Update 02
श्यामा के आँगन से मे जैसे ही बाहर आने के लिए चला…, वो भी मेरे पीछे-पीछे आने लगी और ओट में आते ही वो मेरे शरीर से लिपट गयी…
ऐसा ज़ुल्म मत करो पंडितजी…, अपनी दासी को यौं प्यासा छोड़कर तो ना जाओ…!
मेने उसके गोल मटोल फुटबॉल जैसे चुतड़ों को अपने पंजों में कसते हुए कहा – तुम्हारे लिए एक अपने जैसे ही मर्द का इंतेजाम करके जा रहा हूँ मेरी जान…, क्या तुम्हें संजू जैसा गबरू जवान पसंद नही आया…?
श्यामा – हाए पंडितजी…, क्या मे रंडी हूँ..? मेने तो आपको दिलोजान से अपना सब कुच्छ सौंपा था.., फिर मे आपके अलावा किसी और के साथ कैसे सो जाउ..?
मे – समझा करो श्यामा, मे शहर में अपने काम में व्यस्त हो गया हूँ, गाँव अब आना जाना नही हो पाता है.., तुम्हारे उस पप्पू पति से कुच्छ होता जाता है नही… इसलिए मेने सोचा, संजू अब गाँव में ही रहने वाला है...
अब अगर तुम्हें उसके साथ संबंध बनाना पसंद नही है तो कोई बात नही, तुम उसे मना कर देना…., ठीक है, इतना बोलकर मेने उसके दोनो चुतड़ों को दबाकर उसे अपने लंड पर कस लिया…!
श्यामा – ऐसी बात नही है.., संजू जी तो बहुत ही सुंदर और मजबूत कद काठी के पहलवान सरीखे नौजवान हैं.., बस मुझे उनके साथ थोड़ी झिझक सी लग रही है…, फिर उसने मेरे लौडे को पॅंट के उपर से ही मसालते हुए कहा… मुझे तो बस ये चाहिए था…!
मेने उसके दोनो कठोरे अनारों को हाथों में भरकर ज़ोर्से मसल दिया…वो बुरी तरह सिसक पड़ी…सस्सिईइ…आअहह…दर्र्रद्द…होता है…!
मेरी जान…इसका तो तुम मज़ा ले ही चुकी हो…, अब संजू के लौडे का स्वाद भी लेकर देखो…शायद वो तुम्हें मेरे से भी ज़्यादा पसंद आ जाए…!
श्यामा – अब आप इतना बोल रहे हैं तो ठीक है मे कोशिश करूँगी.., वैसे कभी कभार तो आ ही सकते हैं ना…!
मे – कोशिश करूँगा, लेकिन वादा नही कर सकता कि कब आ पाउन्गा, इतना कहकर एक बार फिरसे उसकी गान्ड सहला कर मे वहाँ से निकल आया….!
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सूरज पश्चिम में अपनी लालिमा बिखेरने की तैयारी में था…साथ ही दूर दराज को गये पक्षी आसमान में कतार बनाए हुए अपने अपने घरों की ओर लौटने लगे थे जब मेने चाची के घर में कदम रखा…!
वो शायद अपने आँगन में चारपाई डाले मेरा ही इंतेज़ार कर रही थी.., मुझे देखते ही लपक कर उठते हुए बोली – कहाँ चले गये थे लल्ला…, मे कब से तुम्हारी राह देख रही हूँ…!
मेने अपने होठों पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा – क्या हुआ चाची… इतनी बैचैन क्यों हो.. फिर कोई बात हो गयी क्या..?
वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – बिना कोई मुशिबत आए क्या मुझे तुम्हारी ज़रूरत नही पड़ सकती..? शहर जाकर मुझे पराया कर दिया लगता है..?
मेने अपना एक हाथ चाची की कमर में डाला और झटके से अपने बदन से उनके गुदाज बदन को सटाते हुए बोला – आपको पराया कैसे कर सकता हूँ चाची.., आप तो मेरी फावोरिटे चाची हो…!
वो अपनी दोनो बड़ी बड़ी मखमली गुदाज चुचियों को मेरे सीने में दबाते हुए बोली – तुम्हारे चाचा कस्बे में गये हैं, मे अकेली बोर हो रही थी.., तुम पता नही कहाँ चले गये तो बस पुच्छ लिया…!
चाची की मखमली गान्ड जो हमेशा से मेरी कमज़ोरी थी जिसे मेरी रिक्वेस्ट पर एक बार चाची ने बलिदान भी कर दिया था उसे मसल्ते हुए कहा – क्या सच में बोर हो रही थी इसलिए मेरी चिंता हो रही थी या कुच्छ और भी बात है..?
चाची ने इतराते हुए बड़े प्यार से मेरे सीने पर एक धौल जमाते हुए कहा – सब जानते हुए अंजान बनाने की तुम्हारी पुरानी आदत गयी नही…!
रूको मे दरवाजा बंद करके आती हूँ, फिर अंदर कमरे में बैठकर बातें करेंगे…!
दरवाजा बंद करके चाची मुझे कमरे में ले गयी और जाते ही वो मेरे बदन से लिपट गयी…!
देखते ही देखते हम दोनो के बदन कपड़ों से मुक्त हो गये.., चाची का शरीर पहले से भी ज़्यादा मांसल हो गया था.., उनके मखमली बदन को अपनी बाहों में समेट कर मे पलंग पर आगया और फिर वही हुआ जो हमेशा होता था…!
बहुत दिनो बाद आज हमारा मिलन संभव हो पाया था… वो आज कोई कसर बाकी रखना नही चाहती थी.., मेने भी आज अपना तन मन उनके हवाले कर दिया और लगभग 1 घाटे मेने चाची को जमकर चोदा…!
वो अब पूर्ण रूप से तृप्त दिखाई दे रही थी, मेरी बाहों में लिपटी मेरे नंगे बदन को सहलाते हुए बोली – कितने महीनो से तरस रही थी तुम्हारे इस मजबूत हथियार के लिए…!
मेने उनकी 36 की गोल-गोल चुचियों को सहलाते हुए कहा – अब तो खुश हो.., और कोई कसर बची हो तो बताओ…!
चाची मेरी क़ैद से अलग होते हुए बोली – नही लल्ला अब कोई कसर नही बची.., वैसे भी अब संजू के भी आने का समय हो रहा है, तुम्हारे चाचा भी लौटते ही होंगे चलो कपड़े पहन कर बाहर आ जाओ…मे चाइ बनाती हूँ..!
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उधर मुझे विदा करके श्यामा संजू के पास पहुँची, संजू चारपाई पर ज़मीन को पैर लटका कर बैठा था…, चारपाई के पास खड़ी होकर उसने संजू से कहा – संजू जी आप बैठिए मे आपके लिए चाइ पानी लेकर आती हूँ…!
संजू ने अपना हाथ बढ़ाकर उसकी माजुक कलाई पकड़ी और एक झटका देते ही वो सीधी उसकी गोद में जा गिरी…, उसकी पतली कमर में हाथ डालकर उसके गोरे मुलायम कचौरी जैसे फूले हुए गाल से अपनी चार दिन पुरानी दाढ़ी को रगड़ते हुए बोला…
चाइ पानी तो रोज़ ही पीते हैं रानी, आज तो कुच्छ और ही पीने का मन कर रहा है….! उसके पतले पतले रसीले सुर्ख होठों पर अपने अंगूठे को रगड़ते हुए बोला – आज तो इनका रस पीने का मन कर रहा है… पिलाओगी..?
