Update 03

थोड़ा नज़दीक आने पर संजू ने उस लड़की को गौर से देखा.., रंग ना ज़्यादा गोरा और ना ऐसा की उसे पक्का कहा जा सके.., अगर ये शहर की आबो-हवा में रहती होती तो शर्तिया दूध जैसी चमक रही होती…!

18-19 साल की ये बाला, छरहरे बदन की हाइट कुच्छ ज़्यादा नही यही कोई 5’4 लेकिन फिगर उसका 32-26-34…, कमर इतनी पतली की चलते हुए लहराने लगे.., चुचियाँ अभी विकसित होने को उतबली हो रही थी.., शायद किसी मर्द के हाथों के इंतेजार में…!

आगे से गान्ड की गोलाइयाँ कुच्छ क्लियर तो नही थी.., लेकिन अंदाज़ा था कि वो भी थोड़ी सी मेहनत करने पर लंड का पानी हिलाने लायक हो सकती थी…!

गोल-मटोल चेहरा, हल्के से फूले हुए उसके गुलाबी गाल, पतले-पतले रसीले होठ… पुराने से सलवार सूट में वो चंचल हिरनी हाँफती हुई उनके सामने आकर खड़ी हो गयी और संजू की तरफ देखते हुए बोली – भाभिजान…ये कॉन हैं…?

वहीदा उसके बेहद करीब जाकर बोली – तेरे लिए दूल्हा ढूँढ कर लाई हूँ.., कैसा लगा…?

धत्त्त… शकीला ने शर्मा कर जबाब दिया.., ये कैसा मज़ाक है…, बताइए ना…ये कॉन हैं और जंगल में कहाँ से मिल गये आपको…?

वहीदा – ये संजू भाई है.., शहर में हमारे साथ ही काम करते थे युसुफ भाईजान के अज़ीज दोस्त…, तुम कहो तो इनसे तुम्हारा निकाह करवा दूँ…!

शकीला शर्म से अपना सिर झुका कर बोली – मुझे नही करना कोई निकाह विकह..,

वहीदा – क्यों पसंद नही है…? या ** का पसंद नही है मेरी राज्जू..?

शकीला – ऐसी कोई बात नही है…, चलो अब मज़ाक छोड़ो…, अम्मी आपको याद कर रही हैं…!

वहीदा ने संजू से एक घर की तरफ इशारा करते हुए कहा – भाई वो देखो मेरा घर.., अभी तो मेरे शौहर घर पर नही होंगे.., तुम बाद में हमारे यहाँ आना ज़रूर…!

संजू ने एक नज़र शकीला के खिलते यौबन पर डाली जो एकटक उसी की तरफ देख रही थी.., एक बार दोनो को नज़रें टकराई.., फिर शरमा कर शकीला ने फ़ौरन अपनी नज़र झुका ली…!

पलटते हुए एक बार फिर उस चंचल बाला ने संजू की तरफ तिर्छि नज़र से देखा और एक दिलकश मुस्कान बिखेरती हुई बकरियों को घर की तरफ हांकते हुए चल दी….

संजू अपने होतो पर मुस्कान लाते हुए बोला – वहीदा बेहन, अब तो तुम्हारे घर आना जाना लगा ही रहेगा.., अच्छा अब में चलता हूँ.., जल्दी ही मिलने अवँगा….बाइ….!
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एक बार फिर वही नहर का किनारा.., आज संजू इसी आशा में फिरसे उधर घूमते हुए चला गया कि शायद आज भी वहीदा उसे बकरियाँ चराते हुए मिलेगी.., और इसी बहाने वो उसके घर तक पहुँच जाएगा…!

लेकिन आज वहीदा की जगह वो चंचल हिरनी उसे बकरियाँ चराते हुए मिली…, देखते ही संजू की बान्छे खिल उठी.., उसकी बकरियाँ नहर के अंदर की झाड़ियों से पत्तियाँ चुन-चुनकर खा रही थी…!

शकीला एक बड़ी सी झाड़ी के नीचे छान्व में बैठी कुच्छ गुन-गुना रही थी जब दबे पाँव संजू उसके करीब पहुँचा….!

अरे शकीला… तुम ! आज तुम्हारी भाभी नही आई…? संजू ने उसे एक साथ संबोधित करके कहा तो वो अचानक से उसकी आवाज़ पर चोंक पड़ी…, झट से खड़े होते हुए बोली – नही उनको घर पे कुच्छ काम था…, लगता है आप यहाँ भाभिजान से ही मिलने आए हैं…!

