Update 76
बहुत दिन हो गये कहानी के मुख्य किरदारों से दूर रहते हुए.., ख़ासकर मोहिनी भाभी की तो बहुत याद आती होगी आप सभी को.., जिसके बिना अपना हीरो भी कुछ नही है…
इस बीच कुछ मित्रों की कंप्लेंट भी बहुत आती रही कि हम अपने मुख्य पात्रों को भूल तो नही गये.., ये कहानी कहाँ से कहाँ चली जा रही है ब्ला..ब्ला…ब्ला…!
तो अब सभी मित्रों की शिकायत दूर करने का समय आ गया है.., क्यों ना अब साथ साथ में कुछ उनकी भी चर्चा कर ली जाए…………..!
समय काफ़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहा था.., जैसा कि मेने तय किया था कि जब हमारा शहर वाला बंगला तैयार हो जाएगा.., हमारा सारा परिवार चाची के अंश को लेकर शहर शिफ्ट हो जाएगा…!
शहर में आकर कुछ दिन बाद ही नेक्स्ट सेशन से बड़े भैया ने भी गुप्ता जी के डिग्री कॉलेज में बतौर प्रोफेसर जाय्न कर लिया..!
मेरी बिटिया जिसका भाभी ने तृष्णा नाम रखा, वो भी अब बोलने, चलने फिरने लगी थी.., इसी बीच रूचि ने भी10थ पास कर लिया था..
प्राची ने अपना ग्रॅजुयेशन कर लिया था.., मन्झ्ले भैया उसे पोलीस में सेलेक्ट करवाना चाहते थे.., लेकिन प्राची का दिल नही था कि वो किसी बंधन में रह कर काम करे…!
शुरू से ही वो मेरे साथ रहने के कारण स्वतन्त्र रहने की आदि थी..,
एक दिन मे भी उनके बंगले पर ही था.., हम तीनों के बीच इसी बात को लेकर चर्चा थी.., भैया उसे पोलीस जाय्न करने को प्रोत्साहित कर रहे थे.., लेकिन उसका मन नही था.. सो वो मेरी तरफ मुखातिब होकर बोली…
अंकुश भैया आप बताओ मुझे क्या करना चाहिए.., वैसे मे अपने देश और क़ानून की बहुत इज़्ज़त करती हूँ,
लेकिन किसी बंधन में रह कर क़ानून की हिफ़ाज़त करना मुझे गंवारा नही है.., ख़ासकर पोलीस में जहाँ अपने मन से कोई भी डिसिशन ले ही नही सकते…!
हम कुछ अच्छा करना भी चाहें तो उपर के प्रेशर की वजह से कभी कभी हाथ बँधे होते हैं…!
कृष्णा – तो फिर छोड़ो सब कुछ और आराम से तुम घर संभालो.., हमें भी ऐसी कोई ज़रूरत भी नही है कि तुम कुछ करो ही करो..!
प्राची – लेकिन मुझे खाली बैठना भी तो अच्छा नही लगता.., जो कुछ अब तक मेने अंकुश भैया के साथ रहकर सीखा और जाना है उसे वेस्ट भी करना नही चाहती…!
मेरे पास तुम्हारे लायक एक बहुत ही उम्दा प्लान है अगर पसंद हो तो.., मेने उन दोनो की बातों के बीच पड़ते हुए कहा…
वो दोनो मेरी तरफ देखने लगे.., मेने अपनी बात जारी रखते हुए कहा – क्यों ना तुम एक प्राइवेट डीटेक्टिव एजेन्सी खोल लो..!
तुम्हारा टॅलेंट भी काम आता रहेगा.., और इनडाइरेक्ट्ली क़ानून और पोलीस की मदद भी करती रहोगी.., क्यों क्या ख्याल है…?
मेरी बात पर भैया कुछ नाखुश नज़र आए., लेकिन प्राची उनकी नापसंदगी को नज़रअंदाज करते हुए बोली –
बात तो पते की है.., लेकिन इस काम को मे अकेली तो नही कर पाउन्गि.., आपको इसमें मेरा साथ देना होगा…!
मे – ज़रूर..! मेरे पास भी इतना ज़्यादा काम नही होता है, उसे जूनियर स्टाफ कुछ हद तक संभाल ही लेता है..,
एजेन्सी ज़रूर तुम्हारे नाम से होगी.., लेकिन ज़्यादातर फील्ड वर्क हम दोनो ही मिलकर संभालेंगे.., क्यों भैया..फिर तो आपको कोई प्राब्लम नही है इस काम से..!
कृष्णा भैया हथियार डालते हुए बोले – जैसा तुम दोनो ठीक समझो.., चलो अच्छा है कुछ मेरे केस भी आसानी से हल हो जाया करेंगे जिन्हें मे सिस्टम के बंधनों के कारण नही कर पाता…!
बात फाइनल करते ही मे इस काम में जुट गया.., प्राची के नाम से एक डीटेक्टिव एजेन्सी रेगिसेर कर दी, एड देकर कुछ इक्च्छुक युवकों का स्टाफ भी रख लिया जिससे शुरुआत करने में आसानी रहे…!
हमारे प्रयासों से धीरे धीरे कुछ छोटे-मोटे केस भी आने लगे.., जैसे किसी की पत्नी अपने पति की जासूसी करवाना चाहती थी.., कोई पति अपनी पत्नी की…
किसी का किडनप का केस तो किसी के यहाँ चोरी चाकारी का.., पोलीस में एसएसपी तक की पवर थी ही.., लॉ को ध्यान में रखते हुए प्राची की डीटेक्टिव एजेन्सी का काम जमने लगा…………!
मुझे ये तो पता ही था कि भानु उस किल्लिंग में बच निकला है.., और बहुत हद तक वो इस शहर में तो रहेगा नही.., तो मुमकिन है वो फिरसे अपनी बेहन शालिनी के पास ही गया होगा…!
हमने अपने कुछ लोग उसकी टोह में लगा दिए.., ऐसे साँप पर नज़र रखना बेहद ज़रूरी भी था.., क्या पता मौका देख कर कब अपना जहर उगल दे…!
इसी दौरान प्राची ने ये पता लगा लिया कि भानु की बीवी मालती इस शहर को छोड़कर अपनी ननद वाले शहर में शिफ्ट हो चुकी है..,
मेरा अनुमान सही निकला… तो ज़रूर भानु भी वहीं होना चाहिए…!
क्योंकि उसकी नज़र में पोलीस या मुझे ये नही पता होगा कि वो बच निकला है.., तो बस लोकल पोलीस की नज़रों से बच कर वो कहीं भी रह सकता है…!
कस्बे की ज़मीन जयदाद बेचकर उसके पिता सुर्य प्रताप भी वहीं बस गये थे.., लड़के की करतूतों से उनकी कमाई हुई इज़्ज़त मिट्टी में जो मिल गयी थी.., तो फिर वहाँ रह कर करते भी क्या..?
उधर पड़ौस के ही शहर में ड्रग्स और हथियारों की तस्करी अप्रत्याशित रूप से बढ़ने लगी थी.., जिसका थोड़ा बहुत असर आस-पास के शहरों तक पड़ना स्वाभाविक ही था..,
ये भी सर्व विदित है की पोलीस कहीं की भी हो उसका हाथ इन माफियाओं के साथ हो ही जाता है.., 100 में से कोई एक अधिकारी ईमानदार भी हो तो उसे अपनी जान की परवाह बनी रहती है..,
यही हाल उस शहर का भी था नतीजा लीना का तस्करी का कारोबार खूब फल फूल रहा था.., उपर से संजू की ख़ूँख़ार प्रवृति ने इलाक़े में दहशत फैला रखी थी..!
उसके हाथों कुछ मर्डर भी हो चुके थे.., लेकिन लीना की पहुँच पोलीस प्रशासन में बहुत उपर तक थी.., उपर से वो बेहद सुन्दर भी थी..