श्यामा उसके बंधन में कसमसाते हुए बोली - छि.. कितने गंदे हैं आप.., छोड़िए मुझे, मे ऐसी वैसी नही हूँ…!
संजू उसके गोरे पतले सपाट पेट को सहला कर बोला – वाकयि मेरी जान तुम ऐसी वैसी औरत नही हो.., तुम तो दिल में रखने वाली चीज़ हो तभी तो वकील भैया मुझे तुम्हारा ख्याल रखने का बोलकर गये हैं…! तुम उनकी खास जो हो…. है ना…!
उउउन्न्ह….छोड़िए ना..! हम क्यों उनके खास होंगे…? उनकी खास तो उनकी पत्नी हैं…, वो तो बस ऐसे ही हमारे परिवार से हित रखते हैं, इसलिए कभी-कभार मिलने चले आते हैं बस…!
संजू – लेकिन मुझे तो उन्होने कुच्छ और ही बताया था…!
श्यामा – क्या..? क्या कहा उन्होने मेरे बारे में..?
संजू के हाथ अब उसके कठोर गेंद जैसे उभारों पर पहुँच चुके थे, उसने उन्हें बड़े नाज़ुक अंदाज में सहलाया और फिर उसके कड़क हो रहे निप्प्लो पर अपनी उंगली के पोर से दबाब डालते हुए बोला –
वो कह रहे थे.., संजू मे तुम्हें अपनी एक खास और दिल अज़ीज से मिलवाने ले जा रहा हूँ.., ख्याल रहे मेरे पीछे उसे किसी चीज़ की कमी ना रहे…,तुम उसका तन मन से ख्याल रखना…!
श्यामा संजू की तरफ घूमकर बोली – क्या सच में उन्होने ऐसा कहा..?
संजू उसके उभारों पर दबाब बढ़ते हुए बोला – हां…, बिल्कुल यही कहा था उन्होने…ये कहते हुए उसने उसके अनारों को ज़ोर्से मसल दिया…!
सस्सिईईई…आअहह…व.उूओ.. बहुत अच्छे इंशान हैं…, मेरा कितना ख्याल है उन्हें…
संजू ने उसे किसी बच्ची की तरह पलटकर उसका मूह अपनी तरफ कर लिया, उसके सुन्दर से गोल-मटोल चेहरे को अपने दोनो हाथों में भरकर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला – और मे कैसा इंशान लगा तुम्हें…?
श्यामा पर संजू की लच्छेदार बातों और उसकी हरकतों से वासना का खुमार चढ़ने लगा था.., आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे…, अपनी लरजती ज़ुबान से बड़ी मुश्किल से वो बोली – आ..आअप्प्प..भीइ..बहुत अच्छे हैं…संजूऊू..ज्जिि…!
उसके मूह से ये शब्द सुनते ही संजू के तपते होंठ उसके लरजते होठों पर चिपक गये और श्यामा के वाकई के शब्द उसके अंदर ही जप्त हो कर रह गये…!
वो दोनो एक दूसरे के होठों को लेमन्चूस की तरह चूसने लगे…, संजू का लंड उसके कपड़ों में ही खड़ा होकर श्यामा की मुलायम गान्ड में ठोकरें मारने लगा…!
संजू के हाथ उसके कठोरे उभारों का मर्दन करते जा रहे थे…, श्यामा जैसी नाज़ुक कमसिन औरत पर इतने सारे हमले एक साथ होने से उसकी चूत अपना कामरस छोड़े बिना ना रह सकी…!
संजू की उंगलियों ने भी करतब करना शुरू कर दिया और किस करते हुए उसने उसकी चोली के सारे बटन खोल डाले…!
वो उसे वहीं चारपाई पर लिटाकर उसके अनारों को मसल्ते हुए, उसकी सुराइदार गर्दन को चूमते हुए पैरों से उसके घांघारे को उपर सरकाने लगा…!
घुटनो से उपर आते ही उसका एक हाथ उसकी गोरी-चिकनी जांघों पर फिसलने लगा और धीरे धीरे उसका वो हाथ जैसे ही उसके यौनी प्रदेश पर पहुँचा.. श्यामा के मूह से एक मादक सिसक फुट पड़ी…!
उसकी चड्डी उसी के कामरस से गीली हो चुकी थी.., चड्डी के उपर से ही उसकी एक उंगली उसकी फांकों के बीच की दरार में घूमने लगी…!
सस्सिईइ…आअहह…उउउम्म्मंणणन्…करते हुए श्यामा ने अपनी दोनो जांघों को और खोल दिया…, संजू को समझते देर नही लगी की लौंडिया अब पूरी तरह से तैयार हो चुकी है…,
सो उसने उसके पैरों के पास पहुँचकर जैसे ही उसकी कच्छी को उतारने के लिए हाथ बढ़ाया….. तभी एक आवाज़ उसके कानों में पड़ी…., ये क्या हो रहा है यहाँ..??????
संजू ने हड़बड़ा कर आवाज़ की दिशा में देखा…, सामने श्यामा की जेठानी राम दुलारी अपने मूह पर हाथ रखे हुए विश्मय से अंदर चल रही काम लीला को देख रही थी…!
संजू ने झट-पाट श्यामा के घांघारे को उसके पैरों तक खिसका कर चारपाई से नीचे उतारने के लिए अपना एक पैर ज़मीन से टीकाया ही था कि पीछे से श्यामा ने उसकी कलाई थाम ली…!
संजू ने पलटकर उसकी तरफ देखा….. मुझे यौं अधूरा छोड़कर कहाँ जा रहे हो संजुज़ी… श्यामा किसी घायल हिरनी की तरह तड़प्ते हुए बोली…!
संजू के मूह से कोई बोल नही फूटा…, उसने बस मूक निगाहों से रामदुलारी की तरफ इशारा किया…, श्यामा ने एक नज़र अपनी जेठानी पर डाली और मुस्कुरा कर बोली…..!
तुम उनकी चिंता मत करो…, बस अपना काम पूरा करते रहो…, आओ मेरे राजा.. ये कहते हुए उसने संजू को फिरसे अपने उपर खींच लिया…!
उसकी इस हरकत पर रामदुलारी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी…, वो उन दोनो के पास आकर बोली – अरी करम्जलि… साली छिनाल… चुदास की मारी कुतिया, कम से कम दरवाजा तो बंद कर लेती…, अभी मेरी जगह कोई और होता तो…?
आअहह…जीज्ज़िि…कुच्छ मत कहो…, तुम्हारे उस ना मर्द देवर से तो कुच्छ होता जाता नही है.., भला हो पंडितजी का जो वो संजुज़ी को यहाँ छोड़ गये हैं…!
हाए संजुज़ी…प्लीज़ कुच्छ करो ना..ये कहते हुए उसने संजू के हाथ अपने खुले हुए अनारों पर जमा दिए…!
संजू ने एक नज़र रामदुलारी पर डाली और ज़ोर्से श्यामा के अनारों को मसल दिया…..!
सस्स्सिईईई…आअहह…रजाअ.. ज्जिि…आराम से…, कहते हुए श्यामा उसे अपने उपर खींचने लगी…!
