Update 13

मुझे अब उनके इरादे जानकार डर लगने लगा था.., लेकिन मेने सोच लिया था कि इनके सामने डरने से कोई लाभ तो होने वाला नही है.., किसी तरह से अपने अंदर के डर से जूझते हुए मेने कहा – खबरदार जो किसी ने मेरे पास आने की हिमाकत भी की…!

वहीदा अपने हाथ में एक नाइलॉन की रस्सी का टुकड़ा पकड़े हुए मेरे पास आती हुई बोली – क्या करेगी तू.., भूल गयी रात की मार को.., साली कुतिया की औलाद… अब तूने ज़्यादा फड़ फडाने की कोशिश की ना तो तेरा वो हाल करूँगी की अपना नाम तक भूल जाएगी…!

ये कहते कहते वो मेरे बेहद करीब तक आ पहुँची और जैसे ही उसने अपना हाथ आगे करके मेरी कलाई थामने की कोशिश की.., मेने वो दुस्साहस कर दिखाया जिसकी वहीदा या विकी को कोई उम्मीद नही थी….!!!

भड़ाक..!! मेने एक जबरदस्त तमाचा वहीदा के गाल पर जड़ दिया…, तमाचा इतना ज़ोर से लगा कि उसके कान में साय…साय होने लगी होगी…!

कुच्छ देर वो मेरी तरफ अचंभे से देखती रह गयी.., फिर दुगने गुस्से के साथ वो मेरी तरफ हाथ उठाते हुए बढ़ी..,

मेने उसकी कलाई हवा में ही लपक ली.., और उसे मरोड़कर उसके पीछे लगा दिया.., वो दर्द से बिल-बिला उठी.., लेकिन मेने उसे नही छोड़ा..!

तभी रॉकी जो की किसी तरह के नशे में था.., अपनी लाल लाल आँखों से मुझे घूरते हुए मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ा…!

मेने वहीदा का हाथ छोड़कर उसके चूतड़ पर एक लात जमा दी, वो अपने भारी शरीर को संभाल नही पाई और दो-चार कदम आगे की ओर लहराकार मूह के बल फर्श पर जा गिरी.., उसका होत फट गया और उसमें से खून निकलने लगा…!

तभी रॉकी भी मेरे पास तक आ पहुँचा था.., वो अकेला मेरे लिए कोई मायने नही रखता था.., ये बात उसे भी अच्छे से पता थी.., सो थोड़ा डरते हुए मेरी तरफ झपटा लेकिन बीच में ही मेने एक भरपूर मुक्का उसकी नाक पर जड़ दिया…!

इससे पहले की वो दोनो अपने आप को संभाल पाते मे उस कमरे से बाहर निकल गयी.., पहली बार मेने उस कमरे से बाहर कदम रखा था.., बाहर एक घुमाव दार गॅलरी थी..,

मुझे भागते देख वहीदा चीखी…, रॉकी.. पकड़ उसे हिजड़े.., एक लड़की को भी काबू में नही कर सकता और अपने आपको मर्द कहता है.., फिर वो दोनो एक साथ मेरे पीछे लपके..!

तबतक मे एक मोड़ ले चुकी थी.., गॅलरी के दोनो तरफ कमरों की लंबी कतार और मोड़ लेते हुए मे सीमेंट के फर्श पर भाग रही थी.., मुझे पता था वो दोनो भी मेरे पीछे ही हैं.. जो चिल्लाते हुए आ रहे थे.

मे नही जानती थी इस गॅलरी का अंत कहाँ होगा.., लेकिन अब दूसरे कमरों के भी दरवाजे खुलने लगे थे और उनमें से कई लड़कियाँ और आदमी बाहर आकर मेरा पीछा कर रहे थे…!

दो मोड़ के बाद ही उस गॅलरी का अंत हो गया और मे अब एक बहुत ही विशालकाय हॉल में थी.., जिसकी हाइट 30-35 फीट से कम नही होगी…!

मे जबतक उस हॉल में पहुँची तबतक शोर शराबा सुनकर कई लोग उस हॉल में मौजूद मिले…, देखते देखते कई लड़कियों ने मुझे झपट लिया.., अब मे कुच्छ भी करने की हालत में नही थी.., बस जाल में फँसी किसी मछली की तरह उनके बंधनों में फडफडा रही थी…!

वहीदा और रॉकी मेरे से कोई दस कदम दूर अपनी अपनी कमर पर हाथ रखे हाँफ रहे थे और खा जाने वाली नज़रों से मुझे घूर रहे थे…!

कुच्छ ही पलों बाद वहीदा अपनी साँसें ठीक करते हुए गुर्राई… हरामजादी ने थका दिया.., अब ये ऐसे नही मानेगी.., चलो री इस साली को यहीं नंगा करो…,

आज इसकी सबके सामने नाथ उतारी जाएगी.., वहाँ खड़े 8-10 लोगों को एक साथ संबोधित करते हुए वो बोली – अब कोई लिहाज शर्म नही..,

तुम सब पहले इसकी सील तोड़ने में रॉकी की मदद करो और फिर बारी बारी से तुम सब इस कुतिया की इतनी चुदाई करो कि ये हज़ार बार चीख चीख कर बेहोश हो..,

होश में लाओ और फिर चोदो… तब इससे पता चलेगा कि यहाँ किस तरह से इस जैसी बिगड़ैल घोड़ी को काबू में लाया जाता है…!

