Episode 12


" अरे वहां झांटे वांटे आ गयी हैं की नहीं अभी , इतनी गोरी हो झांटे भी भूरी भूरी होंगी , . "

पहली ने बोला ,

" अरे समझती क्या हो इसको , चौदह की हो रही है , एकदम चुदवाने के लायक ,. . झांटे तो अभी फ्राक उठा के देख लो , . क्यों कहीं साफ सूफ तो नहीं कर के रखती , एकदम चिक्कन मुक्कन ,. .

उसके चेहरे से लग रहा था की बेचारी को बुरा बहुत लग रहा था ,

पर ननद के बुरा लगने का अगर भौजाइयां परवाह करने लगें तो हो चूका ,

और मैंने मौका देख के उसके डिम्पल वाले गालों को हलके से दबा दिया , गौरेया की तरह उसने चोंच खोल दिया और चम्मच अंदर ,. .

" बस ऐसे ही सट से अंदर जाएगा , करवा लो निवान। "

लेकिन तब तक तो वो बिचारे अपनी भाभी को ढूंढने के बहाने , .

और मुसीबत हो गयी , एक से एक रगड़ाई करने वाली भौजाइयां वहां ,.

" कहो लाला रात भर में मन नहीं भरा क्या , जो सुबह से फिर दुल्हिन के पीछे पड़ गए ,. "

एक मेरी जेठानी बोली तो दूसरी ने और पलीता लगाया ,

" अरे नहीं , दुल्हिन नहीं , अपनी बहनों को देखने आये हैं , पुराना माल , . आखिर पहले तो उन्ही सब के साथ ,. "

मैं बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कान दबा पा रही थी।

मैं जानती थी जिस ननद ने थोड़ा भी नखड़ा किया सारी भौजाइयां उसके ही पीछे ,.

और अब वही हालात गुड्डी रानी की हो रही थी , . मैं भी मजा ले रही थी।

भांग की पकौड़ी

मैं बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कान दबा पा रही थी।

मैं जानती थी जिस ननद ने थोड़ा भी नखड़ा किया सारी भौजाइयां उसके ही पीछे ,.

और अब वही हालात गुड्डी रानी की हो रही थी , .

मैं भी मजा ले रही थी।

एक जेठानी उसके गाल पर हाथ सहलाते बोलीं ,

" अरे पुराना कौन , एकदम नया नया माल है , ये ,. क्यों लल्ला चाहिए ये ,.
एकदम कोरी है ,. कहो तो तुम्हारी सिफारिश लगा दें और तुम्हारी दुल्हिन भी बुरा नहीं मानेगी ,. "

उनकी रगड़ाई में मुझे भी मजा आ रहा था , मैंने हलके से सर हिला के अपनी सहमति दे दी ,

और जैसे ही वो बाहर मुड़े सब उनकी भाभियाँ जोर से हंसी ,

तब तक मिली आ आगयी , मुझे किचेन में ले चलने के लिए , वही रसोई छुआई की रस्म ,.

गुड्डो , और जेठानी पहले से ही थीं , . एक कड़ाही में हलवा बनाना था ,

पहले तो मैंने सोचा ,. लेकिन मेरी जेठानी बोलीं ,

' बस कलछुल से एक बार चला दो हो गयी रस्म ,. " और मैंने चला दिया।

असली खेल एक घंटे बाद था , .

मुझे जेठानी ने ऊपर मेरे कमरे में भेज दिया गुड्डो के साथ ,. और बोला की एक घण्टे में थाली लगा कर वो भेजेंगी , और मुझे और उनको एक साथ थाली में खाना होगा ,और सबसे पहले वही हलवा , .

मैं ऊपर चढ़ रही थी की मैंने देखा अनुज , . वही जो गुड्डो के साथ लसा था ,. . सीढ़ी के ऊपर वाले कमरे में ,.

बस कमरे में घुसते ही गुड्डो को बाहर खदेड़ दिया ,. .

