Episode 01
मोहे रंग दे ,
रंग की यह कहानी साजन के रंग में सजनी के रंगने की है ,
सजनी के रंग में साजन के रंगने की है ,
और होली की है , . और होली की नहीं भी है ,.
मन और तन दोनों रंगने की है ,
नेह के रंग की , देह के रंग की ,. एक ऐसी कहानी जो सिर्फ इस देस में हो सकती है ,
वो रंग जो चढ़ता है सिर्फ उतरता नहीं
जो पद्माकर ने कहा था
एरी! मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सोँ,
कढिगो अबीर पै अहीर को कढै नहीँ ।
वो रंग जो कभी उतरता नहीं
जो खुसरो ने कहा ,
आज रंग है री मां रंग है री , मेरे महबूब के घर आज रंग है री
मोरे ख्वाजा के घर रंग है री ,
अबकी बहार चुनर मोरी रंग दे ,. रखिये लाज हमारी
आज रंग है री मां रंग है री , मेरे महबूब के घर आज रंग है री
खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग ,
तन मोरा मन प्रीतम का , दोनों एक ही रंग ,.
कैसे चढ़ा प्रीतम का रंग प्यारी के ऊपर ,
कैसे छाया , मन भाया प्यारी का रंग प्रीतम को ,.
एक थोड़ी सी अलग कहानी ,. मैं कोशिश की थी एक नन्ही मुन्नी सी होली की कहानी लिखने को पर मेरी कहानियां भी मेरी कहानी की किशोरियों की तरह किसी के काबू में नहीं आतीं , मेरे तो तो एकदम नहीं ,. तो बस यह कहानी भी छिटक कर ,
यह जोरू का गुलाम या फागुन के दिन चार की तरह लम्बी नहीं पर छोटी भी नहीं ,
इसलिए आप का साथ भी चाहिए , धैर्य भी ,.
मोहे रंग बसंती रंग दे ख्वाजा जी ,. मोहे अपने ही रंग में रंग ले ,.
जो तू मांगे रंग की रंगाई , जो तू मांगे रंग की रंगाई ,.
मोरा जोबन गिरवी रख ले ,.
कोमल
रंग है ऐ माँ रंग है री,
मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर,
मेरे महबूब के घर रंग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया,
फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया,
मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया।
वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
अरे ऐ री सखी री,
वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री,
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।
निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो,
जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।
मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
गंज शकर मोरे संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखयो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग देस-बदेस में ढूढ़ फिरी हूँ,
देस-बदेस में।
आहे, आहे आहे वा,
ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।
सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा।
इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
आज रंग है ए माँ रंग है री।
ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी।
देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही।
मेरे महबूब के घर रंग है री।
किणु संग खेलूं होली
किणु संग खेलूं होली
पिया तज गए हैं अकेली
किणु संग खेलूं होली
पिया तज गए हैं अकेली
किणु संग खेलूं होली
पिया तज गए हैं अकेली
किणु संग खेलूं होली
माणिक मोती सब हम छोड़े,
माणिक मोती सब हम छोड़े,
गल में पहनी सेली
भोजन भवन बलो नहीं लागे,
भोजन भवन बलो नहीं लागे,
पिया कारण भई रे अकेली,
मुझे दूरी क्यों मेलि,
पिया तज गए हैं अकेली
किणु संग खेलूं होली
अब तुम प्रीत अवरसो जोड़ी,
हम से करी क्यों पहेली
अब तुम प्रीत अवरसो जोड़ी,
हम से करी क्यों पहेली
बहु दिन बीते अजहू आ आये,
लगा रही ताला बेली
कीनू दिलमा ये हेली,
पिया तज…
कुछ अंश
दरवाजे पर जब बारात पहुंचती है तो एक रसम होती है बीड़ा मारने की , दुल्हन छत के ऊपर से दूल्हे के ऊपर बीड़ा मारती है , लोग कहते हैं की अगर निशाना सही लगा तो लड़के का जोरू का गुलाम बनना पक्का , दुल्हन के साथ उसकी बहनें ,सहेलियां दुल्हन की सहायता करने के लिए , लेकिन दुल्हन की बहनें भी बारात में जो लड़के , दूल्हे के भाई , दोस्त ,. उन्हें अपना निशाना बनाती हैं , और साथ में खूब छेड़छाड़
मैं भी उसी में , लेकिन एक लड़की ने ध्यान इनकी ओर दिखलाया ,. ,. जो हालत चाँद और तारों की होती है वही इनकी थी बाकी लड़कों के के बीच , मोस्ट हैंडसम स्मार्ट , लेकिन, जैसे इन्हे मूठ मार गयी हो , बस मन्त्र मुग्ध ,. बाकी बरातियों के लड़के ,लड़कियों को देख कर इशारे कर रहे , कमेंट कर रहे थे , लेकिन ये बस जैसे मन्त्रमुग्ध मुझे देख रहे थे ,
" दीदी मार न इसे , . एकदम सही चीज है " मेरी एक छोटी कजिन ने उकसाया , लेकिन मैं भी उसी तरह , हाथ में बीड़ा लिए ,. आली मैं हार गयी नयनों के खेल में ,.
