Update 14
लंड चूसने में भी वो अनाड़ी ही निकली.., मेरा लंड उसे अच्छा लगा इसलिए अपने मूह में ले लिया था लेकिन जिस तरह से वो कर रही थी वो मुझे बहुत मज़ा दे रहा था..,
थोड़ा सा बस सुपाडा ही मूह में लेकर वो अपनी जीभ को उसके खुले हुए हिस्से के चारों तरफ घुमा रही थी…, जिससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था..,
मेने भी उसकी कमर में हाथ डालकर उसकी गान्ड को अपनी तरफ किया.., वो लंड छोड़ कर मेरी तरफ देखने लगी..,
मेने कहा – मुझे भी तो तुम्हारी चूत का टेस्ट लेने दो.., देखें तो सही कैसा स्वाद है इसका..?
मंजरी – आप रहने दीजिए.., बहुत दिनो ने मेने वहाँ की सफाई नही की है.., मंजरी की भाषा से लग रहा था कि वो चरित्र की गिरी हुई औरत नही है.., शायद ही उसने अपने पति के अलावा किसी और से चुदवाया हो…!
मे – कोई बात नही.., जंगल को हटाकर मे तुम्हारी मुनिया के दर्शन तो कर लूँ.., मेरी बात सुनकर वो कुच्छ शरमा सी गयी.., लेकिन फिर उसने अपनी साड़ी और पेटिकोट भी उतार दिया और मेरी तरफ गान्ड करके फिरसे मेरे लंड का स्वाद लेने लगी..,
मेने उसके जंगल को दोनो साइड को किया और उसकी काले होठों वाली मुनिया की गुलाबी फांकों पर अपनी जीभ फिरा दी…,
सस्सिईइ….आआहह…क्या कर रहे हैं… जीभ लगते ही वो सिसकते हुए बोली…
मंजरी ज़्यादा देर तक मेरी जीभ का सामना नही कर सकी.., उसकी चूत की खुजली इतनी ज़्यादा बढ़ गयी.., अब उसे मेरे कड़क लंड को लेने की जल्दी होने लगी जिससे उसकी चूत की खुजली मिट सके…!
वो उठकर मेरे लंड को मुट्ठी में लेकर मेरे दोनो तरफ अपने घुटने मोड़ कर बैठने लगी..,
लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट करके धीरे धीरे वो उसके उपर अपना दबाब डालते हुए मेरे गरम लोहे जैसे सख़्त लंड को अपनी चूत की गहराइिओं में समाने का प्रयास करने लगी…!
लेकिन बमुश्किल वो मेरा आधा लंड भी नही ले पाई और रुक कर गहरी गहरी साँसें भरने लगी…!
उूउउफफफ्फ़…हहाईए…मैयाअ… बहुत मोटा है.., ऐसा लग रहा है जैसे मेरी चूत में किसी ने खूँटा ठोक दिया हो…!
मेने उसकी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए कहा – क्या हुआ नही जा रहा..? मे कोशिश करूँ..?
सस्सिईई..नही..आप चुप चाप लेटे रहिए.., मे धीरे धीरे ही ले पाउन्गि इससे.., आप तो ज़बरदस्ती करके मेरी चूत का भोसड़ा ही बना देंगे.., मे नही चाहती कि बाद में मेरी चूत मेरे मरद के चोदने लायक भी ना रहे…हहे…
मंजरी धीरे धीरे अब खुलती जा रही थी…!
कुच्छ देर ठहर कर उसने मेरे आधे लंड को ही अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.., साथ ही थोड़ा दबाब भी बढ़ाती जा रही थी..,
सचमुच मेरा लंड उसकी चूत में एक-एक सेंटीमीटर भी बड़ी मुश्किल से जा रहा था.., जब वो दबाब बढ़ाती तो मुझे भी मेरा सुपाडा आगे से दबकर और मोटा सा महसूस हो रहा था…!
जैसे तैसे करके उसने दो-चार बार मेरे लंड को अंदर बाहर ही किया होगा कि उसकी छूट रसीली होने लगी, अब उसका रस तेज़ी पकड़ने लगा था.., साथ ही उसके उपर नीचे होने की गति भी..!
मंजरी को पता भी नही चला कब मेरा पूरा लंड उसकी रसीली चूत में चला गया था.., मेने उसकी चुचियों को मींजते हुए कहा – आअहह..मंजरी रानी… सस्सिईई.. तुम तो कह रही थी.., इसे पूरा नही ले पाओगि..,
ज़रा झुक कर तो देखो ये तो पूरा का पूरा अंदर जा रहा है…,
मंजरी ने लंड अंदर करके अपना हाथ वहाँ ले जाकर चेक किया.., और मज़े की किल्कारी मारते हुए बोली – आअहह…सस्स्सिईइ…हहाआन्न…ये तो पूरा चलाअ..गया आहह…मैयाअ.. इतना मज़ा… उउफफफ्फ़… इसने तो मेरा…पानीी.. निकालल्ल्ल…..आययईीीई………और…….थॅप्प्प… करके मंजरी मेरे लंड पर अपनी गान्ड रख कर बैठ गयी.., और ज़ोर ज़ोर से साँस लेकर हाँफने लगी…, मेने उसकी गर्दन में हाथ डालकर नीचे झुकाया और उसके होठ चूस लिए…!
मेरा कड़क लंड जो अभी तक आधे रास्ते भी नही पहुँच पाया था.., पूरी तरह फूलकर मंजरी की रस से सराबोरे चूत में ही था.., कुच्छ देर बाद वो मेरे उपर से साइड को लुढ़क गयी…,
इसी के साथ फ्यूच.. करके मेरा लंड उसकी चूत से बाहर आगया.., रास्ता साफ होते ही उसकी चूत का रुका हुआ कामरस बाहर बहने लगा…!!
मंजरी शायद पहली बार इतनी ज़ोर्से झड़ी थी.., वो बेसूध सी आँखें बंद किए मेरी बगल में पड़ी थी.., मेरा सुलेमानी लंड मंजरी के चुतरस से सना हुआ आधे अधूरे रास्ते आकर बुरी तरह से किसी फनियल नाग की तरह आगे पीछे झटके मार रहा था..,
मेरे द्वारा मंजरी की चुचियाँ जो मीँजने से लाल पड़ गयी थी और उपर को मूह बाए एकदन तनी हुई थी.., उसके काले जामुन जैसे कड़क निपल को खींचते हुए मेने कहा –
मज़ा आया मेरी जान.., मंजरी ने झटके से अपनी आँखें खोल दी.., मेरी तरफ मुस्करा कर बोली – बहुत, आज से पहले मुझे कभी इतना मज़ा नही आया.., और आपको..??
मेने आँखों का इशारा अपने लंड की तरफ किया.., मंजरी उसे झूमता हुआ देखकर बोली – अरी मोरी अम्मा… ये तो अभी भी कैसा नाग की तरह खड़ा झूम रहा है.., लगता है इसका जहर अभी निकला नही है…!
मेने उसकी चुचियों को सहलाते हुए कहा - तुम्हें बताया था ना, मुझे थोड़ा समय लगता है..,
वो मेरे लंड को चूमते हुए बोली – अले मेला मुन्ना लाजा.., नाराज़ मत हो, कोई बात नही तेरी सखी भी तैयार है चल आजा.., ये कहकर मंजरी फिर से मेरे उपर आने लगी.., मेने उसे रोकते हुए कहा..!
चलो अब तुम उस डाली को पकड़कर खड़ी हो जाओ.., मे तुम्हें पीछे से चोदता हूँ..,
पास ही उस पेड़ की एक डाली जो खड़ी मंजरी के सीने तक आ रही थी.., उसने अपने दोनो हाथ उसके साथ टिकाए.. और अपनी गान्ड पीछे निकाल कर खड़ी हो गयी..,
उसकी छोटी सी दो बॉल जैसी गान्ड की गहरी दरार जो काफ़ी खुली हुई थी.., उसमें मेने अपना लंड फँसाकर दो-तीन बार उपर नीचे किया..,
जब लंड का दबाब मंजरी की गान्ड के छेद पर पड़ता तो वो मज़े में आकर कामुकतावश सिसक पड़ती.., उसकी गान्ड के छेद पर थूक लगाकर मेने अपना अंगूठा उसकी गान्ड के छेद में डाल दिया और दो उंगली उसकी चूत में..!
दोनो छेदो में एक साथ उंगली और अंगूठे के घर्षण ने मंजरी की हॉल ही चुदि हुई चूत को फिरसे फडफडाने पर मजबूर कर दिया..,
दो-चार बार मेने अपनी उंगलियों और अंगूठे को साथ साथ उसकी चूत और गान्ड में अंदर बाहर किया.., मंजरी मज़े में आकर अपनी गान्ड को मेरे हाथ पर पटकने लगी…!
तभी मेने एक साथ उसके दोनो छेदों को खाली करके अपना लंड उसकी गीली हो चुकी चूत में पेल दिया..,
सरसराता हुआ आधा लंड उसकी चूत में समा गया.., आआहह…..म्माआ…. धीरे.. कहते हुए मंजरी का सिर उपर को उठ गया..,
मेने उसकी गर्दन में हाथ डालकर उसके मूह को अपनी तरफ घुमाया और उसके होठों पर कब्जा करते हुए एक झटके में पूरा लंड उसकी संकरी चूत में ठूंस दिया…!
एक साथ में पूरा लंड जाते ही दर्द से उसकी गान्ड कंप-कंपा गयी.., मेरे होठों के अंदर ही वो गून…गगूवंन्न.. करके रह गयी..,
जब वो स्थिर हो गयी.., तो मेने उसके होठों को आज़ाद कर दिया…और उसकी चुचियों को मसल्ते हुए धीरे धीरे अपने लंड को आधी लंबाई तक अंदर बाहर करने लगा…!
15-20 मिनिट की चुदाई से मंजरी दो बार और झड चुकी थी.., मेने भी फाइनली अपने पंप का कॉक उसकी चूत में खोल दिया..!
