Update 73
एक अप्रत्याशित अनहोनी होने से बच गयी थी.., उपर आकर वो कितनी ही देर तक अपने डर पर काबू पता रहा.., फिर दोनो मिलकर वहाँ से थोड़ा हटकर एक चट्टान पर आकर बैठ गये…!
संयत होकर उस व्यक्ति ने उस युवक से पुछा.., कॉन हो तुम और ये शूसाइड क्यों करना चाहते थे…?
युवक – मेरी छोड़ो.., तुम बताओ, तुम कॉन हो और यहाँ क्या कर रहे थे, शुक्र है भगवान का वरना मेरी वजह से मौत के ग्रास बन जाते…?
व्यक्ति – मेरा नाम युसुफ है, यूपी के एक छोटे से गाओं का रहने वाला हूँ, गाँव में मेरे बूढ़े अम्मी-अब्बू, 4 बहनें जिनमें से एक का ही निकाह हो पाया है अब तक.., वहाँ बड़ी कुरबत की जिंदगी जी रहे हैं…!
मेने सोचा यहाँ मुंबई में आकर कुछ काम धाम करके घर पैसे भेजूँगा.., दो महीने हो गये लेकिन कोई काम नही मिला…!
हालात ये हैं कि जब किसी * के पास काम माँगने जाता हूँ, तो ,., नाम सुनकर काम देने को तैयार नही है.., और * खुद ही इतने हैं कि उनके पास खुद कोई करने को काम नही है…!
जैसे तैसे कुछ मेहनत मज़दूरी करके अपना पेट भरने का जुगाड़ करने लगा.., लेकिन इतना नही कि घर कुछ भेज सकूँ..!
थक कर चोरी चकोरी करने की ट्राइ किया लेकिन अब तक कोई बड़ा हाथ नही मार पाया, उपर से पकड़े जाने का ख़तरा हर समय मंडराता रहता है.., बस किसी तरह से दिन कट जाता है…!
कभी-कभी तो भूखे पेट ही सोना पड़ जाता है, कभी-कभी सोचता हूँ कि बेकार ही यहाँ आया.., इससे अच्छा तो अपने गाओं में ही रहकर किसी के यहाँ खेत मज़दूरी कर लेता…!
भटकते हुए इधर निकल आया, समंदर की लहरों को देखकर यही सब सोच रहा था कि ना जाने मेरे परिवार का क्या हो रहा होगा.., बस इतनी सी कहानी है मेरी..,
अब तुम बताओ कुछ अपने बारे में.., लगता है.. तुम मुझसे भी ज़्यादा मुसीबत के मारे हो जो इतना बड़ा कदम उठा बैठे…!
वो युवक कुछ देर तक यूँही बैठा रहा.., युसुफ ने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा.., युवक ने उसकी तरफ सूनी-सूनी निगाहों से देखा फिर अनायास ही उसकी आँखें नम हो गयी…!
युसुफ ने उसका कंधा थप-थपाकर कहा – बोलो दोस्त जो भी तुम्हारे दिल में है.., सुना है दुख बाँटने से कम हो जाते हैं…!
युवक – क्या बताउ दोस्त.., मेरी कहानी भी तुमसे कुछ हटके नही है.., और फिर मेरे दुख ऐसे हैं जो कम होने वाले नही हैं.. बस बढ़ते ही रहेंगे…!
अब तो दुखों के साथ साथ मेरा आत्म सम्मान भी इतना घायल हो चुका है.., कि जब भी उनसे टीस उठती है सहना मुश्किल हो जाता है…!
दिल के घाव दिनो-दिन नासूर बनते जा रहे हैं.., अपना सब कुछ खो चुका हूँ, सहन शक्ति जबाब दे चुकी है इसलिए मे अब अपनी जिंदगी ख़तम करने का फ़ैसला करके ही यहाँ आया था…!
लेकिन मेरी फूटी किस्मत, यहाँ भी तुमने मुझे बचा लिया..मरने भी नही दिया मुझे..,
युसुफ – आत्महत्या कायरता है दोस्त.., जो किसी समस्या का समाधान नही कर सकती..!
युवक उसकी बात सुनकर रो ही पड़ा और उसके गले से लिपटकर फफकते हुए बोला – मे कायर ही तो हूँ दोस्त.., समस्याओं से लड़ते-लड़ते थक चुका हूँ.., समाधान कहीं हो तो दिखे…?
युसुफ – हौसला रखो दोस्त.., हो सकता है हम दोनो मिलकर अपनी-अपनी समस्याओं का कोई हल निकाल सकें…!
युवक – तुम जाओ यहाँ से…मुझे अकेला छोड़ दो भाई.., कहीं ऐसा ना हो कि मेरी फूटी किस्मत की परच्छाई तुम्हारी समस्या और बढ़ा दे..,
युसुफ – मेरे सामने समस्याओ का पूरा पहाड़ खड़ा है.., तुम्हारी वजह से थोड़ी और बढ़ जायें तो भी क्या फरक पड़ने वाला है.., हां ये भी हो सकता है कि हम दोनो मिल बैठ कर कोई हल निकाल सकें…!
अब रोना छोड़ो.., और अपने बारे में बताओ…!
युवक कुछ देर के लिए शांत रहा फिर एक लंबी साँस छोड़कर बोला – ठीक है, अगर मेरे बारे में जान’ना ही चाहते हो तो सुनो….!
मेरा नाम संजू शिंदे है.., विदर्भ के एक छोटे से गाओं का रहने वाला हूँ.., मेरे पिता एक ग़रीब किसान थे.., बड़ी मुश्किल से साल भर की रोटी का जुगाड़ कर पाते थे..!
थोड़ा बहुत बचता था उसे गाओं का साहूकार कभी पिताजी द्वारा लिए गये कर्जे के सूद के तौर पर ले जाता था…!
परिवार में मेरे माँ-बाप के अलावा मे सबसे बड़ा, एक बेहन और उससे छोटा एक भाई था..,
जब मे 10थ में पढ़ता था तभी कुपोषण के शिकार अधिक मेहनत की वजह से मेरे पिता का देहांत हो गया.., घर की सारी ज़िम्मेदारी मेरी माँ पर आगयि…!
मेरी माँ उस वक़्त 32-33 साल की थी, दिखने में वो ठीक-ठाक ही लगती थी.., मेहनत के कारण उनका बदन एकदम कसा हुआ था.., खेतों में काम करने के बावजूद भी उनका रंग साफ ही था…!
गाओं के लोग अक्सर उनको ग़लत नज़र से ही ताड़ते थे.., हमेशा ही हमारी ग़रीबी का फ़ायदा उठाने के चक्कर में ही रहते थे…!
अपनी इज़्ज़त बचाने के साथ साथ माँ को दो वक़्त की रोटी भी जुटानी थी.., सो उन्होने मेरी आगे की पढ़ाई छुड़वा दी और मे उनके साथ खेतों में काम करके घर की परिस्थितियों से लड़ने में उनकी मदद करने लगा…!
ऐसे ही हालातों से लड़ते लड़ते किसी तरह हमने 5 साल निकाल दिए.., मेरी बेहन और छोटा भाई भी काम में हाथ बंटाने लगे.., नतीजा अब हमारी स्थिति पहले से सुधरने लगी…!
हमें लगने लगा कि अब हम अपने दुखों से छुटकारा पाते जा रहे हैं.., मेरी बहन अब जवान हो रही थी.., सोचा कुछ दिनो में कोई अच्छा सा घर देख कर उसकी शादी कर देंगे…!
छोटे भाई को खूब पढ़ा लिखा कर शहर भेज देंगे किसी अच्छी सी नौकरी के लिए.., लेकिन कहते हैं कि आदमी की सोचों से कई गुना तेज उसका वक़्त चलता है…!
मे अब 22-23 साल का हॅटा-कट्टा जवान हो चुका था, खूब मेहनत करता और भर पेट ख़ाता.., वाकी और कुछ सोचने विचारने का समय ही नही था मेरे पास…!
मे एक दिन खेती के लिए पास के कस्बे से बीज़ और खाद लेने गया हुआ था अपनी बैल गाड़ी लेकर…!
पीछे से गाओं के दबंग लोग जिनमें से एक दो मेरे हाथों मार भी खा चुके थे मेरी माँ और बेहन को छेड़ने के कारण.., वो लाला के साथ बासूली के बहाने आ गये…!
जब मेरी माँ ने कहा कि लाला जी.. हम तो आपका पूरा हिसाब कर चुके हैं.., तो उसने झूठे बही खाते दिखाकर पहले तो पैसों का दबाब डाला..,
फिर जब माँ ने कहा- ठीक है मे शाम को संजू को भेजती हूँ हिसाब करने तो वो लोग अभी के अभी चुकता करने पर अड़ गये..,
बसूली तो एक बहाना था, उसकी आड़ में वो लोग मेरी माँ के साथ बदतमीज़ी करने लगे..,
मेरी बेहन और छोटा भाई भी था उन्होने विरोध करना चाहा तो उन्होने मेरे भाई – बेहन को मजबूती से जकड लिया ..
और उनकी आँखों के सामने ही मेरी माँ को मादरजात नंगा कर दिया.., यही नही वो हरम्जादे बारी-बारी से मेरी माँ के साथ बलात्कार करते रहे..!
उनमें से जिन्होने मेरी बेहन को जकड़ा हुआ था उन्होने उसके साथ भी छेड़खानी शुरू करदी.., लेकिन उसने एक आदमी जो उसे मजबूती से पकड़े हुए था उसकी कलाई काट खाई…!
बिल-बिलाकर उसने उसे जैसे ही उसे छोड़ा वो वहाँ से जान बचाकर भाग निकली…!
मे समान गाड़ी में लाद कर घर की तरफ ही आ रहा था कि मुझे अपनी तरफ बेत-हासा भागती हुई मेरी बेहन चकोर दिखाई दी…!
पास पहुँच कर मेने जैसे ही गाड़ी खड़ी की, वो भागकर मेरे सीने से लिपट कर रोने लगी.., मेरे पुछ्ने पर उसने रोते-रोते सारी बातें बताई.., जिन्हें सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी..,
मेने उसे गाड़ी में बिठाया और बेचारे बैलों पर डंडे बरसाता हुआ उन्हें दौड़ता हुआ जैसे ही घर के सामने पहुँचा वो हरम्जादे मेरे घर से बाहर निकलते दिखाई दिए…!
मे उनसे उलझने की वजाय अपने घर के अंदर भागा…, लेकिन सामने का भीभत्स नज़ारा देखकर मेरे पैर लड़खड़ा गये.., आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया…!
अंदर मेरा भाई खून से लथपथ मरा पड़ा था.., घर के हालत बता रहे थे कि उसने यथासंभव संघर्ष किया होगा..,
मेरी मादरजात माँ के पेट में भी एक लंबा सा छुरा धंसा हुआ था.., मेरी समझ से वो भी मर चुकी थी..,
कुछ देर अपना सिर पकड़ कर मे सन्नाटे की स्थिति में ही बैठा रहा, फिर जैसे मेने कुछ निश्चय कर लिया था…, उठकर अपनी कुल्हाड़ी ली और घर से बाहर चल दिया…!
तभी मेरे कानों में मेरी माँ की दर्द भरी कराह सुनाई दी.., मेरे पैर ठिठक गये, लपक कर माँ के पास पहुँचा..,
उसका सिर अपनी गोद में रख कर जैसे ही मेने वो छुरा बाहर खींचा, खून का मानो फब्बरा सा उसके पेट से बाहर निकला जिसने मेरे कपड़े भी लाल कर दिए…!
साथ ही माँ की गर्दन भी एक तरफ को लुढ़क गयी.., बहुत देर तक उसके सिर को लेकर फुट-फूटकर रोता रहा.., चकोर भी मेरे पास ही बैठकर रोती रही…!