संजू – नही ऐसी कोई बात नही है.., मेरे तो खेत ही यही हैं.., चक्कर लगाने चला आया था…, तुम्हें देखा तो
सोचा पूछ लूँ.., वैसे आज तुम्हारे भाईजान घर पर हैं…?

शकीला के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गयी.., और बड़ी शोखी के साथ बोली – भाईजान हैं तभी तो वो आज नही
आई हैं…, वैसे आपको भाभिजान से क्या काम था….?

सवाल करते हुए उसने अपनी नज़रें संजू के चेहरे पर गढ़ा दी.. जिनमें जमानेभर का अल्हाड़पन समाया हुया था…!

मासूम सी नज़र आराही शकीला के इस शरारत भरे सवाल पर कुच्छ देर तक संजू उसकी मासूमियत को निहारता रहा फिर कुच्छ देर बाद बोला – काम तो कुच्छ नही था.., वैसे बिना किसी काम के नही पूछ सकता..?

शकीला – आप लोग शहर में एक साथ रहते थे, तो कुच्छ ना कुच्छ काम तो रहता ही होगा एक दूसरे से.., वैसे भी भाभिजान हर किसी के काम के लिए तैयार हो जाती हैं…!

संजू उसके बेहद करीब पहुच चुका था उसे इस अल्हड़ जवानी की दहलीज पर कदम रख रही शकीला से बातें करने में मज़ा आ रहा था सो बात को आगे बढ़ाता हुआ बोला – हर किसी के मतलब किस तरह के काम के लिए…?

शकीला उसके इस अचानक सवाल से कुच्छ हड़बड़ा गयी.., अपनी पाटर पाटर बातें करने की आदत की मुतविक उसने बोल तो दिया था लेकिन अब संजू के इस सवाल का वो क्या जबाब दे की उसकी मनचली भाभी किस तरह के काम के लिए तैयार रहती है…!

उसने अपनी नज़रें झुका ली और पैर के अंगूठे से ज़मीन को कुरेदने लगी…, संजू ने अपना हाथ आगे करके उसके कंधे पर रखा…, किसी मर्द का हाथ अपने बदन से टच होने पर वो अंदर तक सिहर गयी…!

उसने अपनी केटीली पलकों को उठाकर संजू की तरफ देखा जो उसके थरथरते होठों को ही देख रहा था…,

उसे अपनी ओर देखते पाकर वो फिर बोला – तुमने जबाब नही दिया.., वो किस तरह के काम के लिए तैयार रहती हैं…?

शकीला ने हकलाते हुए बड़ी मुश्किल से जबाब दिया… मुझे…नही… मालूम…. आप उनसे ही पुच्छ लेना…!

संजू ने उसके कंधे को सहलाते हुए पुछा – अच्छा एक बात का सही से जबाब देना…, ये कहते हुए वो थोड़ी देर के लिए रुका.., शकीला ने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा मानो पुच्छ रही हो क्या..?

मे अगर तुम्हारे घर आउ तो तुम्हें बुरा तो नही लगेगा..?

शकीला ने तपाक से कहा – क्यों..? मुझे क्यों बुरा लगेगा..? मे तो चाहती हूँ.. अभी आप हमारे घर चलिए… उल्टा मुझे तो और खुशी हो…. ये कहते कहते अचानक वो रुक गयी…!

संजू का हाथ अब उसकी पीठ तक पहुँच चुका था.., उसके चुप होते ही बोला – हां.. हां.. बोलो.. तुम्हें मेरे आने से खुशी होगी…?

शकीला ने शरमाते हुए जबाब देने की जगह अपनी गर्दन हां में हिलाई…,

अबतक संजू उसके पीछे जा पहुँच था, अब उसके दोनो हाथ उसके दोनो कंधों पर थे.., कंधों से नीचे उसकी बाजुओं को सहलाते हुए बोला – क्यों..? मुझ जैसे अजनबी के आने से तुम्हें खुशी क्यों होगी..?

यौं हौले-हौले संजू के द्वारा उसके कंधों फिर बाजुओं को सहलाना शकीला को बड़ा अच्छा लग रहा था.., वो थोड़ा अपने बाजुओं को सिकोडते हुए बड़े भोलेपन से बोली…

आप तो मेरे भाईजान और भाभिजान के दोस्त हैं तो फिर अजनबी कैसे हुए..?

