Update 69

यही नही उनकी यौनि भी गीली होती रही, सो जागते ही एक बार फिरसे मेने भाभी को जमकर चोद डाला…..!

सुबह उन दोनो के जाते ही मे फिरसे सो गया और सोता ही रहा, मेरी आँख खुलने का नाम ही नही ले रही थी, सारी दिनचर्या गयी तेल लेने,

लाख निशा ने उठाने की कोशिश की लेकिन मे दस बजे जाकर उठा, वो भी मेरे मोबाइल की रिंग सुनकर…!

फोन उठाते ही अलसाई आवाज़ में मेने कहा – हेलो…

उधर से गुप्ता जी की आवाज़ सुनाई दी – हेलो हां ! वकील साब कहाँ हो भाई ? लगता है अभी तक सो रहे थे…!

मे – नही बस थोड़ा हेवी नाश्ता लेकर लते गया था, आप सुनाए कैसे याद किया..? बोलिए कोई अर्जेन्सी है क्या..?

वो – हां भाई, अर्जेन्सी तो है, लेकिन काम की नही, खुशी की…!

मेने सोचा, साला इनको भी कहीं पता तो नही चल गया मेरे और खुशी के बारे में, फिर सम्भल कर बेड पर बैठते हुए बोला – खुशी की, क्या हुआ खुशी को..?

वो हँसते हुए बोले – अरे भाई, हमारी बेटी खुशी की नही, खुशियाँ मनाने वाली खुशी की…,

अब भाई आपकी कृपा से अपने धंधे के सबसे बड़े विरोधी जो गंदे तरह से बिज़्नेस का इस्तेमाल करता था, वो अब समाप्त हो गया है, तो इसी खुशी में हमने एक पार्टी करने की सोची है…!

परसों आप जल्दी हमारे होटेल लक्ष्मी में आ जाना, वहीं सब लोग मिलकर पार्टी करने वाले हैं और हां, आपका पूरा परिवार हमें उस पार्टी में दिखना चाहिए…, ठीक है रखते हैं.. बाइ…,

गुप्ता जी की आवाज़ में वास्तव में ही खुशी झलक रही थी, दोपहर को मेने ये बात अपने पूरे परिवार को बताई, और उन्हें गुप्ता जी की तरफ से आमंत्रण दिया…!

बड़े दोनो चाचा चाचियों ने तो अपनी असमर्थता जता दी, तो बाबूजी भी बोले – कि अब ये शहरी पार्टी में मे भी क्या करूँगा, लेकिन मेने अपने बेटे होने का हक़ जताते हुए उन्हें मजबूर कर दिया…!

साथ में छोटे चाचा और चाची को भी मना लिया…, ख़ासकर मे चाची और बेटे को ऐसा शहरी माहौल दिखाना चाहता था…!

वाकी सब लोगों के पास शहर की पार्टी के हिसाब से कपड़े वग़ैरह ले थे, तो इस हिसाब से कल ही निकलना पड़ेगा ऐसा मेने सबको बता दिया..,

प्लान फिक्स करके लंच के बाद में गाओं में घूमने निकल गया, टहलते-टहलते

पंडितजी के घर की तरफ चला गया..,

दरवाजे पर आवाज़ लगाते ही वर्षा रानी प्रकट हुई, मुझे देखते ही वो मेरे सीने से लिपट गयी..,

मेने उसकी गान्ड सहलाते हुए कहा – अरे..अरे क्या करती हो भाभी, कोई देख लेगा तो सारी पोल-पट्टी खुल जाएगी..!

उसने यौंही चिपके हुए कहा – कोई नही है घर में, सासू माँ और ससुरजी हमारे बेटे को लेकर अपने रिस्तेदार के यहाँ गये हैं, रात तक ही लौटेंगे..

वाउ ! भाभी फिर तो मज़े कर ही लेते हैं, इतना कहकर मेने उसे अपनी गोद में उठा लिया, और पलट कर अंदर से गेट बंद करके उसके बेडरूम की तरफ लेकर चल दिया…!

