Update 01
मेरा नाम मुन्ना है, पेशे से मैं एक ट्रक ड्राइवर हूँ| मेरे पिताजी का ट्रांसपोर्टेशन का व्यापार है और मैं भी उसी व्यापार में भागीदार हूँ| जब से होश संभाला है मैं पिताजी के साथ सड़कों पर बहुत घुमा हूँ| फिर चाहे दिल्ली से हिमाचल जाना हो या पंजाब| ग्रेजुएट हूँ बस यही मेरी शैक्षणिक योग्यता (educational qualification) है| आगे पढ़ने को मन नहीं था सो पिताजी के व्यापार में ही मन लगा लिया| वैसे भी जिसे घूमने का चस्का बचपन से लगा हो वो भला एक जगह टिक कर कैसे काम करेगा| पिताजी ने अपनी खून-पसीने की कमाई से गाँव में एक घर बनाया, जिसे उन्होंने मेरे नाम कर दिया| घर की देख-रेख सब मेरे जिम्मे है| एकलौती संतान होने के बहुत फायदे हैं! पिताजी और मैं महीने में कम से कम पंद्रह दिन तो बाहर ही रहते हैं| माँ बेचारी की इसकी आदत है, हाँ कभी-कभार मैं माँ को अपने साथ किसी छोटी ट्रिप पर ले जाता हूँ| अपने ट्रक अशोक 2516 xl पर जब माँ के साथ निकलता हैं तो टशन बाजी करने में बहुत मजा आता है| पर हाँ एक बात जर्रूर बताना चाहूँगा, मैंने आज तक सड़क के किसी भी नियम का उलंघन नहीं किया| ना ही कभी कोई दो नंबर का काम किया| पिताजी के आदर्श और सिद्धांतों का हमेशा पालन किया है| जब भी रात को सफर करना होता है तो माँ एक फ्लास्क भर के चाय दे देती है, ताकि ड्राइव करते समय नींद ना आ जाए और मैं अपनी गाडी हमेशा स्पीड लिमिट में ही चलाता हूँ|
दोस्तों आप सभी को एक बताने में बहुत ख़ुशी हो रही है, हाल फिलहाल ही में पिताजी ने मुझे महिंद्रा TRUXO 202 बुक कर के दिया है| wow !!!! लाल कलर में बहुत ही जानदार लुक देता है| उसकी गर्जन (roar) सुन के रोंगटे खड़े कर दिए| बस अब इन्तेजार नहीं होता ......
चलिए अब कहानी पर आते हैं, वरना आप सब बोर हो जायेंगे|
आज साल भर बाद मैं गाँव आया था| आमतौर पर साल में 10 - 12 चक्कर तो मैं गाँव के लगा ही लेता था पर इस बार बहुत समय लगा गाँव जाने में| अभी घर के दरवाजे की कुण्डी खोल रहा था की उसकी जोरदार चरमराहट सुन के मेरी बड़ी ताई ताऊ आ धमके|
बड़ी ताई: अरे मुन्ना! ना चिट्ठी न पता? कम से कम आने की इतिल्लाह कर देते?
मैं: अम्मा वो अलीगढ की डिलीवरी थी, तो वहां से सीधे यहाँ आ गया|
बड़े ताऊ: अच्छा किया मुन्ना, पर इस बार तुम्हें जल्दी नहीं जाने देंगे|
मैं: नहीं बप्पा...वो एक डिलीवरी......
बड़े ताऊ: इस बार तेरी नहीं चलेगी| मैं तेरे बाप को अभी फ़ोन कर देता हूँ| नीतू की शादी है और घर पर कोई तो चाहये काम-धाम देखने को| तेरा बाप तो गाँव आता नहीं जबतक उसे बुलाया ना जाये| उसका तो जैसे मन ही नहीं करता आने को... हमें देखने को|
मैं: बप्पा दरअसल शहर में काम बहुत ज्यादा है, ये तो दूर-दूर की डिलीवरी मैं देख लेता हूँ इसलिए उन्हें कुछ समय मिल जाता है वरना उन्हें तो खाने तक की फुरसत नहीं| पिताजी ने कहा था की वो अगली 28 को आ जायेंगे|
बड़े ताऊ: अगली 28 को? बताओ... शादी को बस एक महीना बचा है और घर वालों का ये हाल है|
बड़ी ताई: अरे छोडो जी, देवर जी व्यस्त रहते हैं पर समय पर हमेशा आ जाते हैं| और फिर तबतक मुन्ना तो है ही, आगे तो सब इसीको संभालना है|
बड़े ताऊ: तू यहीं रहेगा जब तक ये शादी नहीं निपट जाती, मैं तेरे बाप से बात कर लूँगा|
ये कह कर वो चले गए|
बड़ी ताई: तू इनकी बात का बुरा मत मान बेटा| तू तो जानता ही है की ये तुझसे और तेरे पिताजी से कितना प्यार करते हैं| दिन रात तुझे और तेरे पिताजी को ही याद करते हैं, और कभी-कभी इस कदर झुंझुला जाते हैं|
मैं: अरे नहीं अम्मा... कोई बात नहीं|
बड़ी ताई: तू कपडे बदल और मैं तेरे लिए शरबत भिजवाती हूँ|
मैंने अपना बैग पलंग पर पटका और अपनी टी-शर्ट उतारने लगा| टी-शर्ट अभी गले से निकल ही रही थी की किसी ने मुझे पीछे से आ कर जकड लिया| चूड़ियों की खनखनाहट से मुझे समझते देर न लगी की ये मेरी बड़ी भाभी है|
उनकी उँगलियाँ मेरी छाती की जांच-पड़ताल कर रही थीं| मेरे जिस्म में एक अजीब तरह की सिंहरान दौड़ने लगी थी और रह-रह कर मुझे बीत कल की याद दिल रही थी| वो पल जब मैंने अपना कौमार्य (virginity) को त्यागा था.... मेरी तन्द्रा जब टूटी, जब उन्होंने मुझे पुकारा;
बड़ी भाभी: मुन्ना.... बड़े जालिम हो तुम| एक महीने का कह कर गए थे और एक साल आने को आया|
मैं: (होश में आते हुए, अपने आप को उनके चंगुल से छुड़ाते हुए) मैंने तो कभी नहीं कहा था की मैं एक महीने आऊँगा|
बड़ी भाभी: जानती हूँ नहीं कहा था .... पर हमेशा....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) क्यों इस आवारा से दिल लगा रही हो| मैं तो आपको कुछ पल की खुशियाँ देने आया था| अब आपकी बेटी की शादी है, उसमें मन लगाओ|
बड़ी भाभी: तुम्हारी उन कुछ पलों ने मुझे जीवन भर की खुशियाँ दी हैं और तुम कहते हो की मैं तुम्हें भूल जाऊँ| क्या तुम भूल सकते हो वो पल?