मंजरी मेरे साथ चुदाई करके तृप्त हो गयी.., कपड़े पहनने से पहले उसने मेरे लंड को चूमा और बोली – पहली बार किसी मर्दाने लंड से चुद्कर मे धन्य हो गयी.., बहुत याद आएगा ये मुझे.., अंकुश बाबू.. हो सके तो फिर कभी मौका निकाल कर आ जाना…!
मेने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – तुमसे मिलकर मुझे भी बहुत मज़ा आया.., भगवान ने चाहा तो तुम्हारे पास ज़रूर आउन्गा.., अब चलते हैं बहुत देर हो गयी.., तुम्हारे पति आने वाले होंगे…!
जब हम उसके घर पहुँचे तो रूचि और उसकी सास खर्राटे लेकर सो रहे थे.., बगल में उसका बच्चा अपनी दादी की एक चुचि मूह में लेकर चूस्ते हुए शांति से सो रहा था…!
मेने सवालिया नज़रों से मंजरी की तरफ देखा.., वो मुस्कराते हुए बोली – ये अभी तक मेरा दूध पीता है.., मे जब इसके पास नही होती हूँ तो अम्मा ही अपनी चुचि से लगाकर चुप करा देती हैं…!
मंजरी की सास की गोरी चिट्टी एक पूरी चुचि उसके ब्लाउस से बाहर थी.., उसकी सुडौल चुचि पर मेरी नज़र ठहर सी गयी.., इतनी उमर में भी इतनी पुष्ट चुचियाँ..किसी का भी लॉडा खड़ा कर्दे…!
मेरी नज़रों को ताड़ते हुए मंजरी बोली – क्या देख रहे हो अंकुश बाबू.., अम्मा अभी भी किसी जवान लौंडिया से कम नही हैं.., मौका मिले तो आपको भी पानी पिला देंगी…!
मेने उसकी एक चुचि को ब्लाउस के उपर से ही उमेठते हुए कहा – अच्छा ! ऐसा है तो दिला दो मौका.., हम भी तो देखे.., तुम्हारी अम्मा कितनी जवान हैं…!
मेरी बात पर वो खिल खिलाकर हँस पड़ी.., उसकी हसी की आवाज़ से रूचि और उसकी सास दोनो की नींद खुल गयी…,
हमें अपने पास खड़ा देख कर उन्होने अपनी खुली चुचि को तुरंत अपने आँचल से ढक लिया.., वो ज़्यादा शर्मिंदा ना हो इसलिए मे फ़ौरन झोंपड़ी से बाहर निकल आया…! तभी मुझे रामू और ललित साइकल से आते हुए दिखे…!
रामू को 5 लीटर डीजल मिल गया था…, मेने रामू को 500/- का एक नोट थमा दिया उसके इस काम के लिए जो मेरे लिए इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरी था.., जिसे उसने थोड़ी ना नुकुर के बाद अपनी पत्नी का इशारा पाकर ले लिया…!
हमने अब अतिशीघ्र वहाँ से निकलने का प्लान किया.., जिसे मंजरी ने दोपहर के खाने तक टाल दिया.., सबने अपना नहाना धोना किया.., इसके लिए उसी झोंपड़ी के पीछे एक कुआँ था उससे बाल्टी से पानी निकालकर नहाना था…!
कुए के पास ही औरतों के लिए एक घास फूंस की ओट बनाकर बाथरूम बनाया गया था..,
नहाने के बाद मेने अपने अंडरवेर और बनियान नही पहने, खाली पॅंट में तोड़ा अजीब सा तो लग रहा था लेकिन शरीर फ्रेश रखने के लिए नहाना भी ज़रूरी था सो ये भी करना पड़ा…!
मंजरी और उसकी सास जिसका नाम मुझे मंजरी ने चुदाई के समय बताया (सविता देवी) ने बारी बारी से हम सबके नहाने के बाद रूचि को भी नहाने के लिए कहा…!
जब उसने कपड़े ना होने की बात कही तो मंजरी ने अपने नये साड़ी, ब्लाउस और पेटिकोट निकाल कर दिए जिन्हें उसने किसी खास मौके पर पहनने के लिए रखे हुए थे…!
रूचि जब नहा-धोकर पहली बार जब एक सिंपल सी फूलों वाली साड़ी ब्लाउस में मेरे सामने आई तो मे उसे देखता ही रह गया.., मुझे लगा जैसे मोहिनी भाभी जब शादी करके पहली बार हमारे घर आई थी..वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी हैं…!
वो ही कद काठी, वो ही चेहरा.., बस कमी थी तो हाथों में काँच की हरी हरी चूड़ियों, सोने के कंगन, गले में मन्गल्सुत्र और माँग में सिंदूर की…!
मे अपलक उसे देखे ही जा रहा था, मुझे यौं एकटक अपने आप को घूरते पाकर रूचि के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी.., मेरे पास आकर बोली – क्या हुआ चाचू.., मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो जैसे पहली बार देखी हूँ…?
मे हड़वड़ाते हुए बोला – व.व.वो.वू.. तुम्हें इन साड़ी ब्लाउस में अचानक देखकर मुझे लगा जैसे भाभी मेरे सामने आ गयी.., जब वो पहली बार हमारे घर में आई थी.., बिल्कुल तुम्हारी तरह ही दिखती थी…,
बहुत प्यारी लग रही है मेरी गुड़िया…, किसी की नज़र ना लगे.. मेरी बच्ची को.. ये कहकर मेने उसके सुंदर से चेहरे को जो नहाने के बाद निखर आया था.., अपने दोनो हाथों में लेकर उसके ललाट को चूम लिया…!
सही कहा अंकुश जी आपने.., आपकी बिटिया वाकई में स्वप्नलोक की परी जैसी लग रही है..,
ये कहते हुए मंजरी ने पास आकर अपनी आँख की कोर से हल्का सा काजल चुराकर रूचि के कान के पीछे लगाते हुए बोली –
अब किसी की बुरी नज़र इनको छू भी नही सकेगी.., ये काला टीका इनको हर बुरी नज़र से बचाएगा…!
फिर वो रूचि के दोनो कंधों को पकड़ कर उसे उपर से नीचे तक निहारते हुए बोली – वाह ! रूचि आपको मेरे कपड़े एकदम से फिट आगये…, ऐसा लगता ही नही कि ये किसी और के होंगे.., है ना..!
हां चाची जी.. आप बहुत ही नेक और समझदार हैं.., इतना कहकर रूचि उसके गले लग गयी.., हो सके तो समय निकाल कर आप सब लोग हमारे घर ज़रूर आना.., माँ और चाची आपसे मिलकर बहुत खुश होंगे…!
पहली बार रूचि के मूह से चाची शब्द सुनकर मंजरी की आँखें नम हो गयी.., एक अंजाना रिस्ता कैसे बनता है आज वो अपनी आँखों से देख रही थी..,
फिर उसने हमें कुच्छ देर और बैठने का कहकर खुद अपनी सास के साथ रसोई में चली गयी.., हम सबके लिए दोपहर के खाने का इंतेजाम करने…!!!!
रसोई में खाना बनाते हुए सास बहू आपस में बातें कर रही थी…, सविता देवी अपनी बहू को प्यार से डाँटते हुए बोली – एरी बेहया बेशर्म, यौंही सीधे वो बाबूजी को साथ लेकर अंदर घुस आई…?
थोड़ा सोच विचार तो कर लिया कर.., औरतों के सोते समय कपड़े इधर उधर हो ही जाते हैं.., तुझे ज़रा भी ख़याल नही आया… कूढ़ मगज कहीं की…!
मंजरी हँसते हुए बोली – अरे तो क्या हो गया अम्मा.., वो तुम्हारे बेटे जैसे हैं.., और फिर आपका दूध दिख भी गया तो कॉन सा उन्होने उसे चूस लिया..?
सविता देवी बेलन से उसको मारने का नाटक करते हुए बोली – तू चुस्वा ले अपने दूध.., मेरी सूखी चुचियों में क्या धरा है.., अपनी चुस्वाएगी तो थोड़ा बहुत कुच्छ बेचारे के पेट में भी जाएगा…!
मंजरी – ओह..हो… अब वो बेचारे भी हो गये.. ? वैसे एक बात कहूँ अम्मा.., बाबूजी तुम्हारी मस्त गोरी-गोरी खरबूजे जैसी चुचि को बड़े गौर से देख रहे थे.., लगता है पसंद आगाय हैं उनको.., कहो तो चूसने के लिए कह दूँ…?
सविता देवी उसके कंधे पर एक प्यारी सी धौल मारकर बोली – चल हट छिनाल कहीं की बहुत बेशर्म होती जा रही है.., कुच्छ तो ख्याल किया कर.., मे तेरी सास हूँ…!
मंजरी – हम दो ही तो हैं इस जंगल में अम्मा ! अब हसी ठिठोली करने का मन होता है तो किससे करें..? वैसे अभी तुम्हारी उमर ही क्या है अम्मा.., पिताजी की याद तो आती ही होगी ना…?
सविता देवी अपने पति का जिकर आते ही उनके चेहरे पर गुस्से की लकीरें सॉफ दिखाई देने लगी.., वो थोड़े तल्ख़ लहजे में बोली – नाम मत लेना उस नामर्द.., डरपोक का मेरे सामने..,
हिजड़ा साला कामचोर.., ज़रा सी ग़रीबी सहन नही कर पाया और हम सबको बीच मंझधार में छोड़ कर ना जाने कहाँ मर गया…?
अब भूल से भी मेरे सामने आगया तो मूह नोच लूँगी उस कमीने इंसान का.., इतना कहते कहते वो रो पड़ी.., मंजरी माफी माँगते हुए उन्हें अपने साथ चिपका कर चुप करने लगी…!
माहौल को थोड़ा फिरसे चेंज करने के लिए उसने शरारत करके उनकी एक चुचि को हल्के से मसल दिया.., सविता देवी लाज़कर उससे लिपट गयी…!