एकमात्र मेक्सी में वर्षा के गोल-गोल उरोज मेरे सीने से दब रहे थे, उसने नीचे ब्रा नही पहनी थी, ये मुझे अच्छे से आभास हो चुका था,

उसे उसके बिस्तर पर पटक कर मे उसके बगल में लेट गया, और उसकी चुचियों को मसल्ते हुए कहा – और सूनाओ भाभी कैसा चल रहा है, बेटा कॉलेज जाता है..?

चुचियों को मसल्ने से वर्षा को मज़े के साथ साथ हल्के से दर्द का अहसास हुआ, अपने होठ को दाँतों से दबाते हुए बोली- ज़ोर्से मत दबाओ देवर्जी, दुख़्ते हैं..,

तुम्हारा बेटा अब बड़ा हो रहा है, कॉलेज जाने लगा है, चाची के सुवंश के साथ ही तो है..,

मेने उसके होठों को चूमकर प्यार से उसकी चुचि को सहलाकार पुछा – इनमें दर्द क्यों हुआ, क्या किशन भैया इनकी सेवा नही करते..?

अरे देवर्जी .. ऐसे भाग कहाँ इन बेचारों के, कभी-कभार तो आते हैं, बस दो मिनट में पानी निकाला और सो जाते हैं..,

सच कहूँ तो मुझे कभी कभी उनपर इतना गुस्सा आता है, कि गला दबाकर झंझट ही ख़तम कर दूं, फिर अपने माँ-बाप की इज़्ज़त का लिहाज करके मन मसोस कर रह जाती हूँ..,

तुम सूनाओ, अब तो रियल के बाप बन’ने जा रहे हो.., कब की डेट है निशा की..?

मेने उसकी मेक्सी को कमर तक सरका दिया, और पैंटी के उपर से ही उसकी मुनिया जो अब कुछ गीली सी होने लगी थी को हाथ से सहला दिया, वर्षा के मुँह से एक सिसकी निकल गयी…!

बस शायद अगले महीने के एंड तक डेलिवरी हो जानी चाहिए.., ये कहने के साथ ही मेने अपनी उंगली उसकी फांकों के बीच फिराई, वो आहह…भरते हुए मेरे सीने से लिपट गयी…

सस्स्सिईइ… आअहह… देवर्जी जल्दी से कुछ करो मेरे राजा…, सबर नही हो रहा अब…,

वर्षा की मेक्सी निकाल कर मे उसकी टाँगों के बीच आ गया, पैंटी खींचते ही उसकी बालों से सजी चूत मेरे सामने थी, जिसे एक बार हाथ से दबाकर मेने अपनी जीभ उसकी रसीली रामप्यारी के होठों पर फिराई…!

सस्सिईईई…आअहह…चतो रज्जाआ…खा जाओ इसे, आज मुद्दत के बाद इससे मन चाहा लंड मिलने वाला है.., उउफ़फ्फ़…म्माआ…मारीी….पेलो,, और पेलो इसमें उंगली..

मेने उसके भज्नासे को अपने होठों में दबाकर दो उंगलियाँ उसके छोटे से सुराख में पेल दी, और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगा…!

वर्षा की हालत जलबीन मछलि की तरह होने लगी, मचल कर वो अपनी कमर हवा में उठाते हुए झड़ने लगी…!

झाड़ते ही वो उठ कर मेरे होठों पर टूट पड़ी..,

फिर उसके बाद उसने मेरे सारे कपड़े नोंच डाले, अंत में मेरे नाग को अंडरवेर से आज़ाद करते ही वो किसी भूखी भेडनी की तराहा उस पर टूट पड़ी…!

मुद्दत से लंड की प्यासी वर्षा मेरे लंड को लॉलीपोप की तरह चूस रही थी.., मेरे आंडों को मुट्ठी में दबाती, कभी उनको मुँह में लेकर पपोर्ती और लंड को हाथ से मुठियाती..!

