Update 06
शकीला और संजू, दींन दुनिया से बेख़बर यहाँ झाड़ी के नीचे बैठकर अपने प्यार की पींगें बढ़ा रहे थे, और वहाँ उसकी बकरियाँ गाँव के अंदर घुस चुकी थी.., और उसके घर के दरवाजे पर खड़ी खड़ी मईएहह..मईएन्ह..का शोर मचा रही थी…
बकरियों का शोर सुनकर शकीला के अब्बू, अम्मी बाहर निकल कर आए, देखा तो बकरियाँ इधर उधर खड़ी हैं लेकिन शकीला का कहीं अता पता नही..,
अब्बू – अरे ये लौंडिया कहाँ मर गयी.., बकरियाँ यहाँ छोड़कर किधर मर गयी ये हरामजादी…??
अम्मी – मे इन्हें अंदर लेती हूँ, तुम उसे देख कर लाओ, कहाँ मूह काला करती रह गयी करम्जलि…!
तभी वहाँ वहीदा भी गान्ड मटकाते हुए आ पहुँची.., उसका ससुरा अपनी लौंडिया को ढूँढने निकलने ही वाला था कि उसने कहा – तुम रहने दो आबू मे देखती हूँ उसको…!
वहीदा को पता था कि हो ना हो वो ज़रूर संजू के चक्कर में पड़ गयी होगी.., कहीं साला आज ही उसकी सील ना तोड़ दे, ये सोच कर वो तेज तेज कदम बढ़ते हुए नहर की तरफ चल दी…!
उधर शकीला की जन्नत का द्वार भले ही बंद था लेकिन संजू की मर्दाना और कामुक हरकतों ने दरवाजे में दरार ज़रूर डाल दी थी…,
उसका हाथ सही ठिकाने पर पहुच चुका था.., शकीला बेहद गरम हो चुकी थी.., संजू की हरकतों ने उसकी कुँवारी मुनिया को अपने प्रीतम की याद में आँसू बहाने पर मजबूर कर दिया…!
संजू का हाथ अपनी मुनिया पर लगते ही शकीला बुरी तरह सिहर उठी.., उसका सारा बदन बिजली के तेज झटके की तरह सन-सना उठा.., वासना की आग इस कदर भर गयी कि वो अपने नुकीले दाँतों से अपने ही होठ घायल करने लगी…उसकी आँखें वासना के ज्वर में बंद हो गाइ….
संजू आगे से उसकी गीली पाजामी में क़ैद उसकी छोटी सी नन्ही सी मुनिया को हल्के से सहलाने लगा.., अंदर उसकी जीर्ड-शीर्ड कच्छी कामरस से तर हो चुकी थी.., संजू के हाथ ने सहलाते हुए उसकी कच्छी की अवस्था को अच्छे से परख लिया…!
सहलाते हुए उसकी उंगलियों ने आगे से उसकी पुरानी कच्छी को एक जगह से फटा हुआ पाया.., बस फिर क्या था.., उसको शकीला की जन्नत का द्वार मिल गया और उसकी उस चालाक उंगली ने बखूबी अपना रास्ता ढूंड कर वो चड्डी के फटे हुए छेद से डाइरेक्ट उसकी मुनिया के अंदर चली गयी….!
जैसे ही उसकी उंगली गच्छ.. से पाजामी के पतले से कपड़े समेत उसके रस भरे कुंड में घुसी.., शकीला ने कसकर अपनी जांघों को भींच लिया.., और अपना हाथ संजू के हाथ पर रखकर ज़ोर ज़ोर्से साँसें भरने लगी…!
संजू दूसरे हाथ से उसकी कच्ची अमरूद जैसी चुचियों को सहला रहा था, उसे वहाँ से हटाकर उसकी जांघों को एक दूसरे से अलग करने की कोशिश करने लगा, दूसरा हाथ अभी भी उसकी जांघों के बीच में दबा हुआ था…!
दबे होने के बावजूद भी उसके हाथ की हरकतों में कोई कमी नही आई, दबे हुए भी उसकी उंगली उसके रसकुंड में अपना कमाल दिखा रही थी.., जिससे शकीला के उपर और नीचे दोनो जगह से गर्म गर्म भाप निकलने लगी..,
जब उसके मज़े की इंतहा हो गयी तो स्वतः ही उसने अपनी जांघें खोल दी..,, उसके मूह से मादक सी कराह निकली पड़ी…आअहह….सस्सिईइ…संजूऊू..ज्जििीइ… मत..कार्ररूव…ना..प्लीज़…करते हुए उसने संजू का हाथ और ज़ोर्से अपनी चूत पर दबाकर गहरी गहरी साँस छोड़ने लगी..,
उसे अपनी चूत से कुच्छ गरम गरम अविरल धारा सी फूटती हुई महसूस हुई.. अपनी एडियों को ज़मीन पर घिसटते हुए संजू की गोद में उसका बदन अकड़ने लगा….!
अभी वो अपनी चूत के रास्ते मिले स्वर्गानन्द के मज़े में चूर अपनी आखें मुन्दे हुए लंबी लंबी साँसों लेते हुए गूंगे के गुड की तरह उस आनंद को फील करके आनंदित हो रही थी कि तभी किसी ने बड़ी मजबूती से उसकी कलाई थामी और झटके से उसे संजू की गोद से उठा लिया…!
दोनो की एक साथ तंद्रा टूटी.., सामने गुस्से में खड़ी वहीदा को देखकर शकीला थर-थर काँपने लगी.., वहीदा कुच्छ देर उसे खा जाने वाली नज़रों से देखती रही,
एक बार उसने अपनी नज़र उसकी गीली सलवार पर डाली और फिर उसका हाथ झटक कर उसे घर जाने का इशारा किया…!
जान बची और लाख उपाए… शकीला वहाँ से बिना पल गँवाए गाँव की तरफ सरपट दौड़ ली.., !
शकीला को वहाँ से तडिपार करने के बाद वहीदा ने संजू पर ध्यान दिया.., जो अब अपने खूटे जैसे टाइट हो रहे लंड को पाजामे के अंदर अड्जस्ट करके खड़ा हो चुका था..,
उसका पाजामा लंड के प्री-कम से आगे एक बड़ा सा धब्बा लगा हुआ था…!
वहीदा सधे हुए कदमों से उसकी तरफ बढ़ी.., और उसके खूँटे को अपनी मुट्ठी में कसते हुए बोली – बड़ा जल्दी है तुम्हें शकीला की सील तोड़ने की…,
मेरे से तो कह रहे थे कि मे बाज़ार जा रहा हूँ.., हन.. झूठ क्यों बोला…आअंन्न...बोलो...?
शकीला को चोदना है तो मेरे से पुच्छ तो लेते.., उसकी चूत पर मेरा कब्जा है समझे, और जब तक मे ना चाहूं, तुम उसे नही भोग सकते…!
संजू ने उसकी खरबूजे जैसी चुचि को मसल्ते हुए कहा – तो फ़ि भोगने दे ना भेन्चोद…, साली तेरी गान्ड तो मार ही रहा हूँ ना..,
क्यों आ गयी अड़चन डालने.., भेन्चोद अपने भोस्डे की गर्मी तो तूने ज़बरदस्ती मिटवा ली.., अब एक नयी चूत मिल रही है तो बीच में रोड़ा क्यों अटका रही है…?
वहीदा बड़ी अदा से अपने घुटनो पर आगयि.., एक बार उसने पाजामा के उपर से संजू के लंड को हाथ से आगे पीछे किया इससे उसका अंदर रुका हुआ एक-आध क़तरा और बाहर आगया.., और उसने पाजामे का धब्बा और बड़ा कर दिया…,
चुदाई में महारत हासिल कर चुकी वहीदा समझ गयी कि इस समय संजू कितना गरम हो रहा है, उसने कपड़े समेट ही उसके लंड को अपने मूह में ले लिया और उसके प्री-कम से लगे धब्बे को चूसने लगी…!
फिर उसने उसके पाजामे को नीचे सरका दिया.., संजू का मूसल जो एक कुँवारी चूत की खुसबू पाकर घोड़ा पछाड नाग की तरह फन फ़ना रहा था.., वहीदा के नंगे हाथ में पहुँचते ही और ज़्यादा सख़्त होकर किसी फनियल नाग की तरह झटके मारने लगा…!
