Update 11
एक सरदार, बाकी बेकार !
मैं राजवीर के पीछे पीछे चलने लगी. जैसे सीढ़ियां चढ़ने लगे, राजवीर ने मुझे उसके आगे चलने को कहा. प्लीज मुझे पीछे से तेरी मटकती गांड देखनी है.
राज: संध्या तू सीढ़ी चढ़ती है, तेरे चूतड़ पीछे से मस्त हिलते है..क्या मस्त गांड है तेरी - भरी और गदरायी सी. !
उसने पीछे से स्कर्ट के अंदर हात डाल कर मेरी गांड पकड़ ली और मेरे चूतड़ अपने दोनों हातों से मसलने लगा.
मैं एक पैर जैसे ऊपर कर देती, सीढी चढ़ने , वह निचे से मेरे चुत को भी पकड़कर दबा देता. मेरी चुत अब बहुत गीली हो गयी थी. मैं जानबूझ कर धीरे धीरे गांड को ठुमके देकर चल रही थी. राज एकदम पागल हो गया था.
राज: तेरी चुत की भट्टी आज बहुत गरम है.
मैं: हाँ..जल्दी से इसको शांत कर दे.
हम छत पर पहुँच गये. इतनी लम्बी बड़ी छत पर कोई नहीं था. बाकि की बिल्डिंग / इमारतें भी बहुत दूर थी. शाम के अँधेरे में कोई देख नहीं सकता था.
मैंने कहा - राज कोई आ जायेगा तो?
राज: कोई नहीं आयेगा संध्या, मैं हूँ.. तू डर मत.
छत की टावर के बाजु एक कोना था..वहा एक- दो पुराने टेबल भी पड़े थे. हरीश ने अपने पूरे कपडे निकाल दिये और टेबल के कोने पर रख दिये. राजवीर पंजाब का सरदार शेर था. झट से नंगा हो गया. मैं उसको पहली बार नंगा देख रही थी. साढ़े छह फ़ीट लम्बा - हट्टा-कट्टा, बड़ी दाढ़ी, सर पर पगड़ी.. उसकी मांसल भुजाये , और उसकी किसी मोटे चौडे खंबे जैसे जंघा - एकदम बॉलीवुड के सनी देओल जैसे लगता था. उसका पूरा गोरा बदन सर से पाँव तक काले घुंगराले बालों से भरा था. उसकी मोटी जांघों के बीच से लटकता उसका गोरा लण्ड - १० इंच का, मोटा गुलाबी सूपड़ा, ओर उसकी दोनों टांगों के बिच उसके लटकते टट्टे ..मुझे वह स्वप्निल से भी सुन्दर लग रहा था. मेरे जीवन का सबसे सुन्दर ओर मरदाना नंगा आदमी..शायद..!
राजवीर ने खड़े खड़े मुझे भी नंगा कर दिया..और पागलों की तरह मुझे चूमने लगा, मेरे आम मसल कर चूसने लगा. उसने मुझे टेबल की दूसरी बाजु बिठा दिया. मैंने अपने दोनों हातों से उसका लण्ड पकड़ लिया. उसका लण्ड एकदम गरम ओर सख्त था. मैंने राजवीर का मुँह मेरे मम्मों से दूर किया..
मैं: राजवीर ये चुम्मा चाटी बाद में करो यार . पहले इसको मेरे अंदर डाल दो.
राजवीर ने मुझे टेबल पर सुला दिया ओर मेरे पैर ऊपर करके मेरी छाती से लगा दिये. अब मेरी गांड ऊपर हो गयी थी ओर चुत सामने खुल गयी थी. राजवीर ने अपने हातों से मेरी चुत मसल दी..ओर हलके से अपन हातों से मेरी चुत पर मार दिया.
मैं: आह.....ओह..राज..दर्द होता हैं. मारो मत. जल्दी से डाल दो.
राज: चुप बेहेन की लोड़ी... तेरी फुद्दी में तो आग लग गयी है.. बता क्या डाल दू..ठीक से बता.
मैं: मेरी फुद्दी में तेरा लण्ड डाल दे राजवीर प्लीज्.
राज: हम्म.. मेरी रानी..तेरी गरम फुद्दी मैं अपना लण्ड डाल कर तेरी फुद्दी बज बजा कर लाल कर दूंगा. तेरी फुद्दी पर मूत कर तेरी फुद्दी को ठंडा कर दू?
मैं: ओह राज...प्लीज डाल दे..मुझे चोद दे..
राज: ले रंडी..तू ही अपने हातों से मेरा लण्ड तेरी फुद्दी में डाल दे.
मैं अपने दोनों हातों से राज का लण्ड पकड़ कर अपने फुद्दी पर रख दिया. पर वह धक्का नहीं मार रहा. मैंने गांड ऊपर उछाल दी ताकि उसका लण्ड चुत के अंदर डाल दू. उसके लण्ड का टोपा मेरे दाणे पर फिसल जाता ओर घिस जाता.
मैं: ओह.. माँ.. प्लीज राजवीर अंदर डाल दे..मैं मार जाउंगी.
राज: तुझे थोड़ी मरने दूंगी रानी. मारूंगा तो मैं तेरी फुद्दी.. रोज चोद चोद कर इसको सुजा दूंगा. पहले बोल..रोज मेरे से अपनी फुद्दी चुदवायेगी ना ?
मैं: हाँ हमेशा तेरे लण्ड से अपनी फुद्दी चुदवा लुंगी, बस अब डाल दे.
राज: प्रॉमिस कर. ओर रोज क्लास में नंगी आकर मेरे बाजू बैठोगी.
मैं - हां रोज सिर्फ स्कर्ट मैं आउंगी..बिना पैंटी के ओर तेरे बाजू बैठूंगी.
राजवीर ने एक लम्बा जोर से धक्का दिया - ओर एक ही झटके में उसका पूरा लण्ड मेरी चुत में डाल दिया.. मैं ..ओह माँ.बोल कर जोर से चीख उठी. वैसे उसने मेर मुँह पर हात रख दिया ताकि मेरी आवाज किसी को सुनाई ना दे.
सरदार अब उसका पूरा १० इंच का लण्ड मेरी चुत में गड़ाये था. मैं कांप रही थी. सिसक रही थी. इतने बड़े लण्ड से छटपटा रही थी.
राजवीर ने दूसरे हात से मेरा दाना मसलना चालू कर दिया. कुछ देर तक वह वैसे ही मुज़मे फंसा रहा. अब मुझे कुछ राहत मिली थी.. उसने अपना आधा लण्ड बहार निकाला ओर फिर से मेरी चुत में अंदर तक टिका दिया. मैं..आह.कर के चिल्लाई पर उसने अभी भी उसका हात मेरे मुँह पर रखा था. राजवीर अब मुझे धीरे धीरे, लण्ड अंदर-बहार कर के चोद रहा था. अब उसने रफ़्तार बढ़ा दी थी ओर पूरा लण्ड अंदर बहार करके मुझे चोद रहा था.
ले रंडी..अब तू भी मेरे लण्ड की गुलाम बन गयी. रोज अपने लण्ड से तुझे सांड जैसे चोदूंगा. आज तक किसी ने तेरी फुद्दी ऐसे चुदी नहीं होगी. .
रोज तुझे मसल दूंगा..चोद चोद कर तेरी फुद्दी ख़राब कर दूंगा. रोज तू अपने चूतड़ मेरे लण्ड पर उछाल उछाल कर चुदवायेगी.
मैं छटपटा रही थी. मेरी चुत जवाब दे रही थी. मैंने.. आह मार गयी..ओह..उफ़...करके उठकर राजवीर को मेरे ऊपर खिंच लिया . उसके ओंठो को मेरे मुँह से जोर से चूसकर / उसके लण्ड पर झड़ने लगी. राजवीर को यह अपेक्षित नहीं था..मेरी चुत के गर्माहट ओर पानी से, वह भी मेरी चुत के अंदर झटके देने लगा. उसका गरम पाणी, मेरी चुत में अंदर तक चला गया. मैंने राजवीर को कस के बाँहों में पकड़ लिया था. निचे उसका लण्ड मेरी चुत मैं - एक..२..३...करके झटके लगाता रहा ओर अपना वीर्य का फंवारा मेरी चुत के अंदर उडाता रहा. मैंने थक कर उसको कसके पकड़कर उसके कंधे पर अपनी गर्दन रख दी. तभी मेरी नजर सामने गयी. मुझे टेरेस की दरवाजे के पीच्छे कुछ दिखा. मैंने गौर से देखा. अनीता वहा दरवाजे की पीछे छुपकर हमें देख रही थी.
