Update 09
दोनो ही घोड़ियाँ सवारी करवाने के लिए तैयार थी.., मधु आंटी अधूरी रह गयी थी.., चाची के आने से हम दोनो की ही उत्तेजना कुच्छ कम हो गयी थी…!
चाची और मधु आंटी आपस में ही भीड़ गयी और उनके एक दूसरे के होठ आपस में उलझ गये…!
दोनो के शरीर लगभग एक जैसे थे.., मधु आंटी थोड़ी गोरी ज़्यादा थी लेकिन उमर का असर उनके अंगों पर दिखाई देने लगा था..,
वहीं चाची गाँव की एक दम कड़क माल, उनके सुडौल कलमी आम आंटी की थोड़ी ढीली पड़ गयी चुचियों को दबाए हुए थे..!
वो दोनो घोड़ियाँ आपस में गुथि मज़े ले रही थी और मे उनकी बगल में बैठा चूतिए के खड़े लंड की तरह बस देख रहा था..,
मुझसे ये सहन नही हुआ और बगल से उन दोनो के बीच में उनकी चुचियों के बीच में मेने अपना रोड जैसा कठोर लॉडा पेल दिया…!
लौडे की रगड़ अपनी एक एक साइड की चुचियों पर होने से वो दोनो अलग हो गयी.., एक बार उन्होने मेरी तरफ देखा और फिर एक दूसरे को देखकर खिल खिला कर हँसने लगी…!
मुझे उनके हँसने पर ताव आगया और मेने अपना लॉडा चाची के मूह में ठूंस दिया.., और अपनी कमर चलकर उनके मूह को ही चोदने लगा..,
मेरा मूसल जैसा जुंड बार बार चाची के गले तक पहुँच कर अटक जाता था.., चाची का चेहरा मूह भरे होने से थोड़ी देर में ही लाल हो गया.., तो मधु आंटी ने उसे अपने हाथ से पकड़ कर चाची के मूह से निकालकर अपने मूह में ले लिया…!
लंड मूह से बाहर आते ही चाची ने मेरे पेलरों को मुट्ठी में कसकर हल्के से खींचते हुए अपनी ओर भारी नाराज़गी दिखाई…!
आंटी को लंड चूस्ते देख चाची से रहा नही गया.., वो अब अपने हाथ से ही अपनी चूत को मसल्ने लगी.., कुच्छ देर लंड चुस्कर मधु आंटी वही पीठ के बल लेट गयी और मेने अपना लॉडा एक बार फिर उनकी गरम रसीली चूत में पेल दिया..!
एक बार में ही आधे से ज़्यादा लंड उनकी चूत में समा गया था.., जिससे आंटी का भाड़ सा मूह खुल गया.., उन्हें अब आगे मेरा लंड लेने में तक़लीफ़ होने लगी थी..!
चाची मेरी तरफ अपनी मदमाती गान्ड औंधी करके आंटी के मूह पर बैठ गयी और उनसे अपनी चूत चटवाने लगी…, मेने थोड़ा थोड़ा करके पूरा लंड आंटी की चूत में सरका दिया…!
मेरा पूरा लंड अंदर जाने तक आंटी की गान्ड थर थर काँपने लगी.., लेकिन मेने चाची की गान्ड पर थपकी देते हुए और अपनी उंगली से उनकी गान्ड के छेद को छेड़ते हुए आंटी की चूत में अपने लंड के धक्के धीरे धीरे जारी रखे..,
कुच्छ धक्कों में उनकी चूत रस छोड़ने लगी थी जिससे अब उनकी गान्ड भी नीचे से उपर होने लगी…!
धक्के लगाते हुए मेने आगे को झुक कर चाची की गान्ड के सुरमुई छेद को अपनी जीभ से चाट लिया, चाची की गान्ड का भूरे रंग के फूल जैसा गान्ड का छेद सिकुड़ने लगा…!
वो आअहह….सस्सिईइ.. करते हुए अपनी चूत को ज़ोर्से आंटी के मूह पर रगड़ने लगी…मेरे दोनो हाथ आंटी की चुचियों पर थे जिन्हें मे ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगा, अब जल्दी ही उनकी टाँगें मेरी कमर के इर्द गिर्द कस गयी और वो मेरे लंड पर अपनी चूत को कसते हुए झड़ने लगी…!
मेरी मंज़िल अभी दूर थी सो मेने चाची की कमर पकड़कर पीछे को खींचा और आंटी के उपर ही उन्हें घोड़ी बनाकर पीछे से अपना मूसल उनकी रस से सराबोर ओखली में सरका दिया…!
आधे लंड को लेते ही चाची ने अपनी गर्दन ऊँट की तरह आकड़ा दी और कराह कर बोली – आआहह…लाल्ल्लाअ…धीरीए…, आरमा से डाला करो…, उउफ़फ्फ़….. बहुत मोटा होता जा रहा है ये निगोडाआ….!
मेरा अब थमना मुमकिन नही था.., सो मेने उनके भजन पर ज़्यादा ध्यान नही दिया और एक बार और करारा सा धक्का मारकर पूरा लंड चाची की माल पुए जैसी चूत की फांकों के बीच में फँसा दिया…!
चाची बुरी तरह से कराह उठी.., आआययईीी… हरम्खोर… साले… मादरचोद फाड़ दी ना मेरी चूत…, धीरे धीरे नही डाल सकता था भेन्चोद…!
मेने थोड़ा रुक कर उनकी चुचियों को सहलाते हुए अपने धक्के शुरू कर दिए.., नीचे से आंटी उनके होठों को चूसने लगी..,
चूत की गहराइिओं में उतरते ही मेरे लंड ने चाची की चूत के अमृत कुंड का ढक्कन खोल दिया.., दो ही धक्कों में उनकी चूत रस छोड़ने लगी…, और अब वो भी अपनी गान्ड मेरे लंड पर पटकने लगी थी..!
कमरे में थप्प…ठप्प की एक नयी धुन पैदा होने लगी…, मेरी जांघों की चोट से चाची की मुलायम गद्दे जैसी गान्ड के पात हिलोरें मारने लगे…!
चाची आज आंटी की मौजूदगी में खुलकर चुदाई का मज़ा ले रही थी.., पीछे को अपनी गान्ड मेरे लंड पर पटक पटक कर लंड को चूत की गहराई तक ले रही थी…!
आख़िर कर उनको भी अपनी मंज़िल मिल ही गयी और वो भी एक बार ज़ोर्से अपनी गान्ड पटक कर अपनी चूत की फांकों को मेरे लंड से कसते हुए झड़ने लगी..,
साथ ही मेरी राइफल ने भी उनकी संकरी लेकिन गहरी गुफा की अंतिम गहराइयों में अनगिनत फाइयर दाग दिए और फिर हम तीनों ही एक दूसरे में गुड-मूड होकर पलंग पर पसर गये…!!!
एक-एक बार और मेने उन दोनो अधेड़ घोड़ियों को जमकर चोदा वो दोनो अब पूरी तरह मस्त और तृप्त हो गयी थी, फिर मे लगभग 2 बजे नीचे अपनी निशा के पास गया जो बेसूध सोई पड़ी थी..,
इस बात से बिल्कुल बेख़बर कि उसकी अस्तबल का पालतू घोड़ा अपने ही घर की दो दो अधेड़ घोड़ियों की सवारी करके आया है………………….!!
रूचि के 12त के फाइनल एग्ज़ॅम नज़दीक आ रहे थे.., उसने अब अपने खेल कूद और हार्ड एक्सर्साइज़ को कम करके अपने कोर्स पर ध्यान देना शुरू कर दिया था..,
कुच्छ सब्जेक्ट जिनमें उसे कुच्छ डाउट्स थे उनका उसने अपने ही कॉलेज की एक टीचर से ट्यूशन रख लिया और 2 बजे तक कॉलेज से आने के बाद 5 बजे से 7 बजे तक वो ट्यूशन के लिए जाती थी..!
उसकी ट्यूशन मेडम का घर हमारे घर से कोई 2-3 किमी दूर था, मेन रोड से हटकर एक कॉलोने में वो रहती थी..,
ट्यूशन आने जाने के लिए हमने एक ऑटो-रिक्सा रख दिया था जो समय से उसे ट्यूशन ले जाता और ले आता था…!
