Update 12
ललित – आप कहें तो दीदी को मे अपने कंधे पर उठा लूँ..?
मे – अरे नही.., तुम अभी बच्चे हो.., इतना वेट लेकर नही चल सकोगे..!
ललित – क्या बात कर रहे हैं आप.., मेने इनके बजन से भी ज़्यादा बजन उठाया हुआ है.., खैर कुच्छ देर यहीं कहीं रुक लेते हैं..,
वैसे अब इतना ख़तरा भी नही रहा.., उपर से रात के इस पहर में जंगल जानवर भी बाहर नही निकलते.. इन्सानो की तो बात ही छोड़ो…!
एक समतल सी जगह देख कर मेने रूचि को ज़मीन पर लिटा दिया.., मे अपने आप से विचार करने लगा - पता नही उस बेचारी के साथ ऐसा क्या हुआ होगा जो वो अभी तक बेहोश है..? कहीं इससे ड्रग्स बगैरह का ज़्यादा डोस तो नही दे दिया…?
नही..नही… ऐसा लगता तो नही.., ज़रूर कोई तगड़ा सदमा पहुँचा होगा या लड़ते लड़ते या भागते भागते बेचारी ज़्यादा थकान की वजह से बेहोश हो गयी होगी..,
मे अपने विचारों को इस बात से दूर ही रखना चाहता था कि उसके साथ कुच्छ ग़लत हुआ होगा.., पर असल में क्या हुआ है वो तो अब ये होश में आने के बाद ही बता सकती थी…!
मे मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था.., हे भगवान मेरी बच्ची के साथ कुच्छ ऐसा वैसा ना हुआ हो..,
तभी ललित की आवाज़ ने मेरी सोचों को विराम दे दिया.., भैईयाज़ी वो देखिए.., किसी वहाँ की हेड लाइट दिख रही है.., शायद हम सड़क से ज़्यादा दूर नही है.., उसकी खुशी से भरी आवाज़ सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई…!
मेने खुशी के मारे ललित को खींचकर अपनी छाती से लिपटाते हुए कहा – हां ललित.., भगवान का शुक्र है हम सही रास्ते पर हैं.., पर शायद घूमकर आने की वजह से समय ज़्यादा लग गया है..,
चलो अब अपनी गाड़ी को ढूढ़ते हैं.., ये कहकर मेने रूचि को फिरसे अपनी गोद में उठा लिया.., ललित मेरे आगे चलने लगा और मे फिर एक बार उसके कदमों का अनुसरण करते हुए चलने लगा…!
गाड़ी की लोकेशन ढूँढने में भी हमें काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी.., सीधे सीधे हम जंगल के रास्ते से उस तक नही पहुँच पाए..,
पहले हमें सड़क पर आना ही पड़ा..! फिर सड़क से हमने उस जगह को तलाश किया जहाँ से हमने उसे नीचे उतारा था.., इस तरह बहुत मुश्किल से हमने अपनी गाड़ी को खोज निकाला, शुक्र था वो वहीं सही सलामत खड़ी मिली…!
मेने रूचि को पीछे की सीट पर लिटाया, वो सीट से लुढ़क ना जाए इसलिए ललित को भी मेने उसके पास पीछे बिठा दिया..,
उसने उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया.., मे गाड़ी बॅक करके जैसे तैसे सड़क तक लाया और फिर गाड़ी हाइवे की तरफ दौड़ा दी…!
चंबल का ब्रिड्ज पार करते करते रात के ढाई बज रहे थे.., शुक्र था चौकी पर मौजूद पोलीस वाले अंदर ही थे..,
चोकी के अंदर से बस एक टॉर्च का फोकस हमारी चलती गाड़ी पर पड़ा, मेने चंबल का ब्रिड्ज पार करके अपने राज्य की सीमा में आकर राहत की साँस ली…!
लेकिन शायद मुशिबत हमारा इतनी जल्दी पीछा छोड़ने वाली नही थी.., नदी के पुल से अभी हम कुच्छ ही दूर आए थे कि गाड़ी दो-चार झटके खाकर बंद हो गयी..,
मेने फ्युयेल मीटर पर नज़र डाली और अपना माथा ठनका.., ये साला डीजल को भी अभी ख़तम होना था…!
झटका लगते ही पीछे की सीट पर बैठकर ओंघ रहे ललित की भी आँखें खुल गयी.. और उसने अलसाए स्वर मे पुछा – क्या हुआ भैईयाज़ी..? गाड़ी क्यों रोक दी आपने..?
मेने झुँझलाकर स्टेआरिंग पर हाथ मारते हुए कहा – साला डीजल ख़तम हो गया यार.., अब यहाँ हाइवे से पहले तो शायद कोई पेट्रोल पंप भी नही देखा था मेने.., इतनी रात को कोई ट्रक वग़ैरह वाला भी डीजल नही देगा हमें…!
ललित ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा – अब क्या होगा..? सुबह तक गाड़ी को यौं सड़क पर खड़ा रखना भी ठीक नही है.., मान लो वो बदमाश ही दीदी को खोजते खोजते इधर आ निकले और उन्होने गाड़ी की तलाशी ली तो..?
मे भी वही सोच रहा हूँ मेरे भाई.., मेने बेचैनी भरे स्वर में कहा…, फिर कुच्छ देर बाद मे बोला.., अरे हां याद आया.., तुम्हें याद है, कल सुबह हम यहीं कहीं फारिग हुए थे..!
ललित - हां तो उससे क्या लेना देना… ?
मे – वो छोड़ो.., क्या तुम अंदाज़ा लगा सकते हो, कोई ऐसी पहचान जिससे ये पता लग सके कि हम उस जगह से कितने आगे या पीछे हैं..?
ललित कुच्छ देर अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालकर सोचने लगा लेकिन कोई भी ऐसा क्लू उसको भी याद नही आरहा था जिससे उस जगह की कोई निशान देहि हो सके…!
फिर कुच्छ सोचकर उसने रूचि का सिर बड़े एहतियात से अपनी गोद से उठाकर गाड़ी की सीट पर रखा और गेट खोलकर बाहर सड़क पर आकर उसने अपने हाथ उपर करके एक अंगड़ाई ली..!
हाथ उपर किए अंगड़ाई लेते हुए ही उसने अपने सिर को इधर उधर घुमाया और फिर अचानक से वो खुशी से उच्छल पड़ा……!!!!
अरे हाँ भैईयाज़ी…याद आया.., वो देखिए हमारे पीछे सड़क से करीब एक फरलॉंग दूर वो भट्टे की चिमनी दिख रही है आपको…?
मेने उधर देखते हुए कहा – हां दिख तो रही है लेकिन उससे तुम्हारा क्या मतलब है..?
ललित – मुझे गाड़ी में सोता छोड़कर जब आप फारिग होने चले गये थे.., उसके कुच्छ देर बाद ही किसी गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी थी…!
अभी मेने अपनी आखों को मींजकर सामने देखा ही था कि मुझे दूर से ही वो काली स्कॉर्पियो गाड़ी दिखी थी.., उसे देखते समय ही मेने इधर उधर भी देखा और मुझे वो चिमनी दिखी थी.., इसका मतलब हम उस जगह से बमुश्किल आधा किमी भी दूर नही हैं…!
मेने ललित की समझ बूझ और उसकी याददास्त की दाद देते हुए उसे फिर एक बार अपने सीने से लगा लिया.., वाह बेटे आज तुमने मेरा कितना साथ निभाया है.., तुम्हारी जितनी तारीफ़ की जाए कम है…,
आज तूने मुझे बिन मोल खरीद लिया मेरे बच्चे..!
ललित भी किसी अबोध बच्चे की तरह मेरे अंकपाश में लिपट’ते हुए बोला – मुझ अनाथ को सहारा देकर अपना लिया है आपने उसके आगे तो ये कुच्छ भी नही है भैईयाज़ी.., अब तो आप ही मेरे भगवान हो…!
मेरी आँखों से दो बूँद खारे पानी की टपक कर ललित के घने बालों में गुम हो गयी.., मेने उसे और ज़ोर से कसते हुए भर्राये स्वर में कहा – मुझे इतने ऊँचे पद पर मत बिठा पगले…,
अभी तो मे तेरे लिए कुच्छ कर भी नही पाया हूँ, उससे पहले ही तूने मुझे अपने एहसानो के बोझ तले दबा दिया…!
मेरी बात सुनकर ललित भी फफक कर रो पड़ा – ऐसा मत कहिए भैईयाज़ी.., मे तो अपने भगवान के पीछे पीछे इसलिए चल पड़ा था कि कहीं वो अपने भक्त को भूल ना जायें, चाहें तो इससे मेरा स्वार्थ भी कह सकते हैं…!
मे - इस उमर में इतनी गहरी बातें.., ज़रूर तेरे माता पिता महान रहे होंगे.., जिन्होने तुझे ऐसे संस्कार दिए है..,
रो मत मेरे बच्चे.., मे वादा करता हूँ, तूने अपने जीवन में जो भी तमन्नाएँ की होंगी मे उन सबको पूरा करने की पूरी कोशिश करूँगा…!
अब चल तूही बता हमें किधर चलना है.., लेकिन हन उससे पहले इस गाड़ी को किसी तरह सड़क के किनारे लगाना होगा, वरना कोई एडा गाड़ी वाला नशे या नींद के झोंके में इसे उड़ाकर चला गया तो हमारे लिए और बड़ी मुशिबत खड़ी हो जाएगी…!
