Episode 17


उनका मोटा लम्बा लंड , इंजन की पिस्टन की तरह मेरी कसी टीनेजर चूत में , रगड़ते , दरेरते , घिसटते फाड़ते ,

और साथ में उनके होंठ मेरे उभार कभी चूसते कभी कचकचा के काट लेते।

दूसरा जोबन उनके हाथ के नीचे रगड़ा मसला जा रहा था , और उनका दूसरा हाथ , बार बार कभी मेरी क्लिट को सहलाता था कभी रगड़ देता था।

मस्ती के मारे मेरी हालत खराब थी , जब मैं झड़ने लगती , तूफ़ान में पत्ते की तरह मेरी देह कांपती तो भी उनकी चोदने की रफ़्तार कम नहीं होती थी ,

आज एकदम पहली दूसरी रातों से अलग , . और मैं भी तो इस घोड़े को ऐड लगाने की कला सीख गयी थी ,

मेरी ननद , . ख़ास तौर से वो एलवल वाली इनकी ममेरी बहन , . गुड्डी , भले अभी ,. लेकिन ननद तो ननद ,.

जहाँ उस का नाम लेकर मैं एक बार इन्हे छेड़ती तो बस जैसे एक्सीलेरेटर पर पैर पड़ जाय , .

इनकी सलहज ने बोला था ननद रानी चुदवाने का असली मज़ा तब आता है , जब मरद औरत , सब सरम लिहाज भूल के , . लंड बुर गांड बोल बोल के चोदे चुदवाये , . सच में इनकी सलहज की बाकी बातों की तरह ये बात भी एकदम सही थी ,.

आज सभी बत्तियां कमरे की जल रही थी , बाहर वाला पर्दा भी खुला था , लेकिन न मुझे फरक पड़ रहा था न उसे ,

दो बार मैं झड़ चुकी थी , . मेरी निगाह दीवाल घडी पर पड़ी ,. आधे घंटे से ऊपर से वो मुझे कुचल मसल रहा था।

और जब वो झड़े तो कमरे में तूफान आ गया , मैं भी साथ साथ , .

जाड़े की रात में मेरी देह पर पसीने की बूँद छलछला रही थी , और

देर तक , एक बार नहीं बार बार , . मैं भी साथ साथ ,.

और उसके बाद भी देर तक ,.

मुझे उनकी सलहज की , और दुलारी की एक बात याद आयी , . .

रसमलाई

मुझे उनकी सलहज की , और दुलारी की एक बात याद आयी , . .

और जब उन्होंने बाहर निकाल लिया मैंने उन्हें अपनी बाँहों के इशारे से अपने ऊपर से हटने से रोक लिया ,. .
और उनके सर को पकड़ कर अपने होंठों पर , फिर अपने दोनों उभारों पर , . और फिर ,.

और फिर , . और नीचे ,. और नीचे

सीधे मेरी दोनों फैली खुली जाँघों के बीच , जहाँ मेरी ओखल में उनका मूसल दनादन चल रहा , सटासट , गपागप ,

एक पल के लिए वो थोड़ा सहमे , . थोड़ा झिझके , .

अभी पल भर पहले ही तो उनके मूसल ने कटोरी भर रबड़ी मलाई वहां ऊगली थी , . गाढ़ी थक्केदार ,. .

पर सब कुछ अब उनके बस में थोड़े ही था , मैं किस लिए थी ,

सँडसी से भी कड़ी पकड़ मेरी गोरी मखमली जाँघों की थी , अब वो अपना सर छुड़ा नहीं सकते थे , .

और ऊपर से मैंने कस के उनके सर को पकड़ के अपनी गुलाबो पर दबा रखा था ,. लेकिन बस पल दो पल , .

उसके बाद तो वो खुद ही , .

उनकी जीभ की टिप ने जैसे मेरी गुलाबो के चारो ओर चक्कर काटना शुरू किया ,

जैसे लौंडे नयी नयी जवान होती लड़की के घर के चारो ओर चक्कर काटते हैं ,

और मैं गिनगीना गयी , सिसकने लगी ,.