मैंने राजवीर के कान मैं धीरे से कहा: अनीता हमें दरवाजे के पीछे छुपकर देख रही है.
राजवीर: देखने दे. मुझे उसमे ऐसे भी कोई इंटरेस्ट नहीं है अब.
मैंने उसके पीठ पर हात फेरते उसकी गांड को जोर से चिमटी ले ली..
राजवीर- आह संध्या..कमीनी ! इतनी जोर से .चिमटी क्यों ले रही हो.
मैं: कमीने . ! कुछ दिनों बाद मुझे भी कहेगा की अब कोई इंटरेस्ट नहीं रहा.
राजवीर: नाही जान , मैं तो तुझे फर्स्ट दिन से देखा, तब से प्यार करता हूँ. तू कहे तो अभी आज तेरे से शादी कर लू. अपने १०-१२ बच्चों की माँ बना दू.
राजवीर का लण्ड अभी भी मेरी चुत में था. अभी भी ऊ वो सख्त था.
मैं: तूने मुझे थका दिया. अब मुझे हॉस्टल तक पैदल जाने की इच्छा नहीं है.
राजवीर: कोण तुझे जाने को कहा रहा .. तू कहे तो तुझे ऐसे ही ले चलू..
ऐसा कहकर रणवीर ने मुझे अपने लण्ड पर उठा लिया ओर मेरी गांड निचे से पकड़कर गोदी में ले लिया. मैं भी उसको वैसे ही चिपके रही ओर गर्दन पर हात डालकर पकडे रही. .
रणवीर: आजा , आज तुझे कॉलेज की टेरेस की सैर कराता हूँ.
वह मुझे वैसे ही अपने लण्ड पर बिठा कर कॉलेज की टेरेस पर चारो बाजू घूमने लगा. चलने की वजह से मैं उसके लण्ड पर उछल जाती. छत की दिवार हमारे कमर तक थी. पर निचे से कोई देखता तो जरूर पता चलता की हम क्या कर रहे. ऊपर से हम नंगे थे. ओर रणवीर की लम्बाई अच्छी होने से, उसने ऊपर तक मुझे गोदी में उठा लिया था. इसी रोमांच में , मैं फिर से रणवीर के लण्ड पर झड़ गयी. मैंने उसको कास के पकड़ लिया ओर उसके ओंठों को चूसने लगी. उसने भी मेरे मुँह में अपनी जीभ डाल दी ओर फिर से मुझे उसके गरम लण्ड के झटके ओर पाणी के फंवारे का अहसास मेरी चुत के अंदर हुआ. वह भी कांप कर मेरी चुत में झड़ने लगा. चलते चलते मेरी चुत का पाणी ओर रणवीर के लण्ड के पाणी ..की बुँदे टेरस पर सब जगह गीर गयी.
रणवीर ने कहा : मजा आया संध्या..?
मैं: बहुत.. तू बहुत मस्त है. ..
रणवीर: सब से अच्छी तू है. पर याद रख.. एक सरदार . बाकी बेकार !
मेरी शादी !
कॉलेज के फाइनल ईयर की इंजीनियरिंग में मुझे कैंपस इंटरव्यू से बंगलूर में एक अच्छी IT कंपनी में नौकरी मिल गयी थी.. मैं आगे पढ़ना चाहती थी, उसके लिये नौकरी के साथ आगे की पढाई के लिये एग्जाम की तैयारी भी कर रही थी. बंगलूर मैं विवेक अंकल भी रहते थे. उन्होंने मुझे और मेरी सहेलियों के लिये ऑफिस के पास रहने के लिये फ्लैट ढूंढ कर दिया.
पहले दिन बंगलूर एयरपोर्ट पर विवेक मुझे लेने आये. उनके बाल अब उम्र के हिसाब से थोड़े सफ़ेद हो गए थे, पर उनके बॉडी और भी अच्छी हो गयी थी किसी पके हुए आम की तरह सब जगह से मासलदार हो गयी थी. उनको देख कर मैंने उनको कस के पकड़ लिया ओर एक बड़ा सा आलिंगन दे दिया. उन्होंने भी धीरे से मेरे कान के पास ओंठ लगा दिए.. आई मिस्ड यू संध्या.
मैं एक दिन पहले उनके घर चली गयी. मेरी सहेलियां दूसरे दिन आने वाली थी. भाभी भी मुझे देखकर बहुत खुश हुई. नाश्ता चाय करके विवेक अंकल ने कहा - संध्या को फ़्लैट दिखाता हूँ ओर वहा से फिर ऑफिस चला जाऊंगा.
मेरा फ़्लैट ओर ऑफिस विवेक अंकल के घर से दूर था. मैं उनकी कार में ड्राइवर की साइड वाली सीट पर बैठ गयी ओर वो ड्राइव करने लगे. मैंने कहा - विवेक अंकल फ़्लैट में क्या क्या दिखाने ले जा रहे. विवेक अंकल हंस दिये. तुझे पसंद वो सब दिखा दूंगा. तेरी पसंद का चॉक्लेट भी खिला दूंगा. संध्या तू अब ओर भी मस्त जवान हो गयी है. तेरा आंग अंग मस्त भर गया हैं ओर गदराया शरीर है.
मैंने कहा: आप भी मस्त दिख रहे अब विवेक अंकल. मस्त हर जगह गदराये ओर पके फल जैसे.
हम दोनों हंस दिये.
फ़्लैट में विवेक अंकल सीधे मुझे बेडरूम में ले कर गये. उन्होंने प्यार से मुझे पास खिंच लिया ओर मुझे जोर जोर से चूमने लगे. इतने दिन बाद मिल रहे थे..मैंने भी उनको कस के पकड़ लिये. कुछ मिनट में हम नंगा हो गये ओर मैं उनकी गोदी में नंगी बैठी थी. उन्होंने उनका मोटा लण्ड धीरे से मेरी चुत के अंदर डाल दिया था ओर मेरे ओठों को चूस रहे थे, ओर कभी मेरे मम्मों को. मैं बहुत खुश थी. मैं फिर से आज ४ साल बाद अपने सेक्सगुरू से चुदवा रही थी. विवेक प्यार से मेरी गांड पकड़ कर ऊपर निचे कर के मेरी चुत अपने लण्ड से पेल रहे थे.
विवेक: संध्या ४ साल में मेरी याद आयी.
मैं: हाँ विवेक बहुत बार याद आती थी. जब भी किसी से सेक्स करती आपके सिखाये नुस्खे याद करती.
विवेक: अच्छा क्या क्या याद करती, सिर्फ मुज़को याद करती?
मैं: विवेक सब याद आता, आपका लण्ड, आपका शरीर, आपकी चुदाई, आपका चुम्मा ..सब कुछ.!
विवेक: ४ साल में मुझमे कुछ फरक लगा तुझे .?
मैं: हां विवेक, आपका लण्ड अब ओर ज्यादा मोटा ओर बड़ा लग रहा हैं . आप के टट्टे भी बड़े दिख रहे हैं ओर भारी होकर निचे लटक रहे है .. आप पके फल की तरह अब ओर भी मीठे हो गये हो.
विवेक: अच्छा..मैं पका फल हूँ ! .अभी तुझे पके फल का मीठा रस पिलाता हूँ.
विवेक ने मुझे बिस्तर पर सुला दिया ओर मेरे ऊपर आकर जोर जोर से मुझे चोदने लगे. मैंने उनको कस कर पकड़ लिया..मेरी चुत गरम हो गयी थी..गीली हो गयी थी मेरे तन-बदन में आग लग गयी थी ओर हम दोनों पसीने मैं भीग गये थे. मैंने..आह..ओह.. चिल्लाकर विवेक के लण्ड को निचोड़ कर अपनी चुत के अंदर जकड लिया ओर उसको अपने पाणी से भिगो दिया, कांपते हुए कई बार मैं उसके लण्ड पर झड़ गयी. विवेक भी ज्यादा देर तक रोक नहीं पाया ओर कई झटके मार के मेरे चुत में अपना पाणी डाल दिया. बहुत देर तक विवेक मेरे ऊपर नंगा पड़ा रहा. उसका लण्ड अभी भी मेरी चुत में तना हुआ था. वह बिस्तर पर लेटे-लेटे मुझे पकड़कर घूम गया ओर उसने मुझे उसके ऊपर ले लिया ताकि उसका वजन मुझपर से हट जाये. उसका लण्ड अभी भी मेरी चुत में सटा हुआ था ओर मेरी चुत से उसका पाणी निचे बहकर उसकी गोटियों पर गीर रहा था. उसने मेरा चेहरा प्यार से दोनों हातों से पकड़ लिया - संध्या तुझे छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा. क्या में आज रुक जाऊ?