फिर हम दोनो ने मिलकर किसी तरह से अपनी कार को सड़क के किनारे लगाया.., मेने रूचि के अचेत शरीर को कंधे पर डाला और ललित के पीछे पीछे चल पड़ा…!
आज सच में ये 15-16 साल का लड़का मेरे लिए भगवान का वरदान साबित हुआ था.., इसने अपनी समझ बूझ से कदम कदम पर मेरा साथ ही नही दिया था.., बल्कि मेरा उचित मार्गदर्शन भी किया था…!
कुच्छ देर में ही हम उस तालाब के पास में थे जहाँ से मंजरी का वो झोंपड़ी नुमा मकान दिखाई दे रहा था.., मेने इशारा करके ललित को बोला – देख हमें उस झोंपड़ी तक जाना है…!
वो बिना कोई सवाल किए उस तरफ चल दिया.., दो-तीन खेतों को पार करके हम उस झोंपड़ी नुमा मकान के सामने थे.., सुबह के साढ़े तीन - चार बजने वाले थे जब हमने उसके घेर जैसे लकड़ी के डंडों से घिरे परकोटे में कदम रखा…!
हमारे कदमों की आहट पाकर वहाँ सो रहा एक कुत्ता भोंकने लगा.., घेर में बँधे जानवर भी उठकर खड़े होने लगे.., तभी हमें एक अलग थलग सी झोंपड़ी से किसी महिला की आवाज़ सुनाई दी…!
अरे इतनी रात को काहे भोंक रहा है रे शेरू…, कॉन्सा छविराम दिखाई दे गया मुए को..?
तभी शायद वो महिला ने जोकि मंजरी की सास थी हमारे कदमों की आहट भी सुन ली होगी और उसने पुकारा.., कॉन.. ?? कॉन है बाहर…? अरे रामुआ… मंजरी…, देख तो कॉन है बाहर.., कहीं कोई चोर उचक्का तो नही घुस आया…?
कुत्ता शेरू लगातार हमारे उपर भोंके जा रहा था.., ललित ने उसे पूचकार कर चुप कराने की कोशिश की लेकिन अंजान लोगों को देख कर उसके स्वर और तेज हो गये.., इतने में ही दूसरी झोंपड़ी से एक मर्द की आवाज़ आई…!
अरे कॉन है भाई.., आवाज़ दो वरना कुत्ता काट लेगा.., ये कहते हुए वो आदमी जिसे उसकी माँ ने रामुआ कहकर बुलाया था.. अपनी झोंपड़ी से बाहर आया.., और हमें देखते ही कड़क आवाज़ में बोला –
कॉन हो तुम.., इतनी रात को यहाँ क्या कर रहे हो.., और ये तुम्हारे कंधे पर कॉन है..?
अपने मालिक को हमसे बात करते देख उसका कुत्ता थोड़ा शांत हुआ और रामुआ के पास जाकर अपनी पूंच्छ हिलाने लगा …!
अभी मे कुच्छ बोलने ही वाला था कि तभी मंजरी भी बाहर आगयि.., चाँदनी रात में उसने मुझे फ़ौरन पहचान लिया और आगे आकर बोली – अरे बाबूजी आप.., और ये आपके कंधे पर कॉन है…??
कहीं ये वो ही तो नही जिसे किसी दूसरे आदमी से उठवाने की बात कर रहे थे..?
मेने मंजरी को इशारे से अपने पास बुलाया और धीरे से उससे कहा – यहाँ बाहर खड़े होकर ज़्यादा देर बातें करने से अच्छा रहेगा इस बच्ची को पहले कहीं लिटा दें, ये बेचारी बेहोश है…!
मंजरी – हां..हां.. आइए.. अंदर ले आइए इसे, तभी रामुआ ने फुसफुसा कर उससे कुच्छ कहना चाहा तो उसने इशारे से उसे चुप रहने के लिए कहा..,
वो शायद बीवी का गुलाम था.., अपनी बीवी के इशारा करते ही मानो उसने अपने मूह पर अलीगढ़ का मोटा सा ताला लटका लिया..!
मेने झोंपड़ी के अंदर जाकर रूचि को उसी बिस्तेर पर लिटा दिया जिसपर कुच्छ देर पहले मजरी और उसका पति सो रहे थे.., उनका दो साल का बच्चा अभी भी वहाँ सो रहा था…!
मंजरी ने लालटेन जलाकर झोंपड़ी में लाइट का प्रबंध कर दिया.., तभी वहाँ एक 45-46 साल की महिला ने प्रवेश किया और आते ही वो मंजरी से बोली – कॉन है रामुआ की बहू..?
ये शहरी बाबू हैं.., मुझे कल सड़क पर मिले थे.., कुच्छ पता ठिकाना पूछ रहे थे.., सो जान पहचान हो गयी.., अब आगे इनके साथ क्या हुआ है ये तो यही बताएँगे…!
मेने एक बार मन ही मन विचार किया.., इन लोगों को सच बताउ या नही.., आख़िर मेने सच बताने का ही फ़ैसला किया जिससे इन लोगों को विश्वास में लिया जा सके…!
मेने मंजरी की सास को संबोधित करते हुए कहा – ये मेरी भतीजी है माजी.., इसको कुच्छ लोगों ने अगवा कर लिया था…, और यहाँ चंबल पार ले आए…!
मेने किसी तरह से सुराग लगाकर यहाँ तक उनका पीछा किया.., इसी दौरान कल सुबह सड़क के पास वाले तालाब के पास मेरी मंजरी जी से जान पहचान हो गयी थी…!
ईश्वर की कृपा से मेरी बच्ची तो मुझे वहाँ के जंगलों में मिल गयी.., लेकिन बेहोश हालत में.., पता नही इसके साथ ऐसा क्या हुआ है कि ये अभी तक बेहोश है…!
मंजरी की सास मेरी बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी.., उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे मेरी बातों पर विश्वास हो रहा है.., और उसकी संवेदना रूचि के साथ दिखाई दे रही थी…!
वो लालटेन अपने हाथ में पकड़ कर रूचि के पास आकर बैठ गयी.., उसने लालटेन की रोशनी उसके चेहरे पर डाली और बड़े ध्यान से उसके चेहरे को देखने लगी…!
उसके चेहरे को ध्यान पूर्वक देखने के बाद वो मेरी तरफ मुखातिब होते हुए बोली – बच्ची किसी बहुत बड़े सदमे का शिकार हुई है बेटा.., इसका जल्द से जल्द होश में आना ज़रूरी है…!
ज़रा इधर आओ.., और ध्यान से देखो.., इसके चेहरे पर अभी भी किसी डर की परच्छाई साफ-साफ देखने को मिल जाएगी तुम्हें..,
मेने भी अभी पहली बार रूचि के चेहरे को ध्यान पूर्वक देखा था.., चाँदनी रात में अभी तक मे उसे ठीक से देख भी नही पाया था.., उस महिला की बात सही थी.., रूचि के चेहरे पर अभी तक डर के भाव विद्यमान थे…!
मेने उससे कहा – आप ठीक कह रही हैं.., ना जाने ये कितनी देर से बेहोश है.., शहर तक पहुँचने में तो और ना जाने कितना वक़्त लगेगा.., यहाँ आस पास तो कोई डॉक्टर भी नही मिलेगा…!
मंजरी की सास मुझे दिलासा देते हुए बोली – फिकर मत करो बेटा…, भगवान ने चाहा तो बच्ची जल्दी ही होश में आ जाएगी….!!!
मे जानता था कि रूचि की बेहोशी लंबी है, ना जाने कब्से वो बेहोश है ऐसे मे मंजरी की सास खाली झूठी दिलासा देकर मेरे मन को बहलाने का प्रयास भर कर रही है…!
बाहर सुबह का ढुँधलका छाने लगा था.., पौ फट रही थी.., मंजरी की सास मुझे एक सुलझी हुई समझदार महिला लगी लेकिन वो इस मामले में हमारी कोई मदद कर पाएगी ये मुझे लग नही रहा था…!
मे बाहर खुले में आकर जानवरों के चारा खाने वाली एक कच्ची नाली जैसी लाढामनी पर आकर बैठ गया.., ललित भी मेरी बगल में ही बैठा था, मंजरी का पति जानवरों को चारा बगैरह डालने में व्यस्त हो गया…!
तभी मंजरी की सास लालटेन लेकर उस झोंपड़ी से बाहर आई.., और पास ही की सब्जियों की क्यारियों में से कुच्छ पत्तियाँ सी तोड़ने लगी…!
एक मुट्ठी भर हरी पत्तियाँ जैसी लेकर वो अपने सोने वाली झोंपड़ी में गयी.., वहाँ उसने पता नही उसमें और क्या क्या मिक्स किया और कुच्छ देर बाद उसकी झोंपड़ी से कुच्छ कूटने जैसी आवाज़ें आने लगी…!
कोई आधे घंटे बाद वो एक कटोरी में कुच्छ रस जैसा निकाल कर लाई.., तबतक मंजरी ने मिट्टी के चूल्हे पर थोड़ा सा पानी गरम कर दिया और अब वो रूचि के चेहरे और बालों को एक साफ से कपड़े से पोंच्छ रही थी…!
उत्सुकता बस मे भी उसके पीछे पीछे झोंपड़ी के अंदर चला गया..!
पहले मंजरी और उसकी सास ने गाय के शुद्ध घी से रूचि के माथे और पैर के तलवों की मालिश की.., फिर थोड़ा सा घी उस रस वाली कटोरी में डालकर मिक्स कर दिया…!