मेरे लिए ये एक नया मजा था , सुना तो बहुत था , भौजाइयों से , लेकिन आज पहली बार ,

और कुछ देर में उनकी जीभ मेरी चूत पर ऊपर से नीचे , नीचे से ऊपर कभी बहुत धीमे धीमे ,

मजे लेती तो कभी तेजी से ,. सपड़ सपड़

उनकी उँगलियों और उस मोटे खूंटे ने तो मेरी गुलाबो को बहुत मजे दिए थे लेकिन होंठ पहली बार , .

और फिर ,. वो हुआ ,. क्या कहूं ,. बस मैं पागल नहीं हुयी ,

दोनों होंठों के बीच मेरे निचले दोनों होंठों को दबा कर ,.

क्या चूसा उन्होंने ,. आग लग गयी देह में ,. कम से कम पांच मिनट तक और फिर ,

उनकी जीभ भी इस खेल तमाशे में आ गयी , दोनों फांको को फैला कर , .

जीभ उन्होंने अंदर घुसेड़ दी , जैसे कोई आम की फांक को फैला कर ,

सपड़ सपड़ चूसे चाटे , बस एकदम उसी तरह ,

उनके होंठ अभी भी कस के चूस रहे थे और जीभ मेरी चूत के अंदर घुसी गोल गोल ,

मैं चूतड़ पटक रही थी सिसक रही थी उछल रही थी ,

पर वो लड़का न एक बार चालू हो गया तो बस ,.

मैं मान गयी ये लड़का देखने में भले जितना सीधा लगे , पर है नंबरी चोदू और उससे भी बढ़कर चूत चटोरा ,

अब उन्हें इस बात का फरक नहीं पड़ रहा था की मेरी चूत में उनका वीर्य भरा है , बल्कि बाहर तक छलक रहा है ,.

उनकी जीभ अंदर घुस कर धमाल मचा रही थी ,

जैसे कोई खीर के कटोरे से आखिरी बूँद तक खीर चाट रहा हो एकदम वैसे ही।

बीस मिनट से ज्यादा ,. . मुझे बार बार अपनी रीतू भौजी , उनकी सलहज की बात याद आ रही थी , . आज सुबह ही तो ,

" चल तूने चमचम तो चूस लिया , लेकिन उसे अपनी रसमलाई चटाई की नहीं , . एक बार चटा दो न , मेरी कसम पक्का तेरा , असल जोरू का गुलाम हो जायेगा। "

मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया , वो तो वैसे ही हैं ,

पर मैं सोच लिया था रीतू भौजी की बात ,. दम होता है उसमें ,

और आज क्या मस्त रसमलाई चाटी चूसी इन्होने , . .

एक बार काम की गर्मी कुछ कमी हुयी न तो फिर जाड़ा भी वापस आ गया और लाज भी ,

झट से मैंने रजाई फर्श से उठा कर अपने इनके चारों ओर लिपट गयी और इनके सीने में दुबक गयी।

कुछ देर तक तो हम दोनों चुप रहे , देह की गर्मी और रजाई का मजा लेते रहे ,

लेकिन आज मैं इन्हे छेड़ने पर तुली थी अपनी उस एलवल वाली कच्ची कली ननद का नाम ले ले कर छेड़ने में ,

' क्यों उस कच्ची कली की कच्ची अमिया की याद आ रही है , सच में कुतरने में बहुत मज़ा आएगा। अरे सिर्फ कच्ची अमिया क्यों गुड्डी रानी की कच्ची कली

को भी फूल बनाने का काम तेरे ही जिम्मे आएगा"

गुड्डी

मेरी ननद ,

इनकी छुटकी बहिनिया

आज मैं इन्हे छेड़ने पर तुली थी अपनी उस एलवल वाली कच्ची कली ननद का नाम ले ले कर छेड़ने में ,