" अरे वो बिचारा इन्तजार कर रहा है , जा दे दे उसको , . कोई पूछेगा तो मैं बोल दूंगी की तू मेरे साथ थी।“

और मैं उस कबर्ड की ओर मुड़ गयी , जहाँ सुबह सुबह इन्होने अपनी वो स्क्रैप बुक रखी थी ,

और खोलते ही मेरा जी धक् से हो गया , अखबार के नीचे , साफ़ साफ़ छुपाकर , एक बड़ा सा लिफाफा रखा था ,

और उसे निकालते ही मुझे लग गया की क्या है ये , प्रेमपत्र।

चिट्ठियों का कागज , हलकी हलकी गुलाब की खुशबु ,. मैं बहोत उहापोह में थी।

खोलूं , न खोलूं।

मुझे तो उन्होंने प्रेमपत्र क्या कोई कागज की चिट भी नहीं भेजी थी , और फोन भी ,. सीधे नहीं , .

एक दो बार इनकी छोटी साली , मेरी सबसे छोटी वाली बहन छुटकी के जरिये , जब शादी की तारीख तय हुयी थी ,
वो भी बस हूँ ,. हाँ ,. और उस दुष्ट छुटकी ने इनका नंबर भी मुझे नहीं दिया था , बस बात करो तो उसी के फोन से ,.

कुछ समझ में आ रहा था , . मुझे डर लग रहा था ,.

क्या पता कोई रहा हो इनका बचपन में , उसी के ,. इत्ता सम्हाल के छुपा के ,. कल इत्ते प्यार से ,.

फिर ये इतने सीधे लजीले हैं , .

आखिर नहीं रहा गया , मैंने खोल ही लिया , एक दो नहीं पचासों प्रेम पत्र , एक दो नहीं कम से कम हर चिट्ठी पांच दस पन्ने की ,

मेरी हालत खराब हो गयी , . पहली चिट्ठी पढ़ते ही ,

सब की सब मुझी को लिखी गयी थी , जिस दिन उन्होने मुझे देखा था , मैंने इन्हे बीड़ा मारा था शादी में ,.

उसके अगले दिन से , रोज एक ,. मेरी शादी वाले दिन तक,

और कुछ तो बहुत हॉट ,खास कर मेरे उरोजों के बारे में , और एक दो में तो मिलन का बहुत ही एरोटिक ,.

चिट्ठी पढ़कर मैं गीली हो रही थी , लेकिन तब तक अखबार के दूसरे कोने की ओर मेरी निगाह गयी , .

वहां भी कुछ कुछ उभरा सा था ,

मैंने सब चिट्ठियां वापस उसी पैकेट में रख कर , जैसे अखबार के नीचे उन्होंने छुपा कर रखा था , वैसे ही रख दिया ,.

और फिर अख़बार का दूसरा कोना , बहुत सम्हाल के उठाया ,.

किताबें ,. और मुश्किल से मैं अपनी हंसी रोक पायी ,. ये भी न ,

भांग की पकौड़ी , सावन भाँदो , सोलहवा सावन , जवान ननद ,.

सब की सब मस्तराम का साहित्य ,.

दर्जन से भर से ऊपर ही रही होंगी और उसी तरह की मैगजीन्स , कुछ फ़ोटो वाली भी ,

मेरे लिए ये सब कुछ भी नया नहीं था ,मैं नौवें में थी तभी ,.

मेरी एक सहेली लायी थी , उस के किसी ब्वॉयफ्रेंड ने पकड़ा दिया ,. और रीतू भाभी के पास तो पूरी लाइब्रेरी थी , . अगर कोई ननद कुछ भी शर्मायी , ऐसा वैसा बोलने में तो बस उसे पकड़ा कर , सब के सामने , ( मेरा मतलब ननद भाभियों के सामने ,. . गर्ल्स ओनली ) शरू से पढ़वाया जाता था , .

