Update 09
आखिरकार ठाकुर साहब का भी शरीर अब अकड़ा और काँप उठा ---
और आख़िर में मुँह से एक ज़ोरदार आवाज़ निकालने के साथ साथ एक अंतिम ज़ोर का, जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने .
और मेरी रूपाली दीदी भी अपने चूत में ठाकुर साहब के लंड के अकड़न और ऐंठन को भांप कर ख़ुशी और यौन आनंद से
“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्मम्मम !!!”
चिल्ला उठी ..
मेरी बहन की नर्म – गर्म चूत में ठाकुर साहब का लंड किसी फौव्वारे की तरह छूट पड़ा था ...गर्म वीर्य पूरे चूत में भर गया ...और थोड़ा सा चूत से बाहर झाँक रहा था ... मेरी बहन की सांसो में मर्दाना वीर्य की खुशबू समाने लगी थी... मेरी दीदी भी उनके साथ ही झड़ गई थी...
ठाकुर साहब ने आराम से अपने विशालकाय घोड़े को बाहर निकाला , मेरी रूपाली दीदी की चूत का मुँह ‘आ’ कर के खुला हुआ रहा , और उसमें से गाढ़ा वीर्य धारा बाहर बह निकली ...
सुबह-सुबह ही मेरी बहन को बुरी तरह पेलने के बाद ठाकुर साहब बुरी तरह थक चुके थे ... लंड को निकाल कर मेरी दीदी के बगल में ही बिस्तर पर धप्प से गिर गए ..
थक तो मेरी रुपाली दीदी भी गई थी..पसीने से तर बतर ..चूत से गर्म वीर्य धारा बहती हुई ...टाँगे अब भी फैले हुए .. बाल बिखरे हुए ...गाल, गर्दन, कंधे, सीने और चूचियों पर लव बाइट्स के कारण बने लाल निशान ...नंग-धरंग पिता समान उम्र वाले एक आदमी के बगल में लेटी --- साँसों को नियंत्रण में लाने की पुरजोर कोशिश करती हुई ..होंठ और किनारों पर लगे ठाकुर साहब के लार को हथेलियों से थोड़ा थोड़ा कर पोछती हुई ..
आँखें बंद कर लेटी रही --- बिल्कुल चित्त....
दोनों थोड़ी देर तक वैसे ही लेटे रहे और आराम करते रहे..
मेरी रूपाली दीदी: मुझे उठना होगा ठाकुर साहब.. सोनिया को कॉलेज ले जाने के लिए तैयार करना होगा..
ठाकुर साहब: ठीक है जाओ..
मेरी रूपाली दीदी बेड से उतर कर अपने कपड़े ढूंढने लगी शर्मिंदा होते हुए.. और अपने कपड़े उठाकर बाथरूम के अंदर चली गई.. तकरीबन 5 मिनट के बाद मेरी दीदी बाथरूम से बाहर निकली तब उन्होंने अपने सारे कपड़े पहन लिए थे लगभग, बस मेरी बहन की साड़ी का पल्लू उनके सीने पर नहीं था.. लाल रंग की चोली में मेरी बहन की उन्नत बड़ी-बड़ी चूचियां और गहरी नाभि देखकर ठाकुर साहब को मेरी दीदी एक बार फिर आमंत्रण की देवी लगने लगी थी.. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि यह छोटे कद की जवान खूबसूरत औरत अभी थोड़ी देर पहले उनके नीचे लेटी हुई आहें भर रही थी.. ठाकुर साहब ने एक सिगरेट जला ली.. मेरी दीदी ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और कमरे से बाहर निकलकर किचन में चली गई.
अगले 2 दिनों तक घर में शांति लग रही थी मुझे क्योंकि ठाकुर साहब एक बार फिर अपने नेतागिरी के चक्कर में 2 दिनों के लिए घर से बाहर चले गए थे... और इस बात की खुशी मुझसे ज्यादा और किसी को भी नहीं हो सकती थी... 2 दिनों तक मैं रात में बड़े चैन से सोया.. परंतु तीसरे दिन रात को ठाकुर साहब वापस लौट आय... वह काफी देर रात लौटे थे.. मैंने ही उनके लिए दरवाजा खोला.. ठाकुर साहब की सांसो से शराब की बदबू आ रही थी.. वह नशे में झूम रहे थे... इसके बावजूद वह एक बार फिर किचन में गए और वहां पर जाकर दो तीन पैग गटागट पीके मेरे पास आकर मुझसे पूछने लगे.
ठाकुर साहब: तेरी रुपाली दीदी किस कमरे में सो रही है... सैंडी..?
मैं( डरते हुए): जी उस कमरे में...
ठाकुर साहब: ठीक है अब तुम सो जाओ..
आज की रात एक बार फिर मेरे जीजाजी अपनी दोनों बेटियों के साथ ठाकुर साहब के बेडरूम में सो रहे थे.. और मेरी दीदी दूसरे वाले बेडरूम में जिसमें जीजू सोया करते थे.. ठाकुर साहब मेरी रुपाली दीदी के बेडरूम के अंदर चले गए और उन्होंने अंदर से दरवाजा बंद किया.. दरवाजे बंद करने से पहले वह मेरी तरफ देखते हुए कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे.. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था पर मैंने अपने आप पर काबू रखा हुआ था.. मैं चुपचाप देखता रहा उनको जब तक कि उन्होंने दरवाजा बंद नहीं कर लिया..
मैं अपने बेड पर आकर लेट गया और उनके बेडरूम के अंदर होने वाली हरकतों को सुनने का प्रयास करने लगा.. तकरीबन 5 मिनट के अंदर ही मुझे दीदी की चूड़ियों की खन खन की आवाज सुनाई देने लगी.. दोनों आपस में बहुत धीरे-धीरे बात कर रहे थे जो मैं ठीक से सुन नहीं पा रहा था..
अहाहहह्ह.. मम्मी... प्लीज ठाकुर साहब.. नहीं..अहहह.. मेरी रुपाली दीदी की कामुक सिसकियां उनकी चूड़ी और पायलों की खन खन के साथ मुझे सुनाई देने लगी... साथ ही उस कमरे का पलंग चरमर आने लगा था.. मैं समझ गया था कि पलंग हिलने की वजह..
आऊऊऊऊचचच.. चोली फट जाएगी मेरी... मेरी दीदी बोली ..मेरे कान खड़े हो गए थे उनकी आवाज सुनकर..
“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्म... नहीं ठाकुर साहब प्लीज अब रुक जाइए.. सुबह नूपुर को क्या पिलाऊंगी... मेरी बहन तड़पते हुए बोल रही थी...
आई लव यू रूपाली.. आई लव यू मेरी जान.. आज मुझे मत रोको... ठाकुर साहब बोल रहे थे..
मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था.. मैं अपना ध्यान उस ओर से हटाना चाह रहा था लेकिन बार-बार कमरे के अंदर से आती हुई आवाज मुझे सुनने पर मजबूर कर दे रही थी.
तकरीबन 10 मिनट के बाद ही..“आह्ह, आह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, इस्स्स्स, इस्स्स्स, आह्ह्ह्ह, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” ये सिसकियां और कामुकता से भरपूर आहें मेरी रूपाली दीदी के मुंह से निकलकर मेरे कानों में गूंजने लगी थी.. साथ में पलंग के चर चर चर चर करने की आवाज.. और मेरी बहन की चूड़ी और पायल की खन खन छन छन छन की आवाज..
थप थप थप थप...आह्ह्ह्ह... ठाकुर साहब...आह्ह्ह्ह.. धीरे प्लीज.
उस रात ठाकुर साहब मेरी बहन को सुबह 3:00 बजे तक चोदने म लगे रहे.. फिर वह दोनों सो गए और मैं भी सो गया..
लेकिन कुछ देर बाद ही मेरी आंख खुल गई... क्योंकि उस कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ियां फिर से खनखनआने लगी थी.. मैंने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6:00 बज चुके थे... मैंने मन ही मन सोचा कि यह ठाकुर साहब आदमी है या जानवर... रात भर मेरी रूपाली दीदी को पेलने के बाद भी इसका मन नहीं भरा है और सुबह-सुबह फिर से मेरी बहन की लेना चाहता है...