पर मेरी एक दो सहेलियों ने उकसाया और मैंने अपने हाथ का बीड़ा सीधे ,.
सीधे उनके दिल पर जा कर लगा ,.
बाकी लड़के बीड़ा लगने पर उलटे उस लड़की के ऊपर उसे फेंकने की कोशिश करते , कुछ उलटे सीधे कमेंट पास करते , पर इन्होने सम्हाल कर अपनी जेब में रख बस देखते रहे , मेरी कजिन, दुल्हन नीचे उतर कर जा रही थी , साथ में बाकी लड़कियां ,. और मैं वहीँ छत पर, उसे मुझे देखते हुए देख रही थी , वो तो मेरी एक छोटी कजिन मुंझे खींच कर ,. नीचे ले गयी।
मैंने बहुत लड़कों को लड़कियों के पीछे पड़ते देखा था , लेकिन इतना सीधा शर्मीला ,.
और माँगा भी क्या , बहुत हलके से बोला वो , इधर उधर देख कर , बहुत हलके से ,. अगर आप बुरा न माने , . आप का नाम ,.
गुस्सा भी आया और हंसी भी , लेकिन हंसी रोक कर मुस्कराकर उसे छेड़ते मैं बोली ,
" अबतक आप को तो पता ही चल गया होगा , . मैंने तो आप का नाम पता कर लिया , और आपने मण्डप में सुना भी , . तो बस आप भी पता कर लीजिए मेरा नाम ,. . और नहीं मालूम कर पाइयेगा शाम तक , तो बस शाम को मैं बता दूंगी ,. पक्का प्रॉमिस ,. "
" जी ,. कोमल जी ,. आप का नाम कोमल जी है न ,. "
मैंने बस माथा नहीं पीटा ,. लेकिन कड़क आवाज में बोली ,
" नहीं , गलत पता चला , आपको ,. " और मैं जैसे वापस जाने के लिए मुड़ रही थी , बेचारे ने मुझे रोकने की कोशिश की ,
" लेकिन , . बताइये न। "
मेरे लिए मुस्कराहट रोकना मुश्किल था , मैं एकदम उससे आलमोस्ट सट के खड़ी हो गयी ,
" मेरा नाम कोमल जी , नहीं सिर्फ कोमल है , और ये आप ने आप आप क्या लगा रखी है , आगे से मुझे तुम बोलियेगा , आप से छोटी हूँ मैं।
साजन का रंग
समझ में नहीं आ रहा ये कहानी कैसे शुरू करूँ , इत्ते दिन हो गए छोड़े , जब जोरू का गुलाम लिखना छूटा ,. . , तो शायद लिखना थोड़ा मुश्किल हो रहा है , और फिर कहानी में अगर फ़साना कम , और आप बीती ज्यादा हो तो और ,. क्या छोडूं कैसे शुरू करूँ ,. . चलिए कोशिश करती हूँ।
ऑफ कोर्स मेरी होली की कहानी है , मेरी ससुराल में जो होली हुयी।
लेकिन मेरी ससुराल में होली , शादी के बाद मेरी पहली होली नहीं थी , दूसरी भी नहीं।
असल में शादी के पहले मेरी भाभियाँ बहुत डराती चिढ़ाती थीं , ससुराल की पहली होली के नाम से , . . और तो और मेरी मम्मी भी , वो मेरी भाभियों से किसी तरह कम नहीं थी , एकदम खुल कर ,. भाभियों के साथ मिल के ,. अरे नयी बहू की असली रगड़ाई तो होली में ही होती है , पहली रात तो चीख चिल्ला के झेल लेती है , उसको भी मालूम रहता है , फटेगी तो है ही , फिर जेठानी भी कुछ वैसलीन , सरसों का तेल ,.