अब वो बूँद बूँद करके उस रस को रूचि की नाक में डालने लगी.., साथ साथ में मंजरी उसके पैर के तलवे और हाथों को भी घी लगाकर मलते जा रही थी…!
कभी कभी नाक से साँस के द्वारा जोकि बहुत ही हल्की हल्की सी चल रही थी.., उस रस के बुलबुले से वापस वहर आ जाते थे.., इसी कोशिश में लगभग 20-25 मिनिट निकल गये.., लेकिन अब रूचि की साँसें कुच्छ तेज होने लगी थी..,
जिन्हें देखकर उस गुणी महिला के चेहरे पर आत्मा विश्वास के भाव गहराते जा रहे थे.., ये देखकर अब मुझे भी कुच्छ उम्मीद सी नज़र आने लगी थी.., उस रस का प्रभाव उसके अवचेतन दिमाग़ पर पड़ना शुरू हो रहा था…!
जब रूचि की साँसें तेज हो गयी तो उस महिला ने एक बार रस डालकर उसकी नाक को अपनी उंगलियों से दबा लिया…, कोई 15-20 सेकेंड में ही रूचि का दम घुटने लगा और वो उठकर बैठ गयी.., उस महिला ने फ़ौरन उसकी नाक छोड़ दी.., रूचि अब ज़ोर ज़ोर से खांस रही थी…!
मंजरी की सास उसकी पीठ पर हल्के हाथ से धौल मारने लगी.., कुच्छ ही पलों में रूचि पूरी तरह होश में आ गयी.., मुझे अपने सामने देखकर वो मेरे गले से लिपटे हुए एक साथ रोते हुए चीख पड़ी…!
चाचू… संजू मामा…, संजू मामा को बचा लो चाचू…., इतना कहकर वो मेरे गले से लिपटकर फुट फुट कर रोने लगी.., मेने भी उसे अपने से चिपटा कर उसकी पीठ सहलाने लगा.., लेकिन दो मिनिट बाद वो फिरसे एक दम से शांत पड़ गयी…!
मेने उसे अपने से अलग करके देखा.., उसकी आँखें बंद हो चुकी थी.., मेने आश्चर्य के साथ मंजरी की सास की तरफ देखा –
उसने मुझे हौसला देते हुए कहा – इसका डर बहुत अंदर तक बैठ गया है बेटा.., चिंता मत करो.., जल्दी ही फिरसे होश में आ जाएगी.., तुम बाहर जाकर दिशा मैदान होलो.., मे इसकी देखभाल रखूँगी…!
मे बेमन से झोंपड़ी से बाहर आगया.., मेरे पीछे पीच्चे मंजरी भी आगयि.., मुझे एक पानी से भरा लोटा पकड़ाते हुए बोली – जाओ बाबू यहीं खेतों में दिशा मैदान हो आओ…!
अब आप चिंता मत करो.., मेरी सास देशी नुश्कों की बहुत अच्छी जानकार हैं.., दूर दूर से लोग इनसे इलाज कराने आते हैं.., आपकी भतीजी अब एकदम सही हो जाएगी…!
मंजरी की बात से अब मे कुच्छ आस्वस्त होने लगा था.., लोटा हाथ में लेकर मे पास के खेतों में ही दिशा मैदान के लिए चल पड़ा.., ललित भी उस तालाब की तरफ जा चुका था…!
कल से हमने कुच्छ खाया पीआ भी नही था.., लेकिन फिर भी फ्रेश होना भी ज़रूरी था…, शौच करते समय मुझे रूचि के कहे हुए शब्द याद आगये…!
रूचि ने संजू के बारे में क्यों कहा…, क्या संजू भी इन बदमाशों की क़ैद में है..? क्या उसकी जान को कोई ख़तरा है..? कहीं ऐसा तो नही कि उसने ही रूचि को किसी तरह वहाँ से निकाला हो और खुद फिरसे उनके चंगुल में फँस गया हो…!
इन्ही सब विचारों के चलते मुझे लेटरीन भी नही आई.., किसी अनिष्ठ की आशंका ने मेरे दिमाग़ पर कब्जा कर लिया था…!
ना जाने कितनी देर में वहीं खेत में बैठा सोचता रहा.., फिर जब बैठे बैठे मेरे पैर अकड़ने लगे तो मे वहाँ से उठकर अपना पॅंट पहनते हुए मंजरी के घर की तरफ आने लगा…!
उसके घर के नज़दीक तक आते आते मुझे झोंपड़ी के अंदर से रूचि के सुबकने की आवाज़ सुनाई दी.. मे लपक कर उस झोंपड़ी की तरफ बढ़ा.., लेकिन तभी मंजरी ने मुझे रोक कर कहा…!
उससे अब अच्छे से होश आ चुका है.., थोड़ी देर रो लेने दो उसे.., मगज हल्का हो जाएगा.., तब तक आप हाथ मूह धो लो.., मे आपके लिए चाय का इंतेज़ां करती हूँ.., ये कहकर उसने वही बाजू में बाल्टी से पानी लाकर मेरे गंदे हाथ साफ करवाए एक लोटे में पानी लेकर मेने अपना मूह अंदर बाहर से सॉफ किया..!
तभी उसने अपनी कॉटन साड़ी का पल्लू मेरी तरफ कर दिया.., मेरी इतनी फिकर करते देख मेरा दिल मंजरी के लिए प्यार से उमड़ पड़ा.., उसके आँचल से अपने गीले हाथ पोन्छ्कर मेने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और उसके पतले-पतले लेकिन खुश्क होठों पर एक चुंबन लेकर कहा…!
शायद भगवान ने मुझे तुम लोगों के पास आने के लिए ही प्रेरित किया होगा.., तभी तो मेरी गाड़ी का डीजल यहीं आकर ख़तम हुआ.., और तुम्हारी सास तो मेरे लिए फरिश्ता ही साबित हुई…!
मंजरी ने मेरी बाहों में कसमसाते हुए कहा – जब दिलों में मिलने की लौ लगी हो तो उपरवाला किसी भी तरह मिला ही देता है.., अब छोड़िए मुझे..और जाकर अपनी बिटिया को संभालिए.., मे वहीं आप लोगों के लिए चाइ बनाकर लाती हूँ…!
नेकदिल मंजरी इस समय मुझे दुनिया की तमाम औरतों से कहीं बढ़कर नज़र आ रही थी.., मेने उसे अपनी बाहों से आज़ाद करते हुए उसके चूतड़ के उभार को सहलाया..!
वो मुस्कराती हुई एक नीचे छप्पर वाली झोंपड़ी की तरफ बढ़ गयी.., जहाँ उसका रसोईघर था.., और मे मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देता हुआ अपनी बिटिया की तरफ बढ़ गया..!
झोंपड़ी में घुसते ही रूचि अपनी जगह से खड़ी हुई और दौड़कर मेरे सीने में समाते हुए फिरसे फुट फुट कर रोने लगी..!
नेकदिल मंजरी इस समय मुझे दुनिया की तमाम औरतों से कहीं बढ़कर नज़र आ रही थी.., मेने उसे अपनी बाहों से आज़ाद करते हुए उसके चूतड़ के उभार को सहलाया..!
वो मुस्कराती हुई एक नीचे छप्पर वाली झोंपड़ी की तरफ बढ़ गयी.., जहाँ उसका रसोईघर था.., और मे मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देता हुआ अपनी बिटिया की तरफ बढ़ गया..!
झोंपड़ी में घुसते ही रूचि अपनी जगह से खड़ी हुई और दौड़कर मेरे सीने में समाते हुए फिरसे फुट फुट कर रोने लगी..!
मेने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – बस बेटा.., अब मे आगया हूँ ना.., अब यहाँ तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नही है.., आओ यहाँ इश्स बिस्तर पर बैठो.., और मुझे सारी बात तफ़सील से बताओ जो भी कुच्छ हुआ था तुम्हारे साथ…?
और तुमने संजू का जिकर क्यों किया…? क्या वो भी वहीं है..?
ये कहकर मे उसे अपने से चिपकाए हुए बिस्तर तक लाया.., हम दोनो बिस्तर पर आकर बैठ गये.., वो कुच्छ देर और हिचकियाँ लेती रही..,
कुच्छ देर बाद मंजरी की सास और ललित भी वहीं आगये, उसका पति रामू दूध निकाल कर गाँव में बाँटने चला गया था, तब तक मंजरी हमारे लिए चाइ भी ले आई..!
चाइ पीते पीते रूचि ने अपनी आप बीती बताना शुरू किया…!
रूचि की आपबीती…….,,,,,,,,,,,,,,,
रूचि अब संयत हो चुकी थी.., मेरे सीने से लगकर रोने से उसके अंदर का गुबार और जो डर उसके दिलो-दिमाग़ में घर कर गया था वो अब काफ़ी हद तक निकल चुका था..,
दो मिनिट शांत रहने के बाद उसने बोलना शुरू किया..,
मे जब मेडम के घर के अंदर पहुँची और जैसे ही मेने उनके ड्रॉयिंग रूम की हालत देखी मुझे कुच्छ गड़बड़ की आशंका हुई.., एक बार सोचा की चुपचाप लौट चलूं क्योंकि अमूमन वो मुझे ड्रॉयिंग रूम में ही बैठी मिलती थी..,
लेकिन तभी उनके बेडरूम से मुझे कुच्छ आवाज़ें आती सुनाई दी.., मेने बिना देर किए उन्हें आवाज़ लगाई.., लेकिन कोई जबाब नही मिला.., उल्टा जो आवाज़ें आ रही थी वो भी थम गयी…!