दरअसल उस बेडरूम के अंदर मेरी रूपाली दीदी और ठाकुर साहब दोनों बिस्तर पर नंगे लेटे हुए सोए हुए थे.. और मेरी रूपाली दीदी की आंख खुल गई थी.. वह मुस्कुराते हुए ठाकुर साहब के मुरझाए हुए लंड की तरफ देख रही थी.. और ठाकुर साहब तो खर्राटे मारते हुए सो रहे थे.. पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ था उसके कारण से मेरी रूपाली दीदी की शर्म कुछ कम हो गई थी ठाकुर साहब के प्रति... यह जानकर कि ठाकुर साहब नींद में मेरी रूपाली दीदी उनके मुसल लोड़े को पकड़ कर देखने लगी हाथ से... ठाकुर साहब की नींद खुल गई.. उन्हें एहसास हुआ कि मेरी बहन उनका लंड थाम के लेटी हुई है... उन्होंने मेरी बहन को पकड़कर अपने ऊपर खींच लिया और मेरी दीदी को अपनी गोद में बिठा लिया अपनी जांघ पर... उनका लंड मेरी रूपाली दीदी की दोनों जांघों के बीच में टन टना के खड़ा था ऊपर के पंखे की तरफ...
इसके पहले की ठाकुर साहब आगे का कार्यक्रम शुरू कर दे.. मैंने अपनी पूरी हिम्मत जुटाई और उनके बेडरूम का दरवाजा पीटना शुरू कर दिया धीरे धीरे... दरवाजे पर दस्तक सुनकर मेरी रुपाली दीदी और ठाकुर साहब दोनों सन्न रह गय.. दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे थे.. उन दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था कि आखिर दरवाजे पर कौन है.. मेरी दीदी तो बुरी तरह डर गई थी पर ठाकुर साहब ने अपना होश संभाला..
ठाकुर साहब: कौन है..
मैं: जी मैं ठाकुर साहब.. मैं मैं सैंडी..
ठाकुर साहब: हां सैंडी बोलो क्या हुआ?
मैं: कुछ नहीं ठाकुर साहब... वह मेरी जीजू जग गय है... और मेरी रूपाली दीदी को चाय बनाने के लिए बोल रहे हैं...
मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के ऊपर नंगी बैठी हुई थरथर कांपने लगी थी.. डर और रोमांच के मारे उनकी दोनों बड़ी-बड़ी दुधारू चूचियां ऊपर नीचे होने लगी थी... ठाकुर साहब की नजरें मेरी रूपाली दीदी के ऊपर टिकी हुई थी...
मेरी रूपाली दीदी की मांग में सिंदूर और उनके गले में लटकता हुआ मंगलसूत्र जो की दोनों दुधारू चुचियों के ऊपर टिका हुआ उपर नीचे हो रहा था, देखकर इस परिस्थिति में भी ठाकुर साहब बेहद उत्तेजित हो गए थे.. किसी दूसरे की ब्याही औरत को अपने बिस्तर पर नंगी हालत में अपनी गोद में पाकर ठाकुर साहब हवस की सारी सीमाएं लांग चुके थे... शायद इस बात का एहसास कि मैं उनका भाई दरवाजे के बाहर खड़ा हूं उनको और भी ज्यादा उत्तेजित कर रहा था... एक हाथ से उन्होंने अपना मुसल लंड पकड़ लिया और मेरी बहन को अपनी गांड उठाने का इशारा किया.. मेरी दीदी ने भी अपनी गांड उठा दी थी.. ठाकुर साहब ने अपने हथियार को मेरी रुपाली दीदी की सुर्ख गुलाबी चिकनी मुनिया के ऊपर टीका के नीचे से झटका दिया और मेरी दीदी को ऊपर से दबा दिया.. उनका आधा लौंडा मेरी बहन की छेद में समा गया...
मेरी रूपाली दीदी: ममममममम स्स्से... नहीं ...
अपने मुंह से निकलने वाली आवाज को दबाने की मेरी बहन ने पूरी कोशिश की पर मुझे सुनाई दे दी फिर भी..
मैं: क्या हुआ ठाकुर साहब...
ठाकुर साहब: कुछ नहीं हुआ क्या होगा... क्या तुम अभी भी यही खड़े हो...
मैं: हां ठाकुर साहब... मुझे लगा था मेरी बहन कुछ बोल रही है..
मेरी बात सुनकर ठाकुर साहब को मजा आने लगा... उन्होंने अपना पूरा औजार मेरी बहन की छेद में ठोक दिया.. और नीचे से अपनी गांड उठा उठा कर मेरी बहन को पेलने लगे...
ठाकुर साहब: नहीं रे सैंडी... तेरी बहन तो सो रही है.. बस नींद में कुछ बड़बड़ा रही है...
ठाकुर साहब को बहुत मजा आने लगा था.. इस प्रकार से मुझसे बात करते हुए और मेरी बहन के साथ खेलते हुए... एक झटके में उन्होंने अपना पूरा का पूरा मुसल लोड़ा मेरी रूपाली दीदी की गीली गुलाबी चूत में डाल दिया... और मेरी रूपाली दीदी की दोनों गांड को अपने हाथ से दबोच कर मेरी बहन की तरफ देखने लगे..
अब सीन कुछ ऐसा था कि मेरी रूपाली दीदी बिस्तर पर ठाकुर साहब के लोड़े के ऊपर सवार हो चुकी थी.. और मैं बाहर दरवाजे पर खड़ा था.
मेरे रूपाली दीदी के गले में मंगलसूत्र और उनकी मांग में मेरे जीजा जी के नाम का सिंदूर देखकर ठाकुर साहब का लंड पत्थर की तरह सख्त हो चुका था... आंखों ही आंखों में उन्होंने मेरी दीदी को अपने लंड के ऊपर कूदने का इशारा किया... उनका इशारा देख कर मेरी बहन शर्म से पानी पानी हो गई... एक शर्मीली हाउसवाइफ होने के नाते मेरी दीदी में अभी भी इतना हौसला पैदा नहीं हुआ था कि वह किसी गैर मर्द के
लंड की सवारी करें, खासकर तब जबकि उनका भाई दरवाजे के बाहर ही खड़ा है और उनका पति बगल के कमरे में लेटा हुआ है... ठाकुर साहब मेरी बहन की हालत को समझ रहे थे लेकिन उन्हें इस परिस्थिति में कुछ ज्यादा ही काम उत्तेजना हो रही थी...
ठाकुर साहब ने मेरी बहन को दबोच अपनी छाती से सटा लिया और नीचे से अपनी गांड उठा उठा कर मेरी दीदी की चूत में लंड पेलने लगे.
मुझे कमरे के अंदर से से हल्की सी सिसकने की आवाज़ आई....उस आवाज़ को मैं झट से पहचान गया...आवाज़ मेरी बहन की थी. पर वो इस समय ठाकुर साहब के साथ क्या कर रही थी....उत्सकता वश मैं वही दरवाजे पर ही खड़ा रहा... मुझे अजीब तो लगने लगा था.. लेकिन मेरा प्लान तो उनको डिस्टर्ब करने का था.. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूं..
अंदर कमरे में तकरीबन 5 मिनट तक इसी पोजीशन में मेरी रूपाली दीदी की चूत को चोदने के बाद ठाकुर साहब ने मेरी बहन को पलट दिया और ऊपर चढ़कर चोदने लगे... दो-तीन मिनट के अंदर..
मेरी दीदी( बहुत धीमी आवाज में): अहह.. ! अहह.. ! उ ई ई ईई... ठाकुर साहब प्लीज धीरे-धीरे.. मुझे लगता है..अहह.. ! मेरा भाई दरवाजे के बाहर खड़ा है..
ठाकुर साहब: हां रूपाली...अहह.. ! अहह.. मुझे पता है तुम्हारा भाई बाहर खड़ा है...
मेरी रूपाली दीदी: अहह.. ! उ ई ई ईई मम्मी.. इसीलिए आप जानवर की तरह..अहह.. मर गई..
मेरी बहन की आवाज़ और ये लफ़्ज सुनते ही मेरे हाथ पैर काँपने लगे.....नज़ाने क्यों अंदर क्या हो रहा देखने की टीस मन मे उठने लगी....पर अंदर झाँकना ना मुमकिन था....मैं हड़बड़ा कर पीछे हटा और वापस जाने के लिए मूड नहीं वाला था कि..
मेरे रूपाली दीदी: आहह..आहह... ठाकुर साहब...आहह.. मैं गई ..आहह
....
ठाकुर साहब: आहह... रूपाली... आई लव यू... मेरा भी निकलने वाला है... बस ऐसे ही करती रहो..
ठाकुर साहब ने अपने लोड़े की मलाई से मेरी रूपाली दीदी की गुलाबी सुरंग को पूरा भर दिया... और उनके ऊपर लेट के सुस्ताने लगे..