लेकिन होली में तो ,. . जैसे नए गुड़ को देख कर चींटे आते हैं , नयी नवेली बहू को देख कर , सिर्फ रिश्तेदार लड़के ही नहीं अड़ोस पड़ोस वाले भी देवर बन के , और फागुन भर तो देवर जेठ , ससुर कुछ नहीं ,.
और देवरों से बढ़ कर ननदें , सब की सब पक्की छिनार ,. चाहे कच्चे टिकोरों वाली , फ्रॉक वाली हों , या चार चार बच्चों की माँ , .
सब नयकी भौजी के अगवाड़े पिछवाड़े , अंगुली ,. तीन तीन , चार चार ( मैंने खुद एक होली में मम्मी को दुबे चाची के साथ मिल कर , बुआ की बिल में पूरी की पूरी मुट्ठी ठेलते देखा था ),.
और सबसे बड़ी बात उसे बचाने वाला कोई होता नहीं , पहली होली में घूंघट , पर्दा भी थोड़ा बहुत ,. और घर आंगन का अंदाज नहीं , . हाँ दूसरी तीसरी होली तक तो वो भी , लेकिन पहली होली , शादी के बाद की , . . ससुराल में ,. जबरदस्त रगड़ाई वाली होती है ,.
लेकिन मैं बच गयी ,. . शादी के बाद मेरी पहली होली ससुराल में नहीं हुयी , दूसरी भी नहीं ,.
तीसरे साल मैं होली में अपने ससुराल में थी ,
और ये कहानी उसी उसी होली की है , लेकिन कहानी बिना भूमिका के ,. एकदम मजा नहीं आएगा न
तो बस थोड़ी थोड़ी बात पहली दूसरी होली की , .
कैसे वो होली मेरी ससुराल में नहीं हुयी और फिर देवर ननद के संग खेली होली की ,
लेकिन साथ साथ थोड़ा अपने , थोड़ा इनके और थोड़ा इनके सालियों के मायके वालियों के बारे में नहीं बताउंगी , तो चलिए फिर शुरू से
नैन मिले नैन से
मेरी शादी तय हुयी तो मैं टीन्स में ही थी , . ऑलमोस्ट मिड्ल आफ टीन्स ,. बारहवीं में पढ़ती थी ,. . बस इन की नजर में पड़ गयी , . पक्के चोर , मुझे चुरा लिया मुझी से ,. पर बावरे नैनों का ये खेल ,. मैं भी हारी ये भी हारे ,.
इन्होने इंजीनयिरंग किया था और एक नौकरी लग गयी थी ,. एक रिश्तेदारी की शादी में गयी थी ,. मेरी मौसेरी बहन की ,. बस वहीँ ,. मेरे जीजा के रिश्ते में ही लगते थे ( जिनसे मेरी मौसेरी बहन की शादी हुयी थी वही नए नए जीजू ) ,.
कुछ जूता चुरायी की छेड़छाड़ , कुछ गारी गवाई में , . ( मैंने इनका नाम पता कर लिया था और चुन चुन के असली वाली गारियां ) ,. उमर में मुझसे पांच साल बड़े ,. आँखे बार बार चार हुईं ,.
बस उनकी भाभी ने मम्मी से बात चलाई , और जाड़े में शादी की तारीख तय हो गयी।
दिसंबर का जाड़ा , गाँव की शादी , वो भी तीन दिन वाली ,. . इनके अंदर बहुत सी अच्छाइयां , .
देख के मेरी सहेलियां , मेरी भाभियाँ और इनकी सलहजें सब ललचा रही थीं , लम्बे खूब आलमोस्ट ६ फ़ीट ,
गोरे , रंग इतना गोरा की कोहबर और शादी में सब लड़कियां , औरतें , चिकना नमकीन कह कह के एक से एक खुल्लम खुल्ला मजाक ,.
लेकिन वही इनकी परेशानी और बुराई भी थी। शर्मीले इतने की कोई शर्मीली से शर्मीली लड़की मात , मुंह नीचे किये ,. बात बात पर लजा जाते ,.
कोहबर में इनकी इतनी रगड़ाई हुयी , इनकी सालियों , सलहजों ने (यहाँ तक की सास ने भी ),
और सिर्फ ये बात कह कह के ,.
