Update 10
फुफेरे भाइयों का प्यार !
दरवाजे पर बेल बजी. स्वप्नील खाना लेकर आया था. घर में घुसते ही उसने अपने बनाये नियमो के अनुसार सारे कपडे निकाल दिये और पूरा नंगा हो गया. मैं बिस्तर पर लेटी थी. मेरी चुत से अभी भी बंटी का गाढ़ा वीर्य बहार निकल रहा था. मैंने बाथरूम जाकर उसको साफ़ नहीं किया. बंटी का गरम वीर्य मुझे मेरी चुत के अंदर बहुत अच्छा लग रहा था. ऐसे लग रहा था की बंटी को कोई भाग या अंश मेरे शरीर के अंदर है और वह अब मेरे शरीर का हिस्सा है.
स्वप्निल एक हट्टा कट्टा ६ फ़ीट ऊँचा मर्द था, उसने मुझे गुड़िया की तरह अपने दोनों हातों से बिस्तर पर से उठाया ओर डाइनिंग टेबल पर ले गया. तब तक बंटी ने प्लेट मैं खाना लगा दिया था. स्वप्निल ने डाइनिंग टेबल की खुर्ची पर बैठकर मुझे अपनी गोदी मैं बिठा लिया. मुझे स्वप्निल का गोरा, गुलाबी लण्ड अपनी गांड पर रगड़ता महसूस हुआ. मैं स्वप्निल की गोदी में , उसके गले में बाहें डाल कर बैठी थी और वह मुझे अपने हातों से खाना खिला रहा था. मैंने बंटी की तरफ देखा. उसने मुझे आँख मर दी. अजीब चमक और शरारत थी उसके आँखों मैं. ना कोई जलन, ना कोई शिकायत , कितना कॉन्फिडेंस और भरोसा था उसे खुदपर. स्वप्निल खाने के साथ मिठाई मैं गुलाब जामुन भी लाया था. खाना खाने के बाद, उसने गुलाब जामुन का कुछ चाशनी मेरे बूब्स पर, निप्पल्स पर डाल दी और चाटने लगा. बंटी ने कहा - मिठाई तो मैंने भी कहानी है और उसने उसकी खुर्ची मेरे पास खिंच ली और वह भी मेरे चूचियों पर से गुलाब जामुन की चाशनी चाटने लगा. स्वप्नील का लण्ड खड़ा होकर तन गया था ओर मेरी गांड की दरार मैं गांड की छेद पर टकरा रहा था. स्वप्नील ने शरारत कर के मुझे पीछे खिंच लिया तो उसका लण्ड का सूपड़ा बिलकुल मेरी गांड की द्वार को जोर से धक्का देकर टकरा गया. मुझे थोड़ा दर्द हो गया ओर मैंने कहा - नहीं स्वप्नील..यह नहीं..करके आगे खिसक गयी. बंटी हंसकर बोला - हI स्वप्नील, इसकी चुत को चोदने का उद्घाटन का मौका तो मुझे नहीं मिला , पर इसकी गांड का उद्घाटन जरूर मेरा लण्ड ही करेगा. मैंने बंटी का लण्ड पकड़कर जोर से दबा दिया - चुप कमीने .. बंटी ने - आह ! कर के आहें भर दी. हम सब हंसी मजाक कर रहे थे.
मेरी चुत अब फिर से गीली होने लगी थी . बंटी का पाणी अभी भी मेरी चुत से बहार निकल रहा था और स्वप्निल के जांघों पर गिर के चिपक रहा था. स्वप्निल की दोनों जाँघे मेरे और बंटी के पाणी से गीली होकर चिप चिपी हो गयी थी. स्वप्निल ने मेरी चुत के अंदर एक ऊँगली डाल दी और चिप चिपा पानी निकल कर सुंघा - आह इसमें तो संध्या और बंटी दोनों की महक है.. हम सब हंसने लगे. उसने वह ऊँगली मुँह मैं डाल दी और चाट ली. कहा - या तो बड़ा स्वाद दे रहा है. मुझे सब चाटना है. उसने मुझे वैसे ही गोदी मैं उठा लिया और धीरे से सोफे पर बिठा दिया. मेर दोनों पैर अपने हातों से फैला दिये और मेरी चुत को अपने जीभ से चाटने लगा. मुझे बड़ा अजीब लगा. स्वप्निल बड़ी चाव से मेरा और बंटी का मिश्रित पाणी, मेरी चुत के अंदर से चाट रहा था. जैसे कोई अमृत हो. बंटी का लण्ड अब तनाव में आकर कड़क हो गया था. उसने सोफे के साइड से आकर खड़े खड़े उसका लण्ड मेरे मुँह के पास रख दिया. मैंने अपने दोनों हातों से बंटी का लण्ड पकड़ लिया और उसको चूमने लगी और चूसने लगी. बंटी ने भी अपना लण्ड धोया नहीं था. उसका लण्ड मेरे और उसके पानी से भीगा था, मुझे हम दोनों का स्वाद ओर महक उसके लण्ड पर महसूस हो रहा था. मैंने बंटी का काला ८ इंच का लण्ड धीरे धीरे , अपना गला ऊपर कर के, पूरा मुँह के अंदर गले तक ठूस लिया. बंटी बहुत खुश हो गया. उधर स्वप्निल ने मेरी चुत चाट- चाट कर , अंदर तक अपनी मोटी लम्बी जीभ डाल दी थी और बंटी ओर मेरा पूरा पाणी चाट लिया था. अब मेरी चुत सिर्फ उसकी थूंक के कारण गीली थी.
मेरा सारा ध्यान बंटी के लण्ड पर था, जो लण्ड मुझे इतनी ख़ुशी देता है, उसे मुझे आज बहुत प्यार करना था. मैं बंटी के लण्ड को कभी ओंठो से, कभी गालों पर , कभी मेरे चूचियों पर रगड़ देती, चूमती ओर चूसती . बंटी का नाग अब मेरे मुँह मैं फन-फ़ना रहा था. मुझे पता था चुत की बजाये मर्द का लण्ड औरत के मुँह और गले में जल्दी झड़ जाता है. तब तक स्वप्निल ने मेरे पाव अपने कंधे पर उठाकर अपना गोरा गुलाबी लण्ड मेरे चुत पर रख दिया था. उसने धक्का मारा, और उसका पूरा लण्ड मेरी चुत के अंदर चला गया. स्वप्निल मुझे निचे से मेरी चुत को अपने गोरे गुलाबी ७ इंच के कटे लण्ड से अंदर बहार कर के चोद रहा था और बंटी मेरे मुँह और गले को अपने मोटे काले ८ इंच के लण्ड से चोद रहा था. मेरी चुत पहले से बंटी के ८ इंच काले लण्ड की चुदाई से खुल गयी थी, इसलिए स्वप्निल का लण्ड आसानी से मेरे चुत में गोते लगा रहा था. मैं अब कांपने लग गयी थी..मेरी चुत अब गरम हो कर कसमसा गयी थी और मेरे मुँह से सिसकारियां निकल रही थी..आह.. मेरे बंटी ..उह ..स्वप्निल.. कमीनो .. चोद चोद कर मुझे मार डालोगे...आह.. मैंने बंटी का लण्ड पूरा गले तक लिया और जोर-जोर से उसके लण्ड को पकड़ कर चूसने लगी. बंटी ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया और ..आह..उह..कर के अपना लण्ड बहार निकाला और मेरे जीभ पर अपने लण्ड का पाणी गिराने लगा. मैंने नीचे अपने चुत से स्वप्निल का लण्ड कस के पकड़ लिया और वह भी..उसी समय..आह मेरी रानी..संध्या ..ले ले..करके .. उसका लण्ड मेरी चुत में झटके से गरम पाणी का फंवारा उड़ाने लगा. स्वप्निल ने कही झटके दिये और मेरी चुत के अंदर अपना सारा वीर्य डाल दिया. वह मेरे ऊपर लेट गया. मैं भी बंटी के लण्ड से हर एक बून्द अपनी जीभ से चाट रही थी, बंटी के पानी का स्वाद मुझे मादक लग रहा था. किसी दूध या शहद की तरह मीठा लग रहा था. मेरे लिये यह उसका तीर्थ प्रसाद था. बंटी का लण्ड अभी भी खड़ा था ओर मैं किसी लॉलीपॉप की तरह उसे मुँह में चूस कर उसका स्वाद ले रही थी.
हम तीनों अब थक गए थे. स्वपनिल ने फिर से मुझे उसके भारी भरकम शरीर के ऊपर उठा लिया और बैडरूम में लाकर मुझे बिस्तर के बीच में सुला दिया. इतनी चुदाई से मेरे पाँव कांप गये थे, मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी. स्वपनिल मेरे बाजू में लेट गया. उसने मुझे अपने दोनों हातों और पैरो के बीच बाहें फैला कर मेरे शरीर को पूरा अपने शरीर से जकड लिया. मैंने भी उसके भुजाओं पर अपना सर रख दिया और उसके ओंठों पर अपने ओंठ रखकर सोने लगी. बिस्तर के दूसरे छोर से बंटी आया और मुझे पीछे से चिपक गया. उसने उसका एक हाथ मेरे सीने पर मेरे मम्मों पर रख दिया. मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और उसके हात को अपने ओंठों पर रख दिया. पीछे से बंटी का लण्ड मेरी गांड की फांको मैं धस कर मेरे चुत को छू रहा था. मैंने फिर से उसके हात को चुम लिया और वैसे ही उसके हात पर अपने ओंठ लगाकर सो गयी. मेरा कनेक्शन अब पूरा हो गया था.
२ दिन तक स्वप्निल और बंटी ने मुझे बहुत प्यार किया. वह दोनों थे, मैं अकेली, उन दोनों को संतुष्ट करना आसान नहीं था. वह रात की गाड़ी से वापस चले गये क्यूंकि दूसरे दिन माँ - पापा वापस आने वाले थे..
जाने से पहले स्वपनिल ने मुझे सोने की अंगूठी गिफ्ट दी और बंटी ने मुझे २ सोने के कंगन दिये. मेरे आँखों मैं आंसू थे. मैंने कहा - इसकी क्या जरुरत थी, तुम दोनों तो अभी कमाते भी नहीं. जब कमाओगे तब देना. जो चाहे दे देना . बंटी ने कहा - ये उनके पॉकेट मनी की सेविंग्स से ली. कहा की उन्होंने दिल से मुझे यह गिफ्ट दिया है, मना मत करना. स्वपनिल ने कहा - संध्या तेरे सिवा हमारा ओर कौन है. हम हमारी ख़ुशी से दे रहे. तेरे कारण हमें कितना आनंद मिला हैं. . मैंने कहा - ठीक है अब तो ले लेतीं हूँ, पर आगे से कोई गिफ्ट नहीं लुंगी. मुझे उनके कमाई का गिफ्ट लेने मैं कोई हर्ज नहीं है. दोनों मुझे बाँहों मैं लेकर आगे पीछे लिपट गये ओर प्यार से मुझे चमन लगे. मेरे आँखों मैं पानी था. बंटी ने मेरे आँखों पर चुम लिया और मेरे आँखों का पानी चाट लिया कहा - रोना नहीं पगली, तू जब बुलायेगी हम आ जायेंगे.
मैं बहुत थक गयी थी..जल्दी से सो गयी.
उस दिन सुबह सुबह मुझे सपना आया - बंटी का तेजस्वी चेहरा, उसकी शरारती कामिनी आंखें, वह मेरे पास नंगा बैठा था, उसका कसा हुआ गठीला बदन, उसका लम्बा मोटा, काला ८ इंच का नाग, वह मुझे प्यार कर रहा था.
मैं नींद से तड़प कर उठी .. मेरा शरीर पसीने से भीगा था, मेरी चुत फड़फड़ा रही थी, शरीर कांप रहा था. चुत से पानी बह रहा था. पहली बार मैंने सपने मैं किसी मर्द को देखा था, प्यार किया था. क्या था यह ? और हरीश..? नहीं मैं तो हरीश से प्यार करती हूँ. पर हरीश के साथ यह अनुभूति क्यों नहीं हुई ?
सरदार ओर मेरी हवस !
मेरा इंजीनियरिंग का दूसरे साल का फाइनल सेमिस्टर शुरू हो गया था. हरीश अब फाइनल ईयर मैं था. उसने बहार फॉरेन यूनिवर्सिटी मैं आगे की पढाई की तयारी कर ली थी. हमें पता था की अब हम कुछ ५-६ महीने ही साथ रहेंगे, और फिर वह अपने आगे की पढाई या जॉब के लिए कॉलेज से पास होकर चला जायेगा. मुझे बड़ी बेचैनी हो जाती. क्या हम अलग हो जायेंगे ? या हमारा प्यार हमें जुदा नहीं कर पायेगा. उस ज़माने में ना आज की तरह इंटरनेट था, सोशल अप्प्स थे ना मोबाइल, ना फ़ोन. हमरा संपर्क सिर्फ लेटर / पत्र या आसपास कही पर फ़ोन होगा तो वहा से होगा. उस ज़माने में टेलीफोन की लैंडलाइन हुआ करती और वह भी महंगा होता और सिर्फ कुछ गिने चुने आमिर लोग ही उपभोग पाते.
फाइनल ईयर परीक्षा ख़तम होते ही हरीश आगे पढ़ने के लिए USA चला गया. मैं बहुत उदास रहने लगी. हरीश लगभग रोज मुझे चोदता था ओर अब मेरी चुत प्यासी थी. हरीश ने मुझे वहा से चिट्ठी लिखी. पर उन दिनों इंटरनेशनल लेटर भी २ हफ्ते में मिलते थे. मेरा तीसरा साल चालू हो गया था. बारिश के दिन थे. एक दिन राजवीर ने मुझे क्लास में कहा - संध्या क्या यार इतनी उदास हो. बस २ साल और फिर तू भी USA चले जाना. हरीश के पास . मैंने कुछ जवाब नहीं दिया. राजवीर ने कहा - हम सब दोस्त - अगले वीक-एन्ड पर एक दिन का पिकनिक प्लान कर रह है. तू भी आ रही है और माना नहीं करना. मैं तुझे ऐसे उदास नहीं देख सकता.
