Update 16
भाभी उसे अपने बेटे जैसा ही प्यार दे रही थी.., उसने भी अपने अच्छे व्यवहार से चन्द दिनों में ही हम सभी लोगों का मन जीत लिया था..!
चन्द रोज़ बाद ही एक दिन रूचि और ललित ट्यूशन से वापस आ रहे थे.., मेडम के घर से निकल कर रिक्शे के इंतजार में वो कुछ दूर पैदल ही चलते हुए आगे बढ़ गये…!
वो दोनो कुछ ही कदम चले होंगे कि तभी एक बाइक पर सवार 3 लड़के, उन्होने अपनी बाइक उन दोनो के पास आकर रोकी और रूचि को देख कर उसपर फबती कसते हुए बोले-
अरे यार ये तो वो ही माल है ना जो किडनप हो गयी थी..,
दूसरा – हाँ यार ये तो वही है.., लगता है उन बदमाशों ने इसके साथ जमकर मज़े लिए होंगे…!
तीसरा जो सबसे पीछे बैठा था रूचि का हाथ पकड़ते हुए बोला – उन गुण्डों को मज़े करा दिए.., अब ज़रा हमें भी मज़ा थोड़ा बहुत करा दे रानी.., कसम से हम भी खुश कर देंगे तुझे…!
रूचि ने गुस्से से उसका हाथ झटक कर अपनी कलाई छुदाई और एक झन्नाटे दार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया…!
थप्पड़ खाकर वो लड़का भिन्ना उठा.., फ़ौरन ही वो तीनों बाइक से उतार गये और रूचि के साथ हाथापाई करने लगे.., रूचि ने भी अपने हाथ पैर चला कर उन तीनों लड़कों को ये एहसास दिला दिया कि अंगूर तुम्हारे लिए खट्टे हैं…!
इस दौरान ललित सिर्फ़ खड़ा खड़ा देख ही रहा था.., ना जाने क्यों उसका चेहरा इस समय एकदम भावशून्य था…!
एक समय ऐसा आया कि उनमें से एक लड़के ने मौका देखकर रूचि पीछे से रूचि की कमर में हाथ डालकर पकड़ लिया.., आगे से एक लड़के ने उसके दोनो हाथ पकड़ लिए.., और तीसरे लड़के ने उसके दोनो कच्चे अनारों को बुरी तरह से मसल दिया…!
रूचि के चेहरे पर पीड़ा के भाव पैदा हो उठे.., उसने ललित की तरफ देखा जो किसी मूर्ख की भाँति अभी भी खड़ा खड़ा ये सब तमाशा देख रहा था…!
रूचि ने अपने दर्द पर काबू करते हुए चीख कर कहा – ललित के बच्चे देख क्या रहा है बेवकूफ़.., मेरी मदद कर.., वरना ये हरामजादे तेरी बेहन की इज़्ज़त तार तार कर देंगे…!
रूचि की चीख सुनकर ललित मानो किसी नींद से जगा हो.., अचानक से उसके मूह से किसी भेड़िए जैसी गुर्राहट निकली – वो दो कदम आगे बढ़ते हुए बोला…
ओये ! छोड़ो इसे वरना सब के सब मारे जाओगे…!
उसकी बात सुनकर एक लड़का जो रूचि को छेड़ रहा था उसकी तरफ मूह करके बोला – अच्छा.. पिद्दी महाराज.., तू मारेगा हमें…?
ललित ने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा – मे कहता हूँ.., अगर अपनी खैर चाहते हो तो छोड़ दो उसे… वरना बेमौत मारे जाओगे…!
वो लड़का जो रूचि की कमर पकड़े हुए था बोला – अरे यार पहले इस पिद्दी को जाके सबक सीखा.., बाद में इस फुलझड़ी के मज़े ले लेना…!
वो लड़का रूचि के पास से हटकर ललित के आगे पहुँचा और जैसे ही उसने ललित को मारने के लिए अपना हाथ उठाया… मानो कयामत ही टूट पड़ी उसपर..,
देखने वालों ने देखा जो वहाँ हुआ.., एक 15-16 साल के लड़के ने उन तीनों लड़कों के साथ जो किया वो किसी आम लड़के या इंसान के बस का तो कतयि नही था…!!!!
वो तीनो लड़के जिन्होने रूचि के साथ छेड़खानी की थी इस समय एक हॉस्पिटल में पड़े जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे, अपनी मौत के साथ लड़ाई लड़ रहे थे वो हराम के बीज़..!
डॉक्टर्स के हिसाब से वो तीनों बच तो गये थे लेकिन अपने शरीर की कयि कयि हड्डियाँ तुड़वा कर, अब शायद ही वो तीनो अपनी नॉर्मल जिंदगी जी सकें…?
रूचि की ज़ुबानी हुआ कुछ इस तरह से था…
जैसे ही उस लड़के ने ललित को मारने के लिए अपना हाथ उठाया.., उसने अपने बायें हाथ से उस लड़के का हाथ हवा में ही थाम लिया.., ललित के हाथ की पकड़ उसकी कलाई पर इतनी मजबूत थी कि उसकी कलाई कड़ाक से टूटती नज़र आई..,
साथ ही ललित ने दूसरे हाथ से उसके गले को पकड़ कर उसे हवा में उठा लिया..,
फिर उसने कलाई छोड़कर दूसरा हाथ उसकी कमर के नीचे रखा और उस लड़के को इस तरह से अपने सिर से ऊँचा उठा लिया मानो वो कोई बच्चे को उठा रहा हो, और बड़ी आसानी से उसे एक तरफ को उच्छाल दिया…!
उस लड़के का समुचा शरीर पूरे वेग से हवा में लहराता हुआ सड़क से 20-25 फीट दूर एक मकान की दीवार से जा टकराया…!
दीवार से टकराते ही वो किसी अनाज के भारी बोरे की तरह वहीं दीवार के साथ ज़मीन पर ढेर हो गया.., शायद उसके बदन की कयि हड्डियाँ अपनी जगह छोड़ चुकी होंगी…!
कुछ देर तक तो वो दर्द से तडफडाया और फिर जल्दी ही निश्चल होकर शांत हो गया.., शायद वो अपने होश खो बैठा था…!
अपने एक साथी की ऐसी दुर्दशा देख कर उन दो लड़कों के हवस ही ठिकाने नही रहे.., उन्होने मुझे छोड़कर वहाँ से सिर पर पैर रख कर अपनी बाइक वहीं छोड़ी और सरपट दौड़ लगा दी.., मानो उनके पीछे कोई भूत पड़ गया हो…!
ऐसा होता भी क्यों ना.., एक 64-65 केजी के जवान लड़के को एक 15-16 साल के मामूली से दिखने वाले लड़के ने इतनी दूर इस तरह फेंक दिया जैसे कोई बॉल फेंकता है…!
अभी वो दोनो लड़के मुश्किल 10-15 कदम ही भाग पाए होंगे कि तभी ललित ने उनकी बाइक का हॅंडल पकड़ा और उसे किसी खिलौने की तरह उन लड़कों की तरफ फेंक दिया…!
बाइक हवा में गोल-गोल लहराती हुई उन दोनो लड़कों पर जा गिरी.., वो दोनो लड़के बाइक की चपेट में आते ही सड़क पर गिर पड़े..,
इससे पहले कि वो बाइक को अपने उपर से हटा पाते की एक लंबी सी छलान्ग लगाते हुए.. नही..नही.. उसे छलान्ग कहना ग़लत होगा.., ललित का शरीर हवा में उड़ता हुआ उनके पास जा पहुँचा…!
अब वो उन लड़कों के सिर पर खड़ा अपने दोनो हाथों को कमर पर रखे उन्हें खड़े होने के लिए बोल रहा था.., वहीं वो दोनो उसकी आँखों से बरसती आग को देख कर डर के मारे दोनो हाथ जोड़े उससे माफी की भीख माँगते नज़र आ रहे थे…!
लेकिन ललित ने उनपर रहम नही किया.., और अपने दोनो हाथ आगे करके एक-एक हाथ से ही उन दोनो के गिरेवान थाम कर उन्हें हवा में किन्ही प्लास्टिक के खिलौनों की तरह उठा लिया…!
ललित के मूह से किसी ख़ूँख़ार भेड़िए जैसी आवाज़ निकली.. जोकि ललित की तो कतई नही थी.. क्यों हराम के जनो.., लड़की छेड़ोगे.. हां.. ये कहने के साथ ही उसने उन दोनो के सिरों को एक दूसरे के साथ दे मारा…!
भद्दाक़्कक.. की आवाज़ के साथ उन दोनो के सिर फट गये, लेकिन वो इतने पर भी नही रुका और उन दोनो को भी उसी दिशा में उछाल दिया जहाँ उनका पहला साथी पड़ा हुआ था…!
वो तो अच्छा था कि कॉलोनी की सड़क सुनसान थी.., किसी ने देखा नही..या जिसने भी देखा होगा वो डर कर वहाँ रुका नही..,
ललित अभी भी शांत नही हुआ था.., वो उन लड़कों जान से मारने के लिए उनकी तरफ बढ़ने लगा.., तभी मुझे जैसे होश आया और मेने दौड़कर ललित को उनकी तरफ जाने से रोका…!
मे उसके आगे हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी.., मुझे देखते ही मानो वो किसी नींद से जगा हो.., उसकी लाल लाल आँखें मुन्दने लगी.., शरीर हिचकोले से लेने लगा..!
मुझे लगा वो ज़मीन पर गिरने ही वाला है, तभी मेने उसे अपनी बाहों में थाम लिया.., और उसका शरीर मेरे उपर आ गिरा…!
मेने जैसे तैसे उसको खड़ा करके रखा.., उसके शरीर को हिलाते हुए मेने ललित ललित कह के दो-तीन बार पुकारा तब जाकर उसे होश आया.., लेकिन वो अब भी गुम सूम सा ही था…!
