Episode 09


" नहीं तुम समझती नहीं हो ,. तुम गुस्सा हो जाओगी , तुम्हे बहुत बुरा लगेगा। "

वो डर कर सहमते बोले।

अब तो मेरा शक्क और पक्का होने लगा , जरूर कोई लड़की है , मैं घबड़ा रही थी , .

कौन होगी ,.

कोई इनकी रिलेटिव , कजिन ,. साथ पढ़ने वाली।

मेरे मुंह से निकल गया ,

" कोई लड़की है क्या "

बहुत धीरे से डरते सहमते ,

और मुझसे भी ज्यादा डरते सहमते , उन्होंने हाँ में सर हिलाया और बड़ी मुश्किल से उनके मुंह से आवाज निकली ,

" मैं कह रहा था न तुम गुस्सा हो जाओगी , मेरे ऊपर बहुत नाराज होओगी ,. . लेकिन ,. "

मेरी आवाज नहीं निकल पा रही थी , तब भी मैंने जिद कर के बोला ,

" नहीं गुस्सा नहीं होउंगी , बस एक पेज फर्स्ट पेज ,. "

किसी तरह मेरी आवाज निकल पा रही थी और फिर मैंने लड़कियों का आखिरी हथियार इस्तेमाल किया ,

" प्लीज मेरी क़सम ,. "

और उनकी पकड़ मेरी कलाई पर थोड़ी ढीली हई तो मैंने गद्दे के अंदर हाथ डाला , . पर उन्होंने खुद निकाल कर ,

मेरा शक ठीक था , एक डायरी थी खूब चौड़ी सी , बड़ी।

आनेवाले तूफ़ान के डर से उन्होंने एकदम सहम कर आँख बंद कर लिया , . चारों ओर एकदम सन्नाटा था , . मैं अपने दिल की धड़कन सुन सकती थी ,

मैंने बड़ी हिम्मत कर पहला पन्ना , खोला

और मुझे बहुत जोर का गुस्सा लगा , बस धड़कन नहीं रुकी ,

सच में एक लड़की थी ,. १६ -१७ साल की ,.

एक लड़की

मैंने बड़ी हिम्मत कर पहला पन्ना , खोला

और मुझे बहुत जोर का गुस्सा लगा , बस धड़कन नहीं रुकी ,

सच में एक लड़की थी ,. १६ -१७ साल की ,.

लेकिन , और कौन?

मैं।

पहले पन्ने पर ही ,. .

एक खूब सुन्दर डिजाइन और उसके बीच , हमारे उनके पहले मिलन की निशानी ,. जो बीड़ा मैंने उन्हें मारा था वही , इत्ता सम्हाल के उन्होंने रखा था , एक ट्रांसपरेंट पैकेट में , लैमिन्टेड ,.

धड़कते दिल से मैंने अगला पन्ना खोला ,और धक् से रह गयी ,

एक स्केच , . मेरा हूबहू , . लेकिन मैं इस स्केच में इतनी प्यारी लग रही थी , जितना जिंदगी में कभी नहीं लगी रही होउंगी।

मुझसे मेरी बहनों ने बताया था की उनके जीजू ,. लेकिन मैं सिर्फ चिढ़ाती थी , अरे पेन्सिल से एक दो लाइन खींच लेते होंगे ,

मेरे बीड़ा मारते समय का स्केच , . मेरे चेहरे का एक एक भाव , झुकी हुई मैं ,. .

मेरा गुस्सा रुक नहीं रहा था , अपने पर ,. मैंने सोचा कैसे ,. मेरे अलावा ,

पर गुस्सा इनपर भी आ रहा था , .

चोर बदमाश डाकू

अगले पन्नों पर ,. स्क्रैप बुक की तरह थी डायरी ,.

मेरी हाईकॉलेज की कालेज मैगजीन में मेरी एक ग्रुप फोटो थी , वो ,.

क्लास आठ में मेरा एक लेख कॉलेज की मैगजीन में छपा था , वो

पिछले साल रीजनल रैली में बैडमिंटन और स्वीमिंग में मुझे मेडल मिला था , उस की फोटो ,.