मैंने प्यार से विवेक के दोनों गालों पर बहुत बार चुम लिया ओर कहा : विवेक,आपको मेरी परमिशन लेने की की जरुरत कब से पड़ गयी.
विवेक:काश ! मैं तेरी उम्र का होता ओर मेरी शादी नहीं होती. मैं तुज़से से ही शादी करता.
मैं: हाँ विवेक, मैं भी सिर्फ आप से शादी करती.
विवेक अब फिर से मुझे अपनी गांड निचे से उठा उठाकर चोदने लगे. मैं अपने ओंठ उनके ओठों में देकर..उनके प्यार में डूब गयी.
मैं मेरे ३ सहेलियों के सात फ़्लैट मैं रहती थी. जब भी अकेले में मौका मिलता विवेक मुझे चोदने के लिये फ़्लैट पर आ जाते. एक - दो बार भाभी अपने मायके गयी, तो मै उनके घर रहने चली गयी. इसी बीच स्वप्निल का MBA भी पूरा हो गया ओर उसे भी बंगलोरे में नौकरी मिल गयी. मैं बहुत खुश थी. वह अपने दोस्तों के साथ शेयरिंग फ़्लैट में रहता था. पर उसकी साथ अकेले में सेक्स का मजा नहीं आया. मैं बंटी को मिस करती थी.
दोस्तों में गांव के किसान जमींदार के परिवार से थी. इसलिए मुझे शादी के रिश्ते आने लगे. घर से भी शादी का दबाव बढ़ने लगा.आगे की पढाई शादी के बाद करनी ये प्रस्ताव भी मंजूर हो गया. एक दिन मेरे ऑफिस मैं अनीश मुझसे मिलने आये. ६ फ़ीट लम्बे, सुन्दर, कसा हुआ शरीर, आकर्षक व्यक्तिमत्व. उन्होंने MBA किया था ओर बंगलोरे में मल्टीनेशनल कंपनी मैं अच्छी अहदे पर नौकरी कर रहे थे. वो मेरे पिताजी के दोस्त का बेटा था ओर उनकी बंगलोरे मैं जॉइंट फॅमिली थी, खुद का बड़ा मकान था, अपने छोटे भाई ओर माँ बाप के साथ वो वही रहते थे. अनीश को मैं पहली नजर में पसंद आ गयी ओर मेरे पापा ने मेरी शादी फिक्स कर दी ओर तुरंत २ महीने बाद का मुहूर्त भी निकाल दिया.
दोस्तों यह २० साल पहले का जमाना था. मे परिवार के रस्मों ओर कसमों में बंधी लड़की थी. मैंने तुरंत बंटी को फ़ोन किया. वो ओर बुवा पापा के पास मुंबई जाकर मिलने गये. बंटी ने पापा से मुज़से शादी करने की लिये बहुत मिन्नतें की, पर पापा ने साफ मना कर दिया. उन्होंने अपने दोस्त को वचन दे दिया था. फिर पापा बंटी से बोले - देखो बंटी, संध्या पढ़ी लिखी शहर की लड़की हैं, उसका अपना करियर हैं, तू उसे गांव मे कहा रखेगा, वो कैसे रहेगी ?
शादी को अब एक हफ्ता रह गया था. मैं मुंबई आ गयी थी. मैंने गर्भे निरोधक गोलियां खानी बंद कर दी थी. योगा करके ओर अपनी चुत पर क्रीम लगाकर मैं उसको भी कसी हुई करने की कोशिश कर रही थी. आजकल तो ऑपरेशन कर के फटी हुई चुत की झिल्ली जोड़ देते है. तब ऐसे कोई इंतजाम नहीं होता था. में टेंशन मैं थी. अपनी फटी चुत को कैसे छुपा पाऊँगी अनीश से?
शादी के दो दिन पहले स्वप्निल घर आया. उसने चुप के मेरे हात मैं एक चिठ्ठी दे दी. उसकी जाते मैंने वह चिठ्ठी पढ़ी. वो चिट्टी बंटी की थी.
बंटी ने लिखा था : संध्या मैं यही पास मेँ ब्लू स्टार होटल में रूम १०१ में हूँ. प्लीज मुज़से जल्दी मिलने आ जाना.
मैं सोचने लगी..क्या मैं अपने प्यार से मिलने जाऊ ? क्या मैं उसकी साथ भाग के शादी कर लू ? बंटी को मेरे चुदाई के सारे किस्से पता थे. उसकी साथ मेरा कनेक्शन है. मैं उसकी साथ बहुत सुखी रहूंगी.
क्या करू मैं ? मेरे मन मे असंख्य सवालों का बवाल उठ रहा था.
गांड का उद्घाटन !
मैंने घर में बहाना बनाया की ब्यूटी पारलर वाली के पास मेक उप फाइनल करने के लिये जाना हैं. ओर मैं होटल ब्लू स्टार चली गयी. मैंने कमरे की घंटी बजायी, बंटी ने दरवाजा खोला. उसके चहरे का तेज गायब हो गया था. उसकी मुस्कान खो गयी थी. वह बहुत उदास लग रहा था. उसकी आँखों में हमेशा की तरह चमक की जगह आज दर्द ही दर्द था. मैं बहुत दुखी हो गयी. उसने मुझे जोर से पकड़ लिया और जोर जोर से रोने लगा.
मैं भी उसके बाँहों में समेट कर उसके साथ रोने लगी.
बंटी: मुझे लगा तू नहीं आयेगी. तू नहीं आती तो शायद मैं मर जाता.
मैं: ऐसे मत बोलो बंटी. मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ. कैसे नहीं आती..
बंटी: चलो संध्या मेरे साथ ..हम लोग भाग कर शादी करते है..
मैं:नहीं बंटी..मैं ऐसा नहीं कर सकती. मेरे पापा का नाम ख़राब नहीं कर सकती. क्या तुम चाहते हो की तुम्हारे मामा का नाम कलंकित हो जाये.
बंटी: फिर मैं क्या करू संध्या. तेरे बिना मैं कैसे जी सकता हूँ.
मैं: अब कुछ नहीं कर सकते, बंटी बहुत देर हो गयी.
बंटी: ऐसे मत कहो संध्या..मैंने सिर्फ तुम्हारे ख्वाब देखे है. मेरे प्यार को ऐसे मत तोड़ो. मेरे दिल की आह लग जायेगी तुझे.
मैं: बंटी प्लीज ऐसे मत कहो..तुम मुझे ऐसे कोस नहीं सकते..प्यार करते हो तो बद-दुवा मत दो.
बंटी: कैसे बदुआ दूंगा तुझे संध्या..मैं तुझे अपने जान से ज्यादा प्यार करता हूँ.. करके बंटी मुझे चूमने लगा.
मैं: क्या करती मैं बंटी. मैं तेरे साथ गांव में भी रह लेती. खेतों में जाती. तेरे साथ गाय-भैंसों का दूध भी निकालती.. मैं तेरे साथ बहुत खुश रहती. पर अब बहुत देर हो गयी सब को.
बंटी: मैं मर जाऊंगा ..! जी नहीं पाउँगा संध्या.. !
उसने मेरे होंठ चूस लये और उसकी जीभ मेरे मुँह में डाल दी. मुझे बंटी को शांत करना था..वह तिल तिल मर रह था. अपने प्यार से मैं उसको शांत कर दूंगी..समजा दूंगी. मैं भी उसको पागलों की तरह प्यार करने लगी. यह मेरे मन की ग्लानि थी या बंटी के प्रति प्यार, मैं उसके प्यार में डूबती चली गयी. मुझे कुछ नहीं समज में आ रहा था. सब जगह बंटी ही बंटी नजर आ रहा था. मन में तूफान उठ रहा..था..मैं बंटी से हमेशा के लिए बिछड़ जाउंगी. बंटी ने कुछ सेकंड में ही हम दोनों को नंगा कर दिया था. उसके सर पर भूत सँवार था. उसने मुझे बिस्तर पर सुला दिया, मेरे पैर ऊपर कर दिए और एक झटके में उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में ड़ाल दिया. में जोर से चिल्ला उठी..आह बंटी...मर जाउंगी. .. धीरे..!
पर बंटी को कोई फरक नहीं पड़ रहा था.