जब काफ़ी देर तक भी मेरा माल नही निकला, तो उसने मेरी तरफ याचना भरी निगाहों से देखा.., मे उसकी मंशा जानकर बोला –

मे जानता हूँ भौजी, आपको मेरा माल पीना है, लेकिन अब ये इतना जल्दी नही आएगा, लाओ तुम्हारी मुनिया की प्यास बुझा दूं, लास्ट में उसे भी टेस्ट करवा दूँगा..,

वर्षा को नीचे लिटाकर मेने उसकी मखमली जांघों को अपने जाँघो पर चढ़ाया, जिस’से उसकी चूत बाहर को उभर आई, मेने अपने नागराज को उसकी सुरंग के दरवाजे के उपर दो-तीन बार फिराया…

अब वो उसके कामरस से थोड़ा गीला हुआ, उसकी सुरंग के दवाजे को एक हाथ के अंगूठे और अनामिका उंगली की मदद से खोला, दूसरे हाथ से अपने हथौड़े हो चुके लंड को उसके मुँह पर रखा और हल्के से उसे दबा दिया…!

शुपाडा अंदर होते ही वर्षा के रोंगटे खड़े हो गये.., मे जनता था, काफ़ी दिनो से प्यासी उसकी चूत के साथ मेरे मूसल को नही झेल पाएगी, इसलिए धीरे-धीरे करके मेने अपना आधा लंड उसकी सुरंग में पेवस्त करा दिया…!

वर्षा ने दर्द के कारण अपनी आँखें बंद करके होठों को कस लिया..!

वर्षा ने दर्द के कारण अपनी आँखें बंद करके होठों को कस लिया..!

थोड़ा रुक कर मेने उसकी चुचियाँ सहलाकर पुछा – दर्द हो रहा है भौजी..?

उसने बिना कुछ कहे अपनी हां में गर्दन हिला दी.., फिर मुँह से साँस छोड़ते हुए बोली – ये इतना मोटा और बड़ा कैसे हो गया है…!

मेने उसे पीठ से उठाकर अपने सीने से लगाते हुए उसकी पीठ सहलाकर कहा – समय के साथ साथ इसने भी अपना आकार बढ़ा लिया है, आप चिंता मत करो, मे आपको दर्द नही होने दूँगा…!

ये कहकर मेने उसे फिरसे बिस्तर पर लिटाया, और थोड़ा लंड बाहर लेकर फाइनल धक्का लगा दिया..!

लंड जड़ तक उसकी चूत में समा गया, वर्षा की आँखों से दो बूँद पानी की निकल पड़ी, लेकिन मेरे लंड की चाह में उसने कोई शिकायत नही की…!

थोडा रुक कर मे उसके होत चूस्ते हुए उसके कांचे जैसे निप्प्लो से खेलता रहा, अब वो थोड़ा रिलॅक्स फील कर रही थी..,

उसकी आँखों में देखते हुए मेने पुछा – अब शुरू करूँ मेरी जान,

उसने पलकें झपका कर अपनी सहमति दे दी, और मेने अपने धक्के लगाना शुरू कर दिए..,

कुछेक धक्कों में ही चूत की कसावट कम हो गयी, अब वो रसीली होती जा रही थी.., फूच..फूच.. जैसी आवाज़ें शुरू हो गयी थी..,

वर्षा अपनी आँखें बंद किए मेरे लंड को चूत में फील करके मज़े से सिसक रही थी…

सस्सिईइ…देवर्जी…आअहह…बहुत मज़ा आरहा है.., आज फाड़ डालो मेरी चूत को, बना दो इसका भोसड़ा.., बहुत तर्सि है ये आपके मूसल को, कूटो राजा और ज़ोर्से कूटो मेरी ओखली को…,

उसकी बड़बड़ाहट सुनकर मेरा लॉडा और ज़्यादा फूल गया.., अब वर्षा भी नीचे से अपनी गान्ड उचका-उचका कर मस्त होकर चुदने लगी…!

वो एक बार झड चुकी थी, लेकिन अपनी चूत की प्यास बुझाने के चक्कर में उसने फील नही होने दिया, मे भी ढका-धक उसे पेलता रहा जब तक कि मेरे नाग ने उसकी सुरंग में अपना जहर नही उगल दिया…!

मेरे झड़ते ही वो मेरी छाती से जोंक की तरह चिपक गयी, अपनी चूत को मेरे लंड पर दबाकर वो एक बार फिर भल-भला कर झड़ने लगी…!