आज के युग में जहाँ किसी चीज़ से काम ना बने वहाँ औरत के काम बान काम आ ही जाते हैं.., युसुफ की तीनों बहनें भी इस काम में दक्ष हो चुकी थी..,
शबाब और पैसे से आज कुछ भी हासिल हो सकता है.., तो बस लीना दिनो-दिन अपना कारोबार बढ़ाती जा रही थी.., जिसकी गूँज 70-80 किमी दूर हमारे इस शहर तक भी पहुँच गयी..!
लेकिन यहाँ की पोलीस के कुछ ईमानदार प्रयासों से उनके पैर इस शहर में जम नही पा रहे थे..,
हमारे आदमी भानु पर नज़र रखने की वजह से इस शहर की खबरें भी रखते थे.., भानु पर नज़र रखने के साथ साथ हमने उन्हें इस गॅंग की अधिक से अधिक जानकारी जुटाने में लगा दिया…!
लीना के बेहद करीबी युसुफ और संजू का हमें पता चल चुका था.., इसलिए अब हमने खुद मैदान में कूदने का फ़ैसला कर लिया..,
सबसे पहले हमने उन दोनो की जन्म कुंडली निकालने का प्रयास किया.., युसुफ तो लोकल ही था.., तो उसकी सारी डीटेल्स आसानी से मिल गयी, लेकिन संजू महाराष्ट्रा से था.. तो उसका बॅकग्राउंड पता करने में थोड़ी मसक्कत करनी पड़ी…!
लेकिन एक बात जो उसकी खास थी.., वो थी उसके हाइ एमोशन्स, आगे पीछे कोई था नही उसके.., जिसके लिए वो कमाने खाने का लालच रखता हो..,
बस कुछ था तो युसुफ के साथ लगाव वो भी उसने उसकी जान बचाई थी इसलिए, और यहाँ आकर उसकी बहनों की चूतें जिन्हें वो जब चाहता चोद लेता था…!
हां लेकिन आज भी उसकी पहली पसंद थी लीना.., भले ही वो युसुफ की दोनो बहनों की तुलना में उम्र दराज थी..,
लेकिन नियमित एक्सर्साइज़ और अच्छे रहन सहन के कारण वो आज भी उनसे ज़्यादा जवान और मर्द मार औरत दिखती थी…!
मेने प्राची को संजू के पीछे लगा दिया.., लेकिन वो ज़्यादातर अपने साथ दो-चार गुर्गे रखता ही था.., फिर भी मौका तो निकालना ही था.. जो कभी ना कभी किसी मोड़ पर मिल ही जाना था..!
प्राची अपनी तरफ से पूरी कोशिश में जुटी थी.., तभी एक अजीब घटना प्रकाश में आई.., जो हमारे आदमी को कुछ देर से पता चली…!
हुआ यों कि एक दिन लीना एक बड़े से शॉपिंग माल से बाहर निकली.., माल से बाहर आते ही.. उसके इंतेजार में खड़े उसके आदमी जिनमें युसुफ तो माल के अंदर से ही उसके साथ था बाहर से तीन और साथ हो लिए…!
हर समय वो एक दम सजी-धजी.., कंधे तक के सुनहरी बाल, सिर पर गोल कॅप जिससे कुछ हद तक उसका चेहरा दूर से नज़र नही आता था.., आँखों पर स्याह काले गॉग्ल्स..!
अभी वो पार्किंग में खड़ी अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ ही रही थी कि अपने पास से ही आती हुई एक जानी पहचानी सी आवाज़ ने उसे ठिठकने पर
मजबूर कर दिया....!
बगल से गुज़रते हुए एक सरदार ने उसे धीरे से पुकारा… अरे कामिनी मेडम आप…?
ये शब्द सुनते ही उसके कदम वहीं थम गये और किसी स्वचालित खिलौने की तरह वो आवाज़ की दिशा में घूम गयी…………….!
इन शब्दों में ना जाने कैसा जादू सा था, सुनते ही लीना बुरी तरह से चोंक पड़ी.., उसे उस सरदार की आवाज़ कुछ जानी-पहचानी सी भी लगी..,
वो पलटकर उस सरदार की तरफ देखने लगी जो उसे ठिठकता देख लपक कर उसकी ओर आने लगा…!
युसुफ के लिए ये नाम नितांत नया था, उसने अपने आस-पास नज़र घुमा कर देखा लेकिन उसे दूर दूर तक कोई और महिला दिखाई नही दी…!
उसने उस सरदार को अपने पास आने से रोकना चाहा तो लीना ने हाथ का इशारा करके उसे रोक दिया और सरदार को अपने पास आने दिया..,
उसके अत्यधिक नज़दीक जाकर वो सरदार लगभग फुसफुसा कर बोला – पहचाना मेडम मे भानु.., आपके लिए काम किया करता था..?
लीना ने अपने होठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का संकेत किया और चुपचाप अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ते हुए बोली – आओ मेरे साथ…!
लीना ने युसुफ को दूसरी गाड़ी में आने का इशारा किया और भानु को लेकर वो अपनी गाड़ी में आकर बैठ गयी.., रास्ते में भानु अपने मन की उत्सुकता को नही दबा पाया और बोला…
मेने तो सुना था मेडम कि आप भी उस हादसे में वाकी लोगों के साथ ही…
लीना जो वास्तव में कामिनी ही थी बोली – पहली बात, अभी मे इस नाम को भूल चुकी हूँ, मेरे सभी आदमी मुझे लीना के नाम से जानते हैं.., सो आगे से इस बात का ख्याल रखना…,
रही बात मेरे मरने या जीवित होने की तो सभी को यही अनुमान था कि मे भी वहीं ख़तम हो गई हूँ.., लेकिन मेरा भाग्य अच्छा था…!
अंकुश मुझे गोली मारने के बाद ज़्यादा देर तक वहाँ नही रुका.., भाग्यबस गोली भी मेरे सीने में दिल से ज़रा हटकर लगी थी.., मे उस समय तो अपने होश खो ही चुकी थी…!
लेकिन तभी मेरा ड्राइवर रामसिंघ गुप्त गॅलरी में हुई उस फाइरिंग की आवाज़ सुनकर दौड़ता हुआ वहाँ जा पहुँचा, तबतक अंकुश मुझे मरा समझकर वहाँ से जा चुका था..!
ड्राइवर ने मुझे आनन-फानन में उठाकर गाड़ी में डाला और समय रहते वो मुझे मेरे पर्सनल डॉक्टर के पास ले गया.., जहाँ उसने समय पर मेरी गोली निकाल दी..!
दूसरे दिन जब मुझे होश आया तो मे पूरी तरह ख़तरे से बाहर थी.., एक हफ्ते वहीं रहकर मेने डॉक्टर को ढेर सारा इनाम दिया, और फिर हम तीनों ने ही चुपके से वो शहर छोड़ दिया…!
रामसिंघ तो आज भी मेरे साथ ही है जो अभी भी तुम्हारे सामने, मेरी गाड़ी चला रहा है.., सही मायने में मुझे दूसरी जिंदगी देने वाला यही है…!
कुछ साल मेने मुंबई में गुज़ारे, फिर मुझे एक दिन दो हीरे हाथ लगे, जिनमें एक जो अभी तुम्हें मेरे पास आने से रोक रहा था दूसरा कहीं मार-पीट में उलझा होगा…!
युसुफ यहीं कहीं पास के गाओं का है.., इसको पैसों की ज़रूरत थी.., दोनो मिलकर मुंबई में छोटी-मोटी वारदातें किया करते थे, सो मेने उन्हें अपने साथ ले लिया..,
कुछ समय पहले ही मेने यहाँ अपना कारोबार शुरू किया है.., दोनो की लगन और टीम वर्क से कुछ ही समय में मे पहले से भी बड़ी ड्रग्स और हथियारों की डीलर बन चुकी हूँ..!
अब तुम अपने बारे में बताओ.., तुम इस तरह भेष बदलकर क्यों छुप्ते फिर रहे हो..?
