Update 71
मेरी नज़र और बात का मतलब समझते हुए वो पहले तो शरमा गयी, लेकिन पलट कर मज़ाक में ही जबाब देते हुए बोली…!
जब चीज़ें अच्छी हों तो इस्तेमाल भी हो ही जाती हैं.., चाहो तो आप भी इस्तेमाल कर सकते हो…!
मेने मुस्कराते हुए कहा – दूसरे की चीज़ों को बिना इजाज़त इस्तेमाल करने की आदत नही है मेरी.., हाँ मौका मिलने पर मे ज़रूर करता हूँ…!
अब तक आगे से मेने अपना बदन पोंच्छ लिया था, उन्होने मेरे हाथ से टवल लेते हुए बोली – लाइए, पीठ का पसीना मे पोंच्छ देती हूँ,
वैसे एक बात कहूँ जीजाजी, अगर चीज़ पसंद आजाए तो चोरी छुपे भी इस्तेमाल कर लेनी चाहिए…!
मे उनके इस मज़ाक का कोई माकूल सा जबाब देने ही वाला था कि भाभी को आते देख बात का रुख़ मोड़ते हुए बोला – अरे आप रहने डीलजिए, कुछ देर में वैसे ही सूख जाएगा..,
तभी भाभी ने आकर एक बड़ा सा ग्लास जूस का मुझे थमाते हुए बोली – पोन्छ लेने दो लल्ला, सलहज होने के नाते, इनका भी कुछ हक़ बनता है नंदोई की सेवा करने का.,
शायद सेवा के बदले इन्हें भी कुछ मेवा मिल जाए…, इतना कहकर मुस्कराते हुए भाभी ने मुझे ग्लास पकड़ाया और आँख मारकर वहाँ से चली गयी…!
ये भाभी की तरफ से साफ-साफ संकेत था कि वो नीलू को मुझसे चुद्वाना चाहती हैं, और कहीं ना कहीं नीलू भी ये चाहती है.., ये सोचकर मेरे चेहरे पर स्माइल आगयि…!
मे खड़े-खड़े ही जूस पीने लगा, और मेरे पीछे खड़ी नीलू भाभी बड़े प्यार से धीरे-धीरे मेरी पीठ का पसीना पोंच्छने लगी…!
नीलू भाभी बड़े प्यार से मेरी पीठ का पसीना सूखा रही थी, पीठ के बाद उन्होने तौलिया उपर मेरे सिर के बालों की तरफ बाध्या,
हाथ उपर की तरफ बढ़ते हुए वो मेरी पीठ से सॅट’ती जा रही थी, मेरे कसरती बदन से उठती पसीने की मर्दानी खुसबु से उनकी चुचियों के अनारदाने कड़क होने लगे, जो अब मेरी पीठ पर फिसल रहे थे..,
पीछे से बालों को पोंच्छने के बाद वो मेरे आगे आ गयी, मेरी छाती के बालों को पोंच्छने के बाद जब आगे से सिर की तरफ हाथ बढ़ाने लगी तो उनकी मेक्सी में छुपे उनके उरोज मेरी आँखों के सामने आगये..,
गोल-गोल दूधिया उनके पुष्ट उभार देख कर मेरा बाबूराव शॉर्ट के अंदर कुलबुलाने लगा..,
बाल पोंच्छने के बहाने नीलू मेरे बदन के काफ़ी नज़दीक आगयि, और एक समय ऐसा आया कि उनके कंचे जैसे अनार्दाने मेरी छाती से रगड़ खाने लगे..,
जिनकी चुभन से मेरा चंचल मन भटकने लगा.., अपने उभारों को हल्के से मेरी छाती से दबाकर वो सिरके बालों का पसीना पोन्छ्ने के बहाने उन्होने अपनी चुचियों को मेरी छाती से दबा दिया जिससे वो और ज़्यादा नुमाया होने लगी,
मेरे हाथ उन्हें दबाने के लिए उठने ही वाले थे कि वो थोड़ा दूर हट गयी, और तौलिया को मेरी बालों से भरी जांघों पर ले जाने लगी..,
अब मेरा बाबूराव शॉर्ट में सिर उठाए उनकी नज़रों के सामने था, आगे का मस्त तंबू देखकर नीलू भाभी अपनी सुध-बुध खोती जा रही थी..,
मेने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा – अब रहने दो भाभी, कुछ देर में मे नहाने ही वाला हूँ..,
वो अपनी नशीली आँखों से मेरी तरफ देखते हुए बोली – नंदोई की सेवा करने का हक़ क्यों छीन रहे हैं जीजा जी.., करने दीजिए ना…!
उनके ये शब्द मूह से ऐसे अंदाज में निकले मानो वो अपने बस में ना होकर किसी और के बशिभूत बोल रही हों..,
मेने उनकी नशीली आँखों की भाषा पढ़ते हुए उनकी पतली कमर में अपनी एक बाजू लपेटकर उन्हें अपने से सटा लिया.., अब उनकी मुनिया ठीक मेरे बाबूराव के निशाने पर थी..,
आँखों में आँखें डालते हुए मेने कहा – मत करिए ना…, वरना मेरा भी हक़ हो जाएगा आपको मेवा खिलाने का…!
मेरे कड़क लंड के उभर की ठोकर अपनी चूत के होठों पर पड़ते ही वो वैसे ही कामातूर होने लगी थी, मेरी ये बात सुनकर नीलू ने अपनी गुदाज बाहें मेरे इर्द-गिर्द लपेट दी, और पूरी तरह चिपक कर बोली –
मेवा खाने के लिए ही तो सेवा की जाती है.., खिला दीजिए ना, मना किसने किया है..,
मेने मुस्करा कर उनके दोनो कुल्हों पर अपने हाथ जमाए, उन्हें कसकर भींचते हुए उनकी चूत को अपने खड़े लंड पर दबा दिया..,
सीईईई…आअहह…जीजा जी….छोड़िए ना…, नीलू के मूह से एक कामुक सिसकी निकल पड़ी..,
ये तमाशा किचन से भाभी देख रही थी.., उन्होने वहीं से खाँसकर हमें चेताया.., फिर आवाज़ देकर बोली – लल्ला अब तुम्हारा नहाने का टाइम हो गया है, यौं खड़े मत रहो धूप में….!
भाभी का इशारा था कि ये सब और खुले में नही, कोई भी आ सकता है.., सो मेने नीलू को अपने से अलग किया..,
वो शर्मा कर अपने कमरे में भाग गयी…!
उनके जाते ही भाभी ने मुझे किचन में बुलाया और प्यार से धमकाते हुए बोली – मेने थोड़ी छूट क्या दे दी, तुम तो उसे खुले आँगन में ही चोदने को तैयार हो गये…!
कुछ तो शर्म करो, अभी कोई आ जाए तो क्या सोचेगा, कि देखो कितना लंपट है ये आदमी, अपनी बीवी को फूला के रखा है और सलहज पे हाथ सॉफ कर रहा है, ये कहकर भाभी ने मेरे खड़े लौडे को अपनी मुट्ठी में भर लिया…,
उसे ज़ोर्से मरोडते हुए बोली – ये कम्बख़्त भी कहीं भी मूह उठाकर खड़ा हो जाता है, थोड़ा ठंडा करके खा, बहुत रसीली चूत होगी नीलू की.., खूब गंगा स्नान कर लेना..,
ये कहकर वो खिल-खिलाकर हँसने लगी, और मेरे मूह से कराह निकल गयी..!
