Update 18
युसुफ अपनी शर्त बताते हुए बोला – देखो भाई.., रकम का मामला है.., दौलत देखकर किसी का भी मंन डोल सकता है.., इसलिए जमानत के तौर पर हम तुम्हारी इस लड़की को अपने साथ ले जाएँगे उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा…!
युसुफ की बात सुनकर मेरे बापू को गुस्सा आगया.., भले ही हम कितने ही ग़रीब सही लेकिन कोई भी माँ-बाप अपनी जवान होती लड़की को किसी अजनबी को कैसे सौंप सकता था सो वो गुस्से से बोले –
ये क्या बकवास कर रहे हो.., आप लोग हमें काम दो या ना दो.., हम जैसे जी रहे हैं और जी लेंगे लेकिन हम अपनी बेटी को आपके साथ हरगिज़ नही भेज सकते…!
बापू की ये बात सुनते ही जैसे युसुफ के अंदर का शैतान बाहर आगया…, उसने अपनी जेब से रेवोल्वेर निकालकर बापू के उपर तानते हुए कहा – अब इसमें तुम्हारी मर्ज़ी नही चलेगी मेरे दोस्त…!
हम जो ठान लेते हैं उसे हासिल करके ही रहते हैं.., हां इतना वादा ज़रूर करते हैं तुमसे कि तुम्हारी बेटी हमारे यहाँ किसी तकलीफ़ में नही
रहेगी.., और जब तक ये खुद नही चाहेगी कोई इसे हाथ भी नही लगाएगा…!
ये कहकर उसने अपने एक साथी की तरफ इशारा किया.., उसने मजबूती से मेरी कलाई थामी और घर से बाहर की तरफ खींच कर ले चला..,
माँ-बापू हतप्रभ देखने के अलावा कुच्छ नही कर पाए.., वो लोग बाहर खड़ी उनकी गाड़ी में मुझे बिठाकर रात में ही वहाँ से निकल आए…!
उस दिन से लेकर आज तक मेने अपने माँ-बापू और भाई बेहन को देखना तो दूर उनसे बात तक नही की है..,
इतना कहते कहते प्रिया संजू की चौड़ी छाती में समाकर फुट-फूटकर रो पड़ी…!
संजू – प्रिया की दुखभरी कहानी सुनकर मेरे जैसे आदमी की आँखें भी भर आई.., युसुफ और उसके पूरे परिवार पर मुझे इतना गुस्सा आ रहा
था.., मन कर रहा था कि अभी उसके पास जाउ और उस मादरचोद को वहीं चीर फाड़कर सूखा दूं…!
लेकिन फिर मेरे बाद प्रिया का क्या होगा..? ये सोचकर मेने मन ही मन एक फ़ैसला लिया और प्रिया को अपने से अलग कर उसके सुंदर
आँसुओं से तर चेहरे को अपने हाथों के बीच लेकर कहा –
अब मेरी बात ध्यान से सुनो प्रिये…, अब हम तभी एक होंगे जब तुम्हारे माँ बापू से आशीर्वाद नही ले लेते.., तब तक मे तुम्हें अब हाथ भी नही लगाउन्गा..,
मे नही चाहता कि तुम्हारी इच्छा के विरुढ़ जाकर मे तुम्हारे उपर ये ज़बरदस्ती की शादी थोपूं.., ये सच है कि मे तुम्हें जी जान से चाहने लगा हूँ..,
लेकिन इसका ये कतयि मतलब नही कि मे अपने एक तरफ़ा प्यार की खातिर तुम्हारे साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करूँ…!
मेरी बात सुनकर प्रिया अपनी पलकें खोलकर मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – ये आपसे किसने कहा कि आपका प्यार एक तरफ़ा है…? मे भी आपसे बहुत प्यार करती हूँ…!
याद कीजिए वो पल अगर वहीदा नाम की वो चुड़ैल हमारे बीच रुकावट नही डालती तो कई मौकों पर हम पहले ही एक हो चुके होते…!
मे नही चाहती कि आप मेरी वजह से कोई मुशिबत मोल लें.., एश्वर शायद हमें बिना उनके आशीर्वाद के ही मिलाना चाहते हैं तो हम कॉन
होते हैं उनकी इच्छा के विरुद्ध जाने वाले..!
जो मौका हम पहले गँवा चुके हैं उसे अब पा लेने में ही भलाई है.., इसलिए प्लीज़ आप ये अपने दिल से निकाल फेंकिए कि आप मेरे साथ
कोई ज़ोर ज़बरदस्ती कर रहे हैं..!
हम यहाँ कितने दिन सुरक्षित हैं कहना बड़ा मुश्किल होगा.., इससे पहले कि और कोई मुशिबत हमारे बीच आए, मे दिल से यही चाहती हूँ
कि मेरे जीवन की वो सुहानी रात आज ही हो जिसके ख्वाब हर लड़की देखा करती है…!
संजू – मे मूह बाए उसकी बातें सुन रहा था, कितना सही कहा था उसने.., अपने छोटे से जीवन की बड़ी बड़ी मुशिबतो को झेलते झेलते शायद ये कमसिन कली समय से पहले समझदार हो गयी थी…!
मेने भावना में बहते हुए ओह्ह्ह…प्रियाअ…मेरी जान.. कहकर उसे अपने कलेजे से लगा लिया.., वो भी किसी अबोध बच्ची की तरह मेरे चौड़े सीने में समा गयी…!
इससे पहले कि ललित के अंदर बैठा संजू अपनी आगे की कहानी सुनाता.., सामने उसी चौराहे को देखकर मेने कहा – ललित अब हम तुम्हारे उसी ढाबे पर पहुँच रहे हैं…!
अगर भूख लगी हो तो खाना हो जाए…?
ललित को अचानक से एक चक्कर सा आया.., उसने अपना सिर ज़ोर्से पीछे सीट की बॅक पर रखा और अपनी आँखें बंद करके शांत हो गया…!
मेने ढाबे के सामने अपनी गाड़ी रोकी.., गाड़ी के रुकने के झटके से ललित ने अपनी आखें खोल दी और मेरी तरफ देख कर बोला – इसी
ढाबे पर क्यों रोका चाचू…?
वो ढाबे वाला चाचा खंखा मुझे देख कर गाली गलौज करने लगा तो.?
मे – इसलिए यहाँ रुकना और ज़रूरी था बेटे.., उसे आज क्लियर तो कर देंगे कि तुम अब उसके यहाँ कभी काम करने वाले नही हो.., ख़मखा वो बेचारा अभी भी तुम्हारा इंतेजार कर रहा हो तो…?
हुउंम.. सो तो है.., चलिए देखते हैं फिर क्या कहता है चाचा.. इतना कहते हुए ललित के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी और हम दोनो बाहर पड़ी एक चारपाई पर आमने सामने खाने के लिए बैठ गये…!
खाना अच्छा था.., लंच का समय था तो भूख भी जोरों की लगी थी…, ललित को देख कर ढाबे के मालिक ने बस इतना कहा – अबे ललित के
बच्चे किधर गायब हो गया था तू...?
मेने उसे सब समझा दिया.., जिसे सुनकर उसने मुझे बहुत बहुत धन्यवाद दिया.. कि मेने कैसे एक अच्छे घर के लड़के की जिंदगी संवार दी वरना वो इसी ढाबे की दुनिया में रहकर इन ट्रक वालों की सोहबत में ना जाने क्या क्या सीख जाता…!
ढाबे वाला चाचा मेरे इस नेक काम से बहुत प्रभावित हुआ.., उसने अपने ढाबे की बेस्ट डिशस हमें खाने में दी..,
एक-दो घंटे और बिठा के रखा, अंत में एक-एक बढ़िया सी मलाई मार्का चाइ पिलाने के बाद इस शर्त पर वहाँ से हमें निकलने दिया कि लौटते में हम फिर उससे मिलते हुए जाएँगे…!
रास्ता अभी भी काफ़ी लंबा था.., ललित पर कब संजू का साया होता था इसका कोई सीमित समय तो होता नही था.., खाने के असर से हमारी आँखें बोझिल होने लगी थी..,
साइड की सीट पर बैठा ललित उंघने लगा तो मेने उससे बात करते हुए कहा – लगता है ढाबे वाले चाचा ने कुच्छ ज़्यादा ही खातिरदारी कर दी…!
ललित ने अपनी आँखें खोलकर मेरी तरफ देखा और मुस्कराकर बोला – हां चाचू आँखें अपने आप ही बंद हो रही हैं.., उपर से आपने गाड़ी का एसी चला रखा है…!
मे – एसी बंद कर दूँ..?
ललित – आपकी मर्ज़ी.., मुझे तो ग्लास खोलकर बाहर की हवा से भी कोई फरक नही पड़ता…!
मे – लेकिन फिर इतना तेज गाड़ी नही चला पाएँगे.., रास्ता काफ़ी लंबा है.., मुझे नही लगता शाम तक हम अपनी मंज़िल तक पहुँच पाएँगे भी या नही…!
ललित – अब आप मंज़िल की चिंता छोड़ ही दो, आराम से ग्लास नीचे करके चलते हैं.., अगर आप कहें तो एक सुझाव दूं..?
मे – हां बोलो…!
ललित – क्यों ना आज रात मंजरी काकी के यहाँ रुका जाए.., बड़े अच्छे लोग हैं वो….!
मेने उसके बालों पर हाथ घूमाते हुए कहा – सुझाव बुरा नही है.., यही ठीक रहेगा.., चलो आज रात वहीं रुकते हैं..,
इतना कहकर मेने गाड़ी के ग्लास नीचे कर दिए और गाड़ी की स्पीड कम करके आराम से शाम के वक़्त की नॅचुरल हवा का आनंद लेते हुए
अपने गन्तव्य की तरफ बढ़ चले…!
सूरज पश्चिम की तरफ झुकने लगा था.., और आसमान में लालिमा फैलने लगी थी.., जिस गति से हम चल रहे थे उस हिसाब से अभी हम मंजरी के घर से लगभग एक घंटे की दूरी पर और थे..!
ललित के लंबे बाल बाहर की हवा से लहरा रहे थे हवा से अपनी आँखें बंद करके मौसम का पूरा लुत्फ़ ले रहा था पट्ठा..,
उसका मासूम चेहरा देख कर नही लगता था कि कोई आत्मा इस पर हावी हो जाती होगी और ये अपने आप से नियंत्रण खोकर किसी और के नियंत्रण में चला जाता होगा…!