उसके मूह से ये शब्द सुनते ही मेरा शरीर डर से थर थर काँपने लगा.., अपनी लाचारी और बेबसी पर बरबस ही मेरे आँसू निकल पड़े.., इतना कहते कहते रूचि फुट-फुट कर रोने लगी..,

उसकी आप बीती सुनते सुनते वहाँ मौजूद सब की आँखें गीली हो चुकी थी.., गुस्से से मेरा पूरा शरीर थर थर काँप रहा था.., मेरा बस चलता तो इसी क्षण उस रॉकी और साली रंडी की औलाद उस वहीदा को चीर फाड़कर सूखा देता…!

रूचि मेरे कंधे से लगकर बहुत देर तक रोती रही.., मेने भी उसे जी भरकर रोने दिया.., जब उसका मन कुच्छ हल्का हुआ तो सुबक्ते हुए वो मेरे कंधे से अलग हो गयी…!

मेने उसे आगे की आपबीती सुनाने के लिए नही बोला.., लेकिन मेरे समेत वहाँ मौजूद सभी के दिलों में आगे उसके साथ और क्या क्या हुआ.., वो उनके चंगुल से कैसे आज़ाद हुई ये सब जानने की इक्षा ज़रूर हो रही थी जो सबके चेहरे पर साफ-साफ दिखाई दे रही थी…!

तभी मंजरी की सास बड़े लाड से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली – अब कैसा लग रहा है बिटिया…? कोई परेशानी जैसी तो नही हो रही…?

रूचि ने ना में अपना सिर हिला दिया.. और उसके हाथों को अपने हाथों में थामकर बोली – थॅंक यू आंटीजी… आपने मेरी बहुत देखभाल की है., मे आपका ये अहसान कभी नही उतार पाउन्गि…!

इसमें अहसान कैसा बिटिया, मेरा तो काम ही यही है… उसने बड़े प्यार से कहा…, अगर तुम फिर भी इससे अहसान समझकर उतारना चाहती हो तो हम सब तुम्हारी आगे की आपबीती ज़रूर जानना चाहेंगे…!

रूचि उसकी बात सुनकर मुस्करा दी.., पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कराहट देख कर मुझे अंदर तक राहत पहुँची.., अब वो बिल्कुल नॉर्मल नज़र आ रही थी.., उसने एक बार मेरी तरफ देखा तो मेने भी उसे आँखों के इशारे से आगे बढ़ने के लिए कहा….!

रूचि ने पास में रखे पानी के ग्लास से पानी पिया और अपने खुश्क गले को तर करके आगे बोली – मुझे अब उन सभी लड़कियों ने छोड़ दिया था और उनकी जगह उन 8-10 लोगों ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया…!

वो सब कह कहे लगाते हुए मेरी तरफ बढ़ने लगे.., मे उनसे बचने के लिए इधर से उधर भागने लगी.., लेकिन जाती कहाँ..? कभी एक से टकरा जाती तो वो मेरे किसी अंग को जोरों से मसल देता.., उससे छूटती तो दूसरे से जा टकराती…,

बहुत देर तक वो मेरे साथ यही सब करते रहे.., मे हाथ जोड़कर रो-रोकर उनसे अपने आप को छोड़ने के लिए मिन्नतें करती रही लेकिन उनमें से किसी एक इंशान को भी मुझपर दया नही आई…!

तक हार कर में उन सबके बीच अपने घुटने जोड़कर बैठ गयी.., वो चारों तरफ से मेरे उपर भूखे भेड़ियों की तरह झपट पड़े और देखते-देखते उन्होने मेरे बदन के सारे कपड़े नोंच डाले…!

मे सिर्फ़ एक ब्रा और पैंटी में सिकुड़ी सिमटी उन दरिंदे कामीने कुत्तों के बीच किसी घायल कबुतरि की तरह अपने अंगों को छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए खड़ी बस आँसू बहा रही रही…!

कोई मेरे नंगे बदन पर हाथ फेर रहा था तो कोई मेरी छातियों से खेल रहा था.., तो कोई मेरे नितंबों को दबाते हुए चटखारे ले रहा था…!

तभी रॉकी किसी भूखे कुत्ते की तरह अपनी जीभ होठों पर फेरता हुआ मेरी तरफ आने लगा.., अब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि अब मेरी इज़्ज़त तार तार होने से कोई नही रोक सकता…!

वो हरामजादा जैसे जैसे मेरे करीब आता जा रहा था.., मेरा शरीर किसी सूखे पत्ते की तरह काँप रहा था.., मेरे शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति अब जबाब दे चुकी थी..,

मेने अपनी आँसुओं से भरी आँखों से एक बार उसकी तरफ देखा और अपने दोनो हाथ जोड़कर आख़िरी बार उससे कहा – प्लीज़ मुझे छोड़ दो रॉकी भैया.., मेने आपका क्या बिगाड़ा है..? प्लीज़ मुझे खराब मत करो…!