'इतनी प्यारी मीठी मीठी , दुलहन मिल रही है तो इतना भी नहीं कर सकते हो ,. अगर नहीं किया न दुल्हन ले जाना तो दूर उसका मुंह भी नहीं देखने को मिलेगा '
. बस उसके बाद तो उनकी साली सलहजें कुछ भी ,. कुछ भी करवा ले रही थीं , कोहबर में।
और यही बात मैंने इनके मायके में भी देखी , बस मेरी लालच दे दे के ,. इनकी भाभी , मेरी जेठानी तो शुरू से ही मेरी ओर ,. ससुराल में जो दुल्हन दूल्हा के बीच जुआ होता है , जेठानी ने इनके कान में साफ साफ़ कहा ,
" दुल्हन को जीतने देना , अगर गलती से भी जीत गए न तो चार दिन के बाद कंगन खुलवाउंगी ,. तड़पना चार दिन तक , गनीमत मनाओ , इतनी प्यारी मीठी सी दुल्हन मिल गयी है ,. "
और वो एक बार तो जीतने के बाद भी उन्होंने दूध पानी के अंदर अंदर मेरे हाथ में , तीनो बार मैं जीती ,.
लालची
और असली झिझक , तो इनकी रात में ,. कुछ तो मुझे अंदाज रस्ते में ही हो गया था , कार में , .
जिस तरह से ललचा ललचा के चुपके चुपके मुझे ये देख रहे थे , मैं कनखियों से इनकी चोरी देख रही थी , .
और कई बार एकदम नदीदे की तरह ,. आपने एकदम सही समझा , मेरी चोली के ,.
और एकाध बार जब मेरी निगाहों ने इनकी चोरी पकड़ ली तो फिर तो एकदम बीर बहूटी ,
और दस मिनट तक सामने सड़क की ओर , लेकिन फिर उसके बाद वही चोरी चोरी चुपके ,.
पहली रात के बारे में भाभियों और मेरी मम्मी ने भी बहुत कुछ ,.
मर्द बड़े बेसबरे होते हैं , तुरंत ही ,. कुछ देर तो ना नुकुर ,.
लेकिन असली सीख मुझे मेरी जेठानी ने दी , अपने देवर के बारे में उनसे ज्यादा किसे मालूम होता ,. बोलीं ,.
' ज्यादा मत ना नुकुर करना ,. वो तुझे सीरियसली ले लेगा ,. . और रात भर बस ललचाता रहेगा ,. "
पहली रात की बात बस , कल
पहली रात
रात पिया के संग जागी रे सखी
पहली रात के बारे में भाभियों और मेरी मम्मी ने भी बहुत कुछ ,. मर्द बड़े बेसबरे होते हैं , तुरंत ही ,. कुछ देर तो ना नुकुर ,.
लेकिन असली सीख मुझे मेरी जेठानी ने दी , अपने देवर के बारे में उनसे ज्यादा किसे मालूम होता ,. बोलीं ,.
' ज्यादा मत ना नुकुर करना ,. वो तुझे सीरियसली ले लेगा ,. . और रात भर बस ललचाता रहेगा ,. "
साढ़े आठ बजे ही मैं सुहागरात वाले कमरे में , . मेरी ननदें एकदम खुल के ,.
" भाभी एक बार इस्तेमाल के पहले दिखा दीजिये , कल इस्तेमाल के बाद देख लेंगे ,.
बस अब आधा , एक घण्टे की बात है ,. "
पौने नौ बजे मेरी जेठानी इनको लेकर हाजिर हुईं ,.
और खेद कर सब ननदों को भगाया , लेकिन जाते जाते आपस में , मुझे सुना सुना कर ,.
" चल यार , बस आधे घण्टे में ,. इतनी तेज चीख निकलेगी न इस कमरे से ,. अरे छत पर रहने की कोई जरूरत नहीं , नीचे तक सुनाई देगा ,. ( मेरा कमरा अकेले छत पर था , बाकी सब लोगों का कमरा नीचे ,. मेरे कमरे के अलावा सिर्फ छत ही थी बड़ी सी ऊपर ) घडी मिला लेना ठीक साढ़े नौ बजे,… "
लेकिन साढ़े नौ बजे तक तो उन्होंने पहली चुम्मी ही नहीं ली , ऐसे झिझकते शरमाते ,. लेकिन ललचाते , .