सूरज अब पश्चिम में डूबने की तैयारी में था पशु पक्षी अपने घरों की तरफ चल पड़े थे..,
धूप धरती माँ का दामन छोड़कर लालमी से नहा चुकी थी जो आस-पास में गेंहू के लहलहाते खेत जो अब सुनहरी आभा ले चुके थे इस शाम
की लालिमा से नहा कर और ज़्यादा सुंदर दिखाई दे रहे थे..,
मानो धरती माँ अपने पूरे श्रीगार में आकर प्रकट हुई हो…!
इस प्राकृतिक सुंदरता का लुफ्त लेते हुए हम अभी कुच्छ किमी ही चले होंगे कि अचानक से रोड पर अपने ठीक सामने आए व्यवधान को
देखकर मुझे अपनी गाड़ी को एकदम से एमर्जेन्सी ब्रेक लगाने पड़े…..!!!!
सामने रोड पर एक 120 डेग का मोड़ था.., दोनो तरफ घने लंबे और उँचे पेड़ खड़े थे.., मोड़ लेते ही अचानक से हमें बड़े-बड़े पत्थर रोड पर पड़े दिखाई दिए…!
समय रहते मेने गाड़ी को ब्रेक लगाए.., इंपोर्टेड गाड़ी टाइयरो की चरमराहट के साथ पत्थरों से ठीक पहले रुक गयी..,
मुझे ब्रेक इमरजेंसी में लगाने पड़े थे.., गाड़ी के टॉप गियर में होने के कारण एंजिन अपने आप बंद हो गया..,
अभी हम इस अचानक से आई मुशिबत को ठीक से समझ ही रहे थे कि पेड़ों और झाड़ियों से निकल कर 4-5 लोग मूह पर कपड़ा बाँधे हमारी गाड़ी की तरफ लपके…!
उनमें से एक के हाथ में 315 बोर राइफल थी.., एक-दो पर देसी तमन्चे तो दो लोहे की रोड लिए हुए थे…, इनका साफ इरादा था.., राहगीरों को लूटना…!
मेरे सामने उनके आगे सरेंडर करने के सिवाय और कोई चारा नही था.., क्योंकि गाड़ी के खड़े होते ही जिंन्न की तरह प्रकट होकर उन लोगों ने गाड़ी को दोनो तरफ से घेर लिया…!
गाड़ी मोड़ कर वापस भी नही ले जा सकता था.., बॅक जाने में ख़तरा ये था कि वो सामने से गोली चला सकते थे…!
उनमें से राइफल वाले ने मेरी साइड में खड़े होकर मुझे गाड़ी से बाहर आने की हिदायत दी.., उनकी बात मानने के अलावा मेरे पास और कोई चारा भी नही बचा था..,
दूसरी तरफ से एक तमन्चे वाले ने ललित को भी बाहर आने के लिए इशारा किया.., वो उसके एक बार कहने पर बाहर नही आया तो उसने उसे धमकाते हुए कहा –
ओये पिद्दी तेरे लिए कोर्ट से ऑर्डर लाने पड़ेंगे क्या बाहर आने के लिए.., चल मादरचोद बाहर आ वरना यहीं ठोक दूँगा भेन्चोद…, जल्दी कर.
तब तक दूसरा तमन्चे वाला जो राइफल वाले के साथ ही मेरी तरफ खड़ा था.., उससे उस राइफल वाले ने कहा – इसकी जेब खाली कर.., और तू ये अपने गले की चैन और घड़ी भी निकाल फटाफट…!
वो तमन्चे वाला एक हाथ में तमन्चा पकड़े दूसरे हाथ से मेरी जेबें खाली करने लगा.., जिसमें मेरा वॉलेट रखा हुआ था.., मेने उससे कहा – भाई जो भी लेना है ले लो.., बस मेरे कार्ड मुझे वापस करदो…!
क्यों.. भेन्चोद मेरे लौन्डे की बारात में आया है क्या भोसड़ी के.., चल एक कागज पर अपने कार्ड्स के डीटेल लिख.., वरना यही टपका दूँगा
साले…!
तभी दूसरी तरफ मामला उलट होता दिखाई देने लगा.., जब एक दो बार की चेतावनी के बाद भी ललित बाहर आने को तैयार नही हुआ तो उसकी तरफ वाले एक बदमाश ने गाड़ी का दरवाजा खोला..,
और ललित के गिरेबान को पकड़कर उसे ज़बरदस्ती गाड़ी से बाहर खींचने लगा…!
मेने उसे समझाते हुए कहा – उसके पास कुच्छ भी नही है.., तुम खम्खा उस लड़के को क्यों परेशान कर रहे हो..,
राइफल वाला अभी भी कुच्छ दूरी बनाकर मुझे निशाने पर लिए खड़ा था.., मेरी बात सुनकर उस तमनचे वाले ने मेरा वॉलेट अपनी जेब में डाला और एक तमाचा मेरे गाल पर जड़ते हुए कहा…!
भेन्चोद एक बार में समझ नही आता क्या तुझे.., उधर ध्यान देने की बजाय तू अपना काम कर.., चल जल्दी से अपने कार्ड के पासवर्ड बता…, वरना तेरी आँखों के सामने उस लड़के को ठोक देगा वो…!
तभी वो हुआ जिसकी मुझे भी उम्मीद नही थी.., ना जाने कब संजू की आत्मा ललित में समा गयी.., उसने गाड़ी से बाहर आते ही झटके से
उसका तमन्चा उसके हाथ से छीना..,
पलक झपकते ही तमन्चे का भारी दस्ता उसकी कनपटी पर भी दे मारा…, वो चीख भी नही पाया कि उसने उसके शरीर को हवा में उठाकर
उस राइफल वाले के उपर ही उछाल दिया…!
राइफल उसके हाथ से दूर जा गिरी.., मौका देख कर मेने एक नारा लगाया.., जय हो संजू प्यारे.. कहते हुए उस अपनी तरफ वाले पर जंप लगा दी…!
जंप के साथ ही उसका तमंचा मेरे हाथ में था.., जिसे मेने उसके सिर पर दे मारा.., मे उसके सीने पर सवार हो चुका था.. इससे पहले कि वो
कुच्छ करता, दो बार के तमन्चे की मूठ के प्रहार ने उसका थोबड़ा लहू लुहान कर दिया..!
उधर संजू के द्वारा फेंके जाने पर उस तरफ के तमन्चे वाला सीधा राइफल वाले के उपर गिरा था.., राइफल उसके हाथ से छूट कर दूर जा
गिरी और वो दोनो आपस में उलझकर ज़मीन पर जा गिरे…!
एक 15-16 साल के लड़के से इतने की उम्मीद उनमें से किसी को नही थी लेकिन जब उसने सारा ही पासा पलट दिया तो उसकी तरफ खड़े लोहे की रोड वाले ने संजू के उपर रोड से बार किया.., जिसे उसने एक ही हाथ से रोक लिया.,
एक तेज झटके के साथ रोड ललित के हाथ में थी.., जिसे उसने उस आदमी के पेट में भोंक दिया.., लोहे की 3-4सेमी की रोड उसके पेट को चीरती हुई पीठ से बाहर निकल गयी..,
वो बुरी तरह से डकार मारते हुए वहीं पीछे की तरफ जा गिरा.., बस एक पल के लिए उसका जिस्म ज़मीन पर तडपा और फिर शांत हो गया…!
अब ललित की तरफ कोई नही था.., एक को मे मारते मारते बेहोशी की हालत में पहुँचा चुका था.., तभी मेरी तरफ वाले जिसके हाथ में एक
और रोड थी उसने अपनी रोड का भरपूर बार मेरी पीठ पर किया जब में उस आदमी को पीट ही रहा था…!
तभी संजू की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी.., वकील भैया.. बचो.., सेकेंड के सौवे हिस्से में ही मे उस आदमी के उपर से दूसरी साइड को पलट गया…!
रोड का भरपूर वार उस मेरे नीचे पिट रहे आदमी के सिर पर पड़ा और उसकी खोपड़ी खुल गयी.., अगर मे एक माइक्रो सेकेंड भी देर करता तो वो रोड मेरी रीड की हड्डी के कयि टुकड़े कर चुकी होती…!
देखते देखते दो बदमाश ईश्वरपुरी को जा चुके थे.., वो दोनो जो आपस में उलझकर ज़मीन पर जा गिरे थे अब उठ चुके थे.., सामने अपने दो दो आदमियों की लाश देख कर उनके हौसले पस्त होते दिखे..!
फिर भी उन्होने एक साथ मेरे उपर छलान्ग लगाने की कोशिश की.., इससे पहले कि वो दोनो मेरे उपर आकर गिरते.., गाड़ी के दूसरी तरफ से ललित का जिस्म हवा में कालाबाज़ियाँ ख़ाता हुआ मेरे सामने अपने पैरों पर खड़ा दिखा…!
और उसने उन दोनो को गले से हवा में ही लपक लिया.., तभी उस रॉड वाले ने एक और वार लोहे की रॉड को घूमाते हुए मेरे उपर करना चाहा जो ललित की विपरीत दिशा में मेरे पास ही था…!
तभी दो काम एक साथ हुए.., एक- ललित ने फ़ौरन उन दोनो को हवा में उछाल्ते हुए दूर फेंका और खुद मुझे अपनी जगह से धक्का देते हुए
मेरी जगह पर आगया…!
मुझे तो कोई ज़्यादा आश्चर्य नही हुआ लेकिन उन तीनों बदमाशों के ख़ौफ़ से मूह खुले के खुले रह गये ये देख कर कि रॉड के भरपूर वार से ललित का शरीर एक इंच भी अपनी जगह से नही हिला.., उल्टा वो 10-12एमएम मोटी लोहे की रोड ललित के शरीर से टकराने के बाद बॅंड
हो गयी.., उसे ऐसा लगा कि मानो उसकी रोड किसी इंसानी जिश्म से ना टकराकर किसी लोहे की दीवार पर पड़ी हो…,
झटका सहन ना होने के कारण वो रॉड उस बदमाश के हाथों से छिटक कर ज़मीन पर जा गिरी…!