वहीदा अपने मूह से थूक लेकर संजू के लंड को मुट्ठी में भरकर आगे पीछे करते हुए बोली – सबर करो संजू भाई.., वो भी मिल जाएगी.., पहले मेरी चूत की आग तो शांत कर दो.., बहुत तड़प रही है तुम्हारे मूसल के लिए…!
चल भोसड़ा की थोड़ा झड़ी के अंदर आजा, ला तेरी गर्मी निकाल ही देता हूँ, वरना मेरा लॉडा भी अब परेशान करता ही रहेगा मुझे.., ये कहकर संजू ने उसके दोनो खरबूजों को ज़ोर्से उमेठ दिया…!
आआईयईई…मादरचोद धीरे… बोलते हुए वहीदा झाड़ियों में घुस गयी…, उसने अपनी पाजामी खोलकर घुटनो तक सरका दी और खुद घुटने मोदकर कुतिया की तरह अपनी मोटी गान्ड संजू के लौडे के आगे करदी..,
संजू के लौडे को इस समय कोई भी छेद चाहिए था अपनी गर्मी शांत करने के लिए.., वहीदा की मोटी-गद्देदार गान्ड पर दो-चार थप्पड़ जड़ते हुए उसने अपना लॉडा वहीदा की गरम भट्टी में पूरी गहराई तक उतार दिया…,
एक झटके से संजू के मूसल को अपनी चूत के अंतिम छोर पर महसूस करके वहीदा की अधगीली चूत बिल-बिला उठी.., उसे लगा जैसे किसी ने ज़बरदस्ती कोई खूँटा उसके अंदर ठोक दिया हो…!
आआयईी…आअम्म्मि….मादरचोद चूत को गीली तो होने देता भोसड़ी के यौंही सुखी में ही पेल दियाआ…रीए..हरजाई…आअहह…थोड़ा निकाल बाहर…कम से कम थूक ही लगा लेता कमीने…
रुक तो सही माँ की लॉडी.., देख अभी दो मिनिट में ही गंगा जमुना बहाएगी तेरी ये चूत...., ये कहकर उसने छोटे छोटे धक्के लगाना शुरू कर दिया…!
शुरू के दो चार धक्के ही वहीदा को नागवार गुज़रे लेकिन जल्दी ही उसकी चूत भी रस छोड़ने लगी और संजू खचा-खच.. ढका-धक पिस्टन की तरह अपना मूसल वहीदा की मल्लपुए जैसी फूली हुई ओखली में पेलने लगा……,
जंगल के शांत वातावरण में संजू की मजबूत कसरती जांघों की चोटें वहीदा की चौड़ी गद्देदार गान्ड पर पड़ने से धप्प…धप्प जैसी आवाज़ें चारों तरफ गूंजने लगी…..!!!!
अब रूचि को नियमित रूप से जिम में जाकर एक्सर्साइज़, बॉक्सिंग प्रॅक्टीस करने का जैसे भूत सा सवार हो गया था.., साथ ही साथ उसके कपड़े भी दिनो दिन छोटे होते जा रहे थे…,
वो तो अच्छा था उसका कमरा सेकेंड फ्लोर पर है और जिम टॉप फ्लोर पर, इसलिए भाभी या भैया को उसके कपड़ों के साइज़ का कोई अंदाज़ा नही था…!
कहीं ज़्यादा एक्सर्साइज़ की वजह से उसका वेट लॉस ना हो या शरीर कमजोर ना पड़ने लगे इसलिए मेने निशा को चुप चाप उसकी खुराक बढाने के लिए बोल दिया..,
अगर ग़लती से भी भाभी को पता लग जाए तो वो पचास सवाल करने लगती…, निशा की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगती है.., वो आँख बंद करके मेरी बात मान लेती है और कभी बाद-विवाद नही करती…!!
काश वास्तविक जीवन में भी सभी पत्नियाँ ऐसी ही होती.., तो आज ये दिल के उद्गार कहानी के मध्यम से शब्दों का रूप नही ले रहे होते….!!!
खैर मेरा तो बचपन से ही कसरत करते रहने का शौक रहा था.., रोज सुबह 5:30 को जिम में पहुँचकर वर्काउट करना मेरी नित्य क्रिया में शामिल था…!
आज भी जब में रोज़ के समय पर जिम में पहुँचा तो रूचि वहाँ पहले से ही योगा एक्सर्साइज़ कर रही थी.., उसका शरीर इतना लचीला है कि हर एक्सर्साइज़ को वो बाबा रामदेव से भी अच्छे से कर लेती है…!
जब मेने जिम में कदम रखा उस समय वो चक्रासन कर रही थी.., उसके बदन पर हाफ लंबाई का स्लीवेलेस्स टॉप और एक मिनी शॉर्ट था.., दोनो ही कपड़े एकदम बॉडी फिट…!
चक्रासन तो शायद आप सभी लोग जानते ही होंगे., दोनो हाथों को सिर से पीछे ले जाकर ज़मीन पर टिकना और फिर पैरों और हाथों पर अपनी बॉडी को सर्क्युलर उल्टा मोड़ना…!
जिम में कदम रखते ही मेरी नज़र सीधी रूचि की टाँगों से होते हुए उसकी चिपकी हुई मिनी शॉर्ट पर पड़ी.., कमर और पीठ धनुषकार मूडी हुई थी..,
सबसे उपर उसका यौनी प्रदेश जो अब उभरकर साफ साफ दिखाई दे रहा था.., शॉर्ट के नीचे शायद उसने पैंटी भी नही पहनी थी.., इस वजह से उसकी डेढ़-दो इंच की लंबाई में उसकी अन्छुई मुनिया की पतली-पतली फाँकें जिनके बीच की हल्की सी दरार में शॉर्ट का कपड़ा दबकर उस दरार को उजागर कर रहा था…!
सीन देखकर मेरे शरीर की एक्सर्साइज़ से पहले मेरे बाबूराव की कसरत शुरू होने लगी.., ना चाहते हुए भी वो मेरे शॉर्ट के अंदर टाइट होने लगा…!
मे उसके पास पहुँचकर, उसके बराबर में खड़ा होकर उसे बड़ी उत्सुकता से देखने लगा…, अमूमन इस एक्सर्साइज़ को एक मिनिट से ज़्यादा करना मुश्किल होता है.., लेकिन रूचि को एक मिनिट से भी ज़्यादा उसी पोज़िशन में रहते हुए देख कर मे मन ही मन उसकी प्रशंसा करने लगा…!
उसका टॉप नॉर्मल ब्रा के साइज़ से थोड़ा सा ही बड़ा था.., उल्टे होकर सिर को नीचे रखने की बजह से उसकी 32” की गोलाइयाँ दबकर उपर के उभार को तो कम कर रही थी.., लेकिन टॉप के दबाब का कहीं तो असर पड़ना ही था…,
उसका टॉप पेट की तरफ से थोड़ा उँचाई की तरफ सरक गया इस वजह से उसकी गोलाइयों का कुच्छ भाग नीचे की तरफ से दिख रहा था…,
गले की तरफ से थोड़ा खुला होने की बजह से उसकी दूध जैसी उजली गोलाइयाँ उभरकर उनके बीच की चौड़ी खाई को कम करने की कोशिश कर रही थी…!
जैसे ही उस आसन से रूचि सीधी खड़ी हुई.., मेने ताली बजाकर उसकी दिल से प्रशंसा की…, वाह ! रूचि.., क्या बात है.., तुमने तो कमाल ही कर दिया.., इस आसन को इतनी आसानी से इतनी देर तक कर लेती हो…ब्रावो..!!
मेरे मूह से तारीफ़ सुनकर रूचि मुस्कराते हुए थोड़ी लंबी लंबी साँस भरते हुए बोली- ये सब आपकी ही ट्रैनिंग का कमाल है चाचू….!
सीधे खड़े होते ही उसके उभर अपनी सही पोज़िशन लेकर उसके टॉप में सीधे तन्कर खड़े हो गये.., और अब उसके बिना ब्रा के छोटे-छोटे निपल भी चमकने लगे…,
जिन्हें देखकर मेरे अंदर उत्तेजना का भाव पैदा होने लगा…, लेकिन जल्दी ही अपने रिस्ते की याद आते ही मुझे अपने उपर ग्लानि सी होने लगी…!