मैंने उन की ओर देखा ,

मारे डर के घबड़ाहट के उनकी आँखे अभी भी बंद थी जैसे उनकी कोई बहुत बड़ी चोरी पकड़ी गयी हो।

और साथ साथ हर दो चार पेज के बाद शादी में जहाँ हम पहली बार मिले थे , .

जब मैं चुन चुन के उनका नाम ले के गारी गा रही थी , ढोलक बजा रही थी ,
पहली बार बड़ी हिम्मत कर के उन्होंने मेरा नाम पूछा था , .

और शाम को मेरा नाम बताया था और मैंने जोर से उन्हें डांटा था , कोमल जी नहीं कोमल

और फोटुएं भी ,

मैंने उनके हाथ में मोबाइल तो नहीं देखा था पर उनकी कजिन्स , फ्रेंड्स ,. बीसों फोटो ,. .

मेरी बचपन की फोटुएं , .

गुस्स्से की तो बात ही थी , मेरी दोनों बहने अपने जीजू से मिल गयी थीं , वरना ये सब फोटुएं उन्हें कहाँ मिलती ,

लेकिन इस लड़के ने कितनी मेहनत की होगी ,.

और उसके बाद कवितायें ,. रोज के हिसाब से ,. .

और मेरे बालों से लेकर पैरों तक कोई अंग बचा नहीं था ,. उनका जो सबसे फेवरिट पार्ट , जिसे देख कर वो बेचारा हदम ललचाता रहता था , मेरे किशोर उरोज , . दर्जन भर , . देखने में ये एकदम सीधे लगते थे , लेकिन सब की सब ऐसी एरोटिक,

वो बोला-

“रोज तुम मुझे सपने में आकर तंग करती थी। इसलिये जैसा तुम दिखती थी, नख सिख वर्णन, सारे अंगों के…”

मैं प्यार से लताड़ के बोली-

“क्या सारे अंगों के?”

वो हँसकर बोला-

“हाँ पढ़ो तो… सारे अंगों के। मुझसे क्या छुपाव, दुराव…”

कवितायें

और उसके बाद कवितायें ,. रोज के हिसाब से ,. .

और मेरे बालों से लेकर पैरों तक कोई अंग बचा नहीं था ,.

उनका जो सबसे फेवरिट पार्ट , जिसे देख कर वो बेचारा हदम ललचाता रहता था , मेरे किशोर उरोज , . दर्जन भर , .

देखने में ये एकदम सीधे लगते थे , लेकिन सब की सब ऐसी एरोटिक,

वो बोला-

“रोज तुम मुझे सपने में आकर तंग करती थी। इसलिये जैसा तुम दिखती थी, नख सिख वर्णन, सारे अंगों के…”

मैं प्यार से लताड़ के बोली- “क्या सारे अंगों के?”

वो हँसकर बोला- “हाँ पढ़ो तो… सारे अंगों के। मुझसे क्या छुपाव, दुराव…”

मैंने पढ़ना शुरू किया। पहली कविता थी ‘केश’

उन्मुक्त कर दो केश, मत बांधो इन्हें,
ये भ्रमर से डोलते मुख पर तुम्हारे,
चांद की जैसे नजर कोई उतारे।
दे रहे संदेश, मत बांधो इन्हें,
खा रहे हैं खम दमकते भाल पे,
छोड़ दो इनको इन्हीं के हाल पे,
दे रहे आदेश मत बांधो इन्हें।

और उसके बाद आँखों और फिर होंठों

और उसके साथ-साथ वो और ज्यादा रसिक होते जा रहे थे।

मीन सी, कानों से बातें करती, आँखें, ढीठ दीठ, लजायी सकुचायी,

मेरे सपने जहां जाकर पल भर चुम्बनों के स्वादों से लदी थकी पलकें,

कटार सी तिरछी भौंहें,

और सुधा के सदन, मधुर रस मयी अधर, प्रतीक्षारत मेरे अधर

जिनके स्वाद के, स्नेह के लेकिन सबसे ज्यादा कवितायें जिन पे थीं वे थे मेरे उरोज।

पूरी 7 और एक से एक और सिर्फ उनपर ही नहीं मेरे निपल्स के बारे में,
उसके आस-पास के रंग के बारे में-