राजवीर एक हैंडसम पंजाबी सरदार था. उसकी पगड़ी और दाढ़ी मैं एकदम मरदाना लगता. किसी शेर की तरह हट्टा-कट्टा लगता था. साढ़े छह फ़ीट ऊँचा और बहुत ही मजाकिया स्वभाव का था. क्लास में पॉपुलर था. मुज़से बहुत फ़्लर्ट करता था और बहुत बार मुझे अपने प्यार का इजहार बिंदास पुरे क्लास के सामने करता था. अगले हफ्ते हम सुबह ही तयार हो गए. ६-७ लड़के और ३ लड़किया ऐसे हमारा ग्रुप था. एक ७ सीटर SUV बुक की थी और हम बड़े मुश्किल से ठूस कर गाड़ी मैं बैठे. आखिर की सीट मैं पैरो के बिच जगह थी, राजवीर ने कहा - संध्या तू आराम से सीट पर बैठ, मैं यहाँ सीट के निचे बैठ जाता हूँ. और वह एकदम मेरे पैरो से चिपक कर निचे बैठ गया. मैंने कहा - राजवीर ऊपर ही बैठो. कुछ घंटे के बात है, एडजस्ट कर लेंगे. राजवीर - अरे नहीं संध्या मैं तुम्हे तकलीफ मैं नहीं ले जाऊंगा. आराम से बैठो. ३ घंटे का रास्ता था. मैंने स्कर्ट और टॉप पहना था और मेरे पाँव पर स्कर्ट के अंदर लेग्गिंग्स पेहेनी थी. मेरा स्कर्ट घुटने तक था. बीच में रोड काफी ख़राब था, बैलेंस बनाने के लिए राजवीर मेरे पैरों को पकड़ लेता था. गाड़ी मैं जोर शोर से म्यूजिक चल रहा था. बियर की बोतल आगे से पीछे पास हो रही थी. हम सब मस्ती मैं थे. बीच मैं ही अगर गाड़ी को ब्रेक लगता , या स्पीड ब्रेकर आता, गिरने से बचने के लिए राजवीर मेरे पैरो को पकड़ लेता. ख़राब रोड की वजह से गाड़ी ड्राइवर धीरे धीरे ड्राइव कर रहा था. राजवीर का हाथ मेरे घुटने पर था. एक बड़ा गड्ढा आया और गाड़ी हिल गयी.. उसके साथ ही राजवीर का हात मेरे स्कर्ट के अंदर जांघों पर चला गया. उसने अपना हात वही रहने दिया. उसके बड़े बड़े हात और उंगलिया लेग्गिंग्स के ऊपर से मेरे जंघा पर गोल गोल घूमने लगे. बारिश का mausam था, बहार बारिश की वजह से अँधेरा था. गाड़ी मैं भी अँधेरा था, राजवीर इसी का फायदा उठा रहा था. राजवीर के बड़े हातों का स्पर्श मुझे अच्छा लग रहा था. मैंने भी जानबूझ कर ध्यान नहीं दिया और उसे रोका भी नहीं. राजवीर का हात धीरे धीरे मेरी जांघों पर ऊपर की तरफ जा रहा था. मेरे दोनों पैर फैले हुए थे और उनके बीच मैं राजवीर बैठा था, राजवीर को आसानी से स्कर्ट के अंदर मेरी पैंटी तक का रास्ता मिल गया. राजवीर अब धीरे से मेरी चुत को कपड़ों की ऊपर से सहला रहा था. मेरे चुत से अब पाणी बह रहा था. राजवीर बड़े प्यार से मेरी चुत को मसल रहा था. मेरी चुत के पाणी से अब मेरी पैंटी और उसके ऊपर की लेग्गिंग गीली हो गयी. राजवीर के हात को मेरे चुत का चिप-चिपा पाणी लगा. उसने वह अपना हात बहार निकल कर मेरी तरफ देख कर चाट लिया और मुस्करा कर मुझे आँख मार दी. उसने फिर से उसका हात मेरी स्कर्ट के अंदर डाल दिया और फिर से मेरी चुत को सहलाने लगा. उसने मेरी स्कर्ट के अंदर लेग्गिंग ओर पैंटी निचे खींचने को कोशिश की ओर अपना हात मेरी पैंटी के अंदर डालना चाहा. पर लेग्गिंग्स बहुत टाइट फिट थी..उसको बड़ी दिक्कत हो रही थी. तभी मैंने देखा की हम हमारे पिकनिक स्पॉट के पास आ रहे है. मैंने नखरे दिखा कर उसका हात पकड़ लिया और झटक दिया. उसको गुस्से से देखा. राजवीर सकपका गया. उसको लगा कही मैं तमाशा ना खड़ा कर दू. तभी हम सब निचे उतरने लगे.
पिकनिक मैं मैंने जानबूझ कर राजवीर से कोई बात नहीं की. वह २-३ बार मेरे पास आकर सॉरी कहने लगा. दोपहर को मुझे अकेली देख कर उसने कहा - संध्या सॉरी यार. अब तो मुज़से बात करो. देखो मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. यह बात तू ही नहीं पूरी क्लास जनता है. मैं खुद को काबू मैं नहीं रख पाया. प्लीज मुझे माफ़ कर दो. आगे नहीं करूँगा. मैंने कहा - ठीक है, माफ़ कर दिया. पर आगे से ध्यान रखना. तेरी गर्ल फ्रेंड अनीता मेरी रूम पार्टनर है. वह क्या सोचेगी? राजवीर ने कहा - अनीता को में प्यार नहीं करता. तुम उसकी रूम पार्टनर हैं इसलिए में उसको भाव देता हूँ. प्लीज मुझे माफ़ कर दो. मैंने कहा.. वह सब ठीक हैं पर अब तुम जाते वक्त तू निचे नहीं बैठोगे. ऊपर सीट पर बैठोगे. राजवीर ने मजाक मैं कहा - फिर तू कहा बैठेगी ? मेरी गोदी मैं? मैंने भी हंसकर कहा दिया - हाँ तेरी गोदी मैं बैठूंगी. वहा अच्छासा टॉयलेट देखकर मैं अंदर चली गयी.
पिकनिक से वापस आते वक्त शाम हो गयी थी, अंधेरा था. राजवीर मेरी साइड डोर के पास बैठ गया. आगे पीछे बैठकर हमने आधी - आधी सीट शेयर कर ली. पर जब पहाड़ों से गाड़ी चलने लगी तब हमें बड़ी दिक्कत हो रही थी. मैं बार बार राजवीर की छाती से टकरा जाती या निचे खिसक जाती. राजवीर ने टी शर्ट और बरमूडा पहनी थी. उसकी काले बालों से भरी छाती और जांघें मुझे आकर्षित कर रही थी. गाड़ी में म्यूजिक बज रहा था और गाने का शोरगुल हो रहा था. राजवीर ने मेरी कान में कहा - तू मेरी गोदी मैं बैठने वाली थी. मैंने भी - हां कहा कर उसके जांघों पर अपनी गांड फैला कर बैठ गयी. राजवीर को यह अपेक्षित नहीं था. रास्ता उबड़ खाबड़ था. राजवीर ने अपने हात आगे कर के मुझे पकड़ लिया. उबड़ खाबड़ रोड पर मैं राजवीर के जांघों पर उछल रही थी .. और मुझे उसके मोठे लण्ड का आकर महसूस होता. मैंने राजवीर का एक हात लेकर मेरी जंघा पर रख दिया. राजवीर खुश हो गया. मेरी जंघा नंगी थी. मैंने पहले ही टॉयलेट जाकर मेरी लेग्गिंग उतर दी थी. राजवीर ने मेरे जांघों पर हात फेरने लगा. वह धीरे से उसका हात मेरी चुत के तरफ ले जाने लगा. उसके हात पर मेरी गीली चुत का पाणी लग गया. राजवीर ने मेरे कान मैं कहा - तू तो नंगी हो गयी. दिन भर तूने बड़े नखरे किये, मुझे तड़पाया.
मैंने टॉयलेट मैं अपनी पैंटी भी उतार कर पर्स में डाल दी थी.
मैंने कहा - तो अब तुझे कौन रोक रहा है.
राजवीर ख़ुशी से चहक उठा. वह स्कर्ट के अंदर हात डाल कर मेरी चुत से खलने लगा, सहला कर मसलने लगा. बाकी सब लोग मजे कर रहे थे, दारू पी रहे थे.सब लोगों के सामने हमारा सीक्रेट खेल चल रहा था. हम दोनों बड़े गरम हो गए थे. मुझे मेरी गर्दन पर राजवीर की गरम सांसे महसूस हो रही थी. वह मेरी गर्दन को पीछे से चुम रहा था. हलके से राजवीर ने अपनी एक ऊँगली मेरी चुत के अंदर डाल दी. उसकी लम्बी मोटी ऊँगली किसी लण्ड से कम नहीं थी. शाम हो गयी थी. गाड़ी में अंधेरा था. एक जगह राजवीर ने मुझे गोदी से उठा दिया और एक झटके में उसकी बरमूडा निचे पैरो पर खिसका दी और मुझे फिर से अपनी नंगी गोदी मैं बिठा दिया.
मुझे मेरी गांड पर राजवीर का मोटा लण्ड फनफनाता महसूस हुआ. वह बहुत मोटा और लम्बा था. शायद हरिया से बड़ा और मेरे जीवन का अब तक सबसे विशाल लण्ड था. हम कुछ ज्यादा नहीं कर सकते थे. क्यों की बाजू ओर सामने की सीट बैठे दोस्तों को भनक लग जाती. मैं मेरी गांड से राजवीर के लण्ड को ऊपर से मसल रही थी. मेरी चुत के द्वार पर राजवीर के लण्ड का सूपड़ा दस्तक दे रहा था. मेरी चुत के पाणी से उसका लण्ड गिला हो गया था. एक जगह राजवीर ने मेरी गांड पकड़ कर ऊपर उठा दिया और अपने लण्ड को मेरी चुत के ऊपर सटा कर मुझे उसके ऊपर बिठा दिया. उसका लण्ड मेरी गीली चुत मैं अंदर तक घुस गया. इतना मोटा और बड़ा लण्ड.. किसी खूंटी की तरह मेरी चुत में ठूस गया. मैं दर्द से चीखती, उसके पहले ही राजवीर ने एक हात से मेर मुँह को दबा दिया और चुप करा दिया.
कुछ देर वैसे ही उसके लण्ड पर बैठ कर मेरा दर्द अब कम हो गया था. पर गाड़ी के धक्के के सात-सात , राजवीर मुझे उछाल देता और अपने लण्ड को आगे पीछे धक्का देकर मेरी चुत को चोद देता. राजवीर पीछे से मेरे कानों में गन्दी बातें करके शरारत कर रहा था. शोरगुल मैं किसी को पता नहीं चला. मैं आगे बैठी थी इसलिए कुछ बोल नहीं पा रही थी.
राजवीर: आह. ! संध्या तेरी फुद्दी की भट्टी कितनी गरम है.मेरे लोडे को जला देगी.
राजवीर: संध्या इस मौके का मैं २ साल से इंतजार कर रहा था. तेरी फुद्दी तो मस्त है , गरम पाणी का झरना है.
राजवीर: बेहेन की लोड़ी.. तेरी फुद्दी इतनी गरम हैं तो गांड कितनी गरम होगी. तेरी फुद्दी के बाद तेरी गांड भी मरूंगा.
वह मुझे अपने दोनों हातों से मेरी गांड पकड़ कर गाड़ी के धक्कों के सात मेरी गांड अपने बड़े लोडे पर उछाल रहा था. मुझे उसके गन्दी बातों से और पब्लिक सेक्स से मजा आ रहा था. मेरा उन्माद बढ़ रहा था. मैंने अपने ओंठ दबा दिए और ...आगे ले सीट को पकड़ लिया. मैं थर-थरा कर राजवीर के लण्ड पर झड़ गयी. मेरी चुत ने कही बार राजवीर के मोटे लण्ड को कस कर जकड लिया और उसको अपने गरम पाणी से भिगो दिया. राजवीर भी मेरी चुत की इस हरकत से सीट पर पीठ दबाकर पीछे बैठ गया और ..उसका लण्ड मेरी चुत मैं फंवारा उड़ने लगा. मुझे मेरी चुत मैं उसके गरम पाणी का अहसास हुआ. एक के बाद एक करके अनेक झटके उसके लण्ड ने मेरी चुत के अंदर लगाये. हम बहुत देर तक वैसे ही बैठे रहे. उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था. ना उसका लण्ड मेरी चुत से जुदा होना चाहता था , ना मेरी चुत उसके लण्ड से बिछडना चाहती थी.
कॉलेज पहुंचने तक मैं वैसे ही उसके लोडे पर बैठी रही. इस दौरान वह दूसरी बार मेरी चुत में उसका पाणी उड़ाकर भिगो चुका था और मैं भी ४ बार झड़ गयी थी.
हॉस्टल पहुँच कर में कमरे में जाकर सो गयी. मेरी रूम पार्टनर अनीता ने पूछा - कैसी रही पिकनिक. उसकी एग्जाम थी, इसलिए वह आ नहीं पायी थी. राजवीर ने भी बड़े सोच समाज कर यह पिकनिक की प्लानिंग की थी. उसने सोचा था पिचकिनीक पर किसी अच्छे सुनसान स्पॉट पर मुझे ले जाकर चोदेगा. उसके हिसाब से गाड़ी के अंदर साब दोस्तों की उपस्थिति में सेक्स का अनुभव उसके सोच ओर प्लानिंग से कही गुना अच्छा था. मैंने अनीता से कहा - पिकनिक ठीक थी , तुझे आना चाहिए था. राजवीर को तेरी कमी बहुत खल रही थी. बड़ा उदास था. अनीता को कैसी बताती कि - मैं उसके बॉयफ्रेंड राजवीर से चुदकर आयी हूँ.
मैंने कपडे भी नहीं बदले और वैसे ही सोने लगी. मेरी चुत से अभी भी राजवीर का पाणी बह रहा था. मैं सोचनी लगी - यह क्या था ? ना कोई प्यार, ना कोई वादा , वचन, ना कोई चूमा , ना कोई foreplay .. सिर्फ शुद्ध चुदाई .. क्या यह सिर्फ मेरी हवस ओर लालसा थी. ? क्या यह गलत था ?
मेरी बढ़ती हवस !