इन दोनो के प्रेम प्रलाप को देख कर रामदुलारी की चूत में भी खुजली होने लगाई थी, वो अपने लहँगे के उपर से ही अपनी चूत को खुजाते हुए बोली – अरईइ तो कम से कम कोठे में तो चल.., खुला आँगन है, इधर उधर से किसी ने
झाँक लिया तो बड़ी बदनामी वाली बात हो जाएगी…!
दुलारी की बात सुनकर संजू नीचे उतर गया.., श्यामा ने भी चारपाई से नीचे पैर रखते हुए कहा – हाए संजू जी मुझे अपनी गोद में उठा लो ना..प्लीज़, ये कहते हुए वो सचमुच उसके गले में बाहें डालकर झूल गयी…!
संजू ने किसी गुड़िया की तरह उसे अपनी गोद में उठा लिया…, श्यामा ने अपनी दोनो टाँगें उसकी कमर में लपेट ली…, उसका पाजामे के अंदर पूरी तरह फन फैला चुका नाग श्यामा की गान्ड पर जा टिका…!
लंड की गर्मी से उसकी चूत पिघलने लगी.., संजू उसे गोद लिए कोठे के अंदर तक आगया.., आगे आगे बेसबरी में कदम बढ़ती हुई दुलारी थी…!
दुलारी ने फुर्ती से ज़मीन पर गद्दा बिच्छा दिया.., जिसपर जाकर संजू ने शयामा को खड़ा कर दिया…!
श्यामा चुदने के लिए इतनी उतबली हो रही थी कि उसने एक मिनिट के अंदर अपने सारे कपड़े अपने शरीर से अलग कर दिए और वो संजू के कपड़ों पर भी टूट पड़ी…!
श्यामा के नंगे छरहरे साँचे में ढले 34-28-34 फिगर वाले बदन को देख कर संजू की बान्छे खिल उठी.., उसने अपनी शायरट उतार कर एक तरफ फेंक दी.., तब तक श्यामा उसके पाजामा को उतार चुकी थी.., और अंडर वेअर के उपर से ही उसके कड़क मस्त लंड को मुट्ठी में लेकर मसल्ने लगी…!
उनकी कॉम्क्रीडा का असर दुलारी पर भी हो रहा था…, उसने भी अपनी चोली के बटन खोल डाले और अपने भारी भारी स्तनों को अपने ही हाथों में लेकर मसलने लगी…!
संजू श्यामा के पतली कमर में एक हाथ डालकर उसके होठों का रस पीने लगा.., साथ ही उसका दूसरा हाथ उसके
अनारों का रस निचोड़ने में व्यस्त हो गया….!
इस दो तरफ़ा मार से श्यामा सिहर उठी…, उसकी चूत से बूँद बूँद करके काम रस बिस्तर पर टपकने लगा…!
संजू ने उसे बिस्तर पर टिका दिया और खुद उसकी कड़क कठोर गोल-गोल चुचियों से खेलने लगा…, एक चुचि को मूह में लेकर चूसने लगा और दूसरे को स्पंज की गेंद के तरह मुट्ठी में कसकर दबाने लगा…!
श्यमा का पल-पल बुरा हाल होता जा रहा था…, उसकी आँखों में चुदने की याचना साफ-साफ दिखाई दे रही थी…, लेकिन संजू तो बस अपनी ही धुन में मगन उसे बिस्तर पर धकेलता हुआ उसकी जांघों के बीच जा पहुँचा….!
उसकी मुनिया से लार के तार निकल रहे थे जिन्हें संजू ने अपनी जीभ ले जाकर चाट लिया…, संजू की जीभ का स्पर्श पाते ही श्यामा का बदन जुड़ी के मरीज की तरह थरथरा उठा…..!
सस्स्सिईईईई….हाअयईी…मेरे राज्जाआ…क्या कर रहे हो…?? अब नही रहा जाता मुझसे…उउउम्म्मननन्ग्घ…जीज्ज़िि…बोलो ना…!
रामदुलारी से अपनी प्यारी छोटी बेहन की तड़प सहन नही हुई…, उसने संजू का अंडरवेर नीचे सरका कर उसके लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर श्यामा की रसीली चूत की गीली गरम फांकों पर टिका दिया…!
संजू ने भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए श्यामा की सुडौल मुलायम जांघों को अपनी जांघों पर चढ़ाया और अपने लंड को 2-3 बार उसकी अधखुली चूत के मूह पर उपर से नीचे तक फिराया…!
श्यामा सिसकते हुए बोली… आअहह….सस्सिईईई.. अब देर मत करो राजा…, चोदो मुझे वरना मे मर ही जाउन्गि…अब..!
उपर से दुलारी ने भी उसकी पीठ सहलाते हुए आगे बढ़ने का इशारा करते हुए उसकी गान्ड पर चपत लगाते हुए कहा… अब डाल भी दे भडुये…क्यों तडपा रहा है बेचारी को…!
दुलारी की बात पर संजू के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.. और उसने एक जबरदस्त धक्का देकर एक ही झटके में अपना
मोटा ताज़ा लंड ¾ तक श्यामा की गुफा में उतार दिया…!
इस हमले से श्यमा का मूह खुला का खुला रह गया…, उसके मूह से मादक कराह निकल पड़ी…आआहह…मार डाला..हरजाई….धीरे…उउउफफफ्फ़…
संजू ने एक लंबी साँस लेकर अपने लौडे को थोड़ा बाहर किया.., और फिर उससे भी तगड़ा झटका मारकर जड़ तक अपना
लंड श्यामा की चूत में पेल दिया…..!
बहुत मस्त लौंडिया थी श्यामा, थोड़ी देर बाद ही वो अपनी पतली कमर उच्छाल-उच्छाल कर लंड का मज़ा लेने लगी…,
झड़ने तक उसकी गान्ड बिस्तर से नही टिकी....
उसने संजू को भी ये एहसास दिला दिया कि इस लौंडिया को चोदना माने जन्नत के नज़ारे देखने से कम नही है…
बाजू में बैठी दुलारी ने भी अपना लहंगा कमर तक चढ़ा लिया और अपनी तीन-तीन उंगलियों को अपनी चूत की गहराइयों में उतारकर अपनी चूत को चोदने लगी….!
एक बार श्यामा को जमकर चोदने के बाद दुलारी भी अपनी भारी भरकम गान्ड खोलकर उसके सामने पसर गयी.., जिसका संजू को पहले से ही अनुमान भी था…!
लेकिन पहलवान सरीखे संजू पर क्या फ़र्क पड़ना था.., सो वो दोनो बहनों को अच्छी तरह से ठंडा करके अपने कपड़े संभालता हुआ, नयी नयी कटारीदार मूँछो पर ताव देता हुआ दुलारी के घर से चाची के घर को निकल लिया…!
मे और चाची अपना मनपसंद खेल खेलकर आँगन में बैठे बातें कर ही रहे थे जब संजू वहाँ पहुँचा…!
हम दोनो की नज़र आपस में टकराई.., इशारों ही इशारों में उसने बता दिया कि काम अच्छे से हो गया है…..!!
थोड़ी देर बाद चाचा भी आगये, चाची उठकर खाने के इन्तेजाम में जुट गयी.., और हम तीनों आपस में बातें करते हुए खाने का इंतजार करने लगे……..!!