रॉकी मेरे पास आकर मेरी कलाई थामकर उसने एक ज़ोर का झटका दिया.., मे बिना कुच्छ किए ही उसके साथ जा चिपकी..,

वो मेरे शरीर पर अपने गंदे हाथों को फिराता रहा और फिर अपने दोनो हाथ मेरे नितंबों पर रखकर उसने बड़ी बेदर्दी से उन्हें दबा दिया…!

दर्द से मेरी चीख निकल गयी.., फिर वो मुझे अपने से अलग करके एक हाथ से मेरे दोनो गालों को बुरी तरह से दबा कर बोला – साली हरामजादी.. क्या कह रही थी अभी.., तुमने मेरा क्या बिगाड़ा है..?

भूल गयी, तेरी बजाह से मुझे कॉलेज से निकाला गया.., मेरे बाप को बेइज़्ज़त करके तेरे चाचा ने कॉलेज की चेर्मनशिप से हटवाया.., यहाँ तक कि मुझे दो दिन हवालात में गुजारने पड़े और साली कहती है इसने मेरे साथ क्या बुरा किया…!

अब दिखा अपनी अकड़.., देखती जा.., वहीदा बेगम ने जो जो कहा है अब वो सब तुझे भोगना होगा हरामजादी., तेरी जिंदगी नरक बना दूँगा मे… हा.हा.हाअ…!

बुला मादरचोद अपने उस हराम के पिल्ले चचे को.., देखता हूँ कैसे तुझे बचाता है रॉकी के कहर से.. ये कहते कहते उसका दाहिना हाथ मेरी ब्रा की तरफ बढ़ने लगा…!

अभी उसका हाथ मेरी ब्रा तक पहुँचा ही था कि तभी उसके कंठ से किसी हलाल होते बकरे की तरह चीख उबल पड़ी..,

मेरी आँखों के सामने उसका वो हाथ उसकी कलाई से जुदा होकर खून से लथपथ ज़मीन पर पड़ा किसी जल बिन मछली की तरह फड़ फडा रहा था…!!!!

ये बताते हुए रूचि ने सिहर कर अपनी आँखें बंद कर ली.., उसके इन शब्दों ने हम सबको स्तब्ध कर दिया था.., मूह फाडे हम सब उसके चेहरे को ताक रहे थे जो बंद आँखों के बावजूद भी डर के एहसास से फक्क पड़ा हुआ था…!

कुच्छ पल ऐसे ही गुजर गये.., झोंपड़ी में पिन ड्रॉप साइलेन्स था.., कोई कुच्छ कहता कि उससे पहले रूचि ने अपनी आँखें खोलकर बारी बारी से सबकी तरफ देखा जो अभी भी बस उसके चेहरे की तरफ ही ताक रहे थे…!

मेरे दिल में मिले जुले एहसास पैदा हो रहे थे.., एक तरफ रूचि के साथ कुच्छ अनहोनी घटित होने से रह गयी इस बात की तसल्ली थी वहीं ये उत्कंठा थी कि आख़िर उस पापियों से भरी लंका में ऐसा कों हनुमान निकल आया जिसने एक लड़की की अस्मत बचाने के लिए इतना बड़ा दुस्साहस कर दिखाया…!

तभी रूचि आगे बोली – रॉकी के खून से लथपथ कटे हाथ को ज़मीन पर फडफडाते हुए देख कर मेरी चीख निकल गयी और डर के मारे मेने अपनी आँखें बंद कर ली…!

रॉकी के उपर अचानक हुए इस हमले से वहाँ मौजूद सभी के चेहरे हैरत से खुले के खुले रह गये थे.., मेरी हिम्मत नही हो पा रही थी कि मे उस मंज़र को अपनी आँखों से देख सकूँ..,

तभी अपनी जगह पर खड़ी वहीदा चीखते हुए बोली – संजू भाईईइ…. ये क्या किया तुमने…? इस हराम जादि रंडी कुतिया के लिए रॉकी का हाथ ही काट डाला…!

उसके मूह से संजू भाई सुनते ही मेने झट से अपनी आँखें खोल दी.., अपने ठीक सामने हाथ में खून से सनी डेढ़ फुट लंबी कतार लिए उस फरिस्ते को देख कर मे अपनी अवस्था भूलकर उनके सीने से लिपट कर फुट-फुट कर रो पड़ी…!

संजू मामा का बायाँ हाथ मेरे सिर पर पहुँच चुका था.., वो मुझे सांत्वना दे रहे थे..,

ज़मीन पर पड़ा रॉकी चीख चीख कर अब बेहोसी जैसी हालत में पहुँच चुका था…!

तभी वहीदा दहाडी… देख क्या रहे हो.. पकड़ लो इस नमक हराम को…, और इतना मारो कि ये अपनी मौत की भीख माँगने लगे, लगता है एक बार फिर इसके अंदर का इंशान जाग गया है…!

एक अंजान लड़की के लिए इसने हमारे सेठ के लड़के का हाथ काट डाला.., अब इसे भी जीने का कोई हक़ नही है..!