और जहाँ ऐसे वैसे शब्द आये ,. वो थोड़ी रुकी धीमी हुयी तो एक हाथ , उसके पिछवाड़े ,.

कस के और और फिर से शुरू से पढ़ो ,.

भांग की पकौड़ी मैंने एक बार फिर से पन्ने पलटने शुरू किये , .

जहाँ पति पत्नी के मिलन का दृश्य था वहां कई पन्ने चिपके थे ,.

और वही हालत जीजा साली वाले पन्नो की थी ,

अब मैं समझ गयी मेरी दोनों बहनों , . मंझली और छुटकी की ,.

तबतक गुड्डो और दुलारी खाना ले के आगयीं ,. और मैंने झट से मस्तराम की किताबें पलंग पे गद्दे के नीचे ,

वो मौक़ा ही देख रहे थे ,

गुड्डो और दुलारी अभी नीचे उतरी भी नहीं होंगी की वो अंदर आये और दरवाजा बंद , और बस चालू ,.

मेरे बहुत समझाने , दस चुम्मी का घूस देने पर माने ,

पहले खाना ,.

अभी दुलारी एक घंटे बाद थाली ले जाने आने वाली थी ,.

भरी दुपहरिया में

भांग की पकौड़ी मैंने एक बार फिर से पन्ने पलटने शुरू किये , .

जहाँ पति पत्नी के मिलन का दृश्य था वहां कई पन्ने चिपके थे ,.

और वही हालत जीजा साली वाले पन्नो की थी , अब मैं समझ गयी मेरी दोनों बहनों , .

मंझली और छुटकी की ,.

तबतक गुड्डो और दुलारी खाना ले के आगयीं ,.

और मैंने झट से मस्तराम की किताबें पलंग पे गद्दे के नीचे ,

वो मौक़ा ही देख रहे थे ,

गुड्डो और दुलारी अभी नीचे उतरी भी नहीं होंगी की वो अंदर आये और दरवाजा बंद , और बस चालू ,.

मेरे बहुत समझाने , दस चुम्मी का घूस देने पर माने , पहले खाना ,.

अभी दुलारी एक घंटे बाद थाली ले जाने आने वाली थी ,.

ये कहने की बात खाना खिलाते समय मैं कहाँ बैठी थी , और कहाँ ,. . सिंहासन पर ,.

और सिंह पाजामे से बाहर आने के लिए गरज रहा था।

और अब मैं भी उसे चिढ़ाने के लिए बार बार अपने भारी नितम्बो को उस पे रगड़ रही थी।

रगड़ ये भी रहे थे , कस कस के , अपने दोनों हाथों से ब्लाउज के ऊपर से ही मेरे जोबन को ,

खिला तो मैं रही थी , कभी अपने हाथों से तो कभी अपने होठों से , कभी मुंह से ,

और ये पहली बार नहीं था की ये मेरा कुचा कुचाया ये खा रहे थे ,.

कोहबर में तो क्या क्या नहीं खाया था इन्होने ,.

पान तो उसके अंदर एक छोटा सा पान जो भाभियों ने चार घण्टे मेरे मुंह में रखवाया था ,
सब का सब मेरे मुख रस में डूबा ,. और मैं ज़रा भी नाटक करती तो मम्मी मौसी दोनों की डांट पड़ जाती ,.

मेरे जामने में ऊपर वाले मुंह में नीचे वाले मुंह में सुपाड़ी रखवाई जाती थी , कोहबर में दूल्हे के लिए ,.

खाना खाके जैसे ही हम लोग उठे , दुलारी आयी ,

मैंने दरवाजा बंद किया , और उन्हें दिखाते हुए लहरा के अपनी साडी उतारी ,. उनकी हालत ख़राब

पर अब मुझे उनकी हालत खराब करने में बहुत मजा आता था ,

और मैं जानती थी इसके बाद ये लड़का मेरी बहुत हालत खराब करेगा , पर करे तो करे ,. मेरा लड़का मेरी मर्जी

सच में वो बेसबरा मेरे रजाई में घुसने के पहले ही टॉपलेस हो चुका था ,

सिर्फ एक छोटी सी चड्ढी ,.