बस बगल में बैठे नदीदों की तरह ,.
भाभी उनकी ९ बजे गयी थीं , .
( तीन बातें उन्होंने मेरे कान में बोली थीं , पहली की वो बाहर से ताला लगा देंगी और सुबह ९ बजे ही वो खोलेंगी , और दूसरी तकिये के नीचे वैसलीन की शीशी रखी है, पान खिला देना और दूध बाद में । ).
और साढ़े नौ बजे तक मैं समझ गयी थी की मेरी जेठानी ने एकदम सही समझाया था ,.
ये मेरा ' वो ' कुछ ज्यादा ही सीधा , भोला ,. शर्मीला ,.
और मैंने कुछ ज्यादा तड़पाया बेचारे को तो वो ऐसे ही ,.
पहली चुम्मी रात में पौने दस बजे , बड़ी हिम्मत कर के ली उन्होंने
वो भी तब जो मैंने पान अपने होंठों से उनके होंठों के बीच ,
और तब बड़ी हिम्मत से उनके लालची होंठों ने मेरे होंठ गपुच लिए ,.
फिर तो सरक कर हम दोनों रजाई के अंदर ,. और तब उनके हाथों ने थोड़ी हिम्मत की ,.
मेरी बैकलेस चोली , सिर्फ एक छोटी सी गाँठ ,. और वो खुल गयी।
उनकी उँगलियाँ मेरी पीठ पर टहलती रहीं , और मैं दहकती रही।
मैं समझ गयी वो बिचारे मेरी ब्रा का हुक ढूंढ रहे हैं , लेकिन ब्रा जान बूझ कर मेरी भाभी ने कहा था फ्रंट ओपन पहनना , और उन्हें कहाँ समझ ,.
मैंने ही उनका हाथ हटाने के बहाने , और जैसे ही उनका हाथ मेरी फ्रंट ब्रा के हुक पर पड़ा ,.
जैसे कारूं का खजाना मिल गया मेरे बालम को , . .
मैंने झूठे भी रोकने की कोशिश नहीं की ,.
और मेरे जोबन ,. उनकी मुट्ठी में ,. वो एकदम पागल ,
. गूंगे की गुड़ की तरह छुआ , सहलाया , और थोड़ी हिम्मत कर दबाना मसलना भी शुरू कर दिया।
कस कर वो मुझे अपनी बाँहों में भींचे थे , और उनसे ज्यादा कस के मैंने उन्हें पकड़ रखा था ,.
बिन बोले , उनके पाजामा के अंदर का तन्नाया खूंटा मेरी जाँघों के बीच , मुझे उनकी हालत बता रहा था।
बेसबरा, बुद्धू
मैंने और कस के उन्हें भींच लिया , और अबकी मेरे होंठों ने उनके होंठों को बस हलके से छू भर लिया , इतना काफी था , अबकी का उनका चुम्मा , चुम्मी नहीं सच में चुम्मा था , साथ में दोनों हाथ मेरे उभारों पर , .
उस दुष्ट की उँगलियाँ आग लगा रही थीं ,
जैसे किसी बच्चे को वो खिलौना मिल जाए जिस के लिए वो जनम जनम से तरस रहा हो ,
बुद्धू थे , नासमझ भी लेकिन इतने भी नहीं , . एक बार चोली खुल जाने के बाद जैसे उनको , .
और मैं भी तो ,. .
मेरी भाभियों ने लाख समझाया था , नाड़ा मत खोलने देना पहली रात आसानी से ,.
लेकिन मैं भी तो उतनी ही बावरी हो रही थी ,. .
और मैं समझ गयी थी गलती से भी हमने ना नुकुर की तो ये नदीदों की तरह बस ललचाते रह जाएंगे ,.
ऊपर से वो मोटा खूंटा मेरी जाँघों के बीच धंसा उनकी हालत बिना उनके कहे अच्छी तरह बता रहा था , .
और जब उन्होंने नाड़ा खोलने की कोशिश की तो बस मैंने हलके से एक बार उनका हाथ पकड़ा , उन्ह आह की , .
धीमे से बदमाश बोला , .
और मेरा लहंगा , उनका पजामा एक साथ ,.
हाँ एक बेईमानी की मैंने ,. . मेरी पैंटी ,. मैं जान गयी थी वो एकदम ही ,. उनके बस का नहीं था , .
