Update 09

फुफेरे भाइयों की प्रेमिका.

छुट्टियों के बाद मैं वापस कॉलेज आ गयी. हरीश बहुत दिन के बाद मिल रहा था.
बोला - मेरी जानू..मेरा लण्ड इतने दिन से भूका - प्यासा है.
मैं भी उसके लिए बेताब थी. पर हमें कोई सेफ जगह नहीं मिल रही थी. गार्डन में डर डर कर सेक्स एन्जॉय नहीं करना चाहते थे. तभी हरीश ने स्पोर्ट्स सेण्टर में एक खाली कमरा ढून्ढ कर निकाला. हरीश स्पोर्ट्स चैम्पियन था, इसलिए अलमारी से चुप चाप उस कमरे की चाभी लेना उसके लिये मुश्किल काम नहीं था. वहा कुछ पुराने खेल का सामान पड़ा था, पर धुल भी बहुत थी. हरीश खेल के प्रैक्टिस के वक्त अपने बैग मैं एक चादर भी ले कर आया. हरीश की शाम की खेलों की प्रैक्टिस ७ बजे ख़तम हुई और हम चुपचाप उस कमरे को खोलकर अंदर चले गये. उस दिन ७ बजे से लेकर ९ बजे तक हरीश ने मेरी चुदाई की. वो खुद ३ बार झडा ओर मैं ५ बार. रात को मैं बहुत थक गयी थी. हॉस्टल आकर सोने लगी. इतनी चुदाई के बाद भी मन खाली लग रहा था. कुछ अपूर्ण लग रहा था. हरीश से मेरी दोस्ती और प्यार २ सालों मैं बहुत गहरी हो गया. हम हमेशा स्पोर्ट्स सेण्टर के कमरे का इस्तेमाल करते. हरीश बहुत प्यार से , देर तक मुझे चोदता था. इन डेढ़ सालों मैं मेरी मुलाकात स्वप्निल और बंटी से नहीं हुई थी, पर उनकी याद जरूर आती थी. दूसरे साल फिर दिवाली की छुट्टियों में मैं घर मुंबई आयी. माँ और पापा ने बताया की उन्हें २ दिन के लिए उनके एक दोस्त की लड़की के शादी में दिल्ली जाना था. मैं अकेले रहने वाली थी. मुझे भी बुलाया था, पर इतने दिन हॉस्टल रहने के बाद मैं घर पर रहना चाहती थी, सो मैंने मना कर दिया. दूसरे दिन माँ -पापा जाने वाले थे, तभी बुआ का फ़ोन आया.. माँ ने बात करके मुझे दिया..बुआ तेरे से बात करना चाहती है..! मैं खुश हो गयी..बुआ ने पूछा - कॉलेज कैसे चल रहा, वगैरे वगैरे और बोली ठीक से रहना.

तभी बंटी ने बुआ से फ़ोन ले लिया, बोला - कैसे है तू कमीनी ?
मैंने भी कहा - अच्छी हूँ कमीने .. तू बता क्या गुल खिला रहा है .!
बंटी ने कहा - बस तेरा इंतजार कर रहा हूँ..कब मेरे से शादी करोगी..तेरे बिना अब किसी से गुल खिलIने का मन नहीं करता.
मैंने हंसकर कहा दिया - कभी नहीं , झूठा कही का !
ओर हम हंसी मजाक करने लगे. बंटी से बात करके मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.

दूसरे दिन सुबह माँ - पापा की फ्लाइट थी, वह दिल्ली चले गये. मैं आराम से सो रही थी. तभी दरवाजे की बेल बजी, मैंने दरवाजा खोला और मैं हैरान रह गयी. मैंने जोर से जाकर बंटी को कसकर गले लगा लिया. उसके पीछे स्वप्निल भी खड़ा था, उसने भी मुझे जोर से पकड़कर गले लगा लिया और मेरे गाल पर पप्पी ले ली. पड़ोसियों के डर से मैंने उन्हें जल्दी घर की अंदर ले लिया
- तुम कैसे आ गये कमीनो ! बंटी तूने तो कल मुझे कुछ बताया नहीं.