फिर उन्होने मुझे समझाते हुए कहा – नीलू बहुत मस्त औरत है, थोड़ा तड़पने दो उसको, इतना जल्दी मत दिखाओ, वरना वो समझेगी कि उसका नंदोई एकदम ठर्की आदमी है समझे..,
मुझे भी भाभी की बात सही लगी, मेने स्माइल देकर उन्हें अपनी बाहों में भर लिया, और उनके रसीले होठों का चुंबन लेकर बोला – जो हुकुम गुरुजी..,
भाभी – गुरुजी के चेले, और एक बात, नीलू को ये पता नही चलना चाहिए कि हम दोनो के संबंध किस हद तक हैं..! औरत के मूह में ताला नही होता..,
भाभी की बात गाँठ बाँधकर मे रज़ामंदी में सिर हिलाकर नहाने के लिए चला गया..!
उधर मेरे से अलग होकर नीलू भाभी लंबी-लंबी साँस भरते हुए अपने कमरे में आकर बिस्तर पर औंधे मूह गिर पड़ी..,
उनकी मुनिया पूरी तरह से गीली हो चुकी थी, मेरे रोड जैसे सख़्त लंड की ठोकर पाकर वो झन-झना उठी थी, लेटे लेटे ही उन्होने अपना एक हाथ लेजाकर उसे ज़ोर्से रगड़ दिया..,
मे नहाने अपने कमरे में अटॅच्ड बाथरूम की तरफ बढ़ गया, उससे पहले वो कमरा था जो नीलू भाभी को रहने के लिए दिया था..,
दरवाजे के सामने से गुज़रते हुए मेरी नज़र उनके उपर पड़ी.., वो इस समय उल्टी लेटी हुई थी.., क्या मस्त उभरी हुई गान्ड थी उनकी, मानो दो कलश उल्टे करके रख दिए हों,
अपनी चूत को मसल्ते हुए उनके शरीर में थोड़ी हरकत भी हो रही थी, जिसके कारण उनके वो दोनो कलश हल्के हल्के हिल रहे थे…,
देखते ही मेरा बाबूराव फिरसे भड़क उठा.., वो मचलते हुए मानो कह रहा हो.., चल यार अंदर जाकर इस गान्ड में मुझे प्लॉट दिलादे.., जिंदगी भर तेरा एहसान मानूँगा..,
लेकिन भाभी की बात गाँठ बाँधते हुए मेने उसे ज़ोर्से दबाते हुए नीचे की तरफ किया, उसे समझाते हुए कि सबर कर मेरे शेर, ये गान्ड तेरी ही है.., मे आगे बढ़ गया…!
जैसे ही मे अपने कमरे में पहुँच, निशा नाश्ता लेकर अंदर ही अंदर इधर से उधर छोटे-छोटे कदमों से टहल रही थी..,
पहले उसकी नज़र मेरे चेहरे पर पड़ी, जो उत्तेजना से लाल हो रहा था, फिर जैसे ही उसने मेरे विशालकाय तंबू को देखा, मेरे सामने आकर उसे पकड़ते हुए बोली –
क्या बात है राजे, ये इतना क्यों भड़का हुआ है, कुछ गरमा-गरम चल रहा था क्या बाहर…, या दीदी ने छेड़ दिया है मेरे इस शेर को…!
मेने निशा के पेट पर हाथ फेरते हुए बोला – तुम्हारी भाभी ने इसे जगा दिया है.., अब साला ज़िद लेकर बैठ गया है कि उनकी गान्ड में डाल, अब तुम्ही बताओ यूँ तुम्हारी अमानत किसी को भी कैसे दे दूं…!
ये सुनकर निशा के चेहरे पर एक शरारती स्माइल आ गयी, और उसे उमेठ्ते हुए बोली – अच्छा, जैसे मेरी इजाज़त के वगैर ये कहीं और मलाई नही ख़ाता हां..!
वैसे राजे, भाभी क्या चाहती हैं.., ? क्या उन्हें भी ये पसंद आगया है..?
मे – पसंद..! उनका बस चलता तो वहीं आँगन में ही इसे लेकर चूसने लगती.., वो तो शुक्र करो की भाभी ने हमें टोक दिया..,
निशा मेरे होठ चूस्ते हुए बोली – चलो वैसे भी आजकल इसके लिए एक चूत की कमी चल रही है.., आच्छा है स्वाद चेंज कर लेगा बेचारा मेरा पप्पू..,
इस बात पर हम दोनो ही ज़ोर-ज़ोर्से हँसने लगे, हमें ऐसे हँसते देखकर नीलू भाभी अपने कमरे से उठकर हमारे दरवाजे पर आ गयी, निशा को मेरा लंड हाथ में लिए और हँसते देखकर, शरमा कर वापिस भाग गयी…!
निशा ने अलग होते हुए कहा – बाप रे, भाभी ने हमें देख लिया.., लगता है कुछ ज़्यादा ही ज़ोर की खुजली हो रही है उनको..,
मे – लेकिन मे इतना जल्दी उनकी खुजली मिटाने वाला नही हूँ, थोड़ा और तड़पने दो उन्हें, अच्छी चीज़ इतनी आसानी से हासिल नही होनी चाहिए,
मेरी बात सुनकर निशा के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी, वो मेरे एकदम नज़दीक आकर मेरे गाल को किस करते हुए बोली –
इतना भी मत तड़पाना राजे, कि वो खुलेआम सबके सामने अपनी चूत खोलकर बैठ जाए.., इतना कहकर वो खिल-खिलाकर हँसने लगी, मे भी मुस्कुराता हुआ अपने कपड़े लेकर बाथ रूम में घुस गया…!
नाश्ते के बाद मे गाओं में चक्कर लगाने निकल गया, लोगों से मिलकर कुछ समस्याओं पर विचार विमर्श किया, कुछ का समाधान किया..,
लौटते वक़्त मे दुलारी के टोले से गुजर रहा था, तभी पास के हॅंड पंप से एक मिट्टी के मटके में पानी अपनी पतली सी कमर पर रखे, चोली का घूँघट निकाले एक औरत दुलारी के घर की तरफ जा रही थी..,
कमर पर मटका होने की वजह से उसकी पतली सी कमर टेढ़ी हो रही थी, पीछे से उसकी गान्ड जो कुछ और पीछे को निकल आई थी, रिदम के साथ मटक रही थी..,
आज सुबह से ही नीलू भाभी की वजह से मेरे दिमाग़ में सेक्स के कीड़े शांत नही हो पा रहे थे, उसकी पतली कमर के नीचे मटकती गान्ड देखकर मेरा नाग कपड़ों के अंदर ही सर-सराने लगा..,
मेने थोड़ा तेज कदम बढ़कर पीछे से उसे आवाज़ दी – अरे सुनो..!
मेरी आवाज़ सुनकर वो पलटी, उसके पलट’ते ही मेने पुछा – ये दुलारी भौजी घर पर हैं क्या..?
मुझे देखकर उसने अपना घूँघट उठाया और बोली – पंडितजी जीजी से ही काम रखते हो, हमें भी कभी-कभार याद कर लिया करो…!
उसे देखते ही मेने कहा – अरे श्यामा तुम, कैसी हो..?
वो थोड़ा दुखी स्वर में बोली – कैसी हो सकती हूँ, आपसे कुछ छुपा तो है नही.., आइए घर चलिए.., दुलारी जीजी किसी काम से गयी हैं आती ही होंगी…!
मेने कहा- तुम चलो मे अभी आता हूँ, ये कहकर मे थोड़ा वहीं खड़ा रह गया, जब वो अपने घर के अंदर चली गयी, मेने इधर-उधर नज़र मारी, और मे भी उसके घर के अंदर घुस गया…!
तबतक वो पानी से भरा मटका रसोई में रख चुकी थी, मेरे अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया, और मेरे लिए छप्पर के नीचे एक चौकी डाल दी..,
मेरे बैठते ही वो मेरे सामने आकर ज़मीन पर बैठ गयी, मेने पुछा – तुम्हारी जीजी कहाँ हैं..?
श्यामा – वो बच्चों के कॉलेज में गयी हैं, मास्टर जी ने बुलवाया था..,आपके लिए क्या लाउ, चाय.., पानी .., क्या लेंगे..?