विकी और उसके बाप का कॉलेज से पत्ता सॉफ हो गया था.., लेकिन ऐसे लोग कब कों सी चोट दे जायें पता नही.., मुझे अपनी फिकर नही थी लेकिन अपने परिवार को लेकर मे फ़िकरमंद ज़रूर रहने लगा…!
रूचि की उस दिन की हालत देखकर घर में सबको ये बात पता चल ही गयी थी.., भाभी की ममता ने तो उसे कॉलेज जाने पर पाबंदी लगाने का ही प्रयास किया लेकिन मेरे समझाने पर वो मान गयी थी..!
ट्यूशन के बाद रूचि हर हालत में 7:30 तक घर लौट ही आती थी लेकिन एक दिन जब वो 7:45 तक भी घर नही लौटी तो भाभी ने मुझे फोन किया..,
जब उन्होने मुझे रूचि के अबतक घर ना लौटने की बात बताई तो एक बार तो मुझे भी चिंता होने लगी, लेकिन मेने भाभी को हौसला देते हुए कहा..
आप चिंता मत करो भाभी…वो अपनी किसी दोस्त से बातें करते हुए रह गयी होगी आ जाएगी.., मेने ये बात उन्हें परेशान ना हों इसके लिए बोल तो दी लेकिन मे खुद इस बात को मानने के लिए राज़ी नही था…,
कुच्छ देर बाद मेने रूचि की ट्यूशन मेडम को फोन लगाया.., उधर रिंग बजती रही लेकिन कोई उठा नही रहा था..,
मेरे दिल की धड़कनें बढ़ने लगी.., दोबारा फिर फोन लगाया नतीजा फिर एक बार वो ही.., 8 बज चुके थे.., घर फोन करके पुछा कि रूचि पहुँची या नही..,
इस बार फोन निशा ने उठाया और उसने जब ना कहा तो मेने उससे कहा कि मे खुद जाकर रूचि को लेते हुए आता हूँ.., तुम लोग किसी बात की चिंता मत करना.
मेने अपना ऑफीस का काम वहीं छोड़ा.., असिस्टेंट को ऑफीस बंद करने का बोलकर बाहर आया.., गाड़ी स्टार्ट की और निकल लिया उसकी मेडम के घर की तरफ…!
जब मे उसके घर के सामने पहुँचा तो वहाँ बेहद शांति थी.., कॉलोने’स में वैसे भी लोग बाहर कम ही होते हैं.., कोई इक्का दुक्का इधर से उधर आते जाते दिख जाए तो अलग बात है…!
मेडम के 3बीएचके घर के आगे एक लोहे की जाली का छोटा सा गेट था.., उसके बाद 10 फीट का ओपन स्पेस उसके बाद एक हॉल, नीचे एक कमरा रसोई.., उपर दो कमरे थे..,
मेडम इस घर में अकेली ही रहती थी, उनके पति मिड्ल ईस्ट में कहीं जॉब करते थे..,, अभी तक बच्चा कोई था नही उनके…!
उसके घर का लोहे की जाली वाला गेट खाली ढलका हुआ था लेकिन हॉल का मेन गेट एकदम से खुला हुआ था.., मेने गेट पर हल्के से दुस्तक दी.., लेकिन कोई आवाज़ अंदर से नही आई.
मेने धड़कते दिल से उसके हॉल में कदम रखा वहाँ का सारा समान इधर उधर बिखरा पड़ा देखते ही मुझे किसी अनहोनी का आगाज़ हो गया..,
जब में उसके बेडरूम में पहुँचा तो देखा कि मेडम के गोरे बदन पर मात्र एक काले रंग की पैंटी ज़रूर थी वाकई कहीं एक रेशा तक नही, वो पलंग पर चारों खाने चित्त पड़ी थी, उसके हाथ और पैर पलंग के कोनो से बँधे हुए थे.., मूह में एक कपड़ा ठूँसा हुआ था…!
रूचि की मेडम कोई 28-30 साल की युवती थी.. गोरी-चिटी लेकिन थोड़ी मोटी सी थी.., अभी उसके कोई बच्चा नही था इसके लिए उसका बदन कॅसेबेट भरा था…,
जब में हॉल में ही था और इधर उधर बिखरे पड़े समान से उलझता हुआ इधर उधर देख रहा था तो उसकी आहट सुनकर मेडम ने अंदर से बोलने की कोशिश की जिससे उसकी गूणन्न…गूणन्न की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और मेने उसके बेडरूम में पहुँचा…!
मेडम के दोनो बड़े बड़े सुडौल चुचियों के शिखर छत की तरफ तने हुए थे जिन्हें देख कर साफ पता चल रहा था कि उनके साथ बेदर्दी से खेला गया है.., वो एक दम सुर्ख लाल हो रहे थे..!
मेने फ़ौरन मेडम के पहले हाथ पैर खोले, फिर मूह से कपड़ा निकाला.., वो फफक-फफक कर रोते हुए मेरे सीने से लिपट गयी.., उसका गदराया यौवन मेरे बदन में हलचल पैदा करने लगा था…!
कोई और समय होता तो मे ज़रूर उसके साथ आगे बढ़ने की सोचता लेकिन इस समय मेरे दिलो-दिमाग़ पर बस रूचि ही चिंता छाई हुई थी…!
मेने उसके कंधे पकड़कर अपने से जुदा किया, एक बेडशीट पलंग से उठाकर उसके नंगे बदन पर डाली और उसके कंधे पकड़ कर उसे हिलाते हुए पुछा…,
ये सब कैसे….. क्यों हुआ ..? किसने किया है आपके साथ ये सब..??? आ.औ..अओउर्र्र.. रूचि कहाँ है…?
वो बिना कुच्छ बोले एक बार फिरसे फफक-फफक कर रोते हुए मेरे साथ लिपट गयी….!!!
मेडम की हाइट काफ़ी कम थी सो उसका सिर मेरी चौड़ी छाती में समाया हुआ था.., वो काफ़ी डरी हुई थी इसलिए कुच्छ बोलने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी.., मेने भी उसे रोने दिया और उसकी पीठ सहलाते हुए उसे शान्त्वना देता रहा…!
5 मिनिट बाद उसकी रुलाई कुच्छ कम हुई.., मेने उसके कंधों से पकड़ कर अपने से अलग करते हुए कहा – मेडम आप शांत हो जाइए..,
देखिए मे रूचि का अंकल हूँ.., मुझे बताइए यहाँ आपके साथ क्या हुआ और रूचि यहाँ पढ़ने आई थी वो कहाँ है…?
उसने अपनी रुलाई पर काबू करने की कोशिश की फिर भी उसकी हिचकियाँ कम नही हो रही थी.., उन्ही हिचकियों के चलते उसने बोलना शुरू किया…!
रूचि के आने से कोई 10 मिनिट पहले मेरे दरवाजे पर किसी गाड़ी के टाइयरो की तीव्र चरमराहट की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी.., मेने सोचा कोई पड़ोस में आया होगा…!
फिर कुच्छ ही सेकेंड में उस गाड़ी के दरवाजे धड़ा धड़ करके बंद हुए जैसे कोई बहुत गुस्से और जल्दी में हो सो उत्सुकता बस मेने अपनी खिड़की से बाहर झाँक कर देखा…, देखते ही मेरी आँखें फटी रह गयी…!
इतनी ही देर में उस गाड़ी में से निकल कर 4 हट्टे कट्टे स्याह काले लिबास में लोग मेरे गेट को पार करके मेरे हॉल में घुस चुके थे.., डर के मारे मूह से आवाज़ तक नही निकली.., क्योंकि उन चारों के हाथ में बड़े ख़तरनाक किस्म के हथियार थे जो सीधे मेरी तरफ ही तने हुए थे…!
उन्हें देखते ही मेरी घिग्घी बँध गयी.., इससे पहले की मे कुच्छ बोल पाती कि उनमें से एक ने मेरे पास आकर मेरा मूह बंद कर दिया और बड़े ही ख़ूँख़ार लहजे में गुर्राया…
खबरदार जो अपने मूह से ज़रा सी भी आवाज़ निकाली तो अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठेगी..,
इतना कहकर उसने मुझे सोफे पर धकेल दिया.., मेने उठने की कोशिश की तो उसने मुझे फिर से ज़ोर का धक्का मारा और मे फिरसे औंधे मूह सोफे पर जा गिरी…! इतना बोलकर मेडम सुबकते हुए चुप हो गयी..,
उसे चुप होते देख मेने बेसब्री से पुछा… आगे बोलो.. क्या हुआ…?