गहरी साँस लेने के कारण उसके उभर भी उपर नीचे होने लगे थे उनपर नज़र डालकर मेने उसके पीछे से उसके कंधों पर अपने दोनो हाथ टिकाए और उन्हें थोड़ा मसाज देते हुए बोला…!
बात क्या है बेटा.., आजकल आपको एक्सर्साइज़ का इतना भूत क्यों सवार है…?
रूचि ने बड़ी बेपरवाही से जबाब दिया – कुच्छ नही चाचू.., बस थोड़ा अपने आपको स्पोर्टी रखना चाहती हूँ और कुच्छ नही.., ये कहकर वो फिरसे दूसरी एक्सर्साइज़ में जुट गयी…!
मे भी अपने कंधे उचका कर अपना पसीना बहाने में जुट गया…, और अगले एक घंटा तक हम दोनो अपना पसीना बहाते रहे…, रूचि मेरे से पहले तक कर ब्रेंच पर बैठकर तौलिए से अपना पसीना पोंछने लगी…!
मे अपना वर्काउट करने के बाद थोड़ा देसी पुश-अप करने लगा जो मे शुरू से ही करता आ रहा था.., रूचि को ना जाने क्या शरारत सूझी.., चुपके से आकर जैसे बचपन में मे उसे पुश-अप करते हुए अपनी पीठ पर बिठा लेता था वैसे ही दोनो तरफ पैर करके मेरी पीठ पर आ बैठी…!
उसके वजन से मे धप्प करके पेट के बल फर्श पर पसर गया….!
क्या चाचू…, लगता है अब आप कमजोर होते जा रहे हैं…, पहले तो मुझे खुद से बिठाकर पुश-अप करते थे लेकिन अब देखो.., मेरे बैठते ही ज़मीन पकड़ ली….!
रूचि ने मेरे उपर अपना पूरा वजन डाला हुआ था इस वजह से मेरा पेट ही नही नीचे मेरे बाबू भैया भी बुरी तरह दबे पड़े थे..,
मेने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया, पेट दबने की वजह से ठीक से मेरी आवाज़ भी नही निकल पा रही थी.., फिर भी दबी दबी सी आवाज़ में मेने कहा –
अरे क्या करती है रूचि बेटा.., उठ मेरे उपर से मेरी साँस दब रही है…!
ओह्ह कम ऑन चाचू…. ट्राइ नाउ…, रूचि खिल-खिलाकर हँसते हुए बोली..
मेने अपने शरीर को इधर उधर हिलाकर उसे अपने उपर से लुढ़काने की कोशिश करते हुए कहा – अजीब पागल लड़की है.., इतना भी नही समझती.., पहले तू 20किलो की थी.. अब 45किलो की है.., कैसे लगा सकता हूँ मे…!
रूचि – नही चाचू एक बार ट्राइ तो आपको करनी पड़ेगी.., ये कहकर उसने अपनी दोनो हथेलियाँ भी मेरे कंधों पर जमा ली और आगे को होकर उसने अपनी मुनिया को मेरी कमर पर चिपका दिया…!
उसकी मुलायम पतली पतली फांकों को मे अपनी कमर पर फील करने लगा था.., यही नही वो अब हल्के हल्के अपनी कमर को भी आगे पीछे करने लगी…, मुझे पूरा विश्वास हो गया कि ये लड़की मज़े लेना चाहती है..!
इसी सोच ने मेरे बाबूराव को सख़्त होने पर मजबूर कर दिया.., उपर से बेचारा फर्श पर बुरी तरह से दबा पड़ा था…!
मेने ज़ोर लगाकर अपनी कमर को उपर की तरफ उचकाया.., झटके की बजह से रूचि और उपर को सरक गयी.., लेकिन जल्दी ही वो अपनी मुनिया को मेरी पीठ पर रगड़ती हुई अपनी गोल-गोल मुलायम गान्ड को मेरी कमर के एकदम नीचे तक ले गयी और मेरी पीठ पर पसर कर मेरे साथ चिपक गयी…!
रूचि – कम ऑन चाचू…, यू कॅन डू इट.., ये कहते हुए वो मुझे उठने के लिए उकसाने लगी और साथ ही अपने पूरे बदन को इस तरह से हिलाने लगी जिससे मुझे उसकी मनसा का पता ना चले कि उसके मन में क्या चल रहा है…!
उसके दोनो कच्चे अनार मेरी पीठ से सटे हुए थे.., अपनी कमर को मेरी कमर पर दबा रखा था, अपने मूह को मेरे सिर के बगल में लाकर उसने मेरे कान को अपने दाँतों में दबाकर काट लिया…!
आआईय…कटखनी बिल्ली.., ये कहते हुए मे झटके से अपने घुटने मोड़ कर पहले उकड़ू बैठा, फिर मेने अपना सिर उपर किया और उसे पीठ पर लादे खड़ा हो गया…!
रूचि – क्या चाचू.. मेने पुश-अप लगाने को बोला था.., आप तो खड़े ही हो गये..!
मेने खड़े खड़े अपने हाथ पीछे ले जाकर उसके कंधे पकड़े और उसे उपर उठाता चला गया.., सिर के बाजू से घूमकर मे उसे अपने सामने ले आया और अपनी गोद में बिठा लिया…!
इस प्रयास में मेरा एक हाथ उसके मुलायम गोल-गोल, बाहर को उभरे हुए बॉल जैसे चुतड़ों पर चला गया और कसकर पकड़ने के बहाने ज़ोर्से दबा दिया…!
आअहह…चाचू.. धीरे से …
मेने लाकर उसे फिरसे ब्रेंच पर बिठा दिया और खुद भी उसकी बगल में बैठकर हान्फ्ते हुए बोला – शैतान की नानी.., आज तुझे ये क्या शरारत सूझी..?
रूचि – वो आपको पुश-अप करते हुए मुझे पुरानी बात याद आगयि.., सोचा ट्राइ करके देखती हूँ, आप अब भी मुझे बिठाकर कर सकते हैं या नही…..!
ये कहकर उसने अपनी नज़र नीचे झुकाई और सीधी मेरे शॉर्ट में तन-तनाए हुए बाबूराव के उभार पर टिका दी…..!!!
रूचि की नज़र कहाँ है, क्या देख रही है मुझे इस बात का कोई भान नही था.., मे तो बस तौलिया लेकर अपने चेहरे से पसीना पोंच्छने में लगा था…,
कुच्छ देर रूचि टक-टॅकी लगाकर मेरे लंड के उभार को देख-देख कर उत्तेजित होती रही फिर जैसे ही उसे लगा कि अब में तौलिया अपने मूह से अलग करने वाला हूँ, उसने मेरे बाजुओं की मसल्स को दबाते हुए कहा…,
वाउ चाचू ! क्या मसल्स हैं आपके.., काश मेरे भी ऐसे ही बन पाते..?
मेने अपनी उखड़ती साँसों को काबू करते हुए अपना पसीना पोंच्छा और उसकी तरफ स्माइल देते हुए कहा…, मर्द और लड़कियों के शरीर में कुच्छ तो फ़र्क होता ही है.., वैसे तुम ऐसे मसल्स बनाकर क्या करोगी..?
कोई लड़का पहलवान जैसी लड़की से शादी करने को भी तैयार नही होगा.., ये कहकर मे हँसने लगा…!
मेरे हँसने का उसपर कोई खास असर नही हुआ.., वो अपने उपर संजीदगी का लिवास ओढ़े हुए ही बोली…क्या गीता और बबिता की शादी नही हुई…?
मेने चोन्कते हुए कहा – कॉन गीता और बबिता…? तुम्हारी कोई सहेली हैं..?
रूचि – क्या चाचू.., इसका मतलब आपने दंगल फिल्म नही देखी…? महावीर सिंग पहलवान की बेटियाँ जिन्होने ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीते हैं कुस्ति में…!
मे - ओह वो गीता और बबिता…! तो इसका मतलब हमारी बिटिया रानी बॉक्सिंग चॅंपियन बनना चाहती है..,
रूचि – नही.., मुझे कोई चॅंपियन वॅंपियन नही बनना है.., बस अपने आपको इतना फिट तो रखूं की वक़्त आने पर अपनी रक्षा खुद कर सकूँ…!
मे – फिर कोई बात हो गयी क्या उसके बाद..?