श्यामा की पतली सी चुनरी के नीचे उसकी छोटी सी चोली में कसे हुए उसके अनार, जो अभी भी टॅनिस की बॉल के आकार के ही थे साफ-साफ अपनी गोलाई दिखा रहे थे..,
मेने उनपर नज़र डालते हुए कहा – चाय पानी से ही टरकाना चाहती हो..?
श्यामा – हाए पंडितजी.., हुकुम करो, आपके लिए मेरा सब कुछ हाज़िर है.., ये कहकर उसने शर्म से अपनी नज़रें नीचे करली और मंद-मंद मुस्कराने लगी..
मेने अपना हाथ बढ़ाकर उसका बाजू थामा, उसे उठाते हुए बोला – तो फिर इतनी दूर-दूर क्यों बैठी हो, तनिक पास तो आओ..,
वो तो इसी लालसा में बैठी ही थी, सो हाथ का इशरा पाते ही मेरी गोद में आगिरी…!
उसकी गोल-गोल मुलायम गान्ड के बीच की चौड़ी दरार में फँसा मेरा बाबूराव, अपनी मन पसंद जगह पाकर अति-प्रशन्न हो उठा, और अपनी खुशी जाहिर करने का उसे एक ही तरीक़ा आता था..,
वो अंडरवेर को उठाता हुआ, पाजामे के होते हुए भी शयामा की दरार में फिट हो गया.., जिसे अपनी गान्ड के एन छेद पर महसूस करके शयामा की आँखें मूंद गयी..,
मेने उसकी चुनरी को एक तरफ उछाल दिया, चोली में क़ैद उसकी टेनिस की बॉल जैसी कड़क चुचियाँ तन्कर सीधी हो चुकी थी.., जिन्हें मेने अपने हाथों में लेकर मसल दिया…!
आअहह….सस्सिईईई…मालिकक्क…मसलूओ..इन्हें…, उउफ़फ्फ़ …मोरी…माइइ…
मेने उसके अनारों को मसल्ते हुए कहा – यहीं चुदोगि या कोठे में..,?
सस्सिईई…पंडितजीि…, आप जहाँ चाहो.., चोद डालो मुझे.., आप कहोगे तो बीच रास्ते में चुदने को तैयार हो जाउन्गि आपसे.., आअहह…,
मेने उसके पतले-पतले होठों को चूम लिया और किसी बच्ची की तरह उसे अपनी गोद में उठाकर कोठे में ले जाने लगा.., उसने भी अपनी पतली-पतली बाहें मेरे गले में डाल रखी थी..,
नीचे मेरे फुल टाइट लंड उसकी गान्ड से रगड़ खाते हुए उसकी मुनिया तक ठोकरें मारता जा रहा था, जिससे श्यामा की हालत और खराब हो रही थी..,
अंदर जाकर मेने उसे वहाँ बिछि एक चारपाई पर लिटा दिया, और उसकी चोली के बटन खोलते हुए बोला – अभी कोई आएगा तो नही..,
श्यामा पाजामा के उपर से ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भरते हुए बोली – जीजी के अलावा तो और किसी के आने के चान्स नही हैं..,
मेने उसकी चुचियों को नंगा करके उन्हें सहलाते हुए कहा.., आअहह… शयामा रानी, क्या मस्त गोल-गोल कड़क चुचियाँ हैं तेरी.., पर इस बीच वो आगयि तो..?
ये कहकर मेने उसके निपल मरोड़ दिए..,
उयईी..मैयाअ…, ससिईई…आने दो.., आप जल्दी कुछ करो.., कहते हुए उसने मेरा पाजामा नीचे सरका दिया, और मेरे लंड को अंडरवेर से बाहर निकालकर वो किसी भूखी कुतिया की तरह उसपर टूट पड़ी..,
आवेश में आकर उसने मेरे लंड को मूह में लेने की कोशिश की लेकिन 1/3 अंदर जाते ही उसका मूह भर गया, वो उतने को ही चूसने लगी..,
मेने उसका लहंगा निकाल दिया, उसकी गोल-गोल गान्ड को सहलाते हुए उसकी चूत में अपने उंगली डाल दी.., गीली चूत में उंगली गॅप से सरक गयी, जिसे में अंदर बाहर करके चोदने लगा..,
मज़े के मारे शयामा के मूह से गुउन्नग्ग..गुउन्नग्ग.., जैसी आवाज़ें निकलने लगी
श्यामा का मूह जल्दी जबाब दे गया, थूक से लिथड़ा लंड बाहर निकाला, और कामातूर होकर बोली – अब डालो इसे पंडित जी..,
मेने भी देर करना ठीक नही समझा, अपने सुपाडे को उसकी चूत के मूह पर फिट किया और एक हल्का सा धक्का देकर उसे उसकी चूत में सरका दिया..!
मेरे मोटे लंड से शयामा की छोटी सी चूत जो काफ़ी दिनो से मेरे लंड से नही चुद पाई थी, उसकी पतली-पतली फाँकें बुरी तरह से चौड़ गयी, उसके मूह से आहह.. निकल पड़ी..,
हाईए…माल्लीक्कक…ये पहले से ज़्यादा मोटा हो गया है.., थोड़ा धीरे से डालो..,
मेने हाथों से उसके निप्प्लो को रगड़ कर एक धक्का और लगाया.., आधे लंड ने ही उसकी मुनिया का हुलिया बिगाड़ दिया था..,
शयमा ने अपने होठ कसकर भींच लिए.., मेने आधे लंड से ही उसे चोदना शुरू कर दिया.., उसकी कसी हुई चूत में तिल-तिल करके मेरा लंड अंदर सरक रहा था..,
सच में मुझे कुछ ज़्यादा ही मेहनत करनी पड़ रही थी.., शयामा की हालत बिगड़ती जा रही थी, लेकिन मेरे लंड की चाहत में बेचारी मना भी नही कर पा रही थी..,
हालाँकि उसकी चूत कामरस छोड़ रही थी, फिर भी मेरा लंड अपने अंतिम मुकाम तक नही पहुँच पा रहा था, फिर मेने थोड़ा साँस रोक कर एक दमदार धक्का लगा ही दिया..,
लाख रोकने पर शयामा के मूह से चीख निकल ही गयी, कसी हुई चूत के दबाब में मेरे लंड की नसें फटने को होने लगी.., मेरा पूरा लंड किसी खूँटे की तरह उसकी छोटी सी चूत में फिट हो गया..,
एक मरमान्तक चीख के साथ श्यामा अप्रत्याशित रूप से शांत पड़ गयी.., मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी, उसका मूह खुला हुआ था, आँखें फटी की फटी रह गयी थी..,
क्षणमात्र के लिए श्यामा अचेत हो होगयि, मेने उसके गाल थपथपाए..,
डर कर मेने अपने लंड को बाहर खींचा, लंड के खींचने के साथ ही उसके मूह से कराह निकली.., मेने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पुछा – क्या हुआ श्यामा..?
उसने अपने सूखे होठों पर जीभ फेरी, फिर फीकी सी मुस्कराहट लाकर बोली – आपके लंड के आगे मे हार गयी पंडितजी.., बहुत कोशिश की लेकिन नही झेल पाई..,
मेने धीरे-धीरे करके अपने लंड को आधे तक बाहर निकाला, उसे और बाहर करते हुए बोला – रहने दो फिर तुमसे नही लिया जा रहा तो..,
मेरी बात सुनकर शयामा ने फ़ौरन अपने पैरों की केँची मेरी गान्ड पर कस दी, और मेरे सीने से लिपटे हुए बोली – आपको मेरी सौगंध पंडितजी.., आप चोदो अब तो पूरा चला ही गया एक बार..,
मेने उसके होठों को अपने जीभ से तर किया और अपने लंड को फिरसे अंदर करते हुए मुस्कुरा कर कहा – जैसी तुम्हारी मर्ज़ी..,
8-10 बार अंदर बाहर होने तक श्यामा के मूह से कराह निकलती रही, लेकिन फिर जल्दी ही वो ले में आगयि और अपनी गान्ड को उछालने लगी…!