बाथरूम से लौटकर वर्षा नितन्ग नंगी ही अपनी गान्ड मटकाती हुई आकर मेरी गोद में बैठ गयी, कुछ देर मेरे छाती के बाल सहलाते हुए अपने पति के बारे में गीले शिकवे करती रही..,

अब मेरे पास उसकी समस्या का कोई स्थाई समाधान तो था नही, बस कुछ पल खुशी के दे सकता था सो देने का प्रयास कर रहा था..,

उसकी मखमली गान्ड की गर्मी से मेरा बाबूलाल एक बार फिर फॅड-फडाने लगा, जिसका अहसास अपनी गान्ड पर पाकर वर्षा ने फिरसे उसे अपने मुँह में ले लिया..,

एक बार फिर पंडितजी के घर में चुदाई का खेल शुरू हो गया…, एक बार और मेने जमकर उसकी चुदाई की.., अब वो कुछ हद तक तृप्त लग रही थी,

लेकिन रात में भाभी और निशा के साथ, अब दो बार वर्षा रानी के उपर बारिस होने से मुझे काफ़ी थकान सी महसूस होने लगी थी..,

फिर वर्षा ने अपने हाथों से ताज़ा और पौष्टिक बढ़िया सा चाइ के साथ नाश्ता करवाया जिससे मे पुनः ताज़ा दम हो गया…,

मुझे विदा करते वक़्त उसकी आँखों में आँसू थे, मेने उसकी पलकों को चूमकर उसे फिरसे जल्दी ही मिलने का वादा करके मे वहाँ से अपने घर वापस लौट आया………………………………………..,

हम सभी फॅमिली मेंबर दूसरे दिन ही शहर को निकल लिए, जिससे सभी को पार्टी के हिसाब से ज़रूरत की परचेसिंग कराई जा सके…!

उस रात हम सभी परिवारिजन अपने फ्लॅट में ही उपस्थित थे, कृष्णा भैया और प्राची भी वहाँ आगये,

मधु आंटी ने पूरे परिवार का दिल से स्वागत किया…

मेने सभी को सर्प्राइज़ के तौर पर फ्लॅट के बारे में बताया, और अपने बन रहे बंगले पर भी ले गया…!

बाबूजी, भैया, भाभी और यहाँ तक कि निशा को भी ये पता नही था, सो वो ये सब जानकार चकित रह गये, फिर उन्होने मुझे ढेर सारे आशीर्वाद से नवाजा,

बाबूजी ने मेरे सिर पर हाथ फेर कर कहा – ईश्वर करे तू ऐसे ही दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करे, फिर जब मेने उन्हें ये बताया कि ये सब गुप्ता जी की ही मेहरवानी है…

वो मुझे अपने घर का ही सदस्य मानते हैं, मेरी बिना सलाह के वो कोई भी नया काम नही करते, इसलिए मे आप लोगों को उनकी पार्टी में शामिल होने के लिए लाया हूँ…!

और एक बात बाबूजी, मेने सोचा है, कि जैसे ही हमारा ये बंगला रेडी हो जाएगा, हम सभी गाओं से यहाँ आकर शिफ्ट हो जाएँगे…!

बड़े भैया को छोड़कर सभी मेरी राई से सहमत थे, मे उनकी दुविधा भाँपते हुए बोला – आप अपने कॉलेज की वजह से राज़ी नही हो ना, तो उसका भी मेरे पास इलाज़ है…

सब मेरी ओर देखने लगे, मेने आगे कहा – मेने गुप्ता जी से बात कर ली है, वो अपने डिग्री कॉलेज में आपको बतौर प्रोफ़ेसर रखने वाले हैं…!

भैया – क्या..? तूने ये सब तय भी कर लिया… और मुझे अब बता रहा है…?

बाबूजी – लेकिन बेटा गाओं का घर, खेती वाडी.., उसका क्या होगा..?

मेने छोटे चाचा की तरफ देखा और कहा.., उसे हमारे तीनों चाचा मिल बाँट कर संभाल लेंगे, कम से कम कभी-कभार गाओं जाना होगा तो चाची खातिर तो किया करेंगी…!