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संजू का दिल गाँव के वातावरण में रमने लगा था…, फक्कड़ आदमी उसे चाहिए क्या..? जमकर मेहनत करना और दो वक़्त का बढ़िया खाना…,
उपर से अब उसके लिए दो-दो चूतें भी थी.., जब भी मन करता वो दुलारी के घर जा पहुँचता.., कभी-कभी तो उन दोनो में से कोई एक या फिर दोनो, उसके पास खेतों में ही पहुँच जाती थी…!
एक दिन संजू अपने पूरे चक के बस यौंही चक्कर काट रहा था.., हमारे खेतों के दूसरी तरफ एक और गाँव था जो लगभग हमारे खेतों से उतना ही दूर था जितना हमारा अपना गाँव…!
घूमते घामते हुए जब संजू खेतों के दूसरी छोर पर पहुचा जहाँ से उस दूसरे गाँव की हद शुरू होती थी.., हमारे खेत अपने गाँव की सीमा पर ही थे…!
दोनो गाँव की सीमा पर एक नहर थी जिसके द्वारा कभी गंगा का पानी इस पूरे इलाक़े की सिंचाई के काम आता था आज दशकों से सुखी पड़ी थी.., जो अब एक तरह से झाड़ियों से ढक चुकी थी…!
नहर की अपोजिट साइड की पटरी पर एक झाड़ी की ओट में संजू को एक भरे हुए बदन की औरत जो की *ी टाइप के सलवार कुर्ता पहने थी आज़ार आई…!
उसका मूह झाड़ियों की तरफ था और खड़े होकर वो अपनी सलवार का नाडा खोल रही थी.., कौतूहल बस संजू उसे वहीं खड़े होकर देखने लगा…!
देखते ही देखते उस औरत ने पीछे से अपना कुर्ता उपर किया और सलवार नीचे करके वो वहीं मूतने बैठ गयी…!
संजू उस औरत की गोरी-गोरी विशालकाय गान्ड को देखने का मोह छोड़ ना सका और वो बड़े ध्यान से उसे मुतते हुए देखने लगा…!
उस औरत की गान्ड के पाट कुच्छ ज़्यादा ही बाहर को निकले हुए थे जिसकी वजह से संजू को उसके मूत की मोटी सी धार और गान्ड के बीच की कत्थयि रंग की दरार तो दिख रही थी लेकिन उसके भोस्डे के दर्शन नही हो पा रहे थे…!
वो उत्सुकताबस दबे पाँव उस औरत के नज़दीक जाने लगा.., वो जैसे ही नहर की गहराई में पहुँचा, अंदर से उसे उसकी काली काली लेकिन छोटे बालों वाली झान्टो के बीच फूली हुई चूत के दर्शन क्षण मात्र के लिए हो गये जब वो औरत मूतने के बाद अपनी गान्ड को और उपर की तरफ उठाकर अपने भोस्डे से टपकते मूत की बूँदों को निहार रही थी…!
इसका मतलब अब वो खड़ी होने वाली है, कहीं वो औरत उसे देख ना ले इसलिए संजू वहीं एक झाड़ी की ओट में हो गया……!
एक बार अपनी सलवार का नाडा बाँधकर वो औरत संजू की तरफ पलटी…, उसे वो जानी पहचानी सी नज़र आई.., थोड़ा और ध्यान से देखने पर उसकी सारी शंकायं दूर हो गयी, संजू उसे अच्छे से पहचान चुका था…!
लेकिन ये यहाँ इस पास के गाँव में मिलेगी इस बात की उसे बेहद हैरानी हो रही थी…!
वो औरत अपनी 36” की गान्ड मतकाते हुए पटरी के दूसरी तरफ चली गयी.., संजू कुच्छ देर वहीं खड़े रहकर मन ही मन विचार करने लगा.., कि ये तो वहाँ शहर में रहती थी तो फिर इस गाँव में क्या कर रही है…!
कुच्छ सोचकर वो भी उस औरत की दिशा में चल पड़ा…!
दूसरी तरफ एक खेत में उसकी 8-10 बकरियाँ घस्स चर रही थी, वो उन्हें इकट्ठा करने लगी, जब सब एक साथ आगयि, तो उन्हें हांकते हुए अपने गाँव की तरफ चल दी…!
संजू थोड़ा तेज तेज कदम बढ़कर उसके पास जा पहुँचा और पीछे से उसने उसे आवाज़ दी….. ज़रा सुनिए तो….!!!
वो औरत उसकी आवाज़ सुनकर एकदम से पलटी और अपने सामने संजू को खड़ा देख कर वो बुरी तरह से चोंक पड़ी….. अरे सजु तुम और यहाँ… कैसे भाई..????
संजू – यही सवाल मे तुमसे पुच्छना चाहता था.., मे तो यहाँ पास के गाँव में ही वहाँ के सरपंच की खेती वाडी देखता हूँ…, लेकिन तुम यहाँ कैसे…?
वो औरत जो कोई और नही युसुफ की बड़ी बेहन वहीदा थी, जिसका निकाह युसुफ ने अपने ही गॅंग के असलम के साथ कर दिया था, जो एक पक्की रांड़ थी.., ड्रग्स के धंधे में ग्राहक पटाने के मामले में वो अपने जिस्म को परोसने में भी देर नही लगाती थी…!
वहीदा – वहाँ अड्डे पर रेड पड़ने के बाद हम सब लोग शहर छोड़ने पर मजबूर हो गये.., ये गाँव मेरे शौहर का है.., तो च्छूपने के लिए हमें यहाँ से ज़्यादा मुनासिब जगह और कोई नही लगी.., सो हम दोनो अब यहीं आकर रहने लगे हैं….!
संजू – तो अब युसुफ भाई और बाकी घरवाले आजकल कहाँ हैं…???
वहीदा – कुच्छ दिन तक तो वो इधर से उधर छुपते च्छूपाते रहे लेकिन अब कुच्छ महीनो से कोई खैर खबर नही है उन लोगों की…!
तुम सूनाओ, यहाँ कोई रिस्तेदारि बगैरह है जहाँ रहते हो आजकल…???
संजू – मेरी यहाँ कहाँ से कोई रिस्तेदारि होगी.., तुम शायद निर्मला को तो जानती ही हो, उसी के कुच्छ रिस्तेदार यहाँ रहते हैं… उनके पास ही रहता हूँ, वहाँ की भगदड़ से बचते बचाते हुए हम दोनो भी यहीं चले आए.., वरना मेरा तो यहाँ कोई ठिकाना ही नही था…!
वहीदा अपनी बकरियों को गाँव की तरफ हांकती हुई बोली – आओ चलो हमारे घर, तुम भी देख लोगे.., कभी कभार घूमने आ जाया करना हमारे पास…!
बातें करते करते वो दोनो कुच्छ दूर और निकल आए, अब उसका गाँव थोड़ा ही दूर था.., तभी गाँव की तरह से एक लड़की उनकी तरफ आती दिखाई दी…!
तेज़ी से चली आरहि उस लड़की को देख कर संजू ने दूर से ही अंदाज़ा लगा लिया कि वो उनकी तरफ ही आ रही है.., संजू ने वहीदा से पुछा…, वहीदा बेहन ये लड़की कों है जो हमारी ही तरफ आ रही है…?