मेने उसे घर चलने के लिए कहा..और मे जैसे ही उसे थामे हुए पलटी.., हमारा रिक्शे वाला अपना रिक्शा लिए वहीं खड़ा नज़र आया…, जिसके आने की मेने आवाज़ भी नही सुनी..!
मेने फ़ौरन ललित को रिक्शे में बिठाया और उसे घर ले आई.., घर आते ही वो सीधा अपने कमरे में चला गया और तबसे अभी तक सो ही रहा है…!
रूचि ये बात हम सभी घर वालों के सामने सुना रही थी.., जिसे सुनकर मेरे समेत सभी घर वाले स्तब्ध रह गये…!
ये एक ऐसी घटना थी जिसे अंजाम देने के लिए ललित जैसे अवयस्क लड़के के लिए कभी संभव हो ही नही सकता था…, सभी एकदुसरे की तरफ देख रहे थे की कोई कों अपनी प्रतिक्रिया देता है इस विषय पर…!
कुछ देर बाद बाबूजी बोले – ये काम ललित का किया हुआ तो लगता नही…, मुझे लगता है उसके उपर किसी प्रेत-आत्मा का साया है और उसी ने उससे ये सब करवाया है..!
ये तो अच्छा हुआ कि वहाँ किसी ने इससे उन लड़कों को मारते हुए नही देखा या अनदेखा कर दिया वरना पोलीस का चक्कर हो जाता…!
मे – वो नाबालिग है बाबूजी.., पोलीस उसे जैल में नही डाल सकती.., लेकिन सोचने वाली बात ये है कि ललित इतने समय मेरे साथ रहा..,
उस ढाबे से लेकर चंबल के जंगलो और फिर यहाँ आने तक, एक पल के लिए भी मुझे ऐसा महसूस नही हुआ कि उसके उपर किसी आत्मा का साया हो सकता है.., फिर आज ही उसने ऐसा कैसे कर दिया…?
भैया – क्यों ना हम उसे किसी ओझा या भूत-प्रेत के बारे में जानकारी रखने वाले के पास ले जाए.., अगर उसके उपर किसी प्रेत-आत्मा का साया हुआ तो वो लोग पता लगा सकते हैं.., और उनसे इसको मुक्ति भी दिला सकते हैं…!
मे – शायद आप लोगों की बात सही हो भी सकती है.., लेकिन जब तक एक बार मे अकेले में ललित से बात नही कर लेता तब तक इस बारे में आगे कदम बढ़ाना उचित नही होगा…!
उस दिन ललित डिन्नर के लिए भी बाहर नही आया.., घर में किसी और की हिम्मत भी नही हुई उसे जगाकर लाने की.., तब भाभी ने मुझे कहा – लल्ला तुम ही जाओ यौं वो कब तक भूखा प्यासा सोता रहेगा…!
मेने एक बार वर्षा को भूत होने का झूठ मूठ का नाटक करते तो देखा था वो भी भाभी के साथ, लेकिन असल में किसी के उपर भूत चढ़े हुए कभी नही देखा था..!
मुझे भी अकेले उसके कमरे में जाने से डर लग रहा था सो मेने भाभी से कहा – चलो अपन दोनो उसे लेकर आते हैं..!
भाभी मेरे अंदर की घबराहट को पहचान गयी सो हल्के से मुस्कराते हुए बोली – डर रहे हो..? अच्छा चलो मे भी तुम्हारे साथ चलती हूँ…!
भाभी और मे जब उसके कमरे में पहुँचे तब वो पलंग पर लेटा हुआ अपनी आखें खोले हुए कमरे की छत को निहार रहा था.., मे जाकर उसके बगल में बैठ गया और भाभी उसके सिर के पास..!
वो हमें देख कर उठ कर बैठ गया…, भाभी ने हिचकिचाते हुए या यौं कहो की थोड़ा डरते हुए उसके सिर पर अपना हाथ रखकर उसके बालों को सहलाते हुए कहा - नींद पूरी हुई ललित बेटा..?
ललित – हुउंम…!
भाभी – अब कैसी तबीयत है तेरी..?
ललित भाभी की तरफ देखकर बोला – मुझे क्या हुआ था माँ…?
ललित के मूह से पहली बार अपने लिए माँ शब्द सुनकर भाभी का डर जैसे एकदम से गायब हो गया और उन्होने उसे अपने आँचल में समेटते हुए कहा – कुछ भी तो नही..,
तुझे भला क्यों कुछ होगा.., मेरा बहादुर बेटा.., अच्छा सबक सिखाया तूने उन हरामजादो को, भला कोई भाई अपनी बेहन के साथ ग़लत होते कैसे देख सकता है…!
ललित – पर मुझे कुछ याद क्यों नही कि मेने क्या किया था…?
मे – व.व.वो.वू.. तुम गुस्से में थे ना.., इसलिए शायद कुछ याद नही रहा होगा.., चलो नींद पूरी हो गयी हो तो चलकर खाना खाते हैं.., सब लोग तुम्हारा खाने पर इंतेज़ार कर रहे हैं..,
कब ललित बेटा आए और हम सब साथ मिलकर खाना खायें…!
ललित – क्यों.. आप लोगों ने भी अभी तक खाना नही खाया…?
भाभी – हम भला अपने बेटे के बगैर कैसे खा सकते हैं.., चल उठ जा अब..हां..
ललित – मुझ अनाथ से इतना प्रेम ठीक नही है माँ.., भगवान ना करे कल को मुझसे कोई भूलबस भी कुछ ग़लत हो गया तो मे अपने आप को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा..!
भाभी ने उसे अपने से अलग करते हुए उसके दोनो बाजू थामकर उसे प्यार से झिड़कते हुए कहा – खबरदार जो अब अपने मूह से कभी अनाथ कहा तो… बहुत मारूँगी समझा…, तू मेरा बेटा है और रहेगा…!
अगर ग़लती से कोई भूल हो भी जाती है तो क्या हुआ.. इंसान से ग़लतियाँ हो ही जाती हैं.., यौन अपनो से कोई माफी थोड़े ही माँगता है पगले.., चल अब ज़्यादा बातें ना बना वरना मार खाएगा मुझसे…!
ललित भावना बह गया, माआ…कहकर भाभी के आँचल में समा गया और फफक फफक कर रो पड़ा…!
हम दोनो उसे किसी तरह शांत कराया और खाने के लिए लाए.., अब वो एकदम नॉर्मल बिहेव कर रहा था…!!!
दूसरे दिन सुबह सुबह मे जिम में वर्काउट करके अपने गार्डेन की ब्रेंच पर बैठ कर आज का पेपर पढ़ रहा था, तभी ललित मेरे पास आकर बाजू में बैठ गया…!
मेने एक नज़र उसपर डालकर उसके बालों में हाथ फिरकर बोला – और मेरे शेर जाग गया…? रात को अच्छी नींद आई…?
ललित ने अपनी नज़र झुका रखी थी इसलिए मे उसके चेहरे के इंप्रेशन देख नही पाया था.., वैसे भी मेरा आधा ध्यान न्यूज़ पेपर में ही था…!
अचानक से ललित के मूह से निकला – मुझे मुक्ति कब दिलाओगे वकील भैया…?
ललित के ये शब्द सुनकर मे बुरी तरह से उच्छल पड़ा, ये आवाज़ ललित की तो कतयि नही थी.., ये तो…ये तो…संजू की आवाज़ है.. और मुझे वकील भैया भी वो ही कहता था…!
मेने इधर उधर नज़र घूमाकर देखा.., लेकिन वहाँ मुझे उसके अलावा और कोई नज़र नही आया…,
ललित के मूह से ये शब्द सुनकर मेरे बदन के सारे मसामों ने एक साथ पानी छोड़ दिया.., एक अजीब तरह के डर से मेरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गये…!
कुछ देर तक तो उसकी तरफ देखने की मेरी हिम्मत ही नही हुई.. जब काफ़ी देर तक मेरे मूह से कोई आवाज़ नही निकली तो उसने फिरसे कहा – मुझे मुक्ति दिला दो वकील भैया.. वरना मेरी आत्मा यौंही अंधकार में भटकती रहेगी…!
अब मेने थोड़ी हिम्मत जुटाकर ललित की तरफ देखा जो अपनी लाल लाल.. आग बरसाती हुई नज़रों से मुझे ही घूर रहा था.., एक बार को तो मेरे मन में आया की यहाँ से उठकर सरपट दौड़ लगा दूँ..,
सच कहूँ तो ललित की लाल सुर्ख आँखें देखकर डर से मेरी गान्ड फट रही थी.., मुझे लग रहा था कि मेरे बगल में ललित नही कोई हिसक जंगल जानवर बैठा हो…, एक सेकेंड भी मुझे यहाँ बैठना भारी लग रहा था…!
लेकिन फिर सोचा.. इस समस्या से भागना कोई हाल नही अंकुश प्यारे.., घरवालों को पता चला तो वो लोग झाड़ फूँक के चक्कर में पड़ जाएँगे..,
हो सकता है उससे इस बेचारे मासूम को भी कष्ट सहना पड़े…, जिसमें उसकी कोई ग़लती नही है…!
अतः मेने अपने आप को थोड़ा संयत किया.., संजू की आत्मा मुझे ही नही इस परिवार के किसी भी सदस्य का अहित नही करेगी ये मे अच्छी तरह से जानता था.. तो फिर उसकी बात सुनने की वजाय उससे भागना कोई हल नही.!
मेने दो-चार बार लंबी लंबी साँसें लेकर पहले अपने अंदर के डर को भगाया और फिर बड़े आराम से ललित को संजू मानकर उसके कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा –
तो ललित के शरीर में वो तुम हो संजू जिसने कल इसके हाथों उन बदमाशों का हाल बहाल किया है…!