भानु एक लंबी सी साँस छोड़कर बोला – मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था मेडम.., फिर उसने श्वेता के कहने पर अंकुश के किडनप और उसके साथ श्वेता ने क्या क्या किया.., वो सब उसे बताता चला गया…!
कामिनी ये सब मूह बाए सुनती रही.., फिर जब उसने बताया कि कैसे मोहिनी ने आकर उसे उनके चंगुल से निकाला जिसे सुनकर कामिनी के मूह से किसी ज़हरीली नागिन की तरह फुफ्कार निकली…!
वो हरम्जादि कुतिया हर बार मेरे रास्ते का काँटा बनती रही है.., अब मे सबसे पहले उसको ही अपने रास्ते से हटाउंगी.., उसके बाद उस हरम्जादे अंकुश से अपना बदला लूँगी…!
फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए बोली - खैर आगे बोलो.., फिर क्या हुआ…?
भानु – मे किसी तरह वहाँ से बच निकला और इसी शहर में अपनी बेहन के पास छुप्कर रहने लगा.., वहाँ की पोलीस कुत्ते की तरह मुझे तलाश कर रही थी…!
फिर ना जाने कहाँ से उस हरम्जादे वकील को मेरे यहाँ होने की भनक लग गयी.., शिकारी कुत्ते की तरह सूंघते हुए वो उसी जोसेफ के भेष में मेरी बेहन से मिला….,
पुराने धंधे को दुबारा खड़ा करने का लालच देकर उसने मेरी बेहन से मेरा पता निकलवा लिया.., सच कहूँ तो मे भी उसके झाँसे में फँस गया, और एक बार फिर उसके हत्थे चढ़ गया…!
मुझे ब्लॅकमेल करके उसने वो कांड करा दिया जिसकी कल्पना करते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं.., भानु ने उसे वो सब बताया जो उसने श्वेता और उसकी फ्रेंड के साथ किया था…!
फिर उसने ना जाने कैसे श्वेता के पति को वहाँ भेज दिया.., जिसने हमारा सारा गॅंग बॅंग अपनी आँखों से देख लिया…!
गुस्से में अंधे पुष्पराज ने वहाँ मौजूद सबको गोली से उड़ा दिया और खुद को भी गोली मार ली..,
उस सामूहिक हत्याकांड में मे भाग्यबस बच गया.., गोली.. मेरे सिर की एक साइड को चीरते हुए निकल गयी थी..,
हालाँकि घाव काफ़ी गहरा था.., लेकिन किसी तरह बचते बचाते में शहर के विपरीत दिशा में जंगलों की ओर निकल गया.., जहाँ एक नदी तक पहुँचते पहुँचते मेरे होश जबाब दे गये…!
नदी के पानी में हाथ देते ही में वहीं पानी में गिर गया..,
मुझे नही पता मे कितने दिन बेहोश रहा, लेकिन जब होश में आया तो किसी छोटे से गाओं में किसी मल्लाह (केवट) की छोटी सी झोंपड़ी में था…
जो नदी से मुझे अपने घर ले आया और उसने देशी जड़ी बूटियों के सहारे नयी जिंदगी दी.., उसी के मुताविक में पूरे एक हफ्ते तक बेहोश रहा था…!
वहाँ से किसी तरह भेष बदलकर मे फिरसे इसी शहर में आ बसा हूँ.., पोलीस रेकॉर्ड में मे मर चुका हूँ.., जिसका फ़ायदा उठा रहा हूँ..,
कामिनी – तो अब क्या प्लान है.., ?
भानु – घर गृहस्थी तो जैसे चलनी थी वैसे चल रही है.., पिताजी ने अपने नाम से कुछ कारोबार शुरू किया है.., लेकिन अब जब आप दोबारा मिल ही गयी हैं तो एक बार फिर उस हरामी वकील को सबक सिखाने का दिल करने लगा है…!
कामिनी – तुम चिंता मत करो.., इस बार उसे उसके परिवार के साथ पूरी तरह ख़तम करके ही रहूंगी.., मे उसे मरते दम तक नही भूल सकती…!
जिसके कारण मेरा कारोबार, घर परिवार सब कुछ तबाह हो गया हो उसे मे यूँही आसानी से कैसे भुला सकती हूँ..,
सच पूछो तो मेरा मुंबई से यहाँ आने का मक़सद भी यही है..,
आज मेरे पास पैसा हैं, ताक़त है.., और सबसे बढ़कर एक ऐसा आदमी है जिसे बस एक बार इशारा करना है.., वो उसके घर में घुसकर सब कुछ तबाह कर देगा ..!
भानु उत्साहित स्वर में बोला – तो फिर देर किस बात की मेडम..?
कामिनी – मे उसे इतनी आसानी से नही मारूँगी.., उसे पहले अपनों के लिए तड़पना होगा…ख़ासकर उसकी उस प्यारी मोहिनी भाभी के लिए.., जिसने उसे इस काबिल बनाया है…!
बस तुम कुछ दिन मेरे साथ रहकर मेरे आदमियों के साथ काम में हाथ बँटाओ.., उन्हें समझो..अपने को उनके साथ ढालो.., हम जल्दी ही इस काम को अंजाम देंगे…!
फिर उसने अपने ड्राइवर को रास्ते में ही गाड़ी रोकने का इशारा किया, भानु को वहीं उतारकर अपने अड्डे का पता देकर खुद आगे बढ़ गयी……!
उसी शाम संजू एक छोटे से गॅंग से अपने माल की बसूली करके लौट रहा था, अपने गुर्गों को उसने उनके घर भेज दिया.., और अकेला ही अड्डे की तरफ जा रहा था..,
अंधेरा घिर चुका था.., शहर की ख़स्ताहाल व्यवस्था ये थी.., कि मैं सड़क पर भी स्ट्रीट लाइट ना के बराबर थी..,
इस समय उसकी बाइक एक संकरी अंधेरी गॅली से गुजर रही थी.., कि तभी उसने अपनी बाइक की हेड लाइट में कुछ इंसानी जिस्मों को हरकत करते देखा..!
थोड़ा नज़दीक आने पर पता चला कि 4 लफंगे एक अकेली लड़की के साथ छेड़-छाड़ कर रहे हैं..,
सलीके के सलवार सूट पहनी वो लड़की यथा संभव अपने आप को उन गुण्डों से बचाने के लिए जद्दो जहद कर रही थी…!
जगह जगह से उसके कपड़े फट चुके थे जहाँ से उसका दूधिया अंग दिखाई देने लगा था.., वो मदद के लिए गुहार भी लगा रही थी.., लेकिन वहाँ कोई सुनने वाला हो तब तो आए..!
और अगर कोई सुन भी रहा होगा तो अपनी जान बचाने की गरज से देख कर भी अनदेखा करके खिसक लिया होगा…!
संजू ने उनसे कुछ दूरी पर अपनी बाइक रोकी, उसे साइड स्टॅंड पर टीकाया और वहीं से उसने उन लोगों को चेतावनी देते हुए कहा…!
ये छोड़ो उसे.., क्यों परेशान कर रहे हो एक बेचारी लड़की को…?
लेकिन उन गुण्डों पर उसकी बात का कोई असर होता दिखाई नही दिया, और वो उसे लगातार उसके बदन से खिलवाड़ करने में लगे रहे…!
संजू को ये बात असहनीय लगी और वो लपक कर उन गुण्डों के पास जा पहुँचा.., जाते ही उसने आनन-फानन में दो को पकड़ कर एक तरफ को उछाल दिया…
देखते ही देखते वहाँ घमासान छिड़ गया, संजू उनपर भारी पड़ रहा था.., अकेले ने उन चारों गुण्डों को दुम दबाकर भागने पर मजबूर कर दिया…!
जब वी चारों वहाँ से जान बचाकर भाग खड़े हुए तब संजू ने उस लड़की की तरफ ध्यान दिया.., जो सड़क के एक अंधेरे से कोने में बैठी डर के मारे घुटनों में मूह देकर सूबक रही थी……!
