Update 05
रूचि तो मुझसे प्रॉमिस लेकर नीचे चली गयी.., लेकिन मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ा.., बात इतनी हल्की भी नही है जितना ये नादान लड़की समझ रही है…, मुझे पता लगाना ही होगा कि ये विकी नाम की बीमारी कितनी गहरी है..
रूचि इस मामले को हल्के में ले सकती है लेकिन अगर कुच्छ हो गया तो मे अपने आपको कभी माफ़ नही कर पाउन्गा…,
मेने फ़ौरन जिम से ही अमित (प्राची का खास असिस्टेंट) को फोन लगाया और उसे इन्स्ट्रक्षन्स देकर आज से ही रूचि की आस-पास रहने का बोल दिया….!
अब मे कुच्छ रिलॅक्स हो गया था.., कुच्छ देर और शांति से पसीना बहाया और फिर टी शर्ट निकालकर पसीना सूखाया और फिर मे भी नीचे आगया…!
अब तक बड़े भैया और रूचि दोनो ही जा चुके थे.., मेने सीधा किचन की तरफ रुख़ किया.., जहाँ भाभी एक सिल्क वन पीस मेक्सी में सींक पर खड़ी कुच्छ कर रही थी.., शायद झूठे बर्तन साफ कर रही थी…!
उनके हाथों के मूव्मेंट के हिसाब से उनकी मादक सुडौल गान्ड थिरक रही थी.., बहुत संभव था कि नीचे कोई और कपड़ा नही होगा इसलिए उनके गोल-गोल नितंब कुच्छ ज़्यादा ही लहरा रहे थे…!
मेने जानबूझ कर उन्हें पीछे से अपनी बाहों में भर लिया.., उनकी गान्ड की हरारत का असर की मेरा जंग बहादुर एक सेकेंड में ही खड़ा होकर उनकी दरार में फिट हो गया…!
आअहह…निशा मेरी जानणन्न्…क्या गान्ड तेरी…? इतना मत लहरा इसे वरना मेरा लॉडा अभी के अभी फाड़ देगा इसे…….!
तभी पीछे से आवाज़ आई… ये मिसटर… तुम्हारी निशा यहाँ है.., वो दीदी की गान्ड है…
मेने फ़ौरन भाभी को छोड़ते हुए चोन्कने की आक्टिंग करते हुए पलट कर कहा – ओ तेरी की… भारी मिस्टेक हो गया…, सॉरी भाभी मे वो…मे..
भाभी ने मेरे मूह पर हाथ रखकर निशा से कहा – क्यों री तेरी गान्ड में खुजली क्यों हुई…? मिसटर की चोदि…, पता है कितना मज़ा आरहा था.., लल्ला का लॉडा मेरी गांकों तक पहुँच चुका था…!
थोड़ी देर चुप चाप खड़ी नही हो सकती थी…, पर नही.., खुद की भी गीली हो रही होगी ना.., मेरी सौत.., खुद तो रात रात भर इसे चूत में लिए पड़ी रहती है.., ज़रा सा मेरे लिए मौका मिलता है की फटे में टाँग अड़ा ही देती है…!
ऐसी प्यार भरी डाँट सुनकर निशा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी.., वो हम दोनो के पास आगयि और मेरे शॉर्ट के नीचे खींच कर अपने पंजों पर बैठ गयी और उसे अपने मूह में ले लिया…!
मेने भाभी को अपने पास खींच लिया और उनके भरे हुए मुलायम स्पंज जैसे मम्मों को मसल्ने लगा…, जो बिना ब्रा के भी मेक्सी में सीना ताने खड़े थे…!
आअहह…लल्ला…थोड़ा नीचे भी कुच्छ करो ना…, मेरी चूत में चुन-चुनी हो रही है…, ये कहकर उन्होने अपनी मेक्सी को कमर तक चढ़ा लिया.., और खुद से ही मेरा एक हाथ अपनी चूत पर रख दिया…!
भाभी की चूत गीली होने लगी थी.., मेने उसे हाथ से सहला कर अपनी एक उंगली उनके सुराख में डाल दी.....,
आअहह…लल्लाअ.., अब उंगली से कुच्छ नही होगा…, अपना मूसल डालो…ये कहकर उन्होने अपना गाउन पूरा ही निकाल दिया…, मेने निशा को अपने लंड से अलग करके भाभी को स्लॅब के सहारे घोड़ी बनाकर अपना मूसल उनकी गीली फांकों पर अड़ा दिया…!
निशा ने अपनी दीदी की चूत की मोटी-मोटी फाकों को अलग करके मेरे लौडे को सही ठिकाने पर रखा और एक चपत मेरी गान्ड पर मारी…!
रिमोट से चलने वाले टीवी की तरह मेरी कमर आगे को हुई और मेरा 8.5” लंबा और निशा की कलाई जितना लंबा लंड भाभी की गीली चूत में सरसरा कर घुस गया….!
आआहह…..लल्ल्लाआ….मज़ाअ…आगया…हआयईीई…सस्सिईइ…कहते हुए भाभी का सिर उपर को हो गया और उन्होने अपनी गान्ड को पीछे की तरफ धकेल दिया…!
निशा मेरे पीछे बैठकर मेरे आंडों को अपनी जीभ से चाटने लगी…, आअहह…क्या सच का अनुभव था…, इससे बड़ी जन्नत शायद कोई होगी..
मेने निशा का बाजू थामकर अपने बगल में खड़ा कर लिया…, उसके नाज़ुक अंगों से खेलते हुए और उसके होठों का रस चूस्ते हुए मे अपनी प्यारी भाभी की रसीली चूत में फुल लंबाई के शॉट मारने लगा…..!
हम तीनों की आहों कराहों से किचन का माहौल वासनामय हो गया…, खाने पीने की चीज़ों की सुगंध की जगह अब कामरस की सुगंध ने ले ली थी….,
मेरे करार धक्कों से भाभी पूरी तरह हिलने लगी, उनकी गोल सुडौल चुचियाँ रसोई घर के स्लॅब से रगड़ने लगी…, रगड़ने से उनके निप्पल कंचे की तरह कठोर हो गये….,
मेरी सख़्त जांगों की चोट से उनकी मुलायम मक्खन जैसी गान्ड सागर की लहरों की तरह हिलोरें मार रही थी…,
निशा के सब्र का भी बाँध टूट गया.., उसने भी अपने गाउन को कमर तक चढ़ा लिया और अपनी दो उंगलियाँ चूत में डालकर खुद को ही अपने हाथ से चोदने लगी…….!!!!
उधर गाँव में संजू महाराज अपनी नयी नवेली लैला के पीछे ऐसे लट्तू हुए कि पूच्छो मत.., दोपहर में वहीदा की जम के बजाने के बाद वो ट्यूब वेल पर आकर 2-3 घंटे लंबी तानकर सोते रहे…
ना घर की फिकर ना जानवरों के चारे पानी की चिंता.., इंतेजार करते करते छोटे चाचा को ही ट्यूब वेल पर आना
पड़ा, उन्होने संजू को झकझोर कर जगाया…!
दोनो ने मिलकर चारा काटा, मोटर चलाकर कुटाई की और उसे घर पहुँचकर वो उल्टे पाँव फिर ट्यूब वेल की तरफ दौड़ पड़ा…,
उसकी हरकतें देखकर चाची ने चाचा से पुछा – आज इसे क्या हुआ है.., फिरसे इतना जल्दी में ट्यूब वेल की तरफ क्यों भागा जा रहा है…?
