Update 17

अभी हम आधे रास्ते भी नही पहुँचे थे कि ललित एकदम से गुम-सूम सा हो गया और गेट के ग्लास से बाहर की तरफ देखने लगा..,

जब काफ़ी देर तक भी वो कुच्छ नही बोला तो मेने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहा…!

उसने लाल तमतमाए हुए चेहरे को मेरी तरफ घूमाकर अपनी सुलगती आँखों से मेरी तरफ देखा जिन्हें देखकर मुझे झूर-झूरी सी आगयि.., वो इस समय संजू के प्रभाव में आ चुका था…!

वो अपनी लाल सुर्ख दहक्ति आँखों को मेरे चेहरे पर गढ़ाए हुए बोला – वकील भैया.., क्या आप मुझे मेरे दुष्कर्मों के लिए क्षमा कर पाएँगे..?

मेने थोड़ा झिझकते हुए सवाल किया – किस बात की क्षमा संजू भाई..? तुमने तो पहले ही हमें अपने एहसानों तले दबा लिया है.., भला तुमसे कोई दुष्कर्म कैसे हो सकता है..?

संजू – जानना नही चाहेंगे कि मे आप लोगों को बिना बताए क्यों और कहाँ गायब हो गया था…?

मुझे तुम्हारे निर्णय पर कोई एतराज नही है ना कभी था…, हम सब जानते हैं कि तुम हमेशा से अपनी मर्ज़ी के मालिक रहे हो.., अबके भी अपनी मर्ज़ी से ही गये होगे…!

संजू – नही भैया.., ऐसा कतई नही था.., आप लोगों के मामले में ना में कभी ख़ुदग़र्ज़ था और ना हूँ.., हां ये सच है कि मेरे अपने परिवार के ख़तम हो जाने के बाद में अपनी मर्ज़ी का ही मालिक था..,

लेकिन तब भी देखा जाए तो मे अप्रत्यक्ष रूप से ही सही दूसरों की कठपुतली ही बना रहा.., हर वो ग़लत काम किया जो मेरे तो कतयि हक़ में नही था…!

इस बार भी मे उन्ही लोगों के हाथों की कठपुतली बन गया, लेकिन इस बार मुझे एक सुनहरे जाल में फँसाया गया.. और मे मूर्ख उसमें फँसता चला गया बस अपनी एक मृगतृष्णा को शांत करने के लालच में आकर…!

मेने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा जिसे समझते हुए वो आगे बोला – हां भैया एक सुनहरा जाल.., जिसे मे समय रहते ना तोड़ सका और ना ही उससे निकल पाया…!

फिर संजू ने मुझे वो बातें बताई जो उसने वहीदा की ननद शकीला के मिलने से लेकर उसके साथ बिताए हर वो अधूरे सपने जिन्हें वो समय पर पूरा नही कर पाया था…!

संजू मानो कहीं अतीत के पन्ने पलटते हुए बोला – वो शकीला नाम की सुनहरी नागिन…… ओह.. नही.. नही उसे नागिन नही जाल में फँसी

मछली कहना उचित होगा..,

असल में वो वहीदा की ननद थी ही नही वो तो उसका एक मोहरा थी जो मुझे फँसाने के लिए उसे पड़ौस के गाओं में फिट किया गया था…!

ये सच है कि वो गाओं वहीदा के पति का ही है.., उसके वो सास ससुर भी असली थे लेकिन शकीला उसकी ननद नही थी जो मुझे बहुत बाद में शकीला से ही पता चला…!

कामिनी के अड्डे को तबाह होने के बाद युसुफ और उसका खानदान उसकी सारी दौलत लेकर चुप-चाप शहर से चंपत हो गये.., उसे ये भी

पता था कि इसके पीछे मेरा हाथ है..,

उन्होने इलाक़े की पोलीस से छुपने के लिए चंबल की घाटियों को चुना.., जब युसुफ वहाँ छुपने के लिए अपने लिए कोई माकूल जगह तलाश

कर रहा था तभी उसकी मुलाकात उस इलाक़े के एक बहुत ही दबंग और पवरफुल आदमी शेर सिंग से हुई…!

शेर सिंग का नाम सुनते ही मेरे मूह से निकल पड़ा – हां मे जानता हूँ उस शेर सिंग के बारे में.., उसी की गाड़ी इस्तेमाल हुई थी रूचि को उठवाने में…!

