Update 15
करीब एक घंटे के बाद कृष्णा भैया के पास उनके एसपी का फोन आया.., विक्रम राठी भी शहर से गायब हो चुका था.., सिक्युरिटी बल को उसके ठिकानों से बैरंग वापस लौटना पड़ा…!
खबर सुनकर वो अकेले ही अपने ऑफीस चले गये…,
वो रात घर में शायद ही किसी को नींद आई होगी.., लेकिन मे दो-तीन रात से सो नही पाया था.., वहीं हॉल में बैठे बैठे मेरी आँखें बंद होने लगी…!
भैया ने कहा – अंकुश तुम जाओ, अपने कमरे में जाकर सो जाओ..., बाबूजी, चाचा आप लोग भी अब आराम कर्लो..,
दूसरे दिन मे देर तक सोता रहा.., निशा ने भी मुझे नही जगाया.., सब लोग नाश्ते पर मेरा इंतजार कर रहे थे तब भाभी मुझे जगाने आई…!
भाभी – लल्ला अब उठो 9 बज गये.., बाबूजी, चाचा जी नाश्ते पर इंतेजार कर रहे हैं.., मे अनमने भाव से उठकर सीधा बाथरूम की तरफ जाने लगा..,
मेने भाभी से एक शब्द भी कुछ नही बोला जो मेरी आदत के एकदम खिलाफ था.., वो मेरा ये रबैईया देखकर हैरान थी.., मेरे इंतजार मे वो पलंग पर बैठकर तब तक इंतेजार करती रही जब तक मे फ्रेश होकर बाहर नही आगया..!
मे तौलिया को पलंग पर फेंक कर उनसे बिना बात किए कमरे से जाने लगा तभी भाभी ने मेरी कलाई थामकर मुझे रोका और मेरे चेहरे पर अपनी नज़रें गढ़ा कर बोली…
क्या बात है लल्ला.., तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो…?
मेने बिना उनकी तरफ देखे कहा – कैसा व्यवहार..?
भाभी – मेने जगाया तब तुम बिना मॉर्निंग विश किए बाथरूम में घुस गये.., बाहर आकर बिना कुछ बोले सीधे बाहर चल दिए.., बात क्या है.., मुझसे कोई ग़लती हो गयी है..?
मे – आप खुद अपने आप से क्यों नही पुछति.. क्या ग़लती हुई है…?
भाभी – मुझे तो कुछ याद नही है.., तुम्ही बता दो…!
मे – आपने मुझ पर, अपने बेटे पर अविश्वास जो किया है…,
भाभी – ये तुम क्या कह रहे हो…? मे भला तुम पर अविश्वास कैसे कर सकती हूँ.., तुम भली भाँति जानते मुझे तुमपर खुद से भी ज़्यादा विश्वास रहता है.., फिर तुम किस अविश्वास की बात कर रहे हो..?
मे – तो फिर आपने खाना पीना छोड़कर बिस्तर क्यों पकड़ लिया था.., क्या आपको मुझ पर भरोसा नही था कि मे आपकी बेटी को वापस ला पाउन्गा या नही..?
भाभी – अच्छा तो निशा की बच्ची ने तुम्हें सब कुछ बता दिया.., ठहरो अभी खबर लेती हूँ उस दूति की…,
मे – उसकी खबर आप बाद में ले लेना पहले आप मेरी बात का जबाब दीजिए.., आपने ऐसा क्यों किया..? क्या आपके ये सब करने से रूचि वापस आ जाती..?
भगवान ना करे आपको कुछ हो जाता तो..? क्या होता इस घर का..? कभी सोचा है आपने.., ये कहते कहते मेरा गला रुंध गया…!
भाभी ने आगे बढ़कर मेरे गले में हाथ डालकर मुझे अपने सीने से लगा लिया.., वो रुँधे गले से बोली – मुझे माफ़ कर दो लल्ला.., पहले रूचि फिर तुम्हारा कोई पता नही, ना फोन ना कोई खबर..,
बार बार इधर से फोन लगाया.. तो लग ही नही रहा था..,, अब तुम ही बताओ मे कैसे सबर कर पाती.., मेरे दिल को धक्का सा लगा…, वो अच्छा हुआ तुमने घर लौटने से पहले फोन कर दिया.., वरना तुम्हारे आने तक मेरा क्या होता…?
मे – सॉरी भाभी मे इतने टेन्षन में था कि रात को फोन नही कर पाया, दिन में जब करने बैठा तो बेटर्री ख़तम थी.., खैर अब आइन्दा ऐसा कभी मत करना वरना जीवन भर आपसे बात नही करूँगा…!
भाभी मेरा कान खींचते हुए बोली – अच्छा बाबा नही करूँगी.., अब चलो सब लोग राह देख रहे होंगे नाश्ते पर…!
जब मे डाइनिंग हॉल में पहुँचा तो सब लोग नाश्ता शुरू कर चुके थे.., अच्छी बात ये थी कि साथ में ललित भी था जो अब नींद पूरी होने से फ्रेश दिख रहा था…!
मेने उसके बालों को सहलाते हुए कहा – कैसा है मेरा शेर बच्चा.. नींद पूरी हो गयी..?
उसने मेरे सीने पर अपना सिर टिका कर कहा – हां भैया जी.. अब मे पूरी तरह से फ्रेश हूँ.., आप भी आइए सब लोग आपका इंतजार कर रहे थे..!
मेने अपनी चेयर पर बैठते हुए कहा – हां यार मेरी भी नींद थोड़ी लंबी हो गयी.., दो रातों तक सोए नही ना…!
अभी मेने नाश्ता शुरू ही किया था कि तभी कृष्णा भैया भी आ गये.., और नाश्ते पर बैठते हुए बोले- कल तुमने किसी शेर सिंग का जिकर किया था.., क्यों ना हम जाकर उससे पुच्छ ताछ करें…?
मे – आपको पता है वो कॉन है..? उसका बाप मालखान सिंग डाकू के गॅंग में रह चुका है.., आज उसके इलाक़े में उसकी इतनी पवर है कि वहाँ का बड़े से बड़ा नेता भी उसके यहाँ आकर हाज़िरी देता है…!
जब आपकी पोलीस अपने शहर में कुछ नही कर पाती तो समझो दूसरे राज्य में जाकर बिना किसी ठोस सबूत के इतने पवरफुल आदमी पर हाथ डाल पाएगी..?
कृष्णा भैया मेरी बात पर कुछ चिड़ते हुए बोले – तुम यार हर समय पोलीस की नाकामियों को ही क्यों गिनवाते रहते हो..? मेने उससे सिर्फ़ पुच्छ ताच्छ करने की बात कही है…!
मे – जिसे वो सिरे से ही खारिज कर देगा.., हम उस गाड़ी की शिनाख्त के आधार पर कुछ साबित नही कर सकते.., ऐसी और तमाम गाड़ियाँ होंगी हिन्दुस्तान में..!
और चौकी पर तैनात उन पोलीस वालों की बात का क्या भरोसा.., जो उसका नाम लेने से भी हिचकिचा रहे थे.., वो अब सच बोलेंगे क्या..?
बाबूजी – हमारी बेटी हमें सही सलामत मिल गयी.., भाड़ में जाए वो शेर सिंग.., हमारी उससे कोई जातिया दुश्मनी तो है नही…,
राठी से उसके किस हद तक रिश्ते हैं.., इससे भी हमें क्या मतलब.., बस तुम उस राठी और उसके लड़के पर नज़र रखना.., शहर में दिखे तो धर दबोचना हरम्जादो को…!
कृष्णा – फिर भी हमें रूचि के बयान दर्ज करके रखने पड़ेंगे, तभी उसके खिलाफ पुख़्ता केस बना सकते हैं…!
मे – पोलीस के तौर पर आपको जो करना है वो आप जानो…, मेने जो बताना था वो आपको बता दिया है…!
नाश्ते के बाद सभी बच्चे ललित के साथ रूचि के कमरे में थे.., चाची का अंश अब 5 साल का था.., फर्स्ट में पढ़ रहा था.., भाभी का सुवंश उससे डेढ़ साल छोटा था.., वो भी अब केजी में पढ़ने जा रहा था..,
मेरा और निशा का आयुष अभी घर पर ही मस्ती लेता रहता था.., ललित के आने से उन्हें खेलने के लिए एक साथी और मिल गया था.., क्योंकि रूचि अब बोर्ड एग्ज़ॅम की वजह से उनपर ज़्यादा ध्यान नही दे पा रही थी…!
चारो मिलकर रूचि के कमरे में धमाल कर रहे थे.., उसकी पढ़ाई डिस्टर्ब हो रही थी सो उसने ललित को उन सबको दूसरे कमरे में ले जाकर खेलने को कहा..,
वो कुछ देर बिना कुछ कहे रूचि को पढ़ते हुए देखता रहा.., जब कुछ देर और वो वहाँ से नही गया.., तीनों बच्चे शोर कर रहे थे तो रूचि ने थोड़ा तीखे शब्द स्तेमाल करते हुए कहा-
ललित तुम्हें पता है मेरा इस साल बोर्ड है.., समय भी ज़्यादा नही बचा है.., एक महीने में मुझे एग्ज़ॅम की तैयारी करनी है यार., यहाँ से इन शैतानो को ले जाना भाई.. मुझे डिस्टर्ब होता है…!
ललित थोड़ा सा दुखी स्वर में बोला – मुझे भी पढ़ना था दीदी..,
रूचि चोन्क्ते हुए बोली – तुझे क्या पढ़ना है.., पहले किसी कॉलेज में अड्मिशन तो करले.., तभी तो पढ़ेगा..!
वैसे किस क्लास में पढ़ रहा था अब तक..?
9त में अड्मिशन लिया था.., लेकिन एक महीने बाद ही बाढ़ ने वो सब तहस नहस हो गया…!
रूचि अपनी जगह से उठी.., उसने अपनी अलमारी से पुरानी किताबों से ढूँढ कर 9थ की कुछ बुक्स उसे पकड़ा दी.., ले इन्हें पढ़.. ये तेरे काम की हैं.