एक बार लंड सेट क्या हुआ, शयामा की चूत रस छोड़ने लगी, और जब लंड अच्छे से ग्रीस्ड हो गया, फिर तो दुबली-पतली सी श्यामा ने हद ही करदी..,
नीचे से किसी लट्टू की तरह अपनी कमर को चलाते हुए चुदाई में लीन हो गयी.., कुछ देर बाद मेने उसे अपने उपर बिठा लिया..,
मेरे उपर बैठकर श्यामा ने इतनी तेज़ी से अपनी कमर चलाई कि नीचे से मे अपनी कमर उचकाना भूल गया गया, उसकी चुदाई की लगन देखकर मे मंत्रमुग्ध होकर बस मज़े लेता रहा..,
शयामा आज अपनी सारी अगली पिच्छली कसर निकाल लेना चाहती थी.., ना जाने वो कितनी बार झड़ी होगी..,
लेकिन चुदाई की रफ़्तार के आगे मेरा लंड भी एक बार झड़ने के बाद चूत के अंदर ही अंदर ढीला भी नही हो पाया कि फिर से अकड़ गया..,
श्यामा के उपर मानो चुदाई का भूत सवार हो, वो एक पल के लिए भी नही लगी कि वो झड़ने के बाद थकि हो, बस दे दनादन चक्रि की तरह अपनी कमर घुमाती चली जा रही थी..,
फिर जैसे ही वो अपनी चूत को मेरे लंड पर दबाकर रुकी, मेने शयामा को कुतिया की तरह पीछे से पेलना शुरू कर दिया, और खूब पेला, फिर आख़िरकार अपना ढेर सारा पानी उसकी नन्ही सी चूत में उडेल दिया..,
शयामा औंधे मूह चारपाई पर पड़ी रह गयी, कुछ देर मे भी उसके उपर लेटा रहा, फिर उठकर उसकी गान्ड को सहलाकर अपने कपड़े पहन लिए..,
शयामा के शरीर को हिलाया तो वो कुन्मूनाकर सीधी हुई, अपनी बाहें फैलाकर मेरी तरफ बढ़ा दी.., मेने झुक कर उसे गले से लगा लिया..,
वो मेरे गले से लिपटकर बोली – धन्याबाद मालिक, आज आपका प्रसाद पाकर मे धन्य हो गयी..,
चोंक कर मेने उसे अलग किया और बोला – क्या मतलब..? कैसा प्रसाद..?
श्यामा मुस्करा कर बोली – वही जो अभी अभी ढेर सारा मेरे अंदर डाला है आपने.., मुझे पूरी उम्मीद है कि मे आपके बीज़ को पा चुकी हूँ..,
ये कहकर वो फिर एक बार मेरे गले में झूल गयी.., मेने उसकी छोटी सी गान्ड को कसकर दबाया और उसे नंगी ही चारपाई पर पड़ी छोड़कर उसके घर से निकल आया…!
श्यामा की चुदाई ने आज सच में मुझे निढाल सा कर दिया था.., और ये भी सच था कि आज से पहले कभी इतना मज़ा भी शायद ही आया होगा मुझे..,
एक नयी जवान प्यासी औरत की प्यास क्या होती है श्यामा ने मुझे जता दिया था…!
ना जाने क्यों, उसे तृप्त करके, उसकी इच्छा पूरी करके आज मुझे अपार सुख की अनुभूति हो रही थी..,
घर आते ही मेने वरामदे में पड़ी चारपाई पकड़ ली, और कुछ ही मिनटों में मे गहरी नींद में डूब गया…!
नींद में भी शयामा ने मेरा पीछा नही छोड़ा, उसकी चुदाई के सुखद अनुभव नींद में भी मेरे दिमाग़ पर हावी थे, श्यामा की कसी हुई चूत में फँसा हुआ मेरा खूँटा, उसका अचेत हो जाना..,
फिर उसके बाद लंड के बाहर खींचने पर होश आना.., उसके बाद की उसकी तेज़ी.., यही सब सपने में देख रहा था, नतीजा आप सब लोग जानते ही हैं, क्या हुआ होगा !
मेरा पस्त हुआ पड़ा लंड नींद में ही खड़ा हो गया,
मे चित्त पड़ा सो रहा था, पाजामे में फुल तंबू बन चुका था, यही नही सपने में हो रहे घटनाक्रम के साथ साथ वो ठुमके भी लगा रहा था..!
वहाँ से गुज़रते हुए नीलू भाभी की नज़र जब मेरे लौडे पर पड़ी, उनकी साँसें थम गयी, वो वही मेरी चारपाई के पास खड़ी होकर उसका ये कौतूहल देखने लगी…!
मेरे फुल खड़े लंड के ठुमके देखकर उनकी मुनिया गीली होने लगी.., ना जाने वो ये नज़ारा कितनी देर से देख रही थी..,
अपनी चूत की खुजली के वशीभूत होकर उनसे रहा नही गया, और चारपाई की पाटी पर बैठ गयी.., अभी वो मेरे लौडे को अपने हाथ में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा ही रही थी…,
कि पीछे से भाभी की आवाज़ ने उन्हें चोंका दिया.., वो फ़ौरन से पेस्तर चारपाई से उठ खड़ी हुई, और बिना कुछ कहे तेज-तेज कदमों से वहाँ से चली गयी..,!
जब भाभी मेरी चारपाई के पास आई, तब उन्हें पता चला कि असल माजरा क्या है..,
कुछ देर तो वो भी बड़ी प्यासी निगाहों से उसे देखती रही.., मेरे लंड के कौतुक देखकर उनकी मुनिया की प्यास भी भड़कने लगी..,
लेकिन वो जानती थी, कि नीलू की नज़र अभी भी यहीं पर लगी होगी, सो अपनी भावनाओं पर काबू रख कर उन्होने मुझे कंधे से हिलाया..,
लल्ला..ओ..लल्ला.., उठो…, जाओ जाकर अपने कमरे में सो जाओ..,
मे हड़बड़ा कर उठा, भाभी को जागते हुए देख बोला – क्या हुआ भाभी…?
भाभी ने आँखों के इशारे से बताया कि देखो तुम्हारा मूसल क्या कर रहा है..,
जब मेरी नज़र वहाँ गयी तो वो मुस्करा कर बोली – अभी तो नीलू की नज़र पड़ी है, वो तुम्हारे इस मूसल की दीवानी हो रही थी.., लेकिन सोचो, उसकी जगह कोई और आ जाए तो..?
जाओ, सोना है तो अपने कमरे में जाओ..,
वास्तविकता का भान होते ही मे झेंप कर उठ बैठा और चारपाई से उतरकर अपने कमरे की तरफ चल दिया.., पीछे खड़ी भाभी मंद-मंद मुस्करा रही थी…!
ऐसे ही दो दिन निकल गये, इन दो दिनो में नीलू भाभी ने मुझे सिड्यूस करने के भरसक प्रयास किए.., ज़रूरत से ज़्यादा टाइट कपड़े पहन कर अपने कूल्हे और उभारों को कुछ ज़्यादा ही उभार कर दिखाना..,
चलते-फिरते मेरे शरीर से टच करना, कभी कभार मेरे लौडे को छू लेना.., लेकिन मेने अपनी तरफ से उनकी हर कोशिश नाकाम कर दी..,
कुल मिलाकर उनकी तड़प बढ़ती ही जा रही थी, ऐसा भी नही था कि मेरी इक्षा नही थी उन्हें चोदने की लेकिन भाभी का कहा मानकर मे उन्हें और थोड़ा तड़पाना चाहता था..,
मेने आजकल कोर्ट जाना बंद किया हुआ था, निशा के दिन पूरे हो चुके थे, किसी भी वक़्त उसकी डेलिवरी हो सकती थी..,
जब चीज़ें अच्छी हों तो इस्तेमाल भी हो ही जाती हैं.., चाहो तो आप भी इस्तेमाल कर सकते हो…!