संजू उसके जबाब से प्रभावित हुए बिना नही रह सका.., उसकी तारीफ करते हुए बोला – एक बात कहूँ शकीला…, तुम सनडर ही नही समझदार भी हो…!

शकीला अपनी तारीफ़ सुनकर खुश हो गयी.., वो उसकी तरफ पलटते हुए बोली- क्या सच में मे आपको सुन्दर लगती हूँ या ऐसे ही बना रहे हैं…?

संजू – कसम से तुम निहायत ही खूबसूरत हो ये कहते हुए उसने सामने से उसके बाजुओं को पकड़ लिया…, तुम्हारे ये पतले पतले रसीले होत.., आहह.. जी करता है इनसे कुच्छ रस मे भी चुरा लूँ…!

शकीला ने शर्म से अपना चाँद सा चेहरा नीचे झुका लिया.. और लारजति आवाज़ में बोली – ये आप क्या कह रहे हैं…, खुदा के वास्ते इतना बड़ा झूठ मत बोलिए…!

संजू को लगा कि उसे उसकी तरफ से मौन स्वीकृति मिल गयी है.., सो उसने एक कदम और आगे आकर शकीला को अपनी बाहों में भर लिया और उसके पतले पतले होठों पर अपने खुश्क होठ रख दिए…!

शकीला के जीवन का ये पहला अनुभव था जब किसी मर्द के होठों ने उसके कुंवारे होठों को छुआ हो…! उसकी आँखें बंद हो गयी.., एक अजीब से एहसास में वो अपनी सुध-बुध खो बैठी..!

संजू ने जल्दी ही उसे अपने बंधन से मुक्त कर दिया.., वो देखना चाहता था कि लौंडिया इससपर क्या रिक्ट करती है.., कहीं नाराज़ ना हो जाए..,

लेकिन उसके छोड़ते ही शकीला ने उसे प्रश्नवचक नज़रों से देखा…मानो पुच्छना चाहती हो की इतना जल्दी क्यों ख़तम कर दिया ये चुंम्बन…!

संजू ने डरते हुए कहा – सॉरी शकीला.., तुम्हारे हुश्न को देख कर मे अपने आप पर कंट्रोल नही रख सका…!

शकीला सिर झुकाए हुए ही बोली – इसमें सॉरी की क्या बात है.., सच कहूँ तो मुझे आपका ये चुंम्बन लेना अच्छा लगा…!

संजू खुशी से झूम उठा और उसे बाहों में लेकर झूमते हुए बोला – सच शकीला.., तुम्हें मेरा चुंम्बन अच्छा लगा.., ऊहह..शकीला मेरी जान तुम सच में बहुत अच्छी लड़की हो …

फिर वो उसे अपनी गोद में लेकर बैठ गया.., शकीला के पूरे बदन में जैसे गुदगुदी सी होने लगी थी.., उसके नाज़ुक अंग अब फड़फड़ने लगे थे.., मन कर रहा था की संजू उसे अपनी बाहों में भरकर ज़ोर्से भींचे, उसकी चुचियों को मसल डाले…!

उधर इतना कुच्छ होने से संजू के पाजामा में तंबू बन चुका था जो अब शकीला की मुलायम बॉल जैसी गान्ड के नीचे दबा पड़ा था…!

संजू उसे अपने गोद में लिए हुए एक टीले जैसी जगह पर बैठ गया, उसके पतले पेट को सहलाते हुए उसने उसके चेहरे को अपनी तरफ किया और एक बार फिर उसने उसके रसीले होठों को चूम लिया…!

मे तुम्हें कैसा लगता हूँ शकीला…? संजू ने उसके चाँद से मुखड़े को अपने दोनो हाथों के बीच थामकर पुच्छा…!

शकीला – आप भी एकदम किसी फिल्मी हीरो से लगते हैं.., मेने तो कल ही पहली नज़र में आपको अपना दिल दे दिया था…!

संजू ने ज़ोर्से उसे अपने से कसते हुए कहा – सच में.. ऊहह..शकीला मेरी जान…, ये कहते हुए उसने पहली बार उसके कच्चे अनारों को छुआ और हल्के हाथ से सहलाने के बाद उन्हें हल्के से दबा दिया…!

शकीला मानो जन्नत में पहुँच गयी और उसने सामने से संजू के होठों को चूम लिया…, संजू ने उसका निमंत्रण ठुकराया नही और उसका स्वागत करते हुए वो भी उसके होठों को चूसने लगा…!