ललित – लेकिन दीदी मे एग्ज़ॅम तो नही दे पाउन्गा ना इस बार..?
रूचि ने उसके बालों को अपने हाथ से सहलाते हुए कहा – ये तू चाचू से पूछ.., वो अगर कह देंगे तो तू इस साल भी एग्ज़ॅम दे पाएगा…,
अब तू जा भाई यहाँ से प्लीज़ और मुझे पढ़ने दे..!
बुक्स लिए हुए ललित दौड़ा दौड़ा मेरे पास आया.., मे इस समय अपने ऑफीस निकालने की तैयारी में ही था.., वो बड़ा खुश लग रहा था.., उसके हाथों में बुक्स देखकर मेने कहा - अरे
ललित ये बुक्स किसकी हैं..?
ललित – ये 9थ की हैं भैईयाज़ी.., रूचि दीदी ने दी हैं मुझे पढ़ने.., आप मेरा अड्मिशन करवाने वाले थे ना…!
मे – अरे यार पहले तो तू ये बता कि ये तूने कैसे रिस्ते जोड़ लिए हैं.., मुझे भैईयाज़ी कहता है…, रूचि को दीदी कहता है.. जबकि वो मेरी भतीजी है…!
ललित – वो मेरे से बड़ी हैं.., उनका नाम लेना मुझे अच्छा नही लगेगा.., क्यों ना मे भी आपको भी चाचू ही कहूँ…?
तभी भाभी हमारी तरफ आती हुई दिखी.., मेने उन्हें सुनाते हुए कहा – भाई मुझे तो कोई प्राब्लम नही है.., पहले इनसे पुच्छ ये तेरी माँ बनने के लिए तैयार हैं या नही…!
भाभी ने पास आकर उसके सिर पर अपना ममता से भरा हाथ रखते हुए कहा – रूचि ने मुझे तेरे बारे में सब कुछ बता दिया.., तूने उसकी मदद करके भाई का फ़र्ज़ तो निभा ही दिया है..,
तेरे जैसे होनहार और संस्कारी बेटे की माँ बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी.., वैसे क्या बातें हो रही थी तुम दोनो में..?
ललित अपनी बुक्स दिखाते हुए बोला – मे आगे पढ़ना चाहता हूँ.., ये बुक्स भी दीदी ने मुझे दे दी हैं.., पर अब मे इस साल तो एग्ज़ॅम नही दे पाउन्गा…!
भाभी ने मेरी तरफ देखा.. उनका इशारा समझ कर मेने कहा – अब सिर्फ़ मुश्किल से महीना डेढ़ होगा 9थ के एग्ज़ॅम में.., इतने कम समय में तुम पास लायक तैयारी कर सकते हो…?
ललित – आप लोग थोड़ी हेल्प करें तो कोशिश कर सकता हूँ…!
मे – चल ठीक है फिर.., कोशिश कर, एग्ज़ॅम में बिठाने की मे कोशिश करता हूँ.., मेरी बात सुनकर ललित खुश हो गया और मस्ती में झूमते हुए अपने कमरे की तरफ चल दिया पढ़ाई का शुभारंभ करने…!
उसके जाते ही भाभी बोली – बड़ा हौन्हार बच्चा है.., पर क्या पास लायक कर पाएगा अब..?
मे – उसे कोशिश करने दो.., इस बार पास या फैल कोई मायने नही रखता.., कम से कम अगले साल 10थ बोर्ड के काम तो आएगा..!
शाम को मुझे ऑफीस से आते आते काफ़ी देर हो गयी थी.., सबके साथ डिन्नर लेकर सीधा अपने बेडरूम में चला गया.., ऑफीस का थोड़ा अर्जेंट काम निपटाना था.., सो लॅपटॉप लेकर बेड पर ही बैठ गया…!
निशा अपने काम निपटाकर लेट तक लौटी.., तब तक बस मे अपना काम बाइनडप ही कर रहा था जब उसने कमरे में कदम रखा…!
वो सोने से पहले अपने कपड़े चेंज करने वाली थी.., शेडी के इतने दिनो के बाद भी पता नही क्यों वो मेरे सामने कपड़े चेंज करने में शर्म महसूस करती थी और मेरे कमरे में रहते हुए वो अपने कपड़े चेंज करने बाथरूम में चली जाती थी…!
मेने जानबूझकर लॅपटॉप बंद नही किया.., और अपने आप को उसके साथ बिज़ी दर्साते हुए उसके कीबोर्ड से खेलने लगा..!
उसने एक बार मेरी तरफ देखा.., जब उसे लगा कि मे अपने काम में बिज़ी हूँ.., उसकी तरफ मेरा बिल्कुल भी ध्यान है ही नही तो वो वहीं अलमारी के सामने ही अपनी साड़ी उतारने लगी…!
मे अपना सिर लॅपटॉप में घुसाए कनखियों से उसकी तरफ देख रहा था.., साड़ी उतारकर निशा ने एक तरफ को रख दी.., एक बार फिर मुड़कर मेरी तरफ देखा.., और अपने ब्लाउस के बटन खोलने लगी…!
पेटिकोट का नाडा खुलते ही वो उसके पैरों में पड़ा था.., आअहह… निशा के 36 के गोरे गोरे मक्खन जैसे चिकने मुरादाबादी कलश मेरे सामने थे.., दोनो की दरार अभी मात्र चार अंगुल की माइक्रो पैंटी से धकि हुई थी…!
निशा की उभरी हुई गान्ड देखकर मेरा लॉडा फडफडाने लगा.., खाली एक लूस शॉर्ट को उसने अपने उपर तान कर उसका तंबू बना लिया…!
काली ब्रा और सेम कलर की पैंटी में निशा का फक्क गोरा बदन कमरे की दूधिया रोशनी में जगमगा रहा था.., उसके नितंबों के पर्वत शिखर मुझे बैचैन कर रहे थे…!
अब उसने अपना कपबोर्ड खोला और थोड़ी सी झुक कर वो उसमें से अपने रात के पहनने के लिए कोई गाउन बगैरह ढूँढने लगी.., झुकने की बजह से उसकी गान्ड की गोलाइयाँ दो बड़े तरबूज जैसी कुछ ज़्यादा ही पीछे को उभर आई…!
मेरा धैर्य अब जबाब दे गया.., इस समय निशा कपबोर्ड में अपना सिर घुसाए हुए थी..,
मेने दबे पाँव पलंग से नीचे छलान्ग लगाई.., अपने शॉर्ट को नीचे खिसका कर चुप चाप पीछे से जाकर मेने अपना कड़क खूँटे जैसा लंड उसकी गान्ड की खुली दरार में फँसा का दबा दिया…!
आअहह…क्या करते हो राजे…, अपनी गान्ड के छेद पर लंड का दबाब पड़ते ही वो कराह कर बोली…, और हाथ में एक गाउन दबाए उसने सीधे होने की कोशिश की…!
मेने फ़ौरन उसकी पीठ पर हाथ टिका कर उसे फिरसे मोरनी बना दिया.., दूसरे हाथ से उसकी पैंटी को गान्ड की दरार की साइड में किया और लंड को उसकी चूत के छेद पर अच्छे से सेट करके अपना आधा लंड उसकी सुखी चूत में ही पेल दिया…!
आआययईीीई…म्माआ… मार डाला… हरजाइ… ज़रा सा सबर नही हो रहा.., फाड़ डाली मेरी…, हटो अब.. कहीं भागी नही जा रही हूँ.., तुम्हारी ही हूँ… कोई पड़ोसन नही जो इतने बेसब्री हो रहे हो…!
मेने बिना कुछ बोले और बिना अपना लंड बाहर किए उसके पेट के नीचे अपने हाथ फ़साए और उसे उसी मोरनी वाली पोज़िशन में उठाकर बेड तक ले आया…!
पलंग पर घुटने टिकते ही निशा आगे को फुदक गयी.., और पुक्क्क से मेरा लंड उसकी चूत के बाहर हो गया.., इससे पहले कि वो फुदक कर पलंग के दूसरी तरफ जा पाती.., मेने उसकी एक टाँग पकड़ कर फिरसे अपनी तरफ खींच लिया…!
निशा खिल खिला कर मेरी तरफ उच्छली और मेरी गर्दन में अपनी मरमरी बाहें लपेटकर मेरे होठों पर टूट पड़ी..,
मेरे दोनो हाथ फ्री थे.., सो उसकी ब्रा को उसके बदन से खींचकर उसके सुडौल कसे हुए उभारों को मसल डाला…!
निशा मेरे होंठो को छोड़कर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली – आज क्या कुश्ती लड़ने का इरादा है जनाब का..? इतने उतबले पहले तो कभी नही हुए थे…!
मेने उसकी चुचियों को मींजते हुए कहा – ये सब तुम्हारी ग़लती की वजह से हो रहा है.., अपनी गान्ड पीछे को निकाल कर उसे हिला हिलाकर क्यों मेरा दिमाग़ खराब कर रही थी तुम…?
निशा ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया.., और उसे मसल्ते हुए बोली – तो जनाब चोरी चोरी सब देख रहे थे.., तभी ये चूत्खोर इतना तन तना रहा है.., चल पहले तेरी ही गर्मी शांत कर दूं वरना फिर अपनी मिसाइल दागने लगेगा..,
ये कहकर उसने मेरे मूसल जैसे लंड को अपने सुर्ख रसीले होठों में क़ैद कर लिया और लॉलीपोप की तरह उसे चूसने लगी…!
मेने निशा की गान्ड को घुमा कर अपने मूह पर रख लिया, उसकी चिकनी मुलायम फांकों को चौड़ा करके मेने अपनी जीभ उसके गुलकंद के पिटारे में डाल दी और उसके खट्टे मीठे रसीले स्वाद को लेने लगा…!
5 मिनिट तक 69 की पोज़िशन में हम दोनो एक दूसरे के अंगों को चूमते चाटते रहे.., अब निशा की चूत काफ़ी चिकनी हो गयी थी.., उसके मूह से गरम गरम भाप जैसी निकल कर मेरे लौडे को पिघलाने लगी…!