क्यों चाची खातिर किया करोगी या भूल जाओगी, सबकी नज़र उनकी तरफ गयी, पर वो तो शायद वहाँ थी ही नही, बस गुम-सूम सी बैठी रही,

भाभी ने उनके कंधे को पकड़ कर हिलाया, वो जैसे नींद से जागी हों, भाभी ने पुछा – क्या हुआ चाची, आप की तबीयत तो ठीक है ना…!

चाची ने देर तक कुछ नही कहा, बस उनकी आँखों से दो बूँद पानी की नीचे को टपक पड़ी, बाबूजी ने उनके सिर पर हाथ रख कर कहा – क्या हुआ रश्मि बहू ?

चाची भर्राये गले से बोली – लल्ला की बातों से लगता है, आप सब लोग हमें अकेला गाओं में छोड़ आओगे, मे वहाँ अकेली कैसे रह पाउन्गि आप सब के बिना…!

मे – गाओं की सरपंच बनकर…!

सभी एक साथ बोल पड़े – क्या….???​

मे – हां, तो भाभी की जगह और कॉन लेगा..? फिर मेने चाची के हाथ अपने हाथों में लेकर उन्हें सहलाते हुए कहा – आप अपने आपको अकेला क्यों समझने लगी चाची..

शहर कोई इतना दूर तो है नही की आने जाने में कई-कई दिन लग जायें, जब भी आपको हमारी ज़रूरत पड़े हम सब हाज़िर हो जाएँगे…

अब आप तो खुद समझदार हैं, हमारी आने वाली पीढ़ी का भविश्य गाओं में नही है, उनके लिए हमें अभी से शुरुआत करनी पड़ेगी…

अंश को हम अपने पास यहाँ शहर में रख कर उसकी सिक्षा दीक्षा का पूरा ख़याल रखेंगे, आप निशिंत रहिए, हम पहले भी आपके अपने थे, आज भी है और आने वाले कल में भी रहेंगे…!

मेरी बात से संतुष्ट होकर चाची मेरे कंधे से लगकर सूबकते हुए बोली – भगवान तुम्हारे जैसा बेटा सबको दे… जीते रहो बेटा, ये कहकर उन्होने मेरा माथा चूम लिया…!

वहाँ बैठे लगभग सभी की आँखें नम थी, फिर कृष्णा भैया शिकायत वाले लहजे में बोले – वो सब तो ठीक है, लेकिन मे तेरे से बहुत नाराज़ हूँ भाई…!

मे जानता हूँ भैया, आप क्यों नाराज़ हो, लेकिन मे सबको एक साथ सर्प्राइज़ देना चाहता था, सो सॉरी भैया, मुझे माफ़ कर देना, ये कहकर मेने अपना सिर उनके चौड़े सीने में रख दिया…!

उन्होने प्यार से मेरे बाल पकड़ कर खींचे और बोले – अब तू है ही सबसे छोटा, तुझे तो मार भी नही सकता, वरना यहाँ बैठे सब लोग मुझ पर टूट पड़ेंगे…

इस बात पर सब लोग ठहाका लगा कर हँसने लगे, जो माहौल कुछ क्षण पूर्व गमगीन हो रहा था, वो अब फिर से हसी खुशी में बदल गया…!

ऐसे ही पलों के लिए परिवार का होना ज़रूरी होता है, जॉइंट फॅमिली क्या होती है, ये आज देखने को मिल रहा था, सभी एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं, ये जाना…!

काश आज दोनो चाचाओं के परिवार भी यहाँ होते, तो खुशी और भी दुगनी हो जाती….!

दूसरे दिन शाम को पार्टी थी, हम सब लोग 10 बजे से ही शॉपिंग को निकल गये, साथ में मधु आंटी भी थी,

एक बड़े से माल में जाकर सबके लिए शहरी पार्टी के हिसाब से कपड़े सेलेक्ट करवाए, भाभी और चाची थोड़ा हिचक रही थी, लेकिन प्राची ने उन्हें लेने पर मजबूर कर दिया…!

बाबूजी और भैया को भी थ्री पीस सूट दिलवाए, जिससे कोई ये ना समझे कि ये लोग निरे ग्रामीण ही हैं…!