चाचा के पास भला इस बात का क्या जबाब था.., सो वो बेचारे कंधा उचका कर बोले – भाई तुम्हारा लाड़ला भतीजा है, तुम ही जानो वो क्यों और क्या करता है मुझे क्या पता…?
चाची – क्यों तुम्हारा क्या दुश्मन है.., बेचारा सारे घर के काम-काज करता रहता है, बदले में दो वक़्त की रोटी ही तो ख़ाता है…!
चाचा – अरे भगवान.., तो मे कॉन्सा उसकी रोटियों का ताना दे रहा हूँ.., अब मे कैसे बताउ कि उसे अब कॉन्सा काम याद आ गया ट्यूब वेल पर…?
उधर संजू बेतहाशा भागता हुआ सीधा नहर पर जा पहुँचा.., जब वो वहाँ पहुँचा तब तक उसकी नयी जानेमन…जाने बहार…, जाने तमन्ना शकीला रानी अपनी बकरियों को घर की तरफ हांकने के लिए इकट्ठा कर रही थी…!
संजू ने अपनी साइड की नहर की पटरी से उसे आवाज़ दी.., संजू की आवाज़ सुनकर वो पलटी.., हाथ के इशारे से उसे वहीं रुकने को कहा और खुद तेज तेज कदमों से उसकी तरफ बढ़ा……..!
शकीला संजू के उसकी भाभी को चोद कर आने के कुच्छ देर बाद ही अपनी बकरियों को लेकर निकल पड़ी थी.., लेकिन वहीदा जैसी गरम और मर्द खोर औरत को चोदने के बाद संजू को थकान के कारण, उपर से दोपहर की गर्मी में जोरदार नींद लग गयी थी…!
फिर चाचा ने आकर उसे कामों में लगा लिया इस कारण से वो ये भूल ही गया था कि आज शकीला बकरियाँ चराने आने वाली है या फिर कहो कि फँस गया…!
वहीं शकीला ने जबसे संजू और अपनी भाभी की चुदाई का लाइव शो देखा था तबसे उसकी कुँवारी मुनिया भी कुलबुलाने लगी.., और वो बिना ज़्यादा समय नष्ट किए उसके आने के कुच्छ देर बाद ही बकरियों को लेकर नहर पर चराने आगयि थी…!
बकरियों को घास चरने के लिए छोड़ दिया और खुद एक घनी झाड़ी नुमा पेड़ के नीचे बैठ कर संजू का इंतेजार करने लगी…!
अब उसके पास संजू के इंतेजार के अलावा और कोई काम तो था नही.., रह-रह कर उसकी आँखों के सामने वही दृश्य किसी चल चित्र की भाँति घूमने लगते…, कैसे संजू सोती हुई उसकी भाभी के बड़े बड़े पपीते जैसे स्तनों को मसल रहा था..,
आहह…ये सोचते ही उसने अपनी अविकाशित 30” की कच्चे अनारों जैसी चुचियों को देखा…, और स्वतः ही उसके खुद के हाथ उनपर पहुँच गये…,
हाथों का स्पर्श होते ही शकीला के बदन में बिजली के करेंट जैसी लहर दौड़ गयी.., उसने हल्के से अपने अनारों को सहला दिया..जो एक दम रूई जैसे मुलायम और स्पूंज की तरह गुदगूदे थे….,
उसके खुद के बदन में एक उत्तेजना की लहर भर उठी..., उसके निबौरि जैसे निपल एकदम से कड़क हो गये और वो बिना ब्रा की पुरानी सी कुरती में सीधे खड़े हो गये…!
शकीला ने खुद से फील किया कि उसके नन्हे-नन्हे निपल कड़क होकर कुरती में फड़फड़ाने लगे हैं.., कपड़े के दबाब से ही उनमें चुन-मुनाहट सी होने लगी…,
उसने अपनी दोनो हाथों की तर्जनी उंगलियों के पोर से उनपर हल्के से दबाब डाला.., उत्तेजना का खुमार अप्रत्याशित रूप से और बढ़ गया.., उसके निपल और ज़्यादा खड़े हो गये…!
फिर उसने अपनी कुरती के कपड़े समेत अपनी उंगलियों को जैसे ही उनके उपर घुमाया…सस्स्सिईइ…आअहह… कपड़े की रगड़ से उसके तन-बदन में वासना की एक लहर सी दौड़ पड़ी… नीचे उसकी मुनिया में खुजली सी होने लगी….!
अब उसे उनसे खेलने में अलग ही मज़ा आने लगा था.., उसके बदन में मादकता बढ़ने लगी, मादक उत्तेजना के मद में चूर उसने उन्हें अपनी उगली और अंगूठे के बीच दबाकर मसल डाला…!
सस्सिईइ….हाअईए….अल्लाहह…. हल्के से दर्द के साथ उसकी कामुकता से भरी कराह निकल गयी.., अपनी जांघों के जोड़ में उसे चुन-चुनी बढ़ती हुई महसूस हुई.., मानो वहाँ सेकड़ों चीन्टिया रेंगने लगी हों…!
भरी दोपहरी में चारों तरफ सन्नाटा, ना आदमी ना आदमी की जात, बस कभी-कभार बकरियों की मिमियाने की आवाज़ उसे ज़रूर सुनाई दे जाती…,
अपने ही बिचरों में मगन शकीला का हाथ अपनी जांघों के बीच चला गया.., और उसने अपनी कुँवारी सहेली को अपनी उंगलियों से सहला दिया…!
सहेली पर हाथ लगते ही उसके समूचे बदन में 440 वॉल्ट का करेंट सा दौड़ पड़ा.., उसकी आँखें बंद हो गयी और आहिस्ता आहिस्ता उसका हाथ अपनी बंद होठों वाली मुनिया के मुलायम फांकों पर फिसलने लगा..,
अब वो एक हाथ से अपनी एक चुचि को भी सहलाने लगी और दूसरे हाथ से अपनी मुनिया को सहलाकर इस भेद को जानने की कोशिश करने लगी कि किस चीज़ में ज़्यादा मज़ा है…???
कुच्छ ही पलों में उसे अपनी चूत में गीलापन सा लगने लगा.., बड़ी उत्स्कूतावस उसने झुक कर अपनी जाँघो के बीच देखा.., जहाँ उसकी सलवार में गीलेपन का सबूत इकट्ठा होने लगा था…!
उसे लगा.., कहीं बैठे बैठे उसका मूत तो नही निकल गया.., यही चेक करने उसने अपनी सलवार का नाडा खोल दिया.., अपना एक हाथ जैसे ही उसने अपनी नंगी चूत पर रखा…,
उसके बदन की हरारत और ज़्यादा बढ़ गयी, जुड़ी के मरीज़ की तरह एक बार को उसका बदन काँप गया...., उसकी उंगलियाँ उसके कामरस से चिप-चिपा गयी.., एक बार उसने अपना हाथ अपनी आँखों के सामने लाकर देखा तो उसकी उंगलियों पर गाढ़ी-गाढ़ी चिप-चिपि लार जैसी दिखाई दी..,
उसने मॅन में सोचा…, ये पेशाब तो नही हो सकता., फिर जब उसने अपना हाथ नाक के पास लगाकर उसे सूँघा.., उसे उसमें से एक अजीब सी मनमोहक खुसबू जैसी स्मेल लगी.., जिसे सूंघते ही वो और ज्यदा मदहोश होने लगी…!
उसने अपना हाथ फिर से अपनी मुनिया के पतले-पतले होठों पर रख दिया जो बिना किसी अनुभव के ही वो उसे अंदर तक सहलाने लगा..,
जिग्यासावस शकीला ने अपने दूसरे हाथ से अपनी सहेली के बंद होठों को खोला, अंदर उसे अपनी वो छोटी सी लाल सुर्ख होठों वाली सहेली और ज़्यादा सुंदर लगी..एक दम गुलाबी…!!