कुछ देर बाद निशा की चूत से रस अपने आप बाहर आने लगा.., मेरे लंड को मूह से निकाल कर वो अपनी गान्ड को मेरे लंड के उपर ले गयी..,
लंड को उसने अपनी मुट्ठी में दबा लिया.., मेरे दोनो तरफ अपने घुटने मोड़ कर उसने अपनी चूत के मूह पर लंड को सेट किया और धीरे धीरे उसके उपर बैठती चली गयी..,
आधे रास्ते तक आकर एक बार उसने लंबी साँस छोड़ी.., अपनी उंगलियों से बचे खुचे लंड पर फिराया.., फिर अपने होठों को कसकर दबाते हुए वो आगे के सफ़र पर निकल पड़ी…!
जब निशा की गान्ड मेरी जाँघो से टच हो गयी तो उसने एक राहत की साँस ली.., कुछ देर लंबी लंबी साँस लेकर बोली – हाए राजे.., इतने साल हो गये इससे अपने अंदर लेते लेते.., फिर भी कम्बख़्त पहली बार में साँस फूला ही देता है..!
मेने प्यार से उसकी गोलाइयों को सहलाते हुए कहा – लेकिन बाद में कैसा लगता है…?
निशा मेरे हाथों को अपनी चुचियों के उपर दबाते हुए बोली – हाईए… बाद में तो सारे जहाँ की खुशियाँ मानो इसी में समा गयी हों.., चूत की माँ चोद के रख देता है ये निगोडा.., ऐसे शब्द बोलकर निशा खुद ही खिल खिलाकर हँस पड़ी…!
मेने उसके मांसल नितंबों पर टेबल की तरह थाप देकर उसे कार्यक्रम आगे बढ़ाने का सिग्नल दिया.., इशारा समझकर वो मेरे लंड पर एक लयबद्ध तरीक़े से उपर नीचे होने लगी…!!!!
उस रात निशा पर ना जाने कॉन सी चुड़ैल भूतनि सवार हो गयी थी., उसने देर रात तक ना मुझे सोने दिया और ना खुद सोई.., जैसे ही मेरे लौडे में करेंट दौड़ता..,
झट से या तो मुझे अपने उपर खींच लेती या खुद उसकी सवारी करने लगती…!
मेरे हथौड़े जैसे लंड की मार झेलते झेलते उसकी चूत के होठ भी सुजकर मल्लपुए जैसे हो गये थे.., यहाँ तक कि मेरा लंड भी अब दर्द करने लगा था.., ये शायद मेरे सुखी चूत में लंड पेलने का नतीजा था…!
उसकी मुनिया खुन्दस में आगयि और उसने मेरे लौडे की वात लगाने की कसम खा ली.., लेकिन कहाँ घाट घाट का पानी पिया हुआ मेरा बब्बर शेर और कहाँ बेचारी एक खूँटे से बँधी रहने वाली कपिला गाय…!
फिर भी आज उसने जमकर टक्कर ली मेरे साथ…, नतीजा सुबह उसकी आँख नही खुली.., भाभी ने अकेले ही दोनो बच्चों को कॉलेज के लिए तैयार किया..,
रूचि के तो प्रेपरेशन लीव थे.., उसे अब घर पर ही तैयारी करनी थी.., हाँ शाम को ट्यूशन ज़रूर था…!
बच्चों को कॉलेज के लिए विदा करके भाभी ने सबके लिए चाइ बनाई.., पहले जाकर भैया और बाबूजी को दी.., तब भी मे या निशा में से कोई अपने कमरे से बाहर नही आया तो वो खुद ही मेरी चाइ लेकर उसे जगाने के लिए मेरे कमरे में आगयि…!
मे उस समय बाथ रूम में था.., मेने निशा को नही जगाया..और उसे सोता छोड़कर फ्रेश होने चला गया…!
एसी की टंडक में निशा कंबल ताने चैन से खर्राटे ले रही थी.., रात भर की चुदाई की थकान उस पर बुरी तरह हाबी थी.., जिसने उसे आलस में डाल रखा था.., एक बार रोज़ के समय पर आँख खुलने के बाद वो फिरसे सो गयी थी…!
उसे सुबह के 8:30 बजे तक खर्राटे भरते देख भाभी को बड़ा ताज्जुब हुआ.., उन्होने मेरी चाइ साइड टेबल पर रखी और उसको जगाने के गरज से बोली –
निशा.., ओ निशा.., अरे क्या घोड़े बेच कर सो रही है क्या..?
जब इतने पर भी उसकी नींद पर कोई असर नही पड़ा तो उन्होने उसके उपर पड़े हुए कंबल का एक कोना पकड़ा और ये बड़बड़ाते हुए….रात भर क्या… आआआ…ऊओउू….मेरि सौउत्त्त….जैसे ही कंबल निशा के उपर से अलग हुआ.., उसका संपूर्ण नंगा बदन बेपर्दा उनके सामने था…!
एक बार तो भाभी भी उसके मस्त गदराए हुए सुडौल नंगे बदन को देखकर मोहित खड़ी रह गयी.., फिर उन्हें उसकी जांघों के बीच चूत और लंड के मिश्रित बीर्य के धब्बे जो अब सुखकर उसकी जांघों और मुनिया के आस-पास जाम गये थे उनपर नज़र डाली…!
उसकी चिकनी चूत के सूजे हुए होठों को देख कर भाभी उसके इतनी देर तक सोते रहने के रहश्य को बखूबी समझ गयी…,
अपनी छोटी बेहन की सूजी हुई ख़स्ता कचौड़ी जैसी चूत को देखकर स्वतः ही उनका हाथ उसके उपर चला गया…!
बेड के एक सिरे पर वो अपने घुटने मोड़ कर मोरनी की तरह बैठकर निशा की चूत को अपने हाथ से सहलाने लगी.., निशा अब भी शायद रात वाले हसीन मंज़र के असर में थी..,
आधी नींद में उसने अपनी चूत पर किसी का हाथ रखे जाना उसे महसूस तो हुआ लेकिन नींद पूरी तरह खुलने को तैयार नही थी..,
सहलाते सहलाते भाभी की उंगलियाँ अचानक ही उसकी फांकों के बीच समा गयी.., उन्हें ये देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि निशा की चूत अभी भी रस से लबालब भर हुई थी..,
अपनी चूत में उंगलियों की हलचल महसूस करके निशा हल्के से कुन्मुनाई, बड़बड़ाते हुए उसके मूह से निकला – राजे..सोने दो ना.., इतना बोलकर उसने करवट बदल ली.., अब उसकी जानमारू गान्ड भाभी के सामने थी…!
भाभी पर उसके नंगे बदन और गीली चूत को देखकर वासना अपना असर दिखाने लगी.., निशा की चूत के रस से गीली उंगलियाँ उन्होने अपने मूह में डाल ली और उन्हें चचोर्ने लगी…!
निशा ने एसी की हल्की ठंडक की बजह से करवट लेने के साथ साथ अपने घुटने भी मोड़ कर अपने पेट के तरफ कर लिए.., अब उसके बड़े-बड़े गोल-मटोल मटके जैसे गान्ड के दोनो उभारों के बीच ली दरार उपर से नीचे तक चौड़ी होकर दिखने लगी..,
और अंतिम सिरे पर पहुँच कर उसकी जांघों के जोड़पर पहुँचते पहुँचते उसकी चूत का सुराख किसी गुलाब के फूल की तरह खुलकर खिल उठा जिसकी पंखुड़ियों पर ओस की बूँदों की तरह कामरस की एक बूँद अंदर से आकर ठहर गयी…!
भाभी ने बिकुल औंधी होकर अपनी लंबी सी जीभ निकालकर उस बूँद को चाट लिया…!
मे बहुत पहले ही बाथरूम से बाहर आकर ये सब नज़ारा अपनी आखों से देख रहा था.., इस समय मेरे बदन पर मात्र वो रात वाला लूस शॉर्ट ही था जो अब उसे आगे से लंड ने अपने उपर टाँग रखा था…!
लंड भी बेचारा क्या करे.., जंग में थके हारे किसी योद्धा को अगर कोई ललकारे तो वो अपनी थकान भूलकर अपने हथियार उठाने पर मजबूर हो ही जाता है.., उसपर अगर वो सूरमा अच्छा ख़ासा लड़ाका हो…!
भाभी भी इस समय एक वन पीस गाउन में ही थी.., औधे मूह झुकने से उनकी निशा से भी ज़्यादा चौड़ी और मखमली गान्ड कुछ ज़्यादा ही पीछे को उभर आई थी..,
जिसे देख कर मेरा घोड़ा बुरी तरह से अपने अस्तबल में हिन-हिनाने लगा…!
गान्ड पर गाउन के स्लॅक्स के कपड़े के कसे होने से मेने ये भी अनुमान लगा लिया कि नीचे उन्होने अपनी पैंटी भी नही पहनी हुई है…!
भाभी इस बात से बेख़बर कि मे उन्हें पीछे से खड़ा खड़ा देख रहा हूँ.., वो बस अपनी लंबी जीभ निकाल कर निशा की सुरंग के मुहाने को कुरेदने में व्यस्त थी.., इस आशा में कि शायद और एक दो बूँद चखने को मिल जाए…!
वो ये भी नही चाहती थी कि निशा की नींद टूटे और वो हड़बड़ा कर उन्हें अपने बदन से अलग कर दे…!
निशा की गान्ड के खुले हुए दो दूधिया पर्वत और उनके बीच की गहरी खाई जो उपर को थोड़ी भिचि हुई थी.., उनके बीच से झाँकती उसकी सुर्मयि गान्ड का फूल भाभी को लालयत कर रहा था..,
अपने एक हाथ का हल्का सा सहारा देकर उन्होने उसके उपर के पाट को थोड़ा सा उपर किया और अभी वो उसकी गान्ड के सुराख पर अपनी जीभ रखने ही वाली थी कि अपनी खुद की गान्ड के खुले हुए छेद पर एक शख्त डन्डे जैसी चीज़ का दबाब पड़ते ही वो चिहुन्क कर सीधी होकर बैठ गयी…!