फिर वो मुझे क्यों छोड़ता , और बस थोड़ी देर में मैं भी टॉप लेस और मेरे जोबन, . जोबन के मालिक के हाथों में ,.

लेकिन कपडे उतारने का हक सिर्फ उन्ही का था क्या। हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे , लिपटे
और मेरी कोमल बांहे भी उन्हें कस के भींचे ,

एक जनम नहीं सात जन्म तक नहीं छोड़ने वाली थी इस बुद्धू लड़के को

और मेरी उंगलिया सरक कर , उस लड़के के बॉक्सर शार्ट को सरका कर नीचे ,.

और बस , उस लड़के ने भी मेरे पेटीकोट का नाड़ा , . मैं रोकती कैसे मेरे दोनों हाथ तो शार्ट को सरकाने में लगे थे ,

और मैं रोकती भी तो क्या वो बेसबारा रुकने वाला था , . और रोकना चाहता भी कौन था ,.

मैं उसकी ,. फिर उसकी मर्जी ,.

जैसे बटन दबाने से कोई खटके वाला चाक़ू निकल कर झट से बाहर आये ,. . शार्ट के सरकते ही , . उनका ' वो ' एकदम तन्नाया , भूखा पागल , बाहर

उनका क्यों मेरा , मूसलचंद ,. मन तो मेरा बहुत कर रहा था उसे पकड़ लूँ ,. पर अभी भी थोड़ी तो ,. बस जैसे गलती से उँगलियाँ छू गयी हों , वैसे ही मेरी उँगलियों ने ,. एकदम कड़ा ,. . जैसे पत्थर ,. .

और साया सरकने से मेरी ' गुलाबो ' भी अब बाहर थी ,.

और,. बिना उनके कहे ,. लता की तरह तो मैं लिपटी थी ही , मैंने अपनी एक टांग उठा कर उनके ऊपर रखी ,

वही हुआ जो मैं जानती थी , होगा ,. .

मेरी गुलाबो , सीधे मूसलचंद के सामने ,.

उनका एक हाथ मेरे जोबन को रगड़ मसल रहा था ,

दूसरा मेरी चुनमुनिया पर ,.

आग लगाने में तो वो माहिर थे , देखने में जितने सीधे लगते थे , एक बार शुरू हो जायँ न तो बस ,

और होंठ भी भौरे को मात कर रहे थे ,

कभी मेरे होंठों पर , तो कभी उभारों पर ,. सिर्फ चुम्मा ही नहीं , कभी चूस भी लेते तो कभी दांत भी ,.

मैं कई बार सोचती उनसे कहूं ,. प्लीज दांत नहीं , ननदें बहुत चिढ़ाती हैं ,.

पर ये भी सोचती ,. चिढ़ायें तो चिढ़ायें ,

मेरा साजन

साजन का जोबन ,

चाहे वो दबाये रगड़े ,

चाहे चूसे काटे , . मर्जी उसकी

लेकिन अब इस बिस्तर पर धीरे धीरे मेरी मर्जी भी चलने लगी थी , मेरे हाथ भी उनके हाथों की देखादेखी बदमाशी सीख रहे थे , उन्होंने हलके से मूसलचंद को दबा दिया , बस हलके से और थोड़ी देर ,.

फिर तो वही हुआ , जो होना था ,

बावरा साजन

मेरे हाथ भी उनके हाथों की देखादेखी बदमाशी सीख रहे थे ,

उन्होंने हलके से मूसलचंद को दबा दिया , बस हलके से और थोड़ी देर ,.

फिर तो वही हुआ , जो होना था ,

मैं नीचे , मेरी दोनों टाँगे उनके कंधे पर , . .

और मेरे एक हाथ ने तकिया हलके से सरका कर इशारा कर दिया , वैसलीन की शीशी कहाँ रखी है , .