इधर बाहर मे, रूचि और ललित तीनों आपस में बातें कर रहे थे.., रूचि और ललित इतने घुल मिल गये थे कि अब वो लगते ही नही थे कि कुच्छ घंटों पहले तक वो एक दूसरे के लिए अजनबी थे…!
कुच्छ देर बाद खाना आगया.., सबने मिलकर खाना खाया.., छाछ, दही के साथ सिंपल साग भाजी रोटी ऐसी लग रही थी जैसे गाओं छोड़ने के बाद आज पहली बार इतना स्वादिष्ट खाना मिल रहा हो…!
विदा लेते वक़्त सभी की आँखें नम थी.., मेने रामू को सबके साथ शहर आकर घूमने के लिए कहा, मेरे वॉलेट में ज़्यादा पैसे तो नही थे.., फिर भी मेने सविता देवी और मंजरी को 5-5 हज़ार रुपये विदा के तौर पर दिए…!
वो दोनो हमें गाड़ी तक छोड़ने आने वाली थी लेकिन एहतियातन इनके लिए कोई मुसीबत खड़ी ना हो खुले में हमारे साथ देख कर इसलिए मेने उन्हें साथ आने से मना कर दिया…!
गाड़ी में डीजल डालकर गाड़ी स्टार्ट की, दो-चार बार इग्निशन लगाने के बाद वो स्टार्ट होगयि.., जैसे तैसे करके हम उतने डीजल में हाइवे तक पहुँचे.., वहाँ पेट्रोल पंप से कार्ड से टॅंक फुल कराया…!
पंप से ही मेने घर फोन करके बता दिया कि हम दो-चार घंटे में घर पहुँच रहे हैं.., फोन निशा ने उठाया था..,
जब उसने बताया कि रूचि के गम में भाभी ने बिस्तर पकड़ लिया है तो सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ…!
ये बात मेने रूचि को नही बताई.., रूचि मेरे बगल वाली सीट पर थी.., गाड़ी ड्राइव करते हुए मे भाभी के बारे में सोचने लगा…!
बेचारी बेटी के गम में पता नही कुच्छ खाया पीआ भी होगा या नही.., मॅंट्ली टूट गयी होंगी.., पर चलो ये मेने अच्छा किया कि घर फोन करके पहले ही बता दिया…,
शायद ये खुश खबर सुनकर वो फिरसे पहले जैसे चहकने लगें वरना अपनी माँ की हालत देख कर रूचि भी दुखी होगी…!
फिर सोचते सोचते मेरा ध्यान मंजरी और उसके साथ की गयी चुदाई के बारे में चला गया.., कैसे उसने मेरे उपर बैठते हुए पहली बार मेरा मोटा ताज़ा लंड बड़ी मुश्किल से अपनी छोटी सी चूत में लिया था…!
मेने अपने लंड को उस समय देखा था.., साले ने उसकी संकरी गली को किस तरह से चौड़ा दिया था…पूरी उपर तक भर गयी थी उसकी मुनिया…!
ये सोचते सोचते मेरे लंड में तनाव पैदा होने लगा.., बिना अंडरवेर के उसको अपना आकर बढ़ाने के लिए पॅंट के अंदर काफ़ी जगह मिल रही थी…!
वो लम्हे याद करते वक़्त भले ही मेरी नज़रें रोड पर थी लेकिन ध्यान तो चुदाई के लम्हे पर था.., जिसकी बजाह से मेरे मतवाले लंड ने आगे से पॅंट को उठाकर तंबू बना दिया…!
रूचि ग्लास से बाहर देख रही थी.., उसे कुच्छ ऐसा दिखा जिसके बारे में जानकारी लेने की गार्ज से उसने मेरी तरफ ध्यान दिया..,
इससे पहले कि वो मेरे से कोई सवाल पूछती.., उसकी नज़र मेरे पॅंट के तंबू पर पड़ गयी…!
मेरे दिमाग़ में वो सारे सीन उमड़ घूमड़ रहे थे.., मंजरी की चुदाई भी एक यादगार मोमेंट जैसा था.., इतनी अच्छी प्राकृतिक और रोमांटिक जगह हमेशा नही मिल सकती…!
उन्हीं सीन्स के चलते मेरा लॉडा भी अंदर उच्छल कूद मचा रहा था जिसकी हर एक हरकत को रूचि बड़े ध्यान से देख रही थी.., उसकी कोमल भावनायें अंगड़ाई लेने लगी.., आँखों में वासना की खुमारी छाने लगी…!
अचानक से उसे अपनी मांसल जांघों के बीच खुजली सी होने लगी और ना चाहते हुए भी उसका एक हाथ अपनी कुँवारी सखी पर चला गया…, मेरे पॅंट पर नज़र गढ़ाए वो उसे धीरे धीरे सहलाने लगी…!
जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी रूचि को ज़्यादा सहन नही हो पा रहा था.., अब उसका दूसरा हाथ उसकी एक चुचि के उपर पहुँच गया था.., साड़ी के आँचल में छुपाकर वो अपने हाथ से अपनी चुचि को मसल्ने लगी…!
वो अपनी भावनाओं पर काबू रखने की लाख कोशिश कर रही थी.., लेकिन उसके दोनो हाथ शायद अब उसके बस में नही थे.., वो अब बारी बारी से अपनी दोनो चुचियों को बड़ी बेदर्दी से मसलने में जुट गयी…!
अचानक से उसने अपनी कड़क हो चुकी घुंडी जो बिना ब्रा के ब्लाउस में फूलकर एकदम खड़ी हो गयी थी, उसे उसने अपनी चुटकी में लेकर मरोड़ दिया…,
सस्स्सिईईईई…….आआअहह……, लाख कंट्रोल करने के बाद भी उसके मूह से कामुकता से भरी कराहह.. निकल ही गयी.., जिसने मेरे ध्यान को भटकने पर मजबूर कर दिया…!
मेने जैसे ही रूचि की तरफ देखा उसने अपने हाथों को रोक कर शर्म के मारे अपनी गर्दन घूमाकर फिरसे वो बाहर की तरफ देखने लगी.., तभी मुझे अपने खड़े लंड का ध्यान आया…,
और रूचि की तरफ नज़र डालते हुए मेने उसे एक तमाचा जड़ते हुए मन ही मन कहा – मादरचोद.., तेरी वजह से ये मासूम परेशान हो गयी.., भोसड़ी के कुच्छ देर शांत नही रह सकता था…?
मेरे लौडे ने भी घुड़कते हुए जैसे जबाब दिया हो…भेन के लौडे खुद तुझे अपने विचारों पर कंट्रोल नही है.., और मादरचोद मुझे दोष दे रहा है..,
रूचि तेरी भतीजी है तो क्या हुआ.., उस बेचारी के पास भी तो एक चूत है…, वो भी तो उसे परेशान करती ही होगी.., अब शर्म लिहाज बस कुच्छ कह नही पाती तो इसका मतलब ये तो नही की तेरा उसके प्रति कोई कर्तव्य नही बनता…!
क्या मतलब… मेरे दिमाग़ ने अपने लौडे वाले मन से सवाल किया.., तू क्या चाहता है.., मे अपनी नादान भतीजी के साथ वो सब… नही.. नही.. ये कभी नही हो सकता… नेवेर…!
तो फिर उसकी इतनी फिकर क्यों कर रहा है.., माँ चुदाने गयी भतीजी और उसकी इक्च्छायें.., अब सामने देख ढंग से गाड़ी चला भोसड़ी के वरना सबकी एक साथ मैया चुद जाएगी….!
मे मन ही मन चल रहे अपने विचारों के द्वंद पर हँस पड़ा.., रूचि ने मेरी तरफ मूह करके पुछा- क्या हुआ चाचू…?
मेने झेन्पते हुए कहा – कुच्छ नही बेटा.., बस कुच्छ देर में अपना शहर आने वाला है.., फिर मेने बॅक मिरर में देखा.., ललित भी गुम सूम सा पीछे की सीट पर बैठा शायद वो भी कुच्छ सोच ही रहा होगा…!
मेने उसका ध्यान अपनी ओर करते हुए पुछा – क्यों ललित मोहन चौरसिया क्या सोच रहे हो भैया..?
ललित अपने विचारों को विराम देते हुए बोला – कुच्छ नही भैईयाज़ी.. बस ऐसे ही कुच्छ बचपन की बात याद आगाय थी…!
बीती बात बिसार के आगे की सुधि लियो… मेने उसे उपदेश सा देते हुए कहा – अब आगे की सोचो क्या करना है.., जो तेरा मन करे बोल देना.., तेरी हर वो इक्च्छा पूरी की जाएगी जो कभी तूने सपने में भी देखी हो…!
थॅंक यू भैईयाज़ी… आप सचमुच देवता हैं… ये कहकर ललित पीछे से मेरे गले में बाहें डालकर लिपट गया.., मेने मुस्कराते हुए एक हाथ पीछे करके उसके गाल सहला दिए…!!!!
हमने जैसे ही कोठी के कंपाउंड में एंटर किया .., बहुत सारे आस-पड़ौस के लोग बाहर गार्डन में घास पर बैठे आपस में बातें कर रहे थे…!
गाडी की आवाज सुनते ही घर के अंदर मौजूद सारे लोग बाहर आगये ., गांव से सभी चाचाओं की परिवार, गांव में आस पड़ौस के हमारे चाहने वाले और बुआओं समेत रूचि के मामा, मामी और उनके बच्चे सभी खबर सुनकर आ चुके थे …!
वो तो अच्छा हुआ की मेने पेट्रोल पंप से अपने आने का फ़ोन कर दिया वार्ना इस समय भी घर में शायद मातम छाया हुआ मिलता .!
रूचि ने गाडी से बाहर जैसे ही कदम रखा ., उसे एक साधारण सी साड़ी ब्लाउज में देख कर सभी हैरत में पद गए .,
सबने बारी बारी सी उसे गले जगाया ., अपने अपने आषीर्वाद दिए .., इस दौरान ललित को तो कौन पूछने वाला था ., में खुद ऐसा फील कर रहा था मानो “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना ”.