एक छोटा सा हुक था ,. बस जब उनका हाथ पैंटी सरकाने की कोशिश कर रहा था ,.
मैंने अपने हाथ से हलके से ,. और पैंटी मेरी देह से अलग होकर ,. वै
से भी हम दोनों रजाई के अंदर थे ,. . लाइट्स सारी बंद थीं ,
बस थोड़ी सी चांदनी रोशदान से आ कर ,.
एकदम ९० डिग्री , तना कड़ा ,.
मेरी ननदों ने साढ़े नौ बजे , दरवाजा बंद होने के बाद चीख की फोरकास्ट की थी
और मौसम के फोरकास्ट की तरह वो एकदम गलत निकला , .
लेकिन एकदम गलत भी नहीं , . .
सवा दस ,. . बहुत दर्द हुआ ,. बस जान नहीं निकली , .
लेकिन मैं जानती थी , अगर मैं चीखी तो ये कहीं ,.
मैंने दोनों हाथों से कस के चददर को पकड़ा , दांतों से होंठों को कस के काट लिया ,
बस किसी तरह चीख निकलने से रोका अपने को
वो मेरे अंदर थे ,
पर आठ दस मिनट के अंदर ,
एक बार
उईईईईईई , नहीं ,. ओहहहह उईईईईईई ,. .
जोर की चीख मेरी लाख कोशिश करने के बाद भी निकल गयी ,
पूरी देह दर्द से चूर थी , मेरी ,.
और साथ ही बाहर से ढेर सारी लड़कियों की हंसी , मजाक एक से एक ,. और सिर्फ मेरी ननदे ही नहीं कुछ काम करने वालियां भी जो रिश्ते से ननदें ही लगती थी ,
नाउन की लड़की ,. दुलारी
" कैसे फटी हो भौजी कैसे फटी , तोहरी ,. . "
उस की ही आवाज थी।
जोर की हंसी और फिर चलो
अब फट गयी है टाइम देख लो , कल भाभी विस्तार से बातएंगी न
एक छोटी ननद की आवाज आयी 10. २८
" तानी धीरे धीरे डाला , बड़ा दुखाला रजऊ ,. . "
किसी ननद ने कहा , तो दुलारी बोली
" अरे धीरे डालने का दिन नहीं है आज , . शादी कर के लाये हैं , हचक के डालेंगे ,. और हचक के पेलेंगे नही तो भौजी की फटती कैसे , १७ साल से नैहर में भैया के लिए बचा के रखी थीं। "
" चलो चलो तुम सब नीचे आज फड़वातीं हूँ तुम सब ननदों की ,. पता चलेगा ,. मेरे मायके वाले हैं न ,. "
ये मेरी जेठानी की आवाज थी।
" अरे हम भौजाइयां भी तो हैं , चलो आज किसी ननद की बचेगी नहीं , तुम सब को बताएंगी हम , कैसे रोज तुम्हारे भाई हमारे ऊपर चढ़ाई करते हैं न एकदम वैसे ही ,. अपनी ऊँगली तो रोज करती होगी , आज भौजाइयों की ऊँगली का मजा लो ,. "
दूसरी जेठानी बोलीं।
दर्द का मज़ा
दुलारी बोली
" अरे धीरे डालने का दिन नहीं है आज , . शादी कर के लाये हैं , हचक के डालेंगे ,.
और हचक के पेलेंगे नही तो भौजी की फटती कैसे , १७ साल से नैहर में हमारे भैया के लिए बचा के रखी थीं। "
" चलो चलो तुम सब नीचे आज फड़वातीं हूँ तुम सब ननदों की ,. पता चलेगा ,. मेरे मायके वाले हैं न ,. "
ये मेरी जेठानी की आवाज थी।
" अरे हम भौजाइयां भी तो हैं , चलो आज किसी ननद की बचेगी नहीं , तुम सब को बताएंगी हम , कैसे रोज तुम्हारे भाई हमारे ऊपर चढ़ाई करते हैं न एकदम वैसे ही ,. अपनी ऊँगली तो रोज करती होगी , आज भौजाइयों की ऊँगली का मजा लो ,. "
दूसरी जेठानी बोलीं।
मेरी चीखें बंद हो गयीं थी लेकिन तब भी चेहरे पर दर्द , . और रुक रुक कर हलकी हलकी चीख
लेकिन तभी मेरी निगाह उनके चेहरे पर पड़ी ,.
उनका चेहरा जर्द ,.