मेने मुस्कराते हुए कहा – दूसरे की चीज़ों को बिना इजाज़त इस्तेमाल करने की आदत नही है मेरी.., हाँ मौका मिलने पर मे ज़रूर करता हूँ…!
अब तक आगे से मेने अपना बदन पोंच्छ लिया था, उन्होने मेरे हाथ से टवल लेते हुए बोली – लाइए, पीठ का पसीना मे पोंच्छ देती हूँ,
वैसे एक बात कहूँ जीजाजी, अगर चीज़ पसंद आजाए तो चोरी छुपे भी इस्तेमाल कर लेनी चाहिए…!
मे उनके इस मज़ाक का कोई माकूल सा जबाब देने ही वाला था कि भाभी को आते देख बात का रुख़ मोड़ते हुए बोला – अरे आप रहने डीलजिए, कुछ देर में वैसे ही सूख जाएगा..,
तभी भाभी ने आकर एक बड़ा सा ग्लास जूस का मुझे थमाते हुए बोली – पोन्छ लेने दो लल्ला, सलहज होने के नाते, इनका भी कुछ हक़ बनता है नंदोई की सेवा करने का.,
शायद सेवा के बदले इन्हें भी कुछ मेवा मिल जाए…, इतना कहकर मुस्कराते हुए भाभी ने मुझे ग्लास पकड़ाया और आँख मारकर वहाँ से चली गयी…!
ये भाभी की तरफ से साफ-साफ संकेत था कि वो नीलू को मुझसे चुद्वाना चाहती हैं, और कहीं ना कहीं नीलू भी ये चाहती है.., ये सोचकर मेरे चेहरे पर स्माइल आगयि…!
मे खड़े-खड़े ही जूस पीने लगा, और मेरे पीछे खड़ी नीलू भाभी बड़े प्यार से धीरे-धीरे मेरी पीठ का पसीना पोंच्छने लगी…!
नीलू भाभी बड़े प्यार से मेरी पीठ का पसीना सूखा रही थी, पीठ के बाद उन्होने तौलिया उपर मेरे सिर के बालों की तरफ बाध्या,
हाथ उपर की तरफ बढ़ते हुए वो मेरी पीठ से सॅट’ती जा रही थी, मेरे कसरती बदन से उठती पसीने की मर्दानी खुसबु से उनकी चुचियों के अनारदाने कड़क होने लगे, जो अब मेरी पीठ पर फिसल रहे थे..,
पीछे से बालों को पोंच्छने के बाद वो मेरे आगे आ गयी, मेरी छाती के बालों को पोंच्छने के बाद जब आगे से सिर की तरफ हाथ बढ़ाने लगी तो उनकी मेक्सी में छुपे उनके उरोज मेरी आँखों के सामने आगये..,
गोल-गोल दूधिया उनके पुष्ट उभार देख कर मेरा बाबूराव शॉर्ट के अंदर कुलबुलाने लगा..,
बाल पोंच्छने के बहाने नीलू मेरे बदन के काफ़ी नज़दीक आगयि, और एक समय ऐसा आया कि उनके कंचे जैसे अनार्दाने मेरी छाती से रगड़ खाने लगे..,
जिनकी चुभन से मेरा चंचल मन भटकने लगा.., अपने उभारों को हल्के से मेरी छाती से दबाकर वो सिरके बालों का पसीना पोन्छ्ने के बहाने उन्होने अपनी चुचियों को मेरी छाती से दबा दिया जिससे वो और ज़्यादा नुमाया होने लगी,
मेरे हाथ उन्हें दबाने के लिए उठने ही वाले थे कि वो थोड़ा दूर हट गयी, और तौलिया को मेरी बालों से भरी जांघों पर ले जाने लगी..,
अब मेरा बाबूराव शॉर्ट में सिर उठाए उनकी नज़रों के सामने था, आगे का मस्त तंबू देखकर नीलू भाभी अपनी सुध-बुध खोती जा रही थी..,
मेने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा – अब रहने दो भाभी, कुछ देर में मे नहाने ही वाला हूँ..,
वो अपनी नशीली आँखों से मेरी तरफ देखते हुए बोली – नंदोई की सेवा करने का हक़ क्यों छीन रहे हैं जीजा जी.., करने दीजिए ना…!
उनके ये शब्द मूह से ऐसे अंदाज में निकले मानो वो अपने बस में ना होकर किसी और के बशिभूत बोल रही हों..,
मेने उनकी नशीली आँखों की भाषा पढ़ते हुए उनकी पतली कमर में अपनी एक बाजू लपेटकर उन्हें अपने से सटा लिया.., अब उनकी मुनिया ठीक मेरे बाबूराव के निशाने पर थी..,
आँखों में आँखें डालते हुए मेने कहा – मत करिए ना…, वरना मेरा भी हक़ हो जाएगा आपको मेवा खिलाने का…!
मेरे कड़क लंड के उभर की ठोकर अपनी चूत के होठों पर पड़ते ही वो वैसे ही कामातूर होने लगी थी, मेरी ये बात सुनकर नीलू ने अपनी गुदाज बाहें मेरे इर्द-गिर्द लपेट दी, और पूरी तरह चिपक कर बोली –
मेवा खाने के लिए ही तो सेवा की जाती है.., खिला दीजिए ना, मना किसने किया है..,
मेने मुस्करा कर उनके दोनो कुल्हों पर अपने हाथ जमाए, उन्हें कसकर भींचते हुए उनकी चूत को अपने खड़े लंड पर दबा दिया..,
सीईईई…आअहह…जीजा जी….छोड़िए ना…, नीलू के मूह से एक कामुक सिसकी निकल पड़ी..,
ये तमाशा किचन से भाभी देख रही थी.., उन्होने वहीं से खाँसकर हमें चेताया.., फिर आवाज़ देकर बोली – लल्ला अब तुम्हारा नहाने का टाइम हो गया है, यौं खड़े मत रहो धूप में….!
भाभी का इशारा था कि ये सब और खुले में नही, कोई भी आ सकता है.., सो मेने नीलू को अपने से अलग किया..,
वो शर्मा कर अपने कमरे में भाग गयी…!
उनके जाते ही भाभी ने मुझे किचन में बुलाया और प्यार से धमकाते हुए बोली – मेने थोड़ी छूट क्या दे दी, तुम तो उसे खुले आँगन में ही चोदने को तैयार हो गये…!
कुछ तो शर्म करो, अभी कोई आ जाए तो क्या सोचेगा, कि देखो कितना लंपट है ये आदमी, अपनी बीवी को फूला के रखा है और सलहज पे हाथ सॉफ कर रहा है, ये कहकर भाभी ने मेरे खड़े लौडे को अपनी मुट्ठी में भर लिया…,
उसे ज़ोर्से मरोडते हुए बोली – ये कम्बख़्त भी कहीं भी मूह उठाकर खड़ा हो जाता है, थोड़ा ठंडा करके खा, बहुत रसीली चूत होगी नीलू की.., खूब गंगा स्नान कर लेना..,
ये कहकर वो खिल-खिलाकर हँसने लगी, और मेरे मूह से कराह निकल गयी..!
फिर उन्होने मुझे समझाते हुए कहा – नीलू बहुत मस्त औरत है, थोड़ा तड़पने दो उसको, इतना जल्दी मत दिखाओ, वरना वो समझेगी कि उसका नंदोई एकदम ठर्की आदमी है समझे..,
मुझे भी भाभी की बात सही लगी, मेने स्माइल देकर उन्हें अपनी बाहों में भर लिया, और उनके रसीले होठों का चुंबन लेकर बोला – जो हुकुम गुरुजी..,
भाभी – गुरुजी के चेले, और एक बात, नीलू को ये पता नही चलना चाहिए कि हम दोनो के संबंध किस हद तक हैं..! औरत के मूह में ताला नही होता..,
भाभी की बात गाँठ बाँधकर मे रज़ामंदी में सिर हिलाकर नहाने के लिए चला गया..!