संजू मामा ने मुझे किसी तरह अपने से अलग किया और भभक्ते चेहरे के साथ चारों तरफ खून से लथपथ अपनी उस कतार को घूमते हुए बोले – आऊ.. हराम के पिल्लो.., कॉन कॉन मरना चाहता है…!

देखते ही देखते वहाँ काई सी फट गयी.., सारे गुंडे हम दोनो से बीस-बीस फुट दूर चले गये.., उनका रौद्र रूप देख कर उन सबकी हालत खराब हो गयी.., किसी की हिम्मत नही हुई कि हमारे पास भी फटक सके…!

फिर उन्होने वहीदा से कहा – साली रंडी मर्द्खोर औरत.., लगता है तेरे अंदर की औरत बिकुल मर चुकी है.., एक निरीह लड़की के साथ ये दुर्व्यवहार… छी…

वहीदा भी अब डर चुकी थी.., अपने लहजे को थोड़ा शांत रखते हुए बोली – लेकिन संजू भैया…, हम लोगों का तो ये धंधा ही है..,

आज कॉन सा हम लोग नया काम कर रहे हैं जो तुम एक अंजान लड़की के लिए इतने खफा हो गये कि रॉकी का हाथ ही काट डाला तुमने…!

संजू मामा – तुम्हें तो पता है वहीदा बेहन.., मे किसी ज़ोर ज़बरदस्ती के सख़्त खिलाफ हूँ.., जो लड़कियाँ आसानी से मान जाती हैं हम उनको ही धंधे पर लगाते हैं..!

और ये लड़की तो…, ये कहते कहते वो रुक गये… शायद हमारी इज़्ज़त की खातिर वो ये खुलासा नही करना चाहते थे कि मे उनकी कॉन हूँ…!

मेने आश्चर्य से उनकी तरफ देखा.., तो उन्होने इशारे से मुझे चुप रहने के लिए कहा…!

फिर वो एक लड़की की तरफ इशारा करते हुए बोले – ये इसके लिए कपड़े लेकर आ.., वो लड़की दौड़ती हुई एक कमरे में गयी और मुझे लाकर ये कपड़े दिए.., जिन्हें मेने बिना देर किए पहन लिया…!

मामा मुझे अपने साथ लेकर उस हॉल से बाहर जाने के लिए मुड़ते हुए वहीदा से बोले – मे इस लड़की को यहाँ से ले जा रहा हूँ, अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश भी की तो वो इस दुनिया में जिंदा नही रह पाएगा…!

किसी की क्या मज़ाल जो एक इंच भी अपनी जगह से हिला हो..,

अभी हम दो कदम ही आगे बढ़े होंगे की तभी धाय…गोली की आवाज़ से समुचा हॉल गूँज उठा….., इसी के साथ संजू मामा अपनी जगह पर लड़खड़ा गये…, उनके मूह से एक दर्दनाक कराह.. निकल गयी…!

बंदूक की एक गोली उनकी पीठ में धँस चुकी थी.., मेरे मूह से चीख निकल पड़ी…, लड़खड़ाते हुए उन्होने पीछे मुड़कर देखा..,

सामने हाथ में रेवोल्वेर लिए एक मुल्ले जैसी दाढ़ी वाला सफेद लंबा सा कुर्ता और नीचे *ी टाइप पाजामा सिर पर गोल जालीदार टोपी पहने हुए खड़ा था..,

उसके हाथ में पकड़ी हुई रेवोल्वेर से अभी भी धुआँ निकल रहा था…!

उसे देखकर संजू मामा दर्द से कराहते हुए बोले – युसुफ भाई आपने…?

युसुफ – हां मेने कुत्ते की दुम फकता…, तूने क्या समझा.., रॉकी का हाथ काटकर तू यहाँ से यौंही चला जाएगा.., इतनी आसानी से तो नही जाने दूँगा तुझे हरामजादे नमक हराम…!

संजू मामा कटार हाथ में लिए लड़खड़ाते हुए उसकी तरफ बढ़ने लगे मे अवाक मूह फाडे ये सब देख रही थी.. डर के मारे मेरी ज़ुबान तालू से चिपक गयी थी…!

इससे पहले कि संजू मामा उस मुल्ले जैसे इंशान तक पहुँच पाते, एक और फाइयर की आवाज़ और एक दहक्ता हुआ शोला मामा के सीने में पेवस्त हो गया..,

उनका पूरा समुचा जिस्म एक बार जोरों से लहराया…, लेकिन अपने आप को उन्होने ज़मीन पर गिरने नही दिया..,

अपने अवचेतन होते जा रहे होश को संभालते हुए वो फिर उसकी तरफ बढ़े.., लेकिन तभी उसकी रेवोल्वेर से एक और शोला उनकी तरफ लपका…,

तबतक संजू मामा भी अपनी समूची शक्ति बटोरकर उसके उपर जंप लगा चुके थे.., गोली उनकी कमर को चीरती हुई पार हो गयी और साथ ही उनके हाथ में दबी वो कटार उस मुल्ले के सीने के पार…!