जैसे किसी बच्चे से कोई बहुत मंहगा , खूबसूरत खिलौना टूट गया हो ,. . एकदम उसी तरह सहमा ,. .
और मैं सहम गयी ,.
मेरी चीख का असर उनके ऊपर ,. लेकिन बिना सोचे , मेरी बाहें एकदम उनके चारों ओर , कस के भींच लिया मैंने ,
और खुद होंठ उठा के ,
एक दो चार चुम्मी , सीधे उनके होंठों ,. बिना बोले मेरी आँखे , मेरे होंठ मेरी पूरी देह कह रही थी ,
' करो न ,. "
मेरे चेहरे पर दर्द की जगह एक बार फिर चाहत छा गयी थी और वो ,
मेरा ,. हलके से फिर जोर से मेरी चुम्मी का जवाब , कस के चुम्बन से और एक बार फिर धक्का ,
पहले हल्का सा , थोड़ा सहम कर ,. और फिर थोड़ी जोर से ,.
मैंने एक बार फिर कस के पलंग पकड़ लिया था दांतों से होंठों को भींच लिया था , .
और तय कर लिया था कित्ता भी दर्द हो चीखूंगी नहीं ,
मम्मी ने , भाभियों ने जैसा समझाया सिखाया था , मैंने अपनी जाँघे पूरी तरह फैला रखी थीं ,
कमर के नीचे वहां एकदम अपने को ढीला छोड़ दिया था , तब भी ,
उन्होंने कस के मेरी पतली कमर को दबोच रखा था और कुछ देर में उनके धक्के का जोर ,. सब कुछ भूल के ,.
लेकिन यही तो मैं चाहती थी , इसी दर्द इसी तड़पन का इन्तजार मुझे था
और अब मैं लाज में डूबी लेकिन थोड़ा थोड़ा उनका साथ दे रही थी ,
मेरी देह अब मेरी नहीं थी
रगड़ रगड़ कर , दरेरते , घिसटते , फाड़ते उनका ,. . मेरे अंदर , . .
दर्द तो हो रहा था , बहुत हो रहा था ,. .
लेकिन एक नया अहसास , एक नया मजा ,. और कुछ देर बाद ही मेरी आँखे मूंदने लगी ,
मेरी देह कांपने लगी ,
मुझे याद आ रहा था कोई भाभी मुझे चिढ़ा रही थीं ,
तेरा वाला एकदम नौसिखिया लगता है , असली कुंवारा ,. तू एक दो बार मेरे वाले से ट्राई कर लें ,.
मम्मी बोलीं ,
अरे जैसे मछली को तैरना नहीं सीखाना पड़ता , उसी तरह मरद को भी
सच में उनकी उँगलियों को उनके होंठों को जैसे मेरी देह के सारे गोपन रहस्य मालूम पड़ गए हों , . .
और वो मूसलचंद तो था ही मेरी , ऐसी की तैसी के लिए ,
अपने आप मेरी हलकी हलकी चीखें अब सिसकियों में बदल गयीं मेरी आँखे अपने आप बंद हो गयी ,
देह धीरे धीरे एकदम ढीली , जैसे मेरे काबू में न हो
मैं काँप रही थी , तूफ़ान में पत्ते की तरह , . तेज और तेज ,. फिर धीरे धीरे ,. और
मेरा कांपना रुका नहीं था की वो भी मेरे साथ साथ , और अब मैं एक बार फिर से
बूँद बूँद ,. फिर जैसे बाढ़ आ गयी हो ,
देर तक मैं उन्हें अपनी बाँहों में बांधे रही ,
कुछ देर बाद जब हम थोड़े अलग हुए ,
मेरी निगाह घड़ी पर पड़ी , अभी भी बारह नहीं बजा था , साढ़े ग्यारह बजने वाले थे।
दर्द से मेरी देह चूर चूर हो रही थी , जाँघे फटी पड़ रही थीं , . .
लेकिन उनके चेहरे की ख़ुशी ,. वो बावरापन , . मेरा सारा दर्द आधा हो गया।
वो एकटक मुझे देख रहे थे , और अचानक उन्होंने मेरे होंठों पर झुक कर ,. एक कस के चुम्मी ले ली ,
और बांहों में दबोच लिया।
और उनके बोल फूटे ,. फिर वो रुके नहीं ,.
' जानती हो जब से उस दिन तुझे देखा था , न बस यही सोचता था ,. . कैसे ,. किस तरह ,.