रूचि – इस समाज में ना जाने कितने रॉकी घूमते रहते हैं.., जो लड़कियों को तो बस अपने मनोरंजन का समान समझते हैं.., मे उन्हें सबक सिखाना चाहती हूँ कि हम लड़कियाँ भी किसी से कम नही हैं…!
मे – बिल्कुल नही हैं.., बल्कि अब तो लड़कियाँ लड़कों से भी कयि कदम आगे हैं.., आज देखो, जिंदगी के हर एग्ज़ॅम में लड़कियाँ बाज़ी मार रही हैं..., और फिर तुम्हें इतनी फिकर करने की क्या ज़रूरत है बेटा.., तुम्हारा चाचू है ना…!
रूचि – मुझे आप पर अपने आप से भी ज़्यादा भरोसा है.., ये कहकर उसने अपनी बाहें मेरे शरीर के इर्द-गिर्द लपेट दी.., अपना कोमल गाल मेरे चौड़े सीने से सटाते हुए बोली…
लेकिन आप हर समय मेरे साथ मौजूद तो नही हो सकते ना चाचू..,
मे – ये बात तो है.., लेकिन बेटा कुच्छ दिनो से अचानक तुम इतनी इनसेक्यूवर क्यों फील करने लगी हो..? उसने फिर कुच्छ कहा क्या..?
रूचि – कहा तो नही, लेकिन मेरी दोस्त बात करती रहती हैं कि उसका बाप कॉलेज का बहुत बड़ा ट्रस्टी है, विकी चाहे तो कॉलेज का प्रिन्सिपल भी उसका कुच्छ नही बिगाड़ सकता…,
उस दिन के बाद से उसकी नज़रें हर समय मेरा पीछा करती रहती हैं.., ना जाने उसके अंदर ही अंदर क्या चल रहा है…?
मेने रूचि के बगल से हाथ बढ़ाकर उसे अपने शरीर से और चिपका लिया.., अब उसके कोरे अनार मेरे बदन में दब रहे थे…,
एक हाथ से उसकी पीठ सहलाते हुए मेने कहा – तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नही है बेटा.., जबतक तुम्हारा चाचू जिंदा है.., तुम्हें कोई छू भी नही सकता है.., वो चाहे रॉकी हो या फिर उसका बाप ही क्यों नही…!
रूचि लिपट’ते हुए बोली – ओह चाचू…आप कितने अच्छे हैं.., इसलिए मे सिर्फ़ आपसे ही ऐसी बातें शेर करती हूँ.., वरना मम्मी-पापा तो उल्टा डर कर मेरा कॉलेज जाना ही बंद करवा दें…!
फिर ना जाने रूचि को क्या हुआ कि उसने अपना सिर उठाकर मेरे गाल पर एक किस कर दिया.., मुझे लगा जैसे किसी ने गुलाब की पंखुड़ियों से मेरे गाल को सहला दिया हो…!
मेने भी हिम्मत करके उसके एक गाल को चूम लिया.., एक पल को रूचि की शर्म से नज़र झुकी.., फिर जल्दी ही मेरी तरफ देख कर बोली – लेकिन चाचू कुच्छ दिनो से आप मुझे पहले जैसा प्यार नही करते…!
मेने चोन्कते हुए कहा – पहले जैसा प्यार मतलब…? क्या कमी आते हुए देखा तुमने मेरे प्यार में…?
रूचि रूठा सा मूह बनाते हुए बोली – पहले आप मुझे अपनी गोद में बिठाकर कितना प्यार करते थे.., लेकिन अब क्यों नही..?.
रूचि के मूह से ये शब्द सुनते ही मे अवाक उसके चेहरे की तरफ देखता रह गया.., कुच्छ देर उसके चेहरे से ये जानने की कोशिश करता रहा कि ये बात उसने किस भावना से कही है…!
लेकिन मुझे उसके मासूम से चेहरे पर सिवाय भोलेपन के और कुच्छ नज़र नही आया….!
मेने उसकी इच्छा का मान रखते हुए एक हाथ उसकी कमर में डाला और उसे खींचकर अपनी एक जाँघ पर बिठा लिया..!
रूचि ने भी अपनी बाहें मेरी गर्दन में लपेट ली और और मेरे साथ चिपकने लगी.., इस चक्कर में उसकी मक्खन से भी मुलायम एक जाँघ मेरे लौडे को दबाने लगी..,
उसकी जाँघ के दबाब से मेरा बाबूराव और ज़्यादा सख़्त होकर उसकी जाँघ को हिट करने लगा.., मेरी जाँघ पर बैठी हुई रूचि उसकी कठोरता अपनी जाँघ पर महसूस करके सिहर गयी…!
मे – क्या हुआ बेटा..? मेने उसे सिहरते हुए देखकर पुछा…, रूचि अपना मूह मेरे कंधे में च्छूपाते हुए बोली – कुच्छ नही चाचू.., क्या आप मेरी छोटी सी इच्छा और पूरी कर सकते हैं…?
मे – हां बोल ना.., मे अपनी गुड़िया के लिए कुच्छ भी करूँगा.., ये कहकर मेने भी उसकी कमर में हाथ डालकर अपने शरीर के साथ सटा लिया…!
रूचि – अपनी गोद में लेकर पहले की तरह मुझे मेरे कमरे तक ले चलोगे प्लीज़ ?
मे बिना कोई जबाब दिए ही उसे गोद में लिए हुए खड़ा हो गया.., रूचि ने अपने दोनो पैर मेरे कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिए और मे उसे लिए हुए जिम से निकल पड़ा..,
मेरे चलने के साथ साथ रूचि जानबूझकर कर उपर नीचे होने लगी जिससे उसके अनारों की चोटी पर चिपके किस्मीस के दानों के बराबर उसके निपल कड़क होकर मेरे सीने से रगड़ने लगे…!
झीने के पास आकर मेने उसे उतरने के लिए कहा – रूचि बेटा ! देख मेने तेरी इच्छा पूरी करदी.., अब उतर जा वरना मुझे आगे का सही से दिखेगा नही..,
झीने पर पैर इधर उधर पड़ गया तो हम दोनो एक साथ नीचे दिखाई देंगे और उसके बाद हॉस्पिटल के बिस्तरो की शोभा बढ़ा रहे होंगे…!
रूचि मेरे चेहरे पर नज़र गढ़ाए हुए बोली – मे सब समझती हूँ चाचू.., मुझे लेकर नीचे तक ना जाना पड़े इसके लिए आप बहाना बना रहे हैं…,
आप चिंता मत करो.., मेरे पास आपकी बात का भी सल्यूशन है.., इतना कहकर वो और नीचे को फिसल गयी.., अब उसका सिर मेरे चेहरे के सामने ना होकर मेरे सीने पर टिका लिया…!
रूचि – अब तो दिख रहा है ना.., अब चलो.., जब देखो तब बहाने बनाते रहते हैं..,
मेने उसकी शरारती बातों पर एक चपत उसके चूतड़ पर लगाई और झीना उतरने लगा..,
रूचि के नीचे खिसकने से अब उसकी कोरी करारी कुँवारी मुनिया एन मेरे मूसल के उभार के सामने आगयि.., उसकी मुलायम पतली पतली फांकों का आभास होते ही मेरा लंड बड़ी ज़ोर्से फड़-फडा उठा…!
मे अब उसे जल्दी से जल्दी नीचे उसके कमरे में पहुँचने की सोचने लगा, इसलिए एक-एक स्टेप जल्दी जल्दी नीचे पैर रखने लगा.., मेरे शरीर के मूव्मेंट के हिस्सब से ही रूचि भी उपर नीचे हो रही थी..,
बल्कि ये कहा जाए तो ग़लत नही होगा कि वो इस बहाने से और ज़्यादा उपर नीचे अपने बदन को मेरे साथ रगड़ रगड़ कर मज़ा ले रही थी.., मेरे कड़क लंड के घर्सन से उसकी मुनिया खिल-खिला उठी.., और उसमें गीलापन आने लगा…!
रूचि ये मज़ा ज़्यादा देर तक लेना चाहती थी इसलिए मेरे कान में फुसफुसा कर बोली – चाचू थोड़ा धीरे धीरे उतरो ना.., झटकों से मे गिर जाउन्गि…!
