Episode 02

रात पिया के संग जागी रे सखी

अपने साजन की बाँहों में बंधी , मैं पिघल रही थी , रह रह कर सिसक रही थी। वो भी इतना कस के मुझे भींचे दबाये हुए , उनके चौड़े सीने के नीचे मेरे किशोर बूब्स दबे मसले जा रहे थे , पर अचानक मुझे छोड़ कर वो उठे ,

" मैं भी न कितना भुलक्कड़ हूँ ,. "

और उनका कुर्ता जो बिस्तर से नीचे गिरा मेरी चोली के ऊपर पड़ा था , उसे उठा कर उसकी जेब से ,.

मेरी आँखे चुंधिया कर रह गयीं ,

इतना खूबसूरत , कितना बढ़िया काम , .

मैंने अपनी गर्दन उनकी ओर बढ़ा दी , और उन्होंने हार पहना दिया ,

दुष्ट ,.

उनकी निगाहों की चोरी मुझसे छिपती ,.

बजाय हार के उनकी निगाहें मेरी अनावृत्त गोलाइयों पर चिपकी थीं ,

( मम्मी ने मुझे पहले ही वार्न कर दिया था की ये पक्के बूब्स मैन हैं , उनके हिसाब से आदमी दो तरह के होते हैं बूब्स मैंन या आस मैंन , पिछवाड़े दीवाने ,. लेकिन ये दोनों थे ,
और मम्मी के सामने ही मेरे पिछवाड़े कस के चिकोटी काटते हुए रीतू भाभी ने जोर से चिढ़ाया , बिन्नो , तेरा पिछवाड़ा बचेगा नहीं। मम्मी मेरी और ,

. भाभी का ही साथ देते बोलीं , . तो कौन मैं इसे बचाने के लिए भेज रही हूँ , )

और जैसे मैंने उनकी आँखों में झाँका , वो समझ गए उनकी चोरी पकड़ी गयी , .

बात बदलने में तो वो पक्के उस्ताद , मुझे मोड़ कर मेरा चेहरा सामने ड्रेसिंग टेबल ,.

खूब बड़ा सा तीन शीशों वाला , . . ठीक हमारे बेड के सामने

( दो दिन बाद पता चला मुझे मेरी दुष्ट ननदों की शरारत थी ये , ऐसा ऐंगल था , जिससे बेड पर का सब कुछ ,. )

मेरी निगाहें सीधे मेरे गले में पड़े जड़ाऊ सतलड़ी वाले हार पर पड़ी थीं , जबरदस्त काम था , बहुत ही सुन्दर ,. .

नाइट लैम्प भी उन्होंने जला दिया था इसलिए साफ़ दिख रहा था। खूब भारी भी था ,

लेकिन थोड़ी देर में मैं समझ गयी उनकी शरारत ,

ड्रेसिंग टेबल के बड़े से शीशे में न सिर्फ कुंदन का हार दिख रहा था बल्कि ,

मेरी दोनों किशोर गोलाइयाँ भी ,

पहली बार मैं इस तरह उनके साथ बैठ कर बगल में , मारे शर्म के मैंने अपने दोनों हाथ अपने उभारों पर रख दिए , .

लेकिन ये भी न इतने सीधे हैं नहीं जितने लगते हैं मैं समझ गयी

( बाद में पता चला की ये इनसे ज्यादा इनकी सलहज , मेरी रीतू भाभी ,. कोहबर में इनकी सलहज ने सब राज मेरे , )

मुझे कहाँ गुदगुदी लगती है , सब ,. और उसी का फायदा उठा के इन्होने मेरी काँखों के बीच ,. .
और मेरे दोनों हाथ उन्हें रोकने के चक्कर ,. एक बार फिर मेरे उभार , .
न सिर्फ इन्हे बल्कि मुझे भी ड्रेसिंग टेबल के शीशे में ,.

मेरे पास सिर्फ एक ही तरीका था , मैं इनके सीने में चिपक गयी ,. .

और मुझे पता चला इनकी उँगलियों से बढ़कर शैतान ,.

इनका वो ,. एकबार फिर से तन्नाया , खड़ा ,. मैं समझ गयी थी असली ख़तरा कहाँ से है। और मुझे भाभियों सारी सीखें अब एक बार फिर से याद आ गयीं , .

जाँघों को समेट लेना कस के चिपका लेना , दोनों पैरों को आपस में क्रास कर लेना , उनको पैरों को बीच में घुसने मत देना

,. बस मैंने जाँघों को एकदम भींच लिया , पैरो को क्रास भी कर लिया , पर ये ,. .