' क्यों उस कच्ची कली की कच्ची अमिया की याद आ रही है , सच में कुतरने में बहुत मज़ा आएगा। अरे सिर्फ कच्ची अमिया क्यों गुड्डी रानी की कच्ची कली को भी फूल बनाने का काम तेरे ही जिम्मे आएगा , "

अब वो कुछ शर्मा रहे थे , कुछ झिझक रहे थे , लेकिन जैसे उन्होंने मेरी नथ उतारी थी ,

वैसे इनकी शरम लाज उतारने का काम मेरे जिम्मे था।

मुश्किल से बोले ,

" तुम भी न ,. उसके पीछे ,. अभी बहुत छोटी है वो ,. आठवे में पढ़ती है , . "

मैंने बड़ी मुश्किल से मुस्कराहट रोकी , . मुझे छेड़ने का एक मौक़ा इन्होने खुद दे दिया था।

" कौन छोटी है , नाम तो बोलो मेरे राजा "

उनकी नाक पकड़ कर चिढ़ाते मैं बोली।

" गुड्डी ,. "

उनके मुंह से निकल गया।

" छोटी वोटी कुछ नहीं है , मान लिया की चल उसका कभी छोटा है ,

तो बस मिजना मसलना शुरू कर दे न , हो जाएगा बड़ा उसका भी , . और जानते हो मेरी सास मेरी नंदों के बारे में क्या कहती हैं , . ?"

मैंने चिढ़ाना जारी रखा।

असल में ये बात मेरी सास ने कही थी लेकिन अपनी ननद , इनकी बुआ के बारे में , . और वहां सिर्फ औरते लड़कियां ही थीं , . पर पति से क्या शर्म , मैंने जस का तस उनके सामने परोस दिया ,

" मेरी सास कह रही थीं , मेरी ससुराल में ननदें चौदह की होते ही चुदवासी हो जाती हैं , . तो मत ये कहना की तेरा माल अभी चौदह का भी नहीं ,. "

और अब मेरा हाथ उनके फिर से कुनमुना रहे मूसलचंद पर था।

" नहीं नहीं चौदह की तो वो हो गयी. कब की ,. "

उन्होंने धीरे से माना।

" वही तो मैं कह रही हूँ , जबरदस्त चुदवासी होगी वो ,. कोई इधर उधर का ,. इससे अच्छा तुम ही नेवान कर लो ,. "

मैं उन्हें छेड़ भी रही थी और अब हलके हलके मुठिया भी रही थी।

"अच्छा चल , मेरी सास ने तो लाइन क्लियर दे दिया तुझे ,. अब उनकी छोडो ,

अपनी सास की बात मानते हो की नहीं , या बोलो , रोज सबेरे फोन आता है ,
और अपने दामाद की इतनी तारीफ़ , बेटी को तो अब भूल गयीं वो ,. नहीं मानते हो उनकी बात तो बोलो ,. कल सुबह ही मैं बोल दूंगी उन्हें , रोज दामाद जी दामद जी करती हैं। "

मेरी बात काटते वो घबड़ा के बोले ,

" नहीं नहीं , मैं तो उनकी हर बात मानता हूँ ,. मैंने कब कहा , उनकी कौन सी बात ,. "

अबकी बात काटने की बारी मेरी थी ,

" कोहबर की बात भूल गए " मैंने उन्हें फिर याद दिलाया।

कोहबर की शर्त

" कोहबर की बात भूल गए "

मैंने उन्हें फिर याद दिलाया।

" एकदम नहीं , कोहबर की बात कैसे भूल सकता हूँ मैं , . एक एक चीज याद है अब तक "

वो मुस्कराते हुए बोले।

सच में कोहबर में जबरदस्त रगड़ाई हुयी थी उनकी साली सलहज तो छोड़िये , सास लोगों ने भी ,.

क्या क्या नहीं करवाया , कहवाया ,. और सबसे ज्यादा निशाने पर थी ,

और कौन ,. वही कच्चे टिकोरे वाली , . एलवल वाली उनकी ममेरी बहन , .