उसके पहले हाथ की एक उंगली उसकी गुलबो के खुले होठों के बीच उसकी बमुश्किल 2” लंबाई वाली मुनिया के अंदर शैर करने लगी… इसी क्रम में उसकी उंगली उसकी क्लिट (भज्नासा) को टच कर गयी…!
अब तो उसकी वासना एकदम से भड़क उठी.., क्लिट को कुरेदते ही एक झटके से उसकी गान्ड ज़मीन से आधार हो गयी…, शकीला ने तय कर चुकी थी की हो ना हो, यही वो जगह है.., जहाँ जन्नत का द्वार खुलता है.., ये सोचते ही वो अपनी क्लिट को अपनी उंगली से सहलाने लगी…!
ये करते करते उसका ध्यान दोपहर वाली घटना की तरफ चला गया….., कैसे संजू का लंड भाभी की पहाड़ की चोटियों जैसे गान्ड के बीच से होता हुआ उनकी चूत के अंदर पूरा समा गया था.., शायद मेरी इसमें भी कुच्छ अंदर जाएगा तो इससे भी ज़्यादा मज़ा आएगा…,
ये विचार करते ही उसकी एक उंगली अब उस जगह को खोजने लगी जहाँ से वो अंदर प्रवेश कर सके.., उसने झुक कर अपनी चूत की दोनो पतली-पतली फांकों को चौड़ा करके देखा,
जहाँ उसे उसकी मुनिया की सुर्ख गुलाबी अन्द्रुनि सतह के सबसे अंतिम छोर पर एक बहुत ही छोटा सा सुर्ख गुलाबी रंग का छेद नज़र आ गया..
उसने अपनी एक उंगली उसी छेद पर टिका दी.., और हल्का सा दबाब डालके उसे अंदर करने की कोशिश की.., लेकिन उसकी उंगली थोड़ी सी अंदर जाकर ही रुक गयी..,
शकीला ने थोड़ा और दबाब देकर अपनी उंगली को अंदर करने की कोशिश की, लेकिन दबाब बढ़ते ही उसके कंठ से घुटि-घुटि सी चीख निकल पड़ी.., और दर्द का एहसास होते ही उसने झट से अपनी उंगली चूत से बाहर निकाल ली..,
तेज-तेज साँसों के बीच उसने सोचा – जब मेरी इतनी पतली उंगली इसके अंदर नही जा पा रही तो फिर संजू का सोट जैसा लंड भाभी की चूत में इतने आराम से कैसे चला गया…?
उसके अविकसित मन में ये आहें सवाल घूमड़ रहा था.., जिसका फिलहाल उसके पास कोई जबाब नही था.., चूत में हुए हल्के से दर्द की वजह से उसकी काम वासना का भूत उसके सिर से फिलहाल उतर गया…!
बुझे मन से वो अपनी सलवार चढ़ाकर झाड़ी से बाहर निकली और एक नज़र अपनी चरती हुई बकरियों पर डाली जो अब काफ़ी दूर दूर तक फैल चुकी थी.., धूप मद्धिम पड़ने लगी थी, उसने बकरियों को इकट्ठा करके घर चलने का निश्चय कर लिया…!
बेचारी को दो बजे से राह ताकते ताकते 5 बज गये, फिर उसने सोचा कि अब संजू जी नही आने वाले.., क्या पता भाभी ने ही कुच्छ उल्टा-पुल्टा बोल दिया हो उनको…, सो वो अब अपने घर लौटने की तैयारी करने लगी….!!!!
लेकिन अपनी बकरियों को इकट्ठा करके शकीला ने जैसे ही गाँव की तरफ हांकना शुरू किया.., पीछे से संजू की आवाज़ सुनकर वो वहीं ठिठक गयी…,
संजू लगभग दौड़ता हुआ उसके पास जा पहुँचा.., जाते ही उसे बातों में लगाने के मकसद से कहा….!
अरे शकीला.., आज तुम लेकर आई हो बकरियों को…? मुझे ऐसा पता होता तो मे भी यहीं आ जाता तुम्हारे पास….!
शकीला को गुस्सा तो बहुत आ रहा था संजू पर.., जनाब को भाभी ने बताया भी था कि वो तो कभी कभार ही जाती हैं, ज़्यादातर तो मे ही लाती हूँ, फिर भी कैसे पूछ रहे हैं…?
ये बात वो मन में ही सोच रही थी, ये वो संजू को बोल तो सकती नही थी वरना उसका भेद खुल जाता जो उसने भाभी से कहते हुए सुना था जब वो उन दोनो की छुप कर चुदाई देख रही थी…,
फिर भी उसने अपनी सोच पर काबू करते हुए कहा – क्यों.., आप क्या करते इस भरी दोपहरी में यहाँ आकर....?
संजू ने एक कदम आगे बढ़कर उसके दोनो हाथ अपने हाथों में थाम लिए और उसके बेहद करीब खड़ा होकर बोला – अरे ये क्या बात हुई भला.., कुच्छ करना होता तभी आता क्या..? एक से भले दो.., समय पास हो जाता हम दोनो का और क्या…!
शकीला एक मर्दानी खुश्बू को अपने बेहद नज़दीक पाकर एक बार को तो अपनी सुध-बुध ही खोने लगी.., जिस आदमी का वो सारी दोपहरी बड़ी बेसब्री से इंतेजार करती रही..,
जिसके ना आने पर वो अपने अंदर नाराज़गी सी महसूस कर रही थी वही अब संजू की नज़दीकी से उसकी प्यार भरी बातों से पिघलने लगी थी…!
संजू की बात का वो अभी कोई ठीक ठीक जबाब नही दे पारहि थी, कि तभी संजू उसका हाथ खींचते हुए फिरसे उन्ही झाड़ियों की छान्व की तरफ ले जाने लगा…!
शकीला की बकरियाँ घास चरते चरते गाँव की तरफ बढ़ने लगी थी.., वो चाहकर भी संजू के साथ नही जा सकती थी, लेकिन मना भी नही कर पा रही थी…!
संजू उसे फिरसे छाँव में ले आया, जब वो रुक गया तब शकीला के काँपते होठों से निकला.., छोड़िए हमें घर जाना है.., देर हो जाएगी.
संजू उसकी बात को अनसुनी करते हुए वहीं ज़मीन पर बैठ गया, और उसने शकीला का हाथ थामकर उसे भी अपने पास बैठने का इशारा किया…,
लेकिन शकीला असमंजस की स्थिति में खड़ी ही रही.., एक बार उसने अपनी बकरियों पर नज़र डाली जो की धीरे धीरे घास चरते हुए गाँव की तरफ ही बढ़ती जा रही थी..,
वो ये तय नही कर पा रही थी कि संजू के पास बैठे की ना बैठे.., तभी संजू ने उसकी कलाई जिसे वो थामे बैठा था, उसको एक हल्का सा झतका दिया.., शकीला इसके लिए तैयार नही थी.., झटके के साथ ही वो किसी पेड़ से टूटे हुए फल की तरह उसकी गोद में जा गिरी….!
ये संजू ने भी नही सोचा था कि एक हल्के से झटके में ही शकीला उसकी गोद में आ गिरेगी.., गिरते ही शकीला का भर उसके उपर आया, झटके के कारण गिरने से वो अपना बॅलेन्स नही रख पाई, गिरने से बचने के लिए उसने अपनी दोनो पतली-पतले मरमरी बाहें संजू के गले में डाल दी…,
संजू उसे लिए हुए पीठ के बल पीछे को लुढ़क गया, शकीला के कठोर कच्चे अनार उसकी चौड़ी फौलाद जैसी कठोर छाती में दब गये…!