उधर मेरे से अलग होकर नीलू भाभी लंबी-लंबी साँस भरते हुए अपने कमरे में आकर बिस्तर पर औंधे मूह गिर पड़ी..,
उनकी मुनिया पूरी तरह से गीली हो चुकी थी, मेरे रोड जैसे सख़्त लंड की ठोकर पाकर वो झन-झना उठी थी, लेटे लेटे ही उन्होने अपना एक हाथ लेजाकर उसे ज़ोर्से रगड़ दिया..,
मे नहाने अपने कमरे में अटॅच्ड बाथरूम की तरफ बढ़ गया, उससे पहले वो कमरा था जो नीलू भाभी को रहने के लिए दिया था..,
दरवाजे के सामने से गुज़रते हुए मेरी नज़र उनके उपर पड़ी.., वो इस समय उल्टी लेटी हुई थी.., क्या मस्त उभरी हुई गान्ड थी उनकी, मानो दो कलश उल्टे करके रख दिए हों,
अपनी चूत को मसल्ते हुए उनके शरीर में थोड़ी हरकत भी हो रही थी, जिसके कारण उनके वो दोनो कलश हल्के हल्के हिल रहे थे…,
देखते ही मेरा बाबूराव फिरसे भड़क उठा.., वो मचलते हुए मानो कह रहा हो.., चल यार अंदर जाकर इस गान्ड में मुझे प्लॉट दिलादे.., जिंदगी भर तेरा एहसान मानूँगा..,
लेकिन भाभी की बात गाँठ बाँधते हुए मेने उसे ज़ोर्से दबाते हुए नीचे की तरफ किया, उसे समझाते हुए कि सबर कर मेरे शेर, ये गान्ड तेरी ही है.., मे आगे बढ़ गया…!
जैसे ही मे अपने कमरे में पहुँच, निशा नाश्ता लेकर अंदर ही अंदर इधर से उधर छोटे-छोटे कदमों से टहल रही थी..,
पहले उसकी नज़र मेरे चेहरे पर पड़ी, जो उत्तेजना से लाल हो रहा था, फिर जैसे ही उसने मेरे विशालकाय तंबू को देखा, मेरे सामने आकर उसे पकड़ते हुए बोली –
क्या बात है राजे, ये इतना क्यों भड़का हुआ है, कुछ गरमा-गरम चल रहा था क्या बाहर…, या दीदी ने छेड़ दिया है मेरे इस शेर को…!
मेने निशा के पेट पर हाथ फेरते हुए बोला – तुम्हारी भाभी ने इसे जगा दिया है.., अब साला ज़िद लेकर बैठ गया है कि उनकी गान्ड में डाल, अब तुम्ही बताओ यूँ तुम्हारी अमानत किसी को भी कैसे दे दूं…!
ये सुनकर निशा के चेहरे पर एक शरारती स्माइल आ गयी, और उसे उमेठ्ते हुए बोली – अच्छा, जैसे मेरी इजाज़त के वगैर ये कहीं और मलाई नही ख़ाता हां..!
वैसे राजे, भाभी क्या चाहती हैं.., ? क्या उन्हें भी ये पसंद आगया है..?
मे – पसंद..! उनका बस चलता तो वहीं आँगन में ही इसे लेकर चूसने लगती.., वो तो शुक्र करो की भाभी ने हमें टोक दिया..,
निशा मेरे होठ चूस्ते हुए बोली – चलो वैसे भी आजकल इसके लिए एक चूत की कमी चल रही है.., आच्छा है स्वाद चेंज कर लेगा बेचारा मेरा पप्पू..,
इस बात पर हम दोनो ही ज़ोर-ज़ोर्से हँसने लगे, हमें ऐसे हँसते देखकर नीलू भाभी अपने कमरे से उठकर हमारे दरवाजे पर आ गयी, निशा को मेरा लंड हाथ में लिए और हँसते देखकर, शरमा कर वापिस भाग गयी…!
निशा ने अलग होते हुए कहा – बाप रे, भाभी ने हमें देख लिया.., लगता है कुछ ज़्यादा ही ज़ोर की खुजली हो रही है उनको..,
मे – लेकिन मे इतना जल्दी उनकी खुजली मिटाने वाला नही हूँ, थोड़ा और तड़पने दो उन्हें, अच्छी चीज़ इतनी आसानी से हासिल नही होनी चाहिए,
मेरी बात सुनकर निशा के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी, वो मेरे एकदम नज़दीक आकर मेरे गाल को किस करते हुए बोली –
इतना भी मत तड़पाना राजे, कि वो खुलेआम सबके सामने अपनी चूत खोलकर बैठ जाए.., इतना कहकर वो खिल-खिलाकर हँसने लगी, मे भी मुस्कुराता हुआ अपने कपड़े लेकर बाथ रूम में घुस गया…!
नाश्ते के बाद मे गाओं में चक्कर लगाने निकल गया, लोगों से मिलकर कुछ समस्याओं पर विचार विमर्श किया, कुछ का समाधान किया..,
लौटते वक़्त मे दुलारी के टोले से गुजर रहा था, तभी पास के हॅंड पंप से एक मिट्टी के मटके में पानी अपनी पतली सी कमर पर रखे, चोली का घूँघट निकाले एक औरत दुलारी के घर की तरफ जा रही थी..,
कमर पर मटका होने की वजह से उसकी पतली सी कमर टेढ़ी हो रही थी, पीछे से उसकी गान्ड जो कुछ और पीछे को निकल आई थी, रिदम के साथ मटक रही थी..,
आज सुबह से ही नीलू भाभी की वजह से मेरे दिमाग़ में सेक्स के कीड़े शांत नही हो पा रहे थे, उसकी पतली कमर के नीचे मटकती गान्ड देखकर मेरा नाग कपड़ों के अंदर ही सर-सराने लगा..,
मेने थोड़ा तेज कदम बढ़कर पीछे से उसे आवाज़ दी – अरे सुनो..!
मेरी आवाज़ सुनकर वो पलटी, उसके पलट’ते ही मेने पुछा – ये दुलारी भौजी घर पर हैं क्या..?
मुझे देखकर उसने अपना घूँघट उठाया और बोली – पंडितजी जीजी से ही काम रखते हो, हमें भी कभी-कभार याद कर लिया करो…!
उसे देखते ही मेने कहा – अरे श्यामा तुम, कैसी हो..?
वो थोड़ा दुखी स्वर में बोली – कैसी हो सकती हूँ, आपसे कुछ छुपा तो है नही.., आइए घर चलिए.., दुलारी जीजी किसी काम से गयी हैं आती ही होंगी…!
मेने कहा- तुम चलो मे अभी आता हूँ, ये कहकर मे थोड़ा वहीं खड़ा रह गया, जब वो अपने घर के अंदर चली गयी, मेने इधर-उधर नज़र मारी, और मे भी उसके घर के अंदर घुस गया…!
तबतक वो पानी से भरा मटका रसोई में रख चुकी थी, मेरे अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया, और मेरे लिए छप्पर के नीचे एक चौकी डाल दी..,
मेरे बैठते ही वो मेरे सामने आकर ज़मीन पर बैठ गयी, मेने पुछा – तुम्हारी जीजी कहाँ हैं..?
श्यामा – वो बच्चों के कॉलेज में गयी हैं, मास्टर जी ने बुलवाया था..,आपके लिए क्या लाउ, चाय.., पानी .., क्या लेंगे..?