संजू ने धीरे से उसके कंधे पर अपना हाथ रखा.., वो लड़की उसका हाथ रखते ही बुरी तरह से काँप गयी.., सिर उठाकर देखा तो संजू बोला
– घबराओ नही.., वो लोग भाग गये अब तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नही है…!
लड़की उठकर उसके सीने से लिपट गयी और फुट-फुट कर रो पड़ी.., संजू ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – कॉन हो तुम और यहाँ क्या कर रही थी…?
लड़की – मे कोचिंग से आ रही थी.., कि तभी ये गुंडे मेरे पीछे लग लिए.., मेने तेज-तेज कदम बढ़ाकर बचने की कोशिश की लेकिन यहाँ अंधेरे में आते ही उन्होने मुझे ज़बरदस्ती पकड़ लिया और मेरे साथ….सू..सू…सू..!
संजू – कहाँ रहती हो, आओ मे तुम्हें छोड़ देता हूँ..,
लड़की – मे कुछ दूर पर एक कमरा किराए पर लेकर रहती हूँ, गाओं से यहाँ पढ़ने आई थी.., भगवान आपका भला करे..,
समय पर आकर आपने मेरी इज़्ज़त बचा ली.., वरना मे कहीं मूह दिखाने लायक नही रहती..!
संजू – चलो मे तुम्हें तुम्हारे कमरे तक छोड़ देता हूँ.., इतना कहकर वो अपनी बाइक पर जा बैठा, पीछे वो लड़की भी बैठ गयी…!
कुछ देर बाद वो एक मामूली सी बस्ती के एक कोने में बने एक छोटे से मकान के एक बाहरी साइड बने कमरे में बैठे थे…!
लड़की – मे आपको क्या कहकर बुलाऊ..?
संजू – मेरा नाम संजू है.., तुम मुझे अपना भाई मान सकती हो..,
लड़की – मेरा नाम निर्मला है.., और सच कहूँ तो आप मुझे मेरे भाई ही लगे.., जिसने अपनी जान जोखिम में डाल कर आज एक अंजान लड़की की इज़्ज़त बचाकर अपने भाई होने का सबूत दिया है…!
वैसे आप करते क्या हैं…?
संजू उसके इस सवाल पर चुप रह गया.., जब कुछ देर उसने कुछ नही बोला तो निर्मला बोली – कोई बात नही अगर आप नही बताना चाहते तो ना सही..,
वैसे भी इस अंजान शहर में आपको भाई मानकर मेने कोई तो अपना पाया है.., अब काम जो भी हो उससे हमारे नये रिश्ते पर क्या फरक पड़ना है…?
संजू – ऐसी बात नही है निर्मला.., दरअसल मे जो करता हूँ, उसे जानकर कहीं तुम मुझसे नफ़रत ना करने लगो..,
ना जाने मेरे मूह से क्यों तुम्हारे लिए बेहन शब्द निकल गया.., वरना मे तो इतना गिरा हुआ इंसान हूँ.., जिसने अपनी खुद की सग़ी बेहन को अपनी नाकामियों की बलि चढ़ा दिया…!
इतना कहते कहते संजू का गला भर आया.., लाख रोकने पर भी उसकी आँखों में दो बूँद पानी की तैर गयी…!
निर्मला ने उसके पास जाकर अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया.., हाथ से उसकी पीठ पर बड़े स्नेह से सहलाते हुए बोली –
मे ये कभी नही मान सकती कि तुम्हारे जैसा भाई अपनी बेहन के साथ कुछ भी ग़लत कर सकता हो या किया हो…!
ज़रूर कुछ ऐसे हालत रहे होंगे.., जिनके हाथों इंसान हमेशा मजबूर होता आया है.., अगर चाहो तो अपना गम इस बेहन के साथ शेयर कर सकते हो, मन हल्का हो जाएगा….!
संजू ने एक लंबी साँस लेकर अपनी आप बीती उसे सुनाई.., जिसे सुनकर उन दोनो की आँखें झर-झर बरसने लगी.., फिर माहौल को हल्का करते हुए निर्मला बोली…!
आज से ये बेहन हमेशा अपने भाई के साथ खड़ी होगी.., अब तुम अपने आपको अकेला मत समझना भाई…, मुझे तुम्हारे इन कामों से कोई गिला नही है..,
बस में ये चाहूँगी कि हो सके तो मुझे भी ऐसे हालातों से लड़ने लायक बना दो, जिससे फिर एक बार अपनी बेहन को हालातों की वजह से खोना ना पड़े…!
चार पैसे कमाने के लिए कोई भी काम ग़लत नही होता.., ग़लत होता है सही के साथ ग़लत करना.., अगर तुम चाहो तो मे भी तुम्हारे इस काम में हाथ बँटाना चाहूँगी.., जिससे तुम्हें ये ना लगे कि तुम कुछ ग़लत करते हो…!
कुछ देर तक उसे संजू ये सब ना करने की सलाह देता रहा.., फिर जब निर्मला ने कहा कि अगर तुम समझते हो कि ये काम मेरे लिए ग़लत है, तो फिर तुम भी छोड़ दो…!
उसके तर्क सुनकर संजू को झुकना ही पड़ा.., और उसे अपने साथ शामिल करने का प्रॉमिस करके वो वहाँ से चला गया…!
दूसरे दिन लीना ने भानु को अपने गॅंग के मेन मेन लोगों से मिलवाया.., युसुफ उससे पहले ही मिल चुका था.., लेकिन संजू आज ही मिला था..!
भानु की एहमियत लीना के लिए अपने से ज़्यादा देखकर संजू को कुछ अट-पटा सा लगा.., लेकिन अपने में मस्त रहने वाला संजू इस बात को नज़रअंदाज कर गया..!
बहरहाल कुछ दिन और ऐसे ही निकल गये.., इस बीच संजू निर्मला को कुछ लड़ाई के दाँव-पेंच सिखाने लगा..,
फिर एक दिन उसने उसे लीना से भी मिलवाया, और उसकी इच्छा उसे बताई.., लीना को स्टूडेंट्स की तो वैसे ही ज़रूरत रहती थी.., क्योंकि सबसे ज़्यादा ड्रग्स सप्लाइ कॉलेजस में ही होती है…!
तो भला उसे क्या एतराज हो सकता था.., लिहाजा निर्मला और संजू ज़्यादातर साथ साथ रहने लगे…, दोनो एक दूसरे की बहुत इज़्ज़त करते थे,
दोनो में भाई-बेहन का पाक रिस्ता था.., दोनो के बीच किस तरह का रिस्ता है ये बात संजू ने अपने वाकी साथियों को भी बता दी थी..!
फिर भला उसके गॅंग में किसकी मज़ाल जो उसे गंदी नज़र से देख भी सके…, धीरे-धीरे निर्मला के और दोस्त भी उसके साथ आगये और धंधे में संजू का हाथ बंटाने लगे..!
धंधे की बातों के अलावा लीना उर्फ कामिनी और भानु के बीच अक्सर ये बातें होती रहती थी कि कैसे और किस तरह से अंकुश से कुछ इस तरह से बदला लिया जाए कि वो जिंदा रहते हुए भी तिल-तिल कर मरे…!
उधर इन सारी साज़िशों से दूर शरमा फॅमिली में खुशियों की नित नयी कहानियाँ जनम लेती रहती थी.., सब लोग मिल-जुलकर शहर वाले बंगले में रहने लगे थे…!
हफ्ते में दो एक बार प्राची और एसएसपी कृष्ण कांत आकर परिवार के साथ समय बिताते थे.., वहीं बाबूजी महीने में एक दो बार गाओं जाकर दोनो चाचियों के साथ समय व्यतीत कर लेते थे..,
मे भी कभी कभार छोटी चाची से मिलने चला जाता था, वो भी अपने बेटे को मिलने चाचा के साथ शहर आ जाती थी…!