मैं: हाँ (झूठ बोलते हुए)
बड़ी भाभी: (मुस्कुराते हुए) जानती हूँ ...जानती हूँ...
हमारी बात चल ही रही थी की नीतू आ गई, मेरी प्यारी भतीजी और भागती हुई सीधा मेरे गले आ लगी|
बड़ी भाभी: अरे लड़की! चाचा से ना सलाम न दुआ?
नीतू: नमस्ते चाचू|
मैं: चल! ज्यादा तहजीब का नाटक न कर मेरे साथ| ये ले अपनी चॉकलेट...
बड़ी भाभी: सच्ची तुमने इसे सर पर चढ़ा रखा है| दिन पर दिन बदतमीज होती जा रही है| (भाभी ने थोड़ा गुस्से बोला)
मैं: मेरी बेटी जानती है किसके साथ कैसे पेश आना है? वो अपने चाचा का सर कभी झुकने नहीं देगी|
बड़ी भाभी: हाँ ये बात तुमने सही कही| सबसे ज्यादा प्यार इसे तुम से ही मिला है| तुम्हारी जिद्द के कारन इसे पढ़ने को मिला|
मैं: जिद्द नहीं अकलमंदी| मुझे बस इतना करना था की पिताजी की थोड़ी ऊँगली करनी थी और बाकी का काम उन्होंने कर दिया| पर एक गम हमेशा रहेगा की मैं इसे और ज्यादा पढ़ा ना सका| चाह कर भी इसकी शादी नहीं रोक पाया, वरना इस साल नीतू कॉलेज में होती|
बड़ी भाभी: अब सब कुछ तो हमारे बस में नहीं होता ना| खेर, तुम्हें पता है तुम्हारी बेटी ने जिद्द पकड़ ली थी की अगर चाचू नहीं आये तो मैं शादी नहीं करुँगी|
मैं: भला ऐसे कैसे हो सकता है? इसकी शादी और मैं ना आऊँ|
हमारी इस बात-चीत के दौरान नीतू ने पूरी चॉकलेट साफ़ कर दी थी| सच्ची बहुत ही मासूम थी मेरी भतीजी नीतू पर………….
रात को सबने मिलकर कहना खाया और शादी की तैयारियों पर चर्चा की| चूँकि मैं बहुत घूमता-फिरता था तो मेरा शौक खाने-पीने में ज्यादा था, इसलिए खाने-पीने की व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी मेरी थी|
रात के करीब दस बजे थे और मेरे कारण आज सभी देर तक जगे थे| सब सोने चल दिए थे... अरे ये क्या मैंने तो आपको किसी के बारे में कुछ बताया ही नहीं| मैं भी न....
मेरे पिताजी के दो भाई हैं जिन्हें मैं बड़े बप्पा और मझले बप्पा कहता हूँ| बड़े बप्पा के पांच लड़के और दो लड़कियाँ हैं| सभी की शादी हो चुकी हैं, उनके नाम कुछ इस प्रकार हैं;
रमाकांत पत्नी शीला (इन्हें मैं बड़े भैया कहता हूँ)
सुरेश पत्नी सुमन
रौशनी
कपिल पत्नी लीलावती
सागर पत्नी उमा
बाबू पत्नी आभा
बरखा
मंझले बप्पा के तीन लड़के और तीन लड़कियाँ हैं और वे भी सभी शादी-शुदा हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं;
भक्ति (बड़ी बेटी)
ईशा
जमुना
अभ्यास पत्नी ज्योति
जया
चन्दर पत्नी तारा
कमल पत्नी रीता
इन सभी के बच्चे भी है परंतु वे सभी अभी अपनी किशोरावस्था में हैं और xossip के नियमों के अनुसार मैं उनका जिक्र नहीं कर सकता और वैसे भी उनका इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है| (Xossip की जय हो!)
सुरेश भैया और सागर भैया अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते हैं| कपिल भैया अपने परिवार के साथ राजस्थान में रहते हैं| ये सभी २-३ दिन में आने वाले थे परंतु छूती न मिलने के कारन 15 दिन बाद आएंगे|
आज रात घर पर बस केवल बड़े बप्पा, बड़ी अम्मा, रमाकांत भैया, शीला भाभी नीतू और मैं ही थे| बप्पा और अम्मा सोने चले गए और नीतू तो पहले ही सो चुकी थी| मैं अपने घर में अकेला लेटा हुआ था की तभी रमाकांत भैया मेरे पास आये| उनके हाथ में एक देसी पउवा था और दो गिलास| मैं समझ गया की उनके क्या इरादे थे? मैं भी दिन भर ट्रक खेंच के लाया था सो मैंने भी सोची की दो पेग मार ही लेता हूँ| भैया और मैं कभी-कभार एक साथ पेग मार लिया करते थे| आज भी उन्होंने बिना कुछ कहे ही सीधा दो पेग बना दिए| मुझे पीने की आदत नहीं थी पर कभी-कभार छुप के टिक लिया करता था और उस दिन अपने ट्रक के केबिन में ही सो जाया करता था| एक पउवे से मेरा कुछ होने वाला नहीं था पर फ्री की शराब को कौन मन करता है? कुछ देर बाद भैया चले गए और मैं दरवाजा बंद कर के सो गया| करीब रात के २ बजे होंगे की मुझे किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई| आवाज बहुत धीमी थी, और मैं जान गया था की ये कौन है? शीला भाभी की बुर में आग लगी होगी... ये सोचते हुए मैं उठा और अपने सोये हुए लंड को प्यार से सहलाया की आज तुझे साल भर बाद खुराक मिलने वाली है|
मेरे दरवाजा खोलते ही भाभी धडधडाती हुई अंदर आ गई और खुद ही दरवाजा बंद कर दिया|मैंने अनजान बनते हुए पूछा;
मैं: क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?
बड़ी भाभी: आय-हाय! अनजान तो ऐसे बन रहे हो जैसे कुछ जानते ही नहीं?