वो सुबकते हुए बोली - तभी उनमें से एक बोला.., बड़ा मस्त माल है यार.., वो लड़की जबतक आएगी तबतक इसी साली के मज़े ले लेते हैं.., चल उठा ले इससे इसके बेडरूम में ले चलते हैं…!
उसकी बात सुनकर मे बुरी तरह काँप गयी.., किसी तरह मेने कांपति आवाज़ में कहा – खबरदार जो मुझे हाथ भी लगाया तो मे अभी पोलीस को फोन करती हूँ.., ये कहकर मे झटके से खड़ी हो गयी…!
लेकिन तभी उनमें से दो लोगों ने मुझे बुरी तरह जाकड़ लिया.., मेने चिल्लाना चाहा तबतक एक ने मेरा मूह दबा लिया और मुझे ज़बरदस्ती उठा कर बेडरूम में ले गये.., और फिर उन्होने….हिकच्छ..हिकच…आगे वो कुच्छ बोल नही पाई और रोने लगी…!
मेने बड़ी बेसबरी से कहा – प्लीज़ रू मत पूरी बात बताओ फिर क्या हुआ..?
वो सुबकते हुए आगे बोली.., उन्होने ज़बरदस्ती मेरे सारे कपड़े निकाल दिए और मेरे साथ वहसियों की तरह चिपट गये किसी ने मेरे गालों को चाटा.., तो कोई मेरी छातियों को मीँजने लगा तो एक मेरी टाँगों के बीच में हाथ लगाने लगा…!
इससे पहले कि वो मेरे साथ कुच्छ और करते तभी लोहे का गेट खुलने की आवाज़ आई.., मे समझ गयी रूचि ही होगी.., लेकिन अब मे उसे यहाँ आने से कैसे रोकू.., मेरे साथ जो हो रहा है सो तो हो ही रहा है..,
लेकिन वो बेचारी तो अभी मासूम बच्ची है.., उसके साथ…, ये सोचकर ही मेरी रूह तक काँप गयी.., पर कुच्छ करने की स्थिति में नही थी…!
मेने कसमसा कर बहुत कोशिश की अपना मूह छुड़ाने की लेकिन नाकाम रही तब तक रूचि हॉल में आ चुकी थी.., हॉल की स्थिति देखकर वो जल्दी से बेडरूम तक ही आ पहुँची और अंदर का मंज़र देख कर उसके मूह से चीख निकलने ही वाली थी…,
कि तभी पीछे से उनके ही एक साथी ने जो की गाड़ी में ही था चुपके से आकर हाथ में पकड़ी हुई रेवोल्वेर का हॅंडल ज़ोर्से उसके सिर पर मारा..,
उसके मूह से चीख भी नही निकल पाई उससे पहले उसने उसका मूह बंद कर दिया.., वो त्यौरकर उसकी बाहों में ही बेहोश हो गयी…!
फिर उन चारों ने मुझे यहाँ बेड पर बाँध दिया, मेरे मूह में कपड़ा ठूँसकर वो फ़ौरन रूचि के बेहोश जिस्म को कंधे पर डालकर गाड़ी तक ले गये और फिर मेने उनकी गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज़ सुनी.., धीरे धीरे वो आवाज़ दूर होती चली गयी…!
यहाँ तक मेडम के मूह से ये सब सुनकर मेरा चेहरा निस्तेज सा हो गया.., खड़े-खड़े ही मेरी आँखों की आगे अंधेरा सा छा गया…,
मेडम आगे बोली – शायद उन्हें मुझसे कुच्छ लेना देना नही था.., वो तो उसे ही लेने यहाँ आए थे.., लेकिन मेडम की वो बातें अब मेरे कानों में नही जा रही थी..,
मेने किसी तरह अपने को संभाला.., और उससे आगे सवाल किया – क्या आपने उनकी गाड़ी देखी थी…?
मेडम – हन ! वो एक काले रंग की स्कॉर्पियो थी.., जिसकी साइड में दो सुनहरी चमकीली सी पट्टियों की डिज़ाइन जैसी बनी थी…!
मे – आपने उस गाड़ी का नंबर देखा था…!
वो – नही वो मे कैसे देख पाती.., गाड़ी की साइड ही मेरे दरवाजे की तरफ थी.., और वैसे भी मुझे ज़्यादा देर मौका कहाँ मिला.., मेरे बाहर झाँकते ही तो वो आ धम्के थे अंदर…!
उसके जबाब से पहले ही मेने अपने इस सवाल को खारिज कर दिया था.., क्योंकि ऐसी कोई संभावना हो ही नही सकती थी..,
मेरे जानने लायक उसके पास और कोई इन्फर्मेशन नही थी सो मेने तुरंत कृष्णा भैया को फोन लगाया.., सारी परिस्थितियो से अवगत कराया और कुच्छ पोलीस वालों को मेडम के घर का पता नोट करवाकर यहाँ आने को कहा…
मे – देखिए.., अभी यहाँ कुच्छ पोलीस वाले आएँगे उनको आप अक्षर्स अपना ब्यान लिखवा देना.., इतना कहकर मे उसके घर से निकल गया…!
रूचि का अपहरण हुए 4 घंटे से उपर हो चुके थे.., उन गुण्डों को अब सड़कों पर खोजने का तो कोई मतलब ही नही था.., फिर भी मेने कृष्णा भैया को उस गाड़ी के डीटेल्स लिखवा दिए जिससे वो अपनी तरह से उस गाड़ी को खोजने की कोशिश कर सकें…!
मेने फोन करके घर पर भी बता दिया जोकि अब छुपाने का कोई औचित्या भी नही था.., सुनकर भाभी गश खाकर गिर पड़ी.., मेने फोन पर ही बाबूजी और भैया को समझा दिया की वो भाभी और निशा का ख्याल रखें…!
पोलीस भी अपना काम कर ही रही है.., और अब में रूचि को लेकर ही घर लौटूँगा…, इतना कहकर मेने अपना मोबाइल जेब में डाला और यौंही बिना किसी सोच विचार के मेने अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी…!
मेन सड़क से कॉलोनी के मुहाने पर एक चाय नाश्ते की दुकान थी.., मेने अपनी गाड़ी खड़ी करके उस दुकान दार से उस गाड़ी के बारे में पुछा तो उसने कुच्छ भी ना जान’ने की बात कही…!
मे निराश हताश अपने सिर पर हाथ रख कर कुच्छ देर वहीं पड़ी खाली ब्रेंच पर बैठ गया.., तभी उस दुकान पर काम करने वाला एक 12-14 साल का लड़का मेरे पास आया और बोला…
क्या बात है बाबू साब आप कुच्छ दुखी से लग रहे हैं…? कुच्छ चाइ पानी लाउ आपके लिए ?
मेने एक नज़र उस मेले कुचैले से कपड़े पहने हुए लड़के पर डाली.., मेरा दिमाग़ वैसे ही थोड़ा उखड़ा हुआ था सो मेने उसे झिड़कते हुए – अब्बे जा ना यहाँ से यहाँ साला वैसे ही दिमाग़ खराब हो रहा है, तू और आके टेन्षन दे रहा है…!
वो फिर भी वहाँ से नही हिला तो मुझे थोड़ा गुस्सा आया उसपर और मेने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे धक्का देकर अपने से दूर करने ही वाला था कि वो बोला –
मेने आपको सेठ से उस काली स्कॉर्पियो गाड़ी के बारे में पुछ्ते हुए सुना था जिसकी साइड में चमकीली पट्टियों की डिज़ाइन थी…!
मेने फ़ौरन उसको धक्का मारने की बजाए उसके कंधों पर अपने दोनो हाथ रख कर बोला – हां.., क्या तुमने देखी थी वो गाड़ी..?
लड़का – हां..! यही कोई सवा 5 का टाइम था.., और एक बात मेने नोट की थी साब..,
मेने उत्सुकता से अधीर स्वर में कहा – क्या…?
