Episode 07

मन करता रहेगा ,. लेकिन। . बस ललचाते रहेंगे ,. अरे दर्द तो होगा ही , . फिर इनका तो ' वो ' भी एकदम मूसल चंद है ,. पर है तो है ,. जैसा भी है मेरा है। "

और शैतान का नाम लो , फिर एक बार वो दरवाजे पर हाजिर ,.

कुछ नयी बात लेकर , देख मुझे रहे थे चोरी चोरी बात वो मेरी जेठानी से कर रहे थे , पर अबकी सारी ननदों और जेठानियों ने मिल कर उन्हें खदेड़ा , . .

पर उनके जाते ही , मेरी बड़ी जेठानी , मेरी जेठानी से बोलीं ,

' इसका पहुंचा आओ ऊपर , वरना तेरा देवर न खुद सोयेगा न हमें सोनेदेगा ,
और यहाँ तुम्हारी देवरानी को भी , ननदें उसकी , . . ऊपर जाकर , थोड़ी देर वो भी टाँगे फैला लेगी। "

मैंने कुछ देर तो ना नुकुर किया पर मैं जेठानी के साथ ऊपर छत पर अपने कमरे में ,

पीछे से मंझली ननद ने छेड़ा ,
" हाँ टाँगे तो फैली ही रहेंगी " .

और अब गुड्डो

सीधे मेरी मंझली ननद और दुलारी के बीच सैंडविच बनी।

लेकिन मेरे मन तो बस उस लड़के का ख्याल था , लालची और बुद्धू , . दस बार चक्कर लगा के ,.

ऊपर कमरे में पहुंचा कर मेरी जेठानी ने पहले तो मुझे समझाया , दरवाजा अंदर से बंद कर लो , छह बजे से पहले मत खोलना , . मैं किसी को भेजूंगी , तैयार होके सात बजे तक , कुछ देर तक मुंह दिखाई होगी , फिर चाट पार्टी ,. लेकिन चलने के पहले वो अपने देवर को हड़काना नहीं भूलीं ,

" देख , दे तो जा रहीं हूँ , अपनी देवरानी को लेकिन ज्यादा तंग मत करना इसे , आराम करने देना। "

दिन दहाड़े

मेरे मन में तो बस उस लड़के का ख्याल था , लालची और बुद्धू , . दस बार चक्कर लगा के .

ऊपर कमरे में पहुंचा कर मेरी जेठानी ने पहले तो मुझे समझाया , दरवाजा अंदर से बंद कर लो , छह बजे से पहले मत खोलना , . मैं किसी को भेजूंगी , तैयार होके सात बजे तक , कुछ देर तक मुंह दिखाई होगी , फिर चाट पार्टी ,.

लेकिन चलने के पहले वो अपने देवर को हड़काना नहीं भूलीं ,

" देख , दे तो जा रहीं हूँ , अपनी देवरानी को लेकिन ज्यादा तंग मत करना इसे , आराम करने देना। "

बस जेठानी के निकलते ही , मैंने एक बार उन्हें देखा , . मुड़कर दरवाजा बोल्ट किया , और उन्हें देखते हुए दिखाते , ललचाते , धीमे धीमे अपनी साडी उतार कर , सीधे सोफे पर और बस चोली और साये में , .

हलके से मैं बोली , उन्हें सुनाते ,. लालची

रजाई में धंस ली।

वो आलरेडी सिर्फ बनयायिन और पाजामे में थे . कहने की बात नहीं , अगले पल उन्होंने खींच कर अपनी बाँहों में , . दबोच लिया , इतनी कस के की जैसे कुचल ही डालेंगे।

और फिर ,. मेरे होंठ ,. चुम्मी पर चुम्मी , न मैंने गिना न उन्होंने ,.

और जब उनकी चुम्मी बंद हुयी तो पीछे रहती , मेरे होंठों ने भी हलके से , एक चुम्मी , होंठों पर नहीं उनके गोरे गाल पर जड़ दी , और धीरे से बोला , .

