Update 77

मेरी वकालत का काम अच्छा चल रहा था.., जिसमें मुझे ज़्यादा कुछ नही करना पड़ता था.., ज़्यादातर क्लाइंट्स उध्योग्जगत से थे, फिक्स काम था जिसे स्टाफ के लोग संभाल लेते थे…!

उधर दूसरे शहर में तेज़ी से पनप रही अपराधिक गतिविधियों पर हमारी नज़र बराबर बनी हुई थी.., जिसमें हाल ही के कुछ दिनो में एक अभूतपूर्व सफलता हाथ लगी थी…!

प्राची की बहुत दिनो से चल रही कोशिश कामयाब रही थी.., बस अब हमें इंतेजार था तो सही मौके का जिसमें एक ही बार में सारी बुराइयाँ ख़तम हो जानी थी…!

प्राची के मूह से संजू के बारे में इतना कुछ सुन सुनकर उससे एक बार मिलने की मेरी उत्सुकता जाग उठी..,

प्राची जो कि ज़्यादातर उसी शहर में रहकर अपने मिशन को अंजाम दे रही थी उसे सारी योजना समझाकर एक दिन मेने संजू से मिलने का मन बना ही लिया……….!

संजू और निर्मला अक्सर शाम के वक़्त शहर से दूर, खुले में घूमने निकल जाया करते थे..,

उस दिन भी वो कुछ देर एक पार्क में घूमकर लौट रहे थे कि तभी एक युवक ने जो देखने में किसी फिल्मी हीरो जैसा दिखता था..,

लाल सुर्ख चेहरे पर हल्की हल्की दादी मून्छे बहुत ही फॅब रही थी उस युवक पर.., संजू और निर्मला जैसे ही पार्क से बाहर आकर सड़क पर चलने लगे…

पीछे से उन दोनो पर फबती कसते हुए वो युवक बोला – वाह क्या जोड़ी है लैला-मजनूं की.., ऐसा लगता है लंगूर के हाथ हूर आ गयी हो…!

संजू ने मुड़कर उस युवक को देखा जो उसे ही देख कर मुस्करा रहा था.., अपने को लंगूर कहे जाने पर ही संजू को उसपर गुस्सा आ रहा था.., उसपर उसकी मुस्कराहट ने आग में घी का काम कर दिया…!

वो उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए बोला – बेटा अभी लंगूर का हाथ नही पड़ा है वरना यहाँ दिखाई भी नही देता…,

और ये लैला मजनूं किसे बोला रे हराम खोर साले ये मेरी बेहन है.., अपने दिमाग़ की गंदगी सॉफ कर जिसमें हर लड़के लड़की के लिए ग़लत ही भाव भरे हैं…

युवक उसकी बात पर ताली बजाते हुए बोला – अरे वाह…पहली बार किसी भाई को इतने अंधेरे में अकेले एकांत में अपनी बेहन को पार्क में घूमते देखा है…!

संजू उसकी बात पर भड़कते हुए बोला – तुझसे मतलब…अपने काम से काम रख वरना….!!!!

वो युवक भी भड़कते हुए बोला – वरना क्या झान्ट उखाड़ेगा तू..?

युवक के मूह से ये शब्द निकलते ही संजू का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा.., इतना उसे गम कहाँ था सो छूटते ही उसने उस युवक पर हाथ छोड़ दिया…!

युवक को उसके इस दुस्साहस की उम्मीद नही थी, संजू का भरपूर मुक्का उसकी कनपटी पर पड़ा.., युवक की आँखों के सामने लाल-पीले तारे जगमगा उठे..,

उसे संजू के मुक्के ने बता दिया कि सामने वाला भी कम नही है.., अभी वो अपने सिर को झटक कर अपने होश ठिकाने लाने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी संजू की आवाज़ उसके कानों में पड़ी…!

क्यों पता चला कि मे क्या कर सकता हूँ, अब चलता बन यहाँ से वरना वो गत बनाउन्गा की घरवाले भी पहचानने से इनकार कर देंगे….!