बंटी: हाँ संध्या..हम दोनों तो ऐसे ही मर जायेंगे.. !
बंटी मुझे..जोर जोर से किसी मशीन की तरह चोद रहा था. एक मुर्दे की तरह !. मेरी चूत कई बार गीली हो कर झड़ गयी..पर उसके चहरे पर कोई भाव नहीं था. उसका गुस्सा बढ़ रहा था. मैं उसको अपने सीने से लिपटना चाहती थी, प्यार करना चाहती थी..पर वो वैसे ही खड़ा खड़ा मुझे चोदे जा रह था.
उसने मेरे पैर पुरे ऊपर छाती से लगा दिए और मेरी गांड एकदम ऊपर कर दी... उसने अपना लण्ड धीरे मेरी चूत से निकाला..और मेरी गांड पर रख दिया..
में: नहीं बंटी..प्लीज..ऐसे मत करो..मैंने कभी नहीं किया !...
मैं कुछ और कहती, उसके पहले ही बंटी ने मुझे जोरदार धक्का दिया और उसका लण्ड मेरी गांड में आधा चला गया. मेरे चूत के पाणी से उसका लण्ड पहले ही चिकना हो गया था.
मैं: आह ! मर गयी..प्लीज निकल दो..उफ़..बंटी रहम करो.
मैंने जोर जोर से रोने लगी. मैं तड़प कर छटपटा रही थी. पर बंटी ने मुझे कास के पकड़ रखा था. मेरी गांड में भीषण दर्द हो रह था.
बंटी: संध्या तेरी गांड का उद्घाटन मैं अपनी सुहागरात को प्यार से करनेवाला था. पर अब कोई रास्ता नहीं हैं. तेरे पर पहला हक मेरा था ना
बंटी ने कस के मेरी गांड पकड़ ली और धीरे धीरे अपन लण्ड मेरी गांड में पेलने लगा. मैं तड़प कर रो रही थी. इतना दर्द मुझे कभी नहीं हुवा था. पर बंटी मेरी गांड पकड़ पकड़ कर जंगली की तरह चोदे जा रहा था.
बंटी: ले रंडी..कर ले उस अनीश से शादी..फिर कभी इसके बाद तुझे नहीं मिलूंगा.
मैं बस रोये जा रही थी, पर बंटी ने कोई रहम नहीं किया..उसने अब उसका पूरा मोटा काला 8 इंच का नाग मेरे गांड मैं ड़ाल दिया था. उसका केले जैसे आकiर का लण्ड..मेरी गांड को हर जगह छू रहा था. मेरा दर्द अब कम हो गया था..और मैं..गीली हो रही थी. बंटी धके पर धक्के मार रहा था.
मैं..आह बंटी..प्लीज..धीरे..मैं फिर से कसमसा गयी..
मैंने बंटी को अपने दोनों हातों जोर से मेरे तरफ खिंच लिया और उसके ओंठो को चूसने लगी...और गरम हो कर थरथरा कर जोर से झड़ने लगी.. मेरी चूत से पाणी की गंगा बहने लगी थी. मेरे ऐसे करने से बंटी ने भी कई झटके मेरी गांड में लगाये और मेरी गांड में उसका गरम पाणी ड़ाल दिया. वह बहुत देर तक मेरे ओंठों को चूसता रहा, अपनी जीभ मेरे मुँह में डालता रहा. मैं भी उसकी जीभ पागल जैसे चाट लेती..उसको बहुत प्यार करती, जैसे की मेरे जीवन का आखरी दिन है. बंटी का लण्ड अभी भी मेरी गांड में फंसा था..खड़ा था..बिलकुल सिकुड़ा नहीं था.
बंटी ने वैसे हे मेरे जीभ को ओर ओंठों को चूसते हुए.. अपना लण्ड मेरी गांड से धीरे से निकाला ओर एक झटके में मेरी चूत में ड़ाल दिया. वह अब मुझे प्यार करके मेरी चूत चोद रहा था.
बंटी: संध्या..अभी भी समय है.. प्लीज सोच लो..चलो मेरे सात
मैं: बंटी अब बहुत देर हो गयी. तुझे मालूम है मैं भी तेरे से प्यार करती हूँ. कभी कहा नहीं तुज़से पर फिर भी तू जानता था. मैं ही पागल समज नहीं पायी. मैंने तेरा जीवन नरक बना दिया.. मुझे माफ़ कर दे बंटी.
बंटी: नहीं संध्या..ऐसे मत कहो..तू मेरा प्यार है..खूबसूरत..बस ऐसे ही खुश रहो..मैं तुम्हे ऐसे ही खुश देखना चाहता हूँ.
मैं: उम्.. आह... बंटी...जोर से चोदो..मार डालो मुझे आज..
बंटी: नहीं संध्या..यह हमारा प्यार है..बस हमारे बिच के हसीन पल हम याद रखेंगे हमेशा.
मैं: तेरे बिना मैं कैसे खुश रहूंगी बंटी.. पापा ने मेरे जीवन भी बर्बाद कर दिया.
बंटी: ऐसे मत कहो संध्या.. हमारा प्यार अमर रहेगा..!
मैं: बंटी मुझे वचन दो..तुम खुश रहोगे..मेरे लिये दुखी नहीं रहोगे. तू खुश तो मैं भी खुश रहूंगी. तुझे दुःख देकर मैं कभी सुखी नहीं रह पाऊँगी.
बंटी: हाँ संध्या..मैं खुश रहूँगा ओर तुझे भी खुश रखूँगा.
आह....उह....आहे भरके बंटी मेरी चूत चोद रहा था... मेरी चूत भी अब गीली हो गयी थी.. बंटी का बड़ा मोटा केला मेरी चूत को हर जगह से घिसता था, आनंद देता था. मैंने जोर से बंटी को कसमसा के पकड़ लिया...ओर उसके लण्ड पर झड़ने लगी. बंटी ने भी उसका सारा वीर्य मेरी चूत के अंदर तक ड़ाल दिया..
मेरी चूत के गहराइयों तक उसका गरम पाणी चला गया था.
कुछ देर के बाद बंटी मेरे ऊपर से उठा ओर मेरे बाजु लेट गया. मैं उठकर बाथरूम चली गया. मैंने देखा बिस्तर पर बंटी का पाणी ओर मेरी गांड से निकले खून के धब्बे थे. मेरी गांड बहुत दर्द कर रही थी. मुझे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था. पर फिर भी एक सुखद अनुभूति हो रही थी .. प्यार का पूरापन लग रहा था, बंटी के प्यार से में खुद को संपूर्ण महसूस कर रही थी.
काफी समय हो गया था. मैं वाशरूम में जाकर साफ़ हो गयी .. खुद को सजाया - संवारा ओर बहार आ गयी. बंटी ओर मैं कुछ नहीं बोल पा रहे थी. वह अभी भी तकिये में मुँह ढक कर सो रहा था..रो रहा था.
मैंने कहा : अच्छा बंटी में चलती हूँ..
बंटी ने कोई जवाब नहीं दिया.
मैं रूम का दरवाजा खोलकर घर की तरफ जाने लगी.
ठीक दो दिन बाद मेरी शादी बड़ी धूम धाम से हो गयी. तीसरे दिन हम फ्लाइट से बंगलूर अनीश के घर आ गये. आज मेरी सुहागरात थी. अनीश के घरवालों ने हमारा कमरा बहुत अच्छी से फूलों से सजाया था. खाना खाने के बद रात को ९ बजे अनीश की माँ मुझे अनीश के कमरे में ले गयी. कहा - बहु..अनीश की दादी बहुत बीमार है. मरने से पहले पोता देखना चाहती है. तू सब संभाल लेना. ओर हंसकर चली गयी.
मैं सुहाग के सेज पर बैठकर अनीश का इंतजार करने लगी. मन में डर था. बंटी ने २ दिन पहले मेरे दोनों छेद चोद चोदकर भुर्ता बना दिया था. मुझे आज बहुत संभाल कर खेल खेलना था.
तभी दरवाजा खुला..अनीश अंदर आ गये. कुरता -पाजामा में वह बहुत आकर्षक लग रहे थे. कसी राजकुमार की तरह. गोरे - चिट्टे.. लम्बे.. मासलदार शरीर.. हाय ! कौन मना करता इनसे शादी करने को. मैं उठकर खड़ी हो गयी तो उन्होंने प्यार से मुझे अपने बाँहों में भर लिया. पता नहीं पर क्यों मुझे अजीब सकून मिला. मैंने भी अपने आप को उनको पूरा सौंप दिया. शादी के पवित्र बंधन को निभाना था.
