Update 19
ललित जो अब भी अच्छी कद काठी का ही था 5’5” की हाइट अभी से थी उसकी.., उसने पीछे से ही उनकी दोनो सुडौल चुचियों को अपने कब्ज़े में ले लिया..,
सविता देवी ने अपने दोनो हाथ उसके हाथों के उपर रख दिए लेकिन उन्हें वहाँ से हटाने की कोई कोशिश नही की…!
ललित ने उनकी चुचियों को मींजते हुए अपना लंड और अंदर को दबा दिया.., जो कि गान्ड से रगड़ते हुए उनकी गीली चूत की फांकों से जा टकराया…!
सविता देवी की हवस फिर एक बार भड़कने लगी.., उन्होने पलटकर उसके होठों पर अपने तपते प्यासे होठ रख दिए..,
ललित ने उनके कंधों पर दबाब देकर बैठने का इशारा किया.., उन्हें भी अपनी बहू को लंड चूस्ते देख बड़ा मज़ा आया था.., सो अपने पंजों पर बैठकर वो उसका 6” लंबा मामूली सा लंड अपनी उंगलियों में लेकर उसे सहलाने लगी…!
वो ये देख कर आश्चर्य चकित रह गयी कि ललित का लंड उनका हाथ लगते ही अपना आकार बढ़ाने लगा है.., देखते ही देखते वो एक इंच से भी और ज़्यादा लंबा और खूब मोटा हो गया जो अब उनकी मुट्ठी में भी ठीक से नही समा पा रहा था…!
उसे देखकर अपने अंदर की सारी शंकाओं को निकाल फेंक उन्होने उसे अपने मूह में ले लिया और चपर शॅपर करके खूब मन लगा कर उसे चूसने लगी…!
ललित भी उनके सिर पर हाथ रखकर अपनी कमर को आगे पीछे करके उनके मूह को एक तरह से चोदने ही लगा..,
सविता देवी की चूत फिर एक बार पनियाने लगी और वो उसे अपने एक हाथ से सहलाते हुए दूसरे हाथ से ललित के टटटे सहला कर उसके लंड को चूसने में मस्त हो गयी…!
उधर बाहर मंजरी मेरे लंड के उपर बैठ चुकी थी.., जैसे तैसे पूरा लंड अपनी चूत में लेकर वो धीरे धीरे उसके उपर उठने बैठने लगी..,
अपनी चुचियों को अपने ही हाथों से मींजते हुए उसकी लंड पर उठने बैठने की गति धीरे-धीरे बढ़ाने लगी..,
इधर झोंपड़ी के अंदर अब ललित (संजू) ने मंजरी की सास को घोड़ी बना दिया और पीछे से अपना सख़्त दह्क्ता हुआ लंड उनकी गीली चूत में बड़ी बेदर्दी के साथ पेल दिया…!
बेचारी मुद्दतो के बाद इतना सुलेमानी लंड ले रही थी.., आधे लंड में ही उनके मूह से घुटि घुटि सी चीख निकल गयी.., जो मेरे कानों में भी पड़ गयी..,
लेकिन मंजरी अपनी चुदाई में लीन हो चुकी थी सो उसने उस तरफ कोई ध्यान नही दिया…!
दूसरे धक्के में ही ललित का समुचा लंड उनकी संकरी चूत में समा चुका था.., और अब वो पीछे से धीरे धीरे धक्के लगा रहा था…!
बाहर खुले आसमान के नीचे बहू और झोपडे के अंदर उसकी सास दोनो ही एक साथ दो मतवाले लंड की सवारी करके खुशी से झूमती हुई
चुदाई का लुफ्त उठाती रही.., और अंत में दोनो ही लगभग एक साथ अपनी अपनी चुतो का ढक्कन खोल बैठी…!
उस रात मंजरी तो एक बार और चुदने के बाद अपने पति और बच्चे के पास जाकर सो गयी.., लेकिन सविता देवी दसकों से प्यासी थी…,
सो जी भर कर उन्होने रात भर अपनी चूत की प्यास ललित (संजू) के नये कोरे करार लंड से बुझवाई…!!!
दूसरे दिन सुबह सुबह ही हम दोनो फ्रेश होकर गुड के साथ दो-दो ग्लास ताजी ताजी छाछ पीकर वहाँ से निकल पड़े अपनी मंज़िल की तरफ जहाँ पता नही हमें किन किन मूषिबतों से जूझना था…!
लेकिन संजू के हर समय हमारे साथ होने की वजह से मुझे अब कोई ज़्यादा चिंता नही थी.., अब मे हर मुशिबत से निपटने के लिए अपने आपको पूरी तरह से सक्षम महसूस कर रहा था…!!!
चंबल का ब्रिज क्रॉस करते ही ललित बोला – वकील भैया आपके साइड में एक कच्चा रेतीला रास्ता होगा.., गाड़ी उसी रास्ते पर ले लेना…!
मेने एक नज़र ललित के भावशून्य चेहरे पर डाली.., मे समझ चुका था कि अब संजू ने पूरी तरह ललित के शरीर को अपने कब्ज़े में लेकर कमॅंड अपने हाथ में संभाल ली है…!
ये एक तरह से ज़रूरी भी था.., जितना इस इलाक़े के बारे में संजू को जानकारी थी उतनी मुझे नही…, अभी वो रास्ता आया नही था, मेने
उससे पुछा – पहले क्या करना चाहते हो..?
संजू – सबसे पहले मेरे शरीर का दाह संस्कार करना होगा वरना कीड़े-मकोडे उसे वैसे ही नष्ट कर देंगे.., और मेरी आत्मा पर हमेशा एक बोझ सा बना रहेगा…!
दूसरा जब तक मेरे शरीर को सदगति नही मिल जाती.., प्रेतलोक की शक्तियाँ मुझे हाँसिल नही हो पाएँगी.., और मे हमेशा आधी अधूरी शक्तियों के साथ इधर से उधर भटकता रहूँगा…!
एक बार मुझे सदगति दिला दो.., फिर खेलते हैं खुला खेल फ़ारुक्खाबादी इन हरामियो के साथ.., मे जब तक इनका समूल नाश नही कर देता तब तक मुझे चैन नही मिलेगा…!
मे – लेकिन मेरे भाई.., मृत शरीर को ढकने के लिए कम से कम एक कॅफन तो चाहिए.., ऐसा करते हैं.., पहले कस्बे में जाकर कुच्छ ज़रूरत का समान ले आते हैं.., फिर लौट कर पूरे विधि विधान से तुम्हारे शरीर का दाह संस्कार करना पड़ेगा…!
संजू ने इस पर कुच्छ नही कहा तो मेने अपनी गाड़ी सीधे कस्बे के लिए दौड़ा दी.., अब वो आँखें बंद किए शांत गाड़ी की सीट से टेक लागये बैठा था…!
अभी संजू ललित के उपर है या नही ये चेक करने के लिए मेने उससे पुछा – क्या तुम अपनी मौत का बदला उन लोगों से लेना चाहते हो संजू..?
मेरी बात सुनकर ललित ने झटके से अपनी आँखें खोल दी, मेरी तरफ अपनी लाल-लाल आँखों से देखते हुए बोला – मुझे अपने मरने का कोई गम नही है भैया…!