अभी वो अपने होश ठिकाने भी नही कर पाया था कि ललित ने उसके दोनो बाजुओं को पकड़कर उसे गोल-गोल घुमाया और पूरे वेग से उसे
अपने से दूर उछाल दिया..,
वो हवा में गोल-गोल कालाबाज़ियाँ ख़ाता हुआ रोड से दूर खड़े पेड़ों में से एक मोटे से तने वाले पेड़ से जा टकराया.., और फिर कभी ना उठने के लिए एक लंबी सी चीख मारकर वहीं ज़मीन पर ढेर हो गया……!
उन दो बचे हुए बदमाशों के सामने ललित के रूप में, हाड़ मास का लड़का ना होकर कोई रोबाटिक लड़का खड़ा हो..,
वो दोनो जैसे तैसे अपनी जगह से खड़े हुए और फिर सिर पर पैर रख कर जंगल की दिशा को दौड़ लिए.., मानो उनके पीछे भूतों की फौज पड़ी हो..,
ललित ने उनके पीछे लपकना चाहा तो मेने फ़ौरन उसकी कलाई थाम ली और अपना सिर ना में हिलाकर उन्हें जिंदा निकल जाने दिया…!
मेरी तरफ देख कर ललित के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी.., आँखें अभी भी उसकी शोलों की तरह दहक रहीं थी.., मेने उसे अपने गले से लगाया और उसके सिर पर प्यार भरा हाथ फिराया..!
उसने भी मुझे अपने आप में कस लिया…, ललित का शरीर मेरी बाहों में एक पल के लिए अकडा, उसके मूह से एक हिचकी सी निकली और इसके साथ ही उसका शरीर ढीला पड़ता चला गया…!
मेने उसे सहारा देकर गाड़ी में बिठाया.., अपनी सीट पर आकर मेने गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी और पीछे छोड़ दी तीन मानव लाशें,
जो खम्खा अपने नीच कर्मों के कारण ललित रूपी संजू के हाथों अपनी जान गँवा बैठे थे.........!!!!
मंजरी के घर तक पहुँचते पहुँचते हमें काफ़ी अंधेरा घिर चुका था.., पहले यहाँ से जाते समय मेने सड़क से उसकी झोंपड़ी तक एक चक्रॉड नुमा रास्ता देख था.., उसी से होकर मे अपनी गाड़ी मंजरी की झोंपड़ी तक ले गया…!
हमें फिर एक बार आया हुआ देखकर उन तीनों प्राणियों को बेहद खुशी हुई.., मेने अपने आने का कोई ठोस प्रायोजन नही बताया उन लोगों को.
सास बहू दोनो ने मिलकर हमारे खाने पीने का इंतज़ाम किया.., कुच्छ देर सभी एक साथ बैठकर रूचि और घर की राज़ी खुशी लेते रहे…!
अब वहाँ कोई टीवी या अन्य मनोरंजन का साधन तो था नही.., वैसे भी ये लोग सारे दिन काम धंधा करते करते थक जाते थे सो जल्दी ही खा पीकर सोने का इंतेजाम देखने लगे…!
अब मौसम रात में भी इतना ठंडा नही रहता था.., तो मेने अपनी चारपाई बाहर ही लगवाने को कहा.., तो मंजरी की सास सविता देवी बोली –
बेटा सुबह के समय यहाँ खुले में थोड़ा ठंडा हो जाता है…!
फिर वो मंजरी से बोली – बहू ज़रा बाबूजी को मोटा सा लिहाफ़ ओढ़ने को दे देना वरना सुबह की ठंड नुकसान कर देगी.., फिर वो ललित को संबोधित करके बोली -और बेटा रे तू चल मेरे साथ झोंपड़ी में सो जाना..,
मंजरी ने मेरे लिए बाहर चारपाई पर ही बिस्तेर लगा दिया.., सविता देवी ललित को अपने साथ सुलाने झोंपड़ी में ले गयी.., इस तरह से आज
की रात गुजारने का इंतेजाम हो तो गया…!
रामू और उसके घरवाले बेचारे काम धंधे वाले लोग थक कर जल्दी सोने वाले थे लेकिन हमें शहर में 11-12 तक जागने की आदत होती है तो मुझे तो 9 बजे बिस्तेर पकड़ने के बाद करवटें ही बदलनी थी…!
पड़े पड़े मे संजू के बारे में सोचने लगा.., उसने एक पीड़ित लाचार लड़की से शादी करके अच्छा ही किया लेकिन उस बेचारी लड़की की
किस्मत तो देखो.., पति का प्यार मिला ही था कि फिरसे वियोग की व्यथा में जीने पर मजबूर हो गयी…!
ना जाने अब उस बेचारी के साथ क्या हो रहा होगा..? ईश्वर भी किसी किसी का भाग्य इतना खराब क्यों लिखते हैं…?
क्या उस बेचारी लड़की को जिसने अभी अपनी जिंदगी के 16 बसंत ही देखे थे, उसको भी वेश्यावृत्ति के धंधे में ही धकेल दिया होगा उन नीच निराधामियों ने..?
ये सारे सवालों ने मेरी आँखों की नींद हराम कर रखी थी.., लाख कोशिश करने पर भी मे अपने दिमाग़ को इन सोचों से मुक्त नही कर पा रहा था…!
जितना मे अपने अंदर इन सोचों को किनारे करने की कोशिश करता पूरे शरीर में एक अजीब तरह की बैचैनि सी होने लगती..,
थक हारकर मेने अपना बिस्तर छोड़ दिया और यौंही इधर से उधर टहलने लगा…!
पास में ही सब्जियों की क्यारियाँ थी.., जिनकी मेडों पर गेंदे के फूलों की कतार खड़ी थी.., मे उस कतार के पास जाकर खड़ा हो गया..,
रात के शांत और स्वच्छ वातावरण में फूलों की महक कुच्छ ज़्यादा ही सुहानी होती है.., उन फूलों की मीठी मीठी सुगंध मेरे नथुनो में समाने लगी..,
आँखें बंद करके एक लंबी साँस खींचते ही मेरे अंदर की बैचैनि छूमन्तर हो गयी…!
मेने अपने दोनो हाथ आगे किए और उन सुंदर और कोमल फूलों का स्पर्श करने लगा, कि तभी मंजरी ने पीछे से मेरी कमर में अपनी दोनो बाहें डाल दी और वो मेरे शरीर से चिपक गयी…!
आगे के फूलों से हाथ हटाकर मेने उसके हाथों को अपने सीने से हटाया और घूम कर उस मासूम और नेक्दिल देहाती मेहनतकस फूल को अपनी बाहों में भर लिया..,
मुझे भी इस समय उसकी ज़रूरत थी.., सही समय पर उसका मेरे पास आने से मेरा मन खिल उठा और मेने अपने होठ उसके प्यासे होठों पर टीका दिए…!
मंजरी भी मेरे बदन से किसी बेल की तरह लिपट गयी.., मेने उसे अपनी बाहों में कसते हुए कहा – रामू को पता लग गया तो.., तुम्हें इस वक़्त यहाँ नही आना चाहिए था मंजरी…!
वो कब्से सो चुके हैं.., अब 4 बजे से पहले उनकी आँखें खुलने का कोई चान्स नही है.., भगवान ने मुझे फिर एक मौका दिया है आपसे मिलने का उसे कैसे हाथ से जाने देती.. हान्न्न..?
मंजरी ने मेरे सीने पर अपने तपते होठ टिकाते हुए कहा…!
मे – चलो फिर बिस्तर पर ही चलते हैं.., ये कहते हुए मेने उसे किसी फूल की तरह अपनी गोद में उठा लिया और लाकर चारपाई पर लिटा दिया.., उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने उपर खींच लिया..,
मेने भी बड़े एहतियात से उसके उपर आकर उसकी चुचियों को एक हाथ से मसल्ते हुए अपने होठ उसके होठों पर रख दिए…!
मंजरी अब होठ चूसने में पहली बार की तरह अनाड़ी नही रही थी.., उसने भी मेरे होठ चूस्ते हुए मेरी जीभ को अपने अंदर आने दिया और हम दोनो एक लंबी स्मूच में खो गये…!
मेने एक ही हाथ से उसके ब्लाउस के बटन खोल डाले और उसकी बिना ब्रा की पुष्ट गोल-गोल चुचियों को मसलने लगा…!
मंजरी पर वासना का खुमार हाबी होता जा रहा था.., मेरा लंड अब शख्त होकर उसकी एक जाँघ को ठोकने लगा था.., उसने अपनी जांघों के बीच जगह देकर मेरी एक टाँग को भींच लिया… और मेरे नीचे मचलने लगी…!
जब मेने उसके होठ छोड़ कर उसकी चुचियों के कड़क काले काले जामुन जैसे निप्प्लो पर अपनी जीभ लगाई तो उसने अपना सीना और
उभारते हुए एक मादक कराहह…आअहह..अपने मूह से निकाली…!
मंजरी अपनी चुचियाँ चुस्वाकर आनद विभोर हो उठी.., उसकी चंचल उंगलियों ने मेरे पॅंट की जीप नीचे की ओर अंडर वेर में हाथ डालकर
मेरे सख़्त लौडे को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे मुठियाते हुए सिसकने लगी…!
सस्सिईई…आअहह…अंकुश जीई…प्लीज़ ज़ोर्से चुसिये नाअ… मेरी चुचियों को.., पी जाइईए मेरा सारा दूध…, आअहह..म्म्माआ..!
मेने उसकी चुचियों को चूस्ते हुए एक बार उसकी तरफ देखा और एक ज़ोर का चुस्का मारा.., सचमुच उसके स्तन से मीठे दूध की धार मेरे मूह में भर गयी…!
मंजरी ने मस्ती में आकर अपनी जांघें मेरे इर्द-गिर्द कस दी.., और मुझे अपने उपर लॉक कर लिया….!
उधर मंजरी की सास सविता देवी को भी नींद नही आ रही थी.., हम जबसे यहाँ आए थे तभी से उनकी नज़रों में मेने एक प्यास देखी थी..,
उस दिन रसोई बनाते हुए मंजरी ने जो उनके साथ मज़ाक मज़ाक में ही सही जो छेड़ छाड़ की थी वो अब उनके दिमाग़ पर उनकी सोचों पर
हाबी थी..,
!