फिर जैसे कुछ जुनून सा मेरे दिमाग़ पर छाने लगा.., मेरा रोना अप्रत्याशित रूप से थम गया.., मेने अपनी बेहन को चुप कराया.., माँ और भाई की लाश को यौंही लावारिश छोड़..
मेने अपनी कुल्हाड़ी संभाली.., चकोर का हाथ थामा और बिना कुछ लिए दिए उसे लेकर घर से बाहर निकल गया…!
वो बेचारी डरी सहमी उसकी हिम्मत भी नही हुई कि मुझसे कुछ पूछ भी ले.., बस मेरे साथ लगभग घिसटती सी चलने लगी…!
मेने उसे गाओं के बाहर खड़े रहने को कहा और खुद उस हरामी बनिये के घर की तरफ बढ़ गया…!
उस वक़्त मेरा भाग्य अच्छा था जो सारे गुनेहगार उसी के घर में एक साथ मिल गये, जो शायद आगे क्या हो सकता है इस विषय पर बातें कर रहे थे..!
घर में घुसते ही मेने एक तरफ से उन हरांजादों को लकड़ी की तरह काटना शुरू कर दिया.., 6-6 लोगों को एक साथ मार कर खून से सना मे बाहर आया..,
अपनी बेहन को अपने साथ लिया और गाओं की सीमा से दूर और दूर होता चला गया, क्योंकि अब वहाँ रहने का मतलब था अपने आप को जैल में सड़ाना या फाँसी पर झूल जाना…!
उसके बाद मेरी बेहन का क्या होता.., ये मे भली भाँति जानता था.., एक तालाब में जाकर मेने खुद को और अपने कपड़ों को साफ किया और उसी रात
मुंबई की ट्रेन पकड़ कर इस शहर में आ गया…!
अपनी सोच से तो मे अपनी बेहन को गाओं से बचा लाया, लेकिन इस शहर में आते ही मेरे सामने मुशिबतो का पहाड़ खड़ा मिला…!
सिर पर छत नही.., जेब में एक फूटी कौड़ी नही.., खाने को दो दिन से पेट में एक अन्न का दाना तक नही गया था…!
दिनभर भटकने के बाद भी कहीं से कोई आशा की किरण नही मिली जिससे अपनी भूख भी शांत कर सकें…!
तक कर भूख से निढाल हम दोनो एक फूटपाथ पर रात गुजारने को मजबूर, पहने हुए कपड़ों के अलावा जेब में एक रुमाल तक नही..,
लेकिन थकान के कारण तेज नींद ने हमारी सारी समस्याओं का हल कर दिया…!
पता नही कब हमें नींद आ घेरा.., एक बौंड्री वॉल के सहारे पीठ टिकाते ही हमें नींद ने घेर लिया..,
ना जाने वो रात का कॉन्सा प्रहर था जब मेरी नींद एक लड़की की तेज-तेज चीखों के कारण खुल गयी…, बगल में देखा तो मेरी बेहन चकोर वहाँ नही थी…!
मे चीख की दिशा में बेतहासा दौड़ पड़ा.., सड़क से हटकर झाड़ियों के पीछे वो चार लोग चकोर के साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे.., उसके कपड़े एक-एक करके उसका बदन छोड़ते जा रहे थे…!
अपने आप को बचाने की वो जी तोड़ कोशिश कर रही थी.., लेकिन कब तक..,
मात्र एक कच्छि में वो अपने नगन शरीर को धान्पने की कोशिश कर रही थी, और वो दरिंदे..उसे चारों ओर से उसके बदन के साथ खेल रहे थे…!
हे भगवान ये क्या क्या खेल खेल रहा है तू मेरे साथ.., कब तक और कितना दुख देना चाहता है हमें…मेने मन ही मन उपरवाले से कहा…!
लेकिन उसे तो जैसे मुझसे कोई सरोकार ही नही था.., जीवन देकर जैसे उसने हमारे उपर कोई उपकार किया हो.., और छोड़ दिया हो समाज की दरिंदगी के बीच…!
ठीक है तू यही चाहता है तो यही सही.., मेने उधर से ध्यान हटाकर इधर-उधर नज़र दौड़ाई.., कुछ दूरी पर मुझे एक जंग लगी हुई लोहे की रोड दिखाई पड़ गयी…!
मेने उसे मजबूती से अपने हाथ में पकड़ा.., और पीछे से जाकर एक की खोपड़ी खोल दी.., वो ढंग से चीख भी नही पाया और वहीं ढेर हो गया…!
वाकी बचे तीन लोगों ने जैसे ही देखा कि किसी ने उनके एक साथी को मार डाला है वो वहाँ से भागने लगे, तब तक मेने उनमें से एक और को धर लिया.. मौके का लाभ लेकर वो दो वहाँ भाग लिए…!
उसी रात हमने वो इलाक़ा छोड़ दिया.., दूसरे दिन मे अपनी बेहन को एक जगह छोड़ कर कुछ काम धंधे की तलाश में निकल पड़ा…!
लेकिन महानगरी मुंबई में काम मिलना भी इतना आसान नही है.., सारे दिन भटकने के बाद यौंही खाली पेट भारी कदमों से मे वहीं लौट आया जहाँ मेने चकोर को छोड़ा था…!
लेकिन वहाँ मुझे चकोर नही मिली.., चारों तरफ इधर उधर ढूँढता रहा.., घूम फिर कर फिर वहीं आ जाता कि शायद कहीं इधर उधर गयी होगी.., आ ही जाएगी.., लेकिन उसका कहीं पता नही चला…!
मेरे चलने फिरने की शक्ति भी जबाब दे चुकी थी, आज चौथे दिन भी पेट खाली ही था.., बस किसी नलके से पानी पी लिया जो खाली पेट वो भी लगने लगा था…!
थक कर मे अपने घुटनो में मूह देकर अंदर ही अंदर रोने लगा.., उपर वाले को जी भर भरकर गालियाँ देता रहा…!
तभी किसी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा, मेने बेमन से अपना सिर उठाकर अपने आँसुओं से भरे चेहरे को उठाकर देखा..तो आश्चर्य से मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी…!
मेरे सामने चकोर खड़ी थी.., लेकिन कुछ बदली-बदली सी, साफ सुथरे नये से कपड़े..निखरा हुआ रंग जैसे अभी नहा धोकर आई हो.., लेकिन उसके चेहरे पर पीड़ा साफ-साफ दिखाई दे रही थी…जिसे मे उस वक़्त समझ नही पाया था…!
उसके एक हाथ में एक बड़ा सा बॅग भी था…!
आश्चर्य के साथ बहुत देर तक मे उसे देखता ही रहा., वो अपने होठों को आपस में कसकर दबाते हुए मेरे पास बैठ गयी..ऐसा लगा मानो वो किसी दर्द को पीने की कोशिश कर रही हो…!
मेने उसका हाथ पकड़कर कहा – कहाँ चली गयी थी तू..? पता है मे कितना परेशान हो गया था तुझे यहाँ ना पाकर…!
चकोर – अरे परेशान होने की कोई बात नही है.., ये बता तुझे कोई काम धंधा मिला…?
संजू घोर निराशा में डूबे स्वर में बोला – नही कुछ नही मिला.., कोई हरामजादा सीधे मूह बात तक करने को तैयार नही है काम तो क्या देगा..!
चकोर – मे जानती हूँ यहाँ ऐसा ही होता है.., बिना जान पहचान यहाँ किसी को मज़दूरी भी नही करने देता कोई.., चल छोड़.. ले मे तेरे लिए खाना लाई हूँ, फिर उसने बॅग से खाने का एक पॅकेट निकाला…!
ये तुझे किसने दिया..? मेने उसे सवाल किया तो उसने मेरी बात को टालते हुए कहा – सब बता दूँगी पहले तू खाना खा.., मुझे भी भूख लगी है…!
अब चार दिन का भूखा आदमी और उसके सामने बिरयानी रख दी जाए तो वो बिना कुछ सोचे समझे उसपर टूट ही पड़ेगा, यही हाल मेरा हुआ…!
हालाँकि चकोर भी खाने में मेरा साथ दे रही थी.., लेकिन मे तो खाने पर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़ा था.., मुझे यौं खाते देख उसके खुश्क होठों पर एक फीकी सी मुस्कान आ गयी…!
खा-पीकर मेने उसे फिर वही सवाल किया तो बदले में उसने बॅग से एक जोड़ी कपड़े निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा दिए और मुस्कुरा कर बोली – पहले कहीं नहा धोकर ये कपड़े बदल ले, फिर कहीं अच्छी जगह बैठकर बातें करेंगे…!
मेने बिना कोई सवाल किए उससे कपड़े लिए और पास में ही एक सार्वजनिक शौचालय में जाकर अपने शरीर का मैल धोया, वो कपड़े पहने जो मेरे लगभग फिट ही आए..,
उसके बाद में जब चकोर के पास पहुँचा तो उसके पास एक मोटी सी थोड़ी साँवले रंग की एक महिला खड़ी मिली.., जिसके दाँत हमेशा पान खाते रहने से लाल-पीले हो रहे थे…!
मुझे देखते ही चकोर बोली – भैया ये शन्नो ताई हैं, इन्होने ही मुझे एक जगह काम दिला दिया है.., उसी के अड्वान्स से ये सब लिया है..,
फिर मेरा हाथ पकड़ कर बोली – यही नही पास ही में एक खोली भी किराए पर दिला दी है, जिसमें हम दोनो आराम से रह सकते हैं.., चल आजा…!
मे निठल्ला जवान आदमी, शर्म के मारे उस बेचारी से ये भी नही पुछ सका कि आख़िर इतनी जल्दी उसे क्या काम मिल गया और वो भी अड्वान्स के साथ..?
खैर रहने को छत पाकर, खाना खाकर में कुछ समय के लिए सब कुछ भूल गया.., कई दिनो बाद भरपेट खाना मिलने से बहुत गहरी नींद आई उस रात...!
दूसरे दिन मे फिर अपने लिए काम ढूँढ ने निकल पड़ा लेकिन सारे दिन भटकने के बाद नतीजा वही धक के तीन पात, शाम को चकोर फिर खाने का पॅकेट लेकर आई..
जिसे खापीकर हारा थका मे फिर गहरी नींद में सो गया…! इसी तरह दिन निकलते रहे मे भटकता रहा, चकोर खाने पीने का इंतज़ाम करती रही…!
मेरे दिमाग़ में ये कभी-कभी ये सोचकर बड़ी कोफ़्त होती जा रही थी कि देखो मे मुस्टंडा सा खाली बैठा हूँ, मेरी बेहन कमाने जाती है..,
एक दो बार मेने शन्नो ताई को भी बोला कि वो मेरे लिए भी कोई काम धंधा बताए.., लेकिन वो टाल-म-टोल करती रही, तरह तरह के बहाने बनाती रही…!
मे अब अपने आप को दुनिया का सबसे निठल्ला और मजबूर इंसान समझने लगा.., जिस भाई को अपनी छोटी बेहन के हाथ पीले करने की चिंता होनी चाहिए वही भाई अपनी बेहन के रहमो-करम पे जिंदा था..,
उसकी कमाई खा रहा था.., जो ना जाने कैसे-कैसे करके क्या क्या करके चार पैसे कमाती थी.., इसी कोफ़्त में आकर मेरी ठलुआ का नतीजा ये हुआ कि मे अपने जैसे ही दूसरे फालतू लोगों के साथ उठने बैठने लगा..,
नशे पत्ते करने लगा…!
नशे की लत ने मुझे अब ये भी सोचने से रोक दिया कि मुझे कुछ करना चाहिए.., दिन, महीने, साल इसी तरह गुजर गये.., एक दिन छकोर बीमार पड़ गयी..,
एक खैराती हॉस्पिटल में शन्नो ने ही उसे भरती करा दिया, काफ़ी इलाज हुआ लेकिन वो ठीक नही हुई.., एक दिन मेरे अंदर के भाई ने डॉक्टर से पुछ ही लिया कि आख़िर मेरी बेहन को बीमारी क्या है…!