अपने ठीक पीछे मुझे अपना खूँटे जैसा लंड हाथ में लिए देखकर भाभी उसे अपनी चाहत भरी नज़रों से निहारते हुए बोली – हाए लल्ला.. तुमने तो मुझे डरा ही दिया…, ऐसे चोरी छुपे पीछे से आने की क्या ज़रूरत थी.. हां…!
मेने अपना लंड उसके सुर्ख रसीले होठों से लगाते हुए कहा – चोरी तो आप भी कर रही थी ना…,
ही ही ही..वो तो निशा का नंगा हुश्न देखकर मन नही माना और मे उसके साथ थोड़ी सी मस्ती करने लगी थी बस…भाभी झेन्प्ते हुए बोली.
मे - दूसरे के अंडरवेर में बड़ा ही दिखता है…,
भाभी – क्या मतलब…?
मे – आप तो निशा से भी कहीं अधिक सुंदर हो…,
भाभी – कहाँ लल्ला.., अब मुझमें वो बात कहाँ.., उमर होती जा रही है मेरी.., बेटी शादी लायक हो रही है.., और तुम कहते हो कि मे निशा से ज़्यादा सुंदर दिखती हूँ…?
मे – बन ठन कर एक बार हाइ हील के सॅंडल पहनकर रोड पर निकल कर तो देखो.., आपके इन कलषों की थिरकन से बहुतों के लंड खड़े खड़े ही पानी ना छोड़ दें तो कहना…!
भाभी – चलो हटो.., बड़े आए खड़े खड़े पानी निकालने वाले.., खुद तो अब हाथ भी नही आते हो और बात करते हो दूसरों के पानी निकलवाने की..!
लाओ इसे मुझे दो.., पहले इसका पानी तो निकालने दो.., कब तक अपने इस खूँटे को ऐसे अपने हाथ में लिए खड़े रहोगे..,
ये कहकर भाभी ने मेरा कड़क सोट जैसा लंड अपने हाथ में ले लिया और उसे प्यार से पुच्कार्ते हुए उसका गरम सुपाडा अपने मूह में भर लिया…!!
मे पलंग के नीचे खड़ा था और भाभी अपने घुटने मोड़ कर पलंग के सिरे पर घोड़ी बनी मेरा लंड मूह में लिए थी.., कभी वो मेरे लंड को आधे तक अंदर ले लेती तो कभी खाली सुपाडे को अपनी जीभ गोल-गोल घूमाकर उसे चाटने लगती..,
मेरा लंड भाभी की लार से पूरी तरह लिथड गया.., मोटाई ज़्यादा होने के कारण उमके गले तक की लार अब मूह से टपकने भी लगी.., जिसे वो उसे पूरा बाहर निकाल कर फिरसे उसपर चुपड देती…!
भाभी लंड चूस्ते हुए इस समय किसी पॉर्न स्टार की तरह लग रही थी…!
सुबह सुबह का एरेक्षन कुछ अलग ही होता है.., वैसे भी खाली पेट लंड में कुछ अलग ही स्टॅमिना रहता है..,
मेने अपना हाथ लंबा करके भाभी का गाउन पीछे से उठाकर उनके गले से बाहर निकालकर निशा के उपर फेंक दिया..,
तभी निशा की आँख खुल गयी, अपने सामने खुलेआम रासलीला होते देख वो मूह फाडे हमारी तरफ देखने लगी…, अपनी आँखों के सामने अपनी बड़ी बेहन की चौड़ी गान्ड देख कर वो कुछ कहने ही वाली थी…!
इससे पहले कि वो कुछ बोले – मेने उंगली से उसे चुप रहने का इशारा किया..,
भाभी मेरा लंड चूसने में मगन थी.., तभी पीछे से निशा ने भी अपना मूह भाभी की गान्ड की खुली दरार में घुसा दिया…!
एक साथ गान्ड पर निशा की जीभ का गीलापन पाकर उनकी गान्ड एक पल के लिए इधर से उधर हिली.., वो मेरे लंड से अपना मूह हटाकर पीछे को मुड़कर देखना चाहती थी लेकिन मेने अपने दोनो हाथों से उनके सिर को अपने लंड पर दबाए रखा…!
झुक कर मेने भाभी की गोरी चौड़ी चिकनी पीठ को चूमकर उनके दोनो लटकते हुए खरबूजों को अपने हाथों में थाम लिया और उन्हें मीँजने लगा…!
पीछे से चूत की चटाई, मूह में गरम गरम मोटा तगड़ा लंड और चुचियों की मीन्जायि से भाभी की चूत निशा के होठों के बीच फड़ फडाने लगी…!
मेरा लंड अपने मूह से बाहर करके मेरी ओर देखते हुए बोली – अब डाल दो लल्ला इसे मेरी चूत में.., अब ये पूरी तरह से अंदर जाने के लिए तैयार है.., और अब मुझे भी सबर नही हो पा रहा…!
जो हुकुम मेरे आका कहकर मेने भाभी को पलंग पर धकेल दिया, नीचे खड़े खड़े ही उनकी मोटी-मोटी केले के तने जैसी चिकनी जांघों के नीचे हाथ डालकर उपर किया..,
ऐसा करने से उनकी चूत के होठ अपने आप खुल गये.., खुले हुए होठों के बीच मेने अपना खूँटा टीकाया, अपना एक घुटना पलंग पर टिका कर मेने उनकी रस से सराबोरे मुनिया में पूरा का पूरा लंड एक ही झटके में जड़ तक पेल दिया…!
आअहह…. मूह से कराह निकालते हुए भाभी का मूह खुल गया और वो आगे को सिर उठाकर दोहरी होकर अपनी चूत को देखने लगी…!
हाए लल्लाअ…आहह…पूरा ही डाल दिया तुमने.., थोड़ा आराम से डाला करो…!
सॉरी भाभी.., आपकी चूत के खुले होठ देख कर इस मादरचोद को सबर नही हुआ..,
भाभी ने हँसते हुए एक चपत मेरी जाँघ पर मारी और एक लंबी साँस छोड़ते हुए बोली – बदमाश.. कहीं के.. बहाने बनाना तो कोई तुमसे सीखे…!
ये क्यों नही कहते कि औरत को कराहने पर मजबूर करने की तुम्हें आदत सी पड़ गयी है.., चलो अब शुरू करो.., ये कहते हुए उन्होने खुद ही अपनी गान्ड को उचका दिया…!
मेने अपने मूसल को एक बार भाभी की रसीली चूत से बाहर खींचा.., और फिर से अंदर पेल दिया…,
आअहह….सस्सिईइ…लल्लाअ… क्या मस्त मूसल है तुम्हारा.., साली चूत पड़पाड़ने लगती है.., उउउफ़फ्फ़ पेलो मेरे देवर रजाअ…, अपनी भाभी की चूत को फाड़कर उसका पोखरा ही बना दो…!
निशा भाभी के बाजू में मेरी तरफ गान्ड औंधी करके बैठ गयी और वो दोनो एक दूसरे के होठों को चूसने लगी.., साथ ही उनके हाथ एक दूसरे की चुचियों से खेल रहे थे…!
मेने भाभी की चूत में धक्के लगाते हुए अपना एक हाथ निशा की मखमली गद्देदार गान्ड पर फिराया और फिर अपनी उंगलियों को उसकी मदमस्त गान्ड की गहरी दरार में सैर करने के लिए छोड़ दिया…!
कुछ देर में ही भाभी का मज़ा बढ़ने लगा.., अब वो भी नीचे से अपनी गान्ड उचका उचका कर मेरे लंड को अपनी चूत की गहराइयों में उतारने लगी…!
मेने निशा की कमर में हाथ डालकर भाभी के उपर खींच लिया.., अब वो भाभी के दोनो तरफ अपने घुटने मोड़ कर मेरे सामने अपनी गान्ड करके घोड़ी की तरह औंधी हो गयी…!
मेने उसकी सुर्मयि गान्ड के फूल को अपनी उंगलियों से सहलाते हुए अपना अंगूठा उसके छेद में सरका दिया…!
भाभी की चुचियों का रस चचोर्ते हुए उसने अपनी गान्ड के छेद को मेरे अंगूठे पर कस दिया…,
भाभी को अब रुकना मुश्किल होता जा रहा था.., उनकी गान्ड के उच्छलने की रफ़्तार तेज़ी पकड़ती जा रही थी.., कुछ ही धक्कों में उनकी कमर हवा में लहराई और अपनी चूत को मेरे लंड पर दबाकर वो बुरी तरह से झड़ने लगी…!
दो पल तरकर मेने अपना मूसल जैसा लंड उनकी चूत से बाहर निकाला जो भाभी की चूत के कमरस से सराबोर होकर चमक रहा था…!
मेरे सामने औंधी खड़ी निशा की चूत भी अब टपकने लगी थी.., सो भाभी की चूत से लंड निकालकर मेने निशा की चूत में पेल दिया…!
करारे धक्के की वजह से निशा बुरी तरह से हिल गयी.., उसका सिर उपर को हवा में उठ गया.., मेने उसे भाभी की चुचियों पर दबाते हुए अपने धक्के लगाने शुरू कर दिए…!!!
दोनो घोड़ियों को चोदते चोद्ते आधा घंटा से भी ज़्यादा बीत चुका था.., आख़िरकार मेरा भी लंड जबाब दे गया और मे भी निशा के साथ ही झड़कर उसकी चौड़ी चकली पीठ पर पसर गया जो अब मेरे वजन से भाभी के उपर गिर पड़ी थी…!!!
शाम को रूचि की ट्यूशन क्लास होती थी.., मेने ललित को उसके साथ जाने के लिए बोल दिया था.., साथ ही वो भी उसकी मेडम से कुछ सीख लेगा..,
एग्ज़ॅम में ज़्यादा समय तो नही था.., लेकिन मेने रूचि के कॉलेज में ही जो कि अब मे ही उसका चेर्मन था सो ललित को 9थ का एग्ज़ॅम देने की व्यवस्था करा दी थी.!