लालची , बेसबरे।

" मेरा मन करता है , बहुत करता है ,. . "

बस वही बात जो कल से वो बोल रहे थे ,.

" तुझे पाने को। "

सच में मेरा बालम एकदम बुद्धू था।

" आ तो गयीं हूँ आप के पास। "

मैंने हलके से बोला , और वो लड़का अलफ़ ,

' कल क्या बोला था , तुझे कसम भी दिलाई थी '

याद तो मुझे अच्छी तरह था , पर हो नहीं पारहा था मुझसे , उन्हें आप नहीं तुम बोलने का , कल बड़ी मुश्किल से मैं ये मानी थी की इस कमरे में , उन्हें मैं सिर्फ तुम बोलूंगी , . और मैंने फिर एक चुम्मी ले कर उन्हें मनाया , और बोला

" ठीक है तुम्हारे पास , अब तो हरदम हूँ ,. न "

' हरदम का मतलब ,. हर पल,मेरे पास . सच में कोमल , बहुत बहुत मन करता है "

कानों में भौरें की तरह मेरे साजन ने गुनगुनाया।

लेकिन उनका असली जिस चीज के लिए मन कर रहा था , वो काम उनकी उँगलियों ने शुरू कर दिया , और अब वो उँगलियाँ कल की तरह न घबड़ा रहीं थीं , न झिझक रही थीं।

झट से चोली के बटन उन्होंने खोल दी और फिर ब्रा की क्या बिसात थी ,.

बस उनके हाथों को मिल गया जिसके लिए वो इतने देर से बेसबरे हो रहे थे ,

अभी भी वो थोड़ा सा शरमा रहे थे , ललचाते तो बहुतथे , लेकिन उस मौके पर ,. बहुत हलके से , धीरे धीरे मेरे किशोर कड़े कच्चे उरोजों को हलके हलके छू रहे थे , .

मैंने आज न उन्हें मना किया न टोका , बल्कि एक टांग उनके ऊपर रख कर और चिपक गयी।

और बड़ी जोर से गड़ा।

खूब मोटा , लंबा तना बौराया , बेसबरा लालची ,

एकदम इन्ही की तरह जिसका हरदम मन करता रहता है , .

मैंने और कस के उन्हें भींच लिया ,.

गड़े तो गड़े ,. मेरा तो है ,.

ननदों की छेड़खानी , दुलारी की खुली खुली बातों ने ,

और जिस तरह से ननदों ने मुझसे चुदवाया खोल के कहलवाया था , .

मन तो मेरा भी करने लगा था ,

लेकिन सबसे बढ़कर जिस तरह मंझली ननद ने एकदम खुल के नन्दोई जी कैसे उनकी लेते हैं , . मैं भी तो ,.

मैं टॉपलेस हो गयी थी तो मैं उन्हें कैसे छोड़ती ,

लेकिन खुद उनके कपडे उतारने की हिम्मत तो नहीं थी , पर मैंने उनकी बनयान बस जरा सा ऊपर सरकायी , और शिकायत की , उन्ही से ,. मुझे तो टॉप लेस कर दिया और खुद ,. बस उनकी बनयान उतर गयी और मेरे जोबन अब उनके चौड़े मजबूत सीने के नीचे दबे कुचले जा रहे थे।

फर्श पर मेरी ब्रा , चोली और उनकी बनियान बिखरी ,.

उनकी ऊँगली को भी अब और हिम्मत आ गयी , मेरे जोबन पर उनके होंठों ने डाका डालना शुरू कर दिया ,

उँगलियाँ साये के नाड़े से उलझी , और पल भर में पहले मेरा साया , फिर उनका पजामा ,

न मैंने पैंटी पहनी थी न उन्होंने चड्ढी ,

खूंटा सीधे मेरे निचले होंठों पर , मेरी उँगलियों ने कुछ गलती से कुछ जानबूझ कर ,.