डॉक्टर का जबाब सुनकर तो जैसे मेरे अंदर की इंसानियत भी जैसे मर गयी.., अपने नकारापन से मेने अपनी प्यारी बेहन को नरक की आग में झोंक दिया था…!
उसे एचआइबी का घातक रोग लग गया था.., यहाँ आकर जो पहला नीवाला मेने खाया था वो उसने अपना शरीर बेचकर मुझे दिया था…!
लेकिन नशे की लत ने मुझे इतना बेगैरत कर डाला था, मे कुछ करने लायक नही था सो उसी खैराती हॉस्पिटल में उसे मरने को छोड़ दिया…!
लेकिन उस दिन के बाद मेरी अंतरआत्मा ने मुझे चैन से जीने नही दिया, लाख सिर पटकने पर में चार पैसे जुटाने में नाकाम रहा.., मेरी नाकामियों का ख़ामियाजा मेरी बेहन उठा रही थी..,
चार पैसे जुटाने की धुन में मेने एक जगह चोरी करने की कोशिश की लेकिन हाए रे मेरी फूटी किस्मेत, पहली बार में ही धर लिया गया…!
6 महीने की सज़ा हुई, जिसे काट कर जब बाहर आया तो मेरी बेहन, मेरी
प्यारी बेहन मुझे छोड़कर जा चुकी थी.., जिसकी मौत का मे खुद ज़िम्मेदार था..,
इतना कहते कहते संजू फुट-फूटकर रोने लगा.., अपनी हिचकियों पर काबू करते हुए आगे बोला – अब तुम ही बताओ दोस्त, इस दुनिया में मेरे लिए बचा ही क्या जिसके लिए मे जी सकूँ..!
मेने अपनी जिंदगी को ख़तम करने का फ़ैसला ले लिया और यहाँ चला आया.., लेकिन वाह री मेरी किस्मेत.., तुमने मुझे वो भी नही करने दिया…!
युसुफ उसे शान्त्वना देते हुए बोला – मेने मैथ में एक फ़ॉर्मूला पढ़ा था..(-)+(-) = + हो जाता है.., मेरी बदनसीबी जब तुम्हारी बदनसीबी के साथ जुड़ जाएगी तो हो सकता है हम दोनो की बदनसीबी दूर हो जाए…!
संजू अपने आँसू पोन्छ्ते हुए बोला – मेरे पास तो अब कुछ है नही खोने या पाने को, अगर मेरा जीवन तुम्हारे ही कुछ काम आए तो भी मे अपने आप को धन्य समझूंगा.., आज से जैसा तुम कहोगे मे वैसा ही करूँगा…!
दोनो को अपनी अपनी आप-बीती आपस में शेर करते-करते काफ़ी वक़्त निकल गया था.., वातावरण में अंधेरा छा चुका था..,
वो दोनो नये-नये बदनसीब दोस्त वहाँ से एक दूसरे का हाथ थामकर चल पड़े अपनी अंजान मंज़िल की तरफ जिसका कोई पता नही था कि वो कहाँ मिलेगी…!
युसुफ के पास कुछ पैसे थे जो उसने कुछ कबाड़ इकट्ठा करके कमाए थे, उससे उन दोनो ने पेट की भूख शांत की, उसके बाद उन दोनो ने डिसाइड किया कि अब जो भी हो आगे वो और कुरबत की जिंदगी नही जीएँगे…!
युसुफ ने सही ही कहा था कि (-)+(-) = + होता है.., उसी रात उन्होने एक दुकान का ताला तोड़ा.., और अच्छी ख़ासी रकम उनके हाथ लगी…!
दूसरे ही दिन एक अच्छी सी खोली किराए पर ली, और दोनो दोस्त एक नयी राह पर चलने लगे.., संजू जहाँ मरने मारने से नही डरता था, वहीं युसुफ अपनी बुद्धि और विवेक से काम निकाल लेता था…!
देखते ही देखते कुछ ही महीनों में उस इलाक़े में उनकी धाक जमने लगी.., संजू की दिलेरी से छोटे बड़े गुंडे दहशत खाने लगे,
वो ज़रा ज़रा सी बात पर ही बिना अंजाम की परवाह किए हाथ छोड़ देता था, यहाँ तक कि एक दो को उसने चाकू से घायल भी कर डाला और खुद भी हुआ….!
संजू शिंदे के पास तो कुछ पाने या खोने के लिए था ही नही लेकिन युसुफ का अपना भरा पूरा परिवार था जिसे वो गाओं छोड़ आया था, उसे ये भी नही पता था कि अब वो लोग किस हालत में होंगे…!
उसे उनकी ज़िंदगियाँ संवारने के लिए धन की ज़रूरत थी, जो इन छोटे-मोटे चोरी चकोरी से पूरा पड़ने वाला नही था..,
वो दिन रात किसी लंबे हाथ मारने की फिराक में लगा रहता था.., जिसका जिकर वो कई मरतवा संजू से भी कर चुका था.., लेकिन संजू के मुतविक वो जो बोलेगा वो करने को तैयार था…!
उसके पास अकूत शक्ति थी, दिलेरी थी, कुछ नही था तो बस पैसे कमाने के लिए दिमाग़.., जिसकी कमी की वजह से वो अपनी जान से प्यारी बेहन को भी खो चुका था…!
एक दिन मरीना बीच के पत्थरों पर बैठे वो दोनो इसी बारे में विचार विमर्श कर रहे थे कि किस तरह से एक लंबा हाथ मारा जाए जिससे उनकी धन की ज़रूरत पूरी हो सके…!
जब किसी ठोस नतीजे पर ना पहुँच सके तो थक कर वो दोनो वहाँ से जाने के लिए उठ खड़े हुए,
चलने के लिए जैसे ही मुड़े की सामने एक निहायत ही खूबसूरत औरत को देख कर वो दोनो अपनी जगह पर जाम होकर रह गये…!!!
28-30 साल की बेहद खूबसूरत औरत को अपने सामने देख कर वो दोनो तगे से खड़े उसके सौन्दर्य में खो गये…!
गोरे चिट्टे पैरों में चमकीले फॅन्सी सॅंडल, ब्राउन लोंग स्कर्ट जो उसकी पिन्डलियो को बखूबी ढके हुए.., लेकिन उसके उपर तो मानो कयामत का साम्राज्य फैला हुआ था…!
उसकी 32 की कमर तक स्कर्ट के बाद उपर वो एकदम फक्क सफेद झीना सा टॉप पहने थी जिससे उसकी काले रंग की ब्रा साफ-साफ दिखाई दे रही थी…,
कसे हुए टॉप में क़ैद उसकी 34 की कसी हुई ठोस गोलाईयों पर उन दोनो की नज़र जम कर रह गयी…, टॉप का गला इतना चौड़ा की उसकी ब्रा की स्ट्रीप कंधों के उपर दिख रही थी…!
ब्रा के स्ट्रीप उस चमकीले टॉप के बाहर दिख रहे थे…, सामने उसकी गोरी गोरी गोलाईयों के बीच की गहरी दरार देख कर किसी का भी मन उन्हें मसलने का हो जाए…!
यहाँ तक का सफ़र तय करने के बाद उन दोनो की नज़र जैसे ही उसके चेहरे पर पड़ी.., मन ही मन वो उसकी प्रशन्शा किए बिना नही रह सके…!
एकदम गोरी रंगत, मानो वो कोई विदेशी महिला उनके सामने खड़ी हो.., गोल-गोल चेहरा.., हल्के फूले हुए गाल, लाली लिए हुए..,
पतले पतले होठों पर सुर्ख लाली, सुतवान नाक, कम्मान समान भवें के नीचे काले स्याह गॉग्ल्स से धकि उसकी आँखें.., सुनहरे कंधे तक के बाल, जो आयेज से एक बेहद चहमकीले ब्राउन कलर के स्कार्फ से ढके हुए थे…!
दोनो ही उसे देखते ही रह गये.., नज़र उसके रूप लावण्य से हटने का नाम ही नही ले रही थी.., जब बहुत देर तक भी उनकी नीयत उसे देखने से नही भरी..
चुटकी बजकर उस युवती ने उन दोनो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया – कहाँ खो गये युसुफ मियाँ.., संजू शिंदे…??? क्या कोई सुन्दर औरत पहले कभी नही देखी..??
अब तक तो वो बेचारे दोनो उस अप्सरा जैसी खूबसूरत औरत के रूप जाल में ही खोए हुए थे लेकिन अब उसके मूह से अपने अपने नाम सुनकर तो वो दोनो अपनी अपनी जगह पर उच्छल ही पड़े…!
उन दोनो की हालत पर वो मेनका मंद-मंद मुस्करा रही थी.., उनकी हालत का मज़ा उठाते हुए वो बोली – ऐसे क्यों चोंक रहे हो.., मुझे तो तुम दोनो की पूरी कुंडली पता है..,
क्यों युसुफ मियाँ, धन कमाने के लिए परेशान हो.., अपने घरवालों को सुख सुविधा देना चाहते हो…, क्यों मे सही कह रही हूँ ना…?
युसुफ हक्का बक्का अभी भी उसे इस तरह से देख रहा था मानो उसके सामने औरत का रूप लेकर कोई अजूबा खड़ा हो.., बड़ी मुश्किल से अपनी इस हालत पर काबू करते हुए वो बस इतना ही बोल पाया – हां…लेकिन…!
उसकी बात बीच में ही काट’ते हुए वो बोली – लेकिन वेकीन के चक्कर में मत पडो.., ये बताओ, पैसा कमाने के लिए क्या क्या कर सकते हो…?
अब तक शांत खड़ा संजू बोला – ओ मेडम जी.., पहले तो आप अपने बारे में बताओ.., कॉन हो और हम लोगों के बारे में इतना सब कैसे जानती हो…?
संजू की बात पर चुटकी लेते हुए वो हसीना बोली – अरे वाह.. संजू, तुम्हरे मूह में भी ज़ुबान है.., मे तो सोच रही थी कि बोलने का काम बस युसुफ मियाँ का ही है….!
चलो तुम पुछ्ते हो तो अपने बारे में भी बता देती हूँ.. मेरा नाम लीना फेरनडीज़ है.., अपने काम के बारे में मे यहाँ कुछ नही बता सकती…!
रही बात तुम लोगों के बारे में इतनी जानकारी कैसे है.., तो उसी दिन से मेरी नज़र तुम दोनो पर है जब तुम दोनो जुहू बीच पर एक दूसरे को पहली बार मिले थे.., जब उसूफ मियाँ ने तुम्हारी जान बचाई थी…!
अब मे आती हूँ असल मुद्दे पर, अगर तुम लोगों को पैसा कमाना है तो ये लो मेरा कार्ड.., कल दोपहर के बाद आकर मुझसे इस पते पर मिलो…!
युसुफ ने आगे बढ़कर उसके हाथ से कार्ड लिया.., हां इस दौरान वो उसके हाथ को टच करने का लालच नही छोड़ पाया…!
उसकी इस हरकत पर लीना नाम की वो हसीना उसके चेहरे पर नज़र डालकर मुस्कराती हुई पलट कर एक तरफ को बढ़ गयी…!
पीछे वो दोनो हतप्रभ खड़े उसकी थिरकति गान्ड को तब तक निहारते रहे जब तक की वो उनकी आँखों से ओझल नही हो गयी…!
……………………………………………………………………………………..
बड़ा ही कड़क माल है यार…, उसके ओझल होते ही संजू के मूह से निकले इस शब्द ने युसुफ की तंद्रा भंग की..,
एक लंबी सी साँस लेकर उसने अपने उस हाथ को चूमा जिसने उसके हाथ को टच किया था और वो बोला – सही कहा तुमने..
लेकिन साली को हमसे क्या काम लेना है जो इतने दिनो से हमारे पीछे लगी हम लोगों के बारे में तहकीकात कर रही है…, कुछ तो गड़बड़ है भाई…?