दूसरे दिन मैं कॉलेज गयी. क्लास में सब लड़के लड़किया आ चुके थे. सर अभी आने के थे. राजवीर मेरे बाजू वाली सीट पर आकर बैठ गया. अनीता मुझे दूर से घूरने लगी. मैंने कहा - मैं तो अच्छी हूँ.. पर तू खुद अपना देख ले..अभी अनीता के पास जाकर बैठ जा. वह मुझे गुस्से से घूर रही है. उसने कहा - तू अनीता की चिंता मत कर. वो रंडी मेरे लण्ड की दीवानी है. रोज कॉलेज की टेरेस पर मुज़से चुदवाती है. आज भी चोद दूंगा उसे..उसकी ख़ुशी उसी में है. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक !
उस दिन राजवीर पूरा समय मेरे साथ बैठा. जब भी कोई शिक्षक पढ़ाता था, वो मेरी जांघों पर अपना हात फेर देता था. आज मैंने जीन्स ओर टॉप पहना था. इसलिए उसे खास मजा नहीं मिल रहा था. राजवीर ने कहा - संध्या कल से हम सबसे पीछे वाले बेंच पर बैठेंगे और तू भी रोज स्कर्ट पेहेन कर आना ओर वो भी बिना पैंटी के. मैंने उसे मना कर दिया. उसने कहा - प्लीज संध्या , बहुत मन कर रहा तुझे फिर से चोदने का, तेरी चूत एकदम मस्त रसीली है. मैंने उसे कहा - मुझसे ऐसी बातें मत कर. ऐसे कुछ नहीं होगा अब. कल जो हुआ वह पहली और आखरी बार था. तू जा कर अनीता को चोद. मेरे से कुछ उम्मीद मत रख. .
मैं गुस्से से उठी. और लाइब्रेरी चली गयी. घर जाते वक्त मैंने देखा राजवीर और अनीता सीढ़ियों से टेरेस की तरफ जा रहे थे. राजवीर एक पंजाबी सिख सरदार था. उसके लिए लाइफ बड़ी आसान थी. जो मन में आता वही करता और बोल देता. दिमाग पर जोर नहीं देता. कमीना पर सच्चा और बिंदास था. उसकी यही बातें मुझे अच्छी लगती. कोई दिखावा नहीं, कोई झूट नहीं.. सीधी बात, ना कोई बकवास !
रात को अनीता रूम पर आयी.. मेरे से बात नहीं की. उखड़ी उखड़ी थी.
मैंने पूछा - क्या हुआ अनीता, सब ठीक है ना ?
गुस्से में बोली - तू राजवीर से दूर ही रहा कर.
मैंने कहा - मैं किसी के पास नहीं जाती, वोही मेरे पीछे कुत्ते की तरह घूमता है. तू उसे संभाल नहीं सख़्ती तो मुझे दोष मत दे.
हमारा झगड़ा हो गया.
दूसरे दिन मैं खुद को रोक नहीं पायी और मैंने स्कर्ट पहन ली. रूम से कॉलेज निकलते वक्त मैं आखिर वक्त पर बाथरूम चली गयी और मेरी पैंटी भी निकाल ली. मैं कॉलेज पैदल चल के जाती थी. मुझे खुले स्कर्ट के निचे से मेरी नंगी चुत पर ठंडी हवा लग रही थी. पता नहीं क्यों अच्छा लग रहा था, आजाद लग रहा था, रोज की तरह आज भी मुझे कॉलेज के फर्स्ट ईयर से लेकर फाइनल ईयर के सब लोंडे घूर कर वासना भरी नज़रों से चोद रहे थे. आज मुझे अंदर नंगी होने की वजह से एक अच्छी चुदाई वाली अनुभूति हो रही थी.
मुझे देखकर राजवीर खुश हो गया. वह भी सिर्फ बरमूडा और टी शर्ट में था. मैं आखरी बेंच पर जाकर बैठ गयी. वह मेरे बाजु आकर बैठ गया. कहा - अरे वाह ! संध्या आज गजब की लग रही हो. और थैंक यू .. तू मुझे ऐसे ही सरप्राइज दे देती है.
मैंने पूछा - अनीता क्यों इतनी भड़की है ? मुज़से झगड़ा कर डाला रात को.
राजवीर - छोड़ो उस रंडी को. फ़िक्र मत कर. कल उसको कॉलेज की टेरस पर बहुत चोदा. पर चोदते वक्त मेरे मुँह से गलती से तेरा नाम निकल रहा था.. आह संध्या ! ..क्या मस्त चुत है.. ! संध्या तेरी बड़ी गांड मारनी है !... इस वजह से वह भड़क गयी.
मुझे हंसी आ गयी. हम दोनों हँसने लगे. अनीता दूर से हमें देख रही थी. मनीष सर क्लास में आ गये. मनीष सर बड़े सक्त ओर कठोर अनुशाषण वाले थे , पर उनकी पर्सनालिटी भी बहुत अच्छी थी.. ६ फ़ीट हाइट , लम्बे अमिताभ बच्चन जैसे बाल, ओर बहुत हॉट थे, ४५ साल की उम्र मैं भी वो जवानी के उफान पे थे ओर एकदम जॉन अब्राहम की तरह दिखते थे. वह कपडे भी टाइट पहनते, जिससे उनकी बॉडी, जांघें , गांड ओर लंड का मोटा उभार साफ दीखता था. बहुत सारी कॉलेज की लड़किया उनपर मरती थी ओर रात को सोते वक्त उनको याद करके अपनी चुत मसलती थी. उन्हें शायद यह पता था,इसलिए वह कॉलेज बाद स्टाइल मैं आते..टाइट फिटिंग्स के कपडे ..परफ्यूम लगा कर बड़े बन-ठन कर आते.
मैं पीछे बेंच पर दिवार को लग कर बैठी थी ओर मेरी दायी बाजु राजवीर था. राजवीर ने अपना बाया हात मेरी जांघों पर रख दिया ओर धीरे से उसका हात मेरी जांघों के ऊपर फेरने लगा. मैंने भी अपना दाया हात उसके बालों से भरी जांघों पर रख दिया ओर ऊपर की तरफ सहलाने लगी. राजवीर का काला लंड बरमूडा की बायीं पैर की तरफ से बहार निकल आया था. मैंने आज पहली बार उसके लंड को देखा था , उस भारीभरकम लण्ड से राजवीर ने दो दिन पहले मेरी मुलायम चिकनी चुत की २ घंटे कुटाई की थी. इतना बड़ा ओर मोटा लंड मैं पहली बार देख रही थी. मुज़से रोका नहीं गया. मैंने उसकी बरमूडा ऊपर उसके जांघों तक कर दी ओर बड़े-बड़े मोटे बालों वाले टट्टे पकड़ लिए. उसके लंड के ऊपर बहुत सारा काले झाटों का जंगल था. इतने झाटों वाला लंड ओर बड़े टट्टे मैंने पहली बार देखा था. मेरे हातों पर राजवीर का झाटों वाला लंड ओर टट्टे बड़े मस्त लग रहे थे. तब तक राजवीर ने भी अपनी मोटी उंगली मेरी चुत के अंदर डाल दी थी.
मनीष सर क्लास में पढ़ा रहे थे. हम दोनों उनकी तरफ देख कर, चुपके से निचे अपने हातों से चुत ओर लंड के खेल का मजा ले रहे थे. मैंने मनीष सर के हात को देखा.. उनकी हात का पंजा ओर उंगलियां भी बड़ी थी. मुझे एक पल के लिये लगा की मेरी चुत में राजवीर की नहीं , मनीष सर की उंगली है. मनीष सर आदत अनुसार पढ़ाते वक्त क्लास की बिच की जगह से चलकर आखिर बेंच तक आते ओर फिर से आगे ब्लैकबोर्ड की तरफ चले जाते. इस बार वह बहुत देर तक पीछे खड़े रहे.
फिर उन्होंने कहा - राजवीर .. बता मैंने X Y Z .. के बारें मैं क्या पढ़ाया !.
राजवीर हड़बड़ा गया. उसने झट से मेरी चुत ओर स्कर्ट से हात निकाला ओर मैंने भी उसके लंड पर से हात निकाल दिया. उसको कुछ जवाब नहीं आ रहा था. पूरी क्लास उसको देख रही थी. वह किताब अपने बरमूडा के आगे हात में लेकर खड़ा हो गया. उसके लंड ने बरमूडा में बड़ा तम्बू बना दिया था. वो उस तम्बू को किताब आगे पकड़कर छिपाना चाहता था. शुक्र था की मनीष सर ने उसे डांट कर जल्दी बिठा दिया, नहीं तो पूरी क्लास को उसका खड़ा तम्बू दिख जाता. क्या हमारी चोरी पकड़ी गयी थी ?
जातें वक्त मनीष सर ने मुझे बुलाया - संध्या तुम्हे कुछ प्रोजेक्ट वर्क देना चाहता हूँ. मैं ५ वे पीरियड के बाद फ्री हूँ, डिस्कशन के लिये आ जाना. मैंने हाँ कह दिया पर मन में कही सवाल थे ओर डर भी था. ५ वे पीरियड के बाद मैं मनीष सर के केबिन में गयी. उनका कमरा बहुत बड़ा था. एक बड़ा सा टेबल, टेबल की आगे २-३ खुर्ची ओर उसके पीछे एक बड़ा सा सोफा ओर टी टेबल था. में दरवाजे पर नॉक कर के अंदर चली गई. सर ने मुझे देखा .. वह कुछ नोट्स देख रहे थे. उन्होंने मुझे सोफे पर बैठने कहा. में अपना स्कर्ट एडजस्ट कर के बैठ गयी. थोड़ी देर में मनीष सर मेर पास आकर सोफे पर बैठ गये. वह मुझे गहराई से देख रहे थे. में उनसे नजर नहीं मिला रही थी.
उन्होंने मेर पास आकर कहा - मेरी तरफ देखो संध्या.
मैंने उनकी नीली आँखों से नजर मिला ली. कितने खूबसूरत थे मनीष सर. मेरी चुत में खुजली हो रही थी, वो गीली हो रही थी. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी.
सर ने कहा - क्लास में तुम राजवीर के साथ क्या कर रही थी संध्या.
मैं कांप गयी .. मेरे ओंठ खुल गये.. में कुछ नहीं बोल पा रही थी.
मैंने हिम्मत कर के कहा - कुछ नहीं ..सर
मनीष सर ने कहा .. सच बोलो..मुझे झूट पसंद नहीं.. मैंने सब देखा. !
सर अभी भी मेरे आँखों से नजरे मिला कर बैठे थे. मैं उनकी खूबसूरत आँखों की झील में डुब रही थी.
मैंने कहा .. सच...!
फिर मेरे ओंठ थरथराने लगे .. मेरे मुंह से शब्द नहीं निकाल रहे थे. . तभी सर ने एक हात से मेरा स्कर्ट पकड़ कर ऊपर कर दिया .. में झट से खड़ी हो गयी. उन्होंने मेरा स्कर्ट पूरा कमर के ऊपर उठा लिया ओर बोले - कुछ नहीं ? फिर ये क्या है ?
सर अभी भी सोफे पर बैठे थे. मैं उनके बहुत पास खड़ी होने की वजह से मेरी नंगी चुत अब बिलकुल उनके चेहरे के पास थी. में एक बूथ बन के खड़ी थी. कांप रही थी. मेरा खुद पर से नियंत्रण खो रहा था. सर ने जैसे मुझे वशीकरण कर लिया था. मैंने ना मेरी स्कर्ट निचे की, ना मेरी चुत को अपने हातों से छिपाया. २ मिनट तक सर वैसे ही मेरी नंगी चुत को देखते रहे. मेरी चुत फड़फड़ रही थी. मेरी चुत से पाणी निकल रहा था. मनीष सर के ओंठ कप रहे थे. उन्होंने आपने ओठों पर से अपनी जीभ फेर ली. उनके मुँह मैं पानी आ रहा था. मनीष सर ने धीरे से उनकी नाक मेरी चुत पर रख कर एक जोर से साँस ले कर सूंघ ली.
बोले - आह संध्या क्या खुशबू है तेरी पुच्ची की, इसको रोज ऐसे ही साफ़ - चिकनी रखती हो?
मैंने कहा : हाँ सर ..
मुज़से ओर आगे कुछ बोला भी नहीं जा रहा था. मेरी जुबान सुख रही थी. मनीष सर मराठी थे. मराठी में चुत को पुच्ची कहते है.
मनीष सर: तेरी पुच्ची बहुत सुन्दर है .. बिलकुल तेरे जैसी. क्या में इसको छू कर देख लू.
मैं: हाँ सर
सर : वाह संध्या . तेरी पुच्ची तो मस्त लाल टमाटर जैसे फूली है..बहुत चिकनी है. क्या मैं इसके सात खेल सकता हूँ
मैं: हाँ सर
मनीष सर मेरे चुत को प्यार से सहलाने लगे. उन्होंने मेरी चुत के अंदर धीरे से सपनी एक उंगली डाल दी.
मैं ; आह सर...उम्म्म .. (सिसकियाँ लेने लगी)
मनीष सर: संध्या ! क्या तुम्हे अच्छा लग रहा ? क्या तुम वापस जाना चाहती हो ?
मैं: हाँ सर बहुत अच्छा लग रहा. मैं नहीं जाना चाहती हु.
सर खुश हो गये. बोले: संध्या मैंने तेरी पुच्ची देख ली. क्या तू भी मेरा बुल्ला (बड़ा लण्ड) देखना चाहेगी.
मैंने कहा - हाँ सर ..
सर ने मुझे अपने पास सोफे पर बिठा दिया .. ओर उठकर रूम को अंदर से बंद कर दिया. फिर वापस आकर उन्होंने..अपने जूते, पैंट ओर फिर उनकी अंडरवियर निकाल दिया ओर नंगा हो कर मेरे बाजू बैठ गये. सर का लण्ड शानदार था. एकदम साफ़, चिकना , ७ इंच का कटा लण्ड था गुलाब सुपडे वाला , बाल साफ़ किये हुए , ओर मस्त बड़ी बड़ी गेंद जैसे गोटियां थी. सर ने मेरे दोनों हात पकड़ कर अपने गरम बुल्ले पर रख दिये. मैं उनके लण्ड से खेलने लगी.
मनीष सर: संध्या कैसे लगा मेरा बुल्ला ? पसंद आया तुझे?