भाभी और निशा दोनो बहनें मेरे लिए कभी-कभी जन्नत भरा माहौल पैदा कर देती..,
कुल मिलाकर कुछ किलोमीटर की दूरियाँ भी हम सबके बीच ना के बराबर ही थी…!
इस बीच कुछ मित्रों की कंप्लेंट भी बहुत आती रही कि हम अपने मुख्य पात्रों को भूल तो नही गये.., ये कहानी कहाँ से कहाँ चली जा रही है ब्ला..ब्ला…ब्ला…!
तो अब सभी मित्रों की शिकायत दूर करने का समय आ गया है.., क्यों ना अब साथ साथ में कुछ उनकी भी चर्चा कर ली जाए…………..!
समय काफ़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहा था.., जैसा कि मेने तय किया था कि जब हमारा शहर वाला बंगला तैयार हो जाएगा.., हमारा सारा परिवार चाची के अंश को लेकर शहर शिफ्ट हो जाएगा…!
शहर में आकर कुछ दिन बाद ही नेक्स्ट सेशन से बड़े भैया ने भी गुप्ता जी के डिग्री कॉलेज में बतौर प्रोफेसर जाय्न कर लिया..!
मेरी बिटिया जिसका भाभी ने तृष्णा नाम रखा, वो भी अब बोलने, चलने फिरने लगी थी.., इसी बीच रूचि ने भी10थ पास कर लिया था..
प्राची ने अपना ग्रॅजुयेशन कर लिया था.., मन्झ्ले भैया उसे पोलीस में सेलेक्ट करवाना चाहते थे.., लेकिन प्राची का दिल नही था कि वो किसी बंधन में रह कर काम करे…!
शुरू से ही वो मेरे साथ रहने के कारण स्वतन्त्र रहने की आदि थी..,
एक दिन मे भी उनके बंगले पर ही था.., हम तीनों के बीच इसी बात को लेकर चर्चा थी.., भैया उसे पोलीस जाय्न करने को प्रोत्साहित कर रहे थे.., लेकिन उसका मन नही था.. सो वो मेरी तरफ मुखातिब होकर बोली…
अंकुश भैया आप बताओ मुझे क्या करना चाहिए.., वैसे मे अपने देश और क़ानून की बहुत इज़्ज़त करती हूँ,
लेकिन किसी बंधन में रह कर क़ानून की हिफ़ाज़त करना मुझे गंवारा नही है.., ख़ासकर पोलीस में जहाँ अपने मन से कोई भी डिसिशन ले ही नही सकते…!
हम कुछ अच्छा करना भी चाहें तो उपर के प्रेशर की वजह से कभी कभी हाथ बँधे होते हैं…!
कृष्णा – तो फिर छोड़ो सब कुछ और आराम से तुम घर संभालो.., हमें भी ऐसी कोई ज़रूरत भी नही है कि तुम कुछ करो ही करो..!
प्राची – लेकिन मुझे खाली बैठना भी तो अच्छा नही लगता.., जो कुछ अब तक मेने अंकुश भैया के साथ रहकर सीखा और जाना है उसे वेस्ट भी करना नही चाहती…!
मेरे पास तुम्हारे लायक एक बहुत ही उम्दा प्लान है अगर पसंद हो तो.., मेने उन दोनो की बातों के बीच पड़ते हुए कहा…
वो दोनो मेरी तरफ देखने लगे.., मेने अपनी बात जारी रखते हुए कहा – क्यों ना तुम एक प्राइवेट डीटेक्टिव एजेन्सी खोल लो..!
तुम्हारा टॅलेंट भी काम आता रहेगा.., और इनडाइरेक्ट्ली क़ानून और पोलीस की मदद भी करती रहोगी.., क्यों क्या ख्याल है…?
मेरी बात पर भैया कुछ नाखुश नज़र आए., लेकिन प्राची उनकी नापसंदगी को नज़रअंदाज करते हुए बोली –
बात तो पते की है.., लेकिन इस काम को मे अकेली तो नही कर पाउन्गि.., आपको इसमें मेरा साथ देना होगा…!
मे – ज़रूर..! मेरे पास भी इतना ज़्यादा काम नही होता है, उसे जूनियर स्टाफ कुछ हद तक संभाल ही लेता है..,
एजेन्सी ज़रूर तुम्हारे नाम से होगी.., लेकिन ज़्यादातर फील्ड वर्क हम दोनो ही मिलकर संभालेंगे.., क्यों भैया..फिर तो आपको कोई प्राब्लम नही है इस काम से..!
कृष्णा भैया हथियार डालते हुए बोले – जैसा तुम दोनो ठीक समझो.., चलो अच्छा है कुछ मेरे केस भी आसानी से हल हो जाया करेंगे जिन्हें मे सिस्टम के बंधनों के कारण नही कर पाता…!
बात फाइनल करते ही मे इस काम में जुट गया.., प्राची के नाम से एक डीटेक्टिव एजेन्सी रेगिसेर कर दी, एड देकर कुछ इक्च्छुक युवकों का स्टाफ भी रख लिया जिससे शुरुआत करने में आसानी रहे…!
हमारे प्रयासों से धीरे धीरे कुछ छोटे-मोटे केस भी आने लगे.., जैसे किसी की पत्नी अपने पति की जासूसी करवाना चाहती थी.., कोई पति अपनी पत्नी की…
किसी का किडनप का केस तो किसी के यहाँ चोरी चाकारी का.., पोलीस में एसएसपी तक की पवर थी ही.., लॉ को ध्यान में रखते हुए प्राची की डीटेक्टिव एजेन्सी का काम जमने लगा…………!
मुझे ये तो पता ही था कि भानु उस किल्लिंग में बच निकला है.., और बहुत हद तक वो इस शहर में तो रहेगा नही.., तो मुमकिन है वो फिरसे अपनी बेहन शालिनी के पास ही गया होगा…!
हमने अपने कुछ लोग उसकी टोह में लगा दिए.., ऐसे साँप पर नज़र रखना बेहद ज़रूरी भी था.., क्या पता मौका देख कर कब अपना जहर उगल दे…!
इसी दौरान प्राची ने ये पता लगा लिया कि भानु की बीवी मालती इस शहर को छोड़कर अपनी ननद वाले शहर में शिफ्ट हो चुकी है..,
मेरा अनुमान सही निकला… तो ज़रूर भानु भी वहीं होना चाहिए…!
क्योंकि उसकी नज़र में पोलीस या मुझे ये नही पता होगा कि वो बच निकला है.., तो बस लोकल पोलीस की नज़रों से बच कर वो कहीं भी रह सकता है…!
कस्बे की ज़मीन जयदाद बेचकर उसके पिता सुर्य प्रताप भी वहीं बस गये थे.., लड़के की करतूतों से उनकी कमाई हुई इज़्ज़त मिट्टी में जो मिल गयी थी.., तो फिर वहाँ रह कर करते भी क्या..?
उधर पड़ौस के ही शहर में ड्रग्स और हथियारों की तस्करी अप्रत्याशित रूप से बढ़ने लगी थी.., जिसका थोड़ा बहुत असर आस-पास के शहरों तक पड़ना स्वाभाविक ही था..,
ये भी सर्व विदित है की पोलीस कहीं की भी हो उसका हाथ इन माफियाओं के साथ हो ही जाता है.., 100 में से कोई एक अधिकारी ईमानदार भी हो तो उसे अपनी जान की परवाह बनी रहती है..,
यही हाल उस शहर का भी था नतीजा लीना का तस्करी का कारोबार खूब फल फूल रहा था.., उपर से संजू की ख़ूँख़ार प्रवृति ने इलाक़े में दहशत फैला रखी थी..!
उसके हाथों कुछ मर्डर भी हो चुके थे.., लेकिन लीना की पहुँच पोलीस प्रशासन में बहुत उपर तक थी.., उपर से वो बेहद सुन्दर भी थी..
