंचायत ये फ़ैसला लेती है कि लड़की के लिए उचित वर तलाश करके उसकी शीघ्र शादी करदी जाए…

दहेज और शादी में और जो भी खर्चा आएगा उसे हमारे पूर्व सरपंच श्री रामसिंघ जी अपनी तरफ से उठाएँगे..! अब आप लोग बताइए क्या ये सही फ़ैसला है या ग़लत…!

ज़्यादातर समझदार लोगों ने इस बात का समर्थन किया, और दोनो पक्षों की रज़ामंदी लेकर पंचायत ख़तम की………!

घर आकर भाभी ने मेरी बहुत तारीफ़ की और बोली – लल्ला जी… सच में तुमने आज मेरा दिल जीत लिया, वाह ! क्या फ़ैसला किया है, मे ये कभी नही कर पाती…!

मेने उनके दोनो चुतड़ों को अपने हाथों में कसकर अपने सीने से सटाते हुए कहा – कोरी तारीफ से काम नही चलेगा सरपंच साहिबा आज तो कुछ स्पेशल गिफ्ट देना होगा आपको…!

भाभी ने मेरा गाल काट लिया, और मेरे होठों को चूमकर बोली – सब कुछ तुम्हारा है मेरे राजा…जो चाहिए ले लो..

मेने उनकी रूई जैसी गुद-गुदि गान्ड की दरार में उंगली डालते हुए कहा – आज इसका मन है…! दोगि क्या…?

अपने चुतड़ों को कसकर भींचते हुए उन्होने मेरी उंगली को अपनी दरार में जप्त करते हुए कहा – डाल लो, एक दिन सारा काम निशा को ही करना पड़ेगा.. मुझे क्या..?

मेने कसकर भाभी की चूत को अपने लंड पर दबाते हुए कहा – मज़ाक कर रहा था, अपनी जान को दर्द हो वो काम में अब कभी नही करूँगा…!

वो मेरे होंठों पर टूट पड़ी, कुछ देर चुस्कर अपनी मुनिया को मेरे लंड के उपर रगड़ते हुए बोली – तुम्हारे लिए हर दर्द मंजूर है मेरे लाड़ले देवर…! बस हुकुम करो..

रहने दीजिए वरना सारे दिन निशा मुझे गालियाँ देगी.. ये कह कर मेने उनके ब्लाउस के उपर से ही भाभी की एक चुचि को दाँतों में दबाकर काट लिया…!

आअहह…बदमाश, अब ये क्या है..? अब छोड़ो, कोई आ जाएगा, चौड़े में खड़े हैं, दिन का मामला है..

मेने उन्हें नीचे उतारते हुए कहा – ठीक है, तो आज दोपहर को थ्रीसम करते हैं, चिकनी करके रखना..!

उन्होने मेरे लंड को मसल्ते हुए कहा – पक्का.. एक दम चिकनी चमेली मिलेगी तुम्हें.. जी भर कर चाटना, खूब रस पिलाउन्गी तुम्हें आज…!

हमारी ये रासलीला निशा जाने कब से देख रही थी, अपनी चूत को भींचते हुए बोली – चलो दीदी, दोनो एक साथ चिकनी करते हैं…!

भाभी ने कपड़ों के उपर से ही उसकी चूत मसलते हुए कहा – बड़ा जल्दी है चुसवाने की हां..! आज लल्ला नही मे तेरा रस पीउंगी.., बोल पिलाएगी ना…!

हइई….दीदी, सच में, आहह…सुनकर ही गीली हो गयी मे तो, वैसे भी राजे अब जमके चुदाई नही करते मेरी, तो फिर आपको ही ज़्यादा लेना पड़ेगा इनका,

ये कहकर वो भाभी के होठ चूसने लगी, वो दोनो एक दूसरे की चुतो को मसल्ते हुए किस में जुट गयी, मे धीरे से वहाँ से खिसक कर चाची के घर की तरफ निकाल लिया……..!

भाभी के साथ हुई छेड़-छाड़ की वजह से मेरा लंड पाजामा में बुरी तरह से फुसकार रहा था…!

घर से निकलते हुए मेने जैसे तैसे अपने खड़े लंड को त्राउजर में अड्जस्ट किया वरना वो खूँटे की तरह तना हुआ सामने से दिखाई दे रहा था…,

मानो अंबेडकर की प्रतिमा हाथ आगे करके रास्ता बता रही हो….!