और मैं एकदम समझ गयी ,

मेरी मंझली ननद जिस ' खूंटे ' की इतनी तारीफ कर रही थीं ,. मेरा वाला पक्का उससे २० नहीं २५ था।

लेकिन उस उंगली छूने का असर वो एकदम फनफना गया ,

मैं अब पीठ के बल लेटी थी , और वो मेरी खुली जाँघों के बीच में ,

और जब उन्होंने तकिये के नीचे से वैसलीन की शीशी निकाल कर अपने मूसलचंद पर लगाना शुरू किया ,. पहली बार मैंने 'उसे ' दिन दहाड़े देखा ,

दुष्ट , बदमाश , . लेकिन बहुत प्यारा सा ,. और शर्म से आँखे बंद कर ली ,

जब उनकी उँगलियाँ मेरी निचले होंठों तक पहुंची , उन्हें फैलाया , वैसलीन से लिथड़ी चुपड़ी , उँगलियाँ , बहुत प्यार से सम्हाल कर , धीरे धीरे वैसलीन , . फिर मंझली ऊँगली में वैसलीन लगाकर एकदम अंदर तक गोल गोल ,. थोड़ी देर तक

मैं सिहर रही थी , सिसक रही थी ,.

बेसबरा

मैं सिहर रही थी , सिसक रही थी ,.

और कुछ देर बाद , जब वो बौराया मूसलचंद मेरी गुलाबों के होठों को फैलाकर सटा
कर ,

सच , एक बार फिर मन में डर छाने लगा , . .

कल और सुबह की ,.

अभी तक जाँघे फट रही थीं , ज़रा सा चलती थी तो 'वहां' चिलख उठती थी , खूब जोर से , किसी तरह मैं दर्द पी जाती थी , .

और अब तो मैंने देख भी लिया था , सिर्फ लम्बाई में ही मेरी नन्दोई से २५ नहीं था , मोटाई में मेरी कलाई इतना कम से कम ,.

लेकिन आज उन्होंने भी कोई जल्दी नहीं की ,

थोड़ी देर अपने ' उसको ' मेरे ' वहां ' रगड़ते रहे ,.

डर का जगह मस्ती ने ले लिया , मेरी देह मेरे काबू में नहीं रही , मैं सिसक रही थी , मचल रही थी , अब मन कर रहा था , डाल ही दो न , क्यों तड़पा रहे हो ,

डाल दिया उन्होंने , .

लेकिन बहुत सम्हालकर ,. पर तभी भी दर्द उठा , जोर का उठा ,

. मैंने कस के दोनों मुट्ठी में पलंग की चादर भींच ली , आँखे मुंद ली

पर अब उन्हें भी रोकना मुश्किल था , एक धक्का बहुत करारा ,.

दूसरा उससे भी तेज ,. और रोकते रोकते भी मेरी चीख निकल गयी , .

और उनका धक्का रुक गया ,

मैं समझ गयी , दर्द को मैं पी गयी , मुस्कराते हुए मैंने आँखे खोली ,

सच में ये लड़का कुछ जरूरत से ज्यादा ही केयरिंग था , इस बुद्धू को कौन समझाये लड़की जब करवाती है तो शुरू में चीखती चिल्लाती है ही , पर ये भी न

इनका चेहरा एक बार फिर घबड़ाया , जैसे कोई इनसे बहुत बड़ी गलती हो गयी हो ,.

पर जब उन्होंने मेरा मुस्कराता चेहरा देखा , और,. मैंने इन्हे कस के अपनी बाहों में भींच कर अपनी ओर खींचा ,. और,. मैं अपने को रोक नहीं पायी

एक छोटी सी किस्स्सी मेरे होंठों ने इनके होंठों पर ले ली ,

इससे बड़ा ग्रीन सिंग्नल इन्हे क्या मिलता , फिर न ये रुके न मैं ,

कुछ ही देर में मेरी आह सिसकियों में बदल गयी , और ये लड़का भी एकदम खुल के , पूरी ताकत से ,.