संजू ने उसका हाथ थामा और उसे खींचते हुए बोला – हमें क्या लेना देना साली से.., होगी कोई..चलो चल कर कुछ खाते-पीते हैं.., भूख लग रही है..!
युसुफ – हां चलो…, लेकिन देखना तो पड़ेगा कि आख़िर ये चीज़ क्या है.., और हम लोगों से कॉन्सा काम लेने वाली है..?
वो चलते चलते पास के ही एक सस्ते से होटेल कम बार में घुस गये.., कुछ सस्ती सी विस्की ऑर्डर की और बैठकर पीने लगे…!
एक-एक पेग लेने के बाद संजू बोला – मेरे ख्याल से हमें इस औरत को अपने दिमाग़ से निकाल देना चाहिए..,
ये सुनहरी नागिन ना जाने कैसा काम हमसे निकलवाना चाहती है…?
अपना काम निकाल कर रफूचक्कर हो जाए और हम लोग पोलीस के लफडे में फँस जाएँ…!
युसुफ – एक औरत से ही डर गया मेरा शेर…? अरे यार देखें तो सही इसमें हमारा कितना फ़ायदा होने वाला है.., क्या पता इसका साथ देने से हमारे भी बारे न्यारे हो जायें…!
संजू – डरता कॉन साला है..वो भी एक मामूली सी औरत से.., मुझे तो बस औरत जात से नफ़रत सी हो चुकी है..,
एक औरत की वजह से ही मेरी बेहन उस दलदल में फँस गयी.., तबसे मुझे किसी भी औरत पर भरोसा नही रहा…,
बातों के चलते वो दो-दो पेग और पी चुके थे.., ये उनका अब रोज़ का ही काम हो गया था.., नशा अपना असर दिखाने लगा था..!
युसुफ ने संजू को चढ़ाते हुए कहा – अरे यार संजू.., वैसे भी हम कोन्से करोड़पति हैं जो वो हमारा कुछ ले लेगी.., कुछ नही मिला तो मौका देख कर साली को मिलकर चोद डालेंगे…!
संजू को भी नशे में उसकी कड़क जवानी नज़र आने लगी थी.., वो थोडा झूमते हुए बोला – ये सही कहा युसुफ भाई तुमने.., पैसे वैसे गये तेल लेने.., साली की कड़क जवानी का मज़ा तो ले ही लेंगे.. बहुत कड़क है भेन्चोद…!
वैसे मेने आज तक किसी औरत को नही चोदा है.. लेकिन इसे देखकर मेरा ये नियम भंग करने का मन करने लगा है….!
मे तो बस एक बार उसकी मस्त मटकती गान्ड को खूब मसल-मसलकर जमकर चोदना चाहता हूँ.., उसकी उस चिकनी गोल-मटोल गान्ड में लंड डालकर हिलाना चाहता हूँ..झूमते हुए युसुफ ने कहा…उसके बाद भले ही उसकी गान्ड पे लात मारकर अपने रास्ते निकल लेंगे…क्या बोलता है…!
डन ! ये कहकर संजू और युसुफ ने एक दूसरे को हाई-फ़ाई किया.., एक-एक पेग और गटकने के बाद उन्होने जमकर खाना खाया और कल उस सुंदरी से मिलने का प्लान तय करके वो दोनो अपनी खोली की तरफ चल दिए….!
दूसरे दिन सुबह से ही वो दोनो लीना से मिलने की तैयारीओं में जुट गये.., उन्होने रात में ही अपने लिए अच्छे अच्छे कपड़े खरीद लिए थे…!
नहा धोकर एक सस्ता सा सेंट वेंट लगाकर नये कपड़े पहने.., संजू ने अपना रामपुरी शॉक्स में लगाया और तय सुदा समय पर वो दोनो उससे मिलने को चल दिए…!
कार्ड पर दिए गये पते पर पहुँचकर उन्होने अपने सामने एक फ्लॅट के बंद दरवाजे की बेल बजाई…!
अंदर कहीं चिड़ियाँ सी चह-चहाईं.., कोई दो मिनट के इंतेजार के बाद दरवाजा खुला…, और उसी के साथ साथ सामने का दृश्य देख कर उन दोनो के मूह भी खुले रह गये……!
दरवाजे के बीचो-बीच लीना खड़ी थी, इस समय वो बिना किसी मेक-अप के थी.., लेकिन फिर भी उसकी सुंदरता में कोई खास कमी नही थी.., उपर से उसके कपड़े….,
हाईए…देखना इन दोनो में से किसी का खड़े खड़े ही पानी ना निकल जाए…!
निहायत ही छोटा सा शॉर्ट, जो मुश्किल से उसके उभरे हुए चुतड़ों को ढक पा रहा था.., इतना टाइट कि आगे से उसकी चूत की मोटी-मोटी फाँकें साफ-साफ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही थी…!
उनके बीच की दरार…उउउफफफ्फ़…, युसुफ की देख कर हालत ही खराब होने लगी, उसके मूह में उसकी उन फांकों को चाटने के ख्याल से ही पानी भर आया…!
कमर में इतना नीचे बँधा था कि अगर उसकी चूत पर बाल होते तो शर्तिया उपर से दिखाई देते…!
और उसका टॉप…, मासा-अल्लाह.., उसके वक्षों को बा मुश्किल धक पा रहा था.., नीचे से इतना लूस, ऐसा लग रहा था, मानो उसे किन्ही दो खूँटियों के उपर ऐसे ही टाँग रखा हो…!
अगर कोई बैठकर झाँकने लगे तो उसकी ब्रा समेत चुचियों का पूरा जेओगराफिया पता कर सकता था…!
यही नही उपर उसका इतना चौड़ा गला कि उसकी पिंक ब्रा आधी तक दिख रही थी, उसके पुष्ट उरोजो की गहरी खाई देख कर वो दोनो पलक झपकाना ही भूल गये…!
टॉप के ढीले होने की वजह से उसका एक तरफ का शोल्डर बिल्कुल नंगा था, जिससे उसकी ब्रा की स्ट्रीप अलग ही दिख रही थी..,
कंधे तक के खुले रेशमी बालों के बीच उसका चाँद सा मुखड़ा जिस पर इस समय शरारत से भरपूर मुस्कराहट विद्यमान थी…!
अपनी नशीली आँखों से उन दोनो को घूरते हुए बोली - वेल कम दोस्तो.., मेरे घर में तुम दोनो का स्वागत है.., आओ..अंदर आओ.. इन शब्दों के साथ ही वो अपनी जगह पर पलट गयी.., !
उफफफ्फ़…क्या कयामत है याररर.., लगता है आज तो पानी निकल्वाकर ही रहेगी ये…, पीछे से उसके शॉर्ट का और ही बुरा हाल था.., इतना नीचा कि उसके कुल्हों की गोलाईयों की ढलान बिल्कुल साफ दिखाई दे रही थी..,
उसकी माइक्रो पैंटी की डोरी जो कमर के बंद से होती हुई उसकी गान्ड की दरार में घुसी पड़ी थी.., पीछे से साफ दिख रही थी कि वो अंदर किस जगह और कितनी सुरक्षित होगी…!
अपने गोल-गोल नितंबों को मटकाते हुए वो उन दोनो के आगे-आगे चल रही थी.., उसके पीछे आहें भरते हुए वो दोनो किसी चाबी लगे खिलौनों की तरह उसकी मटकती गान्ड के मज़े लेते हुए पॅंट में अपने-अपने लंड अड्जस्ट करते हुए चल पड़े…!
एक छोटी सी लॉबी पार करके वो एक हॉल नुमा कमरे में पहुँची जहाँ एक लोंग सोफा, दो चेर और एक सेंटर टेबल पड़ी हुई थी…!
सामने एक बेहद सुसज्जित शो केस में एक 44” का टीवी था जिस पर इस समय कोई हॉलीवुड मूवी चल रही थी..,
कुल मिलकर लीना यहाँ ऐश की जिंदगी बसर कर रही थी.., जिसके श्रोत का उन्हें अभी कुछ पता नही था…!
उसने लोंग सोफे की तरफ इशारा करके उन दोनो को बैठने के लिए कहा और खुद एक चेयर पर बैठ गयी.., जो सेंटर टेबल के उस पार ठीक उनके सामने थी…!
बैठते हुए जानबूझकर उसने अपनी संगेमरमर जैसी चिकनी गोल मांसल जांघों के बीच गॅप बना रखा था जिसमें से उसकी चूत की मोटी-मोटी फाँकें उभरी हुई साफ-साफ नुमाया हो रही थी…!
बैठने के बाद उसका टाइट शॉर्ट उस जगह पर और ज़्यादा टाइट हो गया.., जिससे उसका मुलायम सॉफ्ट कपड़ा दोनो फांकों के बीच की दरार में धँस गया..,
कुल मिलाकर कपड़े के बबजूद उन दोनो को उसकी ढाई-तीन इंच लंबी चूत की शेप क्लियर दिखाई दे रही थी…!
उन दोनो का ध्यान अपनी जन्नत पर पाकर वो मन ही मन खुश हो रही थी.., उसे पता था कि किसी भी मर्द से काम निकलवाने का कॉन्सा सटीक तरीक़ा होता है…!
अपने चहरे पर स्माइल लाकर वो बोली – तुम दोनो को यहाँ तक पहुँचने में कोई तकलीफ़ तो नही हुई…?
उसकी आवाज़ सुनकर उन दोनो ने एक साथ झटके से अपने सिर उठाए.., एक साथ ही उनके मूह से निकला…ज.ज्ज..जीए…कोई खास नही..,
लीना – तो बताओ क्या लेना पसंद करोगे.., कुछ ठंडा.., गरम…?
एक बार उसके चेहरे पर नज़र डालकर उन दोनो की नज़रें झिजक के कारण फिर झुक गयी.., नज़र झुकाए हुए ही युसुफ ने कहा – जी मेडम जी, जो आप पिलाना चाहें...!
लीना – नही.. तुम लोग मेरे मेहमान हो, और मेहमान की इच्छा जानकार ही मेहमान नवाज़ी होती है.., बोलो क्या लोगे..?
युसुफ थोड़ी हिम्मत जुटाकर बोला – इक्च्छा तो हमारी कुछ और ही पीने की है, लेकिन आप पिलाएँगी नही…!
लीना – ऐसा क्यों सोचते हो..बोलो तो सही क्या पीना चाहते हो.., मेरे पास हर तरह की ब्रांड मिलेगी तुम्हें.., बिंदास कहो, क्या चाहिए तुम्हें..?
युसुफ भी पक्का खिलाड़ी था, वो थोड़ा धिठाई के साथ बोला – जो हम पीना चाहते हैं, वो तो आपके पास है, और आप इतनी दूर बैठी हैं… तो फिर..कैसे…???
लीना भी पूरी खेली खाई थी.., वो युसुफ की बात का मतलब अच्छे से समझ रही थी.., लेकिन बजाय गुस्सा दिखाने के उसने अपनी एक जाँघ उठाकर दूसरी के उपर रखते हुए कहा –
बड़े उस्ताद हो युसुफ मियाँ.., उंगली पकड़ने की बजाय सीधा हाथ ही थामना चाहते हो.., अभी तो चाय से काम चला लो.., उसके लिए तुम लोगों को थोड़ा इम्तिहान देना पड़ेगा..
मोटी-मोटी गुदाज जांघों के बीच दबाब पड़ने से उसका योनि प्रदेश कुछ और ज़्यादा ही फूल गया.., उस पर नज़र गढ़ाते हुए युसुफ बोला…
उसके लिए हम किसी भी इम्तिहान से गुजरने को तैयार हैं.., बोलो क्या करना होगा…!
उसकी बात पर मन ही मन मुस्काराकार लीना ने अपनी मैड को आवाज़ दी…लूसी ज़रा दो चाय लाना, साथ में कुछ स्नेक्क्स भी…!
चाय पीते हुए लीना ने कहा – मे तुम लोगों को दो पॅकेट दूँगी, जिन्हें तुम्हें हिना बार &क्लब के मालिक अब्बास अली को उसके ठिकाने पर पहुँचना है और उससे 10 लाख लेकर आने हैं…!