संजू – हां भैया..वो मेने ही किया था.., क्योंकि वो हरम्जादे मेरी प्यारी बिटिया पर बुरी नीयत डाल रहे थे…!
मे – तुम ललित के उपर कब्से कब्जा जमाए हुए हो…?
संजू – वो तो मेने उसी पल उसके शरीर में प्रवेश किया था.., मे रूचि से बहुत प्रेम करता हूँ.., अपनी प्यारी भांजी को मे एक पल के लिए भी अपनी आखों से ओझल नही होने दे सकता इसलिए मे हमेशा उसके इर्द-गिर्द ही था…!
कल जैसे ही उन बदमाशों ने उसे सताना शुरू किया.., मे अंदर ही अंदर तिलमिला उठा.., क्या करूँ क्या ना करूँ.., इसी असमंजस में फँसा गुस्से से तिलमिला रहा था..,
कि तभी एक अदृश्य शक्ति ने मुझे ये रास्ता सुझाया और उसी की शक्ति से मे ललित के अंदर प्रवेश कर पाया…!
आपने देखा होगा.., नदी के किनारे उस हवा और रेत के बेवांडर को.., वो मे ही था.., आपको रूचि तक ले जाने का एक यही तरीक़ा मुझे लगा…, तब से अबतक हरपल मे आप लोगों के आस-पास ही हूँ.
मे – तो उन बदमाशों के अड्डे से रूचि को तुम ही निकाल कर लाए थे..?
संजू – हां ! क्योंकि वो हरामजादे इसे खराब करना चाहते थे.., इसको कोठे पर बिठाकर धंधा करना चाहते थे वो मदर्चोद..,
अपनी जिस प्यारी भांजी की अस्मत बचाते हुए मेने अपनी जान कुर्बान कर दी उसे यौंही उन दरिंदों के बीच कैसे छोड़ सकता था…!
संजू की बातें सुनकर मेरा गला भर आया.., ललित को अपने गले से लगाकर मेने रुँधे स्वर में कहा – संजू मेरे भाई.., मेरे अज़ीज.. मुझे माफ़ कर दे मेरे दोस्त.., काश मे समय पर वहाँ पहुँच पाता.., तो शायद तुम आज हमारे बीच होते…!
संजू – आपको माफी माँगने की कोई ज़रूरत नही है वकील भैया.., ये तो सब विधि का विधान है जिसे कोई चाह कर भी नही रोक सकता.., और फिर मेरे अपने ही करम ऐसे थे जिसका अंजाम तो मौत ही है ना…!
बस खुशी इस बात की है कि मे अपने जीते जी रूचि बिटिया को बचाने में कामयाब रहा और मरने के बाद भी उसे आपके पास तक ला सका.., वरना मेरी आत्मा पर ये बहुत बड़ा बोझ रह जाता…!
उन हरामजादो ने मेरे शरीर को कचरे के ढेर में दबा रखा है वकील भैया.., जब तक उसे चिता के हवाले नही किया जाता तब तक मुझे मुक्ति नही मिलेगी.., मेरी आत्मा यौनी अंधेरो में भटकती रहेगी…!
मे – तो तुमने इस मासूम के शरीर को ही क्यों चुना..? मुझसे सीधे सीधे बात कर सकते थे…!
संजू – नही भैया.., अभी मेरे पास इतनी शक्ति नही थी कि मे किसी के भी सामने प्रकट हो सकूँ.., इसलिए मेने आपसे बात करने का ललित के शरीर को ही माध्यम चुना है…,
भरोसा रखिए.., मेरी वजह से इस मासूम को कोई तक़लीफ़ नही होगी.., उल्टा मे इसकी हिफ़ाज़त ही करूँगा…!
मे – लेकिन तुम फिरसे उन बदमाशों के चंगुल में कैसे फँस गये…? तुम तो गाओं में चाची के पास थे ना…?
संजू – ये एक लंबी कहानी है.., अभी यहाँ समय नही है सब कुछ बताने का.., ललित को लेकर आप मेरे साथ चलिए.., मे रास्ते में आपको सब कुछ बता दूँगा..!
और हां.., हो सके तो अभी इस बात को किसी और से मत कहना.., वरना पूरे घर में ख़ामाखाँ का कोहराम मचेगा.., ये भी हो सकता है मोहिनी दीदी साथ आने की ज़िद करने लगें.., क्योंकि मे उनका लाड़ला भाई जो था…!
संजू की बातों ने मुझे अंदर तक हिला दिया था.., चाहकर भी मे अपनी रुलाई नही रोक पाया और ललित के शरीर से लिपटकर रो पड़ा…!
तभी मुझे घर के अंदर से भाभी आते हुए दिखाई दी.., मेने फ़ौरन ललित को अपने से अलग किया और अपने आप को संयत करके फिरसे पेपर में नज़र गढ़ा दी…!
भाभी ने डोर से ही हमें गले लगते हुए देख लिया था.., अतः पास आकर बोली – क्यों भाई क्या बात है.. ये चाचा भतीजे का भरत मिलाप क्यों हो रहा है सुबह सुबह.., कोई खास बात हो गयी क्या…?
मेने एक नज़र ललित के चेहरे पर डाली.., देखकर तसल्ली हुई की अब वो एकदम से नॉर्मल दिखाई दे रहा था.., फिर मेने भाभी से मुखातिब होकर कहा – कुछ नही बस कल की बहादुरी के लिए अपने शेर को शाबासी दे रहा था…!
और हां भाभी.., कॉलेज में अड्मिशन के लिए इसके पुराने कॉलेज से कुछ डॉक्युमेंट्स लेने जाना है सो आज ही मे और ललित एक-दो घंटे में इसके गाओं के लिए निकलेंगे…!
मेरी बात सुनकर ललित ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा.., इससे पहले कि वो कुछ कहता.., मेने उसकी जाँघ दबाकर कहा – और इसका भी मन है एक बार अपने गाओं जाकर देखने का…!
भाभी – ये तो बहुत अच्छी बात है.., कहो तो मे भी साथ चलूं..?
मे – अरे नही..नही.. आप ख़ामाखा क्यों परेशान होती हो.., सफ़र बहुत लंबा है.., और फिर यहाँ सबकी देखभाल के लिए आपका घर पर रहना भी ज़रूरी है..,
रूचि अभी अभी एक हादसे से गुज़री है.., ख़ासतौर से उसे आपकी हर समय ज़रूरत है..,
हम लोग एक-दो दिन में वापस आजायेंगे आप बिल्कुल फिकर मत करना…!
भाभी मेरे पास आकर मेरी नाक पकड़कर उसे हिलाते हुए बोली – मे जानती हूँ.., जहाँ मेरा देवर होगा वहाँ सब शुभ ही शुभ होगा..,
अब जब जल्दी ही निकलना है तो तुम लोग अभी तक यहाँ क्यों बैठे गप्पें मार रहे हो..? नहा धोकर तैयार हो जाओ.., मे तुम लोगों के खाने पीने का इन्तेजाम करती हूँ..!
वहाँ पता नही कुछ मिले ना मिले.., सो रास्ते के लिए भी कुछ बनाकर रख दूँगी.., चलो अब उठो…, ये कहकर वो पलटकर घर की ओर चल दी और मेने ललित को भी उठकर तैयार होने को कहा…
ललित अभी भी असमंजस में फँसा हुआ था.., मेरा हाथ थामकर बोला – मेने आपसे कब कहा कि मुझे अपने गाओं जाना है.., और ये डॉक्युमेंट्स की बात कहाँ से पैदा हो गयी..?
मे – अरे यार वो तो मेने भाभी को टरकाने के लिए ऐसे ही कह दिया था.., चलो हम दोनो को एक बहुत ही ज़रूरी काम निपटाने कहीं जाना है…!
ललित – कहाँ..? और क्या..?
मे – मुझ पर भरोसा है तुम्हें..?
ललित – ये आप क्या कह रहे हैं चाचू.., आप पर अविश्वास करने जैसा तो मे सोच भी नही सकता.., आप तो मेरे लिए भगवान से बढ़कर हो.., फिर भी अगर बता देते तो मेरी उत्कंठा शांत हो जाती…!
मे – तो फिर उठो.., और तैयार हो जाओ.., रास्ते में तुम्हें तुम्हारे हर सवाल का जबाब मिल जाएगा.., बस ये समझ लो कि तुम्हारे हाथों एक बहुत ही नेक और पुन्य का काम होने वाला है…,
और हां.., घर में कोई इस मामले में पुच्छे तो यही जबाब देना जो मेने भाभी से कहा है.., अब चलो चलते हैं यहाँ से..!
इतना कहकर मेने खड़े होते हुए उसे भी बाजू पकड़कर खड़ा कर दिया.., वो अब भी बुरी तरह से असमजस में फँसा मेरे पीछे पीछे घर के अंदर तक चला आया…!!!
9 बजे तक मे और ललित निकलने के लिए तैयार थे.., संजू की आत्मा इस समय उसके अंदर ही थी.., लेकिन वो नॉर्मल नज़र आ रहा था.., उसके चेहरे पर खुशी और उदासी के मिले जुले भाव थे…!
उसने बाबूजी, भैया और भाभी के चरण स्पर्श किए..उनसे आशीर्वाद लिया.., फिर निशा के कदमों में झुक गया.., उसके पैर छुते हुए बोला.., मुझे अपना आशीवाद दीजिए दीदी…!
निशा – दीदी..! ये कॉन्सा नया रिस्ता बना लिया तुमने..? अब तक तो चाची बोल रहे थे और अब दीदी…?
मेने उसके कान में फुसफुसा कर कहा – अरे यार बच्चा है, जो उसको फील होता है बोल देता.., तुम उसको आशीर्वाद दो ना.., रिश्तों में क्या रखा है.., उसने मुस्कुरा कर उसे कंधों से उठाया और अपने गले से लगाते हुए बोली…
जुग जुग जियो मेरे भाई… मेरे बच्चे.., और हां रास्ते में अपने चाचू का ख्याल रखना, ये जल्दी ही बेकाबू हो जाते हैं..!