मेने भी अपनी इम्पोर्टेंस दिखने की कोई कोशिश नहीं की और बाहर गार्डन में बैठे लोगों की तरफ बढ़ गया .,
उन्होंने मुझे चारों तरफ से घेर लिया और तरह तरह के सवाल जबाब करने लगे .!
मेने भी अपनी तरह से सबको संतुष्ट करने की कोशिश की ., जितनी इनफार्मेशन देनी थी दी…, वाकी बातें जो बताने लायक नहीं थी उन्हें में गोल कर गया !
बाहर से पड़ौसियों को विदा करके में घर के अंदर आया ., जहां पूरा हॉल घरवालों से ही भरा हुआ था ., रूचि बीचो -बीच में किसी सेलिब्रिटी की तरह अपनी मम्मी और वाकई औरतों के साथ बैठी थी !
मुझे देखते ही रूचि ने इशारा करके मुझे अपने पास बुलाया ., मेने भी इशारा करके ज्यादा कुछ बातें न करने के लिए मन किया .
फिर मेने सबको सम्बोधित करते हुए कहा – देखिये रूचि थोड़ा मेंटली स्ट्रेस में रही है ., प्लीज आप लोग थोड़ा उसे आराम करने दो .,
बड़ी चाची बोली – लेकिन बेटा.., ये तुम्हें कहाँ और कैसे मिली ? इस बारे में इसने भी कुछ नहीं बताया कौन लोग थे जो बिटिया को किडनेप करके ले गए थे नाशपीटे.?
में – रूचि के साथ कॉलेज में जो घटना हुयी थी ये उसी हरामखोर की हरकत थी, उसी ने कुछ गुंडों के हाथों इसको किडनेप कराया था ., वो तो समय रहते मेने उन गुंडों की गाडी का सुराग लगा लिया !
वो यहां से काफी दूर दुसरे राज्य में इसे ले गए थे ., में भी उनको सूंघते सूंघते सुराग लगते हुए वहाँ तक पहुँच गया.., और समय रहते मेने रूचि को उनकी क़ैद से आज़ाद करा लिया…!
मेरे इस सीधे सपाट जबाब से अधिकतर लोग तो संतुष्ट नज़र आ रहे थे लेकिन बहुत से लोगों के चेहरों पर अब भी सवालिया निशान मौजूद थे…!
हमारे घर पहुंचते पहुँचते शाम हो चुकी थी ., गांव के कुछ लोग दोनों बड़े चाचों के साथ रात 8 बजे तक गांव वापस लौट गए, लेकिन और बहुत से लोग बचे रह गए जिनमें मुख्य तौर पर राजेश भाई और उनकी फॅमिली के अलावा हमारे अपने परिवार के ही लोग रह गए थे…!
रात 10 बजे कृष्णा भैया और प्राची जो की अब 5-6 महीने की प्रेग्नेंट थी वो आये ., मेने उनके आते ही पूछा – भैया जो मेने आपसे कहा था राठी और उसके बेटे को उठाने का उसका कुछ किया आपने ?
भैया – अरे यार , ऐसे थोड़े न होता है ., उसके लिए अरेस्ट वारंट निकलवाने पड़ते हैं उसके बिना सिक्युरिटी कैसे किसी को अरेस्ट कर सकती है ?.., और वारंट निकलवाने के लिए कुछ ठोस सबूत दिखने पड़ते हैं जो हमारे पास नहीं थे उनके खिलाफ..…!
राठी कोई छोटा मोटा आदमी नहीं है ..,
मेँ – क्या भैया…, आप तो टीपिकाली एक सुब इंस्पेक्टर की तरह बात कर रहे हैं ., एक SSP की क्या पावर होती है ये मुझे आपको बताने की जरुरत नहीं है .,
अपने लेवल पर कमिश्नर से भी वारंट ले सकते थे ., ये आपके अपने घर का मामला था ., अगर आप उसी समय बाप बेटे को उठवा लेते तो आज उसका लौंडा टोंटा नहीं होता !
भैया – क्या .? टोंटा मतलब .? उसका तुमने हाथ ही काट डाला क्या ..?
मेँ – नहीं मैने नहीं … संजू ने , में तो उनके अड्डे तक पहुँच भी नहीं पाया ,
संजू का नाम सुनते ही सब लोग एक साथ चौंक पड़े .., छोटी चाची जो उसके ज्यादा करीब रही थी ., बेचैनी के साथ बोली – क्या कहा लल्ला तुमने ? संजू वहाँ कैसे पहुँच गया ?
मेँ – पहुँच नहीं गया ., वो वहाँ पहले से ही था.., शायद वो गांव से भागकर वहीँ चला गया था .., अफ़सोस इस बात का है की वो हमारे बीच रहकर भी सुधर नहीं पाया.., उसकी मुजरिमों वाली आदत उसके अंदर से निकल ही नहीं पायी !
जब वो उन् मुजरिमों का साथी ही था तो फिर संजू ने उसका हाथ क्यों काट डाला..? भाभी ने कुछ न समझ आते हुए पूछा .
मेँ – ये सब आपको अच्छे से रूचि ही बता पाएगी , और हाँ उसके साथ पूछ ताछ करते वक़्त हम मर्दों में से कोई न हो तो ज्यादा बेहतर होगा.., वार्ना वो अपनी आप बीती खुलकर नहीं कह पाएगी !
भाभी के साथ घर की सभी औरतें रूचि के कमरे में चली गयी उसके बाद कृष्णा भैया ने कहा – अब क्या करना है आगे…?
बाबूजी जो अधिकाँश तौर पर शांत ही रहते थे ., अपनी पोती पर हुए अत्याचार से दुखी थे ., कृष्णा भैया के इस सवाल पर मेरे कुछ कहने से पहले थोड़े गुस्से वाले स्वर में बोले -
कृष्णा तू सचमुच सिक्युरिटी की नौकरी कर रहा है या कहीं घास खोदने जाता है ..? तेरी जगह कोई ठाणे का इंचार्ज भी होता तो बिना वारंट के उस कमीने को हथकड़ी डालकर हवालात में इतनी धुनाई करता की वो किसी तोते की तरह सब कुछ बक देता !
अब भी यहां अंकुश से पूछ रहा है आगे क्या करना है ., ये कोई तलम टोल वाला मामला है .? जिसे तुम सिक्युरिटी वाले हमेशा बचने के लिए इस्तेमाल करते रहते हो .,
ये अपनी खुद की बेटी के किडनेपिंग का मामला है.., अब तो उस हराम के जाने राठी को अरेस्ट करवा !
बाबूजी की फटकार सुनकर कृष्णा भैया का सर जिल्लत के कारन झुक गया.., फिर उन्होंने अपने SP को फ़ोन करके राठी को तुरंत अरेस्ट करने का आदेश दिया .!
इन सब झमेलों में मेँ ललित को भूल ही चूका था.., जब ध्यान आया तो मेने उसे हॉल में इधर उधर तलाश किया लेकिन वो कहीं दिखाई नहीं दिया .!
मैने जब वहाँ मौजूद सब लोगों से उसके बारे में पूछा तो छोटे चाचा बोले – कहीं तुम उस 15-16 साल के लड़के की बात तो नहीं कर रहे जो तुम्हारे साथ आया था..?
मेँ – हाँ जी… हांजी … वो ही .. कहाँ है वो…?
चाचा – तुम्हारे साथ बाहर गार्डन में तो देखा था उसे.., फिर पता नहीं कहाँ चला गया …?
चाचा की बात सुनकर में दौड़ा दौड़ा बाहर गार्डन की तरफ लपका.., इधर उधर ढूंढ़ने पर वो मुझे वहीँ घास पर एक कोने में सोता हुआ मिल गया…!
दो रातों और तीन दिनों से वो भी बेचारा कहाँ सो पाया था.., मेने उसे नहीं जगाया और सोते हुए को ही उठाकर अपने कंधे पर डाला और अंदर लाकर एक कमरे में सुला दिया…!
वापस जब उन सबके पास आया तो बड़े भैया ने पूछा – ये लड़का कौन है अंकुश..?
मैने उसके बारे में सब कुछ तफ्सील से बताया.., और ये भी बताया की उसने मेरी किस हद तक मदद की है.., उसको अपने साथ यहां लाने का बाबूजी समेत सबको मेरा ये फैसला उचित लगा…!
बाबूजी – लेकिन बेटा तुमने बताया की तुम उस अड्डे तक नहीं पहुँच पाए फिर तुम्हें रूचि बिटिया कहाँ मिल गयी…, और संजू अब कहाँ है…?
मेँ – मुझे नहीं पता रूचि वहाँ तक कैसे पहुंची , पर संजू शायद अब इस दुनिया में नहीं रहा.., ये खुलासा सुनते ही सबके मुँह से एक साथ निकला… क्या..??? क्या कहा तुमने…? क्या हुआ संजू के साथ…?
फिर मैने वो सब कह सुनाया जो रूचि ने मुझे बताया था सिर्फ कुछ बातों को छोड़कर जिन्हें मेँ अपने बड़ों के सामने नहीं कह सकता था.., संजू के साथ हुयी दुर्घटना से सबके चेहरों पर दुःख की एक काली परछाई साफ साफ दिखाई देने लगी !
बड़े भैया रुंधे स्वर में बोले – हे भगवन ये तूने क्या किया उसके साथ..? हम उस नेक बन्दे को सहारा भी नहीं दे पाए और वो जाते जाते भी अपना फ़र्ज़ निभा गया…!
तभी रूचि के कमरे से भी भाभी और चाची की एक साथ चीखें सुनाई दी.., शायद रूचि ने उन्हें भी संजू की खबर सुना दी थी.., संजू की मौत की खबर सुनकर घर भर में मातम छा सा गया..,
उस रात किसी ने भी खाने पीने का कोई जीकर तक नहीं किया.., सबको संजू की मौत ने जैसे तोड़कर रख दिया था…!