रगड़ता , दरेरता , घिसटता , फाड़ता जब वो मोटा मूसल अंदर घुसता , तो

दर्द तो बहुत होता , लेकिन दर्द से ज्यादा मज़ा आ रहा था ,

और असली ख़ुशी मुझे हो रही थी , उस लालची , बेसबरे लड़के के चेहरे पर छायी ख़ुशी को देखकर ,. . उस ख़ुशी के लिए तो मैं अपनी जान दे सकती थी।

और अब सिर्फ मूसलचंद ही नहीं , . वो तो आलमोस्ट अंदर तक धंसे ,.

लेकिन इनके हाथ , इनकी उँगलियाँ , कभी मेरे जोबन , कभी मेरे गाल , मेरे होंठ

जैसे भौंरा उड़ कर कभी इस कली पर तो कभी उस कली पर ,. उनके होंठ कभी मेरे होंठों पर तो कभी गालों पर तो कभी कड़े कड़े गोरे गुलाबी उरोजों पर ,.

कभी मेरे उरोजों को चूम चूस लेते तो कभी कच कच्चा के काट लेते ,

अब मुझे इस बात पर कोई परेशानी नहीं थी की ननदें देख कर चिढ़ाएँगी ,.

मैं भी रुक रुक कर हलके हलके उंनका साथ दे रही थी , किस कर के , . कभी हलके से से उन्हें अपनी ओर भींच के , और शर्माते झिझकते

कभी कभी मैं भी हलके से ही नीचे से धक्के लगा लेती , और बस वो आग में घी डालने को काफी था ,

फिर तो वो जोर जोर से धक्के , एकदम तूफ़ान मेल ,.

मेरी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी मैं थोड़ी देर ढीली , आँखे बंद ,. जो मजा आ रहा था बता नहीं सकती ,
एक बार दो बार ,. और तीसरी बार वो भी साथ साथ ,. देर तक ,.

उनकी रबड़ी मलाई , मैंने पूरी जाँघे फैला रखी थी , प्यासी धरती की तरह रोप रही थी

बूँद बूँद

और वो सफ़ेद रस की नदी , मेरी प्रेम गली से निकल जाँघों पर ,.

हम दोनों एक दूसरे को बाँहों में भींचे एक दसरे को वैसे ही पड़े रहे बहुत देर तक , मेरा साजन मेरे अंदर , धंसा , घुसा।

बोली मैं ही सबसे पहले ,मौन चादर की उठाकर ,

और बोली भी क्या

" तुम न , बहुत ही बुद्धू हो ,. एकदम बुद्धू हो। "

एकदम बुद्धू

" तुम न , बहुत ही बुद्धू हो ,. एकदम बुद्धू हो। "

मेरे मन में उनसे पहली मुलाकात का सीन याद आ रहा था ,

मेरी कजिन की शादी, गाँव में शादी का माहौल हो , फूल टाइम मस्ती सारी किशोरियां , हाईकॉलेज इंटरवाली , ननद भाभी की रसीली छेड़छाड़ , बरातियों के लड़कों का तो हक़ ही होता है छेड़खानी करने का , घराती के भी जवान लड़के ,

जवानी की दहलीज पर कदम रखती किशोरियों पर ,.

मैंने सबसे पहले उन्हें नोटिस किया था बारात के डांस के समय , जबरदस्त डांस , उनकी हाइट भी ५. १ १ से ज्यादा ही , खूब गोरे चिट्ठे , . उनकी भाभियाँ उन्हें खूब छेड़ रही थीं

" लाला इत्ती लड़कियां हैं यहाँ एक पसंद कर ले , साथ ले चलेंगे उठा के ,. "

दरवाजे पर जब बारात पहुंचती है तो एक रसम होती है बीड़ा मारने की , दुल्हन छत के ऊपर से दूल्हे के ऊपर बीड़ा मारती है , लोग कहते हैं की अगर निशाना सही लगा तो लड़के का जोरू का गुलाम बनना पक्का , दुल्हन के साथ उसकी बहनें ,सहेलियां दुल्हन की सहायता करने के लिए ,

लेकिन दुल्हन की बहनें भी बारात में जो लड़के , दूल्हे के भाई , दोस्त ,.