संयत होकर उस व्यक्ति ने उस युवक से पुछा.., कॉन हो तुम और ये शूसाइड क्यों करना चाहते थे…?
युवक – मेरी छोड़ो.., तुम बताओ, तुम कॉन हो और यहाँ क्या कर रहे थे, शुक्र है भगवान का वरना मेरी वजह से मौत के ग्रास बन जाते…?
व्यक्ति – मेरा नाम युसुफ है, यूपी के एक छोटे से गाओं का रहने वाला हूँ, गाँव में मेरे बूढ़े अम्मी-अब्बू, 4 बहनें जिनमें से एक का ही निकाह हो पाया है अब तक.., वहाँ बड़ी कुरबत की जिंदगी जी रहे हैं…!
मेने सोचा यहाँ मुंबई में आकर कुछ काम धाम करके घर पैसे भेजूँगा.., दो महीने हो गये लेकिन कोई काम नही मिला…!
हालात ये हैं कि जब किसी * के पास काम माँगने जाता हूँ, तो ,., नाम सुनकर काम देने को तैयार नही है.., और * खुद ही इतने हैं कि उनके पास खुद कोई करने को काम नही है…!
जैसे तैसे कुछ मेहनत मज़दूरी करके अपना पेट भरने का जुगाड़ करने लगा.., लेकिन इतना नही कि घर कुछ भेज सकूँ..!
थक कर चोरी चकोरी करने की ट्राइ किया लेकिन अब तक कोई बड़ा हाथ नही मार पाया, उपर से पकड़े जाने का ख़तरा हर समय मंडराता रहता है.., बस किसी तरह से दिन कट जाता है…!
कभी-कभी तो भूखे पेट ही सोना पड़ जाता है, कभी-कभी सोचता हूँ कि बेकार ही यहाँ आया.., इससे अच्छा तो अपने गाओं में ही रहकर किसी के यहाँ खेत मज़दूरी कर लेता…!
भटकते हुए इधर निकल आया, समंदर की लहरों को देखकर यही सब सोच रहा था कि ना जाने मेरे परिवार का क्या हो रहा होगा.., बस इतनी सी कहानी है मेरी..,
अब तुम बताओ कुछ अपने बारे में.., लगता है.. तुम मुझसे भी ज़्यादा मुसीबत के मारे हो जो इतना बड़ा कदम उठा बैठे…!
वो युवक कुछ देर तक यूँही बैठा रहा.., युसुफ ने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा.., युवक ने उसकी तरफ सूनी-सूनी निगाहों से देखा फिर अनायास ही उसकी आँखें नम हो गयी…!
युसुफ ने उसका कंधा थप-थपाकर कहा – बोलो दोस्त जो भी तुम्हारे दिल में है.., सुना है दुख बाँटने से कम हो जाते हैं…!
युवक – क्या बताउ दोस्त.., मेरी कहानी भी तुमसे कुछ हटके नही है.., और फिर मेरे दुख ऐसे हैं जो कम होने वाले नही हैं.. बस बढ़ते ही रहेंगे…!
अब तो दुखों के साथ साथ मेरा आत्म सम्मान भी इतना घायल हो चुका है.., कि जब भी उनसे टीस उठती है सहना मुश्किल हो जाता है…!
दिल के घाव दिनो-दिन नासूर बनते जा रहे हैं.., अपना सब कुछ खो चुका हूँ, सहन शक्ति जबाब दे चुकी है इसलिए मे अब अपनी जिंदगी ख़तम करने का फ़ैसला करके ही यहाँ आया था…!
लेकिन मेरी फूटी किस्मत, यहाँ भी तुमने मुझे बचा लिया..मरने भी नही दिया मुझे..,
युसुफ – आत्महत्या कायरता है दोस्त.., जो किसी समस्या का समाधान नही कर सकती..!
युवक उसकी बात सुनकर रो ही पड़ा और उसके गले से लिपटकर फफकते हुए बोला – मे कायर ही तो हूँ दोस्त.., समस्याओं से लड़ते-लड़ते थक चुका हूँ.., समाधान कहीं हो तो दिखे…?
युसुफ – हौसला रखो दोस्त.., हो सकता है हम दोनो मिलकर अपनी-अपनी समस्याओं का कोई हल निकाल सकें…!
युवक – तुम जाओ यहाँ से…मुझे अकेला छोड़ दो भाई.., कहीं ऐसा ना हो कि मेरी फूटी किस्मत की परच्छाई तुम्हारी समस्या और बढ़ा दे..,
युसुफ – मेरे सामने समस्याओ का पूरा पहाड़ खड़ा है.., तुम्हारी वजह से थोड़ी और बढ़ जायें तो भी क्या फरक पड़ने वाला है.., हां ये भी हो सकता है कि हम दोनो मिल बैठ कर कोई हल निकाल सकें…!
अब रोना छोड़ो.., और अपने बारे में बताओ…!
युवक कुछ देर के लिए शांत रहा फिर एक लंबी साँस छोड़कर बोला – ठीक है, अगर मेरे बारे में जान’ना ही चाहते हो तो सुनो….!
मेरा नाम संजू शिंदे है.., विदर्भ के एक छोटे से गाओं का रहने वाला हूँ.., मेरे पिता एक ग़रीब किसान थे.., बड़ी मुश्किल से साल भर की रोटी का जुगाड़ कर पाते थे..!
थोड़ा बहुत बचता था उसे गाओं का साहूकार कभी पिताजी द्वारा लिए गये कर्जे के सूद के तौर पर ले जाता था…!
परिवार में मेरे माँ-बाप के अलावा मे सबसे बड़ा, एक बेहन और उससे छोटा एक भाई था..,
जब मे 10थ में पढ़ता था तभी कुपोषण के शिकार अधिक मेहनत की वजह से मेरे पिता का देहांत हो गया.., घर की सारी ज़िम्मेदारी मेरी माँ पर आगयि…!
मेरी माँ उस वक़्त 32-33 साल की थी, दिखने में वो ठीक-ठाक ही लगती थी.., मेहनत के कारण उनका बदन एकदम कसा हुआ था.., खेतों में काम करने के बावजूद भी उनका रंग साफ ही था…!
गाओं के लोग अक्सर उनको ग़लत नज़र से ही ताड़ते थे.., हमेशा ही हमारी ग़रीबी का फ़ायदा उठाने के चक्कर में ही रहते थे…!
अपनी इज़्ज़त बचाने के साथ साथ माँ को दो वक़्त की रोटी भी जुटानी थी.., सो उन्होने मेरी आगे की पढ़ाई छुड़वा दी और मे उनके साथ खेतों में काम करके घर की परिस्थितियों से लड़ने में उनकी मदद करने लगा…!
ऐसे ही हालातों से लड़ते लड़ते किसी तरह हमने 5 साल निकाल दिए.., मेरी बेहन और छोटा भाई भी काम में हाथ बंटाने लगे.., नतीजा अब हमारी स्थिति पहले से सुधरने लगी…!
हमें लगने लगा कि अब हम अपने दुखों से छुटकारा पाते जा रहे हैं.., मेरी बहन अब जवान हो रही थी.., सोचा कुछ दिनो में कोई अच्छा सा घर देख कर उसकी शादी कर देंगे…!
छोटे भाई को खूब पढ़ा लिखा कर शहर भेज देंगे किसी अच्छी सी नौकरी के लिए.., लेकिन कहते हैं कि आदमी की सोचों से कई गुना तेज उसका वक़्त चलता है…!
मे अब 22-23 साल का हॅटा-कट्टा जवान हो चुका था, खूब मेहनत करता और भर पेट ख़ाता.., वाकी और कुछ सोचने विचारने का समय ही नही था मेरे पास…!
मे एक दिन खेती के लिए पास के कस्बे से बीज़ और खाद लेने गया हुआ था अपनी बैल गाड़ी लेकर…!
पीछे से गाओं के दबंग लोग जिनमें से एक दो मेरे हाथों मार भी खा चुके थे मेरी माँ और बेहन को छेड़ने के कारण.., वो लाला के साथ बासूली के बहाने आ गये…!
जब मेरी माँ ने कहा कि लाला जी.. हम तो आपका पूरा हिसाब कर चुके हैं.., तो उसने झूठे बही खाते दिखाकर पहले तो पैसों का दबाब डाला..,
फिर जब माँ ने कहा- ठीक है मे शाम को संजू को भेजती हूँ हिसाब करने तो वो लोग अभी के अभी चुकता करने पर अड़ गये..,
बसूली तो एक बहाना था, उसकी आड़ में वो लोग मेरी माँ के साथ बदतमीज़ी करने लगे..,
मेरी बेहन और छोटा भाई भी था उन्होने विरोध करना चाहा तो उन्होने मेरे भाई – बेहन को मजबूती से जकड लिया ..
और उनकी आँखों के सामने ही मेरी माँ को मादरजात नंगा कर दिया.., यही नही वो हरम्जादे बारी-बारी से मेरी माँ के साथ बलात्कार करते रहे..!
उनमें से जिन्होने मेरी बेहन को जकड़ा हुआ था उन्होने उसके साथ भी छेड़खानी शुरू करदी.., लेकिन उसने एक आदमी जो उसे मजबूती से पकड़े हुए था उसकी कलाई काट खाई…!
बिल-बिलाकर उसने उसे जैसे ही उसे छोड़ा वो वहाँ से जान बचाकर भाग निकली…!
मे समान गाड़ी में लाद कर घर की तरफ ही आ रहा था कि मुझे अपनी तरफ बेत-हासा भागती हुई मेरी बेहन चकोर दिखाई दी…!
पास पहुँच कर मेने जैसे ही गाड़ी खड़ी की, वो भागकर मेरे सीने से लिपट कर रोने लगी.., मेरे पुछ्ने पर उसने रोते-रोते सारी बातें बताई.., जिन्हें सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी..,
मेने उसे गाड़ी में बिठाया और बेचारे बैलों पर डंडे बरसाता हुआ उन्हें दौड़ता हुआ जैसे ही घर के सामने पहुँचा वो हरम्जादे मेरे घर से बाहर निकलते दिखाई दिए…!
मे उनसे उलझने की वजाय अपने घर के अंदर भागा…, लेकिन सामने का भीभत्स नज़ारा देखकर मेरे पैर लड़खड़ा गये.., आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया…!
अंदर मेरा भाई खून से लथपथ मरा पड़ा था.., घर के हालत बता रहे थे कि उसने यथासंभव संघर्ष किया होगा..,
मेरी मादरजात माँ के पेट में भी एक लंबा सा छुरा धंसा हुआ था.., मेरी समझ से वो भी मर चुकी थी..,
कुछ देर अपना सिर पकड़ कर मे सन्नाटे की स्थिति में ही बैठा रहा, फिर जैसे मेने कुछ निश्चय कर लिया था…, उठकर अपनी कुल्हाड़ी ली और घर से बाहर चल दिया…!
तभी मेरे कानों में मेरी माँ की दर्द भरी कराह सुनाई दी.., मेरे पैर ठिठक गये, लपक कर माँ के पास पहुँचा..,
उसका सिर अपनी गोद में रख कर जैसे ही मेने वो छुरा बाहर खींचा, खून का मानो फब्बरा सा उसके पेट से बाहर निकला जिसने मेरे कपड़े भी लाल कर दिए…!
साथ ही माँ की गर्दन भी एक तरफ को लुढ़क गयी.., बहुत देर तक उसके सिर को लेकर फुट-फूटकर रोता रहा.., चकोर भी मेरे पास ही बैठकर रोती रही…!
फिर जैसे कुछ जुनून सा मेरे दिमाग़ पर छाने लगा.., मेरा रोना अप्रत्याशित रूप से थम गया.., मेने अपनी बेहन को चुप कराया.., माँ और भाई की लाश को यौंही लावारिश छोड़..