मैं वहां दरवाजे से हटकर अपने बेड पर आकर बैठ गया और अपनी किताब निकाल कर पढ़ने की कोशिश करने लगा...
ठाकुर साहब मेरी बहन के ऊपर से उतर कर उनके बगल में लुढ़क गय.. उनका मुरझाया हुआ काला हथियार देखकर मेरी रूपाली दीदी को हंसी आने लगी... दीदी उनके सीने पर सर रख कर लेट गई... ठाकुर साहब ने अपने हथियार से मेरी बहन को पूरा संतुष्ट किया था...
ठाकुर साहब: रुपाली मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब मैं आपको शुक्रिया कहना चाहती हूं.. आपने जो सोनिया के लिए किया उसके लिए मैं बहुत एहसानमंद हूं आपकी... उसके चेहरे पर जो खुशी थी वह देख कर मुझे भी बड़ी खुशी हुई...
ठाकुर साहब: यह तो मेरा फर्ज है रुपाली.. भले ही तुम मुझे अपना नहीं समझती होंगी लेकिन मैं तो तुमसे प्यार करने लगा हूं.. और तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं.. सोनिया मेरी भी बेटी ही है...
ठाकुर साहब की बातें सुनकर मेरी दीदी इमोशनल होने लगी... धीरे-धीरे ही सही ठाकुर साहब मेरी दीदी के दिल में अपनी जगह बनाने लगे थे.. ठाकुर साहब के प्रति मेरी रूपाली दीदी के दिल में जो नफरत थी वह पूरी तरह खत्म हो चुकी थी... ठाकुर साहब मेरी दीदी के होठों को एक बार फिर चूमने लगे... तकरीबन 1 मिनट तक दोनों के बीच जबरदस्त चुंबन का सिलसिला चलता रहा... उसके बाद मेरी दीदी उठकर बाथरूम में चली गई.. अपने बदन को उसकी साफ सफाई करने के लिए..
बाथरूम से निकलने के बाद मेरी दीदी ने अपनी साड़ी चोली अच्छे से पहन ली थी.. और वह बेडरूम से निकलकर किचन की तरफ गई चाय बनाने के लिए... मैं अपने बिस्तर पर बैठा किताब में नजर गड़ाए जानबूझकर उनको इग्नोर करना चाहता था.. मेरी दीदी ने किचन में जाने से पहले मेरी तरफ एक बार घूर कर देखा था... मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं उनकी तरफ देखता...
हम दोनों ही इस परिस्थिति को अच्छी तरह समझ रहे थे.. वैसे तो किसी पराए मर्द के साथ उसके बेडरूम में रात भर घमासान संभोग करने के बाद मेरी रूपाली दीदी को मेरा सामना करते हुए शर्मिंदा होना चाहिए था, पर यहां तो उल्टा हो रहा था... मैं शर्मिंदा हो रहा था और मेरी दीदी मुझे तेज गुस्से वाली निगाहों से घूर रही थी... मुझसे बिना कुछ बोले दीदी किचन में चली गई और चाय बनाने लगी... मेरे जीजाजी भी अपने व्हीलचेयर पर अपने कमरे से बाहर निकल कर आ चुके थे..
मेरे जीजू: क्या हुआ रूपाली बहुत थकी हुई लग रही हो सुबह-सुबह..
मेरी रूपाली दीदी: कुछ नहीं बस रात को ठीक से नींद नहीं आई..
मेरे जीजू: क्या हुआ... अच्छा गर्मी के कारण ठीक से सो नहीं पाई.. ठाकुर साहब आ जाएंगे तो फिर कमरे का एयर कंडीशन ठीक करवाने के लिए मैं बोलूंगा उनको..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब आ चुके हैं.. कल रात को आए थे.. अभी सोए हुए हैं..
मेरे जीजू: ओ अच्छा... फिर तो उनको भी रात में बहुत तकलीफ हुई होगी... क्या ठाकुर साहब अभी भी सो रहे हैं..
मेरी रूपाली दीदी: हां वह सो रहे है...
उन दोनों के बीच की होने वाली बातचीत सुनकर मुझे अजीब लग रहा था.. मेरे जीजू इतने भोले क्यों कैसे हो सकते हैं... उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि कल रात को क्या कांड हुआ है..
मेरी दीदी ने चाय बनाई... और मुझे और जीजा जी को एक-एक कप देने के बाद दो कप चाय लेकर ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चली गई और उन्होंने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया... मैं और जीजू दोनों ही उस बंद होते हुए दरवाजे की तरफ देख रहे थे... मेरे जीजू तो हैरान होकर हक्का-बक्का लग रहे थे... वह मेरी तरफ देखने लगे.. मैं अपनी नजरें किताब में खड़ा कर देखने लगा...
थोड़ी देर में ही उस कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ियों की खनखन सुनाई देने लगी...
मेरे जीजू: सैंडी... तुम्हें कुछ सुनाई दे रहा है क्या.. यह चूड़ियों की आवाज...
मैं: नहीं जीजू आपके कान बज रहे हैं शायद...
मेरे जीजू: तुम्हारी दीदी ने अंदर से दरवाजा क्यों बंद कर लिया..
मैं: मुझे क्या पता... आप उनसे ही पूछ लो ना..
मेरी जीजू हताश होकर नीचे जमीन की तरफ देखने लगे..
हम दोनों के बीच आगे कोई बातचीत नहीं हुई... कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ी और पायल की खन खन आवाज सुनाई देती रही और पलंग चर चर चर करके हिल रहा था... मैं अपनी निगाहें किताब में गड़ाए हुए था.. मेरे जीजा जी के चेहरे पर निराशा के भाव देख कर मुझे उन पर दया आ रही थी पर मैं कुछ बोल नहीं रहा था..
तकरीबन 15 मिनट के बाद उस बेडरूम का दरवाजा खुला... ठाकुर साहब बाहर निकल कर आ गए थे... उन्होंने बस लूंगी पहन रखी थी... उनका बदन पसीने से भीगा हुआ था...
मेरे जीजू ने उनको गुड मॉर्निंग कहा ... ठाकुर साहब ने भी उनको गुड मॉर्निंग कहा...
ठाकुर साहब न्यूज़पेपर उठाकर पढ़ने लगे.. सोफे के ऊपर बैठे हुए... मेरे जीजू उनसे कुछ पूछना चाह रहे थे पर उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी... वह उस बेडरूम के खुले हुए दरवाजे की तरफ देख रहे थे... बड़ी हिम्मत करके उन्होंने आखिरकार पूछ लिया..
मेरे जीजू: ठाकुर साहब.. रूपाली कहां है..
ठाकुर साहब: वह नहा रही है अभी..
तकरीबन 15 मिनट के बाद मेरी रूपाली दीदी उस बेडरूम की कमरे से बाहर निकल के बाहर आ गई... पीले रंग की साड़ी चोली में मेरी दीदी आज कयामत लग रही थी... चेहरे पर हल्का मेकअप... आंखों में काजल.. होठों पर लाली... और बिजली गिराने के लिए आज मेरी दीदी ने अपनी नाक में नथनी भी पहन रखा था... मेरे जीजू और ठाकुर साहब दोनों ही आंखें फाड़ फाड़ के उनको घूर रहे थे...
मेरी दीदी सोनिया के बेडरूम में गई.. उसको जगा कर वह बाथरूम के अंदर ले गई.. सोनिया को ब्रश कराने के बाद... दीदी ने उसको कपड़े पहना दीय.. सोनिया कॉलेज जाने के लिए तैयार हो चुकी थी.
मेरी रूपाली दीदी ने नूपुर को अपनी गोद में लिया... अपनी चोली उठाकर अपनी एक चूची को बाहर निकाल कर दीदी ने नूपुर का मुंह में डाल दिया और उसको दूध पिलाने लगी.. नूपुर को दूध पिलाने के बाद मेरी दीदी ने उसको पालने में फिर से सुला दिया... और सोनिया को साथ लेकर उस बेडरूम से बाहर निकल कर आ गई... बाहर हम तीनों ही बैठे हुए थे..
दीदी सोनिया को लेकर किचन में गई और और उसके लिए ब्रेकफास्ट तैयार करने लगी... इसी बीच ठाकुर साहब भी उठ कर अपने बेडरूम में चले गए और थोड़ी देर बाद अपनी शर्ट पैंट पहन कर वापस आ गए.. ब्रेकफास्ट करने के बाद सोनिया भी कॉलेज जाने के लिए तैयार थी..
हम दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है...