अगर पास ना भी हो तो भी वो अगले साल बोर्ड का एग्ज़ॅम तो दे सकेगा…!
खबर सुनकर वो अकेले ही अपने ऑफीस चले गये…,
वो रात घर में शायद ही किसी को नींद आई होगी.., लेकिन मे दो-तीन रात से सो नही पाया था.., वहीं हॉल में बैठे बैठे मेरी आँखें बंद होने लगी…!
भैया ने कहा – अंकुश तुम जाओ, अपने कमरे में जाकर सो जाओ..., बाबूजी, चाचा आप लोग भी अब आराम कर्लो..,
दूसरे दिन मे देर तक सोता रहा.., निशा ने भी मुझे नही जगाया.., सब लोग नाश्ते पर मेरा इंतजार कर रहे थे तब भाभी मुझे जगाने आई…!
भाभी – लल्ला अब उठो 9 बज गये.., बाबूजी, चाचा जी नाश्ते पर इंतेजार कर रहे हैं.., मे अनमने भाव से उठकर सीधा बाथरूम की तरफ जाने लगा..,
मेने भाभी से एक शब्द भी कुछ नही बोला जो मेरी आदत के एकदम खिलाफ था.., वो मेरा ये रबैईया देखकर हैरान थी.., मेरे इंतजार मे वो पलंग पर बैठकर तब तक इंतेजार करती रही जब तक मे फ्रेश होकर बाहर नही आगया..!
मे तौलिया को पलंग पर फेंक कर उनसे बिना बात किए कमरे से जाने लगा तभी भाभी ने मेरी कलाई थामकर मुझे रोका और मेरे चेहरे पर अपनी नज़रें गढ़ा कर बोली…
क्या बात है लल्ला.., तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो…?
मेने बिना उनकी तरफ देखे कहा – कैसा व्यवहार..?
भाभी – मेने जगाया तब तुम बिना मॉर्निंग विश किए बाथरूम में घुस गये.., बाहर आकर बिना कुछ बोले सीधे बाहर चल दिए.., बात क्या है.., मुझसे कोई ग़लती हो गयी है..?
मे – आप खुद अपने आप से क्यों नही पुछति.. क्या ग़लती हुई है…?
भाभी – मुझे तो कुछ याद नही है.., तुम्ही बता दो…!
मे – आपने मुझ पर, अपने बेटे पर अविश्वास जो किया है…,
भाभी – ये तुम क्या कह रहे हो…? मे भला तुम पर अविश्वास कैसे कर सकती हूँ.., तुम भली भाँति जानते मुझे तुमपर खुद से भी ज़्यादा विश्वास रहता है.., फिर तुम किस अविश्वास की बात कर रहे हो..?
मे – तो फिर आपने खाना पीना छोड़कर बिस्तर क्यों पकड़ लिया था.., क्या आपको मुझ पर भरोसा नही था कि मे आपकी बेटी को वापस ला पाउन्गा या नही..?
भाभी – अच्छा तो निशा की बच्ची ने तुम्हें सब कुछ बता दिया.., ठहरो अभी खबर लेती हूँ उस दूति की…,
मे – उसकी खबर आप बाद में ले लेना पहले आप मेरी बात का जबाब दीजिए.., आपने ऐसा क्यों किया..? क्या आपके ये सब करने से रूचि वापस आ जाती..?
भगवान ना करे आपको कुछ हो जाता तो..? क्या होता इस घर का..? कभी सोचा है आपने.., ये कहते कहते मेरा गला रुंध गया…!
भाभी ने आगे बढ़कर मेरे गले में हाथ डालकर मुझे अपने सीने से लगा लिया.., वो रुँधे गले से बोली – मुझे माफ़ कर दो लल्ला.., पहले रूचि फिर तुम्हारा कोई पता नही, ना फोन ना कोई खबर..,
बार बार इधर से फोन लगाया.. तो लग ही नही रहा था..,, अब तुम ही बताओ मे कैसे सबर कर पाती.., मेरे दिल को धक्का सा लगा…, वो अच्छा हुआ तुमने घर लौटने से पहले फोन कर दिया.., वरना तुम्हारे आने तक मेरा क्या होता…?
मे – सॉरी भाभी मे इतने टेन्षन में था कि रात को फोन नही कर पाया, दिन में जब करने बैठा तो बेटर्री ख़तम थी.., खैर अब आइन्दा ऐसा कभी मत करना वरना जीवन भर आपसे बात नही करूँगा…!
भाभी मेरा कान खींचते हुए बोली – अच्छा बाबा नही करूँगी.., अब चलो सब लोग राह देख रहे होंगे नाश्ते पर…!
जब मे डाइनिंग हॉल में पहुँचा तो सब लोग नाश्ता शुरू कर चुके थे.., अच्छी बात ये थी कि साथ में ललित भी था जो अब नींद पूरी होने से फ्रेश दिख रहा था…!
मेने उसके बालों को सहलाते हुए कहा – कैसा है मेरा शेर बच्चा.. नींद पूरी हो गयी..?
उसने मेरे सीने पर अपना सिर टिका कर कहा – हां भैया जी.. अब मे पूरी तरह से फ्रेश हूँ.., आप भी आइए सब लोग आपका इंतजार कर रहे थे..!
मेने अपनी चेयर पर बैठते हुए कहा – हां यार मेरी भी नींद थोड़ी लंबी हो गयी.., दो रातों तक सोए नही ना…!
अभी मेने नाश्ता शुरू ही किया था कि तभी कृष्णा भैया भी आ गये.., और नाश्ते पर बैठते हुए बोले- कल तुमने किसी शेर सिंग का जिकर किया था.., क्यों ना हम जाकर उससे पुच्छ ताछ करें…?
मे – आपको पता है वो कॉन है..? उसका बाप मालखान सिंग डाकू के गॅंग में रह चुका है.., आज उसके इलाक़े में उसकी इतनी पवर है कि वहाँ का बड़े से बड़ा नेता भी उसके यहाँ आकर हाज़िरी देता है…!
जब आपकी पोलीस अपने शहर में कुछ नही कर पाती तो समझो दूसरे राज्य में जाकर बिना किसी ठोस सबूत के इतने पवरफुल आदमी पर हाथ डाल पाएगी..?
कृष्णा भैया मेरी बात पर कुछ चिड़ते हुए बोले – तुम यार हर समय पोलीस की नाकामियों को ही क्यों गिनवाते रहते हो..? मेने उससे सिर्फ़ पुच्छ ताच्छ करने की बात कही है…!
मे – जिसे वो सिरे से ही खारिज कर देगा.., हम उस गाड़ी की शिनाख्त के आधार पर कुछ साबित नही कर सकते.., ऐसी और तमाम गाड़ियाँ होंगी हिन्दुस्तान में..!
और चौकी पर तैनात उन पोलीस वालों की बात का क्या भरोसा.., जो उसका नाम लेने से भी हिचकिचा रहे थे.., वो अब सच बोलेंगे क्या..?
बाबूजी – हमारी बेटी हमें सही सलामत मिल गयी.., भाड़ में जाए वो शेर सिंग.., हमारी उससे कोई जातिया दुश्मनी तो है नही…,
राठी से उसके किस हद तक रिश्ते हैं.., इससे भी हमें क्या मतलब.., बस तुम उस राठी और उसके लड़के पर नज़र रखना.., शहर में दिखे तो धर दबोचना हरम्जादो को…!
कृष्णा – फिर भी हमें रूचि के बयान दर्ज करके रखने पड़ेंगे, तभी उसके खिलाफ पुख़्ता केस बना सकते हैं…!
मे – पोलीस के तौर पर आपको जो करना है वो आप जानो…, मेने जो बताना था वो आपको बता दिया है…!
नाश्ते के बाद सभी बच्चे ललित के साथ रूचि के कमरे में थे.., चाची का अंश अब 5 साल का था.., फर्स्ट में पढ़ रहा था.., भाभी का सुवंश उससे डेढ़ साल छोटा था.., वो भी अब केजी में पढ़ने जा रहा था..,
मेरा और निशा का आयुष अभी घर पर ही मस्ती लेता रहता था.., ललित के आने से उन्हें खेलने के लिए एक साथी और मिल गया था.., क्योंकि रूचि अब बोर्ड एग्ज़ॅम की वजह से उनपर ज़्यादा ध्यान नही दे पा रही थी…!
चारो मिलकर रूचि के कमरे में धमाल कर रहे थे.., उसकी पढ़ाई डिस्टर्ब हो रही थी सो उसने ललित को उन सबको दूसरे कमरे में ले जाकर खेलने को कहा..,
वो कुछ देर बिना कुछ कहे रूचि को पढ़ते हुए देखता रहा.., जब कुछ देर और वो वहाँ से नही गया.., तीनों बच्चे शोर कर रहे थे तो रूचि ने थोड़ा तीखे शब्द स्तेमाल करते हुए कहा-
ललित तुम्हें पता है मेरा इस साल बोर्ड है.., समय भी ज़्यादा नही बचा है.., एक महीने में मुझे एग्ज़ॅम की तैयारी करनी है यार., यहाँ से इन शैतानो को ले जाना भाई.. मुझे डिस्टर्ब होता है…!
ललित थोड़ा सा दुखी स्वर में बोला – मुझे भी पढ़ना था दीदी..,
रूचि चोन्क्ते हुए बोली – तुझे क्या पढ़ना है.., पहले किसी कॉलेज में अड्मिशन तो करले.., तभी तो पढ़ेगा..!
वैसे किस क्लास में पढ़ रहा था अब तक..?
9त में अड्मिशन लिया था.., लेकिन एक महीने बाद ही बाढ़ ने वो सब तहस नहस हो गया…!
रूचि अपनी जगह से उठी.., उसने अपनी अलमारी से पुरानी किताबों से ढूँढ कर 9थ की कुछ बुक्स उसे पकड़ा दी.., ले इन्हें पढ़.. ये तेरे काम की हैं.
ललित – लेकिन दीदी मे एग्ज़ॅम तो नही दे पाउन्गा ना इस बार..?