मैं अब भी अपने नाटक पर कायम था| भाभी ने तभी मेरे सोये हुए लंड को अपनी मुट्ठी में भरा और वो ये देख कर हैरान हो गई| उन्हें उम्मीद थी की मेरा लंड खड़ा होगा|
बड़ी भाभी: हाय दैया! लगता है मुझे भूल गए? तुम्हें याद कर-कर के मैंने यहाँ अपनी मुनिया से कितने आँसूं टपकाये और तुम्हारे ये साहबजादे को कोई फर्क ही नहीं|
दोस्तों एक बात यहाँ आपको बताना चाहूँगा; कभी औरत को ये महसूस मत करवाओ की तुम्हें उसकी चूत की जर्रूरत है| जिस दिन उसे ये पता चल गया की तुम्हें अपनी आग बुझाने के लिए उसकी जर्रूरत है वो तुम्हें अपनी उँगलियों पर नचाना शुरू कर देगी| मैं आज तक किसी भी औरत को ये महसूस नहीं होने दिया की मैं उसकी चूत मारने का भूख हूँ, उन सभी को ये लगता है की मैं दीवाना हूँ जिसे मिल जाए तो मार लेता है पर कभी माँगता नहीं!
ऊपर लिखित जानकारी उन लड़कों के लिए नहीं जिन्हें एक भी चूत नहीं मिलती मारने को| ये सुझाव सिर्फ और सिर्फ उनके लिए हैं जो मेरी तरह आशिक मिजाज हैं| तुम्हें तो एक चूत नहीं मिल रही और गलती से मिलने लगे और तुम मेरी तरह भाव खाने लगो तो हाथ आई मुर्गी भी भाग जाएगी|
खेर कहानी पर वापस आते हुए:
मैंने भांप लिया था की भाभी अब नाराज होने का नाटक करेगी, सो यही समय था अपने तुरुक के एक्के की चाल चलने का| मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी के चेहरे को थामा और उनके रसीले होठों को अपने मुँह में कैद कर लिया| मेरी जीभ उनकी मुँह की गहराइयों को नाप रही थी और भाभी मन्त्र मुग्ध से मुझे खुद में समाती जा रही थी| भाभी के हाथों ने मेरी छाती को टटोलना शुरू कर दिया था| धीरे-धीरे उनके हाथ नीचे जाने लगे और मेरी टी-शर्ट के अंदर घुस गए| उनके हाथों का स्पर्श पाते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए| उनकी उँगलियाँ धीरे-धीरे मेरी घुंडियों को ढूंढने लगीं| इधर मैंने उनके नीचले होठ को अपने दाँतों से काटना शुरू कर दिया था|भाभी ने मेरी घुंडियों को अपने अंगूठे और तर्जनी ऊँगली से दबाना शरू कर दिया था| इधर मैंने अपनी जीभ को उनकी रास भरे मुँह में सरक दिया और उन्होंने भी मेरी जीभ का स्वागत करते हुए अपने दोनों होठों से उसे चूसना शुरू कर दिया|
अब भाभी का जिस्म और ज्यादा मचलने लगा था और वो मेरी बांहों में पिघलने लगी थी| जब उनकी देह की गर्मी उन्हें झुलसने लगी तो खुदबखुद उनके हाथों ने अपने शिकार को ढूँढना शुरू कर दिया| भाभी ने मेरी जीभ को अपने होठों से आजाद किया और मेरी ओर देखते हुए बोली;
भाभी: मुन्ना...बस ... अह्ह्ह... अब और नहीं सहा जाता|
मैं: ऐसी बात है तो ये लो....
मैंने भाभी को नई-नवेली ढुलान की तरह अपनी गोद में उठाया और अपने पलंग पर ले आया| पलंग पर उन्हें लिटाया ही था की उन्होंने जल्दी दिखाते हुए अपनी साडी खुद-बा-खुद ऊपर उठा ली और अपनी सफाचट बुर के दर्शन करा दिए| भाभी ने पेंटी भी नहीं पहनी थी, सिर्फ साडी और पेटीकोट पहना था| मेरी आँखें उनकी बुर से चिपक गई थीं, मैंने अपने पाजामे का नाद खोल और वो सरक कर नीचे जा गिरा| मेरी नाक उनकी बुर की खुशबु की तरफ मुझे ले जाने लगी, पर इससे पहले की मैं वो अमृत चख पाता भाभी नेमुझे रोक दिया;
बड़ी भाभी: नहीं मुन्ना.... आज नहीं| आज मेरी जलती हुई भट्टी में और तेल ना डालो| इसे जल्दी से अपने लंड से भर दो!
मैंने कुछ नहीं कहा और सीधा उनके ऊपर आ गया, भाभी ने अपनी टांगें तो पहले से ही चौड़ी कर रखी थी| भाभी का उतावलापन इस कदर था की उन्होंने जल्दी से अपना हाथ ले जा कर मेरा लंड अपनी बुर के ऊपर रखो और बड़ी तरसती हुई आँखों से मेरी ओर देखने लगी| उनके चेहरे के इन भाव को देख मुझे उन पर प्यार आने लगा और मैंने अपने लंड का दबाव उनकी बुर पर बढ़ दिया| मेरा लंड धीरे-धीरे उनकी बुर में समाने लगा| जैसे-जैसे लंड अंदर जा रहा था भाभी के चेहरे के भाव बदल के संतुष्टि का रूप लेने लगे थे|
जब पूरा लंड अंदर समा गया तो भाभी की भट्टी की तपिश मुझे अपने लंड पर महसूस होने लगी और मैं बिना हिले-डुले उनपर पड़ा रहा| इधर भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया| उनकी एड़ी ने जब मेरे कूल्हे पर थपकी मारी तब मुझे होश आया| ये मेरे लिए सिग्नल था, जैसे की घुड़सवार अपने घोड़े को आगे चलने के लिए उसकी कमर या पेट पर अपनी एड़ी से चोट करता है, ठीक उसी तकनीक का उपयोग भाभी ने किया| मैंने अपना लंड पूरा बाहर निकाला और फिर दो सेकंड का विराम लिया| अपने अंदर खाली-खाली महसूस कर भाभी की आँखें जो आनंद के मारे बंद थी वो खुल गईं और वो बोली;
बड़ी भाभी: सच्ची बहुत जालिम हो तुम!
मैं मुस्कुरा दिया और फिर एक झटके में पूरा लंड अंदर जड़ तक बाढ़ दिया| लंड के उनकी बुर में सरपट घुसते ही भाभी चिहुंक उठी;
बड़ी भाभी: आईईईईई ..... मुन्ना... आअह्ह्ह!