दोपहर भर की गर्मी के कारण शकीला के बदन से पसीने की बदबू आ रही थी.., कपड़े भी साफ सुथरे नही थे.., फिर भी संजू को उसके पसीने की बदबू भी मदहोश करने लगी…!
दोनो के चेहरे इतने करीब थे की एक दूसरे के नथुनो से निकली हुई गरम गरम भाप एक दूसरे के चेहरे पर पड़ रही थी…,
एक पल को शकीला की शर्म के मारे आँखें ही बंद हो गयी.., उसे आज पहली बार पता चला कि जवान दिलों की धड़कनें जब आपस में घुलती हैं तो कैसा लगता है…!
संजू ने एक बार उसकी बंद पलकों को देखा.., शकीला के पतले पतले सुर्ख लेकिन खुसक होंठ इस प्रथम पुरुष आलिंगन से काँप रहे थे…!
संजू ने अपना सिर थोड़ा सा उपर उठाया और अपने होंठ से शकीला की बंद पलकों को चूम लिया…,
शकीला की हिरनी जैसी चंचल आँखों के पर्दे झट से खुल गये.., उसने एक झलक संजू के लाल तमतमाए हुए चेहरे पर डाली और फिर से झुका ली..
पलकों के बंद होते ही संजू ने उसके होठों को चूम लिया.., साथ ही उसके मजबूत हाथों ने उसके छोटे छोटे बॉल जैसे गान्ड के शिखरों को कसकर दबा दिया…!
बेशक ये संजू ने अपने हिसाब से हल्के से ही उसकी स्पंज जैसी मुलायम गान्ड के पाटों को दबाया होगा.., लेकिन इसका क्या कि उसके सख़्त पहलवानी वाले हाथों के बीच उसके गोल-गोल, बोलीबॉल्ल जैसे नितंब ज़ोर्से दब गये…!
वो दर्द से बिल-बिला कर उसके उपर से उठ खड़ी हुई.., और नाराज़गी भरी नज़रों से संजू को देखने लगी…,
संजू को अपनी ग़लती का एहसास हुआ.., उसकी जरसी ग़लती ने कितना सुनहरा मौका खो दिया था.., वो बैठते हुए अपने कानों पर हाथ लगाकर सॉरी बोला और उसका हाथ पकड़कर फिरसे उसे अपनी गोद में खींच लिया…!
शकीला उसकी गोद में कसमसाते हुए बोली – संजू जी…ये क्या हिमाकत है.., छोड़िए ना…जाने दीजिए हमें.
संजू ने अपनी बाहों का घेरा उसके पतले से इकहरे बदन के चारों ओर बना लिया.., उसके चेहरे के ठीक सामने अपना चेहरा ले जाकर वो बोला – तुम मेरे साथ क्यों बैठना नही चाहती हो.., क्या मे तुम्हें इतना बुरा लगता हूँ…?
शकीला अपने आप को संजू की बाहों के घेरे से आज़ाद करने की नाकाम कोशिश करते हुए बोली – अरे समझते क्यों नही आप.., एक तो आप इतनी ज़ोर्से हमें दबा देते हो, उपर से हमारी बकरियाँ गाँव की तरफ जा रही हैं…!
संजू – तो जाने दो उन्हें…, तुम्हारे घर ही जाएँगी ना.., पहले मेरी बात का जबाब तो दो.., ये कहकर उसने उसकी जाँघ पर हाथ रखकर उसे हल्के से दबा दिया…!
शकीला ने संजू के हाथ के उपर अपना हाथ रख दिया लेकिन उसे वहाँ से हटाने की कोई कोशिश नही की.., संजू के मर्दाने स्पर्श ने उसपर असर डालना शुरू कर दिया था…,
संजू का दूसरा हाथ अब उसकी पीठ पर रेंगने लगा था.., उसका लंड शकीला की छोटी लेकिन मुलायम गान्ड की गर्मी पाकर नीचे पाजामा में सिर उठाने लगा था जिसे शकीला अपनी गान्ड के नीचे खूब अच्छी तरह से फील कर रही रही थी..,
संजू अब उसकी दूसरी जाँघ को सहलाते हुए बोला – तुमने जबाब नही दिया…?
शकीला – किस बात का..?
संजू – क्यों दूर भागती हो मुझसे.., क्या मे इतना बुरा लगता हूँ तुम्हें..?
शकीला की हिरनी जैसी आँखें संजू के चेहरे पर गढ़ गयी.., संजू ने भी उसकी सुरमुई आँखों में झाँका…, दोनो की नज़रों ने एक दूसरे के दिल में उतरने की कोशिश शुरू कर दी…!
शकीला ज़्यादा देर तक उसकी उन मदहोश कर देने वाली नज़रों का सामना नही कर पाई और शर्म से अपनी पलकें झुका कर बोली – हमने कब कहा कि आप बुरे लगते हो…?
संजू – तो फिर क्यों नही आना चाहती मेरे पास..?
शकीला ने शरारत करते हुए कहा – और कितने पास आयें..? आज हम दोनो को मिले हुए दूसरा दिन ही तो हुआ है.., और दूसरे दिन ही हम आपकी गोद तक पहुँच गये…!
शकीला के मूह से ये शब्द सुनकर संजू के मन की मुराद पूरी हो गयी.., वो समझ गया कि मछली अब पूरी तरह से जाल में फँस चुकी है…,
अब बेधड़क उसके होठ फिरसे शकीला के नाज़ुक पतले पतले होंठो पर टिक गये और वो उन्हें अपने होठों से तर करने लगा…!
जिंदगी का पहला मर्दाना किस पाकर शकीला अपनी बकरियों को भुला बैठी.., वो तो जैसे दूसरी दुनिया में पहुँच चुकी थी…!
किस करते हुए संजू के एक हाथ ने उसके कच्चे अनारों को टटोलना शुरू कर दिया और उसकी कुरती के कमजोर पुराने से कपड़े के उपर से उन्हें सहलाने लगा…!
शकीला के वक्ष अभी इतने विकसित नही थे.., वो संजू के हाथ में पूरी तरह समा रहे थे.., किस करते हुए संजू ने उसकी टिकोले जैसी एक चुचि को अपने हाथ में भर कर ज़ोर्से भींच दिया…!
शकीला ने किस तोड़ते हुए उसके मूह से एक मादक दर्द भरी कराह निकली… सस्सिईई…आअहह…संजू जी.. ज़ोर्से नही..प्लीज़…दर्द होता है…,
लेकिन अब वो अपने आप को भूलती जा रही थी.., इश्स नयी नवेली कच्ची कली पर संजू ने चारों तरफ से हमला बोल रखा था..,
दोनो बॉल जैसी गान्ड की घाटी में उसका मस्ताना लंड नीचे से उसकी कोरी मुनिया के इतने करीब बुरी तरह ठोकरें दे रहा था, तो उसका एक हाथ उसके कच्चे टिकॉलों को बारी-बारी से सहला रहा था.., जिनके छोटे छोटे नीम की निबौरि जैसे निपल एकदम कड़क कन्चे के माफिक उसके कुर्ते में तन चुके थे…!
संजू का दूसरा हाथ चोरी-चोरी…चुपके-चुपके उसकी चिकनी जांघों को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी दोनो जांघों के संगम की तरफ बढ़ रहा था जहाँ उस कच्ची कली के लिए जन्नत का दरवाजा था जो फिलहाल तो बंद था…, और संजू उसे खोलने की पूरी जुगत में…, तन मन से लगा हुआ था…….!!!!