उसका बदला तो मे युसुफ को मारकर ले चुका हूँ.., लेकिन प्रिया मेरी जान उन दरिंदों की क़ैद में है.., उसे मे किसी भी सूरत में वहाँ नही
छोड़ सकता वरना वो हराम के बीज ना जाने क्या करेंगे उसके साथ…!
अगर उन्होने उसे भी किसी के हाथों बेच दिया जैसा कि उनका एक धंधा विमन ट्रीफिक्किंग का भी है तो मे अपने आपको कभी माफ़ नही
कर पाउन्गा…!
और अगर उसे वहाँ से निकालना है तो उनसे भिड़े बिना निकालना नामुमकिन है.., अगर आप मेरा साथ नही देना चाहते तो कोई बात नही.., मे अकेला ही उसे वहाँ से निकालने की कोशिश करूँगा..!
मे – ये तुम कैसी बात कर रहे हो मेरे भाई.., हमारे उपर तुमने इतने एहसान किए हैं कि उनके सामने मे अपने आपको बौना महसूस करने लगा हूँ…!
तुमने मेरे घर की इज़्ज़त के लिए अपनी जान न्यौच्छावर करदी, तो क्या मे तुम्हारे लिए इतना भी नही कर सकता…?
संजू – ये कहकर आपने मुझे पराया कर दिया भैया.., इतना कहते हुए उसका गला भर आया और ललित की उन शोले बरसाती आँखों से दो
बूँद पानी की अपना किनारा छोड़ कर नीचे गिर पड़ी…!
मेने कभी अपने आपको इस घर से अलग नही समझा लेकिन आज आपने अपने घर की इज़्ज़त का हवाला देकर मुझे पराया कर दिया, रूचि
को मे अपनी सग़ी भांजी से भी बढ़कर मानता था.., उसकी अस्मत बचना मेने अपना फ़र्ज़ समझा…!
मेने फ़ौरन उसका कंधा दबाते हुए कहा – ऐसा मत बोल मेरे भाई मुझे माफ़ कर दे यार.., पता नही कैसे ये शब्द मेरे मूह से निकल गये.., जिनपर अब मुझे खुद भी अफ़सोस हो रहा है…!
संजू मेरे गले से लगकर किसी बच्चे की तरह सूबकते हुए बोला.., पता नही वो कॉन सा पल था जब वो हरामजादि वहीदा फिर एक बार मेरे
सामने आगयि.., मेने आप लोगों के प्यार को ठुकरा दिया और उसके सुनहरे जाल में फँस गया…!
मेने एक हाथ से उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – जो होना होता है वो होकर ही रहता है मेरे भाई.., अब अफ़सोस करके हम अपने आप को दोषी मानकर बस दुखी ही कर सकते हैं..,
एश्वर ने चाहा तो तुम्हें जल्दी ही इस योनि से मुक्ति मिल जाएगी…!
संजू मेरे से अलग होते हुए बोला – अब ईश्वर से मेरी एक ही विनती है.., अगर वो मुझे मेरे किसी भी नेक काम जो मेने अपनी जिंदगी में किया हो उसका फल देना चाहें तो मे फिरसे अपने इसी परिवार में जन्म लेकर आप लोगों के बीच आना चाहता हूँ…!
अपने इस जीवन की ग़लतियों की भूल सुधार कर एक अच्छे आदमी की तरह अपना नया जीवन जीना चाहता हूँ…!
मे – ईश्वर बड़ा न्यायकारी है.., जीवात्मा की मुराद पूरी अवश्य होती है, बस उसके लिए हमें अच्छे नेक काम करते रहना होता है…, वो तुम्हारी ये इक्च्छा भी आवश्या पूरी करेंगे..!
हम सब भी तुम्हें फिरसे अपने परिवार में देखना चाहते हैं मेरे दोस्त…!
संजू से बात करते करते मुझे बड़ा सुकून सा मिला.., समय का पता ही नही चला और हम कस्बे में दाखिल भी हो गये…!
ललित अब सामान्य हो चुका था.., हम दोनो ने पेट भरकर खाना खाया.., फिर संजू के दाह संस्कार में लगने वाली सभी ज़रूरत की चीज़ें हमने खरीदी और निकल लिए उसके बताए हुए रास्ते पर…!!!
संजू की निशानदेही पर उसी खंडहर नुमा मकान के एक कोने में पड़े कचरे के ढेर से हमने उसकी डेड बॉडी को हासिल कर लिया…!
घटना को कई दिन हो चुके थे.., उसकी बॉडी से बदबू उठने लगी थी.., गंदगी के ढेर में लाश दबी रहने के कारण उसमें कीड़े पड़ना भी शुरू हो गये थे…!
मेने और ललित ने बदबू से बचने के लिए अपने अपने मूह पर कपड़ा भी बाँध लिए था.., लेकिन फिर भी काफ़ी देर तक उसमें से निकलने
वाली बदबू हमें परेशान करती रही…!
लेकिन जल्दी ही हम उसके आदि हो गये.., इस दौरान ललित के चेहरे पर रह रह कर अलग अलग तरह के भाव आते रहे…, कभी वो संजू
वाली अवस्था में आकर अपने शरीर की इस तरह की दुर्गति देखकर दुखी होने लगता…!
तो दूसरे पल सामान्य स्थिति में आकर काम में मेरी मदद करने लगता…!
ये अच्छा था कि इस रास्ते का वो लोग कभी कभार ही स्तेमाल करते थे इसलिए कोई अन्य बाधा हमारे काम में रुकावट पैदा नही कर पाई…!
जैसे तैसे संजू की डेड बॉडी को नदी के किनारे तक पहुचाया.., चंबल के स्वच्छ पानी से उसे स्नान कराया.., फिर वाकायदा एक अर्थी बनाकर
उसका विधि विधान से चिता सजाकर हमने संजू की मृत देह को आग के हवाले कर दिया…!
आग जलती देख उधर को कोई आ ना धमके उसके लिए हमने छिपने के लिए दर्रों की शरण ले ली…!
हम वहाँ तब तक छिपे बैठे संजू की चीता को देखते रहे जबतक उसकी चीता पूरी तरह शांत होकर ठंडी ना पड़ गयी…!
इस काम को अंजाम देते देते अंधेरा घिरने लगा था.., इस बीच संजू का हमारे बीच होने को कोई आभास भी नही हुआ.., ललित एक दम
सामान्य ही रहा..!
ज़्यादा अंधेरा घिरने से पहले ही हम उसकी चिता के करीब गये.., राख अभी भी गरम ही थी..,
लकड़ियों की मदद से उसकी चिता की राख को कुरेद कुरेद कर हमने यथा संभव उसकी सारी अस्थियों को चुनकर एक कलश में एकत्रित कर लिया…!
एक लाल कपड़े से अच्छी तरह उसका मूह बाँध कर हम चुके ही थे कि तभी नदी के स्वच्छ नीले पानी की सतह पर एक फॅक्क्क सफेद धुएँ की चादर जैसी फैल गयी..,
हमारे देखते देखते वो धुएँ की सफेद चादर चादर हवा में तैरती हुई एक अजीबो ग़रीब आकृति का रूप लेते हुए हमारी तरफ आने लगी…!