लेकिन एक रहस्य जिसने हम सब की नींद भी उड़ाके रखदी थी वो अभी भी मुँह बाए हमारे सामने ज्यों का त्यों खड़ा था.., जो अब शायद कभी उजागर हो पायेगा भी या नहीं …!!!
थोड़ा सा बस सुपाडा ही मूह में लेकर वो अपनी जीभ को उसके खुले हुए हिस्से के चारों तरफ घुमा रही थी…, जिससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था..,
मेने भी उसकी कमर में हाथ डालकर उसकी गान्ड को अपनी तरफ किया.., वो लंड छोड़ कर मेरी तरफ देखने लगी..,
मेने कहा – मुझे भी तो तुम्हारी चूत का टेस्ट लेने दो.., देखें तो सही कैसा स्वाद है इसका..?
मंजरी – आप रहने दीजिए.., बहुत दिनो ने मेने वहाँ की सफाई नही की है.., मंजरी की भाषा से लग रहा था कि वो चरित्र की गिरी हुई औरत नही है.., शायद ही उसने अपने पति के अलावा किसी और से चुदवाया हो…!
मे – कोई बात नही.., जंगल को हटाकर मे तुम्हारी मुनिया के दर्शन तो कर लूँ.., मेरी बात सुनकर वो कुच्छ शरमा सी गयी.., लेकिन फिर उसने अपनी साड़ी और पेटिकोट भी उतार दिया और मेरी तरफ गान्ड करके फिरसे मेरे लंड का स्वाद लेने लगी..,
मेने उसके जंगल को दोनो साइड को किया और उसकी काले होठों वाली मुनिया की गुलाबी फांकों पर अपनी जीभ फिरा दी…,
सस्सिईइ….आआहह…क्या कर रहे हैं… जीभ लगते ही वो सिसकते हुए बोली…
मंजरी ज़्यादा देर तक मेरी जीभ का सामना नही कर सकी.., उसकी चूत की खुजली इतनी ज़्यादा बढ़ गयी.., अब उसे मेरे कड़क लंड को लेने की जल्दी होने लगी जिससे उसकी चूत की खुजली मिट सके…!
वो उठकर मेरे लंड को मुट्ठी में लेकर मेरे दोनो तरफ अपने घुटने मोड़ कर बैठने लगी..,
लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट करके धीरे धीरे वो उसके उपर अपना दबाब डालते हुए मेरे गरम लोहे जैसे सख़्त लंड को अपनी चूत की गहराइिओं में समाने का प्रयास करने लगी…!
लेकिन बमुश्किल वो मेरा आधा लंड भी नही ले पाई और रुक कर गहरी गहरी साँसें भरने लगी…!
उूउउफफफ्फ़…हहाईए…मैयाअ… बहुत मोटा है.., ऐसा लग रहा है जैसे मेरी चूत में किसी ने खूँटा ठोक दिया हो…!
मेने उसकी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए कहा – क्या हुआ नही जा रहा..? मे कोशिश करूँ..?
सस्सिईई..नही..आप चुप चाप लेटे रहिए.., मे धीरे धीरे ही ले पाउन्गि इससे.., आप तो ज़बरदस्ती करके मेरी चूत का भोसड़ा ही बना देंगे.., मे नही चाहती कि बाद में मेरी चूत मेरे मरद के चोदने लायक भी ना रहे…हहे…
मंजरी धीरे धीरे अब खुलती जा रही थी…!
कुच्छ देर ठहर कर उसने मेरे आधे लंड को ही अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.., साथ ही थोड़ा दबाब भी बढ़ाती जा रही थी..,
सचमुच मेरा लंड उसकी चूत में एक-एक सेंटीमीटर भी बड़ी मुश्किल से जा रहा था.., जब वो दबाब बढ़ाती तो मुझे भी मेरा सुपाडा आगे से दबकर और मोटा सा महसूस हो रहा था…!
जैसे तैसे करके उसने दो-चार बार मेरे लंड को अंदर बाहर ही किया होगा कि उसकी छूट रसीली होने लगी, अब उसका रस तेज़ी पकड़ने लगा था.., साथ ही उसके उपर नीचे होने की गति भी..!
मंजरी को पता भी नही चला कब मेरा पूरा लंड उसकी रसीली चूत में चला गया था.., मेने उसकी चुचियों को मींजते हुए कहा – आअहह..मंजरी रानी… सस्सिईई.. तुम तो कह रही थी.., इसे पूरा नही ले पाओगि..,
ज़रा झुक कर तो देखो ये तो पूरा का पूरा अंदर जा रहा है…,
मंजरी ने लंड अंदर करके अपना हाथ वहाँ ले जाकर चेक किया.., और मज़े की किल्कारी मारते हुए बोली – आअहह…सस्स्सिईइ…हहाआन्न…ये तो पूरा चलाअ..गया आहह…मैयाअ.. इतना मज़ा… उउफफफ्फ़… इसने तो मेरा…पानीी.. निकालल्ल्ल…..आययईीीई………और…….थॅप्प्प… करके मंजरी मेरे लंड पर अपनी गान्ड रख कर बैठ गयी.., और ज़ोर ज़ोर से साँस लेकर हाँफने लगी…, मेने उसकी गर्दन में हाथ डालकर नीचे झुकाया और उसके होठ चूस लिए…!
मेरा कड़क लंड जो अभी तक आधे रास्ते भी नही पहुँच पाया था.., पूरी तरह फूलकर मंजरी की रस से सराबोरे चूत में ही था.., कुच्छ देर बाद वो मेरे उपर से साइड को लुढ़क गयी…,
इसी के साथ फ्यूच.. करके मेरा लंड उसकी चूत से बाहर आगया.., रास्ता साफ होते ही उसकी चूत का रुका हुआ कामरस बाहर बहने लगा…!!
मंजरी शायद पहली बार इतनी ज़ोर्से झड़ी थी.., वो बेसूध सी आँखें बंद किए मेरी बगल में पड़ी थी.., मेरा सुलेमानी लंड मंजरी के चुतरस से सना हुआ आधे अधूरे रास्ते आकर बुरी तरह से किसी फनियल नाग की तरह आगे पीछे झटके मार रहा था..,
मेरे द्वारा मंजरी की चुचियाँ जो मीँजने से लाल पड़ गयी थी और उपर को मूह बाए एकदन तनी हुई थी.., उसके काले जामुन जैसे कड़क निपल को खींचते हुए मेने कहा –
मज़ा आया मेरी जान.., मंजरी ने झटके से अपनी आँखें खोल दी.., मेरी तरफ मुस्करा कर बोली – बहुत, आज से पहले मुझे कभी इतना मज़ा नही आया.., और आपको..??
मेने आँखों का इशारा अपने लंड की तरफ किया.., मंजरी उसे झूमता हुआ देखकर बोली – अरी मोरी अम्मा… ये तो अभी भी कैसा नाग की तरह खड़ा झूम रहा है.., लगता है इसका जहर अभी निकला नही है…!
मेने उसकी चुचियों को सहलाते हुए कहा - तुम्हें बताया था ना, मुझे थोड़ा समय लगता है..,
वो मेरे लंड को चूमते हुए बोली – अले मेला मुन्ना लाजा.., नाराज़ मत हो, कोई बात नही तेरी सखी भी तैयार है चल आजा.., ये कहकर मंजरी फिर से मेरे उपर आने लगी.., मेने उसे रोकते हुए कहा..!
चलो अब तुम उस डाली को पकड़कर खड़ी हो जाओ.., मे तुम्हें पीछे से चोदता हूँ..,
पास ही उस पेड़ की एक डाली जो खड़ी मंजरी के सीने तक आ रही थी.., उसने अपने दोनो हाथ उसके साथ टिकाए.. और अपनी गान्ड पीछे निकाल कर खड़ी हो गयी..,
उसकी छोटी सी दो बॉल जैसी गान्ड की गहरी दरार जो काफ़ी खुली हुई थी.., उसमें मेने अपना लंड फँसाकर दो-तीन बार उपर नीचे किया..,
जब लंड का दबाब मंजरी की गान्ड के छेद पर पड़ता तो वो मज़े में आकर कामुकतावश सिसक पड़ती.., उसकी गान्ड के छेद पर थूक लगाकर मेने अपना अंगूठा उसकी गान्ड के छेद में डाल दिया और दो उंगली उसकी चूत में..!
दोनो छेदो में एक साथ उंगली और अंगूठे के घर्षण ने मंजरी की हॉल ही चुदि हुई चूत को फिरसे फडफडाने पर मजबूर कर दिया..,
दो-चार बार मेने अपनी उंगलियों और अंगूठे को साथ साथ उसकी चूत और गान्ड में अंदर बाहर किया.., मंजरी मज़े में आकर अपनी गान्ड को मेरे हाथ पर पटकने लगी…!
तभी मेने एक साथ उसके दोनो छेदों को खाली करके अपना लंड उसकी गीली हो चुकी चूत में पेल दिया..,
सरसराता हुआ आधा लंड उसकी चूत में समा गया.., आआहह…..म्माआ…. धीरे.. कहते हुए मंजरी का सिर उपर को उठ गया..,
मेने उसकी गर्दन में हाथ डालकर उसके मूह को अपनी तरफ घुमाया और उसके होठों पर कब्जा करते हुए एक झटके में पूरा लंड उसकी संकरी चूत में ठूंस दिया…!
एक साथ में पूरा लंड जाते ही दर्द से उसकी गान्ड कंप-कंपा गयी.., मेरे होठों के अंदर ही वो गून…गगूवंन्न.. करके रह गयी..,
जब वो स्थिर हो गयी.., तो मेने उसके होठों को आज़ाद कर दिया…और उसकी चुचियों को मसल्ते हुए धीरे धीरे अपने लंड को आधी लंबाई तक अंदर बाहर करने लगा…!
15-20 मिनिट की चुदाई से मंजरी दो बार और झड चुकी थी.., मेने भी फाइनली अपने पंप का कॉक उसकी चूत में खोल दिया..!