मे उसके कहने का मतल्ब समझ गया और अपने उतरने की गति कम कर दी.., साथ ही मेरा एक हाथ उसकी गेंद जैसी गान्ड के नीचे था जिससे में उसकी कोमल प्यारी गान्ड को सहलाता जा रहा था…!
बकरियों का शोर सुनकर शकीला के अब्बू, अम्मी बाहर निकल कर आए, देखा तो बकरियाँ इधर उधर खड़ी हैं लेकिन शकीला का कहीं अता पता नही..,
अब्बू – अरे ये लौंडिया कहाँ मर गयी.., बकरियाँ यहाँ छोड़कर किधर मर गयी ये हरामजादी…??
अम्मी – मे इन्हें अंदर लेती हूँ, तुम उसे देख कर लाओ, कहाँ मूह काला करती रह गयी करम्जलि…!
तभी वहाँ वहीदा भी गान्ड मटकाते हुए आ पहुँची.., उसका ससुरा अपनी लौंडिया को ढूँढने निकलने ही वाला था कि उसने कहा – तुम रहने दो आबू मे देखती हूँ उसको…!
वहीदा को पता था कि हो ना हो वो ज़रूर संजू के चक्कर में पड़ गयी होगी.., कहीं साला आज ही उसकी सील ना तोड़ दे, ये सोच कर वो तेज तेज कदम बढ़ते हुए नहर की तरफ चल दी…!
उधर शकीला की जन्नत का द्वार भले ही बंद था लेकिन संजू की मर्दाना और कामुक हरकतों ने दरवाजे में दरार ज़रूर डाल दी थी…,
उसका हाथ सही ठिकाने पर पहुच चुका था.., शकीला बेहद गरम हो चुकी थी.., संजू की हरकतों ने उसकी कुँवारी मुनिया को अपने प्रीतम की याद में आँसू बहाने पर मजबूर कर दिया…!
संजू का हाथ अपनी मुनिया पर लगते ही शकीला बुरी तरह सिहर उठी.., उसका सारा बदन बिजली के तेज झटके की तरह सन-सना उठा.., वासना की आग इस कदर भर गयी कि वो अपने नुकीले दाँतों से अपने ही होठ घायल करने लगी…उसकी आँखें वासना के ज्वर में बंद हो गाइ….
संजू आगे से उसकी गीली पाजामी में क़ैद उसकी छोटी सी नन्ही सी मुनिया को हल्के से सहलाने लगा.., अंदर उसकी जीर्ड-शीर्ड कच्छी कामरस से तर हो चुकी थी.., संजू के हाथ ने सहलाते हुए उसकी कच्छी की अवस्था को अच्छे से परख लिया…!
सहलाते हुए उसकी उंगलियों ने आगे से उसकी पुरानी कच्छी को एक जगह से फटा हुआ पाया.., बस फिर क्या था.., उसको शकीला की जन्नत का द्वार मिल गया और उसकी उस चालाक उंगली ने बखूबी अपना रास्ता ढूंड कर वो चड्डी के फटे हुए छेद से डाइरेक्ट उसकी मुनिया के अंदर चली गयी….!
जैसे ही उसकी उंगली गच्छ.. से पाजामी के पतले से कपड़े समेत उसके रस भरे कुंड में घुसी.., शकीला ने कसकर अपनी जांघों को भींच लिया.., और अपना हाथ संजू के हाथ पर रखकर ज़ोर ज़ोर्से साँसें भरने लगी…!
संजू दूसरे हाथ से उसकी कच्ची अमरूद जैसी चुचियों को सहला रहा था, उसे वहाँ से हटाकर उसकी जांघों को एक दूसरे से अलग करने की कोशिश करने लगा, दूसरा हाथ अभी भी उसकी जांघों के बीच में दबा हुआ था…!
दबे होने के बावजूद भी उसके हाथ की हरकतों में कोई कमी नही आई, दबे हुए भी उसकी उंगली उसके रसकुंड में अपना कमाल दिखा रही थी.., जिससे शकीला के उपर और नीचे दोनो जगह से गर्म गर्म भाप निकलने लगी..,
जब उसके मज़े की इंतहा हो गयी तो स्वतः ही उसने अपनी जांघें खोल दी..,, उसके मूह से मादक सी कराह निकली पड़ी…आअहह….सस्सिईइ…संजूऊू..ज्जििीइ… मत..कार्ररूव…ना..प्लीज़…करते हुए उसने संजू का हाथ और ज़ोर्से अपनी चूत पर दबाकर गहरी गहरी साँस छोड़ने लगी..,
उसे अपनी चूत से कुच्छ गरम गरम अविरल धारा सी फूटती हुई महसूस हुई.. अपनी एडियों को ज़मीन पर घिसटते हुए संजू की गोद में उसका बदन अकड़ने लगा….!
अभी वो अपनी चूत के रास्ते मिले स्वर्गानन्द के मज़े में चूर अपनी आखें मुन्दे हुए लंबी लंबी साँसों लेते हुए गूंगे के गुड की तरह उस आनंद को फील करके आनंदित हो रही थी कि तभी किसी ने बड़ी मजबूती से उसकी कलाई थामी और झटके से उसे संजू की गोद से उठा लिया…!
दोनो की एक साथ तंद्रा टूटी.., सामने गुस्से में खड़ी वहीदा को देखकर शकीला थर-थर काँपने लगी.., वहीदा कुच्छ देर उसे खा जाने वाली नज़रों से देखती रही,
एक बार उसने अपनी नज़र उसकी गीली सलवार पर डाली और फिर उसका हाथ झटक कर उसे घर जाने का इशारा किया…!
जान बची और लाख उपाए… शकीला वहाँ से बिना पल गँवाए गाँव की तरफ सरपट दौड़ ली.., !
शकीला को वहाँ से तडिपार करने के बाद वहीदा ने संजू पर ध्यान दिया.., जो अब अपने खूटे जैसे टाइट हो रहे लंड को पाजामे के अंदर अड्जस्ट करके खड़ा हो चुका था..,
उसका पाजामा लंड के प्री-कम से आगे एक बड़ा सा धब्बा लगा हुआ था…!
वहीदा सधे हुए कदमों से उसकी तरफ बढ़ी.., और उसके खूँटे को अपनी मुट्ठी में कसते हुए बोली – बड़ा जल्दी है तुम्हें शकीला की सील तोड़ने की…,
मेरे से तो कह रहे थे कि मे बाज़ार जा रहा हूँ.., हन.. झूठ क्यों बोला…आअंन्न...बोलो...?
शकीला को चोदना है तो मेरे से पुच्छ तो लेते.., उसकी चूत पर मेरा कब्जा है समझे, और जब तक मे ना चाहूं, तुम उसे नही भोग सकते…!
संजू ने उसकी खरबूजे जैसी चुचि को मसल्ते हुए कहा – तो फ़ि भोगने दे ना भेन्चोद…, साली तेरी गान्ड तो मार ही रहा हूँ ना..,
क्यों आ गयी अड़चन डालने.., भेन्चोद अपने भोस्डे की गर्मी तो तूने ज़बरदस्ती मिटवा ली.., अब एक नयी चूत मिल रही है तो बीच में रोड़ा क्यों अटका रही है…?
वहीदा बड़ी अदा से अपने घुटनो पर आगयि.., एक बार उसने पाजामा के उपर से संजू के लंड को हाथ से आगे पीछे किया इससे उसका अंदर रुका हुआ एक-आध क़तरा और बाहर आगया.., और उसने पाजामे का धब्बा और बड़ा कर दिया…,
चुदाई में महारत हासिल कर चुकी वहीदा समझ गयी कि इस समय संजू कितना गरम हो रहा है, उसने कपड़े समेट ही उसके लंड को अपने मूह में ले लिया और उसके प्री-कम से लगे धब्बे को चूसने लगी…!
फिर उसने उसके पाजामे को नीचे सरका दिया.., संजू का मूसल जो एक कुँवारी चूत की खुसबू पाकर घोड़ा पछाड नाग की तरह फन फ़ना रहा था.., वहीदा के नंगे हाथ में पहुँचते ही और ज़्यादा सख़्त होकर किसी फनियल नाग की तरह झटके मारने लगा…!
वहीदा अपने मूह से थूक लेकर संजू के लंड को मुट्ठी में भरकर आगे पीछे करते हुए बोली – सबर करो संजू भाई.., वो भी मिल जाएगी.., पहले मेरी चूत की आग तो शांत कर दो.., बहुत तड़प रही है तुम्हारे मूसल के लिए…!