मे उत्सुकतासे जैसे ही उनके बेडरूम के गेट पर पहुँची जो कि खुला हुआ ही था.., अंदर का नज़ारा देखकर मेरे होश उड़ गये.., मेडम पलंग पर बिना कपड़ों के बँधी पड़ी थी और 4-4 बदमाश उनके बेपर्दा शरीर के साथ खेल रहे थे.., उन्हें बुरी तरह से नोच खसोट रहे थे…!
कुच्छ देर तो मेरे मूह से कोई आवाज़ भी नही निकल सकी.., लेकिन जब मेने अपनी पूरी शक्ति बटोरकर जैसे ही कुच्छ बोलने की कोशिश की, तभी पीछे से मेरे सिर पर किसी ठोस चीज़ की एक भरपूर चोट पड़ी और मे वहीं खड़े-खड़े अपने होश गँवाती चली गयी.., मुझे कोई होश नही रहा…!
करीब रात 10 बजे जब मुझे होश आया तो मेने अपने आप को एक कमरे में एक बिस्तर पर पड़े हुए पाया…!
मेरे हाथ पैर रस्सियों से बँधे हुए थे.., दो औरतें जो 20-22 साल की रही होंगी मेरे पास बैठी थी.., होश में आते ही मेने अपने शरीर को हिलाने की कोशिश की लेकिन बंधन इतने कसे हुए थे कि मे अपने हाथ पैरों को हिला भी नही पा रही थी…!
मुझे होश में आया हुआ देखकर उनमें से एक बोली – रुखी देख ये होश में आगयि.., जा जाके वहीदा आपा को बुला ले.., वो ही बताएगी.., अब इसके साथ क्या करना है…!
उसकी बात सुनकर वो वहाँ से उठकर चली गयी, तभी उस दूसरी ने मेरे शरीर पर हाथ फेरते हुए कहा – आअहह…क्या कच्चा माल है.., काश मे लड़का होती तो अभी यहीं तुझे पटक कर च….., कहते कहते रूचि चुप हो गयी…!
मे समझ सकता था कि वो क्या कहने वाली थी.., लेकिन संस्कारबस वो बात नही कह पाई जो कहना चाहती थी….,
कुच्छ देर बाद वो फिर बोलने लगी..- कोई 15 मिनिट के बाद वो लड़की एक 26-28 साल की थोड़ी भरे बदन की औरत जो शायद वहीदा ही थी उसके साथ उस कमरे में आई.., तबतक वो रंडी.. कुतिया मेरे शरीर के साथ खेलती ही रही…!
फिर जैसे ही वो दोनो अंदर आई.., वो मेरे पास से उठ गयी और उसकी जगह वहीदा आकर मेरे पास बैठ गयी…!
वो कुच्छ देर मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखती रही.., तभी वो तीसरी जो मेरे पास ही रह गयी.., वो बोली – आपा ! देखा क्या मस्त कड़क लौंडिया है.., इसे तो अपने हीरो से चू…*** दो… खुश हो जाएगा और बदले में साला हमें भी जमकर चो…. खुश कर देगा…!
उसकी बात सुनकर वहीदा बोली – नही.. नही.., ये तो अपने सेठ के चिकने लौन्डे की अमानत है.., एक बार वो इससे चख ले फिर अपना हीरो तो है ही.. और वो ही क्या.., फिर तो ये अपने धंधे का हिस्सा ही बन जाएगी…!
उन हरामजादी रंडियों की बात सुनकर मे अंदर ही अंदर काँप कर रह गयी.., अंदर से बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे, काश मेरे हाथ पैर खुले होते तो बताती उन रंडियों को कैसे वो मेरा इस्तेमाल करेंगी..,
लेकिन अपनी बेबसी पर मे अंदर ही अंदर रो पड़ी.., मुझे पता था इन हरामजादी कुतियायो के सामने रोने धोने या मिन्नतें करने से कुच्छ हासिल होने वाला नही है..,
कुच्छ देर बाद वहीं मेरे लिए खाना आ आगया.., थोड़ी देर के लिए बस मेरे हाथ खोल दिए गये.., लेकिन मेने वो खाना खाने से मना कर दिया…!
वो मुझे खाना खाने के लिए मेरे साथ ज़बरदस्ती करने लगी तो मेने अपने सामने रखी थाली को उठाकर वहीदा के मूह पर दे मारा.., थाली लगने से उसका एक होठ सूज गया…!
बस फिर क्या था. उन तीनों हरामजादियो ने मिलकर मुझे खूब मारा.., मे पीटती रही.., मैं रोती गिड़गिडती रही लेकिन उन हरामजादियो पर कोई असर नही हुआ…,
यहाँ तक कि मे पिटते पिटते अधमरी सी हो गयी.., मेरे शरीर ने हिलना डुलना बंद कर दिया, तब जाकर उनके हाथ पैर रुके..,
उन्होने फिरसे मेरे हाथ बाँध दिए और मुझे वहीं अकेला छोड़कर बाहर से दरवाजा बंद करके चली गयी…!
रात भर मे अकेली उस पलंग पर पड़े पड़े रोती रही, शरीर के दर्द से कराहती रही.., रोते-रोते मेरी आँखें सूज चुकी थी.., फिर मेने समझ लिया कि अब रोने से कोई फ़ायदा नही होने वाला.., बस अब ये देखना है कि कल मेरे साथ क्या होने वाला है…!
दूसरे दिन दोपहर के बाद उस कमरे का दरवाजा खुला.., एक बहुत ही मामूली सी लड़की मेरे लिए खाना लेकर आई.., मेने उससे बाथरूम जाने के लिए कहा –
वो बड़े नरम और अपनत्व भरे स्वर में बोली – देखो बेहन कल तुमने वहीदा आपा को थाली मूह पर मारी थी…, उस वजह से उसकी शख्त हिदायत है कि अब तुम्हारे हाथ पैर बिल्कुल भी ना खोले जायें जब तक वो ना कहे…!
मेने रोते हुए कहा – लेकिन मुझे बहुत ज़ोर्से बाथरूम आ रहा है.., कुच्छ तो रहम करो.., वरना मेरे कपड़े खराब हो जायेंगे..,!
वो – तो वादा करो तुम मेरे साथ भी कोई ऐसी वैसी हरकत नही करोगी जो रात तुमने वहीदा के साथ की थी…?
मेने उसे अपने बँधे हुए हाथों को गले से लगाते हुए कहा – वादा… मे तुम्हारे साथ ऐसा वैसा कुच्छ नही करूँगी..,
वो एक नेक्दिल लड़की थी.., उसने मेरी बात पर विश्वास करके मेरे सिर्फ़ पैर खोल दिए..,
पास ही बाथरूम था.., उसने अपने हाथों से ही मेरे कपड़े खोले.., उसी के सामने मे फारिग हुई.., फिर उसने अपने हाथ से ही मुझे खाना खिलाया…!
करीब 3-3:30 बजे 8-10 औरत और लड़कियों के साथ वहीदा उस कमरे में आई और उन सभी से बोली – आए ! तुम सब लोग मिलकर इसे तैयार करो.., ये साली ज़रा भी हाथ पैर चलाने की कोशिश करे तो इसकी अच्छे से मरम्मत करना..,
4 बजे सेठ का लौंडा आएगा तब तक ये उसके लिए तैयार हो जानी चाहिए…!
इतना कहकर वो वहाँ से चली गयी और उन सभी ने अपनी निगरानी में मुझे बंधन मुक्त किया.., 20 घंटे तक बँधे बँधे मेरे हाथ पैर अकड़ गये थे.., रस्सियों के निशान मेरी कलाईयों और पैरों पर छप गये थे…!
फिर उन सबने बाथरूम में ले जाकर मुझे नहलाया.., नये कपड़े पहनने को दिए जो मेरे एकदम फिट आए.., मानो वो मेरे लिए ही तैयार किए गये हों..
लगभग 4:30-5 बजे वहीदा को छोड़कर वो सब उस कमरे से चली गयी.., मे गुम सूम सी उस पलंग पर बैठी बस यही सोच रही थी कि आगे अब क्या होगा मेरे साथ और ये बार-बार किस सेठ के बेटे की बातें कर रही हैं…??
तभी उस कमरे में मेने विकी को आते हुए देखा.., उसे देखकर मे एक दम चोंक पड़ी.., एक पल में मेने समझ लिया कि मेरे किडनप करने के पीछे किसका हाथ है…!
उसे देखते ही वहीदा उसकी तरफ लपकी.., आओ सेठ.., देखलो अपने माल को अच्छे से तैयार किया है, कोई कमी तो नही…?
विकी मुस्कराते हुए मेरे पास आकर बैठ गया.., उसने जैसे ही मेरे कंधे पर हाथ रखा मेने उसका हाथ झटक दिया और पलंग से उतरकर दूर खड़ी हो गयी…!
विकी – साली झाँसी की रानी… अभी तक तेरी अकड़ गयी नही.., वहीदा बी.., लगता है तुमने इसकी अच्छे से खातिरदारी नही की है…!
वहीदा – अरे विकी बाबू.., मेने इसकी अच्छी ख़ासी मरम्मत भी की है लेकिन लगता है ये मिर्ची कुच्छ ज़्यादा ही तीखी है.., संभलकर खाना.., ऐसा ना हो मूह ही जला दे…!
विकी – मुझे तीखी मिर्ची ही ज़्यादा पसंद हैं.., इससे तो मे ऐसे चबा जाउन्गा की साली का सारा तीखापन मिठास में बदल जाएगा…,
तुम ज़रा इसके हाथ बाँध दो, ये साली कुच्छ ज़रूरत से ज़्यादा ही फडफडाती है…!