मंजरी मेरे साथ चुदाई करके तृप्त हो गयी.., कपड़े पहनने से पहले उसने मेरे लंड को चूमा और बोली – पहली बार किसी मर्दाने लंड से चुद्कर मे धन्य हो गयी.., बहुत याद आएगा ये मुझे.., अंकुश बाबू.. हो सके तो फिर कभी मौका निकाल कर आ जाना…!
मेने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – तुमसे मिलकर मुझे भी बहुत मज़ा आया.., भगवान ने चाहा तो तुम्हारे पास ज़रूर आउन्गा.., अब चलते हैं बहुत देर हो गयी.., तुम्हारे पति आने वाले होंगे…!
जब हम उसके घर पहुँचे तो रूचि और उसकी सास खर्राटे लेकर सो रहे थे.., बगल में उसका बच्चा अपनी दादी की एक चुचि मूह में लेकर चूस्ते हुए शांति से सो रहा था…!
मेने सवालिया नज़रों से मंजरी की तरफ देखा.., वो मुस्कराते हुए बोली – ये अभी तक मेरा दूध पीता है.., मे जब इसके पास नही होती हूँ तो अम्मा ही अपनी चुचि से लगाकर चुप करा देती हैं…!
मंजरी की सास की गोरी चिट्टी एक पूरी चुचि उसके ब्लाउस से बाहर थी.., उसकी सुडौल चुचि पर मेरी नज़र ठहर सी गयी.., इतनी उमर में भी इतनी पुष्ट चुचियाँ..किसी का भी लॉडा खड़ा कर्दे…!
मेरी नज़रों को ताड़ते हुए मंजरी बोली – क्या देख रहे हो अंकुश बाबू.., अम्मा अभी भी किसी जवान लौंडिया से कम नही हैं.., मौका मिले तो आपको भी पानी पिला देंगी…!
मेने उसकी एक चुचि को ब्लाउस के उपर से ही उमेठते हुए कहा – अच्छा ! ऐसा है तो दिला दो मौका.., हम भी तो देखे.., तुम्हारी अम्मा कितनी जवान हैं…!
मेरी बात पर वो खिल खिलाकर हँस पड़ी.., उसकी हसी की आवाज़ से रूचि और उसकी सास दोनो की नींद खुल गयी…,
हमें अपने पास खड़ा देख कर उन्होने अपनी खुली चुचि को तुरंत अपने आँचल से ढक लिया.., वो ज़्यादा शर्मिंदा ना हो इसलिए मे फ़ौरन झोंपड़ी से बाहर निकल आया…! तभी मुझे रामू और ललित साइकल से आते हुए दिखे…!
रामू को 5 लीटर डीजल मिल गया था…, मेने रामू को 500/- का एक नोट थमा दिया उसके इस काम के लिए जो मेरे लिए इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरी था.., जिसे उसने थोड़ी ना नुकुर के बाद अपनी पत्नी का इशारा पाकर ले लिया…!
हमने अब अतिशीघ्र वहाँ से निकलने का प्लान किया.., जिसे मंजरी ने दोपहर के खाने तक टाल दिया.., सबने अपना नहाना धोना किया.., इसके लिए उसी झोंपड़ी के पीछे एक कुआँ था उससे बाल्टी से पानी निकालकर नहाना था…!
कुए के पास ही औरतों के लिए एक घास फूंस की ओट बनाकर बाथरूम बनाया गया था..,
नहाने के बाद मेने अपने अंडरवेर और बनियान नही पहने, खाली पॅंट में तोड़ा अजीब सा तो लग रहा था लेकिन शरीर फ्रेश रखने के लिए नहाना भी ज़रूरी था सो ये भी करना पड़ा…!
मंजरी और उसकी सास जिसका नाम मुझे मंजरी ने चुदाई के समय बताया (सविता देवी) ने बारी बारी से हम सबके नहाने के बाद रूचि को भी नहाने के लिए कहा…!
जब उसने कपड़े ना होने की बात कही तो मंजरी ने अपने नये साड़ी, ब्लाउस और पेटिकोट निकाल कर दिए जिन्हें उसने किसी खास मौके पर पहनने के लिए रखे हुए थे…!
रूचि जब नहा-धोकर पहली बार जब एक सिंपल सी फूलों वाली साड़ी ब्लाउस में मेरे सामने आई तो मे उसे देखता ही रह गया.., मुझे लगा जैसे मोहिनी भाभी जब शादी करके पहली बार हमारे घर आई थी..वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी हैं…!
वो ही कद काठी, वो ही चेहरा.., बस कमी थी तो हाथों में काँच की हरी हरी चूड़ियों, सोने के कंगन, गले में मन्गल्सुत्र और माँग में सिंदूर की…!
मे अपलक उसे देखे ही जा रहा था, मुझे यौं एकटक अपने आप को घूरते पाकर रूचि के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी.., मेरे पास आकर बोली – क्या हुआ चाचू.., मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो जैसे पहली बार देखी हूँ…?
मे हड़वड़ाते हुए बोला – व.व.वो.वू.. तुम्हें इन साड़ी ब्लाउस में अचानक देखकर मुझे लगा जैसे भाभी मेरे सामने आ गयी.., जब वो पहली बार हमारे घर में आई थी.., बिल्कुल तुम्हारी तरह ही दिखती थी…,
बहुत प्यारी लग रही है मेरी गुड़िया…, किसी की नज़र ना लगे.. मेरी बच्ची को.. ये कहकर मेने उसके सुंदर से चेहरे को जो नहाने के बाद निखर आया था.., अपने दोनो हाथों में लेकर उसके ललाट को चूम लिया…!
सही कहा अंकुश जी आपने.., आपकी बिटिया वाकई में स्वप्नलोक की परी जैसी लग रही है..,
ये कहते हुए मंजरी ने पास आकर अपनी आँख की कोर से हल्का सा काजल चुराकर रूचि के कान के पीछे लगाते हुए बोली –
अब किसी की बुरी नज़र इनको छू भी नही सकेगी.., ये काला टीका इनको हर बुरी नज़र से बचाएगा…!
फिर वो रूचि के दोनो कंधों को पकड़ कर उसे उपर से नीचे तक निहारते हुए बोली – वाह ! रूचि आपको मेरे कपड़े एकदम से फिट आगये…, ऐसा लगता ही नही कि ये किसी और के होंगे.., है ना..!
हां चाची जी.. आप बहुत ही नेक और समझदार हैं.., इतना कहकर रूचि उसके गले लग गयी.., हो सके तो समय निकाल कर आप सब लोग हमारे घर ज़रूर आना.., माँ और चाची आपसे मिलकर बहुत खुश होंगे…!
पहली बार रूचि के मूह से चाची शब्द सुनकर मंजरी की आँखें नम हो गयी.., एक अंजाना रिस्ता कैसे बनता है आज वो अपनी आँखों से देख रही थी..,
फिर उसने हमें कुच्छ देर और बैठने का कहकर खुद अपनी सास के साथ रसोई में चली गयी.., हम सबके लिए दोपहर के खाने का इंतेजाम करने…!!!!
रसोई में खाना बनाते हुए सास बहू आपस में बातें कर रही थी…, सविता देवी अपनी बहू को प्यार से डाँटते हुए बोली – एरी बेहया बेशर्म, यौंही सीधे वो बाबूजी को साथ लेकर अंदर घुस आई…?
थोड़ा सोच विचार तो कर लिया कर.., औरतों के सोते समय कपड़े इधर उधर हो ही जाते हैं.., तुझे ज़रा भी ख़याल नही आया… कूढ़ मगज कहीं की…!
मंजरी हँसते हुए बोली – अरे तो क्या हो गया अम्मा.., वो तुम्हारे बेटे जैसे हैं.., और फिर आपका दूध दिख भी गया तो कॉन सा उन्होने उसे चूस लिया..?
सविता देवी बेलन से उसको मारने का नाटक करते हुए बोली – तू चुस्वा ले अपने दूध.., मेरी सूखी चुचियों में क्या धरा है.., अपनी चुस्वाएगी तो थोड़ा बहुत कुच्छ बेचारे के पेट में भी जाएगा…!
मंजरी – ओह..हो… अब वो बेचारे भी हो गये.. ? वैसे एक बात कहूँ अम्मा.., बाबूजी तुम्हारी मस्त गोरी-गोरी खरबूजे जैसी चुचि को बड़े गौर से देख रहे थे.., लगता है पसंद आगाय हैं उनको.., कहो तो चूसने के लिए कह दूँ…?
सविता देवी उसके कंधे पर एक प्यारी सी धौल मारकर बोली – चल हट छिनाल कहीं की बहुत बेशर्म होती जा रही है.., कुच्छ तो ख्याल किया कर.., मे तेरी सास हूँ…!
मंजरी – हम दो ही तो हैं इस जंगल में अम्मा ! अब हसी ठिठोली करने का मन होता है तो किससे करें..? वैसे अभी तुम्हारी उमर ही क्या है अम्मा.., पिताजी की याद तो आती ही होगी ना…?
सविता देवी अपने पति का जिकर आते ही उनके चेहरे पर गुस्से की लकीरें सॉफ दिखाई देने लगी.., वो थोड़े तल्ख़ लहजे में बोली – नाम मत लेना उस नामर्द.., डरपोक का मेरे सामने..,
हिजड़ा साला कामचोर.., ज़रा सी ग़रीबी सहन नही कर पाया और हम सबको बीच मंझधार में छोड़ कर ना जाने कहाँ मर गया…?
अब भूल से भी मेरे सामने आगया तो मूह नोच लूँगी उस कमीने इंसान का.., इतना कहते कहते वो रो पड़ी.., मंजरी माफी माँगते हुए उन्हें अपने साथ चिपका कर चुप करने लगी…!
माहौल को थोड़ा फिरसे चेंज करने के लिए उसने शरारत करके उनकी एक चुचि को हल्के से मसल दिया.., सविता देवी लाज़कर उससे लिपट गयी…!
इधर बाहर मे, रूचि और ललित तीनों आपस में बातें कर रहे थे.., रूचि और ललित इतने घुल मिल गये थे कि अब वो लगते ही नही थे कि कुच्छ घंटों पहले तक वो एक दूसरे के लिए अजनबी थे…!