मैं : हां सर, बहुत अच्छा है
सर: राजवीर से अच्छा है ?
मैंने झूट बोल दिया : हाँ राजवीर से अच्छा है ओर बड़ा है.
सर एकदम खुश हो गये. मर्दों को जीवन में सबसे बड़ी ख़ुशी - उनके लण्ड की तारीफ सुन के होती है. मुझे प्यार से पास खींचकर वह मेरे ओंठ चूमने लगे. दूसरे हातों से उन्होंने मेरी टॉप निकाल दी थी. ओर मेरी ब्रा खोल रहे थे. वयस्क मर्दों की यही खूबी होती है. उन्हें जल्दी नहीं होती . बड़े प्यार ओर इत्तेमान से धीरे धीरे प्यार करके चोदते है. हर औरत इसी तरह का प्यार ओर चुदाई चाहती है. जल्दी उन्होंने मुझे पूरा नंगा कर दिया - सिर्फ स्कर्ट रहने दिया . उन्होंने मुझे अपनी गोदी मे बिठा दिया ओर मेरे ओंठ चूसने लगे. मैंने भी उनकी शर्ट निकाल दी . उनकी बालों वाली छाती मुझे पागल कर रही थी. मनीष सर को नंगा देख कर मैं खुश हो गयी थी. मनीष सर को कॉलेज की हर लड़की सपने मैं नंगा कर के अपनी चुत मसलती थी. आज तो उन्होंने खुद मुझे मौका दिया था. मैं यह मौका गवाना नहीं चाहती थी. मैंने बड़े प्यार से मनीष सर के ओंठ चूस लिये. फिर प्यार से उनके छाती को चूमने लगी. मनीष सर के निप्पल्स बहुत बड़े ओर मोटे थे. ऐसे निप्पल्स मर्दों के मैंने पहली बार देखे थे. मैं उन्हें चाटने लगी ओर जोर से चूसने लगी. मनीष सर एकदम गरम हो गये.. आह....उम्म्म... करके उनका लण्ड मुझे निचे से मेरी चुत पर धक्के मारने लगा. मुझे मनीष सर की कमजोरी पता चल गयी. उन्हें ओरल सेक्स (चुम्मा - चाटी) में ज्यादा मजा आ रहा था. मैंने एक दो बार उनके निप्पल्स को चूस के हलके से काट भी लिया. वो उह,,,आह संध्या .. कर के करहा रहे थे. मैं निचे बैठकर उनके लण्ड को चाटने लगी. उनका पूरा लण्ड मैंने धीर से मुँह के अंदर ले लिया. जीभ फेर कर , उनके लण्ड के छेद के अंदर जीभ डालने लगी. उन्होंने मेरा सर पकड़ लिया ओर जोर जोर से अपने लण्ड से मेरा मुँह चोदने लगे. मुझे लगा की वह जल्दी झाड़ जायेंगे. पर मनीष सर पुराने खिलाडी थे. उन्होंने अपना लण्ड मेरे मुँह से बहार निकाला ओर मुझे सोफे पर सोने को कहा.
मैं सोफे पर सो गयी. वह मेरे ऊपर ६९ की पोजीशन मैं आ गये. उन्होंने मेरी चुत पर अपने ओंठ रख दिये ओर अपनी जीभ से मेरी चुत चाटने लगे. मनीष सर का लण्ड अब मेरे मुँह के पास था. मैंने उनका लण्ड अपने दोनों हातों से पकड़ लिया ओर सर को ऊपर उठाकर उनका लण्ड अपने मुँह में ले लिया. सर बहुत प्यार से धीरे धीरे मेरी चुत के दाणे को चाट रहे थे, अपनी जीभ फिरा कर मेरी चुत की मुन्नी से प्यार कर रहे थे. मैं भी उनकी देखा देखि बहुत प्यार से उनके लण्ड के सुपडे को चूस रही थी. उनका लण्ड मेरी थूक से पूरा गिला ओर चिकना हो गया था.
तभी मनीष सर ने अपने दोनों हातों से मेरी गांड ऊपर उठा दी ओर मेरी गांड चाटने लगे. वह मेरी गांड को काट देते ओर मेरी गांड की छेद पर जीभ से चाटने लगे थे. पहली बार किसी ने इतने शिद्दत से मेरी गांड चाटी थी. सर ने मेरी गांड के छेद पर अपने ओंठ रख कर उनकी पूरी जीभ मेरी गांड की छेद मैं डाल दी. मैंने भी उनकी देखा देखी कर के उनका लण्ड मेरे मुँह से निकाल लिया ओर उनकी गांड निचे करके उनके गांड को चाटने लगी. उनके गांड पर बाल थे ओर उनकी गांड का छेद बालों से भरा था. मैंने उनके गांड की छेद को अपनी जीभ से चाट लिया ओर जीभ अंदर डालने लगी.
मनीष सर: आह संध्या .. क्या मस्त मोटी गांड है तेरी. क्या महक हैं तेरी गांड की
मैं ; सर .. बहुत अच्छा लग रहा ..आप बहुत मस्त गांड चाटते हो.
सर: आह..संध्या तू भी बहुत मस्त चाट रही मेरी गांड.
मैं: सर आप की गांड बहुत साफ़ सुथरी हैं. बहुत मस्त मरदाना खुशबु ओर स्वाद है.
मैं प्यार से पूरी जीभ अंदर बहार कर के सर की गांड का गुलाबी छेद चाटने लगी. सर की गांड सच मे बहुत साफ़ थी ओर सच मे उसकी महक ओर स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था. मुझे गरम कर रहा था. सर ने तभी मेरी गांड को चाटकर अपने दूसरे हात से एक जोरदार चांटा मेरी गांड पर मार दिया..ओर बोला - कामिनी.. ! .छिनाल..! गांड ..मटका कर रोज मेरे लण्ड को तरसाती है.
मैं..- आह सर. सॉरी . मुझे नहीं मालूम था मेरी गांड ने आपके प्यारे लण्ड को इतनी तकलीफ दी. आप मेरी गांड को मार-मार कर पिटाई कर दो .. सक्त सजा दे दो सर.
सर. - . यह ले.. उम्...आह.. तेरी गांड तो लाल हो गयी.
उन्होंने मेरी गांड पर एक..दो.. ऐसे कई चपाट मारे..
मैं - उह सर..दर्द होता है..उम्.....मारो सर..होने दो उसको लाल सर..मेरी कमीनी गांड को आज सजा दे दो.
ओर मैंने भी सर की गांड को हलके से दातों से चबा दिया. मेरे काटने से सर. - .आह..उफ़.. संध्या ! कर के गरम आहें भरने लगे. मैंने भी मौका देखा ओर सर की गांड पर एक चांटा जोर से मार दिया.
वैसे ही सर बोले .- आह संध्या ! .. ओर जोर से..
मैं - हाँ सर..आपकी गांड भी लाल हो रही हैं..इसकी अच्छी से पिटाई करती हूँ. आपने कठोर अनुशाषण से सब बच्चों को डरा कर रखा है. आपकी यही सजा है.
मैं सर की गांड पर जोर-जोर से चपाट मारते रही.
सर भी..आह ..संध्या.. ओर..जोर से...उम्म्म...हाँ दे दो मुझे सजा.. आह.. अगली बार स्केल पट्टी ओर अपनी सैंडल से मारकर इसको सजा देना...सर उफ़.. आह करते रहे.
मेरी गांड को निचे रखकर कर वो अब मेरी चुत को चाटकर चुत का रस पी रहे थे. मैं भी उनके गांड पर चांटे मार मार कर थक गयी थी..पर उनकी प्यास बुझी नहीं थी.. मुझे मालूम था उनकी प्यास अब मेरे सैंडल या स्केल पट्टी से बुझेगी.
मैंने उनका लण्ड फिर से पकड़ लिया. उनका लण्ड ..फूल कर फुफकार रहा था. मैंने धीरे से उनका लण्ड आपने मुँह में लेकर पूरा अपने गले तक डाल दिया.
सर..आह...संध्या ...क्या मस्त बुल्ला चुस्ती है तू
मैं : सर आपका बुल्ला हैं ही बहुत प्यारा , एकदम जबरदस्त
मनीष सर खुश हो गये : आह संध्या .. सर मत बोलो.. सिर्फ मनीष बोलो.
मनीष सर..अपनी गांड आगे पीछे कर के मेरे मुँह को चोद रहे थे. उनका पूरा लण्ड मेरे मुँह मैं ठूस जाता ओर उनकी गोटियाँ मेरे ओंठों के निचे टकरा जाती.
मैं : नहीं सर यह गलत है.. आप मेरे सर हो. मेरे से बड़े हो,
मनीष सर का लण्ड मेरे मुँह में धक्के पर धक्के दे रहा था.. ओर वो मेरी चुत का दाणा प्यार से चूस रहे थे.
मनीष सर.: संध्या हम दोनों बिस्तर पर नंगे है. नंगे लोग न बड़े होते न छोटे , सब एक समान ..आह संध्या तेरी मुन्नी (दाणा) कितनी रसीली हैं..
मनीष सर ने हलके से मेरे चुत का दाणा ओंठों से दबा दिया. .
मैं: आह मनीष...! उम्म्म.........उह....करके झड़ गयी. मेरे शरीर ने कांप के कही झटके दिये. झड़ते वक्त मैंने भी मनीष सर के लण्ड के टोपे को जोर से चूस लिया ओर अपने होठों से दबा दिया.
मनीष सर: आह...ले ले मेरा पाणी संध्या .. पूरा पाणी पी ले . ओर उन्होंने पूरा पाणी मेरे मुँह मैं डाल दिया. मैंने उनको सिर्फ उनके नाम से बुलाने से वो खुश हो गये थे.
उनके लण्ड का पाणी खारा ओर गाढ़ा था. मैंने भी उनके लण्ड का सूपड़ा चूस चूस कर सारा पाणी पी लिया. मनीष सर भी अपनी जीभ निकाल कर मेरी चुत का पाणी चाट रहे थे.
मनीष सर बड़े खुश हो गये: वाह संध्या मजा आ गया .. पहली बार किसी ने मेरे लण्ड का पाणी पिया. बता कैसे लगा.
मैं: मनीष आप के लण्ड का पाणी बहुत स्वाद भरा था. एकदम लाजवाब ओर गरम - एकदम आप जैसे.
सर खुश हो गये. वह मेरी ऊपर कुछ देर लेटे रहे ओर मेरे चुत का पाणी चाटते रहे. मैंने भी उनका लण्ड अपने मुँह से तब तक बहार नहीं निकाला जब तक वह सिकुड़ नहीं गया था.
सर सोफे पर बैठ गये. सर ने मुझे अपनी गोदी में बिठा दिया ओर मुझे चूमने लगे. मेरे ओंठों पर अभी भी उनके लण्ड का पाणी लगा था. वह मेरे ओंठ चूसकर सब पाणी पिने लगे. उन्हें अपने लण्ड के पाणी का स्वाद मेरे मुँह से चखते हुए बड़ा मजा आ रहा था.
सर ने कहा : संध्या अब शाम हो गयी. वॉचमैन आता ही होगा. देखो आगे से ख्याल रखो. मुझे तेरे ओर राजवीर के खेल से कोई दिक्कत नहीं पर ओर किसी ने देख लिया तो बदनामी होगी. तेरा नाम ख़राब होगा...वगैरे ...वगैरे .. वह मुझे समजा रहे थे.
मैंने सर से कहा..सर सॉरी.. मैं आगे से ख्याल रखूंगी. पर मैं ऐसा नहीं करती तो आप मुझे कैसे मिलते? सर मुस्कुरा दिये. सर ने पूछा - फिर से मिलोगी.
मैं: हाँ सर , आप मुझे बुला लेना जब भी आप फ्री हो. प्रोजेक्ट भी पूरा करना है ना.
हम दोनों हंसने लगे. सर ने हँसते कहा - पर एक शर्त पर. तुम मुझे अकेले मैं मेरे नाम से बुलाओगी .
मैंने कहा - हां मनीष
सर के सिकुड़े हुए लण्ड को देखकर मुझे पता लग गया था की सर एक पारी (inning ) के खिलाडी है. हमने कपडे पहने, पर पैंटी नहीं होने की वजह से , स्कर्ट के अंदर अभी भी नंगी थी. जाने से पहले सर ने मुझे फिर से अपनी बाहों मैं भर लिया ओर एक लम्बा गुड बाय चुम्मा दिया ओर मेरे स्कर्ट के अंदर अपनी ऊँगली डाल दी. मेरी गीली चुत का रस अपनी ऊँगली से निकाल कर उन्होंने मुझे आँख मार दी ओर उनकी ऊँगली मुंह मैं डालकर चूसते रहे. सर क्लास में जितने सक्त ओर कठोर थे, प्यारके मामले में इस उम्र मैं भी उतने ही ज्यादा रंगीन थे.
मैं अपने कपडे ठीक ठाक कर के .. कॉलेज से बहार आयी ओर अपने हॉस्टल की तरफ जाने लगी. कॉलेज की टाइमिंग ख़तम हो गयी थी, सब घर चले गये था, सुनसान था. कैंटीन के सामने मुझे राजवीर अकेला खड़ा मिला. राजवीर ने कहा - संध्या कहा थी. कब से तुझे ढूंढ रहा था.
मैंने कहा - यही लाइब्रेरी मैं थी. उसने कहा - मैंने तुझे वहा भी ढूंढा , तू दिखी नहीं.
मैंने कहा - टॉयलेट में होंगी तभी शायद. क्या करू, पैंटी नहीं होने की वजह से सब गिला हो जाता है.
राजवीर मुस्करा दिया: अच्छा है ना. ! तुझे मस्त फ्री लग रहा होगा. निचे से ठंडी हवा भी चुत को लग रही होगी. यार क्लास में कुछ मजा नहीं आया. मनीष सर ने सारा खेल बिगाड़ दिया. चलो ना कही चलते हैं.
मैंने कहा - कहा जायेंगे ? ओर अनीता ?
राजवीर: मैंने अनीता से जानबुज कर झगड़ा कर डाला. वो अपने रूम पर हॉस्टल चली गयी है. . चल टेरस पर चलते है.
मेरी चुत में लण्ड की भूक लगी थी. उस वक्त सिर्फ राजवीर उसे बुझा सकता था. मैंने आस पास देखा. कोई नहीं था. मैं राजवीर के सात उसके पीछे चलने लगी.