मेरी रूपाली दीदी ने हम दोनों को समझा दिया: अब आज से ठाकुर साहब सोनिया को सुबह सुबह कॉलेज लेकर जाएंगे.. है ना सोनिया.. सोनिया भी यही चाहती है.. और मैं उसको कॉलेज से वापस लेने के लिए जाऊंगी...
मेरे जीजू: ठाकुर साहब और अब कितना एहसान करेंगे हमारे ऊपर...
ठाकुर साहब: कोई बात नहीं विनोद.. तुम्हारी बेटी भी मेरी बेटी की तरह ही है...
कुछ देर में ही सोनिया नाश्ता करने के बाद अपने कॉलेज जाने के लिए तैयार होने लगी , वह अपने जूते पहन रही थी... ठाकुर साहब भी तैयार होकर अपने बेडरूम से बाहर निकल आए थे और मुस्कुराते हुए मेरी दीदी की तरफ देख रहे थे.. ठाकुर साहब मेन गेट से बाहर निकल गए सोनिया भी उनके पीछे-पीछे... मेरी रूपाली दीदी गेट तक उनको बाय बोलने के लिए गई थी... अचानक मेरी बहन को कुछ याद आया..
मेरी रूपाली दीदी( थोड़ी ऊंची आवाज में): अजी सुनिए ना... शायद सोनिया की कॉलेज की डायरी बेडरूम में ही रह गई है.. जरा देख लीजिए ना... नहीं तो कॉलेज में फिर प्रॉब्लम हो जाएगी...
मेरे जीजू: ठीक है रुको...
मेरे जीजू अपने व्हीलचेयर पर ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चले गए और सोनिया की डायरी को ढूंढने लगे... कुछ देर ढूंढने के बाद जीजू परेशान होने लगे...
उन्हें सोनिया की डायरी तो नहीं मिली मगर जब उनकी नजर ठाकुर साहब के बिस्तर के ऊपर पड़ी तो उनके होश उड़ गए... इसी बेडरूम के अंदर थोड़ी देर पहले मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के साथ थी और बेडरूम का दरवाजा भी अंदर से बंद था... मेरे जीजा जी ने देखा कि बिस्तर की हालत बहुत खराब थी... बेडशीट पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था... उसके ऊपर मेरी बहन के हाथ की चूड़ियां भी टूटी हुई पड़ी थी.. बेडशीट पर अजीब अजीब धब्बे बने हुए थे.. जो वीर्य के थे.. मेरी रूपाली दीदी की एक फटी हुई पेंटी बेड के नीचे पड़ी हुई थी... जो कल रात ठाकुर साहब ने नशे में निकालने के बदले फाड़ डाली थी... कमरे के अंदर एक अजीब तरह की मादक खुशबू फैली हुई थी.. वही खुशबू जब किसी कमरे में एक औरत और एक मर्द संभोग करते हैं, उसके बाद की खुशबू... मेरे जीजाजी किसी गहरी सोच में डूब चुके थे... उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस घर में हो क्या रहा है...
क्या रूपाली और ठाकुर साहब एक साथ.... नहीं नहीं मैं ऐसा कैसे सोच सकता हूं... मैं रूपाली के बारे में ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोच सकता.. मेरे जीजू मन ही मन खुद को दिलासा देने की कोशिश कर रहे थे... इसके बावजूद भी उनका दिल बैठा जा रहा था... सोनिया की डायरी ढूंढने की बात तो वह भूल चुके थे... दूसरी तरफ सोनिया को उसकी डायरी उसके बैग में ही मिल चुकी थी... अपनी मम्मी को बाय बोल कर सोनिया खुशी-खुशी ठाकुर साहब के साथ अपने कॉलेज जा रही थी..
मेरी दीदी वापस आकर जीजू को ढूंढने लगी... मेरी रूपाली दीदी उस बेडरूम के अंदर गई जिसके अंदर मेरे जीजू अपने व्हीलचेयर पर अपना सर पकड़ कर बैठे हुए थे... मेरी बहन ने देखा कि उनके चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ-साफ झलक रही है...
मेरी रूपाली दीदी: अरे आप यहां पर क्या कर रहे हैं..
मेरे जीजू: तुमने ही तो कहा था सोनिया की डायरी ढूंढने के लिए.. पर रुपाली यह सब क्या है...
मेरी रूपाली दीदी: क्या मतलब यह सब क्या है? कल रात को सोनिया तो आपके साथ सोई थी ना आपके बेडरूम में, तो फिर उसकी डायरी तो वही होनी चाहिए थी... आप ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर क्या कर रहे हैं.. वैसे भी सोनिया की डायरी मिल गई है.. उसी के बैग में ही थी..
मेरे जीजू: नहीं रूपाली... मैं उसके बारे में नहीं कह रहा था.. मैं तो यह पूछ रहा था कि.. पूछ रहा था ... (हकलाने लगे)..
मेरी रूपाली दीदी: क्या बोल रहे हो आप... साफ-साफ बोलो ना मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.. मुझे काम है किचन में...
मेरी दीदी ने थोड़ी ऊंची आवाज में जीजा जी को कहा... मेरी बहन का तेवर देखकर मेरे जीजू की हालत और भी खराब हो गई और उनके मुंह से कुछ बोल नहीं निकल रहे थे.. लेकिन इसके साथ ही कमरे के अंदर का दृश्य और माहौल देखकर मेरे जीजू के मरे हुए हथियार में हलचल होने लगी थी... अपने व्हीलचेयर पर खुद को घसीटते हुए मेरी जीजू मेरी रुपाली दीदी के पास में आए और उनकी कमर पकड़ के लिपट गय.. वह मेरी रूपाली दीदी की गांड दबोच कर उनकी नाभि को चूमने लगे...
मेरे जीजू की इस हरकत पर मेरी बहन दंग रह गई..
मेरी रूपाली दीदी: क्या कर रहे हो जी.... नहीं छोड़ दो मुझे.. क्या मूड है आपका...
मेरे जीजू( मेरी दीदी की नाभि को अपनी जीभ से चाट कर): रूपाली... आज तुम बेहद खूबसूरत लग रही हो... करने दो ना..
मेरी रूपाली दीदी: अच्छा जी.. और बाकी दिन बदसूरत लगती हूं क्या मैं आपको?... बोलो..
मेरी दीदी की बात सुनकर मेरे जीजा जी का लंड,जिसमें बड़ी मुश्किल से तनाव आया था आज कितने दिनों के बाद, फिर से मुरझा गया..
मेरी रूपाली दीदी: छोड़ो मुझे.. मेरा छोटा भाई घर में ही बैठा हुआ है.. क्या सोचेगा... वैसे भी मुझे किचन में बहुत काम है.. आप भी जा कर आराम करो...
मेरी दीदी उनसे अलग हो गई.. और अपनी गांड मटका के उस बेडरूम से बाहर निकल गई.. मेरे जीजू उनकी गांड की तरफ ही देखते रहे.. और मन ही मन खुद को कोस रहे थे... मेरी दीदी किचन में चली गई और किचन का काम करने लगी थी.. मैं हॉल में बैठा हुआ पढ़ाई कर रहा था..
अब मेरे जीजू भी हॉल में आ चुके थे और मेरे पास बैठ कर टीवी देखने लगे थे... दीदी किचन में काम कर रही थी... तकरीबन आधे घंटे के बाद हमारे घर की घंटी बजी.. मेरी रुपाली दीदी नहीं दरवाजा खुला.. सामने ठाकुर साहब खड़े थे और मेरी बहन को देख कर मुस्कुरा रहे थे.. मेरी दीदी भी उनको देख कर मुस्कुराने लगी थी..
ठाकुर साहब ने मुझ पर और मेरे जीजू पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने बेडरूम में चले गए... फिर वह अपने बाथरूम में घुस गय और नहाने लगे... उन्होंने अपने बेडरूम का दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं किया था.. थोड़ी देर बाद उनकी आवाज अंदर से आई..
ठाकुर साहब: रूपाली.. रूपाली.... कहां हो तुम.. मेरे पीले रंग की शर्ट नहीं मिल रही है... कहां रख दी है तुमने..
मेरी रूपाली दीदी किचन में से गुस्से में निकली और मेरे जीजू की तरफ देखते हुए अजीब नजरों से: यह ठाकुर साहब भी ना.... अजीब किस्म के मर्द है... उनका ही घर है फिर भी उनको नहीं पता होता है तो उनकी चीजें कहां पर है... और फिर ठाकुर साहब के बेडरूम में चली गई..
साथ ही साथ मेरी बहन ने दरवाजा भी थोड़ा और बंद कर लिया उस बेडरूम का.. पूरा बंद नहीं... मैं और मेरे जीजू उस दरवाजे की तरफ देख रहे थे... हैरान होकर...