रूचि इस मामले को हल्के में ले सकती है लेकिन अगर कुच्छ हो गया तो मे अपने आपको कभी माफ़ नही कर पाउन्गा…,
मेने फ़ौरन जिम से ही अमित (प्राची का खास असिस्टेंट) को फोन लगाया और उसे इन्स्ट्रक्षन्स देकर आज से ही रूचि की आस-पास रहने का बोल दिया….!
अब मे कुच्छ रिलॅक्स हो गया था.., कुच्छ देर और शांति से पसीना बहाया और फिर टी शर्ट निकालकर पसीना सूखाया और फिर मे भी नीचे आगया…!
अब तक बड़े भैया और रूचि दोनो ही जा चुके थे.., मेने सीधा किचन की तरफ रुख़ किया.., जहाँ भाभी एक सिल्क वन पीस मेक्सी में सींक पर खड़ी कुच्छ कर रही थी.., शायद झूठे बर्तन साफ कर रही थी…!
उनके हाथों के मूव्मेंट के हिसाब से उनकी मादक सुडौल गान्ड थिरक रही थी.., बहुत संभव था कि नीचे कोई और कपड़ा नही होगा इसलिए उनके गोल-गोल नितंब कुच्छ ज़्यादा ही लहरा रहे थे…!
मेने जानबूझ कर उन्हें पीछे से अपनी बाहों में भर लिया.., उनकी गान्ड की हरारत का असर की मेरा जंग बहादुर एक सेकेंड में ही खड़ा होकर उनकी दरार में फिट हो गया…!
आअहह…निशा मेरी जानणन्न्…क्या गान्ड तेरी…? इतना मत लहरा इसे वरना मेरा लॉडा अभी के अभी फाड़ देगा इसे…….!
तभी पीछे से आवाज़ आई… ये मिसटर… तुम्हारी निशा यहाँ है.., वो दीदी की गान्ड है…
मेने फ़ौरन भाभी को छोड़ते हुए चोन्कने की आक्टिंग करते हुए पलट कर कहा – ओ तेरी की… भारी मिस्टेक हो गया…, सॉरी भाभी मे वो…मे..
भाभी ने मेरे मूह पर हाथ रखकर निशा से कहा – क्यों री तेरी गान्ड में खुजली क्यों हुई…? मिसटर की चोदि…, पता है कितना मज़ा आरहा था.., लल्ला का लॉडा मेरी गांकों तक पहुँच चुका था…!
थोड़ी देर चुप चाप खड़ी नही हो सकती थी…, पर नही.., खुद की भी गीली हो रही होगी ना.., मेरी सौत.., खुद तो रात रात भर इसे चूत में लिए पड़ी रहती है.., ज़रा सा मेरे लिए मौका मिलता है की फटे में टाँग अड़ा ही देती है…!
ऐसी प्यार भरी डाँट सुनकर निशा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी.., वो हम दोनो के पास आगयि और मेरे शॉर्ट के नीचे खींच कर अपने पंजों पर बैठ गयी और उसे अपने मूह में ले लिया…!
मेने भाभी को अपने पास खींच लिया और उनके भरे हुए मुलायम स्पंज जैसे मम्मों को मसल्ने लगा…, जो बिना ब्रा के भी मेक्सी में सीना ताने खड़े थे…!
आअहह…लल्ला…थोड़ा नीचे भी कुच्छ करो ना…, मेरी चूत में चुन-चुनी हो रही है…, ये कहकर उन्होने अपनी मेक्सी को कमर तक चढ़ा लिया.., और खुद से ही मेरा एक हाथ अपनी चूत पर रख दिया…!
भाभी की चूत गीली होने लगी थी.., मेने उसे हाथ से सहला कर अपनी एक उंगली उनके सुराख में डाल दी.....,
आअहह…लल्लाअ.., अब उंगली से कुच्छ नही होगा…, अपना मूसल डालो…ये कहकर उन्होने अपना गाउन पूरा ही निकाल दिया…, मेने निशा को अपने लंड से अलग करके भाभी को स्लॅब के सहारे घोड़ी बनाकर अपना मूसल उनकी गीली फांकों पर अड़ा दिया…!
निशा ने अपनी दीदी की चूत की मोटी-मोटी फाकों को अलग करके मेरे लौडे को सही ठिकाने पर रखा और एक चपत मेरी गान्ड पर मारी…!
रिमोट से चलने वाले टीवी की तरह मेरी कमर आगे को हुई और मेरा 8.5” लंबा और निशा की कलाई जितना लंबा लंड भाभी की गीली चूत में सरसरा कर घुस गया….!
आआहह…..लल्ल्लाआ….मज़ाअ…आगया…हआयईीई…सस्सिईइ…कहते हुए भाभी का सिर उपर को हो गया और उन्होने अपनी गान्ड को पीछे की तरफ धकेल दिया…!
निशा मेरे पीछे बैठकर मेरे आंडों को अपनी जीभ से चाटने लगी…, आअहह…क्या सच का अनुभव था…, इससे बड़ी जन्नत शायद कोई होगी..
मेने निशा का बाजू थामकर अपने बगल में खड़ा कर लिया…, उसके नाज़ुक अंगों से खेलते हुए और उसके होठों का रस चूस्ते हुए मे अपनी प्यारी भाभी की रसीली चूत में फुल लंबाई के शॉट मारने लगा…..!
हम तीनों की आहों कराहों से किचन का माहौल वासनामय हो गया…, खाने पीने की चीज़ों की सुगंध की जगह अब कामरस की सुगंध ने ले ली थी….,
मेरे करार धक्कों से भाभी पूरी तरह हिलने लगी, उनकी गोल सुडौल चुचियाँ रसोई घर के स्लॅब से रगड़ने लगी…, रगड़ने से उनके निप्पल कंचे की तरह कठोर हो गये….,
मेरी सख़्त जांगों की चोट से उनकी मुलायम मक्खन जैसी गान्ड सागर की लहरों की तरह हिलोरें मार रही थी…,
निशा के सब्र का भी बाँध टूट गया.., उसने भी अपने गाउन को कमर तक चढ़ा लिया और अपनी दो उंगलियाँ चूत में डालकर खुद को ही अपने हाथ से चोदने लगी…….!!!!
उधर गाँव में संजू महाराज अपनी नयी नवेली लैला के पीछे ऐसे लट्तू हुए कि पूच्छो मत.., दोपहर में वहीदा की जम के बजाने के बाद वो ट्यूब वेल पर आकर 2-3 घंटे लंबी तानकर सोते रहे…
ना घर की फिकर ना जानवरों के चारे पानी की चिंता.., इंतेजार करते करते छोटे चाचा को ही ट्यूब वेल पर आना
पड़ा, उन्होने संजू को झकझोर कर जगाया…!
दोनो ने मिलकर चारा काटा, मोटर चलाकर कुटाई की और उसे घर पहुँचकर वो उल्टे पाँव फिर ट्यूब वेल की तरफ दौड़ पड़ा…,
उसकी हरकतें देखकर चाची ने चाचा से पुछा – आज इसे क्या हुआ है.., फिरसे इतना जल्दी में ट्यूब वेल की तरफ क्यों भागा जा रहा है…?
चाचा के पास भला इस बात का क्या जबाब था.., सो वो बेचारे कंधा उचका कर बोले – भाई तुम्हारा लाड़ला भतीजा है, तुम ही जानो वो क्यों और क्या करता है मुझे क्या पता…?