आज के युग में जहाँ किसी चीज़ से काम ना बने वहाँ औरत के काम बान काम आ ही जाते हैं.., युसुफ की तीनों बहनें भी इस काम में दक्ष हो चुकी थी..,
शबाब और पैसे से आज कुछ भी हासिल हो सकता है.., तो बस लीना दिनो-दिन अपना कारोबार बढ़ाती जा रही थी.., जिसकी गूँज 70-80 किमी दूर हमारे इस शहर तक भी पहुँच गयी..!
लेकिन यहाँ की पोलीस के कुछ ईमानदार प्रयासों से उनके पैर इस शहर में जम नही पा रहे थे..,
हमारे आदमी भानु पर नज़र रखने की वजह से इस शहर की खबरें भी रखते थे.., भानु पर नज़र रखने के साथ साथ हमने उन्हें इस गॅंग की अधिक से अधिक जानकारी जुटाने में लगा दिया…!
लीना के बेहद करीबी युसुफ और संजू का हमें पता चल चुका था.., इसलिए अब हमने खुद मैदान में कूदने का फ़ैसला कर लिया..,
सबसे पहले हमने उन दोनो की जन्म कुंडली निकालने का प्रयास किया.., युसुफ तो लोकल ही था.., तो उसकी सारी डीटेल्स आसानी से मिल गयी, लेकिन संजू महाराष्ट्रा से था.. तो उसका बॅकग्राउंड पता करने में थोड़ी मसक्कत करनी पड़ी…!
लेकिन एक बात जो उसकी खास थी.., वो थी उसके हाइ एमोशन्स, आगे पीछे कोई था नही उसके.., जिसके लिए वो कमाने खाने का लालच रखता हो..,
बस कुछ था तो युसुफ के साथ लगाव वो भी उसने उसकी जान बचाई थी इसलिए, और यहाँ आकर उसकी बहनों की चूतें जिन्हें वो जब चाहता चोद लेता था…!
हां लेकिन आज भी उसकी पहली पसंद थी लीना.., भले ही वो युसुफ की दोनो बहनों की तुलना में उम्र दराज थी..,
लेकिन नियमित एक्सर्साइज़ और अच्छे रहन सहन के कारण वो आज भी उनसे ज़्यादा जवान और मर्द मार औरत दिखती थी…!
मेने प्राची को संजू के पीछे लगा दिया.., लेकिन वो ज़्यादातर अपने साथ दो-चार गुर्गे रखता ही था.., फिर भी मौका तो निकालना ही था.. जो कभी ना कभी किसी मोड़ पर मिल ही जाना था..!
प्राची अपनी तरफ से पूरी कोशिश में जुटी थी.., तभी एक अजीब घटना प्रकाश में आई.., जो हमारे आदमी को कुछ देर से पता चली…!
हुआ यों कि एक दिन लीना एक बड़े से शॉपिंग माल से बाहर निकली.., माल से बाहर आते ही.. उसके इंतेजार में खड़े उसके आदमी जिनमें युसुफ तो माल के अंदर से ही उसके साथ था बाहर से तीन और साथ हो लिए…!
हर समय वो एक दम सजी-धजी.., कंधे तक के सुनहरी बाल, सिर पर गोल कॅप जिससे कुछ हद तक उसका चेहरा दूर से नज़र नही आता था.., आँखों पर स्याह काले गॉग्ल्स..!
अभी वो पार्किंग में खड़ी अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ ही रही थी कि अपने पास से ही आती हुई एक जानी पहचानी सी आवाज़ ने उसे ठिठकने पर
मजबूर कर दिया....!
बगल से गुज़रते हुए एक सरदार ने उसे धीरे से पुकारा… अरे कामिनी मेडम आप…?
ये शब्द सुनते ही उसके कदम वहीं थम गये और किसी स्वचालित खिलौने की तरह वो आवाज़ की दिशा में घूम गयी…………….!
इन शब्दों में ना जाने कैसा जादू सा था, सुनते ही लीना बुरी तरह से चोंक पड़ी.., उसे उस सरदार की आवाज़ कुछ जानी-पहचानी सी भी लगी..,
वो पलटकर उस सरदार की तरफ देखने लगी जो उसे ठिठकता देख लपक कर उसकी ओर आने लगा…!
युसुफ के लिए ये नाम नितांत नया था, उसने अपने आस-पास नज़र घुमा कर देखा लेकिन उसे दूर दूर तक कोई और महिला दिखाई नही दी…!
उसने उस सरदार को अपने पास आने से रोकना चाहा तो लीना ने हाथ का इशारा करके उसे रोक दिया और सरदार को अपने पास आने दिया..,
उसके अत्यधिक नज़दीक जाकर वो सरदार लगभग फुसफुसा कर बोला – पहचाना मेडम मे भानु.., आपके लिए काम किया करता था..?
लीना ने अपने होठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का संकेत किया और चुपचाप अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ते हुए बोली – आओ मेरे साथ…!
लीना ने युसुफ को दूसरी गाड़ी में आने का इशारा किया और भानु को लेकर वो अपनी गाड़ी में आकर बैठ गयी.., रास्ते में भानु अपने मन की उत्सुकता को नही दबा पाया और बोला…
मेने तो सुना था मेडम कि आप भी उस हादसे में वाकी लोगों के साथ ही…
लीना जो वास्तव में कामिनी ही थी बोली – पहली बात, अभी मे इस नाम को भूल चुकी हूँ, मेरे सभी आदमी मुझे लीना के नाम से जानते हैं.., सो आगे से इस बात का ख्याल रखना…,
रही बात मेरे मरने या जीवित होने की तो सभी को यही अनुमान था कि मे भी वहीं ख़तम हो गई हूँ.., लेकिन मेरा भाग्य अच्छा था…!
अंकुश मुझे गोली मारने के बाद ज़्यादा देर तक वहाँ नही रुका.., भाग्यबस गोली भी मेरे सीने में दिल से ज़रा हटकर लगी थी.., मे उस समय तो अपने होश खो ही चुकी थी…!
लेकिन तभी मेरा ड्राइवर रामसिंघ गुप्त गॅलरी में हुई उस फाइरिंग की आवाज़ सुनकर दौड़ता हुआ वहाँ जा पहुँचा, तबतक अंकुश मुझे मरा समझकर वहाँ से जा चुका था..!
ड्राइवर ने मुझे आनन-फानन में उठाकर गाड़ी में डाला और समय रहते वो मुझे मेरे पर्सनल डॉक्टर के पास ले गया.., जहाँ उसने समय पर मेरी गोली निकाल दी..!
दूसरे दिन जब मुझे होश आया तो मे पूरी तरह ख़तरे से बाहर थी.., एक हफ्ते वहीं रहकर मेने डॉक्टर को ढेर सारा इनाम दिया, और फिर हम तीनों ने ही चुपके से वो शहर छोड़ दिया…!
रामसिंघ तो आज भी मेरे साथ ही है जो अभी भी तुम्हारे सामने, मेरी गाड़ी चला रहा है.., सही मायने में मुझे दूसरी जिंदगी देने वाला यही है…!
कुछ साल मेने मुंबई में गुज़ारे, फिर मुझे एक दिन दो हीरे हाथ लगे, जिनमें एक जो अभी तुम्हें मेरे पास आने से रोक रहा था दूसरा कहीं मार-पीट में उलझा होगा…!
युसुफ यहीं कहीं पास के गाओं का है.., इसको पैसों की ज़रूरत थी.., दोनो मिलकर मुंबई में छोटी-मोटी वारदातें किया करते थे, सो मेने उन्हें अपने साथ ले लिया..,
कुछ समय पहले ही मेने यहाँ अपना कारोबार शुरू किया है.., दोनो की लगन और टीम वर्क से कुछ ही समय में मे पहले से भी बड़ी ड्रग्स और हथियारों की डीलर बन चुकी हूँ..!
अब तुम अपने बारे में बताओ.., तुम इस तरह भेष बदलकर क्यों छुप्ते फिर रहे हो..?
भानु एक लंबी सी साँस छोड़कर बोला – मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था मेडम.., फिर उसने श्वेता के कहने पर अंकुश के किडनप और उसके साथ श्वेता ने क्या क्या किया.., वो सब उसे बताता चला गया…!