चाची के दरवाजे को मेने हल्का सा पुश किया तो वो खुलता चला गया,

इस टाइम वंश और चाचा तो कॉलेज में ही होने चाहिए, आँगन में जाकर मे अभी चाची को आवाज़ देने ही वाला था, कि तभी वो अपने सोने के कमरे से बाहर आती हुई दिखी…!

शायद नहाने की तैयारी थी, सो मात्र एक कसे हुए ब्लाउस और पेटिकोट में चाची का कामुकता से भरपूर बदन इन दो कपड़ों में देखकर मेरे पहले से तने हुए लंड ने और ज़्यादा बग़ावत करदी,

जहाँ मेने उसे जबदस्ती ठूंस-थान्स कर अड्जस्ट किया था, वो वहाँ से निकल्कर खूँटे की तरह फिर तन्कर सतर हो गया, मानो इशारा कर रहो हो कि वो रही चूत…!

कमरे से बाहर आती चाची की नज़र जैसे ही मेरे उपर पड़ी, वो एकदम खुश हो गयी, और चहकते हुए बोली – ओहूओ… अंश के बापू आज इधर का रास्ता कैसे भूल गये..?

चाची का पेटिकोट और ब्लाउस दोनो ही कुछ ज़्यादा पुराने से लग रहे थे, सो एक तो वो छोटे पड़ गये थे, दूसरे उनका कपड़ा इतना हल्का हो गया था, कि उनमें से चाची का कसा हुआ गेंहूआ रंग सॉफ झलक रहा था…

काले काले निपल को ब्लाउस का कपड़ा छुपाने में असमर्थ था, फिर जैसे ही मेरी नीचे नज़र पड़ी, पेटिकोट के नाडे के बाधने की जगह पर वो कुछ ज़्यादा ही फटा हुआ था,

सोने पे सुहागा, वो फटा हुआ हिस्सा ठीक चूत के सामने था, जिसमें से उनकी झांतों के बाल अपने मुँह चमका रहे थे…!

मेने पास जाकर उस फटे हुए झरोखे में अपना हाथ डालकर चाची की झांतों को पकड़ कर हल्के से खींचते हुए कहा – मे कुछ दिन रास्ता क्या भूल गया, आपने तो पूरा जंगल ही खड़ा कर लिया यहाँ…!

आअहह…ज़ोर्से मत खीँचो लल्ला…ससिईइ…हाए…किसके लिए सॉफ करूँ…? मादक सिसकी लेकर बोली चाची…तुम तो आते ही नही अब…

मेने अपने उस हाथ की एक उंगली चाची की चूत के अंदर करदी, दूसरे हाथ से चाची की ब्लाउस के महीन कपड़े से चमकती निपल की एक घुंडी को पकड़ कर मरोड़ दिया…

सस्सिईईईईईईई…..आआहह….खड़े खड़े ही पानी निकाल दोगे तुम तो मेरा, बिस्तर तक तो चलो… यहाँ कोई देख लेगा…!

मेने चाची को पलटा दिया, उनकी गाड़ की शेप कसे हुए पेटिकोट से मस्त दिखाई दे रही थी, गान्ड के दोनो पाटों ने बीच की दरार को कस्के दबा रखा था…,

तरबूज जैसी गान्ड के दोनो पाटों को ज़ोर्से मसल्ते हुए मेने अपने दोनो हाथ उनकी बगलों से निकाल कर उनकी मस्त गदर चुचियों पर कस दिए और अपने सोटे का उभार चाची की गान्ड की दरार में दबाकर चिपकते हुए कहा….!

बस चुदाई तक का ही वास्ता रखती हो चाची, ये भी नही पूछा कि लल्ला क्या लोगे.., कुकच्छ खाओगे पीओगे…?

आअहह… बोलो ना मेरे रजाअ.. क्या लोगे, चाय या दूध.. ज़रा छोड़ो तो सही तभी तो बनाउन्गी…

मे – क्या…?

वो – चाय..!

मे – आज तो मे कुछ और ही पीने आया हूँ मेरी जान,

वो – हाईए…और क्या पीओगे रजाअ…!