संजू – लेकिन आप ये नही जानते कि शेर सिंग असल जिंदगी में इतना बड़ा और पवरफुल आदमी कैसे बना…!

उसका बाप दस्यु सम्राट मलखान सिंग के गिरोह में एक अदना सा डाकू था..,

मलखान ने तो अपने कुच्छ साथियों के साथ सरकार के सामने सरेंडर कर दिया था लेकिन इसका बाप अपने सरदार से बग़ावत करके गायब हो गया…!

उसे लूट के माल का सब पता था.., जिसे उसने समय से पहले ही वहाँ से गायब कर दिया.., जब सब मामले शांत हो गये.., फूलन देवी ने भी कुच्छ दिन बाद अपने आपको सरेंडर कर दिया.., तब उसने अपने पंख फैलाने शुरू किए…!

उसका लड़का शेर सिंग भी अब जवान हो गया था जो बेहद ही ख़ूँख़ार और जल्लाद किस्म का था.., इंसान की जिंदगी उसके लिए जैसे एक खेल की तरह थी.., जिससे खेल कर उसे नष्ट कर दिया जाता हो…!

शेर सिंग और उसके बाप ने दौलत के दम पर इलाक़े में अपनी ताक़त को बढ़ाना शुरू किया.., और रेत के एक बड़े से टीले के नीचे एक बहुत ही विशाल अंडरग्राउंड अड्डा बना लिया जहाँ वो सारे गैर क़ानूनी काम करता है…!

युसुफ को उसने अपने यहाँ पनाह देकर उसे भी अपने मोहरों में शामिल कर लिया और उसके सारे धंधे अब शेर सिंग की छत्र छाया में फिर से फलने फूलने लगे…!

मे – तो वो अड्डा उसी खंडहर नुमा मकान के नीचे है.., जहाँ से हमने उन दो आदमियों को गायब होते देखा था…?

संजू – वो मकान तो एक भ्रम है, ये बात सही है कि एक रास्ता उस मकान से होकर भी जाता है जो कि कभी कभार वो लोग यूज़ कर लेते हैं..,

जब कभी कोई आदमी किसी कारण से दूसरों की नज़र में आ चुका होता है या उन पर किसी तरह का शक़ होता है…!

असल रास्ता तो अलग ही है जो शेर सिंग के एक बड़े से फार्म हाउस से होकर जाता है.., जिसपर एक पूरा ट्रक भी चल कर अड्डे तक पहुँच सकता है…!

प्रशासन में उसकी बहुत उपर तक पकड़ है जिससे उसके फार्म हाउस तक पोलीस की नज़र भी नही जाती…, सुनने में तो यहाँ तक भी

आया है कि ये ऑर्गनाइज़ेशन इतना बड़ा है कि इसका मेन बॉस शेर सिंग को भी आदेश देता है…!

और शायद वो पड़ौसी राज्य की पूर्व सरकार का बहुत बड़ा मंत्री भी रह चुका है…, जिसके शेर सिंग और विक्रम राठी जैसे ना जाने कितने

धन्ना सेठ और ताक़तवर लोग गुलामों की तरह इस ऑर्गनाइज़ेशन से जुड़े हुए हैं…!

संजू के मूह से इस ऑर्गनाइज़ेशन के बारे में इतना सब कच्छ सुनकर मेरा मूह फटा का फटा रह गया..,

सरकार और प्रशासन की नाक के नीचे इतने बड़े बड़े काले धंधे हो रहे हैं और पोलीस बड़े बड़े नामों के चलते कभी इनपर हाथ डालने की सोच भी नही पाती…!

खैर मेने संजू के साथ हुई घटना के मुख्य मुद्दे पर आते हुए पुछा – तुम्हारे और शकीला के मामले में क्या हुआ था…?

संजू एक लंबी सी आहह..भरकर बोला – वो कमसिन कली जो निहायत ही सुंदर और कोमल.., जो हाथ लगते ही मैली हो जाए इतनी सुंदर

किसी परी जैसी अल्हड़ बाला….

जिसे इन हरामजादो ने उत्तराखंड के एक गाओं से जहाँ उसके बहुत ही ग़रीब माँ-बाप को एक मामूली सी रकम देकर, उन्हें उनके परिवार

को मौत के घाट उतारने का डर दिखाकर खरीद लिया…!

अपने परिवार की सलामती की खातिर वो बेचारी इन दरिंदों के इशारों पर नाचने को मजबूर थी…!