चाची – क्यों तुम्हारा क्या दुश्मन है.., बेचारा सारे घर के काम-काज करता रहता है, बदले में दो वक़्त की रोटी ही तो ख़ाता है…!
चाचा – अरे भगवान.., तो मे कॉन्सा उसकी रोटियों का ताना दे रहा हूँ.., अब मे कैसे बताउ कि उसे अब कॉन्सा काम याद आ गया ट्यूब वेल पर…?
उधर संजू बेतहाशा भागता हुआ सीधा नहर पर जा पहुँचा.., जब वो वहाँ पहुँचा तब तक उसकी नयी जानेमन…जाने बहार…, जाने तमन्ना शकीला रानी अपनी बकरियों को घर की तरफ हांकने के लिए इकट्ठा कर रही थी…!
संजू ने अपनी साइड की नहर की पटरी से उसे आवाज़ दी.., संजू की आवाज़ सुनकर वो पलटी.., हाथ के इशारे से उसे वहीं रुकने को कहा और खुद तेज तेज कदमों से उसकी तरफ बढ़ा……..!
शकीला संजू के उसकी भाभी को चोद कर आने के कुच्छ देर बाद ही अपनी बकरियों को लेकर निकल पड़ी थी.., लेकिन वहीदा जैसी गरम और मर्द खोर औरत को चोदने के बाद संजू को थकान के कारण, उपर से दोपहर की गर्मी में जोरदार नींद लग गयी थी…!
फिर चाचा ने आकर उसे कामों में लगा लिया इस कारण से वो ये भूल ही गया था कि आज शकीला बकरियाँ चराने आने वाली है या फिर कहो कि फँस गया…!
वहीं शकीला ने जबसे संजू और अपनी भाभी की चुदाई का लाइव शो देखा था तबसे उसकी कुँवारी मुनिया भी कुलबुलाने लगी.., और वो बिना ज़्यादा समय नष्ट किए उसके आने के कुच्छ देर बाद ही बकरियों को लेकर नहर पर चराने आगयि थी…!
बकरियों को घास चरने के लिए छोड़ दिया और खुद एक घनी झाड़ी नुमा पेड़ के नीचे बैठ कर संजू का इंतेजार करने लगी…!
अब उसके पास संजू के इंतेजार के अलावा और कोई काम तो था नही.., रह-रह कर उसकी आँखों के सामने वही दृश्य किसी चल चित्र की भाँति घूमने लगते…, कैसे संजू सोती हुई उसकी भाभी के बड़े बड़े पपीते जैसे स्तनों को मसल रहा था..,
आहह…ये सोचते ही उसने अपनी अविकाशित 30” की कच्चे अनारों जैसी चुचियों को देखा…, और स्वतः ही उसके खुद के हाथ उनपर पहुँच गये…,
हाथों का स्पर्श होते ही शकीला के बदन में बिजली के करेंट जैसी लहर दौड़ गयी.., उसने हल्के से अपने अनारों को सहला दिया..जो एक दम रूई जैसे मुलायम और स्पूंज की तरह गुदगूदे थे….,
उसके खुद के बदन में एक उत्तेजना की लहर भर उठी..., उसके निबौरि जैसे निपल एकदम से कड़क हो गये और वो बिना ब्रा की पुरानी सी कुरती में सीधे खड़े हो गये…!
शकीला ने खुद से फील किया कि उसके नन्हे-नन्हे निपल कड़क होकर कुरती में फड़फड़ाने लगे हैं.., कपड़े के दबाब से ही उनमें चुन-मुनाहट सी होने लगी…,
उसने अपनी दोनो हाथों की तर्जनी उंगलियों के पोर से उनपर हल्के से दबाब डाला.., उत्तेजना का खुमार अप्रत्याशित रूप से और बढ़ गया.., उसके निपल और ज़्यादा खड़े हो गये…!
फिर उसने अपनी कुरती के कपड़े समेत अपनी उंगलियों को जैसे ही उनके उपर घुमाया…सस्स्सिईइ…आअहह… कपड़े की रगड़ से उसके तन-बदन में वासना की एक लहर सी दौड़ पड़ी… नीचे उसकी मुनिया में खुजली सी होने लगी….!
अब उसे उनसे खेलने में अलग ही मज़ा आने लगा था.., उसके बदन में मादकता बढ़ने लगी, मादक उत्तेजना के मद में चूर उसने उन्हें अपनी उगली और अंगूठे के बीच दबाकर मसल डाला…!
सस्सिईइ….हाअईए….अल्लाहह…. हल्के से दर्द के साथ उसकी कामुकता से भरी कराह निकल गयी.., अपनी जांघों के जोड़ में उसे चुन-चुनी बढ़ती हुई महसूस हुई.., मानो वहाँ सेकड़ों चीन्टिया रेंगने लगी हों…!
भरी दोपहरी में चारों तरफ सन्नाटा, ना आदमी ना आदमी की जात, बस कभी-कभार बकरियों की मिमियाने की आवाज़ उसे ज़रूर सुनाई दे जाती…,
अपने ही बिचरों में मगन शकीला का हाथ अपनी जांघों के बीच चला गया.., और उसने अपनी कुँवारी सहेली को अपनी उंगलियों से सहला दिया…!
सहेली पर हाथ लगते ही उसके समूचे बदन में 440 वॉल्ट का करेंट सा दौड़ पड़ा.., उसकी आँखें बंद हो गयी और आहिस्ता आहिस्ता उसका हाथ अपनी बंद होठों वाली मुनिया के मुलायम फांकों पर फिसलने लगा..,
अब वो एक हाथ से अपनी एक चुचि को भी सहलाने लगी और दूसरे हाथ से अपनी मुनिया को सहलाकर इस भेद को जानने की कोशिश करने लगी कि किस चीज़ में ज़्यादा मज़ा है…???
कुच्छ ही पलों में उसे अपनी चूत में गीलापन सा लगने लगा.., बड़ी उत्स्कूतावस उसने झुक कर अपनी जाँघो के बीच देखा.., जहाँ उसकी सलवार में गीलेपन का सबूत इकट्ठा होने लगा था…!
उसे लगा.., कहीं बैठे बैठे उसका मूत तो नही निकल गया.., यही चेक करने उसने अपनी सलवार का नाडा खोल दिया.., अपना एक हाथ जैसे ही उसने अपनी नंगी चूत पर रखा…,
उसके बदन की हरारत और ज़्यादा बढ़ गयी, जुड़ी के मरीज़ की तरह एक बार को उसका बदन काँप गया...., उसकी उंगलियाँ उसके कामरस से चिप-चिपा गयी.., एक बार उसने अपना हाथ अपनी आँखों के सामने लाकर देखा तो उसकी उंगलियों पर गाढ़ी-गाढ़ी चिप-चिपि लार जैसी दिखाई दी..,
उसने मॅन में सोचा…, ये पेशाब तो नही हो सकता., फिर जब उसने अपना हाथ नाक के पास लगाकर उसे सूँघा.., उसे उसमें से एक अजीब सी मनमोहक खुसबू जैसी स्मेल लगी.., जिसे सूंघते ही वो और ज्यदा मदहोश होने लगी…!
उसने अपना हाथ फिर से अपनी मुनिया के पतले-पतले होठों पर रख दिया जो बिना किसी अनुभव के ही वो उसे अंदर तक सहलाने लगा..,
जिग्यासावस शकीला ने अपने दूसरे हाथ से अपनी सहेली के बंद होठों को खोला, अंदर उसे अपनी वो छोटी सी लाल सुर्ख होठों वाली सहेली और ज़्यादा सुंदर लगी..एक दम गुलाबी…!!