लेकिन उसके ठीक उलट वो युवक मुस्कराते हुए बोला – मानना पड़ेगा कि तू भी कम खिलाड़ी नही है लेकिन अब मुझे भी तो झेल….!

ये कहते ही उसने संजू के उपर छलान्ग लगा दी.., इससे पहले कि संजू सम्भल पाता, युवक की दोनो टाँगें हवा में उछली, और भड़ाक से उसके दोनो पैर संजू की छाती से जा टकराए….!

लाख संभालने की कोशिश के बावजूद संजू अपनी जगह से 10 फुट पीछे जाकर गिरा.., चोट बहुत तेज लगी थी.., कुछ पल के लिए वो उस चोट से पड़ा रह गया…,

लेकिन जल्दी ही अपने पैरों पर खड़ा होते हुए किसी चीते की तरह उसने युवक पर छलान्ग लगा दी.., उधर वो युवक भी अब पूरी तरह से सतर्क था..,

उसने भी संजू पर ठीक उसी समय छलान्ग लगाई.., नतीजा बीच में ही दोनो के सिर भड़ाक से एक दूसरे से जा टकराए.., दोनो ही अपनी विपरीत दिशा में ज़मीन पर जा गिरे…!

गिरते ही वो दोनो उछल्कर अपने पैरों पर खड़े थे.., जहाँ संजू उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था वहीं उस युवक के चेहरे पर वही प्यारी सी मुस्कान थी..,

जिसे संजू सहन नही कर सका और किसी बिगड़ैल भैंसे की तरह हुन्कार्ते हुए उससे जा भिड़ा…!

पास में खड़ी निर्मला उन दोनो की लड़ाई बड़ी तन्मयता से देख रही थी…, कभी संजू उस युवक पर भारी पड़ता दिखाई देता तो दूसरे ही पल वो युवक संजू पर…!

लड़ते लड़ते उन दोनो को काफ़ी वक़्त हो गया था.., दोनो के ही कयि जगह गहरी चोटें भी आ चुकी थी.., जगह जगह चेहरे पर खून झलकने लगा था…,

लेकिन उन दोनो में से कोई किसी से कम पड़ता नज़र नही आ रहा था.., फिर एक पल ऐसा आया कि संजू ने उस पर छलान्ग लगाई.., चीते की फुर्ती से युवक अपनी जगह से थोड़ा सा हटा…!

हवा में ही उसने एक हाथ से संजू की गर्दन दबोच ली और उसे पूरी ताक़त से ज़मीन पर दे पटका.., फोर्स इतना ज़्यादा था कि संजू की रीड की हटी कड़क गयी..,

लाख संभलने के बावजूद एक क्षण को उसकी चेतना जबाब दे गयी.., और वो वहीं पड़ा रह गया.., उठने की शक्ति जबाब दे गयी…!

युवक ने उसे चिडाने की कोशिश करते हुए कहा – चल बच्चे उठ.., क्या हुआ निकल गयी सारी हेकड़ी…, तब तो बड़ी बड़ी डींगे हांक रहा था…!

याद रखना शेर को सवा शेर मिल ही जाता है.., इतना कहकर वो युवक अपने कपड़े झाड़ता हुआ वहाँ से जाने लगा…!

तभी पीछे से निर्मला ने अपने बॅग से रेवोल्वर निकाला और उस युवक की पीठ को अपने निशाने पर ले लिया…!

इससे पहले कि वो उस पर गोली चलाती.., संजू अपनी शक्ति बटोरकर उठा और उसने निर्मला का हाथ उपर कर दिया..,

आनन फानन में घोड़ा दब गया और फाइयर की आवाज़ दूर दूर तक गूँज उठी…!

युवक ने पीछे मूड कर देखा.., निर्मला की गन की नाल से धुआँ निकल रहा था.., वो अपनी गन वाली कलाई संजू की गिरफ़्त से छुड़ाते हुए बोली-

छोड़ो भाई मुझे.., उसने तुम्हें शिकस्त दी है.., मे उसे छोड़ूँगी नही…!

संजू – नही बेहन, मे किसी बहादुर आदमी को यूँ धोके से मरता हुआ नही देख सकता.., उसने मुझे अपनी ताक़त और हुनर से शिकस्त दी है.., जिसे में दिल से स्वीकार करता हूँ…!