चल भोसड़ा की थोड़ा झड़ी के अंदर आजा, ला तेरी गर्मी निकाल ही देता हूँ, वरना मेरा लॉडा भी अब परेशान करता ही रहेगा मुझे.., ये कहकर संजू ने उसके दोनो खरबूजों को ज़ोर्से उमेठ दिया…!
आआईयईई…मादरचोद धीरे… बोलते हुए वहीदा झाड़ियों में घुस गयी…, उसने अपनी पाजामी खोलकर घुटनो तक सरका दी और खुद घुटने मोदकर कुतिया की तरह अपनी मोटी गान्ड संजू के लौडे के आगे करदी..,
संजू के लौडे को इस समय कोई भी छेद चाहिए था अपनी गर्मी शांत करने के लिए.., वहीदा की मोटी-गद्देदार गान्ड पर दो-चार थप्पड़ जड़ते हुए उसने अपना लॉडा वहीदा की गरम भट्टी में पूरी गहराई तक उतार दिया…,
एक झटके से संजू के मूसल को अपनी चूत के अंतिम छोर पर महसूस करके वहीदा की अधगीली चूत बिल-बिला उठी.., उसे लगा जैसे किसी ने ज़बरदस्ती कोई खूँटा उसके अंदर ठोक दिया हो…!
आआयईी…आअम्म्मि….मादरचोद चूत को गीली तो होने देता भोसड़ी के यौंही सुखी में ही पेल दियाआ…रीए..हरजाई…आअहह…थोड़ा निकाल बाहर…कम से कम थूक ही लगा लेता कमीने…
रुक तो सही माँ की लॉडी.., देख अभी दो मिनिट में ही गंगा जमुना बहाएगी तेरी ये चूत...., ये कहकर उसने छोटे छोटे धक्के लगाना शुरू कर दिया…!
शुरू के दो चार धक्के ही वहीदा को नागवार गुज़रे लेकिन जल्दी ही उसकी चूत भी रस छोड़ने लगी और संजू खचा-खच.. ढका-धक पिस्टन की तरह अपना मूसल वहीदा की मल्लपुए जैसी फूली हुई ओखली में पेलने लगा……,
जंगल के शांत वातावरण में संजू की मजबूत कसरती जांघों की चोटें वहीदा की चौड़ी गद्देदार गान्ड पर पड़ने से धप्प…धप्प जैसी आवाज़ें चारों तरफ गूंजने लगी…..!!!!
अब रूचि को नियमित रूप से जिम में जाकर एक्सर्साइज़, बॉक्सिंग प्रॅक्टीस करने का जैसे भूत सा सवार हो गया था.., साथ ही साथ उसके कपड़े भी दिनो दिन छोटे होते जा रहे थे…,
वो तो अच्छा था उसका कमरा सेकेंड फ्लोर पर है और जिम टॉप फ्लोर पर, इसलिए भाभी या भैया को उसके कपड़ों के साइज़ का कोई अंदाज़ा नही था…!
कहीं ज़्यादा एक्सर्साइज़ की वजह से उसका वेट लॉस ना हो या शरीर कमजोर ना पड़ने लगे इसलिए मेने निशा को चुप चाप उसकी खुराक बढाने के लिए बोल दिया..,
अगर ग़लती से भी भाभी को पता लग जाए तो वो पचास सवाल करने लगती…, निशा की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगती है.., वो आँख बंद करके मेरी बात मान लेती है और कभी बाद-विवाद नही करती…!!
काश वास्तविक जीवन में भी सभी पत्नियाँ ऐसी ही होती.., तो आज ये दिल के उद्गार कहानी के मध्यम से शब्दों का रूप नही ले रहे होते….!!!
खैर मेरा तो बचपन से ही कसरत करते रहने का शौक रहा था.., रोज सुबह 5:30 को जिम में पहुँचकर वर्काउट करना मेरी नित्य क्रिया में शामिल था…!
आज भी जब में रोज़ के समय पर जिम में पहुँचा तो रूचि वहाँ पहले से ही योगा एक्सर्साइज़ कर रही थी.., उसका शरीर इतना लचीला है कि हर एक्सर्साइज़ को वो बाबा रामदेव से भी अच्छे से कर लेती है…!
जब मेने जिम में कदम रखा उस समय वो चक्रासन कर रही थी.., उसके बदन पर हाफ लंबाई का स्लीवेलेस्स टॉप और एक मिनी शॉर्ट था.., दोनो ही कपड़े एकदम बॉडी फिट…!
चक्रासन तो शायद आप सभी लोग जानते ही होंगे., दोनो हाथों को सिर से पीछे ले जाकर ज़मीन पर टिकना और फिर पैरों और हाथों पर अपनी बॉडी को सर्क्युलर उल्टा मोड़ना…!
जिम में कदम रखते ही मेरी नज़र सीधी रूचि की टाँगों से होते हुए उसकी चिपकी हुई मिनी शॉर्ट पर पड़ी.., कमर और पीठ धनुषकार मूडी हुई थी..,
सबसे उपर उसका यौनी प्रदेश जो अब उभरकर साफ साफ दिखाई दे रहा था.., शॉर्ट के नीचे शायद उसने पैंटी भी नही पहनी थी.., इस वजह से उसकी डेढ़-दो इंच की लंबाई में उसकी अन्छुई मुनिया की पतली-पतली फाँकें जिनके बीच की हल्की सी दरार में शॉर्ट का कपड़ा दबकर उस दरार को उजागर कर रहा था…!
सीन देखकर मेरे शरीर की एक्सर्साइज़ से पहले मेरे बाबूराव की कसरत शुरू होने लगी.., ना चाहते हुए भी वो मेरे शॉर्ट के अंदर टाइट होने लगा…!
मे उसके पास पहुँचकर, उसके बराबर में खड़ा होकर उसे बड़ी उत्सुकता से देखने लगा…, अमूमन इस एक्सर्साइज़ को एक मिनिट से ज़्यादा करना मुश्किल होता है.., लेकिन रूचि को एक मिनिट से भी ज़्यादा उसी पोज़िशन में रहते हुए देख कर मे मन ही मन उसकी प्रशंसा करने लगा…!
उसका टॉप नॉर्मल ब्रा के साइज़ से थोड़ा सा ही बड़ा था.., उल्टे होकर सिर को नीचे रखने की बजह से उसकी 32” की गोलाइयाँ दबकर उपर के उभार को तो कम कर रही थी.., लेकिन टॉप के दबाब का कहीं तो असर पड़ना ही था…,
उसका टॉप पेट की तरफ से थोड़ा उँचाई की तरफ सरक गया इस वजह से उसकी गोलाइयों का कुच्छ भाग नीचे की तरफ से दिख रहा था…,
गले की तरफ से थोड़ा खुला होने की बजह से उसकी दूध जैसी उजली गोलाइयाँ उभरकर उनके बीच की चौड़ी खाई को कम करने की कोशिश कर रही थी…!
जैसे ही उस आसन से रूचि सीधी खड़ी हुई.., मेने ताली बजाकर उसकी दिल से प्रशंसा की…, वाह ! रूचि.., क्या बात है.., तुमने तो कमाल ही कर दिया.., इस आसन को इतनी आसानी से इतनी देर तक कर लेती हो…ब्रावो..!!
मेरे मूह से तारीफ़ सुनकर रूचि मुस्कराते हुए थोड़ी लंबी लंबी साँस भरते हुए बोली- ये सब आपकी ही ट्रैनिंग का कमाल है चाचू….!
सीधे खड़े होते ही उसके उभर अपनी सही पोज़िशन लेकर उसके टॉप में सीधे तन्कर खड़े हो गये.., और अब उसके बिना ब्रा के छोटे-छोटे निपल भी चमकने लगे…,
जिन्हें देखकर मेरे अंदर उत्तेजना का भाव पैदा होने लगा…, लेकिन जल्दी ही अपने रिस्ते की याद आते ही मुझे अपने उपर ग्लानि सी होने लगी…!
गहरी साँस लेने के कारण उसके उभर भी उपर नीचे होने लगे थे उनपर नज़र डालकर मेने उसके पीछे से उसके कंधों पर अपने दोनो हाथ टिकाए और उन्हें थोड़ा मसाज देते हुए बोला…!