लड़का – वैसे तो उस काली गाड़ी पर गाड़े रंग के शीशे चढ़े हुए थे.., लेकिन पीछे के दरवाजे का एक काँच थोड़ा खुला हुआ था उसमें से मुझे एक आदमी की गोद में एक लड़की बैठी हुई देखी जो शायद बेहोश थी…!
मेने लपकते हुए कहा – हां..हां…! शाबास… क्या तुमने ध्यान दिया वो गाड़ी यहाँ से किस तरफ मूडी थी…?
लड़का – हां साब.., वो गाड़ी इस कॉलोने के अंदर से बड़ी तेज़ी से आई और उसी तेज़ी से वो हाइवे की तरफ जाने वाली सड़क पर मूड गयी…!
मेने लपक कर उस लड़के को अपने सीने से लगा लिया, अब वो लड़का मुझे गंदा नही लग रहा था.., मेने उसके मेल्ल से गंदे हो रहे गाल को चूम लिया और अपने वॉलेट से 500 के दो नोट निकाल कर उसकी हथेली में थमाए और तेज़ी से अपनी गाड़ी की तरफ लपक लिया…!!!
रात के 10 बज चुके थे.., मे दिल्ली कानपुर हाइवे पर अपने शहर से काफ़ी दूर निकल आया था.., 5 घंटे बाद उस गाड़ी का नामोनिशान मिलना तो मुश्किल ही था लेकिन एक निशान देहि के तौर पर मुझे लगा कि वो लोग रूचि को किडनप करके अपने ही शहर में तो नही होंगे…!
रात गहराती जा रही थी.., बस आते-जाते वहाँ ही दिखाई दे रहे थे.., आयेज एक बड़ा शहर आने वाला था जिसके पहले सड़क पर एक जंक्षन था.., मेन हाइवे का बाइपॅस और एक रोड जो शहर के अंदर जा रहा था..!
मे कुच्छ देर गाड़ी वहीं खड़ी करके सोचने लगा..,
हो सकता है किडनेपर इसी शहर में गये हों.., लेकिन फिर अपने ही विचार को खारिज करके सोचा कि वो शहर के अंदर क्यों ले जाएँगे..?
अगर तो उन्होने रंजिश के तहत रूचि को उठाया है तो…तो.. , कहीं ये साला रॉकी और उसके बाप की करतूत तो नही…?
ये विचार आते ही मेने फ़ौरन कृष्णा भैया को फोन लगाया और विक्रम राठी और उसके लौन्डे को धर दबोचने के लिए कहा…!
भैया ने पुछा भी कि मे इस वक़्त कहाँ हूँ..तो ना जाने क्यों मेने अपनी लोकेशन उनसे छुपा ली.., ये बात मेरी खुद भी समझ में नही आई…
फिर मेने उनसे पोलीस कार्यवाही का अपडेट लिए तो उन्होने बताया – पोलीस उस मेडम का स्टेट्मेंट ले चुकी है.., पूरे शहर की नाका बंदी कर दी है.., शहर में उस तरह की गाड़ियों की चेकिंग शुरू कर दी गयी है…!
कृष्णा भैया से बात करने के बाद में गाड़ी से बाहर आया, पेशाब जोरों से लगी थी सो रोड साइड में ही जीप खोलकर खड़ा हो गया..,
शायद आज पूनम के बाद की चतुर्थी या पंचमी होगी, धीरे धीरे चंद्रमा पूर्व से निकलता आ रहा था और रात की काली स्याह चादर कम होती जा रही थी…
झाड़ियों में कहीं कहीं जुगनू चमक रहे थे.., झींगुरों की आवाज़ें कानों में पड़ रही थी..बस इतना ही.., ऐसे में मे दिशाहीन खड़ा सोच रहा था कि अब यहाँ से किधर जाउ…?
ना जाने क्या सोचकर मेने बाइ पास पर जाने का फ़ैसला लिया…, गाड़ी में बैठा स्टार्ट की और गियर डालकर गाड़ी बाइपास पर आगे बढ़ा दी..., गाड़ी की स्पीड तो स्लो थी लेकिन मेरे दिमाग़ में चल रहे विचारों का बबन्डर काफ़ी तेज था..!
शहर के बराबर में एक चौराहा आया.., जहाँ से एक रास्ता जिससे मे अभी आया था, दूसरा मेरे बायें तरफ शहर के अंदर जाने वाला.., सामने लंबा चौड़ा वही हाइवे.., और दाए तरफ दूसरे पड़ौसी राज्य को जाने वाली सड़क…!
मे अब उस चौराहे से पहले ही गाड़ी रोक कर खड़ा हो गया.., इधर उधर रोशनी बिखरी हुई थी.., हाइवे के दोनो तरफ खाने के ढाबे.., टाइयर पंचर की दुकानें.., गाड़ियों के मेकॅनिक्स की दुकानें भी थी…!
कुच्छ सोचकर मेने अपनी गाड़ी रॉंग साइड पर दो सड़कों के कॉर्नर वाले ढाबे के आगे जाकर खड़ी कर दी…!
रात बहुत हो चुकी थी.., टेन्षन था लेकिन पेट को खाना भी ज़रूरी था.., सो मे उस ढाबे के आयेज पड़ी चारपाइिओं में से एक पर बैठ गया…!
आस पास की चारपाइयों पर और लोग भी बैठे खाना खा रहे थे.., जिनमें ज़्यादातर तो ट्रक ड्राइवर ही थे.., और भला इतनी रात में हाइवे साइड कों खाना खाने आने वाला था यहाँ…!
मेरे बैठते ही एक 15-16 साल का लड़का पानी का जग मेरे सामने रख गया.., एक दूसरा आदमी आकर खाने का ऑर्डर ले गया..,
कुच्छ देर में खाना भी आ गया मखनी दाल और बटर तंदूरी रोटी.., जो इस तरह के ढाबों की खास रेसिपी होती है.., और वाकई में शहर के शानदार होटेलों से कहीं अधिक स्वादिष्ट भी होता हैं खाना…!
खाना अच्छा तीखा था.., लेकिन मेरा मन नही हो रहा था खाने का.., बेमन से बस ज़बरदस्ती मूह चला रहा था.., मुझे इस तरह बेमन से खाना खाते देख वो पानी वाला लड़का मेरे पास आया और पीछे हाथ जोड़कर मेरे पास खड़ा होकर बोला…!
क्या बात है साब.., खाना अच्छा नही बना.., कुच्छ और लेकर आउ….?
उसे देखकर मुझे शहर वाले लड़के की याद आगयि, मेने उसे गौर से देखा.., उमर के हिसाब से मध्यम कद काठी वाला लड़का मेहनत कश मजबूत हाथ पैर वाला लगा मुझे…!
मेने ऐसे ही उसे पुच्छ लिया…, यहाँ काम करते हो.., इस उमर में..? इस उमर में तो तुम्हें पढ़ने लिखने के लिए कॉलेज जाना चाहिए..!
वो लड़का अपनी बेबसी पर सिर झुका कर बोला – हर किसी के नसीब में पढ़ना लिखना नही होता बाबूजी.., एक अनाथ बालक अपना पेट पाल ले वो भी कहाँ कम है इस महगाई के जमाने में…!
ना जाने क्यों उस लड़के के शब्दों ने मुझे अंदर तक झक-झोर दिया.., अपने हाथ आगे कर लड़के की बाजुओं को पकड़ा और उसके चेहरे पर नज़र गढ़ा कर उसे बड़े प्यार से पूछा – तुम अनाथ हो….?
लड़का – हां बाबूजी… बलिया ज़िल्ले के एक गाँव में मेरा पूरा परिवार था.., माँ, बाप, भाई और एक प्यारी सी बेहन…, जो मुझे बहुत प्यारी थी…बोलते बोलते लड़के की आँखें भीग गयी और उसके गले से एक हिचकी निकल गयी…!
मे – अब कहाँ गये वो सब..?
लड़के ने किसी तरह अपनी रुलाई पर काबू करते हुए कहा – सब बह गया बाढ़ (फ्लड) में …बाबूजी…, किसी तरह में बच गया और भटकते भटकते रोटी की तलाश में यहाँ तक पहुँच गया.., यहाँ सेठ को मुझ पर दया आ गयी और मुझे काम पर रख लिया…!
मे – क्या नाम है तुम्हारा..?