संजू की बात सुनकर वो युवक पलटा और संजू के कंधे पर हाथ रख कर बोला – तुम सच में एक बहादुर इंशान हो..,

बहुत दिनो बाद मुझे कोई मर्द मिला है.., एक बहादुर ही दूसरे बहादुर की कद्र कर सकता है…!

आशा करता हूँ, कि भविश्य में अगर हम कभी मिलें तो इस तरह से ना मिलें, बल्कि दोस्तों की तरह मिलें…!

बाइ…ये कहकर वो युवक अपने रास्ते बढ़ गया……!

सब कुछ हमारे रडार पर ही चल रहा था, इस शहर को हमारी पोलीस अच्छे से संभाले थी, और उस शहर का हर काम हमारी निगाह में था…!

लेकिन कहते हैं, कि अमृत मंथन में जहर भी निकलता है जिसे खुद को ही पीना पड़ता है…ऐसा ही कुछ आने वाले समय में होने वाला था..,

एक बहुत फेमस कहावत है, दीपक तले अंधेरा, यही हमारे साथ भी हुआ…, हम लोग अपराध रोकने के लिए यता संभव प्रयास में लगे थे, लेकिन हमारे साथ ही एक ऐसा वाक़या हो गया जिसे हम रोकने में नाकामयाब रहे…!

रूचि 11थ में पढ़ रही थी.., उसका कॉलेज, शहर से बाहर एक इंटरनॅशनल स्टॅंडर्ड का कॉलेज था.., कॉलेज तक लाने ले जाने के लिए कॉलेज की तरफ से ही बस की सुविधा थी…!

आज उसके कॉलेज में पेरेंट्स मीटिंग रखी थी.., भैया को अपने कॉलेज से फ़ुर्सत नही थी सो मीटिंग अटेंड करने के लिए मोहिनी भाभी को ही जाना पड़ा…!

ड्राइवर को साथ लेकर वो अपनी कार से रूचि के कॉलेज गयी, तय हुआ था कि लौटने पर वो रूचि को भी अपने साथ लाने वाली थी..!

पेरेंट्स मीटिंग ख़तम होते होते लगभग 3 बज गये.., माँ-बेटी कार से लौट रही थी कि अचानक से उनकी कार पन्चर हो गयी…!

पन्चर क्या, उसके चारों व्हील एक साथ बैठ गये.., बड़ी मुश्किल से ड्राइवर ने गाड़ी को कंट्रोल किया.., फिर भी वो रोड से नीचे तक घिसती चली गयी…!

अभी उन लोगों की कुछ समझ में आया भी नही था कि आख़िर ये हुआ कैसे.., ड्राइवर गाड़ी संभालने के बाद एंजिन बंद करके उतरकर नीचे देखने के लिए गेट खोल ही रहा था…,

कि तभी ना जाने कहाँ से 5-6 हथियार बंद नकाबपोषों ने उनकी गाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया..!

बदमाशों ने ड्राइवर के हाथ पैर बाँधकर उसी गाड़ी की सीट पर डाला और जबरन भाभी और रूचि को घसीटकर गाड़ी से बाहर निकाला..,

तभी वहाँ एक काले रंग की स्कॉर्पियो आकर रुकी, दोनो को जबरन उसमें ठूंस दिया.., चिल्लाने की कोशिश की तो मूह पट्टियों से कस दिया…, और देखते ही देखते वो स्कॉर्पियो उन दोनो को लेकर वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गयी…!

जैसे तैसे किसी तरह ड्राइवर ने किसी रास्तागीर की मदद से अपने बन्धनो को आज़ाद करवाया, और घर पर फोन किया…!

घर पर उस समय निशा अकेली ही थी, सुनकर उसके होश गुम हो गये.., बेचारी सिवाय रोने-धोने के और क्या करती..,

फिर अपने आपको संभालकर उसने रोते-रोते मुझे फोन किया.., मेने फोन पर ही उसे सांत्वना देते हुए धीरज रखने को कहा…!