मे – अरे नही.., तुम अभी बच्चे हो.., इतना वेट लेकर नही चल सकोगे..!
ललित – क्या बात कर रहे हैं आप.., मेने इनके बजन से भी ज़्यादा बजन उठाया हुआ है.., खैर कुच्छ देर यहीं कहीं रुक लेते हैं..,
वैसे अब इतना ख़तरा भी नही रहा.., उपर से रात के इस पहर में जंगल जानवर भी बाहर नही निकलते.. इन्सानो की तो बात ही छोड़ो…!
एक समतल सी जगह देख कर मेने रूचि को ज़मीन पर लिटा दिया.., मे अपने आप से विचार करने लगा - पता नही उस बेचारी के साथ ऐसा क्या हुआ होगा जो वो अभी तक बेहोश है..? कहीं इससे ड्रग्स बगैरह का ज़्यादा डोस तो नही दे दिया…?
नही..नही… ऐसा लगता तो नही.., ज़रूर कोई तगड़ा सदमा पहुँचा होगा या लड़ते लड़ते या भागते भागते बेचारी ज़्यादा थकान की वजह से बेहोश हो गयी होगी..,
मे अपने विचारों को इस बात से दूर ही रखना चाहता था कि उसके साथ कुच्छ ग़लत हुआ होगा.., पर असल में क्या हुआ है वो तो अब ये होश में आने के बाद ही बता सकती थी…!
मे मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था.., हे भगवान मेरी बच्ची के साथ कुच्छ ऐसा वैसा ना हुआ हो..,
तभी ललित की आवाज़ ने मेरी सोचों को विराम दे दिया.., भैईयाज़ी वो देखिए.., किसी वहाँ की हेड लाइट दिख रही है.., शायद हम सड़क से ज़्यादा दूर नही है.., उसकी खुशी से भरी आवाज़ सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई…!
मेने खुशी के मारे ललित को खींचकर अपनी छाती से लिपटाते हुए कहा – हां ललित.., भगवान का शुक्र है हम सही रास्ते पर हैं.., पर शायद घूमकर आने की वजह से समय ज़्यादा लग गया है..,
चलो अब अपनी गाड़ी को ढूढ़ते हैं.., ये कहकर मेने रूचि को फिरसे अपनी गोद में उठा लिया.., ललित मेरे आगे चलने लगा और मे फिर एक बार उसके कदमों का अनुसरण करते हुए चलने लगा…!
गाड़ी की लोकेशन ढूँढने में भी हमें काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी.., सीधे सीधे हम जंगल के रास्ते से उस तक नही पहुँच पाए..,
पहले हमें सड़क पर आना ही पड़ा..! फिर सड़क से हमने उस जगह को तलाश किया जहाँ से हमने उसे नीचे उतारा था.., इस तरह बहुत मुश्किल से हमने अपनी गाड़ी को खोज निकाला, शुक्र था वो वहीं सही सलामत खड़ी मिली…!
मेने रूचि को पीछे की सीट पर लिटाया, वो सीट से लुढ़क ना जाए इसलिए ललित को भी मेने उसके पास पीछे बिठा दिया..,
उसने उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया.., मे गाड़ी बॅक करके जैसे तैसे सड़क तक लाया और फिर गाड़ी हाइवे की तरफ दौड़ा दी…!
चंबल का ब्रिड्ज पार करते करते रात के ढाई बज रहे थे.., शुक्र था चौकी पर मौजूद पोलीस वाले अंदर ही थे..,
चोकी के अंदर से बस एक टॉर्च का फोकस हमारी चलती गाड़ी पर पड़ा, मेने चंबल का ब्रिड्ज पार करके अपने राज्य की सीमा में आकर राहत की साँस ली…!
लेकिन शायद मुशिबत हमारा इतनी जल्दी पीछा छोड़ने वाली नही थी.., नदी के पुल से अभी हम कुच्छ ही दूर आए थे कि गाड़ी दो-चार झटके खाकर बंद हो गयी..,
मेने फ्युयेल मीटर पर नज़र डाली और अपना माथा ठनका.., ये साला डीजल को भी अभी ख़तम होना था…!
झटका लगते ही पीछे की सीट पर बैठकर ओंघ रहे ललित की भी आँखें खुल गयी.. और उसने अलसाए स्वर मे पुछा – क्या हुआ भैईयाज़ी..? गाड़ी क्यों रोक दी आपने..?
मेने झुँझलाकर स्टेआरिंग पर हाथ मारते हुए कहा – साला डीजल ख़तम हो गया यार.., अब यहाँ हाइवे से पहले तो शायद कोई पेट्रोल पंप भी नही देखा था मेने.., इतनी रात को कोई ट्रक वग़ैरह वाला भी डीजल नही देगा हमें…!
ललित ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा – अब क्या होगा..? सुबह तक गाड़ी को यौं सड़क पर खड़ा रखना भी ठीक नही है.., मान लो वो बदमाश ही दीदी को खोजते खोजते इधर आ निकले और उन्होने गाड़ी की तलाशी ली तो..?
मे भी वही सोच रहा हूँ मेरे भाई.., मेने बेचैनी भरे स्वर में कहा…, फिर कुच्छ देर बाद मे बोला.., अरे हां याद आया.., तुम्हें याद है, कल सुबह हम यहीं कहीं फारिग हुए थे..!
ललित - हां तो उससे क्या लेना देना… ?
मे – वो छोड़ो.., क्या तुम अंदाज़ा लगा सकते हो, कोई ऐसी पहचान जिससे ये पता लग सके कि हम उस जगह से कितने आगे या पीछे हैं..?
ललित कुच्छ देर अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालकर सोचने लगा लेकिन कोई भी ऐसा क्लू उसको भी याद नही आरहा था जिससे उस जगह की कोई निशान देहि हो सके…!
फिर कुच्छ सोचकर उसने रूचि का सिर बड़े एहतियात से अपनी गोद से उठाकर गाड़ी की सीट पर रखा और गेट खोलकर बाहर सड़क पर आकर उसने अपने हाथ उपर करके एक अंगड़ाई ली..!
हाथ उपर किए अंगड़ाई लेते हुए ही उसने अपने सिर को इधर उधर घुमाया और फिर अचानक से वो खुशी से उच्छल पड़ा……!!!!
अरे हाँ भैईयाज़ी…याद आया.., वो देखिए हमारे पीछे सड़क से करीब एक फरलॉंग दूर वो भट्टे की चिमनी दिख रही है आपको…?
मेने उधर देखते हुए कहा – हां दिख तो रही है लेकिन उससे तुम्हारा क्या मतलब है..?
ललित – मुझे गाड़ी में सोता छोड़कर जब आप फारिग होने चले गये थे.., उसके कुच्छ देर बाद ही किसी गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी थी…!
अभी मेने अपनी आखों को मींजकर सामने देखा ही था कि मुझे दूर से ही वो काली स्कॉर्पियो गाड़ी दिखी थी.., उसे देखते समय ही मेने इधर उधर भी देखा और मुझे वो चिमनी दिखी थी.., इसका मतलब हम उस जगह से बमुश्किल आधा किमी भी दूर नही हैं…!
मेने ललित की समझ बूझ और उसकी याददास्त की दाद देते हुए उसे फिर एक बार अपने सीने से लगा लिया.., वाह बेटे आज तुमने मेरा कितना साथ निभाया है.., तुम्हारी जितनी तारीफ़ की जाए कम है…,
आज तूने मुझे बिन मोल खरीद लिया मेरे बच्चे..!
ललित भी किसी अबोध बच्चे की तरह मेरे अंकपाश में लिपट’ते हुए बोला – मुझ अनाथ को सहारा देकर अपना लिया है आपने उसके आगे तो ये कुच्छ भी नही है भैईयाज़ी.., अब तो आप ही मेरे भगवान हो…!
मेरी आँखों से दो बूँद खारे पानी की टपक कर ललित के घने बालों में गुम हो गयी.., मेने उसे और ज़ोर से कसते हुए भर्राये स्वर में कहा – मुझे इतने ऊँचे पद पर मत बिठा पगले…,
अभी तो मे तेरे लिए कुच्छ कर भी नही पाया हूँ, उससे पहले ही तूने मुझे अपने एहसानो के बोझ तले दबा दिया…!
मेरी बात सुनकर ललित भी फफक कर रो पड़ा – ऐसा मत कहिए भैईयाज़ी.., मे तो अपने भगवान के पीछे पीछे इसलिए चल पड़ा था कि कहीं वो अपने भक्त को भूल ना जायें, चाहें तो इससे मेरा स्वार्थ भी कह सकते हैं…!
मे - इस उमर में इतनी गहरी बातें.., ज़रूर तेरे माता पिता महान रहे होंगे.., जिन्होने तुझे ऐसे संस्कार दिए है..,
रो मत मेरे बच्चे.., मे वादा करता हूँ, तूने अपने जीवन में जो भी तमन्नाएँ की होंगी मे उन सबको पूरा करने की पूरी कोशिश करूँगा…!
अब चल तूही बता हमें किधर चलना है.., लेकिन हन उससे पहले इस गाड़ी को किसी तरह सड़क के किनारे लगाना होगा, वरना कोई एडा गाड़ी वाला नशे या नींद के झोंके में इसे उड़ाकर चला गया तो हमारे लिए और बड़ी मुशिबत खड़ी हो जाएगी…!
फिर हम दोनो ने मिलकर किसी तरह से अपनी कार को सड़क के किनारे लगाया.., मेने रूचि के अचेत शरीर को कंधे पर डाला और ललित के पीछे पीछे चल पड़ा…!