30 साल की भरपूर जवानी में पति छोड़ कर चला गया.., तबसे उन्होने अपने बदन की आग को दबाकर अपने आप को घर परिवार में खपा दिया था…!
इकलौते लड़के की जल्दी शादी करके जब उन्हें कुच्छ राहत मिली तो अपने पुराने दिन वो पति के साथ बिताई हुई यादें गाहे -बगाहे परेशान कर ही देती..,
लेकिन जबसे उनकी बहू ने उन्हें छेड़ा था.., और उन्हें ये एहसास दिलाया कि आज भी वो भरपूर जवान ही हैं.., उसी दिन से उनकी सोई हुई
तन बदन की आग उन्हें चैन से सोने नही देती थी.., वो चोरी चुपके अपने बहू बेटा की काम क्रीड़ा भी जब तब देख लेती..,
उसके बाद उनकी चूत एक मोटे ताजे लंड की डिमॅंड करने लगती.., जिसे वो अपनी उंगलियों या फिर चोरी छुपे गाजर मूली डालकर शांत करने की कोशिश करती रहती…!
सविता देवी की एक शुरू से ही आदत रही थी.., वो सोने से पहले अपने ब्लाउस पेटिकोट निकालकर मात्र अपनी एक सारी लपेटकर ही सोती थी.., आज उनके साथ ललित भी सोया था.., इस वजह से उन्होने उसके सामने अपने वो कपड़े उतारना सही नही समझा…!
लेकिन आज वो कुच्छ ज़्यादा ही बैचैन हो रही थी.., जब उनसे अपनी बैचैनि सहन नही हुई तो उन्होने झोंपड़ी में जल रही डिब्बी की पीली सी
मरी हुई रोशनी में एक बार ललित की तरफ देखा..!
जब वो आश्वस्त हो गयी कि वो सो चुका है तो उन्होने अपनी साड़ी निकाल कर पेटिकोट और ब्लाउस निकाले और फिरसे अपनी उस पुरानी
सी सूती साड़ी को अपने बदन पर लपेट लिया…!
वो फिरसे बिस्तर पर लेट तो गयी लेकिन उनके मंन की बैचैनि कम नही हुई.., वो और बढ़ने लगी.., उनके हाथ अपने बदन पर रेंगने लगे..,
अपनी सुडोल चुचियों को मसल्ते हुए उनका शरीर बिस्तर पर मचलने लगा…!
एक हाथ से चुचियों को मसल्ते हुए दूसरा हाथ उन्होने अपनी लंबी लंबी झान्टो के बीच छुपि चूत के मोटे मोटे होठों पर फिराया…!
बगल में एक 16 साल का लड़का सोया हुआ है.., जो ये सब बातें अच्छे से समझता होगा.., ये कहीं जाग ना जाए इसलिए वो अपने शरीर के साथ खुलकर खेल भी नही पा रही थी…!
बदन की आग अब हद से ज़्यादा उन्हें जलाने लगी थी, उसे किसी भी तरह से शांत करना ज़रूरी हो गया था.., इसलिए वो चुपके से अपनी जगह से उठी..,
ये सोचकर कि मे बाहर अकेला सोया हुआ हूँ, किसी तरह मुझसे बातें करने के बहाने वो अपने शरीर के उभार दिखाकर मुझे चोदने के लिए
उकसा सकें तो आज उन्हें एक भरपूर जवान लंड अपनी बरसों की प्यासी मुनिया में लेने का सौभाग्य मिल सकता है…!
अपने बिस्तेर से उठकर उन्होने एक नज़र ललित पर डाली और चुपके से अपनी झोंपड़ी का दरवाजा थोड़ा सा खोला…,
बाहर झाँक कर जायज़ा लेना चाहा कि तभी उनकी नज़र सामने पड़ी हुई मेरी चारपाई पर पड़ी..,
चारपाई पर चल रही मेरी और मंजरी के बीच की खाट कबड्डी को देखकर सविता देवी की आँखें मारे हैरत के फटी की फटी रह गयी….!!
मुझे मंजरी ने चारपाई पर लिटा रखा था, उसने मेरा पॅंट और अंडरवेर दोनो एक साथ खींच कर मेरे कड़क डन्डे जैसे सख़्त गरम लंड को अपने हाथों में लेकर उपर नीचे करने लगी..!
सुपाडे को खोलकर उसने उसे अपनी नाक रखकर सूँघा.., उसे उसकी गंध कस्तूरी जैसी लगी जिसे सूँघकर वो और मस्त हो गयी.., और फिर
उसने उसे अपनी जीभ से चारों तरफ से चाट लिया…!
मेरे आंडो को अपनी मुट्ठी में लेकर उसने मेरे लंड को जड़ से लेकर सिरे तक चाटा और देखते ही देखते उसे आधे तक अपने मूह में गडप्प कर लिया..!
लंड की मोटाई की बजह से आधे में ही उसका पूरा मूह भर गया.., मेने अपना एक हाथ उसके सिर पर रख दिया और उसके सिर को अपने लंड पर दबाने लगा…!
मंजरी अपने सारे कपड़े पहले ही निकाल चुकी थी.., उसके मूह में जाकर मेरा लंड और ज़्यादा फूल गया था.., कुच्छ देर बाद मेने उसकी
गान्ड को घूमाकर अपने मूह पर रख लिया और अब में उसकी हल्की हल्की झान्ट वाली मुनिया को अपनी जीभ लगाकर चाट रहा था…!
ये सीन मेरी चारपाई पर देखकर सविता देवी की साँसें जैसे ठहर ही गयी.., वो बहुत देर तक मूह पर हाथ रखे हमारी इस काम लीला को एक टक देखती रही…!
उनसे वो सीन ज़्यादा देर देखा नही गया.., तो उन्होने भी अपनी एक मात्र साड़ी को उतार फेंका और नितन्ग नंगी वो वहीं झोंपड़ी के दरवाजे में ही अपने घुटनों पर आकर अपनी चूत को सहलाने लगी…!
इतने गरमा गरम सीन से उनकी सोई हुई वासना भड़क उठी.., हाथ लगाते ही उनकी मुनिया पनियाने लगी.., अपनी चुटकी में लेकर उन्होने अपने मोटे से भज्नासे को मसल दिया….!
सस्स्स्सिईइ….आअहह… मेरी भी चूत चाटो रे कोई…, कहते हुए उन्होने अपनी दो उंगलियाँ अपनी चूत में डाल दी.., उनका सिर आगे को होकर ज़मीन पर टिक गया..,
एक हाथ से अपनी चुचि को उमेठते हुए उन्होने अपनी दोनो उंगलियाँ जड़ तक चूत की गहराइयों में घुसा दी…!
मेरे द्वारा मंजरी की चूत चाटने को देखकर उन्हें आभास होने लगा कि मेरी जीभ उनकी मोटी गद्देदार गान्ड के भूरे छेद को चाट रही है..,
उनकी गान्ड अपने आप हिलने लगी…,
तभी उन्हें अपनी चूत पर खुद की उंगलियों के अलावा भी कुच्छ और लिज लीज़ा सा महसूस हुआ.., उन्होने पलट कर पीछे की तरफ देखा..,
सचमुच ललित उनके पीछे उनकी गान्ड में अपना मूह घुसाए उनकी गान्ड और फिर चूत को चाटने में मगन था…!
उसे देखकर वो उठना चाहती थी.., लेकिन हवस का नशा इस कदर हाबी हो चुका था कि एक 45 साल की औरत को अपने से 1/3 उम्र का लड़का भी अब सजीला जवान नज़र आने लगा और अब वो अपनी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए अपनी गान्ड मटका मटका कर उससे अपनी
चूत चटवाने में खोने लगी…!
थोड़ी ही देर में उधर मंजरी की चूत मेरे मूह पर पानी छोड़ बैठी तो इधर झोंपड़ी में उसकी सास ने ललित के मूह को अपनी चूत के रस से भर दिया…!
झड़ने के बाद उनको बड़ी शर्म महसूस हुई, कैसे उन्होने एक कम उम्र लड़के से अपनी चूत चटवा ली.., वो अपनी नज़रें झुकाए साड़ी को
उठाकर अपने बिस्तर पर आगयि और ललित की तरफ पीठ करके अपनी साड़ी पहनने लगी…!
तभी ललित ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया.., उन्होने बड़ी हिम्मत करके उसकी तरफ देखा…, ललित उनके हाथ से साड़ी लेते हुए बोला – अब अधूरा काम पूरा कर ही लो काकी..,
वो उसके हाथ से अपनी साड़ी लेने की कोशिश करते हुए बोली – मुझे और ज़्यादा शर्मिंदा मत कर बेटा.., कहाँ तू और कहाँ मे.., ये कहकर वो अपना मूह दूसरी तरफ करके खड़ी हो गयी…!
बाहर अपनी बहू को उस शहरी बाबू के साथ देखकर मे वासना में बह गयी थी वरना ये काम कभी नही करवाती…!
ललित जो की इस समय संजू के प्रभाव में था बोला – तो इसका मतल्ब आपको अपनी बहू को किसी पराए मर्द के साथ देखकर बुरा नही लगा..?
ये प्रश्न ऐसा था जिसे सुनकर सविता देवी हड़बड़ा गयी.., लेकिन फिर सोचकर बोली – सच कहूँ तो इस समय बिल्कुल नही.., क्योंकि औरत के बदन की आग जबतक शांत नही होती वो भला बुरा कुच्छ नही सोच पाती…!
मे समझती हूँ मेरा बेटा कहीं ना कहीं उसे वो खुशी नही दे पाता होगा जो इस समय वो उस बाबू से ले रही है…!
संजू – तो क्या आपको हक़ नही है अपने हिस्से की खुशी लेने का…?
इस प्रश्न का वो कोई जबाब नही दे पाई.., उन्हें चुप देखकर संजू उनकी पीठ से चिपक गया.., ललित का 6” का लंड कड़क होकर उनकी
गान्ड की दरार में फिट हो गया था..,
अपनी गान्ड के छेद पर एक नये लड़के के नये कड़क लंड की ठोकर लगते ही वो फिरसे गन गना उठी.., एक सिसकी भरते हुए बोली –
सस्स्सिईई … आअहह.. मान जा बेटा.. मत कर ये सब….हाईए.. रे मान जा.. निपुते….!