दरवाजे पर बेल बजी. स्वप्नील खाना लेकर आया था. घर में घुसते ही उसने अपने बनाये नियमो के अनुसार सारे कपडे निकाल दिये और पूरा नंगा हो गया. मैं बिस्तर पर लेटी थी. मेरी चुत से अभी भी बंटी का गाढ़ा वीर्य बहार निकल रहा था. मैंने बाथरूम जाकर उसको साफ़ नहीं किया. बंटी का गरम वीर्य मुझे मेरी चुत के अंदर बहुत अच्छा लग रहा था. ऐसे लग रहा था की बंटी को कोई भाग या अंश मेरे शरीर के अंदर है और वह अब मेरे शरीर का हिस्सा है.
स्वप्निल एक हट्टा कट्टा ६ फ़ीट ऊँचा मर्द था, उसने मुझे गुड़िया की तरह अपने दोनों हातों से बिस्तर पर से उठाया ओर डाइनिंग टेबल पर ले गया. तब तक बंटी ने प्लेट मैं खाना लगा दिया था. स्वप्निल ने डाइनिंग टेबल की खुर्ची पर बैठकर मुझे अपनी गोदी मैं बिठा लिया. मुझे स्वप्निल का गोरा, गुलाबी लण्ड अपनी गांड पर रगड़ता महसूस हुआ. मैं स्वप्निल की गोदी में , उसके गले में बाहें डाल कर बैठी थी और वह मुझे अपने हातों से खाना खिला रहा था. मैंने बंटी की तरफ देखा. उसने मुझे आँख मर दी. अजीब चमक और शरारत थी उसके आँखों मैं. ना कोई जलन, ना कोई शिकायत , कितना कॉन्फिडेंस और भरोसा था उसे खुदपर. स्वप्निल खाने के साथ मिठाई मैं गुलाब जामुन भी लाया था. खाना खाने के बाद, उसने गुलाब जामुन का कुछ चाशनी मेरे बूब्स पर, निप्पल्स पर डाल दी और चाटने लगा. बंटी ने कहा - मिठाई तो मैंने भी कहानी है और उसने उसकी खुर्ची मेरे पास खिंच ली और वह भी मेरे चूचियों पर से गुलाब जामुन की चाशनी चाटने लगा. स्वप्नील का लण्ड खड़ा होकर तन गया था ओर मेरी गांड की दरार मैं गांड की छेद पर टकरा रहा था. स्वप्नील ने शरारत कर के मुझे पीछे खिंच लिया तो उसका लण्ड का सूपड़ा बिलकुल मेरी गांड की द्वार को जोर से धक्का देकर टकरा गया. मुझे थोड़ा दर्द हो गया ओर मैंने कहा - नहीं स्वप्नील..यह नहीं..करके आगे खिसक गयी. बंटी हंसकर बोला - हI स्वप्नील, इसकी चुत को चोदने का उद्घाटन का मौका तो मुझे नहीं मिला , पर इसकी गांड का उद्घाटन जरूर मेरा लण्ड ही करेगा. मैंने बंटी का लण्ड पकड़कर जोर से दबा दिया - चुप कमीने .. बंटी ने - आह ! कर के आहें भर दी. हम सब हंसी मजाक कर रहे थे.
मेरी चुत अब फिर से गीली होने लगी थी . बंटी का पाणी अभी भी मेरी चुत से बहार निकल रहा था और स्वप्निल के जांघों पर गिर के चिपक रहा था. स्वप्निल की दोनों जाँघे मेरे और बंटी के पाणी से गीली होकर चिप चिपी हो गयी थी. स्वप्निल ने मेरी चुत के अंदर एक ऊँगली डाल दी और चिप चिपा पानी निकल कर सुंघा - आह इसमें तो संध्या और बंटी दोनों की महक है.. हम सब हंसने लगे. उसने वह ऊँगली मुँह मैं डाल दी और चाट ली. कहा - या तो बड़ा स्वाद दे रहा है. मुझे सब चाटना है. उसने मुझे वैसे ही गोदी मैं उठा लिया और धीरे से सोफे पर बिठा दिया. मेर दोनों पैर अपने हातों से फैला दिये और मेरी चुत को अपने जीभ से चाटने लगा. मुझे बड़ा अजीब लगा. स्वप्निल बड़ी चाव से मेरा और बंटी का मिश्रित पाणी, मेरी चुत के अंदर से चाट रहा था. जैसे कोई अमृत हो. बंटी का लण्ड अब तनाव में आकर कड़क हो गया था. उसने सोफे के साइड से आकर खड़े खड़े उसका लण्ड मेरे मुँह के पास रख दिया. मैंने अपने दोनों हातों से बंटी का लण्ड पकड़ लिया और उसको चूमने लगी और चूसने लगी. बंटी ने भी अपना लण्ड धोया नहीं था. उसका लण्ड मेरे और उसके पानी से भीगा था, मुझे हम दोनों का स्वाद ओर महक उसके लण्ड पर महसूस हो रहा था. मैंने बंटी का काला ८ इंच का लण्ड धीरे धीरे , अपना गला ऊपर कर के, पूरा मुँह के अंदर गले तक ठूस लिया. बंटी बहुत खुश हो गया. उधर स्वप्निल ने मेरी चुत चाट- चाट कर , अंदर तक अपनी मोटी लम्बी जीभ डाल दी थी और बंटी ओर मेरा पूरा पाणी चाट लिया था. अब मेरी चुत सिर्फ उसकी थूंक के कारण गीली थी.
मेरा सारा ध्यान बंटी के लण्ड पर था, जो लण्ड मुझे इतनी ख़ुशी देता है, उसे मुझे आज बहुत प्यार करना था. मैं बंटी के लण्ड को कभी ओंठो से, कभी गालों पर , कभी मेरे चूचियों पर रगड़ देती, चूमती ओर चूसती . बंटी का नाग अब मेरे मुँह मैं फन-फ़ना रहा था. मुझे पता था चुत की बजाये मर्द का लण्ड औरत के मुँह और गले में जल्दी झड़ जाता है. तब तक स्वप्निल ने मेरे पाव अपने कंधे पर उठाकर अपना गोरा गुलाबी लण्ड मेरे चुत पर रख दिया था. उसने धक्का मारा, और उसका पूरा लण्ड मेरी चुत के अंदर चला गया. स्वप्निल मुझे निचे से मेरी चुत को अपने गोरे गुलाबी ७ इंच के कटे लण्ड से अंदर बहार कर के चोद रहा था और बंटी मेरे मुँह और गले को अपने मोटे काले ८ इंच के लण्ड से चोद रहा था. मेरी चुत पहले से बंटी के ८ इंच काले लण्ड की चुदाई से खुल गयी थी, इसलिए स्वप्निल का लण्ड आसानी से मेरे चुत में गोते लगा रहा था. मैं अब कांपने लग गयी थी..मेरी चुत अब गरम हो कर कसमसा गयी थी और मेरे मुँह से सिसकारियां निकल रही थी..आह.. मेरे बंटी ..उह ..स्वप्निल.. कमीनो .. चोद चोद कर मुझे मार डालोगे...आह.. मैंने बंटी का लण्ड पूरा गले तक लिया और जोर-जोर से उसके लण्ड को पकड़ कर चूसने लगी. बंटी ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया और ..आह..उह..कर के अपना लण्ड बहार निकाला और मेरे जीभ पर अपने लण्ड का पाणी गिराने लगा. मैंने नीचे अपने चुत से स्वप्निल का लण्ड कस के पकड़ लिया और वह भी..उसी समय..आह मेरी रानी..संध्या ..ले ले..करके .. उसका लण्ड मेरी चुत में झटके से गरम पाणी का फंवारा उड़ाने लगा. स्वप्निल ने कही झटके दिये और मेरी चुत के अंदर अपना सारा वीर्य डाल दिया. वह मेरे ऊपर लेट गया. मैं भी बंटी के लण्ड से हर एक बून्द अपनी जीभ से चाट रही थी, बंटी के पानी का स्वाद मुझे मादक लग रहा था. किसी दूध या शहद की तरह मीठा लग रहा था. मेरे लिये यह उसका तीर्थ प्रसाद था. बंटी का लण्ड अभी भी खड़ा था ओर मैं किसी लॉलीपॉप की तरह उसे मुँह में चूस कर उसका स्वाद ले रही थी.
हम तीनों अब थक गए थे. स्वपनिल ने फिर से मुझे उसके भारी भरकम शरीर के ऊपर उठा लिया और बैडरूम में लाकर मुझे बिस्तर के बीच में सुला दिया. इतनी चुदाई से मेरे पाँव कांप गये थे, मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी. स्वपनिल मेरे बाजू में लेट गया. उसने मुझे अपने दोनों हातों और पैरो के बीच बाहें फैला कर मेरे शरीर को पूरा अपने शरीर से जकड लिया. मैंने भी उसके भुजाओं पर अपना सर रख दिया और उसके ओंठों पर अपने ओंठ रखकर सोने लगी. बिस्तर के दूसरे छोर से बंटी आया और मुझे पीछे से चिपक गया. उसने उसका एक हाथ मेरे सीने पर मेरे मम्मों पर रख दिया. मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और उसके हात को अपने ओंठों पर रख दिया. पीछे से बंटी का लण्ड मेरी गांड की फांको मैं धस कर मेरे चुत को छू रहा था. मैंने फिर से उसके हात को चुम लिया और वैसे ही उसके हात पर अपने ओंठ लगाकर सो गयी. मेरा कनेक्शन अब पूरा हो गया था.
२ दिन तक स्वप्निल और बंटी ने मुझे बहुत प्यार किया. वह दोनों थे, मैं अकेली, उन दोनों को संतुष्ट करना आसान नहीं था. वह रात की गाड़ी से वापस चले गये क्यूंकि दूसरे दिन माँ - पापा वापस आने वाले थे..
जाने से पहले स्वपनिल ने मुझे सोने की अंगूठी गिफ्ट दी और बंटी ने मुझे २ सोने के कंगन दिये. मेरे आँखों मैं आंसू थे. मैंने कहा - इसकी क्या जरुरत थी, तुम दोनों तो अभी कमाते भी नहीं. जब कमाओगे तब देना. जो चाहे दे देना . बंटी ने कहा - ये उनके पॉकेट मनी की सेविंग्स से ली. कहा की उन्होंने दिल से मुझे यह गिफ्ट दिया है, मना मत करना. स्वपनिल ने कहा - संध्या तेरे सिवा हमारा ओर कौन है. हम हमारी ख़ुशी से दे रहे. तेरे कारण हमें कितना आनंद मिला हैं. . मैंने कहा - ठीक है अब तो ले लेतीं हूँ, पर आगे से कोई गिफ्ट नहीं लुंगी. मुझे उनके कमाई का गिफ्ट लेने मैं कोई हर्ज नहीं है. दोनों मुझे बाँहों मैं लेकर आगे पीछे लिपट गये ओर प्यार से मुझे चमन लगे. मेरे आँखों मैं पानी था. बंटी ने मेरे आँखों पर चुम लिया और मेरे आँखों का पानी चाट लिया कहा - रोना नहीं पगली, तू जब बुलायेगी हम आ जायेंगे.
मैं बहुत थक गयी थी..जल्दी से सो गयी.
उस दिन सुबह सुबह मुझे सपना आया - बंटी का तेजस्वी चेहरा, उसकी शरारती कामिनी आंखें, वह मेरे पास नंगा बैठा था, उसका कसा हुआ गठीला बदन, उसका लम्बा मोटा, काला ८ इंच का नाग, वह मुझे प्यार कर रहा था.
मैं नींद से तड़प कर उठी .. मेरा शरीर पसीने से भीगा था, मेरी चुत फड़फड़ा रही थी, शरीर कांप रहा था. चुत से पानी बह रहा था. पहली बार मैंने सपने मैं किसी मर्द को देखा था, प्यार किया था. क्या था यह ? और हरीश..? नहीं मैं तो हरीश से प्यार करती हूँ. पर हरीश के साथ यह अनुभूति क्यों नहीं हुई ?
सरदार ओर मेरी हवस !
मेरा इंजीनियरिंग का दूसरे साल का फाइनल सेमिस्टर शुरू हो गया था. हरीश अब फाइनल ईयर मैं था. उसने बहार फॉरेन यूनिवर्सिटी मैं आगे की पढाई की तयारी कर ली थी. हमें पता था की अब हम कुछ ५-६ महीने ही साथ रहेंगे, और फिर वह अपने आगे की पढाई या जॉब के लिए कॉलेज से पास होकर चला जायेगा. मुझे बड़ी बेचैनी हो जाती. क्या हम अलग हो जायेंगे ? या हमारा प्यार हमें जुदा नहीं कर पायेगा. उस ज़माने में ना आज की तरह इंटरनेट था, सोशल अप्प्स थे ना मोबाइल, ना फ़ोन. हमरा संपर्क सिर्फ लेटर / पत्र या आसपास कही पर फ़ोन होगा तो वहा से होगा. उस ज़माने में टेलीफोन की लैंडलाइन हुआ करती और वह भी महंगा होता और सिर्फ कुछ गिने चुने आमिर लोग ही उपभोग पाते.
फाइनल ईयर परीक्षा ख़तम होते ही हरीश आगे पढ़ने के लिए USA चला गया. मैं बहुत उदास रहने लगी. हरीश लगभग रोज मुझे चोदता था ओर अब मेरी चुत प्यासी थी. हरीश ने मुझे वहा से चिट्ठी लिखी. पर उन दिनों इंटरनेशनल लेटर भी २ हफ्ते में मिलते थे. मेरा तीसरा साल चालू हो गया था. बारिश के दिन थे. एक दिन राजवीर ने मुझे क्लास में कहा - संध्या क्या यार इतनी उदास हो. बस २ साल और फिर तू भी USA चले जाना. हरीश के पास . मैंने कुछ जवाब नहीं दिया. राजवीर ने कहा - हम सब दोस्त - अगले वीक-एन्ड पर एक दिन का पिकनिक प्लान कर रह है. तू भी आ रही है और माना नहीं करना. मैं तुझे ऐसे उदास नहीं देख सकता.