श्यामा की पतली सी चुनरी के नीचे उसकी छोटी सी चोली में कसे हुए उसके अनार, जो अभी भी टॅनिस की बॉल के आकार के ही थे साफ-साफ अपनी गोलाई दिखा रहे थे..,
मेने उनपर नज़र डालते हुए कहा – चाय पानी से ही टरकाना चाहती हो..?
श्यामा – हाए पंडितजी.., हुकुम करो, आपके लिए मेरा सब कुछ हाज़िर है.., ये कहकर उसने शर्म से अपनी नज़रें नीचे करली और मंद-मंद मुस्कराने लगी..
मेने अपना हाथ बढ़ाकर उसका बाजू थामा, उसे उठाते हुए बोला – तो फिर इतनी दूर-दूर क्यों बैठी हो, तनिक पास तो आओ..,
वो तो इसी लालसा में बैठी ही थी, सो हाथ का इशरा पाते ही मेरी गोद में आगिरी…!
उसकी गोल-गोल मुलायम गान्ड के बीच की चौड़ी दरार में फँसा मेरा बाबूराव, अपनी मन पसंद जगह पाकर अति-प्रशन्न हो उठा, और अपनी खुशी जाहिर करने का उसे एक ही तरीक़ा आता था..,
वो अंडरवेर को उठाता हुआ, पाजामे के होते हुए भी शयामा की दरार में फिट हो गया.., जिसे अपनी गान्ड के एन छेद पर महसूस करके शयामा की आँखें मूंद गयी..,
मेने उसकी चुनरी को एक तरफ उछाल दिया, चोली में क़ैद उसकी टेनिस की बॉल जैसी कड़क चुचियाँ तन्कर सीधी हो चुकी थी.., जिन्हें मेने अपने हाथों में लेकर मसल दिया…!
आअहह….सस्सिईईई…मालिकक्क…मसलूओ..इन्हें…, उउफ़फ्फ़ …मोरी…माइइ…
मेने उसके अनारों को मसल्ते हुए कहा – यहीं चुदोगि या कोठे में..,?
सस्सिईई…पंडितजीि…, आप जहाँ चाहो.., चोद डालो मुझे.., आप कहोगे तो बीच रास्ते में चुदने को तैयार हो जाउन्गि आपसे.., आअहह…,
मेने उसके पतले-पतले होठों को चूम लिया और किसी बच्ची की तरह उसे अपनी गोद में उठाकर कोठे में ले जाने लगा.., उसने भी अपनी पतली-पतली बाहें मेरे गले में डाल रखी थी..,
नीचे मेरे फुल टाइट लंड उसकी गान्ड से रगड़ खाते हुए उसकी मुनिया तक ठोकरें मारता जा रहा था, जिससे श्यामा की हालत और खराब हो रही थी..,
अंदर जाकर मेने उसे वहाँ बिछि एक चारपाई पर लिटा दिया, और उसकी चोली के बटन खोलते हुए बोला – अभी कोई आएगा तो नही..,
श्यामा पाजामा के उपर से ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भरते हुए बोली – जीजी के अलावा तो और किसी के आने के चान्स नही हैं..,
मेने उसकी चुचियों को नंगा करके उन्हें सहलाते हुए कहा.., आअहह… शयामा रानी, क्या मस्त गोल-गोल कड़क चुचियाँ हैं तेरी.., पर इस बीच वो आगयि तो..?
ये कहकर मेने उसके निपल मरोड़ दिए..,
उयईी..मैयाअ…, ससिईई…आने दो.., आप जल्दी कुछ करो.., कहते हुए उसने मेरा पाजामा नीचे सरका दिया, और मेरे लंड को अंडरवेर से बाहर निकालकर वो किसी भूखी कुतिया की तरह उसपर टूट पड़ी..,
आवेश में आकर उसने मेरे लंड को मूह में लेने की कोशिश की लेकिन 1/3 अंदर जाते ही उसका मूह भर गया, वो उतने को ही चूसने लगी..,
मेने उसका लहंगा निकाल दिया, उसकी गोल-गोल गान्ड को सहलाते हुए उसकी चूत में अपने उंगली डाल दी.., गीली चूत में उंगली गॅप से सरक गयी, जिसे में अंदर बाहर करके चोदने लगा..,
मज़े के मारे शयामा के मूह से गुउन्नग्ग..गुउन्नग्ग.., जैसी आवाज़ें निकलने लगी
श्यामा का मूह जल्दी जबाब दे गया, थूक से लिथड़ा लंड बाहर निकाला, और कामातूर होकर बोली – अब डालो इसे पंडित जी..,
मेने भी देर करना ठीक नही समझा, अपने सुपाडे को उसकी चूत के मूह पर फिट किया और एक हल्का सा धक्का देकर उसे उसकी चूत में सरका दिया..!
मेरे मोटे लंड से शयामा की छोटी सी चूत जो काफ़ी दिनो से मेरे लंड से नही चुद पाई थी, उसकी पतली-पतली फाँकें बुरी तरह से चौड़ गयी, उसके मूह से आहह.. निकल पड़ी..,
हाईए…माल्लीक्कक…ये पहले से ज़्यादा मोटा हो गया है.., थोड़ा धीरे से डालो..,
मेने हाथों से उसके निप्प्लो को रगड़ कर एक धक्का और लगाया.., आधे लंड ने ही उसकी मुनिया का हुलिया बिगाड़ दिया था..,
शयमा ने अपने होठ कसकर भींच लिए.., मेने आधे लंड से ही उसे चोदना शुरू कर दिया.., उसकी कसी हुई चूत में तिल-तिल करके मेरा लंड अंदर सरक रहा था..,
सच में मुझे कुछ ज़्यादा ही मेहनत करनी पड़ रही थी.., शयामा की हालत बिगड़ती जा रही थी, लेकिन मेरे लंड की चाहत में बेचारी मना भी नही कर पा रही थी..,
हालाँकि उसकी चूत कामरस छोड़ रही थी, फिर भी मेरा लंड अपने अंतिम मुकाम तक नही पहुँच पा रहा था, फिर मेने थोड़ा साँस रोक कर एक दमदार धक्का लगा ही दिया..,
लाख रोकने पर शयामा के मूह से चीख निकल ही गयी, कसी हुई चूत के दबाब में मेरे लंड की नसें फटने को होने लगी.., मेरा पूरा लंड किसी खूँटे की तरह उसकी छोटी सी चूत में फिट हो गया..,
एक मरमान्तक चीख के साथ श्यामा अप्रत्याशित रूप से शांत पड़ गयी.., मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी, उसका मूह खुला हुआ था, आँखें फटी की फटी रह गयी थी..,
क्षणमात्र के लिए श्यामा अचेत हो होगयि, मेने उसके गाल थपथपाए..,
डर कर मेने अपने लंड को बाहर खींचा, लंड के खींचने के साथ ही उसके मूह से कराह निकली.., मेने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पुछा – क्या हुआ श्यामा..?
उसने अपने सूखे होठों पर जीभ फेरी, फिर फीकी सी मुस्कराहट लाकर बोली – आपके लंड के आगे मे हार गयी पंडितजी.., बहुत कोशिश की लेकिन नही झेल पाई..,
मेने धीरे-धीरे करके अपने लंड को आधे तक बाहर निकाला, उसे और बाहर करते हुए बोला – रहने दो फिर तुमसे नही लिया जा रहा तो..,
मेरी बात सुनकर शयामा ने फ़ौरन अपने पैरों की केँची मेरी गान्ड पर कस दी, और मेरे सीने से लिपटे हुए बोली – आपको मेरी सौगंध पंडितजी.., आप चोदो अब तो पूरा चला ही गया एक बार..,
मेने उसके होठों को अपने जीभ से तर किया और अपने लंड को फिरसे अंदर करते हुए मुस्कुरा कर कहा – जैसी तुम्हारी मर्ज़ी..,
8-10 बार अंदर बाहर होने तक श्यामा के मूह से कराह निकलती रही, लेकिन फिर जल्दी ही वो ले में आगयि और अपनी गान्ड को उछालने लगी…!