ललित … ललित कुमार चौरसिया नाम है बाबूजी हमारा…, माँ प्यार से मुझे लालिया…लालिया कहती थी…हीकच…!
चाची और मधु आंटी आपस में ही भीड़ गयी और उनके एक दूसरे के होठ आपस में उलझ गये…!
दोनो के शरीर लगभग एक जैसे थे.., मधु आंटी थोड़ी गोरी ज़्यादा थी लेकिन उमर का असर उनके अंगों पर दिखाई देने लगा था..,
वहीं चाची गाँव की एक दम कड़क माल, उनके सुडौल कलमी आम आंटी की थोड़ी ढीली पड़ गयी चुचियों को दबाए हुए थे..!
वो दोनो घोड़ियाँ आपस में गुथि मज़े ले रही थी और मे उनकी बगल में बैठा चूतिए के खड़े लंड की तरह बस देख रहा था..,
मुझसे ये सहन नही हुआ और बगल से उन दोनो के बीच में उनकी चुचियों के बीच में मेने अपना रोड जैसा कठोर लॉडा पेल दिया…!
लौडे की रगड़ अपनी एक एक साइड की चुचियों पर होने से वो दोनो अलग हो गयी.., एक बार उन्होने मेरी तरफ देखा और फिर एक दूसरे को देखकर खिल खिला कर हँसने लगी…!
मुझे उनके हँसने पर ताव आगया और मेने अपना लॉडा चाची के मूह में ठूंस दिया.., और अपनी कमर चलकर उनके मूह को ही चोदने लगा..,
मेरा मूसल जैसा जुंड बार बार चाची के गले तक पहुँच कर अटक जाता था.., चाची का चेहरा मूह भरे होने से थोड़ी देर में ही लाल हो गया.., तो मधु आंटी ने उसे अपने हाथ से पकड़ कर चाची के मूह से निकालकर अपने मूह में ले लिया…!
लंड मूह से बाहर आते ही चाची ने मेरे पेलरों को मुट्ठी में कसकर हल्के से खींचते हुए अपनी ओर भारी नाराज़गी दिखाई…!
आंटी को लंड चूस्ते देख चाची से रहा नही गया.., वो अब अपने हाथ से ही अपनी चूत को मसल्ने लगी.., कुच्छ देर लंड चुस्कर मधु आंटी वही पीठ के बल लेट गयी और मेने अपना लॉडा एक बार फिर उनकी गरम रसीली चूत में पेल दिया..!
एक बार में ही आधे से ज़्यादा लंड उनकी चूत में समा गया था.., जिससे आंटी का भाड़ सा मूह खुल गया.., उन्हें अब आगे मेरा लंड लेने में तक़लीफ़ होने लगी थी..!
चाची मेरी तरफ अपनी मदमाती गान्ड औंधी करके आंटी के मूह पर बैठ गयी और उनसे अपनी चूत चटवाने लगी…, मेने थोड़ा थोड़ा करके पूरा लंड आंटी की चूत में सरका दिया…!
मेरा पूरा लंड अंदर जाने तक आंटी की गान्ड थर थर काँपने लगी.., लेकिन मेने चाची की गान्ड पर थपकी देते हुए और अपनी उंगली से उनकी गान्ड के छेद को छेड़ते हुए आंटी की चूत में अपने लंड के धक्के धीरे धीरे जारी रखे..,
कुच्छ धक्कों में उनकी चूत रस छोड़ने लगी थी जिससे अब उनकी गान्ड भी नीचे से उपर होने लगी…!
धक्के लगाते हुए मेने आगे को झुक कर चाची की गान्ड के सुरमुई छेद को अपनी जीभ से चाट लिया, चाची की गान्ड का भूरे रंग के फूल जैसा गान्ड का छेद सिकुड़ने लगा…!
वो आअहह….सस्सिईइ.. करते हुए अपनी चूत को ज़ोर्से आंटी के मूह पर रगड़ने लगी…मेरे दोनो हाथ आंटी की चुचियों पर थे जिन्हें मे ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगा, अब जल्दी ही उनकी टाँगें मेरी कमर के इर्द गिर्द कस गयी और वो मेरे लंड पर अपनी चूत को कसते हुए झड़ने लगी…!
मेरी मंज़िल अभी दूर थी सो मेने चाची की कमर पकड़कर पीछे को खींचा और आंटी के उपर ही उन्हें घोड़ी बनाकर पीछे से अपना मूसल उनकी रस से सराबोर ओखली में सरका दिया…!
आधे लंड को लेते ही चाची ने अपनी गर्दन ऊँट की तरह आकड़ा दी और कराह कर बोली – आआहह…लाल्ल्लाअ…धीरीए…, आरमा से डाला करो…, उउफ़फ्फ़….. बहुत मोटा होता जा रहा है ये निगोडाआ….!
मेरा अब थमना मुमकिन नही था.., सो मेने उनके भजन पर ज़्यादा ध्यान नही दिया और एक बार और करारा सा धक्का मारकर पूरा लंड चाची की माल पुए जैसी चूत की फांकों के बीच में फँसा दिया…!
चाची बुरी तरह से कराह उठी.., आआययईीी… हरम्खोर… साले… मादरचोद फाड़ दी ना मेरी चूत…, धीरे धीरे नही डाल सकता था भेन्चोद…!
मेने थोड़ा रुक कर उनकी चुचियों को सहलाते हुए अपने धक्के शुरू कर दिए.., नीचे से आंटी उनके होठों को चूसने लगी..,
चूत की गहराइिओं में उतरते ही मेरे लंड ने चाची की चूत के अमृत कुंड का ढक्कन खोल दिया.., दो ही धक्कों में उनकी चूत रस छोड़ने लगी…, और अब वो भी अपनी गान्ड मेरे लंड पर पटकने लगी थी..!
कमरे में थप्प…ठप्प की एक नयी धुन पैदा होने लगी…, मेरी जांघों की चोट से चाची की मुलायम गद्दे जैसी गान्ड के पात हिलोरें मारने लगे…!
चाची आज आंटी की मौजूदगी में खुलकर चुदाई का मज़ा ले रही थी.., पीछे को अपनी गान्ड मेरे लंड पर पटक पटक कर लंड को चूत की गहराई तक ले रही थी…!
आख़िर कर उनको भी अपनी मंज़िल मिल ही गयी और वो भी एक बार ज़ोर्से अपनी गान्ड पटक कर अपनी चूत की फांकों को मेरे लंड से कसते हुए झड़ने लगी..,
साथ ही मेरी राइफल ने भी उनकी संकरी लेकिन गहरी गुफा की अंतिम गहराइयों में अनगिनत फाइयर दाग दिए और फिर हम तीनों ही एक दूसरे में गुड-मूड होकर पलंग पर पसर गये…!!!
एक-एक बार और मेने उन दोनो अधेड़ घोड़ियों को जमकर चोदा वो दोनो अब पूरी तरह मस्त और तृप्त हो गयी थी, फिर मे लगभग 2 बजे नीचे अपनी निशा के पास गया जो बेसूध सोई पड़ी थी..,
इस बात से बिल्कुल बेख़बर कि उसकी अस्तबल का पालतू घोड़ा अपने ही घर की दो दो अधेड़ घोड़ियों की सवारी करके आया है………………….!!
रूचि के 12त के फाइनल एग्ज़ॅम नज़दीक आ रहे थे.., उसने अब अपने खेल कूद और हार्ड एक्सर्साइज़ को कम करके अपने कोर्स पर ध्यान देना शुरू कर दिया था..,
कुच्छ सब्जेक्ट जिनमें उसे कुच्छ डाउट्स थे उनका उसने अपने ही कॉलेज की एक टीचर से ट्यूशन रख लिया और 2 बजे तक कॉलेज से आने के बाद 5 बजे से 7 बजे तक वो ट्यूशन के लिए जाती थी..!
उसकी ट्यूशन मेडम का घर हमारे घर से कोई 2-3 किमी दूर था, मेन रोड से हटकर एक कॉलोने में वो रहती थी..,
ट्यूशन आने जाने के लिए हमने एक ऑटो-रिक्सा रख दिया था जो समय से उसे ट्यूशन ले जाता और ले आता था…!