कामिनी ये सब मूह बाए सुनती रही.., फिर जब उसने बताया कि कैसे मोहिनी ने आकर उसे उनके चंगुल से निकाला जिसे सुनकर कामिनी के मूह से किसी ज़हरीली नागिन की तरह फुफ्कार निकली…!
वो हरम्जादि कुतिया हर बार मेरे रास्ते का काँटा बनती रही है.., अब मे सबसे पहले उसको ही अपने रास्ते से हटाउंगी.., उसके बाद उस हरम्जादे अंकुश से अपना बदला लूँगी…!
फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए बोली - खैर आगे बोलो.., फिर क्या हुआ…?
भानु – मे किसी तरह वहाँ से बच निकला और इसी शहर में अपनी बेहन के पास छुप्कर रहने लगा.., वहाँ की पोलीस कुत्ते की तरह मुझे तलाश कर रही थी…!
फिर ना जाने कहाँ से उस हरम्जादे वकील को मेरे यहाँ होने की भनक लग गयी.., शिकारी कुत्ते की तरह सूंघते हुए वो उसी जोसेफ के भेष में मेरी बेहन से मिला….,
पुराने धंधे को दुबारा खड़ा करने का लालच देकर उसने मेरी बेहन से मेरा पता निकलवा लिया.., सच कहूँ तो मे भी उसके झाँसे में फँस गया, और एक बार फिर उसके हत्थे चढ़ गया…!
मुझे ब्लॅकमेल करके उसने वो कांड करा दिया जिसकी कल्पना करते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं.., भानु ने उसे वो सब बताया जो उसने श्वेता और उसकी फ्रेंड के साथ किया था…!
फिर उसने ना जाने कैसे श्वेता के पति को वहाँ भेज दिया.., जिसने हमारा सारा गॅंग बॅंग अपनी आँखों से देख लिया…!
गुस्से में अंधे पुष्पराज ने वहाँ मौजूद सबको गोली से उड़ा दिया और खुद को भी गोली मार ली..,
उस सामूहिक हत्याकांड में मे भाग्यबस बच गया.., गोली.. मेरे सिर की एक साइड को चीरते हुए निकल गयी थी..,
हालाँकि घाव काफ़ी गहरा था.., लेकिन किसी तरह बचते बचाते में शहर के विपरीत दिशा में जंगलों की ओर निकल गया.., जहाँ एक नदी तक पहुँचते पहुँचते मेरे होश जबाब दे गये…!
नदी के पानी में हाथ देते ही में वहीं पानी में गिर गया..,
मुझे नही पता मे कितने दिन बेहोश रहा, लेकिन जब होश में आया तो किसी छोटे से गाओं में किसी मल्लाह (केवट) की छोटी सी झोंपड़ी में था…
जो नदी से मुझे अपने घर ले आया और उसने देशी जड़ी बूटियों के सहारे नयी जिंदगी दी.., उसी के मुताविक में पूरे एक हफ्ते तक बेहोश रहा था…!
वहाँ से किसी तरह भेष बदलकर मे फिरसे इसी शहर में आ बसा हूँ.., पोलीस रेकॉर्ड में मे मर चुका हूँ.., जिसका फ़ायदा उठा रहा हूँ..,
कामिनी – तो अब क्या प्लान है.., ?
भानु – घर गृहस्थी तो जैसे चलनी थी वैसे चल रही है.., पिताजी ने अपने नाम से कुछ कारोबार शुरू किया है.., लेकिन अब जब आप दोबारा मिल ही गयी हैं तो एक बार फिर उस हरामी वकील को सबक सिखाने का दिल करने लगा है…!
कामिनी – तुम चिंता मत करो.., इस बार उसे उसके परिवार के साथ पूरी तरह ख़तम करके ही रहूंगी.., मे उसे मरते दम तक नही भूल सकती…!
जिसके कारण मेरा कारोबार, घर परिवार सब कुछ तबाह हो गया हो उसे मे यूँही आसानी से कैसे भुला सकती हूँ..,
सच पूछो तो मेरा मुंबई से यहाँ आने का मक़सद भी यही है..,
आज मेरे पास पैसा हैं, ताक़त है.., और सबसे बढ़कर एक ऐसा आदमी है जिसे बस एक बार इशारा करना है.., वो उसके घर में घुसकर सब कुछ तबाह कर देगा ..!
भानु उत्साहित स्वर में बोला – तो फिर देर किस बात की मेडम..?
कामिनी – मे उसे इतनी आसानी से नही मारूँगी.., उसे पहले अपनों के लिए तड़पना होगा…ख़ासकर उसकी उस प्यारी मोहिनी भाभी के लिए.., जिसने उसे इस काबिल बनाया है…!
बस तुम कुछ दिन मेरे साथ रहकर मेरे आदमियों के साथ काम में हाथ बँटाओ.., उन्हें समझो..अपने को उनके साथ ढालो.., हम जल्दी ही इस काम को अंजाम देंगे…!
फिर उसने अपने ड्राइवर को रास्ते में ही गाड़ी रोकने का इशारा किया, भानु को वहीं उतारकर अपने अड्डे का पता देकर खुद आगे बढ़ गयी……!
उसी शाम संजू एक छोटे से गॅंग से अपने माल की बसूली करके लौट रहा था, अपने गुर्गों को उसने उनके घर भेज दिया.., और अकेला ही अड्डे की तरफ जा रहा था..,
अंधेरा घिर चुका था.., शहर की ख़स्ताहाल व्यवस्था ये थी.., कि मैं सड़क पर भी स्ट्रीट लाइट ना के बराबर थी..,
इस समय उसकी बाइक एक संकरी अंधेरी गॅली से गुजर रही थी.., कि तभी उसने अपनी बाइक की हेड लाइट में कुछ इंसानी जिस्मों को हरकत करते देखा..!
थोड़ा नज़दीक आने पर पता चला कि 4 लफंगे एक अकेली लड़की के साथ छेड़-छाड़ कर रहे हैं..,
सलीके के सलवार सूट पहनी वो लड़की यथा संभव अपने आप को उन गुण्डों से बचाने के लिए जद्दो जहद कर रही थी…!
जगह जगह से उसके कपड़े फट चुके थे जहाँ से उसका दूधिया अंग दिखाई देने लगा था.., वो मदद के लिए गुहार भी लगा रही थी.., लेकिन वहाँ कोई सुनने वाला हो तब तो आए..!
और अगर कोई सुन भी रहा होगा तो अपनी जान बचाने की गरज से देख कर भी अनदेखा करके खिसक लिया होगा…!
संजू ने उनसे कुछ दूरी पर अपनी बाइक रोकी, उसे साइड स्टॅंड पर टीकाया और वहीं से उसने उन लोगों को चेतावनी देते हुए कहा…!
ये छोड़ो उसे.., क्यों परेशान कर रहे हो एक बेचारी लड़की को…?
लेकिन उन गुण्डों पर उसकी बात का कोई असर होता दिखाई नही दिया, और वो उसे लगातार उसके बदन से खिलवाड़ करने में लगे रहे…!
संजू को ये बात असहनीय लगी और वो लपक कर उन गुण्डों के पास जा पहुँचा.., जाते ही उसने आनन-फानन में दो को पकड़ कर एक तरफ को उछाल दिया…
देखते ही देखते वहाँ घमासान छिड़ गया, संजू उनपर भारी पड़ रहा था.., अकेले ने उन चारों गुण्डों को दुम दबाकर भागने पर मजबूर कर दिया…!
जब वी चारों वहाँ से जान बचाकर भाग खड़े हुए तब संजू ने उस लड़की की तरफ ध्यान दिया.., जो सड़क के एक अंधेरे से कोने में बैठी डर के मारे घुटनों में मूह देकर सूबक रही थी……!
संजू ने धीरे से उसके कंधे पर अपना हाथ रखा.., वो लड़की उसका हाथ रखते ही बुरी तरह से काँप गयी.., सिर उठाकर देखा तो संजू बोला
– घबराओ नही.., वो लोग भाग गये अब तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नही है…!