मैं राजवीर के पीछे पीछे चलने लगी. जैसे सीढ़ियां चढ़ने लगे, राजवीर ने मुझे उसके आगे चलने को कहा. प्लीज मुझे पीछे से तेरी मटकती गांड देखनी है.
राज: संध्या तू सीढ़ी चढ़ती है, तेरे चूतड़ पीछे से मस्त हिलते है..क्या मस्त गांड है तेरी - भरी और गदरायी सी. !
उसने पीछे से स्कर्ट के अंदर हात डाल कर मेरी गांड पकड़ ली और मेरे चूतड़ अपने दोनों हातों से मसलने लगा.
मैं एक पैर जैसे ऊपर कर देती, सीढी चढ़ने , वह निचे से मेरे चुत को भी पकड़कर दबा देता. मेरी चुत अब बहुत गीली हो गयी थी. मैं जानबूझ कर धीरे धीरे गांड को ठुमके देकर चल रही थी. राज एकदम पागल हो गया था.
राज: तेरी चुत की भट्टी आज बहुत गरम है.
मैं: हाँ..जल्दी से इसको शांत कर दे.
हम छत पर पहुँच गये. इतनी लम्बी बड़ी छत पर कोई नहीं था. बाकि की बिल्डिंग / इमारतें भी बहुत दूर थी. शाम के अँधेरे में कोई देख नहीं सकता था.
मैंने कहा - राज कोई आ जायेगा तो?
राज: कोई नहीं आयेगा संध्या, मैं हूँ.. तू डर मत.
छत की टावर के बाजु एक कोना था..वहा एक- दो पुराने टेबल भी पड़े थे. हरीश ने अपने पूरे कपडे निकाल दिये और टेबल के कोने पर रख दिये. राजवीर पंजाब का सरदार शेर था. झट से नंगा हो गया. मैं उसको पहली बार नंगा देख रही थी. साढ़े छह फ़ीट लम्बा - हट्टा-कट्टा, बड़ी दाढ़ी, सर पर पगड़ी.. उसकी मांसल भुजाये , और उसकी किसी मोटे चौडे खंबे जैसे जंघा - एकदम बॉलीवुड के सनी देओल जैसे लगता था. उसका पूरा गोरा बदन सर से पाँव तक काले घुंगराले बालों से भरा था. उसकी मोटी जांघों के बीच से लटकता उसका गोरा लण्ड - १० इंच का, मोटा गुलाबी सूपड़ा, ओर उसकी दोनों टांगों के बिच उसके लटकते टट्टे ..मुझे वह स्वप्निल से भी सुन्दर लग रहा था. मेरे जीवन का सबसे सुन्दर ओर मरदाना नंगा आदमी..शायद..!
राजवीर ने खड़े खड़े मुझे भी नंगा कर दिया..और पागलों की तरह मुझे चूमने लगा, मेरे आम मसल कर चूसने लगा. उसने मुझे टेबल की दूसरी बाजु बिठा दिया. मैंने अपने दोनों हातों से उसका लण्ड पकड़ लिया. उसका लण्ड एकदम गरम ओर सख्त था. मैंने राजवीर का मुँह मेरे मम्मों से दूर किया..
मैं: राजवीर ये चुम्मा चाटी बाद में करो यार . पहले इसको मेरे अंदर डाल दो.
राजवीर ने मुझे टेबल पर सुला दिया ओर मेरे पैर ऊपर करके मेरी छाती से लगा दिये. अब मेरी गांड ऊपर हो गयी थी ओर चुत सामने खुल गयी थी. राजवीर ने अपने हातों से मेरी चुत मसल दी..ओर हलके से अपन हातों से मेरी चुत पर मार दिया.
मैं: आह.....ओह..राज..दर्द होता हैं. मारो मत. जल्दी से डाल दो.
राज: चुप बेहेन की लोड़ी... तेरी फुद्दी में तो आग लग गयी है.. बता क्या डाल दू..ठीक से बता.
मैं: मेरी फुद्दी में तेरा लण्ड डाल दे राजवीर प्लीज्.
राज: हम्म.. मेरी रानी..तेरी गरम फुद्दी मैं अपना लण्ड डाल कर तेरी फुद्दी बज बजा कर लाल कर दूंगा. तेरी फुद्दी पर मूत कर तेरी फुद्दी को ठंडा कर दू?
मैं: ओह राज...प्लीज डाल दे..मुझे चोद दे..
राज: ले रंडी..तू ही अपने हातों से मेरा लण्ड तेरी फुद्दी में डाल दे.
मैं अपने दोनों हातों से राज का लण्ड पकड़ कर अपने फुद्दी पर रख दिया. पर वह धक्का नहीं मार रहा. मैंने गांड ऊपर उछाल दी ताकि उसका लण्ड चुत के अंदर डाल दू. उसके लण्ड का टोपा मेरे दाणे पर फिसल जाता ओर घिस जाता.
मैं: ओह.. माँ.. प्लीज राजवीर अंदर डाल दे..मैं मार जाउंगी.
राज: तुझे थोड़ी मरने दूंगी रानी. मारूंगा तो मैं तेरी फुद्दी.. रोज चोद चोद कर इसको सुजा दूंगा. पहले बोल..रोज मेरे से अपनी फुद्दी चुदवायेगी ना ?
मैं: हाँ हमेशा तेरे लण्ड से अपनी फुद्दी चुदवा लुंगी, बस अब डाल दे.
राज: प्रॉमिस कर. ओर रोज क्लास में नंगी आकर मेरे बाजू बैठोगी.
मैं - हां रोज सिर्फ स्कर्ट मैं आउंगी..बिना पैंटी के ओर तेरे बाजू बैठूंगी.
राजवीर ने एक लम्बा जोर से धक्का दिया - ओर एक ही झटके में उसका पूरा लण्ड मेरी चुत में डाल दिया.. मैं ..ओह माँ.बोल कर जोर से चीख उठी. वैसे उसने मेर मुँह पर हात रख दिया ताकि मेरी आवाज किसी को सुनाई ना दे.
सरदार अब उसका पूरा १० इंच का लण्ड मेरी चुत में गड़ाये था. मैं कांप रही थी. सिसक रही थी. इतने बड़े लण्ड से छटपटा रही थी.
राजवीर ने दूसरे हात से मेरा दाना मसलना चालू कर दिया. कुछ देर तक वह वैसे ही मुज़मे फंसा रहा. अब मुझे कुछ राहत मिली थी.. उसने अपना आधा लण्ड बहार निकाला ओर फिर से मेरी चुत में अंदर तक टिका दिया. मैं..आह.कर के चिल्लाई पर उसने अभी भी उसका हात मेरे मुँह पर रखा था. राजवीर अब मुझे धीरे धीरे, लण्ड अंदर-बहार कर के चोद रहा था. अब उसने रफ़्तार बढ़ा दी थी ओर पूरा लण्ड अंदर बहार करके मुझे चोद रहा था.
ले रंडी..अब तू भी मेरे लण्ड की गुलाम बन गयी. रोज अपने लण्ड से तुझे सांड जैसे चोदूंगा. आज तक किसी ने तेरी फुद्दी ऐसे चुदी नहीं होगी. .
रोज तुझे मसल दूंगा..चोद चोद कर तेरी फुद्दी ख़राब कर दूंगा. रोज तू अपने चूतड़ मेरे लण्ड पर उछाल उछाल कर चुदवायेगी.
मैं छटपटा रही थी. मेरी चुत जवाब दे रही थी. मैंने.. आह मार गयी..ओह..उफ़...करके उठकर राजवीर को मेरे ऊपर खिंच लिया . उसके ओंठो को मेरे मुँह से जोर से चूसकर / उसके लण्ड पर झड़ने लगी. राजवीर को यह अपेक्षित नहीं था..मेरी चुत के गर्माहट ओर पानी से, वह भी मेरी चुत के अंदर झटके देने लगा. उसका गरम पाणी, मेरी चुत में अंदर तक चला गया. मैंने राजवीर को कस के बाँहों में पकड़ लिया था. निचे उसका लण्ड मेरी चुत मैं - एक..२..३...करके झटके लगाता रहा ओर अपना वीर्य का फंवारा मेरी चुत के अंदर उडाता रहा. मैंने थक कर उसको कसके पकड़कर उसके कंधे पर अपनी गर्दन रख दी. तभी मेरी नजर सामने गयी. मुझे टेरेस की दरवाजे के पीच्छे कुछ दिखा. मैंने गौर से देखा. अनीता वहा दरवाजे की पीछे छुपकर हमें देख रही थी.