एक बार लंड सेट क्या हुआ, शयामा की चूत रस छोड़ने लगी, और जब लंड अच्छे से ग्रीस्ड हो गया, फिर तो दुबली-पतली सी श्यामा ने हद ही करदी..,
नीचे से किसी लट्टू की तरह अपनी कमर को चलाते हुए चुदाई में लीन हो गयी.., कुछ देर बाद मेने उसे अपने उपर बिठा लिया..,
मेरे उपर बैठकर श्यामा ने इतनी तेज़ी से अपनी कमर चलाई कि नीचे से मे अपनी कमर उचकाना भूल गया गया, उसकी चुदाई की लगन देखकर मे मंत्रमुग्ध होकर बस मज़े लेता रहा..,
शयामा आज अपनी सारी अगली पिच्छली कसर निकाल लेना चाहती थी.., ना जाने वो कितनी बार झड़ी होगी..,
लेकिन चुदाई की रफ़्तार के आगे मेरा लंड भी एक बार झड़ने के बाद चूत के अंदर ही अंदर ढीला भी नही हो पाया कि फिर से अकड़ गया..,
श्यामा के उपर मानो चुदाई का भूत सवार हो, वो एक पल के लिए भी नही लगी कि वो झड़ने के बाद थकि हो, बस दे दनादन चक्रि की तरह अपनी कमर घुमाती चली जा रही थी..,
फिर जैसे ही वो अपनी चूत को मेरे लंड पर दबाकर रुकी, मेने शयामा को कुतिया की तरह पीछे से पेलना शुरू कर दिया, और खूब पेला, फिर आख़िरकार अपना ढेर सारा पानी उसकी नन्ही सी चूत में उडेल दिया..,
शयामा औंधे मूह चारपाई पर पड़ी रह गयी, कुछ देर मे भी उसके उपर लेटा रहा, फिर उठकर उसकी गान्ड को सहलाकर अपने कपड़े पहन लिए..,
शयामा के शरीर को हिलाया तो वो कुन्मूनाकर सीधी हुई, अपनी बाहें फैलाकर मेरी तरफ बढ़ा दी.., मेने झुक कर उसे गले से लगा लिया..,
वो मेरे गले से लिपटकर बोली – धन्याबाद मालिक, आज आपका प्रसाद पाकर मे धन्य हो गयी..,
चोंक कर मेने उसे अलग किया और बोला – क्या मतलब..? कैसा प्रसाद..?
श्यामा मुस्करा कर बोली – वही जो अभी अभी ढेर सारा मेरे अंदर डाला है आपने.., मुझे पूरी उम्मीद है कि मे आपके बीज़ को पा चुकी हूँ..,
ये कहकर वो फिर एक बार मेरे गले में झूल गयी.., मेने उसकी छोटी सी गान्ड को कसकर दबाया और उसे नंगी ही चारपाई पर पड़ी छोड़कर उसके घर से निकल आया…!
श्यामा की चुदाई ने आज सच में मुझे निढाल सा कर दिया था.., और ये भी सच था कि आज से पहले कभी इतना मज़ा भी शायद ही आया होगा मुझे..,
एक नयी जवान प्यासी औरत की प्यास क्या होती है श्यामा ने मुझे जता दिया था…!
ना जाने क्यों, उसे तृप्त करके, उसकी इच्छा पूरी करके आज मुझे अपार सुख की अनुभूति हो रही थी..,
घर आते ही मेने वरामदे में पड़ी चारपाई पकड़ ली, और कुछ ही मिनटों में मे गहरी नींद में डूब गया…!
नींद में भी शयामा ने मेरा पीछा नही छोड़ा, उसकी चुदाई के सुखद अनुभव नींद में भी मेरे दिमाग़ पर हावी थे, श्यामा की कसी हुई चूत में फँसा हुआ मेरा खूँटा, उसका अचेत हो जाना..,
फिर उसके बाद लंड के बाहर खींचने पर होश आना.., उसके बाद की उसकी तेज़ी.., यही सब सपने में देख रहा था, नतीजा आप सब लोग जानते ही हैं, क्या हुआ होगा !
मेरा पस्त हुआ पड़ा लंड नींद में ही खड़ा हो गया,
मे चित्त पड़ा सो रहा था, पाजामे में फुल तंबू बन चुका था, यही नही सपने में हो रहे घटनाक्रम के साथ साथ वो ठुमके भी लगा रहा था..!
वहाँ से गुज़रते हुए नीलू भाभी की नज़र जब मेरे लौडे पर पड़ी, उनकी साँसें थम गयी, वो वही मेरी चारपाई के पास खड़ी होकर उसका ये कौतूहल देखने लगी…!
मेरे फुल खड़े लंड के ठुमके देखकर उनकी मुनिया गीली होने लगी.., ना जाने वो ये नज़ारा कितनी देर से देख रही थी..,
अपनी चूत की खुजली के वशीभूत होकर उनसे रहा नही गया, और चारपाई की पाटी पर बैठ गयी.., अभी वो मेरे लौडे को अपने हाथ में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा ही रही थी…,
कि पीछे से भाभी की आवाज़ ने उन्हें चोंका दिया.., वो फ़ौरन से पेस्तर चारपाई से उठ खड़ी हुई, और बिना कुछ कहे तेज-तेज कदमों से वहाँ से चली गयी..,!
जब भाभी मेरी चारपाई के पास आई, तब उन्हें पता चला कि असल माजरा क्या है..,
कुछ देर तो वो भी बड़ी प्यासी निगाहों से उसे देखती रही.., मेरे लंड के कौतुक देखकर उनकी मुनिया की प्यास भी भड़कने लगी..,
लेकिन वो जानती थी, कि नीलू की नज़र अभी भी यहीं पर लगी होगी, सो अपनी भावनाओं पर काबू रख कर उन्होने मुझे कंधे से हिलाया..,
लल्ला..ओ..लल्ला.., उठो…, जाओ जाकर अपने कमरे में सो जाओ..,
मे हड़बड़ा कर उठा, भाभी को जागते हुए देख बोला – क्या हुआ भाभी…?
भाभी ने आँखों के इशारे से बताया कि देखो तुम्हारा मूसल क्या कर रहा है..,
जब मेरी नज़र वहाँ गयी तो वो मुस्करा कर बोली – अभी तो नीलू की नज़र पड़ी है, वो तुम्हारे इस मूसल की दीवानी हो रही थी.., लेकिन सोचो, उसकी जगह कोई और आ जाए तो..?
जाओ, सोना है तो अपने कमरे में जाओ..,
वास्तविकता का भान होते ही मे झेंप कर उठ बैठा और चारपाई से उतरकर अपने कमरे की तरफ चल दिया.., पीछे खड़ी भाभी मंद-मंद मुस्करा रही थी…!
ऐसे ही दो दिन निकल गये, इन दो दिनो में नीलू भाभी ने मुझे सिड्यूस करने के भरसक प्रयास किए.., ज़रूरत से ज़्यादा टाइट कपड़े पहन कर अपने कूल्हे और उभारों को कुछ ज़्यादा ही उभार कर दिखाना..,
चलते-फिरते मेरे शरीर से टच करना, कभी कभार मेरे लौडे को छू लेना.., लेकिन मेने अपनी तरफ से उनकी हर कोशिश नाकाम कर दी..,
कुल मिलाकर उनकी तड़प बढ़ती ही जा रही थी, ऐसा भी नही था कि मेरी इक्षा नही थी उन्हें चोदने की लेकिन भाभी का कहा मानकर मे उन्हें और थोड़ा तड़पाना चाहता था..,
मेने आजकल कोर्ट जाना बंद किया हुआ था, निशा के दिन पूरे हो चुके थे, किसी भी वक़्त उसकी डेलिवरी हो सकती थी..,