रजाई कब की फर्श पर जा चुकी थी

वैसलीन की शीशी खुली ,

पहले मेरी चुनमुनिया के बीच ,. मैंने खुद अपनी जाँघे पूरी तरह फैला दी ,. भले ही शर्म से मेरी आंखे अपने आप मुंद गयी

( पर कनखियों से देख रही थी , कैसे उन्होंने अपने उस दुष्ट मोटे मूसलचंद के मुंह पर ,. . और मुंह तो उसका मैंने ही खोल दिया था , सहलाते दबाते ,. ढेर सारी वैसलीन चुपड़ ली ,. )
और वो मोटा मूसल ,.

उईईई हलके से मैं चीखी , और साथ ही इन्हे कस के पकड़ लिया ,

अब इन्हे बहुत जल्दी नहीं थी , कभी हलके हलके हलके कभी जोर से ,

कभी मैं सिसकती कभी चीखती

कभी मेरी चूड़ियां चुरमुर करतीं , तो कभी उनके कंधो पर सवार पायल रुनझुन करती , .

उनके दोनों हाथ जो शुरू में मेरी पतली कमर को पकड़ के पूरी तेजी से धक्के मार रहे थे ,

मूसलचंद के अंदर घुस जाने के बाद , अब दोनों जोबनों की रगड़ाई कर रहे थे ,

होंठ कौन कम बदमाश थे , कभी मेरे सिसकते होंठों को कचकचा के काट लेते , तो कभी मेरे उरोजों को ऐसे चूसने लगते की बस ,.

लेकिन सबसे दुष्ट थे उनके भोले नैन ,. मुझसे पूछिए ,.

जब वो मीठी मीठी निगाहों से देखते तो बस मैं पिघल जाती ,

इन्ही चोरों ने तो मुझसे मुझी को चुरा लिया था।

मैं कभी अपने नैनों की सांकल बंद कर लेती थी , पर जब सब कुछ लुट गया था , पहले मन फिर तन , तो अब बचने बचाने को बचा भी क्या था , और फिर मेरा मन तो उन नैनो स नैना चार करने को करता था , .

इस लिए कभी कनखियों से तो कभी खुल के अपनी दीयली ऐसे आँखे खोल लेती थीं , .

और उनके चेहरे के की ख़ुशी , उनकी आँखों में नाचती छलकती ,. जैसी उनकी कबकी चाहत पूरी हो रही है ,. इसके लिए तो मैं इस चितचोर की सब बात मानने को तैयार थी ,

हम दोनों साथ आनंद के सागर में गोते लगाते , . हाँ पहले मैं ही ,. . मेरी देह कागज की नाव की तरह बूड़ती उतरती , शिथिल हो उठती , कुछ भी होश नहीं रहता , सिर्फ उस बदमाश दुष्ट मूसलचंद का जो मेरी देह के अंदर पूरी तरह घुसा ,.

मेरी फटती जाँघे , टीसती ,. लेकिन उनके होंठ , उनकी उँगलियाँ , कभी मेरे होंठों पर , कभी मेरे जोबन पर ,.

और धीरे धीरे मेरी देह फिर उन्ही के सुर ताल पर जुगलबंदी करती ,.

और अगली बार , . जब मेरी आँखे एक बार मुंद ही रही थी ,

मेरे सासु के पूत ने ,. मेरे साथ साथ ,. जैसे ज्वालामुखी फूटा ,. कोई बाँध टूट गया हो ,. .

मैं और किसके सहारे जाती , मेरे मायके वालों ने जिसके सहारे कर दिया था , .

बस उसी को मैंने जोर से पकड़ लिया ,. बिना इस बात की परवाह किये की मेरी ये दुरगत करने वाला भी तो वही है ,.

और एक बार मैं फिर सिर्फ अपनी जाँघों के बीच महसूस कर रही थी , उन्हें झड़ते , गिरते ,

रोप रही थी अपनी देह की अंजुरी में , उनकी देह से झरते देह रस को ,.