युसुफ की बात सुनकर मेरे बापू को गुस्सा आगया.., भले ही हम कितने ही ग़रीब सही लेकिन कोई भी माँ-बाप अपनी जवान होती लड़की को किसी अजनबी को कैसे सौंप सकता था सो वो गुस्से से बोले –
ये क्या बकवास कर रहे हो.., आप लोग हमें काम दो या ना दो.., हम जैसे जी रहे हैं और जी लेंगे लेकिन हम अपनी बेटी को आपके साथ हरगिज़ नही भेज सकते…!
बापू की ये बात सुनते ही जैसे युसुफ के अंदर का शैतान बाहर आगया…, उसने अपनी जेब से रेवोल्वेर निकालकर बापू के उपर तानते हुए कहा – अब इसमें तुम्हारी मर्ज़ी नही चलेगी मेरे दोस्त…!
हम जो ठान लेते हैं उसे हासिल करके ही रहते हैं.., हां इतना वादा ज़रूर करते हैं तुमसे कि तुम्हारी बेटी हमारे यहाँ किसी तकलीफ़ में नही
रहेगी.., और जब तक ये खुद नही चाहेगी कोई इसे हाथ भी नही लगाएगा…!
ये कहकर उसने अपने एक साथी की तरफ इशारा किया.., उसने मजबूती से मेरी कलाई थामी और घर से बाहर की तरफ खींच कर ले चला..,
माँ-बापू हतप्रभ देखने के अलावा कुच्छ नही कर पाए.., वो लोग बाहर खड़ी उनकी गाड़ी में मुझे बिठाकर रात में ही वहाँ से निकल आए…!
उस दिन से लेकर आज तक मेने अपने माँ-बापू और भाई बेहन को देखना तो दूर उनसे बात तक नही की है..,
इतना कहते कहते प्रिया संजू की चौड़ी छाती में समाकर फुट-फूटकर रो पड़ी…!
संजू – प्रिया की दुखभरी कहानी सुनकर मेरे जैसे आदमी की आँखें भी भर आई.., युसुफ और उसके पूरे परिवार पर मुझे इतना गुस्सा आ रहा
था.., मन कर रहा था कि अभी उसके पास जाउ और उस मादरचोद को वहीं चीर फाड़कर सूखा दूं…!
लेकिन फिर मेरे बाद प्रिया का क्या होगा..? ये सोचकर मेने मन ही मन एक फ़ैसला लिया और प्रिया को अपने से अलग कर उसके सुंदर
आँसुओं से तर चेहरे को अपने हाथों के बीच लेकर कहा –
अब मेरी बात ध्यान से सुनो प्रिये…, अब हम तभी एक होंगे जब तुम्हारे माँ बापू से आशीर्वाद नही ले लेते.., तब तक मे तुम्हें अब हाथ भी नही लगाउन्गा..,
मे नही चाहता कि तुम्हारी इच्छा के विरुढ़ जाकर मे तुम्हारे उपर ये ज़बरदस्ती की शादी थोपूं.., ये सच है कि मे तुम्हें जी जान से चाहने लगा हूँ..,
लेकिन इसका ये कतयि मतलब नही कि मे अपने एक तरफ़ा प्यार की खातिर तुम्हारे साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करूँ…!
मेरी बात सुनकर प्रिया अपनी पलकें खोलकर मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली – ये आपसे किसने कहा कि आपका प्यार एक तरफ़ा है…? मे भी आपसे बहुत प्यार करती हूँ…!
याद कीजिए वो पल अगर वहीदा नाम की वो चुड़ैल हमारे बीच रुकावट नही डालती तो कई मौकों पर हम पहले ही एक हो चुके होते…!
मे नही चाहती कि आप मेरी वजह से कोई मुशिबत मोल लें.., एश्वर शायद हमें बिना उनके आशीर्वाद के ही मिलाना चाहते हैं तो हम कॉन
होते हैं उनकी इच्छा के विरुद्ध जाने वाले..!
जो मौका हम पहले गँवा चुके हैं उसे अब पा लेने में ही भलाई है.., इसलिए प्लीज़ आप ये अपने दिल से निकाल फेंकिए कि आप मेरे साथ
कोई ज़ोर ज़बरदस्ती कर रहे हैं..!
हम यहाँ कितने दिन सुरक्षित हैं कहना बड़ा मुश्किल होगा.., इससे पहले कि और कोई मुशिबत हमारे बीच आए, मे दिल से यही चाहती हूँ
कि मेरे जीवन की वो सुहानी रात आज ही हो जिसके ख्वाब हर लड़की देखा करती है…!
संजू – मे मूह बाए उसकी बातें सुन रहा था, कितना सही कहा था उसने.., अपने छोटे से जीवन की बड़ी बड़ी मुशिबतो को झेलते झेलते शायद ये कमसिन कली समय से पहले समझदार हो गयी थी…!
मेने भावना में बहते हुए ओह्ह्ह…प्रियाअ…मेरी जान.. कहकर उसे अपने कलेजे से लगा लिया.., वो भी किसी अबोध बच्ची की तरह मेरे चौड़े सीने में समा गयी…!
इससे पहले कि ललित के अंदर बैठा संजू अपनी आगे की कहानी सुनाता.., सामने उसी चौराहे को देखकर मेने कहा – ललित अब हम तुम्हारे उसी ढाबे पर पहुँच रहे हैं…!
अगर भूख लगी हो तो खाना हो जाए…?
ललित को अचानक से एक चक्कर सा आया.., उसने अपना सिर ज़ोर्से पीछे सीट की बॅक पर रखा और अपनी आँखें बंद करके शांत हो गया…!
मेने ढाबे के सामने अपनी गाड़ी रोकी.., गाड़ी के रुकने के झटके से ललित ने अपनी आखें खोल दी और मेरी तरफ देख कर बोला – इसी
ढाबे पर क्यों रोका चाचू…?
वो ढाबे वाला चाचा खंखा मुझे देख कर गाली गलौज करने लगा तो.?
मे – इसलिए यहाँ रुकना और ज़रूरी था बेटे.., उसे आज क्लियर तो कर देंगे कि तुम अब उसके यहाँ कभी काम करने वाले नही हो.., ख़मखा वो बेचारा अभी भी तुम्हारा इंतेजार कर रहा हो तो…?
हुउंम.. सो तो है.., चलिए देखते हैं फिर क्या कहता है चाचा.. इतना कहते हुए ललित के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी और हम दोनो बाहर पड़ी एक चारपाई पर आमने सामने खाने के लिए बैठ गये…!
खाना अच्छा था.., लंच का समय था तो भूख भी जोरों की लगी थी…, ललित को देख कर ढाबे के मालिक ने बस इतना कहा – अबे ललित के
बच्चे किधर गायब हो गया था तू...?
मेने उसे सब समझा दिया.., जिसे सुनकर उसने मुझे बहुत बहुत धन्यवाद दिया.. कि मेने कैसे एक अच्छे घर के लड़के की जिंदगी संवार दी वरना वो इसी ढाबे की दुनिया में रहकर इन ट्रक वालों की सोहबत में ना जाने क्या क्या सीख जाता…!
ढाबे वाला चाचा मेरे इस नेक काम से बहुत प्रभावित हुआ.., उसने अपने ढाबे की बेस्ट डिशस हमें खाने में दी..,
एक-दो घंटे और बिठा के रखा, अंत में एक-एक बढ़िया सी मलाई मार्का चाइ पिलाने के बाद इस शर्त पर वहाँ से हमें निकलने दिया कि लौटते में हम फिर उससे मिलते हुए जाएँगे…!
रास्ता अभी भी काफ़ी लंबा था.., ललित पर कब संजू का साया होता था इसका कोई सीमित समय तो होता नही था.., खाने के असर से हमारी आँखें बोझिल होने लगी थी..,
साइड की सीट पर बैठा ललित उंघने लगा तो मेने उससे बात करते हुए कहा – लगता है ढाबे वाले चाचा ने कुच्छ ज़्यादा ही खातिरदारी कर दी…!
ललित ने अपनी आँखें खोलकर मेरी तरफ देखा और मुस्कराकर बोला – हां चाचू आँखें अपने आप ही बंद हो रही हैं.., उपर से आपने गाड़ी का एसी चला रखा है…!
मे – एसी बंद कर दूँ..?
ललित – आपकी मर्ज़ी.., मुझे तो ग्लास खोलकर बाहर की हवा से भी कोई फरक नही पड़ता…!
मे – लेकिन फिर इतना तेज गाड़ी नही चला पाएँगे.., रास्ता काफ़ी लंबा है.., मुझे नही लगता शाम तक हम अपनी मंज़िल तक पहुँच पाएँगे भी या नही…!
ललित – अब आप मंज़िल की चिंता छोड़ ही दो, आराम से ग्लास नीचे करके चलते हैं.., अगर आप कहें तो एक सुझाव दूं..?
मे – हां बोलो…!
ललित – क्यों ना आज रात मंजरी काकी के यहाँ रुका जाए.., बड़े अच्छे लोग हैं वो….!
मेने उसके बालों पर हाथ घूमाते हुए कहा – सुझाव बुरा नही है.., यही ठीक रहेगा.., चलो आज रात वहीं रुकते हैं..,
इतना कहकर मेने गाड़ी के ग्लास नीचे कर दिए और गाड़ी की स्पीड कम करके आराम से शाम के वक़्त की नॅचुरल हवा का आनंद लेते हुए
अपने गन्तव्य की तरफ बढ़ चले…!
सूरज पश्चिम की तरफ झुकने लगा था.., और आसमान में लालिमा फैलने लगी थी.., जिस गति से हम चल रहे थे उस हिसाब से अभी हम मंजरी के घर से लगभग एक घंटे की दूरी पर और थे..!
ललित के लंबे बाल बाहर की हवा से लहरा रहे थे हवा से अपनी आँखें बंद करके मौसम का पूरा लुत्फ़ ले रहा था पट्ठा..,
उसका मासूम चेहरा देख कर नही लगता था कि कोई आत्मा इस पर हावी हो जाती होगी और ये अपने आप से नियंत्रण खोकर किसी और के नियंत्रण में चला जाता होगा…!