उसके बाद ललित ने रूचि को अपने गले से लगाया और एक बड़े की तरह उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया…!
सभी लोग उसकी इस हरकत पर हैरान थे.., लेकिन मेने ये कहते हुए – अरे चल ना यार.. क्यों देर कर रहा है.., बहुत दूर जाना है..और उसका बाजू थामकर उसे लगभग घर से घसीटते हुए बाहर ले गया..,
सब लोग पोर्च तक हमें विदा करने आए.., ललित मूड-मुड़कर उन सबसे ऐसे विदा ले रहा था मानो अब उसे इस घर में फिर कभी वापस नही आना है..!
उसकी ये हरकतें मेरे लिए तो सामान्य थी.., लेकिन औरों को थोड़ी असहज करने वाली थी..,
मेने उसे जल्दी से गाड़ी में बैठने के लिए कहा और इससे पहले कि यहाँ और कोई कहानी पैदा हो मेने गियर डालकर गाड़ी आगे बढ़ा दी.., वो अभी भी विंडो से अपना हाथ निकालकर सबसे हाथ हिला हिलाकर विदाई ले रहा था…!
ना जाने क्यों उसे दूर जाते देख भाभी की आँखों में पानी था.., और साथ ही एक सवाल भी जिससे मे फिलहाल बचना चाह रहा था…!
घर से निकलकर जैसे ही गाड़ी मेन रोड पर पहुँची ललित ने अपना सुबह वाला सवाल दोहरा दिया.., अब तो बता दो चाचू हम लोग जा कहाँ रहे हैं और क्यों…???
मेने भाव-शून्य होकर उसके मासूम चेहरे की तरफ देखा और फिर अपनी नज़रें रोड पर टिकाते हुए कहा – कल की घटना का पता है तुझे..?
ललित – हां.. कुच्छ कुच्छ.. दीदी बोल रही थी कि मेने उन्हें बचाने के लिए तीन लड़कों की अकेले पिटाई कर दी थी.., तो उसमें क्या..?
मूह बोली ही सही लेकिन मेने उन्हें अपनी सग़ी बेहन से बढ़कर माना है, फिर उनपर कोई आँच आए और मे खड़ा खड़ा देखता रहता क्या..?
मेने ललित के सिर के बालों को सहलाते हुए कहा – पिटाई.., अरे पगले.. वो तीनों लड़के लन्गडे लूले होकर हॉस्पिटल में अभी भी बेहोश पड़े हैं..,
बचने के बावजूद भी अब वो शायद ही अपने पैरों पर सही सलामत खड़े हो पायें…!
मेरी बात सुनकर ललित के आश्चर्य की सीमा नही रही, वो मूह फाडे कुच्छ देर मेरी तरफ देखता रहा फिर कुच्छ सामान्य होते हुए बोला – ये आप क्या कह रहे हैं..?
मे भला 3-3 लड़कों को अकेला इस हालत में कैसे पहुँचा सकता हूँ.., ज़रूर दीदी ने झूठ मूठ मेरी तारीफ़ करने के लिए बोल दिया होगा…!
मे – अब्बे गधे..! ये ही सच है.., पोलीस को उस आदमी की तलाश है जिसने उन्हें इस हालत में पहुँचाया है.., वो तो कोई ऐसा चस्मडीद गवाह नही मिला उनको वरना इस समय तू बाल सुधार घर के अंदर होता…!
ललित – लेकिन ये कैसे संभव है चाचू.. मे भला कैसे ये सब…???
मे – वो ही तो.., ये तूने किया..और तुझे ही याद नही.. ज़रा सोच मेरे बच्चे ऐसा कैसे हुआ..? जबकि ये सब तूने किया ही नही था…!
ललित – ये आप क्या पहेलियाँ बुझा रहे हैं..? मेने ये सब किया.., मुझे ही याद नही.., फिर आप कहते हैं कि वो सब मेने नही किया तो फिर किया किसने..?
मेने ललित के कंधे पर हाथ रखकर उसका साहस बाँधते हुए कहा – देख मेरे बच्चे.., अब मे जो तुझे बताने जा रहा हूँ.. प्रॉमिस कर कि तू उसे सुनकर बिल्कुल भी बिचलित नही होगा….!
ललित ने मेरी बात का कोई जबाब नही दिया.., बस अपनी सवालिया नज़रों से मुझे घूर्ने लगा.., मेने एक बार फिर उसका कंधा थप थपाया और कहा –
तेरे शरीर के अंदर संजू की आत्मा आ जाती है और कल वाला कांड उसी ने तेरे हाथों कराया है.., वो इतना नेक्दिल इंशान था कि रूचि या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य पर अगर कोई आँच भी आ जाए तो उसे सहन नही होता था…!
रूचि को गुण्डों के बीच से उसी फरिस्ते की आत्मा बचाकर लाई थी और उस रात हवा और रेत के बवांडर का रूप लेकर उसने हमें बेहोश रूचि तक पहुँचाया था…!
ललित मूह बाए मेरी बातें सुन रहा था.., में बॅक मिरर से उसकी एक-एक हरकत नोट कर रहा था.., अपने शरीर में किसी और की आत्मा का होना सुनकर एक बार तो वो बुरी तरह से हिल गया था..,
लेकिन उस बहादुर बच्चे ने जल्दी ही अपने आप पर काबू भी कर लिया.., मुझे चुप होते देख वो बोला – तो ये सब बातें आपको उस रात ही पता चल गयी थी..?
मे – नही..! कल के तेरे इस दुस्साहसी काम को सुनकर घर के सभी लोगों को शक़ हो गया था कि ये सब तूने नही तेरे अंदर मौजूद किसी प्रेत-आत्मा ने किया है..
वो लोग किसी ओझा बगैरह की मदद लेने के पक्ष में थे.., लेकिन तुझे कोई कष्ट ना हो इसलिए मेने ये कहकर टाल दिया था कि पहले मे तुझसे बात करके ये तय कर लूँ कि कोई आत्मा वाकई तुम्हारे अंदर है या ये सब अधिक गुस्सा आने के कारण तो नही हुआ…!
लेकिन मे ये भी जानता था कि किसी भी सूरत में तुम्हारे जैसा 15-16 साल का मासूम इतना कुच्छ कभी नही कर सकता पर फिर भी ना जाने क्यों मे किसी झाड़ फूँक के फेवर में कतयि नही था…!
आज सुबह जब में गार्डन में बैठा पेपर पढ़ रहा था.. तब तुम मेरे पास आए.., और आते ही मुझे वकील भैया कहकर संबोधित करते हुए जोकि मुझे केवल संजू ही कहता था बोले –
मुझे मुक्ति दिला दो भैया…, मेरा पार्थिव शरीर उन हरम्जादो ने एक कचरे के ढेर में दबा रखा है.., मेरी चिता को अग्नि देकर मेरी भटकती आत्मा को मुक्ति दिला दो वकील भैया…!
इतना सुनते सुनते मे इमोशनल हो गया.., मेरी आवाज़ भर्रा उठी.., रुँधे गले से आगे बोला – उस फरिस्ते ने मेरे खानदान की इज़्ज़त की खातिर.. मेरी फूल जैसी बच्ची को बचाते हुए अपने प्राण गावा दिए ललित…
इतना बोलते हुए मेरी रुलाई फुट पड़ी…, और मे अभागा इंशान उसके प्राण ना बचा सका…!
ना जाने कहाँ से और क्यों वो कम्बख़्त हमारी जिंदगी में आया और एक हवा के झोंके की तरह अपने एहसानों के तले दबाकर इस दुनिया से चला भी गया…!
अब मे अपना फ़र्ज़ निभाना चाहता हूँ मेरे बच्चे.., उस फरिस्ते की आत्मा को मुक्ति दिलाकर उसके एहसानों को कुच्छ कम करना चाहता हूँ.., और इसमें मुझे तेरी ज़रूरत है ललित मेरे बच्चे.., बोल करेगा मेरी मदद…?
ललित साइड की सीट पर घुटने मोड़ कर मेरे गले से आ लिपटा.., वो भी ये सब सुनकर फुट-फुट कर रोने लगा और रोते हुए ही बोला..,
इस नेक काम के लिए मेरी जान भी हाज़िर है चाचू..,, बताइए मुझे क्या करना होगा..? मेने उस देवता स्वरूप इंशान को देखा तो नही.., लेकिन अब ये फक्र ज़रूर महसूस हो रहा है कि उस फरिस्ते ने मुझे अपना माध्यम बनाया है..!
जीवन में कभी भी उस नेक्दिल इंशान की झलक भी दिखाई दी तो मे उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद ज़रूर देना चाहूँगा…, आप बताइए मुझे आगे क्या करना होगा..?
मे – ये भी तुम्हें ही मुझे बताना होगा कि आगे कैसे और क्या करना है…!
ललित चोन्क्ते हुए बोला – मुझे..? क्या मतलब.., मुझे क्या पता..?
मे - मेरा मतलब तुम्हारे अंदर के संजू को…!
ललित – ओह्ह्ह.. ! हां.. मे तो भूल ही गया था कि अब मे अकेला मे नही बल्कि 2 इन 1 हम हूँ.., ये कहकर ललित ज़ोर्से हंस पड़ा.., उसे हस्ता देख कर मुझे भी हसी आगयि..
और साथ ही उसपर मुझे फक्र भी हुआ की इन विषम परिस्थियों में भी ये मासूम, ये जानते हुए भी कि उसके शरीर पर किसी और आत्मा का भी कब्जा है वो घबराने की बजाय हस्ते हुए इसका मुकाबला करने का हौसला रखता है..!