मैंने राजवीर के कान मैं धीरे से कहा: अनीता हमें दरवाजे के पीछे छुपकर देख रही है.
राजवीर: देखने दे. मुझे उसमे ऐसे भी कोई इंटरेस्ट नहीं है अब.
मैंने उसके पीठ पर हात फेरते उसकी गांड को जोर से चिमटी ले ली..
राजवीर- आह संध्या..कमीनी ! इतनी जोर से .चिमटी क्यों ले रही हो.
मैं: कमीने . ! कुछ दिनों बाद मुझे भी कहेगा की अब कोई इंटरेस्ट नहीं रहा.
राजवीर: नाही जान , मैं तो तुझे फर्स्ट दिन से देखा, तब से प्यार करता हूँ. तू कहे तो अभी आज तेरे से शादी कर लू. अपने १०-१२ बच्चों की माँ बना दू.
राजवीर का लण्ड अभी भी मेरी चुत में था. अभी भी ऊ वो सख्त था.
मैं: तूने मुझे थका दिया. अब मुझे हॉस्टल तक पैदल जाने की इच्छा नहीं है.
राजवीर: कोण तुझे जाने को कहा रहा .. तू कहे तो तुझे ऐसे ही ले चलू..
ऐसा कहकर रणवीर ने मुझे अपने लण्ड पर उठा लिया ओर मेरी गांड निचे से पकड़कर गोदी में ले लिया. मैं भी उसको वैसे ही चिपके रही ओर गर्दन पर हात डालकर पकडे रही. .
रणवीर: आजा , आज तुझे कॉलेज की टेरेस की सैर कराता हूँ.
वह मुझे वैसे ही अपने लण्ड पर बिठा कर कॉलेज की टेरेस पर चारो बाजू घूमने लगा. चलने की वजह से मैं उसके लण्ड पर उछल जाती. छत की दिवार हमारे कमर तक थी. पर निचे से कोई देखता तो जरूर पता चलता की हम क्या कर रहे. ऊपर से हम नंगे थे. ओर रणवीर की लम्बाई अच्छी होने से, उसने ऊपर तक मुझे गोदी में उठा लिया था. इसी रोमांच में , मैं फिर से रणवीर के लण्ड पर झड़ गयी. मैंने उसको कास के पकड़ लिया ओर उसके ओंठों को चूसने लगी. उसने भी मेरे मुँह में अपनी जीभ डाल दी ओर फिर से मुझे उसके गरम लण्ड के झटके ओर पाणी के फंवारे का अहसास मेरी चुत के अंदर हुआ. वह भी कांप कर मेरी चुत में झड़ने लगा. चलते चलते मेरी चुत का पाणी ओर रणवीर के लण्ड के पाणी ..की बुँदे टेरस पर सब जगह गीर गयी.
रणवीर ने कहा : मजा आया संध्या..?
मैं: बहुत.. तू बहुत मस्त है. ..
रणवीर: सब से अच्छी तू है. पर याद रख.. एक सरदार . बाकी बेकार !
मेरी शादी !
कॉलेज के फाइनल ईयर की इंजीनियरिंग में मुझे कैंपस इंटरव्यू से बंगलूर में एक अच्छी IT कंपनी में नौकरी मिल गयी थी.. मैं आगे पढ़ना चाहती थी, उसके लिये नौकरी के साथ आगे की पढाई के लिये एग्जाम की तैयारी भी कर रही थी. बंगलूर मैं विवेक अंकल भी रहते थे. उन्होंने मुझे और मेरी सहेलियों के लिये ऑफिस के पास रहने के लिये फ्लैट ढूंढ कर दिया.
पहले दिन बंगलूर एयरपोर्ट पर विवेक मुझे लेने आये. उनके बाल अब उम्र के हिसाब से थोड़े सफ़ेद हो गए थे, पर उनके बॉडी और भी अच्छी हो गयी थी किसी पके हुए आम की तरह सब जगह से मासलदार हो गयी थी. उनको देख कर मैंने उनको कस के पकड़ लिया ओर एक बड़ा सा आलिंगन दे दिया. उन्होंने भी धीरे से मेरे कान के पास ओंठ लगा दिए.. आई मिस्ड यू संध्या.
मैं एक दिन पहले उनके घर चली गयी. मेरी सहेलियां दूसरे दिन आने वाली थी. भाभी भी मुझे देखकर बहुत खुश हुई. नाश्ता चाय करके विवेक अंकल ने कहा - संध्या को फ़्लैट दिखाता हूँ ओर वहा से फिर ऑफिस चला जाऊंगा.
मेरा फ़्लैट ओर ऑफिस विवेक अंकल के घर से दूर था. मैं उनकी कार में ड्राइवर की साइड वाली सीट पर बैठ गयी ओर वो ड्राइव करने लगे. मैंने कहा - विवेक अंकल फ़्लैट में क्या क्या दिखाने ले जा रहे. विवेक अंकल हंस दिये. तुझे पसंद वो सब दिखा दूंगा. तेरी पसंद का चॉक्लेट भी खिला दूंगा. संध्या तू अब ओर भी मस्त जवान हो गयी है. तेरा आंग अंग मस्त भर गया हैं ओर गदराया शरीर है.
मैंने कहा: आप भी मस्त दिख रहे अब विवेक अंकल. मस्त हर जगह गदराये ओर पके फल जैसे.
हम दोनों हंस दिये.
फ़्लैट में विवेक अंकल सीधे मुझे बेडरूम में ले कर गये. उन्होंने प्यार से मुझे पास खिंच लिया ओर मुझे जोर जोर से चूमने लगे. इतने दिन बाद मिल रहे थे..मैंने भी उनको कस के पकड़ लिये. कुछ मिनट में हम नंगा हो गये ओर मैं उनकी गोदी में नंगी बैठी थी. उन्होंने उनका मोटा लण्ड धीरे से मेरी चुत के अंदर डाल दिया था ओर मेरे ओठों को चूस रहे थे, ओर कभी मेरे मम्मों को. मैं बहुत खुश थी. मैं फिर से आज ४ साल बाद अपने सेक्सगुरू से चुदवा रही थी. विवेक प्यार से मेरी गांड पकड़ कर ऊपर निचे कर के मेरी चुत अपने लण्ड से पेल रहे थे.
विवेक: संध्या ४ साल में मेरी याद आयी.
मैं: हाँ विवेक बहुत बार याद आती थी. जब भी किसी से सेक्स करती आपके सिखाये नुस्खे याद करती.
विवेक: अच्छा क्या क्या याद करती, सिर्फ मुज़को याद करती?
मैं: विवेक सब याद आता, आपका लण्ड, आपका शरीर, आपकी चुदाई, आपका चुम्मा ..सब कुछ.!
विवेक: ४ साल में मुझमे कुछ फरक लगा तुझे .?
मैं: हां विवेक, आपका लण्ड अब ओर ज्यादा मोटा ओर बड़ा लग रहा हैं . आप के टट्टे भी बड़े दिख रहे हैं ओर भारी होकर निचे लटक रहे है .. आप पके फल की तरह अब ओर भी मीठे हो गये हो.
विवेक: अच्छा..मैं पका फल हूँ ! .अभी तुझे पके फल का मीठा रस पिलाता हूँ.
विवेक ने मुझे बिस्तर पर सुला दिया ओर मेरे ऊपर आकर जोर जोर से मुझे चोदने लगे. मैंने उनको कस कर पकड़ लिया..मेरी चुत गरम हो गयी थी..गीली हो गयी थी मेरे तन-बदन में आग लग गयी थी ओर हम दोनों पसीने मैं भीग गये थे. मैंने..आह..ओह.. चिल्लाकर विवेक के लण्ड को निचोड़ कर अपनी चुत के अंदर जकड लिया ओर उसको अपने पाणी से भिगो दिया, कांपते हुए कई बार मैं उसके लण्ड पर झड़ गयी. विवेक भी ज्यादा देर तक रोक नहीं पाया ओर कई झटके मार के मेरे चुत में अपना पाणी डाल दिया. बहुत देर तक विवेक मेरे ऊपर नंगा पड़ा रहा. उसका लण्ड अभी भी मेरी चुत में तना हुआ था. वह बिस्तर पर लेटे-लेटे मुझे पकड़कर घूम गया ओर उसने मुझे उसके ऊपर ले लिया ताकि उसका वजन मुझपर से हट जाये. उसका लण्ड अभी भी मेरी चुत में सटा हुआ था ओर मेरी चुत से उसका पाणी निचे बहकर उसकी गोटियों पर गीर रहा था. उसने मेरा चेहरा प्यार से दोनों हातों से पकड़ लिया - संध्या तुझे छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा. क्या में आज रुक जाऊ?