आज सच में ये 15-16 साल का लड़का मेरे लिए भगवान का वरदान साबित हुआ था.., इसने अपनी समझ बूझ से कदम कदम पर मेरा साथ ही नही दिया था.., बल्कि मेरा उचित मार्गदर्शन भी किया था…!
कुच्छ देर में ही हम उस तालाब के पास में थे जहाँ से मंजरी का वो झोंपड़ी नुमा मकान दिखाई दे रहा था.., मेने इशारा करके ललित को बोला – देख हमें उस झोंपड़ी तक जाना है…!
वो बिना कोई सवाल किए उस तरफ चल दिया.., दो-तीन खेतों को पार करके हम उस झोंपड़ी नुमा मकान के सामने थे.., सुबह के साढ़े तीन - चार बजने वाले थे जब हमने उसके घेर जैसे लकड़ी के डंडों से घिरे परकोटे में कदम रखा…!
हमारे कदमों की आहट पाकर वहाँ सो रहा एक कुत्ता भोंकने लगा.., घेर में बँधे जानवर भी उठकर खड़े होने लगे.., तभी हमें एक अलग थलग सी झोंपड़ी से किसी महिला की आवाज़ सुनाई दी…!
अरे इतनी रात को काहे भोंक रहा है रे शेरू…, कॉन्सा छविराम दिखाई दे गया मुए को..?
तभी शायद वो महिला ने जोकि मंजरी की सास थी हमारे कदमों की आहट भी सुन ली होगी और उसने पुकारा.., कॉन.. ?? कॉन है बाहर…? अरे रामुआ… मंजरी…, देख तो कॉन है बाहर.., कहीं कोई चोर उचक्का तो नही घुस आया…?
कुत्ता शेरू लगातार हमारे उपर भोंके जा रहा था.., ललित ने उसे पूचकार कर चुप कराने की कोशिश की लेकिन अंजान लोगों को देख कर उसके स्वर और तेज हो गये.., इतने में ही दूसरी झोंपड़ी से एक मर्द की आवाज़ आई…!
अरे कॉन है भाई.., आवाज़ दो वरना कुत्ता काट लेगा.., ये कहते हुए वो आदमी जिसे उसकी माँ ने रामुआ कहकर बुलाया था.. अपनी झोंपड़ी से बाहर आया.., और हमें देखते ही कड़क आवाज़ में बोला –
कॉन हो तुम.., इतनी रात को यहाँ क्या कर रहे हो.., और ये तुम्हारे कंधे पर कॉन है..?
अपने मालिक को हमसे बात करते देख उसका कुत्ता थोड़ा शांत हुआ और रामुआ के पास जाकर अपनी पूंच्छ हिलाने लगा …!
अभी मे कुच्छ बोलने ही वाला था कि तभी मंजरी भी बाहर आगयि.., चाँदनी रात में उसने मुझे फ़ौरन पहचान लिया और आगे आकर बोली – अरे बाबूजी आप.., और ये आपके कंधे पर कॉन है…??
कहीं ये वो ही तो नही जिसे किसी दूसरे आदमी से उठवाने की बात कर रहे थे..?
मेने मंजरी को इशारे से अपने पास बुलाया और धीरे से उससे कहा – यहाँ बाहर खड़े होकर ज़्यादा देर बातें करने से अच्छा रहेगा इस बच्ची को पहले कहीं लिटा दें, ये बेचारी बेहोश है…!
मंजरी – हां..हां.. आइए.. अंदर ले आइए इसे, तभी रामुआ ने फुसफुसा कर उससे कुच्छ कहना चाहा तो उसने इशारे से उसे चुप रहने के लिए कहा..,
वो शायद बीवी का गुलाम था.., अपनी बीवी के इशारा करते ही मानो उसने अपने मूह पर अलीगढ़ का मोटा सा ताला लटका लिया..!
मेने झोंपड़ी के अंदर जाकर रूचि को उसी बिस्तेर पर लिटा दिया जिसपर कुच्छ देर पहले मजरी और उसका पति सो रहे थे.., उनका दो साल का बच्चा अभी भी वहाँ सो रहा था…!
मंजरी ने लालटेन जलाकर झोंपड़ी में लाइट का प्रबंध कर दिया.., तभी वहाँ एक 45-46 साल की महिला ने प्रवेश किया और आते ही वो मंजरी से बोली – कॉन है रामुआ की बहू..?
ये शहरी बाबू हैं.., मुझे कल सड़क पर मिले थे.., कुच्छ पता ठिकाना पूछ रहे थे.., सो जान पहचान हो गयी.., अब आगे इनके साथ क्या हुआ है ये तो यही बताएँगे…!
मेने एक बार मन ही मन विचार किया.., इन लोगों को सच बताउ या नही.., आख़िर मेने सच बताने का ही फ़ैसला किया जिससे इन लोगों को विश्वास में लिया जा सके…!
मेने मंजरी की सास को संबोधित करते हुए कहा – ये मेरी भतीजी है माजी.., इसको कुच्छ लोगों ने अगवा कर लिया था…, और यहाँ चंबल पार ले आए…!
मेने किसी तरह से सुराग लगाकर यहाँ तक उनका पीछा किया.., इसी दौरान कल सुबह सड़क के पास वाले तालाब के पास मेरी मंजरी जी से जान पहचान हो गयी थी…!
ईश्वर की कृपा से मेरी बच्ची तो मुझे वहाँ के जंगलों में मिल गयी.., लेकिन बेहोश हालत में.., पता नही इसके साथ ऐसा क्या हुआ है कि ये अभी तक बेहोश है…!
मंजरी की सास मेरी बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी.., उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे मेरी बातों पर विश्वास हो रहा है.., और उसकी संवेदना रूचि के साथ दिखाई दे रही थी…!
वो लालटेन अपने हाथ में पकड़ कर रूचि के पास आकर बैठ गयी.., उसने लालटेन की रोशनी उसके चेहरे पर डाली और बड़े ध्यान से उसके चेहरे को देखने लगी…!
उसके चेहरे को ध्यान पूर्वक देखने के बाद वो मेरी तरफ मुखातिब होते हुए बोली – बच्ची किसी बहुत बड़े सदमे का शिकार हुई है बेटा.., इसका जल्द से जल्द होश में आना ज़रूरी है…!
ज़रा इधर आओ.., और ध्यान से देखो.., इसके चेहरे पर अभी भी किसी डर की परच्छाई साफ-साफ देखने को मिल जाएगी तुम्हें..,
मेने भी अभी पहली बार रूचि के चेहरे को ध्यान पूर्वक देखा था.., चाँदनी रात में अभी तक मे उसे ठीक से देख भी नही पाया था.., उस महिला की बात सही थी.., रूचि के चेहरे पर अभी तक डर के भाव विद्यमान थे…!
मेने उससे कहा – आप ठीक कह रही हैं.., ना जाने ये कितनी देर से बेहोश है.., शहर तक पहुँचने में तो और ना जाने कितना वक़्त लगेगा.., यहाँ आस पास तो कोई डॉक्टर भी नही मिलेगा…!
मंजरी की सास मुझे दिलासा देते हुए बोली – फिकर मत करो बेटा…, भगवान ने चाहा तो बच्ची जल्दी ही होश में आ जाएगी….!!!
मे जानता था कि रूचि की बेहोशी लंबी है, ना जाने कब्से वो बेहोश है ऐसे मे मंजरी की सास खाली झूठी दिलासा देकर मेरे मन को बहलाने का प्रयास भर कर रही है…!
बाहर सुबह का ढुँधलका छाने लगा था.., पौ फट रही थी.., मंजरी की सास मुझे एक सुलझी हुई समझदार महिला लगी लेकिन वो इस मामले में हमारी कोई मदद कर पाएगी ये मुझे लग नही रहा था…!
मे बाहर खुले में आकर जानवरों के चारा खाने वाली एक कच्ची नाली जैसी लाढामनी पर आकर बैठ गया.., ललित भी मेरी बगल में ही बैठा था, मंजरी का पति जानवरों को चारा बगैरह डालने में व्यस्त हो गया…!
तभी मंजरी की सास लालटेन लेकर उस झोंपड़ी से बाहर आई.., और पास ही की सब्जियों की क्यारियों में से कुच्छ पत्तियाँ सी तोड़ने लगी…!
एक मुट्ठी भर हरी पत्तियाँ जैसी लेकर वो अपने सोने वाली झोंपड़ी में गयी.., वहाँ उसने पता नही उसमें और क्या क्या मिक्स किया और कुच्छ देर बाद उसकी झोंपड़ी से कुच्छ कूटने जैसी आवाज़ें आने लगी…!
कोई आधे घंटे बाद वो एक कटोरी में कुच्छ रस जैसा निकाल कर लाई.., तबतक मंजरी ने मिट्टी के चूल्हे पर थोड़ा सा पानी गरम कर दिया और अब वो रूचि के चेहरे और बालों को एक साफ से कपड़े से पोंच्छ रही थी…!
उत्सुकता बस मे भी उसके पीछे पीछे झोंपड़ी के अंदर चला गया..!
पहले मंजरी और उसकी सास ने गाय के शुद्ध घी से रूचि के माथे और पैर के तलवों की मालिश की.., फिर थोड़ा सा घी उस रस वाली कटोरी में डालकर मिक्स कर दिया…!
अब वो बूँद बूँद करके उस रस को रूचि की नाक में डालने लगी.., साथ साथ में मंजरी उसके पैर के तलवे और हाथों को भी घी लगाकर मलते जा रही थी…!