होटेल लक्ष्मी गुप्ता जी का अपना खुद का ही होटेल था, सो आज उसे उन्होने इसे सिर्फ़ पार्टी में आने वाले मेहमानों के लिए ही रखा,

पार्टी शाम 8 बजे से शुरू होनी थी, सब लोगों को घर छोड़कर में 4 बजे से होटेल पहुँच गया, सारे इंतेज़मत का जायज़ा लिया.

गुप्ता जी ने मुझे खुलकर एंजाय कने की खुली छूट दे रखी थी…, एक तरह से इस सबका करता धर्ता ही बना दिया…!

होटेल के बड़े से लॉन को अच्छे से सजाया गया था, और उसी में चारों तरफ खाने और पीने के सारे इंतेज़मत रखे,

होटेल के अंदर पार्टी एंजाय करने के बाद जहाँ जिसको रूम अलॉट किए उनमें जाकर सो सकते थे, जिन्हें अपने घर जाना वो घर चला जाए…!

8 बजे से लोगों के आने का ताँता शुरू हो गया, गुप्ता जी के परिवार के साथ साथ मुझे भी वेलकम करने के लिए एंट्री पर खड़ा होना पड़ा…!

आज सेठानी कुछ ज़्यादा ही चहक रही थी, थोड़ा भारी बदन के बबजूद भी आज वो एक वन पीस ड्रेस में बहुत सुंदर दिख रही थी…

खुशी के तो कहने ही क्या, वो एक अत्याधुनिक टाइनी सी ड्रेस में अपने कर्वी बदन से सबकी निगाहों का केंद्र बनी हुई थी…!

क्या जवान, क्या अधेड़ जिसको मौका लगा उसी ने उसके उफ्फान मारते युवा यौवन का रस्पान करने की भरकस कोशिश की..,

लोगों का आना शुरू हो गया, करीब शाम 8:30 पर कृष्णा भैया के नेतृत्व में मेरी फॅमिली भी पार्टी में शामिल होने के लिए आ पहुँची…..!

ये अंतर होता है गाओं की जिंदगी और शहरी जीवन में…, गाओं की गोरी अगर थोड़ा भी बन-संवर ले तो शहर की औरत उसका मुक़ाबला कभी नही कर सकती…!

कारण है, शुद्ध ख़ान-पान, और कमरतोड़ मेहनत जो शरीर को मेनटेन करके रखता है…!

मेरे घर की तीनों औरतों ने थोड़ा बनाव-शृंगार क्या कर लिया, थोड़े शहरी लिबास क्या पहने, पार्टी में मौजूद हर मर्द की नज़र उनपर फिसल रही थी…!

प्राची उन्हें दो घंटे पहले किसी ब्यूटी पार्लर में ले गयी, जहाँ उनका काया कल्प ही हो गया था…,

एनीवेस, मेने अपने परिवार के सभी लोगों को गुप्ता जी और उनके रिलेटिव्स के साथ इंट्रो दिया, सेठानी और खुशी निशा और भाभी से प्रभावित हुए बिना नही रह पाई…!

खुशी मेरे कान में फुसफुसाई.., थॅंक्स भैया.. इतनी सुंदर हॉट भाभी के होते हुए आपने मेरी बात मान ली…!

बाबूजी और बड़े भैया भी सूट बूट में जॅंच रहे थे, गुप्ता जी उन्हें अपने साथ लेकर एक तरफ के बढ़ गये, जिधर उनके अपने लेवल के लोग थे, छोटे चाचा भी साथ हो लिए…

कृष्णा भैया और प्राची को छूट मिल गयी, और वो दोनो, एक दूसरे की कमर में हाथ डाले पार्टी एंजाय करने लगे…!

निशा ज़्यादा चल फिर नही सकती थी, सो उन तीनो को एक सेफ जगह बिठाकर, एक वेटर को उनका ख्याल रखने के लिए छोड़ दिया…!

कुछ देर बाद पीने पिलाने का दौर शुरू हुआ, हममें से कोई इस चीज़ का शौकीन नही था, लेकिन कृष्णा भैया के कुछ कुलीग ज़्यादा पीछे पड़ गये सो उन्होने एक लाइट ड्रिंक ले लिया…!