सूरज अब पश्चिम में डूबने की तैयारी में था पशु पक्षी अपने घरों की तरफ चल पड़े थे..,
धूप धरती माँ का दामन छोड़कर लालमी से नहा चुकी थी जो आस-पास में गेंहू के लहलहाते खेत जो अब सुनहरी आभा ले चुके थे इस शाम
की लालिमा से नहा कर और ज़्यादा सुंदर दिखाई दे रहे थे..,
मानो धरती माँ अपने पूरे श्रीगार में आकर प्रकट हुई हो…!
इस प्राकृतिक सुंदरता का लुफ्त लेते हुए हम अभी कुच्छ किमी ही चले होंगे कि अचानक से रोड पर अपने ठीक सामने आए व्यवधान को
देखकर मुझे अपनी गाड़ी को एकदम से एमर्जेन्सी ब्रेक लगाने पड़े…..!!!!
सामने रोड पर एक 120 डेग का मोड़ था.., दोनो तरफ घने लंबे और उँचे पेड़ खड़े थे.., मोड़ लेते ही अचानक से हमें बड़े-बड़े पत्थर रोड पर पड़े दिखाई दिए…!
समय रहते मेने गाड़ी को ब्रेक लगाए.., इंपोर्टेड गाड़ी टाइयरो की चरमराहट के साथ पत्थरों से ठीक पहले रुक गयी..,
मुझे ब्रेक इमरजेंसी में लगाने पड़े थे.., गाड़ी के टॉप गियर में होने के कारण एंजिन अपने आप बंद हो गया..,
अभी हम इस अचानक से आई मुशिबत को ठीक से समझ ही रहे थे कि पेड़ों और झाड़ियों से निकल कर 4-5 लोग मूह पर कपड़ा बाँधे हमारी गाड़ी की तरफ लपके…!
उनमें से एक के हाथ में 315 बोर राइफल थी.., एक-दो पर देसी तमन्चे तो दो लोहे की रोड लिए हुए थे…, इनका साफ इरादा था.., राहगीरों को लूटना…!
मेरे सामने उनके आगे सरेंडर करने के सिवाय और कोई चारा नही था.., क्योंकि गाड़ी के खड़े होते ही जिंन्न की तरह प्रकट होकर उन लोगों ने गाड़ी को दोनो तरफ से घेर लिया…!
गाड़ी मोड़ कर वापस भी नही ले जा सकता था.., बॅक जाने में ख़तरा ये था कि वो सामने से गोली चला सकते थे…!
उनमें से राइफल वाले ने मेरी साइड में खड़े होकर मुझे गाड़ी से बाहर आने की हिदायत दी.., उनकी बात मानने के अलावा मेरे पास और कोई चारा भी नही बचा था..,
दूसरी तरफ से एक तमन्चे वाले ने ललित को भी बाहर आने के लिए इशारा किया.., वो उसके एक बार कहने पर बाहर नही आया तो उसने उसे धमकाते हुए कहा –
ओये पिद्दी तेरे लिए कोर्ट से ऑर्डर लाने पड़ेंगे क्या बाहर आने के लिए.., चल मादरचोद बाहर आ वरना यहीं ठोक दूँगा भेन्चोद…, जल्दी कर.
तब तक दूसरा तमन्चे वाला जो राइफल वाले के साथ ही मेरी तरफ खड़ा था.., उससे उस राइफल वाले ने कहा – इसकी जेब खाली कर.., और तू ये अपने गले की चैन और घड़ी भी निकाल फटाफट…!
वो तमन्चे वाला एक हाथ में तमन्चा पकड़े दूसरे हाथ से मेरी जेबें खाली करने लगा.., जिसमें मेरा वॉलेट रखा हुआ था.., मेने उससे कहा – भाई जो भी लेना है ले लो.., बस मेरे कार्ड मुझे वापस करदो…!
क्यों.. भेन्चोद मेरे लौन्डे की बारात में आया है क्या भोसड़ी के.., चल एक कागज पर अपने कार्ड्स के डीटेल लिख.., वरना यही टपका दूँगा
साले…!
तभी दूसरी तरफ मामला उलट होता दिखाई देने लगा.., जब एक दो बार की चेतावनी के बाद भी ललित बाहर आने को तैयार नही हुआ तो उसकी तरफ वाले एक बदमाश ने गाड़ी का दरवाजा खोला..,
और ललित के गिरेबान को पकड़कर उसे ज़बरदस्ती गाड़ी से बाहर खींचने लगा…!
मेने उसे समझाते हुए कहा – उसके पास कुच्छ भी नही है.., तुम खम्खा उस लड़के को क्यों परेशान कर रहे हो..,
राइफल वाला अभी भी कुच्छ दूरी बनाकर मुझे निशाने पर लिए खड़ा था.., मेरी बात सुनकर उस तमनचे वाले ने मेरा वॉलेट अपनी जेब में डाला और एक तमाचा मेरे गाल पर जड़ते हुए कहा…!
भेन्चोद एक बार में समझ नही आता क्या तुझे.., उधर ध्यान देने की बजाय तू अपना काम कर.., चल जल्दी से अपने कार्ड के पासवर्ड बता…, वरना तेरी आँखों के सामने उस लड़के को ठोक देगा वो…!
तभी वो हुआ जिसकी मुझे भी उम्मीद नही थी.., ना जाने कब संजू की आत्मा ललित में समा गयी.., उसने गाड़ी से बाहर आते ही झटके से
उसका तमन्चा उसके हाथ से छीना..,
पलक झपकते ही तमन्चे का भारी दस्ता उसकी कनपटी पर भी दे मारा…, वो चीख भी नही पाया कि उसने उसके शरीर को हवा में उठाकर
उस राइफल वाले के उपर ही उछाल दिया…!
राइफल उसके हाथ से दूर जा गिरी.., मौका देख कर मेने एक नारा लगाया.., जय हो संजू प्यारे.. कहते हुए उस अपनी तरफ वाले पर जंप लगा दी…!
जंप के साथ ही उसका तमंचा मेरे हाथ में था.., जिसे मेने उसके सिर पर दे मारा.., मे उसके सीने पर सवार हो चुका था.. इससे पहले कि वो
कुच्छ करता, दो बार के तमन्चे की मूठ के प्रहार ने उसका थोबड़ा लहू लुहान कर दिया..!
उधर संजू के द्वारा फेंके जाने पर उस तरफ के तमन्चे वाला सीधा राइफल वाले के उपर गिरा था.., राइफल उसके हाथ से छूट कर दूर जा
गिरी और वो दोनो आपस में उलझकर ज़मीन पर जा गिरे…!
एक 15-16 साल के लड़के से इतने की उम्मीद उनमें से किसी को नही थी लेकिन जब उसने सारा ही पासा पलट दिया तो उसकी तरफ खड़े लोहे की रोड वाले ने संजू के उपर रोड से बार किया.., जिसे उसने एक ही हाथ से रोक लिया.,
एक तेज झटके के साथ रोड ललित के हाथ में थी.., जिसे उसने उस आदमी के पेट में भोंक दिया.., लोहे की 3-4सेमी की रोड उसके पेट को चीरती हुई पीठ से बाहर निकल गयी..,
वो बुरी तरह से डकार मारते हुए वहीं पीछे की तरफ जा गिरा.., बस एक पल के लिए उसका जिस्म ज़मीन पर तडपा और फिर शांत हो गया…!
अब ललित की तरफ कोई नही था.., एक को मे मारते मारते बेहोशी की हालत में पहुँचा चुका था.., तभी मेरी तरफ वाले जिसके हाथ में एक
और रोड थी उसने अपनी रोड का भरपूर बार मेरी पीठ पर किया जब में उस आदमी को पीट ही रहा था…!
तभी संजू की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी.., वकील भैया.. बचो.., सेकेंड के सौवे हिस्से में ही मे उस आदमी के उपर से दूसरी साइड को पलट गया…!
रोड का भरपूर वार उस मेरे नीचे पिट रहे आदमी के सिर पर पड़ा और उसकी खोपड़ी खुल गयी.., अगर मे एक माइक्रो सेकेंड भी देर करता तो वो रोड मेरी रीड की हड्डी के कयि टुकड़े कर चुकी होती…!
देखते देखते दो बदमाश ईश्वरपुरी को जा चुके थे.., वो दोनो जो आपस में उलझकर ज़मीन पर जा गिरे थे अब उठ चुके थे.., सामने अपने दो दो आदमियों की लाश देख कर उनके हौसले पस्त होते दिखे..!
फिर भी उन्होने एक साथ मेरे उपर छलान्ग लगाने की कोशिश की.., इससे पहले कि वो दोनो मेरे उपर आकर गिरते.., गाड़ी के दूसरी तरफ से ललित का जिस्म हवा में कालाबाज़ियाँ ख़ाता हुआ मेरे सामने अपने पैरों पर खड़ा दिखा…!
और उसने उन दोनो को गले से हवा में ही लपक लिया.., तभी उस रॉड वाले ने एक और वार लोहे की रॉड को घूमाते हुए मेरे उपर करना चाहा जो ललित की विपरीत दिशा में मेरे पास ही था…!
तभी दो काम एक साथ हुए.., एक- ललित ने फ़ौरन उन दोनो को हवा में उछाल्ते हुए दूर फेंका और खुद मुझे अपनी जगह से धक्का देते हुए
मेरी जगह पर आगया…!
मुझे तो कोई ज़्यादा आश्चर्य नही हुआ लेकिन उन तीनों बदमाशों के ख़ौफ़ से मूह खुले के खुले रह गये ये देख कर कि रॉड के भरपूर वार से ललित का शरीर एक इंच भी अपनी जगह से नही हिला.., उल्टा वो 10-12एमएम मोटी लोहे की रोड ललित के शरीर से टकराने के बाद बॅंड
हो गयी.., उसे ऐसा लगा कि मानो उसकी रोड किसी इंसानी जिश्म से ना टकराकर किसी लोहे की दीवार पर पड़ी हो…,
झटका सहन ना होने के कारण वो रॉड उस बदमाश के हाथों से छिटक कर ज़मीन पर जा गिरी…!