उन्हें अपना निशाना बनाती हैं ,

और साथ में खूब छेड़छाड़ , गाँव में तो द्वारचार बिना गारी के शुभ ही नहीं होता , तो दुल्हन की भौजाइयां , मौसी , चाची बुआ , और गाँव वालियां , एक से एक गारियाँ ,

मैं भी उसी में ,

लेकिन एक लड़की ने ध्यान इनकी ओर दिखलाया ,.

और मैं देखती रह गयी ,.

जो हालत चाँद और तारों की होती है वही इनकी थी बाकी लड़कों के के बीच , मोस्ट हैंडसम स्मार्ट , लेकिन, जैसे इन्हे मूठ मार गयी हो , बस मन्त्र मुग्ध ,.

बाकी बरातियों के लड़के ,लड़कियों को देख कर इशारे कर रहे , कमेंट कर रहे थे , लेकिन ये बस जैसे मन्त्रमुग्ध मुझे देख रहे थे ,

" दीदी मार न इसे , . एकदम सही चीज है "

मेरी एक छोटी कजिन ने उकसाया ,

लेकिन मैं भी उसी तरह , हाथ में बीड़ा लिए ,.

आली मैं हार गयी नयनों के खेल में ,.

पर मेरी एक दो सहेलियों ने उकसाया और मैंने अपने हाथ का बीड़ा सीधे ,.

सीधे उनके दिल पर जा कर लगा ,.

बाकी लड़के बीड़ा लगने पर उलटे उस लड़की के ऊपर उसे फेंकने की कोशिश करते ,

कुछ उलटे सीधे कमेंट पास करते , पर इन्होने सम्हाल कर अपनी जेब में रख बस देखते रहे ,

मेरी कजिन, दुल्हन नीचे उतर कर जा रही थी ,

साथ में बाकी लड़कियां ,.

और मैं वहीँ छत पर, उसे मुझे देखते हुए देख रही थी ,

वो तो मेरी एक छोटी कजिन मुंझे खींच कर ,. नीचे ले गयी।

और उसी रात , कम से कम दस बार उसी तरह , वो जयमाल हो , खाने का टाइम हो , बस मुझे देखते रहते टुकुर टुकुर ,. और मैं भी ,. मुश्किल से नयन पाश में ,. .

सभी मेरी सहेलियों कजिन्स को मालूम पड़ गया था , ये लड़का ,.

लेकिन बात देखने से आगे नहीं बढ़ रही थी ,

इससे आधी मुलाकात में कित्ती लड़कियां बारात के लड़कों के साथ , . एक दो बार देखा देखी ,. फिर नाम वाम , और मौका देख कर मिलने की सेटिंग ,.

एक दो बार लड़की रस्मी तौर पर ना नुकुर करती लेकिन तीसरी बार शर्तिया पट जाती ,

फिर जगह की सेटिंग ,.

लेकिन इन्होने तो ,. बोला तक नहीं कुछ ,. खाने के समय ये अकेले दिखे ,

लड़कियां अपने अपने वाले के साथ ,. मैं खुल कर पूछ ही लिया ,

लेकिन ये एकदम घबड़ा गए ,. नहीं नहीं ,. . चार बार बोला होगा उन्होंने।

लेकिन मैं इतनी आसानी सेछोड़ने वाली नहीं थी , इन बातों में लड़कियां लड़कों से कोसों आगे रहती हैं और मैं उन लड़कियों से कोसों आगे थी। बस बरातियों में आयी एक लड़की को मैंने पटाया , उसने नाम पता , लम्बाई , चौड़ाई से लेकर पूरी हिस्ट्री जियोग्राफी ,

लेकिन ये भी बता दिया की वो बहुत शर्मीले हैं , लड़कियों को लेकर तो बहुत ज्यादा ,. पर ये बात तो मुझसे ज्यादा कौन जानता था , मेरे साथ की , बल्कि मुझसे छोटी तीन लड़कियों की 'सेटिंग ' पक्की हो गयी थी , बारात के लड़कों से