युसुफ को इस ऑर्गनाइज़ेशन में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए मेरे जैसे साहसी और शातिर आदमी की ज़रूरत थी जिससे उसका शेर सिंग के लोगों में ख़ौफ़ बरकरार रह सके..!

मेरे गाओं जाते ही उसके जीजा ने ना जाने कैसे मेरे बारे में पता चला लिया और फिर मुझे फँसाने के लिए युसुफ ने वहीदा के द्वारा ये सुनहरा जाल बुना..!

शकीला दिल से मुझे चाहने लगी थी.., मे तो उसके पीछे जैसे बाबला ही हो चुका था.., लेकिन हर एन मौके पर वहीदा आकर हमारे मिलन में

रुकावट बन जाती…!

एक दिन वहीदा ने मुझे रात को अपने घर बुलाया और ये वादा किया कि आज की रात वो शकीला का उसके साथ मिलन करा ही देगी…!

उस दिन मे बहुत खुश था की चलो देर से ही सही कम से कम वहीदा की रज़ामंदी से मुझे शकीला की कमसिन जवानी को भोगने का मौका मिलने वाला है..,

अतः मे घर का सारा काम धाम निपटाकर बिना खाना खाए शाम होते ही वहीदा के घर की तरफ चल दिया…!

उसके घर पहुँचते पहुँचते मुझे अंधेरा हो चुका था.., मेने जैसे ही घर में कदम रखा तो मुझे वहीदा का खाविंद पहली बार वहाँ मिला…!

दोनो ने मिलकर मेरी खूब खातिरदारी की मास मदिरा का खुलकर इस्तेमाल हुआ.., खा पीकर जब मेने वहीदा को उसका वादा याद दिलाया तो वो बोली…

देखो संजू भाई.., मेरी ननद अभी एक कच्ची कली है.., हमें उसके लिए ऐसा मर्द चाहिए जो उसे ता-उम्र खुशियाँ दे सके.., तुम तो उसे चोद

-चाद कर रफूचक्कर हो जाओगे..!

अगर उसके साथ किसी ने निकाह करने से इनकार कर दिया तो.., बाद में किसी बुड्ढे दर्जन भर बच्चों के बाप के गले ही बाँधनी पड़ेगी ना…!

संजू – ये तो सरासर वादा खिलाफी कर रही हो वहीदा बेहन.., तुमने वादा किया था कि आज की रात हम दोनो को मिलने दोगि…!

वहीदा – तो मे कहाँ वादा खिलाफी कर रही हूँ.., अगर तुम शकीला से निकाह करना चाहते हो तो वो तुम्हारी हो जाएगी.., बोलो करोगे एक * लड़की से निकाह…?

संजू – वहीदा की शर्त सुनकर मे सोच में पड़ गया.., वो आगे बोली – मे जानती हूँ संजू प्यारे.., कुँवारी लड़की को चोदना तो हर कोई चाहता है भले ही वो सफाई करने वाली भंगीन ही क्यों ना हो.., लेकिन शादी करके साथ रखने की हिम्मत कोई नही जुटा पाता…!

संजू – वकील भैया… उस समय जब मेने अपने अंदर आत्म मंथन किया तब जाना कि मे शकीला से किस कदर प्यार करने लगा था..,

मेने वहीदा की शर्त कबूल कर ली और शकीला के साथ निकाह करने के लिए उसको हां बोल दिया…!

गाड़ी ड्राइव करते हुए मे संजू के साथ बीती घटनाओं को बड़े ध्यान से सुन रहा था…,

उसने अपनी आप बीती आगे बढ़ाते हुए कहा - मेरे मूह से निकाह के लिए हां सुनकर वहीदा के चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गयी..,

लेकिन उस चमक को शीघ्र ही किनारे करते हुए वो महा छिनाल औरत बोली –

लेकिन संजू भाई.., तुम * हो.., एक * लड़की से शादी करके तुम जिन लोगों के बीच रह रहे हो क्या आगे भी उनके साथ रह पाओगे..?

मेरा मतलब है वो तुम्हें एक * लड़की के साथ निकाह करने पर अपने समाज में स्वीकार कर पाएँगे..?

वहीदा का सवाल वाजिब था.., हम कितने ही पढ़ लिखकर आगे क्यों ना निकल जायें लेकिन अभी भी किसी गैर मज़हब या नीच जाती को

अपने घर का सद्स्य बनाना स्वीकार नही कर पाते, ख़ासकर अपने घर की बहू तो बिल्कुल नही…!