वहीदा – ये मेरी सबसे छोटी ननद है शकीला, बहुत ही चुलबुली.., देखो तो कैसी हिरनी के जैसी कुलाचें भरते हुए चली आ रही है…!
ऐसा ज़ुल्म मत करो पंडितजी…, अपनी दासी को यौं प्यासा छोड़कर तो ना जाओ…!
मेने उसके गोल मटोल फुटबॉल जैसे चुतड़ों को अपने पंजों में कसते हुए कहा – तुम्हारे लिए एक अपने जैसे ही मर्द का इंतेजाम करके जा रहा हूँ मेरी जान…, क्या तुम्हें संजू जैसा गबरू जवान पसंद नही आया…?
श्यामा – हाए पंडितजी…, क्या मे रंडी हूँ..? मेने तो आपको दिलोजान से अपना सब कुच्छ सौंपा था.., फिर मे आपके अलावा किसी और के साथ कैसे सो जाउ..?
मे – समझा करो श्यामा, मे शहर में अपने काम में व्यस्त हो गया हूँ, गाँव अब आना जाना नही हो पाता है.., तुम्हारे उस पप्पू पति से कुच्छ होता जाता है नही… इसलिए मेने सोचा, संजू अब गाँव में ही रहने वाला है...
अब अगर तुम्हें उसके साथ संबंध बनाना पसंद नही है तो कोई बात नही, तुम उसे मना कर देना…., ठीक है, इतना बोलकर मेने उसके दोनो चुतड़ों को दबाकर उसे अपने लंड पर कस लिया…!
श्यामा – ऐसी बात नही है.., संजू जी तो बहुत ही सुंदर और मजबूत कद काठी के पहलवान सरीखे नौजवान हैं.., बस मुझे उनके साथ थोड़ी झिझक सी लग रही है…, फिर उसने मेरे लौडे को पॅंट के उपर से ही मसालते हुए कहा… मुझे तो बस ये चाहिए था…!
मेने उसके दोनो कठोरे अनारों को हाथों में भरकर ज़ोर्से मसल दिया…वो बुरी तरह सिसक पड़ी…सस्सिईइ…आअहह…दर्र्रद्द…होता है…!
मेरी जान…इसका तो तुम मज़ा ले ही चुकी हो…, अब संजू के लौडे का स्वाद भी लेकर देखो…शायद वो तुम्हें मेरे से भी ज़्यादा पसंद आ जाए…!
श्यामा – अब आप इतना बोल रहे हैं तो ठीक है मे कोशिश करूँगी.., वैसे कभी कभार तो आ ही सकते हैं ना…!
मे – कोशिश करूँगा, लेकिन वादा नही कर सकता कि कब आ पाउन्गा, इतना कहकर एक बार फिरसे उसकी गान्ड सहला कर मे वहाँ से निकल आया….!
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सूरज पश्चिम में अपनी लालिमा बिखेरने की तैयारी में था…साथ ही दूर दराज को गये पक्षी आसमान में कतार बनाए हुए अपने अपने घरों की ओर लौटने लगे थे जब मेने चाची के घर में कदम रखा…!
वो शायद अपने आँगन में चारपाई डाले मेरा ही इंतेज़ार कर रही थी.., मुझे देखते ही लपक कर उठते हुए बोली – कहाँ चले गये थे लल्ला…, मे कब से तुम्हारी राह देख रही हूँ…!
मेने अपने होठों पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा – क्या हुआ चाची… इतनी बैचैन क्यों हो.. फिर कोई बात हो गयी क्या..?
वो मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – बिना कोई मुशिबत आए क्या मुझे तुम्हारी ज़रूरत नही पड़ सकती..? शहर जाकर मुझे पराया कर दिया लगता है..?
मेने अपना एक हाथ चाची की कमर में डाला और झटके से अपने बदन से उनके गुदाज बदन को सटाते हुए बोला – आपको पराया कैसे कर सकता हूँ चाची.., आप तो मेरी फावोरिटे चाची हो…!
वो अपनी दोनो बड़ी बड़ी मखमली गुदाज चुचियों को मेरे सीने में दबाते हुए बोली – तुम्हारे चाचा कस्बे में गये हैं, मे अकेली बोर हो रही थी.., तुम पता नही कहाँ चले गये तो बस पुच्छ लिया…!
चाची की मखमली गान्ड जो हमेशा से मेरी कमज़ोरी थी जिसे मेरी रिक्वेस्ट पर एक बार चाची ने बलिदान भी कर दिया था उसे मसल्ते हुए कहा – क्या सच में बोर हो रही थी इसलिए मेरी चिंता हो रही थी या कुच्छ और भी बात है..?
चाची ने इतराते हुए बड़े प्यार से मेरे सीने पर एक धौल जमाते हुए कहा – सब जानते हुए अंजान बनाने की तुम्हारी पुरानी आदत गयी नही…!
रूको मे दरवाजा बंद करके आती हूँ, फिर अंदर कमरे में बैठकर बातें करेंगे…!
दरवाजा बंद करके चाची मुझे कमरे में ले गयी और जाते ही वो मेरे बदन से लिपट गयी…!
देखते ही देखते हम दोनो के बदन कपड़ों से मुक्त हो गये.., चाची का शरीर पहले से भी ज़्यादा मांसल हो गया था.., उनके मखमली बदन को अपनी बाहों में समेट कर मे पलंग पर आगया और फिर वही हुआ जो हमेशा होता था…!
बहुत दिनो बाद आज हमारा मिलन संभव हो पाया था… वो आज कोई कसर बाकी रखना नही चाहती थी.., मेने भी आज अपना तन मन उनके हवाले कर दिया और लगभग 1 घाटे मेने चाची को जमकर चोदा…!
वो अब पूर्ण रूप से तृप्त दिखाई दे रही थी, मेरी बाहों में लिपटी मेरे नंगे बदन को सहलाते हुए बोली – कितने महीनो से तरस रही थी तुम्हारे इस मजबूत हथियार के लिए…!
मेने उनकी 36 की गोल-गोल चुचियों को सहलाते हुए कहा – अब तो खुश हो.., और कोई कसर बची हो तो बताओ…!
चाची मेरी क़ैद से अलग होते हुए बोली – नही लल्ला अब कोई कसर नही बची.., वैसे भी अब संजू के भी आने का समय हो रहा है, तुम्हारे चाचा भी लौटते ही होंगे चलो कपड़े पहन कर बाहर आ जाओ…मे चाइ बनाती हूँ..!
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उधर मुझे विदा करके श्यामा संजू के पास पहुँची, संजू चारपाई पर ज़मीन को पैर लटका कर बैठा था…, चारपाई के पास खड़ी होकर उसने संजू से कहा – संजू जी आप बैठिए मे आपके लिए चाइ पानी लेकर आती हूँ…!
संजू ने अपना हाथ बढ़ाकर उसकी माजुक कलाई पकड़ी और एक झटका देते ही वो सीधी उसकी गोद में जा गिरी…, उसकी पतली कमर में हाथ डालकर उसके गोरे मुलायम कचौरी जैसे फूले हुए गाल से अपनी चार दिन पुरानी दाढ़ी को रगड़ते हुए बोला…
चाइ पानी तो रोज़ ही पीते हैं रानी, आज तो कुच्छ और ही पीने का मन कर रहा है….! उसके पतले पतले रसीले सुर्ख होठों पर अपने अंगूठे को रगड़ते हुए बोला – आज तो इनका रस पीने का मन कर रहा है… पिलाओगी..?