विकी और उसके बाप का कॉलेज से पत्ता सॉफ हो गया था.., लेकिन ऐसे लोग कब कों सी चोट दे जायें पता नही.., मुझे अपनी फिकर नही थी लेकिन अपने परिवार को लेकर मे फ़िकरमंद ज़रूर रहने लगा…!
रूचि की उस दिन की हालत देखकर घर में सबको ये बात पता चल ही गयी थी.., भाभी की ममता ने तो उसे कॉलेज जाने पर पाबंदी लगाने का ही प्रयास किया लेकिन मेरे समझाने पर वो मान गयी थी..!
ट्यूशन के बाद रूचि हर हालत में 7:30 तक घर लौट ही आती थी लेकिन एक दिन जब वो 7:45 तक भी घर नही लौटी तो भाभी ने मुझे फोन किया..,
जब उन्होने मुझे रूचि के अबतक घर ना लौटने की बात बताई तो एक बार तो मुझे भी चिंता होने लगी, लेकिन मेने भाभी को हौसला देते हुए कहा..
आप चिंता मत करो भाभी…वो अपनी किसी दोस्त से बातें करते हुए रह गयी होगी आ जाएगी.., मेने ये बात उन्हें परेशान ना हों इसके लिए बोल तो दी लेकिन मे खुद इस बात को मानने के लिए राज़ी नही था…,
कुच्छ देर बाद मेने रूचि की ट्यूशन मेडम को फोन लगाया.., उधर रिंग बजती रही लेकिन कोई उठा नही रहा था..,
मेरे दिल की धड़कनें बढ़ने लगी.., दोबारा फिर फोन लगाया नतीजा फिर एक बार वो ही.., 8 बज चुके थे.., घर फोन करके पुछा कि रूचि पहुँची या नही..,
इस बार फोन निशा ने उठाया और उसने जब ना कहा तो मेने उससे कहा कि मे खुद जाकर रूचि को लेते हुए आता हूँ.., तुम लोग किसी बात की चिंता मत करना.
मेने अपना ऑफीस का काम वहीं छोड़ा.., असिस्टेंट को ऑफीस बंद करने का बोलकर बाहर आया.., गाड़ी स्टार्ट की और निकल लिया उसकी मेडम के घर की तरफ…!
जब मे उसके घर के सामने पहुँचा तो वहाँ बेहद शांति थी.., कॉलोने’स में वैसे भी लोग बाहर कम ही होते हैं.., कोई इक्का दुक्का इधर से उधर आते जाते दिख जाए तो अलग बात है…!
मेडम के 3बीएचके घर के आगे एक लोहे की जाली का छोटा सा गेट था.., उसके बाद 10 फीट का ओपन स्पेस उसके बाद एक हॉल, नीचे एक कमरा रसोई.., उपर दो कमरे थे..,
मेडम इस घर में अकेली ही रहती थी, उनके पति मिड्ल ईस्ट में कहीं जॉब करते थे..,, अभी तक बच्चा कोई था नही उनके…!
उसके घर का लोहे की जाली वाला गेट खाली ढलका हुआ था लेकिन हॉल का मेन गेट एकदम से खुला हुआ था.., मेने गेट पर हल्के से दुस्तक दी.., लेकिन कोई आवाज़ अंदर से नही आई.
मेने धड़कते दिल से उसके हॉल में कदम रखा वहाँ का सारा समान इधर उधर बिखरा पड़ा देखते ही मुझे किसी अनहोनी का आगाज़ हो गया..,
जब में उसके बेडरूम में पहुँचा तो देखा कि मेडम के गोरे बदन पर मात्र एक काले रंग की पैंटी ज़रूर थी वाकई कहीं एक रेशा तक नही, वो पलंग पर चारों खाने चित्त पड़ी थी, उसके हाथ और पैर पलंग के कोनो से बँधे हुए थे.., मूह में एक कपड़ा ठूँसा हुआ था…!
रूचि की मेडम कोई 28-30 साल की युवती थी.. गोरी-चिटी लेकिन थोड़ी मोटी सी थी.., अभी उसके कोई बच्चा नही था इसके लिए उसका बदन कॅसेबेट भरा था…,
जब में हॉल में ही था और इधर उधर बिखरे पड़े समान से उलझता हुआ इधर उधर देख रहा था तो उसकी आहट सुनकर मेडम ने अंदर से बोलने की कोशिश की जिससे उसकी गूणन्न…गूणन्न की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और मेने उसके बेडरूम में पहुँचा…!
मेडम के दोनो बड़े बड़े सुडौल चुचियों के शिखर छत की तरफ तने हुए थे जिन्हें देख कर साफ पता चल रहा था कि उनके साथ बेदर्दी से खेला गया है.., वो एक दम सुर्ख लाल हो रहे थे..!
मेने फ़ौरन मेडम के पहले हाथ पैर खोले, फिर मूह से कपड़ा निकाला.., वो फफक-फफक कर रोते हुए मेरे सीने से लिपट गयी.., उसका गदराया यौवन मेरे बदन में हलचल पैदा करने लगा था…!
कोई और समय होता तो मे ज़रूर उसके साथ आगे बढ़ने की सोचता लेकिन इस समय मेरे दिलो-दिमाग़ पर बस रूचि ही चिंता छाई हुई थी…!
मेने उसके कंधे पकड़कर अपने से जुदा किया, एक बेडशीट पलंग से उठाकर उसके नंगे बदन पर डाली और उसके कंधे पकड़ कर उसे हिलाते हुए पुछा…,
ये सब कैसे….. क्यों हुआ ..? किसने किया है आपके साथ ये सब..??? आ.औ..अओउर्र्र.. रूचि कहाँ है…?
वो बिना कुच्छ बोले एक बार फिरसे फफक-फफक कर रोते हुए मेरे साथ लिपट गयी….!!!
मेडम की हाइट काफ़ी कम थी सो उसका सिर मेरी चौड़ी छाती में समाया हुआ था.., वो काफ़ी डरी हुई थी इसलिए कुच्छ बोलने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी.., मेने भी उसे रोने दिया और उसकी पीठ सहलाते हुए उसे शान्त्वना देता रहा…!
5 मिनिट बाद उसकी रुलाई कुच्छ कम हुई.., मेने उसके कंधों से पकड़ कर अपने से अलग करते हुए कहा – मेडम आप शांत हो जाइए..,
देखिए मे रूचि का अंकल हूँ.., मुझे बताइए यहाँ आपके साथ क्या हुआ और रूचि यहाँ पढ़ने आई थी वो कहाँ है…?
उसने अपनी रुलाई पर काबू करने की कोशिश की फिर भी उसकी हिचकियाँ कम नही हो रही थी.., उन्ही हिचकियों के चलते उसने बोलना शुरू किया…!
रूचि के आने से कोई 10 मिनिट पहले मेरे दरवाजे पर किसी गाड़ी के टाइयरो की तीव्र चरमराहट की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी.., मेने सोचा कोई पड़ोस में आया होगा…!
फिर कुच्छ ही सेकेंड में उस गाड़ी के दरवाजे धड़ा धड़ करके बंद हुए जैसे कोई बहुत गुस्से और जल्दी में हो सो उत्सुकता बस मेने अपनी खिड़की से बाहर झाँक कर देखा…, देखते ही मेरी आँखें फटी रह गयी…!
इतनी ही देर में उस गाड़ी में से निकल कर 4 हट्टे कट्टे स्याह काले लिबास में लोग मेरे गेट को पार करके मेरे हॉल में घुस चुके थे.., डर के मारे मूह से आवाज़ तक नही निकली.., क्योंकि उन चारों के हाथ में बड़े ख़तरनाक किस्म के हथियार थे जो सीधे मेरी तरफ ही तने हुए थे…!
उन्हें देखते ही मेरी घिग्घी बँध गयी.., इससे पहले की मे कुच्छ बोल पाती कि उनमें से एक ने मेरे पास आकर मेरा मूह बंद कर दिया और बड़े ही ख़ूँख़ार लहजे में गुर्राया…
खबरदार जो अपने मूह से ज़रा सी भी आवाज़ निकाली तो अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठेगी..,
इतना कहकर उसने मुझे सोफे पर धकेल दिया.., मेने उठने की कोशिश की तो उसने मुझे फिर से ज़ोर का धक्का मारा और मे फिरसे औंधे मूह सोफे पर जा गिरी…! इतना बोलकर मेडम सुबकते हुए चुप हो गयी..,
उसे चुप होते देख मेने बेसब्री से पुछा… आगे बोलो.. क्या हुआ…?