लेकिन मे शकीला की कमसिन जवानी और उसके रूपजाल में इस कदर क़ैद हो चुका था कि उसकी बात सुनते ही बोला – मुझे किसी

समाज की कोई परवाह नही है.., लोग हमें अपनायें या ना अपनायें.., हम ये गाओं छोड़ कर कहीं और रह लेंगे…!

मेरी बाजुओं में इतनी ताक़त है कि मे अपने और शकीला की ज़रूरतों को कहीं भी रहकर पूरा कर सकता हूँ…!

मेरी बात सुनकर वो तपाक से बोली – बस मे तुम्हारे मूह से यही सुनना चाहती थी.., तुम एक काम क्यों नही करते.., आज ही तुम शकीला को लेकर यहाँ से निकल जाओ..!

हमारे रिस्तेदार हैं यहाँ से काफ़ी दूर अच्छा संपन्न घराना है.., वो तुम्हें काम धंधा भी दिलवा देंगे.., और वहीं तुम दोनो का निकाह भी करा देंगे…!

संजू – आज ही..? लेकिन कहाँ..?

वहीदा – तुम उसकी फिकर मत करो.. मेरे खाविंद आज रात को ही वहाँ के लिए निकल रहे हैं तुम दोनो भी उनके साथ ही निकल जाओ.., बाहर गाड़ी खड़ी है.., रात रात में वहाँ पहुँच जाओगे…!

संजू – लेकिन यौं अचानक कैसे.., मुझे जहाँ रह रहा हूँ.. कम से कम उन लोगों को बोलना तो पड़ेगा…!

वहीदा – अच्छा ! उसके बाद वो लोग तुम्हें जाने देंगे..हां..? देखो तुम किसी भी बात की चिंता मत करो.., तुम दोनो के रहने खाने का सारा

इंतज़ाम अच्छे से हो जाएगा.., अब ज़्यादा सोच विचार मत करो और यहाँ से आज ही निकल जाओ…!

स्नजू की कहानी जारी थी.., मे बस मूक दर्शक बना अपनी ड्राइविंग पर ध्यान देते हुए उसकी बातें सुन रहा था…!

संजू आगे कहना जारी रखते हुए बोला – मे वहीदा की लच्छेदार बातों में पूरी तरह फँस चुका था.., सो उसी रात शकीला को लेकर जाकिर (वहीदा का शौहर) के साथ वहाँ से निकल लिया…!

रात के लगभग 3 बजे हम उस मोडपर थे जो दूसरे राज्य के लिए जाता था.., वहाँ उसने गाड़ी रोकी और एक होटेल पर बैठकर चाइ मँगवाई…!

चाइ लेने जाकिर खुद गया.., हमने चाइ पी और फ़ौरन बिना एक पल गँवाए गाड़ी में आकर बैठ गये.., अभी गाड़ी वहाँ से कुच्छ ही दूर निकली थी कि मेरी आँखें भारी होने लगी…!

पीछे की सीट पर बैठी शकीला तो कब की सो चुकी थी.., एक दो मिनिट में ही में भी आगे की सीट पर सो गया..,

जाकिर जानता था कि उस ख़तरनाक जगह जो कि शेर सिंग के फार्म हाउस से एक सुरंग के रास्ते से होकर जाना होता था वहाँ से गुज़रते ही मे किसी भी सूरत में उसके ऐसी अंजान जगह जाने का विरोध ज़रूर करता इसलिए उसने हम दोनो को ही चाइ के साथ नींद की गोलियाँ

घोलकर पिला दी थी…!

जब मेरी आँख खुली तो एक बिस्तर पर मे अकेला पड़ा हुआ था.., शकीला का कहीं आता-पता भी नही था…, सुबह के 10 बजे थे जब मे नींद से जगा…!

मेरी आँख खुलते ही मेने अपने पास पलंग पर ही वहीदा की दोनो बहनों को बैठे देख कर मे चोंक गया.., मेने उनसे पुछा – तुम लोग यहाँ,,?

ये कॉन सी जगह है और शकीला कहाँ है..?

मेरे सवाल सुनकर रुखसार जो वहीदा से छोटी थी वो मेरे गाल सहलाते हुए बोली – हाए रे हॅंडसम.., हम लोग कब्से तुम्हारी रह देख रहे हैं

और तुम हो कि जागते ही उस मुई शकीला के बारे में पुच्छने लगे…!