सिर्फ हम दोनों की साँसों की आवाजें सुनाई दे रही थीं , मेरी आँखे बंद थी , मैं कस के उन्हें भींचे थी , .

और जब मेरे नैनो के दरवाजे थोड़े से खुले , मैंने गवाक्ष से उन्हें झांकते देखा ,. और लजा कर मैंने आँख बंद कर ली ,.

ये अजब बात थी ,.

केलि क्रीड़ा के पलों में मेरी लाज जो मुझसे कुछ दूर होकर , .

फिर वापस तुरंत मेरी देह पर मन पर कब्जा कर लेती थी।

बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे को पकडे दबोचे रहे।
लाज की तरह रजाई भी लौटी , लेकिन अब जैसे लाज का राज धीरे धीरे कम होता जा रहा था , रजाई भी ,.

उन्होंने मुझे मेरे उरोजों को ढकने नहीं दिया , मैंने बस एक दो बार हलकी सी कोशिश की ,. फिर हार मान ली।

मस्तराम

बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे को पकडे दबोचे रहे।

लाज की तरह रजाई भी लौटी , लेकिन अब जैसे लाज का राज धीरे धीरे कम होता जा रहा था , रजाई भी ,.

उन्होंने मुझे मेरे उरोजों को ढकने नहीं दिया , मैंने बस एक दो बार हलकी सी कोशिश की ,. फिर हार मान ली।

कुछ देर तक देह ही बातें करती रही , उनका स्पर्श , छुअन ,. छोड़ने का मन नहीं करता था।

और फिर बातें भी शुरू हो गयी , बातें भी उन्होंने शुरू की ,

पहले तो मैं सिर्फ सुनती थी , फिर हूँ हाँ ,.

और जब मुझे लग गया जेठानी की सीख एकदम सही है , ये लड़का कुछ ज्यादा ही लजीला , शर्मीला ,. जरुरत से ज्यादा ही केयरिंग ,

इसलिए मैं भी अब थोड़ा ही सही बोलने लगी थी , .

और वो बात भी क्या करते थे , घूम फिर कर उनकी सब बातों का एक ही सब्जेक्ट ,

और कौन ,. मैं ,.

और बहुत हुआ तो मेरी मम्मी , बहनें दोनों , भौजी ,. सब की सब अब उनकी चमची , दलबदलू ,.

लेकिन आज मेरे पास एक बात थी , उन्हें चौंकाने के लिए , . गद्दे के नीचे से मैंने वो मस्तराम वाली किताब ,.

उनकी ओर घूर के , कुछ डराते , कुछ चिढ़ाते मैंने पूछा।

" हे तुम ये सब किताबें पढ़ते थे ,. "

और वो सच में घबड़ा गए , मुझे लगा कुछ ज्यादा हो गया ,

मैंने उनके गाल सहलाते , भांग की पकौड़ी वाली किताब खोलते पूछा ,

" अच्छा सच में ये बताओ ,. सब से पहले कब पढ़ी किस क्लास में ,. बोल न "

" टेंथ में ,. "

बहुत हलके से वो बोले ,.

" तुम न यार सच में स्लो हो ,. "

मैंने उनके गाल पर एक चुम्मी ले ली ,. और बात जोड़ी ,.

" मैंने नाइंथ में पढ़ ली थी , . कर्टसी तुम्हारी सलहज , और मेरी सहेलियों के ,. "

अब उनके चौंकने की बारी थी , .

' तुम्हे बुरा नहीं लगा ,. '

" क्यों लगेगा "

मैं सवाल का जवाब सवाल से करने की ट्रिक कब की सीख गयी थी ,.

" चलो पढ़ कर दिखाओ , नहीं बोल कर पढ़ना ,. देखें तुझे पढ़ना लिखना आता भी है की नहीं ,. "

मैंने फिर उनकी खिंचाई की।

दूसरी लाइन में ही वो अटक गए , जहाँ ' वो ' वाले शब्द आये ,. .