कभी कभी नाक से साँस के द्वारा जोकि बहुत ही हल्की हल्की सी चल रही थी.., उस रस के बुलबुले से वापस वहर आ जाते थे.., इसी कोशिश में लगभग 20-25 मिनिट निकल गये.., लेकिन अब रूचि की साँसें कुच्छ तेज होने लगी थी..,
जिन्हें देखकर उस गुणी महिला के चेहरे पर आत्मा विश्वास के भाव गहराते जा रहे थे.., ये देखकर अब मुझे भी कुच्छ उम्मीद सी नज़र आने लगी थी.., उस रस का प्रभाव उसके अवचेतन दिमाग़ पर पड़ना शुरू हो रहा था…!
जब रूचि की साँसें तेज हो गयी तो उस महिला ने एक बार रस डालकर उसकी नाक को अपनी उंगलियों से दबा लिया…, कोई 15-20 सेकेंड में ही रूचि का दम घुटने लगा और वो उठकर बैठ गयी.., उस महिला ने फ़ौरन उसकी नाक छोड़ दी.., रूचि अब ज़ोर ज़ोर से खांस रही थी…!
मंजरी की सास उसकी पीठ पर हल्के हाथ से धौल मारने लगी.., कुच्छ ही पलों में रूचि पूरी तरह होश में आ गयी.., मुझे अपने सामने देखकर वो मेरे गले से लिपटे हुए एक साथ रोते हुए चीख पड़ी…!
चाचू… संजू मामा…, संजू मामा को बचा लो चाचू…., इतना कहकर वो मेरे गले से लिपटकर फुट फुट कर रोने लगी.., मेने भी उसे अपने से चिपटा कर उसकी पीठ सहलाने लगा.., लेकिन दो मिनिट बाद वो फिरसे एक दम से शांत पड़ गयी…!
मेने उसे अपने से अलग करके देखा.., उसकी आँखें बंद हो चुकी थी.., मेने आश्चर्य के साथ मंजरी की सास की तरफ देखा –
उसने मुझे हौसला देते हुए कहा – इसका डर बहुत अंदर तक बैठ गया है बेटा.., चिंता मत करो.., जल्दी ही फिरसे होश में आ जाएगी.., तुम बाहर जाकर दिशा मैदान होलो.., मे इसकी देखभाल रखूँगी…!
मे बेमन से झोंपड़ी से बाहर आगया.., मेरे पीछे पीच्चे मंजरी भी आगयि.., मुझे एक पानी से भरा लोटा पकड़ाते हुए बोली – जाओ बाबू यहीं खेतों में दिशा मैदान हो आओ…!
अब आप चिंता मत करो.., मेरी सास देशी नुश्कों की बहुत अच्छी जानकार हैं.., दूर दूर से लोग इनसे इलाज कराने आते हैं.., आपकी भतीजी अब एकदम सही हो जाएगी…!
मंजरी की बात से अब मे कुच्छ आस्वस्त होने लगा था.., लोटा हाथ में लेकर मे पास के खेतों में ही दिशा मैदान के लिए चल पड़ा.., ललित भी उस तालाब की तरफ जा चुका था…!
कल से हमने कुच्छ खाया पीआ भी नही था.., लेकिन फिर भी फ्रेश होना भी ज़रूरी था…, शौच करते समय मुझे रूचि के कहे हुए शब्द याद आगये…!
रूचि ने संजू के बारे में क्यों कहा…, क्या संजू भी इन बदमाशों की क़ैद में है..? क्या उसकी जान को कोई ख़तरा है..? कहीं ऐसा तो नही कि उसने ही रूचि को किसी तरह वहाँ से निकाला हो और खुद फिरसे उनके चंगुल में फँस गया हो…!
इन्ही सब विचारों के चलते मुझे लेटरीन भी नही आई.., किसी अनिष्ठ की आशंका ने मेरे दिमाग़ पर कब्जा कर लिया था…!
ना जाने कितनी देर में वहीं खेत में बैठा सोचता रहा.., फिर जब बैठे बैठे मेरे पैर अकड़ने लगे तो मे वहाँ से उठकर अपना पॅंट पहनते हुए मंजरी के घर की तरफ आने लगा…!
उसके घर के नज़दीक तक आते आते मुझे झोंपड़ी के अंदर से रूचि के सुबकने की आवाज़ सुनाई दी.. मे लपक कर उस झोंपड़ी की तरफ बढ़ा.., लेकिन तभी मंजरी ने मुझे रोक कर कहा…!
उससे अब अच्छे से होश आ चुका है.., थोड़ी देर रो लेने दो उसे.., मगज हल्का हो जाएगा.., तब तक आप हाथ मूह धो लो.., मे आपके लिए चाय का इंतेज़ां करती हूँ.., ये कहकर उसने वही बाजू में बाल्टी से पानी लाकर मेरे गंदे हाथ साफ करवाए एक लोटे में पानी लेकर मेने अपना मूह अंदर बाहर से सॉफ किया..!
तभी उसने अपनी कॉटन साड़ी का पल्लू मेरी तरफ कर दिया.., मेरी इतनी फिकर करते देख मेरा दिल मंजरी के लिए प्यार से उमड़ पड़ा.., उसके आँचल से अपने गीले हाथ पोन्छ्कर मेने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और उसके पतले-पतले लेकिन खुश्क होठों पर एक चुंबन लेकर कहा…!
शायद भगवान ने मुझे तुम लोगों के पास आने के लिए ही प्रेरित किया होगा.., तभी तो मेरी गाड़ी का डीजल यहीं आकर ख़तम हुआ.., और तुम्हारी सास तो मेरे लिए फरिश्ता ही साबित हुई…!
मंजरी ने मेरी बाहों में कसमसाते हुए कहा – जब दिलों में मिलने की लौ लगी हो तो उपरवाला किसी भी तरह मिला ही देता है.., अब छोड़िए मुझे..और जाकर अपनी बिटिया को संभालिए.., मे वहीं आप लोगों के लिए चाइ बनाकर लाती हूँ…!
नेकदिल मंजरी इस समय मुझे दुनिया की तमाम औरतों से कहीं बढ़कर नज़र आ रही थी.., मेने उसे अपनी बाहों से आज़ाद करते हुए उसके चूतड़ के उभार को सहलाया..!
वो मुस्कराती हुई एक नीचे छप्पर वाली झोंपड़ी की तरफ बढ़ गयी.., जहाँ उसका रसोईघर था.., और मे मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देता हुआ अपनी बिटिया की तरफ बढ़ गया..!
झोंपड़ी में घुसते ही रूचि अपनी जगह से खड़ी हुई और दौड़कर मेरे सीने में समाते हुए फिरसे फुट फुट कर रोने लगी..!
नेकदिल मंजरी इस समय मुझे दुनिया की तमाम औरतों से कहीं बढ़कर नज़र आ रही थी.., मेने उसे अपनी बाहों से आज़ाद करते हुए उसके चूतड़ के उभार को सहलाया..!
वो मुस्कराती हुई एक नीचे छप्पर वाली झोंपड़ी की तरफ बढ़ गयी.., जहाँ उसका रसोईघर था.., और मे मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देता हुआ अपनी बिटिया की तरफ बढ़ गया..!
झोंपड़ी में घुसते ही रूचि अपनी जगह से खड़ी हुई और दौड़कर मेरे सीने में समाते हुए फिरसे फुट फुट कर रोने लगी..!
मेने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – बस बेटा.., अब मे आगया हूँ ना.., अब यहाँ तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नही है.., आओ यहाँ इश्स बिस्तर पर बैठो.., और मुझे सारी बात तफ़सील से बताओ जो भी कुच्छ हुआ था तुम्हारे साथ…?
और तुमने संजू का जिकर क्यों किया…? क्या वो भी वहीं है..?
ये कहकर मे उसे अपने से चिपकाए हुए बिस्तर तक लाया.., हम दोनो बिस्तर पर आकर बैठ गये.., वो कुच्छ देर और हिचकियाँ लेती रही..,
कुच्छ देर बाद मंजरी की सास और ललित भी वहीं आगये, उसका पति रामू दूध निकाल कर गाँव में बाँटने चला गया था, तब तक मंजरी हमारे लिए चाइ भी ले आई..!
चाइ पीते पीते रूचि ने अपनी आप बीती बताना शुरू किया…!
रूचि की आपबीती…….,,,,,,,,,,,,,,,
रूचि अब संयत हो चुकी थी.., मेरे सीने से लगकर रोने से उसके अंदर का गुबार और जो डर उसके दिलो-दिमाग़ में घर कर गया था वो अब काफ़ी हद तक निकल चुका था..,
दो मिनिट शांत रहने के बाद उसने बोलना शुरू किया..,
मे जब मेडम के घर के अंदर पहुँची और जैसे ही मेने उनके ड्रॉयिंग रूम की हालत देखी मुझे कुच्छ गड़बड़ की आशंका हुई.., एक बार सोचा की चुपचाप लौट चलूं क्योंकि अमूमन वो मुझे ड्रॉयिंग रूम में ही बैठी मिलती थी..,
लेकिन तभी उनके बेडरूम से मुझे कुच्छ आवाज़ें आती सुनाई दी.., मेने बिना देर किए उन्हें आवाज़ लगाई.., लेकिन कोई जबाब नही मिला.., उल्टा जो आवाज़ें आ रही थी वो भी थम गयी…!