मुझे उसके इस साहसी स्वभाव को देखकर उसपर बहुत ही गर्व सा महसूस हुआ और मेने उसे ज़ोर्से कसकर अपने सीने से लगा लिया…!
चन्द रोज़ बाद ही एक दिन रूचि और ललित ट्यूशन से वापस आ रहे थे.., मेडम के घर से निकल कर रिक्शे के इंतजार में वो कुछ दूर पैदल ही चलते हुए आगे बढ़ गये…!
वो दोनो कुछ ही कदम चले होंगे कि तभी एक बाइक पर सवार 3 लड़के, उन्होने अपनी बाइक उन दोनो के पास आकर रोकी और रूचि को देख कर उसपर फबती कसते हुए बोले-
अरे यार ये तो वो ही माल है ना जो किडनप हो गयी थी..,
दूसरा – हाँ यार ये तो वही है.., लगता है उन बदमाशों ने इसके साथ जमकर मज़े लिए होंगे…!
तीसरा जो सबसे पीछे बैठा था रूचि का हाथ पकड़ते हुए बोला – उन गुण्डों को मज़े करा दिए.., अब ज़रा हमें भी मज़ा थोड़ा बहुत करा दे रानी.., कसम से हम भी खुश कर देंगे तुझे…!
रूचि ने गुस्से से उसका हाथ झटक कर अपनी कलाई छुदाई और एक झन्नाटे दार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया…!
थप्पड़ खाकर वो लड़का भिन्ना उठा.., फ़ौरन ही वो तीनों बाइक से उतार गये और रूचि के साथ हाथापाई करने लगे.., रूचि ने भी अपने हाथ पैर चला कर उन तीनों लड़कों को ये एहसास दिला दिया कि अंगूर तुम्हारे लिए खट्टे हैं…!
इस दौरान ललित सिर्फ़ खड़ा खड़ा देख ही रहा था.., ना जाने क्यों उसका चेहरा इस समय एकदम भावशून्य था…!
एक समय ऐसा आया कि उनमें से एक लड़के ने मौका देखकर रूचि पीछे से रूचि की कमर में हाथ डालकर पकड़ लिया.., आगे से एक लड़के ने उसके दोनो हाथ पकड़ लिए.., और तीसरे लड़के ने उसके दोनो कच्चे अनारों को बुरी तरह से मसल दिया…!
रूचि के चेहरे पर पीड़ा के भाव पैदा हो उठे.., उसने ललित की तरफ देखा जो किसी मूर्ख की भाँति अभी भी खड़ा खड़ा ये सब तमाशा देख रहा था…!
रूचि ने अपने दर्द पर काबू करते हुए चीख कर कहा – ललित के बच्चे देख क्या रहा है बेवकूफ़.., मेरी मदद कर.., वरना ये हरामजादे तेरी बेहन की इज़्ज़त तार तार कर देंगे…!
रूचि की चीख सुनकर ललित मानो किसी नींद से जगा हो.., अचानक से उसके मूह से किसी भेड़िए जैसी गुर्राहट निकली – वो दो कदम आगे बढ़ते हुए बोला…
ओये ! छोड़ो इसे वरना सब के सब मारे जाओगे…!
उसकी बात सुनकर एक लड़का जो रूचि को छेड़ रहा था उसकी तरफ मूह करके बोला – अच्छा.. पिद्दी महाराज.., तू मारेगा हमें…?
ललित ने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा – मे कहता हूँ.., अगर अपनी खैर चाहते हो तो छोड़ दो उसे… वरना बेमौत मारे जाओगे…!
वो लड़का जो रूचि की कमर पकड़े हुए था बोला – अरे यार पहले इस पिद्दी को जाके सबक सीखा.., बाद में इस फुलझड़ी के मज़े ले लेना…!
वो लड़का रूचि के पास से हटकर ललित के आगे पहुँचा और जैसे ही उसने ललित को मारने के लिए अपना हाथ उठाया… मानो कयामत ही टूट पड़ी उसपर..,
देखने वालों ने देखा जो वहाँ हुआ.., एक 15-16 साल के लड़के ने उन तीनों लड़कों के साथ जो किया वो किसी आम लड़के या इंसान के बस का तो कतयि नही था…!!!!
वो तीनो लड़के जिन्होने रूचि के साथ छेड़खानी की थी इस समय एक हॉस्पिटल में पड़े जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे, अपनी मौत के साथ लड़ाई लड़ रहे थे वो हराम के बीज़..!
डॉक्टर्स के हिसाब से वो तीनों बच तो गये थे लेकिन अपने शरीर की कयि कयि हड्डियाँ तुड़वा कर, अब शायद ही वो तीनो अपनी नॉर्मल जिंदगी जी सकें…?
रूचि की ज़ुबानी हुआ कुछ इस तरह से था…
जैसे ही उस लड़के ने ललित को मारने के लिए अपना हाथ उठाया.., उसने अपने बायें हाथ से उस लड़के का हाथ हवा में ही थाम लिया.., ललित के हाथ की पकड़ उसकी कलाई पर इतनी मजबूत थी कि उसकी कलाई कड़ाक से टूटती नज़र आई..,
साथ ही ललित ने दूसरे हाथ से उसके गले को पकड़ कर उसे हवा में उठा लिया..,
फिर उसने कलाई छोड़कर दूसरा हाथ उसकी कमर के नीचे रखा और उस लड़के को इस तरह से अपने सिर से ऊँचा उठा लिया मानो वो कोई बच्चे को उठा रहा हो, और बड़ी आसानी से उसे एक तरफ को उच्छाल दिया…!
उस लड़के का समुचा शरीर पूरे वेग से हवा में लहराता हुआ सड़क से 20-25 फीट दूर एक मकान की दीवार से जा टकराया…!
दीवार से टकराते ही वो किसी अनाज के भारी बोरे की तरह वहीं दीवार के साथ ज़मीन पर ढेर हो गया.., शायद उसके बदन की कयि हड्डियाँ अपनी जगह छोड़ चुकी होंगी…!
कुछ देर तक तो वो दर्द से तडफडाया और फिर जल्दी ही निश्चल होकर शांत हो गया.., शायद वो अपने होश खो बैठा था…!
अपने एक साथी की ऐसी दुर्दशा देख कर उन दो लड़कों के हवस ही ठिकाने नही रहे.., उन्होने मुझे छोड़कर वहाँ से सिर पर पैर रख कर अपनी बाइक वहीं छोड़ी और सरपट दौड़ लगा दी.., मानो उनके पीछे कोई भूत पड़ गया हो…!
ऐसा होता भी क्यों ना.., एक 64-65 केजी के जवान लड़के को एक 15-16 साल के मामूली से दिखने वाले लड़के ने इतनी दूर इस तरह फेंक दिया जैसे कोई बॉल फेंकता है…!
अभी वो दोनो लड़के मुश्किल 10-15 कदम ही भाग पाए होंगे कि तभी ललित ने उनकी बाइक का हॅंडल पकड़ा और उसे किसी खिलौने की तरह उन लड़कों की तरफ फेंक दिया…!
बाइक हवा में गोल-गोल लहराती हुई उन दोनो लड़कों पर जा गिरी.., वो दोनो लड़के बाइक की चपेट में आते ही सड़क पर गिर पड़े..,
इससे पहले कि वो बाइक को अपने उपर से हटा पाते की एक लंबी सी छलान्ग लगाते हुए.. नही..नही.. उसे छलान्ग कहना ग़लत होगा.., ललित का शरीर हवा में उड़ता हुआ उनके पास जा पहुँचा…!
अब वो उन लड़कों के सिर पर खड़ा अपने दोनो हाथों को कमर पर रखे उन्हें खड़े होने के लिए बोल रहा था.., वहीं वो दोनो उसकी आँखों से बरसती आग को देख कर डर के मारे दोनो हाथ जोड़े उससे माफी की भीख माँगते नज़र आ रहे थे…!
लेकिन ललित ने उनपर रहम नही किया.., और अपने दोनो हाथ आगे करके एक-एक हाथ से ही उन दोनो के गिरेवान थाम कर उन्हें हवा में किन्ही प्लास्टिक के खिलौनों की तरह उठा लिया…!
ललित के मूह से किसी ख़ूँख़ार भेड़िए जैसी आवाज़ निकली.. जोकि ललित की तो कतई नही थी.. क्यों हराम के जनो.., लड़की छेड़ोगे.. हां.. ये कहने के साथ ही उसने उन दोनो के सिरों को एक दूसरे के साथ दे मारा…!
भद्दाक़्कक.. की आवाज़ के साथ उन दोनो के सिर फट गये, लेकिन वो इतने पर भी नही रुका और उन दोनो को भी उसी दिशा में उछाल दिया जहाँ उनका पहला साथी पड़ा हुआ था…!
वो तो अच्छा था कि कॉलोनी की सड़क सुनसान थी.., किसी ने देखा नही..या जिसने भी देखा होगा वो डर कर वहाँ रुका नही..,
ललित अभी भी शांत नही हुआ था.., वो उन लड़कों जान से मारने के लिए उनकी तरफ बढ़ने लगा.., तभी मुझे जैसे होश आया और मेने दौड़कर ललित को उनकी तरफ जाने से रोका…!
मे उसके आगे हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी.., मुझे देखते ही मानो वो किसी नींद से जगा हो.., उसकी लाल लाल आँखें मुन्दने लगी.., शरीर हिचकोले से लेने लगा..!
मुझे लगा वो ज़मीन पर गिरने ही वाला है, तभी मेने उसे अपनी बाहों में थाम लिया.., और उसका शरीर मेरे उपर आ गिरा…!
मेने जैसे तैसे उसको खड़ा करके रखा.., उसके शरीर को हिलाते हुए मेने ललित ललित कह के दो-तीन बार पुकारा तब जाकर उसे होश आया.., लेकिन वो अब भी गुम सूम सा ही था…!