" तू भी न ,. गनीमत मानो मैं हूँ , तेरी सलहज नहीं है , मैं जब नौवें में थी ,.
इतना देर अटकती तो तुम्हारी सलहज एक हाथ कस के पिछवाड़े ,. "

मैं भी सीख गयी थी उनकी देह में आग कैसे लगाई जाती है ,

उनका एक हाथ खींच कर के मैंने न सिर्फ अपने जोबन पर रखा , बल्कि हलके से दबा भी दिया , .

और फिर एक चुम्मी

" पढ़ो न यार , रुक काहें गए ,. "

मैं हलके से बोली , और पहली बार मेरे सामने धीमे से वो बोले ,.

' उसने हचक के पेल दिया , "

मैंने ज्यादा जिद नहीं की , वो पढ़ते रहे , किताब एक मेरे हाथ ने पकड़ी थी एक उनके हाथ।

उनका एक हाथ जो मैंने खीँच के अपने जोबन पर रखा था , अब खुल के दबा मसल रहा था , और मेरा बचा हुआ हाथ

और कहाँ ,. उनके सोते जागते मूसलचंद पर ,. पहले हलके हलके मैं सहला रही थी , फिर ,

किताब में आया ,

उसका लंड खूब मोटा तन्नाया ,. .

वो एक पल हिचके लेकिन जब बोले तो साथ साथ मैं भी बोल रही थी ,.

और साथ साथ मैंने कस के अबकी मूसलचंद को कस के अपनी कोमल मुट्ठी में पकड़ लगी दबाने ,

एक झटके में मैंने चमड़ा खींचा तो उनका मोटा सुपाड़ा बाहर , और मेरा अंगूठा , उसपर ,. हलके हलके ,.

मेरी अब उससे पक्की दोस्ती हो गयी थी , निचले होंठों के बीच ,

ऊपर के होंठों के बीच हर जगह तो उसका स्वाद ले चुकी थी ,.

और उन्होंने अबकी जोर से बोला ,

उसका लंड ,. .

फिर तो खुल कर ,.

कुछ ही देर में पहले किताब , फिर रजाई फर्श पर ,. और मुड़ कर उन्होंने मुझे दबोच लिया और बोले ,

कोमल यार , मन कर रहा है ,. .

एक बार और

कोमल यार , मन कर रहा है ,. .

लेकिन मैं आज इतनी जल्दी से उन्हें आगे नहीं बढ़ने देने वाली थी ,

" क्या मन कर रहा है , बोल न ,. नहीं बोलोगे तो नहीं मिलेगा ,. . "

मैंने आँखों के तीर चलाते उन्हें चिढ़ाया ,.

वो भी मुस्कराये , मुझे चूम कर बोले ,.

" तुझे पेलने का "

मैंने भी उनसे दूना तगड़ा चुम्मा उनके होंठों पर ,. और हंस के बोली ,

" तो पेलो न ,. मुझे नहीं तो क्या मेरी ननदों को पेलोगे ,. वैसे मुझे कोई आब्जेक्शन नहीं होगा ,. . "

जैसे कोई आग में घी डाल दे , मेरा चिढ़ाना उनके लिए

आज तीन दिन से ,. लेकिन इस बार जो जोश दिखाया उन्होंने ,.

" बताता हूँ तुझे ,. " और मेरी दोनों टांगों को मोड़ के उन्होंने दुहरा कर दिया ,.

और एक झटके में वो करारा धक्का मारा , मुझे दिन में तारे नजर आ गए ,. . आज सब कुछ भूल कर वो धक्के पर धक्के। .

खूब कस के रगड़ते , दरेरते , घिसटते , पेलते , . . वो मोटा बदमाश अंदर घुस रहा था ,.

मेरी जाँघे फट रही थीं , हर धक्के पर लग रहा था की जान निकल जायेगी ,. .