रूचि ने उसके बालों को अपने हाथ से सहलाते हुए कहा – ये तू चाचू से पूछ.., वो अगर कह देंगे तो तू इस साल भी एग्ज़ॅम दे पाएगा…,
अब तू जा भाई यहाँ से प्लीज़ और मुझे पढ़ने दे..!
बुक्स लिए हुए ललित दौड़ा दौड़ा मेरे पास आया.., मे इस समय अपने ऑफीस निकालने की तैयारी में ही था.., वो बड़ा खुश लग रहा था.., उसके हाथों में बुक्स देखकर मेने कहा - अरे
ललित ये बुक्स किसकी हैं..?
ललित – ये 9थ की हैं भैईयाज़ी.., रूचि दीदी ने दी हैं मुझे पढ़ने.., आप मेरा अड्मिशन करवाने वाले थे ना…!
मे – अरे यार पहले तो तू ये बता कि ये तूने कैसे रिस्ते जोड़ लिए हैं.., मुझे भैईयाज़ी कहता है…, रूचि को दीदी कहता है.. जबकि वो मेरी भतीजी है…!
ललित – वो मेरे से बड़ी हैं.., उनका नाम लेना मुझे अच्छा नही लगेगा.., क्यों ना मे भी आपको भी चाचू ही कहूँ…?
तभी भाभी हमारी तरफ आती हुई दिखी.., मेने उन्हें सुनाते हुए कहा – भाई मुझे तो कोई प्राब्लम नही है.., पहले इनसे पुच्छ ये तेरी माँ बनने के लिए तैयार हैं या नही…!
भाभी ने पास आकर उसके सिर पर अपना ममता से भरा हाथ रखते हुए कहा – रूचि ने मुझे तेरे बारे में सब कुछ बता दिया.., तूने उसकी मदद करके भाई का फ़र्ज़ तो निभा ही दिया है..,
तेरे जैसे होनहार और संस्कारी बेटे की माँ बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी.., वैसे क्या बातें हो रही थी तुम दोनो में..?
ललित अपनी बुक्स दिखाते हुए बोला – मे आगे पढ़ना चाहता हूँ.., ये बुक्स भी दीदी ने मुझे दे दी हैं.., पर अब मे इस साल तो एग्ज़ॅम नही दे पाउन्गा…!
भाभी ने मेरी तरफ देखा.. उनका इशारा समझ कर मेने कहा – अब सिर्फ़ मुश्किल से महीना डेढ़ होगा 9थ के एग्ज़ॅम में.., इतने कम समय में तुम पास लायक तैयारी कर सकते हो…?
ललित – आप लोग थोड़ी हेल्प करें तो कोशिश कर सकता हूँ…!
मे – चल ठीक है फिर.., कोशिश कर, एग्ज़ॅम में बिठाने की मे कोशिश करता हूँ.., मेरी बात सुनकर ललित खुश हो गया और मस्ती में झूमते हुए अपने कमरे की तरफ चल दिया पढ़ाई का शुभारंभ करने…!
उसके जाते ही भाभी बोली – बड़ा हौन्हार बच्चा है.., पर क्या पास लायक कर पाएगा अब..?
मे – उसे कोशिश करने दो.., इस बार पास या फैल कोई मायने नही रखता.., कम से कम अगले साल 10थ बोर्ड के काम तो आएगा..!
शाम को मुझे ऑफीस से आते आते काफ़ी देर हो गयी थी.., सबके साथ डिन्नर लेकर सीधा अपने बेडरूम में चला गया.., ऑफीस का थोड़ा अर्जेंट काम निपटाना था.., सो लॅपटॉप लेकर बेड पर ही बैठ गया…!
निशा अपने काम निपटाकर लेट तक लौटी.., तब तक बस मे अपना काम बाइनडप ही कर रहा था जब उसने कमरे में कदम रखा…!
वो सोने से पहले अपने कपड़े चेंज करने वाली थी.., शेडी के इतने दिनो के बाद भी पता नही क्यों वो मेरे सामने कपड़े चेंज करने में शर्म महसूस करती थी और मेरे कमरे में रहते हुए वो अपने कपड़े चेंज करने बाथरूम में चली जाती थी…!
मेने जानबूझकर लॅपटॉप बंद नही किया.., और अपने आप को उसके साथ बिज़ी दर्साते हुए उसके कीबोर्ड से खेलने लगा..!
उसने एक बार मेरी तरफ देखा.., जब उसे लगा कि मे अपने काम में बिज़ी हूँ.., उसकी तरफ मेरा बिल्कुल भी ध्यान है ही नही तो वो वहीं अलमारी के सामने ही अपनी साड़ी उतारने लगी…!
मे अपना सिर लॅपटॉप में घुसाए कनखियों से उसकी तरफ देख रहा था.., साड़ी उतारकर निशा ने एक तरफ को रख दी.., एक बार फिर मुड़कर मेरी तरफ देखा.., और अपने ब्लाउस के बटन खोलने लगी…!
पेटिकोट का नाडा खुलते ही वो उसके पैरों में पड़ा था.., आअहह… निशा के 36 के गोरे गोरे मक्खन जैसे चिकने मुरादाबादी कलश मेरे सामने थे.., दोनो की दरार अभी मात्र चार अंगुल की माइक्रो पैंटी से धकि हुई थी…!
निशा की उभरी हुई गान्ड देखकर मेरा लॉडा फडफडाने लगा.., खाली एक लूस शॉर्ट को उसने अपने उपर तान कर उसका तंबू बना लिया…!
काली ब्रा और सेम कलर की पैंटी में निशा का फक्क गोरा बदन कमरे की दूधिया रोशनी में जगमगा रहा था.., उसके नितंबों के पर्वत शिखर मुझे बैचैन कर रहे थे…!
अब उसने अपना कपबोर्ड खोला और थोड़ी सी झुक कर वो उसमें से अपने रात के पहनने के लिए कोई गाउन बगैरह ढूँढने लगी.., झुकने की बजह से उसकी गान्ड की गोलाइयाँ दो बड़े तरबूज जैसी कुछ ज़्यादा ही पीछे को उभर आई…!
मेरा धैर्य अब जबाब दे गया.., इस समय निशा कपबोर्ड में अपना सिर घुसाए हुए थी..,
मेने दबे पाँव पलंग से नीचे छलान्ग लगाई.., अपने शॉर्ट को नीचे खिसका कर चुप चाप पीछे से जाकर मेने अपना कड़क खूँटे जैसा लंड उसकी गान्ड की खुली दरार में फँसा का दबा दिया…!
आअहह…क्या करते हो राजे…, अपनी गान्ड के छेद पर लंड का दबाब पड़ते ही वो कराह कर बोली…, और हाथ में एक गाउन दबाए उसने सीधे होने की कोशिश की…!
मेने फ़ौरन उसकी पीठ पर हाथ टिका कर उसे फिरसे मोरनी बना दिया.., दूसरे हाथ से उसकी पैंटी को गान्ड की दरार की साइड में किया और लंड को उसकी चूत के छेद पर अच्छे से सेट करके अपना आधा लंड उसकी सुखी चूत में ही पेल दिया…!
आआययईीीई…म्माआ… मार डाला… हरजाइ… ज़रा सा सबर नही हो रहा.., फाड़ डाली मेरी…, हटो अब.. कहीं भागी नही जा रही हूँ.., तुम्हारी ही हूँ… कोई पड़ोसन नही जो इतने बेसब्री हो रहे हो…!
मेने बिना कुछ बोले और बिना अपना लंड बाहर किए उसके पेट के नीचे अपने हाथ फ़साए और उसे उसी मोरनी वाली पोज़िशन में उठाकर बेड तक ले आया…!
पलंग पर घुटने टिकते ही निशा आगे को फुदक गयी.., और पुक्क्क से मेरा लंड उसकी चूत के बाहर हो गया.., इससे पहले कि वो फुदक कर पलंग के दूसरी तरफ जा पाती.., मेने उसकी एक टाँग पकड़ कर फिरसे अपनी तरफ खींच लिया…!
निशा खिल खिला कर मेरी तरफ उच्छली और मेरी गर्दन में अपनी मरमरी बाहें लपेटकर मेरे होठों पर टूट पड़ी..,
मेरे दोनो हाथ फ्री थे.., सो उसकी ब्रा को उसके बदन से खींचकर उसके सुडौल कसे हुए उभारों को मसल डाला…!
निशा मेरे होंठो को छोड़कर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली – आज क्या कुश्ती लड़ने का इरादा है जनाब का..? इतने उतबले पहले तो कभी नही हुए थे…!
मेने उसकी चुचियों को मींजते हुए कहा – ये सब तुम्हारी ग़लती की वजह से हो रहा है.., अपनी गान्ड पीछे को निकाल कर उसे हिला हिलाकर क्यों मेरा दिमाग़ खराब कर रही थी तुम…?
निशा ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया.., और उसे मसल्ते हुए बोली – तो जनाब चोरी चोरी सब देख रहे थे.., तभी ये चूत्खोर इतना तन तना रहा है.., चल पहले तेरी ही गर्मी शांत कर दूं वरना फिर अपनी मिसाइल दागने लगेगा..,
ये कहकर उसने मेरे मूसल जैसे लंड को अपने सुर्ख रसीले होठों में क़ैद कर लिया और लॉलीपोप की तरह उसे चूसने लगी…!
मेने निशा की गान्ड को घुमा कर अपने मूह पर रख लिया, उसकी चिकनी मुलायम फांकों को चौड़ा करके मेने अपनी जीभ उसके गुलकंद के पिटारे में डाल दी और उसके खट्टे मीठे रसीले स्वाद को लेने लगा…!
5 मिनिट तक 69 की पोज़िशन में हम दोनो एक दूसरे के अंगों को चूमते चाटते रहे.., अब निशा की चूत काफ़ी चिकनी हो गयी थी.., उसके मूह से गरम गरम भाप जैसी निकल कर मेरे लौडे को पिघलाने लगी…!