बंटी ने अंदर आते ही मुझे पकड़कर उठा लिया और मेरे ओंठ चूमने लगा - और कहा - कैसे नहीं आते पगली, एक साल से तुझे मिस कर रहे हम दोनों . कल जैसे फ़ोन पर मामी से पता चला की वो दोनों घर पर नहीं होंगे,और तू अकेली घर पर होगी हम दोनों तुरंत बहाना बना कर चुप चाप आ गये. इससे अच्छा सुनहरा मौका कहा मिलता जान. और उसने मुझे फिर से चूमना चालू कर दिया.
मैंने उनको कहा - रुको, पहले फ्रेश हो जाओ, नाहा लो, मैं तुम दोनों के लिए चाय - ब्रेकफास्ट बनाती हूँ.
स्वप्निल ने शरारती अंदाज मैं कहा - हमारी जान, फ्रेश तो हम हो ही जायेंगे, तेरी हात की चाय भी पी लेंगे, पर नहायेंगे हम तीनो एक साथ. .
मैंने हंस दिया - मुझे मालूम था की अब इनके आगे मेरी कुछ चलने वाली नहीं है. मैं चाय बनाने किचन चली गयी. मैंने नास्ते में कुछ ब्रेड- ऑम्लेट भी बना डाले.

जब मैं किचन से चाय और नाश्ता लेकर बहार ड्राइंग रूम में आयी तो देखा की स्वप्निल और बंटी दोनों फ्रेश होकर नंगे बैठे हैं.
मैंने कहा - कमीनो, शर्म नहीं आती. बहन की सामने अभी से नंगे बैठे है, कुछ पहन लो, कोई आ जायेगा.
स्वप्निल ने कहा - नहीं जानू, ,अब तो २ दिन हम साथ साथ हैं, कोई भी कपडा नहीं पहनेगा और हम तीनो फुल टाइम नंगा रहेंगे.
बंटी ने कहा - कोनसी बहन, तू तो मामा की बेटी है. सबसे पहले तुझे चोदने का अधिकार बुआ का लड़के की हैसीयत से मुझे हैं.

हम तीनो हंसने लगे. स्वप्निल अब मेरे बिलकुल पास आ गया, उसने मेरी गर्दन पर पप्पी लेकर उसे चूसना शुरू किया और मेरी गाउन नीचे से उठाकर ऊपर कर के निकाल दी. मैंने गाउन के अंदर कुछ नहीं पहना था. मै भी उनके साथ पूरी नंगी हो गयी. स्वप्निल ने मुझे गोदी मैं खींचकर सोफे पर बिठा लिया ओर कहा हम तीनो एक ही कप से चाय पियेंगे और तुम मुझे चाय पिलाना. बंटी भी स्वप्निल के बगल में सोफे पर बैठ गया. मैं उन दोनो को बारी बारी से चाय पिलाती और, वह अपने गरम मुँह से मेरी निप्पल्स और बूब्स चूसते या मेरे ओंठों को चूस लेते. . इसके कारण मैं बहुत जल्दी गरम हो गयी और मेरी चुत भी गीली हो गयी. बंटी ने मेरे पैर उठाकर अपनी जंघा पर रख दिए. और वह मेरी चुत से खेलने लगा. स्वप्निल का बड़ा गोरा गुलाबी ७ इंच का कटा हुआ लण्ड मेरी गांड को नीचे से चुभ रहा था. ओर बंटी अपना ८ इंच का काला, मोटा केले जैसे आकार का मुलायम चमड़ी वाला लण्ड मेरे तलवों पर दबाकर रगड़ रहा था.स्वप्निल बहुत सुन्दर था, चिकना, बिना बालों वाला, ओर बंटी एकदम मरदाना , गांव का गबरू जवान. स्वप्निल मेरे दोनों चूचियों को चूस कर रसपान कर था, वही बंटी ने भी मेरी जांघें फैला दी ओर मेरी चुत पर अपने ओंठ रख दिये. वह प्यार से मेरी चुत को चाट रहा था.

बंटी ने कहा - सच संध्या , आज भी तेरी चुत की महक मेरे दिमाग में बस गयी है. इतनी सुन्दर, इतनी खुशबूदार चुत कही नहीं देखी.
स्वप्निल ने कहा - सच मैं जान, अब तो लगता है तू सिर्फ हमारे लिए बनी है.