“ये तेरे यौवन के रस कलश, ये किशोर उभार,
खोल दो घट पी लेने दो मेरे अतृप्त नयन, प्यासे अधर…”
“व्याकुल हैं मेरे कर युगल पाने को, पागल है मेरा मन,
ये आंनद शिखर, उन पे शोभित कलश,
तन भी तेरी देह लता के ये फल चखने को…”

मेरा तो मन खराब हो गया इन कविताओं को पढ़ के और मैंने कई पन्ने पलट दिये।

अब नितम्बों का वणर्न था-

“कामदेव के उल्टे मृदंग, भारी घने नितंब…”

कई इंग्लिश में भी थीं।

तब तो वो बोले- “पन्ने पीछे पलटो- ‘वो’ तो तुमने छोड़ ही दिया जिसके बारे में पूछ रही थी…”
और वास्तव में नितंब के पहले, नाभी के बाद थी वो- ‘रस कूप, मदन स्थान’

करती रहोगी तुम नहीं नहीं, शर्माती,
इठलाती और बल पूवर्क खोल दूंगा मैं हटाकर लाज के सारे पहरे, पर्दे,
छिपी रहती होगी जो किरणों से भी,
रस कूप, गुलाबी पंखुड़ियों से बंद आसव का वो प्याला।

पढ़ते-पढ़ते मेरी आँखें मस्ती से मुंदी जा रहीं थी।

मैं सोच भी नहीं सकती थी कि शब्द भी इतने रसीले हो सकते हैं।

मैं वहां भी गीली हो रही थी, मेरे रस कूप एक बार फिर रस से छलक रहे थे।

और जहां तक उनकी हालत थी, मुझे तो लगने लगा था की जब तक मैं उनके पास रहती थी, उनका तो ‘वो’ खड़ा ही रहता था।

मैंने उनसे कहा-

“आपने ने जो मेरे बारे में… वो मैं आपके मुँह से सुनना चाहती हूँ…”

उन्होंने डायरी के पन्ने खोले तो शरारत से मैंने उसे बंद कर दिया और बोली-

“ऐसे थोड़ी, तुरंत बना के आशु कवि ऐसे जो भी आपके मन में आये…”

तभी मुझे ध्यान आया, पढ़ने के बहाने उन्होंने लाईट जला दी थी,

और निवर्सना मैं, मेरा सब कुछ… शर्माकर मैंने उनकी आँखें अपनी हथेली बंद कर दीं।

वो बोले- “अरे देखूंगा नहीं, तो बोलूंगा कैसे?”

मैंने उनका हाथ अपने सीने पे रखकर कहा- “उंगलियों से देख के…”

फिर मैंने कहा- “मुझे अपनी प्रशंसा सुनना अच्छा लगता है और वो भी आपके मुँह से…”

वो बोलने लगे-

तेरे ये मदभरे, मतवाले, रस कलश,
किशोर यौवन के उभार, रूप के शिखर,
डोम्स आफ ज्वाय, जवानी की जुन्हाई से नहाये जोबन,
प्यासे हैं मेरे अधर, इनका रस पाने को,
छू लेने को चख लेने को, छक लेने को सुधा रस।

और मेरी आँखें भी मस्ती में बंद हो गईं।

मैंने खुद उनके प्यासे अधरों को खींचकर अपने जोबन के उभारों पे लगा दिया।

और अब उनकी उंगलियां भी सरक के और नीचे सीधे मेरे रस कूप पे

और वो बोले जा रहे थे-

तेरे ये भीगे गुलाबी प्रेम के स्वाद को चखने को बैचेन होंठ,
थरथराते, लजाते, ये गुलाबी पंखुड़ियां किशोर खिलने को बेताब ये कली
(उनकी उंगलियां अब मेरे भगोष्ठों का फैलाकर अंदर घुस चुकी थीं),
ये संकरी प्रेम-गली, मेरे चुम्बनों के स्वाद से सजी रस से पगी,

स्वागत करने को बेताब, भींच लेने को, कस लेने को, सिकोड़ लेने को,
अपनी बांहो में मेरा मिलन को उत्सुक बेचैन उत्थीत काम-दंड।