शकीला को गोद में बिठाए हुए ही वो दोनो चुम्म्बनो में खो गये, संजू का एक हाथ उसके अनारो की गोलाई मापने लगा.., वो दोनो सुध-बुध खोकर एक दूसरे में खोते चले गये….!

तभी एक झटके से शकीला का हाथ पकड़कर किसी ने ज़ोर्से उसे खींचा.., वो संजू की गोद से निकालकर ज़मीन पर आगयि…, सामने उसकी भाभी वहीदा बड़े गुस्से से उन दोनो को देख रही थी…!

बिना कुच्छ कहे सुने वो शकीला को खींचती हुई वहाँ से ले जाने लगी…!

तभी संजू ने हाथ बढ़कर उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा – वहीदा बेहन…रूको…मे शकीला से प्याररर….कहते कहते वो बैठकर हाँफने लगा मानो मेलों दौड़कर आया हो…!

जब उसने अपने आस-पास देखा तो अपने आप को चाची के आँगन में चारपाई के उपर पाया.., उसका शरीर पसीने से तर हो रहा था…!

ऊहह…तो ये सपना था… काश ये हक़ीकत होती.., कितना मज़ा आरहा था…, साली वहीदा को भी अभी आना था.., कितना अच्छा सपना तोड़ दिया…!

सपने की याद करके उसके चेहरे पर मुस्कान आगयि.., उठकर वो बाथरूम में खाली होने गया और फिर पानी पीकर फिरसे अपने बिस्तर पर लेट गया.., लेकिन अब शायद ही उसे नींद आने वाली थी…!

करवट बदलते हुए उसने वाकी की रात इश्स इंतेजार में काटी की कल किसी वक़्त वो वहीदा के घर ज़रूर जाएगा…..!!!

रूचि अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुक्की थी…, घर में किसी चीज़ की कमी नही थी…, हमारे परिवार में रामा दीदी के बाद वो ही इकलौती लड़की थी.., सभी उसे बेहद प्यार करते थे..!

बचपन से ही वो मेरे बहुत ही करीब थी.., मेरी गोद में खेलना…, गाँव में भी कॉलेज का कोई काम होता तो भाभी
मुझे ही भेजती.., उसको किसी भी चीज़ की ज़रूरत होती बस मेरी गोद में आकर बैठ जाती…!

फिर मेरी चिन को पकड़ कर जब अपनी डिमॅंड रखती… तो उसके भोलेपन को देखकर मुझे उसकी हर डिमॅंड पूरी करनी पड़ती….!

भाभी काई बार बोल भी चुकी थी…, लल्ला इसे इतना सिर मत चढ़ो वरना बिगड़ जाएगी.., अब ये बड़ी हो रही है.., कब तक इसकी डिमॅंड पूरी करते रहोगे…?

मे गोद में लिए हुए ही भाभी को अपनी तरफ खींचकर उनके गान्ड के उभारों को सहलाते हुए कहता – अभी हमारी बिटिया छोटी ही तो है.., जब बड़ी होकर शादी करके अपने घर चली जाएगी तो किसको प्यार करेंगे…?

भाभी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहती – बिगाड़ो इसे खूब बिगाड़ो, देखना एक दिन पछ्ताओगे…,

मे हॅस्कर रूचि की आँखों पर हाथ रख देता और भाभी के होठों पर चुंबन जड़ देता…, कभी कभी वो रूचि को भी डाँट देती.., लेकिन मे उनके सामने रूचि को मना कर देता…!

लेकिन उनके वहाँ से चले जाने के बाद रूचि को उसका मनपसंद चोकोबार थमाकर उसके मुलायम गाल पर एक किस कर देता…!

रूचि भोलेपन से जबाब देती – चाचू आप मुझे मम्मी से कम प्यार करते हैं.., मेरे होठों पर उंगली रख कर कहती.., उनको तो यहाँ पर क़िस्सी की आपने और मेरे गाल पर ही क्यों…?

उसकी बात पर मे सकपका जाता.. और बहाना बनाते हुए कहता – बेटा यहाँ की क़िस्सी सिर्फ़ बड़ों के लिए होती है.., आप तो अभी छोटी ही हो ना…, फिर वो ना समझते हुए भी हामी भर देती….!