मे अपने घर की तीनों औरतों को लेकर पार्टी में एंजाय कर रहा था,

रूचि भी हमारे ही साथ थी, चाची ने अंश को चाचा के सुपुर्द कर दिया था, और सुवंश भाभी की गोद में मज़े कर रहा था…!

मे नज़र बचा कर तीनों के मज़े ले लेता, इस तरह हमने खूब पार्टी एंजाय की, फिर खाना पीना खाकर बाबूजी और भैया ने लौटने की पर्मिशन ली…

गुप्ता जी ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन निशा की वजह से ज़्यादा देर रुकना सही नही था इसलिए मुझे छोड़कर वाकी सभी लोग अपने फ्लॅट पर लौट गये…!

मुझे यहीं रुकना था, सारे इंतेज़मत की ज़िम्मेदारी जो थी मेरे सिर पर..,

उन सबके जाते ही कृष्णा भैया और प्राची मेरे पीछे पड़ गये और उन्होने मुझे भी थोड़ी स्कॉच पिला ही दी,

अब तक मेने सिर्फ़ बीयर का ही स्वाद लिया था, स्कॉच ने अपना असर दिखाना शुरू किया, तो मज़े मज़े में मे कुछ ज़्यादा ही पी गया…!

पार्टी शुरू होने के कुछ समय बाद से ही गुप्ता जी का सुपुत्र संकेत कहीं नज़र नही आया था, फिर जब कुछ लोग कम हुए,

मुझपर नशा तारी हो रहा था सो थोड़ा गार्डन के साइड में खड़े पेड़ों की तरफ हवा खाने निकल गया…

वहाँ मेने एक कपल को बैठे हुए देखा…! नज़दीक जाकर देखा तो संकेत किसी लड़की के साथ घास पर बैठा था, दोनो ने एक दूसरे के हाथों को पकड़ रखा था और आपस में बातें कर रहे थे…

मुझे देखते ही संकेत ने हड़बड़ा कर उसका हाथ छोड़ दिया, और खड़ा होकर बोला – अरे अंकुश भैया आप..?

मेने उन दोनो को नशे में अपनी लाल-लाल आँखों से घूरा और थोड़ा झूमते हुए बोला – ओह्ह्ह.. वही मे सोच रहा था, कि अपने संकेत बाबू कहीं दिखाई नही दे रहे…!

भाई अपनी दोस्त से परिचय नही कराओगे..?

वो झेन्प्ते हुए बोला – भैया ये राशि है, मेरे साथ ही कॉलेज में है, और राशि ये अंकुश शर्मा हमारे लीगल आड्वाइज़र.., बहुत काबिल आदमी हैं…!

मेने पहली बार राशि को ध्यान से देखा, उसने अपना हाथ आगे किया, मेने उसे प्यार से अपने हाथ में लेकर दूसरे हाथ से सहलाते हुए कहा – नाइस टू मीट यू राशि..,

फिर संकेत को बोला – नाइस चाय्स डियर, कीप इट ओन…

वो झेन्प्ते हुए बोला – ऐसा कुछ नही है भैया, जस्ट वी आर फ्रेंड्स…

मे – ओह्ह.. जस्ट फ्रेंड्स, इसलिए पूरे समय यहाँ अकेले में बैठे हो..? अरे भाई मिलकर पार्टी एंजाय करो, और ये जस्ट फ्रेंड्स कब तक रहोगे..?

कुछ कदम बढ़ाओ तभी तो बात बनेगी..

कहो तो मे बात आगे बढ़ाऊ…!

संकेत – नही..नही, आप रहने दो मे पापा से बात कर लूँगा…

तभी राशि बीच में बोल पड़ी, हिम्मत कहाँ से लाओगे जनाब..?


अंकुश भैया, आप ही कुछ करो, इसके बस का कुछ नही है…

मेने उसके कान में फुसफुसा कर कहा – इसका मतलब अभी तक तुम लोग बस हाथों में हाथ लेना ही सीखे हो क्या..?