ओर बंटी मेरे चुत का दाणा प्यार से जीभ फेर कर चाटने लगा. अपने दोनों ओंठ उसने मेरे दाणे पर रख दिए ओर किसी अंगूर की तरह उसको चूसने लगा. मैं अब छटपटा रही थी. पर वह दोनों मिलकर मुझे पकड़ कर मेरी चूचियों ओर चुत के दाणे को चूस रहे थे मैं सिसक रही थी..आह ....उम्..प्लीज...रुको.. . फिर मैंने जोर से बंटी का मुँह अपनी चुत पर रगड़ दिया -ओर आह.. आह.....मर गयी .. कर के पानी की धरा बहा दी. बंटी बड़े प्यार से मेरी चुत का रस पीने लगा. उसने चाट चाट कर पूरा शहद पी लिया. मै उनसे अलग हो गयी. .मुझे कुछ पल के लिए चैन की साँसे लेनी थी.

मैंने देखा स्वप्निल ओर बंटी दोनों के लण्ड..आसमान देख रहे थे..पुरे १८० deg तन कर खड़े थे ओर थोड़ा थोड़ा precum की बुँदे उनके लण्ड के टोपे से निचे टपक रही थी. वह दोनों उठे ओर बोले - चलो बाथरूम नहाने, ओर मुझे खींचकर ले गये. दोनों मुझे शावर के अंदर मेरे शरीर को मल-मलकर साबुन लगाने लगे. मैंने भी उन दोनों के लण्ड अपने दोनों हातों से पकड़ लिये ओर उनको साबुन लगाने लगी. तभी स्वप्निल ने मुझे पैर फैला कर शावर की दीवाल पर झुका दिया, ओर घोड़ी बना कर अपना मोटा लण्ड पीछे से मेरी चुत में एक धक्के में डाल दिया. मैं आह..कर की चिल्ला उठी..पर उसका पूरा लण्ड आसानी से मेरी चुत की अंदर तक चला गया था. स्वप्निल अब मुझे बड़े बड़े धक्के देकर पेल रहा था. मेरी चुत गीली होने की वजह से उसका लण्ड आसानी से पूरा अंदर तक फिसल रहा था . बंटी ने मेरा मुँह उसके तरफ खिंच लिया ओर मेरे ओंठ चूसने लगा. वह मेरे मुँह में जीभ डाल कर अंदर बहार करने लगा. करीब आधे घंटे चुदाई कर के स्वप्निल अब बहुत उत्तेजित हो गया था. मैंने भी अपनी चुत से उसके लण्ड को जकड लिया ओर मेरे चुत फिर से गरम होने लगी. मैं बंटी के ओंठों को जोर से चूस रही थी ओर आह....उह..कर के काट भी रही थी.

स्वप्निल भी जोर जोर से धक्के दे रहा था..आह ! संध्या कितनी कसी हुई चुत हैं, मेरा पाणी निकाल डालेगी.
मैंने भी कहा - हाँ कमीने , निकाल दे अपना पाणी, भीगा दे मेरी चुत को तेरे गरम पाणी से...आह...ओर मेरी चुत कस कर स्वप्निल के लण्ड से लिपट गयी ओर जोर से झड़ गयी.

मेरे पाणी से स्वप्निल का लण्ड गिला हो गया, पानी के चिकनाहट से स्वप्निल भी जोर से आह रानी..यह ले मेरा पानी..कह कर मेरी चुत के अंदर झटके मरने लगा. १०-१२ झटके लगाकर , स्वप्निल ने अपने गरम पानी से मेरी चुत अंदर तक भीगा दी. स्वप्निल ने धीरे से अपना मुरझाया लण्ड मेरी चुत से बहार निकाला.

मैं फिर से खड़ी होती, उसके पहले ही बंटी मेरे पीछे आया, उसने उसके काले लण्ड का मोटा टोपा मेरी चुत के द्वार पर रखा ओर एक जोरदार धक्का दे दिया.

मैं ..आह..क्या बंटी.. इतने जल्दी..मुझे कुछ टाइम देते. ऐसे तो मेरी चुत का भोसड़ा हो जायेगा .
बंटी का पूरा लण्ड सिर्र ररर रर कर के मेरे चुत मैं अंदर तक चला गया.
बंटी ने कहा - मेरी जान, ऐसे कैसे तेरी चुत का भोसड़ा होने दूंगा. यह तो अब मेरी जिंदगी है. बहुत संभाल कर रखूँगा इसको.