मेने अपनी कुल्हाड़ी संभाली.., चकोर का हाथ थामा और बिना कुछ लिए दिए उसे लेकर घर से बाहर निकल गया…!
वो बेचारी डरी सहमी उसकी हिम्मत भी नही हुई कि मुझसे कुछ पूछ भी ले.., बस मेरे साथ लगभग घिसटती सी चलने लगी…!
मेने उसे गाओं के बाहर खड़े रहने को कहा और खुद उस हरामी बनिये के घर की तरफ बढ़ गया…!
उस वक़्त मेरा भाग्य अच्छा था जो सारे गुनेहगार उसी के घर में एक साथ मिल गये, जो शायद आगे क्या हो सकता है इस विषय पर बातें कर रहे थे..!
घर में घुसते ही मेने एक तरफ से उन हरांजादों को लकड़ी की तरह काटना शुरू कर दिया.., 6-6 लोगों को एक साथ मार कर खून से सना मे बाहर आया..,
अपनी बेहन को अपने साथ लिया और गाओं की सीमा से दूर और दूर होता चला गया, क्योंकि अब वहाँ रहने का मतलब था अपने आप को जैल में सड़ाना या फाँसी पर झूल जाना…!
उसके बाद मेरी बेहन का क्या होता.., ये मे भली भाँति जानता था.., एक तालाब में जाकर मेने खुद को और अपने कपड़ों को साफ किया और उसी रात
मुंबई की ट्रेन पकड़ कर इस शहर में आ गया…!
अपनी सोच से तो मे अपनी बेहन को गाओं से बचा लाया, लेकिन इस शहर में आते ही मेरे सामने मुशिबतो का पहाड़ खड़ा मिला…!
सिर पर छत नही.., जेब में एक फूटी कौड़ी नही.., खाने को दो दिन से पेट में एक अन्न का दाना तक नही गया था…!
दिनभर भटकने के बाद भी कहीं से कोई आशा की किरण नही मिली जिससे अपनी भूख भी शांत कर सकें…!
तक कर भूख से निढाल हम दोनो एक फूटपाथ पर रात गुजारने को मजबूर, पहने हुए कपड़ों के अलावा जेब में एक रुमाल तक नही..,
लेकिन थकान के कारण तेज नींद ने हमारी सारी समस्याओं का हल कर दिया…!
पता नही कब हमें नींद आ घेरा.., एक बौंड्री वॉल के सहारे पीठ टिकाते ही हमें नींद ने घेर लिया..,
ना जाने वो रात का कॉन्सा प्रहर था जब मेरी नींद एक लड़की की तेज-तेज चीखों के कारण खुल गयी…, बगल में देखा तो मेरी बेहन चकोर वहाँ नही थी…!
मे चीख की दिशा में बेतहासा दौड़ पड़ा.., सड़क से हटकर झाड़ियों के पीछे वो चार लोग चकोर के साथ ज़बरदस्ती कर रहे थे.., उसके कपड़े एक-एक करके उसका बदन छोड़ते जा रहे थे…!
अपने आप को बचाने की वो जी तोड़ कोशिश कर रही थी.., लेकिन कब तक..,
मात्र एक कच्छि में वो अपने नगन शरीर को धान्पने की कोशिश कर रही थी, और वो दरिंदे..उसे चारों ओर से उसके बदन के साथ खेल रहे थे…!
हे भगवान ये क्या क्या खेल खेल रहा है तू मेरे साथ.., कब तक और कितना दुख देना चाहता है हमें…मेने मन ही मन उपरवाले से कहा…!
लेकिन उसे तो जैसे मुझसे कोई सरोकार ही नही था.., जीवन देकर जैसे उसने हमारे उपर कोई उपकार किया हो.., और छोड़ दिया हो समाज की दरिंदगी के बीच…!
ठीक है तू यही चाहता है तो यही सही.., मेने उधर से ध्यान हटाकर इधर-उधर नज़र दौड़ाई.., कुछ दूरी पर मुझे एक जंग लगी हुई लोहे की रोड दिखाई पड़ गयी…!
मेने उसे मजबूती से अपने हाथ में पकड़ा.., और पीछे से जाकर एक की खोपड़ी खोल दी.., वो ढंग से चीख भी नही पाया और वहीं ढेर हो गया…!
वाकी बचे तीन लोगों ने जैसे ही देखा कि किसी ने उनके एक साथी को मार डाला है वो वहाँ से भागने लगे, तब तक मेने उनमें से एक और को धर लिया.. मौके का लाभ लेकर वो दो वहाँ भाग लिए…!
उसी रात हमने वो इलाक़ा छोड़ दिया.., दूसरे दिन मे अपनी बेहन को एक जगह छोड़ कर कुछ काम धंधे की तलाश में निकल पड़ा…!
लेकिन महानगरी मुंबई में काम मिलना भी इतना आसान नही है.., सारे दिन भटकने के बाद यौंही खाली पेट भारी कदमों से मे वहीं लौट आया जहाँ मेने चकोर को छोड़ा था…!
लेकिन वहाँ मुझे चकोर नही मिली.., चारों तरफ इधर उधर ढूँढता रहा.., घूम फिर कर फिर वहीं आ जाता कि शायद कहीं इधर उधर गयी होगी.., आ ही जाएगी.., लेकिन उसका कहीं पता नही चला…!
मेरे चलने फिरने की शक्ति भी जबाब दे चुकी थी, आज चौथे दिन भी पेट खाली ही था.., बस किसी नलके से पानी पी लिया जो खाली पेट वो भी लगने लगा था…!
थक कर मे अपने घुटनो में मूह देकर अंदर ही अंदर रोने लगा.., उपर वाले को जी भर भरकर गालियाँ देता रहा…!
तभी किसी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा, मेने बेमन से अपना सिर उठाकर अपने आँसुओं से भरे चेहरे को उठाकर देखा..तो आश्चर्य से मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी…!
मेरे सामने चकोर खड़ी थी.., लेकिन कुछ बदली-बदली सी, साफ सुथरे नये से कपड़े..निखरा हुआ रंग जैसे अभी नहा धोकर आई हो.., लेकिन उसके चेहरे पर पीड़ा साफ-साफ दिखाई दे रही थी…जिसे मे उस वक़्त समझ नही पाया था…!
उसके एक हाथ में एक बड़ा सा बॅग भी था…!
आश्चर्य के साथ बहुत देर तक मे उसे देखता ही रहा., वो अपने होठों को आपस में कसकर दबाते हुए मेरे पास बैठ गयी..ऐसा लगा मानो वो किसी दर्द को पीने की कोशिश कर रही हो…!
मेने उसका हाथ पकड़कर कहा – कहाँ चली गयी थी तू..? पता है मे कितना परेशान हो गया था तुझे यहाँ ना पाकर…!
चकोर – अरे परेशान होने की कोई बात नही है.., ये बता तुझे कोई काम धंधा मिला…?
संजू घोर निराशा में डूबे स्वर में बोला – नही कुछ नही मिला.., कोई हरामजादा सीधे मूह बात तक करने को तैयार नही है काम तो क्या देगा..!
चकोर – मे जानती हूँ यहाँ ऐसा ही होता है.., बिना जान पहचान यहाँ किसी को मज़दूरी भी नही करने देता कोई.., चल छोड़.. ले मे तेरे लिए खाना लाई हूँ, फिर उसने बॅग से खाने का एक पॅकेट निकाला…!
ये तुझे किसने दिया..? मेने उसे सवाल किया तो उसने मेरी बात को टालते हुए कहा – सब बता दूँगी पहले तू खाना खा.., मुझे भी भूख लगी है…!
अब चार दिन का भूखा आदमी और उसके सामने बिरयानी रख दी जाए तो वो बिना कुछ सोचे समझे उसपर टूट ही पड़ेगा, यही हाल मेरा हुआ…!
हालाँकि चकोर भी खाने में मेरा साथ दे रही थी.., लेकिन मे तो खाने पर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़ा था.., मुझे यौं खाते देख उसके खुश्क होठों पर एक फीकी सी मुस्कान आ गयी…!
खा-पीकर मेने उसे फिर वही सवाल किया तो बदले में उसने बॅग से एक जोड़ी कपड़े निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा दिए और मुस्कुरा कर बोली – पहले कहीं नहा धोकर ये कपड़े बदल ले, फिर कहीं अच्छी जगह बैठकर बातें करेंगे…!
मेने बिना कोई सवाल किए उससे कपड़े लिए और पास में ही एक सार्वजनिक शौचालय में जाकर अपने शरीर का मैल धोया, वो कपड़े पहने जो मेरे लगभग फिट ही आए..,
उसके बाद में जब चकोर के पास पहुँचा तो उसके पास एक मोटी सी थोड़ी साँवले रंग की एक महिला खड़ी मिली.., जिसके दाँत हमेशा पान खाते रहने से लाल-पीले हो रहे थे…!
मुझे देखते ही चकोर बोली – भैया ये शन्नो ताई हैं, इन्होने ही मुझे एक जगह काम दिला दिया है.., उसी के अड्वान्स से ये सब लिया है..,
फिर मेरा हाथ पकड़ कर बोली – यही नही पास ही में एक खोली भी किराए पर दिला दी है, जिसमें हम दोनो आराम से रह सकते हैं.., चल आजा…!
मे निठल्ला जवान आदमी, शर्म के मारे उस बेचारी से ये भी नही पुछ सका कि आख़िर इतनी जल्दी उसे क्या काम मिल गया और वो भी अड्वान्स के साथ..?
खैर रहने को छत पाकर, खाना खाकर में कुछ समय के लिए सब कुछ भूल गया.., कई दिनो बाद भरपेट खाना मिलने से बहुत गहरी नींद आई उस रात...!
दूसरे दिन मे फिर अपने लिए काम ढूँढ ने निकल पड़ा लेकिन सारे दिन भटकने के बाद नतीजा वही धक के तीन पात, शाम को चकोर फिर खाने का पॅकेट लेकर आई..
जिसे खापीकर हारा थका मे फिर गहरी नींद में सो गया…! इसी तरह दिन निकलते रहे मे भटकता रहा, चकोर खाने पीने का इंतज़ाम करती रही…!
मेरे दिमाग़ में ये कभी-कभी ये सोचकर बड़ी कोफ़्त होती जा रही थी कि देखो मे मुस्टंडा सा खाली बैठा हूँ, मेरी बेहन कमाने जाती है..,
एक दो बार मेने शन्नो ताई को भी बोला कि वो मेरे लिए भी कोई काम धंधा बताए.., लेकिन वो टाल-म-टोल करती रही, तरह तरह के बहाने बनाती रही…!
मे अब अपने आप को दुनिया का सबसे निठल्ला और मजबूर इंसान समझने लगा.., जिस भाई को अपनी छोटी बेहन के हाथ पीले करने की चिंता होनी चाहिए वही भाई अपनी बेहन के रहमो-करम पे जिंदा था..,
उसकी कमाई खा रहा था.., जो ना जाने कैसे-कैसे करके क्या क्या करके चार पैसे कमाती थी.., इसी कोफ़्त में आकर मेरी ठलुआ का नतीजा ये हुआ कि मे अपने जैसे ही दूसरे फालतू लोगों के साथ उठने बैठने लगा..,
नशे पत्ते करने लगा…!
नशे की लत ने मुझे अब ये भी सोचने से रोक दिया कि मुझे कुछ करना चाहिए.., दिन, महीने, साल इसी तरह गुजर गये.., एक दिन छकोर बीमार पड़ गयी..,
एक खैराती हॉस्पिटल में शन्नो ने ही उसे भरती करा दिया, काफ़ी इलाज हुआ लेकिन वो ठीक नही हुई.., एक दिन मेरे अंदर के भाई ने डॉक्टर से पुछ ही लिया कि आख़िर मेरी बेहन को बीमारी क्या है…!
डॉक्टर का जबाब सुनकर तो जैसे मेरे अंदर की इंसानियत भी जैसे मर गयी.., अपने नकारापन से मेने अपनी प्यारी बेहन को नरक की आग में झोंक दिया था…!