कुछ देर बाद निशा की चूत से रस अपने आप बाहर आने लगा.., मेरे लंड को मूह से निकाल कर वो अपनी गान्ड को मेरे लंड के उपर ले गयी..,
लंड को उसने अपनी मुट्ठी में दबा लिया.., मेरे दोनो तरफ अपने घुटने मोड़ कर उसने अपनी चूत के मूह पर लंड को सेट किया और धीरे धीरे उसके उपर बैठती चली गयी..,
आधे रास्ते तक आकर एक बार उसने लंबी साँस छोड़ी.., अपनी उंगलियों से बचे खुचे लंड पर फिराया.., फिर अपने होठों को कसकर दबाते हुए वो आगे के सफ़र पर निकल पड़ी…!
जब निशा की गान्ड मेरी जाँघो से टच हो गयी तो उसने एक राहत की साँस ली.., कुछ देर लंबी लंबी साँस लेकर बोली – हाए राजे.., इतने साल हो गये इससे अपने अंदर लेते लेते.., फिर भी कम्बख़्त पहली बार में साँस फूला ही देता है..!
मेने प्यार से उसकी गोलाइयों को सहलाते हुए कहा – लेकिन बाद में कैसा लगता है…?
निशा मेरे हाथों को अपनी चुचियों के उपर दबाते हुए बोली – हाईए… बाद में तो सारे जहाँ की खुशियाँ मानो इसी में समा गयी हों.., चूत की माँ चोद के रख देता है ये निगोडा.., ऐसे शब्द बोलकर निशा खुद ही खिल खिलाकर हँस पड़ी…!
मेने उसके मांसल नितंबों पर टेबल की तरह थाप देकर उसे कार्यक्रम आगे बढ़ाने का सिग्नल दिया.., इशारा समझकर वो मेरे लंड पर एक लयबद्ध तरीक़े से उपर नीचे होने लगी…!!!!
उस रात निशा पर ना जाने कॉन सी चुड़ैल भूतनि सवार हो गयी थी., उसने देर रात तक ना मुझे सोने दिया और ना खुद सोई.., जैसे ही मेरे लौडे में करेंट दौड़ता..,
झट से या तो मुझे अपने उपर खींच लेती या खुद उसकी सवारी करने लगती…!
मेरे हथौड़े जैसे लंड की मार झेलते झेलते उसकी चूत के होठ भी सुजकर मल्लपुए जैसे हो गये थे.., यहाँ तक कि मेरा लंड भी अब दर्द करने लगा था.., ये शायद मेरे सुखी चूत में लंड पेलने का नतीजा था…!
उसकी मुनिया खुन्दस में आगयि और उसने मेरे लौडे की वात लगाने की कसम खा ली.., लेकिन कहाँ घाट घाट का पानी पिया हुआ मेरा बब्बर शेर और कहाँ बेचारी एक खूँटे से बँधी रहने वाली कपिला गाय…!
फिर भी आज उसने जमकर टक्कर ली मेरे साथ…, नतीजा सुबह उसकी आँख नही खुली.., भाभी ने अकेले ही दोनो बच्चों को कॉलेज के लिए तैयार किया..,
रूचि के तो प्रेपरेशन लीव थे.., उसे अब घर पर ही तैयारी करनी थी.., हाँ शाम को ट्यूशन ज़रूर था…!
बच्चों को कॉलेज के लिए विदा करके भाभी ने सबके लिए चाइ बनाई.., पहले जाकर भैया और बाबूजी को दी.., तब भी मे या निशा में से कोई अपने कमरे से बाहर नही आया तो वो खुद ही मेरी चाइ लेकर उसे जगाने के लिए मेरे कमरे में आगयि…!
मे उस समय बाथ रूम में था.., मेने निशा को नही जगाया..और उसे सोता छोड़कर फ्रेश होने चला गया…!
एसी की टंडक में निशा कंबल ताने चैन से खर्राटे ले रही थी.., रात भर की चुदाई की थकान उस पर बुरी तरह हाबी थी.., जिसने उसे आलस में डाल रखा था.., एक बार रोज़ के समय पर आँख खुलने के बाद वो फिरसे सो गयी थी…!
उसे सुबह के 8:30 बजे तक खर्राटे भरते देख भाभी को बड़ा ताज्जुब हुआ.., उन्होने मेरी चाइ साइड टेबल पर रखी और उसको जगाने के गरज से बोली –
निशा.., ओ निशा.., अरे क्या घोड़े बेच कर सो रही है क्या..?
जब इतने पर भी उसकी नींद पर कोई असर नही पड़ा तो उन्होने उसके उपर पड़े हुए कंबल का एक कोना पकड़ा और ये बड़बड़ाते हुए….रात भर क्या… आआआ…ऊओउू….मेरि सौउत्त्त….जैसे ही कंबल निशा के उपर से अलग हुआ.., उसका संपूर्ण नंगा बदन बेपर्दा उनके सामने था…!
एक बार तो भाभी भी उसके मस्त गदराए हुए सुडौल नंगे बदन को देखकर मोहित खड़ी रह गयी.., फिर उन्हें उसकी जांघों के बीच चूत और लंड के मिश्रित बीर्य के धब्बे जो अब सुखकर उसकी जांघों और मुनिया के आस-पास जाम गये थे उनपर नज़र डाली…!
उसकी चिकनी चूत के सूजे हुए होठों को देख कर भाभी उसके इतनी देर तक सोते रहने के रहश्य को बखूबी समझ गयी…,
अपनी छोटी बेहन की सूजी हुई ख़स्ता कचौड़ी जैसी चूत को देखकर स्वतः ही उनका हाथ उसके उपर चला गया…!
बेड के एक सिरे पर वो अपने घुटने मोड़ कर मोरनी की तरह बैठकर निशा की चूत को अपने हाथ से सहलाने लगी.., निशा अब भी शायद रात वाले हसीन मंज़र के असर में थी..,
आधी नींद में उसने अपनी चूत पर किसी का हाथ रखे जाना उसे महसूस तो हुआ लेकिन नींद पूरी तरह खुलने को तैयार नही थी..,
सहलाते सहलाते भाभी की उंगलियाँ अचानक ही उसकी फांकों के बीच समा गयी.., उन्हें ये देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि निशा की चूत अभी भी रस से लबालब भर हुई थी..,
अपनी चूत में उंगलियों की हलचल महसूस करके निशा हल्के से कुन्मुनाई, बड़बड़ाते हुए उसके मूह से निकला – राजे..सोने दो ना.., इतना बोलकर उसने करवट बदल ली.., अब उसकी जानमारू गान्ड भाभी के सामने थी…!
भाभी पर उसके नंगे बदन और गीली चूत को देखकर वासना अपना असर दिखाने लगी.., निशा की चूत के रस से गीली उंगलियाँ उन्होने अपने मूह में डाल ली और उन्हें चचोर्ने लगी…!
निशा ने एसी की हल्की ठंडक की बजह से करवट लेने के साथ साथ अपने घुटने भी मोड़ कर अपने पेट के तरफ कर लिए.., अब उसके बड़े-बड़े गोल-मटोल मटके जैसे गान्ड के दोनो उभारों के बीच ली दरार उपर से नीचे तक चौड़ी होकर दिखने लगी..,
और अंतिम सिरे पर पहुँच कर उसकी जांघों के जोड़पर पहुँचते पहुँचते उसकी चूत का सुराख किसी गुलाब के फूल की तरह खुलकर खिल उठा जिसकी पंखुड़ियों पर ओस की बूँदों की तरह कामरस की एक बूँद अंदर से आकर ठहर गयी…!
भाभी ने बिकुल औंधी होकर अपनी लंबी सी जीभ निकालकर उस बूँद को चाट लिया…!
मे बहुत पहले ही बाथरूम से बाहर आकर ये सब नज़ारा अपनी आखों से देख रहा था.., इस समय मेरे बदन पर मात्र वो रात वाला लूस शॉर्ट ही था जो अब उसे आगे से लंड ने अपने उपर टाँग रखा था…!
लंड भी बेचारा क्या करे.., जंग में थके हारे किसी योद्धा को अगर कोई ललकारे तो वो अपनी थकान भूलकर अपने हथियार उठाने पर मजबूर हो ही जाता है.., उसपर अगर वो सूरमा अच्छा ख़ासा लड़ाका हो…!
भाभी भी इस समय एक वन पीस गाउन में ही थी.., औधे मूह झुकने से उनकी निशा से भी ज़्यादा चौड़ी और मखमली गान्ड कुछ ज़्यादा ही पीछे को उभर आई थी..,
जिसे देख कर मेरा घोड़ा बुरी तरह से अपने अस्तबल में हिन-हिनाने लगा…!
गान्ड पर गाउन के स्लॅक्स के कपड़े के कसे होने से मेने ये भी अनुमान लगा लिया कि नीचे उन्होने अपनी पैंटी भी नही पहनी हुई है…!
भाभी इस बात से बेख़बर कि मे उन्हें पीछे से खड़ा खड़ा देख रहा हूँ.., वो बस अपनी लंबी जीभ निकाल कर निशा की सुरंग के मुहाने को कुरेदने में व्यस्त थी.., इस आशा में कि शायद और एक दो बूँद चखने को मिल जाए…!
वो ये भी नही चाहती थी कि निशा की नींद टूटे और वो हड़बड़ा कर उन्हें अपने बदन से अलग कर दे…!
निशा की गान्ड के खुले हुए दो दूधिया पर्वत और उनके बीच की गहरी खाई जो उपर को थोड़ी भिचि हुई थी.., उनके बीच से झाँकती उसकी सुर्मयि गान्ड का फूल भाभी को लालयत कर रहा था..,
अपने एक हाथ का हल्का सा सहारा देकर उन्होने उसके उपर के पाट को थोड़ा सा उपर किया और अभी वो उसकी गान्ड के सुराख पर अपनी जीभ रखने ही वाली थी कि अपनी खुद की गान्ड के खुले हुए छेद पर एक शख्त डन्डे जैसी चीज़ का दबाब पड़ते ही वो चिहुन्क कर सीधी होकर बैठ गयी…!