ये तो अभी ऊपरी मंजिल पर उलझे थे , और मैं भी पैरों के चक्कर में ,

जहाँ उनकी उँगलियाँ मुझे तंग कर रही थीं वहां अब इनके होंठ थे , मेरे उभारों के ठीक बेस पर ,

और वो चुंबन के छोटे छोटे पग धरते , वो रसीले होंठ कुछ देर में ही सीधे मेरे निप पर ,

पहले तो हलका सा एक किस ,

. फिर जीभ से फ्लिक करने लगे ,. .

और थोड़ी देर में ही उनके होंठ हलके हलके मेरे निप्स को सक कर रहे थे ,

और दूसरा जोबन इनके हाथ के नीचे दबाया कुचला जा रहा था।

और इनका दूसरा हाथ मेरी पीठ को सहला रहा था , पर मुझे क्या पता था यही हाथ ,. .

एक तो जिस तरह से उनके होंठ मेरे निप्स को सक कर रहे थे , निबल कर रहे थे , . .

मस्ती से मेरी आँखे मुंदी जा रही थीं , लेकिन अबकी मैं इतनी आसानी से इन्हे ,.

मैंने कस के अपनी दोनों जाँघों को भींच रखा था , दोनों पैर क्रास कर के , .

पर उनका खूंटा अब ,. थोड़ी देर पहले ही तो वो दुष्ट ,. इतना खून खच्चर कर चुका था ,. पर उसका टच न ,.

मेरा भी मन गिनगीना रहा था ,.

और वही हाथ पीठ से सरकते मेरे नितम्बों तक , और वहीँ से उसने सेंध लगा दी , .

और कौन ,. घर का भेदी , मेरी भाभी , इनकी सलहज ,. नंबरी दलबदलू ,. .

मेरी जाँघों के ऊपरी हिस्से में ,. कांख से भी ज्यादा गुदगुदी ,. बस

थोड़ी देर में ही मेरी सावधानी सारी कोशिश ,. मेरी जाँघे खुली पड़ी थीं , . और वो जाँघों के बीच ,

लेकिन अबकी न ये इतना झिझक रहे थे न मैं इतना सहम रही थी ,.

और अबकी नाइट लैम्प भी जल रहा था , हम दोनों एक दूसरे को साफ़ साफ़ देख भी रहे थे ,

चैन पड़ा जो अंग लागी रे सखी

थोड़ी देर में ही मेरी सावधानी सारी कोशिश ,. मेरी जाँघे खुली पड़ी थीं , . और वो जाँघों के बीच ,

लेकिन अबकी न ये इतना झिझक रहे थे न मैं इतना सहम रही थी ,.

और अबकी नाइट लैम्प भी जल रहा था , हम दोनों एक दूसरे को साफ़ साफ़देख भी रहे थे ,

और मेरी नजर उनके ' उसपर' पड़ गयी , खूब मोटा , लम्बा ,.

लेकिन मेरी नजर उनकी आँखों पर जब गयी तो , . वो झेंप रहे थे , शरमा रहे थे ,. मुझसे भी ज्यादा ,.

और मैंने निगाह वहां से हट कर जाने अनजाने ,. मैंने तकिया जरा सा सरकाया तो ,

उनके नीचे वैसलीन की बड़ी सी बॉटल ,. जो मेरी जेठानी ने वहां रखी थी ,. और पहली बार के बाद अभी भी उसका ढक्कन खुला हुआ था ,.

मेरी निगाह को उनकी निगाह देखती ही रहती थीं ,. और बस जैसे मेरा इशारा सा ,.

ढेर सारा वैसलीन ले के अपने 'उसपे ' उन्होंने अच्छी तरह लिथड़ लिया , फिर ' उसके मुंह ' पर भी ,.

डरते झिझकते मेरी निगाह उधर पहुँच ही जा रही थी , लेकिन कुछ मेरी झिझक ,

और कुछ उससे बढ़कर इनकी झिझक का डर ,.

और तबतक इन्होने अपनी उँगलियों में वैसलीन लगा कर मेरी चुनमुनिया में ,.

मारे लाज के अब मैंने आँख बंद कर ली , .

पर पता तो चल ही रहा था , और अब मैं मना न कर सकती थी , न करना चाहती थी ,.

मेरी लम्बी लम्बी टाँगे , इनके कन्धों पर ,.

बस इनकी सलहज की सीख ,.

जब लगे की अब 'होना ही है ' तो ,. बस अपनी जाँघे जितना फैला सको , फैलाओ ,

' वो ' जीतनी ढीली कर सकती हो करो , वहां से ध्यान हटाओ ,.