और आख़िर में मुँह से एक ज़ोरदार आवाज़ निकालने के साथ साथ एक अंतिम ज़ोर का, जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने .
और मेरी रूपाली दीदी भी अपने चूत में ठाकुर साहब के लंड के अकड़न और ऐंठन को भांप कर ख़ुशी और यौन आनंद से
“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्मम्मम !!!”
चिल्ला उठी ..
मेरी बहन की नर्म – गर्म चूत में ठाकुर साहब का लंड किसी फौव्वारे की तरह छूट पड़ा था ...गर्म वीर्य पूरे चूत में भर गया ...और थोड़ा सा चूत से बाहर झाँक रहा था ... मेरी बहन की सांसो में मर्दाना वीर्य की खुशबू समाने लगी थी... मेरी दीदी भी उनके साथ ही झड़ गई थी...
ठाकुर साहब ने आराम से अपने विशालकाय घोड़े को बाहर निकाला , मेरी रूपाली दीदी की चूत का मुँह ‘आ’ कर के खुला हुआ रहा , और उसमें से गाढ़ा वीर्य धारा बाहर बह निकली ...
सुबह-सुबह ही मेरी बहन को बुरी तरह पेलने के बाद ठाकुर साहब बुरी तरह थक चुके थे ... लंड को निकाल कर मेरी दीदी के बगल में ही बिस्तर पर धप्प से गिर गए ..
थक तो मेरी रुपाली दीदी भी गई थी..पसीने से तर बतर ..चूत से गर्म वीर्य धारा बहती हुई ...टाँगे अब भी फैले हुए .. बाल बिखरे हुए ...गाल, गर्दन, कंधे, सीने और चूचियों पर लव बाइट्स के कारण बने लाल निशान ...नंग-धरंग पिता समान उम्र वाले एक आदमी के बगल में लेटी --- साँसों को नियंत्रण में लाने की पुरजोर कोशिश करती हुई ..होंठ और किनारों पर लगे ठाकुर साहब के लार को हथेलियों से थोड़ा थोड़ा कर पोछती हुई ..
आँखें बंद कर लेटी रही --- बिल्कुल चित्त....
दोनों थोड़ी देर तक वैसे ही लेटे रहे और आराम करते रहे..
मेरी रूपाली दीदी: मुझे उठना होगा ठाकुर साहब.. सोनिया को कॉलेज ले जाने के लिए तैयार करना होगा..
ठाकुर साहब: ठीक है जाओ..
मेरी रूपाली दीदी बेड से उतर कर अपने कपड़े ढूंढने लगी शर्मिंदा होते हुए.. और अपने कपड़े उठाकर बाथरूम के अंदर चली गई.. तकरीबन 5 मिनट के बाद मेरी दीदी बाथरूम से बाहर निकली तब उन्होंने अपने सारे कपड़े पहन लिए थे लगभग, बस मेरी बहन की साड़ी का पल्लू उनके सीने पर नहीं था.. लाल रंग की चोली में मेरी बहन की उन्नत बड़ी-बड़ी चूचियां और गहरी नाभि देखकर ठाकुर साहब को मेरी दीदी एक बार फिर आमंत्रण की देवी लगने लगी थी.. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि यह छोटे कद की जवान खूबसूरत औरत अभी थोड़ी देर पहले उनके नीचे लेटी हुई आहें भर रही थी.. ठाकुर साहब ने एक सिगरेट जला ली.. मेरी दीदी ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और कमरे से बाहर निकलकर किचन में चली गई.
अगले 2 दिनों तक घर में शांति लग रही थी मुझे क्योंकि ठाकुर साहब एक बार फिर अपने नेतागिरी के चक्कर में 2 दिनों के लिए घर से बाहर चले गए थे... और इस बात की खुशी मुझसे ज्यादा और किसी को भी नहीं हो सकती थी... 2 दिनों तक मैं रात में बड़े चैन से सोया.. परंतु तीसरे दिन रात को ठाकुर साहब वापस लौट आय... वह काफी देर रात लौटे थे.. मैंने ही उनके लिए दरवाजा खोला.. ठाकुर साहब की सांसो से शराब की बदबू आ रही थी.. वह नशे में झूम रहे थे... इसके बावजूद वह एक बार फिर किचन में गए और वहां पर जाकर दो तीन पैग गटागट पीके मेरे पास आकर मुझसे पूछने लगे.
ठाकुर साहब: तेरी रुपाली दीदी किस कमरे में सो रही है... सैंडी..?
मैं( डरते हुए): जी उस कमरे में...
ठाकुर साहब: ठीक है अब तुम सो जाओ..
आज की रात एक बार फिर मेरे जीजाजी अपनी दोनों बेटियों के साथ ठाकुर साहब के बेडरूम में सो रहे थे.. और मेरी दीदी दूसरे वाले बेडरूम में जिसमें जीजू सोया करते थे.. ठाकुर साहब मेरी रुपाली दीदी के बेडरूम के अंदर चले गए और उन्होंने अंदर से दरवाजा बंद किया.. दरवाजे बंद करने से पहले वह मेरी तरफ देखते हुए कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे.. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था पर मैंने अपने आप पर काबू रखा हुआ था.. मैं चुपचाप देखता रहा उनको जब तक कि उन्होंने दरवाजा बंद नहीं कर लिया..
मैं अपने बेड पर आकर लेट गया और उनके बेडरूम के अंदर होने वाली हरकतों को सुनने का प्रयास करने लगा.. तकरीबन 5 मिनट के अंदर ही मुझे दीदी की चूड़ियों की खन खन की आवाज सुनाई देने लगी.. दोनों आपस में बहुत धीरे-धीरे बात कर रहे थे जो मैं ठीक से सुन नहीं पा रहा था..
अहाहहह्ह.. मम्मी... प्लीज ठाकुर साहब.. नहीं..अहहह.. मेरी रुपाली दीदी की कामुक सिसकियां उनकी चूड़ी और पायलों की खन खन के साथ मुझे सुनाई देने लगी... साथ ही उस कमरे का पलंग चरमर आने लगा था.. मैं समझ गया था कि पलंग हिलने की वजह..
आऊऊऊऊचचच.. चोली फट जाएगी मेरी... मेरी दीदी बोली ..मेरे कान खड़े हो गए थे उनकी आवाज सुनकर..
“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्म... नहीं ठाकुर साहब प्लीज अब रुक जाइए.. सुबह नूपुर को क्या पिलाऊंगी... मेरी बहन तड़पते हुए बोल रही थी...
आई लव यू रूपाली.. आई लव यू मेरी जान.. आज मुझे मत रोको... ठाकुर साहब बोल रहे थे..
मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था.. मैं अपना ध्यान उस ओर से हटाना चाह रहा था लेकिन बार-बार कमरे के अंदर से आती हुई आवाज मुझे सुनने पर मजबूर कर दे रही थी.
तकरीबन 10 मिनट के बाद ही..“आह्ह, आह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, इस्स्स्स, इस्स्स्स, आह्ह्ह्ह, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” ये सिसकियां और कामुकता से भरपूर आहें मेरी रूपाली दीदी के मुंह से निकलकर मेरे कानों में गूंजने लगी थी.. साथ में पलंग के चर चर चर चर करने की आवाज.. और मेरी बहन की चूड़ी और पायल की खन खन छन छन छन की आवाज..
थप थप थप थप...आह्ह्ह्ह... ठाकुर साहब...आह्ह्ह्ह.. धीरे प्लीज.
उस रात ठाकुर साहब मेरी बहन को सुबह 3:00 बजे तक चोदने म लगे रहे.. फिर वह दोनों सो गए और मैं भी सो गया..
लेकिन कुछ देर बाद ही मेरी आंख खुल गई... क्योंकि उस कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ियां फिर से खनखनआने लगी थी.. मैंने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6:00 बज चुके थे... मैंने मन ही मन सोचा कि यह ठाकुर साहब आदमी है या जानवर... रात भर मेरी रूपाली दीदी को पेलने के बाद भी इसका मन नहीं भरा है और सुबह-सुबह फिर से मेरी बहन की लेना चाहता है...