वो सुबकते हुए बोली - तभी उनमें से एक बोला.., बड़ा मस्त माल है यार.., वो लड़की जबतक आएगी तबतक इसी साली के मज़े ले लेते हैं.., चल उठा ले इससे इसके बेडरूम में ले चलते हैं…!
उसकी बात सुनकर मे बुरी तरह काँप गयी.., किसी तरह मेने कांपति आवाज़ में कहा – खबरदार जो मुझे हाथ भी लगाया तो मे अभी पोलीस को फोन करती हूँ.., ये कहकर मे झटके से खड़ी हो गयी…!
लेकिन तभी उनमें से दो लोगों ने मुझे बुरी तरह जाकड़ लिया.., मेने चिल्लाना चाहा तबतक एक ने मेरा मूह दबा लिया और मुझे ज़बरदस्ती उठा कर बेडरूम में ले गये.., और फिर उन्होने….हिकच्छ..हिकच…आगे वो कुच्छ बोल नही पाई और रोने लगी…!
मेने बड़ी बेसबरी से कहा – प्लीज़ रू मत पूरी बात बताओ फिर क्या हुआ..?
वो सुबकते हुए आगे बोली.., उन्होने ज़बरदस्ती मेरे सारे कपड़े निकाल दिए और मेरे साथ वहसियों की तरह चिपट गये किसी ने मेरे गालों को चाटा.., तो कोई मेरी छातियों को मीँजने लगा तो एक मेरी टाँगों के बीच में हाथ लगाने लगा…!
इससे पहले कि वो मेरे साथ कुच्छ और करते तभी लोहे का गेट खुलने की आवाज़ आई.., मे समझ गयी रूचि ही होगी.., लेकिन अब मे उसे यहाँ आने से कैसे रोकू.., मेरे साथ जो हो रहा है सो तो हो ही रहा है..,
लेकिन वो बेचारी तो अभी मासूम बच्ची है.., उसके साथ…, ये सोचकर ही मेरी रूह तक काँप गयी.., पर कुच्छ करने की स्थिति में नही थी…!
मेने कसमसा कर बहुत कोशिश की अपना मूह छुड़ाने की लेकिन नाकाम रही तब तक रूचि हॉल में आ चुकी थी.., हॉल की स्थिति देखकर वो जल्दी से बेडरूम तक ही आ पहुँची और अंदर का मंज़र देख कर उसके मूह से चीख निकलने ही वाली थी…,
कि तभी पीछे से उनके ही एक साथी ने जो की गाड़ी में ही था चुपके से आकर हाथ में पकड़ी हुई रेवोल्वेर का हॅंडल ज़ोर्से उसके सिर पर मारा..,
उसके मूह से चीख भी नही निकल पाई उससे पहले उसने उसका मूह बंद कर दिया.., वो त्यौरकर उसकी बाहों में ही बेहोश हो गयी…!
फिर उन चारों ने मुझे यहाँ बेड पर बाँध दिया, मेरे मूह में कपड़ा ठूँसकर वो फ़ौरन रूचि के बेहोश जिस्म को कंधे पर डालकर गाड़ी तक ले गये और फिर मेने उनकी गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज़ सुनी.., धीरे धीरे वो आवाज़ दूर होती चली गयी…!
यहाँ तक मेडम के मूह से ये सब सुनकर मेरा चेहरा निस्तेज सा हो गया.., खड़े-खड़े ही मेरी आँखों की आगे अंधेरा सा छा गया…,
मेडम आगे बोली – शायद उन्हें मुझसे कुच्छ लेना देना नही था.., वो तो उसे ही लेने यहाँ आए थे.., लेकिन मेडम की वो बातें अब मेरे कानों में नही जा रही थी..,
मेने किसी तरह अपने को संभाला.., और उससे आगे सवाल किया – क्या आपने उनकी गाड़ी देखी थी…?
मेडम – हन ! वो एक काले रंग की स्कॉर्पियो थी.., जिसकी साइड में दो सुनहरी चमकीली सी पट्टियों की डिज़ाइन जैसी बनी थी…!
मे – आपने उस गाड़ी का नंबर देखा था…!
वो – नही वो मे कैसे देख पाती.., गाड़ी की साइड ही मेरे दरवाजे की तरफ थी.., और वैसे भी मुझे ज़्यादा देर मौका कहाँ मिला.., मेरे बाहर झाँकते ही तो वो आ धम्के थे अंदर…!
उसके जबाब से पहले ही मेने अपने इस सवाल को खारिज कर दिया था.., क्योंकि ऐसी कोई संभावना हो ही नही सकती थी..,
मेरे जानने लायक उसके पास और कोई इन्फर्मेशन नही थी सो मेने तुरंत कृष्णा भैया को फोन लगाया.., सारी परिस्थितियो से अवगत कराया और कुच्छ पोलीस वालों को मेडम के घर का पता नोट करवाकर यहाँ आने को कहा…
मे – देखिए.., अभी यहाँ कुच्छ पोलीस वाले आएँगे उनको आप अक्षर्स अपना ब्यान लिखवा देना.., इतना कहकर मे उसके घर से निकल गया…!
रूचि का अपहरण हुए 4 घंटे से उपर हो चुके थे.., उन गुण्डों को अब सड़कों पर खोजने का तो कोई मतलब ही नही था.., फिर भी मेने कृष्णा भैया को उस गाड़ी के डीटेल्स लिखवा दिए जिससे वो अपनी तरह से उस गाड़ी को खोजने की कोशिश कर सकें…!
मेने फोन करके घर पर भी बता दिया जोकि अब छुपाने का कोई औचित्या भी नही था.., सुनकर भाभी गश खाकर गिर पड़ी.., मेने फोन पर ही बाबूजी और भैया को समझा दिया की वो भाभी और निशा का ख्याल रखें…!
पोलीस भी अपना काम कर ही रही है.., और अब में रूचि को लेकर ही घर लौटूँगा…, इतना कहकर मेने अपना मोबाइल जेब में डाला और यौंही बिना किसी सोच विचार के मेने अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी…!
मेन सड़क से कॉलोनी के मुहाने पर एक चाय नाश्ते की दुकान थी.., मेने अपनी गाड़ी खड़ी करके उस दुकान दार से उस गाड़ी के बारे में पुछा तो उसने कुच्छ भी ना जान’ने की बात कही…!
मे निराश हताश अपने सिर पर हाथ रख कर कुच्छ देर वहीं पड़ी खाली ब्रेंच पर बैठ गया.., तभी उस दुकान पर काम करने वाला एक 12-14 साल का लड़का मेरे पास आया और बोला…
क्या बात है बाबू साब आप कुच्छ दुखी से लग रहे हैं…? कुच्छ चाइ पानी लाउ आपके लिए ?
मेने एक नज़र उस मेले कुचैले से कपड़े पहने हुए लड़के पर डाली.., मेरा दिमाग़ वैसे ही थोड़ा उखड़ा हुआ था सो मेने उसे झिड़कते हुए – अब्बे जा ना यहाँ से यहाँ साला वैसे ही दिमाग़ खराब हो रहा है, तू और आके टेन्षन दे रहा है…!
वो फिर भी वहाँ से नही हिला तो मुझे थोड़ा गुस्सा आया उसपर और मेने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे धक्का देकर अपने से दूर करने ही वाला था कि वो बोला –
मेने आपको सेठ से उस काली स्कॉर्पियो गाड़ी के बारे में पुछ्ते हुए सुना था जिसकी साइड में चमकीली पट्टियों की डिज़ाइन थी…!
मेने फ़ौरन उसको धक्का मारने की बजाए उसके कंधों पर अपने दोनो हाथ रख कर बोला – हां.., क्या तुमने देखी थी वो गाड़ी..?
लड़का – हां..! यही कोई सवा 5 का टाइम था.., और एक बात मेने नोट की थी साब..,
मेने उत्सुकता से अधीर स्वर में कहा – क्या…?
लड़का – वैसे तो उस काली गाड़ी पर गाड़े रंग के शीशे चढ़े हुए थे.., लेकिन पीछे के दरवाजे का एक काँच थोड़ा खुला हुआ था उसमें से मुझे एक आदमी की गोद में एक लड़की बैठी हुई देखी जो शायद बेहोश थी…!