शहर आने के बाद भी मे जब भी घर में घुसता उसके लिए कुच्छ ना कुच्छ लाता ही था…, सारी सुख सूबिधाओं में पली बढ़ी रूचि के शरीर का विकास भी समय से पहले ही होने लगा था…!

अब जब वो 12थ में पढ़ रही थी तब तक उसके शरीर का पूर्ण विकास हो चुका था…, रूचि अब अपनी मा से भी बढ़कर लगने लगी थी जब वो शादी होकर हमारे घर आई थी…!

सुन्दर गोल-मटोल चेहरा.., सुतवान नाक, कजरारी बड़ी बड़ी आँखें, लंबे बाल.., लंबी सुराइदार गर्दन.., 32-26-32 का शानदार कमसिन फिगर हाइट अभी से वो 5’7” थी…!

जब वो मुझे घर में कसरत करते देखती थी तभी से मेरे साथ साथ कुच्छ ना कुच्छ उच्छल कूद करती रहती…, शहर आकर मेने अपनी कोठी में छोटा सा जिम भी खोल रखा था.. जिसमें जिसकी मर्ज़ी होती अपने हिसाब से एक्सर्साइज़ कर लेता था…!

शहर आकर कॉलेज में गर्ल्स स्पोर्ट्स होते थे.. कुच्छ ही दिनो बाद रूचि ने भी एक के बाद एक सभी आउटडोर-इनडोर स्पोर्ट्स में हिस्सा लेना शुरू कर दिया, जल्दी ही वो टेबल टेन्निस की एक अच्छी खिलाड़ी बन गयी…!

ज़्यादातर तो जब में जिम जाता उस समय तक रूचि कॉलेज चली जाती थी.., लेकिन हॉलिडे वाले दिन वो मेरे साथ ही जिम करती.., मे भी उसे अपनी तरह से टिप्स देता था.., लेकिन अब कुच्छ दिनो से सब कुच्छ उल्टा होने लगा…!

जब से रूचि के हाथ स्मार्ट फोन लगा साथ में अनलिमिटेड नेट प्लान भी.., वो नेट से सारी चीज़ें देख कर उसी हिसाब से करने लगी.., यहाँ तक कि अब वो मुझे भी बताने लगी कि मे अब तक क्या ग़लत कर रहा था…!

लड़की जब बड़ी होने लगती है.., और जब उसे अपने शरीर में बदलाव दिखने लगते हैं तो उसे खुद के ही बदलाव अजीब लगने लगते हैं और वो उनकी तरफ आकर्षित होने लगती है..,

उन्हें छूकर देखती है.., सहलाती है.., और फिर उसी कच्ची उमर में जो भी मर्द उसके सबसे करीब होता है उसका झुकाव उसकी तरफ होने लगता है.., भले ही वो रिस्ते में कोई भी क्यों ना हो…!

रूचि मेरे शुरू से ही बहुत करीब थी.., मे उसे सारे घर में सबसे ज़्यादा प्यार करता था.., वो 7-8थ स्ट्ड. तक मेरी गोद में आकर बैठ जाती थी, मेरे गले में झूल जाती थी जबकि उस समय तक भी उसके नाज़ुक अंग दिखना शुरू हो गये थे…!

एक्सर्साइज़ करते हुए या फिर जिम में टिप्स देते समय हमारे शरीर आपस में खूब टच होते.. लेकिन इन सब के बावजूद कभी भी मेरे मन में उसके प्रति ग़लत भाबना नही आई…,

जब से भाभी और रूचि के साथ वो किडनप वाला हादसा हुआ था उसके बाद से रूच कुच्छ ज़्यादा ही डरी सहमी सी रहने लगी थी…,

उसका ये डर निकालने के लिए मे उसे एक्सर्साइज़ के साथ साथ अपने सेल्फ़ डिफेन्स के लिए कुच्छ फाइटिंग टिप्स भी देने लगा जिन्हें वो दिल लगा कर सीखने लगी..,

लेकिन दाँव पेंच सीखने के दौरान जब में उसके शरीर के किसी हिस्से को पकड़कर सामने वाले को किस तरह से मात देना है वो सिखाता था तो जाने अंजाने में मेरे हाथ उसके विकसित हो रहे उभारों से भी टच हो जाते थे…,

क्षण भर के लिए ही सही.., मेरा शरीर उत्तेजित हो उठता.., फिर जब कभी कभार में उसके पीछे आकर उसकी कमर में हाथ डालकर सिखाता तो उसके गोल-गोल उभरे हुए नितंब मेरे लंड को दबा देते जिससे च्द्भार के लिए मेरे अंदर भी एक अजीब सी हलचल होने लगती थी…

मे जब रूचि की प्रतिक्रिया जानने के लिए उसकी तरफ ध्यान देता तो वो मुझे नॉर्मल ही दिखाई देती.., और मुझे बड़ी राहत सी महसूस होने लगती की चलो इन सबसे उसपर कोई नेगेटिव एफेक्ट नही हो रहा…………………….!