मेने उसे घर चलने के लिए कहा..और मे जैसे ही उसे थामे हुए पलटी.., हमारा रिक्शे वाला अपना रिक्शा लिए वहीं खड़ा नज़र आया…, जिसके आने की मेने आवाज़ भी नही सुनी..!
मेने फ़ौरन ललित को रिक्शे में बिठाया और उसे घर ले आई.., घर आते ही वो सीधा अपने कमरे में चला गया और तबसे अभी तक सो ही रहा है…!
रूचि ये बात हम सभी घर वालों के सामने सुना रही थी.., जिसे सुनकर मेरे समेत सभी घर वाले स्तब्ध रह गये…!
ये एक ऐसी घटना थी जिसे अंजाम देने के लिए ललित जैसे अवयस्क लड़के के लिए कभी संभव हो ही नही सकता था…, सभी एकदुसरे की तरफ देख रहे थे की कोई कों अपनी प्रतिक्रिया देता है इस विषय पर…!
कुछ देर बाद बाबूजी बोले – ये काम ललित का किया हुआ तो लगता नही…, मुझे लगता है उसके उपर किसी प्रेत-आत्मा का साया है और उसी ने उससे ये सब करवाया है..!
ये तो अच्छा हुआ कि वहाँ किसी ने इससे उन लड़कों को मारते हुए नही देखा या अनदेखा कर दिया वरना पोलीस का चक्कर हो जाता…!
मे – वो नाबालिग है बाबूजी.., पोलीस उसे जैल में नही डाल सकती.., लेकिन सोचने वाली बात ये है कि ललित इतने समय मेरे साथ रहा..,
उस ढाबे से लेकर चंबल के जंगलो और फिर यहाँ आने तक, एक पल के लिए भी मुझे ऐसा महसूस नही हुआ कि उसके उपर किसी आत्मा का साया हो सकता है.., फिर आज ही उसने ऐसा कैसे कर दिया…?
भैया – क्यों ना हम उसे किसी ओझा या भूत-प्रेत के बारे में जानकारी रखने वाले के पास ले जाए.., अगर उसके उपर किसी प्रेत-आत्मा का साया हुआ तो वो लोग पता लगा सकते हैं.., और उनसे इसको मुक्ति भी दिला सकते हैं…!
मे – शायद आप लोगों की बात सही हो भी सकती है.., लेकिन जब तक एक बार मे अकेले में ललित से बात नही कर लेता तब तक इस बारे में आगे कदम बढ़ाना उचित नही होगा…!
उस दिन ललित डिन्नर के लिए भी बाहर नही आया.., घर में किसी और की हिम्मत भी नही हुई उसे जगाकर लाने की.., तब भाभी ने मुझे कहा – लल्ला तुम ही जाओ यौं वो कब तक भूखा प्यासा सोता रहेगा…!
मेने एक बार वर्षा को भूत होने का झूठ मूठ का नाटक करते तो देखा था वो भी भाभी के साथ, लेकिन असल में किसी के उपर भूत चढ़े हुए कभी नही देखा था..!
मुझे भी अकेले उसके कमरे में जाने से डर लग रहा था सो मेने भाभी से कहा – चलो अपन दोनो उसे लेकर आते हैं..!
भाभी मेरे अंदर की घबराहट को पहचान गयी सो हल्के से मुस्कराते हुए बोली – डर रहे हो..? अच्छा चलो मे भी तुम्हारे साथ चलती हूँ…!
भाभी और मे जब उसके कमरे में पहुँचे तब वो पलंग पर लेटा हुआ अपनी आखें खोले हुए कमरे की छत को निहार रहा था.., मे जाकर उसके बगल में बैठ गया और भाभी उसके सिर के पास..!
वो हमें देख कर उठ कर बैठ गया…, भाभी ने हिचकिचाते हुए या यौं कहो की थोड़ा डरते हुए उसके सिर पर अपना हाथ रखकर उसके बालों को सहलाते हुए कहा - नींद पूरी हुई ललित बेटा..?
ललित – हुउंम…!
भाभी – अब कैसी तबीयत है तेरी..?
ललित भाभी की तरफ देखकर बोला – मुझे क्या हुआ था माँ…?
ललित के मूह से पहली बार अपने लिए माँ शब्द सुनकर भाभी का डर जैसे एकदम से गायब हो गया और उन्होने उसे अपने आँचल में समेटते हुए कहा – कुछ भी तो नही..,
तुझे भला क्यों कुछ होगा.., मेरा बहादुर बेटा.., अच्छा सबक सिखाया तूने उन हरामजादो को, भला कोई भाई अपनी बेहन के साथ ग़लत होते कैसे देख सकता है…!
ललित – पर मुझे कुछ याद क्यों नही कि मेने क्या किया था…?
मे – व.व.वो.वू.. तुम गुस्से में थे ना.., इसलिए शायद कुछ याद नही रहा होगा.., चलो नींद पूरी हो गयी हो तो चलकर खाना खाते हैं.., सब लोग तुम्हारा खाने पर इंतेज़ार कर रहे हैं..,
कब ललित बेटा आए और हम सब साथ मिलकर खाना खायें…!
ललित – क्यों.. आप लोगों ने भी अभी तक खाना नही खाया…?
भाभी – हम भला अपने बेटे के बगैर कैसे खा सकते हैं.., चल उठ जा अब..हां..
ललित – मुझ अनाथ से इतना प्रेम ठीक नही है माँ.., भगवान ना करे कल को मुझसे कोई भूलबस भी कुछ ग़लत हो गया तो मे अपने आप को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा..!
भाभी ने उसे अपने से अलग करते हुए उसके दोनो बाजू थामकर उसे प्यार से झिड़कते हुए कहा – खबरदार जो अब अपने मूह से कभी अनाथ कहा तो… बहुत मारूँगी समझा…, तू मेरा बेटा है और रहेगा…!
अगर ग़लती से कोई भूल हो भी जाती है तो क्या हुआ.. इंसान से ग़लतियाँ हो ही जाती हैं.., यौन अपनो से कोई माफी थोड़े ही माँगता है पगले.., चल अब ज़्यादा बातें ना बना वरना मार खाएगा मुझसे…!
ललित भावना बह गया, माआ…कहकर भाभी के आँचल में समा गया और फफक फफक कर रो पड़ा…!
हम दोनो उसे किसी तरह शांत कराया और खाने के लिए लाए.., अब वो एकदम नॉर्मल बिहेव कर रहा था…!!!
दूसरे दिन सुबह सुबह मे जिम में वर्काउट करके अपने गार्डेन की ब्रेंच पर बैठ कर आज का पेपर पढ़ रहा था, तभी ललित मेरे पास आकर बाजू में बैठ गया…!
मेने एक नज़र उसपर डालकर उसके बालों में हाथ फिरकर बोला – और मेरे शेर जाग गया…? रात को अच्छी नींद आई…?
ललित ने अपनी नज़र झुका रखी थी इसलिए मे उसके चेहरे के इंप्रेशन देख नही पाया था.., वैसे भी मेरा आधा ध्यान न्यूज़ पेपर में ही था…!
अचानक से ललित के मूह से निकला – मुझे मुक्ति कब दिलाओगे वकील भैया…?
ललित के ये शब्द सुनकर मे बुरी तरह से उच्छल पड़ा, ये आवाज़ ललित की तो कतयि नही थी.., ये तो…ये तो…संजू की आवाज़ है.. और मुझे वकील भैया भी वो ही कहता था…!
मेने इधर उधर नज़र घूमाकर देखा.., लेकिन वहाँ मुझे उसके अलावा और कोई नज़र नही आया…,
ललित के मूह से ये शब्द सुनकर मेरे बदन के सारे मसामों ने एक साथ पानी छोड़ दिया.., एक अजीब तरह के डर से मेरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गये…!
कुछ देर तक तो उसकी तरफ देखने की मेरी हिम्मत ही नही हुई.. जब काफ़ी देर तक मेरे मूह से कोई आवाज़ नही निकली तो उसने फिरसे कहा – मुझे मुक्ति दिला दो वकील भैया.. वरना मेरी आत्मा यौंही अंधकार में भटकती रहेगी…!
अब मेने थोड़ी हिम्मत जुटाकर ललित की तरफ देखा जो अपनी लाल लाल.. आग बरसाती हुई नज़रों से मुझे ही घूर रहा था.., एक बार को तो मेरे मन में आया की यहाँ से उठकर सरपट दौड़ लगा दूँ..,
सच कहूँ तो ललित की लाल सुर्ख आँखें देखकर डर से मेरी गान्ड फट रही थी.., मुझे लग रहा था कि मेरे बगल में ललित नही कोई हिसक जंगल जानवर बैठा हो…, एक सेकेंड भी मुझे यहाँ बैठना भारी लग रहा था…!
लेकिन फिर सोचा.. इस समस्या से भागना कोई हाल नही अंकुश प्यारे.., घरवालों को पता चला तो वो लोग झाड़ फूँक के चक्कर में पड़ जाएँगे..,
हो सकता है उससे इस बेचारे मासूम को भी कष्ट सहना पड़े…, जिसमें उसकी कोई ग़लती नही है…!
अतः मेने अपने आप को थोड़ा संयत किया.., संजू की आत्मा मुझे ही नही इस परिवार के किसी भी सदस्य का अहित नही करेगी ये मे अच्छी तरह से जानता था.. तो फिर उसकी बात सुनने की वजाय उससे भागना कोई हल नही.!
मेने दो-चार बार लंबी लंबी साँसें लेकर पहले अपने अंदर के डर को भगाया और फिर बड़े आराम से ललित को संजू मानकर उसके कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा –
तो ललित के शरीर में वो तुम हो संजू जिसने कल इसके हाथों उन बदमाशों का हाल बहाल किया है…!
संजू – हां भैया..वो मेने ही किया था.., क्योंकि वो हरम्जादे मेरी प्यारी बिटिया पर बुरी नीयत डाल रहे थे…!