हम दोनों रस से पगे बेताब हो रहे थे।

हमारी शादी के फोटो और स्केच ,. . और सबसे आखिरी पन्ने पर ,

जो मेरी चूड़ियां टूटी थीं , पहले मिलन में , जो गुलाब की , चमेली की पंखुड़ियां ,

इन्ही सब को जोड़ के क्या जबरदस्त कोलाज़ इन्होने बनाया था

और वो बात लिख दी ,

जिसे कहने की आज तक ये लड़का हिम्मत नहीं जुटा पाया ,

आई लव यू।

अभी भी मारे डर के उनकी आँखे बंद थी ,

' सजा तो तुम्हे मिलेगी , चोर डाकू , बदमाश। "

मैं बोली और अब वो थोड़ा सा मुस्कराये।

और उन मुस्कराते होंठों पर होंठ रख के कस के मैंने चुम्मी ले ली।

सजा

" अभी सजा की शुरुआत भी नहीं हुयी है , . "

वो रजाई में सिर्फ एक बनयाइंन और शॉर्ट्स में थे ,.

( मैं भी तो सिर्फ एक छोटी सी नाइटी और थांग में थी , )

मैंने दोनों हाथ से पकड़ के उनकी बनयान उतार के नीचे फर्श पर फेंक दी ,

ये कमरा मेरा ,

ये लड़का मेरा

मेरी चाहे जो मर्जी हो करूँ ,.

और मेरा सारा गुस्सा , फ्रस्ट्रेशन , चुम्मी बन के मेरे होंठ से सीधे उनके गालों पर ,

एक दो नहीं बीसों , और फिर मेरे बोल फूटे ,

चोर बदमाश डाकू ,.

चोर तो ये थे ही , चितचोर , मुझसे ही मुझे चुरा लिया और इससे भी संतोष नहीं हुआ , . मेरी सारी फोटुएं ,

मैंने स्क्रैप बुक खोल के , लास्ट पेज खोल दिया ,

जिसपर कल रात की टूटी चूड़ियां, गुलाब की कलियाँ ,

हम लोगों की रति क्रीड़ा से दबी कुचली मसली चमेली के फूल से मिला के उन्होंने लिखा था

आई लव यू ,.

मैं सीधे उनके खुले चौड़े सीने पर लेट गयी और और उसे दिखाते हुए उन्हें, मैं बोली ,

" चलो तेरी पहली सजा , . मुझे लगा था की मेरी शादी एक पढ़े लिखे लड़के से हुयी है , . तो चलो इसे पढ़ कर दिखाओ "

कुछ लजाते शर्माते झिझकते वो बोले , . . " आई लव . . यू। "

" उन्हह ऐसे नहीं , खूब जोर से ,. "

मैं इतने आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी , और अब उनकी थोड़ी हिम्मत खुली , . .

बोले वो और साथ में मैं भी ,

" दुष्ट चोर , डाकू , तेरी पहली सजा यही ,. इनके सीने पर ऊँगली से सहलाते बोली मैं ,

" रोज रोज कम से कम १०० बार गुड मॉर्निंग के साथ शुरू कर , . ( और मैं जानती थी गुड नाइट तो होनी नहीं है ) . . समझ लो , अगर किसी दिन चूके ,.

उनकी हिम्मत थी ,. कम से कम बीस पच्चीस बार ,. उन्होंने बोला आई लव यू , तब मैंने रोका , .

चलो आज के लिए बहुत है लेकिन कल सुबह से ,. . अगर एक भी कम हुआ न तो दस बार फिर से,.

और मैंने उनकी अगली सजा सुनाई ,.

जो मेरा नखशिख वर्णन लिखा था ,

मैंने पहले आखों वाली पोएम खोली , और उसके ख़त्म होते ही , मैंने हलके से बोला किस ,. उनकी पोएम को किस करते हुए इशारा किया और अगर वो न समझते तो भी ,
. हाथ थे न ,. . मैं समझ गयी थी , ऐसे दीवाने बुद्धू के लिए ,. बिना जबरदस्ती किये ,. उनके सर को दोनों हाथों से पकड़ के सीधे मेरी पलकों पर ,.

अगली कविता मेरे गालों पर थी ,

और अबकी हल्का सा जोर मुझे देना पड़ा , लेकिन मेरे होंठो पर जो कविता उन्होंने लिखी थी ( साथ में हॉट हॉट मेरे होंठों का खूब मीठा सा स्केच भी ),. .