रूचि के कॉलेज की संस्था का डिग्री कॉलेज भी है जो उसके साथ ही लगा हुआ है, बस बिल्डिंग ही सेपरेट है…! जब भी कोई स्पोर्ट्स या वार्षिक फंक्षन होता है तो कॉलेज और कॉलेज दोनो के स्टूडेंट्स मिलकर एंजाय करते हैं…!

रूचि की सुंदरता पर उसके अपने कॉलेज के लड़के ही नही.., कॉलेज में ग्रॅजुयेशन कर रहे लड़के भी उसकी तरफ आकर्षित थे.., और जैसा की कुच्छ मनचले लड़कों का ग्रूप भी हरेक कॉलेज या कॉलेज में होता ही है जो निकलते करते लड़कियों को छेड़ना उनपर छींटा कसी करना ये सब ट्रेंड सा बन गया है…!

लोग कितने ही विमन एमपवरमेंट की बात करें, लेकिन सच्चाई यही है कि अब भी ज़्यादातर लोग गर्ल्स ओर विमन को मनोरंजन की चीज़ ही समझते हैं…!

एक दिन टीटी की प्रॅक्टीस के बाद जब रूचि चेंजिंग रूम में चेंज कर रही थी की तभी वहाँ कॉलेज का एक लड़का जिसका नाम विक्की था वो ना जाने कब से रूचि की कमसिन चड़ती लावनी पर अपनी गिद्ध दृष्टि लगाए हुए था और गाहे बगाए वो उसको लेकर कॉमेंट्स भी पास कर देता था, मौका देखकर अपने एक खास चम्चे के साथ चेंजिंग रूम में घुस आया…!

बड़े बाप की बिगड़ी औलाद जिसके लिए हर लड़की या औरत सिर्फ़ भोग विलास की वास्चू थी.., कुच्छ देर वो छुप्कर रूचि को कपड़े चेंज करते हुए देखता रहा…,

रूचि ने अपनी काली लेंग्री के उपर कॉलेज की स्कर्ट पहन ली, और फिर उसने स्पोर्ट्स टीशर्ट उतार दी… उसके गोरे संगेमरमरी बदन पर काली ब्रा और उसके अंदर क़ैद उसके 32 साइज़ के कसे हुए बूब्स जो ब्रा की साइड से निकले पड़ रहे थे उन्हें देखकर वो दोनो लड़के साँस लेना ही भूल गये…!

फिर जैसे ही रूचि ने अपनी कॉलेज यूनिफॉर्म की सफेद शर्ट हॅंगर से उतारकर पहनने ही जा रही थी कि तभी विक्की ने पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया…!

दूसरा लड़का चौकीदारी करने के लिए बाहर ही खड़ा रहा…!

विक्की एक 6 फूटा जवान था.., उसकी मजबूत बाहूं के घेरे में रूचि किसी शिकारी के पंजे में क़ैद कबुतरि की तरह फडफडा कर रह गयी…!

पहले तो उसने कसमसा कर अपने आपको छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन जब वो सफल नही हुई तो वो उसे छोड़ने के लिए मिन्नतें करने लगी, गिडगिडाने लगी…,

लेकिन विक्की जैसे हवस के अंधे बिगड़े बाप की औलाद पर किसी लड़की की मिन्नतों का क्या असर होने वाला था…!

उसने रूचि को अपनी मजबूत बाहों में और ज़ोर्से कस लिया और उसके मुलायम सुर्ख गाल पर अपनी दाढ़ी को रगड़ने लगा.., दाढ़ी के बालों की रगड़ से रूचि का गोरा गाल लाल सुर्ख हो गया…!