उसे एचआइबी का घातक रोग लग गया था.., यहाँ आकर जो पहला नीवाला मेने खाया था वो उसने अपना शरीर बेचकर मुझे दिया था…!
लेकिन नशे की लत ने मुझे इतना बेगैरत कर डाला था, मे कुछ करने लायक नही था सो उसी खैराती हॉस्पिटल में उसे मरने को छोड़ दिया…!
लेकिन उस दिन के बाद मेरी अंतरआत्मा ने मुझे चैन से जीने नही दिया, लाख सिर पटकने पर में चार पैसे जुटाने में नाकाम रहा.., मेरी नाकामियों का ख़ामियाजा मेरी बेहन उठा रही थी..,
चार पैसे जुटाने की धुन में मेने एक जगह चोरी करने की कोशिश की लेकिन हाए रे मेरी फूटी किस्मेत, पहली बार में ही धर लिया गया…!
6 महीने की सज़ा हुई, जिसे काट कर जब बाहर आया तो मेरी बेहन, मेरी
प्यारी बेहन मुझे छोड़कर जा चुकी थी.., जिसकी मौत का मे खुद ज़िम्मेदार था..,
इतना कहते कहते संजू फुट-फूटकर रोने लगा.., अपनी हिचकियों पर काबू करते हुए आगे बोला – अब तुम ही बताओ दोस्त, इस दुनिया में मेरे लिए बचा ही क्या जिसके लिए मे जी सकूँ..!
मेने अपनी जिंदगी को ख़तम करने का फ़ैसला ले लिया और यहाँ चला आया.., लेकिन वाह री मेरी किस्मेत.., तुमने मुझे वो भी नही करने दिया…!
युसुफ उसे शान्त्वना देते हुए बोला – मेने मैथ में एक फ़ॉर्मूला पढ़ा था..(-)+(-) = + हो जाता है.., मेरी बदनसीबी जब तुम्हारी बदनसीबी के साथ जुड़ जाएगी तो हो सकता है हम दोनो की बदनसीबी दूर हो जाए…!
संजू अपने आँसू पोन्छ्ते हुए बोला – मेरे पास तो अब कुछ है नही खोने या पाने को, अगर मेरा जीवन तुम्हारे ही कुछ काम आए तो भी मे अपने आप को धन्य समझूंगा.., आज से जैसा तुम कहोगे मे वैसा ही करूँगा…!
दोनो को अपनी अपनी आप-बीती आपस में शेर करते-करते काफ़ी वक़्त निकल गया था.., वातावरण में अंधेरा छा चुका था..,
वो दोनो नये-नये बदनसीब दोस्त वहाँ से एक दूसरे का हाथ थामकर चल पड़े अपनी अंजान मंज़िल की तरफ जिसका कोई पता नही था कि वो कहाँ मिलेगी…!
युसुफ के पास कुछ पैसे थे जो उसने कुछ कबाड़ इकट्ठा करके कमाए थे, उससे उन दोनो ने पेट की भूख शांत की, उसके बाद उन दोनो ने डिसाइड किया कि अब जो भी हो आगे वो और कुरबत की जिंदगी नही जीएँगे…!
युसुफ ने सही ही कहा था कि (-)+(-) = + होता है.., उसी रात उन्होने एक दुकान का ताला तोड़ा.., और अच्छी ख़ासी रकम उनके हाथ लगी…!
दूसरे ही दिन एक अच्छी सी खोली किराए पर ली, और दोनो दोस्त एक नयी राह पर चलने लगे.., संजू जहाँ मरने मारने से नही डरता था, वहीं युसुफ अपनी बुद्धि और विवेक से काम निकाल लेता था…!
देखते ही देखते कुछ ही महीनों में उस इलाक़े में उनकी धाक जमने लगी.., संजू की दिलेरी से छोटे बड़े गुंडे दहशत खाने लगे,
वो ज़रा ज़रा सी बात पर ही बिना अंजाम की परवाह किए हाथ छोड़ देता था, यहाँ तक कि एक दो को उसने चाकू से घायल भी कर डाला और खुद भी हुआ….!
संजू शिंदे के पास तो कुछ पाने या खोने के लिए था ही नही लेकिन युसुफ का अपना भरा पूरा परिवार था जिसे वो गाओं छोड़ आया था, उसे ये भी नही पता था कि अब वो लोग किस हालत में होंगे…!
उसे उनकी ज़िंदगियाँ संवारने के लिए धन की ज़रूरत थी, जो इन छोटे-मोटे चोरी चकोरी से पूरा पड़ने वाला नही था..,
वो दिन रात किसी लंबे हाथ मारने की फिराक में लगा रहता था.., जिसका जिकर वो कई मरतवा संजू से भी कर चुका था.., लेकिन संजू के मुतविक वो जो बोलेगा वो करने को तैयार था…!
उसके पास अकूत शक्ति थी, दिलेरी थी, कुछ नही था तो बस पैसे कमाने के लिए दिमाग़.., जिसकी कमी की वजह से वो अपनी जान से प्यारी बेहन को भी खो चुका था…!
एक दिन मरीना बीच के पत्थरों पर बैठे वो दोनो इसी बारे में विचार विमर्श कर रहे थे कि किस तरह से एक लंबा हाथ मारा जाए जिससे उनकी धन की ज़रूरत पूरी हो सके…!
जब किसी ठोस नतीजे पर ना पहुँच सके तो थक कर वो दोनो वहाँ से जाने के लिए उठ खड़े हुए,
चलने के लिए जैसे ही मुड़े की सामने एक निहायत ही खूबसूरत औरत को देख कर वो दोनो अपनी जगह पर जाम होकर रह गये…!!!
28-30 साल की बेहद खूबसूरत औरत को अपने सामने देख कर वो दोनो तगे से खड़े उसके सौन्दर्य में खो गये…!
गोरे चिट्टे पैरों में चमकीले फॅन्सी सॅंडल, ब्राउन लोंग स्कर्ट जो उसकी पिन्डलियो को बखूबी ढके हुए.., लेकिन उसके उपर तो मानो कयामत का साम्राज्य फैला हुआ था…!
उसकी 32 की कमर तक स्कर्ट के बाद उपर वो एकदम फक्क सफेद झीना सा टॉप पहने थी जिससे उसकी काले रंग की ब्रा साफ-साफ दिखाई दे रही थी…,
कसे हुए टॉप में क़ैद उसकी 34 की कसी हुई ठोस गोलाईयों पर उन दोनो की नज़र जम कर रह गयी…, टॉप का गला इतना चौड़ा की उसकी ब्रा की स्ट्रीप कंधों के उपर दिख रही थी…!
ब्रा के स्ट्रीप उस चमकीले टॉप के बाहर दिख रहे थे…, सामने उसकी गोरी गोरी गोलाईयों के बीच की गहरी दरार देख कर किसी का भी मन उन्हें मसलने का हो जाए…!
यहाँ तक का सफ़र तय करने के बाद उन दोनो की नज़र जैसे ही उसके चेहरे पर पड़ी.., मन ही मन वो उसकी प्रशन्शा किए बिना नही रह सके…!
एकदम गोरी रंगत, मानो वो कोई विदेशी महिला उनके सामने खड़ी हो.., गोल-गोल चेहरा.., हल्के फूले हुए गाल, लाली लिए हुए..,
पतले पतले होठों पर सुर्ख लाली, सुतवान नाक, कम्मान समान भवें के नीचे काले स्याह गॉग्ल्स से धकि उसकी आँखें.., सुनहरे कंधे तक के बाल, जो आयेज से एक बेहद चहमकीले ब्राउन कलर के स्कार्फ से ढके हुए थे…!
दोनो ही उसे देखते ही रह गये.., नज़र उसके रूप लावण्य से हटने का नाम ही नही ले रही थी.., जब बहुत देर तक भी उनकी नीयत उसे देखने से नही भरी..
चुटकी बजकर उस युवती ने उन दोनो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया – कहाँ खो गये युसुफ मियाँ.., संजू शिंदे…??? क्या कोई सुन्दर औरत पहले कभी नही देखी..??
अब तक तो वो बेचारे दोनो उस अप्सरा जैसी खूबसूरत औरत के रूप जाल में ही खोए हुए थे लेकिन अब उसके मूह से अपने अपने नाम सुनकर तो वो दोनो अपनी अपनी जगह पर उच्छल ही पड़े…!
उन दोनो की हालत पर वो मेनका मंद-मंद मुस्करा रही थी.., उनकी हालत का मज़ा उठाते हुए वो बोली – ऐसे क्यों चोंक रहे हो.., मुझे तो तुम दोनो की पूरी कुंडली पता है..,
क्यों युसुफ मियाँ, धन कमाने के लिए परेशान हो.., अपने घरवालों को सुख सुविधा देना चाहते हो…, क्यों मे सही कह रही हूँ ना…?
युसुफ हक्का बक्का अभी भी उसे इस तरह से देख रहा था मानो उसके सामने औरत का रूप लेकर कोई अजूबा खड़ा हो.., बड़ी मुश्किल से अपनी इस हालत पर काबू करते हुए वो बस इतना ही बोल पाया – हां…लेकिन…!
उसकी बात बीच में ही काट’ते हुए वो बोली – लेकिन वेकीन के चक्कर में मत पडो.., ये बताओ, पैसा कमाने के लिए क्या क्या कर सकते हो…?
अब तक शांत खड़ा संजू बोला – ओ मेडम जी.., पहले तो आप अपने बारे में बताओ.., कॉन हो और हम लोगों के बारे में इतना सब कैसे जानती हो…?
संजू की बात पर चुटकी लेते हुए वो हसीना बोली – अरे वाह.. संजू, तुम्हरे मूह में भी ज़ुबान है.., मे तो सोच रही थी कि बोलने का काम बस युसुफ मियाँ का ही है….!
चलो तुम पुछ्ते हो तो अपने बारे में भी बता देती हूँ.. मेरा नाम लीना फेरनडीज़ है.., अपने काम के बारे में मे यहाँ कुछ नही बता सकती…!
रही बात तुम लोगों के बारे में इतनी जानकारी कैसे है.., तो उसी दिन से मेरी नज़र तुम दोनो पर है जब तुम दोनो जुहू बीच पर एक दूसरे को पहली बार मिले थे.., जब उसूफ मियाँ ने तुम्हारी जान बचाई थी…!
अब मे आती हूँ असल मुद्दे पर, अगर तुम लोगों को पैसा कमाना है तो ये लो मेरा कार्ड.., कल दोपहर के बाद आकर मुझसे इस पते पर मिलो…!
युसुफ ने आगे बढ़कर उसके हाथ से कार्ड लिया.., हां इस दौरान वो उसके हाथ को टच करने का लालच नही छोड़ पाया…!
उसकी इस हरकत पर लीना नाम की वो हसीना उसके चेहरे पर नज़र डालकर मुस्कराती हुई पलट कर एक तरफ को बढ़ गयी…!
पीछे वो दोनो हतप्रभ खड़े उसकी थिरकति गान्ड को तब तक निहारते रहे जब तक की वो उनकी आँखों से ओझल नही हो गयी…!
……………………………………………………………………………………..
बड़ा ही कड़क माल है यार…, उसके ओझल होते ही संजू के मूह से निकले इस शब्द ने युसुफ की तंद्रा भंग की..,
एक लंबी सी साँस लेकर उसने अपने उस हाथ को चूमा जिसने उसके हाथ को टच किया था और वो बोला – सही कहा तुमने..
लेकिन साली को हमसे क्या काम लेना है जो इतने दिनो से हमारे पीछे लगी हम लोगों के बारे में तहकीकात कर रही है…, कुछ तो गड़बड़ है भाई…?
संजू ने उसका हाथ थामा और उसे खींचते हुए बोला – हमें क्या लेना देना साली से.., होगी कोई..चलो चल कर कुछ खाते-पीते हैं.., भूख लग रही है..!