मैंने प्यार से विवेक के दोनों गालों पर बहुत बार चुम लिया ओर कहा : विवेक,आपको मेरी परमिशन लेने की की जरुरत कब से पड़ गयी.
विवेक:काश ! मैं तेरी उम्र का होता ओर मेरी शादी नहीं होती. मैं तुज़से से ही शादी करता.
मैं: हाँ विवेक, मैं भी सिर्फ आप से शादी करती.
विवेक अब फिर से मुझे अपनी गांड निचे से उठा उठाकर चोदने लगे. मैं अपने ओंठ उनके ओठों में देकर..उनके प्यार में डूब गयी.
मैं मेरे ३ सहेलियों के सात फ़्लैट मैं रहती थी. जब भी अकेले में मौका मिलता विवेक मुझे चोदने के लिये फ़्लैट पर आ जाते. एक - दो बार भाभी अपने मायके गयी, तो मै उनके घर रहने चली गयी. इसी बीच स्वप्निल का MBA भी पूरा हो गया ओर उसे भी बंगलोरे में नौकरी मिल गयी. मैं बहुत खुश थी. वह अपने दोस्तों के साथ शेयरिंग फ़्लैट में रहता था. पर उसकी साथ अकेले में सेक्स का मजा नहीं आया. मैं बंटी को मिस करती थी.
दोस्तों में गांव के किसान जमींदार के परिवार से थी. इसलिए मुझे शादी के रिश्ते आने लगे. घर से भी शादी का दबाव बढ़ने लगा.आगे की पढाई शादी के बाद करनी ये प्रस्ताव भी मंजूर हो गया. एक दिन मेरे ऑफिस मैं अनीश मुझसे मिलने आये. ६ फ़ीट लम्बे, सुन्दर, कसा हुआ शरीर, आकर्षक व्यक्तिमत्व. उन्होंने MBA किया था ओर बंगलोरे में मल्टीनेशनल कंपनी मैं अच्छी अहदे पर नौकरी कर रहे थे. वो मेरे पिताजी के दोस्त का बेटा था ओर उनकी बंगलोरे मैं जॉइंट फॅमिली थी, खुद का बड़ा मकान था, अपने छोटे भाई ओर माँ बाप के साथ वो वही रहते थे. अनीश को मैं पहली नजर में पसंद आ गयी ओर मेरे पापा ने मेरी शादी फिक्स कर दी ओर तुरंत २ महीने बाद का मुहूर्त भी निकाल दिया.
दोस्तों यह २० साल पहले का जमाना था. मे परिवार के रस्मों ओर कसमों में बंधी लड़की थी. मैंने तुरंत बंटी को फ़ोन किया. वो ओर बुवा पापा के पास मुंबई जाकर मिलने गये. बंटी ने पापा से मुज़से शादी करने की लिये बहुत मिन्नतें की, पर पापा ने साफ मना कर दिया. उन्होंने अपने दोस्त को वचन दे दिया था. फिर पापा बंटी से बोले - देखो बंटी, संध्या पढ़ी लिखी शहर की लड़की हैं, उसका अपना करियर हैं, तू उसे गांव मे कहा रखेगा, वो कैसे रहेगी ?
शादी को अब एक हफ्ता रह गया था. मैं मुंबई आ गयी थी. मैंने गर्भे निरोधक गोलियां खानी बंद कर दी थी. योगा करके ओर अपनी चुत पर क्रीम लगाकर मैं उसको भी कसी हुई करने की कोशिश कर रही थी. आजकल तो ऑपरेशन कर के फटी हुई चुत की झिल्ली जोड़ देते है. तब ऐसे कोई इंतजाम नहीं होता था. में टेंशन मैं थी. अपनी फटी चुत को कैसे छुपा पाऊँगी अनीश से?
शादी के दो दिन पहले स्वप्निल घर आया. उसने चुप के मेरे हात मैं एक चिठ्ठी दे दी. उसकी जाते मैंने वह चिठ्ठी पढ़ी. वो चिट्टी बंटी की थी.
बंटी ने लिखा था : संध्या मैं यही पास मेँ ब्लू स्टार होटल में रूम १०१ में हूँ. प्लीज मुज़से जल्दी मिलने आ जाना.
मैं सोचने लगी..क्या मैं अपने प्यार से मिलने जाऊ ? क्या मैं उसकी साथ भाग के शादी कर लू ? बंटी को मेरे चुदाई के सारे किस्से पता थे. उसकी साथ मेरा कनेक्शन है. मैं उसकी साथ बहुत सुखी रहूंगी.
क्या करू मैं ? मेरे मन मे असंख्य सवालों का बवाल उठ रहा था.
गांड का उद्घाटन !
मैंने घर में बहाना बनाया की ब्यूटी पारलर वाली के पास मेक उप फाइनल करने के लिये जाना हैं. ओर मैं होटल ब्लू स्टार चली गयी. मैंने कमरे की घंटी बजायी, बंटी ने दरवाजा खोला. उसके चहरे का तेज गायब हो गया था. उसकी मुस्कान खो गयी थी. वह बहुत उदास लग रहा था. उसकी आँखों में हमेशा की तरह चमक की जगह आज दर्द ही दर्द था. मैं बहुत दुखी हो गयी. उसने मुझे जोर से पकड़ लिया और जोर जोर से रोने लगा.
मैं भी उसके बाँहों में समेट कर उसके साथ रोने लगी.
बंटी: मुझे लगा तू नहीं आयेगी. तू नहीं आती तो शायद मैं मर जाता.
मैं: ऐसे मत बोलो बंटी. मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ. कैसे नहीं आती..
बंटी: चलो संध्या मेरे साथ ..हम लोग भाग कर शादी करते है..
मैं:नहीं बंटी..मैं ऐसा नहीं कर सकती. मेरे पापा का नाम ख़राब नहीं कर सकती. क्या तुम चाहते हो की तुम्हारे मामा का नाम कलंकित हो जाये.
बंटी: फिर मैं क्या करू संध्या. तेरे बिना मैं कैसे जी सकता हूँ.
मैं: अब कुछ नहीं कर सकते, बंटी बहुत देर हो गयी.
बंटी: ऐसे मत कहो संध्या..मैंने सिर्फ तुम्हारे ख्वाब देखे है. मेरे प्यार को ऐसे मत तोड़ो. मेरे दिल की आह लग जायेगी तुझे.
मैं: बंटी प्लीज ऐसे मत कहो..तुम मुझे ऐसे कोस नहीं सकते..प्यार करते हो तो बद-दुवा मत दो.
बंटी: कैसे बदुआ दूंगा तुझे संध्या..मैं तुझे अपने जान से ज्यादा प्यार करता हूँ.. करके बंटी मुझे चूमने लगा.
मैं: क्या करती मैं बंटी. मैं तेरे साथ गांव में भी रह लेती. खेतों में जाती. तेरे साथ गाय-भैंसों का दूध भी निकालती.. मैं तेरे साथ बहुत खुश रहती. पर अब बहुत देर हो गयी सब को.
बंटी: मैं मर जाऊंगा ..! जी नहीं पाउँगा संध्या.. !
उसने मेरे होंठ चूस लये और उसकी जीभ मेरे मुँह में डाल दी. मुझे बंटी को शांत करना था..वह तिल तिल मर रह था. अपने प्यार से मैं उसको शांत कर दूंगी..समजा दूंगी. मैं भी उसको पागलों की तरह प्यार करने लगी. यह मेरे मन की ग्लानि थी या बंटी के प्रति प्यार, मैं उसके प्यार में डूबती चली गयी. मुझे कुछ नहीं समज में आ रहा था. सब जगह बंटी ही बंटी नजर आ रहा था. मन में तूफान उठ रहा..था..मैं बंटी से हमेशा के लिए बिछड़ जाउंगी. बंटी ने कुछ सेकंड में ही हम दोनों को नंगा कर दिया था. उसके सर पर भूत सँवार था. उसने मुझे बिस्तर पर सुला दिया, मेरे पैर ऊपर कर दिए और एक झटके में उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में ड़ाल दिया. में जोर से चिल्ला उठी..आह बंटी...मर जाउंगी. .. धीरे..!
पर बंटी को कोई फरक नहीं पड़ रहा था.
बंटी: हाँ संध्या..हम दोनों तो ऐसे ही मर जायेंगे.. !