दरअसल उस बेडरूम के अंदर मेरी रूपाली दीदी और ठाकुर साहब दोनों बिस्तर पर नंगे लेटे हुए सोए हुए थे.. और मेरी रूपाली दीदी की आंख खुल गई थी.. वह मुस्कुराते हुए ठाकुर साहब के मुरझाए हुए लंड की तरफ देख रही थी.. और ठाकुर साहब तो खर्राटे मारते हुए सो रहे थे.. पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ था उसके कारण से मेरी रूपाली दीदी की शर्म कुछ कम हो गई थी ठाकुर साहब के प्रति... यह जानकर कि ठाकुर साहब नींद में मेरी रूपाली दीदी उनके मुसल लोड़े को पकड़ कर देखने लगी हाथ से... ठाकुर साहब की नींद खुल गई.. उन्हें एहसास हुआ कि मेरी बहन उनका लंड थाम के लेटी हुई है... उन्होंने मेरी बहन को पकड़कर अपने ऊपर खींच लिया और मेरी दीदी को अपनी गोद में बिठा लिया अपनी जांघ पर... उनका लंड मेरी रूपाली दीदी की दोनों जांघों के बीच में टन टना के खड़ा था ऊपर के पंखे की तरफ...
इसके पहले की ठाकुर साहब आगे का कार्यक्रम शुरू कर दे.. मैंने अपनी पूरी हिम्मत जुटाई और उनके बेडरूम का दरवाजा पीटना शुरू कर दिया धीरे धीरे... दरवाजे पर दस्तक सुनकर मेरी रुपाली दीदी और ठाकुर साहब दोनों सन्न रह गय.. दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे थे.. उन दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था कि आखिर दरवाजे पर कौन है.. मेरी दीदी तो बुरी तरह डर गई थी पर ठाकुर साहब ने अपना होश संभाला..
ठाकुर साहब: कौन है..
मैं: जी मैं ठाकुर साहब.. मैं मैं सैंडी..
ठाकुर साहब: हां सैंडी बोलो क्या हुआ?
मैं: कुछ नहीं ठाकुर साहब... वह मेरी जीजू जग गय है... और मेरी रूपाली दीदी को चाय बनाने के लिए बोल रहे हैं...
मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के ऊपर नंगी बैठी हुई थरथर कांपने लगी थी.. डर और रोमांच के मारे उनकी दोनों बड़ी-बड़ी दुधारू चूचियां ऊपर नीचे होने लगी थी... ठाकुर साहब की नजरें मेरी रूपाली दीदी के ऊपर टिकी हुई थी...
मेरी रूपाली दीदी की मांग में सिंदूर और उनके गले में लटकता हुआ मंगलसूत्र जो की दोनों दुधारू चुचियों के ऊपर टिका हुआ उपर नीचे हो रहा था, देखकर इस परिस्थिति में भी ठाकुर साहब बेहद उत्तेजित हो गए थे.. किसी दूसरे की ब्याही औरत को अपने बिस्तर पर नंगी हालत में अपनी गोद में पाकर ठाकुर साहब हवस की सारी सीमाएं लांग चुके थे... शायद इस बात का एहसास कि मैं उनका भाई दरवाजे के बाहर खड़ा हूं उनको और भी ज्यादा उत्तेजित कर रहा था... एक हाथ से उन्होंने अपना मुसल लंड पकड़ लिया और मेरी बहन को अपनी गांड उठाने का इशारा किया.. मेरी दीदी ने भी अपनी गांड उठा दी थी.. ठाकुर साहब ने अपने हथियार को मेरी रुपाली दीदी की सुर्ख गुलाबी चिकनी मुनिया के ऊपर टीका के नीचे से झटका दिया और मेरी दीदी को ऊपर से दबा दिया.. उनका आधा लौंडा मेरी बहन की छेद में समा गया...
मेरी रूपाली दीदी: ममममममम स्स्से... नहीं ...
अपने मुंह से निकलने वाली आवाज को दबाने की मेरी बहन ने पूरी कोशिश की पर मुझे सुनाई दे दी फिर भी..
मैं: क्या हुआ ठाकुर साहब...
ठाकुर साहब: कुछ नहीं हुआ क्या होगा... क्या तुम अभी भी यही खड़े हो...
मैं: हां ठाकुर साहब... मुझे लगा था मेरी बहन कुछ बोल रही है..
मेरी बात सुनकर ठाकुर साहब को मजा आने लगा... उन्होंने अपना पूरा औजार मेरी बहन की छेद में ठोक दिया.. और नीचे से अपनी गांड उठा उठा कर मेरी बहन को पेलने लगे...
ठाकुर साहब: नहीं रे सैंडी... तेरी बहन तो सो रही है.. बस नींद में कुछ बड़बड़ा रही है...
ठाकुर साहब को बहुत मजा आने लगा था.. इस प्रकार से मुझसे बात करते हुए और मेरी बहन के साथ खेलते हुए... एक झटके में उन्होंने अपना पूरा का पूरा मुसल लोड़ा मेरी रूपाली दीदी की गीली गुलाबी चूत में डाल दिया... और मेरी रूपाली दीदी की दोनों गांड को अपने हाथ से दबोच कर मेरी बहन की तरफ देखने लगे..
अब सीन कुछ ऐसा था कि मेरी रूपाली दीदी बिस्तर पर ठाकुर साहब के लोड़े के ऊपर सवार हो चुकी थी.. और मैं बाहर दरवाजे पर खड़ा था.
मेरे रूपाली दीदी के गले में मंगलसूत्र और उनकी मांग में मेरे जीजा जी के नाम का सिंदूर देखकर ठाकुर साहब का लंड पत्थर की तरह सख्त हो चुका था... आंखों ही आंखों में उन्होंने मेरी दीदी को अपने लंड के ऊपर कूदने का इशारा किया... उनका इशारा देख कर मेरी बहन शर्म से पानी पानी हो गई... एक शर्मीली हाउसवाइफ होने के नाते मेरी दीदी में अभी भी इतना हौसला पैदा नहीं हुआ था कि वह किसी गैर मर्द के
लंड की सवारी करें, खासकर तब जबकि उनका भाई दरवाजे के बाहर ही खड़ा है और उनका पति बगल के कमरे में लेटा हुआ है... ठाकुर साहब मेरी बहन की हालत को समझ रहे थे लेकिन उन्हें इस परिस्थिति में कुछ ज्यादा ही काम उत्तेजना हो रही थी...
ठाकुर साहब ने मेरी बहन को दबोच अपनी छाती से सटा लिया और नीचे से अपनी गांड उठा उठा कर मेरी दीदी की चूत में लंड पेलने लगे.
मुझे कमरे के अंदर से से हल्की सी सिसकने की आवाज़ आई....उस आवाज़ को मैं झट से पहचान गया...आवाज़ मेरी बहन की थी. पर वो इस समय ठाकुर साहब के साथ क्या कर रही थी....उत्सकता वश मैं वही दरवाजे पर ही खड़ा रहा... मुझे अजीब तो लगने लगा था.. लेकिन मेरा प्लान तो उनको डिस्टर्ब करने का था.. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूं..
अंदर कमरे में तकरीबन 5 मिनट तक इसी पोजीशन में मेरी रूपाली दीदी की चूत को चोदने के बाद ठाकुर साहब ने मेरी बहन को पलट दिया और ऊपर चढ़कर चोदने लगे... दो-तीन मिनट के अंदर..
मेरी दीदी( बहुत धीमी आवाज में): अहह.. ! अहह.. ! उ ई ई ईई... ठाकुर साहब प्लीज धीरे-धीरे.. मुझे लगता है..अहह.. ! मेरा भाई दरवाजे के बाहर खड़ा है..
ठाकुर साहब: हां रूपाली...अहह.. ! अहह.. मुझे पता है तुम्हारा भाई बाहर खड़ा है...
मेरी रूपाली दीदी: अहह.. ! उ ई ई ईई मम्मी.. इसीलिए आप जानवर की तरह..अहह.. मर गई..
मेरी बहन की आवाज़ और ये लफ़्ज सुनते ही मेरे हाथ पैर काँपने लगे.....नज़ाने क्यों अंदर क्या हो रहा देखने की टीस मन मे उठने लगी....पर अंदर झाँकना ना मुमकिन था....मैं हड़बड़ा कर पीछे हटा और वापस जाने के लिए मूड नहीं वाला था कि..
मेरे रूपाली दीदी: आहह..आहह... ठाकुर साहब...आहह.. मैं गई ..आहह
....
ठाकुर साहब: आहह... रूपाली... आई लव यू... मेरा भी निकलने वाला है... बस ऐसे ही करती रहो..
ठाकुर साहब ने अपने लोड़े की मलाई से मेरी रूपाली दीदी की गुलाबी सुरंग को पूरा भर दिया... और उनके ऊपर लेट के सुस्ताने लगे..
मैं वहां दरवाजे से हटकर अपने बेड पर आकर बैठ गया और अपनी किताब निकाल कर पढ़ने की कोशिश करने लगा...