इस बार खुद उनके नदीदे होंठ , मेरे होंठ ,.

और मेरे होंठ अबकी होंठों की कुश्ती में भारी पड़ रहे थे

पर मेरे किशोर जोबन पर लिखी उनकी कविता को पढ़ने में वो बहुत झेंप रहे थे , पर मैं उन्हें उकसा रही थी , मेरे जोबन भी , . .

और उनके होंठ जब नीचे उतर रहे थे , मेरी नाइटी की गांठे खुल गयी , मेरे कोमल कमल युग्म छलक कर बाहर आगये थे और उन्हें पढ़ना था तो मैंने स्क्रैप बुक देते हुए बेड के ऊपर की लाइट भी जला दी थी ,

देख ले ये लड़का इत्ती देर से ललचा रहा था ,

और कविता तो उन्होंने धीमे से बहुत झिझकते पढ़ी लेकिन उनके होंठ ,

उँगलियाँ एकदम डाकू ,.

लूट लिया इस टीनेजर के जोबन को।

पर मैं भी , .

क्या सिर्फ वो ही चुम्मा चाटी कर सकते थे , आज मैं भी इस खेल में बराबर की खिलाड़िन बनने की कोशिश कर रही थी ,

और जैसे ही उनके होंठो ने मेरी देह को छोड़ा , मेरे होंठ उस चोर डाकू बदमाश लड़के के ऊपर ,. .

ये तीसरी सजा है , तुम्हारी ,.

अब तो पूरी जिंदगी मैं ही फैसला सुनाने वाली थी , इस लड़के को ,.

और उसे चुपचाप बस सजा सुननी थी , भुगतनी थी ,.

आखिर उसने मुझसे मुझी को चुरा लिया था , उसपर उलटा इल्जाम मेरे माथे पर ,

एक सीधी साधी गाँव की किशोरी पर , की मैंने उसका दिल चुरा लिया है ,.

और आज मेरे होंठ न शर्मा रहे थे न झिझक रहे थे ,

न मैंने उनकी ओर देखा लाइट बंद करने को ,

सबसे पहली सजा मैंने दी उनकी बदमाश आँखों को , उसी ने तो डाका डाला था मेरे ऊपर ,. और अभी भी बस उनके दीठ की एक छुअन ,. .

और मैं सिहर उठती थी , उनचासों पवन मदन के एक साथ चलने लगते थे ,

और मैं मन तो कब का हार गयी थी , तन भी हार जाती थी ,

बस मेरे होंठों ने पलकों के दरवाजे को बंद कर दिया , और चुंबन की सांकल भी लगा दी , खटकाते रहो अब , .

और मेरी हिम्मत भी बढ़ गयी ,

मेरे होंठ भी अब बिना बोले बतियाने की कला उन्ही से सीख गए थे , बस उन्होंने बरज दिया था उन्हें ,.

अब सजनी का नंबर

आँखों से उतर कर , और कहाँ ,. उनके होंठों पर , .

बहुत रस लूटा था उन्होने मेरा ,. और जितना रस वो लूटते थे मेरी देह का उसका दूना रस छलकने लगता था मेरी देह में ,.

मैं भोरी थी उमर की बारी थी ,

लेकिन उस नवल रसिया ने एक रात में ही बहुत कुछ सिखा दिया था , पहले तो मेरे होंठ झिझक रहे थे , बस हलके से छू लेते थे , .

लेकिन उनके होंठ भी तो अब मेरे थे ,.

मैं क्यों डरती ,.

कल से जैसे होंठ उनके मेरे होंठों को कचकचा के काट रहे थे , चूस रहे थे ,.

आज मैंने भी वैसे ही ,.

वो तड़प रहे थे सिसक रहे थे ,. .

लेकिन यही हालत तो मेरी भी होती थी ,
जवानी की गरम आग में जलते धधकते तवे पर जैसे कोई दो बूँद पानी की छिड़क दे , . उनका हर स्पर्श ,जो मेरी हालत कर देता था बस वही हाल उनकी हो रही थी ,. आज ,

और उनके होंठों का साथ देने के लिए उनकी उँगलियाँ , .