राजवीर एक हैंडसम पंजाबी सरदार था. उसकी पगड़ी और दाढ़ी मैं एकदम मरदाना लगता. किसी शेर की तरह हट्टा-कट्टा लगता था. साढ़े छह फ़ीट ऊँचा और बहुत ही मजाकिया स्वभाव का था. क्लास में पॉपुलर था. मुज़से बहुत फ़्लर्ट करता था और बहुत बार मुझे अपने प्यार का इजहार बिंदास पुरे क्लास के सामने करता था. अगले हफ्ते हम सुबह ही तयार हो गए. ६-७ लड़के और ३ लड़किया ऐसे हमारा ग्रुप था. एक ७ सीटर SUV बुक की थी और हम बड़े मुश्किल से ठूस कर गाड़ी मैं बैठे. आखिर की सीट मैं पैरो के बिच जगह थी, राजवीर ने कहा - संध्या तू आराम से सीट पर बैठ, मैं यहाँ सीट के निचे बैठ जाता हूँ. और वह एकदम मेरे पैरो से चिपक कर निचे बैठ गया. मैंने कहा - राजवीर ऊपर ही बैठो. कुछ घंटे के बात है, एडजस्ट कर लेंगे. राजवीर - अरे नहीं संध्या मैं तुम्हे तकलीफ मैं नहीं ले जाऊंगा. आराम से बैठो. ३ घंटे का रास्ता था. मैंने स्कर्ट और टॉप पहना था और मेरे पाँव पर स्कर्ट के अंदर लेग्गिंग्स पेहेनी थी. मेरा स्कर्ट घुटने तक था. बीच में रोड काफी ख़राब था, बैलेंस बनाने के लिए राजवीर मेरे पैरों को पकड़ लेता था. गाड़ी मैं जोर शोर से म्यूजिक चल रहा था. बियर की बोतल आगे से पीछे पास हो रही थी. हम सब मस्ती मैं थे. बीच मैं ही अगर गाड़ी को ब्रेक लगता , या स्पीड ब्रेकर आता, गिरने से बचने के लिए राजवीर मेरे पैरो को पकड़ लेता. ख़राब रोड की वजह से गाड़ी ड्राइवर धीरे धीरे ड्राइव कर रहा था. राजवीर का हाथ मेरे घुटने पर था. एक बड़ा गड्ढा आया और गाड़ी हिल गयी.. उसके साथ ही राजवीर का हात मेरे स्कर्ट के अंदर जांघों पर चला गया. उसने अपना हात वही रहने दिया. उसके बड़े बड़े हात और उंगलिया लेग्गिंग्स के ऊपर से मेरे जंघा पर गोल गोल घूमने लगे. बारिश का mausam था, बहार बारिश की वजह से अँधेरा था. गाड़ी मैं भी अँधेरा था, राजवीर इसी का फायदा उठा रहा था. राजवीर के बड़े हातों का स्पर्श मुझे अच्छा लग रहा था. मैंने भी जानबूझ कर ध्यान नहीं दिया और उसे रोका भी नहीं. राजवीर का हात धीरे धीरे मेरी जांघों पर ऊपर की तरफ जा रहा था. मेरे दोनों पैर फैले हुए थे और उनके बीच मैं राजवीर बैठा था, राजवीर को आसानी से स्कर्ट के अंदर मेरी पैंटी तक का रास्ता मिल गया. राजवीर अब धीरे से मेरी चुत को कपड़ों की ऊपर से सहला रहा था. मेरे चुत से अब पाणी बह रहा था. राजवीर बड़े प्यार से मेरी चुत को मसल रहा था. मेरी चुत के पाणी से अब मेरी पैंटी और उसके ऊपर की लेग्गिंग गीली हो गयी. राजवीर के हात को मेरे चुत का चिप-चिपा पाणी लगा. उसने वह अपना हात बहार निकल कर मेरी तरफ देख कर चाट लिया और मुस्करा कर मुझे आँख मार दी. उसने फिर से उसका हात मेरी स्कर्ट के अंदर डाल दिया और फिर से मेरी चुत को सहलाने लगा. उसने मेरी स्कर्ट के अंदर लेग्गिंग ओर पैंटी निचे खींचने को कोशिश की ओर अपना हात मेरी पैंटी के अंदर डालना चाहा. पर लेग्गिंग्स बहुत टाइट फिट थी..उसको बड़ी दिक्कत हो रही थी. तभी मैंने देखा की हम हमारे पिकनिक स्पॉट के पास आ रहे है. मैंने नखरे दिखा कर उसका हात पकड़ लिया और झटक दिया. उसको गुस्से से देखा. राजवीर सकपका गया. उसको लगा कही मैं तमाशा ना खड़ा कर दू. तभी हम सब निचे उतरने लगे.
पिकनिक मैं मैंने जानबूझ कर राजवीर से कोई बात नहीं की. वह २-३ बार मेरे पास आकर सॉरी कहने लगा. दोपहर को मुझे अकेली देख कर उसने कहा - संध्या सॉरी यार. अब तो मुज़से बात करो. देखो मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. यह बात तू ही नहीं पूरी क्लास जनता है. मैं खुद को काबू मैं नहीं रख पाया. प्लीज मुझे माफ़ कर दो. आगे नहीं करूँगा. मैंने कहा - ठीक है, माफ़ कर दिया. पर आगे से ध्यान रखना. तेरी गर्ल फ्रेंड अनीता मेरी रूम पार्टनर है. वह क्या सोचेगी? राजवीर ने कहा - अनीता को में प्यार नहीं करता. तुम उसकी रूम पार्टनर हैं इसलिए में उसको भाव देता हूँ. प्लीज मुझे माफ़ कर दो. मैंने कहा.. वह सब ठीक हैं पर अब तुम जाते वक्त तू निचे नहीं बैठोगे. ऊपर सीट पर बैठोगे. राजवीर ने मजाक मैं कहा - फिर तू कहा बैठेगी ? मेरी गोदी मैं? मैंने भी हंसकर कहा दिया - हाँ तेरी गोदी मैं बैठूंगी. वहा अच्छासा टॉयलेट देखकर मैं अंदर चली गयी.
पिकनिक से वापस आते वक्त शाम हो गयी थी, अंधेरा था. राजवीर मेरी साइड डोर के पास बैठ गया. आगे पीछे बैठकर हमने आधी - आधी सीट शेयर कर ली. पर जब पहाड़ों से गाड़ी चलने लगी तब हमें बड़ी दिक्कत हो रही थी. मैं बार बार राजवीर की छाती से टकरा जाती या निचे खिसक जाती. राजवीर ने टी शर्ट और बरमूडा पहनी थी. उसकी काले बालों से भरी छाती और जांघें मुझे आकर्षित कर रही थी. गाड़ी में म्यूजिक बज रहा था और गाने का शोरगुल हो रहा था. राजवीर ने मेरी कान में कहा - तू मेरी गोदी मैं बैठने वाली थी. मैंने भी - हां कहा कर उसके जांघों पर अपनी गांड फैला कर बैठ गयी. राजवीर को यह अपेक्षित नहीं था. रास्ता उबड़ खाबड़ था. राजवीर ने अपने हात आगे कर के मुझे पकड़ लिया. उबड़ खाबड़ रोड पर मैं राजवीर के जांघों पर उछल रही थी .. और मुझे उसके मोठे लण्ड का आकर महसूस होता. मैंने राजवीर का एक हात लेकर मेरी जंघा पर रख दिया. राजवीर खुश हो गया. मेरी जंघा नंगी थी. मैंने पहले ही टॉयलेट जाकर मेरी लेग्गिंग उतर दी थी. राजवीर ने मेरे जांघों पर हात फेरने लगा. वह धीरे से उसका हात मेरी चुत के तरफ ले जाने लगा. उसके हात पर मेरी गीली चुत का पाणी लग गया. राजवीर ने मेरे कान मैं कहा - तू तो नंगी हो गयी. दिन भर तूने बड़े नखरे किये, मुझे तड़पाया.
मैंने टॉयलेट मैं अपनी पैंटी भी उतार कर पर्स में डाल दी थी.
मैंने कहा - तो अब तुझे कौन रोक रहा है.
राजवीर ख़ुशी से चहक उठा. वह स्कर्ट के अंदर हात डाल कर मेरी चुत से खलने लगा, सहला कर मसलने लगा. बाकी सब लोग मजे कर रहे थे, दारू पी रहे थे.सब लोगों के सामने हमारा सीक्रेट खेल चल रहा था. हम दोनों बड़े गरम हो गए थे. मुझे मेरी गर्दन पर राजवीर की गरम सांसे महसूस हो रही थी. वह मेरी गर्दन को पीछे से चुम रहा था. हलके से राजवीर ने अपनी एक ऊँगली मेरी चुत के अंदर डाल दी. उसकी लम्बी मोटी ऊँगली किसी लण्ड से कम नहीं थी. शाम हो गयी थी. गाड़ी में अंधेरा था. एक जगह राजवीर ने मुझे गोदी से उठा दिया और एक झटके में उसकी बरमूडा निचे पैरो पर खिसका दी और मुझे फिर से अपनी नंगी गोदी मैं बिठा दिया.
मुझे मेरी गांड पर राजवीर का मोटा लण्ड फनफनाता महसूस हुआ. वह बहुत मोटा और लम्बा था. शायद हरिया से बड़ा और मेरे जीवन का अब तक सबसे विशाल लण्ड था. हम कुछ ज्यादा नहीं कर सकते थे. क्यों की बाजू ओर सामने की सीट बैठे दोस्तों को भनक लग जाती. मैं मेरी गांड से राजवीर के लण्ड को ऊपर से मसल रही थी. मेरी चुत के द्वार पर राजवीर के लण्ड का सूपड़ा दस्तक दे रहा था. मेरी चुत के पाणी से उसका लण्ड गिला हो गया था. एक जगह राजवीर ने मेरी गांड पकड़ कर ऊपर उठा दिया और अपने लण्ड को मेरी चुत के ऊपर सटा कर मुझे उसके ऊपर बिठा दिया. उसका लण्ड मेरी गीली चुत मैं अंदर तक घुस गया. इतना मोटा और बड़ा लण्ड.. किसी खूंटी की तरह मेरी चुत में ठूस गया. मैं दर्द से चीखती, उसके पहले ही राजवीर ने एक हात से मेर मुँह को दबा दिया और चुप करा दिया.
कुछ देर वैसे ही उसके लण्ड पर बैठ कर मेरा दर्द अब कम हो गया था. पर गाड़ी के धक्के के सात-सात , राजवीर मुझे उछाल देता और अपने लण्ड को आगे पीछे धक्का देकर मेरी चुत को चोद देता. राजवीर पीछे से मेरे कानों में गन्दी बातें करके शरारत कर रहा था. शोरगुल मैं किसी को पता नहीं चला. मैं आगे बैठी थी इसलिए कुछ बोल नहीं पा रही थी.
राजवीर: आह. ! संध्या तेरी फुद्दी की भट्टी कितनी गरम है.मेरे लोडे को जला देगी.
राजवीर: संध्या इस मौके का मैं २ साल से इंतजार कर रहा था. तेरी फुद्दी तो मस्त है , गरम पाणी का झरना है.
राजवीर: बेहेन की लोड़ी.. तेरी फुद्दी इतनी गरम हैं तो गांड कितनी गरम होगी. तेरी फुद्दी के बाद तेरी गांड भी मरूंगा.
वह मुझे अपने दोनों हातों से मेरी गांड पकड़ कर गाड़ी के धक्कों के सात मेरी गांड अपने बड़े लोडे पर उछाल रहा था. मुझे उसके गन्दी बातों से और पब्लिक सेक्स से मजा आ रहा था. मेरा उन्माद बढ़ रहा था. मैंने अपने ओंठ दबा दिए और ...आगे ले सीट को पकड़ लिया. मैं थर-थरा कर राजवीर के लण्ड पर झड़ गयी. मेरी चुत ने कही बार राजवीर के मोटे लण्ड को कस कर जकड लिया और उसको अपने गरम पाणी से भिगो दिया. राजवीर भी मेरी चुत की इस हरकत से सीट पर पीठ दबाकर पीछे बैठ गया और ..उसका लण्ड मेरी चुत मैं फंवारा उड़ने लगा. मुझे मेरी चुत मैं उसके गरम पाणी का अहसास हुआ. एक के बाद एक करके अनेक झटके उसके लण्ड ने मेरी चुत के अंदर लगाये. हम बहुत देर तक वैसे ही बैठे रहे. उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था. ना उसका लण्ड मेरी चुत से जुदा होना चाहता था , ना मेरी चुत उसके लण्ड से बिछडना चाहती थी.
कॉलेज पहुंचने तक मैं वैसे ही उसके लोडे पर बैठी रही. इस दौरान वह दूसरी बार मेरी चुत में उसका पाणी उड़ाकर भिगो चुका था और मैं भी ४ बार झड़ गयी थी.
हॉस्टल पहुँच कर में कमरे में जाकर सो गयी. मेरी रूम पार्टनर अनीता ने पूछा - कैसी रही पिकनिक. उसकी एग्जाम थी, इसलिए वह आ नहीं पायी थी. राजवीर ने भी बड़े सोच समाज कर यह पिकनिक की प्लानिंग की थी. उसने सोचा था पिचकिनीक पर किसी अच्छे सुनसान स्पॉट पर मुझे ले जाकर चोदेगा. उसके हिसाब से गाड़ी के अंदर साब दोस्तों की उपस्थिति में सेक्स का अनुभव उसके सोच ओर प्लानिंग से कही गुना अच्छा था. मैंने अनीता से कहा - पिकनिक ठीक थी , तुझे आना चाहिए था. राजवीर को तेरी कमी बहुत खल रही थी. बड़ा उदास था. अनीता को कैसी बताती कि - मैं उसके बॉयफ्रेंड राजवीर से चुदकर आयी हूँ.
मैंने कपडे भी नहीं बदले और वैसे ही सोने लगी. मेरी चुत से अभी भी राजवीर का पाणी बह रहा था. मैं सोचनी लगी - यह क्या था ? ना कोई प्यार, ना कोई वादा , वचन, ना कोई चूमा , ना कोई foreplay .. सिर्फ शुद्ध चुदाई .. क्या यह सिर्फ मेरी हवस ओर लालसा थी. ? क्या यह गलत था ?
मेरी बढ़ती हवस !