मे – तुम ललित के उपर कब्से कब्जा जमाए हुए हो…?
संजू – वो तो मेने उसी पल उसके शरीर में प्रवेश किया था.., मे रूचि से बहुत प्रेम करता हूँ.., अपनी प्यारी भांजी को मे एक पल के लिए भी अपनी आखों से ओझल नही होने दे सकता इसलिए मे हमेशा उसके इर्द-गिर्द ही था…!
कल जैसे ही उन बदमाशों ने उसे सताना शुरू किया.., मे अंदर ही अंदर तिलमिला उठा.., क्या करूँ क्या ना करूँ.., इसी असमंजस में फँसा गुस्से से तिलमिला रहा था..,
कि तभी एक अदृश्य शक्ति ने मुझे ये रास्ता सुझाया और उसी की शक्ति से मे ललित के अंदर प्रवेश कर पाया…!
आपने देखा होगा.., नदी के किनारे उस हवा और रेत के बेवांडर को.., वो मे ही था.., आपको रूचि तक ले जाने का एक यही तरीक़ा मुझे लगा…, तब से अबतक हरपल मे आप लोगों के आस-पास ही हूँ.
मे – तो उन बदमाशों के अड्डे से रूचि को तुम ही निकाल कर लाए थे..?
संजू – हां ! क्योंकि वो हरामजादे इसे खराब करना चाहते थे.., इसको कोठे पर बिठाकर धंधा करना चाहते थे वो मदर्चोद..,
अपनी जिस प्यारी भांजी की अस्मत बचाते हुए मेने अपनी जान कुर्बान कर दी उसे यौंही उन दरिंदों के बीच कैसे छोड़ सकता था…!
संजू की बातें सुनकर मेरा गला भर आया.., ललित को अपने गले से लगाकर मेने रुँधे स्वर में कहा – संजू मेरे भाई.., मेरे अज़ीज.. मुझे माफ़ कर दे मेरे दोस्त.., काश मे समय पर वहाँ पहुँच पाता.., तो शायद तुम आज हमारे बीच होते…!
संजू – आपको माफी माँगने की कोई ज़रूरत नही है वकील भैया.., ये तो सब विधि का विधान है जिसे कोई चाह कर भी नही रोक सकता.., और फिर मेरे अपने ही करम ऐसे थे जिसका अंजाम तो मौत ही है ना…!
बस खुशी इस बात की है कि मे अपने जीते जी रूचि बिटिया को बचाने में कामयाब रहा और मरने के बाद भी उसे आपके पास तक ला सका.., वरना मेरी आत्मा पर ये बहुत बड़ा बोझ रह जाता…!
उन हरामजादो ने मेरे शरीर को कचरे के ढेर में दबा रखा है वकील भैया.., जब तक उसे चिता के हवाले नही किया जाता तब तक मुझे मुक्ति नही मिलेगी.., मेरी आत्मा यौनी अंधेरो में भटकती रहेगी…!
मे – तो तुमने इस मासूम के शरीर को ही क्यों चुना..? मुझसे सीधे सीधे बात कर सकते थे…!
संजू – नही भैया.., अभी मेरे पास इतनी शक्ति नही थी कि मे किसी के भी सामने प्रकट हो सकूँ.., इसलिए मेने आपसे बात करने का ललित के शरीर को ही माध्यम चुना है…,
भरोसा रखिए.., मेरी वजह से इस मासूम को कोई तक़लीफ़ नही होगी.., उल्टा मे इसकी हिफ़ाज़त ही करूँगा…!
मे – लेकिन तुम फिरसे उन बदमाशों के चंगुल में कैसे फँस गये…? तुम तो गाओं में चाची के पास थे ना…?
संजू – ये एक लंबी कहानी है.., अभी यहाँ समय नही है सब कुछ बताने का.., ललित को लेकर आप मेरे साथ चलिए.., मे रास्ते में आपको सब कुछ बता दूँगा..!
और हां.., हो सके तो अभी इस बात को किसी और से मत कहना.., वरना पूरे घर में ख़ामाखाँ का कोहराम मचेगा.., ये भी हो सकता है मोहिनी दीदी साथ आने की ज़िद करने लगें.., क्योंकि मे उनका लाड़ला भाई जो था…!
संजू की बातों ने मुझे अंदर तक हिला दिया था.., चाहकर भी मे अपनी रुलाई नही रोक पाया और ललित के शरीर से लिपटकर रो पड़ा…!
तभी मुझे घर के अंदर से भाभी आते हुए दिखाई दी.., मेने फ़ौरन ललित को अपने से अलग किया और अपने आप को संयत करके फिरसे पेपर में नज़र गढ़ा दी…!
भाभी ने डोर से ही हमें गले लगते हुए देख लिया था.., अतः पास आकर बोली – क्यों भाई क्या बात है.. ये चाचा भतीजे का भरत मिलाप क्यों हो रहा है सुबह सुबह.., कोई खास बात हो गयी क्या…?
मेने एक नज़र ललित के चेहरे पर डाली.., देखकर तसल्ली हुई की अब वो एकदम से नॉर्मल दिखाई दे रहा था.., फिर मेने भाभी से मुखातिब होकर कहा – कुछ नही बस कल की बहादुरी के लिए अपने शेर को शाबासी दे रहा था…!
और हां भाभी.., कॉलेज में अड्मिशन के लिए इसके पुराने कॉलेज से कुछ डॉक्युमेंट्स लेने जाना है सो आज ही मे और ललित एक-दो घंटे में इसके गाओं के लिए निकलेंगे…!
मेरी बात सुनकर ललित ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा.., इससे पहले कि वो कुछ कहता.., मेने उसकी जाँघ दबाकर कहा – और इसका भी मन है एक बार अपने गाओं जाकर देखने का…!
भाभी – ये तो बहुत अच्छी बात है.., कहो तो मे भी साथ चलूं..?
मे – अरे नही..नही.. आप ख़ामाखा क्यों परेशान होती हो.., सफ़र बहुत लंबा है.., और फिर यहाँ सबकी देखभाल के लिए आपका घर पर रहना भी ज़रूरी है..,
रूचि अभी अभी एक हादसे से गुज़री है.., ख़ासतौर से उसे आपकी हर समय ज़रूरत है..,
हम लोग एक-दो दिन में वापस आजायेंगे आप बिल्कुल फिकर मत करना…!
भाभी मेरे पास आकर मेरी नाक पकड़कर उसे हिलाते हुए बोली – मे जानती हूँ.., जहाँ मेरा देवर होगा वहाँ सब शुभ ही शुभ होगा..,
अब जब जल्दी ही निकलना है तो तुम लोग अभी तक यहाँ क्यों बैठे गप्पें मार रहे हो..? नहा धोकर तैयार हो जाओ.., मे तुम लोगों के खाने पीने का इन्तेजाम करती हूँ..!
वहाँ पता नही कुछ मिले ना मिले.., सो रास्ते के लिए भी कुछ बनाकर रख दूँगी.., चलो अब उठो…, ये कहकर वो पलटकर घर की ओर चल दी और मेने ललित को भी उठकर तैयार होने को कहा…
ललित अभी भी असमंजस में फँसा हुआ था.., मेरा हाथ थामकर बोला – मेने आपसे कब कहा कि मुझे अपने गाओं जाना है.., और ये डॉक्युमेंट्स की बात कहाँ से पैदा हो गयी..?
मे – अरे यार वो तो मेने भाभी को टरकाने के लिए ऐसे ही कह दिया था.., चलो हम दोनो को एक बहुत ही ज़रूरी काम निपटाने कहीं जाना है…!
ललित – कहाँ..? और क्या..?
मे – मुझ पर भरोसा है तुम्हें..?
ललित – ये आप क्या कह रहे हैं चाचू.., आप पर अविश्वास करने जैसा तो मे सोच भी नही सकता.., आप तो मेरे लिए भगवान से बढ़कर हो.., फिर भी अगर बता देते तो मेरी उत्कंठा शांत हो जाती…!
मे – तो फिर उठो.., और तैयार हो जाओ.., रास्ते में तुम्हें तुम्हारे हर सवाल का जबाब मिल जाएगा.., बस ये समझ लो कि तुम्हारे हाथों एक बहुत ही नेक और पुन्य का काम होने वाला है…,
और हां.., घर में कोई इस मामले में पुच्छे तो यही जबाब देना जो मेने भाभी से कहा है.., अब चलो चलते हैं यहाँ से..!
इतना कहकर मेने खड़े होते हुए उसे भी बाजू पकड़कर खड़ा कर दिया.., वो अब भी बुरी तरह से असमजस में फँसा मेरे पीछे पीछे घर के अंदर तक चला आया…!!!
9 बजे तक मे और ललित निकलने के लिए तैयार थे.., संजू की आत्मा इस समय उसके अंदर ही थी.., लेकिन वो नॉर्मल नज़र आ रहा था.., उसके चेहरे पर खुशी और उदासी के मिले जुले भाव थे…!
उसने बाबूजी, भैया और भाभी के चरण स्पर्श किए..उनसे आशीर्वाद लिया.., फिर निशा के कदमों में झुक गया.., उसके पैर छुते हुए बोला.., मुझे अपना आशीवाद दीजिए दीदी…!
निशा – दीदी..! ये कॉन्सा नया रिस्ता बना लिया तुमने..? अब तक तो चाची बोल रहे थे और अब दीदी…?
मेने उसके कान में फुसफुसा कर कहा – अरे यार बच्चा है, जो उसको फील होता है बोल देता.., तुम उसको आशीर्वाद दो ना.., रिश्तों में क्या रखा है.., उसने मुस्कुरा कर उसे कंधों से उठाया और अपने गले से लगाते हुए बोली…
जुग जुग जियो मेरे भाई… मेरे बच्चे.., और हां रास्ते में अपने चाचू का ख्याल रखना, ये जल्दी ही बेकाबू हो जाते हैं..!