श्यामा उसके बंधन में कसमसाते हुए बोली - छि.. कितने गंदे हैं आप.., छोड़िए मुझे, मे ऐसी वैसी नही हूँ…!
संजू उसके गोरे पतले सपाट पेट को सहला कर बोला – वाकयि मेरी जान तुम ऐसी वैसी औरत नही हो.., तुम तो दिल में रखने वाली चीज़ हो तभी तो वकील भैया मुझे तुम्हारा ख्याल रखने का बोलकर गये हैं…! तुम उनकी खास जो हो…. है ना…!
उउउन्न्ह….छोड़िए ना..! हम क्यों उनके खास होंगे…? उनकी खास तो उनकी पत्नी हैं…, वो तो बस ऐसे ही हमारे परिवार से हित रखते हैं, इसलिए कभी-कभार मिलने चले आते हैं बस…!
संजू – लेकिन मुझे तो उन्होने कुच्छ और ही बताया था…!
श्यामा – क्या..? क्या कहा उन्होने मेरे बारे में..?
संजू के हाथ अब उसके कठोर गेंद जैसे उभारों पर पहुँच चुके थे, उसने उन्हें बड़े नाज़ुक अंदाज में सहलाया और फिर उसके कड़क हो रहे निप्प्लो पर अपनी उंगली के पोर से दबाब डालते हुए बोला –
वो कह रहे थे.., संजू मे तुम्हें अपनी एक खास और दिल अज़ीज से मिलवाने ले जा रहा हूँ.., ख्याल रहे मेरे पीछे उसे किसी चीज़ की कमी ना रहे…,तुम उसका तन मन से ख्याल रखना…!
श्यामा संजू की तरफ घूमकर बोली – क्या सच में उन्होने ऐसा कहा..?
संजू उसके उभारों पर दबाब बढ़ते हुए बोला – हां…, बिल्कुल यही कहा था उन्होने…ये कहते हुए उसने उसके अनारों को ज़ोर्से मसल दिया…!
सस्सिईईई…आअहह…व.उूओ.. बहुत अच्छे इंशान हैं…, मेरा कितना ख्याल है उन्हें…
संजू ने उसे किसी बच्ची की तरह पलटकर उसका मूह अपनी तरफ कर लिया, उसके सुन्दर से गोल-मटोल चेहरे को अपने दोनो हाथों में भरकर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला – और मे कैसा इंशान लगा तुम्हें…?
श्यामा पर संजू की लच्छेदार बातों और उसकी हरकतों से वासना का खुमार चढ़ने लगा था.., आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे…, अपनी लरजती ज़ुबान से बड़ी मुश्किल से वो बोली – आ..आअप्प्प..भीइ..बहुत अच्छे हैं…संजूऊू..ज्जिि…!
उसके मूह से ये शब्द सुनते ही संजू के तपते होंठ उसके लरजते होठों पर चिपक गये और श्यामा के वाकई के शब्द उसके अंदर ही जप्त हो कर रह गये…!
वो दोनो एक दूसरे के होठों को लेमन्चूस की तरह चूसने लगे…, संजू का लंड उसके कपड़ों में ही खड़ा होकर श्यामा की मुलायम गान्ड में ठोकरें मारने लगा…!
संजू के हाथ उसके कठोरे उभारों का मर्दन करते जा रहे थे…, श्यामा जैसी नाज़ुक कमसिन औरत पर इतने सारे हमले एक साथ होने से उसकी चूत अपना कामरस छोड़े बिना ना रह सकी…!
संजू की उंगलियों ने भी करतब करना शुरू कर दिया और किस करते हुए उसने उसकी चोली के सारे बटन खोल डाले…!
वो उसे वहीं चारपाई पर लिटाकर उसके अनारों को मसल्ते हुए, उसकी सुराइदार गर्दन को चूमते हुए पैरों से उसके घांघारे को उपर सरकाने लगा…!
घुटनो से उपर आते ही उसका एक हाथ उसकी गोरी-चिकनी जांघों पर फिसलने लगा और धीरे धीरे उसका वो हाथ जैसे ही उसके यौनी प्रदेश पर पहुँचा.. श्यामा के मूह से एक मादक सिसक फुट पड़ी…!
उसकी चड्डी उसी के कामरस से गीली हो चुकी थी.., चड्डी के उपर से ही उसकी एक उंगली उसकी फांकों के बीच की दरार में घूमने लगी…!
सस्सिईइ…आअहह…उउउम्म्मंणणन्…करते हुए श्यामा ने अपनी दोनो जांघों को और खोल दिया…, संजू को समझते देर नही लगी की लौंडिया अब पूरी तरह से तैयार हो चुकी है…,
सो उसने उसके पैरों के पास पहुँचकर जैसे ही उसकी कच्छी को उतारने के लिए हाथ बढ़ाया….. तभी एक आवाज़ उसके कानों में पड़ी…., ये क्या हो रहा है यहाँ..??????
संजू ने हड़बड़ा कर आवाज़ की दिशा में देखा…, सामने श्यामा की जेठानी राम दुलारी अपने मूह पर हाथ रखे हुए विश्मय से अंदर चल रही काम लीला को देख रही थी…!
संजू ने झट-पाट श्यामा के घांघारे को उसके पैरों तक खिसका कर चारपाई से नीचे उतारने के लिए अपना एक पैर ज़मीन से टीकाया ही था कि पीछे से श्यामा ने उसकी कलाई थाम ली…!
संजू ने पलटकर उसकी तरफ देखा….. मुझे यौं अधूरा छोड़कर कहाँ जा रहे हो संजुज़ी… श्यामा किसी घायल हिरनी की तरह तड़प्ते हुए बोली…!
संजू के मूह से कोई बोल नही फूटा…, उसने बस मूक निगाहों से रामदुलारी की तरफ इशारा किया…, श्यामा ने एक नज़र अपनी जेठानी पर डाली और मुस्कुरा कर बोली…..!
तुम उनकी चिंता मत करो…, बस अपना काम पूरा करते रहो…, आओ मेरे राजा.. ये कहते हुए उसने संजू को फिरसे अपने उपर खींच लिया…!
उसकी इस हरकत पर रामदुलारी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी…, वो उन दोनो के पास आकर बोली – अरी करम्जलि… साली छिनाल… चुदास की मारी कुतिया, कम से कम दरवाजा तो बंद कर लेती…, अभी मेरी जगह कोई और होता तो…?
आअहह…जीज्ज़िि…कुच्छ मत कहो…, तुम्हारे उस ना मर्द देवर से तो कुच्छ होता जाता नही है.., भला हो पंडितजी का जो वो संजुज़ी को यहाँ छोड़ गये हैं…!
हाए संजुज़ी…प्लीज़ कुच्छ करो ना..ये कहते हुए उसने संजू के हाथ अपने खुले हुए अनारों पर जमा दिए…!
संजू ने एक नज़र रामदुलारी पर डाली और ज़ोर्से श्यामा के अनारों को मसल दिया…..!
सस्स्सिईईई…आअहह…रजाअ.. ज्जिि…आराम से…, कहते हुए श्यामा उसे अपने उपर खींचने लगी…!