गुड्डी।

असल में बात ये थी की मेरी दोनों छोटी बहने, मौसी चाची और मामी बुआ की बेटियां सब एकदम तैयार थीं ,

जूता चुराई के लिए।

लेकिन इनकी बहने भी , . ये जूता पहन के आये ही नहीं ,

लेकिन मंडप में इनकी बहने खूब हल्ला कर रही थीं , जूता यहीं मंडप में ही , ढूंढ सके तो ढूंढ लो।

और बाद में शक गुड्डी पर ही हुआ , वो अपनी स्कर्ट के अंदर छुपा के बैठी थी , एकदम मासूम बनी।

लेकिन छुटकी को शक हुआ , पर कहीं दिख नहीं रहा था।

लेकिन मेरी बहनें थी और रीतू भाभी की कप्तानी , संजय मेरे कजिन ने पानी पिलाने के चक्कर में ठीक से उसकी स्कर्ट के ऊपर ही पानी गिरा दिया , बस वो गुस्से में एक झटके में खड़ी हुयी

और पहले से तैयार छुटकी जूते लेकर चम्पत।

रीतू भाभी ने कोहबर में इनसे यही सवाल पहले पूछा

" आपकी शकल आपकी ममेरी बहन , उस गुड्डी से इतनी कैसे मिलती है। "

ये बेचारे क्या जवाब देते , समझ तो रहे थे असली इशारा किस तरफ है ,

लेकिन उनकी सास आ गयीं उनकी तरफ से बोलीं ,

" अरे इसमें कोई पुछ्ने की बात है , अरे समधन हमारी मायके में रक्षाबंधन में गयीं ,

बस वहीँ इनके मामा ने , समधन के भैया ने ,. , कर दी चढ़ाई , और उनकी गलती क्या , बचपन का चक्कर ,. बस नौ महीने बाद ये मैदान में ,. है न भैया यही बात। न बिस्वास हो तो लौटना और समधन से पूछ लेना ,
छिनार वो जाहें जीतनी हो लेकिन बात सच सच बोलती हैं। "

" तो ये अपने मामा के जाए हैं ,. "

एक गांव की औरत ने खोल के बोल दिया ,

पर बुआ हमारी , वो तो एकदम ,. इन्हे समझाते बोलीं ,

" अरे तो कउनो बात नहीं भैया , काहें मुंह लटकाये हो , ऊ तोहार माई चोद दिहे , तू उनकर बिटिया चोद दे , अब अच्छी खासी चोदवावे लायक तो हो गयी हैं , "

रीतू भाभी बोलीं , " अरे बुआ आप तो एंकर मन की बात कह दी , इहै तो यह चाह रहे हैं , "

और मम्मी ने बात पूरी की ,

" ठीक है , तो पहला मौका मिलते ही कर कर देना उसका उद्घाटन , . अरे तोहरे शहर में ही तो रहती है , कउनो परेशनी है

तो बस अभिन यहीं बुलाई के सब तोहरी साली सरहज के सामने , करवा देतीं हूँ ,

बहुत रिरयायेगी न तो हम लोग हैं पकड़ लेंगे हाथ पैर कहो तो बुलवाऊं अभी ,. "

और मम्मी ने हमारी नाउन जिससे सभी पनाह मानते थे , चंपा , रीतू भाभी की समौरिया होगी ,.

उसको लगा दिया काम पे ,

" चंपा ज़रा जनवासे में जाओ और उनकी ममेरी छोटी बहन है न उसे बुला लाओ . कह देना एक रस्म है जिसमें कुँवारी छोटी बहन की जरूरत पड़ती है , बस थोड़ी देर के आओ , नेग भी मिलेगा। और हाँ कोई और न आने पाए उसके साथ। "

अब इनकी हालात खराब , वैसे भी साली सलहज ने इनके कपडे काफी उतरवा दिए थे , काफी दुर्गत हो रही थी ,

और कहीं सच में ,.