मेरे लिए ये घटना किसी गाज गिरने से कम नही थी.., अपने परिवार पर किसी तरह का संकट मेरे लिए असहनीय था..,

वो भी ख़ासकर अपनी प्यारी भाभी और सबकी दुलारी मेरी भतीजी को इस तरह के संकट में फँसा सुनकर एकपल को तो मेरे भी होश गुम हो गये.., दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया…!

चारों तरफ अंधेरा सा छा गया.., किसी तरह मेने अपने आप को संभाला और फिर कृष्णा भैया को इस बात की सूचना दी..,!

सुनते ही उनकी पूरी फोर्स एक्शन में आगयि.., और इलाक़े में उस काली स्कॉर्पियो की तलाश में जुट गयी…!

मेने प्राची को कॉंटॅक्ट करके सारी बातें बताई.., एक बार को वो भी सुनकर बैचैन हो उठी.., लेकिन उस समय वो जहाँ थी वहाँ अपने आस-पास अपने एक्सप्रेशन को शो नही कर सकती थी…!

कुछ देर बाद सामने से उसका फोन आया.., और डीटेल्स में सारी बातें हुई.., लेकिन वो ये पता नही लगा पाई कि ये काम उसी गॅंग के द्वारा किया गया है या नही…!

जिस तरह की जानकारी प्राची ने बीते दिनों में जुटाई थी.., उससे ये तो तय था कि भानु किसी औरत के लिए काम करता है..,

चूँकि प्राची ने कामिनी को कभी देखा नही था सो उससे मिलने के बाद भी वो ये नही जानती थी कि वो जिंदा है और फिरसे अपना धंधा खड़ा कर चुकी है…!

लेकिन ना जाने क्यों मुझे बार-बार ये शक़ हो रहा था कि हो ना हो ये काम भानु ने ही अंजाम दिया है.., क्योंकि उसके अलावा ऐसा मोटिव किसी और के पास हो ही नही सकता…!

बार बार की डिफीट के बाद वो तिलमिलाए बैठा होगा.., अब जब उसे किसी पवरफुल गॅंग का साथ मिल गया है तो वो मेरे उपर चोट ज़रूर ही करेगा…!

शाम देर तक मे अपने ऑफीस में बैठा यही सोचता रहा.., प्राची को मेने यथा संभव जानकारी जुटाने में लगा दिया था, लेकिन वो अब तक कोई सुराग नही दे पाई थी……!

उधर वो स्कॉर्पियो मोहिनी भाभी और रूचि को किडनप करके पहले अपने ही शहर की तरफ बढ़ी.., लेकिन कुछ दूर जाकर जैसे ही ड्राइवर की नज़रों से ओझल हुई.., अगले ही मोडसे उसने विपरीत दिशा में टर्न ले लिया…!

अब वो अली** की तरफ तेज़ी से बढ़ी चली जा रही थी.., उनमें से एक नक़ाबपोश ने मोहिनी के गालों को दबाते हुए कहा – क्यों झाँसी की रानी.., निकल गयी सारी हेकड़ी तेरी..?

यही सोच रही है ना कि हम लोग कॉन हैं..? और कहाँ ले जा रहे हैं तुझे..? तो देख…, ये कहकर उसने अपना नक़ाब हटा दिया.., मूह बँधा होने के कारण वो कुछ बोल तो सकती नही थी.., लेकिन भानु को देखकर बुरी तरह से चोंक ज़रूर पड़ी…!

उन्हें तो अब तक यही पता था कि श्वेता के साथ साथ वो भी मर चुका है…,

तभी भानु जहर बुझे स्वर में बोला – क्यों झटका खा गयी ना.., मे तो मर चुका था फिर जिंदा कैसे हूँ.., यही सोच रही है ना…!

अभी तो तुझे इससे भी बड़ा झटका लगने वाला है हरम्जादि.., तेरे और तेरे उस मदर्चोद देवर की वजह से मेरा जीना हराम हो गया है.., अब देखना कैसे गिन-गिनकर बदले लेता हूँ तुम लोगों से…हाहहाहा….!