और सबसे दुष्ट बदमाश वो मोटा मूसलचंद ,. तो आज मेरे होंठों का साथ मेरे बालापन के जोबन दे रहे थे , हलके हलके उनकी छाती पर रगड़ कर , ललचा कर ,.

और मेरे होंठों का भी तो असली टारगेट वही था ,

उनकी चौड़ी छाती जिसके अंदर अब उनके दिल के साथ मेरा भी दिल था , . .

उस चोर ने चुरा के बहुत सम्हाल कर रखा था ,

बीसों चुम्बन ,. और चुम्बन यात्रा वहां रुकी पर ठहरी नहीं ,.

सरक कर उनकी नाभि के चारों ओर चक्कर काट कर , .

चुम्बन यात्रा

और चुम्बन यात्रा वहां रुकी पर ठहरी नहीं ,.

सरक कर उनकी नाभि के चारों ओर चक्कर काट कर , .

मैं नयी थी , उमर की बारी थी , नवल किशोरी ,. लेकिन अपनी भाभी की पाठशाला की पक्की शिष्या , .

और शादी तय होने के बाद के बाद तो इनकी सलहज ने एक्स्ट्रा क्लास ले ले कर ,. .

काम क्रीड़ा का कोई पाठ नहीं होगा जो आठ दस बार न पढ़ाया होगा , . .

और मेरी मम्मी भी , इनकी सास भी ,
मेरी माँ के साथ मेरी सबसे अच्छी सहेली भी थी , उन्होंने भी ,.

' वो ' क़ुतुबमीनार की तरह सर उठाये खड़ा था ,

एकदम इन्ही की तरह बेसबरा , लालची , भूखा , नदीदा ,.

मैंने हिम्मत कर के उसे देखा , भर आंख ,.

मेरी गुरुआनी , मेरी रीतू भाभी , इनकी सलहज ने सुबह दर्जन भर सवाल किया था ,

कितना लंबा है , कितना मोटा है , पूरा घोंटा की नहीं , नापा क्यों नहीं , मुट्ठी में पकड़ा की नहीं , चूमा की नहीं ,.

और उनसे भी बढ़कर मेरी मंझली ननद ने क्या खुल के नन्दोई के ,
उसका क्या गुण गान किया , लम्बाई , मोटाई , सुपाड़ा कितना मोटा है ,. .

कितना कड़ा है , कितनी देर तक ,.

मेरा अंदाज उस समय एकदम सही था जब मैं अब खुल के देख रहे थे ,
ननद जी वाले से मेरा वाला २० नहीं पूरा २५ है , .

और मैंने पकड़ लिया , पहले हलके से फिर कस के , .

कल रात अभी मुश्किल से चौबीस घंटे हुए थे जब मेरी फाड़ के रख दी थी इसने ,
खून खच्चर ,. सब कुछ ,

और कुछ लजाते शर्माते ,. मैंने ऊँगली से ही नाप लिया ,

ये ट्रिक भी भौजी ने सिखाई थी , ऊँगली से लम्बाई , मोटाई नापने की ,

फिर मैथ मेरी अच्छी थी , हाईकॉलेज में १०० में १०० ,

मैंने गुणा भाग किया ,. और भाभी के लिए जवाब तैयार हो गया। . . पौने आठ से आठ के बीच ,. ( हालाँकि इनकी सलहज को इससे संतोष नहीं हुआ , . जब होली में ये गए तो इनकी सलहज ने इनकी सबसे छोटी साली से स्केल से नपवाया , . पूरे आठ इंच का निकला ),
मोटाई एकदम मेरी कलाई के बराबर ,. .
मैंने अपनी चूड़ी के नंबर से अंदाज लगा लिया ,. . ढाई इंच से थोड़ा ज्यादा ,.

लेकिन मेरे होंठ भी ललचा रहे थे।

और ऊपर से जो आज मंझली ननद ने कहा था ,

किस तरह सुहागरात की अगली रात नन्दोई जी , उनके लाख मना करने पर चमचम चूसा कर के ही माने ,. और वो और दुलारी दोनों मेरे पीछे ,.

भाभी आज की रात भइया बिना चुसाये छोड़ेंगे नहीं ,.