वो नौसिखिये थे लेकिन इतने भी नहीं , और एक दो तकिये , मेरे हिप्स के नीचे ,

मुझे बस इतना याद है , की इनके दोनों हाथ मेरी कमर पे थे ,.

और कहीं दूर से एक के घंटे की आवाज आयी , और उसी के साथ ,.

अबकी मैंने चीख रोकने की जो कोशिश की , लेकिन तब भी चीख निकल गयी ,

दोनों हाथों से मैंने चददर दबोच रखी थी , टाँगे मेरी खूब फैली , इनके कंधे पर , .

लेकिन उसी के साथ दूसरा तीसरा , चौथा धक्का , .

और जब ' वो ' एकदम से अंदर ,. मेरी जोर की चीख निकल गयी ,.

और उसी के साथ ,. . मुझे अपनी गलती का अंदाज लग गया ,.

मैंने अपनी दियली सी आँखे खोली , सच में उनकी आँखों में ,.

लग रहा था जैसे उनसे कोई गलती हो गयी हो ,. बिना बोले उनकी आँखे पूछ रहीं थी , ' क्यों बहुत दर्द हो रहा है क्या ,. "

दर्द तो हो रहा था लेकिन ,. उनकी आँखों की परेशानी मेरी आँखे नहीं देख सकती ,

वो मुस्करायीं , मैंने कस के उन्हें अपनी बाँहों में न सिर्फ दबोच लिया और कस के अपनी ओर खींचा ,

एकदम अपने आप , मेरे होंठ उनके होंठों से ,.

बस उसके बाद , उनके सीने के नीचे मैं दब गयी , कुचल गयी ,.

और धक्के अब रुक नहीं रहे थे ,. . .

रजाई कब सरककर पलंग नीचे चली गयी थी , नाइट लैम्प भी जल रहा था ,

और मैं उन्हें देख रही थी , उनकी ख़ुशी , उन के चेहरे पर छलकता मज़ा ,.

और उसका असर मेरे ऊपर भी कर रहा था , धीमे धीमे कई बार उनके धक्के के जवाब में मेरे भी नितम्ब हलके से ,

और साथ साथ हर धक्के के साथ मेरी पायल रुनझुन कर रही थी

चूड़ी चुरमुर कर रही थी ,

कमर छोड़ कर उनका एक हाथ अब मेरे उभार पर था और दूसरा मेरी मेरी कलाई पर ,

साथ में उनके होंठ कभी , मेरे होंठों पर कभी गालों पर कभी उभारों पर ,. मुझे भी सच बोलूं तो बहुत अच्छा लग रहा था ,. मैं चाह कर भी अपनी आँखे बंद नहीं कर पा रही थी , असली ख़ुशी तो उनकी खुशी देखने से हो रही थी ,. पर थोड़ी देर में पूरी देह में कुछ कुछ ,. उनकी एक ऊँगली कस कस के मेरे निप्स मसल रही थी ,

दूसरा निप्स , उनके मुंह में,.

और उनका वो पूरी तरह अंदर ,.

जाँघे तो अभी भी फटी पड़ रही थीं ,. पर देह मेरी शिथिल हो रही थी , मैं सिसक रही थी ,

एक अलग सी तरंग ,. मैंने देह को ढीली छोड़ दिया , कुछ देर बस ,. बस ,.

और उनके धक्के भी कुछ देर के लिए रुक गए , . . लेकिन फिर वो चालू हुए ,.

तो अबकी तो , . मुझे दुहरा कर के एक बार फिर से मेरे पैर उनके कन्धों पर ,.

मैं अब एकदम उनके साथ साथ

और हम दोनों साथ साथ ही ,. . बहुत देर तक ,. मैं एकदम थेथर , थकी ,. और आँखे बंद कुछ थकान से कुछ लाज से ,. पलको पर उनके चुंबन ने ही मेरी आँखे खोलीं ,. . वो अभी भी मेरे अंदर ,. . उन्हें देख कर मैंने सिर्फ बोला

' धत्त " और फिर से आँखे बंद कर ली ,. पर उनकी सलहज ने जो गुदगुदी सिखाई थी , आँखे खुल ही गयी , .

और हम दोनों ऐसी ही एक दूसरे से चिपके ,.

जल्दी से मैंने फर्श पर पड़ी रजाई उठायी और हम दोनों एक बार फिर रजाई के अंदर

और उनके बोल फूटे , . लेकिन वही ,. मेरा मन बहुत करता है , .