ललित अभी बच्चा ही था.., वो उसे देखकर डर के मारे काँपने लगा, और उसने मेरी कौली भर ली..!
भय युक्त उत्तेजना का मिला जुला आभास मुझे भी अपने अंदर हो रहा था.., लेकिन फिर भी बड़े होने के नाते मेने ललित को अपने से सटाते
हुए उसे हौसला बनाए रखने की गरज से कहा…!
हमें डरने की ज़रूरत नही है ललित.., ये अपना संजू ही है.., हौसला रख इससे हमें कोई हानि नही होगी…!
अबतक वो विचित्र आकृति जो लग तो किसी मानवकृति की तरह ही थी.., लेकिन उसका पूरे बदन का हर हिस्सा हवा में इधर से उधर लहरा रहा था…, वो अब हमारे करीब नदी के किनारे तक आ चुकी थी…!
अचानक उस आकृति के मूह से एक विचित्र तरह की आवाज़ निकली….,
धन्यवाद वकील भैया.., आपने मेरे शरीर को विधि पूर्वक चिता के हवाले करके मेरे उपर बहुत बड़ा उपकार किया है.., अब में अपनी प्रेतलोक
की दुनिया में जा रहा हूँ…!
वहाँ जाकर उनकी धर्म संसद में अपनी बात रखूँगा.., अगर मेरी बात जायज़ हुई तो मुझे प्रेत यौनी की सारी शक्तियाँ प्राप्त हो जायेंगी जिनका
मे जैसे चाहूं स्तेमाल कर पाउन्गा…!
अतः अब कुच्छ समय के लिए मे आप लोगों से विदा ले रहा हूँ.., हो सका तो जल्दी ही आपके पास लौटूँगा…, इतना कहकर क्षणभर में ही वो आकृति वातावरण में विलीन हो गयी…!
संजू के वहाँ से विलीन होते ही हम दोनो भी उसके अस्थि कलश को लेकर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गये…!
ये तो तय था कि अब कुच्छ समय तक संजू की आत्मा हमारे साथ रहने वाली नही थी, उसके बिना हम एकदम दिशाहीन थे, घर लौटने का
मतलब था संजू की आत्मा को एक तरह से ठेस पहुँचाना…!
वो पहले ही बोल चुका था कि जबतक अपनी प्रिया को उन बदमाशों के चंगुल से निकाल नही लेता तबतक उसे चैन नही मिलेगा…!
संजू के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार करने के बाद मे ललित को लेकर कस्बे में लौट आया.., अब जब यहीं रुकना है तो रात गुजारने के लिए हमें किसी अच्छी सी जगह की तलाश करनी थी..,
लेकिन ये कस्बा ज्यदा डेवेलप्ड नही था इससे एक बड़ा गाओं ही कह सकते थे, जाहिर है यहाँ किसी होटेल या फिर किसी अच्छे से लॉज की संभावना कम ही नज़र आ रही थी…!
हम दोनो एक चाइ वाले की तपरी पर बैठकर चाइ पी रहे थे, समय लगभग 7:30 या 8 का ही था.., चाइ पीते पीते हमने उस चाइ वाले से आज रात ठहरने की कोई उचित व्यवस्था मिल सके इस विषय पर चर्चा की…!
उसने हमें भिंड की तरफ जाने वाले हाइवे पर यहाँ से कोई 15किमी आगे एक होटेल बताया जिसमें अच्छे खाने पीने की व्यवस्था के साथ साथ
रहने का भी अच्छा इंतेजाम मिल सकता है…!
चाइ पीकर हम उसी हाइवे पर आगे बढ़ गये और कोई आधे घंटा के बाद हम उस होटेल के रिसेप्षन पर थे…!
होटेल ज़्यादा अच्छा तो नही था लेकिन रात गुजारने लायक यहाँ सारी व्यवस्था मौजूद थी…!
ठहरने की व्यवस्था मेन रेस्टोरेंट से हटकर सेपरेट्ली साइड में थी.., हमने रूम बुक करके गाड़ी की डिकी से अपना बॅग लिया जिसमें दो-चार रोज लायक कपड़े और भी ज़रूरत की चीज़ें थी जिन्हें मे टूरिंग के समय साथ रखता ही हूँ…!
खाना हमने रूम में ही मंगवा लिया.., कोई 9-9:30 तक खाना ख़तम करके मे बाहर सामने बने छोटे से लॉन में टहलने चला गया..,
करीब आधे घंटे बाद जब में रूम में वापस पहुँचा तब तक ललित गहरी नींद में सो चुका था.., बेचारे के शरीर को ना जाने कोन्से वक़्त संजू की आत्मा भी आकर स्तेमाल कर लेती थी…!
जिन्हें ये सब झेलने का एक्सपीरियेन्स है वो ये समझ सकते हैं कि जब कोई प्रेत-आत्मा किसी के शरीर पर कब्जा कर लेती है.., उसके बाद जब वो अपनी सामान्य स्थिति में वापस आता है, तब उसके मन-मस्तिस्क को कितनी थकावट होती है ये तो वो ही महसूस कर सकता है जिसने झेला हो…!
एसी रूम में वो बिना कंबल ओढ़े ही सो गया था.., लेकिन ठंड महसूस करते ही उसके घुटने पेट की तरफ मूड गये.., मेने कंबल लेकर उसे
गले तक ऊढा दिया…!
ये लॉज ज़्यादा बड़ा नही था.., बस तीन मंज़िल तक रूम थे, हमारा रूम सबसे उपर था.., मेने रूम में आने के बाद से पहली बार पीछे की
साइड की विंडो का करटन खिसका कर होटेल के रूम के पीछे के हिस्से पर नज़र डाली…!
रोड से देखने पर होटेल के पीछे बस घने और उँचे पेड़ों के अलावा और कुच्छ नही दिखता था, ऐसा लगता था जैसे यहाँ मात्र एक बगीचा जैसा ही होना चाहिए…!
लेकिन जब मेने परदा खिसका कर पीछे के पोर्षन को देखा…, साला ये तो कोयले की खदान में हीरे मिलने जैसा था.., क्या शानदार लॉन
जिसके चारों तरफ एक 10-12 फीट हाइट की बाउंड्री के अंदर बड़े बड़े घने उँचे पेड़…!
लॉन में जगह जगह तरह तरह के फूलों की क्यारियाँ.., मयूर पंखी की कटिंग करके बनाई गयी तरह तरह की आकृतियाँ.., एक छोटा लेकिन सॉफ नीले पानी से भरा स्विम्मिंग पूल भी…!
पूल की सीढ़ियों के बाद से संगेमरमर का फर्श जो कि लास्ट में बनी एक छोटी लेकिन बहुत ही शानदार कॉटेज तक चला गया था…!
मे कौतूहल बस इसे देखते हुए मन ही मन विचार करने लगा.., साला ये इतनी अच्छी जगह जिसे एक तरह से आम लोगों की नज़रों से छिपाने की कोशिश की गयी है.., आख़िर है किसकी और किस पर्पस से रखी गयी है…?
अभी मे अपने अंदर से इस सवाल के जबाब को खोजने की कोशिश कर ही रहा था कि कॉटेज की गेलरी से आती हुई दो मानव आकृतियाँ वहाँ की लो लाइट में लॉन की तरफ आती दिखाई दी…!