फिकर ना करो मेरे राजा.. वो तो तुम्हें मिल ही जाएगी.., ज़रा हमें भी तो अपने इस मूसल का फिरसे कमाल दिखाओ.., ये कहकर उसने मेरे

सोए पड़े लंड को पॅंट के उपर से ही मसल दिया…!

मेने उसे ज़ोर्से धक्का देकर अपने से दूर कर दिया.. लेकिन तभी उसकी छोटी बेहन शकीरा मेरे गले पड़ते हुए बोली – आईए.. हाई.. संजू भाई जान ऐसे तो ना तरसाओ.., हम भी कोई बेगाने तो नही…!

एक बार मज़ा लेके तो देखो मेरी जान.., पहले से भी ज़्यादा मज़ा ना आए तो कहना.., खैर अभी आप थोड़ा फ्रेश व्रेश हो लो.., खाना वाना

ख़ालो उसके बाद हम लोग मिलते हैं तुमसे…,

बाइ.. ये कहते हुए वो दोनो रंडियाँ अपनी मोटी-मोटी गान्ड मटकाते हुए वहाँ से बाहर चली गयी…!

इतना ही नही साली रंडियाँ जाते जाते कमरे का दरवाजा भी बाहर से बंद कर गयी जिससे मे बाहर आकर इधर उधर का जायज़ा ले पाता…!

कमरा काफ़ी बड़ा हॉल नुमा.. जिसके बीचो-बीच एक डबल बेड पड़ा था.., एक साइड में सिंगल सोफा.., ड्रेसिंग टेबल और एक कोने में

अटॅच्ड बाथरूम..!

कुल मिलाकर एक सिंगल फॅमिली के रहने की सारी सुख सुविधाएँ उपलब्ध थी उस हॉल जैसे कमरे में.., मेने चारों तरफ घूम फिरकर कमरे

का मुआयना किया..,

फिर पीछे की दीवार में स्थित इतने बड़े कमरे की एक मात्र विंडो को खोलकर देखा…!

लेकिन वहाँ भी मुझे कुच्छ नही मिला.., कोई 2-2.5’ की एक संकरी सी गॅलरी के बाद सेमेंट की एक सपाट दीवार दिखाई दी.., जिसका उपर

का छोर मेरी आँखें नही देख पा रही थी…!

थक कर मे बात रूम में घुस गया.., ये देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस एक छोटे कमरे जैसे बाथ रूम के अंदर मेरे और शकीला के साइज़ के तमाम कपड़ों के साथ साथ हर वो चीज़ मौजूद थी जो एक आदमी और औरत के लिए होनी चाहिए…!

मे उस बाथरूम में फ्रेश हुआ.., अच्छे से नहा धोकर नये कपड़े पहने और बाहर कमरे में आया तो एक और आश्चर्य को वहाँ पाया…!

वहीदा अपनी दोनो बहनों के साथ वहाँ बैठी थी.., मुझे देखते ही अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए बोली – क्यों संजू भाई.., यहाँ कोई तकलीफ़ तो नही हुई तुम्हें.., सब कुच्छ है ना तुम्हारे लिए…?

संजू – मेने चोन्कते हुए कहा – वहीदा बेहन तुम और यहाँ.., भाई ये सब क्या है..? तुम तो वहाँ उस गाओं में थी…?

वहीदा मुस्कराते हुए बोली – क्यों मे अपनी रिस्तेदारि में नही आ सकती..? आख़िर मेरे भाई का निकाह है.., भला नेग लेने तो आना ही था…!

संजू – लेकिन ये है कॉन सी जगह और मुझे यहाँ एक तरह से क़ैद क्यों कर रखा है.., ये रुखसार और शकीरा पहले मुझे इस कमरे में बंद करके क्यों चली गयी थी…?

वहीदा – अरे..रे.. इतने सारे सवाल एक साथ.., थोड़ा हौसला रखो संजू मेरी जान.., सब बताती हूँ..!

अब मेरी बात ध्यान से सुनो, बीच में भड़कना मत… हम एक बहुत ही बड़े और पवरफुल अंडरवर्ल्ड ऑर्गनाइज़ेशन का हिस्सा हैं.., जिसकी एक शाखा की कमॅंड युसुफ भाई जान के हाथ में है…!

तुम्हें भी उनके कंधे से कंध मिलकर जिस तरह पहले साथ देते रहे थे वैसे ही आइन्दा भी देना है, कुच्छ ही देर में युसुफ भाई जान भी तुम्हारे पास आने वाले हैं…!