उसके पहले हाथ की एक उंगली उसकी गुलबो के खुले होठों के बीच उसकी बमुश्किल 2” लंबाई वाली मुनिया के अंदर शैर करने लगी… इसी क्रम में उसकी उंगली उसकी क्लिट (भज्नासा) को टच कर गयी…!
अब तो उसकी वासना एकदम से भड़क उठी.., क्लिट को कुरेदते ही एक झटके से उसकी गान्ड ज़मीन से आधार हो गयी…, शकीला ने तय कर चुकी थी की हो ना हो, यही वो जगह है.., जहाँ जन्नत का द्वार खुलता है.., ये सोचते ही वो अपनी क्लिट को अपनी उंगली से सहलाने लगी…!
ये करते करते उसका ध्यान दोपहर वाली घटना की तरफ चला गया….., कैसे संजू का लंड भाभी की पहाड़ की चोटियों जैसे गान्ड के बीच से होता हुआ उनकी चूत के अंदर पूरा समा गया था.., शायद मेरी इसमें भी कुच्छ अंदर जाएगा तो इससे भी ज़्यादा मज़ा आएगा…,
ये विचार करते ही उसकी एक उंगली अब उस जगह को खोजने लगी जहाँ से वो अंदर प्रवेश कर सके.., उसने झुक कर अपनी चूत की दोनो पतली-पतली फांकों को चौड़ा करके देखा,
जहाँ उसे उसकी मुनिया की सुर्ख गुलाबी अन्द्रुनि सतह के सबसे अंतिम छोर पर एक बहुत ही छोटा सा सुर्ख गुलाबी रंग का छेद नज़र आ गया..
उसने अपनी एक उंगली उसी छेद पर टिका दी.., और हल्का सा दबाब डालके उसे अंदर करने की कोशिश की.., लेकिन उसकी उंगली थोड़ी सी अंदर जाकर ही रुक गयी..,
शकीला ने थोड़ा और दबाब देकर अपनी उंगली को अंदर करने की कोशिश की, लेकिन दबाब बढ़ते ही उसके कंठ से घुटि-घुटि सी चीख निकल पड़ी.., और दर्द का एहसास होते ही उसने झट से अपनी उंगली चूत से बाहर निकाल ली..,
तेज-तेज साँसों के बीच उसने सोचा – जब मेरी इतनी पतली उंगली इसके अंदर नही जा पा रही तो फिर संजू का सोट जैसा लंड भाभी की चूत में इतने आराम से कैसे चला गया…?
उसके अविकसित मन में ये आहें सवाल घूमड़ रहा था.., जिसका फिलहाल उसके पास कोई जबाब नही था.., चूत में हुए हल्के से दर्द की वजह से उसकी काम वासना का भूत उसके सिर से फिलहाल उतर गया…!
बुझे मन से वो अपनी सलवार चढ़ाकर झाड़ी से बाहर निकली और एक नज़र अपनी चरती हुई बकरियों पर डाली जो अब काफ़ी दूर दूर तक फैल चुकी थी.., धूप मद्धिम पड़ने लगी थी, उसने बकरियों को इकट्ठा करके घर चलने का निश्चय कर लिया…!
बेचारी को दो बजे से राह ताकते ताकते 5 बज गये, फिर उसने सोचा कि अब संजू जी नही आने वाले.., क्या पता भाभी ने ही कुच्छ उल्टा-पुल्टा बोल दिया हो उनको…, सो वो अब अपने घर लौटने की तैयारी करने लगी….!!!!
लेकिन अपनी बकरियों को इकट्ठा करके शकीला ने जैसे ही गाँव की तरफ हांकना शुरू किया.., पीछे से संजू की आवाज़ सुनकर वो वहीं ठिठक गयी…,
संजू लगभग दौड़ता हुआ उसके पास जा पहुँचा.., जाते ही उसे बातों में लगाने के मकसद से कहा….!
अरे शकीला.., आज तुम लेकर आई हो बकरियों को…? मुझे ऐसा पता होता तो मे भी यहीं आ जाता तुम्हारे पास….!
शकीला को गुस्सा तो बहुत आ रहा था संजू पर.., जनाब को भाभी ने बताया भी था कि वो तो कभी कभार ही जाती हैं, ज़्यादातर तो मे ही लाती हूँ, फिर भी कैसे पूछ रहे हैं…?
ये बात वो मन में ही सोच रही थी, ये वो संजू को बोल तो सकती नही थी वरना उसका भेद खुल जाता जो उसने भाभी से कहते हुए सुना था जब वो उन दोनो की छुप कर चुदाई देख रही थी…,
फिर भी उसने अपनी सोच पर काबू करते हुए कहा – क्यों.., आप क्या करते इस भरी दोपहरी में यहाँ आकर....?
संजू ने एक कदम आगे बढ़कर उसके दोनो हाथ अपने हाथों में थाम लिए और उसके बेहद करीब खड़ा होकर बोला – अरे ये क्या बात हुई भला.., कुच्छ करना होता तभी आता क्या..? एक से भले दो.., समय पास हो जाता हम दोनो का और क्या…!
शकीला एक मर्दानी खुश्बू को अपने बेहद नज़दीक पाकर एक बार को तो अपनी सुध-बुध ही खोने लगी.., जिस आदमी का वो सारी दोपहरी बड़ी बेसब्री से इंतेजार करती रही..,
जिसके ना आने पर वो अपने अंदर नाराज़गी सी महसूस कर रही थी वही अब संजू की नज़दीकी से उसकी प्यार भरी बातों से पिघलने लगी थी…!
संजू की बात का वो अभी कोई ठीक ठीक जबाब नही दे पारहि थी, कि तभी संजू उसका हाथ खींचते हुए फिरसे उन्ही झाड़ियों की छान्व की तरफ ले जाने लगा…!
शकीला की बकरियाँ घास चरते चरते गाँव की तरफ बढ़ने लगी थी.., वो चाहकर भी संजू के साथ नही जा सकती थी, लेकिन मना भी नही कर पा रही थी…!
संजू उसे फिरसे छाँव में ले आया, जब वो रुक गया तब शकीला के काँपते होठों से निकला.., छोड़िए हमें घर जाना है.., देर हो जाएगी.
संजू उसकी बात को अनसुनी करते हुए वहीं ज़मीन पर बैठ गया, और उसने शकीला का हाथ थामकर उसे भी अपने पास बैठने का इशारा किया…,
लेकिन शकीला असमंजस की स्थिति में खड़ी ही रही.., एक बार उसने अपनी बकरियों पर नज़र डाली जो की धीरे धीरे घास चरते हुए गाँव की तरफ ही बढ़ती जा रही थी..,
वो ये तय नही कर पा रही थी कि संजू के पास बैठे की ना बैठे.., तभी संजू ने उसकी कलाई जिसे वो थामे बैठा था, उसको एक हल्का सा झतका दिया.., शकीला इसके लिए तैयार नही थी.., झटके के साथ ही वो किसी पेड़ से टूटे हुए फल की तरह उसकी गोद में जा गिरी….!
ये संजू ने भी नही सोचा था कि एक हल्के से झटके में ही शकीला उसकी गोद में आ गिरेगी.., गिरते ही शकीला का भर उसके उपर आया, झटके के कारण गिरने से वो अपना बॅलेन्स नही रख पाई, गिरने से बचने के लिए उसने अपनी दोनो पतली-पतले मरमरी बाहें संजू के गले में डाल दी…,
संजू उसे लिए हुए पीठ के बल पीछे को लुढ़क गया, शकीला के कठोर कच्चे अनार उसकी चौड़ी फौलाद जैसी कठोर छाती में दब गये…!