राशि बोल्ड लड़की थी सो तपाक से बोली – इतना भी ये मेरे पहल करने पर करता है.. पता नही हमारी जोड़ी कैसे निभेगी…?

मे उसकी बात सुनकर मुस्करा उठा, और बोला – अब तुम्हारा ये मामला मेरे हाथ में आ गया है, देखती जाओ मे क्या करता हूँ…!

फिर मेने संकेत को कहा – तुम चलो, तुम्हारे पापा तुम्हें पार्टी में ढूंड रहे हैं, मे राशि को लेकर आता हूँ…

उसके जाने के बाद उसे अपना प्लान बताया, वो खुश होकर मेरे गाल पर किस करते हुए बोली – थॅंक यू भैया…, आपकी वजह से आज शायद हमारी लव स्टोरी कुछ आगे बढ़ जाए…

मेने उसकी पतली कमर में हाथ डाल दिया, वो भी मेरे साथ सट गयी, फिर उसे लेकर मे पार्टी में आया,

वो अपनी तरह से पार्टी एंजाय करने लगी अपने दूसरे दोस्तों के साथ, मेने संकेत को लपका, और उसे बातों में देकर कुछ स्कॉच के पेग उसे भी लगवा दिए…

कुछ देर बाद वो थोड़ा मस्ती में आने लगा, मेने राशि को इशारा कर दिया, वो अंदर को चल दी, उसके कुछ देर बाद मे भी संकेत के गले में बाजू डाले जिधर को वो गयी थी उधर चल दिया…!

एक कमरे में जहाँ राशि अपनी तैयारी कर रही थी, उस कमरे में उसको ठेल कर बाहर से गेट बंद कर दिया.., और गेल्लरी में आगे बढ़ गया…!

बाहर आकर मेने थोड़ा बहुत खाना खाया, साथ में एक पेग और चढ़ाकर अंदर के सारे इंतजामात को देखने चल दिया…!

सेकेंड फ्लोर की गॅलरी में चेक करते हुए मे लास्ट तक पहुँच गया, वहाँ से जैसे ही मुड़ने को हुआ, तभी झटके से लास्ट वाले रूम का गेट खुला, और एक हाथ ने मेरी बाजू पकड़ कर मुझे अंदर खींच लिया…!

मे कुछ समझ भी नही पाया कि तब तक गेट बंद होने की आवाज़ सुनाई दी, कमरे में धुप्प अंधेरा था, बस इतना पता था कि मुझे अंदर खींचने वाले हाथ किसी औरत या लड़की के थे…!

अभी में अंधेरे में हाथ पैर मार ही रहा था, कि किसी ने पीछे से मुझे अपनी कोमल बाहों के घेरे में ले लिया और वो पीछे से मेरे बदन से चिपक गयी…!

उसके मुलायम मोटे-मोटे उभार मेरी पीठ से दब रहे थे, बाजुओं की मांसलता बता रही थी, कि ये कोई अधेड़ औरत है..

लेकिन कॉन, ये अनुमान लगाना नीम अंधेरे में कठिन था, सो मेने अपने आप को हालात के हवाले कर दिया, और उसके आगे के स्टेप का इंतेज़ार करने लगा…!

वो मुझे पीछे से धकेल्ति हुई आगे को बढ़ने लगी, कुछ ही फ़ासले के बाद मेरे पैर किसी चीज़ से टकरा गये, पीछे के दबाब के कारण मे अपने आप को आगे गिरने से रोक नही पाया और धम्म से किसी मुलायम बिस्तर पर गिर पड़ा…

वो भी मेरी पीठ पर सवार थी.., कुछ भारी सा शरीर लगा मुझे, मेने नीचे से हाथ उपर करके उसकी बाजू को पकड़ा और अपने साइड में लुढ़का दिया, खुद उसके उपर सवार होकर अंदाज़े से ही उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके होठों पर अपने होत रख दिए…

उसने नीचे से अपने पैरों की केँची मेरी कमर में लपेट रखी थी…, जांघों की मोटाई ने ये कन्फर्म कर दिया कि ये कोई भारी-भरकम औरत है…
Next page: Update 70
Previous page: Update 68
Next article in the series 'लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस )': लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस ) पार्ट - 2