मे – बताता हूँ, ये कहकर मेने उन्हें अपनी तरफ घुमाया, और नीचे बैठकर मेने उनके फटे हुए लहंगे को और ज़्यादा फाड़कर एक झरोखा बना दिया….!

हाए लल्लाआअ… ये क्या किया तुमने, मेरा लहंगा फाड़ दिया…

मे – मुझे जो पीना है, वो चासनी तो यहीं है ना, ये कहकर मेने अपना मुँह चाची की मोटी मोटी केले के तने जैसी चिकनी जाँघो के बीच फँसा दिया…!

चाची की चूत का रस टपक कर झान्टो के बालों पर एक दो बूँद जमा हो गया था, उनकी जांघों को चूत के पास चाट कर मेने अपनी जीभ उनकी चूत में घुसेड दी…

आअहह…भरते हुए चाची की टाँगें चौड़ी हो गयी, मे उनकी चासनी को चपर-चपर कुत्ते की तरह चाटने लगा…!

चाची ने अपनी एक जाँघ मेरे कंधे पर रख ली, और अपनी गान्ड मटका-मटका कर मस्ती में आँखें बंद करके अपनी चूत चटवाने लगी…

सस्स्सिईईई…आअहह….उउउफफफ्फ़…लल्ला…और घुसाओ अंदर.. हाए…रे मारीइ….माआअ…. उंगली डालूओ….दो एक संग…हहाअ… और अंदर कारूव…उउफ़फ्फ़…गायईयीई…

उूउउऊऊहह….उउफ़फ्फ़…करते हुए चाची मेरा सिर अपनी चूत के मुँह पर ज़ोर्से दबाकर झड़ने लगी,

मेने अपनी जीभ से चाट कर उनके अमृत कलश से निकली हुई एक-एक बूँद को अपने पेट में पहुँचा दिया.. और चटकारे लेकर चाची से बोला –

बहुत मीठी हो चाची, मज़ा आ गया, उन्होने झपट कर मेरे कंधे पकड़ कर मुझे खड़ा किया और मेरे होठों पर टूट पड़ी…!

बहुत जालिम हो लल्ला.. चाची नशीली अदा से मेरे गले में बाहें डालकर बोली – औरत को अपनी उंगलियों पर नचाना अच्छे से आता है तुम्हें…!

मेने उनके ब्लाउस के बटन खोलते हुए कहा – आपको अच्छा नही लगता मेरा ये सब करना…?

मेरे ट्राउज़र में हाथ डालकर लंड को अपनी मुट्ठी में लेने की कोशिश करती चाची बोली – अच्छा नही लगता होता तो टाँगें क्यों खोलती…!

अब तो चलो भीतर, यहाँ उपर से किसी ने देख लिया तो ग़ज़ब हो जाएगा…!

मे - उपर तो हमारा ही घर है ना चाची, फिर कोन देखेगा…?

चाची - निशा या मोहिनी बहू ने देख लिया तो…? मान जाओ लल्ला अच्छा नही लगता… चलो अंदर चलते हैं…

मेने चाची को अपनी गोद में उठा लिया और उनके कमरे में लेकर जाने लगा…

चाची – हाए लल्ला, बहुत भारी हूँ, उतार दो मुझे…!

मेने गान्ड में उंगली करते हुए कहा – मुझे तो भारी नही लग रही हो…!

वो – तुम जवान मर्द हो इसलिए, तुम्हारे चाचा तो मेरी टाँग भी नही उठा पाते..

मेने चाची को बेड पर पटका, और वाकी के कपड़े नोच डाले, फिर अपना पाजामा नीचे करके अपना खूँटा उनके मुँह के सामने लहरा दिया…!

मेरे सोट जैसे लंड को अपनी आँखों के सामने झूमते हुए देख कर चाची की आँखों में चमक उभर आई, और उसे चूमते हुए बोली –

ये पहले से कुछ और ज़्यादा तगड़ा हो गया है लल्ला…!

मे - हां चाची अब ज़रा इसकी सर्विस तो करो, उन्होने उसे अपने मुँह में भरने की कोशिश की, मुश्किल से चौथाई लंड मुँह में लेकर वो उसे चचोरने गली…!