लड़की उठकर उसके सीने से लिपट गयी और फुट-फुट कर रो पड़ी.., संजू ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – कॉन हो तुम और यहाँ क्या कर रही थी…?
लड़की – मे कोचिंग से आ रही थी.., कि तभी ये गुंडे मेरे पीछे लग लिए.., मेने तेज-तेज कदम बढ़ाकर बचने की कोशिश की लेकिन यहाँ अंधेरे में आते ही उन्होने मुझे ज़बरदस्ती पकड़ लिया और मेरे साथ….सू..सू…सू..!
संजू – कहाँ रहती हो, आओ मे तुम्हें छोड़ देता हूँ..,
लड़की – मे कुछ दूर पर एक कमरा किराए पर लेकर रहती हूँ, गाओं से यहाँ पढ़ने आई थी.., भगवान आपका भला करे..,
समय पर आकर आपने मेरी इज़्ज़त बचा ली.., वरना मे कहीं मूह दिखाने लायक नही रहती..!
संजू – चलो मे तुम्हें तुम्हारे कमरे तक छोड़ देता हूँ.., इतना कहकर वो अपनी बाइक पर जा बैठा, पीछे वो लड़की भी बैठ गयी…!
कुछ देर बाद वो एक मामूली सी बस्ती के एक कोने में बने एक छोटे से मकान के एक बाहरी साइड बने कमरे में बैठे थे…!
लड़की – मे आपको क्या कहकर बुलाऊ..?
संजू – मेरा नाम संजू है.., तुम मुझे अपना भाई मान सकती हो..,
लड़की – मेरा नाम निर्मला है.., और सच कहूँ तो आप मुझे मेरे भाई ही लगे.., जिसने अपनी जान जोखिम में डाल कर आज एक अंजान लड़की की इज़्ज़त बचाकर अपने भाई होने का सबूत दिया है…!
वैसे आप करते क्या हैं…?
संजू उसके इस सवाल पर चुप रह गया.., जब कुछ देर उसने कुछ नही बोला तो निर्मला बोली – कोई बात नही अगर आप नही बताना चाहते तो ना सही..,
वैसे भी इस अंजान शहर में आपको भाई मानकर मेने कोई तो अपना पाया है.., अब काम जो भी हो उससे हमारे नये रिश्ते पर क्या फरक पड़ना है…?
संजू – ऐसी बात नही है निर्मला.., दरअसल मे जो करता हूँ, उसे जानकर कहीं तुम मुझसे नफ़रत ना करने लगो..,
ना जाने मेरे मूह से क्यों तुम्हारे लिए बेहन शब्द निकल गया.., वरना मे तो इतना गिरा हुआ इंसान हूँ.., जिसने अपनी खुद की सग़ी बेहन को अपनी नाकामियों की बलि चढ़ा दिया…!
इतना कहते कहते संजू का गला भर आया.., लाख रोकने पर भी उसकी आँखों में दो बूँद पानी की तैर गयी…!
निर्मला ने उसके पास जाकर अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया.., हाथ से उसकी पीठ पर बड़े स्नेह से सहलाते हुए बोली –
मे ये कभी नही मान सकती कि तुम्हारे जैसा भाई अपनी बेहन के साथ कुछ भी ग़लत कर सकता हो या किया हो…!
ज़रूर कुछ ऐसे हालत रहे होंगे.., जिनके हाथों इंसान हमेशा मजबूर होता आया है.., अगर चाहो तो अपना गम इस बेहन के साथ शेयर कर सकते हो, मन हल्का हो जाएगा….!
संजू ने एक लंबी साँस लेकर अपनी आप बीती उसे सुनाई.., जिसे सुनकर उन दोनो की आँखें झर-झर बरसने लगी.., फिर माहौल को हल्का करते हुए निर्मला बोली…!
आज से ये बेहन हमेशा अपने भाई के साथ खड़ी होगी.., अब तुम अपने आपको अकेला मत समझना भाई…, मुझे तुम्हारे इन कामों से कोई गिला नही है..,
बस में ये चाहूँगी कि हो सके तो मुझे भी ऐसे हालातों से लड़ने लायक बना दो, जिससे फिर एक बार अपनी बेहन को हालातों की वजह से खोना ना पड़े…!
चार पैसे कमाने के लिए कोई भी काम ग़लत नही होता.., ग़लत होता है सही के साथ ग़लत करना.., अगर तुम चाहो तो मे भी तुम्हारे इस काम में हाथ बँटाना चाहूँगी.., जिससे तुम्हें ये ना लगे कि तुम कुछ ग़लत करते हो…!
कुछ देर तक उसे संजू ये सब ना करने की सलाह देता रहा.., फिर जब निर्मला ने कहा कि अगर तुम समझते हो कि ये काम मेरे लिए ग़लत है, तो फिर तुम भी छोड़ दो…!
उसके तर्क सुनकर संजू को झुकना ही पड़ा.., और उसे अपने साथ शामिल करने का प्रॉमिस करके वो वहाँ से चला गया…!
दूसरे दिन लीना ने भानु को अपने गॅंग के मेन मेन लोगों से मिलवाया.., युसुफ उससे पहले ही मिल चुका था.., लेकिन संजू आज ही मिला था..!
भानु की एहमियत लीना के लिए अपने से ज़्यादा देखकर संजू को कुछ अट-पटा सा लगा.., लेकिन अपने में मस्त रहने वाला संजू इस बात को नज़रअंदाज कर गया..!
बहरहाल कुछ दिन और ऐसे ही निकल गये.., इस बीच संजू निर्मला को कुछ लड़ाई के दाँव-पेंच सिखाने लगा..,
फिर एक दिन उसने उसे लीना से भी मिलवाया, और उसकी इच्छा उसे बताई.., लीना को स्टूडेंट्स की तो वैसे ही ज़रूरत रहती थी.., क्योंकि सबसे ज़्यादा ड्रग्स सप्लाइ कॉलेजस में ही होती है…!
तो भला उसे क्या एतराज हो सकता था.., लिहाजा निर्मला और संजू ज़्यादातर साथ साथ रहने लगे…, दोनो एक दूसरे की बहुत इज़्ज़त करते थे,
दोनो में भाई-बेहन का पाक रिस्ता था.., दोनो के बीच किस तरह का रिस्ता है ये बात संजू ने अपने वाकी साथियों को भी बता दी थी..!
फिर भला उसके गॅंग में किसकी मज़ाल जो उसे गंदी नज़र से देख भी सके…, धीरे-धीरे निर्मला के और दोस्त भी उसके साथ आगये और धंधे में संजू का हाथ बंटाने लगे..!
धंधे की बातों के अलावा लीना उर्फ कामिनी और भानु के बीच अक्सर ये बातें होती रहती थी कि कैसे और किस तरह से अंकुश से कुछ इस तरह से बदला लिया जाए कि वो जिंदा रहते हुए भी तिल-तिल कर मरे…!
उधर इन सारी साज़िशों से दूर शरमा फॅमिली में खुशियों की नित नयी कहानियाँ जनम लेती रहती थी.., सब लोग मिल-जुलकर शहर वाले बंगले में रहने लगे थे…!
हफ्ते में दो एक बार प्राची और एसएसपी कृष्ण कांत आकर परिवार के साथ समय बिताते थे.., वहीं बाबूजी महीने में एक दो बार गाओं जाकर दोनो चाचियों के साथ समय व्यतीत कर लेते थे..,
मे भी कभी कभार छोटी चाची से मिलने चला जाता था, वो भी अपने बेटे को मिलने चाचा के साथ शहर आ जाती थी…!
भाभी और निशा दोनो बहनें मेरे लिए कभी-कभी जन्नत भरा माहौल पैदा कर देती..,
कुल मिलाकर कुछ किलोमीटर की दूरियाँ भी हम सबके बीच ना के बराबर ही थी…!