युसुफ – हां चलो…, लेकिन देखना तो पड़ेगा कि आख़िर ये चीज़ क्या है.., और हम लोगों से कॉन्सा काम लेने वाली है..?
वो चलते चलते पास के ही एक सस्ते से होटेल कम बार में घुस गये.., कुछ सस्ती सी विस्की ऑर्डर की और बैठकर पीने लगे…!
एक-एक पेग लेने के बाद संजू बोला – मेरे ख्याल से हमें इस औरत को अपने दिमाग़ से निकाल देना चाहिए..,
ये सुनहरी नागिन ना जाने कैसा काम हमसे निकलवाना चाहती है…?
अपना काम निकाल कर रफूचक्कर हो जाए और हम लोग पोलीस के लफडे में फँस जाएँ…!
युसुफ – एक औरत से ही डर गया मेरा शेर…? अरे यार देखें तो सही इसमें हमारा कितना फ़ायदा होने वाला है.., क्या पता इसका साथ देने से हमारे भी बारे न्यारे हो जायें…!
संजू – डरता कॉन साला है..वो भी एक मामूली सी औरत से.., मुझे तो बस औरत जात से नफ़रत सी हो चुकी है..,
एक औरत की वजह से ही मेरी बेहन उस दलदल में फँस गयी.., तबसे मुझे किसी भी औरत पर भरोसा नही रहा…,
बातों के चलते वो दो-दो पेग और पी चुके थे.., ये उनका अब रोज़ का ही काम हो गया था.., नशा अपना असर दिखाने लगा था..!
युसुफ ने संजू को चढ़ाते हुए कहा – अरे यार संजू.., वैसे भी हम कोन्से करोड़पति हैं जो वो हमारा कुछ ले लेगी.., कुछ नही मिला तो मौका देख कर साली को मिलकर चोद डालेंगे…!
संजू को भी नशे में उसकी कड़क जवानी नज़र आने लगी थी.., वो थोडा झूमते हुए बोला – ये सही कहा युसुफ भाई तुमने.., पैसे वैसे गये तेल लेने.., साली की कड़क जवानी का मज़ा तो ले ही लेंगे.. बहुत कड़क है भेन्चोद…!
वैसे मेने आज तक किसी औरत को नही चोदा है.. लेकिन इसे देखकर मेरा ये नियम भंग करने का मन करने लगा है….!
मे तो बस एक बार उसकी मस्त मटकती गान्ड को खूब मसल-मसलकर जमकर चोदना चाहता हूँ.., उसकी उस चिकनी गोल-मटोल गान्ड में लंड डालकर हिलाना चाहता हूँ..झूमते हुए युसुफ ने कहा…उसके बाद भले ही उसकी गान्ड पे लात मारकर अपने रास्ते निकल लेंगे…क्या बोलता है…!
डन ! ये कहकर संजू और युसुफ ने एक दूसरे को हाई-फ़ाई किया.., एक-एक पेग और गटकने के बाद उन्होने जमकर खाना खाया और कल उस सुंदरी से मिलने का प्लान तय करके वो दोनो अपनी खोली की तरफ चल दिए….!
दूसरे दिन सुबह से ही वो दोनो लीना से मिलने की तैयारीओं में जुट गये.., उन्होने रात में ही अपने लिए अच्छे अच्छे कपड़े खरीद लिए थे…!
नहा धोकर एक सस्ता सा सेंट वेंट लगाकर नये कपड़े पहने.., संजू ने अपना रामपुरी शॉक्स में लगाया और तय सुदा समय पर वो दोनो उससे मिलने को चल दिए…!
कार्ड पर दिए गये पते पर पहुँचकर उन्होने अपने सामने एक फ्लॅट के बंद दरवाजे की बेल बजाई…!
अंदर कहीं चिड़ियाँ सी चह-चहाईं.., कोई दो मिनट के इंतेजार के बाद दरवाजा खुला…, और उसी के साथ साथ सामने का दृश्य देख कर उन दोनो के मूह भी खुले रह गये……!
दरवाजे के बीचो-बीच लीना खड़ी थी, इस समय वो बिना किसी मेक-अप के थी.., लेकिन फिर भी उसकी सुंदरता में कोई खास कमी नही थी.., उपर से उसके कपड़े….,
हाईए…देखना इन दोनो में से किसी का खड़े खड़े ही पानी ना निकल जाए…!
निहायत ही छोटा सा शॉर्ट, जो मुश्किल से उसके उभरे हुए चुतड़ों को ढक पा रहा था.., इतना टाइट कि आगे से उसकी चूत की मोटी-मोटी फाँकें साफ-साफ अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही थी…!
उनके बीच की दरार…उउउफफफ्फ़…, युसुफ की देख कर हालत ही खराब होने लगी, उसके मूह में उसकी उन फांकों को चाटने के ख्याल से ही पानी भर आया…!
कमर में इतना नीचे बँधा था कि अगर उसकी चूत पर बाल होते तो शर्तिया उपर से दिखाई देते…!
और उसका टॉप…, मासा-अल्लाह.., उसके वक्षों को बा मुश्किल धक पा रहा था.., नीचे से इतना लूस, ऐसा लग रहा था, मानो उसे किन्ही दो खूँटियों के उपर ऐसे ही टाँग रखा हो…!
अगर कोई बैठकर झाँकने लगे तो उसकी ब्रा समेत चुचियों का पूरा जेओगराफिया पता कर सकता था…!
यही नही उपर उसका इतना चौड़ा गला कि उसकी पिंक ब्रा आधी तक दिख रही थी, उसके पुष्ट उरोजो की गहरी खाई देख कर वो दोनो पलक झपकाना ही भूल गये…!
टॉप के ढीले होने की वजह से उसका एक तरफ का शोल्डर बिल्कुल नंगा था, जिससे उसकी ब्रा की स्ट्रीप अलग ही दिख रही थी..,
कंधे तक के खुले रेशमी बालों के बीच उसका चाँद सा मुखड़ा जिस पर इस समय शरारत से भरपूर मुस्कराहट विद्यमान थी…!
अपनी नशीली आँखों से उन दोनो को घूरते हुए बोली - वेल कम दोस्तो.., मेरे घर में तुम दोनो का स्वागत है.., आओ..अंदर आओ.. इन शब्दों के साथ ही वो अपनी जगह पर पलट गयी.., !
उफफफ्फ़…क्या कयामत है याररर.., लगता है आज तो पानी निकल्वाकर ही रहेगी ये…, पीछे से उसके शॉर्ट का और ही बुरा हाल था.., इतना नीचा कि उसके कुल्हों की गोलाईयों की ढलान बिल्कुल साफ दिखाई दे रही थी..,
उसकी माइक्रो पैंटी की डोरी जो कमर के बंद से होती हुई उसकी गान्ड की दरार में घुसी पड़ी थी.., पीछे से साफ दिख रही थी कि वो अंदर किस जगह और कितनी सुरक्षित होगी…!
अपने गोल-गोल नितंबों को मटकाते हुए वो उन दोनो के आगे-आगे चल रही थी.., उसके पीछे आहें भरते हुए वो दोनो किसी चाबी लगे खिलौनों की तरह उसकी मटकती गान्ड के मज़े लेते हुए पॅंट में अपने-अपने लंड अड्जस्ट करते हुए चल पड़े…!
एक छोटी सी लॉबी पार करके वो एक हॉल नुमा कमरे में पहुँची जहाँ एक लोंग सोफा, दो चेर और एक सेंटर टेबल पड़ी हुई थी…!
सामने एक बेहद सुसज्जित शो केस में एक 44” का टीवी था जिस पर इस समय कोई हॉलीवुड मूवी चल रही थी..,
कुल मिलकर लीना यहाँ ऐश की जिंदगी बसर कर रही थी.., जिसके श्रोत का उन्हें अभी कुछ पता नही था…!
उसने लोंग सोफे की तरफ इशारा करके उन दोनो को बैठने के लिए कहा और खुद एक चेयर पर बैठ गयी.., जो सेंटर टेबल के उस पार ठीक उनके सामने थी…!
बैठते हुए जानबूझकर उसने अपनी संगेमरमर जैसी चिकनी गोल मांसल जांघों के बीच गॅप बना रखा था जिसमें से उसकी चूत की मोटी-मोटी फाँकें उभरी हुई साफ-साफ नुमाया हो रही थी…!
बैठने के बाद उसका टाइट शॉर्ट उस जगह पर और ज़्यादा टाइट हो गया.., जिससे उसका मुलायम सॉफ्ट कपड़ा दोनो फांकों के बीच की दरार में धँस गया..,
कुल मिलाकर कपड़े के बबजूद उन दोनो को उसकी ढाई-तीन इंच लंबी चूत की शेप क्लियर दिखाई दे रही थी…!
उन दोनो का ध्यान अपनी जन्नत पर पाकर वो मन ही मन खुश हो रही थी.., उसे पता था कि किसी भी मर्द से काम निकलवाने का कॉन्सा सटीक तरीक़ा होता है…!
अपने चहरे पर स्माइल लाकर वो बोली – तुम दोनो को यहाँ तक पहुँचने में कोई तकलीफ़ तो नही हुई…?
उसकी आवाज़ सुनकर उन दोनो ने एक साथ झटके से अपने सिर उठाए.., एक साथ ही उनके मूह से निकला…ज.ज्ज..जीए…कोई खास नही..,
लीना – तो बताओ क्या लेना पसंद करोगे.., कुछ ठंडा.., गरम…?
एक बार उसके चेहरे पर नज़र डालकर उन दोनो की नज़रें झिजक के कारण फिर झुक गयी.., नज़र झुकाए हुए ही युसुफ ने कहा – जी मेडम जी, जो आप पिलाना चाहें...!
लीना – नही.. तुम लोग मेरे मेहमान हो, और मेहमान की इच्छा जानकार ही मेहमान नवाज़ी होती है.., बोलो क्या लोगे..?
युसुफ थोड़ी हिम्मत जुटाकर बोला – इक्च्छा तो हमारी कुछ और ही पीने की है, लेकिन आप पिलाएँगी नही…!
लीना – ऐसा क्यों सोचते हो..बोलो तो सही क्या पीना चाहते हो.., मेरे पास हर तरह की ब्रांड मिलेगी तुम्हें.., बिंदास कहो, क्या चाहिए तुम्हें..?
युसुफ भी पक्का खिलाड़ी था, वो थोड़ा धिठाई के साथ बोला – जो हम पीना चाहते हैं, वो तो आपके पास है, और आप इतनी दूर बैठी हैं… तो फिर..कैसे…???
लीना भी पूरी खेली खाई थी.., वो युसुफ की बात का मतलब अच्छे से समझ रही थी.., लेकिन बजाय गुस्सा दिखाने के उसने अपनी एक जाँघ उठाकर दूसरी के उपर रखते हुए कहा –
बड़े उस्ताद हो युसुफ मियाँ.., उंगली पकड़ने की बजाय सीधा हाथ ही थामना चाहते हो.., अभी तो चाय से काम चला लो.., उसके लिए तुम लोगों को थोड़ा इम्तिहान देना पड़ेगा..
मोटी-मोटी गुदाज जांघों के बीच दबाब पड़ने से उसका योनि प्रदेश कुछ और ज़्यादा ही फूल गया.., उस पर नज़र गढ़ाते हुए युसुफ बोला…
उसके लिए हम किसी भी इम्तिहान से गुजरने को तैयार हैं.., बोलो क्या करना होगा…!
उसकी बात पर मन ही मन मुस्काराकार लीना ने अपनी मैड को आवाज़ दी…लूसी ज़रा दो चाय लाना, साथ में कुछ स्नेक्क्स भी…!
चाय पीते हुए लीना ने कहा – मे तुम लोगों को दो पॅकेट दूँगी, जिन्हें तुम्हें हिना बार &क्लब के मालिक अब्बास अली को उसके ठिकाने पर पहुँचना है और उससे 10 लाख लेकर आने हैं…!