वहाँ इतनी तेज लाइट नही थी.., इसलिए वो कॉन और कैसे लोग हैं ये नही देख पा रहा था.., हां उनमें से एक औरत थी तो दूसरा आदमी..,
दोनो ने आगे सिंगल डोरी से बाँधने वाले घुटनों तक के गाउन पहन रखे थे.., दोनो के एक-एक हाथ में ग्लास लगा हुया था.., जिनमें मेह्न्गि शराब के अलावा और कुच्छ तो होने की संभावना ही नही थी…!
वाह साले जंगल में मंगल कर रहे हैं.., लेकिन ये हैं कॉन..? जाहिर सी बात है इस एकांत सी जगह पर ये मियाँ बीवी तो होंगे नही जो अपना
घर छोड़ कर यहाँ मस्ती करने आए हों…?
दूसरा ये इतना अच्छा कॉटेज भी लगता है पब्लिक यूज़ के लिए नही होगी वरना इसे पीछे गुप्त तरीक़े से रखने की बजाए इसका
अड्वर्टाइज़्मेंट हाइवे ही नही शरों में भी होना चाहिए था…!
ये सोचते सोचते मेरी उत्सुकता उन दोनो में जागने लगी.., जहाँ मर्द के दूसरे हाथ में एक बॉटल थी.., वहीं औरत उसके साइड से उसकी कमर में हाथ डालकर उसके साथ सटे हुए चल रही थी…!
लॉन में कहीं कहीं बस लॅंप पोस्ट जैसे जल रहे थे जिनके पीले से प्रकाश से वहाँ इतनी रोशनी नही फैल पा रही थी कि वो यहाँ से कोई 70-80 मीटर की दूरी पर साफ साफ दिखाई पड़ जाए…!
उस कपल में मेरी उत्सुकता इतनी बढ़ गयी कि अब मे उन्हें पास जाकर देखना चाहता था.., क्योंकि कहीं ना कहीं ऐसे लोग समाज की नज़रों
से बचकर ऐसी जगहों को अपनी ऐयाशियो का अड्डा बनाते हैं..,
और इस तरह के ऐयाश लोग होते भी दोहरे चरित्र वाले ही हैं.., वो कहावत है ना “हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और”.., समाज में अपने इमेज बनाकर भी रखते हैं और पर्दे के पीछे सभी ग़लत तरीक़े के गैर क़ानूनी कारोबार भी चलाते हैं….!
उसपर भी तुर्रा ये कि मे ठहरा थोड़ा टेढ़े किस्म का जासूस टाइप नेचर का आदमी तो लाज़िमी था ऐसे लोगों पर शक़ करना मेरे लिए आम बात है…!
अब सवाल ये था कि इन तक पहुँचा कैसे जाए.., इस लॉज से डाइरेक्ट कोई दवाजा पीछे की तरफ जाते हुए लगता नही.., और मान लो हो भी तो कोई उधर ऐसे ही जाने भी नही देगा…!
तो फिर क्या किया जाए….और कैसे उन तक पहुँचा जाए…?
मेने खिड़की से अपना सिर बाहर निकाल कर झाँका.., कि तभी मेरी नज़र पीछे की दीवार पर लगे गटर पाइप पर पड़ी.., विंडो का स्लाइडिंग ग्लास का आधा भाग भी इतना चौड़ा तो था की उससे मे आराम से उधर निकल सकता हूँ…!
उसे देखते ही मेरे होठ स्वतः ही गोल हो गये और एक सीटी जैसी आवाज़ मेरी साँस के साथ मेरे मूह से निकल पड़ी…!
मेने इस समय अपना नाइट सूट पहना हुआ था.., एक नज़र अपने उपर डालकर मेने रूम की लाइट ऑफ की.., चुपके से विंडो के ग्लास को पूरा स्लाइड किया..,
पीछे की तरफ विंडो के नीचे झाँक कर देखा तो पाया कि कमरे के फ्लोर के लेवल पर करीब दो इंच बाहर निकली हुई किनारी सी है.., मेरा काम बन गया…!
मे चुपके से विंडो पार करके अपने पैर उस किनारी पर टिकाए.., बिना लॉक किए ग्लास पुर्वत किया.., परदा खिसकाया और एक मिनिट में ही किसी बंदर की तरह पाइप के ज़रिए उस लॉन की मखमली घास पर खड़ा था…!
लॉन काफ़ी लंबा लंबा चला गया था.., बीच बीच में काई तरह के उँचे पेड़ भी थे.., मे उन पेड़ों और क्यारियों की आड़ लेता हुआ पूल तक जा पहुँचा..,
अब वो दोनो मुझसे बमुश्किल कुच्छ कदमों के फ़ासले पर ही थे जो इस समय पूल के किनारे पड़ी लोंग चेर पर एक दूसरे में गूँथे हुए शराब
की चुस्कियों के साथ साथ जवानी का स्वाद भी लेते जा रहे थे…!
मेने अपने लिए दो मयूर पंखियों की झाड़ियों के बीच की जगह चुनी जहाँ से मे उन्हें बड़े आराम से बिना उनकी नज़र में आए देख सकता था…!
वो दोनो ही मेरी तरफ पैर करके लेटे हुए थे.., कुच्छ देर बाद वो दोनो वहाँ से उठकर पूल के किनारे आगये.., उनकी चाल बता रही थी कि
इस समय दोनो ही काफ़ी नशे में हैं…!
मर्द के हाथ में अभी भी एक शराब से भरा हुआ ग्लास था.., जबकि औरत उसे संभाले हुए पूल तक लाई.., थी वो भी नशे में लेकिन मर्द की तुलना में कम…!
मर्द के गोरे लाल चेहरे पर काली घनी दाढ़ी, सलीके से सेट की हुई.., लंबी लच्चेदार मुन्छे.., पहली नज़र में ही वो किसी रईस राजपूत जैसा लग रहा था..,
औरत शक्ल से तो सुंदर ही दिख रही थी.., गोल चेहरा गोरा चाँद सा मुखड़ा, कजरारी आँखें, लंबी सुराई दार गर्दन.., लंबे घने काले बाल,
वाकी का घुटने तक का उसका बदन एक गाउन में क़ैद था…!
पूल के किनारे आकर उस औरत ने उस मर्द के गाउन की डोरी खींच दी.., सररर.. से उसका गाउन ज़मीन पर जा गिरा.., अब उस मर्द का संपूर्ण नंगा बदन मेरी आँखों के सामने था..,
उसकी बनावट और शरीर की अवस्था देख कर कोई भी ये अनुमान लगा सकता था कि मर्द की उम्र 50-52 के आस पास की तो होगी.., छाती और पेट पर काले सफेद मिक्स घने बाल, पेट ज्यदा तो नही लेकिन हल्का सा बाहर ज़रूर लटका हुआ था…!
कुच्छ देर उस औरत ने मर्द के अधखड़े लंड को अपने हाथ से सहलाया.., लेकिन फिर भी उसपर कोई खास असर नही हुआ तो उसने अपने गाउन की डोरी भी खींच दी..,
सर्र्र्र्र्र्ररर… से उसका गाउन भी उसके कदम चूमने लगा.., लेकिन गाउन के अंदर से जो हुश्न मेरी आँखों के सामने उजागर हुआ उसे देखकर एक पल को मेरी साँसें थम सी गयी और मेरा लॉडा अपने आप खड़ा हो गया….!!!!