दोनो ही ज़मीन पर एक साथ गिर पड़े और साथ ही एक भयानक डर से भरी चीख मारकर मे भी धडाम से वहीं पर जा गिरी.., फिर मुझे कोई होश नही रहा..,

नही पता उसके बाद क्या हुआ होगा.., और जब होश आया तो मे आप लोगों के पास इस झोंपड़ी मे थी…!

मे अवाक मूह फाडे रूचि को देखता रह गया.., बहुत देर तक कोई कुच्छ भी कहने की हालत में नही था…!

एक बार फिर उस झोंपड़ी में एक दम सन्नाटा पसर गया.., सबके चेहरे पर शायद एक ही सवाल था.., संजू का क्या हुआ..? रूचि को वहाँ टीले के दर्रे तक कॉन बचाकर लाया…?

तभी ललित की आवाज़ ने सबको चोंका दिया… संजू मामा का क्या हुआ दीदी…?

एक अजनबी लड़के को अपने लिए दीदी बोलते देख रूचि ने उसकी तरफ देखा.., फिर मेरी तरफ देख कर बोली – मुझे नही पता.., 3-3 गोली लगने के बाद मेने उन्हें वहीं गिरते हुए देखा था.., मुझे लगा अब वो हमें छोड़कर जा चुके हैं…!

मे – लेकिन बेटा तुम मुझे और ललित को वहाँ दर्रे में बेहोश पड़ी मिली.., मे भी मानता हूँ संजू अब इस दुनिया में नही है तो तुमें वहाँ तक कॉन लाया होगा…?

रूचि – मे कैसे बता सकती हूँ चाचू…, मे तो वहीं बेहोश हो चुकी थी और यहाँ आने तक मुझे कुच्छ पता नही कि बाद में क्या हुआ…?

रूचि के इस जबाब ने हमें सकते में पहुँचा दिया था.., हम सब एक दूसरे का मूह ताकने लगे.. किसी को कुच्छ समझ नही आ रहा था कि आख़िर रूचि को वहाँ तक पहुँचाने वाला कॉन हो सकता है..,?

ये मान भी लिया जाए कि किसी तरह संजू अपनी विलपावर के दम पर उठ खड़ा भी हुआ हो तो भी वो इस हालत में कतई नही था कि इतने सारे लोगों को हराकर रूचि के बेहोश जिस्म को लादकर इतनी दूर ले जा सके…!!!!

इस यक्ष प्रश्न ने मेरी खोपड़ी को हवा में तैरने पर मजबूर कर दिया था जिसका जबाब शायद किसी के भी पास नही था…!!!!

संजू की बेपरवाह मस्ती से भरी जिंदगी का अंत इस तरह होगा मेने कभी सपने में भी नही सोचा था.., नालयक गाओं से इसी काम के लिए गधे के सिर से सींग की तरह गायब हुआ था…?

यही सब काम करने थे तो फिर हमारी जिंदगी में आया ही क्यों था नालयक ? ये बुदबुदाते हुए मेरी आँखें छलक पड़ी…,

लेकिन जाते जाते भी अच्छाई की वो मिसाल कायम कर गया.., जिसे हम कभी चाहकर भी भूल नही पाएँगे..!

उसकी यादों ने मुझे बैचैन कर दिया था.., मन कर रहा था कहीं एकांत में बैठकर जी भरकर आँसू बहाऊं.. लेकिन मे तो ये भी नही कर सकता था…!

लेकिन रूचि का वहाँ नदी के ख़र्रो के बीच सही सलामत पाया जाना कहीं ना कहीं दिल के किसी कोने में ये तसल्ली भी पैदा कर रहा था कि हो ना हो किसी चमत्कार ने संजू को मौत के मूह से निकाल लिया हो और वो जीवित एक दिन हमें फिर से मिल जाए…!

मे झोंपड़ी के बाहर पेड़ के नीचे पड़ी एक चारपाई पर बैठा अपनी सोचों में गुम यही सब सोच रहा था.., मेरे पैरों के पास ललित भी गुम सूम सा बैठा बस मेरी ओर देख रहा था…!

रूचि अब नॉर्मल थी और वो नित्य क्रिया के लिए गयी हुई थी.., मंजरी और उसकी सास अपने घर के काम काज निपटा रही थी..!

मे अपने विचारों में इतना खोया हुआ था कि मुझे पता भी नही चला कब रूचि आकर मेरे पास बैठ गयी और मुझे बाजू से पकड़ कर हिलाते हुए बोली…, अब क्या सोच रहे हो चाचू…? घर कब चलना है..?

मेने चोंक कर उसकी तरफ देखा- आअंन्न…हाआंन्न.. चलना है.., बस रामू भाई आ जाए तो थोड़ा डीजल का इंतेजाम करना पड़ेगा.., गाड़ी में फ़्यूल ख़तम हो गया है…!

रूचि ललित की तरफ इशारा करके बोली – ये लड़का कॉन है चाचू....?

मेने ललित की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा – ये… ये मेरी अंजान राहों का सच्चा साथी है.., आज ये नही होता तो शायद मे इतना जल्दी तुम्हें नही ढूँढ पाता…, बस ये समझो भगवान ने मेरी मदद के लिए ही इससे मुझसे मिलवाया है…!