अपने ठीक पीछे मुझे अपना खूँटे जैसा लंड हाथ में लिए देखकर भाभी उसे अपनी चाहत भरी नज़रों से निहारते हुए बोली – हाए लल्ला.. तुमने तो मुझे डरा ही दिया…, ऐसे चोरी छुपे पीछे से आने की क्या ज़रूरत थी.. हां…!
मेने अपना लंड उसके सुर्ख रसीले होठों से लगाते हुए कहा – चोरी तो आप भी कर रही थी ना…,
ही ही ही..वो तो निशा का नंगा हुश्न देखकर मन नही माना और मे उसके साथ थोड़ी सी मस्ती करने लगी थी बस…भाभी झेन्प्ते हुए बोली.
मे - दूसरे के अंडरवेर में बड़ा ही दिखता है…,
भाभी – क्या मतलब…?
मे – आप तो निशा से भी कहीं अधिक सुंदर हो…,
भाभी – कहाँ लल्ला.., अब मुझमें वो बात कहाँ.., उमर होती जा रही है मेरी.., बेटी शादी लायक हो रही है.., और तुम कहते हो कि मे निशा से ज़्यादा सुंदर दिखती हूँ…?
मे – बन ठन कर एक बार हाइ हील के सॅंडल पहनकर रोड पर निकल कर तो देखो.., आपके इन कलषों की थिरकन से बहुतों के लंड खड़े खड़े ही पानी ना छोड़ दें तो कहना…!
भाभी – चलो हटो.., बड़े आए खड़े खड़े पानी निकालने वाले.., खुद तो अब हाथ भी नही आते हो और बात करते हो दूसरों के पानी निकलवाने की..!
लाओ इसे मुझे दो.., पहले इसका पानी तो निकालने दो.., कब तक अपने इस खूँटे को ऐसे अपने हाथ में लिए खड़े रहोगे..,
ये कहकर भाभी ने मेरा कड़क सोट जैसा लंड अपने हाथ में ले लिया और उसे प्यार से पुच्कार्ते हुए उसका गरम सुपाडा अपने मूह में भर लिया…!!
मे पलंग के नीचे खड़ा था और भाभी अपने घुटने मोड़ कर पलंग के सिरे पर घोड़ी बनी मेरा लंड मूह में लिए थी.., कभी वो मेरे लंड को आधे तक अंदर ले लेती तो कभी खाली सुपाडे को अपनी जीभ गोल-गोल घूमाकर उसे चाटने लगती..,
मेरा लंड भाभी की लार से पूरी तरह लिथड गया.., मोटाई ज़्यादा होने के कारण उमके गले तक की लार अब मूह से टपकने भी लगी.., जिसे वो उसे पूरा बाहर निकाल कर फिरसे उसपर चुपड देती…!
भाभी लंड चूस्ते हुए इस समय किसी पॉर्न स्टार की तरह लग रही थी…!
सुबह सुबह का एरेक्षन कुछ अलग ही होता है.., वैसे भी खाली पेट लंड में कुछ अलग ही स्टॅमिना रहता है..,
मेने अपना हाथ लंबा करके भाभी का गाउन पीछे से उठाकर उनके गले से बाहर निकालकर निशा के उपर फेंक दिया..,
तभी निशा की आँख खुल गयी, अपने सामने खुलेआम रासलीला होते देख वो मूह फाडे हमारी तरफ देखने लगी…, अपनी आँखों के सामने अपनी बड़ी बेहन की चौड़ी गान्ड देख कर वो कुछ कहने ही वाली थी…!
इससे पहले कि वो कुछ बोले – मेने उंगली से उसे चुप रहने का इशारा किया..,
भाभी मेरा लंड चूसने में मगन थी.., तभी पीछे से निशा ने भी अपना मूह भाभी की गान्ड की खुली दरार में घुसा दिया…!
एक साथ गान्ड पर निशा की जीभ का गीलापन पाकर उनकी गान्ड एक पल के लिए इधर से उधर हिली.., वो मेरे लंड से अपना मूह हटाकर पीछे को मुड़कर देखना चाहती थी लेकिन मेने अपने दोनो हाथों से उनके सिर को अपने लंड पर दबाए रखा…!
झुक कर मेने भाभी की गोरी चौड़ी चिकनी पीठ को चूमकर उनके दोनो लटकते हुए खरबूजों को अपने हाथों में थाम लिया और उन्हें मीँजने लगा…!
पीछे से चूत की चटाई, मूह में गरम गरम मोटा तगड़ा लंड और चुचियों की मीन्जायि से भाभी की चूत निशा के होठों के बीच फड़ फडाने लगी…!
मेरा लंड अपने मूह से बाहर करके मेरी ओर देखते हुए बोली – अब डाल दो लल्ला इसे मेरी चूत में.., अब ये पूरी तरह से अंदर जाने के लिए तैयार है.., और अब मुझे भी सबर नही हो पा रहा…!
जो हुकुम मेरे आका कहकर मेने भाभी को पलंग पर धकेल दिया, नीचे खड़े खड़े ही उनकी मोटी-मोटी केले के तने जैसी चिकनी जांघों के नीचे हाथ डालकर उपर किया..,
ऐसा करने से उनकी चूत के होठ अपने आप खुल गये.., खुले हुए होठों के बीच मेने अपना खूँटा टीकाया, अपना एक घुटना पलंग पर टिका कर मेने उनकी रस से सराबोरे मुनिया में पूरा का पूरा लंड एक ही झटके में जड़ तक पेल दिया…!
आअहह…. मूह से कराह निकालते हुए भाभी का मूह खुल गया और वो आगे को सिर उठाकर दोहरी होकर अपनी चूत को देखने लगी…!
हाए लल्लाअ…आहह…पूरा ही डाल दिया तुमने.., थोड़ा आराम से डाला करो…!
सॉरी भाभी.., आपकी चूत के खुले होठ देख कर इस मादरचोद को सबर नही हुआ..,
भाभी ने हँसते हुए एक चपत मेरी जाँघ पर मारी और एक लंबी साँस छोड़ते हुए बोली – बदमाश.. कहीं के.. बहाने बनाना तो कोई तुमसे सीखे…!
ये क्यों नही कहते कि औरत को कराहने पर मजबूर करने की तुम्हें आदत सी पड़ गयी है.., चलो अब शुरू करो.., ये कहते हुए उन्होने खुद ही अपनी गान्ड को उचका दिया…!
मेने अपने मूसल को एक बार भाभी की रसीली चूत से बाहर खींचा.., और फिर से अंदर पेल दिया…,
आअहह….सस्सिईइ…लल्लाअ… क्या मस्त मूसल है तुम्हारा.., साली चूत पड़पाड़ने लगती है.., उउउफ़फ्फ़ पेलो मेरे देवर रजाअ…, अपनी भाभी की चूत को फाड़कर उसका पोखरा ही बना दो…!
निशा भाभी के बाजू में मेरी तरफ गान्ड औंधी करके बैठ गयी और वो दोनो एक दूसरे के होठों को चूसने लगी.., साथ ही उनके हाथ एक दूसरे की चुचियों से खेल रहे थे…!
मेने भाभी की चूत में धक्के लगाते हुए अपना एक हाथ निशा की मखमली गद्देदार गान्ड पर फिराया और फिर अपनी उंगलियों को उसकी मदमस्त गान्ड की गहरी दरार में सैर करने के लिए छोड़ दिया…!
कुछ देर में ही भाभी का मज़ा बढ़ने लगा.., अब वो भी नीचे से अपनी गान्ड उचका उचका कर मेरे लंड को अपनी चूत की गहराइयों में उतारने लगी…!
मेने निशा की कमर में हाथ डालकर भाभी के उपर खींच लिया.., अब वो भाभी के दोनो तरफ अपने घुटने मोड़ कर मेरे सामने अपनी गान्ड करके घोड़ी की तरह औंधी हो गयी…!
मेने उसकी सुर्मयि गान्ड के फूल को अपनी उंगलियों से सहलाते हुए अपना अंगूठा उसके छेद में सरका दिया…!
भाभी की चुचियों का रस चचोर्ते हुए उसने अपनी गान्ड के छेद को मेरे अंगूठे पर कस दिया…,
भाभी को अब रुकना मुश्किल होता जा रहा था.., उनकी गान्ड के उच्छलने की रफ़्तार तेज़ी पकड़ती जा रही थी.., कुछ ही धक्कों में उनकी कमर हवा में लहराई और अपनी चूत को मेरे लंड पर दबाकर वो बुरी तरह से झड़ने लगी…!
दो पल तरकर मेने अपना मूसल जैसा लंड उनकी चूत से बाहर निकाला जो भाभी की चूत के कमरस से सराबोर होकर चमक रहा था…!
मेरे सामने औंधी खड़ी निशा की चूत भी अब टपकने लगी थी.., सो भाभी की चूत से लंड निकालकर मेने निशा की चूत में पेल दिया…!
करारे धक्के की वजह से निशा बुरी तरह से हिल गयी.., उसका सिर उपर को हवा में उठ गया.., मेने उसे भाभी की चुचियों पर दबाते हुए अपने धक्के लगाने शुरू कर दिए…!!!
दोनो घोड़ियों को चोदते चोद्ते आधा घंटा से भी ज़्यादा बीत चुका था.., आख़िरकार मेरा भी लंड जबाब दे गया और मे भी निशा के साथ ही झड़कर उसकी चौड़ी चकली पीठ पर पसर गया जो अब मेरे वजन से भाभी के उपर गिर पड़ी थी…!!!
शाम को रूचि की ट्यूशन क्लास होती थी.., मेने ललित को उसके साथ जाने के लिए बोल दिया था.., साथ ही वो भी उसकी मेडम से कुछ सीख लेगा..,
एग्ज़ॅम में ज़्यादा समय तो नही था.., लेकिन मेने रूचि के कॉलेज में ही जो कि अब मे ही उसका चेर्मन था सो ललित को 9थ का एग्ज़ॅम देने की व्यवस्था करा दी थी.!
अगर पास ना भी हो तो भी वो अगले साल बोर्ड का एग्ज़ॅम तो दे सकेगा…!