अभी वो अपने होश ठिकाने भी नही कर पाया था कि ललित ने उसके दोनो बाजुओं को पकड़कर उसे गोल-गोल घुमाया और पूरे वेग से उसे
अपने से दूर उछाल दिया..,
वो हवा में गोल-गोल कालाबाज़ियाँ ख़ाता हुआ रोड से दूर खड़े पेड़ों में से एक मोटे से तने वाले पेड़ से जा टकराया.., और फिर कभी ना उठने के लिए एक लंबी सी चीख मारकर वहीं ज़मीन पर ढेर हो गया……!
उन दो बचे हुए बदमाशों के सामने ललित के रूप में, हाड़ मास का लड़का ना होकर कोई रोबाटिक लड़का खड़ा हो..,
वो दोनो जैसे तैसे अपनी जगह से खड़े हुए और फिर सिर पर पैर रख कर जंगल की दिशा को दौड़ लिए.., मानो उनके पीछे भूतों की फौज पड़ी हो..,
ललित ने उनके पीछे लपकना चाहा तो मेने फ़ौरन उसकी कलाई थाम ली और अपना सिर ना में हिलाकर उन्हें जिंदा निकल जाने दिया…!
मेरी तरफ देख कर ललित के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी.., आँखें अभी भी उसकी शोलों की तरह दहक रहीं थी.., मेने उसे अपने गले से लगाया और उसके सिर पर प्यार भरा हाथ फिराया..!
उसने भी मुझे अपने आप में कस लिया…, ललित का शरीर मेरी बाहों में एक पल के लिए अकडा, उसके मूह से एक हिचकी सी निकली और इसके साथ ही उसका शरीर ढीला पड़ता चला गया…!
मेने उसे सहारा देकर गाड़ी में बिठाया.., अपनी सीट पर आकर मेने गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी और पीछे छोड़ दी तीन मानव लाशें,
जो खम्खा अपने नीच कर्मों के कारण ललित रूपी संजू के हाथों अपनी जान गँवा बैठे थे.........!!!!
मंजरी के घर तक पहुँचते पहुँचते हमें काफ़ी अंधेरा घिर चुका था.., पहले यहाँ से जाते समय मेने सड़क से उसकी झोंपड़ी तक एक चक्रॉड नुमा रास्ता देख था.., उसी से होकर मे अपनी गाड़ी मंजरी की झोंपड़ी तक ले गया…!
हमें फिर एक बार आया हुआ देखकर उन तीनों प्राणियों को बेहद खुशी हुई.., मेने अपने आने का कोई ठोस प्रायोजन नही बताया उन लोगों को.
सास बहू दोनो ने मिलकर हमारे खाने पीने का इंतज़ाम किया.., कुच्छ देर सभी एक साथ बैठकर रूचि और घर की राज़ी खुशी लेते रहे…!
अब वहाँ कोई टीवी या अन्य मनोरंजन का साधन तो था नही.., वैसे भी ये लोग सारे दिन काम धंधा करते करते थक जाते थे सो जल्दी ही खा पीकर सोने का इंतेजाम देखने लगे…!
अब मौसम रात में भी इतना ठंडा नही रहता था.., तो मेने अपनी चारपाई बाहर ही लगवाने को कहा.., तो मंजरी की सास सविता देवी बोली –
बेटा सुबह के समय यहाँ खुले में थोड़ा ठंडा हो जाता है…!
फिर वो मंजरी से बोली – बहू ज़रा बाबूजी को मोटा सा लिहाफ़ ओढ़ने को दे देना वरना सुबह की ठंड नुकसान कर देगी.., फिर वो ललित को संबोधित करके बोली -और बेटा रे तू चल मेरे साथ झोंपड़ी में सो जाना..,
मंजरी ने मेरे लिए बाहर चारपाई पर ही बिस्तेर लगा दिया.., सविता देवी ललित को अपने साथ सुलाने झोंपड़ी में ले गयी.., इस तरह से आज
की रात गुजारने का इंतेजाम हो तो गया…!
रामू और उसके घरवाले बेचारे काम धंधे वाले लोग थक कर जल्दी सोने वाले थे लेकिन हमें शहर में 11-12 तक जागने की आदत होती है तो मुझे तो 9 बजे बिस्तेर पकड़ने के बाद करवटें ही बदलनी थी…!
पड़े पड़े मे संजू के बारे में सोचने लगा.., उसने एक पीड़ित लाचार लड़की से शादी करके अच्छा ही किया लेकिन उस बेचारी लड़की की
किस्मत तो देखो.., पति का प्यार मिला ही था कि फिरसे वियोग की व्यथा में जीने पर मजबूर हो गयी…!
ना जाने अब उस बेचारी के साथ क्या हो रहा होगा..? ईश्वर भी किसी किसी का भाग्य इतना खराब क्यों लिखते हैं…?
क्या उस बेचारी लड़की को जिसने अभी अपनी जिंदगी के 16 बसंत ही देखे थे, उसको भी वेश्यावृत्ति के धंधे में ही धकेल दिया होगा उन नीच निराधामियों ने..?
ये सारे सवालों ने मेरी आँखों की नींद हराम कर रखी थी.., लाख कोशिश करने पर भी मे अपने दिमाग़ को इन सोचों से मुक्त नही कर पा रहा था…!
जितना मे अपने अंदर इन सोचों को किनारे करने की कोशिश करता पूरे शरीर में एक अजीब तरह की बैचैनि सी होने लगती..,
थक हारकर मेने अपना बिस्तर छोड़ दिया और यौंही इधर से उधर टहलने लगा…!
पास में ही सब्जियों की क्यारियाँ थी.., जिनकी मेडों पर गेंदे के फूलों की कतार खड़ी थी.., मे उस कतार के पास जाकर खड़ा हो गया..,
रात के शांत और स्वच्छ वातावरण में फूलों की महक कुच्छ ज़्यादा ही सुहानी होती है.., उन फूलों की मीठी मीठी सुगंध मेरे नथुनो में समाने लगी..,
आँखें बंद करके एक लंबी साँस खींचते ही मेरे अंदर की बैचैनि छूमन्तर हो गयी…!
मेने अपने दोनो हाथ आगे किए और उन सुंदर और कोमल फूलों का स्पर्श करने लगा, कि तभी मंजरी ने पीछे से मेरी कमर में अपनी दोनो बाहें डाल दी और वो मेरे शरीर से चिपक गयी…!
आगे के फूलों से हाथ हटाकर मेने उसके हाथों को अपने सीने से हटाया और घूम कर उस मासूम और नेक्दिल देहाती मेहनतकस फूल को अपनी बाहों में भर लिया..,
मुझे भी इस समय उसकी ज़रूरत थी.., सही समय पर उसका मेरे पास आने से मेरा मन खिल उठा और मेने अपने होठ उसके प्यासे होठों पर टीका दिए…!
मंजरी भी मेरे बदन से किसी बेल की तरह लिपट गयी.., मेने उसे अपनी बाहों में कसते हुए कहा – रामू को पता लग गया तो.., तुम्हें इस वक़्त यहाँ नही आना चाहिए था मंजरी…!
वो कब्से सो चुके हैं.., अब 4 बजे से पहले उनकी आँखें खुलने का कोई चान्स नही है.., भगवान ने मुझे फिर एक मौका दिया है आपसे मिलने का उसे कैसे हाथ से जाने देती.. हान्न्न..?
मंजरी ने मेरे सीने पर अपने तपते होठ टिकाते हुए कहा…!
मे – चलो फिर बिस्तर पर ही चलते हैं.., ये कहते हुए मेने उसे किसी फूल की तरह अपनी गोद में उठा लिया और लाकर चारपाई पर लिटा दिया.., उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने उपर खींच लिया..,
मेने भी बड़े एहतियात से उसके उपर आकर उसकी चुचियों को एक हाथ से मसल्ते हुए अपने होठ उसके होठों पर रख दिए…!
मंजरी अब होठ चूसने में पहली बार की तरह अनाड़ी नही रही थी.., उसने भी मेरे होठ चूस्ते हुए मेरी जीभ को अपने अंदर आने दिया और हम दोनो एक लंबी स्मूच में खो गये…!
मेने एक ही हाथ से उसके ब्लाउस के बटन खोल डाले और उसकी बिना ब्रा की पुष्ट गोल-गोल चुचियों को मसलने लगा…!
मंजरी पर वासना का खुमार हाबी होता जा रहा था.., मेरा लंड अब शख्त होकर उसकी एक जाँघ को ठोकने लगा था.., उसने अपनी जांघों के बीच जगह देकर मेरी एक टाँग को भींच लिया… और मेरे नीचे मचलने लगी…!
जब मेने उसके होठ छोड़ कर उसकी चुचियों के कड़क काले काले जामुन जैसे निप्प्लो पर अपनी जीभ लगाई तो उसने अपना सीना और
उभारते हुए एक मादक कराहह…आअहह..अपने मूह से निकाली…!
मंजरी अपनी चुचियाँ चुस्वाकर आनद विभोर हो उठी.., उसकी चंचल उंगलियों ने मेरे पॅंट की जीप नीचे की ओर अंडर वेर में हाथ डालकर
मेरे सख़्त लौडे को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे मुठियाते हुए सिसकने लगी…!
सस्सिईई…आअहह…अंकुश जीई…प्लीज़ ज़ोर्से चुसिये नाअ… मेरी चुचियों को.., पी जाइईए मेरा सारा दूध…, आअहह..म्म्माआ..!
मेने उसकी चुचियों को चूस्ते हुए एक बार उसकी तरफ देखा और एक ज़ोर का चुस्का मारा.., सचमुच उसके स्तन से मीठे दूध की धार मेरे मूह में भर गयी…!
मंजरी ने मस्ती में आकर अपनी जांघें मेरे इर्द-गिर्द कस दी.., और मुझे अपने उपर लॉक कर लिया….!
उधर मंजरी की सास सविता देवी को भी नींद नही आ रही थी.., हम जबसे यहाँ आए थे तभी से उनकी नज़रों में मेने एक प्यास देखी थी..,
उस दिन रसोई बनाते हुए मंजरी ने जो उनके साथ मज़ाक मज़ाक में ही सही जो छेड़ छाड़ की थी वो अब उनके दिमाग़ पर उनकी सोचों पर
हाबी थी..,
!