मुझे लगता नहीं था , तुम ,. सच में बस लग रहा था किसी तरह तुम मिल जाओ ,. बस ,. '
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया ,
' मिल तो गयी न ,. हूँ अब तो "
लेकिन मैं भी बस उनके चेहरे को देख रही थी ,
और जाने अनजाने मैंने भी अब उन्हें अपनी बाँहों में बांध लिया , रजाई जो एकदम ऊपर से सरक गयी थी ,
एक बार फिर से ,. . लेकिन हम लोगों के चेहरे , गरदन के ऊपर से , एकदम खुले थे ,
और बरसती चांदनी में हम एक दुसरे को अच्छी तरह से देख रहे थे।
उनकी बातों का मरहम , उनकी आँखों के नशे में मेरा दर्द अब एकदम ख़तम हो गया था ,. कभी कभी वो शरारती लड़कों की तरह ,. ललचाते , उनकी ऊँगली मेरे होंठ पर हलके से छू लेते ,
पर मैं पहले दिन से ही उन्होंने जब उस शादी में मुझे देखा था , . और मैंने उन्हें ,. मैं समझ गयी थी उनकी रातों की नींद जिसने उड़ा ली थी वो मेरे किशोर उभार थे ,
मेरे गदराये उरोज ,. और आज भी उनका मन ,. बोलने की हिम्मत तो उनकी पड़ नहीं रही थी , .
उन्होंने रजाई थोड़ी और नीचे करने की कोशिश की ,
इरादा मैं समझ रही थी पर बदमाशी क्या वो अकेले कर सकते थे , मैंने एक हाथ से रजाई कस के दबोच ली ,
मेरे हाथ उनके हाथों से जीत सकते थे , पर मैं उनकी आँखों का क्या करती ,
चार आँखों का वो खेल तो मैं पहले दिन ही हार गयी थी , जब उस शादी में मैंने इन्हे सबसे पहले देखा था , .
उन्हें क्या मालूम था मैं उस चितचोर के आगे सब कुछ उसी दिन ,.
वो चोर मुझसे मुझी को चुरा ले गया था , और उस चोरी का कोई थाना सिक्युरिटी भी नहीं हो सकती ,
और अब वही बदमाश लुटेरी आँखे मेरी आँखों में आँखे डाल के जिस तरह चिरौरी कर रही थीं , मेरी पकड़ थोड़ी सी ढीली हुयी ,
एक और जबरदस्त चुम्मा , और रजाई सरक कर एक बार फिर हम दोनों के कमर तक ,.
मन तो उनका बहुत कर रहा था , लेकिन बहुत हिम्मत कर के उनकी भूखी उँगलियाँ मेरे उभारों पर हलके से ,. और अब मैंने मना भी नहीं किया ,.
उँगलियाँ अब चोर से डाकू हो हो गयीं , एकदम खुल्लम खुला ,
उनकी दोनों हथेलियों सीधे मेरे किशोर उभारों पर , और अब वो छू नहीं रहे थे , बल्कि कस के दबा रहे थे ,
दर्द भी हो रहा था , अच्छा भी लग रहा था , जेठानी की बात भी याद आ रही थी , मना ज्यादा मत करना ,
और अब तो भरतपुर लूट भी चुका था , बचाती क्या और किससे ,
उनसे बचने सिर्फ एक की शरण में जा सकती थी , .
उन्ही की , . मेरी आँखों ने उनकी आँखों में झांका , शिकायत की , . गुहार लगाई ,
और लता की तरह खुद उनकी देह में लिपट गयी ,
उनके हाथों की शरारत कोई कम नहीं हुयी
एक हथेली उनकी मेरी खुली पीठ पर सहला रही थी और दूसरी , और कहाँ,…
मेरे किशोर उभार पर
उस नवल रसिया की सिर्फ दुष्ट उँगलियाँ ही नहीं ,
बल्कि अब अंगूठा भी मेरे निपल को हलके हलके फ्लिक कर रहा था ,
अपने साजन की बाँहों में बंधी , मैं पिघल रही थी ,
रह रह कर सिसक रही थी। वो भी इतना कस के मुझे भींचे दबाये हुए ,
उनके चौड़े सीने के नीचे मेरे किशोर बूब्स दबे मसले जा रहे थे ,
पर अचानक मुझे छोड़ कर वो उठे ,