मुझे पता नहीं कैसे, पर मेरी चुत ने उसके लण्ड को पूरा जकड लिया. मेरी चुत के हर कोने मैं बंटी का लण्ड छू रहा था. बंटी ने पूरा लण्ड बहार निकाला ओर फिर से पूरा अंदर डाल दिया. मेरी चुत कसमसा गयी. मेरी चुत के ओंठोने बंटी के लण्ड को चूमना, चूसना शुरू कर दिया था ओर पक्का जकड लिया था. जब बंटी उसका पूरा लण्ड अंदर डाल कर फिर से बहार निकालता , मेरी चुत के ओंठ उसको लण्ड के सुपडे को जकड कर रखते, वो उसके लण्ड से जुदा नहीं होना चाहते. शरीर मैं अजीब हुरहुरी लगी थी. मेरी चुत गीली होकर फिर से..सिहर उठी. ..ओह्ह मा..........आ....करके मैं फिर से बंटी के लण्ड पर झड़ गयी. पर बंटी ने अपने धक्के चालू रखे..वह बड़ी प्यार से पूरा लण्ड बहार करता ओर फिर से मेरी चुत में अंदर तक डालता. मेरी चुत का पाणी निरंतर बह रहा था ओर मुझे उन्माद ओर परमानंद मिल रहा था. मेरी टांगे कांप रही थी, मैं अब खड़ी नहीं रह सकती थी. मै निचे गिरने लगी, तब स्वप्निल ने आगे से मुझे पकड़ लिया. ओर अपने नंगे बदन का सहारा दिया. मैंने अपने दोनों हात उसके गले मैं डाल दिये ओर उसको आगे से कस के पकड़ लिया. मेरे बूब्स अब उसके चिकनी छाती ओर पेट पर रगड़ रहे थे. पर बंटी का धक्के पर धक्के लगाना चालू था. उसकी गाडी रुक नहीं रही थी. मेरी चुत निरंतर पाणी बहा रही थी जो मेरे जांघों से बहकर घुटने तक आ गया था. बंटी के साथ मैं ४-५ बार झड़ गयी थी. अब मैंने उसके लण्ड को अपनी चुत से जोर से जकड लिया. उससे वह भी..आह..आह करके मेरी चुत के अंदर झटके मरने लगा. करीब ५ मिनट तक बंटी अपने गरम पाणी का फंवारा मेरी चुत मैं डालता रहा ओर मेरी चुत भी निरंतर उन्माद में अपने पाणी का अभिषेक उसके लण्ड पर करती रही.

कुछ देर बाद बंटी का लण्ड मेरे चुत से बहार निकला, मैं नीचे बैठ गयी. बंटी ओर स्वप्निल दोनों ने सहारा देकर मुझे बाथरूम से उठाया. उन्होंने मुझे टॉवल से सूखा लिया ओर मेरे कमरे के बिस्तर पर लिटा दिया. मैं बहुत थक चुकी थी. बंटी ओर स्वप्निल मेरे दोनों तरफ सो गये. वह भी थक गये थे. दोनो मुझे लगातार चुम रहे थे, पप्पी ले रहे थे, मेरे बालों पर हात फेर रहे थे. स्वप्निल ने मुझे अपनी तरफ खिंच लिया, मैं उसके बाँहों मैं अपना सर रखकर सोने लगी. . बंटी भी पीछे से आकर मुझे चिपक गया ओर सोने लगा . उसकी गरम सांसे मुझे अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थी.
बंटी ने कहा - देखो स्वप्निल भैया , चुदाई के बाद यह कितनी सुन्दर लग रही है. स्वप्निल ने मेरे गालों पर प्यार से चुम लिया. दोनों मेरे एक एक आंग को ध्यान से देख रहे थे ओर प्रशंसा कर रहे थे..
स्वप्निल - बंटी संध्या की निप्पल्स देखों. कितने गुलाबी है.
बंटी : हां भैय्या , जब ये उत्तेजित हो जाते हैं तब किसी रसीले अंगूर जैसे दिखते है. ओर ऊपर से संध्या क़े बड़े बड़े मम्मे - एकदम बड़े पके आम की आकर के है.
स्वप्निल: हा बंटी, गांव में तबेले में इसको ठीक से देख भी नहीं पाये थे. हम बहुत लकी है. इसके आम के आकार के मम्मे , मुँह मैं आम का स्वाद देते है. इसकी नाभि तो देख..कितनी मस्त है..एकदम किसी चुत की तरह चिकनी ओर गहरी लगती है.
बंटी: हाँ स्वप्निल भैया, शादी में इसने नाभि के नीचे साडी पहनी थी. ऐसे लग रहा था की इसकी नाभि को ही अपने मोठे लण्ड से चोद दू.
स्वप्निल : सब से अच्छी तो इसकी चुत हैं. चुदने के बाद एकदम लाल लाल टमाटर जैसे हो जाती है. देख कैसे कोई लाल मीठे रसीले फल की तरह लग रही है.
बंटी: रसीली तो सच मैं बहुत है इसकी चुत ! काश यह हमें हमेशा के लिये मिल जाये.