" नहीं नहीं मत बुलाइये उसे ,. " घबड़ा कर ये बोले।

" अच्छा ठीक है , लेकिन बुआ की बात याद रखना छोड़ना मत उसको ,. "

मम्मी बोलीं और कोहबर की कोई और रस्म शुरू हो गयी।

मैं वही बात याद दिला रही थी और उन्हें अच्छी तरह से याद था।

और तभी मेरी निगाह प्लेट की ओर पड़ गयी दो मोटे मोटे लड्डू अभी भी बचे थे।

बस एक मेरे मुंह में , और मेरे मुंह से उनके मुंह में ,. . उनका मुंह बंद कराते मैं बोली ,

' चल यार होली में तेरी उस ममेरी बहन के कच्चे टिकोरे कुतरवाउंगी , लेकिन तब तक वो सोच सोच के ये लड्डू गपक लो "

और आधे से ज्यादा लड्डू उनके मुंह में ,. और साथ में मेरी जीभ भी ,. उसे ठेलती ,

लेकिन मुझे इन लड्डुओं का स्वाद कुछ अलग सा लग रहा था ,. थोड़ी देर मैं अपने दिमाग को कुरेदती रही , और ४४० वाट का बल्ब जला ,

ऐसा ही , इनकी सलहज ने , जब मैं नौवें में थी , इनकी सलहज ने मुझे ,. . मैं स्वाद पहचान गयी , भांग की गोली ,. लेकिन इसमें गोली नहीं गोला पड़ा था , डबल डोज़ , . लेकिन तब तक दोनों लड्डू हम दोनों ने ,. मैं समझ गयी ये शरारत किसकी थी ,. और किसकी , मेरी मंझली ननद की , . और भांग का असर मुझसे ज्यादा उनके ऊपर हो रहा था , जो थोड़ी बहुत झिझक लाज हिचक थी सब गायब ,. और आज वो भी एकदम खुलकर ,.

यही तो वो चाहते थे और मैं भी ,.

मैं अपने सैंया की गोद में बैठी , मजे से , मजे ले रही थी , और उनके दोनों हाथ , और कहाँ ,. एक मेरे जोबन पर और दूसरा मेरी गुलाबो पर , रगड़ता मसलता , .

कभी उन्हें चिढ़ाती उनकी उस ममेरी बहना का नाम

लेकर तो कभी अपने चूतड़ से , चूतड़ के नीचे दबे मूसलचंद को रगड़ देती , और वो भी , जैसे बगावत और जॉबन जितना दबाओ उतना उभरते हैं ,

उसी तरह उनके घोड़े की भी वही हालत हो रही थी , पर मुझे क्या ,.

अब मैं कौन उससे डरती थी , हाँ दर्द होगा , थोड़ा चीखू चिल्लाऊंगी ,

पर अब मुझे डर नहीं था की मेरे चीखने चिल्लाने पर ये लड़का रुकेगा ,. मैंने उन्ही अपनी कसम धरा दी थी , .

चाहे मैं बेहोश जा होऊँ दर्द से , कितना भी चीखू चिल्लाऊं ,. अगर तुम रुके , . धीमे भी हुए न तो बस समझ लो , तुझे मेरी कसम ,.

और तभी मुझे याद आयी शाम को जो मैंने उनका मस्तराम का खजाना खोजा था ,

जिस तरह से उसके पन्ने बार बार पढ़े लग रहे थे , बीच बीच में चिपके थे , .

मैं समझ गयी थी , इसे क्या सुनना अच्छा लगता है , .

और आज हमने जो अपनी ननदों और सास को ,

इनकी माँ बहनों को खुल खुल करके गारी सुनाई थीं , वो सब इसी लड़के के मजे के लिए थी ,

और ऊपर से मंझली ननद ने जो भांग के ये लड्डू वो भी चार चार , . बची खुची ,. झिझक भी

और मैंने बिस्तर के के नीचे हाथ डाल कर वो सब किताबें निकालीं , लेकिन सबसे ऊपर एक फोटो वाली किताबें ,.