बंटी मुझे..जोर जोर से किसी मशीन की तरह चोद रहा था. एक मुर्दे की तरह !. मेरी चूत कई बार गीली हो कर झड़ गयी..पर उसके चहरे पर कोई भाव नहीं था. उसका गुस्सा बढ़ रहा था. मैं उसको अपने सीने से लिपटना चाहती थी, प्यार करना चाहती थी..पर वो वैसे ही खड़ा खड़ा मुझे चोदे जा रह था.
उसने मेरे पैर पुरे ऊपर छाती से लगा दिए और मेरी गांड एकदम ऊपर कर दी... उसने अपना लण्ड धीरे मेरी चूत से निकाला..और मेरी गांड पर रख दिया..
में: नहीं बंटी..प्लीज..ऐसे मत करो..मैंने कभी नहीं किया !...
मैं कुछ और कहती, उसके पहले ही बंटी ने मुझे जोरदार धक्का दिया और उसका लण्ड मेरी गांड में आधा चला गया. मेरे चूत के पाणी से उसका लण्ड पहले ही चिकना हो गया था.
मैं: आह ! मर गयी..प्लीज निकल दो..उफ़..बंटी रहम करो.
मैंने जोर जोर से रोने लगी. मैं तड़प कर छटपटा रही थी. पर बंटी ने मुझे कास के पकड़ रखा था. मेरी गांड में भीषण दर्द हो रह था.
बंटी: संध्या तेरी गांड का उद्घाटन मैं अपनी सुहागरात को प्यार से करनेवाला था. पर अब कोई रास्ता नहीं हैं. तेरे पर पहला हक मेरा था ना
बंटी ने कस के मेरी गांड पकड़ ली और धीरे धीरे अपन लण्ड मेरी गांड में पेलने लगा. मैं तड़प कर रो रही थी. इतना दर्द मुझे कभी नहीं हुवा था. पर बंटी मेरी गांड पकड़ पकड़ कर जंगली की तरह चोदे जा रहा था.
बंटी: ले रंडी..कर ले उस अनीश से शादी..फिर कभी इसके बाद तुझे नहीं मिलूंगा.
मैं बस रोये जा रही थी, पर बंटी ने कोई रहम नहीं किया..उसने अब उसका पूरा मोटा काला 8 इंच का नाग मेरे गांड मैं ड़ाल दिया था. उसका केले जैसे आकiर का लण्ड..मेरी गांड को हर जगह छू रहा था. मेरा दर्द अब कम हो गया था..और मैं..गीली हो रही थी. बंटी धके पर धक्के मार रहा था.
मैं..आह बंटी..प्लीज..धीरे..मैं फिर से कसमसा गयी..
मैंने बंटी को अपने दोनों हातों जोर से मेरे तरफ खिंच लिया और उसके ओंठो को चूसने लगी...और गरम हो कर थरथरा कर जोर से झड़ने लगी.. मेरी चूत से पाणी की गंगा बहने लगी थी. मेरे ऐसे करने से बंटी ने भी कई झटके मेरी गांड में लगाये और मेरी गांड में उसका गरम पाणी ड़ाल दिया. वह बहुत देर तक मेरे ओंठों को चूसता रहा, अपनी जीभ मेरे मुँह में डालता रहा. मैं भी उसकी जीभ पागल जैसे चाट लेती..उसको बहुत प्यार करती, जैसे की मेरे जीवन का आखरी दिन है. बंटी का लण्ड अभी भी मेरी गांड में फंसा था..खड़ा था..बिलकुल सिकुड़ा नहीं था.
बंटी ने वैसे हे मेरे जीभ को ओर ओंठों को चूसते हुए.. अपना लण्ड मेरी गांड से धीरे से निकाला ओर एक झटके में मेरी चूत में ड़ाल दिया. वह अब मुझे प्यार करके मेरी चूत चोद रहा था.
बंटी: संध्या..अभी भी समय है.. प्लीज सोच लो..चलो मेरे सात
मैं: बंटी अब बहुत देर हो गयी. तुझे मालूम है मैं भी तेरे से प्यार करती हूँ. कभी कहा नहीं तुज़से पर फिर भी तू जानता था. मैं ही पागल समज नहीं पायी. मैंने तेरा जीवन नरक बना दिया.. मुझे माफ़ कर दे बंटी.
बंटी: नहीं संध्या..ऐसे मत कहो..तू मेरा प्यार है..खूबसूरत..बस ऐसे ही खुश रहो..मैं तुम्हे ऐसे ही खुश देखना चाहता हूँ.
मैं: उम्.. आह... बंटी...जोर से चोदो..मार डालो मुझे आज..
बंटी: नहीं संध्या..यह हमारा प्यार है..बस हमारे बिच के हसीन पल हम याद रखेंगे हमेशा.
मैं: तेरे बिना मैं कैसे खुश रहूंगी बंटी.. पापा ने मेरे जीवन भी बर्बाद कर दिया.
बंटी: ऐसे मत कहो संध्या.. हमारा प्यार अमर रहेगा..!
मैं: बंटी मुझे वचन दो..तुम खुश रहोगे..मेरे लिये दुखी नहीं रहोगे. तू खुश तो मैं भी खुश रहूंगी. तुझे दुःख देकर मैं कभी सुखी नहीं रह पाऊँगी.
बंटी: हाँ संध्या..मैं खुश रहूँगा ओर तुझे भी खुश रखूँगा.
आह....उह....आहे भरके बंटी मेरी चूत चोद रहा था... मेरी चूत भी अब गीली हो गयी थी.. बंटी का बड़ा मोटा केला मेरी चूत को हर जगह से घिसता था, आनंद देता था. मैंने जोर से बंटी को कसमसा के पकड़ लिया...ओर उसके लण्ड पर झड़ने लगी. बंटी ने भी उसका सारा वीर्य मेरी चूत के अंदर तक ड़ाल दिया..
मेरी चूत के गहराइयों तक उसका गरम पाणी चला गया था.
कुछ देर के बाद बंटी मेरे ऊपर से उठा ओर मेरे बाजु लेट गया. मैं उठकर बाथरूम चली गया. मैंने देखा बिस्तर पर बंटी का पाणी ओर मेरी गांड से निकले खून के धब्बे थे. मेरी गांड बहुत दर्द कर रही थी. मुझे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था. पर फिर भी एक सुखद अनुभूति हो रही थी .. प्यार का पूरापन लग रहा था, बंटी के प्यार से में खुद को संपूर्ण महसूस कर रही थी.
काफी समय हो गया था. मैं वाशरूम में जाकर साफ़ हो गयी .. खुद को सजाया - संवारा ओर बहार आ गयी. बंटी ओर मैं कुछ नहीं बोल पा रहे थी. वह अभी भी तकिये में मुँह ढक कर सो रहा था..रो रहा था.
मैंने कहा : अच्छा बंटी में चलती हूँ..
बंटी ने कोई जवाब नहीं दिया.
मैं रूम का दरवाजा खोलकर घर की तरफ जाने लगी.
ठीक दो दिन बाद मेरी शादी बड़ी धूम धाम से हो गयी. तीसरे दिन हम फ्लाइट से बंगलूर अनीश के घर आ गये. आज मेरी सुहागरात थी. अनीश के घरवालों ने हमारा कमरा बहुत अच्छी से फूलों से सजाया था. खाना खाने के बद रात को ९ बजे अनीश की माँ मुझे अनीश के कमरे में ले गयी. कहा - बहु..अनीश की दादी बहुत बीमार है. मरने से पहले पोता देखना चाहती है. तू सब संभाल लेना. ओर हंसकर चली गयी.
मैं सुहाग के सेज पर बैठकर अनीश का इंतजार करने लगी. मन में डर था. बंटी ने २ दिन पहले मेरे दोनों छेद चोद चोदकर भुर्ता बना दिया था. मुझे आज बहुत संभाल कर खेल खेलना था.
तभी दरवाजा खुला..अनीश अंदर आ गये. कुरता -पाजामा में वह बहुत आकर्षक लग रहे थे. कसी राजकुमार की तरह. गोरे - चिट्टे.. लम्बे.. मासलदार शरीर.. हाय ! कौन मना करता इनसे शादी करने को. मैं उठकर खड़ी हो गयी तो उन्होंने प्यार से मुझे अपने बाँहों में भर लिया. पता नहीं पर क्यों मुझे अजीब सकून मिला. मैंने भी अपने आप को उनको पूरा सौंप दिया. शादी के पवित्र बंधन को निभाना था.