मैं: तुमने ही तो कहा मैं जालिम हूँ! तो अब भुगतो|
ये सुन दोनों की हंसी छूट गई| भाभी ने अपने नीचले होंठ को दांतों तले दबाया और मुझे उतेजना की और हाँक दिया| अब मैंने उनके ऊपर झुक कर अपनी कमर को लय बद्ध तरीके से लंड को अंदर-बाहर करना जारी किया| मेरे हर धक्के में भाभी की "आह!" निकल रही थी| अपनी उत्तेजना और बढ़ने के लिए भाभी ने अपने भगनासा को छेड़ना शुरू कर दिया| अब भाभी दोहरे आनंद का मज़ा ले रही थी| भाभी के मुँह से अपनी आहें और सिसकारियां निकलने लगी थी| साफ़ था की वो उत्तेजना के शिखर पर पहुँच चुकी हैं और किसी भी समय अपने रस की धार बहाने वाली है| हैरानी की बात ये थी की भाभी मेरे साथ हमेशा 25 मिनट तक साथ दिया करती थी| पर आज वो 10 मिनुत में ही मेरा साथ छोड़ने जा रही थी| मैंने सोचा नहीं ... ये मेरा वहम होगा.....
पर मेरी सोच सही निकली, अगले ही पल उन्होंने जोरदार धार मारी और निढाल हो के लाश के सामान लेट गई| उनकी साँसों की गति तेज हो चली थी, ब्लाउज में ढकी उनकी छातियाँ धोकनी की तरह ऊपर-नीचे हो रही थी| उनका ऐसा व्यवहार देख मेरे सारी उत्तेजना काफूर हो गई| मैंने भाभी की चुदाई पर पूरी तरह विराम लगा दिया और अपना लंड बाहर निकाल मैं अपने पंजों पर बैठ गया| मैं अब भी तक-ताकि बांधे भाभी की ओर देख रहा था की वो कुछ बोलेगी.... अब बोलेगी.... अब बोलेगी.... पर नहीं वो कुछ नहीं बोली| दारु का नशा तो कब का उत्तर गया था अब गुस्से का गुबार अंदर बनने लगा था| आखिर पाँच मिनुत बाद वो बोली;
बड़ी भाभी: मुन्ना.... अब मैं बूढ़ी हो गई हूँ| अब मुझ में वो सहनशीलता (stamina) नहीं रहा| बाहत जल्दी थक जाती हूँ मैं| वैसे भी आज तुम इतने दिनों बाद आये.... तो खुद को संभाल नहीं पाई और जल्दी ही फारिग हो गई|
मैं: और मेरा क्या? अपनी आग तो बुझवा ली मुझसे?
बड़ी भाभी: वो... मैं....
मैं: रहने दो.... निकलो यहाँ से जल्दी, मुझे सोना है|
मैंने बहुत गुस्से भरे स्वर में कहा और जैसे ही मैं दरवाजे की तरफ मुड़ा तो मुझे लगा की कोई छुप के मुझे देख रहा है| मैं दरवाजे के पास वाली खिड़की के पास दौड़ा... पर मुझे वहां कोई नहीं मिला| ,मैं वापस आया तो भाभी मुँह लटकाये बैठी थी;
बड़ी भाभी: मुन्ना... माफ़ कर दो मुझे|
मुन्ना: देखो मेरा गुस्सा और मत भड़काओ, चुप-चाप निकल जाओ यहाँ से|
इतना कह कर मैं दूसरे कमरे में गया और वहाँ अपने बैग से अध्धी निकाली और २-३ घूँट मारे| भाभी पीछे खड़ी ये सब देख रही थी| जब मैं बाहर आया तो दर के मारे भाभी वहाँ से चली गई|
आग बाबुल हो मैं तहमद लपेट, मैं बाहर बरामदे में आ गया और एक कोने से दूसरे कोने में तेजी से चलने लगा| खड़े लंड पर धोका कैसा होता है ये बहुत कुछ लोग ही जानते होंगे| मेरी हालात उस समय ऐसी थी की कोई भी औरत अगर सामने आ जाती तो उसे पेल देता| पर रात के तीन बजे न औरत न कोई रंडी थी वहाँ| गुस्सा इस कदर था की मन कर रहा था की शीला की गांड की सील अपने लड़ से चीर दूँ! पर इधर मेरा लंड खड़े-खड़े दुखने लगा था| जब कुछ नहीं मिला तो मैंने अपने हाथ की ओर देखा और बुदबुदाया; "आज कुछ नहीं तो कम से कम तू तो मेरे साथ है ना|" मैंने अपने हाथ पर थोड़ा थूक लिया और अपने लंड को उससे चुपड़ दिया| आँख बंद किये मैं अपने लंड की खाल को ऊपर-नीचे करने लगा| थूक की गर्माहट के कारन मेरा दिमाग ये सोच रहा था की मेरा लंड किसी चूत के भीतर है| जैसे-जैसे हाथों की गति बढ़ रही थी वैसे-वैसे मैं चरम की ओर बढ़ रहा था| अंत में मैंने एक जोर दर धार मारी जो जाके सीधे दिवार पर गिरी| अपने लंड से आखरी बूँद तक वीर्य बहाने तक मैं नहीं रूक और फिर निढाल हो कर वहीँ बैठा रहा| फिर मैं उठा और अंदर जाकर अपना तहमद लपेट लिया और फिर बहार आकर कुर्सी पर बैठ गया|
सिगरेट सुलगाई और पी ही रहा था की तभी नीतू आ गई| मैं थोड़ा हैरान हुआ उसे यहाँ देख के, और उसकी आँखों में मैंने कुछ उधेड़-बुन देखि| वो मुझसे करीब ८-९ फुट की दूरी पर खड़ी थी...
मैं: सोये नहीं?
नीयू: नींद नहीं आ रही चाचू|
मैं: मैं जब घर आया था तब तो आप सो रहे थे?
नीतू: .....
मैं: अच्छा कोई भयानक सपना देखा होगा?
नीतू: हाँ....हाँ....
मैं: क्या देखा सपने में?