सविता देवी ने अपने दोनो हाथ उसके हाथों के उपर रख दिए लेकिन उन्हें वहाँ से हटाने की कोई कोशिश नही की…!
ललित ने उनकी चुचियों को मींजते हुए अपना लंड और अंदर को दबा दिया.., जो कि गान्ड से रगड़ते हुए उनकी गीली चूत की फांकों से जा टकराया…!
सविता देवी की हवस फिर एक बार भड़कने लगी.., उन्होने पलटकर उसके होठों पर अपने तपते प्यासे होठ रख दिए..,
ललित ने उनके कंधों पर दबाब देकर बैठने का इशारा किया.., उन्हें भी अपनी बहू को लंड चूस्ते देख बड़ा मज़ा आया था.., सो अपने पंजों पर बैठकर वो उसका 6” लंबा मामूली सा लंड अपनी उंगलियों में लेकर उसे सहलाने लगी…!
वो ये देख कर आश्चर्य चकित रह गयी कि ललित का लंड उनका हाथ लगते ही अपना आकार बढ़ाने लगा है.., देखते ही देखते वो एक इंच से भी और ज़्यादा लंबा और खूब मोटा हो गया जो अब उनकी मुट्ठी में भी ठीक से नही समा पा रहा था…!
उसे देखकर अपने अंदर की सारी शंकाओं को निकाल फेंक उन्होने उसे अपने मूह में ले लिया और चपर शॅपर करके खूब मन लगा कर उसे चूसने लगी…!
ललित भी उनके सिर पर हाथ रखकर अपनी कमर को आगे पीछे करके उनके मूह को एक तरह से चोदने ही लगा..,
सविता देवी की चूत फिर एक बार पनियाने लगी और वो उसे अपने एक हाथ से सहलाते हुए दूसरे हाथ से ललित के टटटे सहला कर उसके लंड को चूसने में मस्त हो गयी…!
उधर बाहर मंजरी मेरे लंड के उपर बैठ चुकी थी.., जैसे तैसे पूरा लंड अपनी चूत में लेकर वो धीरे धीरे उसके उपर उठने बैठने लगी..,
अपनी चुचियों को अपने ही हाथों से मींजते हुए उसकी लंड पर उठने बैठने की गति धीरे-धीरे बढ़ाने लगी..,
इधर झोंपड़ी के अंदर अब ललित (संजू) ने मंजरी की सास को घोड़ी बना दिया और पीछे से अपना सख़्त दह्क्ता हुआ लंड उनकी गीली चूत में बड़ी बेदर्दी के साथ पेल दिया…!
बेचारी मुद्दतो के बाद इतना सुलेमानी लंड ले रही थी.., आधे लंड में ही उनके मूह से घुटि घुटि सी चीख निकल गयी.., जो मेरे कानों में भी पड़ गयी..,
लेकिन मंजरी अपनी चुदाई में लीन हो चुकी थी सो उसने उस तरफ कोई ध्यान नही दिया…!
दूसरे धक्के में ही ललित का समुचा लंड उनकी संकरी चूत में समा चुका था.., और अब वो पीछे से धीरे धीरे धक्के लगा रहा था…!
बाहर खुले आसमान के नीचे बहू और झोपडे के अंदर उसकी सास दोनो ही एक साथ दो मतवाले लंड की सवारी करके खुशी से झूमती हुई
चुदाई का लुफ्त उठाती रही.., और अंत में दोनो ही लगभग एक साथ अपनी अपनी चुतो का ढक्कन खोल बैठी…!
उस रात मंजरी तो एक बार और चुदने के बाद अपने पति और बच्चे के पास जाकर सो गयी.., लेकिन सविता देवी दसकों से प्यासी थी…,
सो जी भर कर उन्होने रात भर अपनी चूत की प्यास ललित (संजू) के नये कोरे करार लंड से बुझवाई…!!!
दूसरे दिन सुबह सुबह ही हम दोनो फ्रेश होकर गुड के साथ दो-दो ग्लास ताजी ताजी छाछ पीकर वहाँ से निकल पड़े अपनी मंज़िल की तरफ जहाँ पता नही हमें किन किन मूषिबतों से जूझना था…!
लेकिन संजू के हर समय हमारे साथ होने की वजह से मुझे अब कोई ज़्यादा चिंता नही थी.., अब मे हर मुशिबत से निपटने के लिए अपने आपको पूरी तरह से सक्षम महसूस कर रहा था…!!!
चंबल का ब्रिज क्रॉस करते ही ललित बोला – वकील भैया आपके साइड में एक कच्चा रेतीला रास्ता होगा.., गाड़ी उसी रास्ते पर ले लेना…!
मेने एक नज़र ललित के भावशून्य चेहरे पर डाली.., मे समझ चुका था कि अब संजू ने पूरी तरह ललित के शरीर को अपने कब्ज़े में लेकर कमॅंड अपने हाथ में संभाल ली है…!
ये एक तरह से ज़रूरी भी था.., जितना इस इलाक़े के बारे में संजू को जानकारी थी उतनी मुझे नही…, अभी वो रास्ता आया नही था, मेने
उससे पुछा – पहले क्या करना चाहते हो..?
संजू – सबसे पहले मेरे शरीर का दाह संस्कार करना होगा वरना कीड़े-मकोडे उसे वैसे ही नष्ट कर देंगे.., और मेरी आत्मा पर हमेशा एक बोझ सा बना रहेगा…!
दूसरा जब तक मेरे शरीर को सदगति नही मिल जाती.., प्रेतलोक की शक्तियाँ मुझे हाँसिल नही हो पाएँगी.., और मे हमेशा आधी अधूरी शक्तियों के साथ इधर से उधर भटकता रहूँगा…!
एक बार मुझे सदगति दिला दो.., फिर खेलते हैं खुला खेल फ़ारुक्खाबादी इन हरामियो के साथ.., मे जब तक इनका समूल नाश नही कर देता तब तक मुझे चैन नही मिलेगा…!
मे – लेकिन मेरे भाई.., मृत शरीर को ढकने के लिए कम से कम एक कॅफन तो चाहिए.., ऐसा करते हैं.., पहले कस्बे में जाकर कुच्छ ज़रूरत का समान ले आते हैं.., फिर लौट कर पूरे विधि विधान से तुम्हारे शरीर का दाह संस्कार करना पड़ेगा…!
संजू ने इस पर कुच्छ नही कहा तो मेने अपनी गाड़ी सीधे कस्बे के लिए दौड़ा दी.., अब वो आँखें बंद किए शांत गाड़ी की सीट से टेक लागये बैठा था…!
अभी संजू ललित के उपर है या नही ये चेक करने के लिए मेने उससे पुछा – क्या तुम अपनी मौत का बदला उन लोगों से लेना चाहते हो संजू..?
मेरी बात सुनकर ललित ने झटके से अपनी आँखें खोल दी, मेरी तरफ अपनी लाल-लाल आँखों से देखते हुए बोला – मुझे अपने मरने का कोई गम नही है भैया…!