दो मिनट के बाद मेने उसे बाहर खींच लिया, और चाची की मोटी मोटी चुचियों के उपर चटकाया, लंड से उनके कड़क हो चुके निप्प्लो को रगड़ा…

फिर उनकी खाई के बीच फंसकर उन्हें अपनी चुचियों को उसके इर्द-गिर्द दबाने को बोला और टिट फक्किंग करने लगा…!

मक्खन जैसी मुलायम चुचियों के बीच सटा-सॅट चलता लंड जब उपर जाता तो उसका सुपाडा उनके होठों तक पहुँच जाता जिसे चाची अपने मुँह में ले लेती…

टिट फक्किंग करने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था… लेकिन चाची की चूत को पानी पिलाना भी ज़रूरी था, वो इस समय पटल तोड़ बोर की तरह लगातार बहे जा रही थी…

मेने चाची की गान्ड के नीचे दो तकिये लगाए, और उनकी मांसल जांघों को चूमकर उपर किया, अब उनकी रस परी ठीक मेरे मूसल के सामने थी, सो एक दो बार उसके रस से उसको चिकनाया और सॅट्ट से एक धक्का मार दिया…

शर्सरा कर आधे से ज़्यादा वो उनकी रसीली चूत में समा गया, चाची के मुँह से एक मादक कराह निकल गयी….आआहह….रजाअ… बहुत मोटा है… आरामम.. ससीए…डाल्लूओ….

चाची की चुचियों को मसल्ते हुए मेने बचे हुए को भी अंदर कर दिया, और हल्के हल्के धक्के देने लगा…

चाची मेरे सोट को ज़्यादा देर तक नही झेल सकी, थोड़ी ही देर में उनकी चूत ने अपना नल खोल दिया…!

फिर मेने उन्हें घोड़ी बनाया और पीछे से लंड डालकर चोदने लगा…!

मोटा खूँटे जैसा लंड लेते ही चाची नील गाय की तरह रम्भाने देने लगी.., अपना सिर उपर करके पीछे मुड़ते हुए कराह कर बोली –

कितने निर्दयी हो लल्लाअ…, कम से कम अपनी माँ जैसी चाची की चूत का तो ख्याल करो.., एक दम से डाल देते हो..,,,हाईए रामम.. कितना मोटा हो गया है निगोडा..

मेने चाची की पीठ सहलाते हुए अपने होठ उनके लज़ीज़ होठों से सटा दिए…!

वो अपना दर्द भूल कर गान्ड उचकाते हुए चुदाई का मज़ा लूटने लगी…!

चाची की जमकर चुदाई करके, उन्हें पूरी तरह से तृप्त कर दिया, उनके लहंगे से अपना लंड पोंच्छ कर कपड़े पहने और एक किस उनके मोटे-मोटे माल पुआ जैसे गालों पर देकर अपने घर की तरफ चल दिया…..!

घर में कदम रखते ही निशा से सामना हो गया, वो देखते ही मेरे उपर राशन पानी लेकर चढ़ दौड़ी…

किसी भाटीयारीन की तरह अपना हाथ नाचते हुए अकड़कर बोली- हम दोनो को गरम करके कहाँ खिसक लिए थे जनाब…हां..?

मेने खिसियानी हसी हँसते हुए कहा – हहहे… मे थोड़ा चाची के घर तक गया था, बहुत दिनो से मिल नही पाया था ना इसलिए…! तुम बताओ, खाना बना कि नही..?

निशा अपनी कमर पर दोनो हाथ रख कर बोली – खाना…कैसा खाना ? हम दोनो इतनी गरम हो गयी, कि एक दूसरे को शांत करने में लग गयी… अभी दीदी नहाने गयी हैं उसके बाद मे जाउन्गी, तब कहीं बनेगा…!

लंच लेट होने के कारण दोपहर का थ्रीसम का प्रोग्राम पोस्टपोन करना पड़ा, भाभी ने रात को हमारे कमरे में आने का वादा कर दिया…

खाने के बाद मे दो घंटे की नींद लेकर शाम के समय खेतों की तरफ निकल गया. ट्यूबिवेल पर मुझे कोई नही मिला, तो बगीचे में टहलता हुआ बड़ी चाची की तरफ निकल गया…!