मैं चैन की नींद सो रही थी. मुझे एक अजीब ख़ुशी थी. मुझे एक कम्पलीट औरत की संतुष्टि की फीलिंग आ रही थी. खालीपन चला गया था. मेरे चेहरे पर आनंद ओर सुख की चमक थी.

बंटी संग परमानंद !

जब मेरी आँखें खुली तो देखा की मैं बंटी की बाँहों में सो रही थी. दिन के १२.३० या १.०० बजे का टाइम हो गया था. बंटी मुझे प्यार से निहार रहा था. उसकी आंखें चमक रही थी. मैंने मेरी नजरें शर्मा कर झुका दी और उसके छाती पर चेहरा रख कर छुपा लिया.
बंटी : उठ गयी मेरी जान.
मैं: हाँ, स्वप्निल कहा गया?
बंटी: वह हमारे लिए बहार से खाना लेने गया है . ( उस जमाने में आज की तरह स्विग्गी या होम डिलीवरी सिस्टम नहीं था.)
मैंने बंटी से लिपट कर पूछा - ऐसे क्या देख रहे हो ?
बंटी: तुझे देख रहा हूँ संध्या , तू मुझे पागल कर देती है.
मैंने देखा बंटी का काला लंड अब फिर से कड़क हो कर उफान भर रहा था. मैंने अपना हात उसके छाती से फेरकर नीचे की तरफ लेकर गयी और उसके लंड को सहलाने लगी. मैं उसके लंड के टोपे की मुलायम चमड़ी से खेलने लगी. कभी उसकी चमड़ी आगे खींचती, कभी पीछे. जब उसके लंड की चमड़ी पीछे को खींचती, उसके लंड का बड़ा गोलाकार सूपड़ा बहार आ जाता. मुझे ऐसे करने से बड़ा मजा आ रहा था. उसका काला लंड और सामने बड़ा सूपड़ा , कोई चॉक्लेट लोल्लिपोप की तरह लगता.
बंटी ने पूछा: हरीश कैसा है? अभी भी उससे मिलती हो ? प्यार करती हो?
मैं : हाँ वो अच्छा है..तू बता, तुझे तो गांव मैं बहुत सारी लड़किया मिल जाती होगी.
बंटी: हां मिलती है. पर किसी से दिल नहीं लगता. मुझे तो बस तुजसे प्यार हो गया है. पर तू किसी ओर से प्यार करती है.
मैं हक्काबक्का रह गयी. गांव के मर्द कितनी आसानी से दिल की बात कह देते है.
मैंने कहा: झूठा ..अगर ऐसे होता तो तुझे हरिया या स्वप्निल को मुझे चुदते देखकर बुरा लगता. तू सिर्फ सेक्स के लिए मुझे मिलता है. तुझे कोई प्यार नहीं है. बस सेक्स की वासना है.
बंटी: ने मेरा चेहरा पकड़ लिया और चूमने लगा. उसकी आँखों में दर्द था, प्यार था , पानी था. बंटी ने कहा : ऐसे नहीं है संध्या. शुरू में मुझे भी बुरा लगा था, पर जब देखा की तू खुश है, तेरी ख़ुशी देख कर मैं भी खुश हो जाता हूँ. तुझे अब तक समझा नहीं होगा,पर मैंने महसूस किया है - तू सब से ज्यादा सेक्स मेरे साथ एन्जॉय करती. क्यूंकि वो सिर्फ सेक्स नहीं पर प्यार है. मैं तुझे जबरदस्ती नहीं करूँगा. पर तुझे अपने-आप जब यह महसूस होगा तू भी मेरा कहना मान जायेगी.