30 साल की भरपूर जवानी में पति छोड़ कर चला गया.., तबसे उन्होने अपने बदन की आग को दबाकर अपने आप को घर परिवार में खपा दिया था…!
इकलौते लड़के की जल्दी शादी करके जब उन्हें कुच्छ राहत मिली तो अपने पुराने दिन वो पति के साथ बिताई हुई यादें गाहे -बगाहे परेशान कर ही देती..,
लेकिन जबसे उनकी बहू ने उन्हें छेड़ा था.., और उन्हें ये एहसास दिलाया कि आज भी वो भरपूर जवान ही हैं.., उसी दिन से उनकी सोई हुई
तन बदन की आग उन्हें चैन से सोने नही देती थी.., वो चोरी चुपके अपने बहू बेटा की काम क्रीड़ा भी जब तब देख लेती..,
उसके बाद उनकी चूत एक मोटे ताजे लंड की डिमॅंड करने लगती.., जिसे वो अपनी उंगलियों या फिर चोरी छुपे गाजर मूली डालकर शांत करने की कोशिश करती रहती…!
सविता देवी की एक शुरू से ही आदत रही थी.., वो सोने से पहले अपने ब्लाउस पेटिकोट निकालकर मात्र अपनी एक सारी लपेटकर ही सोती थी.., आज उनके साथ ललित भी सोया था.., इस वजह से उन्होने उसके सामने अपने वो कपड़े उतारना सही नही समझा…!
लेकिन आज वो कुच्छ ज़्यादा ही बैचैन हो रही थी.., जब उनसे अपनी बैचैनि सहन नही हुई तो उन्होने झोंपड़ी में जल रही डिब्बी की पीली सी
मरी हुई रोशनी में एक बार ललित की तरफ देखा..!
जब वो आश्वस्त हो गयी कि वो सो चुका है तो उन्होने अपनी साड़ी निकाल कर पेटिकोट और ब्लाउस निकाले और फिरसे अपनी उस पुरानी
सी सूती साड़ी को अपने बदन पर लपेट लिया…!
वो फिरसे बिस्तर पर लेट तो गयी लेकिन उनके मंन की बैचैनि कम नही हुई.., वो और बढ़ने लगी.., उनके हाथ अपने बदन पर रेंगने लगे..,
अपनी सुडोल चुचियों को मसल्ते हुए उनका शरीर बिस्तर पर मचलने लगा…!
एक हाथ से चुचियों को मसल्ते हुए दूसरा हाथ उन्होने अपनी लंबी लंबी झान्टो के बीच छुपि चूत के मोटे मोटे होठों पर फिराया…!
बगल में एक 16 साल का लड़का सोया हुआ है.., जो ये सब बातें अच्छे से समझता होगा.., ये कहीं जाग ना जाए इसलिए वो अपने शरीर के साथ खुलकर खेल भी नही पा रही थी…!
बदन की आग अब हद से ज़्यादा उन्हें जलाने लगी थी, उसे किसी भी तरह से शांत करना ज़रूरी हो गया था.., इसलिए वो चुपके से अपनी जगह से उठी..,
ये सोचकर कि मे बाहर अकेला सोया हुआ हूँ, किसी तरह मुझसे बातें करने के बहाने वो अपने शरीर के उभार दिखाकर मुझे चोदने के लिए
उकसा सकें तो आज उन्हें एक भरपूर जवान लंड अपनी बरसों की प्यासी मुनिया में लेने का सौभाग्य मिल सकता है…!
अपने बिस्तेर से उठकर उन्होने एक नज़र ललित पर डाली और चुपके से अपनी झोंपड़ी का दरवाजा थोड़ा सा खोला…,
बाहर झाँक कर जायज़ा लेना चाहा कि तभी उनकी नज़र सामने पड़ी हुई मेरी चारपाई पर पड़ी..,
चारपाई पर चल रही मेरी और मंजरी के बीच की खाट कबड्डी को देखकर सविता देवी की आँखें मारे हैरत के फटी की फटी रह गयी….!!
मुझे मंजरी ने चारपाई पर लिटा रखा था, उसने मेरा पॅंट और अंडरवेर दोनो एक साथ खींच कर मेरे कड़क डन्डे जैसे सख़्त गरम लंड को अपने हाथों में लेकर उपर नीचे करने लगी..!
सुपाडे को खोलकर उसने उसे अपनी नाक रखकर सूँघा.., उसे उसकी गंध कस्तूरी जैसी लगी जिसे सूँघकर वो और मस्त हो गयी.., और फिर
उसने उसे अपनी जीभ से चारों तरफ से चाट लिया…!
मेरे आंडो को अपनी मुट्ठी में लेकर उसने मेरे लंड को जड़ से लेकर सिरे तक चाटा और देखते ही देखते उसे आधे तक अपने मूह में गडप्प कर लिया..!
लंड की मोटाई की बजह से आधे में ही उसका पूरा मूह भर गया.., मेने अपना एक हाथ उसके सिर पर रख दिया और उसके सिर को अपने लंड पर दबाने लगा…!
मंजरी अपने सारे कपड़े पहले ही निकाल चुकी थी.., उसके मूह में जाकर मेरा लंड और ज़्यादा फूल गया था.., कुच्छ देर बाद मेने उसकी
गान्ड को घूमाकर अपने मूह पर रख लिया और अब में उसकी हल्की हल्की झान्ट वाली मुनिया को अपनी जीभ लगाकर चाट रहा था…!
ये सीन मेरी चारपाई पर देखकर सविता देवी की साँसें जैसे ठहर ही गयी.., वो बहुत देर तक मूह पर हाथ रखे हमारी इस काम लीला को एक टक देखती रही…!
उनसे वो सीन ज़्यादा देर देखा नही गया.., तो उन्होने भी अपनी एक मात्र साड़ी को उतार फेंका और नितन्ग नंगी वो वहीं झोंपड़ी के दरवाजे में ही अपने घुटनों पर आकर अपनी चूत को सहलाने लगी…!
इतने गरमा गरम सीन से उनकी सोई हुई वासना भड़क उठी.., हाथ लगाते ही उनकी मुनिया पनियाने लगी.., अपनी चुटकी में लेकर उन्होने अपने मोटे से भज्नासे को मसल दिया….!
सस्स्स्सिईइ….आअहह… मेरी भी चूत चाटो रे कोई…, कहते हुए उन्होने अपनी दो उंगलियाँ अपनी चूत में डाल दी.., उनका सिर आगे को होकर ज़मीन पर टिक गया..,
एक हाथ से अपनी चुचि को उमेठते हुए उन्होने अपनी दोनो उंगलियाँ जड़ तक चूत की गहराइयों में घुसा दी…!
मेरे द्वारा मंजरी की चूत चाटने को देखकर उन्हें आभास होने लगा कि मेरी जीभ उनकी मोटी गद्देदार गान्ड के भूरे छेद को चाट रही है..,
उनकी गान्ड अपने आप हिलने लगी…,
तभी उन्हें अपनी चूत पर खुद की उंगलियों के अलावा भी कुच्छ और लिज लीज़ा सा महसूस हुआ.., उन्होने पलट कर पीछे की तरफ देखा..,
सचमुच ललित उनके पीछे उनकी गान्ड में अपना मूह घुसाए उनकी गान्ड और फिर चूत को चाटने में मगन था…!
उसे देखकर वो उठना चाहती थी.., लेकिन हवस का नशा इस कदर हाबी हो चुका था कि एक 45 साल की औरत को अपने से 1/3 उम्र का लड़का भी अब सजीला जवान नज़र आने लगा और अब वो अपनी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए अपनी गान्ड मटका मटका कर उससे अपनी
चूत चटवाने में खोने लगी…!
थोड़ी ही देर में उधर मंजरी की चूत मेरे मूह पर पानी छोड़ बैठी तो इधर झोंपड़ी में उसकी सास ने ललित के मूह को अपनी चूत के रस से भर दिया…!
झड़ने के बाद उनको बड़ी शर्म महसूस हुई, कैसे उन्होने एक कम उम्र लड़के से अपनी चूत चटवा ली.., वो अपनी नज़रें झुकाए साड़ी को
उठाकर अपने बिस्तर पर आगयि और ललित की तरफ पीठ करके अपनी साड़ी पहनने लगी…!
तभी ललित ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया.., उन्होने बड़ी हिम्मत करके उसकी तरफ देखा…, ललित उनके हाथ से साड़ी लेते हुए बोला – अब अधूरा काम पूरा कर ही लो काकी..,
वो उसके हाथ से अपनी साड़ी लेने की कोशिश करते हुए बोली – मुझे और ज़्यादा शर्मिंदा मत कर बेटा.., कहाँ तू और कहाँ मे.., ये कहकर वो अपना मूह दूसरी तरफ करके खड़ी हो गयी…!
बाहर अपनी बहू को उस शहरी बाबू के साथ देखकर मे वासना में बह गयी थी वरना ये काम कभी नही करवाती…!
ललित जो की इस समय संजू के प्रभाव में था बोला – तो इसका मतल्ब आपको अपनी बहू को किसी पराए मर्द के साथ देखकर बुरा नही लगा..?
ये प्रश्न ऐसा था जिसे सुनकर सविता देवी हड़बड़ा गयी.., लेकिन फिर सोचकर बोली – सच कहूँ तो इस समय बिल्कुल नही.., क्योंकि औरत के बदन की आग जबतक शांत नही होती वो भला बुरा कुच्छ नही सोच पाती…!
मे समझती हूँ मेरा बेटा कहीं ना कहीं उसे वो खुशी नही दे पाता होगा जो इस समय वो उस बाबू से ले रही है…!
संजू – तो क्या आपको हक़ नही है अपने हिस्से की खुशी लेने का…?
इस प्रश्न का वो कोई जबाब नही दे पाई.., उन्हें चुप देखकर संजू उनकी पीठ से चिपक गया.., ललित का 6” का लंड कड़क होकर उनकी
गान्ड की दरार में फिट हो गया था..,
अपनी गान्ड के छेद पर एक नये लड़के के नये कड़क लंड की ठोकर लगते ही वो फिरसे गन गना उठी.., एक सिसकी भरते हुए बोली –
सस्स्सिईई … आअहह.. मान जा बेटा.. मत कर ये सब….हाईए.. रे मान जा.. निपुते….!