' क्या ' अब मैं भी हलके से बोलने लगी ,. पता तो मुझे अब तक चल ही गया था।

" तुम्हारा ,. तुमको पाने का " मेरे कानों के पास अपने होंठ कर बोले वो ,

और मैं जोर से उनके सीने से चिपक गयी , हलके से किसी तरह बोली ,.

' मिल गयी न "

गजरा सुहाना टूटा ,

कजरा नयन का छूटा,.

उनके बोल फूटे , . लेकिन वही ,.

मेरा मन बहुत करता है .

' क्या '

अब मैं भी हलके से बोलने लगी ,.

पता तो मुझे अब तक चल ही गया था।

" तुम्हारा ,. तुमको पाने का "

मेरे कानों के पास अपने होंठ कर बोले वो ,

और मैं जोर से उनके सीने से चिपक गयी , हलके से किसी तरह बोली ,.

' मिल गयी न "

फिर उन्होंने पूरा किस्सा बताया , .

तीन महीने पहले शादी में जब उन्होंने मुझे देखा था ,.

तब से कितनी कोशिश की , पहले तो पता लगाया , किससे बात करनी होगी ,

मम्मी का एड्रेस , . फोन नंबर ,. फिर मेरी जेठानी , इनकी भाभी ,. और उन्होंने बहुत कोशिश की ,.

मुझे मालूम था ,

सबसे पहले मेरी जेठानी का ही फोन आया था मंम्मी के पास ,.

मुझको उड़ते पड़ते ये भी पता चला था की , कितने इनके रिश्तेदारों ने ,. . लड़की का घर गाँव में है ,. . लड़की अभी इंटर में पढ़ती है ,. इन्हे इतनी अच्छी नौकरी का ऑफर मिला है , कोई भी लड़की ,.

पतंग काटने की बड़ी कोशिश की , सब किसी न किसी और लड़की को टिकाना चाहते थे ,.

लेकिन ये और मेरी जेठानी ,.

फिर शादी का समय ,. ये चाहते थे जल्दी जाड़े की शादी ,.

उसके बाद ही इन्हे जनवरी फरवरी में महीने डेढ़ महीने की ट्रेनिंग में जाना था , उसके बाद पोस्टिंग हो जाती ,. दिसम्बर में लगन भी बहुत कम थी ,.

मम्मी को भी लगता था इतनी जल्दी शादी का इंतजाम ,. .

आज से तीन महीने पहले ही तो हम दोनों ने एक दूसरे को देखा था और आज ,.

तभी मुझे दो बातें याद आयी , और मैं कुछ झुंझुलाई , कुछ मुस्करायी ,.

दूध ,.

जेठानी ने चार बार समझाया था दूध जरूर पिला देना ,.

और मम्मी ने भी तो बोला था , सुहागरात में पान और दूध ,.

दूध मैंने इन्हे दिया ,. तो ये बोले पहले तुम ,. लेकिन मैं बोली , पहले आप ,.

बस इनकी जिद्द भी न , . मुझे कसम धरा दी वो भी अपनी ,. मैं लाख मना करती रही ,.

पर इन्हे मना करना मेरे बस में अब नहीं था। लेकिन बस थोड़ी सी बात मानी इन्होने ,. इस कमरे में या जहाँ सिर्फ हम दोनों हो ,. आगे से मैं भी इन्हे तुम बोलूंगी ,. आप नहीं ,.

और दूध भी जब तक मैंने जूठा नहीं किया इन्होने नहीं पिया ,

और जब ये दूध पी रहे थे तो मुझे हंसी आ गयी , कोहबर की बाते याद कर के ,.

कोहबर में तो क्या क्या नहीं इन्हे मेरा जूठा खिलाया गया , जो पान इन्हे मैंने खिलाया था , उसके भीतर एक और छोटा सा पान था ,

वो सिर्फ मेरा जूठा नहीं था , . पूरे दो घंटे भाभी ने मेरे मुंह में रखकर कुचलवाया था और वो उस पान में डालकर , .

खीर भी ,. .