उसका बदला तो मे युसुफ को मारकर ले चुका हूँ.., लेकिन प्रिया मेरी जान उन दरिंदों की क़ैद में है.., उसे मे किसी भी सूरत में वहाँ नही
छोड़ सकता वरना वो हराम के बीज ना जाने क्या करेंगे उसके साथ…!
अगर उन्होने उसे भी किसी के हाथों बेच दिया जैसा कि उनका एक धंधा विमन ट्रीफिक्किंग का भी है तो मे अपने आपको कभी माफ़ नही
कर पाउन्गा…!
और अगर उसे वहाँ से निकालना है तो उनसे भिड़े बिना निकालना नामुमकिन है.., अगर आप मेरा साथ नही देना चाहते तो कोई बात नही.., मे अकेला ही उसे वहाँ से निकालने की कोशिश करूँगा..!
मे – ये तुम कैसी बात कर रहे हो मेरे भाई.., हमारे उपर तुमने इतने एहसान किए हैं कि उनके सामने मे अपने आपको बौना महसूस करने लगा हूँ…!
तुमने मेरे घर की इज़्ज़त के लिए अपनी जान न्यौच्छावर करदी, तो क्या मे तुम्हारे लिए इतना भी नही कर सकता…?
संजू – ये कहकर आपने मुझे पराया कर दिया भैया.., इतना कहते हुए उसका गला भर आया और ललित की उन शोले बरसाती आँखों से दो
बूँद पानी की अपना किनारा छोड़ कर नीचे गिर पड़ी…!
मेने कभी अपने आपको इस घर से अलग नही समझा लेकिन आज आपने अपने घर की इज़्ज़त का हवाला देकर मुझे पराया कर दिया, रूचि
को मे अपनी सग़ी भांजी से भी बढ़कर मानता था.., उसकी अस्मत बचना मेने अपना फ़र्ज़ समझा…!
मेने फ़ौरन उसका कंधा दबाते हुए कहा – ऐसा मत बोल मेरे भाई मुझे माफ़ कर दे यार.., पता नही कैसे ये शब्द मेरे मूह से निकल गये.., जिनपर अब मुझे खुद भी अफ़सोस हो रहा है…!
संजू मेरे गले से लगकर किसी बच्चे की तरह सूबकते हुए बोला.., पता नही वो कॉन सा पल था जब वो हरामजादि वहीदा फिर एक बार मेरे
सामने आगयि.., मेने आप लोगों के प्यार को ठुकरा दिया और उसके सुनहरे जाल में फँस गया…!
मेने एक हाथ से उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – जो होना होता है वो होकर ही रहता है मेरे भाई.., अब अफ़सोस करके हम अपने आप को दोषी मानकर बस दुखी ही कर सकते हैं..,
एश्वर ने चाहा तो तुम्हें जल्दी ही इस योनि से मुक्ति मिल जाएगी…!
संजू मेरे से अलग होते हुए बोला – अब ईश्वर से मेरी एक ही विनती है.., अगर वो मुझे मेरे किसी भी नेक काम जो मेने अपनी जिंदगी में किया हो उसका फल देना चाहें तो मे फिरसे अपने इसी परिवार में जन्म लेकर आप लोगों के बीच आना चाहता हूँ…!
अपने इस जीवन की ग़लतियों की भूल सुधार कर एक अच्छे आदमी की तरह अपना नया जीवन जीना चाहता हूँ…!
मे – ईश्वर बड़ा न्यायकारी है.., जीवात्मा की मुराद पूरी अवश्य होती है, बस उसके लिए हमें अच्छे नेक काम करते रहना होता है…, वो तुम्हारी ये इक्च्छा भी आवश्या पूरी करेंगे..!
हम सब भी तुम्हें फिरसे अपने परिवार में देखना चाहते हैं मेरे दोस्त…!
संजू से बात करते करते मुझे बड़ा सुकून सा मिला.., समय का पता ही नही चला और हम कस्बे में दाखिल भी हो गये…!
ललित अब सामान्य हो चुका था.., हम दोनो ने पेट भरकर खाना खाया.., फिर संजू के दाह संस्कार में लगने वाली सभी ज़रूरत की चीज़ें हमने खरीदी और निकल लिए उसके बताए हुए रास्ते पर…!!!
संजू की निशानदेही पर उसी खंडहर नुमा मकान के एक कोने में पड़े कचरे के ढेर से हमने उसकी डेड बॉडी को हासिल कर लिया…!
घटना को कई दिन हो चुके थे.., उसकी बॉडी से बदबू उठने लगी थी.., गंदगी के ढेर में लाश दबी रहने के कारण उसमें कीड़े पड़ना भी शुरू हो गये थे…!
मेने और ललित ने बदबू से बचने के लिए अपने अपने मूह पर कपड़ा भी बाँध लिए था.., लेकिन फिर भी काफ़ी देर तक उसमें से निकलने
वाली बदबू हमें परेशान करती रही…!
लेकिन जल्दी ही हम उसके आदि हो गये.., इस दौरान ललित के चेहरे पर रह रह कर अलग अलग तरह के भाव आते रहे…, कभी वो संजू
वाली अवस्था में आकर अपने शरीर की इस तरह की दुर्गति देखकर दुखी होने लगता…!
तो दूसरे पल सामान्य स्थिति में आकर काम में मेरी मदद करने लगता…!
ये अच्छा था कि इस रास्ते का वो लोग कभी कभार ही स्तेमाल करते थे इसलिए कोई अन्य बाधा हमारे काम में रुकावट पैदा नही कर पाई…!
जैसे तैसे संजू की डेड बॉडी को नदी के किनारे तक पहुचाया.., चंबल के स्वच्छ पानी से उसे स्नान कराया.., फिर वाकायदा एक अर्थी बनाकर
उसका विधि विधान से चिता सजाकर हमने संजू की मृत देह को आग के हवाले कर दिया…!
आग जलती देख उधर को कोई आ ना धमके उसके लिए हमने छिपने के लिए दर्रों की शरण ले ली…!
हम वहाँ तब तक छिपे बैठे संजू की चीता को देखते रहे जबतक उसकी चीता पूरी तरह शांत होकर ठंडी ना पड़ गयी…!
इस काम को अंजाम देते देते अंधेरा घिरने लगा था.., इस बीच संजू का हमारे बीच होने को कोई आभास भी नही हुआ.., ललित एक दम
सामान्य ही रहा..!
ज़्यादा अंधेरा घिरने से पहले ही हम उसकी चिता के करीब गये.., राख अभी भी गरम ही थी..,
लकड़ियों की मदद से उसकी चिता की राख को कुरेद कुरेद कर हमने यथा संभव उसकी सारी अस्थियों को चुनकर एक कलश में एकत्रित कर लिया…!
एक लाल कपड़े से अच्छी तरह उसका मूह बाँध कर हम चुके ही थे कि तभी नदी के स्वच्छ नीले पानी की सतह पर एक फॅक्क्क सफेद धुएँ की चादर जैसी फैल गयी..,
हमारे देखते देखते वो धुएँ की सफेद चादर चादर हवा में तैरती हुई एक अजीबो ग़रीब आकृति का रूप लेते हुए हमारी तरफ आने लगी…!
ललित अभी बच्चा ही था.., वो उसे देखकर डर के मारे काँपने लगा, और उसने मेरी कौली भर ली..!