फिर उसने प्राची के नाज़ुक अनछुए बदन पर अपने खुरदुरे हाथ से सहलाते हुए कहा – पहले तेरी आँखों के सामने तेरी इस नाज़ुक कली को फूल बनाउंगा.., फिर तुम दोनो को किसी कोठे पर बिठाकर धंधा कर्वाउन्गा…!

उसके खुरदुरे कठोर हाथों को अपने नाज़ुक बदन पर पाकर रूचि बस कसमसा कर रह गयी.., उसकी आँखें झर-झर बहने लगी…!

तुम दोनो को ढूड़ने के लिए वो हरामज़ादा वकील एडी-चोटी का ज़ोर लगा देगा.., लेकिन पता नही कर पाएगा.., फिर तुम दोनो की न्यूड रील बनाकर उससे गिन-गिन कर अपने बदले लूँगा…हाहहाहा….!

भानु की जहर बुझे तीर के माफिक बातें सुनकर मोहिनी की आँखें सिवाय बरसने के और कुछ नही कर पा रही थी.., बेबसी में वो बस अपने आँसू बहाए जा रही थी…!

लंबे सफ़र के बाद अचानक उनकी गाड़ी शहर से बाहर किसी फार्म हाउस में जाकर रुकी.., दोनो को हाथ पैर और मूह बाँधकर एक अंधेरे से कमरे में डाल दिया..!

दरवाजे पर चार गुण्डों को पहरे पर बिठाकर भानु वहाँ से निकल गया….!

उसी दिन 5 बजे लीना ने अपने सभी खास खास लोगों को अपने अड्डे पर बुलाया, उस समय संजू के साथ निर्मला भी थी..!

आते ही लीना ने युसुफ और संजू से कहा – आज रात की मीटिंग तुम लोग संभाल लेना…, सारा हिसाब किताब करके कल मुझे रिपोर्ट देना.., आज की रात मुझे कुछ अर्जेंट काम से बाहर जाना है…!

युसुफ ने जानने की कोशिश भी की लेकिन उसने बहाना बनाकर उसे टाल दिया…!

लीना के जाते ही संजू ने युसुफ से कहा – ये मेडम का व्यवहार कुछ दिनो से मेरी तो समझ में आ नही रहा.., ये सरदार ना जाने कब का पहचान वाला निकल आया…!

जब देखो वो उसी को भाव देती रहती है.., धंधा खड़ा हम लोगों ने किया है और मज़े वो मदर्चोद सरदार लूट रहा है..,

युसुफ – छोड़ ना यार, क्या इतनी सी बात के लिए टेन्षन ले रहा है.., चल फिर भी किसी दिन मेडम से बात कर लेते हैं.., तू चिंता ना कर…!

संजू – तुम्हें तो पता ही है भाई.., मुझे पैसों वैसो की तो पड़ी नही है.., लेकिन जब वो हमें इग्नोर करती है तो दुख होता है…!

युसुफ ने उसे समझा बुझा कर अपने घर चलने को कहा.., तभी निर्मला बोली – संजू भैया.., मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी काम है.., थोड़ा मेरे साथ आओ ना…!

युसुफ – ठीक है अभी तू निर्मला के साथ जा, रात को यहीं मिलते हैं.., ये कहकर वो अड्डे से बाहर निकल गया…!

निर्मला उसे वहीं सोफे पर बिठाकर उससे बातें करने लगी…!

निर्मला – भाई.., तुम सही कह रहे थे.., मुझे भी मेडम की हरकतों से ऐसा लग रहा है कि वो आप लोगों को दरकिनार करके उस सरदार को आगे करती जा रही है..!

अगर हमने जल्दी कुछ नही किया तो एक दिन वो सरदार सब कुछ अपने हाथ में ले लेगा.., मेडम को तो कोई ना कोई मोहरा चाहिए.., तुम ना सही सरदार सही…!

संजू – मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है.., अब तुम ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए..?

निर्मला – देखो भाई.., मुझे लगता है.., युसुफ भाई जान तो एक किस्म के दब्बु टाइप के इंसान हैं.., उन्हें तो बस पैसे मिलते रहें भले ही उन्हें कोई भी काम ले..!