मैं कुछ समज नहीं पा रही थी. मैं लगातार बंटी के लंड से खेल रही थी.जो अब मेरे हातों की स्पर्श से फनफना रहा था. मैं बंटी के लंड को छोड़कर बंटी से चिपक गयी, उसको कसकर आलिंगन दे दिया. बंटी अब मेरी पीठ पर से हात घुमाकर मेरी कमर के नीचे मेरे नितम्ब दबा रहा था. मैंने कहा - बंटी..मैं बहुत थक गयी हूँ. प्लीज अभी कुछ नहीं.
बंटी ने कहा .. हां रानी, मैं जानता हूँ, तुम कुछ मत करो , सिर्फ सोई रहो. मुझे आज तेरे शरीर का हर अंग , हर कोना , छूना है , चूमना है.

बंटी ने मुझे सर पर चूमना शुरू किया , धीरे से वह सर से निचे लगतार चुम रहा था, मेरी आँखें, नाक, गाल, कान, गला, ओंठ..सब. उसे कोई जल्दी नहीं थी. मैं चुपचाप आंखें बंद कर के उसको महसूस कर रही थी. मुझे बड़ा अच्छा लग रह था. ऐसे पहले कभी महसूस नहीं हुआ था. बंटी ने दोनों हातों से मेरे मम्मे ऊपर उठाए और प्यार से उन्हें चूमने लगा, चूसने लगा. मेरी चुत गीली हो रही थी. वह बहुत देर तक मेरे दोनों बूब्स एक दूसरे से चिपका के मसलता रहा, चूमता रहा, चूसता रहा. फिर वह नीचे मेरी नाभि की तरफ चला गया. पहले उसने मेरी नाभि को उँगलियों से सहलाया और एक ऊँगली मेरी नाभि के अंदर डाल कर उसकी गहराई नापी. फिर दोनों ओंठों को मेरे नाभि के आजु बाजु रखकर चूसने लगा और बीच बीच मैं उसकी जीभ नाभि के अंदर डालने लगा. मुझे बहुत गुदगुदी हो रही थी..और मैं उत्तेजित भी हो रही थी. उसने मेरी कमर, पेट और जांघें सब अपनी जीभ से चाटनी शुरू कर दी. मैं अब करहा रही थी. मैं इंतजार कर रही थी की वह जल्दी से मेरी चुत को चाटना शुरू करे , पर मेरी चुत छोड़कर वह सब जगह , चुत के आजु बाजू, चाट रहा था. मैं अपनी कमर उठाने लगी. ताकि वह मेरी चुत पर ध्यान दे. पर वह मेरी चुत को बिलकुल भाव नहीं दे रहा था.
मैंने तड़पकर कहा - बंटी मेरी चुत चाटो.
बंटी: नहीं रानी, तू थक गयी है. मैंने वादा किया तुझे, कुछ नहीं करूँगा
मैं: बंटी प्लीज, अब रह नहीं जा रहा
पर बंटी ने एक नहीं सुनी , वह मेरी चुत के ऊपर, जांघों पर, और गांड के पास, चाटता रहा, उसकी गरम साँसे मेरी चुत पर महसूस हो रही थी. मैं तड़प रही थी. मैंने बंटी के बाल पकड़ लिए और मेरी चुत की तरफ धकेलने लगी. पर वह बिलकुल नहीं मान रहा था. अब उसने मेरी चुत के ऊपर, और आजु बाजु जांघों को हलके दातों से काटना शुरू कर दिया. उसके काटने से मैं तड़प जाती. मेरी चुत से लगातार पाणी बहा रहा था . तभी बंटी ने मेरी चुत के दाणे को अपने होठों में लेकर चूसने लगा हलके दातों से उसको चबा दिया. जैसे उसने चबाया..मैं..हाई........ू ... करके पानी छोड़ने लगी. मैंने बंटी का सर जोर से अपनी चुत पर रगड़ दिया . बंटी कोई अकाल पीड़ित प्यासे जानवर की तरह मेरे चुत का पाणी चाटने लगा . मेरी चुत का सारा पाणी चाट चाट कर पी गया.