भय युक्त उत्तेजना का मिला जुला आभास मुझे भी अपने अंदर हो रहा था.., लेकिन फिर भी बड़े होने के नाते मेने ललित को अपने से सटाते
हुए उसे हौसला बनाए रखने की गरज से कहा…!
हमें डरने की ज़रूरत नही है ललित.., ये अपना संजू ही है.., हौसला रख इससे हमें कोई हानि नही होगी…!
अबतक वो विचित्र आकृति जो लग तो किसी मानवकृति की तरह ही थी.., लेकिन उसका पूरे बदन का हर हिस्सा हवा में इधर से उधर लहरा रहा था…, वो अब हमारे करीब नदी के किनारे तक आ चुकी थी…!
अचानक उस आकृति के मूह से एक विचित्र तरह की आवाज़ निकली….,
धन्यवाद वकील भैया.., आपने मेरे शरीर को विधि पूर्वक चिता के हवाले करके मेरे उपर बहुत बड़ा उपकार किया है.., अब में अपनी प्रेतलोक
की दुनिया में जा रहा हूँ…!
वहाँ जाकर उनकी धर्म संसद में अपनी बात रखूँगा.., अगर मेरी बात जायज़ हुई तो मुझे प्रेत यौनी की सारी शक्तियाँ प्राप्त हो जायेंगी जिनका
मे जैसे चाहूं स्तेमाल कर पाउन्गा…!
अतः अब कुच्छ समय के लिए मे आप लोगों से विदा ले रहा हूँ.., हो सका तो जल्दी ही आपके पास लौटूँगा…, इतना कहकर क्षणभर में ही वो आकृति वातावरण में विलीन हो गयी…!
संजू के वहाँ से विलीन होते ही हम दोनो भी उसके अस्थि कलश को लेकर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गये…!
ये तो तय था कि अब कुच्छ समय तक संजू की आत्मा हमारे साथ रहने वाली नही थी, उसके बिना हम एकदम दिशाहीन थे, घर लौटने का
मतलब था संजू की आत्मा को एक तरह से ठेस पहुँचाना…!
वो पहले ही बोल चुका था कि जबतक अपनी प्रिया को उन बदमाशों के चंगुल से निकाल नही लेता तबतक उसे चैन नही मिलेगा…!
संजू के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार करने के बाद मे ललित को लेकर कस्बे में लौट आया.., अब जब यहीं रुकना है तो रात गुजारने के लिए हमें किसी अच्छी सी जगह की तलाश करनी थी..,
लेकिन ये कस्बा ज्यदा डेवेलप्ड नही था इससे एक बड़ा गाओं ही कह सकते थे, जाहिर है यहाँ किसी होटेल या फिर किसी अच्छे से लॉज की संभावना कम ही नज़र आ रही थी…!
हम दोनो एक चाइ वाले की तपरी पर बैठकर चाइ पी रहे थे, समय लगभग 7:30 या 8 का ही था.., चाइ पीते पीते हमने उस चाइ वाले से आज रात ठहरने की कोई उचित व्यवस्था मिल सके इस विषय पर चर्चा की…!
उसने हमें भिंड की तरफ जाने वाले हाइवे पर यहाँ से कोई 15किमी आगे एक होटेल बताया जिसमें अच्छे खाने पीने की व्यवस्था के साथ साथ
रहने का भी अच्छा इंतेजाम मिल सकता है…!
चाइ पीकर हम उसी हाइवे पर आगे बढ़ गये और कोई आधे घंटा के बाद हम उस होटेल के रिसेप्षन पर थे…!
होटेल ज़्यादा अच्छा तो नही था लेकिन रात गुजारने लायक यहाँ सारी व्यवस्था मौजूद थी…!
ठहरने की व्यवस्था मेन रेस्टोरेंट से हटकर सेपरेट्ली साइड में थी.., हमने रूम बुक करके गाड़ी की डिकी से अपना बॅग लिया जिसमें दो-चार रोज लायक कपड़े और भी ज़रूरत की चीज़ें थी जिन्हें मे टूरिंग के समय साथ रखता ही हूँ…!
खाना हमने रूम में ही मंगवा लिया.., कोई 9-9:30 तक खाना ख़तम करके मे बाहर सामने बने छोटे से लॉन में टहलने चला गया..,
करीब आधे घंटे बाद जब में रूम में वापस पहुँचा तब तक ललित गहरी नींद में सो चुका था.., बेचारे के शरीर को ना जाने कोन्से वक़्त संजू की आत्मा भी आकर स्तेमाल कर लेती थी…!
जिन्हें ये सब झेलने का एक्सपीरियेन्स है वो ये समझ सकते हैं कि जब कोई प्रेत-आत्मा किसी के शरीर पर कब्जा कर लेती है.., उसके बाद जब वो अपनी सामान्य स्थिति में वापस आता है, तब उसके मन-मस्तिस्क को कितनी थकावट होती है ये तो वो ही महसूस कर सकता है जिसने झेला हो…!
एसी रूम में वो बिना कंबल ओढ़े ही सो गया था.., लेकिन ठंड महसूस करते ही उसके घुटने पेट की तरफ मूड गये.., मेने कंबल लेकर उसे
गले तक ऊढा दिया…!
ये लॉज ज़्यादा बड़ा नही था.., बस तीन मंज़िल तक रूम थे, हमारा रूम सबसे उपर था.., मेने रूम में आने के बाद से पहली बार पीछे की
साइड की विंडो का करटन खिसका कर होटेल के रूम के पीछे के हिस्से पर नज़र डाली…!
रोड से देखने पर होटेल के पीछे बस घने और उँचे पेड़ों के अलावा और कुच्छ नही दिखता था, ऐसा लगता था जैसे यहाँ मात्र एक बगीचा जैसा ही होना चाहिए…!
लेकिन जब मेने परदा खिसका कर पीछे के पोर्षन को देखा…, साला ये तो कोयले की खदान में हीरे मिलने जैसा था.., क्या शानदार लॉन
जिसके चारों तरफ एक 10-12 फीट हाइट की बाउंड्री के अंदर बड़े बड़े घने उँचे पेड़…!
लॉन में जगह जगह तरह तरह के फूलों की क्यारियाँ.., मयूर पंखी की कटिंग करके बनाई गयी तरह तरह की आकृतियाँ.., एक छोटा लेकिन सॉफ नीले पानी से भरा स्विम्मिंग पूल भी…!
पूल की सीढ़ियों के बाद से संगेमरमर का फर्श जो कि लास्ट में बनी एक छोटी लेकिन बहुत ही शानदार कॉटेज तक चला गया था…!
मे कौतूहल बस इसे देखते हुए मन ही मन विचार करने लगा.., साला ये इतनी अच्छी जगह जिसे एक तरह से आम लोगों की नज़रों से छिपाने की कोशिश की गयी है.., आख़िर है किसकी और किस पर्पस से रखी गयी है…?
अभी मे अपने अंदर से इस सवाल के जबाब को खोजने की कोशिश कर ही रहा था कि कॉटेज की गेलरी से आती हुई दो मानव आकृतियाँ वहाँ की लो लाइट में लॉन की तरफ आती दिखाई दी…!