सच में बहुत मस्त लग रहा था , खूब कड़ा , खड़ा प्यारा मीठा मीठा ,.

चूंसने की हिम्मत तो नहीं पड़ी मेरी , पर मेरी लालची जीभ उसके बेस पर बस जैसे गलती से एक दो बार टच कर गयी , उतना काफी था।

बस मस्ती से काँप गए ,. मैं जान रही थी मन उनका खूब कर रहा है ,

लेकिन वो शर्मीले , लजीले ,. मुझसे न बोल पाएंगे , न अपने दिल की कह पाएंगे

पर मैं थी न उनके दिल की हर धड़कन समझने सुनने वाली ,.

बिना कहे उनके , उनके मन की हर बात मेरे मन में सीधे उतर जाती थी ,.

और जो मैं उसे मुठिया रही थी , एक झटके में उनका मोटा सुपाड़ा , खूब लाल बड़ा मोटा , एकदम खुल गया था , .

पता नहीं क्या हो गया मुझे , मैं खुद ,. मेरी जीभ की टिप बस निकल कर उसे जस्ट टच कर गयी ,

शायद इतना विस्तार से मंझली ननद ने जो अपनी पहली चुस्सी का जिक्र किया था की

मैं अपने को रोक नहीं पायी ,. .

लेकिन एक बार फिर , लीची ऐसे मोटे मस्त सुपाड़े को देखकर मेरा मन ,
अबकी मेरी जीभ ने दो चार बार सपड़ सपड़ , बस हलके से चाटा ,

लेकिन जबतक मैं अपने होंठो को हटा पाती ,

वो अपने को रोक नहीं पाए ,.
और यही तो मैं चाहती थी , वो अपने को रोक न पाएं ,.

कस के अपने दोनों हाथों को मेरे सर पे जोर से ,.

लेकिन उनकी सलहज की सीख , मेरी रीतू भाभी ने कम से कम दस बार इस बारे में सिखाया पढ़ाया था ,.

मैंने खूब बड़ा सा मुंह खोल लिया , जैसे कोई बड़ा सा लड्डू घोंट रही होंऊ ,

पर सबसे बड़ी बात जो इनकी सलहज ने सिखाया था , और मुझसे पूछ पूछ कर चेक किया था की मुझे याद है की नहीं , . होंठ सीधे दांत के ऊपर , एकदम दांतों को ढंके ,. सिर्फ होंठ ही मेरे उनके 'उससे ' लगें ,. और कैसे हलके हलके होंठों से दबाना है ,

लेकिन जब उन्होंने कस के दबाया , धीरे धीरे कर के मेरे होंठों के बीच सुपाड़ा ,.

और मैं उनकी सलहज की बाकी सब पढ़ाई भूल गयी ,

कित्ता बड़ा मोटा ,. और स्वाद भी ,.

वो अभी भी पुश कर रहे थे , धीरे धीरे पूरा मोटा सुपाड़ा मेरे मुंह में ,.

और तब मुझे याद आया

भाभी की सीख , होंठों से हलके हलके दबाने की बात ,

जीभ से सहलाते हुए चाटने की बात ,.

और उस सीख ने और मुसीबत में डाल दिया मुझे ,. मेरे होंठों और जीभ का असर

उन्होंने और जोर से दबाया ,. धीरे धीरे आधा से ज्यादा ,.

और मेरे हलक तक ,. सिर्फ मोटा ही नहीं , वो लम्बा भी खूब था।

मैं चूसने की कोशिश कर रही थी , ननद जी ने खूब बोला था बड़ा मजा आया था उन्हें चूसने में , नन्दोई जी ऑलमोस्ट रोज ही उन्हें चुसाते हैं

लेकिन मैं ,. चोक करने लगी ,

मेरे मुंह से गों गों की आवाज निकल रही थी पर वो आज पहली बार इत्ती जोश में थे की उन्हें मेरी परवाह नहीं थी ,

और यही चाहती थी मैं,.

पर थोड़ी देर में उन्होंने मुंह से तो बाहर निकाल लिया लेकिन उनकी जो हालत थी ,

मैंने खुद अपनी टाँगे उठाकर उनके कंधे पर रख दी ,

वो मेरे अंदर
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