फिर बंटी नीचे बिस्तर पर मेरे बाजु लेट गया और कहा : संध्या आओ ..मेरे ऊपर आकर मेरे लंड पर बैठ जाओ.
मैंने कहा : बंटी मेरे पाओ बहुत दर्द दे रहे, मैं बैठ नहीं पाऊँगी.
बंटी ने कहा : मुझ पर भरोसा रखो, तू बैठ तो सही.
मैं उठ गयी , दोनों पेर बंटी के कमर के बाजू रख कर नीचे बैठने लगी , बंटी ने अपने लंड को पकड़ कर ठीक मेरी चुत के द्वार पर लगा दिया, और मैं धीरे धीरे उसके लंड को मेरे चुत में अंदर ले कर बैठने लगी.
मेरी चुत ऐसे ही बहुत गीली थी.. बंटी का पूरा ८ इंच का काला जहरीला नाग निगल गयी. बंटी का नाग मेरी चुत को अंदर से हर जगह छू रहा था.
बंटी ने कहा : अब तू मेरे ऊपर सो जा, और पाँव सीधे कर दे.
मैं नीच झुक कर बंटी के छाती पर अपने मम्मे दबाकर लेट गयी और बंटी की गर्दन पर अपना सर रख दिया... और धीरे से मेरे घुटने सीधे पीछे कर के , बंटी के ऊपर सो गयी. बंटी ने अपने घुटने ऊपर किये और अपने पाँव ऊपर उठा कर मेरी गांड और जांघों को अपने दोनों पैरों से कस कर उसके शरीर के ऊपर दबा दिया. उसने दोनों हातों से मेरी पीठ को अपने शरीर से दबा रखा था. ऐसे करने से बंटी का पूरा लंड मेरी चुत के अंदर गहराई तक चला गया था. मैंने मुँह ऊपर किया और हम दोनों एक दूसरे को पागलों की तरह चूमने लगे. बंटी की पैर की पकड़ और भी टाइट हो रही थी..और मेरी चुत से लगातार पाणी बह रहा था. ना कोई धक्के, बस ऐसे ही एक दूसरे का कस कर बाँहों मैं पकड़ कर हम चुम रहे थे. मैं उन्माद मैं आकार कांपने लगी और मैंने जोर से मेरी कमर को बंटी के लंड पर दबा दिया ..और ..उह ..आह.. बंटी...कर के उसके ओंठों को चूसकर झड़ने लगी. मेरी चुत ने पानी का बरसाव बहा दिया और बंटी का लंड और भी गिला हो गया और उसके टट्टे भी.