फिर मेने सन्छेप में सारी कहानी रूचि को कह सुनाई.., ललित के बारे में जानकार रूचि ने ललित को थॅंक्स बोला जिसके जबाब में उसने बस इतना ही कहा – थॅंक्स बोलकर मुझे पराया मत करिए दीदी… वरना मे फिरसे अनाथ हो जाउन्ग…!

ललित के मूह से ये शब्द सुनकर रूचि अपने आप पर काबू नही रख पाई और उसे अपने सीने से लगाकर रो पड़ी… मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई..,

खबरदार अब कभी अपने को अनाथ कहा तो बड़ी बेहन होने के नाते तेरी धुनाई कर दूँगी.. समझा…!

ललित भी रो पड़ा – नही कहूँगा दीदी.., कभी नही कहूँगा.., आप लोग मुझे धक्के मारकर भी अपने से अलग करना चाहोगे तो भी आप लोगों को छोड़कर कहीं नही जाउन्गा…!

रूचि – प्रॉमिस…,

ललित – पक्का वाला प्रॉमिस.., इतना बोलकर वो दोनो फिर एक बार रोते हुए एक दूसरे से लिपट गये…, उन दोनो का ये अनूठा प्रेम देखकर मेरी आँखें भी नम हो गयी…!

तभी मंजरी हम तीनो के लिए एक बड़ी सी थाली में नाश्ता आलू-गोभी के शुद्ध घी के परान्ठे दही के साथ ले आई.., हमने मिलकर पेट भरकर नाश्ता किया…!

तबतक मंजरी का पति रामू भी गाओं में दूध देकर आगया, उसके नाश्ता करते ही मेने उसे अपने डीजल की समस्या बताई…!

वो कुच्छ देर सोचने के बाद बोला – गाओं में एक ट्रॅक्टर है तो सही.., थोड़ा टेढ़ा आदमी है साला पता नही देगा कि नही..!

मे – ज़्यादा नही 5-7 लीटर ही मिल जाए हाइवे तक पहुँच जाए.., फिर तो पेट्रोल पंप से हम टॅंक फुल करा लेंगे.., भले ही ज़्यादा पैसे ले ले.., कहो तो मे चला चलूं तुम्हारे साथ..?

वो – नही नही.. आपको जाने की ज़रूरत नही है, एक काम करता हूँ.., इस लड़के को साथ ले जाता हूँ, एक आदमी केन पकड़ने को तो चाहिए साइकल पर…!

कुच्छ देर बाद पैसे लेकर रामू और ललित डीसल लेने गाओं की तरफ चले गये.., मंजरी की सास ने रूचि से कहा – चल बेटा तू कुच्छ देर और आराम कर ले.., अभी तेरा दिमाग़ थका हुआ है..,

मे तेरी एक बार और मालिश कर देती हूँ.., कुच्छ देर अच्छे से सो लेगी तो एकदम सही हो जाएगी…!

रूचि – अरे नही आंटी जी...., मे अब बिल्कुल ठीक हूँ.., आप क्यों परेशान होती हैं…!

मंजरी – रूचि जी.., बड़े बुजुर्गों की बात नही टालते.., माजी जो कह रही हैं.., वो तुम्हारे भले के लिए ही है.., जाओ अंदर जाकर थोड़ा आराम कर लो.., फिर आगे भी सफ़र करना है तुम्हें…!

बहरहाल मंजरी की बात का असर हुआ और रूचि बिना हील हुज्जत के उनके साथ झोंपड़ी में चली गयी और बाहर मे और मंजरी अकेले रह गये..,

कुच्छ देर मंजरी सिर झुकाए पैर के अंगूठे से ज़मीन कुरेदती रही फिर कुच्छ सोचकर बोली…

चलिए बाबूजी मे आपको अपने खेत दिखा लाती हूँ…!

मे – एक शर्त पर मे तुम्हारे साथ चल सकता हूँ…!

मंजरी – क्या..?

मे – तुम मुझे बाबूजी नही कहोगी.., मेरा नाम अंकुश है.., और मे तुमसे उम्र में कुच्छ ज़्यादा बड़ा भी नही हूँ.., सो आगे से मेरे नाम से बुलाओगी तो ही मे तुम्हारे खेत घूमने चल सकता हूँ…!

मंजरी मेरी बाजू पकड़ कर चारपाई से उठाते हुए बोली – अच्छा बाबा नही कहूँगी बाबूजी.., अब चलो.., ज़्यादा नखरे मत करो.., ये कहते वक़्त उसके होठों पर एक चंचल मुस्कान थी…!

मे हेस्ट हुए चारपाई से उठ पड़ा और मंजरी के साथ उसके खेतों की तरफ चल दिया…!

दो खेतों के बीच की संकरी सी मेड पर मंजरी कोशिश कर रही थी कि मेरे बाजू में ही रहे इस कारण से उसका एक कुल्हा बार बार मेरी जाँघ से टकरा जाता था.., मे फिरसे उसके पीछे रह कर चलने लगता तो वो ठिठक कर मेरे पास ही हो जाती…!