वहाँ इतनी तेज लाइट नही थी.., इसलिए वो कॉन और कैसे लोग हैं ये नही देख पा रहा था.., हां उनमें से एक औरत थी तो दूसरा आदमी..,
दोनो ने आगे सिंगल डोरी से बाँधने वाले घुटनों तक के गाउन पहन रखे थे.., दोनो के एक-एक हाथ में ग्लास लगा हुया था.., जिनमें मेह्न्गि शराब के अलावा और कुच्छ तो होने की संभावना ही नही थी…!
वाह साले जंगल में मंगल कर रहे हैं.., लेकिन ये हैं कॉन..? जाहिर सी बात है इस एकांत सी जगह पर ये मियाँ बीवी तो होंगे नही जो अपना
घर छोड़ कर यहाँ मस्ती करने आए हों…?
दूसरा ये इतना अच्छा कॉटेज भी लगता है पब्लिक यूज़ के लिए नही होगी वरना इसे पीछे गुप्त तरीक़े से रखने की बजाए इसका
अड्वर्टाइज़्मेंट हाइवे ही नही शरों में भी होना चाहिए था…!
ये सोचते सोचते मेरी उत्सुकता उन दोनो में जागने लगी.., जहाँ मर्द के दूसरे हाथ में एक बॉटल थी.., वहीं औरत उसके साइड से उसकी कमर में हाथ डालकर उसके साथ सटे हुए चल रही थी…!
लॉन में कहीं कहीं बस लॅंप पोस्ट जैसे जल रहे थे जिनके पीले से प्रकाश से वहाँ इतनी रोशनी नही फैल पा रही थी कि वो यहाँ से कोई 70-80 मीटर की दूरी पर साफ साफ दिखाई पड़ जाए…!
उस कपल में मेरी उत्सुकता इतनी बढ़ गयी कि अब मे उन्हें पास जाकर देखना चाहता था.., क्योंकि कहीं ना कहीं ऐसे लोग समाज की नज़रों
से बचकर ऐसी जगहों को अपनी ऐयाशियो का अड्डा बनाते हैं..,
और इस तरह के ऐयाश लोग होते भी दोहरे चरित्र वाले ही हैं.., वो कहावत है ना “हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और”.., समाज में अपने इमेज बनाकर भी रखते हैं और पर्दे के पीछे सभी ग़लत तरीक़े के गैर क़ानूनी कारोबार भी चलाते हैं….!
उसपर भी तुर्रा ये कि मे ठहरा थोड़ा टेढ़े किस्म का जासूस टाइप नेचर का आदमी तो लाज़िमी था ऐसे लोगों पर शक़ करना मेरे लिए आम बात है…!
अब सवाल ये था कि इन तक पहुँचा कैसे जाए.., इस लॉज से डाइरेक्ट कोई दवाजा पीछे की तरफ जाते हुए लगता नही.., और मान लो हो भी तो कोई उधर ऐसे ही जाने भी नही देगा…!
तो फिर क्या किया जाए….और कैसे उन तक पहुँचा जाए…?
मेने खिड़की से अपना सिर बाहर निकाल कर झाँका.., कि तभी मेरी नज़र पीछे की दीवार पर लगे गटर पाइप पर पड़ी.., विंडो का स्लाइडिंग ग्लास का आधा भाग भी इतना चौड़ा तो था की उससे मे आराम से उधर निकल सकता हूँ…!
उसे देखते ही मेरे होठ स्वतः ही गोल हो गये और एक सीटी जैसी आवाज़ मेरी साँस के साथ मेरे मूह से निकल पड़ी…!
मेने इस समय अपना नाइट सूट पहना हुआ था.., एक नज़र अपने उपर डालकर मेने रूम की लाइट ऑफ की.., चुपके से विंडो के ग्लास को पूरा स्लाइड किया..,
पीछे की तरफ विंडो के नीचे झाँक कर देखा तो पाया कि कमरे के फ्लोर के लेवल पर करीब दो इंच बाहर निकली हुई किनारी सी है.., मेरा काम बन गया…!
मे चुपके से विंडो पार करके अपने पैर उस किनारी पर टिकाए.., बिना लॉक किए ग्लास पुर्वत किया.., परदा खिसकाया और एक मिनिट में ही किसी बंदर की तरह पाइप के ज़रिए उस लॉन की मखमली घास पर खड़ा था…!
लॉन काफ़ी लंबा लंबा चला गया था.., बीच बीच में काई तरह के उँचे पेड़ भी थे.., मे उन पेड़ों और क्यारियों की आड़ लेता हुआ पूल तक जा पहुँचा..,
अब वो दोनो मुझसे बमुश्किल कुच्छ कदमों के फ़ासले पर ही थे जो इस समय पूल के किनारे पड़ी लोंग चेर पर एक दूसरे में गूँथे हुए शराब
की चुस्कियों के साथ साथ जवानी का स्वाद भी लेते जा रहे थे…!
मेने अपने लिए दो मयूर पंखियों की झाड़ियों के बीच की जगह चुनी जहाँ से मे उन्हें बड़े आराम से बिना उनकी नज़र में आए देख सकता था…!
वो दोनो ही मेरी तरफ पैर करके लेटे हुए थे.., कुच्छ देर बाद वो दोनो वहाँ से उठकर पूल के किनारे आगये.., उनकी चाल बता रही थी कि
इस समय दोनो ही काफ़ी नशे में हैं…!
मर्द के हाथ में अभी भी एक शराब से भरा हुआ ग्लास था.., जबकि औरत उसे संभाले हुए पूल तक लाई.., थी वो भी नशे में लेकिन मर्द की तुलना में कम…!
मर्द के गोरे लाल चेहरे पर काली घनी दाढ़ी, सलीके से सेट की हुई.., लंबी लच्चेदार मुन्छे.., पहली नज़र में ही वो किसी रईस राजपूत जैसा लग रहा था..,
औरत शक्ल से तो सुंदर ही दिख रही थी.., गोल चेहरा गोरा चाँद सा मुखड़ा, कजरारी आँखें, लंबी सुराई दार गर्दन.., लंबे घने काले बाल,
वाकी का घुटने तक का उसका बदन एक गाउन में क़ैद था…!
पूल के किनारे आकर उस औरत ने उस मर्द के गाउन की डोरी खींच दी.., सररर.. से उसका गाउन ज़मीन पर जा गिरा.., अब उस मर्द का संपूर्ण नंगा बदन मेरी आँखों के सामने था..,
उसकी बनावट और शरीर की अवस्था देख कर कोई भी ये अनुमान लगा सकता था कि मर्द की उम्र 50-52 के आस पास की तो होगी.., छाती और पेट पर काले सफेद मिक्स घने बाल, पेट ज्यदा तो नही लेकिन हल्का सा बाहर ज़रूर लटका हुआ था…!
कुच्छ देर उस औरत ने मर्द के अधखड़े लंड को अपने हाथ से सहलाया.., लेकिन फिर भी उसपर कोई खास असर नही हुआ तो उसने अपने गाउन की डोरी भी खींच दी..,
सर्र्र्र्र्र्ररर… से उसका गाउन भी उसके कदम चूमने लगा.., लेकिन गाउन के अंदर से जो हुश्न मेरी आँखों के सामने उजागर हुआ उसे देखकर एक पल को मेरी साँसें थम सी गयी और मेरा लॉडा अपने आप खड़ा हो गया….!!!!