जब मैं शांत हुई तब बंटी फिर से मेरे गालों पर चूमने लगा और कहा - मैंने कहा था न संध्या मुझ पर भरोसा रखो..देखो तो..न मैंने धक्के मारे , ना तुमने, बस ऐसे ही मुझ पर लिपटी रहो.
मैं फिर से कस कर बंटी के नंगे जिस्म पर लिपट गयी. मेरा मुँह बंटी के कंधे पर था, बंटी ने मेरे कान को अपने होठों से चबा डाला और धीरे से मेरे कान के पास बातें करने लगा. उसकी मुँह और नाक से गरम सांसे मेरे कान पर महसूस हो रही थी . मुझे फिर से गरम कर रही थी.
बंटी ने पूछा : अच्छा संध्या बताओ तो मेरा लंड कहा है.
मैंने प्यार से जोश मैं कहा : मेरे अंदर , मेरी चुत मैं है.
बंटी ने कहा : नहीं मेरी जान, वह तेरी चुत नहीं है..वह तो मेरे लंड की राणी है, अब बता तेरे अंदर क्या है?
मैंने शर्मा कर बंटी की गर्दन को चुम लिया .. और कहा - मेरे अंदर , मेरी राणी का लंड राजा है.
बंटी: बता यह लंड किसके लिए है?
मैं: यह लंड सिर्फ मेरा है, मेरी राणी की लिए है
बंटी: अगर ऐसा है तो तूने तो अभी तक मेरे लंड को ठीक से प्यार भी नहीं किया .
मैंने कहा : तेरे कल जाने से पहले मैं इसको बहुत सारा प्यार कर लुंगी.
बंटी ने कहा .. सच मेरी जान बता तो कैसे प्यार करेगी मेरे लंड को ?
मैं अब फिर से कांपने लगी थी. बंटी के लंड पर ऐसे सोते सोते मैं अब फिर से उन्मद में आ चुकी थी. मेरी चुत से लगातार बिना रुके पाणी बह रहा था. मेरी चुत अब फड़फड़ाने लगी थी. बंटी का लंड पूरा मेरी चुत मैं समां गया था. वह धक्का नहीं लगा रहा था , ना उसका लंड आगे पीछे कर रहा था. उसके लंड की नसे मेरी चुत मैं फूल रही थी झटके लगा रही थी.
मैंने कहा - मैं इसको बहुत सारी पप्पी दूंगी..इसको प्यार से चूसूंगी ..
बंटी - आह मेरी राणी.. ( उसने कस कर अपने पैरों से मेरी गांड उसके लंड पर दबा दी)
मैं फिर से जोर से कांप कर...उसके लंड पर झड़ गयी.
मेरी चुत तो जैसे बंटी के लंड से अंदर चिपक गयी थी. बिना धक्के, बिना कोई घर्षण - अपने आप ही पाणी बहा रही थी..बंटी का लंड अब और भी ज्यादा फूलकर मेरे चुत के अंदर जकड गया था. मैं थक गयी थी, पर बहुत आनंद आ रहा था. बंटी मुझे उसी पोजीशन मैं सुलाना चाहता था, अपने लंड को मेरी चुत के अंदर डाल के. पर मेरी चुत उसके लंड से बहुत उत्तेजित हो जाती, और अपने आप उसके लंड के प्यार में प्रेम का रस बहा देती. करीब ३० मिनट हम वैसे ही सोये रहे ,ओर इस दरम्यान मैं और एक बार झड़ गयी थी. मेरी चुत से लगातार पाणी बहरहा था. मैंने बंटी से कहा - बंटी बस करो अब, मैं मर जाउंगी. अपना पाणी मेरे चुत मैं डाल दो अब.

बंटी ने कहा - ठीक है , जैसे तुम चाहो और बंटी नीचे से जोर जोर से उसके लंड को मेरी चुत के अंदर धक्के मारने लगा. हम दोनों ज्यादा देर टिक नहीं पाए. बंटी का लंड मेरी चुत में और भी ज्यादा फुल गया , और एक बड़ा झटका दिया .. मुझे मेरी चुत के अंदर उसके वीर्य की गरम बूंदे महसूस हुई. फिर दूसरा झटका .. फिर तीसरा ...ऐसे १५-१६ झटके बंटी के लंड ने मेरी चुत के अंदर मारे ..और हर झटके के साथ मेरी चुत मैं उसका गरम गरम वीर्य अंदर तक चला गया. उसके गरम गरम गाढ़े वीर्य ने मेरी चुत अंदर तक भिगो डाली. मेरी प्यासी चुत को पाणी पिलाकर प्यास बुझा दी, शांत कर डाला . मैं बहुत देर तक वैसे ही बंटी से लिपट कर सोई रही. बहुत देर बाद बंटी का लंड धीरे से मेरी चुत से अपने आप बहार निकल गया.

बंटी ने मुझे साइड में लिटाकर फिर से बाँहों मैं ले लिया. मैं उसके छाती पर मुँह रख कर सो गयी. एक सकून था,आनंद था, भरोसा था, सुरक्षित महसूस कर रही थी. बंटी की बाँहों मैं सब भूल जाती, कोई चिंता नहीं होती, कोई संदेह नहीं, कोई शंका नहीं. महसूस होता तो सिर्फ एक अपनापन , एक आकर्षण, प्यार, खिंचाव, लगाव , उसकी महक, उसका मरदाना सुन्दर शरीर, इमोशनल केमिस्ट्री, सेक्सुअल केमिस्ट्री, सब बेखुबी से फिट हो रहे थे. हरीश या दूसरे मर्दों के साथ सेक्स तो एन्जॉय करती थी पर बाद में मन का जो खालीपन महसूस करती वह बंटी के साथ से चला जाता था.

मैं बहुत सम्भ्रम मैं पड़ गयी थी.​
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