दूसरे दिन मैं कॉलेज गयी. क्लास में सब लड़के लड़किया आ चुके थे. सर अभी आने के थे. राजवीर मेरे बाजू वाली सीट पर आकर बैठ गया. अनीता मुझे दूर से घूरने लगी. मैंने कहा - मैं तो अच्छी हूँ.. पर तू खुद अपना देख ले..अभी अनीता के पास जाकर बैठ जा. वह मुझे गुस्से से घूर रही है. उसने कहा - तू अनीता की चिंता मत कर. वो रंडी मेरे लण्ड की दीवानी है. रोज कॉलेज की टेरेस पर मुज़से चुदवाती है. आज भी चोद दूंगा उसे..उसकी ख़ुशी उसी में है. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक !
उस दिन राजवीर पूरा समय मेरे साथ बैठा. जब भी कोई शिक्षक पढ़ाता था, वो मेरी जांघों पर अपना हात फेर देता था. आज मैंने जीन्स ओर टॉप पहना था. इसलिए उसे खास मजा नहीं मिल रहा था. राजवीर ने कहा - संध्या कल से हम सबसे पीछे वाले बेंच पर बैठेंगे और तू भी रोज स्कर्ट पेहेन कर आना ओर वो भी बिना पैंटी के. मैंने उसे मना कर दिया. उसने कहा - प्लीज संध्या , बहुत मन कर रहा तुझे फिर से चोदने का, तेरी चूत एकदम मस्त रसीली है. मैंने उसे कहा - मुझसे ऐसी बातें मत कर. ऐसे कुछ नहीं होगा अब. कल जो हुआ वह पहली और आखरी बार था. तू जा कर अनीता को चोद. मेरे से कुछ उम्मीद मत रख. .
मैं गुस्से से उठी. और लाइब्रेरी चली गयी. घर जाते वक्त मैंने देखा राजवीर और अनीता सीढ़ियों से टेरेस की तरफ जा रहे थे. राजवीर एक पंजाबी सिख सरदार था. उसके लिए लाइफ बड़ी आसान थी. जो मन में आता वही करता और बोल देता. दिमाग पर जोर नहीं देता. कमीना पर सच्चा और बिंदास था. उसकी यही बातें मुझे अच्छी लगती. कोई दिखावा नहीं, कोई झूट नहीं.. सीधी बात, ना कोई बकवास !
रात को अनीता रूम पर आयी.. मेरे से बात नहीं की. उखड़ी उखड़ी थी.
मैंने पूछा - क्या हुआ अनीता, सब ठीक है ना ?
गुस्से में बोली - तू राजवीर से दूर ही रहा कर.
मैंने कहा - मैं किसी के पास नहीं जाती, वोही मेरे पीछे कुत्ते की तरह घूमता है. तू उसे संभाल नहीं सख़्ती तो मुझे दोष मत दे.
हमारा झगड़ा हो गया.
दूसरे दिन मैं खुद को रोक नहीं पायी और मैंने स्कर्ट पहन ली. रूम से कॉलेज निकलते वक्त मैं आखिर वक्त पर बाथरूम चली गयी और मेरी पैंटी भी निकाल ली. मैं कॉलेज पैदल चल के जाती थी. मुझे खुले स्कर्ट के निचे से मेरी नंगी चुत पर ठंडी हवा लग रही थी. पता नहीं क्यों अच्छा लग रहा था, आजाद लग रहा था, रोज की तरह आज भी मुझे कॉलेज के फर्स्ट ईयर से लेकर फाइनल ईयर के सब लोंडे घूर कर वासना भरी नज़रों से चोद रहे थे. आज मुझे अंदर नंगी होने की वजह से एक अच्छी चुदाई वाली अनुभूति हो रही थी.
मुझे देखकर राजवीर खुश हो गया. वह भी सिर्फ बरमूडा और टी शर्ट में था. मैं आखरी बेंच पर जाकर बैठ गयी. वह मेरे बाजु आकर बैठ गया. कहा - अरे वाह ! संध्या आज गजब की लग रही हो. और थैंक यू .. तू मुझे ऐसे ही सरप्राइज दे देती है.
मैंने पूछा - अनीता क्यों इतनी भड़की है ? मुज़से झगड़ा कर डाला रात को.
राजवीर - छोड़ो उस रंडी को. फ़िक्र मत कर. कल उसको कॉलेज की टेरस पर बहुत चोदा. पर चोदते वक्त मेरे मुँह से गलती से तेरा नाम निकल रहा था.. आह संध्या ! ..क्या मस्त चुत है.. ! संध्या तेरी बड़ी गांड मारनी है !... इस वजह से वह भड़क गयी.
मुझे हंसी आ गयी. हम दोनों हँसने लगे. अनीता दूर से हमें देख रही थी. मनीष सर क्लास में आ गये. मनीष सर बड़े सक्त ओर कठोर अनुशाषण वाले थे , पर उनकी पर्सनालिटी भी बहुत अच्छी थी.. ६ फ़ीट हाइट , लम्बे अमिताभ बच्चन जैसे बाल, ओर बहुत हॉट थे, ४५ साल की उम्र मैं भी वो जवानी के उफान पे थे ओर एकदम जॉन अब्राहम की तरह दिखते थे. वह कपडे भी टाइट पहनते, जिससे उनकी बॉडी, जांघें , गांड ओर लंड का मोटा उभार साफ दीखता था. बहुत सारी कॉलेज की लड़किया उनपर मरती थी ओर रात को सोते वक्त उनको याद करके अपनी चुत मसलती थी. उन्हें शायद यह पता था,इसलिए वह कॉलेज बाद स्टाइल मैं आते..टाइट फिटिंग्स के कपडे ..परफ्यूम लगा कर बड़े बन-ठन कर आते.
मैं पीछे बेंच पर दिवार को लग कर बैठी थी ओर मेरी दायी बाजु राजवीर था. राजवीर ने अपना बाया हात मेरी जांघों पर रख दिया ओर धीरे से उसका हात मेरी जांघों के ऊपर फेरने लगा. मैंने भी अपना दाया हात उसके बालों से भरी जांघों पर रख दिया ओर ऊपर की तरफ सहलाने लगी. राजवीर का काला लंड बरमूडा की बायीं पैर की तरफ से बहार निकल आया था. मैंने आज पहली बार उसके लंड को देखा था , उस भारीभरकम लण्ड से राजवीर ने दो दिन पहले मेरी मुलायम चिकनी चुत की २ घंटे कुटाई की थी. इतना बड़ा ओर मोटा लंड मैं पहली बार देख रही थी. मुज़से रोका नहीं गया. मैंने उसकी बरमूडा ऊपर उसके जांघों तक कर दी ओर बड़े-बड़े मोटे बालों वाले टट्टे पकड़ लिए. उसके लंड के ऊपर बहुत सारा काले झाटों का जंगल था. इतने झाटों वाला लंड ओर बड़े टट्टे मैंने पहली बार देखा था. मेरे हातों पर राजवीर का झाटों वाला लंड ओर टट्टे बड़े मस्त लग रहे थे. तब तक राजवीर ने भी अपनी मोटी उंगली मेरी चुत के अंदर डाल दी थी.
मनीष सर क्लास में पढ़ा रहे थे. हम दोनों उनकी तरफ देख कर, चुपके से निचे अपने हातों से चुत ओर लंड के खेल का मजा ले रहे थे. मैंने मनीष सर के हात को देखा.. उनकी हात का पंजा ओर उंगलियां भी बड़ी थी. मुझे एक पल के लिये लगा की मेरी चुत में राजवीर की नहीं , मनीष सर की उंगली है. मनीष सर आदत अनुसार पढ़ाते वक्त क्लास की बिच की जगह से चलकर आखिर बेंच तक आते ओर फिर से आगे ब्लैकबोर्ड की तरफ चले जाते. इस बार वह बहुत देर तक पीछे खड़े रहे.
फिर उन्होंने कहा - राजवीर .. बता मैंने X Y Z .. के बारें मैं क्या पढ़ाया !.
राजवीर हड़बड़ा गया. उसने झट से मेरी चुत ओर स्कर्ट से हात निकाला ओर मैंने भी उसके लंड पर से हात निकाल दिया. उसको कुछ जवाब नहीं आ रहा था. पूरी क्लास उसको देख रही थी. वह किताब अपने बरमूडा के आगे हात में लेकर खड़ा हो गया. उसके लंड ने बरमूडा में बड़ा तम्बू बना दिया था. वो उस तम्बू को किताब आगे पकड़कर छिपाना चाहता था. शुक्र था की मनीष सर ने उसे डांट कर जल्दी बिठा दिया, नहीं तो पूरी क्लास को उसका खड़ा तम्बू दिख जाता. क्या हमारी चोरी पकड़ी गयी थी ?
जातें वक्त मनीष सर ने मुझे बुलाया - संध्या तुम्हे कुछ प्रोजेक्ट वर्क देना चाहता हूँ. मैं ५ वे पीरियड के बाद फ्री हूँ, डिस्कशन के लिये आ जाना. मैंने हाँ कह दिया पर मन में कही सवाल थे ओर डर भी था. ५ वे पीरियड के बाद मैं मनीष सर के केबिन में गयी. उनका कमरा बहुत बड़ा था. एक बड़ा सा टेबल, टेबल की आगे २-३ खुर्ची ओर उसके पीछे एक बड़ा सा सोफा ओर टी टेबल था. में दरवाजे पर नॉक कर के अंदर चली गई. सर ने मुझे देखा .. वह कुछ नोट्स देख रहे थे. उन्होंने मुझे सोफे पर बैठने कहा. में अपना स्कर्ट एडजस्ट कर के बैठ गयी. थोड़ी देर में मनीष सर मेर पास आकर सोफे पर बैठ गये. वह मुझे गहराई से देख रहे थे. में उनसे नजर नहीं मिला रही थी.
उन्होंने मेर पास आकर कहा - मेरी तरफ देखो संध्या.
मैंने उनकी नीली आँखों से नजर मिला ली. कितने खूबसूरत थे मनीष सर. मेरी चुत में खुजली हो रही थी, वो गीली हो रही थी. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी.
सर ने कहा - क्लास में तुम राजवीर के साथ क्या कर रही थी संध्या.
मैं कांप गयी .. मेरे ओंठ खुल गये.. में कुछ नहीं बोल पा रही थी.
मैंने हिम्मत कर के कहा - कुछ नहीं ..सर
मनीष सर ने कहा .. सच बोलो..मुझे झूट पसंद नहीं.. मैंने सब देखा. !
सर अभी भी मेरे आँखों से नजरे मिला कर बैठे थे. मैं उनकी खूबसूरत आँखों की झील में डुब रही थी.
मैंने कहा .. सच...!
फिर मेरे ओंठ थरथराने लगे .. मेरे मुंह से शब्द नहीं निकाल रहे थे. . तभी सर ने एक हात से मेरा स्कर्ट पकड़ कर ऊपर कर दिया .. में झट से खड़ी हो गयी. उन्होंने मेरा स्कर्ट पूरा कमर के ऊपर उठा लिया ओर बोले - कुछ नहीं ? फिर ये क्या है ?
सर अभी भी सोफे पर बैठे थे. मैं उनके बहुत पास खड़ी होने की वजह से मेरी नंगी चुत अब बिलकुल उनके चेहरे के पास थी. में एक बूथ बन के खड़ी थी. कांप रही थी. मेरा खुद पर से नियंत्रण खो रहा था. सर ने जैसे मुझे वशीकरण कर लिया था. मैंने ना मेरी स्कर्ट निचे की, ना मेरी चुत को अपने हातों से छिपाया. २ मिनट तक सर वैसे ही मेरी नंगी चुत को देखते रहे. मेरी चुत फड़फड़ रही थी. मेरी चुत से पाणी निकल रहा था. मनीष सर के ओंठ कप रहे थे. उन्होंने आपने ओठों पर से अपनी जीभ फेर ली. उनके मुँह मैं पानी आ रहा था. मनीष सर ने धीरे से उनकी नाक मेरी चुत पर रख कर एक जोर से साँस ले कर सूंघ ली.
बोले - आह संध्या क्या खुशबू है तेरी पुच्ची की, इसको रोज ऐसे ही साफ़ - चिकनी रखती हो?
मैंने कहा : हाँ सर ..
मुज़से ओर आगे कुछ बोला भी नहीं जा रहा था. मेरी जुबान सुख रही थी. मनीष सर मराठी थे. मराठी में चुत को पुच्ची कहते है.
मनीष सर: तेरी पुच्ची बहुत सुन्दर है .. बिलकुल तेरे जैसी. क्या में इसको छू कर देख लू.
मैं: हाँ सर
सर : वाह संध्या . तेरी पुच्ची तो मस्त लाल टमाटर जैसे फूली है..बहुत चिकनी है. क्या मैं इसके सात खेल सकता हूँ
मैं: हाँ सर
मनीष सर मेरे चुत को प्यार से सहलाने लगे. उन्होंने मेरी चुत के अंदर धीरे से सपनी एक उंगली डाल दी.
मैं ; आह सर...उम्म्म .. (सिसकियाँ लेने लगी)
मनीष सर: संध्या ! क्या तुम्हे अच्छा लग रहा ? क्या तुम वापस जाना चाहती हो ?
मैं: हाँ सर बहुत अच्छा लग रहा. मैं नहीं जाना चाहती हु.
सर खुश हो गये. बोले: संध्या मैंने तेरी पुच्ची देख ली. क्या तू भी मेरा बुल्ला (बड़ा लण्ड) देखना चाहेगी.
मैंने कहा - हाँ सर ..
सर ने मुझे अपने पास सोफे पर बिठा दिया .. ओर उठकर रूम को अंदर से बंद कर दिया. फिर वापस आकर उन्होंने..अपने जूते, पैंट ओर फिर उनकी अंडरवियर निकाल दिया ओर नंगा हो कर मेरे बाजू बैठ गये. सर का लण्ड शानदार था. एकदम साफ़, चिकना , ७ इंच का कटा लण्ड था गुलाब सुपडे वाला , बाल साफ़ किये हुए , ओर मस्त बड़ी बड़ी गेंद जैसे गोटियां थी. सर ने मेरे दोनों हात पकड़ कर अपने गरम बुल्ले पर रख दिये. मैं उनके लण्ड से खेलने लगी.
मनीष सर: संध्या कैसे लगा मेरा बुल्ला ? पसंद आया तुझे?
मैं : हां सर, बहुत अच्छा है
सर: राजवीर से अच्छा है ?