नीतू: (कुछ सोचते हुए) यही की आप मुझे छोड़ के चले गए|
मैं: अरे पगली! तू मेरी सबसे प्यारी भतीजी है, भला मैं तुझे छोड़के कहाँ जाऊँगा|
नीतू ये सुन कर मुस्कुराई, क्योंकि वो जानती थी की मैं उसे सबसे ज्यादा प्यार करता था| मेरा प्यार उसके जिस्म को पाने के लिए कतई नहीं था, बल्कि मैं तो उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करता था|
नीतू: चाचू ... वो कल मैं ... अपने कॉलेज जाना चाहती हूँ| आप ले चलोगे मुझे?
मैं: कॉलेज? पर क्यों?
नीतू: वो ......मैं एक आखरी बार अपना कॉलेज ... क्लास देखना चाहती हूँ|
ये बात नीतू ने बहुत कुछ सोच-विचार करने के बाद बोली थी जिसने मुझे अचम्भे में डाल दिया था|
मैं: ठीक है| अब तुम जाके सो जाओ.... रात काफी हो गई है और किसी ने देख लिया तो......
मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी थी ... मुझे पता था नीतू समझदार है और मेरी बात समझेगी| खेर नीतू ने और कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा कर चली गई, मैं भी अंदर आकर दरवाजा बंद करके अपने पलंग पर सो गया|
दोस्तों आप सभी को एक बताने में बहुत ख़ुशी हो रही है, हाल फिलहाल ही में पिताजी ने मुझे महिंद्रा TRUXO 202 बुक कर के दिया है| wow !!!! लाल कलर में बहुत ही जानदार लुक देता है| उसकी गर्जन (roar) सुन के रोंगटे खड़े कर दिए| बस अब इन्तेजार नहीं होता ......
चलिए अब कहानी पर आते हैं, वरना आप सब बोर हो जायेंगे|
आज साल भर बाद मैं गाँव आया था| आमतौर पर साल में 10 - 12 चक्कर तो मैं गाँव के लगा ही लेता था पर इस बार बहुत समय लगा गाँव जाने में| अभी घर के दरवाजे की कुण्डी खोल रहा था की उसकी जोरदार चरमराहट सुन के मेरी बड़ी ताई ताऊ आ धमके|
बड़ी ताई: अरे मुन्ना! ना चिट्ठी न पता? कम से कम आने की इतिल्लाह कर देते?
मैं: अम्मा वो अलीगढ की डिलीवरी थी, तो वहां से सीधे यहाँ आ गया|
बड़े ताऊ: अच्छा किया मुन्ना, पर इस बार तुम्हें जल्दी नहीं जाने देंगे|
मैं: नहीं बप्पा...वो एक डिलीवरी......
बड़े ताऊ: इस बार तेरी नहीं चलेगी| मैं तेरे बाप को अभी फ़ोन कर देता हूँ| नीतू की शादी है और घर पर कोई तो चाहये काम-धाम देखने को| तेरा बाप तो गाँव आता नहीं जबतक उसे बुलाया ना जाये| उसका तो जैसे मन ही नहीं करता आने को... हमें देखने को|
मैं: बप्पा दरअसल शहर में काम बहुत ज्यादा है, ये तो दूर-दूर की डिलीवरी मैं देख लेता हूँ इसलिए उन्हें कुछ समय मिल जाता है वरना उन्हें तो खाने तक की फुरसत नहीं| पिताजी ने कहा था की वो अगली 28 को आ जायेंगे|
बड़े ताऊ: अगली 28 को? बताओ... शादी को बस एक महीना बचा है और घर वालों का ये हाल है|
बड़ी ताई: अरे छोडो जी, देवर जी व्यस्त रहते हैं पर समय पर हमेशा आ जाते हैं| और फिर तबतक मुन्ना तो है ही, आगे तो सब इसीको संभालना है|
बड़े ताऊ: तू यहीं रहेगा जब तक ये शादी नहीं निपट जाती, मैं तेरे बाप से बात कर लूँगा|
ये कह कर वो चले गए|
बड़ी ताई: तू इनकी बात का बुरा मत मान बेटा| तू तो जानता ही है की ये तुझसे और तेरे पिताजी से कितना प्यार करते हैं| दिन रात तुझे और तेरे पिताजी को ही याद करते हैं, और कभी-कभी इस कदर झुंझुला जाते हैं|
मैं: अरे नहीं अम्मा... कोई बात नहीं|
बड़ी ताई: तू कपडे बदल और मैं तेरे लिए शरबत भिजवाती हूँ|
मैंने अपना बैग पलंग पर पटका और अपनी टी-शर्ट उतारने लगा| टी-शर्ट अभी गले से निकल ही रही थी की किसी ने मुझे पीछे से आ कर जकड लिया| चूड़ियों की खनखनाहट से मुझे समझते देर न लगी की ये मेरी बड़ी भाभी है|
उनकी उँगलियाँ मेरी छाती की जांच-पड़ताल कर रही थीं| मेरे जिस्म में एक अजीब तरह की सिंहरान दौड़ने लगी थी और रह-रह कर मुझे बीत कल की याद दिल रही थी| वो पल जब मैंने अपना कौमार्य (virginity) को त्यागा था.... मेरी तन्द्रा जब टूटी, जब उन्होंने मुझे पुकारा;
बड़ी भाभी: मुन्ना.... बड़े जालिम हो तुम| एक महीने का कह कर गए थे और एक साल आने को आया|
मैं: (होश में आते हुए, अपने आप को उनके चंगुल से छुड़ाते हुए) मैंने तो कभी नहीं कहा था की मैं एक महीने आऊँगा|
बड़ी भाभी: जानती हूँ नहीं कहा था .... पर हमेशा....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) क्यों इस आवारा से दिल लगा रही हो| मैं तो आपको कुछ पल की खुशियाँ देने आया था| अब आपकी बेटी की शादी है, उसमें मन लगाओ|
बड़ी भाभी: तुम्हारी उन कुछ पलों ने मुझे जीवन भर की खुशियाँ दी हैं और तुम कहते हो की मैं तुम्हें भूल जाऊँ| क्या तुम भूल सकते हो वो पल?
मैं: हाँ (झूठ बोलते हुए)
बड़ी भाभी: (मुस्कुराते हुए) जानती हूँ ...जानती हूँ...
हमारी बात चल ही रही थी की नीतू आ गई, मेरी प्यारी भतीजी और भागती हुई सीधा मेरे गले आ लगी|
बड़ी भाभी: अरे लड़की! चाचा से ना सलाम न दुआ?
नीतू: नमस्ते चाचू|
मैं: चल! ज्यादा तहजीब का नाटक न कर मेरे साथ| ये ले अपनी चॉकलेट...