दोपहर भर की गर्मी के कारण शकीला के बदन से पसीने की बदबू आ रही थी.., कपड़े भी साफ सुथरे नही थे.., फिर भी संजू को उसके पसीने की बदबू भी मदहोश करने लगी…!
दोनो के चेहरे इतने करीब थे की एक दूसरे के नथुनो से निकली हुई गरम गरम भाप एक दूसरे के चेहरे पर पड़ रही थी…,
एक पल को शकीला की शर्म के मारे आँखें ही बंद हो गयी.., उसे आज पहली बार पता चला कि जवान दिलों की धड़कनें जब आपस में घुलती हैं तो कैसा लगता है…!
संजू ने एक बार उसकी बंद पलकों को देखा.., शकीला के पतले पतले सुर्ख लेकिन खुसक होंठ इस प्रथम पुरुष आलिंगन से काँप रहे थे…!
संजू ने अपना सिर थोड़ा सा उपर उठाया और अपने होंठ से शकीला की बंद पलकों को चूम लिया…,
शकीला की हिरनी जैसी चंचल आँखों के पर्दे झट से खुल गये.., उसने एक झलक संजू के लाल तमतमाए हुए चेहरे पर डाली और फिर से झुका ली..
पलकों के बंद होते ही संजू ने उसके होठों को चूम लिया.., साथ ही उसके मजबूत हाथों ने उसके छोटे छोटे बॉल जैसे गान्ड के शिखरों को कसकर दबा दिया…!
बेशक ये संजू ने अपने हिसाब से हल्के से ही उसकी स्पंज जैसी मुलायम गान्ड के पाटों को दबाया होगा.., लेकिन इसका क्या कि उसके सख़्त पहलवानी वाले हाथों के बीच उसके गोल-गोल, बोलीबॉल्ल जैसे नितंब ज़ोर्से दब गये…!
वो दर्द से बिल-बिला कर उसके उपर से उठ खड़ी हुई.., और नाराज़गी भरी नज़रों से संजू को देखने लगी…,
संजू को अपनी ग़लती का एहसास हुआ.., उसकी जरसी ग़लती ने कितना सुनहरा मौका खो दिया था.., वो बैठते हुए अपने कानों पर हाथ लगाकर सॉरी बोला और उसका हाथ पकड़कर फिरसे उसे अपनी गोद में खींच लिया…!
शकीला उसकी गोद में कसमसाते हुए बोली – संजू जी…ये क्या हिमाकत है.., छोड़िए ना…जाने दीजिए हमें.
संजू ने अपनी बाहों का घेरा उसके पतले से इकहरे बदन के चारों ओर बना लिया.., उसके चेहरे के ठीक सामने अपना चेहरा ले जाकर वो बोला – तुम मेरे साथ क्यों बैठना नही चाहती हो.., क्या मे तुम्हें इतना बुरा लगता हूँ…?
शकीला अपने आप को संजू की बाहों के घेरे से आज़ाद करने की नाकाम कोशिश करते हुए बोली – अरे समझते क्यों नही आप.., एक तो आप इतनी ज़ोर्से हमें दबा देते हो, उपर से हमारी बकरियाँ गाँव की तरफ जा रही हैं…!
संजू – तो जाने दो उन्हें…, तुम्हारे घर ही जाएँगी ना.., पहले मेरी बात का जबाब तो दो.., ये कहकर उसने उसकी जाँघ पर हाथ रखकर उसे हल्के से दबा दिया…!
शकीला ने संजू के हाथ के उपर अपना हाथ रख दिया लेकिन उसे वहाँ से हटाने की कोई कोशिश नही की.., संजू के मर्दाने स्पर्श ने उसपर असर डालना शुरू कर दिया था…,
संजू का दूसरा हाथ अब उसकी पीठ पर रेंगने लगा था.., उसका लंड शकीला की छोटी लेकिन मुलायम गान्ड की गर्मी पाकर नीचे पाजामा में सिर उठाने लगा था जिसे शकीला अपनी गान्ड के नीचे खूब अच्छी तरह से फील कर रही रही थी..,
संजू अब उसकी दूसरी जाँघ को सहलाते हुए बोला – तुमने जबाब नही दिया…?
शकीला – किस बात का..?
संजू – क्यों दूर भागती हो मुझसे.., क्या मे इतना बुरा लगता हूँ तुम्हें..?
शकीला की हिरनी जैसी आँखें संजू के चेहरे पर गढ़ गयी.., संजू ने भी उसकी सुरमुई आँखों में झाँका…, दोनो की नज़रों ने एक दूसरे के दिल में उतरने की कोशिश शुरू कर दी…!
शकीला ज़्यादा देर तक उसकी उन मदहोश कर देने वाली नज़रों का सामना नही कर पाई और शर्म से अपनी पलकें झुका कर बोली – हमने कब कहा कि आप बुरे लगते हो…?
संजू – तो फिर क्यों नही आना चाहती मेरे पास..?
शकीला ने शरारत करते हुए कहा – और कितने पास आयें..? आज हम दोनो को मिले हुए दूसरा दिन ही तो हुआ है.., और दूसरे दिन ही हम आपकी गोद तक पहुँच गये…!
शकीला के मूह से ये शब्द सुनकर संजू के मन की मुराद पूरी हो गयी.., वो समझ गया कि मछली अब पूरी तरह से जाल में फँस चुकी है…,
अब बेधड़क उसके होठ फिरसे शकीला के नाज़ुक पतले पतले होंठो पर टिक गये और वो उन्हें अपने होठों से तर करने लगा…!
जिंदगी का पहला मर्दाना किस पाकर शकीला अपनी बकरियों को भुला बैठी.., वो तो जैसे दूसरी दुनिया में पहुँच चुकी थी…!
किस करते हुए संजू के एक हाथ ने उसके कच्चे अनारों को टटोलना शुरू कर दिया और उसकी कुरती के कमजोर पुराने से कपड़े के उपर से उन्हें सहलाने लगा…!
शकीला के वक्ष अभी इतने विकसित नही थे.., वो संजू के हाथ में पूरी तरह समा रहे थे.., किस करते हुए संजू ने उसकी टिकोले जैसी एक चुचि को अपने हाथ में भर कर ज़ोर्से भींच दिया…!
शकीला ने किस तोड़ते हुए उसके मूह से एक मादक दर्द भरी कराह निकली… सस्सिईई…आअहह…संजू जी.. ज़ोर्से नही..प्लीज़…दर्द होता है…,
लेकिन अब वो अपने आप को भूलती जा रही थी.., इश्स नयी नवेली कच्ची कली पर संजू ने चारों तरफ से हमला बोल रखा था..,
दोनो बॉल जैसी गान्ड की घाटी में उसका मस्ताना लंड नीचे से उसकी कोरी मुनिया के इतने करीब बुरी तरह ठोकरें दे रहा था, तो उसका एक हाथ उसके कच्चे टिकॉलों को बारी-बारी से सहला रहा था.., जिनके छोटे छोटे नीम की निबौरि जैसे निपल एकदम कड़क कन्चे के माफिक उसके कुर्ते में तन चुके थे…!
संजू का दूसरा हाथ चोरी-चोरी…चुपके-चुपके उसकी चिकनी जांघों को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी दोनो जांघों के संगम की तरफ बढ़ रहा था जहाँ उस कच्ची कली के लिए जन्नत का दरवाजा था जो फिलहाल तो बंद था…, और संजू उसे खोलने की पूरी जुगत में…, तन मन से लगा हुआ था…….!!!!