बात क्या है बेटा.., आजकल आपको एक्सर्साइज़ का इतना भूत क्यों सवार है…?
रूचि ने बड़ी बेपरवाही से जबाब दिया – कुच्छ नही चाचू.., बस थोड़ा अपने आपको स्पोर्टी रखना चाहती हूँ और कुच्छ नही.., ये कहकर वो फिरसे दूसरी एक्सर्साइज़ में जुट गयी…!
मे भी अपने कंधे उचका कर अपना पसीना बहाने में जुट गया…, और अगले एक घंटा तक हम दोनो अपना पसीना बहाते रहे…, रूचि मेरे से पहले तक कर ब्रेंच पर बैठकर तौलिए से अपना पसीना पोंछने लगी…!
मे अपना वर्काउट करने के बाद थोड़ा देसी पुश-अप करने लगा जो मे शुरू से ही करता आ रहा था.., रूचि को ना जाने क्या शरारत सूझी.., चुपके से आकर जैसे बचपन में मे उसे पुश-अप करते हुए अपनी पीठ पर बिठा लेता था वैसे ही दोनो तरफ पैर करके मेरी पीठ पर आ बैठी…!
उसके वजन से मे धप्प करके पेट के बल फर्श पर पसर गया….!
क्या चाचू…, लगता है अब आप कमजोर होते जा रहे हैं…, पहले तो मुझे खुद से बिठाकर पुश-अप करते थे लेकिन अब देखो.., मेरे बैठते ही ज़मीन पकड़ ली….!
रूचि ने मेरे उपर अपना पूरा वजन डाला हुआ था इस वजह से मेरा पेट ही नही नीचे मेरे बाबू भैया भी बुरी तरह दबे पड़े थे..,
मेने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया, पेट दबने की वजह से ठीक से मेरी आवाज़ भी नही निकल पा रही थी.., फिर भी दबी दबी सी आवाज़ में मेने कहा –
अरे क्या करती है रूचि बेटा.., उठ मेरे उपर से मेरी साँस दब रही है…!
ओह्ह कम ऑन चाचू…. ट्राइ नाउ…, रूचि खिल-खिलाकर हँसते हुए बोली..
मेने अपने शरीर को इधर उधर हिलाकर उसे अपने उपर से लुढ़काने की कोशिश करते हुए कहा – अजीब पागल लड़की है.., इतना भी नही समझती.., पहले तू 20किलो की थी.. अब 45किलो की है.., कैसे लगा सकता हूँ मे…!
रूचि – नही चाचू एक बार ट्राइ तो आपको करनी पड़ेगी.., ये कहकर उसने अपनी दोनो हथेलियाँ भी मेरे कंधों पर जमा ली और आगे को होकर उसने अपनी मुनिया को मेरी कमर पर चिपका दिया…!
उसकी मुलायम पतली पतली फांकों को मे अपनी कमर पर फील करने लगा था.., यही नही वो अब हल्के हल्के अपनी कमर को भी आगे पीछे करने लगी…, मुझे पूरा विश्वास हो गया कि ये लड़की मज़े लेना चाहती है..!
इसी सोच ने मेरे बाबूराव को सख़्त होने पर मजबूर कर दिया.., उपर से बेचारा फर्श पर बुरी तरह से दबा पड़ा था…!
मेने ज़ोर लगाकर अपनी कमर को उपर की तरफ उचकाया.., झटके की बजह से रूचि और उपर को सरक गयी.., लेकिन जल्दी ही वो अपनी मुनिया को मेरी पीठ पर रगड़ती हुई अपनी गोल-गोल मुलायम गान्ड को मेरी कमर के एकदम नीचे तक ले गयी और मेरी पीठ पर पसर कर मेरे साथ चिपक गयी…!
रूचि – कम ऑन चाचू…, यू कॅन डू इट.., ये कहते हुए वो मुझे उठने के लिए उकसाने लगी और साथ ही अपने पूरे बदन को इस तरह से हिलाने लगी जिससे मुझे उसकी मनसा का पता ना चले कि उसके मन में क्या चल रहा है…!
उसके दोनो कच्चे अनार मेरी पीठ से सटे हुए थे.., अपनी कमर को मेरी कमर पर दबा रखा था, अपने मूह को मेरे सिर के बगल में लाकर उसने मेरे कान को अपने दाँतों में दबाकर काट लिया…!
आआईय…कटखनी बिल्ली.., ये कहते हुए मे झटके से अपने घुटने मोड़ कर पहले उकड़ू बैठा, फिर मेने अपना सिर उपर किया और उसे पीठ पर लादे खड़ा हो गया…!
रूचि – क्या चाचू.. मेने पुश-अप लगाने को बोला था.., आप तो खड़े ही हो गये..!
मेने खड़े खड़े अपने हाथ पीछे ले जाकर उसके कंधे पकड़े और उसे उपर उठाता चला गया.., सिर के बाजू से घूमकर मे उसे अपने सामने ले आया और अपनी गोद में बिठा लिया…!
इस प्रयास में मेरा एक हाथ उसके मुलायम गोल-गोल, बाहर को उभरे हुए बॉल जैसे चुतड़ों पर चला गया और कसकर पकड़ने के बहाने ज़ोर्से दबा दिया…!
आअहह…चाचू.. धीरे से …
मेने लाकर उसे फिरसे ब्रेंच पर बिठा दिया और खुद भी उसकी बगल में बैठकर हान्फ्ते हुए बोला – शैतान की नानी.., आज तुझे ये क्या शरारत सूझी..?
रूचि – वो आपको पुश-अप करते हुए मुझे पुरानी बात याद आगयि.., सोचा ट्राइ करके देखती हूँ, आप अब भी मुझे बिठाकर कर सकते हैं या नही…..!
ये कहकर उसने अपनी नज़र नीचे झुकाई और सीधी मेरे शॉर्ट में तन-तनाए हुए बाबूराव के उभार पर टिका दी…..!!!
रूचि की नज़र कहाँ है, क्या देख रही है मुझे इस बात का कोई भान नही था.., मे तो बस तौलिया लेकर अपने चेहरे से पसीना पोंच्छने में लगा था…,
कुच्छ देर रूचि टक-टॅकी लगाकर मेरे लंड के उभार को देख-देख कर उत्तेजित होती रही फिर जैसे ही उसे लगा कि अब में तौलिया अपने मूह से अलग करने वाला हूँ, उसने मेरे बाजुओं की मसल्स को दबाते हुए कहा…,
वाउ चाचू ! क्या मसल्स हैं आपके.., काश मेरे भी ऐसे ही बन पाते..?
मेने अपनी उखड़ती साँसों को काबू करते हुए अपना पसीना पोंच्छा और उसकी तरफ स्माइल देते हुए कहा…, मर्द और लड़कियों के शरीर में कुच्छ तो फ़र्क होता ही है.., वैसे तुम ऐसे मसल्स बनाकर क्या करोगी..?
कोई लड़का पहलवान जैसी लड़की से शादी करने को भी तैयार नही होगा.., ये कहकर मे हँसने लगा…!
मेरे हँसने का उसपर कोई खास असर नही हुआ.., वो अपने उपर संजीदगी का लिवास ओढ़े हुए ही बोली…क्या गीता और बबिता की शादी नही हुई…?
मेने चोन्कते हुए कहा – कॉन गीता और बबिता…? तुम्हारी कोई सहेली हैं..?
रूचि – क्या चाचू.., इसका मतलब आपने दंगल फिल्म नही देखी…? महावीर सिंग पहलवान की बेटियाँ जिन्होने ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीते हैं कुस्ति में…!
मे - ओह वो गीता और बबिता…! तो इसका मतलब हमारी बिटिया रानी बॉक्सिंग चॅंपियन बनना चाहती है..,
रूचि – नही.., मुझे कोई चॅंपियन वॅंपियन नही बनना है.., बस अपने आपको इतना फिट तो रखूं की वक़्त आने पर अपनी रक्षा खुद कर सकूँ…!
मे – फिर कोई बात हो गयी क्या उसके बाद..?
रूचि – इस समाज में ना जाने कितने रॉकी घूमते रहते हैं.., जो लड़कियों को तो बस अपने मनोरंजन का समान समझते हैं.., मे उन्हें सबक सिखाना चाहती हूँ कि हम लड़कियाँ भी किसी से कम नही हैं…!