बड़ी भाभी: सच्ची तुमने इसे सर पर चढ़ा रखा है| दिन पर दिन बदतमीज होती जा रही है| (भाभी ने थोड़ा गुस्से बोला)
मैं: मेरी बेटी जानती है किसके साथ कैसे पेश आना है? वो अपने चाचा का सर कभी झुकने नहीं देगी|
बड़ी भाभी: हाँ ये बात तुमने सही कही| सबसे ज्यादा प्यार इसे तुम से ही मिला है| तुम्हारी जिद्द के कारन इसे पढ़ने को मिला|
मैं: जिद्द नहीं अकलमंदी| मुझे बस इतना करना था की पिताजी की थोड़ी ऊँगली करनी थी और बाकी का काम उन्होंने कर दिया| पर एक गम हमेशा रहेगा की मैं इसे और ज्यादा पढ़ा ना सका| चाह कर भी इसकी शादी नहीं रोक पाया, वरना इस साल नीतू कॉलेज में होती|
बड़ी भाभी: अब सब कुछ तो हमारे बस में नहीं होता ना| खेर, तुम्हें पता है तुम्हारी बेटी ने जिद्द पकड़ ली थी की अगर चाचू नहीं आये तो मैं शादी नहीं करुँगी|
मैं: भला ऐसे कैसे हो सकता है? इसकी शादी और मैं ना आऊँ|
हमारी इस बात-चीत के दौरान नीतू ने पूरी चॉकलेट साफ़ कर दी थी| सच्ची बहुत ही मासूम थी मेरी भतीजी नीतू पर………….
रात को सबने मिलकर कहना खाया और शादी की तैयारियों पर चर्चा की| चूँकि मैं बहुत घूमता-फिरता था तो मेरा शौक खाने-पीने में ज्यादा था, इसलिए खाने-पीने की व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी मेरी थी|
रात के करीब दस बजे थे और मेरे कारण आज सभी देर तक जगे थे| सब सोने चल दिए थे... अरे ये क्या मैंने तो आपको किसी के बारे में कुछ बताया ही नहीं| मैं भी न....
मेरे पिताजी के दो भाई हैं जिन्हें मैं बड़े बप्पा और मझले बप्पा कहता हूँ| बड़े बप्पा के पांच लड़के और दो लड़कियाँ हैं| सभी की शादी हो चुकी हैं, उनके नाम कुछ इस प्रकार हैं;
रमाकांत पत्नी शीला (इन्हें मैं बड़े भैया कहता हूँ)
सुरेश पत्नी सुमन
रौशनी
कपिल पत्नी लीलावती
सागर पत्नी उमा
बाबू पत्नी आभा
बरखा
मंझले बप्पा के तीन लड़के और तीन लड़कियाँ हैं और वे भी सभी शादी-शुदा हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं;
भक्ति (बड़ी बेटी)
ईशा
जमुना
अभ्यास पत्नी ज्योति
जया
चन्दर पत्नी तारा
कमल पत्नी रीता
इन सभी के बच्चे भी है परंतु वे सभी अभी अपनी किशोरावस्था में हैं और xossip के नियमों के अनुसार मैं उनका जिक्र नहीं कर सकता और वैसे भी उनका इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है| (Xossip की जय हो!)
सुरेश भैया और सागर भैया अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते हैं| कपिल भैया अपने परिवार के साथ राजस्थान में रहते हैं| ये सभी २-३ दिन में आने वाले थे परंतु छूती न मिलने के कारन 15 दिन बाद आएंगे|
आज रात घर पर बस केवल बड़े बप्पा, बड़ी अम्मा, रमाकांत भैया, शीला भाभी नीतू और मैं ही थे| बप्पा और अम्मा सोने चले गए और नीतू तो पहले ही सो चुकी थी| मैं अपने घर में अकेला लेटा हुआ था की तभी रमाकांत भैया मेरे पास आये| उनके हाथ में एक देसी पउवा था और दो गिलास| मैं समझ गया की उनके क्या इरादे थे? मैं भी दिन भर ट्रक खेंच के लाया था सो मैंने भी सोची की दो पेग मार ही लेता हूँ| भैया और मैं कभी-कभार एक साथ पेग मार लिया करते थे| आज भी उन्होंने बिना कुछ कहे ही सीधा दो पेग बना दिए| मुझे पीने की आदत नहीं थी पर कभी-कभार छुप के टिक लिया करता था और उस दिन अपने ट्रक के केबिन में ही सो जाया करता था| एक पउवे से मेरा कुछ होने वाला नहीं था पर फ्री की शराब को कौन मन करता है? कुछ देर बाद भैया चले गए और मैं दरवाजा बंद कर के सो गया| करीब रात के २ बजे होंगे की मुझे किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई| आवाज बहुत धीमी थी, और मैं जान गया था की ये कौन है? शीला भाभी की बुर में आग लगी होगी... ये सोचते हुए मैं उठा और अपने सोये हुए लंड को प्यार से सहलाया की आज तुझे साल भर बाद खुराक मिलने वाली है|
मेरे दरवाजा खोलते ही भाभी धडधडाती हुई अंदर आ गई और खुद ही दरवाजा बंद कर दिया|मैंने अनजान बनते हुए पूछा;
मैं: क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?
बड़ी भाभी: आय-हाय! अनजान तो ऐसे बन रहे हो जैसे कुछ जानते ही नहीं?
मैं अब भी अपने नाटक पर कायम था| भाभी ने तभी मेरे सोये हुए लंड को अपनी मुट्ठी में भरा और वो ये देख कर हैरान हो गई| उन्हें उम्मीद थी की मेरा लंड खड़ा होगा|
बड़ी भाभी: हाय दैया! लगता है मुझे भूल गए? तुम्हें याद कर-कर के मैंने यहाँ अपनी मुनिया से कितने आँसूं टपकाये और तुम्हारे ये साहबजादे को कोई फर्क ही नहीं|
दोस्तों एक बात यहाँ आपको बताना चाहूँगा; कभी औरत को ये महसूस मत करवाओ की तुम्हें उसकी चूत की जर्रूरत है| जिस दिन उसे ये पता चल गया की तुम्हें अपनी आग बुझाने के लिए उसकी जर्रूरत है वो तुम्हें अपनी उँगलियों पर नचाना शुरू कर देगी| मैं आज तक किसी भी औरत को ये महसूस नहीं होने दिया की मैं उसकी चूत मारने का भूख हूँ, उन सभी को ये लगता है की मैं दीवाना हूँ जिसे मिल जाए तो मार लेता है पर कभी माँगता नहीं!