लेकिन ये सब कुछ खड़ा हुआ है तुम्हारे दम पर.., तो इसे यूँ ही अपने हाथ से खिसकने देना मूर्खता ही होगी…!

मुझे लगता है, मेडम आज उस सरदार से कहीं एकांत में मिलने वाली है.., क्योंकि वो यहाँ आज आया नही..,

संजू – हुउंम्म…शायद तुम्हारा अंदाज़ा सही है, लेकिन अब कैसे पता करें कि वो उससे कहाँ और क्यों मिलने वाली है…?

निर्मला – क्यों ना हम लोग मेडम का पीछा करें.., अभी भी हमारे पास समय है.., उसके बंगले से ही हम उसका पीछा करते हैं..,

संजू – वाह निर्मला तुम वाकाई में इस लाइन में मास्टर होती जा रही हो.., चलो अभी चलते हैं उसके बंगले पर…!

निर्मला – रूको मे एक मिनट में आई.., ये कहकर उसने अपनी सबसे छोटी उंगली दिखाकर वॉशरूम में घुस गयी..,

कुछ देर बाद वो अपनी उसी फेवोवरिट बाइक पर लीना के बंगले के पास वाले एक रेस्तरा में बैठे उसके बाहर निकलने का इंतेजार कर रहे थे…!

लगभग रात 9 बजे वो अपने बंगले से बाहर निकली.., और गाड़ी में बैठकर शहर से बाहर जाने वाले रास्ते पर निकल पड़ी……..!

शहर के बाहर स्थित उस फार्म हाउस जहाँ भानु ने मोहिनी और रूचि को लाकर क़ैद किया था, रात 8 बजे वो वहाँ लौटा…!

उसके साथ इस समय उसके कुछ खास लोगों के अलावा ऐसा कोई भी सदस्य नही था जो संजू या युसुफ का विश्वासपात्र कहा जा सके…!

आते ही उसने उन दोनो को हॉल नुमा कमरे में लाने के लिए कहा…, उसके चार आदमियों ने लगभग घसीटते हुए मोहिनी और उसकी बेटी को हॉल के बीचो-बीच ला पटका…!

दोनो के हाथ और पैर नाइलॉन की पतली सी डोरियों से कसे हुए थे.., लेकिन मूह से पट्टियाँ हटा दी गयी थी…!

पहले भानु बहसियाना हसी हँसते हुए मोहिनी के पास जाकर बैठ गया.., उसके गदराए बदन को सहलाते हुए बोला…!

आअहह…इस उमर में भी तू क्या मस्त माल है मोहिनी.., जी तो कर रहा है कि तेरी इस जानलेबा जवानी का रस तेरी बेटी से पहले जी भरके पीऊँ…!

फिर तुझे अपने आदमियों में बाँट के तेरी आँखों के सामने तेरी बेटी की कोरी जवानी को तार तार करूँ…!

काश मेडम ने मुझे संयम रखने को ना कहा होता…!

भानु के मूह से किसी मेडम का नाम सुनकर मोहिनी ने उत्सुकता भरी नज़रों से घूरा.., फिर जल्दी ही एक घृणा भरी नज़र डालकर अपना मूह उसकी तरफ से फेर लिया…!

वो अच्छी तरह से मोहिनी के गदराए बदन को सहला कर मज़े लेता रहा.., वो बेचारी बस बेबसी में अपने आँसू बहाने के अलावा कुछ नही कर पाई…!

फिर वो रूचि की तरफ घूम गया.., उसके नापाक हाथ रूचि की तरफ बढ़ने लगे.., तभी मोहिनी के सब्र का बाँध टूट गया.., वो किसी शेरनी की तरह दहाड़ते हुए बोली…

मेरी बेटी को अपने नापाक हाथों से छूने की कोशिश भी मत करना हराम्जादे कायर.., थू है तेरी मर्दानगी पर.., जो एक औरत को बेबस करके अपने गंदे मंसूबों को पूरा करना चाहता है…!