उसके बाद ललित ने रूचि को अपने गले से लगाया और एक बड़े की तरह उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया…!
सभी लोग उसकी इस हरकत पर हैरान थे.., लेकिन मेने ये कहते हुए – अरे चल ना यार.. क्यों देर कर रहा है.., बहुत दूर जाना है..और उसका बाजू थामकर उसे लगभग घर से घसीटते हुए बाहर ले गया..,
सब लोग पोर्च तक हमें विदा करने आए.., ललित मूड-मुड़कर उन सबसे ऐसे विदा ले रहा था मानो अब उसे इस घर में फिर कभी वापस नही आना है..!
उसकी ये हरकतें मेरे लिए तो सामान्य थी.., लेकिन औरों को थोड़ी असहज करने वाली थी..,
मेने उसे जल्दी से गाड़ी में बैठने के लिए कहा और इससे पहले कि यहाँ और कोई कहानी पैदा हो मेने गियर डालकर गाड़ी आगे बढ़ा दी.., वो अभी भी विंडो से अपना हाथ निकालकर सबसे हाथ हिला हिलाकर विदाई ले रहा था…!
ना जाने क्यों उसे दूर जाते देख भाभी की आँखों में पानी था.., और साथ ही एक सवाल भी जिससे मे फिलहाल बचना चाह रहा था…!
घर से निकलकर जैसे ही गाड़ी मेन रोड पर पहुँची ललित ने अपना सुबह वाला सवाल दोहरा दिया.., अब तो बता दो चाचू हम लोग जा कहाँ रहे हैं और क्यों…???
मेने भाव-शून्य होकर उसके मासूम चेहरे की तरफ देखा और फिर अपनी नज़रें रोड पर टिकाते हुए कहा – कल की घटना का पता है तुझे..?
ललित – हां.. कुच्छ कुच्छ.. दीदी बोल रही थी कि मेने उन्हें बचाने के लिए तीन लड़कों की अकेले पिटाई कर दी थी.., तो उसमें क्या..?
मूह बोली ही सही लेकिन मेने उन्हें अपनी सग़ी बेहन से बढ़कर माना है, फिर उनपर कोई आँच आए और मे खड़ा खड़ा देखता रहता क्या..?
मेने ललित के सिर के बालों को सहलाते हुए कहा – पिटाई.., अरे पगले.. वो तीनों लड़के लन्गडे लूले होकर हॉस्पिटल में अभी भी बेहोश पड़े हैं..,
बचने के बावजूद भी अब वो शायद ही अपने पैरों पर सही सलामत खड़े हो पायें…!
मेरी बात सुनकर ललित के आश्चर्य की सीमा नही रही, वो मूह फाडे कुच्छ देर मेरी तरफ देखता रहा फिर कुच्छ सामान्य होते हुए बोला – ये आप क्या कह रहे हैं..?
मे भला 3-3 लड़कों को अकेला इस हालत में कैसे पहुँचा सकता हूँ.., ज़रूर दीदी ने झूठ मूठ मेरी तारीफ़ करने के लिए बोल दिया होगा…!
मे – अब्बे गधे..! ये ही सच है.., पोलीस को उस आदमी की तलाश है जिसने उन्हें इस हालत में पहुँचाया है.., वो तो कोई ऐसा चस्मडीद गवाह नही मिला उनको वरना इस समय तू बाल सुधार घर के अंदर होता…!
ललित – लेकिन ये कैसे संभव है चाचू.. मे भला कैसे ये सब…???
मे – वो ही तो.., ये तूने किया..और तुझे ही याद नही.. ज़रा सोच मेरे बच्चे ऐसा कैसे हुआ..? जबकि ये सब तूने किया ही नही था…!
ललित – ये आप क्या पहेलियाँ बुझा रहे हैं..? मेने ये सब किया.., मुझे ही याद नही.., फिर आप कहते हैं कि वो सब मेने नही किया तो फिर किया किसने..?
मेने ललित के कंधे पर हाथ रखकर उसका साहस बाँधते हुए कहा – देख मेरे बच्चे.., अब मे जो तुझे बताने जा रहा हूँ.. प्रॉमिस कर कि तू उसे सुनकर बिल्कुल भी बिचलित नही होगा….!
ललित ने मेरी बात का कोई जबाब नही दिया.., बस अपनी सवालिया नज़रों से मुझे घूर्ने लगा.., मेने एक बार फिर उसका कंधा थप थपाया और कहा –
तेरे शरीर के अंदर संजू की आत्मा आ जाती है और कल वाला कांड उसी ने तेरे हाथों कराया है.., वो इतना नेक्दिल इंशान था कि रूचि या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य पर अगर कोई आँच भी आ जाए तो उसे सहन नही होता था…!
रूचि को गुण्डों के बीच से उसी फरिस्ते की आत्मा बचाकर लाई थी और उस रात हवा और रेत के बवांडर का रूप लेकर उसने हमें बेहोश रूचि तक पहुँचाया था…!
ललित मूह बाए मेरी बातें सुन रहा था.., में बॅक मिरर से उसकी एक-एक हरकत नोट कर रहा था.., अपने शरीर में किसी और की आत्मा का होना सुनकर एक बार तो वो बुरी तरह से हिल गया था..,
लेकिन उस बहादुर बच्चे ने जल्दी ही अपने आप पर काबू भी कर लिया.., मुझे चुप होते देख वो बोला – तो ये सब बातें आपको उस रात ही पता चल गयी थी..?
मे – नही..! कल के तेरे इस दुस्साहसी काम को सुनकर घर के सभी लोगों को शक़ हो गया था कि ये सब तूने नही तेरे अंदर मौजूद किसी प्रेत-आत्मा ने किया है..
वो लोग किसी ओझा बगैरह की मदद लेने के पक्ष में थे.., लेकिन तुझे कोई कष्ट ना हो इसलिए मेने ये कहकर टाल दिया था कि पहले मे तुझसे बात करके ये तय कर लूँ कि कोई आत्मा वाकई तुम्हारे अंदर है या ये सब अधिक गुस्सा आने के कारण तो नही हुआ…!
लेकिन मे ये भी जानता था कि किसी भी सूरत में तुम्हारे जैसा 15-16 साल का मासूम इतना कुच्छ कभी नही कर सकता पर फिर भी ना जाने क्यों मे किसी झाड़ फूँक के फेवर में कतयि नही था…!
आज सुबह जब में गार्डन में बैठा पेपर पढ़ रहा था.. तब तुम मेरे पास आए.., और आते ही मुझे वकील भैया कहकर संबोधित करते हुए जोकि मुझे केवल संजू ही कहता था बोले –
मुझे मुक्ति दिला दो भैया…, मेरा पार्थिव शरीर उन हरम्जादो ने एक कचरे के ढेर में दबा रखा है.., मेरी चिता को अग्नि देकर मेरी भटकती आत्मा को मुक्ति दिला दो वकील भैया…!
इतना सुनते सुनते मे इमोशनल हो गया.., मेरी आवाज़ भर्रा उठी.., रुँधे गले से आगे बोला – उस फरिस्ते ने मेरे खानदान की इज़्ज़त की खातिर.. मेरी फूल जैसी बच्ची को बचाते हुए अपने प्राण गावा दिए ललित…
इतना बोलते हुए मेरी रुलाई फुट पड़ी…, और मे अभागा इंशान उसके प्राण ना बचा सका…!
ना जाने कहाँ से और क्यों वो कम्बख़्त हमारी जिंदगी में आया और एक हवा के झोंके की तरह अपने एहसानों के तले दबाकर इस दुनिया से चला भी गया…!
अब मे अपना फ़र्ज़ निभाना चाहता हूँ मेरे बच्चे.., उस फरिस्ते की आत्मा को मुक्ति दिलाकर उसके एहसानों को कुच्छ कम करना चाहता हूँ.., और इसमें मुझे तेरी ज़रूरत है ललित मेरे बच्चे.., बोल करेगा मेरी मदद…?
ललित साइड की सीट पर घुटने मोड़ कर मेरे गले से आ लिपटा.., वो भी ये सब सुनकर फुट-फुट कर रोने लगा और रोते हुए ही बोला..,
इस नेक काम के लिए मेरी जान भी हाज़िर है चाचू..,, बताइए मुझे क्या करना होगा..? मेने उस देवता स्वरूप इंशान को देखा तो नही.., लेकिन अब ये फक्र ज़रूर महसूस हो रहा है कि उस फरिस्ते ने मुझे अपना माध्यम बनाया है..!
जीवन में कभी भी उस नेक्दिल इंशान की झलक भी दिखाई दी तो मे उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद ज़रूर देना चाहूँगा…, आप बताइए मुझे आगे क्या करना होगा..?
मे – ये भी तुम्हें ही मुझे बताना होगा कि आगे कैसे और क्या करना है…!
ललित चोन्क्ते हुए बोला – मुझे..? क्या मतलब.., मुझे क्या पता..?
मे - मेरा मतलब तुम्हारे अंदर के संजू को…!
ललित – ओह्ह्ह.. ! हां.. मे तो भूल ही गया था कि अब मे अकेला मे नही बल्कि 2 इन 1 हम हूँ.., ये कहकर ललित ज़ोर्से हंस पड़ा.., उसे हस्ता देख कर मुझे भी हसी आगयि..
और साथ ही उसपर मुझे फक्र भी हुआ की इन विषम परिस्थियों में भी ये मासूम, ये जानते हुए भी कि उसके शरीर पर किसी और आत्मा का भी कब्जा है वो घबराने की बजाय हस्ते हुए इसका मुकाबला करने का हौसला रखता है..!
मुझे उसके इस साहसी स्वभाव को देखकर उसपर बहुत ही गर्व सा महसूस हुआ और मेने उसे ज़ोर्से कसकर अपने सीने से लगा लिया…!