पानी तो वही कोहबर में ही उनकी नजर बचाकर , रीतू भाभी ने पहले मुझे पिलाया , फिर इन्हे।

मेरी मुस्कराहट इनसे कैसे छुपती , वो बोले ,. . क्या हुआ ,. नाइट लैम्प अभी भी जल रहा था , . रजाई एक बार फिर सरक कर हम दोनों के कमर तक , . और अबकी मैंने उसे ठीक करने की कोशिश भी नहीं की ,

' कोहबर में ,. आपकी मेरा मतलब,. तुम ,. . सालियों और सलहजों ने आपकी ,. और सब बातें ,. '

सच में बड़े सीधे थे ये बोले

" क्या करता मैं , मेरी साली और सलहज ने शर्तें ही ऐसी रख दी थी की अगर मैं उनकी बात नहीं मानूंगा ,. . जो जो रसम होती है नहीं करूंगा ,. तो तुमसे मिलना तो दूर तुम्हे देख भी नहीं सकता ,.

भाभी ने भी बोला था ,. तुम्हारे ससुराल वाले क्या पता गौना रख दें ,. . फिर छह आठ महीने तक इन्तजार ,. तो इसलिए ,. . फिर साली सलहज की बात ,. टालना ,. "

और अपने हाथ से बचा खुचा दूध मेरे होंठों से लगा कर ,.

पूरा ग्लास खाली हो गया और उन्होने ही टेबल पर रख दिया।

" तेरे होंठो पर दूध लगा है ,. . "

और बजाय साफ करने के उन्होंने चाट लिया। और एक बार फिर उनके होंठ मेरे होंठों से ,. और इस बार मेरे होंठ भी हलके से ही सही ,. उनका साथ दे रहे थे ,.

कुछ था दूध में लगता है , . मेरी पूरी देह में एक लग सा खिंचाव ,. . ,

बस मन कर रहा था की वो बाँहों में भींच ले , मसल लें , दबा दे , रगड़ दे ,

कुछ देर में फिर हम दोनों रजाई के अंदर , .

मैं उनकी बाँहों में दबी , साइड में लेटी , मेरे उरोज उनके सीने से दबे ,.
आँखे अपने आप आप बंद हो रही थी

' नींद आ रही है , क्या ,. " हलके से वो मेरे कानों में बोले।

' हूँ जरा ज़रा सी ,. ' और मैंने आँखे बंद कर ली। बस वो मेरी पीठ सहलाते रहे , .

मुश्किल से पन्दरह बीस मिनट के लिए झपकी लगी होगी मिझे , उसमें भी मुझे यह अहसास था की वो एकटक मेरे सोते चेहरे को देख रहे हैं , मेरी एक लट मेरे गाल पर आ गयी थी ,

बड़े हलके से इन्होने उसे हटा दिया की कहीं मैं जग न जाऊं , पर। . .

दुष्ट लालची ,. . इनकी ऊँगली मेरे गाल को हलके से चोरी चोरी छूने से बाज नहीं आयी।

और मुर्गे की आवाज ने मेरी नींद खोली ,

आज सुहाग की रात , सुरज जिन उगिहौं

मुश्किल से पन्दरह बीस मिनट के लिए झपकी लगी होगी ,

उसमें भी मुझे यह अहसास था की वो एकटक मेरे सोते चेहरे को देख रहे हैं ,

मेरी एक लट मेरे गाल पर आ गयी थी , बड़े हलके से इन्होने उसे हटा दिया की कहीं मैं जग न जाऊं , पर।

. . दुष्ट लालची ,. . इनकी ऊँगली मेरे गाल को हलके से चोरी चोरी छूने से बाज नहीं आयी।

और मुर्गे की आवाज ने मेरी नींद खोली ,

इनका मुर्गा भी कुकुड़ू कूं कर रहा था।

एकदम जबरदस्त , और मेरी गुलाबो में ठोकर मार रहा था , तन्नाया , भूखा ,.

और मैंने अबकी खुद ही ,. हम दोनों साइड में लेते थे , एक दूसरे को पकडे , भींचे ,. .

मैंने अपने पैर फैलाये और एक टांग उनके ऊपर रख दी ,.

इतना उस मुर्गे के लिए काफ़ी था , . जोर से उन्होंने मुझे पकड़ रखा ही था , बस कस के एक जोर का धक्का जोर से ,. और ,. मैं हलके से चीखी ,

लेकिन लता की तरह कस के मेरा पैर उनकी कमर पर फंसा , . वो मेरे अंदर धंसे ,.

वो चाहते भी तो उन्हें नहीं निकालने देती ,.

खिड़की भले ही बंद थी लेकिन पर्दा खुला था , .

बाहर विभावरी कस कस कर ,रात की कालिमा , रगड़ रगड़ कर साफ़ कर रही थी ,. हलकी हलकी उजास दिखने लगी थी , चिड़िया चहचहाने लगी थीं ,.

ये तो दिसंबर की रात थी , वरना अबतक सुबह दस्तक दे रही होती ,
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