और यहां नैन लड़ जहिये से बात आगे नहीं बढ़ रही थी।

मैंने बताया था न उस समय मैं इंटर में थी , उमर बस वही जो इंटर की लड़कियों की होती है , पर कुछ बाते मेरी अलग थी , मेरे क्लास की जो सबसे लम्बी लड़की थी मैं उससे भी सवा दो इंच ज्यादा लम्बी थी ,

एकदम सुरु के पेड़ की तरह छरहरी , सिवाय दो जगहों पर , आगे और पीछे।

उभार भी क्लास की सबसे गदरायी लड़की से दो नंबर ज्यादा ही थे , . पर चेहरा , कभी कभी लगता था , जैसे दूध के दांत न टूटे हों , . रंग और उभार , सिर्फ मेरे ही नहीं मेरी दोनों छोटी बहनों के भी एकदम मम्मी पर गए थे , गोरा चम्पई रंग और उभार ,. . जोरदार।

भाभियाँ मेरे जोबन को लेकर मुझे खूब छेड़ती भी थीं।

तो जब रात को शादी का समय था , मैं जान बूझ कर खूब टाइट सूट पहन कर कर बैठी थी , मुझे विश्वास था , वो आएगा।

और वो आया , सीधे दूल्हे के बगल में एकदम सामने ,.

और एक बार फिर टकटकी लगा कर मुझे देखता , मेरी चुन्नी जो थोड़ा बहुत उभारों पर थी , एक बदमाश भाभी ने एकदम मेरे गले से चिपका दी और बोलीं ,

यार इत्ते मस्त मस्त लौंडे हैं सामने चला अपनी दुनाली। पर उसको एकटक मेरी ओर देखते हुए दूसरी भौजाई ने नोटिस किया तो छेड़ते हुए बोलीं ,

" यार कोमलिया , तेरी दुनाली तो कस के चल गयी , ये बेचारा तो गया। "

मुझे तो मालूम था जब से मैंने बीड़ा उसे मारा था तभी से उस बेचारे का काम तमाम हो गया था।

मैं ढोलक सम्हाले थी , . और गाँव की शादी हो तो गारियाँ न हो , . और वो भी खुल्लम खुल्ला वाली ,

कुछ देर के बाद मेरी एक भौजाई बोली , सुन कोमलिया , अरे वो जरा अपने वाले को तो सुना दे ,.

मैं क्यों मौक़ा चुकती , मैंने उसका नाम तो मालूम ही कर लिया था , बस चालू हो गयी

मंडप की रात

तो जब रात को शादी का समय था , मैं जान बूझ कर खूब टाइट सूट पहन कर कर बैठी थी , मुझे विश्वास था , वो आएगा।

और वो आया , सीधे दूल्हे के बगल में एकदम सामने ,. और एक बार फिर टकटकी लगा कर मुझे देखता ,

मेरी चुन्नी जो थोड़ा बहुत उभारों पर थी , एक बदमाश भाभी ने एकदम मेरे गले से चिपका दी और बोलीं ,

"यार इत्ते मस्त मस्त लौंडे हैं सामने चला अपनी दुनाली।"

पर उसको एकटक मेरी ओर देखते हुए दूसरी भौजाई ने नोटिस किया तो छेड़ते हुए बोलीं ,

" यार कोमलिया , तेरी दुनाली तो कस के चल गयी , ये बेचारा तो गया। "

मुझे तो मालूम था जब से मैंने बीड़ा उसे मारा था तभी से उस बेचारे का काम तमाम हो गया था।

मैं ढोलक सम्हाले थी , . और गाँव की शादी हो तो गारियाँ न हो , . और वो भी खुल्लम खुल्ला वाली ,

कुछ देर के बाद मेरी एक भौजाई बोली , सुन कोमलिया , अरे वो जरा अपने वाले को तो सुना दे ,. मैं क्यों मौक़ा चुकती , मैंने उसका नाम तो मालूम ही कर लिया था , बस चालू हो गयी ,
आनंद की बहना बिकै कोई ले लो , …

इकन्नी में ले लो , दुअन्नी में ले लो ,
अरे जिया जर जाए जाए चवन्नी में ले लो ,. .