ठाकुर साहब मेरी बहन के ऊपर से उतर कर उनके बगल में लुढ़क गय.. उनका मुरझाया हुआ काला हथियार देखकर मेरी रूपाली दीदी को हंसी आने लगी... दीदी उनके सीने पर सर रख कर लेट गई... ठाकुर साहब ने अपने हथियार से मेरी बहन को पूरा संतुष्ट किया था...
ठाकुर साहब: रुपाली मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब मैं आपको शुक्रिया कहना चाहती हूं.. आपने जो सोनिया के लिए किया उसके लिए मैं बहुत एहसानमंद हूं आपकी... उसके चेहरे पर जो खुशी थी वह देख कर मुझे भी बड़ी खुशी हुई...
ठाकुर साहब: यह तो मेरा फर्ज है रुपाली.. भले ही तुम मुझे अपना नहीं समझती होंगी लेकिन मैं तो तुमसे प्यार करने लगा हूं.. और तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं.. सोनिया मेरी भी बेटी ही है...
ठाकुर साहब की बातें सुनकर मेरी दीदी इमोशनल होने लगी... धीरे-धीरे ही सही ठाकुर साहब मेरी दीदी के दिल में अपनी जगह बनाने लगे थे.. ठाकुर साहब के प्रति मेरी रूपाली दीदी के दिल में जो नफरत थी वह पूरी तरह खत्म हो चुकी थी... ठाकुर साहब मेरी दीदी के होठों को एक बार फिर चूमने लगे... तकरीबन 1 मिनट तक दोनों के बीच जबरदस्त चुंबन का सिलसिला चलता रहा... उसके बाद मेरी दीदी उठकर बाथरूम में चली गई.. अपने बदन को उसकी साफ सफाई करने के लिए..
बाथरूम से निकलने के बाद मेरी दीदी ने अपनी साड़ी चोली अच्छे से पहन ली थी.. और वह बेडरूम से निकलकर किचन की तरफ गई चाय बनाने के लिए... मैं अपने बिस्तर पर बैठा किताब में नजर गड़ाए जानबूझकर उनको इग्नोर करना चाहता था.. मेरी दीदी ने किचन में जाने से पहले मेरी तरफ एक बार घूर कर देखा था... मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं उनकी तरफ देखता...
हम दोनों ही इस परिस्थिति को अच्छी तरह समझ रहे थे.. वैसे तो किसी पराए मर्द के साथ उसके बेडरूम में रात भर घमासान संभोग करने के बाद मेरी रूपाली दीदी को मेरा सामना करते हुए शर्मिंदा होना चाहिए था, पर यहां तो उल्टा हो रहा था... मैं शर्मिंदा हो रहा था और मेरी दीदी मुझे तेज गुस्से वाली निगाहों से घूर रही थी... मुझसे बिना कुछ बोले दीदी किचन में चली गई और चाय बनाने लगी... मेरे जीजाजी भी अपने व्हीलचेयर पर अपने कमरे से बाहर निकल कर आ चुके थे..
मेरे जीजू: क्या हुआ रूपाली बहुत थकी हुई लग रही हो सुबह-सुबह..
मेरी रूपाली दीदी: कुछ नहीं बस रात को ठीक से नींद नहीं आई..
मेरे जीजू: क्या हुआ... अच्छा गर्मी के कारण ठीक से सो नहीं पाई.. ठाकुर साहब आ जाएंगे तो फिर कमरे का एयर कंडीशन ठीक करवाने के लिए मैं बोलूंगा उनको..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब आ चुके हैं.. कल रात को आए थे.. अभी सोए हुए हैं..
मेरे जीजू: ओ अच्छा... फिर तो उनको भी रात में बहुत तकलीफ हुई होगी... क्या ठाकुर साहब अभी भी सो रहे हैं..
मेरी रूपाली दीदी: हां वह सो रहे है...
उन दोनों के बीच की होने वाली बातचीत सुनकर मुझे अजीब लग रहा था.. मेरे जीजू इतने भोले क्यों कैसे हो सकते हैं... उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि कल रात को क्या कांड हुआ है..
मेरी दीदी ने चाय बनाई... और मुझे और जीजा जी को एक-एक कप देने के बाद दो कप चाय लेकर ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चली गई और उन्होंने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया... मैं और जीजू दोनों ही उस बंद होते हुए दरवाजे की तरफ देख रहे थे... मेरे जीजू तो हैरान होकर हक्का-बक्का लग रहे थे... वह मेरी तरफ देखने लगे.. मैं अपनी नजरें किताब में खड़ा कर देखने लगा...
थोड़ी देर में ही उस कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ियों की खनखन सुनाई देने लगी...
मेरे जीजू: सैंडी... तुम्हें कुछ सुनाई दे रहा है क्या.. यह चूड़ियों की आवाज...
मैं: नहीं जीजू आपके कान बज रहे हैं शायद...
मेरे जीजू: तुम्हारी दीदी ने अंदर से दरवाजा क्यों बंद कर लिया..
मैं: मुझे क्या पता... आप उनसे ही पूछ लो ना..
मेरी जीजू हताश होकर नीचे जमीन की तरफ देखने लगे..
हम दोनों के बीच आगे कोई बातचीत नहीं हुई... कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ी और पायल की खन खन आवाज सुनाई देती रही और पलंग चर चर चर करके हिल रहा था... मैं अपनी निगाहें किताब में गड़ाए हुए था.. मेरे जीजा जी के चेहरे पर निराशा के भाव देख कर मुझे उन पर दया आ रही थी पर मैं कुछ बोल नहीं रहा था..
तकरीबन 15 मिनट के बाद उस बेडरूम का दरवाजा खुला... ठाकुर साहब बाहर निकल कर आ गए थे... उन्होंने बस लूंगी पहन रखी थी... उनका बदन पसीने से भीगा हुआ था...
मेरे जीजू ने उनको गुड मॉर्निंग कहा ... ठाकुर साहब ने भी उनको गुड मॉर्निंग कहा...
ठाकुर साहब न्यूज़पेपर उठाकर पढ़ने लगे.. सोफे के ऊपर बैठे हुए... मेरे जीजू उनसे कुछ पूछना चाह रहे थे पर उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी... वह उस बेडरूम के खुले हुए दरवाजे की तरफ देख रहे थे... बड़ी हिम्मत करके उन्होंने आखिरकार पूछ लिया..
मेरे जीजू: ठाकुर साहब.. रूपाली कहां है..
ठाकुर साहब: वह नहा रही है अभी..
तकरीबन 15 मिनट के बाद मेरी रूपाली दीदी उस बेडरूम की कमरे से बाहर निकल के बाहर आ गई... पीले रंग की साड़ी चोली में मेरी दीदी आज कयामत लग रही थी... चेहरे पर हल्का मेकअप... आंखों में काजल.. होठों पर लाली... और बिजली गिराने के लिए आज मेरी दीदी ने अपनी नाक में नथनी भी पहन रखा था... मेरे जीजू और ठाकुर साहब दोनों ही आंखें फाड़ फाड़ के उनको घूर रहे थे...
मेरी दीदी सोनिया के बेडरूम में गई.. उसको जगा कर वह बाथरूम के अंदर ले गई.. सोनिया को ब्रश कराने के बाद... दीदी ने उसको कपड़े पहना दीय.. सोनिया कॉलेज जाने के लिए तैयार हो चुकी थी.
मेरी रूपाली दीदी ने नूपुर को अपनी गोद में लिया... अपनी चोली उठाकर अपनी एक चूची को बाहर निकाल कर दीदी ने नूपुर का मुंह में डाल दिया और उसको दूध पिलाने लगी.. नूपुर को दूध पिलाने के बाद मेरी दीदी ने उसको पालने में फिर से सुला दिया... और सोनिया को साथ लेकर उस बेडरूम से बाहर निकल कर आ गई... बाहर हम तीनों ही बैठे हुए थे..
दीदी सोनिया को लेकर किचन में गई और और उसके लिए ब्रेकफास्ट तैयार करने लगी... इसी बीच ठाकुर साहब भी उठ कर अपने बेडरूम में चले गए और थोड़ी देर बाद अपनी शर्ट पैंट पहन कर वापस आ गए.. ब्रेकफास्ट करने के बाद सोनिया भी कॉलेज जाने के लिए तैयार थी..
हम दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है...
मेरी रूपाली दीदी ने हम दोनों को समझा दिया: अब आज से ठाकुर साहब सोनिया को सुबह सुबह कॉलेज लेकर जाएंगे.. है ना सोनिया.. सोनिया भी यही चाहती है.. और मैं उसको कॉलेज से वापस लेने के लिए जाऊंगी...