आजू बाजू के दोनो खेतों में गेंहू खड़े थे जिनका रंग अब सुनहरा होता जा रहा था.., इसका मतलब अब 15-20 में ही फसल काटने लायक होने वाली थी..!

साथ साथ चलने के चक्कर में एक बार मंजरी का पैर मेड से खेत की तरफ फिसल गया.., गिरने से बचने के लिए उसने मेरी बाजू थामने की कोशिश की तभी मेने अपने उसी हाथ को उसे पकड़ने के लिए उसकी कमर में डाला..!

उसे पकड़ने को मेरा बाजू तो मिला नही.., लिहाजा उसने अपनी दोनो बाहें मेरी कमर में लपेट ली.., और मेरा हाथ अब उसकी साइड में पतली सी कमर के निचल भाग पर था…!

मंजरी गिरने से तो बच गयी लेकिन उसके गोल-गोल मुलायम चुचियों ने जोकि अब मेरे पेट के साइड में दबी हुई थी उनकी चुभन ने मुझे उत्तेजित कर दिया…!

साइड से मेरे दबाब के कारण अब वो एकदम मेरे सामने आ गयी.., मेरा हाथ अब उसकी गोल मटोल गेंध जैसी मुलायम गान्ड के उभार पर था..,

मंजरी जानबूझकर कुच्छ ज़्यादा ही मेरे साथ सट गयी और उसके पेट का दबाब मेरे लंड के ठीक उपर थे…!

मुझे पता था अब मंजरी मेरा लंड लेने की जुगत में ही मुझे अपने खेत दिखाने लाई है.., मे भी यूयेसेस नएक्दील औरत को खुशी देना चाहता था.., सो उसकी गांद को ज़ोर्से कसते हुए मेने उसे अपने आप से और सटा लिया..!

मेरा लंड अभी इतना कड़क नही हुआ था जैसा फुल फॉर्म में आने के बाद होता है फिर भी उसके आकर ने मंजरी की नाभि के उपर इतना असर ज़रूर डाल दिया की मंजरी गन्गना कर सिसकी भर उठी…!

मेने अपनी गर्दन झुका कर मंजरी के चेहरे की तरफ देखा जोकि अपना सिर उपर करके मेरी तरफ ही देख रही थी…!

दोनो की नज़र एकदुसरे से टकराते ही हम दोनो के होठों पर एक जैसी मुस्कान आ गयी.., जिसका मतलब था दोनो के शरीर एक होने के लिए बेकरार हैं..!

मंजरी मेरे कद से बहुत छोटी थी, उपर से वो मेड के साइड में थी इस वजह से बामुश्किल उसका सिर मेरे सीने तक आ रहा था..!

नज़रों की भाषा समझ कर मंजरी ठीक से खड़े होते हुए बोली – चलिए मे आपको एक बहुत अच्छी जगह ले चलती हूँ.., जहाँ धूप का एक कतरा भी ना पहुँचे…!

और अब वो तेज तेज कदमों से मेरे आगे आगे चलने लगी.., कोई 5 मिनिट बाद वो मुझे लेकर एक छोटे से लेकिन बहुत ही घने अमरूदो के बाग में पहुँचे.., जहाँ अमरूदो की डालियां और उनके घने पत्ते.., धरती को चूम रहे थे…!

मुझे एक जगह खड़ा करके वो झुक कर एक बहुत ही घने पेड़ के नीचे घुस गयी.., 5 मिनिट बाद जब वो बाहर आई तो उसके चेहरे की रौनक देखते ही बनती थी..,

फिर उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे भी उस पेड़ की घनी छान्व में खींच कर ले गयी…!!!

ये अमरूद का बहुत ही बड़ा और घना पेड़ था.., जिसकी डालियां तने के चारों तरफ से ज़मीन तक फैली हुई थी..,

मंजरी ने सच ही कहा था.., इसके नीचे आकर पता चला कि ये एक तरह का नॅचुरल घर जैसा था जहाँ सूरज की एक किरण तक नही पहुँच पा रही थी…!

इतनी ठंडक मानो एसी लगा रखा हो.., लेकिन वहाँ पड़े एक पुराने कपड़ों को जोड़कर बनाए हुए एक बिछावन को पड़ा देखकर मेने मंजरी की गान्ड दबाते हुए कहा –

क्या बात है मंजरी..,तुमने तो पहले से ही सारे इंतज़ाम कर रखे हैं यहाँ.., क्या तुम्हें पक्का मालूम था कि मे यहाँ अवंगा ही…?

मंजरी ने मुस्कराते हुए कहा – नही जी.., ऐसा नही है.., ये तो हमेशा यहाँ पड़ी रहती है.., कभी कभार दोपहर की गर्मी से बचने के लिए एकांत में हम दोनो मियाँ बीवी मज़े करने चले आते हैं…!

अभी तो बस मेने यहाँ साफ-सफाई की है…, आपको पसंद आई ना ये जगह..?

मेने उस बिछावन पर बैठते हुए कहा – पसंद…? बहुत पसंद आई.., लगता है यहाँ प्राकृतिक एसी लगा दिया हो.., और सबसे बड़ी बात चारों तरफ से एकदम पॅक…, सच में बहुत अच्छी जगह है…!