मे – बिल्कुल नही हैं.., बल्कि अब तो लड़कियाँ लड़कों से भी कयि कदम आगे हैं.., आज देखो, जिंदगी के हर एग्ज़ॅम में लड़कियाँ बाज़ी मार रही हैं..., और फिर तुम्हें इतनी फिकर करने की क्या ज़रूरत है बेटा.., तुम्हारा चाचू है ना…!
रूचि – मुझे आप पर अपने आप से भी ज़्यादा भरोसा है.., ये कहकर उसने अपनी बाहें मेरे शरीर के इर्द-गिर्द लपेट दी.., अपना कोमल गाल मेरे चौड़े सीने से सटाते हुए बोली…
लेकिन आप हर समय मेरे साथ मौजूद तो नही हो सकते ना चाचू..,
मे – ये बात तो है.., लेकिन बेटा कुच्छ दिनो से अचानक तुम इतनी इनसेक्यूवर क्यों फील करने लगी हो..? उसने फिर कुच्छ कहा क्या..?
रूचि – कहा तो नही, लेकिन मेरी दोस्त बात करती रहती हैं कि उसका बाप कॉलेज का बहुत बड़ा ट्रस्टी है, विकी चाहे तो कॉलेज का प्रिन्सिपल भी उसका कुच्छ नही बिगाड़ सकता…,
उस दिन के बाद से उसकी नज़रें हर समय मेरा पीछा करती रहती हैं.., ना जाने उसके अंदर ही अंदर क्या चल रहा है…?
मेने रूचि के बगल से हाथ बढ़ाकर उसे अपने शरीर से और चिपका लिया.., अब उसके कोरे अनार मेरे बदन में दब रहे थे…,
एक हाथ से उसकी पीठ सहलाते हुए मेने कहा – तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नही है बेटा.., जबतक तुम्हारा चाचू जिंदा है.., तुम्हें कोई छू भी नही सकता है.., वो चाहे रॉकी हो या फिर उसका बाप ही क्यों नही…!
रूचि लिपट’ते हुए बोली – ओह चाचू…आप कितने अच्छे हैं.., इसलिए मे सिर्फ़ आपसे ही ऐसी बातें शेर करती हूँ.., वरना मम्मी-पापा तो उल्टा डर कर मेरा कॉलेज जाना ही बंद करवा दें…!
फिर ना जाने रूचि को क्या हुआ कि उसने अपना सिर उठाकर मेरे गाल पर एक किस कर दिया.., मुझे लगा जैसे किसी ने गुलाब की पंखुड़ियों से मेरे गाल को सहला दिया हो…!
मेने भी हिम्मत करके उसके एक गाल को चूम लिया.., एक पल को रूचि की शर्म से नज़र झुकी.., फिर जल्दी ही मेरी तरफ देख कर बोली – लेकिन चाचू कुच्छ दिनो से आप मुझे पहले जैसा प्यार नही करते…!
मेने चोन्कते हुए कहा – पहले जैसा प्यार मतलब…? क्या कमी आते हुए देखा तुमने मेरे प्यार में…?
रूचि रूठा सा मूह बनाते हुए बोली – पहले आप मुझे अपनी गोद में बिठाकर कितना प्यार करते थे.., लेकिन अब क्यों नही..?.
रूचि के मूह से ये शब्द सुनते ही मे अवाक उसके चेहरे की तरफ देखता रह गया.., कुच्छ देर उसके चेहरे से ये जानने की कोशिश करता रहा कि ये बात उसने किस भावना से कही है…!
लेकिन मुझे उसके मासूम से चेहरे पर सिवाय भोलेपन के और कुच्छ नज़र नही आया….!
मेने उसकी इच्छा का मान रखते हुए एक हाथ उसकी कमर में डाला और उसे खींचकर अपनी एक जाँघ पर बिठा लिया..!
रूचि ने भी अपनी बाहें मेरी गर्दन में लपेट ली और और मेरे साथ चिपकने लगी.., इस चक्कर में उसकी मक्खन से भी मुलायम एक जाँघ मेरे लौडे को दबाने लगी..,
उसकी जाँघ के दबाब से मेरा बाबूराव और ज़्यादा सख़्त होकर उसकी जाँघ को हिट करने लगा.., मेरी जाँघ पर बैठी हुई रूचि उसकी कठोरता अपनी जाँघ पर महसूस करके सिहर गयी…!
मे – क्या हुआ बेटा..? मेने उसे सिहरते हुए देखकर पुछा…, रूचि अपना मूह मेरे कंधे में च्छूपाते हुए बोली – कुच्छ नही चाचू.., क्या आप मेरी छोटी सी इच्छा और पूरी कर सकते हैं…?
मे – हां बोल ना.., मे अपनी गुड़िया के लिए कुच्छ भी करूँगा.., ये कहकर मेने भी उसकी कमर में हाथ डालकर अपने शरीर के साथ सटा लिया…!
रूचि – अपनी गोद में लेकर पहले की तरह मुझे मेरे कमरे तक ले चलोगे प्लीज़ ?
मे बिना कोई जबाब दिए ही उसे गोद में लिए हुए खड़ा हो गया.., रूचि ने अपने दोनो पैर मेरे कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिए और मे उसे लिए हुए जिम से निकल पड़ा..,
मेरे चलने के साथ साथ रूचि जानबूझकर कर उपर नीचे होने लगी जिससे उसके अनारों की चोटी पर चिपके किस्मीस के दानों के बराबर उसके निपल कड़क होकर मेरे सीने से रगड़ने लगे…!
झीने के पास आकर मेने उसे उतरने के लिए कहा – रूचि बेटा ! देख मेने तेरी इच्छा पूरी करदी.., अब उतर जा वरना मुझे आगे का सही से दिखेगा नही..,
झीने पर पैर इधर उधर पड़ गया तो हम दोनो एक साथ नीचे दिखाई देंगे और उसके बाद हॉस्पिटल के बिस्तरो की शोभा बढ़ा रहे होंगे…!
रूचि मेरे चेहरे पर नज़र गढ़ाए हुए बोली – मे सब समझती हूँ चाचू.., मुझे लेकर नीचे तक ना जाना पड़े इसके लिए आप बहाना बना रहे हैं…,
आप चिंता मत करो.., मेरे पास आपकी बात का भी सल्यूशन है.., इतना कहकर वो और नीचे को फिसल गयी.., अब उसका सिर मेरे चेहरे के सामने ना होकर मेरे सीने पर टिका लिया…!
रूचि – अब तो दिख रहा है ना.., अब चलो.., जब देखो तब बहाने बनाते रहते हैं..,
मेने उसकी शरारती बातों पर एक चपत उसके चूतड़ पर लगाई और झीना उतरने लगा..,
रूचि के नीचे खिसकने से अब उसकी कोरी करारी कुँवारी मुनिया एन मेरे मूसल के उभार के सामने आगयि.., उसकी मुलायम पतली पतली फांकों का आभास होते ही मेरा लंड बड़ी ज़ोर्से फड़-फडा उठा…!
मे अब उसे जल्दी से जल्दी नीचे उसके कमरे में पहुँचने की सोचने लगा, इसलिए एक-एक स्टेप जल्दी जल्दी नीचे पैर रखने लगा.., मेरे शरीर के मूव्मेंट के हिस्सब से ही रूचि भी उपर नीचे हो रही थी..,
बल्कि ये कहा जाए तो ग़लत नही होगा कि वो इस बहाने से और ज़्यादा उपर नीचे अपने बदन को मेरे साथ रगड़ रगड़ कर मज़ा ले रही थी.., मेरे कड़क लंड के घर्सन से उसकी मुनिया खिल-खिला उठी.., और उसमें गीलापन आने लगा…!
रूचि ये मज़ा ज़्यादा देर तक लेना चाहती थी इसलिए मेरे कान में फुसफुसा कर बोली – चाचू थोड़ा धीरे धीरे उतरो ना.., झटकों से मे गिर जाउन्गि…!
मे उसके कहने का मतल्ब समझ गया और अपने उतरने की गति कम कर दी.., साथ ही मेरा एक हाथ उसकी गेंद जैसी गान्ड के नीचे था जिससे में उसकी कोमल प्यारी गान्ड को सहलाता जा रहा था…!