मेरे जीजू: ठाकुर साहब और अब कितना एहसान करेंगे हमारे ऊपर...
ठाकुर साहब: कोई बात नहीं विनोद.. तुम्हारी बेटी भी मेरी बेटी की तरह ही है...
कुछ देर में ही सोनिया नाश्ता करने के बाद अपने कॉलेज जाने के लिए तैयार होने लगी , वह अपने जूते पहन रही थी... ठाकुर साहब भी तैयार होकर अपने बेडरूम से बाहर निकल आए थे और मुस्कुराते हुए मेरी दीदी की तरफ देख रहे थे.. ठाकुर साहब मेन गेट से बाहर निकल गए सोनिया भी उनके पीछे-पीछे... मेरी रूपाली दीदी गेट तक उनको बाय बोलने के लिए गई थी... अचानक मेरी बहन को कुछ याद आया..
मेरी रूपाली दीदी( थोड़ी ऊंची आवाज में): अजी सुनिए ना... शायद सोनिया की कॉलेज की डायरी बेडरूम में ही रह गई है.. जरा देख लीजिए ना... नहीं तो कॉलेज में फिर प्रॉब्लम हो जाएगी...
मेरे जीजू: ठीक है रुको...
मेरे जीजू अपने व्हीलचेयर पर ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चले गए और सोनिया की डायरी को ढूंढने लगे... कुछ देर ढूंढने के बाद जीजू परेशान होने लगे...
उन्हें सोनिया की डायरी तो नहीं मिली मगर जब उनकी नजर ठाकुर साहब के बिस्तर के ऊपर पड़ी तो उनके होश उड़ गए... इसी बेडरूम के अंदर थोड़ी देर पहले मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के साथ थी और बेडरूम का दरवाजा भी अंदर से बंद था... मेरे जीजा जी ने देखा कि बिस्तर की हालत बहुत खराब थी... बेडशीट पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था... उसके ऊपर मेरी बहन के हाथ की चूड़ियां भी टूटी हुई पड़ी थी.. बेडशीट पर अजीब अजीब धब्बे बने हुए थे.. जो वीर्य के थे.. मेरी रूपाली दीदी की एक फटी हुई पेंटी बेड के नीचे पड़ी हुई थी... जो कल रात ठाकुर साहब ने नशे में निकालने के बदले फाड़ डाली थी... कमरे के अंदर एक अजीब तरह की मादक खुशबू फैली हुई थी.. वही खुशबू जब किसी कमरे में एक औरत और एक मर्द संभोग करते हैं, उसके बाद की खुशबू... मेरे जीजाजी किसी गहरी सोच में डूब चुके थे... उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस घर में हो क्या रहा है...
क्या रूपाली और ठाकुर साहब एक साथ.... नहीं नहीं मैं ऐसा कैसे सोच सकता हूं... मैं रूपाली के बारे में ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोच सकता.. मेरे जीजू मन ही मन खुद को दिलासा देने की कोशिश कर रहे थे... इसके बावजूद भी उनका दिल बैठा जा रहा था... सोनिया की डायरी ढूंढने की बात तो वह भूल चुके थे... दूसरी तरफ सोनिया को उसकी डायरी उसके बैग में ही मिल चुकी थी... अपनी मम्मी को बाय बोल कर सोनिया खुशी-खुशी ठाकुर साहब के साथ अपने कॉलेज जा रही थी..
मेरी दीदी वापस आकर जीजू को ढूंढने लगी... मेरी रूपाली दीदी उस बेडरूम के अंदर गई जिसके अंदर मेरे जीजू अपने व्हीलचेयर पर अपना सर पकड़ कर बैठे हुए थे... मेरी बहन ने देखा कि उनके चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ-साफ झलक रही है...
मेरी रूपाली दीदी: अरे आप यहां पर क्या कर रहे हैं..
मेरे जीजू: तुमने ही तो कहा था सोनिया की डायरी ढूंढने के लिए.. पर रुपाली यह सब क्या है...
मेरी रूपाली दीदी: क्या मतलब यह सब क्या है? कल रात को सोनिया तो आपके साथ सोई थी ना आपके बेडरूम में, तो फिर उसकी डायरी तो वही होनी चाहिए थी... आप ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर क्या कर रहे हैं.. वैसे भी सोनिया की डायरी मिल गई है.. उसी के बैग में ही थी..
मेरे जीजू: नहीं रूपाली... मैं उसके बारे में नहीं कह रहा था.. मैं तो यह पूछ रहा था कि.. पूछ रहा था ... (हकलाने लगे)..
मेरी रूपाली दीदी: क्या बोल रहे हो आप... साफ-साफ बोलो ना मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.. मुझे काम है किचन में...
मेरी दीदी ने थोड़ी ऊंची आवाज में जीजा जी को कहा... मेरी बहन का तेवर देखकर मेरे जीजू की हालत और भी खराब हो गई और उनके मुंह से कुछ बोल नहीं निकल रहे थे.. लेकिन इसके साथ ही कमरे के अंदर का दृश्य और माहौल देखकर मेरे जीजू के मरे हुए हथियार में हलचल होने लगी थी... अपने व्हीलचेयर पर खुद को घसीटते हुए मेरी जीजू मेरी रुपाली दीदी के पास में आए और उनकी कमर पकड़ के लिपट गय.. वह मेरी रूपाली दीदी की गांड दबोच कर उनकी नाभि को चूमने लगे...
मेरे जीजू की इस हरकत पर मेरी बहन दंग रह गई..
मेरी रूपाली दीदी: क्या कर रहे हो जी.... नहीं छोड़ दो मुझे.. क्या मूड है आपका...
मेरे जीजू( मेरी दीदी की नाभि को अपनी जीभ से चाट कर): रूपाली... आज तुम बेहद खूबसूरत लग रही हो... करने दो ना..
मेरी रूपाली दीदी: अच्छा जी.. और बाकी दिन बदसूरत लगती हूं क्या मैं आपको?... बोलो..
मेरी दीदी की बात सुनकर मेरे जीजा जी का लंड,जिसमें बड़ी मुश्किल से तनाव आया था आज कितने दिनों के बाद, फिर से मुरझा गया..
मेरी रूपाली दीदी: छोड़ो मुझे.. मेरा छोटा भाई घर में ही बैठा हुआ है.. क्या सोचेगा... वैसे भी मुझे किचन में बहुत काम है.. आप भी जा कर आराम करो...
मेरी दीदी उनसे अलग हो गई.. और अपनी गांड मटका के उस बेडरूम से बाहर निकल गई.. मेरे जीजू उनकी गांड की तरफ ही देखते रहे.. और मन ही मन खुद को कोस रहे थे... मेरी दीदी किचन में चली गई और किचन का काम करने लगी थी.. मैं हॉल में बैठा हुआ पढ़ाई कर रहा था..
अब मेरे जीजू भी हॉल में आ चुके थे और मेरे पास बैठ कर टीवी देखने लगे थे... दीदी किचन में काम कर रही थी... तकरीबन आधे घंटे के बाद हमारे घर की घंटी बजी.. मेरी रुपाली दीदी नहीं दरवाजा खुला.. सामने ठाकुर साहब खड़े थे और मेरी बहन को देख कर मुस्कुरा रहे थे.. मेरी दीदी भी उनको देख कर मुस्कुराने लगी थी..
ठाकुर साहब ने मुझ पर और मेरे जीजू पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने बेडरूम में चले गए... फिर वह अपने बाथरूम में घुस गय और नहाने लगे... उन्होंने अपने बेडरूम का दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं किया था.. थोड़ी देर बाद उनकी आवाज अंदर से आई..
ठाकुर साहब: रूपाली.. रूपाली.... कहां हो तुम.. मेरे पीले रंग की शर्ट नहीं मिल रही है... कहां रख दी है तुमने..
मेरी रूपाली दीदी किचन में से गुस्से में निकली और मेरे जीजू की तरफ देखते हुए अजीब नजरों से: यह ठाकुर साहब भी ना.... अजीब किस्म के मर्द है... उनका ही घर है फिर भी उनको नहीं पता होता है तो उनकी चीजें कहां पर है... और फिर ठाकुर साहब के बेडरूम में चली गई..
साथ ही साथ मेरी बहन ने दरवाजा भी थोड़ा और बंद कर लिया उस बेडरूम का.. पूरा बंद नहीं... मैं और मेरे जीजू उस दरवाजे की तरफ देख रहे थे... हैरान होकर...