रूचि को पक्का यकीन हो गया कि अब वो इस तरह से ई नीच के चंगुल से नही छूट पाएगी.., इधर एक जवान कुँवारी कमसिन लड़की के मादक बदन की गर्मी पाकर विक्की की हवस और बढ़ने लगी..,

उसने अपने हाथों को उसकी पतली सी कमर से ढीला छोड़कर अपने हाथों को रूचि के कोमल मक्खन जैसे कच्चे अनारों पर जमा दिया और उन्हें ज़ोर्से से मसल डाला…!

रूचि के वक्षों पर पहली बार किसी मर्द के हाथ पड़े थे.., वो भी इतनी ज़ोर्से किसी ने उन्हें पहली बार मसला था.., दर्द की एक तेज लहर उसके सीने में दौड़ गयी…!

लेकिन अपनी चुचियों के दर्द की परवाह किए बिना उसने मौके का . उठाया, अपने को विक्की के बदन से थोड़ा दूर किया.., और पूरी ताक़त से अपनी टाँग पीछे की तरफ घुमा दी…!

उसकी मोटी जाँघ विक्की की दोनो टाँगों के बीच से होती हुई उसका उपरी सिरा ज़ोर्से उसके गुप्ताँग से टकराया…, अपने आंडों में उसे इतनी जोर्का दर्द उठा की उसने रूचि की चुचियों को छोड़कर अपने आंडों को पकड़कर, अपनी दोनो टाँगें जोड़कर दर्द से बिल-बीलाता हुआ ज़मीन पर बैठता चला गया….!

बाहर खड़े उसके चंचे ने जब ये मंज़र अपनी आँखों से देखा तो वो दौड़ता हुआ कमरे के अंदर आया और उसने रूचि को सामने से दबोचना चाहा…!

लेकिन उसकी गिरफ़्त में आने से पहले ही रूचि ने अपना बाजू मॉड्कर अपनी एल्बो को घूमा कर उसकी नाक पर दे मारा..,
चोट एकदम सही जगह पर पड़ी और वो लड़का अपनी नाक को दोनो हाथों से दबाता हुआ पीच्चे को उलट गया.., उसकी नाक से खून बहने लगा था…!

रूचि तबतक अपनी शर्ट को अपनी दोनो बाजुओं में डाल चुकी थी, तभी विक्की भी अपने आपको संभाल चुका था…, और गालियाँ बकता हुआ फिरसे रूचि की तरफ झपटा…!

रूचि ने शर्ट के बटन बंद करने का विचार त्याग दिया और पूरी तरह से उससे दो-दो हाथ करने को तैयार हो गयी.., झपट कर उसने अपना टीटी का रॅकेट नेट की तरफ से पकड़कर उठाया और जबतक विक्की उसके पास पहुँचता..,

रूचि का रॅकेट वाला हाथ हवा में घूमा और भड़ाक से रॅकेट का मजबूत कठोर हॅंडल वाला सिरा उसकी कनपटी से जा टकराया…!

वार इतना भरपूर था.., विक्की ये चोट सहन नही कर सका और त्यौराकर कमरे के फर्श पर जा गिरा.., उसके गिरते ही रूचि के स्पोर्ट शू की भरपूर ठोकर उसकी पसलियों पर पड़ी…, जिसके पड़ते ही वो अपनी रही सही शक्ति भी गँवा बैठा…!

रूचि ने फ़ौरन अपना कॉलेज बॅग उठाया, कमरे से निकालने से पहले एक भरपूर किक उसके चम्चे को भी लगाई और बिना अपनी शर्ट के बटन लगाए ही लगभग दौड़ती हुई वो कमरे से बाहर निकल गयी….!

संजू ने जैसे तैसे करवट बदल बदल कर वो रात गुजारी.., सुबह होते ही वो खेतों की तरफ निकल गया.., क्योंकि वो सारे नित्यकर्म शौच आदि खेतों पर ही जाकर करता था.., फिर ट्यूब वेल से नहा धोकर ही घर आकर नाश्ता पानी करता फिर कुच्छ देर जानवरों को चारा पानी देकर फिरसे खेतों में निकल जाता था…!

लेकिन आज नित्यकर्म के बाद भी वो घर नही लौटा.., उसका मन रात वाले सपने में ही उलझा हुआ था.., उसे शकीला से मिलने की बहुत जल्दी थी सो बिना नहाए धोए ही वो नहर की तरफ चल दिया….!

वो ये बात अच्छी तरह से जानता था कि बकरियों को चराने सुबह ही सुबह कोई नही आएगा, ये काम दिन के दूसरे पहर में ही होता है घर के सारे काम काज निपटाने के बाद…, लेकिन वो इस मन का क्या करे जिसकी सुई सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही जगह अटकी हुई थी…!