उन्होने अपने खेतों पर एक कच्ची ईंटों का एक घर बना लिया था, जिसमें काफ़ी जगह थी जिससे एमर्जेन्सी में अनाज वग़ैरह भी रखा जा सके मौसम बिगड़ने पर…

मे जैसे ही झोंपड़ी जैसे मकान के नज़दीक पहुँचा, अंदर से मुझे आहें कराहें, सिसकियों की आवाज़ें सुनाई दी…

मेने सोचा आज चाचा दिन में ही मज़े लेने लगे शायद, चलो लेने दो इन्हें ये सोच कर मे लौटने लगा कि तभी मुझे मन्झलि चाची की आवाज़ सुनाई दी…

आअहह…जेठ जी और ज़ोर्से पेलो उउउफफफ्फ़…बड़ा मज़ा आ रहा है…

मेरी तो खोपड़ी हवा में उड़ने लगी, ये मन्झलि चाची दुश्मन के घर…, ये कैसे हुआ, मेरी उत्सुकता अंदर चल रहे खेल को देखने की हो उठी…!

एक झिरी सी ढूँढ कर मेने अंदर का जायज़ा लिया…, ओ तेरे की दो-दो घोड़ियाँ एक साथ एक ही घोड़े पे सवारी कर रही थी…!

बाबूजी इस समय मंझली चाची को घोड़ी बना कर सटा-सॅट पेल रहे थे…, बड़ी चाची उनके बराबर में ही अपनी गान्ड औंधी कर घुटनों पर इंतजार कर रही थी…

बाबूजी अपने एक हाथ से बड़ी चाची की चौड़ी चकली गान्ड पर हाथ फेरते जा रहे थे, कभी-कभी धक्के की लय पर उनकी गान्ड पर थाप भी लगा देते…

बीच-बीच में अपनी दो उंगलियाँ बड़ी चाची की चूत में डाल देते, बाबूजी के मुँह से बस हुउन्ण..हुन्न.. जैसी आवाज़ें आ रही थी, और वो दोनो घोड़िया, मज़े से हिन-हिना रही थी..

कुछ देर में ही मंझली चाची ने हथियार डाल दिए और वो अपनी गान्ड के भूरे सुराख को सिकोडकर झड़ने लगी…!

आआईय…आअहह…जेठ जी क्या खाते हो राजाजी मेरा तो हो गया, अब आप जीजी को संभलो…!

बाबूजी ने उनकी चुत से फुच…करके अपने लौडे को बाहर खींचा, और बड़ी चाची की गान्ड पर थपकी देते हुए नीचे लेट गये…!

इस उमर में भी बाबूजी का खूँटा डंडे की तरह अकड़ कर उपर तरफ शान से खड़ा नयी चूत का इंतेजार कर रहा था…!

मंझली चाची की चूत रस से लवरेज, जिसे देख कर बड़ी चाची उनका इशारा समझकर बाबूजी के लौडे को एक बार मुँह में लेकर चाटा और फिर अपनी धरा सी गान्ड लेकर उसके उपर सवार हो गयी…!

सस्सिईइ…आआहह…जेठ जी.., कितना मज़ा देता है ये…उउउफ़फ्फ़..मज़ा आजाता है लेते ही.., बड़ी चाची सिसकारी भरते हुए लंड के उपर उठक बैठक करने लगी..,

चूत रस से गीला बाबूजी का चमकता लंड किसी पिस्टन की तरह चाची की चूत में अंदर बाहर हो रहा था..,

इस नज़ारे ने मेरे सोए हुए लंड को पूरी तरह जगा दिया था, मेने ज़्यादा देर वहाँ रुकना उचित नही समझा, और उसे पाजामे में ही उमेठ कर चुपचाप दबे पाँव वहाँ से खिसक लिया…!

इसका मतलब आख़िरकार बाबूजी ने दोनो में सुलह करा ही दी, चलो अच्छा है, तीनो का भला हो रहा है, और घर में सुख शांति कायम रहेगी.., ये सोचता हुआ मे घर की तरफ चल दिया…….!

भाभी इस समय अकेली किचन में स्लॅब के सहारे खड़ी आटा लगा रही थी, फिटिंग वाली मेक्सी में उनकी मखमली मुलायम गान्ड रिदम के साथ हिलोरें ले रही थी…!