इन दोनो के प्रेम प्रलाप को देख कर रामदुलारी की चूत में भी खुजली होने लगाई थी, वो अपने लहँगे के उपर से ही अपनी चूत को खुजाते हुए बोली – अरईइ तो कम से कम कोठे में तो चल.., खुला आँगन है, इधर उधर से किसी ने
झाँक लिया तो बड़ी बदनामी वाली बात हो जाएगी…!
दुलारी की बात सुनकर संजू नीचे उतर गया.., श्यामा ने भी चारपाई से नीचे पैर रखते हुए कहा – हाए संजू जी मुझे अपनी गोद में उठा लो ना..प्लीज़, ये कहते हुए वो सचमुच उसके गले में बाहें डालकर झूल गयी…!
संजू ने किसी गुड़िया की तरह उसे अपनी गोद में उठा लिया…, श्यामा ने अपनी दोनो टाँगें उसकी कमर में लपेट ली…, उसका पाजामे के अंदर पूरी तरह फन फैला चुका नाग श्यामा की गान्ड पर जा टिका…!
लंड की गर्मी से उसकी चूत पिघलने लगी.., संजू उसे गोद लिए कोठे के अंदर तक आगया.., आगे आगे बेसबरी में कदम बढ़ती हुई दुलारी थी…!
दुलारी ने फुर्ती से ज़मीन पर गद्दा बिच्छा दिया.., जिसपर जाकर संजू ने शयामा को खड़ा कर दिया…!
श्यामा चुदने के लिए इतनी उतबली हो रही थी कि उसने एक मिनिट के अंदर अपने सारे कपड़े अपने शरीर से अलग कर दिए और वो संजू के कपड़ों पर भी टूट पड़ी…!
श्यामा के नंगे छरहरे साँचे में ढले 34-28-34 फिगर वाले बदन को देख कर संजू की बान्छे खिल उठी.., उसने अपनी शायरट उतार कर एक तरफ फेंक दी.., तब तक श्यामा उसके पाजामा को उतार चुकी थी.., और अंडर वेअर के उपर से ही उसके कड़क मस्त लंड को मुट्ठी में लेकर मसल्ने लगी…!
उनकी कॉम्क्रीडा का असर दुलारी पर भी हो रहा था…, उसने भी अपनी चोली के बटन खोल डाले और अपने भारी भारी स्तनों को अपने ही हाथों में लेकर मसलने लगी…!
संजू श्यामा के पतली कमर में एक हाथ डालकर उसके होठों का रस पीने लगा.., साथ ही उसका दूसरा हाथ उसके
अनारों का रस निचोड़ने में व्यस्त हो गया….!
इस दो तरफ़ा मार से श्यामा सिहर उठी…, उसकी चूत से बूँद बूँद करके काम रस बिस्तर पर टपकने लगा…!
संजू ने उसे बिस्तर पर टिका दिया और खुद उसकी कड़क कठोर गोल-गोल चुचियों से खेलने लगा…, एक चुचि को मूह में लेकर चूसने लगा और दूसरे को स्पंज की गेंद के तरह मुट्ठी में कसकर दबाने लगा…!
श्यमा का पल-पल बुरा हाल होता जा रहा था…, उसकी आँखों में चुदने की याचना साफ-साफ दिखाई दे रही थी…, लेकिन संजू तो बस अपनी ही धुन में मगन उसे बिस्तर पर धकेलता हुआ उसकी जांघों के बीच जा पहुँचा….!
उसकी मुनिया से लार के तार निकल रहे थे जिन्हें संजू ने अपनी जीभ ले जाकर चाट लिया…, संजू की जीभ का स्पर्श पाते ही श्यामा का बदन जुड़ी के मरीज की तरह थरथरा उठा…..!
सस्स्सिईईईई….हाअयईी…मेरे राज्जाआ…क्या कर रहे हो…?? अब नही रहा जाता मुझसे…उउउम्म्मननन्ग्घ…जीज्ज़िि…बोलो ना…!
रामदुलारी से अपनी प्यारी छोटी बेहन की तड़प सहन नही हुई…, उसने संजू का अंडरवेर नीचे सरका कर उसके लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर श्यामा की रसीली चूत की गीली गरम फांकों पर टिका दिया…!
संजू ने भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए श्यामा की सुडौल मुलायम जांघों को अपनी जांघों पर चढ़ाया और अपने लंड को 2-3 बार उसकी अधखुली चूत के मूह पर उपर से नीचे तक फिराया…!
श्यामा सिसकते हुए बोली… आअहह….सस्सिईईई.. अब देर मत करो राजा…, चोदो मुझे वरना मे मर ही जाउन्गि…अब..!
उपर से दुलारी ने भी उसकी पीठ सहलाते हुए आगे बढ़ने का इशारा करते हुए उसकी गान्ड पर चपत लगाते हुए कहा… अब डाल भी दे भडुये…क्यों तडपा रहा है बेचारी को…!
दुलारी की बात पर संजू के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.. और उसने एक जबरदस्त धक्का देकर एक ही झटके में अपना
मोटा ताज़ा लंड ¾ तक श्यामा की गुफा में उतार दिया…!
इस हमले से श्यमा का मूह खुला का खुला रह गया…, उसके मूह से मादक कराह निकल पड़ी…आआहह…मार डाला..हरजाई….धीरे…उउउफफफ्फ़…
संजू ने एक लंबी साँस लेकर अपने लौडे को थोड़ा बाहर किया.., और फिर उससे भी तगड़ा झटका मारकर जड़ तक अपना
लंड श्यामा की चूत में पेल दिया…..!
बहुत मस्त लौंडिया थी श्यामा, थोड़ी देर बाद ही वो अपनी पतली कमर उच्छाल-उच्छाल कर लंड का मज़ा लेने लगी…,
झड़ने तक उसकी गान्ड बिस्तर से नही टिकी....
उसने संजू को भी ये एहसास दिला दिया कि इस लौंडिया को चोदना माने जन्नत के नज़ारे देखने से कम नही है…
बाजू में बैठी दुलारी ने भी अपना लहंगा कमर तक चढ़ा लिया और अपनी तीन-तीन उंगलियों को अपनी चूत की गहराइयों में उतारकर अपनी चूत को चोदने लगी….!
एक बार श्यामा को जमकर चोदने के बाद दुलारी भी अपनी भारी भरकम गान्ड खोलकर उसके सामने पसर गयी.., जिसका संजू को पहले से ही अनुमान भी था…!
लेकिन पहलवान सरीखे संजू पर क्या फ़र्क पड़ना था.., सो वो दोनो बहनों को अच्छी तरह से ठंडा करके अपने कपड़े संभालता हुआ, नयी नयी कटारीदार मूँछो पर ताव देता हुआ दुलारी के घर से चाची के घर को निकल लिया…!
मे और चाची अपना मनपसंद खेल खेलकर आँगन में बैठे बातें कर ही रहे थे जब संजू वहाँ पहुँचा…!
हम दोनो की नज़र आपस में टकराई.., इशारों ही इशारों में उसने बता दिया कि काम अच्छे से हो गया है…..!!
थोड़ी देर बाद चाचा भी आगये, चाची उठकर खाने के इन्तेजाम में जुट गयी.., और हम तीनों आपस में बातें करते हुए खाने का इंतजार करने लगे……..!!