कुच्छ देर तक वो नहर की पटरियों पर इधर से उधर चक्कर लगाता रहा, नज़र हर समय वहीदा के गाँव की तरफ ही टिकी हुई थी, शायद कोई इधर को आए…, अब आए.., ऐसे ही दो घंटे गुजर गये लेकिन ना बाबा आया ना घंटा बजा वाली बात हो गयी…!

धूप तेज होती जा रही थी, और अब उसे भूख भी लगने लगी थी, सो मन मारकर वो वहाँ से ट्यूब वेल पर लौट आया और नहा धोकर गाँव की तरफ चल दिया…!

चाचा कॉलेज जा चुके थे.., चाची ने संजू का इंतेजार करते करते जानवरों को चारा पानी भी डाल दिया था…, संजू के घर में घुसते ही उन्होने यही सवाल उससे किया.., जिसका उसने माकूल सा बहाना बना दिया…!

खा-पीकर वो फिरसे खेतों की तरफ चल दिया.., तबतक दिन काफ़ी चढ़ आया था.., दोपहर होने लगी थी..,

कुच्छ देर वो ट्यूब वेल के कमरे में पड़ी चारपाई पर पड़ा शकीला के बारे में ही सोचता रहा.., रह रहकर उसका वो मासूम भोला चेहरा, हिरनी जैसी चंचल आँखें उसके जेहन में घूम जाती थी.

जब उससे रहा नही गया तो वो फिरसे मे- जून की भरी दोपहरी में उसके गाँव की तरफ चल दिया…!

कुच्छ देर संजू नहर पर एक पेड़ की छाँव में बैठा उसके गाँव की तरफ देखता रहा…, सोचता रहा जाउ की नही जाउ…, वैसे कल वहीदा ने तो अपना घर दिखा ही दिया है तो जाने में कोई दिक्कत भी नही…, सो पक्का इरादा करके वो वहाँ से उसके घर की तरफ चल दिया…!

गाँव के बाहर पहुँच कर वहीदा के बताए घर को वो देखने लगा, ये एक बहुत ही साधारण सा गाँव के ग़रीब लोग जैसे रहते हैं वैसा ही घर था..,

कच्ची मिट्टी की दीवार लगभग 10 फीट उँची उठा कर पार्कोटा बनाया गया था, जिसके सामने की दीवार के बीचो बीच एक जर्जर सा झिर्रिदार किवाड़ का दरवाजा था…,

पार्कोटे के पीछे की तरफ एक या दो कमरे से थे, जिनकी दीवार तो एंटों की थी लेकिन उनपर प्लास्टर नही था.., और शायद उनकी छत कच्ची मिट्टी की ही थी.., दोनो कमरों के सामने घस्स फूंस का छप्पर पड़ा हुआ था…!

घर की हालत से संजू ने अंदाज़ा लगा लिया कि अगर ये वाक्यी वहीदा का ही घर है तो ये लोग सच में कुरबत की जिंदगी जी रहे हैं…!

कुच्छ देर तक संजू उसके उस जर्जर दरवाजे के सामने खड़ा रहा, इश्स आशा में की शायद कोई आदमी या औरत उसे दिखाई दे जिससे वो वहीदा के बारे में कन्फर्म कर सके की वो यही घर है या नही…!

लेकिन मे-जून की दोफ़री में गाँव में सन्नाटा पसरा हुआ था, गर्मी की तपीस से बचने के लिए सभी लोग अपने अपने घरों में डुबके पड़े थे..,

तक कर उसने उसी दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला.., सौभाग्य से वो अंदर को छररर…मररर..करता हुआ खुलता चला गया…!

संजू ने जैसे ही अंदर कदम रखा.., एक साइड को एक बादे जैसे में बंद सारी बकरियाँ मिमिया कर उठ बैठी…!

अंदर काफ़ी जगह थी लेकिन कुच्छ बना हुआ नही था.., किवाड़ की छर्राहट और बकरियों की मिमियाने की आवाज़ सुनकर किसी औरत की आवाज़ आई…!

अरी शकीला ज़रा देख तो कॉन है बाहर…, कुच्छ देर बाद एक सुरीली सी आवाज़ उसके कानों में पड़ी…, जी अम्मी अभी देखती हूँ…!​
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