मेरे लिए कोई नयी नहीं थी , गाँव के मेले में से , असली कोकशास्त्र , ८४ आसन , . सब के सब रीतू भाभी के पास , . और कितनी दुपहरियाँ मैंने उनके साथ , एक एक पोज के बारे में इनकी सलहज में इस किशोरी को , . क्या फायदे हैं , लड़के को किस में ज्यादा मज़ा आता है , . लड़की को क्या करना चाहिए ,.
एक एक चीज़ , पन्ने वो पलट रहे थे , देख मैं रही थी उनके साथ साथ , .

पर एक पन्ने पर वो रुक गए , एक लड़की निहुरि , झुकी , और मर्द उसका , पीछे से ,. निहुरा कर घुसेड़े हुए ,. उनकी निगाह वहीँ चिपकी ,

मुझे तो इसका नाम भी याद था , क्या तो नाम बताया था , भाभी ने , . ये भी की भैया को ये बहुत पसंद है , हफते में चार पांच दिन तो इसी तरह ,. हाँ याद आया , डॉगी पोज़ ,.

" हे इत्ते ध्यान से क्या देख रहे हो , मेरी ननद की , उस गुड्डी एलवल वाली की क्या इसी तरह लोगे , पहली बार ऐसे ही करोगे ,. " मैंने छेड़ा और वो

कचकचा के मेरे गाल काटते बोले ,

" ननद की नहीं , तेरी ननद की तो बाद में देखी जायेगी , अभी तो उसकी भाभी के साथ करूंगा , . "

लेकिन मैं इतनी आसानी से उन्हें छोड़ने वाली नहीं थी , उनके होंठों को अपने होंठों के बीच भींच कर , काट के मैं बोली ,

" ज्जा ज्जा , बोलने की हिम्मत तो पड़ नहीं रही है , बड़े आये करने वाले ,. क्या करोगे जरा बोलो तो मेरे सुगना ,. "

अब आग में घी पड़ गया था , हलके से हिम्मत कर के बोले ,

" चोदुँगा ,. "

" क्या मैंने नहीं सूना , जरा जोर से बोल न , " मैंने फिर उकसाया , और अब वो खुल के बोले

" चोदुँगा उसकी भाभी को , . "

" तो ठीक है मेरे रज्जा , चोद दो न , आज उसकी भाभी को चोद लो , और जल्द मैं उस भाभी की ननदिया को चोद देना , . एकदम सही कहा तूने ,. "

उनकी बहन का ,

ख़ास तौर से उस एलवल वाली का

नाम लेने का असर हुआ जो मैं सोचती थी ,

रात बाकी .

कुतिया बना के

मुझे तो इसका नाम भी याद था , क्या तो नाम बताया था , भाभी ने , .

ये भी की भैया को ये बहुत पसंद है , हफते में चार पांच दिन तो इसी तरह ,. हाँ याद आया ,

डॉगी पोज़ ,.

" हे इत्ते ध्यान से क्या देख रहे हो , मेरी ननद की , उस गुड्डी एलवल वाली की क्या इसी तरह लोगे , पहली बार ऐसे ही करोगे ,. "

मैंने छेड़ा

और वो

कचकचा के मेरे गाल काटते बोले ,

" ननद की नहीं , तेरी ननद की तो बाद में देखी जायेगी , अभी तो उसकी भाभी के साथ करूंगा , . "

लेकिन मैं इतनी आसानी से उन्हें छोड़ने वाली नहीं थी , उनके होंठों को अपने होंठों के बीच भींच कर , काट के मैं बोली ,

" ज्जा ज्जा , बोलने की हिम्मत तो पड़ नहीं रही है , बड़े आये करने वाले ,. क्या करोगे जरा बोलो तो मेरे सुगना ,. "

अब आग में घी पड़ गया था , हलके से हिम्मत कर के बोले ,

" चोदुँगा ,. "

" क्या मैंने नहीं सूना , जरा जोर से बोल न , " मैंने फिर उकसाया , और अब वो खुल के बोले

" चोदुँगा उसकी भाभी को , . "

" तो ठीक है मेरे रज्जा , चोद दो न , आज उसकी भाभी को चोद लो ,

और जल्द मैं उस भाभी की ननदिया को चोद देना , . एकदम सही कहा तूने ,. "

उनकी बहन का , ख़ास तौर से उस एलवल वाली का नाम लेने का असर हुआ जो मैं सोचती थी ,

उन्होंने मुझे वहीँ पलंग पर और जितने तकिये कुशन पलंग पर थे ,

सब मेरे पेट के नीचे , और मैं पलंग का सिरहाना पकड़ कर झुकी ,.