आनन्न..आनन्न… पहले मेरी बात पूरी होने दो.., मुझे थोड़ा उखड़े हुए मूड में आते ही वो मुझे बीच में रोकते हुए बोली – हमने तुम्हारी तमन्ना पूरी कर दी..,

आज शाम को ही तुम्हारी शादी शकीला से करा दी जाएगी… फिर तुम दोनो कुच्छ दिन मिलकर खूब जी भर कर मज़े करना…, तब तक तुम्हें किसी भी काम के लिए कोई नही कहेगा…!

वो आगे मुझे धमकाते हुए बोली – और हां याद रहे.., तुम्हारी जान शकीला एक तरह से यहाँ नज़र बंद रहेगी.., सो भूल कर भी उसके साथ

मिलकर यहाँ से रफू-चक्कर होने के बारे में सोचना भी मत वरना अंजाम तुम अच्छी तरह से जानते हो…!

संजू – तुम मुझे धमका रही हो.., ये जानते हुए कि मेरी मर्ज़ी के खिलाफ मुझे दुनिया की कोई भी ताक़त क़ैद करके नही रख सकती..!

वहीदा – मेने कब कहा कि तुम यहाँ क़ैद में हो.., बस शकीला को यहाँ से नही ले जा सकोगे.., और एक बात – ये ऑर्गनाइज़ेशन पहले वाले

जैसा छोटा मोटा नही है.., इसकी जड़ें देश दुनिया के कोने कोने में है..!

इसके सरमायेदारों के हाथ इतने लंबे हैं कि छुपने के लिए ये दुनिया भी छोटी पड़ जाएगी.., देश/ प्रदेश की सरकारें भी इनके खिलाफ कुच्छ करने से पहले हज़ार बार सोचती हैं…!

इतना सब कुच्छ मुझे समझा कर या कहो धमका कर वो तीनों वहाँ से चली गयी.. और पीछे छोड़ गयी मेरे अंदर एक तूफान जिसके चलते मे

एक बार तो अपने सोचने समझने की शक्ति ही खो बैठा और मारे गुस्से के मेने अपना घूँसा एक सोफे की चेयर पर दे मारा…!

संजू ने अपनी आपबीती आगे बढ़ाते हुए कहा - हाल फिलहाल मेने हालातों से समझौता करने में ही अपनी भलाई समझी.., शकीला के बिना

अब मेरा रहना मुश्किल लग रहा था.., तसल्ली इस बात की थी कि वो मेरे साथ तो रहेगी…!

भविष्य में कभी मौका मिला तो इस गंदगी से निकालने की कोशिश कर सकता हूँ..,

कुच्छ देर बाद उस कमरे में युसुफ आया.., उसने मुझे देखकर अपने गले से लगाया.., उसके गले लगते हुए मुझे अब वो खुशी नही हुई जो पहले हुआ करती थी.., उल्टा उसके गले लगते हुए मुझे उससे घिंन सी आ रही थी..!

मन तो कर रहा था कि साले हरामी को इसी समय अपनी बाहों में दबाकर मसल डालूं.., जिसने मुझे एक लड़की का सहारा लेकर दोबारा से

इस काली दुनिया में घसीट लिया था…!

लेकिन मे ऐसा कर ना सका.., क्योंकि मुझे अभी तक इस कमरे से बाहर की दुनिया का पता नही था कि आख़िर ये है क्या.., कितने लोग हैं.., कैसे कैसे हथियारों से लेश होंगे…?

लिहाजा मेने भी बेमन से उससे मिलने का नाटक किया.., कुच्छ देर वो यहाँ के बारे में सब कुच्छ बताता रहा जो लगभग वहीदा पहले ही बता चुकी थी…!

उसी शाम एक छोटी मोटी शादी की रस्म के साथ जो हमारे ** रीति रिवाजों से ही मेरी और शकीला की शादी हो गयी.., वहाँ मौजूद लोगों के बीच खाने पीने की पार्टी जैसी हुई..!

तब मुझे पता चला कि यहाँ कितने लोग होंगे.., लगभग 70 से 80 मर्द और 40-50 औरतें जिनमें अधिकतर नवयुवक और नव युवतियाँ ही थी..,

जिनका बाद में पता चला कि उनकी संख्या कम या ज़्यादा भी होती रहती है…!

बहरहाल यहाँ के बारे में ज्यदा सोचने समझने की मुझे अभी कोई जल्दी भी नही थी..!