कुच्छ देर बाद खाना आगया.., सबने मिलकर खाना खाया.., छाछ, दही के साथ सिंपल साग भाजी रोटी ऐसी लग रही थी जैसे गाओं छोड़ने के बाद आज पहली बार इतना स्वादिष्ट खाना मिल रहा हो…!
विदा लेते वक़्त सभी की आँखें नम थी.., मेने रामू को सबके साथ शहर आकर घूमने के लिए कहा, मेरे वॉलेट में ज़्यादा पैसे तो नही थे.., फिर भी मेने सविता देवी और मंजरी को 5-5 हज़ार रुपये विदा के तौर पर दिए…!
वो दोनो हमें गाड़ी तक छोड़ने आने वाली थी लेकिन एहतियातन इनके लिए कोई मुसीबत खड़ी ना हो खुले में हमारे साथ देख कर इसलिए मेने उन्हें साथ आने से मना कर दिया…!
गाड़ी में डीजल डालकर गाड़ी स्टार्ट की, दो-चार बार इग्निशन लगाने के बाद वो स्टार्ट होगयि.., जैसे तैसे करके हम उतने डीजल में हाइवे तक पहुँचे.., वहाँ पेट्रोल पंप से कार्ड से टॅंक फुल कराया…!
पंप से ही मेने घर फोन करके बता दिया कि हम दो-चार घंटे में घर पहुँच रहे हैं.., फोन निशा ने उठाया था..,
जब उसने बताया कि रूचि के गम में भाभी ने बिस्तर पकड़ लिया है तो सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ…!
ये बात मेने रूचि को नही बताई.., रूचि मेरे बगल वाली सीट पर थी.., गाड़ी ड्राइव करते हुए मे भाभी के बारे में सोचने लगा…!
बेचारी बेटी के गम में पता नही कुच्छ खाया पीआ भी होगा या नही.., मॅंट्ली टूट गयी होंगी.., पर चलो ये मेने अच्छा किया कि घर फोन करके पहले ही बता दिया…,
शायद ये खुश खबर सुनकर वो फिरसे पहले जैसे चहकने लगें वरना अपनी माँ की हालत देख कर रूचि भी दुखी होगी…!
फिर सोचते सोचते मेरा ध्यान मंजरी और उसके साथ की गयी चुदाई के बारे में चला गया.., कैसे उसने मेरे उपर बैठते हुए पहली बार मेरा मोटा ताज़ा लंड बड़ी मुश्किल से अपनी छोटी सी चूत में लिया था…!
मेने अपने लंड को उस समय देखा था.., साले ने उसकी संकरी गली को किस तरह से चौड़ा दिया था…पूरी उपर तक भर गयी थी उसकी मुनिया…!
ये सोचते सोचते मेरे लंड में तनाव पैदा होने लगा.., बिना अंडरवेर के उसको अपना आकर बढ़ाने के लिए पॅंट के अंदर काफ़ी जगह मिल रही थी…!
वो लम्हे याद करते वक़्त भले ही मेरी नज़रें रोड पर थी लेकिन ध्यान तो चुदाई के लम्हे पर था.., जिसकी बजाह से मेरे मतवाले लंड ने आगे से पॅंट को उठाकर तंबू बना दिया…!
रूचि ग्लास से बाहर देख रही थी.., उसे कुच्छ ऐसा दिखा जिसके बारे में जानकारी लेने की गार्ज से उसने मेरी तरफ ध्यान दिया..,
इससे पहले कि वो मेरे से कोई सवाल पूछती.., उसकी नज़र मेरे पॅंट के तंबू पर पड़ गयी…!
मेरे दिमाग़ में वो सारे सीन उमड़ घूमड़ रहे थे.., मंजरी की चुदाई भी एक यादगार मोमेंट जैसा था.., इतनी अच्छी प्राकृतिक और रोमांटिक जगह हमेशा नही मिल सकती…!
उन्हीं सीन्स के चलते मेरा लॉडा भी अंदर उच्छल कूद मचा रहा था जिसकी हर एक हरकत को रूचि बड़े ध्यान से देख रही थी.., उसकी कोमल भावनायें अंगड़ाई लेने लगी.., आँखों में वासना की खुमारी छाने लगी…!
अचानक से उसे अपनी मांसल जांघों के बीच खुजली सी होने लगी और ना चाहते हुए भी उसका एक हाथ अपनी कुँवारी सखी पर चला गया…, मेरे पॅंट पर नज़र गढ़ाए वो उसे धीरे धीरे सहलाने लगी…!
जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी रूचि को ज़्यादा सहन नही हो पा रहा था.., अब उसका दूसरा हाथ उसकी एक चुचि के उपर पहुँच गया था.., साड़ी के आँचल में छुपाकर वो अपने हाथ से अपनी चुचि को मसल्ने लगी…!
वो अपनी भावनाओं पर काबू रखने की लाख कोशिश कर रही थी.., लेकिन उसके दोनो हाथ शायद अब उसके बस में नही थे.., वो अब बारी बारी से अपनी दोनो चुचियों को बड़ी बेदर्दी से मसलने में जुट गयी…!
अचानक से उसने अपनी कड़क हो चुकी घुंडी जो बिना ब्रा के ब्लाउस में फूलकर एकदम खड़ी हो गयी थी, उसे उसने अपनी चुटकी में लेकर मरोड़ दिया…,
सस्स्सिईईईई…….आआअहह……, लाख कंट्रोल करने के बाद भी उसके मूह से कामुकता से भरी कराहह.. निकल ही गयी.., जिसने मेरे ध्यान को भटकने पर मजबूर कर दिया…!
मेने जैसे ही रूचि की तरफ देखा उसने अपने हाथों को रोक कर शर्म के मारे अपनी गर्दन घूमाकर फिरसे वो बाहर की तरफ देखने लगी.., तभी मुझे अपने खड़े लंड का ध्यान आया…,
और रूचि की तरफ नज़र डालते हुए मेने उसे एक तमाचा जड़ते हुए मन ही मन कहा – मादरचोद.., तेरी वजह से ये मासूम परेशान हो गयी.., भोसड़ी के कुच्छ देर शांत नही रह सकता था…?
मेरे लौडे ने भी घुड़कते हुए जैसे जबाब दिया हो…भेन के लौडे खुद तुझे अपने विचारों पर कंट्रोल नही है.., और मादरचोद मुझे दोष दे रहा है..,
रूचि तेरी भतीजी है तो क्या हुआ.., उस बेचारी के पास भी तो एक चूत है…, वो भी तो उसे परेशान करती ही होगी.., अब शर्म लिहाज बस कुच्छ कह नही पाती तो इसका मतलब ये तो नही की तेरा उसके प्रति कोई कर्तव्य नही बनता…!
क्या मतलब… मेरे दिमाग़ ने अपने लौडे वाले मन से सवाल किया.., तू क्या चाहता है.., मे अपनी नादान भतीजी के साथ वो सब… नही.. नही.. ये कभी नही हो सकता… नेवेर…!
तो फिर उसकी इतनी फिकर क्यों कर रहा है.., माँ चुदाने गयी भतीजी और उसकी इक्च्छायें.., अब सामने देख ढंग से गाड़ी चला भोसड़ी के वरना सबकी एक साथ मैया चुद जाएगी….!
मे मन ही मन चल रहे अपने विचारों के द्वंद पर हँस पड़ा.., रूचि ने मेरी तरफ मूह करके पुछा- क्या हुआ चाचू…?
मेने झेन्पते हुए कहा – कुच्छ नही बेटा.., बस कुच्छ देर में अपना शहर आने वाला है.., फिर मेने बॅक मिरर में देखा.., ललित भी गुम सूम सा पीछे की सीट पर बैठा शायद वो भी कुच्छ सोच ही रहा होगा…!
मेने उसका ध्यान अपनी ओर करते हुए पुछा – क्यों ललित मोहन चौरसिया क्या सोच रहे हो भैया..?
ललित अपने विचारों को विराम देते हुए बोला – कुच्छ नही भैईयाज़ी.. बस ऐसे ही कुच्छ बचपन की बात याद आगाय थी…!
बीती बात बिसार के आगे की सुधि लियो… मेने उसे उपदेश सा देते हुए कहा – अब आगे की सोचो क्या करना है.., जो तेरा मन करे बोल देना.., तेरी हर वो इक्च्छा पूरी की जाएगी जो कभी तूने सपने में भी देखी हो…!
थॅंक यू भैईयाज़ी… आप सचमुच देवता हैं… ये कहकर ललित पीछे से मेरे गले में बाहें डालकर लिपट गया.., मेने मुस्कराते हुए एक हाथ पीछे करके उसके गाल सहला दिए…!!!!
हमने जैसे ही कोठी के कंपाउंड में एंटर किया .., बहुत सारे आस-पड़ौस के लोग बाहर गार्डन में घास पर बैठे आपस में बातें कर रहे थे…!
गाडी की आवाज सुनते ही घर के अंदर मौजूद सारे लोग बाहर आगये ., गांव से सभी चाचाओं की परिवार, गांव में आस पड़ौस के हमारे चाहने वाले और बुआओं समेत रूचि के मामा, मामी और उनके बच्चे सभी खबर सुनकर आ चुके थे …!
वो तो अच्छा हुआ की मेने पेट्रोल पंप से अपने आने का फ़ोन कर दिया वार्ना इस समय भी घर में शायद मातम छाया हुआ मिलता .!
रूचि ने गाडी से बाहर जैसे ही कदम रखा ., उसे एक साधारण सी साड़ी ब्लाउज में देख कर सभी हैरत में पद गए .,
सबने बारी बारी सी उसे गले जगाया ., अपने अपने आषीर्वाद दिए .., इस दौरान ललित को तो कौन पूछने वाला था ., में खुद ऐसा फील कर रहा था मानो “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना ”.