पर तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आई हो…? मेने जानबूझकर उसे छेड़ते हुए कहा…!

मंजरी ने मेरे सीने पर अपने हाथ का दबाब डालकर मुझे उस बिछावन पर लिटाते हुए कहा – बड़े बेईमान हैं आप.., वादा करके पुछ्ते हैं..यहाँ क्यों लाई हूँ…?

भूल गये कल सुबह जाते वखत क्या कहा था आपने…? ये कहते हुए वो मेरी शर्ट के बटन खोलते हुए बोली – अब आप चुप चाप यहाँ लेटे रहिए और मुझे जो करना है वो मुझे करने दीजिए…!

मेने उसकी कमर में अपने हाथ लपेटकर उसे अपने उपर खींचते हुए कहा – ये तो सरासर ज़्यादती कर रही हो मेरे साथ.., तुम ही सब कुच्छ करोगी.. और मुझे कुच्छ भी नही करने डोगी…?

ये कहकर मेने उसके पतले पतले थोड़े साँवले होठों पर अपने होठ टीका दिए और उनसे रस चूसने लगा…!

मंजरी को शायद होठ चूसने का कोई एक्सपीरियेन्स नही था.., उसने अपने होठ कसकर बंद कर लिए.., लेकिन मेरी जीभ उसके होठों पर निरंतर दबाब बनाती रही और एक दो बार की कोशिश के बाद उसे उसके दाँतों को छुने का सौभाग्य मिल ही गया…!

क्षण भर में ही मंजरी को मेरी जीभ का स्पर्श अच्छा लगने लगा और उसने अपने होठ खोल दिए.., अब वो भी मेरे उपर के होठ को अपने होठों में दबाकर उसका रस चूसने लगी…!

मौका देखकर मेने अपनी जीभ उसके मूह में पहुँचा दी.., अब वो उसकी जीभ के साथ अठखेलियाँ कर रही थी.., मंजरी को इसमें मज़ा आने लगा और वो भी मेरी जीभ से अपनी जीभ को भिड़ाने लगी…!

दोनो की जीभ और होठ आपस में संघर्ष करने लगे.., नतीजा दोनो के अंदर की वासना जाग उठी और अब ये खेल केवल होठों के चूसने तक ही सीमित नही रहा.. मेरे हाथ भी अपना कमाल दिखा रहे थे..,

उसकी सूती साड़ी और लहंगे को सरका कर उसकी पीठ तक चढ़ा दिया साथ ही मेने उसके गोल-मटोल गान्ड के उभारों को अपने पंजों में दबाकर मसल दिया…!

मंजरी ने अपना मूह उपर करके एक कामुक सिसकी ली…, उसकी चूत का दबाब मेरे लंड पर बढ़ गया.., जो अब पॅंट के अंदर किसी कोबरा नाग की तरह फुसकारें मारने लगा था…!

लंड का दबाब पड़ते ही मंजरी की चूत में चींटिया सी दौड़ने लगी.., वो मेरे शरीर पर नागिन की तरह लहराती हुई नीचे को सरकती चली गयी और उसने मेरे पॅंट की जीप खींचकर पॅंट को अंडरवेर के साथ नीचे सरका दिया…!

मेरा 8” से भी बड़ा और उसकी कलाई जैसा मोटा लंड किसी सोहगाई के गुड्डे की तरह उछल्कर सीधा तक्क्क खड़ा उसकी आँखों के सामने आगया.., जिसे देख कर उसकी आँखें फटी रह गयी…,

हाई…दैयाअ…इतना बड़ा लंड.., ये तो चूत को पोखरा बना देता होगा.., कैसे लेती होगी इसे आपकी बीवी..?

मेने उसके ब्लाउस के बटन खोलते हुए कहा – उसकी छोड़ो.., तुम बताओ.., अच्छा नही लगा तुम्हें तो रहने दो…?

मंजरी तपाक से बोली… नहीं..नहीं… बहुत अच्छा है.., पर थोड़ा बड़ा है.., मुझे अपने हिसाब से करने देना इसके साथ…!

मेने उसकी नंगी गोल-गोल गेंद जैसी मुलायम चुचियों को अपने पंजों में कसते हुए कहा – क्या करने दूं इसके साथ..?

मंजरी – कुच्छ नही.., बस आप चुप चाप लेटे रहिए.., ये कहकर उसने मेरे गरम लंड को अपने दोनो हाथों में जकड लिया और वो उसके साथ खेलने लगी..

कभी वो उसे अपने हाथ की बिलस्त से नापति.., तो कभी उसकी गर्मी को अपने गालों पर लगाकर महसूस करती.., फिर मेरी तरफ देखकर बोली – क्या मे इससे चखकर देखूं.. मन कर रहा है मूह में लेने का…?

मे – हां.. हां क्यों नही.., अब तो ये तुम्हारे कब्ज़े में ही है.., जो चाहे करो.., ये सुनते ही मंजरी ने उसके सुपाडे को पूरी तरह से खोल लिया..,

खुले हुए लाल टमाटर जैसे सुपाडे को उसने अपने जीभ की नोक से चाटा.. और फिर थोड़ा सा अपने मूह में ले लिया…!​
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