मेने लपकते हुए कहा – हां..हां…! शाबास… क्या तुमने ध्यान दिया वो गाड़ी यहाँ से किस तरफ मूडी थी…?
लड़का – हां साब.., वो गाड़ी इस कॉलोने के अंदर से बड़ी तेज़ी से आई और उसी तेज़ी से वो हाइवे की तरफ जाने वाली सड़क पर मूड गयी…!
मेने लपक कर उस लड़के को अपने सीने से लगा लिया, अब वो लड़का मुझे गंदा नही लग रहा था.., मेने उसके मेल्ल से गंदे हो रहे गाल को चूम लिया और अपने वॉलेट से 500 के दो नोट निकाल कर उसकी हथेली में थमाए और तेज़ी से अपनी गाड़ी की तरफ लपक लिया…!!!
रात के 10 बज चुके थे.., मे दिल्ली कानपुर हाइवे पर अपने शहर से काफ़ी दूर निकल आया था.., 5 घंटे बाद उस गाड़ी का नामोनिशान मिलना तो मुश्किल ही था लेकिन एक निशान देहि के तौर पर मुझे लगा कि वो लोग रूचि को किडनप करके अपने ही शहर में तो नही होंगे…!
रात गहराती जा रही थी.., बस आते-जाते वहाँ ही दिखाई दे रहे थे.., आयेज एक बड़ा शहर आने वाला था जिसके पहले सड़क पर एक जंक्षन था.., मेन हाइवे का बाइपॅस और एक रोड जो शहर के अंदर जा रहा था..!
मे कुच्छ देर गाड़ी वहीं खड़ी करके सोचने लगा..,
हो सकता है किडनेपर इसी शहर में गये हों.., लेकिन फिर अपने ही विचार को खारिज करके सोचा कि वो शहर के अंदर क्यों ले जाएँगे..?
अगर तो उन्होने रंजिश के तहत रूचि को उठाया है तो…तो.. , कहीं ये साला रॉकी और उसके बाप की करतूत तो नही…?
ये विचार आते ही मेने फ़ौरन कृष्णा भैया को फोन लगाया और विक्रम राठी और उसके लौन्डे को धर दबोचने के लिए कहा…!
भैया ने पुछा भी कि मे इस वक़्त कहाँ हूँ..तो ना जाने क्यों मेने अपनी लोकेशन उनसे छुपा ली.., ये बात मेरी खुद भी समझ में नही आई…
फिर मेने उनसे पोलीस कार्यवाही का अपडेट लिए तो उन्होने बताया – पोलीस उस मेडम का स्टेट्मेंट ले चुकी है.., पूरे शहर की नाका बंदी कर दी है.., शहर में उस तरह की गाड़ियों की चेकिंग शुरू कर दी गयी है…!
कृष्णा भैया से बात करने के बाद में गाड़ी से बाहर आया, पेशाब जोरों से लगी थी सो रोड साइड में ही जीप खोलकर खड़ा हो गया..,
शायद आज पूनम के बाद की चतुर्थी या पंचमी होगी, धीरे धीरे चंद्रमा पूर्व से निकलता आ रहा था और रात की काली स्याह चादर कम होती जा रही थी…
झाड़ियों में कहीं कहीं जुगनू चमक रहे थे.., झींगुरों की आवाज़ें कानों में पड़ रही थी..बस इतना ही.., ऐसे में मे दिशाहीन खड़ा सोच रहा था कि अब यहाँ से किधर जाउ…?
ना जाने क्या सोचकर मेने बाइ पास पर जाने का फ़ैसला लिया…, गाड़ी में बैठा स्टार्ट की और गियर डालकर गाड़ी बाइपास पर आगे बढ़ा दी..., गाड़ी की स्पीड तो स्लो थी लेकिन मेरे दिमाग़ में चल रहे विचारों का बबन्डर काफ़ी तेज था..!
शहर के बराबर में एक चौराहा आया.., जहाँ से एक रास्ता जिससे मे अभी आया था, दूसरा मेरे बायें तरफ शहर के अंदर जाने वाला.., सामने लंबा चौड़ा वही हाइवे.., और दाए तरफ दूसरे पड़ौसी राज्य को जाने वाली सड़क…!
मे अब उस चौराहे से पहले ही गाड़ी रोक कर खड़ा हो गया.., इधर उधर रोशनी बिखरी हुई थी.., हाइवे के दोनो तरफ खाने के ढाबे.., टाइयर पंचर की दुकानें.., गाड़ियों के मेकॅनिक्स की दुकानें भी थी…!
कुच्छ सोचकर मेने अपनी गाड़ी रॉंग साइड पर दो सड़कों के कॉर्नर वाले ढाबे के आगे जाकर खड़ी कर दी…!
रात बहुत हो चुकी थी.., टेन्षन था लेकिन पेट को खाना भी ज़रूरी था.., सो मे उस ढाबे के आयेज पड़ी चारपाइिओं में से एक पर बैठ गया…!
आस पास की चारपाइयों पर और लोग भी बैठे खाना खा रहे थे.., जिनमें ज़्यादातर तो ट्रक ड्राइवर ही थे.., और भला इतनी रात में हाइवे साइड कों खाना खाने आने वाला था यहाँ…!
मेरे बैठते ही एक 15-16 साल का लड़का पानी का जग मेरे सामने रख गया.., एक दूसरा आदमी आकर खाने का ऑर्डर ले गया..,
कुच्छ देर में खाना भी आ गया मखनी दाल और बटर तंदूरी रोटी.., जो इस तरह के ढाबों की खास रेसिपी होती है.., और वाकई में शहर के शानदार होटेलों से कहीं अधिक स्वादिष्ट भी होता हैं खाना…!
खाना अच्छा तीखा था.., लेकिन मेरा मन नही हो रहा था खाने का.., बेमन से बस ज़बरदस्ती मूह चला रहा था.., मुझे इस तरह बेमन से खाना खाते देख वो पानी वाला लड़का मेरे पास आया और पीछे हाथ जोड़कर मेरे पास खड़ा होकर बोला…!
क्या बात है साब.., खाना अच्छा नही बना.., कुच्छ और लेकर आउ….?
उसे देखकर मुझे शहर वाले लड़के की याद आगयि, मेने उसे गौर से देखा.., उमर के हिसाब से मध्यम कद काठी वाला लड़का मेहनत कश मजबूत हाथ पैर वाला लगा मुझे…!
मेने ऐसे ही उसे पुच्छ लिया…, यहाँ काम करते हो.., इस उमर में..? इस उमर में तो तुम्हें पढ़ने लिखने के लिए कॉलेज जाना चाहिए..!
वो लड़का अपनी बेबसी पर सिर झुका कर बोला – हर किसी के नसीब में पढ़ना लिखना नही होता बाबूजी.., एक अनाथ बालक अपना पेट पाल ले वो भी कहाँ कम है इस महगाई के जमाने में…!
ना जाने क्यों उस लड़के के शब्दों ने मुझे अंदर तक झक-झोर दिया.., अपने हाथ आगे कर लड़के की बाजुओं को पकड़ा और उसके चेहरे पर नज़र गढ़ा कर उसे बड़े प्यार से पूछा – तुम अनाथ हो….?
लड़का – हां बाबूजी… बलिया ज़िल्ले के एक गाँव में मेरा पूरा परिवार था.., माँ, बाप, भाई और एक प्यारी सी बेहन…, जो मुझे बहुत प्यारी थी…बोलते बोलते लड़के की आँखें भीग गयी और उसके गले से एक हिचकी निकल गयी…!
मे – अब कहाँ गये वो सब..?
लड़के ने किसी तरह अपनी रुलाई पर काबू करते हुए कहा – सब बह गया बाढ़ (फ्लड) में …बाबूजी…, किसी तरह में बच गया और भटकते भटकते रोटी की तलाश में यहाँ तक पहुँच गया.., यहाँ सेठ को मुझ पर दया आ गयी और मुझे काम पर रख लिया…!
मे – क्या नाम है तुम्हारा..?
ललित … ललित कुमार चौरसिया नाम है बाबूजी हमारा…, माँ प्यार से मुझे लालिया…लालिया कहती थी…हीकच…!