मे तो बस जल्दी से जल्दी ये चाहता था कि किसी तरह ये सब झमेले ख़तम हों और मे अपनी जानेमन शकीला को लेकर सुहाग सेग पर

पहुँचू.., जो इस समय किसी अप्सरा जैसी मेरे बगल में बैठी पार्टी को एंजाय कर रही थी…!

अंततः वो घड़ी आ ही गयी.., देर रात तक पीते पिलाते लोग एक – एक करके कम होते गये और मे शकीला को लेकर उसी कमरे में आगया जहाँ मुझे सुबह लाकर रखा था…!

मे अपने शादी के भारी भरकम कपड़ों से निजात पाना चाहता था सो बाथरूम में जाकर कपड़े चेंज करने लगा..,

मात्र एक वेस्ट और लूँगी लपेटकर जब मे बाहर आया तो शकीला बेड के एक कोने में सिकुड़ी सिमटी सी लंबा सा घूँघट निकाले बैठी थी…!

उस छुयि मुई सी कमसिन लड़की जो अबतक मेने मामूली से सलवार कमीज़ में देखा करता था उसे आज एक लाल रंग की भारी सी साड़ी में लिपटे देखकर ना जाने क्यों मुझे उसपर तरस सा आया…!

अभी उसकी उम्र ही क्या थी.., युसुफ और उसकी बेहन ने मुझे फँसाने के लिए उसे एक चारे की तरह इस्तेमाल किया था.., वरना तो ये उम्र उसके कॉलेज जाने की थी..!

लेकिन अब वो मेरी व्यहता पत्नी थी.., जिसे में अब बेहद प्यार करने लगा था.., जिस हवस ने मुझे उसके करीब पहुँचाया था वो अब मेरे अंदर

उसके प्रति पवित्र प्रेम में परिवर्तित हो चुकी थी…!

वो यहाँ मेरी जमानत के तौर पर एक तरह से बंधक के रूप में यहाँ रहेगी.., ये सोचकर ही मुझे अपने उपर गुस्सा भी आया.., क्यों मेने उसे

पाने की ज़िद की.., ना में उसके लिए पागल होता और ना वो इस समय इस काली दुनिया की चार-दीवारों के बीच पहुँचती…!

संजू अपने प्रथम मिलन यानी सुहागरात के बारे में बताते बताते भावुक हो उठा था…!

ललित के अंदर मौजूद संजू ने आगे कहना शुरू किया - मे अपनी सोचों में जकड़ा उसके करीब जाकर बैठ गया.., मुझे अपने करीब बैठे पाकर वो अपने आप में और ज़्यादा सिमट गयी…!

मेने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा – शकीला.. क्या बात है.., तुम्हें मुझसे डर लग रहा है..?

उसने घूँघट के अंदर से ही ना में अपना सिर हिलाया.., तो मेने उसका एक हाथ अपने हाथ में लिया.., मेरे छूते ही वो एकदम से सिहर उठी.., मेने अगला सवाल करते हुए कहा –

अगर तुम मेरे साथ शादी करके खुश नही हो तो मे तुम्हारे साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नही करूँगा.., मे तुमसे सच्चा प्रेम करने लगा हूँ इसलिए तुम्हें हर हाल में पाने की मेरी इच्छा ने तुम्हें भी इस नरक में आने पर मजबूर कर दिया इसके लिए मुझे माफ़ कर देना शकीला…!

मेरी ये बात सुनकर उसने झट से अपना चाँद सा मुखड़ा घूघट की क़ैद से आज़ाद किया और मेरे मूह पर हाथ रखते हुए बोली – इसके लिए आप अपने आप को दोष मत दीजिए प्लीज़…!

मे अभागन तो पहले से ही इन ज़ालिमों की क़ैद में ही हूँ.., वो तो भगवान को ना जाने कैसे मुझ पर दया आगयि जो मुझे आप जैसा रहम दिल प्रेम करने वाला पति के रूप में मिल गया…!

आपकी खातिर तो मे ता-उम्र इन लोगों की क़ैद में रह लूँगी.., इस आश् में कि आप कभी ना कभी तो मेरे पास होंगे…!

मे उसकी बात सुनकर एकदम से चोंक पड़ा…, और उसके दोनो हाथों को अपने हाथों में लेकर बोला – ये तुम क्या कह रही हो..? तुम और इनकी क़ैद में..? तुम तो वहीदा की ननद हो ना…?