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संजू का दिल गाँव के वातावरण में रमने लगा था…, फक्कड़ आदमी उसे चाहिए क्या..? जमकर मेहनत करना और दो वक़्त का बढ़िया खाना…,
उपर से अब उसके लिए दो-दो चूतें भी थी.., जब भी मन करता वो दुलारी के घर जा पहुँचता.., कभी-कभी तो उन दोनो में से कोई एक या फिर दोनो, उसके पास खेतों में ही पहुँच जाती थी…!
एक दिन संजू अपने पूरे चक के बस यौंही चक्कर काट रहा था.., हमारे खेतों के दूसरी तरफ एक और गाँव था जो लगभग हमारे खेतों से उतना ही दूर था जितना हमारा अपना गाँव…!
घूमते घामते हुए जब संजू खेतों के दूसरी छोर पर पहुचा जहाँ से उस दूसरे गाँव की हद शुरू होती थी.., हमारे खेत अपने गाँव की सीमा पर ही थे…!
दोनो गाँव की सीमा पर एक नहर थी जिसके द्वारा कभी गंगा का पानी इस पूरे इलाक़े की सिंचाई के काम आता था आज दशकों से सुखी पड़ी थी.., जो अब एक तरह से झाड़ियों से ढक चुकी थी…!
नहर की अपोजिट साइड की पटरी पर एक झाड़ी की ओट में संजू को एक भरे हुए बदन की औरत जो की *ी टाइप के सलवार कुर्ता पहने थी आज़ार आई…!
उसका मूह झाड़ियों की तरफ था और खड़े होकर वो अपनी सलवार का नाडा खोल रही थी.., कौतूहल बस संजू उसे वहीं खड़े होकर देखने लगा…!
देखते ही देखते उस औरत ने पीछे से अपना कुर्ता उपर किया और सलवार नीचे करके वो वहीं मूतने बैठ गयी…!
संजू उस औरत की गोरी-गोरी विशालकाय गान्ड को देखने का मोह छोड़ ना सका और वो बड़े ध्यान से उसे मुतते हुए देखने लगा…!
उस औरत की गान्ड के पाट कुच्छ ज़्यादा ही बाहर को निकले हुए थे जिसकी वजह से संजू को उसके मूत की मोटी सी धार और गान्ड के बीच की कत्थयि रंग की दरार तो दिख रही थी लेकिन उसके भोस्डे के दर्शन नही हो पा रहे थे…!
वो उत्सुकताबस दबे पाँव उस औरत के नज़दीक जाने लगा.., वो जैसे ही नहर की गहराई में पहुँचा, अंदर से उसे उसकी काली काली लेकिन छोटे बालों वाली झान्टो के बीच फूली हुई चूत के दर्शन क्षण मात्र के लिए हो गये जब वो औरत मूतने के बाद अपनी गान्ड को और उपर की तरफ उठाकर अपने भोस्डे से टपकते मूत की बूँदों को निहार रही थी…!
इसका मतलब अब वो खड़ी होने वाली है, कहीं वो औरत उसे देख ना ले इसलिए संजू वहीं एक झाड़ी की ओट में हो गया……!
एक बार अपनी सलवार का नाडा बाँधकर वो औरत संजू की तरफ पलटी…, उसे वो जानी पहचानी सी नज़र आई.., थोड़ा और ध्यान से देखने पर उसकी सारी शंकायं दूर हो गयी, संजू उसे अच्छे से पहचान चुका था…!
लेकिन ये यहाँ इस पास के गाँव में मिलेगी इस बात की उसे बेहद हैरानी हो रही थी…!
वो औरत अपनी 36” की गान्ड मतकाते हुए पटरी के दूसरी तरफ चली गयी.., संजू कुच्छ देर वहीं खड़े रहकर मन ही मन विचार करने लगा.., कि ये तो वहाँ शहर में रहती थी तो फिर इस गाँव में क्या कर रही है…!
कुच्छ सोचकर वो भी उस औरत की दिशा में चल पड़ा…!
दूसरी तरफ एक खेत में उसकी 8-10 बकरियाँ घस्स चर रही थी, वो उन्हें इकट्ठा करने लगी, जब सब एक साथ आगयि, तो उन्हें हांकते हुए अपने गाँव की तरफ चल दी…!
संजू थोड़ा तेज तेज कदम बढ़कर उसके पास जा पहुँचा और पीछे से उसने उसे आवाज़ दी….. ज़रा सुनिए तो….!!!
वो औरत उसकी आवाज़ सुनकर एकदम से पलटी और अपने सामने संजू को खड़ा देख कर वो बुरी तरह से चोंक पड़ी….. अरे सजु तुम और यहाँ… कैसे भाई..????
संजू – यही सवाल मे तुमसे पुच्छना चाहता था.., मे तो यहाँ पास के गाँव में ही वहाँ के सरपंच की खेती वाडी देखता हूँ…, लेकिन तुम यहाँ कैसे…?
वो औरत जो कोई और नही युसुफ की बड़ी बेहन वहीदा थी, जिसका निकाह युसुफ ने अपने ही गॅंग के असलम के साथ कर दिया था, जो एक पक्की रांड़ थी.., ड्रग्स के धंधे में ग्राहक पटाने के मामले में वो अपने जिस्म को परोसने में भी देर नही लगाती थी…!
वहीदा – वहाँ अड्डे पर रेड पड़ने के बाद हम सब लोग शहर छोड़ने पर मजबूर हो गये.., ये गाँव मेरे शौहर का है.., तो च्छूपने के लिए हमें यहाँ से ज़्यादा मुनासिब जगह और कोई नही लगी.., सो हम दोनो अब यहीं आकर रहने लगे हैं….!
संजू – तो अब युसुफ भाई और बाकी घरवाले आजकल कहाँ हैं…???
वहीदा – कुच्छ दिन तक तो वो इधर से उधर छुपते च्छूपाते रहे लेकिन अब कुच्छ महीनो से कोई खैर खबर नही है उन लोगों की…!
तुम सूनाओ, यहाँ कोई रिस्तेदारि बगैरह है जहाँ रहते हो आजकल…???
संजू – मेरी यहाँ कहाँ से कोई रिस्तेदारि होगी.., तुम शायद निर्मला को तो जानती ही हो, उसी के कुच्छ रिस्तेदार यहाँ रहते हैं… उनके पास ही रहता हूँ, वहाँ की भगदड़ से बचते बचाते हुए हम दोनो भी यहीं चले आए.., वरना मेरा तो यहाँ कोई ठिकाना ही नही था…!
वहीदा अपनी बकरियों को गाँव की तरफ हांकती हुई बोली – आओ चलो हमारे घर, तुम भी देख लोगे.., कभी कभार घूमने आ जाया करना हमारे पास…!
बातें करते करते वो दोनो कुच्छ दूर और निकल आए, अब उसका गाँव थोड़ा ही दूर था.., तभी गाँव की तरह से एक लड़की उनकी तरफ आती दिखाई दी…!
तेज़ी से चली आरहि उस लड़की को देख कर संजू ने दूर से ही अंदाज़ा लगा लिया कि वो उनकी तरफ ही आ रही है.., संजू ने वहीदा से पुछा…, वहीदा बेहन ये लड़की कों है जो हमारी ही तरफ आ रही है…?
वहीदा – ये मेरी सबसे छोटी ननद है शकीला, बहुत ही चुलबुली.., देखो तो कैसी हिरनी के जैसी कुलाचें भरते हुए चली आ रही है…!