मेने भी अपनी इम्पोर्टेंस दिखने की कोई कोशिश नहीं की और बाहर गार्डन में बैठे लोगों की तरफ बढ़ गया .,
उन्होंने मुझे चारों तरफ से घेर लिया और तरह तरह के सवाल जबाब करने लगे .!
मेने भी अपनी तरह से सबको संतुष्ट करने की कोशिश की ., जितनी इनफार्मेशन देनी थी दी…, वाकी बातें जो बताने लायक नहीं थी उन्हें में गोल कर गया !
बाहर से पड़ौसियों को विदा करके में घर के अंदर आया ., जहां पूरा हॉल घरवालों से ही भरा हुआ था ., रूचि बीचो -बीच में किसी सेलिब्रिटी की तरह अपनी मम्मी और वाकई औरतों के साथ बैठी थी !
मुझे देखते ही रूचि ने इशारा करके मुझे अपने पास बुलाया ., मेने भी इशारा करके ज्यादा कुछ बातें न करने के लिए मन किया .
फिर मेने सबको सम्बोधित करते हुए कहा – देखिये रूचि थोड़ा मेंटली स्ट्रेस में रही है ., प्लीज आप लोग थोड़ा उसे आराम करने दो .,
बड़ी चाची बोली – लेकिन बेटा.., ये तुम्हें कहाँ और कैसे मिली ? इस बारे में इसने भी कुछ नहीं बताया कौन लोग थे जो बिटिया को किडनेप करके ले गए थे नाशपीटे.?
में – रूचि के साथ कॉलेज में जो घटना हुयी थी ये उसी हरामखोर की हरकत थी, उसी ने कुछ गुंडों के हाथों इसको किडनेप कराया था ., वो तो समय रहते मेने उन गुंडों की गाडी का सुराग लगा लिया !
वो यहां से काफी दूर दुसरे राज्य में इसे ले गए थे ., में भी उनको सूंघते सूंघते सुराग लगते हुए वहाँ तक पहुँच गया.., और समय रहते मेने रूचि को उनकी क़ैद से आज़ाद करा लिया…!
मेरे इस सीधे सपाट जबाब से अधिकतर लोग तो संतुष्ट नज़र आ रहे थे लेकिन बहुत से लोगों के चेहरों पर अब भी सवालिया निशान मौजूद थे…!
हमारे घर पहुंचते पहुँचते शाम हो चुकी थी ., गांव के कुछ लोग दोनों बड़े चाचों के साथ रात 8 बजे तक गांव वापस लौट गए, लेकिन और बहुत से लोग बचे रह गए जिनमें मुख्य तौर पर राजेश भाई और उनकी फॅमिली के अलावा हमारे अपने परिवार के ही लोग रह गए थे…!
रात 10 बजे कृष्णा भैया और प्राची जो की अब 5-6 महीने की प्रेग्नेंट थी वो आये ., मेने उनके आते ही पूछा – भैया जो मेने आपसे कहा था राठी और उसके बेटे को उठाने का उसका कुछ किया आपने ?
भैया – अरे यार , ऐसे थोड़े न होता है ., उसके लिए अरेस्ट वारंट निकलवाने पड़ते हैं उसके बिना सिक्युरिटी कैसे किसी को अरेस्ट कर सकती है ?.., और वारंट निकलवाने के लिए कुछ ठोस सबूत दिखने पड़ते हैं जो हमारे पास नहीं थे उनके खिलाफ..…!
राठी कोई छोटा मोटा आदमी नहीं है ..,
मेँ – क्या भैया…, आप तो टीपिकाली एक सुब इंस्पेक्टर की तरह बात कर रहे हैं ., एक SSP की क्या पावर होती है ये मुझे आपको बताने की जरुरत नहीं है .,
अपने लेवल पर कमिश्नर से भी वारंट ले सकते थे ., ये आपके अपने घर का मामला था ., अगर आप उसी समय बाप बेटे को उठवा लेते तो आज उसका लौंडा टोंटा नहीं होता !
भैया – क्या .? टोंटा मतलब .? उसका तुमने हाथ ही काट डाला क्या ..?
मेँ – नहीं मैने नहीं … संजू ने , में तो उनके अड्डे तक पहुँच भी नहीं पाया ,
संजू का नाम सुनते ही सब लोग एक साथ चौंक पड़े .., छोटी चाची जो उसके ज्यादा करीब रही थी ., बेचैनी के साथ बोली – क्या कहा लल्ला तुमने ? संजू वहाँ कैसे पहुँच गया ?
मेँ – पहुँच नहीं गया ., वो वहाँ पहले से ही था.., शायद वो गांव से भागकर वहीँ चला गया था .., अफ़सोस इस बात का है की वो हमारे बीच रहकर भी सुधर नहीं पाया.., उसकी मुजरिमों वाली आदत उसके अंदर से निकल ही नहीं पायी !
जब वो उन् मुजरिमों का साथी ही था तो फिर संजू ने उसका हाथ क्यों काट डाला..? भाभी ने कुछ न समझ आते हुए पूछा .
मेँ – ये सब आपको अच्छे से रूचि ही बता पाएगी , और हाँ उसके साथ पूछ ताछ करते वक़्त हम मर्दों में से कोई न हो तो ज्यादा बेहतर होगा.., वार्ना वो अपनी आप बीती खुलकर नहीं कह पाएगी !
भाभी के साथ घर की सभी औरतें रूचि के कमरे में चली गयी उसके बाद कृष्णा भैया ने कहा – अब क्या करना है आगे…?
बाबूजी जो अधिकाँश तौर पर शांत ही रहते थे ., अपनी पोती पर हुए अत्याचार से दुखी थे ., कृष्णा भैया के इस सवाल पर मेरे कुछ कहने से पहले थोड़े गुस्से वाले स्वर में बोले -
कृष्णा तू सचमुच सिक्युरिटी की नौकरी कर रहा है या कहीं घास खोदने जाता है ..? तेरी जगह कोई ठाणे का इंचार्ज भी होता तो बिना वारंट के उस कमीने को हथकड़ी डालकर हवालात में इतनी धुनाई करता की वो किसी तोते की तरह सब कुछ बक देता !
अब भी यहां अंकुश से पूछ रहा है आगे क्या करना है ., ये कोई तलम टोल वाला मामला है .? जिसे तुम सिक्युरिटी वाले हमेशा बचने के लिए इस्तेमाल करते रहते हो .,
ये अपनी खुद की बेटी के किडनेपिंग का मामला है.., अब तो उस हराम के जाने राठी को अरेस्ट करवा !
बाबूजी की फटकार सुनकर कृष्णा भैया का सर जिल्लत के कारन झुक गया.., फिर उन्होंने अपने SP को फ़ोन करके राठी को तुरंत अरेस्ट करने का आदेश दिया .!
इन सब झमेलों में मेँ ललित को भूल ही चूका था.., जब ध्यान आया तो मेने उसे हॉल में इधर उधर तलाश किया लेकिन वो कहीं दिखाई नहीं दिया .!
मैने जब वहाँ मौजूद सब लोगों से उसके बारे में पूछा तो छोटे चाचा बोले – कहीं तुम उस 15-16 साल के लड़के की बात तो नहीं कर रहे जो तुम्हारे साथ आया था..?
मेँ – हाँ जी… हांजी … वो ही .. कहाँ है वो…?
चाचा – तुम्हारे साथ बाहर गार्डन में तो देखा था उसे.., फिर पता नहीं कहाँ चला गया …?
चाचा की बात सुनकर में दौड़ा दौड़ा बाहर गार्डन की तरफ लपका.., इधर उधर ढूंढ़ने पर वो मुझे वहीँ घास पर एक कोने में सोता हुआ मिल गया…!
दो रातों और तीन दिनों से वो भी बेचारा कहाँ सो पाया था.., मेने उसे नहीं जगाया और सोते हुए को ही उठाकर अपने कंधे पर डाला और अंदर लाकर एक कमरे में सुला दिया…!
वापस जब उन सबके पास आया तो बड़े भैया ने पूछा – ये लड़का कौन है अंकुश..?
मैने उसके बारे में सब कुछ तफ्सील से बताया.., और ये भी बताया की उसने मेरी किस हद तक मदद की है.., उसको अपने साथ यहां लाने का बाबूजी समेत सबको मेरा ये फैसला उचित लगा…!
बाबूजी – लेकिन बेटा तुमने बताया की तुम उस अड्डे तक नहीं पहुँच पाए फिर तुम्हें रूचि बिटिया कहाँ मिल गयी…, और संजू अब कहाँ है…?
मेँ – मुझे नहीं पता रूचि वहाँ तक कैसे पहुंची , पर संजू शायद अब इस दुनिया में नहीं रहा.., ये खुलासा सुनते ही सबके मुँह से एक साथ निकला… क्या..??? क्या कहा तुमने…? क्या हुआ संजू के साथ…?
फिर मैने वो सब कह सुनाया जो रूचि ने मुझे बताया था सिर्फ कुछ बातों को छोड़कर जिन्हें मेँ अपने बड़ों के सामने नहीं कह सकता था.., संजू के साथ हुयी दुर्घटना से सबके चेहरों पर दुःख की एक काली परछाई साफ साफ दिखाई देने लगी !
बड़े भैया रुंधे स्वर में बोले – हे भगवन ये तूने क्या किया उसके साथ..? हम उस नेक बन्दे को सहारा भी नहीं दे पाए और वो जाते जाते भी अपना फ़र्ज़ निभा गया…!
तभी रूचि के कमरे से भी भाभी और चाची की एक साथ चीखें सुनाई दी.., शायद रूचि ने उन्हें भी संजू की खबर सुना दी थी.., संजू की मौत की खबर सुनकर घर भर में मातम छा सा गया..,
उस रात किसी ने भी खाने पीने का कोई जीकर तक नहीं किया.., सबको संजू की मौत ने जैसे तोड़कर रख दिया था…!
लेकिन एक रहस्य जिसने हम सब की नींद भी उड़ाके रखदी थी वो अभी भी मुँह बाए हमारे सामने ज्यों का त्यों खड़ा था.., जो अब शायद कभी उजागर हो पायेगा भी या नहीं …!!!