मे उत्सुकतासे जैसे ही उनके बेडरूम के गेट पर पहुँची जो कि खुला हुआ ही था.., अंदर का नज़ारा देखकर मेरे होश उड़ गये.., मेडम पलंग पर बिना कपड़ों के बँधी पड़ी थी और 4-4 बदमाश उनके बेपर्दा शरीर के साथ खेल रहे थे.., उन्हें बुरी तरह से नोच खसोट रहे थे…!
कुच्छ देर तो मेरे मूह से कोई आवाज़ भी नही निकल सकी.., लेकिन जब मेने अपनी पूरी शक्ति बटोरकर जैसे ही कुच्छ बोलने की कोशिश की, तभी पीछे से मेरे सिर पर किसी ठोस चीज़ की एक भरपूर चोट पड़ी और मे वहीं खड़े-खड़े अपने होश गँवाती चली गयी.., मुझे कोई होश नही रहा…!
करीब रात 10 बजे जब मुझे होश आया तो मेने अपने आप को एक कमरे में एक बिस्तर पर पड़े हुए पाया…!
मेरे हाथ पैर रस्सियों से बँधे हुए थे.., दो औरतें जो 20-22 साल की रही होंगी मेरे पास बैठी थी.., होश में आते ही मेने अपने शरीर को हिलाने की कोशिश की लेकिन बंधन इतने कसे हुए थे कि मे अपने हाथ पैरों को हिला भी नही पा रही थी…!
मुझे होश में आया हुआ देखकर उनमें से एक बोली – रुखी देख ये होश में आगयि.., जा जाके वहीदा आपा को बुला ले.., वो ही बताएगी.., अब इसके साथ क्या करना है…!
उसकी बात सुनकर वो वहाँ से उठकर चली गयी, तभी उस दूसरी ने मेरे शरीर पर हाथ फेरते हुए कहा – आअहह…क्या कच्चा माल है.., काश मे लड़का होती तो अभी यहीं तुझे पटक कर च….., कहते कहते रूचि चुप हो गयी…!
मे समझ सकता था कि वो क्या कहने वाली थी.., लेकिन संस्कारबस वो बात नही कह पाई जो कहना चाहती थी….,
कुच्छ देर बाद वो फिर बोलने लगी..- कोई 15 मिनिट के बाद वो लड़की एक 26-28 साल की थोड़ी भरे बदन की औरत जो शायद वहीदा ही थी उसके साथ उस कमरे में आई.., तबतक वो रंडी.. कुतिया मेरे शरीर के साथ खेलती ही रही…!
फिर जैसे ही वो दोनो अंदर आई.., वो मेरे पास से उठ गयी और उसकी जगह वहीदा आकर मेरे पास बैठ गयी…!
वो कुच्छ देर मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखती रही.., तभी वो तीसरी जो मेरे पास ही रह गयी.., वो बोली – आपा ! देखा क्या मस्त कड़क लौंडिया है.., इसे तो अपने हीरो से चू…*** दो… खुश हो जाएगा और बदले में साला हमें भी जमकर चो…. खुश कर देगा…!
उसकी बात सुनकर वहीदा बोली – नही.. नही.., ये तो अपने सेठ के चिकने लौन्डे की अमानत है.., एक बार वो इससे चख ले फिर अपना हीरो तो है ही.. और वो ही क्या.., फिर तो ये अपने धंधे का हिस्सा ही बन जाएगी…!
उन हरामजादी रंडियों की बात सुनकर मे अंदर ही अंदर काँप कर रह गयी.., अंदर से बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे, काश मेरे हाथ पैर खुले होते तो बताती उन रंडियों को कैसे वो मेरा इस्तेमाल करेंगी..,
लेकिन अपनी बेबसी पर मे अंदर ही अंदर रो पड़ी.., मुझे पता था इन हरामजादी कुतियायो के सामने रोने धोने या मिन्नतें करने से कुच्छ हासिल होने वाला नही है..,
कुच्छ देर बाद वहीं मेरे लिए खाना आ आगया.., थोड़ी देर के लिए बस मेरे हाथ खोल दिए गये.., लेकिन मेने वो खाना खाने से मना कर दिया…!
वो मुझे खाना खाने के लिए मेरे साथ ज़बरदस्ती करने लगी तो मेने अपने सामने रखी थाली को उठाकर वहीदा के मूह पर दे मारा.., थाली लगने से उसका एक होठ सूज गया…!
बस फिर क्या था. उन तीनों हरामजादियो ने मिलकर मुझे खूब मारा.., मे पीटती रही.., मैं रोती गिड़गिडती रही लेकिन उन हरामजादियो पर कोई असर नही हुआ…,
यहाँ तक कि मे पिटते पिटते अधमरी सी हो गयी.., मेरे शरीर ने हिलना डुलना बंद कर दिया, तब जाकर उनके हाथ पैर रुके..,
उन्होने फिरसे मेरे हाथ बाँध दिए और मुझे वहीं अकेला छोड़कर बाहर से दरवाजा बंद करके चली गयी…!
रात भर मे अकेली उस पलंग पर पड़े पड़े रोती रही, शरीर के दर्द से कराहती रही.., रोते-रोते मेरी आँखें सूज चुकी थी.., फिर मेने समझ लिया कि अब रोने से कोई फ़ायदा नही होने वाला.., बस अब ये देखना है कि कल मेरे साथ क्या होने वाला है…!
दूसरे दिन दोपहर के बाद उस कमरे का दरवाजा खुला.., एक बहुत ही मामूली सी लड़की मेरे लिए खाना लेकर आई.., मेने उससे बाथरूम जाने के लिए कहा –
वो बड़े नरम और अपनत्व भरे स्वर में बोली – देखो बेहन कल तुमने वहीदा आपा को थाली मूह पर मारी थी…, उस वजह से उसकी शख्त हिदायत है कि अब तुम्हारे हाथ पैर बिल्कुल भी ना खोले जायें जब तक वो ना कहे…!
मेने रोते हुए कहा – लेकिन मुझे बहुत ज़ोर्से बाथरूम आ रहा है.., कुच्छ तो रहम करो.., वरना मेरे कपड़े खराब हो जायेंगे..,!
वो – तो वादा करो तुम मेरे साथ भी कोई ऐसी वैसी हरकत नही करोगी जो रात तुमने वहीदा के साथ की थी…?
मेने उसे अपने बँधे हुए हाथों को गले से लगाते हुए कहा – वादा… मे तुम्हारे साथ ऐसा वैसा कुच्छ नही करूँगी..,
वो एक नेक्दिल लड़की थी.., उसने मेरी बात पर विश्वास करके मेरे सिर्फ़ पैर खोल दिए..,
पास ही बाथरूम था.., उसने अपने हाथों से ही मेरे कपड़े खोले.., उसी के सामने मे फारिग हुई.., फिर उसने अपने हाथ से ही मुझे खाना खिलाया…!
करीब 3-3:30 बजे 8-10 औरत और लड़कियों के साथ वहीदा उस कमरे में आई और उन सभी से बोली – आए ! तुम सब लोग मिलकर इसे तैयार करो.., ये साली ज़रा भी हाथ पैर चलाने की कोशिश करे तो इसकी अच्छे से मरम्मत करना..,
4 बजे सेठ का लौंडा आएगा तब तक ये उसके लिए तैयार हो जानी चाहिए…!
इतना कहकर वो वहाँ से चली गयी और उन सभी ने अपनी निगरानी में मुझे बंधन मुक्त किया.., 20 घंटे तक बँधे बँधे मेरे हाथ पैर अकड़ गये थे.., रस्सियों के निशान मेरी कलाईयों और पैरों पर छप गये थे…!
फिर उन सबने बाथरूम में ले जाकर मुझे नहलाया.., नये कपड़े पहनने को दिए जो मेरे एकदम फिट आए.., मानो वो मेरे लिए ही तैयार किए गये हों..
लगभग 4:30-5 बजे वहीदा को छोड़कर वो सब उस कमरे से चली गयी.., मे गुम सूम सी उस पलंग पर बैठी बस यही सोच रही थी कि आगे अब क्या होगा मेरे साथ और ये बार-बार किस सेठ के बेटे की बातें कर रही हैं…??
तभी उस कमरे में मेने विकी को आते हुए देखा.., उसे देखकर मे एक दम चोंक पड़ी.., एक पल में मेने समझ लिया कि मेरे किडनप करने के पीछे किसका हाथ है…!
उसे देखते ही वहीदा उसकी तरफ लपकी.., आओ सेठ.., देखलो अपने माल को अच्छे से तैयार किया है, कोई कमी तो नही…?
विकी मुस्कराते हुए मेरे पास आकर बैठ गया.., उसने जैसे ही मेरे कंधे पर हाथ रखा मेने उसका हाथ झटक दिया और पलंग से उतरकर दूर खड़ी हो गयी…!
विकी – साली झाँसी की रानी… अभी तक तेरी अकड़ गयी नही.., वहीदा बी.., लगता है तुमने इसकी अच्छे से खातिरदारी नही की है…!
वहीदा – अरे विकी बाबू.., मेने इसकी अच्छी ख़ासी मरम्मत भी की है लेकिन लगता है ये मिर्ची कुच्छ ज़्यादा ही तीखी है.., संभलकर खाना.., ऐसा ना हो मूह ही जला दे…!
विकी – मुझे तीखी मिर्ची ही ज़्यादा पसंद हैं.., इससे तो मे ऐसे चबा जाउन्गा की साली का सारा तीखापन मिठास में बदल जाएगा…,
तुम ज़रा इसके हाथ बाँध दो, ये साली कुच्छ ज़रूरत से ज़्यादा ही फडफडाती है…!