खेतों के गरमा-गरम चुदाई सीन को देखने के बाद से ही मेरे खून में वैसे ही गर्मी फैली हुई थी, अब ये नज़ारा देखते ही मेरे घोड़े ने हिन-हीनाना शुरू कर दिया…!

अभी के अभी मेक्सी उपर करके डाल दे इस मक्खन जैसी गान्ड में मुझे.., मेने अपने लंड को नीचे को दबाते हुए उसे शांत करने की नाकाम कोशिश की..

और चुपके से भाभी के पीछे जाकर अपना मूसल उनकी गान्ड की दरार की सीध में रख कर उनको अपनी बाहों में कस लिया…!

तीर एकदम सही निशाने पर लगा था, अपनी गान्ड के होल पर लंड की ठोकर वो भी अचानक से पाकर भाभी के रोंगटे खड़े हो गये, वो एकदम से सिहर कर आहह…भरते हुए पीछे को पलटी…!

बाहों के घेरे की वजह से वो पलट तो नही पाई, लेकिन अपना मुँह मेरी तरफ मोड़ कर कुछ बोलना चाहती थी कि मेने अपने तपते होठ उनके लज़्जत भरे होठों पर टिका दिए…!

एक पल में ही भाभी की आँखों में गुलाबी डोरे तैरने लगे.., मेने अपना एक हाथ आगे से उनकी चूत पर ले जाकर उसे मुट्ठी में दबा लिया…!

भाभी के मुँह से गुउन्ण..गगुउन्ण.. जैसी आवाज़ें आने लगी, आटे से सने हाथों से वो कुछ तो कर नही सकती थी, फिर मेने जैसे ही उनके होठों को आज़ाद किया, वो झूठा गुस्सा जताकर बोली –

गुंडे, बदमाश, मवाली.., थोड़ी बहुत लाज शरम है कि नही, कम से कम इतना तो ख्याल करो, घर में इस समय सब लोग मौजूद हैं, और एकदम से अटॅक कर देते हो.., अभी कोई देख ले तो…!

उनकी बात सुनकर मेने उन्हें अपने बंधन से मुक्त किया और अपने कान पकड़ कर बोला – सॉरी भाभी माँ ग़लती हो गयी, माफ़ करदो अपने बेटे को…!

बेटे के बच्चे, पता है तुमने क्या अनर्थ कर दिया…?

मे एकदम से घबरा गया, और बोला – क्या हुआ भाभी ? कुछ गड़बड़ हो गयी क्या मुझसे..?

मुझे घबराया देख कर भाभी के चेहरे पर अचानक से मुस्कान आ गयी और अपनी मुनिया की तरफ इशारा करते हुए शरारती स्वर में बोली –

तुमने इसे गरम कर दिया है, ये बेचारी आँसू टपकाने लगी है, इसका क्या..?

मेने उनकी चुचियों को पकड़ने के लिए हाथ आगे करते हुए कहा – लाओ इसको अभी शांत कर देता हूँ…!

वो पीछे हट’ते हुए बोली – नही अभी रहने दो, रात में देखेंगे.., ये बताओ तुम कहाँ चले गये थे..?

मे ज़रा खेतों की तरफ चला गया था, फिर जैसे कुछ सोचते हुए मेने कहा – भाभी, ज़रा बाबूजी का अच्छे से ख़याल रखा करो…!

भाभी मेरी बात सुनकर एकदम से चोंक पड़ी, अचानक ये बात मेने उन्हें क्यों कही, सो थोड़ा असमनजस जैसी स्थित में आकर बोली –

ये तुम्हें अचानक बाबूजी का ख़याल रखने की बात क्यों सूझी, क्या उन्होने तुमसे कुछ कहा क्या…? या तुम्हें लगता है कि हम उनका अच्छे से ख़याल नही रखते..?

उनकी दूबिधा समझते हुए मेने हँसते हुए कहा – अरे भाभी आप मेरी बात को अन्यथा मत लो, मे तो बस मज़ाक में बोल रहा था, और जानती हैं मे ये क्यों कह रहा था…?

भाभी मेरी तरफ सवालिया निगाहों से देखने लगी…

मेने कहा - अब बाबूजी एक साथ दो-दो घोड़ियों की सवारी करने लगे हैं…!

भाभी चोन्क्ते हुए बोली – क्या दो-घोड़ियों की सवारी मतलब…?