वो अपने चेहरे को भावशून्य करते हुए सपाट लहजे में बोली – मेरा इन लोगों से कोई रिस्ता नही है.., मे.. तो.. मे.. तो..

संजू – तुम तो क्या..? बोलो शकीला जबाब दो.., तुम वहीदा की ननद नही हो तो फिर कॉन हो..?

मेरा नाम प्रिया है.., नैनीताल के एक गाओं की रहने वाली हूँ में…!

संजू – क्या..? इसका मतलब तुम * नही हो..?

जब उसने अपना सिर ना में हिलाया.., तो मेने आगे पूछा – लेकिन यहाँ कैसे..? मतलब इन लोगों के बीच कैसे पहुँची.., मुझे तफ़सील से सब कुच्छ बताओ प्रिया…!

प्रिया – हम नैनीताल के एक छोटे से गाओं में रहते थे.., माँ-बापू.., दो छोटे मेरे भाई बेहन.., माँ-बापू मेहनत मज़दूरी करके किसी तरह से परिवार को चला रहे थे.., लेकिन उतने में भी हम सब खुश रहते थे…!

एक दिन शाम के अंधेरे में हम पाँचों प्राणी बैठे थे.., माँ खाना पका रही थी.., तीनों बच्चों को खाना खिलाने के बाद माँ बापू को खाना खिला रही थी की तभी दरवाजे पर दुस्तक हुई…!

बापू ने मेरे से दो साल छोटे भाई को दरवाजा खोलने को कहा.., जब उसने दरवाजा खोला तो अपने सामने 5 अजनबीयों को खड़े देखकर

उसने पुछा- कॉन हैं आप लोग ?

उनमें से एक ने पुछा – तुम्हारे पिता जी कहाँ हैं.., हमें उनसे बात करनी है.., उनकी बात खाना खाते हुए बापू ने भी सुनी.., वो खाना

छोड़ कर दरवाजे पर पहुँचे..!

5 अजनबीयों को जिनमें से दो * लग रहे थे दाढ़ी और पहनाबे से जिनमें एक ये युसुफ भी था बोला – भाई हम यहाँ पास में ही बिज़्नेस के सिलसिले में आए थे.., अब पहाड़ों में रास्ता भटक गये हैं…!

आप हमें आज रात के लिए अपने घर में पनाह दे सकते हैं..? खुदा आपको बरकत देगा…!

ग़रीब आदमी की यही सबसे बड़ी कमज़ोरी होती है.., वो अपने हालातों को भूलकर बिना सोचे समझे किसी की भी मदद करने को तैयार हो

जाता है.., सो बापू ने भी उन्हें रात गुजारने के लिए हां बोल दिया..!

क्या पता था कि जिस काम को वो नेकी समझ रहे थे वो दरअसल हमारे लिए मुसीबतों से भरा निकलेगा…!

बातचीत के दौरान उन्होने हमारे घर की परिस्थितियों के बारे में जान लिया.., इसी का फ़ायदा उठाकर युसुफ ने मेरे बापू को अपने धंधे में काम करने के लिए उकसाया…!

जब उन्होने काम जानने की कोशिश की तो उसने ये कहकर टाल दिया.., तुम इसकी चिंता क्यों करते हो.., काम बड़ा सीधा साधा है..,

हमारे लोग आकर तुम्हें कुच्छ समान दे जाया करेंगे जिसे तुम्हें अपने आस पास के इलाक़े में जो पते दिए जायें उन तक पहुँचाते रहना है

बस.., उसके लिए तुम्हें महीने के महीने अच्छा पैसा वेतन के तौर पर मिलेगा…!

पहली नज़र में देखने पर ये काम कुच्छ मुश्किल नज़र भी नही आया था सो उन्होने झट से हां बोल दिया..,

एक आसान और अच्छा काम मिलने की खुशी में माँ ने उन सबके लिए खाना बनाया.., खाना खाकर युसुफ ने अपनी जेब से ढेर सारे रुपये

निकाल कर बापू के हाथ में रखे… और कहा –

ये रुपये फिलहाल पेशगी समझो.., इनसे तुम अपने घर के हालात ठीक कर सकते हो.., काम के साथ साथ हर महीने एक मोटी रकम तुम तक पहुँच जाया करेगी..,

लेकिन इसकी जमानत के तौर तुम्हें हमारी एक बात माननी पड़ेगी…,

फिर जैसे ही युसुफ ने बापू को वो जमानत वाली शर्त बताई.., उसे सुनकर हम सबके होश ही उड़ गये…!​
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