मैंने झूट बोल दिया : हाँ राजवीर से अच्छा है ओर बड़ा है.
सर एकदम खुश हो गये. मर्दों को जीवन में सबसे बड़ी ख़ुशी - उनके लण्ड की तारीफ सुन के होती है. मुझे प्यार से पास खींचकर वह मेरे ओंठ चूमने लगे. दूसरे हातों से उन्होंने मेरी टॉप निकाल दी थी. ओर मेरी ब्रा खोल रहे थे. वयस्क मर्दों की यही खूबी होती है. उन्हें जल्दी नहीं होती . बड़े प्यार ओर इत्तेमान से धीरे धीरे प्यार करके चोदते है. हर औरत इसी तरह का प्यार ओर चुदाई चाहती है. जल्दी उन्होंने मुझे पूरा नंगा कर दिया - सिर्फ स्कर्ट रहने दिया . उन्होंने मुझे अपनी गोदी मे बिठा दिया ओर मेरे ओंठ चूसने लगे. मैंने भी उनकी शर्ट निकाल दी . उनकी बालों वाली छाती मुझे पागल कर रही थी. मनीष सर को नंगा देख कर मैं खुश हो गयी थी. मनीष सर को कॉलेज की हर लड़की सपने मैं नंगा कर के अपनी चुत मसलती थी. आज तो उन्होंने खुद मुझे मौका दिया था. मैं यह मौका गवाना नहीं चाहती थी. मैंने बड़े प्यार से मनीष सर के ओंठ चूस लिये. फिर प्यार से उनके छाती को चूमने लगी. मनीष सर के निप्पल्स बहुत बड़े ओर मोटे थे. ऐसे निप्पल्स मर्दों के मैंने पहली बार देखे थे. मैं उन्हें चाटने लगी ओर जोर से चूसने लगी. मनीष सर एकदम गरम हो गये.. आह....उम्म्म... करके उनका लण्ड मुझे निचे से मेरी चुत पर धक्के मारने लगा. मुझे मनीष सर की कमजोरी पता चल गयी. उन्हें ओरल सेक्स (चुम्मा - चाटी) में ज्यादा मजा आ रहा था. मैंने एक दो बार उनके निप्पल्स को चूस के हलके से काट भी लिया. वो उह,,,आह संध्या .. कर के करहा रहे थे. मैं निचे बैठकर उनके लण्ड को चाटने लगी. उनका पूरा लण्ड मैंने धीर से मुँह के अंदर ले लिया. जीभ फेर कर , उनके लण्ड के छेद के अंदर जीभ डालने लगी. उन्होंने मेरा सर पकड़ लिया ओर जोर जोर से अपने लण्ड से मेरा मुँह चोदने लगे. मुझे लगा की वह जल्दी झाड़ जायेंगे. पर मनीष सर पुराने खिलाडी थे. उन्होंने अपना लण्ड मेरे मुँह से बहार निकाला ओर मुझे सोफे पर सोने को कहा.
मैं सोफे पर सो गयी. वह मेरे ऊपर ६९ की पोजीशन मैं आ गये. उन्होंने मेरी चुत पर अपने ओंठ रख दिये ओर अपनी जीभ से मेरी चुत चाटने लगे. मनीष सर का लण्ड अब मेरे मुँह के पास था. मैंने उनका लण्ड अपने दोनों हातों से पकड़ लिया ओर सर को ऊपर उठाकर उनका लण्ड अपने मुँह में ले लिया. सर बहुत प्यार से धीरे धीरे मेरी चुत के दाणे को चाट रहे थे, अपनी जीभ फिरा कर मेरी चुत की मुन्नी से प्यार कर रहे थे. मैं भी उनकी देखा देखि बहुत प्यार से उनके लण्ड के सुपडे को चूस रही थी. उनका लण्ड मेरी थूक से पूरा गिला ओर चिकना हो गया था.
तभी मनीष सर ने अपने दोनों हातों से मेरी गांड ऊपर उठा दी ओर मेरी गांड चाटने लगे. वह मेरी गांड को काट देते ओर मेरी गांड की छेद पर जीभ से चाटने लगे थे. पहली बार किसी ने इतने शिद्दत से मेरी गांड चाटी थी. सर ने मेरी गांड के छेद पर अपने ओंठ रख कर उनकी पूरी जीभ मेरी गांड की छेद मैं डाल दी. मैंने भी उनकी देखा देखी कर के उनका लण्ड मेरे मुँह से निकाल लिया ओर उनकी गांड निचे करके उनके गांड को चाटने लगी. उनके गांड पर बाल थे ओर उनकी गांड का छेद बालों से भरा था. मैंने उनके गांड की छेद को अपनी जीभ से चाट लिया ओर जीभ अंदर डालने लगी.
मनीष सर: आह संध्या .. क्या मस्त मोटी गांड है तेरी. क्या महक हैं तेरी गांड की
मैं ; सर .. बहुत अच्छा लग रहा ..आप बहुत मस्त गांड चाटते हो.
सर: आह..संध्या तू भी बहुत मस्त चाट रही मेरी गांड.
मैं: सर आप की गांड बहुत साफ़ सुथरी हैं. बहुत मस्त मरदाना खुशबु ओर स्वाद है.
मैं प्यार से पूरी जीभ अंदर बहार कर के सर की गांड का गुलाबी छेद चाटने लगी. सर की गांड सच मे बहुत साफ़ थी ओर सच मे उसकी महक ओर स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था. मुझे गरम कर रहा था. सर ने तभी मेरी गांड को चाटकर अपने दूसरे हात से एक जोरदार चांटा मेरी गांड पर मार दिया..ओर बोला - कामिनी.. ! .छिनाल..! गांड ..मटका कर रोज मेरे लण्ड को तरसाती है.
मैं..- आह सर. सॉरी . मुझे नहीं मालूम था मेरी गांड ने आपके प्यारे लण्ड को इतनी तकलीफ दी. आप मेरी गांड को मार-मार कर पिटाई कर दो .. सक्त सजा दे दो सर.
सर. - . यह ले.. उम्...आह.. तेरी गांड तो लाल हो गयी.
उन्होंने मेरी गांड पर एक..दो.. ऐसे कई चपाट मारे..
मैं - उह सर..दर्द होता है..उम्.....मारो सर..होने दो उसको लाल सर..मेरी कमीनी गांड को आज सजा दे दो.
ओर मैंने भी सर की गांड को हलके से दातों से चबा दिया. मेरे काटने से सर. - .आह..उफ़.. संध्या ! कर के गरम आहें भरने लगे. मैंने भी मौका देखा ओर सर की गांड पर एक चांटा जोर से मार दिया.
वैसे ही सर बोले .- आह संध्या ! .. ओर जोर से..
मैं - हाँ सर..आपकी गांड भी लाल हो रही हैं..इसकी अच्छी से पिटाई करती हूँ. आपने कठोर अनुशाषण से सब बच्चों को डरा कर रखा है. आपकी यही सजा है.
मैं सर की गांड पर जोर-जोर से चपाट मारते रही.
सर भी..आह ..संध्या.. ओर..जोर से...उम्म्म...हाँ दे दो मुझे सजा.. आह.. अगली बार स्केल पट्टी ओर अपनी सैंडल से मारकर इसको सजा देना...सर उफ़.. आह करते रहे.
मेरी गांड को निचे रखकर कर वो अब मेरी चुत को चाटकर चुत का रस पी रहे थे. मैं भी उनके गांड पर चांटे मार मार कर थक गयी थी..पर उनकी प्यास बुझी नहीं थी.. मुझे मालूम था उनकी प्यास अब मेरे सैंडल या स्केल पट्टी से बुझेगी.
मैंने उनका लण्ड फिर से पकड़ लिया. उनका लण्ड ..फूल कर फुफकार रहा था. मैंने धीरे से उनका लण्ड आपने मुँह में लेकर पूरा अपने गले तक डाल दिया.
सर..आह...संध्या ...क्या मस्त बुल्ला चुस्ती है तू
मैं : सर आपका बुल्ला हैं ही बहुत प्यारा , एकदम जबरदस्त
मनीष सर खुश हो गये : आह संध्या .. सर मत बोलो.. सिर्फ मनीष बोलो.
मनीष सर..अपनी गांड आगे पीछे कर के मेरे मुँह को चोद रहे थे. उनका पूरा लण्ड मेरे मुँह मैं ठूस जाता ओर उनकी गोटियाँ मेरे ओंठों के निचे टकरा जाती.
मैं : नहीं सर यह गलत है.. आप मेरे सर हो. मेरे से बड़े हो,
मनीष सर का लण्ड मेरे मुँह में धक्के पर धक्के दे रहा था.. ओर वो मेरी चुत का दाणा प्यार से चूस रहे थे.
मनीष सर.: संध्या हम दोनों बिस्तर पर नंगे है. नंगे लोग न बड़े होते न छोटे , सब एक समान ..आह संध्या तेरी मुन्नी (दाणा) कितनी रसीली हैं..
मनीष सर ने हलके से मेरे चुत का दाणा ओंठों से दबा दिया. .
मैं: आह मनीष...! उम्म्म.........उह....करके झड़ गयी. मेरे शरीर ने कांप के कही झटके दिये. झड़ते वक्त मैंने भी मनीष सर के लण्ड के टोपे को जोर से चूस लिया ओर अपने होठों से दबा दिया.
मनीष सर: आह...ले ले मेरा पाणी संध्या .. पूरा पाणी पी ले . ओर उन्होंने पूरा पाणी मेरे मुँह मैं डाल दिया. मैंने उनको सिर्फ उनके नाम से बुलाने से वो खुश हो गये थे.
उनके लण्ड का पाणी खारा ओर गाढ़ा था. मैंने भी उनके लण्ड का सूपड़ा चूस चूस कर सारा पाणी पी लिया. मनीष सर भी अपनी जीभ निकाल कर मेरी चुत का पाणी चाट रहे थे.
मनीष सर बड़े खुश हो गये: वाह संध्या मजा आ गया .. पहली बार किसी ने मेरे लण्ड का पाणी पिया. बता कैसे लगा.
मैं: मनीष आप के लण्ड का पाणी बहुत स्वाद भरा था. एकदम लाजवाब ओर गरम - एकदम आप जैसे.
सर खुश हो गये. वह मेरी ऊपर कुछ देर लेटे रहे ओर मेरे चुत का पाणी चाटते रहे. मैंने भी उनका लण्ड अपने मुँह से तब तक बहार नहीं निकाला जब तक वह सिकुड़ नहीं गया था.
सर सोफे पर बैठ गये. सर ने मुझे अपनी गोदी में बिठा दिया ओर मुझे चूमने लगे. मेरे ओंठों पर अभी भी उनके लण्ड का पाणी लगा था. वह मेरे ओंठ चूसकर सब पाणी पिने लगे. उन्हें अपने लण्ड के पाणी का स्वाद मेरे मुँह से चखते हुए बड़ा मजा आ रहा था.
सर ने कहा : संध्या अब शाम हो गयी. वॉचमैन आता ही होगा. देखो आगे से ख्याल रखो. मुझे तेरे ओर राजवीर के खेल से कोई दिक्कत नहीं पर ओर किसी ने देख लिया तो बदनामी होगी. तेरा नाम ख़राब होगा...वगैरे ...वगैरे .. वह मुझे समजा रहे थे.
मैंने सर से कहा..सर सॉरी.. मैं आगे से ख्याल रखूंगी. पर मैं ऐसा नहीं करती तो आप मुझे कैसे मिलते? सर मुस्कुरा दिये. सर ने पूछा - फिर से मिलोगी.
मैं: हाँ सर , आप मुझे बुला लेना जब भी आप फ्री हो. प्रोजेक्ट भी पूरा करना है ना.
हम दोनों हंसने लगे. सर ने हँसते कहा - पर एक शर्त पर. तुम मुझे अकेले मैं मेरे नाम से बुलाओगी .
मैंने कहा - हां मनीष
सर के सिकुड़े हुए लण्ड को देखकर मुझे पता लग गया था की सर एक पारी (inning ) के खिलाडी है. हमने कपडे पहने, पर पैंटी नहीं होने की वजह से , स्कर्ट के अंदर अभी भी नंगी थी. जाने से पहले सर ने मुझे फिर से अपनी बाहों मैं भर लिया ओर एक लम्बा गुड बाय चुम्मा दिया ओर मेरे स्कर्ट के अंदर अपनी ऊँगली डाल दी. मेरी गीली चुत का रस अपनी ऊँगली से निकाल कर उन्होंने मुझे आँख मार दी ओर उनकी ऊँगली मुंह मैं डालकर चूसते रहे. सर क्लास में जितने सक्त ओर कठोर थे, प्यारके मामले में इस उम्र मैं भी उतने ही ज्यादा रंगीन थे.
मैं अपने कपडे ठीक ठाक कर के .. कॉलेज से बहार आयी ओर अपने हॉस्टल की तरफ जाने लगी. कॉलेज की टाइमिंग ख़तम हो गयी थी, सब घर चले गये था, सुनसान था. कैंटीन के सामने मुझे राजवीर अकेला खड़ा मिला. राजवीर ने कहा - संध्या कहा थी. कब से तुझे ढूंढ रहा था.
मैंने कहा - यही लाइब्रेरी मैं थी. उसने कहा - मैंने तुझे वहा भी ढूंढा , तू दिखी नहीं.
मैंने कहा - टॉयलेट में होंगी तभी शायद. क्या करू, पैंटी नहीं होने की वजह से सब गिला हो जाता है.
राजवीर मुस्करा दिया: अच्छा है ना. ! तुझे मस्त फ्री लग रहा होगा. निचे से ठंडी हवा भी चुत को लग रही होगी. यार क्लास में कुछ मजा नहीं आया. मनीष सर ने सारा खेल बिगाड़ दिया. चलो ना कही चलते हैं.
मैंने कहा - कहा जायेंगे ? ओर अनीता ?
राजवीर: मैंने अनीता से जानबुज कर झगड़ा कर डाला. वो अपने रूम पर हॉस्टल चली गयी है. . चल टेरस पर चलते है.
मेरी चुत में लण्ड की भूक लगी थी. उस वक्त सिर्फ राजवीर उसे बुझा सकता था. मैंने आस पास देखा. कोई नहीं था. मैं राजवीर के सात उसके पीछे चलने लगी.