उईईई मैं जोर से चीखी ,. .

वो मोटा बेदर्दी मूसल , दरेरता रगड़ता , घिसटता , फाड़ता , फैलाता

और मैं फड़फड़ा रही थी।

गनीमत थी , जो आधे घंटे पहले कटोरी भर अपनी रबड़ी मलाई उन्होंने मेरी चूत रानी को खिलायी थी ,

भले ही अपनी रसमलाई अपने साजन को बालम को मैंने मन भर के कस कस के चुसाई , चटाई थी , .

पर अभी भी बहुत कुछ मेरी चूत के अंदर थी , और उससे बढ़िया लुब्रिकेंट कोई नहीं होता ,

तीन दिन में मैं सीख गयी थी ,

फिर भी मोटा कितना था उनका , मेरी कलाई से कम नहीं था , कोक के कैन ऐसा ,. .

और गनीमत थी ,. मैं झुकी हुयी थी , मेरा चेहरा तकिया में धंसा ,

मैंने दोनों हाथों से कस के पलंग का सिरहाना पकड़ रखा था ,. भले मैंने उन्हें कितनी कसमें खिला रखी हो , उस लड़के पर मेरे चेहरे पर आये दर्द का असर जरूर होता था , .

इसलिए उन्होंने कस के मेरी पकड़ के कस के दुबारा धक्का मारा ,.

और अब उनका मोटा सुपाड़ा पूरी तरह पैबस्त हो गया था मेरी बुर के अंदर

मेरी पूरी देह गिनगीना गयी , अब मैं सिर्फ उन्हें अपने अंदर महसूस कर रही थी , मेरी जाँघे अपने आप ज्यादा खुलने लगी ,

और अब धीरे धीरे वो भी , .

मुझे मालूम था उन्हें क्या अच्छा लगता है , बस थोड़ी देर में उनका एक हाथ कमर को छोड़ कर मेरे जोबन पर , मेरे गदराये क़स्दे कड़े किशोर उभार पर ,

कभी वो सहलाते कभी हलके से दबाते कभी निपल फ्लिक कर देते ,

थोड़ी देर में उनके धक्के फिर चालू हो गए .

कुछ देर में आधे से ज्यादा करीब ६ इंच अंदर पैबस्त था ,

और अब उनके दोनों हाथ जोबन की रगड़ाई मसलाई करने में लगे थे , .

कभी कभी उनके हलके जवाब मैं भी पीछे पुश कर देती , आज मेरी पायल और चूड़ियां खामोश थीं , लेकिन करधन खूब शोर मचा रही थी , उनके हर धक्के के साथ रुनझुन रुनझुन ,

पर वो लड़का न सच में था बदमाश , . . भले ही उनकी सास सलहज उन्हें सीधा समझती हों ,

एक हाथ जोबन पर तो दूसरा क्लिट पर और साथ में हथौड़े ऐसा धक्का , .

मजे और दर्द दोनों से मेरी जान निकल रही थी , और अब सारी ताकत , सारा जोर मेरी चूत के अंदर ही ,. .