ऊपर लिखित जानकारी उन लड़कों के लिए नहीं जिन्हें एक भी चूत नहीं मिलती मारने को| ये सुझाव सिर्फ और सिर्फ उनके लिए हैं जो मेरी तरह आशिक मिजाज हैं| तुम्हें तो एक चूत नहीं मिल रही और गलती से मिलने लगे और तुम मेरी तरह भाव खाने लगो तो हाथ आई मुर्गी भी भाग जाएगी|
खेर कहानी पर वापस आते हुए:
मैंने भांप लिया था की भाभी अब नाराज होने का नाटक करेगी, सो यही समय था अपने तुरुक के एक्के की चाल चलने का| मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी के चेहरे को थामा और उनके रसीले होठों को अपने मुँह में कैद कर लिया| मेरी जीभ उनकी मुँह की गहराइयों को नाप रही थी और भाभी मन्त्र मुग्ध से मुझे खुद में समाती जा रही थी| भाभी के हाथों ने मेरी छाती को टटोलना शुरू कर दिया था| धीरे-धीरे उनके हाथ नीचे जाने लगे और मेरी टी-शर्ट के अंदर घुस गए| उनके हाथों का स्पर्श पाते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए| उनकी उँगलियाँ धीरे-धीरे मेरी घुंडियों को ढूंढने लगीं| इधर मैंने उनके नीचले होठ को अपने दाँतों से काटना शुरू कर दिया था|भाभी ने मेरी घुंडियों को अपने अंगूठे और तर्जनी ऊँगली से दबाना शरू कर दिया था| इधर मैंने अपनी जीभ को उनकी रास भरे मुँह में सरक दिया और उन्होंने भी मेरी जीभ का स्वागत करते हुए अपने दोनों होठों से उसे चूसना शुरू कर दिया|
अब भाभी का जिस्म और ज्यादा मचलने लगा था और वो मेरी बांहों में पिघलने लगी थी| जब उनकी देह की गर्मी उन्हें झुलसने लगी तो खुदबखुद उनके हाथों ने अपने शिकार को ढूँढना शुरू कर दिया| भाभी ने मेरी जीभ को अपने होठों से आजाद किया और मेरी ओर देखते हुए बोली;
भाभी: मुन्ना...बस ... अह्ह्ह... अब और नहीं सहा जाता|
मैं: ऐसी बात है तो ये लो....
मैंने भाभी को नई-नवेली ढुलान की तरह अपनी गोद में उठाया और अपने पलंग पर ले आया| पलंग पर उन्हें लिटाया ही था की उन्होंने जल्दी दिखाते हुए अपनी साडी खुद-बा-खुद ऊपर उठा ली और अपनी सफाचट बुर के दर्शन करा दिए| भाभी ने पेंटी भी नहीं पहनी थी, सिर्फ साडी और पेटीकोट पहना था| मेरी आँखें उनकी बुर से चिपक गई थीं, मैंने अपने पाजामे का नाद खोल और वो सरक कर नीचे जा गिरा| मेरी नाक उनकी बुर की खुशबु की तरफ मुझे ले जाने लगी, पर इससे पहले की मैं वो अमृत चख पाता भाभी नेमुझे रोक दिया;
बड़ी भाभी: नहीं मुन्ना.... आज नहीं| आज मेरी जलती हुई भट्टी में और तेल ना डालो| इसे जल्दी से अपने लंड से भर दो!
मैंने कुछ नहीं कहा और सीधा उनके ऊपर आ गया, भाभी ने अपनी टांगें तो पहले से ही चौड़ी कर रखी थी| भाभी का उतावलापन इस कदर था की उन्होंने जल्दी से अपना हाथ ले जा कर मेरा लंड अपनी बुर के ऊपर रखो और बड़ी तरसती हुई आँखों से मेरी ओर देखने लगी| उनके चेहरे के इन भाव को देख मुझे उन पर प्यार आने लगा और मैंने अपने लंड का दबाव उनकी बुर पर बढ़ दिया| मेरा लंड धीरे-धीरे उनकी बुर में समाने लगा| जैसे-जैसे लंड अंदर जा रहा था भाभी के चेहरे के भाव बदल के संतुष्टि का रूप लेने लगे थे|
जब पूरा लंड अंदर समा गया तो भाभी की भट्टी की तपिश मुझे अपने लंड पर महसूस होने लगी और मैं बिना हिले-डुले उनपर पड़ा रहा| इधर भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया| उनकी एड़ी ने जब मेरे कूल्हे पर थपकी मारी तब मुझे होश आया| ये मेरे लिए सिग्नल था, जैसे की घुड़सवार अपने घोड़े को आगे चलने के लिए उसकी कमर या पेट पर अपनी एड़ी से चोट करता है, ठीक उसी तकनीक का उपयोग भाभी ने किया| मैंने अपना लंड पूरा बाहर निकाला और फिर दो सेकंड का विराम लिया| अपने अंदर खाली-खाली महसूस कर भाभी की आँखें जो आनंद के मारे बंद थी वो खुल गईं और वो बोली;
बड़ी भाभी: सच्ची बहुत जालिम हो तुम!
मैं मुस्कुरा दिया और फिर एक झटके में पूरा लंड अंदर जड़ तक बाढ़ दिया| लंड के उनकी बुर में सरपट घुसते ही भाभी चिहुंक उठी;
बड़ी भाभी: आईईईईई ..... मुन्ना... आअह्ह्ह!
मैं: तुमने ही तो कहा मैं जालिम हूँ! तो अब भुगतो|
ये सुन दोनों की हंसी छूट गई| भाभी ने अपने नीचले होंठ को दांतों तले दबाया और मुझे उतेजना की और हाँक दिया| अब मैंने उनके ऊपर झुक कर अपनी कमर को लय बद्ध तरीके से लंड को अंदर-बाहर करना जारी किया| मेरे हर धक्के में भाभी की "आह!" निकल रही थी| अपनी उत्तेजना और बढ़ने के लिए भाभी ने अपने भगनासा को छेड़ना शुरू कर दिया| अब भाभी दोहरे आनंद का मज़ा ले रही थी| भाभी के मुँह से अपनी आहें और सिसकारियां निकलने लगी थी| साफ़ था की वो उत्तेजना के शिखर पर पहुँच चुकी हैं और किसी भी समय अपने रस की धार बहाने वाली है| हैरानी की बात ये थी की भाभी मेरे साथ हमेशा 25 मिनट तक साथ दिया करती थी| पर आज वो 10 मिनुत में ही मेरा साथ छोड़ने जा रही थी| मैंने सोचा नहीं ... ये मेरा वहम होगा.....