बुढ़ापे में घुड़सवारी करने का शौक चढ़ा है उनको…?

मे – अरे भाभी असली घोड़ी नही, अपने घर की वो दोनो घोड़ियाँ…!

भाभी – ओह्ह्ह….तो ये बात है, मतलब बड़ी और मंझली चाची दोनो एक साथ..? पर तुमने कहाँ देख लिया उनको…?

फिर मेने उन्हें पूरी बात बताई…, तो भाभी हँसते हुए बोली – बेटा तो बेटा बाप भी पक्का चोदुपीर है..हाहाहा.., इस बात पर हम दोनो खूब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे…

हमें ज़ोर-ज़ोर्से हँसते देखकर निशा हमारे पास आकर पुछ्ने लगी कि हम इतने ज़ोर-ज़ोर्से क्यों हंस रहे हैं.. तो भाभी बोली – ये बच्चों को बताने लायक बात नही है…

निशा तुनकते हुए बोली –हुउन्न्ं दीदी ! आप भी ना, मुझे अभी तक बच्चा ही समझती हैं, जबकि मे खुद बच्चे की माँ बनने वाली हूँ..

भाभी ने छेड़ते हुए कहा – बनी तो नही ना, जब बन जाएगी तो बड़ों में शामिल कर लेंगे… ओके..

निशा – हुउन्न्ं… बताओ ना प्लीज़ क्या बात है…

भाभी – अच्छा बाबा ठीक है, बता दो लल्ला इसे भी.., फिर मेने उसको भी बताया, वो अपने मुँह पर हाथ रख कर बोली – हाए दीदी इनका तो अवा का अवा ही बिगड़ा हुआ है.., इस बात पर हम तीनों ही हँसने लगे….!

हसी के बीच ही भाभी बोली – पूरा का पूरा अवा तो नही, एक राजा रामचंद्र के पोते भी हैं इस घर में, जो अपनी ही बीवी से चार बार पर्मिशन मिलने पर ही चोदते हैं..हाहाहा…, उनका इशारा बड़े भैया की तरफ था…!

इस तरह हसी खुशी से ये दिन भी बीत गया था, अब रात का इंतजार था, जब हम तीनो प्रेमी, एक साथ खाट कबड्डी खेलने वाले थे…….!

वो रात भी आ गयी, निशा का ख़याल रखने के बहाने भाभी पूरी रात हमारे साथ ही रही, जमकर चुदाई अभियान चला, जमकर बारिश हुई…

बस थोड़ा निशा को प्यार और एहतियात के साथ संतुष्ट किया, लेकिन मेने और भाभी ने चुदाई की सारी हदें पार कर दी,

जो तरीक़े किसी मूवी या किताब में भी नही देखे होंगे वो हमने आजमा लिए…!

दिनो-दिन गदराते जा रहे भाभी के बदन का अहसास होते ही मेरा लंड एक बार झड़ने के बाद जल्दी ही फिरसे खड़ा हो जाता…,

गान्ड मराने के अलावा भाभी ने सारे आसान आजमा लिए, क्योंकि कहीं ना कहीं ये काम क्रीड़ा हमें अनैतिक लगती है, जो कि सत्य भी है..,

मेने एक बुक में पढ़ा था, अक्सर लगातार गुदा मैथुन करने से लिंग में इन्फेक्षन होने के चान्स बढ़ जाते हैं…!

गान्ड की अन्दरुनि सतहों पर सफाई के बाद भी मैला चिपका रह जाता है, लंड जब ज़्यादा अंदर तक जाता है, तो उस मैला से उसकी नाज़ुक त्वचा पर कीटाणु लगे रह जाते हैं, जो अंदर ही अंदर लंड की मुलायम स्किन में इन्फेक्षन पैदा कर सकते हैं..,

वो अलहदा बात है कि कुछ लोग कहानी को ज़्यादा बल्गर और इंट्रेस्टिंग बनाने के चक्कर में आदमी से मैला खिलवा भी देते हैं, जो वास्तविकता से बहुत दूर की बात हैं…!

एनीवेज, आख़िर उनकी चूत में ही लंड चेन्प्कर हम सो गये…! और ये नया अनुभव हुआ कि वो जबतक अपनी सुरंग में रहा, तन्कर खड़ा ही रहा,
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