मैं जोर से चीखी , उईईईईईई उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़ नाहीईईईई ओह्ह्ह्ह्ह

सुपाड़े ने पूरी ताकत से बच्चेदानी पर धक्का मारा था ,

धक्का तो रुक गया , लेकिन उसका बेस जिस तरह से मेरी चूत पे रगड़ घिस कर रहा था और उनके दोनों बदमाश हाथ ,

मैं दो बार झड़ी उसके बाद ही वो , और उस बार हम दोनों साथ ,

पूरी रात तूफानी थी , बिस्तर के अलावा , सोफे पर भी निहुरा कर , पीछे डॉगी पोज में

जैसे कोई लड़के को नया खिलौना मिल जाए न बस ये डॉगी पोज भी उसी तरह उनके लिए थी ,

और मजा मुझे भी खूब आ रहा था ,

रात भर

जैसे कोई लड़के को नया खिलौना मिल जाए न बस ये डॉगी पोज भी उसी तरह उनके लिए थी ,

और मजा मुझे भी खूब आ रहा था ,

अब मैं खुल के साजन का लंड चूस रही थी ,

हर बार उनकी मलाई घोंटने के बाद अपनी रसमलाई उन्हें मन भर के चुसाती , चटाती ,

पहली बार हम दोनों ने ६९ का भी मजा लिया , .

मैं उनका मस्ती में चूस रही थी उनके ऊपर चढ़ी हुयी , और वो भी मेरा , उनकी जीभ मेरी चूत में धंसी

सच्च में ये लड़का नम्बरी चूत चटोरा ,

और अभी तो दूध का ग्लास भी पड़ा था , और उसमें भी वो हरी हरी , .

ज़रा सा भी वो ,. तो मैंने ट्रिक सीख ली थी बस , .

सिम्पल उसी गुड्डी का नाम ले ले कर , .

और अब उन से भी गुड्डी की बुर , गांड सब कुछ कहलवाया ,

मस्तराम की किताबों में एक थी ,

गुड्डी की जवानी . .

बस वो उनसे पढ़वाई ,. उसकी हीरोइन भी १६ साल वाली गुड्डी नाम की कॉलेज की लड़की थी , .

उसका उसके भइया के साथ ,. . बस और उनके मोबाइल में रिकार्ड भी कर लिया

कई बार गुड्डी वाले डायलाग मैं बोलती और लड़के वाले वो ,

" भइया चोदो न , ओह्ह हाँ कस कस के चोदो ,. "

वो भी अपनी उस ननद की आवाज में , . .

और वो भी उसी तरह ,

" ले गुड्डी ले ,घोंट मेरा लंड , ले , मजा आ रहा है न चुदवाने में ,. "

किताब आधी भी नहीं हुयी थी की उन्होंने मुझे ड्रेसिंग टेबल के सामने झुका के ,

और शीशे में हम दोनों को सब कुछ दिखाई पड़ रहा था ,

उस रात तो , तीसरी रात , एक बूँद भी नहीं सोये हम दोनों ,

पूरे चार बार ,.

और सुबह नहाये भी हम दोनों साथ साथ ,

चाय बनायी तो उन्होंने लेकिन मैं साथ साथ ,.

लेकिन न उस लड़के ने मुझे कपडा पहनने दिया , न मैंने पहना , सुबह की हलकी धुप पसर चुकी थी पर मैं वैसे ही उनकी गोद में

और सुबह सुबह उन्होंने गुड मॉर्निंग भी कर दिया ,

जब उनकी सलहज का फोन आया वही रोज की तरह साढ़े सात बजे

उन्होंने मुझे उठा के , अपने मोटे खूंटे पर बिठा लिया ,

और उसी तरह मैंने उनकी सास और सलहज से बात की , आधे से ज्यादा मेरे अंदर घुसा था ,

हाथ उनके उनकी सास की बड़ी बेटी के उभार पर , .

और फोन ख़तम होते ही फिर से एक बार झुका के , घचघच् घचाघच

गनीमत थी जैसे वो अलग हुए उसी समय सीढ़ी पर से नंदों के आने की आहट सुनाई पड़ी और मैंने जल्दी से साडी ,.

मैं बाथरूम में घुस गयी

और निकली तो गुड्डो और मेरी एक ननद इनके साथ गप्प मार रही थीं , ये भी सिर्फ शार्ट और टी में

गेस करिये , कौन सी ननद होगी ?
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