लेकिन मुझे मम्मी की सीख याद आ रही थी ,

कोई मुझे चिढ़ा रहा था था बहुत दर्द होगा जब वो पेलेगा ,जान निकल जायेगी ,.

तो मम्मी बोली , चुदवाने में आज तक कोई लड़की नहीं मरी ,.

इतने मोटे बड़े तगड़े बच्चे जो चूत निकाल देती है , . वो लंड से डरेगी ,.

दर्द जितना ज्यादा हो रहा था उतना ही मजा आ रहा था , और पहली बार मैंने उन्हें उनकी मायकेवालियों को ले कर छेड़ा था , लेकिन मैं मन ही मन सोच रहे थी ,. ये तो अभी शुरुआत है ,.

मैं समझ गयी थी उन्हें क्या अच्छा लगता है , बस ,. आज शाम को जो गाने मुझे गाने होंगे ,.

बस मैं अपनी ननदों से इनका नाम जोड़ कर तो गाउंगी ही , और एक दो असली वाली भी ,.

इस बार मैं उनका साथ भी दे रही थी , चुम्मे का जवाब चुम्मे से ,.

आज उनपर कोई भूत चढ़ गया था ,.

मैं झड़ कर दो बार बीच में ,

लेकिन न उनके धक्को की रफ्तार कम हुयी न हर धक्के की ताकत ,.

और जब वो ,. और मैं तीसरी बार ,. एकदम तूफ़ान आ गया था , देर तक ,.

सिर्फ मूसल चंद ही नहीं उनके नाख़ून , उनके दांत , मेरे कोमल कोमल गाल , मुलायम जोबन सब पर उनके निशान ,.

बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही , मैंने रजाई भी नहीं फर्श पर से उठायी ,

लेकिन घडी ने मुझे चौंका दिया साढ़े पांच बजे रहे थे ,.

यानी कभी भी मेरे ननदें ,.

मैं वैसे ही उठी , सिर्फ जमींन पर पड़ी किताब उन्हें दिखा कर ,.

एक बार फिर से गद्दे के नीचे रख दी , .

अपने कपडे उठाये , सोफे पर से साडी भी पर बिना पहने ,. बाथरूम में ,.

इस लजीले लड़के को चिढ़ाने उकसाने में मुझे अलग मज़ा मिलता था ,.

मुझे मालूम था ये लड़का बेचारा मेरे अगवाड़े पिछवाड़े दोनों का दिवाना है ,

और मेरा अगवाड़ा पिछवाड़ा मेरी उमर की लड़कियों से कम से कम दो नंबर ज्यादा भी है ,.

वो जब तक पलंग से उठते , मैं बाथरूम में दरवाजा बंद , दरवाजा खोल के एक पल के लिए मैंने उन्हें देखा , जीभ निकाल के चिढ़ाया और फिर शावर के नीचे ,.

मेरी पूरी देह में उनकी गंध बसी थी , जगह जगह उनके रगड़ने मसलने के निशान ,

मेरे जोबन का तो ये लड़का एकदम दीवाना ,.

साबुन लगाते मैंने देखा कितने निशान ,. और सबसे बढ़कर , .

मेरी जाँघों के बीच उनकी रबड़ी मलाई , काफी कुछ तो मैंने अंदर पर हर बार , कटोरी भर के ,.

रोज नीचे जाने के पहले मैं उसे अच्छी तरह रगड़ रगड़ के साफ़ करलेती थी ,. मैंने जोर से अपनी गुलाबो को भींच लेती थी पर तब भी मेरी जांघो पर , जाँघों के बीच लस लस मलाई ,.

मैंने उसे वैसे ही रहने दिया ,. अब तो मेरा भी मन करता था वो कब कस के दबोच लें , रगड़ दें ,. .

मैं निकली तैयार हो के तो वो तो नहीं थे ,.

पर गुड्डो और मिली थीं , मुझे लेने आयी थीं।
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