पर मेरी सोच सही निकली, अगले ही पल उन्होंने जोरदार धार मारी और निढाल हो के लाश के सामान लेट गई| उनकी साँसों की गति तेज हो चली थी, ब्लाउज में ढकी उनकी छातियाँ धोकनी की तरह ऊपर-नीचे हो रही थी| उनका ऐसा व्यवहार देख मेरे सारी उत्तेजना काफूर हो गई| मैंने भाभी की चुदाई पर पूरी तरह विराम लगा दिया और अपना लंड बाहर निकाल मैं अपने पंजों पर बैठ गया| मैं अब भी तक-ताकि बांधे भाभी की ओर देख रहा था की वो कुछ बोलेगी.... अब बोलेगी.... अब बोलेगी.... पर नहीं वो कुछ नहीं बोली| दारु का नशा तो कब का उत्तर गया था अब गुस्से का गुबार अंदर बनने लगा था| आखिर पाँच मिनुत बाद वो बोली;
बड़ी भाभी: मुन्ना.... अब मैं बूढ़ी हो गई हूँ| अब मुझ में वो सहनशीलता (stamina) नहीं रहा| बाहत जल्दी थक जाती हूँ मैं| वैसे भी आज तुम इतने दिनों बाद आये.... तो खुद को संभाल नहीं पाई और जल्दी ही फारिग हो गई|
मैं: और मेरा क्या? अपनी आग तो बुझवा ली मुझसे?
बड़ी भाभी: वो... मैं....
मैं: रहने दो.... निकलो यहाँ से जल्दी, मुझे सोना है|
मैंने बहुत गुस्से भरे स्वर में कहा और जैसे ही मैं दरवाजे की तरफ मुड़ा तो मुझे लगा की कोई छुप के मुझे देख रहा है| मैं दरवाजे के पास वाली खिड़की के पास दौड़ा... पर मुझे वहां कोई नहीं मिला| ,मैं वापस आया तो भाभी मुँह लटकाये बैठी थी;
बड़ी भाभी: मुन्ना... माफ़ कर दो मुझे|
मुन्ना: देखो मेरा गुस्सा और मत भड़काओ, चुप-चाप निकल जाओ यहाँ से|
इतना कह कर मैं दूसरे कमरे में गया और वहाँ अपने बैग से अध्धी निकाली और २-३ घूँट मारे| भाभी पीछे खड़ी ये सब देख रही थी| जब मैं बाहर आया तो दर के मारे भाभी वहाँ से चली गई|
आग बाबुल हो मैं तहमद लपेट, मैं बाहर बरामदे में आ गया और एक कोने से दूसरे कोने में तेजी से चलने लगा| खड़े लंड पर धोका कैसा होता है ये बहुत कुछ लोग ही जानते होंगे| मेरी हालात उस समय ऐसी थी की कोई भी औरत अगर सामने आ जाती तो उसे पेल देता| पर रात के तीन बजे न औरत न कोई रंडी थी वहाँ| गुस्सा इस कदर था की मन कर रहा था की शीला की गांड की सील अपने लड़ से चीर दूँ! पर इधर मेरा लंड खड़े-खड़े दुखने लगा था| जब कुछ नहीं मिला तो मैंने अपने हाथ की ओर देखा और बुदबुदाया; "आज कुछ नहीं तो कम से कम तू तो मेरे साथ है ना|" मैंने अपने हाथ पर थोड़ा थूक लिया और अपने लंड को उससे चुपड़ दिया| आँख बंद किये मैं अपने लंड की खाल को ऊपर-नीचे करने लगा| थूक की गर्माहट के कारन मेरा दिमाग ये सोच रहा था की मेरा लंड किसी चूत के भीतर है| जैसे-जैसे हाथों की गति बढ़ रही थी वैसे-वैसे मैं चरम की ओर बढ़ रहा था| अंत में मैंने एक जोर दर धार मारी जो जाके सीधे दिवार पर गिरी| अपने लंड से आखरी बूँद तक वीर्य बहाने तक मैं नहीं रूक और फिर निढाल हो कर वहीँ बैठा रहा| फिर मैं उठा और अंदर जाकर अपना तहमद लपेट लिया और फिर बहार आकर कुर्सी पर बैठ गया|
सिगरेट सुलगाई और पी ही रहा था की तभी नीतू आ गई| मैं थोड़ा हैरान हुआ उसे यहाँ देख के, और उसकी आँखों में मैंने कुछ उधेड़-बुन देखि| वो मुझसे करीब ८-९ फुट की दूरी पर खड़ी थी...
मैं: सोये नहीं?
नीयू: नींद नहीं आ रही चाचू|
मैं: मैं जब घर आया था तब तो आप सो रहे थे?
नीतू: .....
मैं: अच्छा कोई भयानक सपना देखा होगा?
नीतू: हाँ....हाँ....
मैं: क्या देखा सपने में?
नीतू: (कुछ सोचते हुए) यही की आप मुझे छोड़ के चले गए|
मैं: अरे पगली! तू मेरी सबसे प्यारी भतीजी है, भला मैं तुझे छोड़के कहाँ जाऊँगा|
नीतू ये सुन कर मुस्कुराई, क्योंकि वो जानती थी की मैं उसे सबसे ज्यादा प्यार करता था| मेरा प्यार उसके जिस्म को पाने के लिए कतई नहीं था, बल्कि मैं तो उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करता था|
नीतू: चाचू ... वो कल मैं ... अपने कॉलेज जाना चाहती हूँ| आप ले चलोगे मुझे?
मैं: कॉलेज? पर क्यों?
नीतू: वो ......मैं एक आखरी बार अपना कॉलेज ... क्लास देखना चाहती हूँ|
ये बात नीतू ने बहुत कुछ सोच-विचार करने के बाद बोली थी जिसने मुझे अचम्भे में डाल दिया था|
मैं: ठीक है| अब तुम जाके सो जाओ.... रात काफी हो गई है और किसी ने देख लिया तो......
मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी थी ... मुझे पता था नीतू समझदार है और मेरी बात समझेगी| खेर नीतू ने और कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा कर चली गई, मैं भी अंदर आकर दरवाजा बंद करके अपने पलंग पर सो गया|