और पहली बार मैंने उन्हें मुस्कराते देखा, .

फिर तो मैंने एक और.

बिन बदरा के बिजुरिया कहाँ चमकी,

आनंद के बहिनी के गाल चमके,
चोली में दोनों अनार झलके ,

जांघिया के बिचवा दरार झलके ,

लेकिन दो चार के बाद, कोई बारात की लड़की बोली , इन्ही से , .
‘ क्या भइया आप वाली तो एकदम बिना मिर्च के ,’

( मेरी शादी के बाद मुझे पता चला नाम उसका , मिली इनकी चचेरी बहन )

और मेरी एक भौजाई आ गयीं मेरा साथ देने, .

फिर तो असली मिर्च वाली ,.

' चल मेरे घोड़े चने के खेत में , चने के खेत में बोया था गन्ना ,

आंनद की बहना को ले गया बभना , दबावै दोनों जोबना , चने के खेत में ,.

चने के खेत में बोई थी राई , आनंद की बहना की हुयी चुदाई , चने के खेत में

चने के खेत में पड़ा था रोड़ा , आनंद की बहना को ले गया घोडा ,

घोंट रही लौंडा चने के खेत में ,. "

और वो भी नान स्टाप ,

ऊँचे चबूतरा पे बैठे आंनद राजा करें अपनी बहिनी का मोल ,
अरे बड़की का मांगे पांच रुपैय्या , अरे छुटकी हमार अनमोल।

रात भर ,

और उनकी निगाह बस मेरे ऊपर ,.

मेरे गाने , इनकी भीगी भीगी मुस्कान , नीम निगाहें ,

कभी खुल कर कभी छिप छिप कर चलता चार आँखों का खेल

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारे जाने है ,

जाने न जाने गुल ही न जाने , बाग़ तो सारा जाने है।

सुबह सुबह जब बाराती वापस चले गए , दुलहा कोहबर में ( तीन दिन की बारात थी , विदाई अगले दिन होनी थी ) और मुंह अँधेरे ,

मैं निकली किसी काम के लिए घर से बाहर तो ,.

वो ,.

अभी अँधेरा छाया ही था ,. मेरा दिल धक् से रहा गया ,

मुझे लगा की मैंने इन्हे इतनी खुल के कहीं बुरा तो नहीं लगा ,.

या क्या पता अब इन्होने हिम्मत जुटा ली हो और ,.

ऐसी बात नहीं की इसके पहले लड़के मेरे पीछे नहीं पड़े थे , .

लेकिन मैंने तय कर लिया था मैं लिफ्ट उसी को दूंगी , जिस को देख के मेरे दिल में घंटी बजे ,. .

और कल जब बीड़ा मारते समय इस लड़के को देखा था तब से ,. घंटी नहीं , घंटा बज रहा था ,. और पहली बार लग रहा था ,. आज ये कुछ भी कहेगा , . .

कुछ भी मांगेगा तो मैं मना नहीं करुँगी ,. कुछ भी मतलब कुछ भी ,.

मैंने बहुत लड़कों को लड़कियों के पीछे पड़ते देखा था , लेकिन इतना सीधा शर्मीला ,.

और माँगा भी क्या , बहुत हलके से बोला वो , इधर उधर देख कर , बहुत हलके से ,.

अगर आप बुरा न माने , . आप का नाम ,.

गुस्सा भी आया और हंसी भी , लेकिन हंसी रोक कर मुस्कराकर उसे छेड़ते मैं बोली ,

" अबतक आप को तो पता ही चल गया होगा , . मैंने तो आप का नाम पता कर लिया , और आपने मण्डप में सुना भी , .

तो बस आप भी पता कर लीजिए मेरा नाम ,. . और नहीं मालूम कर पाइयेगा शाम तक ,

तो बस शाम को मैं बता दूंगी ,. पक्का प्रॉमिस ,. "

शाम को वो मिला ,​
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