भूल गया.., बार बार मेरे देवर ने तुझे समझाने की कोशिश की.., तुझे सुधरने का मौका दिया…, लेकिन तू एक ऐसे गंदे खून की पैदाइश है कि तुझसे इससे ज़्यादा और उम्मीद ही क्या की जा सकती है..,

अपने खून को गाली सुनकर भानु का गुस्सा सातवे आसमान पर जा पहुँचा.., घूमकर उसने इतना करारा तमाचा मोहिनी के गाल पर मारा कि वो बेचारी त्यौराकर वहीं ज़मीन पर गिर पड़ी..,

उसके होठों के कोरे से खून की धार बह निकली…, कराह कर बोली – मार साले नमार्द और मार.., और तुझसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है हरम्जादे…!

मोहिनी की बातों से भानु का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था.., उसने उसके पैरों की डोरी खोल दी.., जबरन पैरों पर खड़ा करके वो उसके गालों पर चान्टे बरसाने लगा..!

अपनी बेटी से दूर रखने की गार्ज से वो उसे लगातार गुस्सा दिलाए जा रही थी, बदले में भानु उसे पीट’ता रहा.., फिर उसने उसके गुदाज उभारों पर हाथ डालकर उसके ब्लाउस को फाड़ दिया…!

कसी हुई ब्रा में क़ैद मोहिनी के सुडौल दूधिया उभारों की झलक पाते ही भानु का संयम जबाब दे गया..,

झपटकर उसने उसकी सारी का आँचल थाम लिया.., और उसे खींचता ही चला गया..,

ब्रा और पेटिकोट में वो बीच हॉल में खड़ी.., अपने बँधे हाथों से अपनी छाती को धान्पने की नाकाम कोशिश करते हुए सिसक पड़ी…!

उसकी प्यारी बेटी अपनी माँ की आबरू को बेपर्दा होते देखती रही.., और सूबक सूबक कर रोती रही.., लेकिन वहाँ उसे एक भी ऐसा चेहरा नज़र नही आया जो उनके लिए थोड़ी सी भी सुहान्भुति रखता हो…!

वो सबके सब खड़े-खड़े उसकी माँ की जवानी को खा जाने वाली नज़रों से घूर रहे थे और बहशियानी हसी हँसते रहे…!

भानु ने मोहिनी की सारी उतारकर एक तरफ को फेंक दी.., उसके बाद वो अपनी जीभ को होठों पर फिराते हुए किसी हवसि कुत्ते की तरह उसकी तरफ बढ़ा…!

उसका हाथ उसकी ब्रा की तरफ बढ़ने लगा.., इससे पहले कि वो उसकी ब्रा को उसके बदन से अलग करने के लिए अपना हाथ उस तक ले जा पाता कि तभी हॉल में घुसते हुए लीना की आवाज़ उसके कानों में पड़ी…!

ठहरो भानु…, इतने उताबले मत बनो.., थोड़ा ठंडा करके खाओ…!

आवाज़ सुनते ही मोहिनी फिरकी की तरह उस दिशा में घूम गयी.., अपने सामने कामिनी को देख कर मोहिनी का मूह खुला का खुला रह गया…!

कामिनी सधे हुए कदम बढ़ाती हुई मोहिनी के सामने जाकर खड़ी हो गयी.., उसके चेहरे पर जमाने भर की मक्कारी व्याप्त थी..,

मंद मंद मुस्कराते हुए बोली – कैसी हो जेठानी जी.., मुझे जिंदा देखकर दिल पर साँप लॉट गये होंगे तुम्हारे.. है ना…!

लेकिन क्या करूँ.., मेरे हाथ में मौत की लकीर बनाना ही भूल गया उपरवाला.., तुम्हारे लाडले देवर ने तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करी थी मुझे उपर भेजने की..!

फिर उसने एक बार मोहिनी के शानदार हुश्न पर उपर से नीचे तक नज़र डाली…!

उसके उभारों पर हाथ फेरते हुए बोली – बेचारा भानु भी क्या करे.., इस उमर में भी तुम किसी भी मर्द का खड़े-खड़े पानी निकाल दो ऐसा मादक बदन है तुम्हारा…!

कहीं वो लाड़ला तो सेवा नही करता इसकी..? क्योंकि जेठ जी तो ऐसे लगते नही कि इस जवानी का ख्याल रख पाते हों…?
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